Sep 28, 2018

एक बार फिर नोटबंदी



   

एक बार फिर नोटबंदी   



सरकार के कल्याण कार्यों की माहात्म्य-कथा रोज़ विभिन्न सरकारी और सरकार-समर्थक मीडिया द्वारा अहर्निश चालू है |हजारों करोड़ के बड़े-बड़े चार-चार पेज के विज्ञापन देश के स्थानीय,प्रांतीय और राष्ट्रीय अखबारों में दिए जा रहे हैं | अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और अखबारों का हमें पता नहीं |लेकिन जनता है कि विश्वास करने को तैयार नहीं |अब विकास, उपलब्धियाँ और गौरव कोई ऐसी चीजें तो हैं नहीं कि किसी को न दीखें तो हाथ में थमाकर यकीन दिला दो |बड़ी परेशानी है |

कुछ महिनों पहले राहुल अमित जी और मोदी जी से तीन साल का हिसाब माँग रहे थे तो अमित जी उनसे तीन पीढ़ियों का हिसाब माँग रहे थे |हिसाब तो हमारा भी बाकी है मोदी जी पर लेकिन वे सुन ही नहीं रहे हैं |देश के सभी केंद्रीय कर्मचारियों को सातवें पे कमीशन का फिक्सेशन और एरियर मिल चुका है लेकिन हम केंद्रीय विद्यालय संगठन के रिटायर्ड कर्मचारियों के मामले में सब कान दबाकर बैठे हैं |छोटा या बड़ा, हिसाब तो हिसाब है |हिसाब साफ रखना चाहिए | हाथोंहाथ निबटाते चलो |

अब हमने और तोताराम ने इस विषय में चर्चा करना ही बंद कर दिया है |आज जैसे ही बैंक जाकर कुछ पैसा निकलवाया और पास बुक पूरी  करवाई तो पता चला कि फिक्सेशन का एरियर इस बार भी नहीं आया |जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, हमें लगता है कि वसीयत बनवा ही लें |

कहने लगा- हाँ, यह काम भी ज़रूरी है |कर ही ले |देश-विदेश में बिखरी इतनी विशाल सम्पदा ? इन सब की गणना, हिसाब-किताब और बँटवारा काफी लम्बा-चौड़ा काम है |

हमने कहा- यह मज़ाक की बात नहीं है |यह तुम भी जानते हो कि हमारे पास चार जोड़ी कपड़ों, दो-चार सौ किताबों, कुछ खाली कागज,एक पंद्रह साल पुराना नोकिया का सबसे सस्ते वाला मोबाइल, एक जोड़ी चप्पलें, एक पुराना लैपटॉप, कुछ लिफाफे, कुछ ए फॉर साइज़ के खाली कागजों के अलावा है क्या ? और ये चीजें आज किसी को भी नहीं चाहिए |ये वैसे ही हैं जैसे लैंड लाइन वाला फोन |

कहने लगा- भाई, तू तो सीरियस हो गया |मैं तो मजाक कर रहा था |अब बता वसीयत का विचार कैसे आया ? अभी तो २०२२ में अस्सी साल के होकर सवाई पेंशन लेंगे (यदि मोदी जी की कृपा हुई तो )और मोदी जी का विकसित भारत भी देखेंगे |

हमने कहा- हमें लग रहा है कि मोदी जी यह एरियर वाला मामला अपने प्रधान मंत्रित्त्व काल तक लटकाए रखेंगे |उस वक्त तक क्या पता, रहें या न रहें |कौन जीता है मोदी जी ज़ुल्फ़ के सर होने तक |इसलिए सोच रहे थे कि तुम्हारी भाभी के नाम एरियर की वसीयत कर जाएँ अन्यथा किसे पता कौन क्या चक्कर डाल दे |

बोला- अब ज्यादा देर नहीं है |अगले महिने एरियर मिल जाएगा |अभी तक मोदी जी, अमित जी और जेतली जी नोट बंदी का हिसाब-किताब तैयार कर रहे थे |अब वह तैयार हो गया है |

हमें उत्सुकता हुई, पूछा- तो क्या नोटबंदी के परिणाम स्वरूप काले धन वाले, भ्रष्टाचारी और आतंकवादी समाप्त हो गए ?

बोला- उसका तो पता नहीं लेकिन जितने नोट देश में थे उनमें से ९९.३% नोट वापिस आ गए |केवल दस हजार करोड़ के नोट वापिस नहीं आए |मतलब इतना ही काला धन था जिसका लौटकर न आना एक प्रकार से सरकार का फायदा समझ | इतना ही रुपया नए नोट छापने में लग गया | खर्चा और आमद बराबर, हिसाब साफ़ |खेल ख़त्म, पैसा हजम |

हमने कहा-लेकिन नीरव मोदी जो ले भागा उसका हिसाब कौन देगा ?

बोला-  इससे ज्यादा साफ़ और क्या हिसाब चाहिए तुझे ? फिर भी हिसाब चाहता है तो सुन- लोग मोदी जी को घेरने के बहाने बेचारे नीरव को व्यर्थ में ही परेशान कर रहे हैं | नीरव मोदी जो लेकर भागा था वे पुराने नोट थे जो अब किसी काम के नहीं |बेचारा बिना बात बदनाम हो रहा है |बदनामी के कारण जमा जमाया धंधा और ख़राब हो गया |भारत में होता तो रद्दी में बेचकर ही दस-पाँच लाख तो मिलते |लन्दन और अमरीका में रद्दी कोई लेता नहीं |यदि आप पर्यावरण के प्रति सजग है और चाहते हैं कि इन्हें रीसाइकल किया जाए तो खुद अपनी गाड़ी में लादकर किसी डंप यार्ड में छोड़कर आओ |खैर, कोई बात नहीं भगवान के घर देर हैं, अंधेर नहीं |उसे भी इस देश के न्याय पर विश्वास रखना चाहिए |मैंने नीरव, माल्या और चौकसे की जन्मपत्री दिखवाई है |देख लेना जून २०१९ में तीनों बाइज्ज़त वापिस भारत आ जाएँगे |


हमने कहा- जब कुछ घाटा हुआ ही नहीं तो मोदी जी चाहें तो देश से बचा-खुचा काला धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद ख़त्म करने के लिए २०१९ में एक बार फिर नोटबंदी कर सकते हैं |







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Sep 24, 2018

जगद्गुरु की टांग उर्फ़ गौरव की ठसक



जगद्गुरु की टांग उर्फ़ गौरव की ठसक


भारत और इंग्लैण्ड की टेस्ट सीरीज का परिणाम आ गया है और उसकी हालत रुपए जैसी हो गई है |तीसरे टेस्ट में पारी और १५९ रनों से हारने के बाद कोहली ने कहा था- हम हार के लायक ही थे |

वैसे हम कोहली को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हालाँकि कोहली और उसके प्रशंसकों  को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता |वे उसी तरह से आतंकवादियों जैसी दाढ़ी और मशरूम जैसी कटिंग में मस्त हैं |हालाँकि सभी दाढ़ीवाले आतंकवादी नहीं होते लेकिन जिस प्रकार आजकल हमने आदमी को पहचानने के जो मापदंड तय कर लिए हैं उस हिसाब से आतंकवादियों की शोभा भी अखबारों में छपने वाले उनके फोटो में ऐसी ही दिखाई देती है |इसी कारण अमरीका में ९/११ के बाद कई सरदारों पर मुसलमानों के भ्रम में हमले हुए |

लेकिन इंग्लैण्ड से बुरी तरह हारने के बाद उसने जो कहा उसके कारण हम उसके मुरीद हो गए |उसकी श्रेष्ठता की यही सबसे बड़ी पहचान है कि उसने बिना किसी लागलपेट के सच कहा |यही सच्ची खेल भावना (स्पोर्टस मैन स्पिरिट)  है |

आज जैसे ही हमने तोताराम से इस बात का ज़िक्र किया तो बोला- क्या ख़ाक खेल भावना है |खेल भावना से क्या होता है ? राष्ट्रीय गर्व और गौरव की तो ऐसी-तैसी कर दी ना ?

हमने कहा- बन्धु, बुज़ुर्ग हो, अध्यापक रहे हो |कम से कम अपनी भाषा पर तो थोड़ा ध्यान दो |

बोला- आजकल भाषा पर ध्यान देने की किसे फुर्सत है ? सब अधिक से अधिक फूहड़, बदतमीज़ होकर एक-दूसरे पर हावी होना चाहते हैं |ठेका लिए फिरते हैं शालीनता और संस्कृति का लेकिन दूसरी पार्टी की संभ्रांत महिलाओं तक के लिए अभद्र भाषा और गालियों का उपयोग करते हैं | 'ऐसी-तैसी' तो बहुत शालीन और तत्सम शब्द है |मैं तो कहता हूँ- हार जीत की कोई बात नहीं लेकिन राष्ट्र और राष्ट्रीय गौरव का ध्यान हर हाल में रखा जाना चाहिए |हमें अपनी श्रेष्ठता और महानता की भावना को हर हालत में बनाए रखना चाहिए |यदि ऐसे ही स्पोर्ट्स मैन स्पिरिट दिखाने लगे तो देश का मनोबल नहीं टूट जाएगा ?

हमने कहा- लेकिन हार तो हार है |इसे किसी भी तरह जीत में तो नहीं बदला जा सकता | 

बोला- क्यों, रवि शास्त्री ने कैसा सकारात्मक वक्तव्य दिया है ? पढ़ा नहीं ? उसने कहा- हम इंग्लैड के सम्मिलित प्रयास से नहीं हारे |हमें तो सैम कैरन के हरफनमौला खेल ने हरा दिया |

हमने कहा- लेकिन यह मान लेने में क्या बुराई है कि तुम्हारे पास कोई हरफनमौला कैरन नहीं था |

बोला- जब कैरन नहीं होगा तो हम फिर जीत जाएँगे |

हमने कहा- ठीक है, इंग्लैण्ड से जीतने के लिए देश कैरन के बीमार पड़ने या रिटायर होने का इंतज़ार कर लेगा लेकिन रुपए के गिरने के बारे में क्या सकारात्मक स्टेटमेंट है ?

बोला- इसमें हमारी अर्थव्यवस्था, मोदी जी और जेतली जी कोई कमी नहीं है |अपने राजस्थान के चिकित्सा मंत्री कालीचरण जी की रुपए के स्वास्थ्य के बारे में रिपोर्ट नहीं पढ़ी ? वे कहते हैं कि रुपए के स्वास्थ्य में कोई खराबी नहीं है |वह स्वस्थ है | रुपया घटा नहीं है |डालर बढ़ गया तो हम क्या कर सकते हैं ? यह डालर की गलती, बदमाशी है |उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था |

ऐसे ही तेल के बारे में रविशंकर प्रसाद को सुनिए- तेल की महँगाई में हमारा कोई हाथ नहीं है |

हमने कहा- लेकिन सरकार ईरान से सस्ता तेल लेने में क्यों संकोच कर रही है ?

बोला- हमारी एक अंतर्राष्ट्रीय छवि और दोस्ताने हैं |आखिर उनका भी तो ख्याल रखना पड़ता है |

हमने कहा- यह कहते क्यों शर्म आती है कि अमरीका की धमकी के आगे तुम्हारी फूँक खिसकती है |इसलिए ईरान से सस्ता तेल नहीं ले रहे |तुम्हारी तो चुहिया वाली स्थिति है |

एक चुहिया और चिड़िया की दोस्ती थी |चिड़िया कहीं दूर रहती थी |एक दिन चुहिया ने कहा कि मुझे अपना घर दिखाने ले चलो |चिड़िया तो नदी-नालों, झाड-झंखाड़ों के ऊपर से उड़ती जाती लेकिन चुहिया की आफत |चुहिया पानी में डूबने लगी |चिड़िया ने कहा- चुहिया तू डूब जाती तो ?चुहिया बोली- मैं ड़ूब नहीं रही थी, मैं तो स्नान कर रही थी |




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Sep 19, 2018

गाँधी के कोई और कार्यक्रम भी तो होंगे




 गाँधी के कोई और कार्यक्रम भी तो होंगे  



आज तोताराम सुबह की बजाय शाम को आया |कारण पूछा तो बोला- तुझे तो देश-दुनिया की फ़िक्र है नहीं |आज सुबह से मोदी जी, अमिताभ बच्चन, रतन टाटा और गुरु बासुदेव जग्गी 'स्वच्छता ही सेवा' में लगे हुए थे |एक तू है जो घर में घुसा बैठा है |मैं तो सुबह 'स्वच्छता से सेवा' महाअभियान में शामिल होने के लिए गया था |

हमने पूछा- इतनी देर में मुम्बई,दिल्ली, पटना आदि कहाँ-कहाँ हो आया ?

बोला- टेक्नोलोजी का ज़माना है | आज टेक्नोलोजी के बल पर मोदी जी कण-कण में व्याप्त हो गए हैं उसी तरह मैंने भी 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान से जुड़ने के लिए  वीडियो कांफ्रेंस देखी और फिर सफाई के लिए निकल पड़ा |मोदी जी की तरह अपने यहाँ के सेवकों ने भी जगह-जगह सफाई करते हुए फोटो खिंचवाए |

हमने कहा- हमने भी नेट पर मोदी जी का स्टेटमेंट पढ़ा है | उनके अनुसार पिछले ६०-७० साल में जितनी सफाई नहीं हुई उतनी पिछले चार साल में हो गई |

हम तोताराम से बातें करते हुए 'चार साल में ७० साल जितनी'  सफाई का जायजा लेने के लिए जयपुर रोड़ की तरफ, जिसे हमारे यहाँ का 'गौरव पथ कहा जा सकता है', निकल पड़े |

तोताराम बोला-  ७० नहीं तो ६५ साल जितनी तो हो ही गई होगी |पिछले चार साल से सारा तंत्र सब काम छोड़कर देश को स्वच्छ बनाने में ही तो लगा हुआ है |

हमने कहा- कांग्रेस ने पिछले १३० सालों से देश में बड़ी गन्दगी फैला रखी थी | २०२२ तक उस कूड़े की पूरी सफाई हो जाएगी और देश कांग्रेस-मुक्त भी हो जाएगा |

बोला- स्पीड को देखते हुए तो २०२० तक ही काम हो जाएगा |  

अब तक चलते-चलते हम दोनों मंडी के कोल्ड स्टोरेज के पास वाले प्लाट तक पहुँच गए |हमने देखा, वहाँ पंद्रह साल पहले जो कूड़ा, जिस शान और गर्व से पड़ा रहता था उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि कई गुना बढ़ गया है  |तभी दो युवक एक हाथ में बोतल थामे अपने स्मार्ट फोन में व्यस्त सामने से आगए |यदि हमने ध्यान नहीं दिया होता तो टकरा भी सकते थे | उनमें से एक ने उद्घोष किया-  गुरुजी, राम-राम |

अब इसके बाद किसी की क्या हिम्मत जो खुले में शौच करने जाने पर प्रश्न कर सके  |

हमने तोताराम से कहा- लगता है, अभी तक अभियान दल विशिष्ट स्थानों पर विशिष्ट लोगों का वीडियो बनवाने में व्यस्त है ? इस इलाके का नंबर शायद बाद में आए |

बोला- यदि दिल्ली के गाजीपुर की तरह सीकर शहर का कूड़ा यहाँ इकठ्ठा हो गया तो क्या शेष सफाई को नहीं देखेगा ? यदि  ७५% लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो उसे १००% मान लिया जाता है | और फिर लक्ष्य की महानता और बन्दे का समर्पण तो देख; सबको झाड़ू के आगे कर दिया |

हमने पूछा- तोताराम, देश की सफाई करने के बाद यह तूफ़ान कहाँ थमेगा ?

बोला- हो सकता है उसके बाद देश को अपनी नाक पोंछना सिखाने के अभियान में जुट जाएँगे | लेकिन यह बता, तुझे इस अच्छे कार्यक्रम से परेशानी क्या है ?

हमने कहा- स्वच्छता तो ठीक है, लेकिन कामों में संगति और अनुपात भी तो कोई चीज होती है कि नहीं ? 'साहब, बीवी और गुलाम' की बूढ़ी बहुओं की तरह दिन में सौ बार हाथ धोना सफाई नहीं, कोई मानसिक बीमारी है | जिस गाँधी के नाम पर यह सब किया जा रहा है उसके शराबबंदी, सादगी, संयम, सत्य-अहिंसा, स्वावलंबन और सर्व समन्वय जैसे कार्यक्रमों का नंबर कब आएगा ?  गाँधी को इस तरह सिर्फ सफाई अभियान तक सीमित कर शौचालय में बंद कर देना; कैसी गाँधी भक्ति है ? 

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Sep 17, 2018

प्रसंग और सन्दर्भ के निहितार्थ



प्रसंग और सन्दर्भ के निहितार्थ


जब तक प्रसंग और सन्दर्भ का हवाला न दिया जाए तब तक किसी बात का सही अर्थ नहीं खुलता |इसीलिए जब किसी गद्यांश या पद्यांश की व्याख्या की जाती है तो पहले उसका प्रसंग-सन्दर्भ बताया जाता था | कोई ४५ वर्ष पहले हुई एक सत्य घटना को चुटकले के रूप में इतना प्रचारित किया गया कि उसका चश्मदीद होने का दावा करना झूठा लग सकता है |घटना राजकोट के एक विद्यालय में सूर के एक पद की व्याख्या से संबंधित है |सूर के एक पद की एक पंक्ति है- 'सूरदास' तब विहँँसि जसोदा ले उर कंठ लगायो | इसका वास्तविक अर्थ सूर के लगभग सभी पाठक जानते हैं |लेकिन बिना सन्दर्भ और प्रसंग समझे एक हिंदी अध्यापक ने इसका अर्थ किया- तब सूरदास जी ने हँस कर यशोदा को गले से लगा लिया |अब कानूनी रूप से तो उनके इस शब्दार्थ को चेलेंज नहीं किया जा सकता | सूर, कृष्ण और यशोदा के संबंध, घटना के प्रसंग और सन्दर्भ को जानने वाला यह अर्थ नहीं कर सकता |

हाँ, कभी किसी बात का अन्य या मनमाना अर्थ देने के लिए लोग बिना प्रसंग-सन्दर्भ के किसी बात को उद् धृत करते हैं |इसी तरह अपनी बात को किसी बड़े संदर्भ से जोड़ने के लिए लोग किसी प्रसंग विशेष का चुनाव करते हैं जैसे 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' मिशन का शुभारम्भ गाँधी जयंती २०१५ को किया गया |उसे और प्रभावशाली बनाने के लिए उसके साथ गाँधी जी चश्मा भी चिपका दिया गया |इसी तरह गाँधी जी के 'सत्याग्रह' का अनुप्रास मिलाते हुए उसे 'स्वच्छाग्रह' भी बना दिया |अब यह अलग से विचार का विषय है कि इस अभियान में गाँधी कितना है और राजनीति कितनी ?

११ सितम्बर १८९३ को स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमरीका के शिकागो शहर में आयोजित 'विश्व धर्म सम्मलेन' में अपना प्रसिद्ध सन्देश (भाषण) दिया था |यह वर्ष उस सन्देश का १२५ वाँ वर्ष है |इस अवसर पर अमरीका में भारत मूल के कुछ लोगों ने अपने समान विचारों के कुछ भारतीयों को भाषण देने लिए वहाँ आमंत्रित किया |समाचारों के अनुसार लगभग अढाई हजार श्रोता इकट्ठे हुए |

जब विवेकानंद १८९३ में शिकागो गए थे तब योरप-अमरीका आदि में भारत के उदार, अद्वैत-दर्शन के बारे कोई स्पष्ट समझ नहीं थी |बल्कि अंग्रेजों द्वारा बनाई गई पूर्वाग्रहयुक्त एक धूमिल छवि ही थी |उसे विभिन्न मूर्तियों और प्रतीकों की पूजा करने वाले एक आदिम समाज के कर्मकांडों की तरह चित्रित किया गया था |इसके पीछे कारण यह रहा कि भारत की मुक्त चिंतन और संवाद की परंपरा ने इसे कट्टरता, किसी विशेष बाह्याचरण और कठोर धार्मिक कानून के बंधनों में बँधने नहीं दिया |इसलिए यह विश्व के अन्य एकाधिकारवादी धर्मों से भिन्न विविध और समावेशी बना रहा है |इसे सरलता से धर्म के स्थान एक 'जीवन-शैली' कहा जा सकता था जिसे यहाँ के हिन्दू धर्माधिकारियों और सर्वोच्च न्यान्यालय ने भी माना है |यही  इसकी विशिष्टता थी |यह शैली ही भारत का मूल दर्शन है जिसमें विभिन्न धर्मों, विचारों, सभ्यताओं, नस्लों, खान-पानों, पहनावों, पूजा पद्धतियों का निर्वाह सरलता से हो जाता है |यही बात इसे दुनिया के अन्य दर्शनों से अलग करती है |इसी का उद्घोष विवेकानंद के उस धर्म सम्मलेन में किया था |

हालाँकि इससे पूर्व अमरीका का मानवीय स्वतंत्रता का सम्मान करने वाला संविधान बन चुका था जो विश्व में अपनी तरह का मात्र संविधान था |इसी तरह १८६५ में दिवंगत अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन गुलाम-प्रथा और नस्ल भेद को समाप्त करने के लिए गृहयुद्ध धर्म का जोखिम उठा चुके थे जो अपनी तरह का एकमात्र गृहयुद्ध था |शायद इसीलिए अमरीका में सभी धर्मो को एकसाथ एक मंच पर लाकर संवाद का एक सिलसिला शुरू करने का प्रयास किया गया |  किसी सनातन धर्म (जिसे आज 'हिन्दू' धर्म कहने का आग्रह बढ़ता जा रहा है) वाले को वक्ता के रूप में आमंत्रित नहीं किया गया क्योंकि 'सनातन-धर्म' अन्य धर्मो- ईसाई, इस्लाम, यहूदी, बौद्ध, जैन आदि की तरह एक परिभाषा में बंधने में नहीं आता |

 सनातन धर्म की संवाद और चिंतन की स्वतंत्रता के कारण यहाँ जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि विचार-सम्प्रदाय पैदा हुए लेकिन धीरे-धीरे संबंधित धर्माधिकारियों की धर्म के माध्यम से शक्ति केंद्र के रूप में विकसित होने और अन्य निजी स्वार्थों के कारण चिंतन और उससे उपजने वाली भिन्नता की स्वीकृति कम होती चली गई |इसी  कारण सनातन संस्कृति और चिंतन के फलस्वरूप जन्मे सम्प्रदायों को स्वतंत्र धर्म का दर्ज़ा मिल गया | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की सरकारों ने इन सम्प्रदायों के अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा देकर उन पर भिन्न धर्म होने की मोहर भी लगा दी |

अमरीका के कुछ उदारवादी लोगों के प्रयत्नों से स्वामी जी को सम्मलेन में कुछ समय के लिए अपने विचार रखने की इज़ाज़त मिली |इसके बाद तो आगे की कहानी विश्व प्रसिद्ध है कि किस प्रकार अमरीका में भारत के उदार और समृद्ध चिंतन का डंका बज गया, कैसे लोग उनके दीवाने हो गए ?

धर्मों की कट्टरता और उससे विश्व को होने वाले कष्टों की ओर भी स्वामी जी ने प्रकारांतर से संकेत किया था लेकिन उनके भाषण पर मुग्ध होने वालों ने कल्पना नहीं की होगी कि मानवता को प्रेम और करुणा के विवेकानंद के सन्देश के ठीक १०८ वर्ष बाद, ११ सितम्बर २००१ को अमरीका की शान, ट्विन टावर पर धार्मिक उन्माद और घृणा से प्रतिफलित नृशंस आक्रमण होगा |उससे पहले योरप आपसी और उसके बाद दो-दो विश्व युद्धों में उलझा |कारण यही कि हमने सुना गया लेकिन गुना नहीं गया |

आज उसी भाषण के सन्दर्भ के बहाने अमरीका के उसी शहर में उसी दिन को केंद्र में रखकर जो आयोजन हुआ है क्या उसमें विवेकानंद का वैश्विक, मानवीय, सर्वसमावेशी और मानवीय करुणा पर आधारित दर्शन कहीं शामिल है ? अभी तक तो केवल हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता, उस पर मंडराते खतरे, उसकी रक्षा के लिए एकजुट होने के नारों के अतिरिक्त विवेकानंद जैसा कोई बड़ा विचार सामने नहीं आया है |यह आयोजकों की कोई सीमा विशेष हो सकती है लेकिन विवेकानंद का बड़ा सन्दर्भ इसमें कहीं नहीं है |

धर्मों और सम्प्रदायों की राजनीतिक और अन्य निजी प्रतियोगिताएँ, विवाद और संघर्ष हो सकते हैं लेकिन उनमें  विश्व के उस बड़े हित का की संकेत नहीं है जिसका सन्देश स्वामी विवेकानंद ने दिया था |वे किसी मूर्ति और पूजा और कर्मकांड से बंधे हुए नहीं थे |उन्होंने रामकृष्ण आश्रम की स्थापना के लिए इकठ्ठा किया गया धन अकाल और अभाव पीड़ितों के लिए निःसंकोच खर्च करने का आदेश दे दिया था |इसी तरह से जब एक गौसेवक उनसे गौशाला के लिए चंदा माँगने आए तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि मेरी प्राथमिकता मनुष्य है | स्वयं भी बीमारों की सेवा में खुद को खपाते हुए शहीद हो गए |


शिकागो में हुए इस नए सम्मलेन में नामधारी पंथ के दलीप सिंह ने कहा कि इण्डिया का नाम भारत रखा जाए |हालाँकि मध्यपूर्व के देशों ने 'सिन्धु' की तर्ज़ पर इस देश को 'हिन्द' के नाम से अभिहित किया और इसके निवासियों को 'हिन्दू' |इसी तर्ज़ पर यहाँ के अंकों को अरबी में आज भी 'हिन्दसा'  कहते हैं |ग्रीक आदि पश्चिमी भाषाओं में सिन्धु नदी को 'इंडस' कहते हैं जिससे 'इण्डिया' बन गया |लेकिन 'भारत'  'भरत' उससे भी पुरानी संज्ञाएँ हैं इसलिए 'भारत' नाम अधिक समीचीन है |इसमें भारत में रहने वाले सभी धर्मों और सम्प्रदायों का भी 'भारतीय' के नाम से समाहार हो जाएगा | इसमें भारत में निवास करने वाले विभिन्न धर्मों जैन, बौद्ध,मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, पारसी, यहूदी,अनुसूचित, दलित आदि सभी का समाहार हो जाएगा |हाँ, 'भारतीय' शब्द में  इनके अतिरिक्त 'हिन्दू' के नाम से अपनी पहचान के बारे में स्पष्टता कुछ कम हो सकती है |इसीलिए 'भारत' का गुण गाने वाले 'हिन्दू' की जगह 'भारत और भारतीय' की संज्ञा पर कुछ संकोच में पड़ जाते हैं |


आज दुनिया को स्वामी जी के बड़े विज़न की अधिक ज़रूरत है |












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Sep 14, 2018

मातम और गौरव से परे हिंदी का सच



मातम और गौरव के परे हिंदी का सच



हिंदी विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाले पहली, दूसरी,तीसरी भाषा है या जैसा भी उत्साही भक्तों को लिखने-बोलने के उस क्षण में उचित लगे |हिंदी विश्व के कितने देशों में बोली और कितने विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है यह भी उत्साही सेवकों की गणना पर निर्भर करता है |हिंदी की श्रेष्ठता और महानता के गुणगान का यह उत्सव विश्व हिंदी सम्मलेन के रूप में मनाया जाता है जिसके तहत हिंदी सेवक सरकारी खर्चे से उस स्थान पर जाते हैं और फारेन रिटर्न का बिल्ला और कुछ फोटो का एल्बम लिए घूमते हैं |ये कुछ चुने हुए चेहरे हैं जिन्होंने नया और हिंदी को सशक्त बनाने वाला कुछ नहीं लिखा है |

महावीर प्रसाद द्विवेदी का मानना था कि हिंदी में हर आयु वर्ग के लिए अधिक से अधिक विषयों की अधिकाधिक मौलिक और अनूदित सामग्री चाहिए जिसके लिए पाठक अपनी जिज्ञासा और ज्ञान पिपासा शांत करने के लिए हिंदी के पास आए |कहते हैं हिंदी के पहले तिलस्मी लेखक देवकीनन्दन खत्री के चंद्रकांता संतति और भूतनाथ को पढ़ने के लिए कई लोगों ने हिंदी सीखी |प्रेमचंद का साहित्य अनूदित होकर देश के कोने-कोने में पहुंचा |

आज हिंदी में ऐसा कौनसा और कितना साहित्य लिखा जा रहा है जो अपनी रोचकता, सरलता और नवीनता के कारण सभी उम्र के पाठकों को आकर्षित कर सके ? अंग्रेजी में हमें हिंदी और भारत से संबंधित उन विषयों की पुस्तकें भी मिल जाएंगी जिन पर हिंदी में कुछ नहीं लिखा गया है |

विदेशों में विश्व हिंदी सम्मलेन आयोजित करने के अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ में भी हिंदी को पहुँचाने की बात की जाती है |हमारे एक कवि मित्र ने एक संस्मरण सुनाया कि हिंदी के कुछ तथाकथित सेवक हवाई जहाज से सरकारी खर्च पर विदेश जा रहे थे |उनमें कवियों की संख्या सबसे ज्यादा थी क्योंकि कविता सबसे सरल विधा है और छंद का बंधन ढीला होने पर तो आजकल रोबोट भी कविता लिखने लगे हैं  |फिर ये सब तो हिंदी के अध्यापक हैं |वहीँ प्लेन में ही कविगोष्ठी शुरू हो गई |कवि मित्र ने बड़े गर्व से बताया कि हिंदी आसमान में भी पहुँच गई |मुझे लगा जिसे धरती पर रहने को जगह नहीं दोगे तो उसे मजबूरन आकाश में जगह तलाशनी पड़ेगी |२०२२ में भारत का गगनयान तिरंगा लेकर जाएगा |तब हो सकता है कि हिंदी सेवक चाँद पर भी किसी 'ब्रह्माण्ड हिंदी सम्मलेन' के आयोजन का जुगाड़ बना लें |

क्या किसी देश में अंग्रेजी, चीनी, जर्मन, जापानी भाषा दिवस या विश्व हिंदी सम्मलेन जैसे आयोजन होते हैं ? क्या भारत में अंग्रेजी या अन्य कोई  विदेशी भाषा सिखाने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाता है, कोई विशेष अभियान, अनुदान या प्रोत्साहन का प्रावधान है ? नहीं |फिर भी गली-गली में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और ९० घंटे में अंग्रेजी सिखाने वाले संस्थान खुले हुए हैं और पैसा कमा रहे हैं |अब तो न अंग्रेज हैं और न ही वह लार्ड मैकाले जिसके नाम पर हम देश की शिक्षा पद्धति और हिंदी की हर दुर्गति का ठीकरा फोड़ देते हैं |अब तो पिछले सत्तर साल से उनमें से कोई नहीं है |फिर हिंदी के पिछड़ेपन, अस्वस्थता और अब तो मरणासन्न होने का दोष कौन स्वीकारेगा ?

सच बात तो यह है कि जो साधन संपन्न हैं उनकी अपनी संस्कृति है, उनकी अस्मिता को हिंदी के बिना कोई खतरा नहीं है |जो विपन्न हैं, उन्हें संपन्नता का रास्ता या तो अंग्रेजी में दिखता है या फिर राजनीति में |इसलिए सभी गरीब-अमीर सारा निवेश इन दो क्षेत्रों में ही कर रहे हैं | ले-देकर भाषा, अस्मिता, संस्कृति और मूल्यों की समस्त ज़िम्मेदारी मध्यमवर्ग पर ही आती है |उनमें अधिकतर की स्थिति यह है कि उनकी भी सारी शक्ति बच्चे को दो रोटी के लायक बनाने में लगी हुई है |बच्चे का बचपन, उसकी सहजता और खुशियाँ गौण हो गई हैं |उसका समस्त ब्रह्मचर्य आश्रम, जीवन के  निर्माण और सबसे कीमती समय और माता-पिता के समस्त संसाधन मात्र कागजी डिग्री लेने में चुक जाते हैं | फिर भी नौकरी मिले या नहीं, कोई गारंटी नहीं |यदि मिले तो पता नहीं, निजी नौकरी प्रदाता उससे कितने घंटे काम लेगा. कितना निचोड़ लेगा | उसे भाषा, जीवन, अस्मिता, सहजता और उल्लास के बारे में सोचने लायक छोड़ेगा भी या नहीं ?

यह भी सच है कि बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार कुछ रोचक, मनोरंजक और जीवन मूल्य देने वाली सामग्री चाहिए |उससे उसकी सोचने की शक्ति बढती है, उसकी दुनिया बड़ी होती है,  इस दुनिया के समस्त अवयवों, जीवों, उपादानों से उसके रिश्ते बनते हैं |केवल रोटी-रोजी के पाठ्यक्रम को रटा-रटाकर व्यवस्था और हम उसका जीवन रस चूस लेते हैं |

हम अपने आपको गर्व से दुनिया का सबसे जवान  देश कहते हैं लेकिन क्या हम बता सकते हैं कि क्यों इस देश में स्वतंत्रता के बाद कोई नोबल पुरस्कार विजेता नहीं हुआ |जो हुआ उसे अपने शोध के लिए विदेश क्यों जाना पड़ा ?

यशगान करने वाले चारण और  विश्व हिंदी सम्मलेन के बाराती तो बहुत मिलेंगे लेकिन सवा सौ करोड़ में से, सत्तर साल में नोबल के लायक एक भी लेखक नहीं निकला | यदि ओस्कर के लायक भी कुछ बनता है तो किसी जोर्ज एटनबरो को आना पड़ता है |यहूदियों की एक छोटी सी कम्यूनिटी में अब तक कोई २४ नोबल विजेता हो चुके है | कुछ तो बात है |कहीं कुछ तो कमी है |यह बात और है कि हम उसे स्वीकारना नहीं चाहते या फिर हम इतने मूर्ख हैं कि हमें माजरा समझ में ही नहीं आता |

जीवन और रोटी की भाषाएँ अलग-अलग हो सकती हैं |रोटी की भाषा में विचार, चेतना, उड़ान और स्वाधीनता का होना आवश्यक नहीं बल्कि यह कहिए कि संभव ही नहीं | यदि रोटी की भाषा से यदि थोड़ा सा  अवकाश मिले तो जीवन की भाषा भी बहुत ज़रूरी हैं |वही हमारा मानसिक पोषण है |जिसे हम और अधिक सम्पन्नता या निजी नियोक्ता  के शोषण के कारण भूलने के लिए मजबूर हो जाते हैं |

मुझे विदेश और  भारत के हिंदीतर राज्यों में रहने वाले और अब माता-पिता बन चुके अपने पूर्व शिष्यों और परिचितों के संपर्क में आने का अवसर मिलता है तो हिंदी की वास्तविक स्थिति का पता चलता है |वे चाहते हैं कि वे अपने बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार कहानियाँ, लघु उपन्यास और शिशु गीत देना चाहते हैं  जिससे उनका जीवन बहुमुखी और सरस बन सके |लेकिन वहाँ की पुस्तकों की दुकानों में हिंदी की ऐसी पुस्तकें नहीं मिलतीं | हाँ, अंग्रेजी में हर उम्र और वर्ग के पाठकों के लिए सभी विषयों की पुस्तकें उपलब्ध हैं |इसलिए मजबूरी में अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ने की आवश्यकता की पूर्ति अंग्रेजी की पुस्तकों से करनी पड़ती है |

अंग्रेजी में हर आयु वर्ग के पाठकों, विशेषरूप से बच्चों के लिए उनकी उम्र के अनुसार सीमित शब्दावली में तरह-तरह की पुस्तकें उपलब्ध हैं |बहुत रोचक और सुन्दर |क्या हिंदी में इस प्रकार के लेखक और प्रकाशक हैं ?
प्रकाशक अपने सरकारी खरीद के जुगाड़ और गणित के हिसाब से पुस्तकें छापते हैं |सरकारें भी अपने राजनीतिक हितों के अनुसार साहित्य लिखवाती, छपवाती और सरकारी पैसे से सरकारी स्कूलों और पुस्तकालयों में ठुंसवाती हैं |

भारतीय वांग्मय में पंचतंत्र, हितोपदेश, पुराण, लोक साहित्य, प्रेमचंद, अकबर बीरबल, तेनाली रामा याअनूदित मुल्ला नसरुद्दीन, विविध लोककथाओं,  देवकीनंदन खत्री और कुछ जासूसी उपन्यास लेखकों के अतिरिक्त और क्या है जो आज के सन्दर्भ, शब्दावली और देश काल से जोड़कर बच्चों और किशोरों को इतना रोचक साहित्य दे सके कि वे उसे पढ़ने के लिए हिंदी सीखें या उसे पढ़ते-पढ़ते हिंदी से जुड़ जाएं |

क्या हिंदी के नाम पर रोटी-रोजी कमाने वालों, हिंदी के सेवा के नाम पर खुद को स्थापित और लाभान्वित करने वालों के पास इसका कोई उत्तर है कि क्यों हिंदी में 'ट्विंकल ट्विंकल ..' हैप्पी बर्थ डे.. ' जैसा कुछ है ? क्या एनिड ब्लाइटन जैसा कोई लेखक है ?

हाँ, प्रकाशक छापते हैं , लेखक छपते हैं | अच्छे लेखक अप्रकाशित और विपन्न हैं |प्रकाशक समृद्ध हैं | क्षेत्र में स्थापित एक दूसरे को प्रशंसित-सम्मानित करते हैं, आयोजनों का जुगाड़ करते हैं | नौकरी के लिए कट पेस्ट द्वारा घटिया शोध होते हैं |कालेजों में गाइडों से पढाई होती है |प्रवक्ता मूल पुस्तकें पढ़ते नहीं हैं  तो बच्चों से क्या आशा की जाए ? पुस्तकालयों में स्तरीय पुस्तकें नहीं हैं |हिंदी में आज से कोई साढ़े पाँच दशक पहले दो भागों में डा. धीरेन्द्र वर्मा द्वारा संपादित  'हिंदी साहित्य कोश' (दो भाग )  भी उन सभी कालेजों में नहीं है जहां स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी पढ़ाई जाती है |नागरी प्रचारिणी का 'विशाल हिंदी शब्द सागर' भी कालेजों में नहीं है |हिंदी साहित्य कोश के नए संस्करण में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है |क्या पिछले साठ सालों में हिंदी भाषा और साहित्य में कुछ नया नहीं हुआ |पहले संस्करण तक नामवर उल्लेखनीय नहीं हो सके और नए संस्करण में संपादकों ने कुछ नया  जोड़ने की जहमत नहीं उठाई गई |इसलिए नामवर सिंह कहीं नहीं हैं |

अखबारों और सरकारी कामकाज में भाषा की गलतियों की भरमार है |भाषा और वर्तनी के मामले में पूर्ण अराजकता है | किसी भी क्षेत्र में स्वावलंबन की चाह नहीं है तो फिर ऐसे ही होता है |हम विदेशी कंपनियों को यहाँ बुलाकर, उनसे अपने मजदूरों और संसाधनों का शोषण करवाकर उसे विकास का नाम देते हैं तो ऐसे में भाषा किसी प्राथमिकता में कैसे आएगी ?

चलिए, अभी तो विश्व हिंदी सम्मलेन के बहाने हिंदी सेवकों द्वारा हिंदी की महानता का गुणगान सुनें और उनके मारीशस के संस्मरण पढ़ें |उसके बाद सितम्बर में हिंदी की दुर्दशा का स्यापा करने के लिए तैयारी करें |


वैसे चलते-चलते बता दें कि गंगा, गाय और हिंदी को किसी सेवक की आवश्यकता नहीं है |ये बीमार नहीं हैं |आपको पानी के लिए गंगा की ज़रूरत है तो उसे साफ करें, उसमें रासायनिक कचरा व अन्य अपशिष्ट न डालें |यह  बात और है कि आप उसकी सफाई के नाम पर बजट खाने के लिए उसे न तो मरने देते हैं और न ही साफ़ करते हैं | दूध चाहिए तो गाय पालिए, उसकी सेवा कीजिए |यदि केवल गौशाला की ग्रांट से मतलब है तो उसके लिए गाय की नहीं, कागज पर गौशाला की ज़रूरत है |वैसे ही यदि हिंदी से प्रेम है तो हिंदी बोलिए,हिंदी पढ़िए और हिंदी में अच्छा लिखिए |

गाय, गंगा और हिंदी पूजा के नहीं, हमारे जीवन से जुड़े मामले हैं | बदमाश  हर चीज, हर विचार और हर कर्म की मूर्ति बना देते हैं, उसकी आरतियाँ गाने लगते हैं, मंदिर बना देते हैं तथा  प्रसाद और माला का धंधा करने लग जाते हैं |एक तरफ लोगों को धर्म ,भाषा, जाति के नाम पर लड़ाते-बाँटते है और दूसरी तरफ  एकता की मूर्ति बनाते हैं |जीव के पैरों में अज्ञान और अंधविश्वास की बेड़ियाँ डालकर लिबर्टी की मूर्ति के लिए अरबों का खर्चा करते हैं |

वैसे भी किसी अपराध, धोखाधड़ी, मक्कारी के मामले में दुष्ट लोग तत्काल सभी भेदों से ऊपर उठकर  बिना भाषा के भी इशारों-इशारों में ही समझ और समझाकर अपनी योजना को अंजाम दे देते हैं | धंधे के लिए किसी हिंदी अग्रेजी की ज़रूरत नहीं |धंधा अपने नियम और भाषा खुद तैयार कर लेता है |

आज से कोई पचास साल पहले की बात है |उन दिनों गाँजा, हिप्पी, बीटल आदि का चलन था |जयपुर में तरह-तरह के पर्यटक आते थे |जैसे आजकल मेडिकल ट्यूरिज्म या सेक्स त्यूरिजम चलता है वैसे ही उन दिनों नशे के लिए भारत आने वालों की संख्या भी बहुत हुआ करती थी | मिर्ज़ा इस्माइल रोड जयपुर ही व्यस्त और प्रसिद्ध सड़क है |वहाँ एक पेट्रोल पम्प हुआ करता था |मैं उन दिनों जयपुर के हिंदी अखबार 'राष्ट्रदूत' में समाचारों पर आधारित पद्यमय प्रतिक्रिया  का एक कालम लिखा करता था |इसलिए हर शनिवार को अपने कालम की सामग्री देने के लिए उधर जाता था |पेट्रोल पम्प के पास बरगद के एक पेड के चबूतरे पर बैठे एक मजदूर टाइप आदमी को बैठे देखता था |एक दिन देखा कि वह किसी विदेशी पर्यटक को एक हाथ में चिलम और दूसरे हाथ में दो रूपए का  नोट दिखा रहा है |इसका मतलब समझाने की ज़रूरत नहीं |वह कह रहा था कि चिलम पीनी है तो दो रूपए लगेंगे |सौदा हो गया |ऐसे सौदों में भाषा कोई दीवार नहीं बनती |सभी धंधों की भाषा एक ही है |

अब सोचें और तय करें कि हमें कौनसी भाषा चाहिए ?  धंधे वाली भाषा या दिल से दिल की बात करने, एक दूसरे के सुख-दुःख में साझीदार बनने, संवेदनाओं और सुखद संस्मरणों को संजोने, हवा-पानी और रंगों पर अपना नाम लिखने के लिए कोई भाषा चाहिए |दिल और सुख-दुःख की भाषा के लिए बिना अहम और कुंठा के, सबको सबके साथ चन्दन-पानी की तरह मिलना पड़ता है | तब उस भाषा की 'बास' अंग-अंग में समाएगी |







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Sep 12, 2018

समझाइश का समय उर्फ़ दुर्जन हिताय



समझाइश का समय उर्फ़ दुर्जन हिताय 


बरसात जाते ही दीपावली पर नकली मावे और मिठाई के साथ डिब्बे तौलने वाली बेईमानी की चर्चा होने लग जाती है लेकिन होता वैसे ही रहता है जैसे होता आया है | नकली और फफूँद लगे मावे की मिठाइयाँ डिब्बे के साथ तौली जाती हैं |कुछ फ़ूड निरीक्षक भी जन-कल्याण को ध्यान में रखते हुए एक दो कमजोर से केस बनाते हैं जिनमें से आगे चलकर अधिकांश छूट जाते हैं |पिछली दीपावली को भी ऐसा ही हुआ |

अब कोई दो महीने पहले राजस्थान सरकार ने पिछले साल के मिलावट के कोई एक सौ मामले जन-हित के नाम पर वापिस ले लिए |अब इसमें क्या जन-हित था यह तो सरकार ही बता सकती है | सरकार बताए या नहीं यह उसकी मर्ज़ी |हम तो उसे बोलने के लिए बाध्य कर नहीं सकते है |वह जब चाहे अन्तःपुर में शयन करने लग जाए और जब मन हो, गौरव-यात्रा पर निकल पड़े |

हम भी रोज सुबह यात्रा पर निकलते हैं- अपनी कुतिया को घुमाने और दूध लाने |इसका जन-कल्याण और किसी गौरव-यात्रा से कोई संबध नहीं है |हाँ, इस बहाने हम अपने परिवेश से ज़रूर परिचित होते चलते हैं | हमें पता है कहाँ हमें स्कूल के बच्चे ढोने वाली मारुति वैन मिलेगी और कहाँ दूध वाला कीचड़ उछालता हमारे बगल से अपनी बुलेट निकालेगा और किस घर की छत पर से कौन बिजली के खम्भे से रात को डाली कटिया उतार रहा होगा |

आज तोताराम भी हमारे साथ था | जिस मकान की छत पर से हम रोज जिस सज्जन को  खम्भे पर से कटिया उतारते देखते थे आज वह नहीं दिखा और कटिया बदस्तूर लगी हुई थी |हमने तोताराम से कहा- बन्धु, कहो तो इस मकान वाले को जगाकर यह कटिया उतार लेने को कह दें |बिना बात कोई विजिलेंस वाला आ जाएगा तो चक्कर पड़ जाएगा |

तोताराम ने कहा- आजकल हर आदमी योजनाबद्ध तरीके से चलता है |'सबका साथ :सबका विकास' का ज़माना है |तुझे फ़िक्र करने क्या ज़रूरत है ?

तभी रोज कटिया उतारने वाले सज्जन खुद ही प्रकट हो गए, बोले- मास्टर जी, जै सियाराम |सुबह-सुबह इस आध्यात्मिक संबोधन के बाद तो बिजली विभाग वाला भी ठंडा हो जाए |जैसे 'भारत माता की जय' बोलने वाली की देश भक्ति में कोई संशय नहीं रह जाता |

हमने पूछा- आज कटिया नहीं उतार रहे ?

बोला- अब दो साल तक इस झंझट से मुक्ति |आपने अखबार नहीं पढ़ा ? विद् युत  वितरण निगम वालों ने घोषणा की है-  यह वर्ष चुनावी-वर्ष है इसलिए खम्भे पर कटिया डालने वालों पर केस नहीं बनाया जाएगा |यदि कोई पकड़ा जाएगा तो उसे समझाया जाएगा | अगले साल लोकसभा का चुनाव आ जाएगा | बाद की बाद में देखेंगे |

तोताराम बोला- लेकिन तुम्हें तो सारे दिन घर पर रहना पड़ेगा |पता नहीं कब बिजली वाले आ जाएँ |

उसने अपने घर के दरवाजे की तरफ इशारा किया, बोला- इसीलिए तो यह बोर्ड लगा दिया है |बोर्ड पर लिखा था- 'समझाइश के लिए बिजली विभाग वाले शाम को मिलें यदि मकान मालिक उस समय पिए हुए न हो तो' |

हमने फिर प्रश्न किया- यदि किसी दिन तुम पिए हुए नहीं मिले और बिजली विभाग वाले समझाइश के लिए आ गए तो क्या करोगे ?

बोला- पहले तो ऐसा होगा नहीं और यदि ऐसा हो भी गया तो समझ जाना और न समझना तो मेरे ऊपर निर्भर है | 




 

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Sep 7, 2018

सस्ती यात्रा बनाम अच्छे दिन



सस्ती यात्रा बनाम अच्छे दिन

हमने 'अच्छे दिन' को जाने कब का एक जुमला मानकर रोना-झींकना बंद कर दिया है |
केंद्रीय विद्यालयों के रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए सातवें पे कमीशन के आदेश देकर मोदी जी ने 'अच्छे दिनों' का टीज़र तो आउट कर दिया लेकिन यू ट्यूब पर फ्री में पूरी फिल्म पता नहीं, कब देखने को मिलेगी |फिर भी मन नहीं मानता तो फोन का बिल जमा करवाने के बहाने बैंक भी चले जाते हैं  |  'जियो' वाले की तो 'मुट्ठी में दुनिया' हो गई है, ग्राहकों का पता नहीं |हमारे पास तो बीएसएनएल का लैंड लाइन है नेट के साथ | 

आज बिल जमा करवाकर आईटीआई के सामने उतरने लगे तो ऑटो वाले ने कहा- मास्टर जी,  बैठे रहिए | आज आपकी कॉलोनी के अन्दर की सवारी है तो आपको भी घर के आगे छोड़ दूँगा |

लगा जैसे किसी बड़ी कंपनी के सीईओ की तरह 'सोफर ड्रिवन कार' में बैठे हैं |
जैसे ही ऑटो से उतरे तोताराम ने एक चुभते कमेन्ट के साथ हमारी अगवानी की | 

बोला- क्या ठाठ हैं ? मोदी जी, अमित जी, राहुल जी तो बेचारे प्लेन में धक्के खा रहे हैं और साहब ऑटो से चले आ रहे हैं |यह तो पे कमीशन का एरियर नहीं मिला है |उसके बाद तो पता नहीं, क्या गुल खिलाएँगे |

हमारे तन-बदन में आग लग गई |एक तो सरकार, महँगाई, कानून-व्यवस्था, विकास, गौरव और अस्मिता के मारे वैसे ही जान साँसत में है और ऊपर से तोताराम का यह व्यंग्य |

हमने कहा- तोताराम, क्यों जले पर नमक छिड़कता है |यदि गुस्से में मुँह से कुछ निकल गया तो पता नहीं कोई 'अर्बन नक्सल' कह कर जेल में डाल देगा तो सड़ते रहेंगे |हमारी तो खबर भी मीडया में नहीं आएगी कि पुलिसिया कोई लिहाज कर ले |

बोला- भाई साहब, मैं कोई व्यंग्य नहीं कर रहा हूँ |मैं तो सिन्हा जी के एक स्टेटमेंट की रोशनी में बात कर रहा हूँ |

हमने कहा- कौन सिन्हा जी ? क्या यशवंत सिन्हा जी ?

बोला- अब उन्हें कौन पूछता है |मैं तो नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा जी की बात कर रहा हूँ |

हमने पूछा- क्या वे ही तो नहीं जिन्होंने 'मोब लिंचिंग' वालों का स्वागत किया था ?

बोला- बात को गलत दिशा में मत मोड़ |उन्होंने कहा है कि हवाई यात्रा ऑटो रिक्शा से भी सस्ती हो गई है |अब और क्या अच्छे दिन होंगे ? गरीब लोग अब हवाई यात्रा कर रहे हैं  |और तू ऑटो जैसे महँगे साधन से यात्रा करता है | अब आगे से हमारी सरकार में कोई कमी निकालने की ज़रूरत नहीं |

तभी हमें याद आया कि पास बुक तो बैंक में ही भूल आए |यदि खो गई तो नई बनवाने के बैंक वाले पता नहीं क्या चार्ज कर लें ? हम कोई नीरव मोदी तो हैं नहीं कि कोई 'लेटर ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग' जारी कर दें |

इसलिए कहा- तोताराम, अब हम सस्ती यात्रा ही करेंगे |अपने जयंत जी को फोन कर कि फटाफट एक प्लेन भिजवा दें बैंक तक जाने के लिए | हम पास बुक भूल आए हैं |ऑटो वाला बैंक तक के दस रुपए लेता है |हम राष्ट्र-हित में बीस दे देंगे |

बोला- इतने छोटे रूट के लिए प्लेन थोड़े ही मिलता है |

हमने कहा-दुनिया के सबसे छोटे प्लेन रूट स्कॉटलैंड के 'ओर्केनी द्वीप से पापा वेस्टरे तक' के रूट से हमारा रूट तो बड़ा ही हैं |

बोला- अब बात को और मत खींच |लम्बे रूट जैसे हजार-पाँच सौ किलोमीटर की बात कर |उसमें प्लेन सस्ता पड़ता है |जैसे कि मंगल पर जाने के लिए 'मंगल यान' ऑटो से सस्ता पड़ता है |अगर बैंगलोर जाना है तो बता |अभी फोन मिलाता हूँ सिन्हा से | 

हमने कहा- तो फिर हमारे लिए यह महँगी यात्रा ही ठीक है |सस्ती यात्रा गरीबों को करने दे |

बोला- यदि हवाई यात्रा सस्ती नहीं होती तो पिछले पाँच साल में हवाई यात्रियों की संख्या दुगुनी कैसे हो गई ?

हमने कहा- इसमें नोट बंदी के कारण सुधरी अर्थव्यवस्था का भी कुछ योगदान तो ज़रूर है जिसका सारा श्रेय तुम्हारी सरकार को जाता है |


 

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Sep 6, 2018

राम बनाम अटल



 राम बनाम अटल 


हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी पार्टी भी बड़ी अजीब है |राम के नाम पर २ से ८५, १२०,१८२ होते हुए २८२ हो गए | राम मंदिर के नाम पर खुद सिंहासन पर काबिज़ हो गए | राम अयोध्या के बाहर पता नहीं, कहाँ तम्बू लगाकर इंतज़ार कर रहे हैं | राम को ले-देकर राजधानी दिल्ली में १९३२ में लीला करने के लिए एक मैदान मिला था |उस मैदान में भी जब-तब लोग कभी किसी विदेशी मेहमान का अभिनन्दन करने के लिए, तो कभी कोई आन्दोलन-धरना देने के लिए तो कभी शपथ-ग्रहण के लिए अखाड़ा जमाए रहते हैं |किसी तरह दस दिन मिलते हैं साल में लीला करने के लिए |अब उस पर भी अटल जी को काबिज़ करने का विचार चल रहा है |और बहाना बना लिया है नार्थ दिल्ली म्युनिसिपल कोरपोरेशन की सिफारिश का |कल को कोई पंचायत ताजमहल का नाम तेरे नाम पर 'तोतामहल' करने की सिफारिश कर देगी तो क्या ताजहमल का नाम 'तोतामहल' कर देंगे ? 

बोला- आदरणीय, शांत हों | आजकल हमारी पार्टी की सरकार है इसलिए खुशामदी लोग कोई कृपा प्राप्त करने के लिए ऐसे नाटक करते रहते हैं |वैसे हमारी सरकार जन भावनाओं का बहुत ख़याल रखती है |कोई भी काम ऐसा नहीं करती जिससे लोगों को कष्ट हो हुए हैं |हर काम जनता से पूछ-पूछकर करते हैं चाहे नोटबंदी हो या जी.एस.टी. |अब लोग अटल जी के नाम पर पता नहीं क्या-क्या करना चाहते हैं |वैसे आज हमारी पार्टी भी राम की दया से इतने पॉवर में है कि चाहे तो हिमालय को गुजरात में ले जाकर रख दे |लेकिन हमारी पार्टी विकास के लिए प्रतिबद्ध पार्टी है |उसे ऐसे फालतू के कामों में कोई रुचि नहीं है |तभी भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी ने कह दिया है कि ऐसा कोई इरादा नहीं है | 

हमने कहा- अटल जी को साध्वी उमा भारती ने विष्णु घोषित किया हुआ है | राम-कृष्ण विष्णु के अवतार हैं न कि विष्णु राम-कृष्ण के |इसलिए विष्णु सभी अवतारों से बड़े हैं | यदि अटल जी को रामलीला में उलझा दिया तो यह एक प्रकार से उनकी पदावनति होगी |और कोई भी अटल-भक्त ऐसा नहीं चाहेगा |

बोला- तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है |जैसे राम के बहुत से शाखामृगों ने मिलकर दो दिन में ही धनुषकोटि से लंका तक पुल बना दिया था वैसे ही अटल जी के विश्व में फैले करोड़ों भक्त चाहें तो एक रामलीला मैदान क्या, अयोध्या नगरी, एक नया देश और महाद्वीप बना दें |

हमने कहा- वैसे भी उनका विष्णु बने रहना ही ठीक है |राम बनने में हजार झंझट हैं |राज मिलने वाला था तो वनवास हो गया |वनवास से आए तो सीता को वनवास हो गया |और रावण का हाल यह है कि किसी तरह इस साल मारो और अगले साल फिर जिंदा होकर ठहाके लगाने लग जाता है |राम की ज़िन्दगी तो दुखों में ही गुजारी- 
बहुत कठिन है धरम राम का 
बन-बन पड़े भटकना भगतो |

विष्णु ही ठीक हैं |अपना शांति से क्षीर सागर में शयन और पैर दबाने को लक्ष्मी जी | जब मन किया हाथ नीचे लटकाया और खीर उपलब्ध |दिल्ली में किसे फुर्सत है ?आज जो लोग टसुए बहा रहे हमें उन सब का पता है कि पिछले दस सालों में वे कितनी बार  अटल जी को देखने गए ?  और छत्तीसगढ़ में देखा नहीं, कैसे अटल जी की श्रद्धांजलि सभा में भाजपा के दो मंत्री  अजय चंद्राकर और ब्रज मोहन अग्रवाल बेशर्मी से दाँत फाड़ रहे थे |दुःख तो दूर, सामान्य शिष्टाचार तक का ख़याल नहीं |

वैसे तुम्हें पता होना चाहिए कि अटल जी के नाम में 'अटल' के साथ 'बिहारी' भी लगा हुआ है |जिसका अर्थ है- जो अटल अर्थात स्थिर रहते हुए भी सर्वत्र बिहार अर्थात विचरण करता हो |इसलिए अच्छा होगा कि उन्हें रामलीला मैदान से बाँध कर न रखें | ज्यादा ही प्रेम है तो बना दें कहीं अटल जी नाम से कोई 'अटल-विहार' नामक शहर और बसा दें वहाँ गरीबों को |  

वैसे सरकार द्वारा कनाट प्लेस का नाम 'राजीव चौक' करने के बावजूद अब भी लोग उसे 'कनाट प्लेस' ही कहते हैं ऐसे ही 'अटल लीला मैदान' का हाल होगा |  









 


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Sep 1, 2018

सूचना की जन्नत का वर्जित फल



 सूचना की जन्नत का वर्जित फल 

वैज्ञानिक कहते हैं- हमें जितनी सूचनाएँँ दी जाती हैं या जितनी सूचनाएँ हम प्राप्त करते हैं उनमें से ९९% से भी अधिक न तो हमारे काम की होती है और न ही हम उनका कोई उपयोग करते हैं |फिर भी लोग हैं कि सूचनाएँ हमारे दिलो-दिमाग में उँडेलते रहते हैं |कान और दिमाग नहीं हुए, कूड़ादान हो गए |अब आप इस सूचना का क्या करें कि अमुक अभिनेत्री आजकल अमुक अभिनेता के साथ अमुक स्थान पर, ऐसे छट्टियाँ मना रही है |अमुक नेता अमुक के साथ चाय पी रहा है या अमुक के साथ झूला झूल रहा है | हमें तो अपनी ही निबेड़ने से फुर्सत नहीं तो किसी और का क्या हिसाब रखें ?

जब हमने तोताराम से पूछा-तोताराम, जब माँगे और बिना माँगे, चाहे बिना चाहे सूचनाएँ सुनामी की तरह डरा रही हैं तो फिर इस सूचना के अधिकार की क्या ज़रूरत है ?

बोला- मास्टर, सूचना कभी निरपेक्ष नहीं होती |उसके पीछे लेने और देने वाले का कोई न कोई विशेष मंतव्य छुपा होता है |जब तुम किसी के महँगे सूट की बात करोगे तो वह तुम्हें अपना फटा निक्कर और मैली बनियान देखने के लिए बाध्य करेगा |जब तुम किसी के शयनकक्ष में जाना चाहोगे तो वह तुम्हें अपने पूजाघर में धकेलेगा |तुम किसी के प्रेम पत्र पढ़ना चाहोगे तो वह तुम्हें ब्रह्मचर्य का महत्त्व समझाएगा |जो सूचना वह देना चाहता है उसमें तुम्हारी रुचि नहीं है और जो सूचना तुम लेना चाहते हो वह उसे  छुपाना या तोड़ना-मरोड़ना चाहता है |

हमने कहा- इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि सही सूचना में बड़ा बल होता है |तभी तो नेता एक दूसरे के भेद सहेजकर रखते हैं और मौका आने पर संबंधित व्यक्ति को ब्लेक मेल करते हैं |इसीलिए कुछ सूचनाओं को छुपाया जाता है तो कुछ को जोर शोर से प्रचारित किया जाता है |भामाशाह योजना का प्रचार तो किया जाता है लेकिन उसमें किस तरह अस्पताल और रोगी में बिना इलाज के ही ८०% और  २०%  का कागजी बँटवारा हो जाता है, इसे कोई उजागर नहीं होने देना चाहता |अब जब निजी कंपनियों द्वारा जाँच शुरू हो गई तो निजी अस्पताल बिफरे पड़े हैं |वैसे सूचनाएँ तो गूगल पर भी बहुत-सी होती हैं |

बोला- तू समझता है कि गूगल पर सभी सूचनाएँ हैं |जो चाहे ले ले और उनका उपयोग कर ले |तुझे पता होना चाहिए कि उस पर भी सरकारें नियंत्रण चाहती हैं |चीन ने गूगल से कहा है कि तुम्हें चीन में तभी धंधा करने दिया जाएगा जब तुम कुछ वर्जित और जनविरोधी सूचनाओं से हमारी जनता को बचाओगे |

हमने पूछा- ऐसी कौन सी सूचनाएँ हो सकती हैं ?

बोला- जैसे मानवाधिकार, शांतिपूर्ण प्रदर्शन, लोकतंत्र, धर्म आदि |

हमने कहा- तब तो हमारे यहाँ भी सूचना की जन्नत के कुछ फल वर्जित घोषित कर दिए जाने चाहियें जैसे पुराण-कथाओं में विज्ञान पर शंका, गाँधी-नेहरू का देश के लिए  योगदान , हिन्दुओं के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म वाले की उदारता,सज्जनता और देशभक्ति के उदाहरण आदि | यदि नेहरू-गाँधी के बारे में कुछ जानना ही है तो राजीव दीक्षित के कैसेट सुनो |वही श्रवणीय है, वही उनके बारे में आधिकारिक सूचना मानी जाए, शेष सब कांग्रेस का दुष्प्रचार है |

बोला- फिर भी यदि तुझे औचाट है तो कर चर्चा, लड़ अंधविश्वास और झूठे प्रचार से लेकिन इतना याद रखना, ज्यादा उछलेगा तो अग्निवेश की तरह नागरिक अभिनन्दन हो जाएगा या कलबुर्गी और दाभोलकर की तरह कोई हादसा |

वह विज्ञापन नहीं सुना- मर्ज़ी है आपकी, सिर है आपका |वैसे ही 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है आपकी और ज़िन्दगी भी है आपकी' |



















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