Oct 31, 2019

वज़न बराबर नहीं है



वज़न बराबर नहीं है 

राम तो खीर खाकर, थोड़ा विश्राम करने के बाद वास्तविक जनकल्याण के लिए निकल गए |उनका जन कल्याण कोई सेल्फी और विज्ञापन वाला जन कल्याण तो है नहीं जो मीडिया वालों को घर बुलाकर निबटा दिया जाए |यह तो वास्तविक कल्याण का काम है जो महलों को छोड़कर वनवास में गए बिना नहीं होता |तोताराम भी अपने जन्म लग्नानुसार वृश्चिक लग्न में लक्ष्मी पूजन करने के लिए निकल लिया |हम भी खाना खाकर, लक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर, डबल पेंशन लेने के लिए शतायु होने का आशीर्वाद माँगते हुए यथासमय सो गए |

सुबह दिवाली की राम-राम करने के लिए सबसे पहले तोताराम ही आया |आते ही बोला- मास्टर, एक दोहा सुन |

दोहा इस प्रकार था-  
होंगे जगमग दीप असंख्य, लौटेंगे घर राम |
स्वागत करने पहुँचेगा जगत अयोध्या  धाम ||


दोहा सुनाकर खुद ही वाह-वाह करने लगा |

हमने पूछा- यह किस कवि की करतूत है ? कहीं यह 'दोहा-संहार' तूने ही तो नहीं किया है ? 

बोला- क्यों क्या बात है ?



हमने कहा- यह दोहा नहीं है |और है तो अशुद्ध | इसके पहले चरण  'होंगे जगमग दीप' के आधार पर लगता है, रचनाकार का इरादा 'सोरठा' लिखने का है | दूसरे चरण  'लौटेंगे घर राम' से दोहा लगता है | तीसरा चरण 'स्वागत करने पहुँचेगा'  न सोरठा का  और न ही दोहे का |पहले और दूसरे चरण में मिलकर २६ मात्राएँ हैं | इसी तरह तीसरे और चौथे चरण को मिलाकर भी एक मात्रा अधिक है | 

बोला- भाजपा का उदार शासन है |किसी बात की कोई कमी तो नहीं रखी |भगवान राम के स्वागत के लिए खुले दिल और खुले हाथ से बजट का प्रावधान किया गया है |११३ करोड़ रुपए | दोहे की २४-२४ मात्राओं की जगह २६-२५ मात्राएँ अर्थात कुल तीन मात्राएँ अधिक ही तो रखी हैं |अब कोई गबन का आरोप नहीं लगा सकता |

हमने कहा- लेकिन तूने हिसाब लगाते समय पहले चरण में 'असंख्य' शब्द पर ध्यान नहीं दिया |विज्ञापन में दीयों की संख्या साढ़े पाँच लाख बताई गई है |इस गहमा-गहमी में कौन गिनेगा कि कितने कम दीये जलाए गए |और 'असंख्य' में तो और बड़ा घपला है |पाँच ट्रिलियन भी बताए सकते हैं |

बोला- तो क्या करें ?
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हमने कहा- कर तो कोई भी कुछ नहीं सकता |बन्दों को स्पष्ट बहुमत मिला है जो न करें सो कम |और फिर धर्म का मामला है; कोई बोले तो मरा, न बोले तो मरा |गाय भले ही सड़क पर आवारा फिरते-फिरते पोलीथिन खाकर मरे या गौशाला में भूखी रहकर लेकिन आवारा गायों और सांडों की समस्या पर कोई तार्किक बात नहीं कर सकता | 

हम तो दोहे की मात्रा और वज़न ठीक कर सकते हैं |विद्वान कहते हैं- अशुद्ध मन्त्र बोलने से हित की जगह अहित हो सकता है |और कुछ नहीं तो गलत दोहे से होने वाले अहित से तो देश को बचा लिया जाए |तो शुद्ध दोहा इस प्रकार हो सकता है-



लौटेंगे  वनवास  से  लक्ष्मण  सीता    राम |
स्वागत करने के लिए चलो अयोध्या धाम ||

तोताराम ने खड़े होकर ताली बजाते हुए कहा- कुछ भी हो मास्टर, इस थोड़े से परिवर्तन से दोहे में पूर्णता, प्रवाह, सरलता और भावाकुलता आ गई है |
अब इस 'स्टेंडिंग ओवेशन' के लिए चाय तो हो जाए |





















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Oct 27, 2019

मैं राम हूँ



मैं राम हूँ 


कहते हैं दिवाली पर रात को दरवाजे खुले छोड़कर सोना चाहिए |दरवाजे बंद हुए तो लक्ष्मी कैसे आएगी ?इस चक्कर में प्रायः यह होता है कि लक्ष्मी आए न आए चोर-उचक्के ज़रूर कुछ न कुछ उठा ले जाते हैं |और फिर नगर निकाय के चुनाव आने वाले हैं |क्या पता, दिवाली के बहाने वोट माँगने वाला कोई सेवक जाते समय जूते ही न उठा ले जाय |सावधानी हटी और दुर्घटना घटी- ऐसे ही मांगलिक अवसरों के लिए कहा गया है | इसलिए दरवाजा बंद किए हुए थे |कहीं ज्यादा तेल न पी जाएँ इसलिए दीयों को पानी में भीगने के लिए रखकर दिया और बत्तियाँ बनाने बैठ गए |

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई |हमने बैठे-बैठे ही पूछा- कौन है ? 

उत्तर आया- राम |

हमने कहा-  तेरी तुला राशि है इसलिए तेरे लिए तो सभी लग्न और मुहूर्त एक जैसे हैं लेकिन हम पोती के जन्म लग्न 'मेष' के हिसाब से पौने छह से सात बजे तक पूजा करेंगे इसलिए थोड़ा व्यस्त हैं |बत्तियाँ बना रहे हैं | या तो आ जा बत्तियाँ बनवा दे या फिर पूजा कर आ, फिर बैठेंगे |

प्रत्युत्तर आया- मैं राम हूँ |

हमने कहा- क्या हमें पता नहीं है ?खुद को राम कह या बलराम, जगजीवन राम कह या राम नाइक क्या फर्क पड़ता है |रहेगा तो तोताराम ही |अपने मुँह मिट्ठू बनने वाला |

फिर उत्तर आया- मैं तोताराम नहीं, राम हूँ |अयोध्या वाला राम |

हमने कहा- भगवन कहीं हमसे कोई छल तो नहीं हो रहा है ? पता नहीं आप कौन हैं ?
कहीं अन्दर आकर हमारी आँखों में मिर्च झोंककर या कनपटी पर तमंचा रखकर कुछ उठा-उठू न ले जाओ |

घर आए के लिए दरवाज़ा न खोलना भी तो गलत है; सो हिम्मत की, बजरंगबली का स्मरण किया, राम का नाम स्मरण कर आगंतुक को अन्दर लिया |कमरे से प्लास्टिक वाली कुर्सी लाकर रख दी |आगंतुक बैठ गए |

हमने पूछा- प्रभु विश्वास नहीं हो रहा कि आप हैं ? शबरी और गीध की तरह हमारी सुध लेने चलकर आए हैं |लेकिन आप ?  किसके राम ? वाल्मीकी के राम, तुलसी के राम, कबीर के राम, तोगड़िया-अडवानी या योगी जी के राम ? केवल राम ?न श्री राम, न मर्यादा पुरुषोत्तम, न रघुकुलतिलक, न रघुवंश शिरोमणि |बस राम ? 

बोले- क्या मैं कलियुग के संतों की तरह बेशर्म होकर खुद ही अपने नाम से पहले  श्री-श्री, श्री-श्री एक सौ आठ, एक हजार आठ, ....शिरोमणि, ....सम्राट विशेषण लगाऊँ |तुलसी 'मानस' में मुझसे कहलवाते हैं-नाम राम लछिमन दोउ भाई |
और सच्चे भक्त भी मुझे राम ही कहते हैं |और फिर घट-घट में वास करना रघुकुल तिलक, दशरथनंदन, मर्यादा पुरुषोत्तम आदि भारीभरकम नामों के साथ संभव नहीं है |

कुछ देर बात करने के बाद विश्वास हो गया |बत्तियाँ बनाना भूल गए और पूछा- प्रभु, इस समय तो आपको अयोध्या में होना चाहिए था, यहाँ कैसे ?
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 बोले- इस समय अयोध्या में किसे फुर्सत है ?मेरे अयोध्या पहुँचने से पहले ही सरयू पार से हेलिकोप्टर पर सवार होकर पूरा राम-मंत्रीमंडल स्वागत-स्थल  पर पहुँच गया था |सो विशिष्ट जन तो स्वागत,फोटो खींचने-खिंचवाने में व्यस्त हो गए |शेष लोग दीये गिन रहे थे, जला रहे थे और तेल का हिसाब लगा रहे थे |

वैसे मुझे अभी अयोध्या जाना भी नहीं है |पहले तो एक रावण था |आज तो गली-गली में तरह-तरह के रावण में तरह-तरह के गर्हित कामों में लगे हुए हैं |उस रावण ने तो प्रतिशोध के लिए सीता का केवल हरण किया था लेकिन आज महिलाएँ ही क्या, कन्याएँ तक घर-बाहर, स्कूल कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं | सरकार तक को 'बेटी बचाओ' का नारा देना पड़ रहा है |और लोग हैं समझ नहीं पा रहे हैं कि बेटियों को किस-किस से बचाएँ ? 

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई |हमने कहा- अब कौन ? हनुमान, लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवंत, कौन है ?

तभी तोताराम अन्दर प्रवेश करते हुए बोला- क्या अयोध्या की तरह 'राममय' हो रहा है ? यहाँ कहाँ राम ? यहाँ तोताराम के अतिरिक्त कौन राम हो सकता है ?

हमने कहा- तोताराम, हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं |तुम्हारे सामने कुर्सी राम ही तो बैठे हैं |

तोताराम तो तोताराम |बोला- अच्छा किया प्रभु, जो यहाँ चले आए |अब कुछ दिन यहाँ रुकिए |जब अयोध्या में सब कुछ सामान्य हो जाए तब जाइएगा |दीयों के फैले तेल से फिसलने का भी डर है | और इस समय तो वहाँ बहुत प्रदूषण हो रहा होगा, सवा पाँच दीये जो जलाये गए हैं |

हमने कहा- पोल्यूशन तो कोयला, पेट्रोल-डीज़ल, टायर-पोलीथिन आदि जलाने से होता है | अयोध्या में तो घी के दीये जल रहे होंगे वे भी गाय के घी के |इससे तो हवा शुद्ध होगी |

बोला- कुछ भी जले, थोड़ा या कम कार्बन निकलेगा तो ज़रूर |और फिर आजकल पानी-हवा तक तो शुद्ध मिलते नहीं और तू शुद्ध घी की बात कर रहा है | तभी तो मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था- भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिए |इसके अनुप्रास में वे 'शुद्ध' नहीं कह सके क्योंकि उन्हें पता है कि जिस देश में गाँधी में गोडसे की मिलावट की जा रही हो, वहाँ शुद्ध के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए |हाँ, एक बात ज़रूर है कि इस कार्यक्रम से उतना प्रदूषण नहीं फैलेगा जितना तू सोचता है |

हमने पूछा- क्या इसलिए कि यह एक धार्मिक कार्यक्रम है ?

बोला- नहीं |यह एक सरकारी कार्यक्रम है इसलिए | पाँच लाख की जगह दो लाख दीये जलाए जाएँगे और तेल डाला जाएगा ५० मिलीलीटर की बजाय १५ मिलीलीटर |

लगता है प्रभु बोर हो गए थे, बोले- तो अब क्या कार्यक्रम है भगतो ?

हमने कहा- प्रभु, थोड़ी-सी खीर खा लें | |कुछ भी नकली नहीं है |सुबह ही आँखों के आगे निकलवाकर दूध लाए हैं |चावल, चीनी में मिलावट की संभावना नहीं |उसके बाद खिड़कियाँ बंद करके विश्राम करें क्योंकि यहाँ भी प्रदूषण कम नहीं है ||दिवाली की सफाई के नाम पर लक्ष्मी भक्तों ने 'स्वच्छ भारत' के अंतर्गत घर का साल भर का कूड़ा सड़क पर डाल दिया है और नगर परिषद 'स्वच्छ भारत का इरादा' वाले कैसेट बजवाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है |









रमेश जोशी प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.








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Oct 25, 2019

चमचागीरी के खतरे



चमचागीरी के खतरे 

शास्त्रों में कहा गया है- शंका और ईर्ष्या दोनों ही बहुत कष्टकारक होती हैं। कोई खतरा न होते हुए भी व्यक्ति को डराती रहती है। यदि किसी को शंका या आशंका हो जाए कि पता नहीं, छत से लटकता पंखा कब गिर पड़े तो क्या वह व्यक्ति सो सकता है? चोर तो कोई एक-दो होते हैं लेकिन यदि आप सबकी ईमानदारी पर शंका करने लगें तो रेल में बर्थ रिजर्व होने पर भी नींद नहीं आ सकती। इसी तरह यदि आप दूसरों से ईर्ष्या करते हैं तो जिससे ईर्ष्या करते हैं वह तो आराम से सोता है और आप रात भर कुढ़ते रहते हैं।  
य ईर्षुः परवित्तेषु रूपे वीर्ये कुलान्वये। सुखसौभाग्यसत्कारे तस्य व्याधिरनन्तकः।।
 -जो व्यक्ति दूसरों की धन-सम्पति, सौंदर्य, पराक्रम, उच्च कुल, सुख, सौभाग्य और सम्मान से ईर्ष्या व द्वेष करता है वह असाध्य रोगी है। उसका यह रोग कभी ठीक नहीं होता। नौकरी में हमारे साथ यही हुआ। बहुत से ऐसे साथी थे जिनके विषयों की बोर्ड की परीक्षा नहीं होती थी और उनका क्या पाठ्यक्रम होता था वे ही जानें। ऐसे में उन्हें न तो रिजल्ट की चिंता रहती थी और न ही टेस्ट और कापियां जांचने का झंझट। अन्य कामों के लिए पर्याप्त शक्ति और समय उनके पास होता था जैसे चुगली, षड्यंत्र,  झूठे मेडिकल टीए, डीए के बिल बनाना, प्राचार्य की खुशामद करना आदि। हमें उन विषयों के अध्यापकों से भी बहुत ईर्ष्या होती थी जिनके विषयों में प्रैक्टिकल परीक्षाएं होती थीं। 
उन अध्यापकों के पास प्रैक्टिकल में कम नंबर देने या अधिक नंबर देने के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के हथियार होते थे। इसी कारण से उनकी क्लास में बच्चे चुप बैठे रहते थे। हमें तो मेहनत से पढ़ाने का ही सहारा था। सारा रिजल्ट हमारी और बच्चों की मेहनत तथा बोर्ड की परीक्षा पर निर्भर रहता था। चमचागीरी करके हरामखोरी करने का सौभाग्य कभी नहीं मिला। ज़िन्दगी भर अध्यापक ही रहे इसलिए कभी भी पढ़ने और क्लास लेने से मुक्ति नहीं मिली। इस कारण हम प्रिंसिपलों से भी ईर्ष्या करते रहे। कुछ समय के लिए नंबर दो अर्थात उप प्राचार्य बने लेकिन तब भी चैन नहीं मिला। कारण किसी का बुरा या भला करने का अधिकार तो प्राचार्य के पास रहा तो इस झूठे पद से कौन डरे।
कहा भी गया है- बसे बुराई जासु तन, ताही को सनमान। भलो भलो कहि छांडिये, खोटे ग्रह जप दान। सो  ‘न ख़ुदा ही मिला, न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे’। इसी व्यर्थता-बोध में कुढ़ते हुए बरामदे में बैठे थे। पता ही नहीं चला कब तोताराम आया। अच्छा हुआ, यदि तोताराम की जगह कोई दुर्वासा होता तो शकुंतला की तरह हमें श्राप दे गया होता। खैर। 
बोला क्या वित्तमंत्री की तरह जीडीपी को लेकर चिंतित हो रहा है?
हमने कहा वित्त मंत्री को कोई समस्या नहीं है। उनकी सुख-सुविधाओं और रुतबे पर कोई आंच नहीं आने वाली। कोई सरकार का चहेता अधिकारी हजार-दो हजार करोड़ इधर-उधर कर भी देगा क्या हुआ रिज़र्व बैंक से लेकर भरपाई कर देंगे। मरना तो उनका है जिनका पैसा पंजाब-महाराष्ट्र बैंक में था। हम तो इस जीवन की व्यर्थता के बारे में सोच रहे थे कि न तो चमचागीरी करके हरामखोरी का मज़ा लिया और न ही किसी से मक्खन लगवाने सुख भोगा। 
बोला अच्छा रहा जो इस कीचड़ में नहीं उतरना पड़ा। सबको दूसरे की थाली में घी अधिक दिखाई देता है। जो घर नहीं देखा वही भला।
हमने कहा हो सकता है चमचागीरी करने में लोग मज़ाक उड़ाएं या कुछ शर्म महसूस हो लेकिन चमचागीरी करवाने में तो वैसा ही आनंद आता होगा जैसे भयंकर ठंड में हीटर लगे कमरे में सुआना बाथ लिया जाए या गुदगुदे हाथों से हलके-हलके सारे शरीर की अच्छी तरह से मसाज करवाई जाए। बोला-गुप्त जी की पंक्तियां याद कर, कहते हैं सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है दोनों ही स्थितियों में कष्ट हैं, बस प्रकार का अंतर होता है। कब्र का हाल मुर्दे को ही पता होता है। आज देखा नहीं, एक जनसभा में एक चमचे से हरियाणा के मुख्यमंत्री कट्टर जी ने ….|
हमने तोताराम को वाक्य पूरा करने से पहले ही पकड़ लिया और कहा– कट्टर नहीं खट्टर। 
बोला हां, ठीक है; खट्टर ।  वे अपने विचारों पर दृढ़ रहने वाले हैं इसलिए कट्टर भी चल सकता है। हाँ, तो मैं कह रहा था कि खट्टर जी को ‘आशीर्वाद यात्रा’ के दौरान एक भक्त ने फरसा भेंट किया। खट्टर जी जोश में आ गए और दहाड़े-  दुश्मनों का नाश करने के लिए…। 
हमने कहा यह तो ‘आशीर्वाद यात्रा’ थी इसमें यह क्रोध क्यों? बोला- बात से भटका मत और सुन। जब खट्टर जी भाषण दे रहे थे तो एक और भक्त जो उनके लिए मुकुट लाया था पीछे से उनको पहनाने लगा।


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खट्टर जी को बड़ा अजीब लगा और अनिष्ट की आशंका भी हुई। उन्होंने उस भक्त की तरफ फरसा तानते हुए कहा-  गर्दन काट दूंगा तेरी। अब बता। कम खतरा है, चमचागीरी में? बाल ब्रह्मचारी, ऊपर से मुख्यमंत्री। एक ही झटके में गर्दन धड़ से अलग ना हो जाती। धरा रहा जाता चुनाव का टिकट। 
हमने कहा- लेकिन चमचागीरी करवाने में क्या खतरा है? बोला- खतरा क्यों नहीं है। तूने राजा का किस्सा नहीं सुना जिसकी नाक पर बैठने वाली मक्खी से उसका सेवक इतना क्रोधित हो गया कि मक्खी को भगाने के लिए तलवार चला दी। मक्खी कहाँ तलवार से मरने वाली थी। हां, राजा जी की नाक ज़रूर साफ़ हो गई। इसी तरह एक बार एक सेवक बड़े मंत्री जी के सिर पर छाया करता हुआ छाता लेकर उनके साथ चल रहा था। मंत्री जी ऊंचे लम्बे और सेवक ठिगना। सो लग गई आँख में छाते ही तानी। हो गया एक बल्ब फ्यूज़। आज तक मंत्री जी धूप का चश्मा लगाते हैं।


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Oct 21, 2019

यह नोबेल भी कोई नोबेल है

यह नोबेल भी कोई नोबेल है 


पीयूष गोयल जी
नमस्ते। वैसे सच तो यह है कि आपके जन्म के समय हमें अध्यापक बने हुए तीन वर्ष हो चुके थे। उम्र में हमारे दोनों बड़े बेटे आपसे बड़े हैं। हमारे शिष्य दादा-नाना बन चुके हैं। लेकिन उम्र का क्या है? बड़ा होता है पद और पद में आप देश के 130 करोड़ लोगों से बड़े हैं।
आप देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई में जन्मे-पले-बढ़े-पढ़े, चार्टड अकाउंटेंट हैं, देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई. से जुड़े रहे हैं, एक बार बजट भी पेश कर चुके हैं, अब रेल और वाणिज्य के मंत्री हैं, जाति से वैश्य हैं, आपके पिता वेदप्रकाश जी अटल जी की सरकार में शिपिंग मंत्री थे जो सेठों के इलाके हरियाणा से मुंबई गए थे। अब अर्थशास्त्र की कौन सी डिग्री बाकी रह गई। आपके सामने कौटिल्य, ऐडम्स, माल्थस भी क्या चीज हैं ?
इसी महीने भारत के अमरीका में मास्टरी कर रहे, मास्टर माता-पिता की संतान अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है। उसकी आर्थिक विचारधारा के बारे में आपने टिप्पणी की है लेकिन उसके बारे में आगे बात करेंगे।
पहले संतोष जी के कॉमेंट के बारे में दो शब्द कहते चलें।
पहले इसलिए कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संगठन मंत्री हैं जो पूरे भारत में एक ही पद होता है। बीजेपी में तो सत्ता के गणित के हिसाब से कुलदीप सेंगर जैसे संत भी घूमते-फिरते आते-जाते रहते हैं लेकिन संघ-परिवार एक शुद्ध-सात्त्विक, अपना और असली संगठन है। उसके संगठन मंत्री होने के कारण वे अति विशिष्ट हैं। फिर अभिजीत के बारे में उनका कॉमेंट भी आपसे पहले आया है। जहां तक संतोष जी के अर्थशास्त्र की बात है तो हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं है। फिर भी यदि ऐसी कुछ योग्यता होती तो उन्हें कहीं का वित्तमंत्री या पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाया गया होता। खैर।
संतोष जी वास्तव में संतोषी हैं, यथा नाम तथा गुण। तभी उनका कॉमेंट देखिए, कहते हैं- ‘हरियाणा और महाराष्ट्र में मतदान की तारीखें नजदीक आते ही फिर से ‘इको सिस्टम’ काम पर लग गया है। मनमोहन सिंह 19 अक्टूबर को प्रेस को संबोधित करेंगे, अभिजीत बनर्जी ने भी साक्षात्कार देने शुरू कर दिए हैं, इतने वर्षों बाद अचानक पराकला प्रभाकर भी बाहर निकले हैं। पांच दिन की प्रसिद्धि के लिए इन सभी का स्वागत करें।’
इसमें जो बातें ध्यान देने योग्य हैं वे हैं- ये सब चुनाव को ध्यान में रखकर सक्रिय हुए हैं। इनका देश और अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है। और जब ऐसा है तो इनकी अर्थशास्त्र की समझ को कैसे मान्यता दें। यह प्रभाकर वैसे तो देश की वित्तमंत्री का पति है लेकिन जब ऐसी बात करेगा तो फिर कोई भी हो। और फिर इसका जो सरनेम है वह  ‘परकला’ नहीं ‘परकाला’ (आफत का परकाला) होना चाहिए। कोई बात नहीं मना लें चार दिन खुशियां, दे लें इधर-उधर इंटरव्यू फिर कौन पूछता है।  क्या कोई सामान्य आदमी तो दूर, नेता भी बता सकता है कि अब तक दुनिया में कितनों को अर्थशास्त्र का नोबेल मिल चुका है ? याद रखने लायक कोई काम भी तो हो। जिन्होंने देश के बड़े हित के लिए बलिदान दिया उन्हें लोग हमेशा याद रखेंगे। जैसे गांधी को भले ही कोई याद करे या नहीं लेकिन गोडसे को कोई कैसे भूल सकता है? जब तक सूरज चांद रहेगा ….|
तो संतोष जी से यहीं संतोष करते हुए फिर आपसे मुखातिब।
राजस्थान-हरियाणा वाले जो कोलकाता-मुंबई में जाकर बसे हैं वे जानते हैं व्यापार और अर्थशास्त्र। बंगाल को  लें। क्या है बंगाल में। दिन में एक बार दाल-भात बना लेंगे और दिन भर उसी को खाते रहेंगे। शेष समय में चाय, पान, सिगरेट और बक-बक जिसे वे बौद्धिकता कहते हैं। कहने को तीन-तीन नोबेल दिए- दो अर्थशास्त्र के (अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी)  और एक साहित्य का (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) को। अर्थशास्त्र का एक और नोबेल उसी इलाके के एक बांग्लादेशी मुसलमान को मिला। इसके अतिरिक्त कुछ दक्षिण भारत मूल के लोगों को नोबेल मिला लेकिन क्या बंगाल और दक्षिण भारत ने एक भी बिरला, पोद्दार, बांगड़, बजाज, अदानी, अम्बानी दिया ? क्या देश के हृदय स्थल बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात की तरह देश को अवतारी नेता दिए ?
अपने राजस्थान-हरियाणा के व्यापारियों के बारे में कहा जाता है कि वे लोटा-डोरी लेकर निकले थे और देश के अनेक भागों में जाकर करोड़पति बन गए।  इसे कहते हैं अर्थशास्त्र।  यदि अर्थशास्त्र का नोबेल भारत से किसी को देना था तो उक्त राज्यों के अर्थशास्त्रियों की ओर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
और फिर आजकल पुरस्कारों की औकात सब जानते हैं। पैसा दो और पुरस्कार लो। और मान भी लें कि इन दो बंगालियों को इनकी योग्यता के बल पर यह पुरस्कार मिला तो फिर इस देश की जनता ने इनके अर्थशास्त्र को नकार क्यों दिया? इस बनर्जी से पूछकर कांग्रेस ने अपनी ‘न्याय’ योजना बनाई लेकिन क्या हुआ उस योजना का? जब कांग्रेस उस योजना के बल पर जीत नहीं सकी तो बनर्जी का अर्थशास्त्र फेल।

नार्वे सरकार को बनर्जी से यह पुरस्कार वापिस ले लेना चाहिए। और धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई से जांच भी करवानी चाहिए। ऐसे लोगों के पुरस्कार के पीछे हो सकता है कांग्रेस या पाकिस्तान का कोई षड्यंत्र हो जिन्होंने नार्वे की सरकार से मिलकर बनर्जी को पुरस्कार दिलवा दिया हो।  इस बनर्जी को आपने वामपंथी कहा है। थोड़ा और ध्यान से देखिए, हमें तो यह देशद्रोही लगता है।
हो सकता है लोग कहें कि फिर इस बनर्जी को मोदी जी ने और आपने बधाई क्यों दी? अब इतना असभ्य भी तो नहीं हुआ जा सकता कि किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को नोबेल मिले और बधाई भी न दी जाए।
क्या करें अपने भारत मूल का है इसलिए बधाई तो दुनिया को दिखाने के लिए देनी ही पड़ती है।

वैसे इससे अधिक निहाल तो यह देश गुल पनाग के बेटे निहाल द्वारा मोदी जी का फोटो पहचानने पर हो गया था।  बनर्जी को दी गई बधाई भी कोई बधाई है। बकौल अमिताभ- यह जीना भी कोई जीना है लल्लू।


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Oct 19, 2019

राफाल मतलब आँधी



 राफाल मतलब आँधी

आज तोताराम ने आते ही बड़ा अजीब प्रश्न किया |प्रश्न क्या, एक ऐसा विकल्प दिया जो 'काटे-चाटे श्वान' की तरह 'दुहूँ भाँति विपरीत' था | जैसे हमारे कालेज के प्रिंसिपल जो जिस कर्मचारी को निकालना होता था, उसे विकल्प देते थे- इस्तीफ़ा दोगे या बर्खास्त करें ? जैसे खुला पत्र लिखने वाले किसी बुद्धिजीवी को विकल्प दिया जाए- मुँह बंद रखना पसंद करोगे या राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा झेलोगे |

तोताराम का विकल्प था- दिल्ली चलोगे या टावर पर चढोगे ?

हम क्या ज़वाब देते |कहा- तोताराम, हमारे लिए तो दोनों काम ही 'तलवार की धार पे धावनो है' |दिल्ली सबको रास नहीं आती |जो सबसे आँखें फेर सके उसकी बात और है वरना अपनों को छोड़ कौन दिल्ली जाना चाहेगा क्योंकि दिल्ली जाकर आदमी किसी का और कहीं का नहीं रहता |रही बात टावर पर चढ़ने सो हमें किसी बसंती या उसकी मौसी को प्रभावित नहीं करना |क्या जो थोड़ा-बहुत जीवन शेष बचा है वह यहीं इस बरामदे में यापन नहीं किया जा सकता ?

बोला- सो तो हो सकता है लेकिन 'राफाल-पूजन' करके,  फ़्रांस से उड़कर राजस्थान के ऊपर से दिल्ली जाते हुए राजनाथ जी को टा-टा कर देते तो अच्छा रहता |लेकिन तूने कोई सा भी विकल्प नहीं माना | अपनी देशभक्ति सिद्ध करने का अच्छा मौका है |

हमने कहा-  हम कोई मुसलमान थोड़े ही हैं | हम हिन्दू और ब्राह्मण हैं | स्वतः सिद्ध देशभक्त और श्रेष्ठ |

बोला- शुभ अवसर है |ऐसे में राजनाथ को उतरते ही दो श्रेष्ठ ब्राह्मणों के दर्शन हों तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा |

हमने कहा- तो उन्हें कह दे, दिल्ली जाते हुए अपने राफाल को आधे घंटे के लिए यहीं अपने बगल में मंडी में उतार दें दर्शन-मेला करके, चाय पीकर चले जाएँ |

बोला- वे कोई राफाल उड़ाकर थोड़े ही ला रहे हैं |विमान तो २०२० में आएगा |

हमने कहा- तो फिर अभी से यह तमाशा करने की क्या ज़रूरत थी ? 

बोला- यह वैसे ही है जैसे संस्कृत में वाग्दान होता है |वैसे ही जैसे पिछले साल १८ अगस्त को प्रियंका चोपड़ा की 'रोके' के रस्म हुई थी | 

राफेल की शस्त्र पूजा पर बवाल


 टायरों के नीचे नीबू रखना, प्लेन के पंखों पर सिंदूर से  'ॐ'  लिखना, अन्दर धागे से हरी मिर्चें लटकाना, माला-धूप-बत्ती करना आदि उसी रस्म के तो आवश्यक वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और लोकतांत्रिक कार्यक्रम थे |


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भारत आने के बाद 



हमने कहा- कहीं यह महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया कार्यक्रम तो नहीं ?   

बोला- तू हर बात में राजनीति क्यों देखता है ?

हमने कहा- भारत ने आज से पहले अणुबम बना लिया, मिसाइलें बना लीं, मंगलयान  बना और छोड़ दिया, अब चंद्रयान भी लगभग सफलतापूर्वक छोड़ दिया, बिना किसी समारोह और तमाशे के |

बोला- यह भी कोई बात हुई ? इतना पैसा भी खर्च करो और कोई धूमधड़ाका नहीं |क्या कोई चोरी थोड़े कर रहे हैं |

हमने कहा- तोताराम, हम तो इन बातों में विश्वास नहीं करते | यह भी कोई बात हुई ? दिखा अब दिया और देंगे २०२० में |क्या पता, वहाँ किसी तरह उड़ाकर दिया कुछ और, और अगले साल टिका देंगे कुछ और |हम तो कहते हैं- इस हाथ दे, उस हाथ ले |
तुझे पता है १९६२ में वी.के.कृष्णा मेनन कुछ जीपों के पैसे इंग्लैण्ड में एडवांस में दे आए थे तो लोगों ने इतना आसमान सिर पर उठा लिया था कि नेहरू जी को मेनन से इस्तीफ़ा लेना पड़ा था |

बोला- वह ज़माना गया |अब मज़बूत सरकार है |मोदी जी घर में घुसकर मारने वाले हैं, किसीको छोड़ेंगे  नहीं |

हमने कहा- लेकिन जब राफाल वास्तव में आएगा तो हमें पता कैसे चेलेगा ?

बोला- मास्टर, यह राफाल है जिसका मतलब होता है 'आँधी' |और आँधी भी विदेशी |जब आएगा तब १८०० किलोमीटर प्रति घंटा से आएगा |जैसे किसी तेज़ गति वाहन के टायरों के साथ सूखे पत्ते उड़ते हैं वैसे ही पेरिस से दिल्ली के रास्ते में जो-जो भी स्थान पड़ेंगे वहाँ-वहाँ ऐसा सूँ-साँट मचेगा कि बस पूछ मत | समझ ले वही गति होगी जिस गति से हनुमान जी कन्याकुमारी से उड़कर लंका गए थे |और यहाँ आने के बाद भी बड़े और भव्य कार्यक्रम होंगे |उसके आगे सभी प्रान्तों में लोक और सांस्कृतिक नृत्य होंगे |आगे-आगे पूरी केबिनेट का रोड़ शो होगा | ऐसी दुर्लभ घटनाएँ छुपी रहती हैं ? और फिर मोदी जी कोई काम छुपा कर नहीं करते |सब कुछ पारदर्शी है |सर्जीकल स्ट्राइक भी की तो सारी दुनिया को बता दिया, फोटो तक दिखाए |

हमने कहा- तुझे डर नहीं लगता ? मेरे कानों में तो अभी से भूं-भूं की सी आवाज़ आने लगी है |इस वेग को कैसे बर्दाश्त करेंगे ?

बोला- जो देश सत्तर साल जितना विकास सात महिने में झेल सकता है उसके  लिए राफाल जैसी आँधियाँ क्या हस्ती रखती हैं | 

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मोदी है तो मुमकिन है



 मोदी है तो मुमकिन है  

हमने कहा- तोताराम, वैसे तो मोदी जी के पास हर मर्ज की दवा है। हर पंचर टायर में भरने के वास्ते हवा है। उनके जोश और जज्बे का क्या कहना? लेकिन 1947 में देश की अर्थव्यवस्था एक ट्रिलियन डॉलर की थी जो 70 साल में राम-राम करके अढ़ाई ट्रिलियन डॉलर हो पाई। मतलब 70 साल में मात्र अढ़ाई गुना वृद्धि। अब किस जादू से वह पांच साल में ही दुगुनी हो जाएगी?
बोला- तूने 1979 में रिलीज हुई अमोल पालेकर और उत्पल दत्त की फिल्म ‘गोलमाल’ देखी है?
हमने कहा- मोदी जी द्वारा पांच साल में अर्थव्यवस्था को दुगुना बढ़ा देने का ‘गोलमाल’ से क्या संबंध है? क्या वे कुछ गोलमाल करेंगे? यह ठीक है कि कुछ लोग कैलकुलेशन में इतने माहिर होते हैं कि ‘वन टू का फोर’ कर देते हैं। देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट कुछ ज्यादा दिखाने के लिए पिछले दिनों ऐसी ही हाथ की सफाई की गई थी लेकिन मोदी जी कुछ भी करें लेकिन गोलमाल नहीं कर सकते।
बोला- मेरी बात पूरी तो होने दे। याद कर ‘गोलमाल’ फिल्म में लक्ष्मण प्रसाद दशरथ प्रसाद (अमोल पालेकर) राम प्रसाद दशरथ प्रसाद बनकर सेठ द्वारका प्रसाद (उत्पल दत्त ) के पास असरानी का छोटा कुर्ता पहनकर जाता है। सेठ द्वारका प्रसाद उसे छोटा कुर्ता पहनने का कारण पूछता है तो वह कहता है- इस देश में करोड़ों लोगों को पहनने को पूरे वस्त्र नहीं मिलते जबकि लोग लम्बे-लम्बे कुर्ते पहनते हैं। यदि सभी लोग छोटे कुर्ते पहनने लगें तो देश के करोड़ों अधनंगे लोगों को वस्त्र उपलब्ध हो सकते हैं।
हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो लम्बा कुर्ता पहनते हैं।
बोला- जैसे अमोल पालेकर ने कम लम्बे कुर्ते का फंडा दिया वैसे ही मोदी जी ने ‘गोलमाल’ फिल्म देखकर आधी बांह के कुर्ते का अविष्कार किया। हां, दोनों के उद्देश्य अलग रहे; अमोल पालेकर सादगी और भारतीयता के सनकी बूढ़े सेठ की लड़की को पटाने के लिए छोटे कुर्ते का नाटक करता है जबकि मोदी जी ने तो समस्याएं कुछ कम करने के लिए कुर्ते की बांहें आधी कर दी थी।
हमने कहा- यह बात तो सही है, तोताराम। परिवार वाले के काम तो घर में कौन, कब कर देता है, पता ही नहीं चलता। आदमी रोटी बना ले तो सब्जी बनाने का आलस, सब्जी-रोटी दोनों बना ले तो बरतन मांजने का आलस। ऊपर से कपड़े धोना, प्रेस करना। ऐसे में आदमी सोचता है साधुओं की तरह एक लंगोटी लगा लें, जंगल में चले जाएं और कंदमूल खाकर गुजारा कर ले। मोदी जी ने तो कुर्ते की बांहें ही छोटी की हैं। गांधी जी ने शायद इसीलिए बहुत से कपड़े छोड़कर सिर्फ आधी धोती अपना ली। परेशानी ही आविष्कार की जननी है।
बोला- लेकिन ऐसे आविष्कारों का दूरगामी असर पड़ता है। गांधी जी ने लंगोटी लगाकर अंग्रेजों को भगा दिया और मोदी जी ने छोटी बांहें आधी करके देश को कांग्रेस मुक्त कर दिया।
इसी प्रकार ‘मोदी इफेक्ट’ से अर्थव्यवस्था भी दुगुनी हो सकती है।

याद रख, मोदी है तो मुमकिन है, शाह है तो संभव है।


 



 

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Oct 16, 2019

चालीस ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था



चालीस  ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था

तोताराम ने ‘भारत की जय’ का नारा कुछ ज्यादा ही जोर से लगा दिया। इस चक्कर में उसे खांसी चल पड़ी। काफी देर तक खांसता रहा। हमने उसकी पीठ को सहलाया, पानी पिलाया और जब उसे थोड़ा सांस आया तो कहा- अब इस उम्र में इतना देश-प्रेम ठीक नहीं है। तुझे कौनसा चुनाव जीतना है जो बिना बात जान हलकान किए जा रहा है।
बोला- शहीदों की मौत किस-किस को नसीब होती है। जैसे यदि लाखों की भीड़ वाली किसी शानदार रैली में भाषण देते-देते कोई नेता मर जाए, एडवांस चेक लेने के बाद किसी कविसम्मेलन में कविता की दो पंक्तियां सुनाने से पहले ही कोई घिसा-पिटा चुटकुला सुनाकर जबरदस्ती तालियां बजवाते ही किसी मंचीय कवि का हार्ट फेल हो जाए, यदि कोई सामान्य व्यक्ति देशभक्ति का नारा लगाते हुए मर जाए तो भले ही उसे कोई पेंशन या परमवीर चक्र न मिले लेकिन वह सीधा स्वर्ग में जाता है जहां अप्सराएं उसका इंतजार कर रही होती हैं।
हमने पूछा- लेकिन आज तुझे इतना जोश कैसे आ रहा था?
बोला- अर्थव्यवस्था के 2042 तक 40 ट्रिलियन डॉलर की हो जाने की आशा से।
हमने कहा- तेरा दिमाग खराब हो गया है? मोदी जी ने ही बहुत डरते-डरते 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर का अनुमान पेश किया है तो फिर तू ही ऐसा कौन सा जेतली जी आ गया जो 2042 तक 40 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचा देगा।
बोला- मैं 2014 के चुनावों की तरह जुमले नहीं फेंक रहा। मेरे पास मजबूत आधार है इसके लिए।
हमने कहा- तो अर्ज कर जिससे हम मुलाहिजा फरमाएं।
बोला- यदि किसी भाषा के सलीके का ज्ञान न हो तो उसकी टांग तोड़ना ठीक नहीं। खैर, सुन। मोदी जी 2024 तक अर्थव्यवस्था को अढ़ाई से 5 ट्रिलियन डॉलर की कर सकते हैं | इस हिसाब से 2042 में 40 ट्रिलियन का आंकड़ा ही बैठता है।
हमने पूछा- क्या कभी तूने सोचा है कि यह कैसे हो सकता है?
बोला- क्यों नहीं? जब मोदी जी के आधी बांह का कुर्ता पहनने से अढ़ाई ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था छह साल में दुगुनी होकर पांच ट्रिलियन हो सकती है। अब फोन के साथ-साथ फ्री टेलीविजन और फ्री फिल्म-प्रदर्शन का पैकेज लाने वाले मुकेश भाई अंबानी के अनुसार छह साल में फिर दुगुनी हो कर 10 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है। इस हिसाब से जब मैं कुर्ता पहनना छोड़ दूंगा तो 2042 में 40 ट्रिलियन डॉलर भी हो सकती है जो उस समय की अमरीका की जीडीपी के बराबर होगी। और यही स्पीड हमने बरकरार रखी तो हम 2048 में अमरीका की जीडीपी से 10 ट्रिलियन डॉलर आगे निकल जाएंगे।
हमने पूछा- हे महान ज्योतिर्विद, गणितज्ञ और अर्थशास्त्री क्या तुझे पता है एक ट्रिलियन डॉलर में कितने रुपए होते हैं?
बोला- करोड़ के बाद अरब, नील, पद्म। तुलसी ने भी कहा है- पदम् अठारह जूथप बन्दर। इससे आगे उन्हें भी पता नहीं। एक पद्म कितना होता है यह हमें और तुलसी बाबा दोनों को पता नहीं। इससे आगे कानों में शंख और महाशंख बजने लगते हैं। सिर चकराने लगता है।



कार्टून




 जब इस मिलियन-बिलियन- ट्रिलियन वाली गणना की बात आती है तो मुझे लगता है जैसे किसी ने मुझे चंद्रयान से धक्का देकर नीचे फेंक दिया है।
हमने कहा- जब यही बात है तो क्यों इस ढपोरशंखी चर्चा में फंसता है? पहले मुंह धो, उसके बाद चाय पी। और हां आज स्वतंत्रता-दिवस के उपलक्ष्य में पकौड़े भी हैं।
पकौड़ों की बात सुनते ही तोताराम ने हमारे नाम का जयकारा लगाया।

हमने कहा- तोताराम, जय हमारी नहीं उन लोगों की बोल जिनके पुण्य-कर्मों से हम अभी तक इस लायक बचे हैं कि मिल-बैठकर चाय पी सकें, सुख-दुःख बतिया सकें वरना सेवकों ने तो भेदभाव फैलाने में कोई कसर छोड़ नहीं रखी है।


 

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Oct 14, 2019



७२. स्वतंत्रता-दिवस की बधाई /१५-०८-२०१९ 


तोताराम ने पूरे जोश-ओ- खरोश से दरवाज़ा खटखटाते हुए हाँक लगाई, जय श्री राम |
स्वतंत्रता-दिवस की बधाई हो भाई साहब |

हमने दरवाज़ा खोलते हुए कहा- स्वतंत्रता-दिवस तो ठीक है लेकिन हमारा दरवाज़ा तोड़ने की स्वतंत्रता तुझे किसने दी ?

बोला- देखिए आदरणीय, उत्साह में होश थोड़ा-बहुत इधर-उधर हो ही जाता है |

हमने कहा- इस प्रकार तुम्हारा यह उत्साह देशी दारू के नशे की तरह हो गया कि स्वदेश के नाम पर किसी को भी उल्टा-सीधा कह दो |उत्साह को जोश से अधिक होश की ज़रूरत होती है |हम राम तो क्या उनके दास हनुमान जी तक के दासानुदास हैं लेकिन आज के दिन हमें तुम्हारा यह नारा भी कुछ अजीब लग रहा है |

बोला- तो क्या भारत में जय श्रीराम बोलना भी गुनाह है ? भारत में नहीं तो और कहाँ बोलेंगे जय श्रीराम ?

तिरंगा

हमने कहा- तोताराम, बिना बात का बतंगड़ मत बना |हमारा कहने का मतलब यह है कि ये दो अलग-अलग बातें हैं |इन्हें आपस में मिलाने से कन्फ्यूजन हो जाता है |और कृपा करके कन्फ्यूजन को फ्यूजन इनर्जी से जोड़कर हमारी बात का सत्यानाश मत कर देना | आजकल तेरे जैसे उत्साही लोग किसी भी बात को तार्किक ढंग से समझने की बजाय शब्दों और अनुप्रास में उलझाकर  हर बात का सत्यानाश करने में ही लगे हुए हैं |

बोला- लेकिन इसमें खराबी क्या है ?

हमने कहा- खराबी यह है कि स्वतंत्रता-दिवस इस देश के सभी लोगों धर्मों, जातियों, और भाषाभाषियों का है जबकि राम को सभी महान मानते हैं लेकिन सबके लिए राम उस तरह से आस्था का विषय नहीं है जैसे देश का झंडा और स्वतंत्रता-दिवस |तुझे पता है, कुछ लोग कहते हैं कि भारत पर आक्रमण के समय मुसलमान अपनी सेना के आगे गाय को कर देते थे |गाय हिन्दुओं के लिए अवध्य है |इसलिए वे हथियार नहीं चला सकते थे और मुसलमान जीत जाते थे जैसे कि शिखंडी को आगे करके पांडवों ने भीष्म को मार डाला |इसलिए घालमेल में षड्यंत्र होने की बहुत संभावना रहती है |

बोला- तो फिर भाजपा ने बसपा और सपा में रह चुके सेंगर को क्यों स्वीकार कर लिया ?

हमने कहा- इसे स्वीकार करना नहीं कहते |यह तो वैसे ही है जैसे अरब देशों में भारतीय मुसलमानों को दोयम दर्जे का माना जाता है |उन्हें नौकर तो रखा जा सकता है लेकिन शादी-ब्याह के संबंध नहीं किए जाते | सेंगर को भाजपा में लिया है सत्ता पक्की करने के लिए लेकिन संघ में तो नहीं लिया ना ? संघ पवित्र है उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए सबका प्रवेश वहाँ नहीं है | बुद्ध ने महिलाओं को संघ में ले लिया तो क्या हुआ ? सबको पता है |संघ यौनापराधों के अड्डे बन गए जैसे चर्च; जहाँ कुँवारी साध्वियांँ और वैसे की फादर-ब्रदर रहते हैं |उनकी नाजायज़ संताने उनके भतीजे-भतीजियाँ कहलाते हैं और वहीँ कान्वेंट में पढ़ते-पलते हैं |यह बात और है कि यहाँ किसी भी गाँव में कोई भी कान्वेंट खोल कर बैठ जाता है |तभी चर्चों और संघों की तरह ऐसे निजी स्कूलों में शिक्षा भ्रष्ट हो रही  है |

इसलिए जोर से बोल- जय भारत |

तोताराम ने हमसे भी जोर से नारा लगाया- जय भारत |

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Oct 13, 2019

लोकतंत्र में लालबुझक्कड़ी

 लोकतंत्र में लालबुझक्कड़ी 







हम और तोताराम दोनों ने ही कोई तीन साल पहले आंखों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाकर लेंस लगवाए थे। डॉक्टर ने दावा किया था कि ये लेंस लगवाने के बाद आप 150 किलोमीटर तक देख सकेंगे। हमने शंका की तो डॉक्टर बोला-मास्टर जी, त्रेता युग में जटायु के भाई सम्पाती को ये ही लेंस लगाए थे जिससे उसने कन्याकुमारी में बैठे-बैठे ही लंका में अशोक वाटिका में बैठी सीता को देख लिया था। संजय को भी ये ही लेंस लगाए गए थे।

हमने पूछा- कौन संजय ? संजय दत्त ?
डॉक्टर ने कहा था- नहीं। वह तो अपने घर से मुम्बई के पुलिस मुख्यालय तक भी नहीं देख सका, नहीं तो अपनी ए.के. 47 कहीं ठिकाने नहीं लगा देता।
मैं तो महर्षि व्यास के शिष्य, धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य, विद्वान गावाल्गण नामक सूत के पुत्र और जाति से वह बुनकर संजय की बात कर रहा हूं, जिसने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) में धृतराष्ट्र के दरबार में बैठकर वहां से १५० किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में चल रहे युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाया था।

डॉक्टर के दावे के अनुसार कुछ भी नहीं हुआ। हम और तोताराम कभी अपने घर से दो किलोमीटर दूर बैंक तक भी नहीं देख पाए कि खुला है या नहीं? संबंधित बाबू आए हैं या नहीं? आए हैं तो सुबह-सुबह की धूप-बत्ती, चायपान करके अपने सिंहासन पर आसीन हुए हैं या नहीं ?
यदि आयुष योजना के अंतर्गत लेंस लगवाए होते तो बात और थी। संतोष कर लेते लेकिन दोनों ने जेब से पंद्रह-पंद्रह हजार खर्च किए तो दुःख तो था ही। हमने तो भोली-भाली भारतीय जनता की तरह पंद्रह लाख के वादे को जुमला मानकर मन को समझा लिया लेकिन तोताराम स्थिति से समझौता नहीं कर सका। जब-तब चाय के साथ अपनी इस पीड़ा का ज़िक्र भी कर दिया करता। दरअसल तोताराम का हमसे कुछ अधिक खर्चा हो गया। हुआ यह कि ओपरेशन के कुछ महिनों बाद उसे थोड़ा धुंधला दिखाई देने लगा तो वह डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने बताया कि कुछ लोगों के लेंस पर एक फिल्म सी बन जाती है जिसे हटवाना पड़ता है। इस चक्कर में डाक्टर ने उससे तीन हजार रुपए और झटक लिए।
आज फिर यही चर्चा चली।
बोला- मास्टर, वह फिल्म हटवाने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा।
हमने कहा- यदि कभी दिल्ली जाना हो या किसी रैली या चुनाव सभा में मोदी जी इधर आएँ तो उनसे मिल लेना। उनके पास वेदों से ढूंढ़कर निकाले गए, कुछ शर्तिया, अनुभूत, खानदानी नुस्खें हैं, जिन्हें वे जब-तब जनहित में मुफ्त बांटते रहते हैं।
बोला- तो क्या उनके पास दृष्टि का धुंधलापन दूर करके उसे तेज और स्पष्ट करने का कोई मुफ्तिया नुस्खा है? क्योंकि मेरा भामाशाह कार्ड तो है नहीं।


हमने कहा- मोदी जी के सभी नुस्खे मुफ्तिया ही होते हैं। वे खुद बहुत गरीबी से उठकर आए हैं। उन्होंने खुद को भी ऐसे ही नुस्खों से फिट रखा हुआ है। सुन, दो महीने बाद शरद पूर्णिमा आने वाली है। उसकी चांदनी में सुई में धागा डालने की कोशिश करना। उससे दृष्टि तेज हो जाती है। उससे तुझे भी मोदी जी और उनके मंत्रियों की तरह देश का निकट-दूर का सारा भविष्य उज्ज्वल दिखाई देने लगेगा।
बोला- मुझे देश का भविष्य नहीं, टूटी-फूटी सड़कों पर रास्ता साफ़ देख सकने वाली दृष्टि चाहिए।
हमने कहा- जिस नुस्खे से देश का भविष्य दिखाई दे सकता है उस नुस्खे से गिर पड़ने के बाद बिना एक्सरे के ही तुझे अपनी टूटी हुई हड्डी भी दिखाई दे सकती है।
बोला- आजकल जब चाहे सर्दी-जुकाम और खांसी जब हो जाती हैं और फिर कई दिनों तक ठीक नहीं होती।

हमने कहा- इसके दो कारण हैं। ऑक्सीजन की कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता का क्षीण होना। मोदी जी ने अपनी हिमालय यात्रा के दौरान एक जड़ी खोजी थी जिसे ‘सोलो’ कहते हैं। शायद इसे ही त्रेता में संजीवनी भी कहते थे। इसे खाने से ऊंचाई वाले स्थानों में ऑक्सीजन की कमी अनुभव नहीं होती और इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। हो सके तो अभी स्टॉक करके रख ले? मोदी द्वारा रहस्योद्घाटन के बाद इसके दाम ज़रूर बढ़ने वाले हैं।
बोला-क्या मेरे कम होते जा रहे और पूर्णतया सफ़ेद हो चुके बालों के लिए भी कोई नुस्खा है ?
हमने कहा- मोदी जी ने तो कभी इसकी चर्चा नहीं की लेकिन उनसे भी ज्यादा ज्ञानी रामकृष्ण यादव उर्फ़ रामदेव हैं। उन्होंने बताया है कि दोनों हाथों की अंगुलियों को मोड़कर नाखूनों को आपस में घिसो।
  बोला- यह बात तो कुछ जमी नहीं। यह भी कोई इलाज है? मुझे तो यह अंधविश्वास जैसा लगता है।


हमने कहा- अगर ऐसा होता तो मोदी जी अपने किसी न किसी भाषण में इस बात को ज़रूर लपेट लेते। वे बहुत वैज्ञानिक दृष्टि वाले व्यक्ति हैं। तभी तो उन्होंने 2017 में नोएडा मेट्रो ट्रेन के उदघाटन के दौरान अंधविश्वास का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था- ‘आपने देखा होगा कि एक मुख्यमंत्री ने कार खरीदी। किसी ने कार के रंग के संबंध में कुछ बता दिया तो उन्होंने कार के ऊपर नींबू, मिर्च और जाने क्या-क्या रख दिया। मैं आधुनिक युग की बात कर रहा हूं।’‘ये लोग देश को क्या प्रेरणा देंगे ? ऐसे लोग सार्वजनिक जीवन का बहुत अहित करते हैं।’
बोला- यदि रामदेव का यह उपाय अंधविश्वास नहीं है तो मोदी जी, जो इस उम्र में भी इतने स्मार्ट और फिट हैं, क्या अंगुलियों के नाखून आपस में रगड़कर अपनी दाढ़ी और बालों को काला नहीं रख सकते थे?
हमने कहा- रख सकते थे लेकिन मोदी जी के पास तो जवानी में भी समय फालतू नहीं था। तभी तो समय बचाने के लिए अपने कुर्तों की बांहें आधी कर दीं। और अब तो ऐसे तुच्छ कामों के लिए उनके पास समय होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
बोला- वैसे मास्टर, सभी समस्याओं की जड़ है गरीबी। आदमी के पास अनाप-शनाप पैसा हो तो न कोई बीमारी हो, न दृष्टि कमजोर हो, न बुढ़ापा सताए।
हमने कहा- उसका भी उपाय है और बहुत सरल भी।
बोला- बता ना, फिर देर किस बात की है।
हमने कहा- 6 अप्रैल 2019 को ओडिशा में मोदी जी ने एक चुनाव सभा में घोषित किया था- ‘गरीबी हटाने की सबसे बेहतर जड़ी-बूटी है कांग्रेस हटाओ’।
बोला- लेकिन भारत ‘कांग्रेस मुक्त’ हो तो चुका है। फिर गरीबी अभी तक क्यों नहीं मिटी।
हमने कहा- तोताराम, विजेता वास्तव में विजेता तब बनता है, जब सामने वाला अपनी पराजय स्वीकार कर ले लेकिन सामने वाले ने अभी तक अपनी पराजय स्वीकार नहीं की है।





  

 
  












 

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Oct 12, 2019

राम के वंशज



 राम के वंशज  



हमने कहा- तोताराम, सर्वोच्च न्यायालय ने क्या मज़ाक बना रखा है, पूछ रहा है- क्या राम का कोई वंशज अब भी अयोध्या में रह रहा है ?

बोला- इसमें मजाक की क्या बात है ? उचित उत्तराधिकारी तो ढूँढ़ना ही पड़ेगा | यह थोड़े हो सकता है कि जायदाद मोहन की और सौंप दी जाए सोहन को | यह कोई सेवकों का लोकतांत्रिक करिश्मा थोड़े ही है जो भैंसों को हरियाणा से पटना स्कूटर पर भिजवा दें, आसाम से हजारों टन चावल बाइक से मणिपुर पहुँचा दें या गुजरात में एक छोटा-सा सहकारी बैंक में पाँच दिन में आठ सौ करोड़ रुपया गिन दे और बंद हो चुके नोटों से बदल भी दे और सब मामले दबा दिए जाएँ |

हमने कहा- आजकल आदमी को अपने बाप का भी पूरा नाम नहीं मालूम |यदि बाप ने बताया हो तो अधिक से अधिक दादा और बहुत हुआ तो परदादा का नाम पता हो सकता है | राम का जन्म दिन तो पता है लेकिन साल का कैसे पता किया जाए ? ऐसे कोई कहाँ से ढूँढ़ कर लाए राम का वंशज |और फिर हमें देवताओं की श्रेणी में शामिल हो चुके क्षत्रियों के जन्म की कथाओं से तो यह पता चलता है कि फलाँ-फलाँ राजा को संतान नहीं थी, फलाँ-फलाँ ऋषि ने कुछ योग-नियोग-संयोग जैसा कुछ किया तो संतान हुई |कौरव-पांडव तो पाराशर ऋषि के धीवर कन्या से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास के नियोग से पैदा होने के कारण क्षत्रिय रह ही कहाँ गए ? कहते हैं दशरथ की भी इस मामले में शृंगी ऋषि ने सहायता की थी |ऐसे में बहुत मुश्किल है राम के किसी वंशज को ढूँढ़ पाना |

बोला- नहीं | इसमें मुश्किल क्या हैं ? लखनऊ में तो कोई भी रिक्शे वाला बता देता है कि वह किस नवाब का वंशज है |पहले मुगलिया खानदान का एक वारिस चाँदनी चौक के कपड़े प्रेस किया करता था |तो अयोध्या में जाकर पूछ लिया जाए |किसी पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा क्योंकि अब नारायणदत्त तिवारी की तरह राम का डीएनए टेस्ट तो संभव नहीं है |

हमने कहा-  यह मामला इतना आसान नहीं है, तोताराम |बात अयोध्या तक सीमित नहीं रह गई है |जयपुर राजघराने की दीया कुमारी ने कहा है कि उनके पुराने कागजों में राम की वंशावली है जिसके अनुसार वे राम की ३०७ वीं पीढ़ी में हैं | अब तो मेवाड़ राजपरिवार के अरविन्द सिंह ने भी राम का वंशज होने का दावा कर किया है |हो सकता है अभी और भी लोग आएँ जैसे  'प्यासा' फिल्म में गुरुदत्त  की किताबों की रायल्टी के लिए उसके भाई आ गए थे |

NBT

बोला- मेरे ख्याल से इस बारे में क्यों न साध्वी निरंजन ज्योति से पूछा जाए | वे निरंजन (ब्रह्म/परमात्मा) भी हैं और उनके पास 'ज्योति' भी  है जिसके प्रकाश में वे सब कुछ साफ़-साफ़ देख सकेंगी | वे सब बता देंगी कि कौन रामाजादा है और कौन हरामजादा ? 

हमने कहा- इस हिसाब से तो क्यों न पिछले चुनावों के वोटों से तय कर लिया जाए |

बोला- वोटों के हिसाब से तो देश में ३५% से भी कम रामजादे निकलेंगे |  

हमने कहा- इस हिसाब से तो देश में हरामज़ादों का बहुमत सिद्ध हो जाएगा |

बोला- तो फिर ऐसा कर लें कि पिछले चुनावों में जिस लोकसभा संसदीय क्षेत्र से भाजपा का उम्मीदवार जीता है वहाँ के लोगों को रामजादे अर्थात राम का वंशज मान लिया जाए | 

हमने कहा- यह ठीक है |इस बार संयोग से लोकसभा में भाजपा से एक भी हरामजादा सांसद नहीं है | हाँ, मुख्तार अब्बास नक़वी की थोड़ी समस्या होगी |

बोला- वे कोई चुने हुए थोड़े ही हैं |वे भाजपा के धर्म निरपेक्ष चेहरे हैं | राज्य सभा में हैं पूरी तरह पार्टी की हथेली पर |

हमने कहा- यदि किसी तरह भी तय नहीं हो सके तो रजनीकांत से पूछ लिया जाए जिन्होंने मोदी जी में कृष्ण देख लिया या उमा भारती से जिन्हें मोदी जी में विष्णु मिल गए |


 


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