Jan 28, 2017

 कैशलेस तोताराम 

अरविन्द केजरीवाल जयपुर आए |दिल्ली में एक सीमा तक लोगों के बिजली के बिल माफ कर दिए और एक सीमा तक पानी भी फ्री | और यहाँ हाल यह है कि नई तरह के बल्ब दिए ही नहीं और बिलों में पैसे जुड़कर आगए | बिजली का यह हाल है कि चोरी गाँवों में नेताजी और उनके गुर्गे करें और बिल शहर के डरपोक लोग भरें | सोचा, हो सकता है राजस्थान सरकार को भ्रष्टाचार से निबटने के गुर बताएँगे |अपन भी हो ही आएँ | यह बात और है कि जो जंग विकास के लिए लड़नी थी वह नजीब के साथ कुश्ती में निकल गई |फिर भी बंदा ठीक है तो क्यों न जयपुर जाकर उसकी हिम्मत बढ़ाई जाए | सो हिम्मत करके अरविंद जी के स्वागत के लिए तोताराम के साथ बस से निकल पड़े |रेल तो प्रभु की कृपा से बंद है बड़ी लाइन के नाम पर |कहते हैं तीन साल में पूरी हो जाएगी |लेकिन तीन साल में क्या पता, ऊँट किस करवट बैठे | अब बिना बात ट्रेन के बीस रुपए की जगह बस के पूरे एक सौ रुपए देने पड़ेंगे |

तोताराम को दरवाजे के पास वाली सीट मिली |जैसे ही बस शहर से बाहर निकली कंडक्टर ने तोताराम के पास सीट की रेलिंग को ठकठकाया- टिकट |

तोताराम -सीनियर |

कंडक्टर- एक सौ |

-अस्सी क्यों नहीं ?

-एक्सप्रेस है |

-लेकिन लगाती तो सवा दो की जगह तीन घंटे है |

-इससे क्या ? यह तो जुमला है | स्विटज़रलैंड से काले धन को भारत के लिए चले हुए अढाई साल हो गए और फिर भी नहीं पहुँचा |कहावत के हिसाब से नौ दिन में अढाई कोस भी चलता तो भी अब तक चार बार पहुँच जाता | तो फिर जयपुर के एक सौ पच्चीस किलोमीटर के तीन घंटे कौन ज्यादा हैं ? 

-तो तू पोलिटिक्स कर रहा है तो फिर समझ ले हम कैशलेस हैं |

-ताऊ, कैशलेस है तो आधार कार्ड निकाल |

-अरे, अब हमारा कोई आधार नहीं है |असली आधार तो अंटी में नोट हो तो होता है |कहावत है ना- पैसा पास का और हथियार हाथ का |अब जब हाथ में पैसा नहीं तो कैसा आधार ? हम तो निराधार हैं |

-आधार भी नहीं और कैश भी नहीं तो फिर निदेशक मंडल  के सदस्यों की तरह घर बैठ |बस रूपी संसद में क्यों चला आया ?

-अब हम कुछ नहीं देंगे बल्कि जैसा कि मोदी जी ने कहा है- कैशलेस पर दो परसेंट मिलेगा और उसके बाद किन्हीं एक हजार भाग्यशाली कैशलेस विजेताओं के नाम डेढ़-डेढ़ हजार रूपए के इनाम भी निकालेंगे |सो दो परसेंट के हिसाब से दो रुपए निकाल और हमारा फोन नंबर नोट कर ले |जब इनाम निकल आए तो सूचित कर देना |

कंडक्टर बोला- इस बहम में मत रहना, ताऊ |पहले सब्सीडी के नाम से गैस के दाम डेढ़ गुने कर  दिए थे और अब धीरे-धीरे सब्सीडी घटते-घटते ख़त्म हो गई और दाम डेढ़ गुने लागू पड़ गए |मतलब कि अँगुली पकड़ कर गला पकड़ लिया | वैसे ही यह कैशलेस पर प्रोत्साहन और इनाम हैं | कुछ दिन बाद ये दो परसेंट ऊपर से और लागू पड़ जाएँगे | कैशलेस का मतलब फ्री नहीं है |इसका मतलब है कि तेरा बैंक खाता आधार से लिंक हो जाएगा और मैं यहाँ तेरा आधार कार्ड मशीन में डालकर टिकट निकालूँगा और उधर तेरे खाते में से रुपया निकल जाएगा |कैशलेस के नाम से बावला मत बन |

तोताराम वास्तव में कैशलेस था |उसने पैसे नहीं दिए | उस भले कंडक्टर ने बस रुकवाकर हमें ठीक तरह से उतार दिया |चाहता तो धक्के भी दे सकता था |किसी से कहते तो हो सकता है उल्टा हमारे ही गले पड़ जाता- कि ये काले धन वाले दो मास्टर नोट बंदी का विरोध कर रहे थे | ठीक भी है, देशभक्ति के इस युग में नोट बंदी का विरोध करने वाले देशद्रोहियों से किसे सहानुभूति हो सकती है ?

सो चार किलोमीटर पैदल चलकर अब घर पहुँचे हैं |

मोदी जी को भी क्या कहें-उन्हें तो वैसे ही फुर्सत नहीं है देश का पिछले सत्तर साल का कूड़ा साफ़ करने और कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने से |









Jan 25, 2017

 गणेश और चुहिया  


आज अच्छी  धुंध थी और साथ ही हवा भी |वैसे यह ठंडी हवा भगवान की ही चलाई हुई थी |हमारी तो कभी कोई हवा रही ही नहीं |हमारी होती तो इतनी ठंडी तो नहीं होती कि आदमी बरामदे में बैठने को ही तरस जाए | किसी तरह जान लिए रजाई में घुसे हुए थे कि तोताराम प्रकट हुआ |आते ही उसने अचानक हमारी रजाई पर काला सा कुछ फेंका |हम समझ ही नहीं पाए और चौंक गए- क्या है ? क्या है यह ?

बोला- क्या है, क्या ? चुहिया है |कपड़े की है- प्रतीकात्मक चुहिया |अभी परसों ही पहाड़ से निकली है |

हमने कहा-हमने तो मुहावरा पढ़ा-पढ़ाया है- खोदा पहाड़, निकला चूहा |पहाड़ खोदने जितना कठिन परिश्रम करने पर यदि  कुछ भी हासिल न हो या नगण्य उपलब्धि हासिल हो तो उसके लिए यह कहावत है |यदि चूहा निकला तो यह उपलब्धि होने न होने के बराबर है और तू है कि पहाड़ खोदकर भी चुहिया ही निकाल पाया |कहावत से भी कम |

बोला- यह उन आलोचकों के मुँह पर तमाचा है जो नोट बंदी को व्यर्थ की कवायद बता रहे थे |

हमने कहा- क्या तमाचा है ?ठीक ही तो कह रहे हैं आलोचक | न तो आतंकवाद रुका, न काला धन लौटा; लोग बेकार में परेशान हुए |हाँ, यह ज़रूर हुआ कि विदेशों में रहने वाले बहुत से छोटे भारतीय जो अपने नोट बदलवाने के लिए नहीं आ सकेंगे वे बीस-तीस हजार करोड़ के पुराने नोट पड़े-पड़े मिट्टी हो जाएँगे, उसे यदि तू नोट बंदी की उपलब्धि माने तो मान सकता है |

बोला- बन्धु, समय-समय और भाग्य की बात है |बहुत बार पहाड़ खोदकर चूहा और चुहिया तो क्या कुछ भी नहीं निकलता |कोई क्या कर सकता है |बहुत बार लोग कुआँ खोदते हैं सैंकड़ों फुट तक और पानी नहीं निकलता |बताओ क्या कर लोगे ?वैसे मोदी जी ने साफ़ कर तो दिया कि वे इस सारी कवायद से यह चुहिया ही निकालना चाहते थे |तीस वर्षों में पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला है | बंदा सच्चा, कड़क और धुन का पक्का है |यदि और कुछ निकालना चाहता तो और कुछ भी निकाल सकता था |भले ही चुहिया निकाली लेकिन विजन तो देख कितना बड़ा है |

हमने कहा- यदि वे यह चुहिया भी न निकालते तो भी हम क्या कर लेते |सौभाग्य है, चुहिया तो निकाली |

वैसे चूहा, गणेश और लड् डू का प्रतीक बहुत पुराना है |चूहा गणेश का वाहन है | चूहा हमेशा गणेश के पास बैठा रहता है |उसके दोनों पंजों के बीच हमेशा एक लड् डू रहता है और पास में लड् डुओं से भरी एक थाली रखी रहती है |गणेश जी जब चाहें इन चूहों से किसी का भी रास्ता खुदवा कर उसकी गति रुकवा देते हैं |चाहे जिसकी फ़ाइल, कपड़े-लत्ते इन चूहों से कुतरवा देते हैं |चूहों को निरंतर कुतरने के लिए कुछ न कुछ चाहिए नहीं तो इनके दाँत बढ़ते ही जाते हैं और इतने बढ़ सकते हैं कि गणेश जी को ही कुतर डालें |जिस भी गणेश के पास लड् डू मिलते रहते हैं ये चूहे उसीकी के पास रहते हैं |लड् डू मिलने की संभावना ख़त्म होते ही ये गणेश बदल लेते हैं |इन चूहों को गणेश और गणेशों को चूहों के बारे में सब कुछ पता रहता है |यह गणेश पर निर्भर है कि वह चूहा निकाले या चुहिया और यह चूहे या चुहिया पर निर्भर है कि वह निकले या नहीं |

यह गणेशों और चूहों के बीच का व्यक्तिगत नाटक है |इन नाटकों में न तो चूहों का कुछ बिगड़ना और न गणेश जी का |वही गणेश, वही चूहे |सारे लड् डू, सदा उनके लिए ही हैं |हमें तो लड् डुओं को घूरना है आज भी और कल भी |क्या पता, कोई बूँदी टपक ही पड़े तो लपक लें |


 

Jan 18, 2017

हनुमान जी की गदा

  हनुमान जी की गदा 

आते ही तोताराम चालू हो गया- मास्टर, यह क्या तमाशा है ?आजकल के बच्चों को कुछ होश ही नहीं है |अब देख, आई.आई.टी. मुम्बई के बच्चों ने अपने एक उत्सव में हनुमान जी का चित्र बनाया जिसमें उनकी गदा ही गायब कर दी और हाईटेक बना दिया- कानों पर हैडफोन, आँखों पर चश्मा तथा  हाथों में तीन-चार घड़ियाँ |यह तो भला हो शिवसेना वालों का जो उस चित्र को हटवा दिया वरना हनुमान जी का तो कबाड़ा ही हो गया होता |

हमने कहा- इसमें कबाड़ा क्या होना है ? जब भक्त आधुनिक हो गए, हनुमान जी के लिए हैप्पी बर्थडे गाने लगे, केक का भोग लगाने लगे, चोली के पीछे क्या है.. की धुन पर उनके लिए भजन बनाने लगे तो हनुमान जी हैडफोन लगाकर रामधुन नहीं सुन सकते ? यही क्यों समझते हो कि वे कुछ उल्टा-सीधा सुन रहे होंगे |और फिर यह भक्त और भगवान के बीच का मामला है |सुदामा उन्हें माँगे के चावल भेंट में देता है, भीलनी जूठे बेर खिलाती है, विदुर की पत्नी केले के छिलके और करमा बाई बाजरे का खीचडा |और भगवान है कि आराम से खा रहे हैं तो बीच में इन खामखाँ लोगों को क्यों तकलीफ हो रही है ?

बोला- इससे हनुमान जी की इमेज बिगड़ती है |

हमने कहा- इमेज की कमाई नेता खाते हैं जो चंडाल और लम्पट होते हुए भी अपनी संत की इमेज बनाना चाहते हैं, चोर होते हुए भी खुद को सेवक प्रचारित करवाते हैं, ऐश करके भी ब्रह्मचारी बनते हैं |लाखों की घड़ी और लाखों का सूट पहनेंगे और कहेंगे गरीब का बेटा हूँ , किसान हूँ |गरीबी और किसानी देखी नहीं है, आँखें निकल कर बाहर आ गिरती हैं |भगवान तो किसी भी रूप में हों वे भक्तों के वश में रहते हैं और ये तथाकथित सेवक, सेवक होते हुए भी जनता, जिसे ये अपना मालिक कहते हैं, के मन में भय उपजाते हैं | पता है, हनुमान जी तो तुलसीदास के घर के आगे पहरा दिया करते थे |धन्ना भगत का तो हल भी चलाया था भगवान ने |

कहने लगा- कल को ये उत्पाती बच्चे हमारे देवताओं का और तमाशा बना देंगे तो ?

हमने कहा- तमाशा भगवान का नहीं बनता |आदमी किसी को गाली निकालता है तो सामने वाले से अधिक वह खुद अपनी औकात दिखाता है |आजकल मंदिर के पुजारी भक्तों की भीड़ जुटाने के लिए कितने घटिया नाटक करते हैं |कभी हजार मीटर की चूनरी, कभी हजार किलो का लड् डू |लगे हैं गिनीज़ बुक में नाम लिखवाने के चक्कर में |इसमें कहीं भक्ति, अध्यात्म और श्रद्धा नहीं है |

पिछले साल तुझे याद नहीं जब ज्यादा सर्दी पड़ी थी तो जयपुर में एक भक्त ने हनुमान जी को थ्री पीस सूट पहना दिया था |ठीक है, जब आदमी अपना ख्याल रखता है तो अपने आराध्य का क्यों नहीं |अब यदि किसी भक्त बालक ने हनुमान जो को घड़ी पहना दी तो ठीक ही है, संजीवनी बूटी पहुँचाने में विलंब की संभावना नहीं रहेगी |  हम तो कहते हैं एक वाट्सअप भी दे देना चाहिए हनुमान जी को जिससे वे अपने भक्तों के साथ जीवंत संपर्क बनाए रख सकें |

दूसरे धर्मों में अनुयायियों में कट्टरता आने का एक कारण यह भी है  कि वे भक्त और भगवान के संबंधों में ज्यादा हस्तक्षेप करते हैं |कम से कम सनातन धर्म को समय के साथ चलते हुए सनातन और अप टू डेट बने रहने दे |

हनुमान जी के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले दलों से तो अच्छे हैं ये बच्चे |और दुष्टों के लिए गदा क्या, हनुमान जी की एक दहाड़ ही बहुत है |

भूत पिशाच निकट नहिं आवै
महावीर जब नाम सुनावै ||