Sep 29, 2022

चीतायन महाकाव्य


चीतायन महाकाव्य 


रात ढंग से नींद नहीं आई। सिर में थोड़ा दर्द भी था. उठ तो समय पर ही गए लेकिन कुछ करने को जी नहीं कर रहा था. समय से थोड़ा पहले ही बरामदे में आ बैठे। आँखें बंद किये सिर को दबा रहे थे. आराम मिल रहा था. पता ही नहीं चला कब तोताराम आकर हमारे बगल में बैठ गया. जब बोला तो पता चला. 

बोला- तू तो ऐसे बैठा है जैसे कोई योगी ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए ध्यानस्थ हो. यदि इलहाम हो गया हो, तत्त्व ज्ञान हो गया हो तो इस तन्द्रा से बाहर निकल और अपने अनुभव से इस नश्वर जगत को लाभान्वित कर. 

 हमने कहा- कैसा ज्ञान और कैसा इलहाम।रात का सारा चौथा पहर एक अजीब तनाव में गुजरा। कुछ समझ में नहीं आता।  

बोला- समझ के चक्कर में मत पड़।  समझ के चक्कर में पड़े रहने वाले परेशान रहते हैं। सभी बड़े-बड़े काम बिना योजना के, नासमझी और धुप्पल में ही हुए हैं। हनुमान जी ने बचपन में उगते हुए सूरज को क्या कोई योजना बनाकर मुंह में रखा था. लेकिन आज तक भक्त गाते है- बाल समय रवि लील लियो तब...... . महान लोग 'क्या कर रहे हैं' सोचने से पहले कर डालते हैं।  बाद में दूसरे दुखी लोग ही आकर उसे बताते हैं- भले आदमी, तूने यह क्या कर डाला। 

हमने कहा- हमने किया तो कुछ नहीं, बस ऐसे ही रात वाले ऊलजलूल सपने के बारे में सोच रहे थे. 

बोला- मैंने तो समझा कहीं तू मोदी जी की मदद करने के लिए चीतों के नाम सोच रहा था.

हमने कहा- मोदी जी नाम रखने के मामले में योगी जी के कोई काम थोड़े ही हैं. जब चाहें, जिसका जो नाम रख दें, जिसका चाहें नाम बदल दें.  क्या किसी को तनिक सा भी आभास  हुआ कि 'पटेल स्टेडियम' या  'राजीव गाँधी खेल रत्न' का नाम बदलने वाला है ? 

बोला- लेकिन मोदी जी सब कामों में सबका साथ लेते हैं. जैसे पिछली बार गणतंत्र दिवस की झांकियों को पुरस्कृत करने से पहले भी जनता से  ई वोटिंग करवाई थी. चाहते तो अभी नामीबिया से लाये गए सभी आठों चीते-चीतियों के नाम खुद ही रख देते लेकिन नहीं वे सभी राष्ट्रीय महत्त्व के कामों में जनता की पूरी भागीदरी चाहते हैं।  सबका साथ : सबका विकास।  इसीलिए एक प्रतियोगिता कर दी- चीते-चीतियों के नाम सुझाओ और इनाम पाओ. 

हमने कहा- मोदी जी ने एक चीती का नाम 'आशा' रखकर नामों के प्रकार का संकेत तो दे दिया।  अब सरलता से चीतियों के नाम 'आशा' की तर्ज़ पर प्रज्ञा, प्रेरणा, चेतना रखे जा सकते हैं. या फिर स्मृति, समृद्धि, प्रगति, उन्नति आदि.

बोला- और चीतों के नाम- विकास, विश्वास, प्रयास, उल्लास। अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक, अनंत ।  वैसे तेरे सपने की बात तो रह ही गई।  बता, रात के अंतिम प्रहार में तुझे ऐसा क्या सपना आया था जिसने तुझे फिर सुबह तक सोने नहीं दिया। 

हमने कहा- था तो सपना चीतों के बारे में ही लेकिन मोदी जी की तरह पिछले ७५ साल से कांग्रेस के कारण नामीबिया के वनों में वनवास काट रहे चीतों को पुनः भारत लौटा लाने जितना बड़ा और चौंकाऊ सपना नहीं था. 

बोला- मोदी जी के सपने के बारे में तो बाद में बात करेंगे, पहले तू अपने सपने के बारे में बता.

हमने कहा- सपने का क्या। छोड़।  सपने तो आल-जंजाल होते हैं।  बुढ़ापे में ऐसे ही आते रहते हैं।  ऐसे ही था, बस। 

बोला- मास्टर, बता दे।  मन हल्का हो जाएगा। दुःख और तनाव का यही मनोविज्ञान है कि बता दो तो टेंशन ख़त्म हो जाता है। तभी तो गुरुदेव टैगोर कहते थे- यदि मुक्त होना है तो खुद को अभिव्यक्त कर दो। मोदी जी को कितने काम रहते हैं लेकिन उनको क्या कभी तनावग्रस्त देखा ? और सिरदर्द तो होने का सवाल ही नहीं। 

इसका कारण है कि वे नियमित रूप से हर महिने अपने 'मन की बात' करते रहते हैं।  यदि अधिक सिर दर्द होने लगता है तो बीच में भी एक बूस्टर डोज़ दे देते हैं। अपना सिर दर्द शेयर कर लेते हैं।  वैसे ही जैसे एक बार एक किरायेदार रात को दो बजे अपने मकान मालिक के पास गया और बोला- मैं इस महिने का किराया नहीं दे पाऊँगा। 

मकान मालिक ने कहा- यह बात तुम दिन में भी कह सकते थे।  

किरायेदार ने उत्तर दिया- मैंने सोचा- मैं अकेला ही टेंशन में क्यों रहूं।  

सो तू भी अपना सपना कह ही डाल।  

हमने कहा- कुछ ख़ास नहीं है फिर भी सुन।  रात को तीन साढ़े तीन बजे की बात रही होगी। हमने देखा- कई जंगली पशु दौड़ते हुए हमारे पास आए। ज़्यादा तो नहीं देख पाए लेकिन उनके शरीर पर चकत्ते, धब्बे, धारियां जैसा कुछ था। हम डर गए और भागने लगे। वे भी हमारे पीछे दौड़े। हम भी जान बचाने के लिए जी जान से वैसे ही दौड़े जैसे कूनो के जंगल में चीतों के भोजन के लिए राजस्थान से ले जाकर छोड़े गए चीतल दौड़े रहे होंगे। जब तक वे हिंस्र पशु हमें पकड़ पाते, हमारी आँखें खुल गईं। 

क्या बताएं तोतराम, था तो स्वप्न लेकिन डर वास्तविक जैसा ही लगा।  हम एकदम पसीने में तर-बतर। लगा जैसे सारे शरीर की जितनी भी थोड़ी बहुत जान थी, सब निचुड़ गई। उसी के मारे अब तक सिर दर्द हो रहा है।   

बोला- इसीलिए महान लोग सोते नहीं हैं।  बस, कोई न कोई खुराफात करते रहते हैं सोने वालो की नींद खराब करने के लिए। लेकिन तेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए न सो पाना संभव नहीं।ऐसा महान सेवक तो युगों-युगों में कोई ही पैदा होता है जो बिना सोये जनता की सेवा करता रह सके। 

हमने कहा- तोताराम,  इस दुःस्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है ? क्या अखबारों में रोज  'मोदी जी का केन्द्रीय कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा' के नाम से बहुप्रचारित समाचार के सच होने से पहले ही हमें मृत्यु रूपी ये जंगली पशु फाड़ खाएंगे ? क्या किसी स्वप्न विचारक वैज्ञानिक से पूछा जाए ? 

बोला- आजकल हिन्दुत्त्व के चक्कर में बहुत से ज्योतिषी, तांत्रिक और लम्पट सक्रिय हो रहे हैं।  एक विश्वविद्यालय में तो ऐसे बदमाशों ने डॉक्टर से इलाज से पहले मरीजों की जन्मपत्री देखने का नाटक शुरू कर दिया है। लेकिन ये सब फालतू बातें हैं।  मुझे तो मोदी जी की तरह तेरी इस आपदा में एक अवसर दिखाई दे रहा है। 

जिन्हें तू कोई चित्तीदार, धारीदार या धब्बेदार प्राणी बता रहा है वे चीते ही थे।  यह बात और है कि टी वी और मीडया पर मोदी जी को खुश करने के लिए चीतामय हुए जा रहे भक्तों, एंकरों और मंत्रियों को उसी तरह चीता, शेर, तेंदुआ, बघेरा, बाघ और जगुआर में फर्क नहीं मालूम जैसे कि कृषिमंत्री को जौ और गेहूँ, गेंदे और गाजर घास में फर्क नहीं मालूम। 

लगता है,  ये चीते खुद को नेहरू जी द्वारा नामीबिया भगा दिए जाने के बाद की अपनी करुण-कथा तुझे सुनाना चाहते हों। और चाहते हों कि तू अपनी कविता में इनकी पीड़ा को वाणी देकर इन्हें अमर कर दे ।  मास्टर, हो सकता है ये चीते-चीतियाँ तेरे सपने में वैसे ही आये हों जैसे किसी भक्त को सपने में किसी खेत में कोई मूर्ति या किसी मस्जिद के नीचे मंदिर बनाये जाने हेतु शिव लिंग दिखाई दे जाता है।  

इसलिए अब तू इन चीतों की पीड़ा पर करुणरस का एक महाकाव्य लिख मार जिसके नायक हों उन्हें ७५ वर्ष के वनवास से नामीबिया से लाने वाले कल्कि अवतार मोदी जी. 

हमने कहा- देखते हैं।  कुछ बना तो।  वैसे आजकल ज़माना तो चुटकलों, जुमलों और मिमिक्री का है, फिर भी।  

बोला- फिर भी-विर भी कुछ नहीं।  लिख ही नहीं, पहले जल्दी से जल्दी 'चीतायन' नाम से इस महाकाव्य का रजिस्ट्रेशन भी करवा ले.  

हो सकता है अब तक प्रसून जोशी ने इस नाम से महाकाव्य का और अक्षय कुमार ने किसी फिल्म का नाम रजिस्टर न करवा लिया हो. 



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Sep 26, 2022

हिंदी करने के दिन आये


हिंदी करने के दिन आये 


चाय आ गई लेकिन तोताराम फव्वारे में शिव लिंग देखने वाले भक्तों की तरह अपनी ही मस्ती में गुनगुनाने में मगन था-  ...दिन आये . ध्यान से सुना तो अंत के चार-पांच शब्द समझ में आये- हिंदी करने के दिन आये.

हमने कहा- आज तो हिंदी के श्राद्ध पक्ष का समापन दिवस है. राष्ट्रभाषा की रुदालियों की दान-दक्षिणा के पेमेंट का अंतिम दिन. मतलब हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा सब समाप्त. अब तो जनवरी में प्रवासियों को हिंदी के तथाकथित प्रचार-प्रसार के लिए 'प्रवासी हिंदी सेवी सम्मान' के जुगाड़ का गाना गा. 

हाँ, यदि इसका अर्थ विश्व में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान का हिंदी में अनुवाद करने से है तो बड़ी ख़ुशी की बात है. आज तक हिंदी के नाम से बजट बना और निबटाया गया है. कोई ठोस काम नहीं हुआ. ज्ञान दुनिया की सभी भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन किसी के लिये भी सभी भाषाएँ जानना संभव नहीं है. इसीलिए लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए दुनिया में भटके और अपनी भाषा में उस ज्ञान को अनूदित करके लाये. जापान में दुनिया की किसी भी भाषा में प्रकाशित ज्ञान-विज्ञान के शोध पत्र का जापानी अनुवाद महिने-पंद्रह दिन में उपलब्ध हो जाता है. और हम हैं कि 'इण्डिया' और 'हिंदिया' ही करते रह जाते हैं. हिंदी ही क्यों हमारा तो मानना है कि देश की हर भाषा में दुनिया भर का ज्ञान उपलब्ध करवा दिया जाए तो अंग्रेजी का साम्राज्य अपने आप ही समाप्त हो जाएगा. फिर अपनी असफलता को टांगने के लिए किसी मैकाले की खूँटी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. 

तोताराम ने हमारे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा- पता नहीं, मैं क्यों चुपचाप चाय पीकर चला नहीं जाता. कहते हैं जब गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की तरफ भागता है. उसी तरह जब मेरा दिमाग खराब होता है तो मैं तुझसे कोई ज्ञान की बात कहता हूँ. मैं भूल जाता हूँ कि तेरा ब्रेक खराब है. एक बार बोलना शुरू करता है तो २०२२ से पीछे खिसकता-खिसकता गाँधी-नेहरू के काल में पहुँच कर उन्हें गरियाने से पहले रुकता ही नहीं.  

हमने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये' गीत के शब्द तेरे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में यह गीत 'चौदहवीं का चाँद' का है जिसे शकील ने लिखा, रवि ने धुन बनाई और गीता दत्त ने गाया है, बोल हैं-

बालम से मिलन होगा, शरमाने के दिन आये

मारेंगे नज़र सैंयाँ मर जाने के दिन आये 

तोताराम ने कहा- अब अगर तू चुप नहीं हुआ तो मैं चाय पिए बिना ही चला जाऊँगा. 

हमें लगा, यह कोई गुलाम नबी आज़ाद और अमरिंदर सिंह की तरह भाजपा की तरफ खिसकने जैसा सामान्य और पर्याप्त पूर्वानुमानित मसला नहीं है. हमारे लिए तोताराम पार्टी के एक 'खिसकूँ-खिसकूँ' सदस्य के जाने से अधिक बड़ा मामला है. इसलिए हमने उससे कहा- अब जब तक तेरी बात पूरी नहीं हो जायेगी हम कुछ नहीं  बोलेंगे. 

आश्वासन पाकर तोताराम ने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये'  से मेरा मतलब इस हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़े और माह में दो विशिष्ट लोगों ने गणित की हिंदी कर दी. राहुल गाँधी ने अध्यापक दिवस पांच सितम्बर २०२२ को आवश्यक वस्तुओं के भावों की तुलना करते हुए बताया कि आटा पहले २२ रुपए लीटर था और आज ४० रुपए लीटर. 

हमने कहा- लेकिन राहुल ने उसी समय ध्यान आते ही सुधार तो लिया.

बोला- लेकिन जिनकी ऐसी बातें खोजने की ही नौकरी है उन्हें पूरे वाक्य से कोई मतलब नहीं है. उन्हें तो अपने काम के दो शब्द निकालकर वाइरल करवाने हैं. इसके बाद अमित शाह जी ने १२ सितम्बर २०२२ को नॉएडा में वर्ल्ड डेयरी सम्मेलन में बताया कि १९६९-७० में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता ४० ग्राम थी जो अब मोदी जी के राज में बढ़कर १५५ ग्राम हो गई. 

दूध लीटर में मापा जाता है और आटा किलोग्राम में तौला जाता है.  

हमने कहा- कोई बात नहीं. राहुल ने तौलने  के गणित की हिंदी की तो शाह साहब को भी उसके ज़वाब में दूध के माप के गणित की हिंदी करने कुछ अधिकार तो है ही. और फिर वे सबसे बड़ी पार्टी के बड़े नेता हैं, और नंबर टू भी. इसलिए वे ग्राम में दूध मापेंगे और अपनी भूल सुधार कर कायरता का परिचय भी नहीं देंगे. 

बोला- तो क्या हम इसी तरह ज्ञान विज्ञान का मज़ाक उड़ाते रहेंगे ?

हमने कहा- ज्ञान-विज्ञान नेताओं का विषय नहीं है. क्या कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अपने बिजली-पानी और फोन के मीटर का ध्यान रखता है ? उसके लिए तो सब फ्री होता है. यह गणित और हिसाब-किताब तो तेरे हमारे लिए है कि कितनी महंगाई बढ़ने पर कितना उपभोग कम करना है. 

वैसे हमें तो शाह साहब की बात में भी कोई गलती नज़र नहीं आती. भई, बेचने वाले की मर्ज़ी है चाहे जैसे बेचे. जिसमें फायदा हो उसी में बेचे. जैसे दूध हल्का होता है इसलिए लीटर में बेचते हैं लेकिन कोई भी दुकानदार शहद लीटर में नहीं बेचता क्योंकि एक लीटर के पात्र में कोई तीन किलो शहद आ जाएगा. हाँ, वह पांच ग्राम चिप्स को पांच लीटर के लिफाफे में हवा भरकर पैक करके आकार के हिसाब से बेच सकता है.  

क्या तू 'अच्छे दिन' को बेचने के माप तौल का गणित बता सकता है ? तब तो कुछ नहीं पूछा और खल्लास कर आया सारे घर के वोट.  

बोला- ठीक है, अमित जी के ग्राम में दूध तौलने को तो सही बता दिया लेकिन राहुल के लीटर में आटा मापने का क्या तुक है ? 

हमने कहा- अब कांग्रेस का सीटों की कंगाली का आटा इतना गीला हो चुका है कि तौलने में नहीं आ रहा है, सिंधिया, आज़ाद और अमरिंदर के रूप में बह-बहकर भाजपा के कीचड़ में मिल रहा है तो ऐसे में आटा लीटर में ही मापना पड़ेगा. 

एक चुटकुले में हलवाई को जल्दी ठंडा करने के लिए दूध को एक बरतन से ऊंचाई से दूसरे बरतन में उंडेलते देखकर एक गणितज्ञ ग्राहक ने आधा मीटर दूध का आर्डर नहीं दे दिया था ? 

 




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Sep 23, 2022

५६ इंच मोदी थाली


५६ इंच मोदी थाली 


आज इतवार है. हमारे लिए तो सभी 'वार' बराबर हैं. कुछ कर नहीं सकते. हर 'वार' को निहत्थे और नंगी पीठ सहना है फिर चाहे वह बाज़ार का वार हो या सरकार का. दोनों ही बिना पूर्वसूचना के इकतरफा निर्णय ले लेते हैं. ये तो मोदी जी हैं जो चाहे नोटबंदी हो या घरबंदी, कम से कम चार घंटे का नोटिस तो देते हैं. 

सोचा, आज घर में किसी को ड्यूटी जाने की जल्दी नहीं है सो दूध देर से लाया जा सकता है. और बरामदे में बैठकर तोताराम का इंतज़ार करने लगे. यह हम जानते हैं कि तोताराम की बात में नेताओं के जुमलों और बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणाओं की तरह कोई काम की चीज नहीं निकलने वाली फिर भी इनके चक्कर में छुटभय्ये नेता कुछ धंधा करने और फिर उसके माध्यम से नेतागीरी और दलाली करने ई मित्र के खोखे पर पहुँच जाते हैं. 

टीवी में किसी धारावाहिक को ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ा जाता है कि अगली कड़ी तक रोमांच बना रहे जैसे एक पात्र ने किसी पर बन्दूक तानी और 'कट' . अब आप सोचते रहिये कि गोली चली या नहीं, निशाना सही लगा या नहीं, पुलिस के बारे में तो खैर कुछ सोचने की बात ही नहीं क्योंकि वह तो विलंब से ही पहुंचेगी.हाँ, पीड़ितों के जाति-धर्म से दर्शक यह तो तय कर ही लेता है कि ऍफ़ आई आर लिखी जायेगी या नहीं. और लिखी जायेगी तो किस प्रकार. 

कल तोताराम ने मोदी जी के जन्मदिन पर दिल्ली का कार्यक्रम केंसिल कर दिया लेकिन २६ सितम्बर तक ज़रूर चलने का संकेत भी दे दिया तो सस्पेंस था कि क्या मोदी जी का जन्म दिन एक सप्ताह तक मनेगा ? क्या जन्म दिन का कोई विकल्प हो सकता है ? वैसे कुछ भी हो सकता है. बड़े आदमी और फिर मोदी जी जितने बड़े आदमी, कंगना के अनुसार विष्णु के अवतार. वैसे विष्णु को तो अजन्मा भी कहा गया है. फिर कैसा जन्म दिन ?

ज्यादा कन्फ्यूज होने से पहले ही तोताराम प्रकट हो गया. 

हमने पूछा- अब कब, क्यों और कहाँ चलना है. और जन्मदिन से हमारे चलने का क्या संबंध होगा ? क्या वहाँ मोदी जी के दर्शन संभव होंगे ?

बोला- दिल्ली में १७ से २६ सितम्बर २०२२ तक कनाट प्लेस स्थित 'आर्डार २.१' नाम के एक रेस्टोरेंट ने एक स्कीम शुरू की है जिसके अंतर्गत उनकी '५६ इंच मोदी थाली' को ४० मिनट में ख़त्म कर देने वाले को ८ लाख रूपए का ईनाम दिया जायेगा. और केदारनाथ की फ्री यात्रा भी करवाई जायेगी. 

हमने कहा- इसका क्या मतलब है ? क्या इस थाली का घेरा ५६ इंच है ? क्या मोदी जी दिन में रोज दो-तीन बार इतनी बड़ी थाली में भोजन करते हैं ? क्या इस थाली को खाने से किसी की छाती ५६ इंच की हो जायेगी ? क्या इस स्किल डेवलपमेंट या आत्मनिर्भर भारत या वोकल फॉर लोकल में मोदी जी की कोई पार्टनरशिप है ? 

बोला- तेरे जैसे आदमी न कुछ कर सकते हैं और न ही किसी को कोई निर्णय लेने दे सकते हैं. यदि मोदी जी तुझ जैसे किसी लीचड़ विचारक से पूछते तो आज तक देश की अर्थव्यवस्था को उछाल प्रदान करने वाले नोटबंदी, जीएसटी और लोक डाउन जैसा कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकते थे. अरे, एक कोई सच्चा देशभक्त मोदी जी के जन्मदिन पर उत्साहित होकर एक ऑफर दे रहा है. और तू है कि बिना बात की मीन-मेख निकाल रहा है. 

चलते हैं दिल्ली. आने जाने का किराया ही तो लगेगा. यदि मोदी जी उपलब्ध हुए तो व्यक्तिगत रूप से बधाई दे आयेंगे, 'कर्तव्य पथ' से कर्तव्य की प्रेरणा ले आयेंगे. और यह भी देख आयेंगे कि मोदी जी द्वारा गुलामी का अंतिम चिह्न मिटा देने के सच्ची और सम्पूर्ण स्वतंत्रता की अनुभूति कैसी होती है ? 

हमने कहा- लेकिन बार के भोजन के लिए दो-तीन हजार का दिल्ली आने जाने का खर्च क्या उचित रहेगा ?

बोला- यह भी तो सोच अगर हमने ४० मिनट में थाली चट कर दी तो ८-८ लाख के हिसाब से १६ लाख रुपए भी तो जीत लेंगे. फिर १५-१५ लाख खाते में आने के चक्कर में भाजपा को वोट देने वाले अनन्त काल तक सर धुनते रहें लेकिन अपने तो न सही १५-१५ लाख ८-८ लाख तो वसूल हो ही जायेंगे. 

हमने कहा- तोताराम, जिस तरह मोदी जी के अभी कार्यक्रम किंग साइज़ के होते हैं वैसे ही यह ५६ इंच थाली भी कोई सामान्य थाली तो नहीं होगी. हम कैसे खा सकेंगे  ?

बोला- चलने से पहले दो दिन खाना नहीं खायेंगे. कहीं से मिल गई तो भांग का गोला लगा लेंगे. सोच अगर थाली चट कर दी तो ८-८- लाख खरे. खिलाड़ी भी तो इनाम और नौकरी के चक्कर में कितना पसीना बहते और रिस्क लेते हैं. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा. दो चार दस्त लग जायेंगे, उलटी हो जायेगी. दो तीन दिन उपवास कर लेंगे. डबल हाजमोला खा लेंगे. 

हमने कहा- तो फिर कर लेते हैं हिम्मत. खेल जाते हैं यह लाटरी भी. लेकिन चलने से पहले एक बार उस समाचार को फिर पढ़ लेते हैं. आजकल लोग ऐसे लालच के चक्कर में बड़े-बड़े लोगों को फंसा लेते हैं. तुझे पता नहीं कर्नाटक में सौ करोड़ में मंत्री बनवाने के चक्कर में कई लोग ठगे गए थे. 

बोला- मोदी जी के नाम पर है तो इसमें कोई धोखा नहीं हो सकता.  मोदी जी के नाम से है तो इस थाली में उनकी पसंद का ३०-४० हजार रुपए किलो वाला कम से कम सौ ग्राम मशरूम तो होगा ही. उसीमें अपना दिल्ली आने जाने का खर्च वसूल हो जाएगा. एक बार का खाया मशरूम पांच साल तो चलेगा. 

हमने कहा- फिर भी समाचार....

तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में संबंधित समाचार निकाला. लिखा था- एक थाली की कीमत होगी २९००/-रु.

हमने कहा- तोताराम, हम यह छह हजार की लाटरी खेलने के पक्ष में कतई नहीं हैं. 

इससे बेहतर तो हम इस राशि से गली के कुत्तों को दो-चार महिने रोटियाँ खिलाना समझते हैं. नरक यहाँ भोग रहे हैं, स्वर्ग में हमारा विश्वास नहीं. लेकिन इतना तय है कि कुत्ते नेताओं की तरह अहसान फरामोश नहीं होते. कभी रात-बिरात निकलना हुआ तो कम से कम काटेंगे तो नहीं.  

बोला- तो फिर दोनों परिवारों का एक वक्त का भोजन एक बड़ी परात में सजाकर उसके पास बैठे हुए फोटो खिंचवाकर फेसबुक पर डाल देते हैं या मोदी जी को ट्वीट कर देते हैं. 

और शीर्षक लगा देते हैं- दिल्ली में '५६ इंच मोदी थाली' का आनंद लेते बरामदा संसद के दो वरिष्ठ सदस्य. 

हमने कहा- क्या इसके साथ 'सेन्ट्रल विष्ठा' शब्द जोड़ा जा सकता है ?

बोला- नहीं, नखदंत विहीन उपेक्षित लोग 'बरामदा संसद' में ही बैठते हैं. लेकिन तू 'सेन्ट्रल विष्टा' की जगह बार-बार 'सेन्ट्रल विष्ठा' क्यों बोलता है. यह लोकतंत्र और संसद अपमान है. 

हमने कहा- लोकतंत्र और संसद का अपमान तब होता है जब जाति-धर्म और विचारधारा के आधार पर लोगों से भेदभाव किया जाता है, असहमत लोगों को इस-उस बहाने से जेल में डाला जाता है, उनकी जबानें बंद की जाती हैं. और जहां तक 'विष्ठा' की बात है तो पता नहीं क्यों हमें इस शब्द में 'निष्ठा' और 'प्रतिष्ठा' जैसा गर्व और रुतबा अनुभव होता है. 

बोला- कोई बात नहीं, मोदी जी वाला ३०-४० हजार रूपए किलो का मशरूम चखने का संयोग तो नहीं बना लेकिन कोई बात नहीं उसका सस्ता विकल्प तो है, मोरिंगा के परांठे. तेरे यहाँ बाड़े में लगा तो हुआ है. आज उसी के परांठे बनवाता हूँ. 

हमने कहा- ले जा जितना चाहे. हम तो उसे कोई दस बार काट चुके हैं लेकिन फिर फूट आता है. लेकिन आज तक एक भी फली नहीं लगी. पता नहीं कौन सी नस्ल है. 

बोला- किसी भी जीव की ऐसी नस्ल ही महत्त्वपूर्ण होती है जिसकी संतति नहीं चलती. सब कुछ अपने में ही समेटे हुए. अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक. 





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Sep 20, 2022

साहेब, मजा छे

साहेब, मजा छे


हम तो यथासमय ही जगे थे. कोई विलम्ब नहीं हुआ लेकिन पता नहीं तोताराम कब आकर हमसे पहले ही बरामदे में बैठ गया. जैसे ही बरामदे में पैर रखा तोताराम की खनकती हुई आवाज़ सुनी- मास्टर, इधर आ जा. अभी नो चाय, कंट्री फर्स्ट।

देखा, बरामदे में एक आसन पर बैठे तोताराम के पीछे मोदी जी का कहीं से कबाड़ा गया कोई पोस्टर लगा हुआ है,  खुद के बाएं हाथ में रूई की पूनी और दाएं हाथ में तकली। पता नहीं, तकली कहाँ से जुगाड़ लाया। यह कौशल विकास तो हमारे बचपन में हुआ करता था. आजकल तो बच्चों को यह भी पता नहीं कि जीवन में होम वर्क करने और गाइड रटने के अलावा भी कुछ होता है क्या।  

हमने पूछा- कौन सा कंट्री है यह ? यह कंट्री आज ही बना है क्या ? 

बोला- क्या बकवास कर रहा है ? भारत देश तो शाश्वत और सनातन है. दुनिया और ब्रह्माण्ड में जो कुछ है वह सब  इसकी कृपा से है और सब कुछ इसके बाद में बना है. मैं भारत की बात कर रहा हूँ.

हमने कहा- हमने तो हमेशा ही अपनी शक्ति के अनुसार देश को ही प्राथमिकता दी है. लाल किले पर झंडा फहराना ही देश प्रेम है क्या ? जो कहीं कूड़ा नहीं फैलाता और सबके साथ मिलकर प्रेम से रहता है, वह भी कोई कम देशभक्त नहीं है. वह भी कंट्री फर्स्ट ही है. लेकिन तुझे आज यह जुमला कहाँ से सूझा ? जुमलाबाजी तो हमारा नहीं, बड़े-बड़े सेवकों का काम है. 

बोला- जुमला नहीं, मैं तकली पर सूत कातकर एक महायज्ञ में शामिल हो रहा हूँ. लगता है मोदी जी ने अचानक कार्यक्रम बना लिया है, तभी कोई निमंत्रण नहीं दिया, घोषणा नहीं हुई, मन की बात में भी चर्चा नहीं की. 

हमने कहा- वैसे मोदी जी हैं बड़े क्रिएटिव। कुछ न कुछ अनोखा करते और सोचते ही रहते हैं. आज का क्या कार्यक्रम है ?

बोला- देख नहीं रहा पीछे अखबार की कटिंग में ? ७५०० चरखे। 

हमने देखा- अखबार की उस कटिंग में ७५०० के बाद किसी ने बॉलपेन से  +१ और लगा दिया था. तोताराम, यह क्या जालसाजी है. 

बोला- जालसाजी क्या ? करेक्शन है. इसमें ७५०० महिलाओं के साथ मैं भी तो यहां से प्रतीकात्मक रूप से शामिल हो रहा हूँ. इसलिए +१ किया है.  तू चाहे तो तू भी शामिल हो जा. 

हमने कहा- लेकिन तेरे इस प्रकार +१ करने से कविता की तरह कार्यक्रम में कुछ गति-यति का दोष तो नहीं आ जाएगा। यह कार्यक्रम आज़ादी के ७५ वें  वर्ष की समाप्ति पर हो रहा है और इसमें ७५ कलाकार रावणहत्थे बजाकर उनका स्वागत करेंगे।हो सकता है मोदी जी इस अवसर पर ७५ मिनट का भाषण भी दें.  ७५ के साथ यह +१ अजीब तो नहीं लगेगा। 

बोला- यह प्रेम का  मामला है. प्रेम में सब चलता है. मुझे कौन सी पद्म श्री चाहिए है. यह मोदी जी का खादी प्रेम है.और मैं इसमें 'मोदी-प्रेम' के कारण शामिल हो रहा हूँ. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, तिरंगा तो हमेशा खादी का ही बनता रहा है. खादी के साथ हमारे स्वतंत्रता संग्राम  का भावनात्मक संबंध रहा है. अब ये सिंथेटिक झंडे फहराने की छूट मोदी जी ने दे तो दी लेकिन वह खादी वाला मज़ा नहीं। लगता है हम तिरंगा नहीं फहरा रहे बल्कि कोई नाटक कर रहे हैं. 

बोला- खादी और सिंथेटिक के चक्कर में मत पड़. मोदी जी की भावना और उत्साह को देख. आज तक किसी को  एक साथ करोड़ों तिरंगे फहराने का ख़याल भी आया ? 

यह खादी-उत्सव मनाकर मोदी जी देश दुनिया का ध्यान खादी की ओर आकर्षित कर रहे हैं. यह एक अनोखा कार्यक्रम है. और संभवतः एक वर्ल्ड रिकार्ड भी.इससे सिंथेटिक तिरंगे वाला दुष्प्रभाव भी दूर हो जाएगा। बेलेंस बनाना बहुत  ज़रूरी है. 

हमने कहा- तोताराम, प्रतीकात्मकता का महत्त्व एक सीमा तक ही होता है. प्रतीकात्मकता से एल्बम  बन सकता है, ज़िन्दगी नहीं चलती। 

बोला- उनके कन्धों पर १४० करोड़ भारतीयों का भार है. ऊपर से सारी दुनिया के मार्गदर्शन का उत्तरदायित्त्व।  इतना कर लेते हैं, यही क्या कम है. 

हमने कहा- कभी चरखा चलाने वाली महिलाओं से एकांत में, वास्तव में, तसल्ली से इतना तो पूछ लें कि सारे दिन  चरखा चलाकर उनका जीवन कैसा चल रहा है ?

 सबके सामने तो वे यही कहेंगी- सब ठीक है. 

क्या कभी कोई कहता है- मज़ा नथी. सब यही कहेंगी- साहेब, मजा छे.  





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अंतर्राष्ट्रीय संगीत सोम सेना समर्थक संगठन


अंतर्राष्ट्रीय संगीत सोम सेना समर्थक संगठन 


हमने पहले से पूरी तैयारी कर रखी थी. दूध का क्या है थोड़ा देर से भी लाया जा सकता है. अधिक से अधिक यही तो होगा कि तीन लीटर में एक सौ मिलीलीटर पानी मिला दिया जाएगा. वैसे भी देश नकली दूध, घी और दवाइयों और यहाँ तक कि नकली सेवकों तक को झेल रहा है. बिना पानी मिला यह दूध को पीकर कौन सी छाती ५६ इंच की हुई जा रही. अब तो झुकने लगी कमर, लटकने लगी झुर्रीदार त्वचा और अच्छे दिनों की राह देखते देखते धुंधलाती दृष्टि के साथ ही निभाना है.  

इसलिए दूध लाने का कार्यक्रम आगे खिसकाकर तोताराम के स्वागत समारोह की तैयारी का काम निबटाया. 

जैसे ही तोताराम बरामदे के सामने आकर खड़ा हुआ, हमने उसके गले में माला डाल दी. पोती ने फोटो लिया और पत्नी सहित हम तीनों ने तालियाँ बजाईं. 

तोताराम भौचक्का. क्या है यह, यह क्या है ? मैं तो वैसे ही बरामदा निर्देशक मंडल में बैठा दिया गया हूँ. मुझसे किसी की कुर्सी को क्या खतरा है जो मेरे लिए यह अंतिम विदाई जैसा नाटक किया जा रहा है. 

हमने कहा- अंतिम विदाई नहीं यह 'अंतर्राष्ट्रीय संगीत सोम सेना समर्थक संगठन' का प्रान्त प्रमुख नियुक्त किये जाने के उपलक्ष्य तुम्हारा स्वागत समारोह है. कल के विश्वसनीय अखबार के स्थानीय संस्करण में फोटो भी छप जाएगा. 

बोला- किसने नियुक्त किया मुझे प्रान्त प्रमुख ? 

हमने कहा- हमने नियुक्त किया ?

बोला- तेरे पास क्या अथोरिटी है ?

हमने कहा- हम इस सेना का समर्थन करने वाले संगठन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. 

बोला- क्या यह कोई लड़ने वाली सेना है या सेना के लोगों को संगीत सिखाने वाली संस्था है ?

हमने कहा- नहीं, यह समाज में सद्भाव फैलाने वाला एक सांस्कृतिक संगठन है.  इस संगठन का पूरा नाम है-  'संगीत सोम सेना' . इसकी स्थापना सरधना विधानसभा क्षेत्र का एक दशक  (2012-2022) तक प्रतिनिधित्व करने वाले फायर ब्रांड नेता संगीत सोम के नाम पर की गई है. संगीत सोम २०२२ में समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान से हार गए थे. लेकिन अब भी वे अपने समर्थकों के साथ समाज सेवा में लगे हुए हैं. वर्तमान में इस सेना के प्रमुख हैं युवा नेता- सचिन खटीक. 

हमने इस सेना का समर्थन करने के लिए एक संगठन बनाया है  'सोम सेना समर्थक अंतर्राष्ट्रीय संगठन'  हम उसके अध्यक्ष हैं. बस, हमने इसी अधिकार से तुझे 'संगीत सोम सेना समर्थक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का प्रान्त प्रमुख' नियुक्त किया है. अब तुम इस अधिकार से अपनी कार्यकारिणी और जिला अध्यक्ष आदि नियुक्त कर सकते हो. 

बोला- गज़ब है मास्टर, क्या पद है.  एक हारा हुआ विधायक, उसके समर्थन में बनी एक सेना जिसका प्रमुख एक अज्ञातकुलशील कोई सचिन खटीक, उस सेना का समर्थन करने के लिए तूने अपनी मर्जी से एक संस्था बनाई और नाम इतना बड़ा ? ससुर चूहा दो इंच का और उसकी पूंछ दस फुट की. छाती २८ इंच की, वजन ३५ किलो, मूंछें तीन फुट की और नाम ठाकुर झुंझार सिंह धरती धसक. 

हमने कहा- तोताराम, व्यक्ति का शारीरिक आकार-प्रकार नहीं उसकी क्षमताओं का महत्त्व होता है. अष्टावक्र का क्या रूप-स्वरूप था लेकिन राजा जनक की सभा में उपस्थित सभी विद्वानों की हवा खिसका दी. वामन का कद तेरे से भी छोटा था लेकिन राजा बलि के माथे पर पैर रख दिया. तीन कदमों में नाप लिए थे तीनों लोक. 

जिसके पीछे राज का तेज चमकता है उसे कभी छोटा मत समझो. वह सत्ता में न होते हुए भी किसी भी विपक्षी पर भारी पड़ता है. किसी को भी लतिया-गरिया सकता है. जब राम के कोमल शरीर और कठोर धनुष की तुलना करके सीता की माता चिंतित होती है तब उसकी सहेली कहती है- तेजवंत लघु गनिय न रानी. 

बोला- तो इस हारे हुए विधायक संगीत सोम के संगीत में ऐसा क्या है ? क्या उसके संगीत से दीये जल जाते हैं ?

हमने कहा- तेजस्वी व्यक्ति के संगीत ही क्या उसके तो पेशाब तक में दीये जलते हैं. 

बोला- ऐसा क्या कर दिया तेरे इस संगीत सोम ने ?

हमने कहा- सोम जी तो बहुत दूर हैं. उनके इस प्रशंसक सचिन खटीक ने अपनी प्लाटून के साथ बिरियानी बेचने वाले मोहम्मद साजिद की रेहड़ी पलट दी, उसके पैसे छीन लिए. 

एफआईआर के बावजूद खटीक को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. घटना के बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट में उसने कहा, ‘अगर नवरात्रि के दौरान मांसाहार बेचने वालों के खिलाफ आवाज उठाना अपराध है तो मैं इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार हूं.’

और सब जानते हैं कि ऐसे कामों की कीमत चुकाई नहीं जाती बल्कि वसूली जाती है. वह वार्ड मेम्बरी से मंत्रीपद तक कुछ भी हो सकती है.

संगीत सोम ने भी गर्वपूर्वक स्वीकार किया है कि सचिन उनके संगठन का सदस्य है. 

बोला- मास्टर, तेरी कोई जान पहचान हो तो मुझे भाजपा में 'अर्द्ध पन्ना प्रमुख' बनवा दे. 

हमने कहा- यह भी कोई पद है ? चुनाव में दस-आदमियों के वोट डलवाने के लिए धक्के खाते रहो. 

बोला- लेकिन यही सही चेनल है. काबिलियत हो तो व्यक्ति भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बन सकता है. 

हमने कहा- जैसे हर चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री बन सकने का भ्रम नहीं पालना चाहिए वैसे ही अर्द्ध पन्ना प्रमुख को इतना बड़ा स्वप्न नहीं देखना चाहिए. बहुत बड़े स्वप्न से आँखें खराब हो जाती हैं. 

बोला- तेरे अंडर में यह फालतू प्रान्त प्रमुखाई से तो अच्छा है खुद ही कोई 'जय जय राजे राजस्थान ' की तरह 'वाह-वाह शाह' जैसा संगठन बना लूं. 

हमने कहा- कहीं शाह साहब गुस्सा हो गए तो ?

बोला- ऐसे कामों से कोई गुस्सा नहीं होता. सबके मन में ऐसी चमचागीरियों की दमित इच्छा होती है. मोदी जी जानते हैं कि वे विष्णु के अवतार नहीं हैं, वे भी एक नश्वर मनुष्य हैं. मनुष्य होने की सभी सीमाओं में बंधे हुए. लेकिन जब कोई वेंकैया जी, उमा भारती या कंगना रानावत उन्हें विष्णु का अवतार कहता है या कोई उनका मंदिर बनाता है तो वे कभी मना नहीं करते. कोई भी ऐसे कामों को अंधविश्वास फैलाने वाला अज्ञानपूर्ण कृत्य कहने का साहस नहीं करता. 

हमने कहा- तो फिर अपने इस बरामदे में मोदी जी का एक मंदिर ही बना लेते हैं. 

बोला- लेकिन हो सकता है मोदी जी अपने ही बनाए हुए नियमों के अनुसार २०२५ में झोला उठाकर केदारनाथ चले गए तो ?

हमने कहा- तो जो उनकी जगह आएगा उसकी मूर्ति लगा लेंगे. हमने कौनसा भारतीय पतिव्रता पत्नी की तरह सात जनम का पट्टा लिख रखा है. 



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Sep 19, 2022

बधाई का मेसेज


बधाई का मेसेज  



आज तोताराम हमेशा से कुछ जल्दी आ गया, बोला- बना लें क्या प्रोग्राम ? 

हमने कहा- किस बात का प्रोग्राम ? बैंक चलने का ? तो समझ ले हम पेंशन चार दिन पहले ही ला चुके हैं, २०% प्रतिशत बढ़कर आने वाली पेंशन अब अक्तूबर पर गई. त्योहारों पर बढ़े हुए डी.ए. का समाचार लोग रोज नेट पर चला रहे हैं लेकिन हाथ में आ जाए तब जानना. अभी 'सरस' डेयरी से दूध लायेंगे तब चाय बनेगी. और कोई प्रोग्राम है नहीं. 

बोला- वही रोज रोज का रोना-गाना. सारी दुनिया बल्ले बल्ले हो रही है और तुझे चाय से आगे कुछ दीखता ही नहीं. आज मोदी जी का जन्म दिन है. कुछ तो प्रोग्राम बनाना ही पड़ेगा.

हमने कहा- कल से हमारा नेट नहीं चल रहा है. बीएसएनएल का ऑफिस खुलते ही शिकायत करेंगे. जब ठीक हो जाएगा तब ट्विटर पर उन्हें बधाई दे देंगे. 

बोला- तू पता नहीं किस नेहरुयुगीन गुलाम मानसिकता में फंसा हुआ है. अरे, जियो वाला ले. और कर ले दुनिया मुट्ठी में. 

हमने कहा- दुनिया तो मुट्ठी में अम्बानी-अडाणी और मोदी जी की ही हो सकती है. शक्तिशाली का क्य . दुनिया तो दुनिया आसमान मुट्ठी में कर ले. हमारी मुट्ठी से तो समय रेत सा फिसलता जा रहा है. निराला की तरह- स्नेह निर्भर बह गया है. रेत ज्यों तन रह गया है. 

हाँ, यदि मोदी जी को लिख दिया तो बीएसएनएल को तो एक दिन में ही बंद कर देंगे. वे जनता की ऐसी बातें तत्काल सुनते हैं. जैसे जनता ने कहा- 'राजीव गाँधी खेल रत्न' का नाम  'ध्यानचंद खेल रत्न' कर दो उन्होंने कर दिया लेकिन सोचते हैं जितने दिन बीएसएनएल चल रहा है चलने दें अन्यथा एक न एक दिन तो इसे किसी अम्बानी-अडानी के हाथों बिकना ही है. हम क्यों अपने सिर अपयश लें. 

बोला- बीएसएनएल जब बिकेगा जब बिकेगा, तू जियो जब लेगा तब लेगा लेकिन फिलहाल तो मोदी जी को बधाई देना बहुत ज़रूरी हैं. वे भी तो हमें हमेशा सभी बातों की जानकारी देते हैं. हमेशा दिवाली, होली तक की बधाई देते हैं. चले चलते हैं. दो-तीन हजार का ही खर्चा तो है. ट्विटर का क्या ? आमने सामने की बात और होती है. 

हमने कहा- लेकिन वे तो समरकंद गए हुए हैं शी जिन पिंग से हाथ का शकरकंद बनाने के लिए . देखा नहीं, किस शान से 'इण्डिया वन' से उतर रहे थे. 

बोला- वहाँ से तो रात को ही आगये .

हमने कहा- तो फिर थोड़ा आराम करने दे, थके हुए होंगे. 

बोला- ये मोदी जी हैं, थकते नहीं. राम काज कीन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम. दोपहर तक पहुँच जाएँ तो शायद घर पर  मिल जाएँ. 

हमने कहा- उससे पहले तो वे सुबह सुबह नाश्ता करते ही मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान चले जायेंगे जहां वे नामीबिया से आये मंगवाए को छोड़ेंगे.   

बोला- हाँ, पढ़ा तो था. एक बड़े अखबार के पत्रकार ने एक स्टोरी चलाई थी कि नेहरू जी के समय में १९६१ में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने सवाईमाधोपुर के जंगलों में चीते का शिकार किया . शेष डरकर भाग गए थे शायद मोदी जी के समय में सुरक्षित वातावरण पाकर वे ही चीते अब लौट रहे हों.  

हमने कहा- इन पत्रकारों को शेर, बाघ, चीता, तेंदुआ में ही कोई फर्क पता नहीं है. जब महारानी ड्यूक से साथ भारत आई थीं और रणथम्भोर के जंगलों में जयपुर की महारानी और महाराजा के साथ शिकार पर गई थीं तब हम सवाईमाधोपुर में ही थे. सवाईमाधोपुर रेलवे स्टेशन से शहर की तरफ जाते हुए रास्ते में जयपुर महाराजा की कोठी पड़ती है. उसमें वे शिकार के लिए आते-जाते रुकते थे और वहां उनके द्वारा शिकार किये जानवरों के खालें, अवशेष, फोटो और भुस भरे हुए शरीर रखे रहते थे. तब उन्होंने बाघ का शिकार किया था चीते का नहीं. 

लेकिन भारत के अंतिम तीन चीतों का शिकार वर्तमान छतीसगढ़ की कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने  १९४८ में किया था, एलिजाबेथ ने नहीं. उसके बाद १९५२ में भारत को चीताविहीन घोषित कर दिया गया.    

बोला- अब बस कर यह चीता-चर्चा. दिमाग का दही कर दिया. जब नेट ठीक हो जाएगा तब मोदी जी को जन्म दिन की बधाई का मेसेज कर देंगे. वैसे मोदी जी सर्वव्यापी हैं. यदि सच्चे मन से मौन रहकर भी उन्हें कुछ मेसेज देंगे तो वह उन तक पहुँच ही जाएगा. 

लेकिन २६ सितम्बर से पहले पहले एक बार दिल्ली चलना तो ज़रूर है. 

हमने कहा- ऐसा क्या ज़रूरी काम आ गया ?

बोला- कुछ तो संस्पेंस रहने दे. इस विषय पर कल चाय के समय अगला कार्यक्रम घोषित किया जाएगा. 



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Sep 15, 2022

बाल अधिकारों के फिक्रमंद


 2022-09-14   बाल अधिकारों के फिक्रमंद  



प्रसन्न चित्त तोताराम ने हमें बताया- 'भारत जोड़ो यात्रा' में कुछ माता पिता अपने बच्चों को ला रहे हैं और उन्हें राहुल गाँधी से मिलवा रहे हैं. बच्चों पर कितना बड़ा अत्याचार है. यह उम्र क्या बच्चों को ऐसी यात्रा में ले जाने की है ? इस घोर बाल अत्याचार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्वयं संज्ञान लिया और केंद्रीय चुनाव आयोग से शिकायत की है कि बच्चो का राजनीतिक औजार के रूप में दुरुपयोग हो रहा है. राहुल के साथ चल रहे किसी भी मानवाधिकार संगठन ने चूँ तक नहीं की. क्यों करेंगे ? यदि मोदी जी का सजग और सतर्क शासन-प्रशासन नहीं होता तो कौन उठाता इस घोर अत्याचार के विसुद्ध आवाज़ ?  

कितनी सूक्षम दृष्टि है और कितना जिम्मेदारी पूर्ण तत्काल एक्शन.

हमने कहा- ठीक है, यह उम्र क्या कोई रैलियों में जाने की है ? यह उम्र तो मोबाइल पर किसी देशद्रोही को ट्रोल करने की है. किसी देशद्रोही की फिल्म का बहिष्कार करवाने की है. बुल्ली-सुल्लू करने की है. चरित्र निर्माण के लिए मोदी जी के मन की बात सुनकर गौरवान्वित होने की है.

बोला- लेकिन अब मोदी जी आ गए हैं. देश का गुलामी का इतिहास बदलने के धुआंधार कार्यक्रम के बीच भी उनकी सूक्ष्म दृष्टि बाल-हित के प्रति सचेत रहती है. 

अब राहुल गाँधी को क्या पता बाल अत्याचार क्या होता है ? केवल दादी और पिता को आतंकवाद की भेंट ही तो चढ़ाया है. 

हमने भी तोताराम की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा- तोताराम, वास्तव में इस देश का इतिहास ही बाल अत्याचार का रहा है. बाल कृष्ण को ही देख. 

बोला- बालकृष्ण कौन ? क्या रामदेव जी वाले. एलोपैथी को गरियाने वाले, किसी भी उत्पाद को दिव्य कर देने वाले लेकिन अपना इलाज एम्स में करवाने वाले बालकृष्ण ?

हमने कहा- नहीं, हम तो साक्षात् कृष्ण की बात कर रहे हैं जिनकी क्रूर माँ यशोदा उन्हें जरा सा मक्खन खाने पर पीट देती थी,  जंगल में गाय चराने के लिए भेज देती थी.बाल श्रम का कैसा जीता जगाता उदाहरण है. एक दिन तो वे विद्रोह पर उतर आये और कहा- ले संभाल अपनी यह लाठी और कम्बल. बहुत नाच नचाया है. सौतेली माँ और क्या कर सकती है .

इसके गवाह है सूरदास.

द्रोणाचार्य की पत्नी अपने बेटे को आटा घोलकर दूध के नाम से पिला देती थी. जिस काल में भारत में घी-दूध की नदियाँ बहती थीं उस काल में भी इतनी कंजूसी ! 

बोला- गाँधी जी के आन्दोलन में इंदिरा से वानर सेना में बालश्रम करवाया था. वास्तव में बड़ा दुखद इतिहास है. और इसमें नेहरू सबसे ज्यादा दोषी हैं. खुद तो अपनी शादी उचित आयु प्राप्त करने पर की लेकिन जब मोदी जी की शादी १७ वर्ष की आयु में की जा रही थी तो नेहरू जी कुछ नहीं बोले. उनसे स्कूल जाने की उम्र में चाय बिकवाई जा रही थी तब भी उन्होंने आपराधिक चुप्पी बनाये रखी.  


 


हमने कहा- जब मोदी जी की शादी १७ साल की उम्र में करवाई गई तब तो नेहरू जी का निधन हो चुका था. वे इसके लिए कैसे दोषी हो सकते हैं . 

बोला- जिस तरह से आज भी नेहरू हमारी राष्ट्रहित की योजनाओं और देश को वास्तव में गुलामी से मुक्त करवाने की कोशिशों में ऊपर स्वर्ग या नरक में बैठ कर भी दखल दे रहे हैं तो क्या उस समय किसी को स्वप्न में ही सन्देश नहीं दे सकते थे कि अमुक अमुक बालक का बाल विवाह किया जा रहा है, रुकवाओ. 

हमने कहा- तोताराम, हमारी शादी भी १९५९ में सत्रह साल से कम आयु में कर दी गई थी लेकिन नेहरू जी ने उस समय सदेह उपस्थित होते हुए भी मदद नहीं की.

बोला- नेहरू जी ने तो गाँधी जी की बारह वर्ष की उम्र में होने वाली शादी को नहीं रुकवाया. तुम और गाँधी जी दोनों कायरों की तरह सहते रहे इस अत्याचार को लेकिन जिनमें साहस होता है वे मोदी जी की तरह अटल जी वाले  'काल के कपाल' पर पैर रखकर समय की गति को बदल देते हैं. बुद्ध की तरह मानवता के कल्याण के लिए सभी बंधनों को तोड़कर महाभिनिष्क्रमण कर जाते हैं.  

हमने कहा- क्या स्कूल के बच्चों को खेलने-कूदने और अपने मन का कुछ करने देने की बजाय, अपने मन की बात सुनाना अत्याचार नहीं है ? और देख, हमने उसके सामने एक रैली का फोटो करते हुए पूछा- यह क्या है ? 

बोला- यह चरित्र निर्माण और इसे देशभक्ति का पहला पाठ कहते ह


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Sep 12, 2022

नोटों पर फोटो


 नोटों पर फोटो  


जैसे बड़े बड़े नेता आते ही या जाते समय खुद की खुद को माफ़ी दे देते हैं. कुछ दूरदर्शी अपराधी अग्रिम जमानत ले लेते हैं. कुछ पकड़े जाते ही जेल से बचने या जमानतार्थ प्रस्तुत करने के लिए डाक्टर से चालीस बीमारियों का प्रमाण-पत्र लेकर जेब में रखते हैं. ट्रंप साहब खुद को, कुछ अपने कृपापात्रों और कुछ से पैसे लेकर उन्हें भविष्य के लिए माफ़ी दे गए. वैसे ही जैसे ताकतवर नेता पुराने और असहज करने वाले मामलों को जजों से हमेशा के लिए बंद करवा लेते हैं. .

कुछ वैसे ही मनमाने और आदेशात्मक अंदाज़ में तोताराम ने फरमाया- मास्टर, अब तो छप ही जाना चाहिए. 

हमने कहा- छप तो गया. देखा नहीं,  टाइम मैगजीन के मुखपृष्ठ पर 'इंडियाज़ डिवाइडर इन चीफ'. 

बोला- वह छपना भी कोई छपना है, वह तो मोदी जी की वैश्विक प्रतिष्ठा से जलने वालों ने पता नहीं कुछ मेनेज करके छपा-छपू लिया. 

हमने कहा- अभी गए साल भी तो छपा था- द बेस्ट हॉप ऑफ़ अर्थ. दुखों में उलझी, किंकर्तव्यविमूढ़ और निराश दुनिया के लिए एकमात्र आशा की किरण हमारे मोदी जी.

बोला- छपा तो था लेकिन कुछ दिलजले लोगों को कहाँ सुहाता है. यह बात फटाफट न्यूयोर्क टाइम्स तक पहुंचा दी . न्यूयार्क टाइम्स वालों ने साफ़-साफ कह दिया कि हमने ऐसा कुछ नहीं छापा है. यह सब जालसाजी है, कोई अर्द्ध सत्य है. जैसे डाकिया अपने नाम से पहले डा. लगाकर पीएचडी या चिकित्सक का भभका मारे. 

हमने कहा- तो फिर एकदम पक्की और उत्साहवर्द्धक सकारात्मक छपन. न्यूयार्क टाइम्स ने दिल्ली के स्कूलों की अच्छी शिक्षा के बारे में जो खबर छापी है वह देश में शिक्षा  के गिरते स्तर की बुरी खबरों के बीच, वास्तव में गर्व की बात है. 

बोला- क्या गर्व की बात है ? हमारे लिए तो सर दर्द पैदा कर दिया. अब यह केजरीवाल कभी गुजरात, कभी हिमाचल प्रदेश और कभी हरियाणा जाकर नाटक करता है. कहता है मोदी जी हमारी सरकार को इसलिए परेशान और बदनाम कर रहे हैं, ईडी के छापे मरा रहे हैं क्योंकि हम शिक्षा, चिकित्सा की अच्छी व्यवस्था कर रहे हैं. पानी और बिजली मुफ्त दे रहे हैं. अब बताओ भाइयो, क्या हम कोई बुरा काम कर रहे हैं ? 

हमने कहा- तो इसमें झूठ क्या है, गलत क्या है ?

बोला- लेकिन अब हमारे गले तो यह नमाज पड़ गई ना. अब केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर पीएम श्री के नाम से  १४५०० विद्यालय खोलने का झंझट पालना पड़ा कि नहीं ?

हमने कहा- तो कौन सा कल ही खोलने का वादा किया है. चुनाव तक माहौल बनाकर रखना और उसके बाद वादे को जुमला बताने में क्या देर लगाती है. कौनसा पिछले वादे पूरे न करने पर चुनाव हार गए जो आगे हारेंगे. 

वैसे तोताराम, देश के सभी सरकारी विद्यालयों में वेतनमान तो केंद्रीय विद्यालयों के समान ही है. फिर क्यों नहीं देश के सभी विद्यालय केंद्रीय विद्यालय बना दिए जाएँ. भवन और सुविधाएं ही तो जुटानी हैं. कुछ दिन सेन्ट्रल विष्ठा, विशेष विमान, विश्व रिकार्ड तोड़ ऊंची हजारों करोड़ की मूर्तियाँ बनाने का काम स्थगित किया जा सकता है. 

खैर, वैसे बता, तू कहाँ और क्या छपवाना चाहता है ? कुछ लिखें, लिखवायें, जुगाड़ लगाएं, चर्चा-विमर्श करें. 

बोला- यह तेरे वश का काम नहीं है. करेंगे तो मोदी जी खुद ही करेंगे लेकिन वे कुछ भी करते हैं तो जनता से पूछे बिना नहीं करते. जैसे जनता पीछे ही पड़ गई तो उन्होंने 'राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार' को ध्यानचंद के नाम से किया . इसी तरह जनता का मन रखने के लिए पटेल स्टेडियम का नाम नरेन्द्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम करना पड़ा. अब यदि हम छपने के बारे में जनमत और आग्रह से कुछ दबाव बनाएं तो वे शायद विचार करें. वैसे उनकी इन झूठी प्रशंसा वाली बातों में कोई विशेष रुचि नहीं है. 

हमने कहा- क्या छपना है वह तो बता. ऐसे हवा में बात मत कर. 

बोला- अब तो मोदी का फोटो नोटों पर छप ही जाना चाहिए .

हमने कहा- आज तक तो भारत में किसी प्रधानमंत्री का फोटो नोटों पर छपा नहीं. अब यह नई रीत कैसे चले ? 

बोला- क्यों, ब्रिटेन की महारानी का फोटो वहाँ के नोटों पर छपता है कि नहीं ? अब चार्ल्स का छपेगा. ब्रिटेन में तो महारानी/महराजा का पद सांकेतिक ही है.जबकि मोदी जी १४० करोड़ भारतीयों के दिलों पर राज करते हैं. लोग उनके एक इशारे पर ताली थाली बजाने लगते हैं, दीये जलाने लगते हैं. वे अपनी विनम्रता के कारण खुद को 'प्रधान सेवक' कहते हैं लेकिन वास्तव में वे इस देश के चक्रवर्ती सम्राट हैं. उनका फोटो नहीं छपेगा तो किसका फोटो छपेगा. क्या केजरीवाल का छपेगा ? 

हमने कहा- यह तो कोई ठोस कारण नहीं हुआ. राजीव गाँधी को देश के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन नोटों पर फोटो तो उनका भी नहीं छापा. 

बोला- लेकिन सत्तर साल में जो काम नहीं हुआ, कोई नहीं कर सका वह मोदी जी ने कर दिखाया. सात साल में ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर अर्थव्यवस्था को पांचवें नंबर पर ले आये. 

हमने कहा- तोताराम, इस हिसाब से तो हक़ बनता है. लेकिन मोदी जी तो पल-पल में रूप बदलते हैं. वे अनेक रूपों में लोगों के दल में अंकित हैं, नोटों पर कौनसा फोटो छापा जायेगा. काली दाढ़ी में, सफ़ेद दाढ़ी में, लम्बी दाढ़ी में या छोटी दाढ़ी में ? काले चश्मे में या सादे चश्मे में, सोने के तारों में नाम कढ़े सूट में या कुरते पायजामे में, गंगा से निकलते सद्यस्नात रूप में या मंजीरा या डमरू बजाते हुए, या मगरमच्छ के बच्चे को घर लाते हुए. या प्रगति मैदान में प्लास्टिक की पानी की खाली बोतल उठाते हुए या हजार करोड़ के प्लेन से, बरसात न होते हुए भी, डिज़ाईनर छाता लेकर उतरते हुए. 

गाँधी का क्या है. वही शाश्वत बाल्ड हैडेड और पोपली मुस्कराहट. न सावन सूखे न भादों हरे. बोरिंग फोटो.

बोला- उम्र के हिसाब से सबसे छोटे नोट पर सबसे कम उम्र का फोटो और सबसे बड़े नोट पर लेटेस्ट फोटो. 

हमने कहा- लेकिन उनके साथ तो ५५ फोटोग्राफर हर समय कैमरा लिए फिरते रहते हैं. अब तक अरबों फोटो खिंच चुके होंगे. बहुत मुश्किल है चुनाव. 

बोला- यह भी हो सकता है कि हजारों डिनोमिनेशन के नोट छापे जाएँ जैसे रु. का नोट, दो रु. का नोट, तीन रु. का नोट. फिर भी फोटो बच जाएँ तो डेढ़, अढ़ाई के नोट भी हो सकते हैं. और हर पांच साल बाद जब भी मोदी जी शपथ ग्रहण करें तब नोटों की नए फोटो के साथ एक नई शृंखला. 

 




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Sep 9, 2022

कर्तव्य पथ पर स्वागत


कर्तव्य पथ पर स्वागत   


आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, बना ले कार्यक्रम. हो आयें दिल्ली. 

हमने कहा- यह कोई मोदी जी का अमरीका जाने जैसा सामान्य कार्यक्रम है क्या, जो तू कहे और हम चल पड़ें . चलने के लिए दस-पांच दिन तैयारी के लिए चाहियें . चित्त को दृढ़ करना होगा. संकल्प लेना होगा. मोदी जी का क्या है. प्लेन में ही बोरिया बिस्तर सब रखा हुआ है. ड्राइवर को बोलना भर तो है. एक्सेलेटर दबाया और फुर्र. वैसे आज अचानक दिल्ली की उचंग कैसे चढ़ी हुई है ?

बोला- प्लेन का ड्राइवर नहीं होता. ट्रेन और बस की तरह थोड़े ही है कि चढ़े और पसर गए सीट पर. अमरीका जाने से पहले रूट, परमिशन, प्रोटोकोल जाने क्या क्या होता है. दिल्ली जाने का मन तो इसलिए हुआ कि वहाँ कल मोदी जी ने 'कर्तव्य पथ' का उद्घाटन किया है. 

उनका फोटो देखकर ऐसा लगता है जैसे नया कुरता, पायजामा और जैकेट पहनकर हम अति वरिष्ठ नागरिकों का स्वागत करने के लिए ही खड़े हैं. जब तक हम नहीं पहुंचेंगे तब तक शायद इंतज़ार ही करते रहेंगे .   

वैसे  आज जो सत्ता में बैठे हुए हैं हमने उन सबको 'घुट रुन चलत रेनु तन मंडित' देखा है. हमने तो आज़ादी से पहले से ही गाना शुरू कर दिया था- 

वह शक्ति हमें दो दयानिधे ! कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ. 

पर सेवा पर उपकार में हम निज जीवन सफल बना जाएँ.  

डटे रहे. जो गुरु जी ने, माता-पिता ने और बाद में पत्नी ने जो बताया सो करते रहे .  लेकिन यह कर्तव्य पथ क्या होता है ? आज तक पता ही नहीं चला. इसलिए अच्छा हो कि दिल्ली जाकर पता कर आयें कि कर्तव्य पथ क्या होता है ? और हमने अब तक जो किया वह कर्तव्य ही था या अज्ञान में वैसे ही अंड बंड करते रहे. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हम बचपन में जो गाया करते थे उस में 'कर्तव्य मार्ग' की जगह  यह 'कर्तव्य पथ' फिट नहीं बैठता. दो मात्राएँ कम पड़ती हैं . ऐसे लगता है जैसे कहीं गड्ढा आ गया हो. 

बोला- लेकिन 'मार्ग' शब्द से आडवानी जी वाला 'मार्ग दर्शक मंडल' याद आ सकता है जबकि हम उससे बचना चाहते हैं. 

हमने कहा- वैसे तोताराम, मोदी जी ने जिस 'कर्तव्य पथ' का उद्घाटन किया वह इससे पहले 'राजपथ' था. आज़ादी से पहले इसका नाम 'किंग्सवे' था. लेकिन पता नहीं मोदी जी ने क्यों उसे 'किंग्सवे' से जोड़ दिया जबकि १९५५ में इसका नाम 'राजपथ' कर दिया गया. हो सकता है वे खुद को भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे सोधे जोड़ना चाहते हों. वैसे जब इस इलाके में राज काज चलाने वाले ही बैठते, रहते हैं तो 'राजपथ' में क्या बुराई है.  'कर्तव्य पथ' बनाने की क्या जरूरत थी.

बोला- लेकिन राज करने वाले का भी तो कोई 'कर्तव्य' होता है.  उसे अपना कर्तव्य याद दिलाने के लिए अच्छा है इस रोड  (राजपथ) को 'कर्तव्य पथ' बना दिया जाए जिससे जब भी कोई सेवक अपनी मर्सडीज में बैठकर इस पथ से गुजरे और बोर्ड पर उसकी निगाह पड़े तो उसे अपने 'कर्तव्य' की याद आ जाए. क्योंकि आजकल राज काज में इतने दंद-फंद हैं कि 'कर्तव्य' याद ही नहीं रहता . 

हमने कहा- राजा का कर्तव्य तो 'राजधर्म' होता है. इसलिए हमारे अनुसार तो  इसका नाम 'राजधर्म पथ' होना चाहिए. 

बोला- मास्टर, 'राज धर्म' की बात मत कर. इस नाम और शब्द से  'उस व्यक्ति' की 'उस बात' की याद आ जाती है और अच्छा-भला मूड ख़राब हो जाता है.

हमने कहा- लेकिन यह तो पता चले कि मोदी जी ने सुभाष की प्रतिमा के अतिरिक्त इस उद्घाटन में और क्या शामिल किया है ?

बोला- नया तो कुछ नहीं किया बस, सड़क को पक्का करवा दिया है और कुछ खम्भे और बिजली की बत्तियां लगवा दी हैं.  

हमने कहा- तो फिर यह वैसा ही है जैसे दक्षिण भारत में शादी के ५०-६० साल बाद बुड्ढे-बुढ़िया की 'शादी के प्रहसन' का आयोजन किया जाता है. 

बोला- इससे जनता और मीडिया से नाता बना रहता है और नेता के अत्यावश्यक कर्तव्य - शिलान्यास, उद्घाटन का अभ्यास बना रहता है. 

हमने कहा- तब एक दिन में जितना काम होता है उसका सुबह शिलान्यास किया जाय और फिर शाम को उतने काम का उद्घाटन कर दिया. और संभव हो तो चुनाई से पहले हर ईंट का शिलापूजन भी किया जाए. 

काल करे सो आज कर. 










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Sep 7, 2022

आज ५ सितम्बर है

आज ५ सितम्बर है 


हम अपनी 'पेट' कूरो को घुमाकर दरवाजे पर पहुंचे।  देखा,आज तोताराम समय से पूर्व ही हाजिर। 

हमने पूछा- मध्यावधि चुनाव की तरह समय से पूर्व ही कैसे ? यह चाय कहीं भागी तो नहीं जा रही थी। 

बोला- बात चाय की नहीं, रोमांच की है।  बात ही ऐसी है कि रुक नहीं सका।  

हमने कहा- ऐसी क्या बात है जिसने तुझे उत्कण्ठिता नायिका बना दिया। 

बोला- तुझे पता होना चाहिए कि आज ५ सितम्बर है। 

हमने कहा- यह ऐसा कौनसा रहस्य है, कौन सी अच्छे दिन की आमद हो गई जिसकी समस्त राष्ट्र उदग्र उत्कंठा से प्रतीक्षा कर रहा था।  कल ४ सितम्बर था और आज ५ सितम्बर है, इसी तरह कल ६  सितम्बर हो जाएगा। इसका कोई अर्थ नहीं है।  गिनो तो भी, न गिनो तो भी यह क्रम तो चलता ही रहेगा। 

बोला- मैं तो तुझे २० जून २०२२ की याद दिला रहा हूँ जब तूने कहा था- बस, ५ सितम्बर तक.......| 

हमने कहा- याद है. कहा था सितम्बर २०२२ में बेसिक पेंशन में २०% की वृद्धि हो जायेगी।और ५ सितम्बर तक तो पास बुक में एंट्री भी हो जायेगी। उसके बाद हमारी आत्मा शांत हो जायेगी। फिर हम झोला उठाकर कहीं भी चल दे सकते हैं।    

तोताराम ने अपने कुर्ते की जेब से एक झोला निकालकर हमें देते हुए कहा- और यह है झोला ! उठा और निकल जा किसी केदारनाथ की गुफा की तरफ.!  

हमने कहा- अभी संभव नहीं है.

बोला- तो तेरा भी वही हाल जिसके अंतर्गत मोदी जी ने कहा था- दो टर्म काफी नहीं है. 

हमने कहा- हम तो १ सितम्बर से ही दिन में दस-बीस बार पेंशन की स्लिप की पीडीऍफ़ ढूँढ़ रहे हैं।  जब तसल्ली नहीं हुई तो ३ सितम्बर को बैंक जाकर पूछ भी आये कि अगस्त की पेंशन में २०% जुड़ा कि नहीं ? बाबू ने बताया, नहीं जुड़ा। सो अब तुझे हमारे वनगमन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। 

बोला-  तेरे जाने से मेरा क्या कोई प्रमोशन हो जायेगा ? उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनने की आशा रहती है. वेंकैया जी की तरह २०२४ के चुनाव में जाट वोट बैंक की भेंट चढ़ जाए वह बात और है. मेरा क्या होना है ? बरामदा संसद के 'छाया मंत्रिमंडल' के अडवानी जी, मुरलीमनोहर जी की अनंत प्रतीक्षा. मैं तो वैसे ही पूछ रहा था. खैर, इस बार के 'विशेष शिक्षक दिवस' पर विशेष बधाई। 

हमने पूछा- इस बार के 'विशेष शिक्षक दिवस'  में विशेष क्या है ? 

बोला- आज तय हो गया है कि एक शिक्षक की ४६ वर्षीय बेटी लिज ट्रस ब्रिटेन की प्रधानमंत्री होंगी। आज के दिन,  यह सूचना अध्यापक दिवस की ख़ुशी को दुगुना कर रही है. 

हमने कहा- हम तो इस बात से अभी तक ख़ुशी से लहालोट हुए पड़े हैं कि भारत के दो-दो राष्ट्रपति पहले शिक्षक थे।मुर्मू जी भी कुछ समय के लिए अध्यापिका रह चुकी हैं।फिर भी यदि कोई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद से अध्यापक बनाने के लिए इस्तीफा दे तो कोई बात है। फिर भी चलो अच्छा है अब ब्रिटेन के अध्यापकों का भी कल्याण हो जाएगा जैसे हमारे यहां रामनाथ जी कोविंद के राष्ट्रपति बन जाने से दलितों और अब द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों का और लेटेस्ट धनकड़ जी के उपराष्ट्रपति बनने से जाटों का कल्याण होना शुरू हो गया है।  

बोला- कल्याण तो किसी का क्या होगा ? हाँ, २०२४ के चुनावों में वोटों का कुछ गणित बैठाने में ज़रूर मदद मिल सकती है। लेकिन ब्रिटेन वालों ने एक फाइनेंस वाले के स्थान पर एक टीचर की बेटी को क्या सोचकर चुना ?  क्या हम भी चाय वाले के स्थान पर किसी शिक्षक पुत्र को नहीं चुन सकते थे ?

हमने कहा- ब्रिटेन को ज्ञान की ज़रूरत है।  हमें ज्ञान की क्या ज़रूरत।  हमें तो पहले से ही ज्ञान का अजीर्ण हो रहा है। किसी सब्जी, दूध वाले से उलटे मुंह भी बात कर लो तो वह भी आत्मा, परमात्मा, धर्म और दर्शन की बात करने लग जाता है। मोदी जी की मन की बात में तुम्हें सृष्टि के समस्त ज्ञान-विज्ञान का सार मिलता है कि नहीं।  हमारे लिए तो कोई चाय वाला ही ठीक है। कल ही मोदी जी ने अपने चाय विक्रय और प्रबंधन के बल पर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पछाड़ दिया कि नहीं ? 

बोला- तो इन सभी उपलब्धियों के लिए कुछ सेलेब्रेशन हो जाए। 

कहते हुए हमारे सामने चिप्स का दस रूपए वाला पैकेट रख दिया।  

हमने कहा- तोताराम, यह देखने में तो बड़ा लगता है लेकिन चिप्स  निकलेंगी गिनकर दस। बाकी सब हवा ही हवा। 

बोला- और तू क्या समझ रहा है ?  यह विज्ञापन और आत्मप्रशंसा का युग है इसमें सब हवा ही हवा है फिर चाहे वह चिप्स के पैकेट में हो यह मुफ्त अनाज के फोटो-छपित थैले में हो या ब्रिटेन को पछाड़ने वाली हमारी अर्थव्यवस्था के गुब्बारे में हो।  

 

 


 




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Sep 5, 2022

आधी रात को खेला हो गया

आधी रात को खेला हो गया 


आज तोताराम ने आते ही हाँक लगाई- भाई साहब, खेला हो गया. 

हमने पूछा- कौन सा खेला ? क्या राज्यपाल रमेश बैंस ने सूर्योदय का इंतज़ार किया बिना ही आधी रात को फडणवीस की तरह किसी मरांडी या मुंडा को शपथ दिलवा दी ? या किसी सिसोदिया को जेल में डाल दिया ? 

बोला- ऐसे खेलों को खेला नहीं कहते। ये तो 'ऑपरेशन लोटस' होते हैं. जैसे कि कोई किसी से सहानुभूति दिखाते हुए उसे पेट दर्द के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाए और होश आने पर दर्दी को पता चले कि डॉक्टर साहब बीमार का गुर्दा ही बेच चुके।मैं जिस खेका की बात कर रहा हूँ वह तो 'ऊँचा ही खेला' है.

हमने पूछा- तो क्या बंगाल में फिर चुनाव होने को घोषणा हो गई या राष्ट्रपति शासन लागू हो गया ? 

बोला- धनकड़ साहब को भेजा तो इसीलिए था कि ऐसा-वैसा कुछ कर-करा दें लेकिन पार पड़ी नहीं। वहाँ तो ममता दीदी ने ही खेला कर दिया।  टैगौरी बाना भी काम नहीं आया. लेकिन यह बंगाल जैसा खेला भी नहीं है. वैसे इस समय मोदी जी की लोकप्रियता है उसे देखते हुए वे कहीं भी खेला कर सकते हैं. 

हमने कहा- तो फिर बताता क्यों नहीं। क्यों बिना बात हमारी धड़कनें बढ़ा रहा है. 

बोला- तो ध्यान से सुन. वह ब्रिटेन जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था, जो हमें काला, जमीन पर हगने वाला आदमी कहता था, उसी से खेला कर दिया। 

हमारा रोमांच चरम पर, पूछा- तो क्या अपना ऋषि सुनक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन गया ?

बोला- वह भी कोई बड़ी बात नहीं। ब्रिटेन ही क्या अब तो अमरीका में भी अपना डंका बजता है. कल को कमला हैरिस को ही राष्ट्रपति बनना है. 

हमने कहा- यह ठीक है कि उसकी माँ भारतीय थी. उनके नाना एक भारतीय सिविल सर्वेंट थे. पक्के ब्राह्मण।लेकिन कमला में ब्राह्मणीय उच्चता-ग्रंथि नहीं है. इसीलिए वह डेमोक्रेटिक पार्टी में है.  ट्रैम्प से मोदी जी की मित्रता के चलते बहुत से भक्तों ने कमला को वोट नहीं दिया।

बोला- उसकी बात छोड़. जब कोई भी किसी पद पर पहुँच जाता है तो हम उससे किसी न किसी प्रकार का कोई न कोई रिश्ता निकाल लेने में सिद्धहस्त हैं.  सो कमला से भी कोई न कोई रिश्ता निकाल ही लेंगे। वैसे हो सकता है अबकी बार फिर अपने मोदी जी का मित्र ट्रैम्प ही आ जाए. 

हमने पूछ- यह संभावना तुझे कैसे लग रही है. 

बोला- अबकी बार न्यू जर्सी में इंडियन बिजनेस एसोसिएशन ने भारत की आज़ादी के अमृत महोत्सव पर बड़ी शानदार परेड निकाली जिसकी शोभा हिन्दुत्त्व के पैरोकार संबित पात्रा बढ़ा रहे थे. उसमें प्रेम, सद्भाव और कानून व्यवस्था के भारतीय मॉडल से परिचित करवाने के लिए 'बाबा का बुलडोज़र' भी परेड में शामिल किया गया था. उत्साही भारतीयों ने मानवीय सद्भाव बढ़ाने वाले मुस्लिम विरोधी नारे भी लगाए। 

अब अगला खेला अमरीका में ही करेंगे। 

हमने कहा- तोताराम, यह अमरीका की उदारता है जो दूसरे देशों से आये और अमरीका की नागरिकता लेकर मौज कर रहे अन्य देशों के लोगों को इतनी छूट दे रहा है. ऐसे भारत मूल के लोगों को चाहिए कि वे अमरीका की उदारता का दुरुपयोग न करें और वहाँ अपना वैचारिक कचरा न फैलाएं। 

इन विभेदकारी भारतीयों की वहाँ बहुत आलोचना हो रही है. अब उनमें से कुछ माफ़ी भी मांग रहे हैं.   

हमने कहा- तोताराम, बात किसी और दिशा में जा रही है. पहले वह 'खेला' वाली बात बता. 

बोला- रात को भारत ने ब्रिटेन को पछाड़ दिया। 

हमारी उत्सुकता चरम पर, पूछा- तो क्या रात को जॉनसन और मोदी जी के बीच कोई कुश्ती हुई थी  ? 

बोला- मास्टर, तू या तो बहुत चालाक है या फिर एक दम बुड़बक। अरे, रात को भारत की अर्थ व्यवस्था ब्रिटेन से आगे निकल गई. 

ब्रिटेन की अर्थव्‍यवस्‍था 816 अरब डॉलर की और भारत की  854.7 बिलियन डॉलर। 

हमने पूछा- कल शाम तक तो जब हम सोये थे सब ठीक था. 

बोला- ऐसे सभी खेले रात को ही होते हैं. लापरवाह लोग दारू पार्टी करते रहते हैं और जो संयमित लोग हैं वे रात को भी चुस्त-दुरुस्त, सक्रिय रहते हैं और खेला कर देते हैं. यदि हमारे मोदी जी भी जॉनसन की तरह दारू पार्टी करते होते तो हमारे साथ भी कोई न कोई खेला कर जाता लेकिन हमारे मोदी जी पंडित हैं- यः जागर्ति सः पण्डितः ।  

हमने कहा- वैसे मोदी जी सभी महान काम रात को ही क्यों करते हैं भले ही नोटबन्दी हो या, जी.एस. टी. या लॉकआउट। 

बोला- तभी तो चामत्कारिक वृद्धि के लिए कहा जाता है- दिन दूनी रात चौगुनी। पांच किलो अनाज की थैली में पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा कर लिया कि नहीं। 

हमने कहा- आदमी को किसी भी बहाने से खुश रहना चाहिए लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि हमारी जनसँख्या ब्रिटेन से बीस गुना अधिक है. इस हिसाब से हमारी जी.डी. पी. उससे बीस गुना ज़्यादा होनी चाहिए। गणित के हिसाब से वह अब भी हमसे बीस गुना आगे है. 

वैसे कभी-कभी इस तरह बुलबुल के पंखों पर सवार होकर उड़ने से पहले देश का ह्यूमैन टाई इंडेक्स भी पता कर लेना चाहिए। इससे चोट काम लगाती है। 

बोला- मास्टर, इन सब बातों के बीच मुझे एक ख़याल आता है कि ये योरप और अमरीका के गोरे लोग बड़े चालाक हैं. ये वास्तव में कोई बहुत धनवान और तुर्रम खां नहीं। ये आंकड़ों के जाल में उलझा कर हमें उल्लू बनाते रहते हैं. इनके किसी देश में जाओ तो कहीं कुछ दिखाई नहीं देता। पता नहीं कुछ खाते-पीते भी हैं या नहीं या केवल टाई लगाकर कारों में बैठकर पता नहीं किधर भागते रहते हैं या फिर कहीं भी नाचने लग जाते हैं.जबकि हमारे यहां उपभोग के प्रमाण हर जगह सिद्ध करते हैं कि हम वास्तव में एक बहुत बड़ी और वाइब्रेंट अर्थव्यवस्था हैं. जितनी इन लोगों की जीडीपी है उतने के तो गुटकों , नमकीन के पाउच और दारू,प्लास्टिक की बोतलें सड़कों पर पड़ी मिल जाएंगी। जगह-जगह जीमण,  भंडारे और व्रत-उद्यापन के बाद पड़े डिस्पोजेबल ग्लास, प्लेटें और जूठन हमारी धार्मिकता ही नहीं, पौष्टिक भोजन की पर्याप्तता के भी प्रमाण हैं. 

कोई ढंग से देशभक्तिपूर्ण सर्वे करे तो हम विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था निकालेंगे। ऐसे ही 'सोने की चिड़िया' थोड़े हैं. 


  



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Sep 1, 2022

कहीं ये 'वो' तो नहीं


कहीं ये 'वो' तो नहीं 


तोताराम गुनगुनाते हुए प्रकट हुआ- कहीं ये वो तो नहीं !

हमने पूछा- कैसे 'संदेह अलंकार' से ग्रसित हो रहा है ?

बोला- मैं तो तेरे सामान्य ज्ञान की परीक्षा ले रहा था. इतना भी नहीं मालूम। क्या पढ़ाया होगा बच्चों को. बता यह- 'वो' कौन है ?

हमने कहा- यह १९६४ की फिल्म 'हकीकत' का गीत है जिसे कैफ़ी आज़मी ने लिखा, मदन मोहन के संगीत में लता जी ने गाया है.

बोला- अब लोगों के लिए ऐसी देशभक्ति की बातों में कोई रोमांच नहीं रहा. 

हमने कहा- क्यों नहीं रहा रोमांच ? मोदी जी के कहने पर करोड़ों लोगों ने अपने घरों पर झंडा फहराया कि नहीं ?

बोला- वह तो कुछ मोदी जी से डरकर, कुछ मोदी जी की गुड़ बुक में आने के लिए, कुछ राजनीति में कैरियर बनाने के लिए, कुछ सस्ते में स्थानीय अखबारों में अपना नाम छपवाने के लिए किया जाने वाला नाटक है. वरना जिस लापरवाही से, तमाशे की तरह, सिंथेटिक का झंडा फहराया गया उससे तिरंगे के सम्मान में कोई वृद्धि नहीं हुई। 

खैर, बता- कहीं ते वो तो नहीं ?

हमने कहा- हमें क्या पता यह 'वो' कौन है. बहुत बार तो घर वालों तक को पता नहीं चलता कि यह 'वो' कौन है. जब पानी सिर से गुजर जाता है, जब या तो लड़की घर से भाग जाती है, या उल्टियां करने लगती है, या रंगे हाथों पकड़ी जाती है तब पता चलता है कि यह 'वो' कौन है. 

बोला- यह वैसा मामला नहीं है.

फिर हमने दिमाग लगाया, कुछ बड़ा सोचा,पूछा- तो फिर जुमला ?

तोता - नहीं।

हम- तो नोटबंदी ?

तोता - नहीं।

हम- जी एस टी ?

तोता - नहीं।

हम- विधायक खरीद, ऑपरेशन लोटस ?

तोता - नहीं। 

हम- तो रेवड़ी ?

बोला- हम  रेवड़ी नहीं बाँटते। हम सिद्धांतवादी हैं. हम ओछी राजनीति नहीं करते। हम तो सेवा करते हैं. रेवड़ी तो केजरीवाल बांटता है. फिर भी तू नजदीक पहुँच रहा है. थोड़ा और दिमाग लगा.

हमने कहा- अब तो सन्दर्भ बताये बिना कुछ भी बता पाना संभव नहीं है.

बोला- सन्दर्भ यह है कि उत्तराखंड में ७२ पदों पर हुई एक भर्ती में एक पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी, मंत्रियों के साले, विधान सभा अध्यक्ष का बेटा,मेयर की पत्नी, पार्टी अध्यक्ष का भाई, शिक्षा मंत्री का भांजा, विधायक का साला, नेताओं के पी आर ओ तथा ४० से ज़्यादा पत्रकारों की पत्नियां लाभान्वित हुए. 

हमने कहा- तो फिर ये रेवड़ी नहीं हुई तो क्या हुआ ? शुचिता वाली बड़ी से बड़ी पार्टी से लेकर सभी छोटी-बड़ी पार्टियों में सभी के परिवार वाले मंत्री, सांसद, विधायक, आयोगों के अध्यक्ष आदि होते हैं।  ये ही तो रेवड़ियां हैं. 

बोला- रेवड़ी तो अंधा बांटता है. ये सब तो आँखों वाले सजग, सचेत लोग हैं.

हमने पूछा- तो फिर इसे क्या कहें ?

बोला- 'सबका साथ:सबका विकास', या 'आत्मनिर्भर भारत' ।



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