Nov 26, 2016

महानायक का उल्लेख

  महानायक का उल्लेख 

तोताराम हमें आदिकवि कहता है |सुनकर आपको भी अच्छा लग रहा होगा |हमें भी शुरू-शुरू में बहुत अच्छा लगा था लेकिन जैसे ही उसने हमारे आदिकवि विशेषण के बारे स्पष्ट किया तो हमारी तो हवा ही खिसक गई |बोला- तुम आदिकवि हो |कविता के हर कार्यक्रम के हर समाचार में तुम्हारा उल्लेख होता है |हमने कोई रिपोर्टिंग दिखाने को कहा तो बोला- दिखाना क्या है |कहीं भी पढ़ ले- फलाँ कार्यक्रम में देश के सभी विशिष्ट कवियों ने काव्यपाठ किया जैसे- अ,ब,स,द आदि |अब यह आदिकवि तेरे अतिरिक्त कौन हो सकता है |इसी तरह फोटो के केप्शन में देखले, लिखा होता है मंच पर अ,ब,स,द आदि कवि विराजमान हैं |यह आदिकवि भी तू ही है |

आज सुबह-सुबह समाचार पढ़ा कि अमरीका में राष्ट्रपति पद की डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के ईमेल वाले मामले में एक खुलासा आया है कि उन्होंने एक मेल में अपनी चुनाव सहायिका पाकिस्तान मूल की हुमा आबेदीन से पूछा था कि हमारी भारत यात्रा में जिस बुज़ुर्ग अभिनेता से हम मिले थे उसका नाम क्या था ?दुनिया में सबसे अधिक फ़िल्में बनाने वाले, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और शीघ्र ही दुनिया के किसी भी देश से आगे निकल जाने वाले महान देश जगद् गुरु भारत के एकमात्र महानायक का नाम तक न जानने वाली महिला के अज्ञान के बारे में क्या कहा जाए ?

आते ही हमने तोताराम को आड़े हाथों लिया, कहा- अमरीका में कई नोबल पुरस्कार विजेताओं सहित अमरीका के सौ से भी अधिक अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि लोग ट्रंप को वोट न दें क्योंकि उन्हें अर्थशास्त्र की कोई जानकारी नहीं है |अब यह हिलेरी तो उससे भी संपटपाट निकली | भारत के महानायक तक का नाम नहीं जानती तो भारत के क्या काम आएगी |अमरीका में बसे भारतीयों को क्लिंटन को वोट नहीं देना चाहिए |

हमने कहा- तोताराम, हर गली का अपना-अपना शेर होता है |उसे कभी भी दूसरी गली का शेर बनने की महत्वाकांक्षा नहीं पालनी चाहिए |वैसे ही सभी देशों के अपने-अपने महानायक होते हैं, बादशाह होते हैं, किंग होते हैं | अखबार और टी.वी. वाले सेलेब्रिटीज़ के प्रचार प्रबंधकों से पैसे खाकर उन्हें बड़े-बड़े विशेषणों ने विभूषित करते रहते हैं |जो वास्तव में महानायक थे उन्होंने अपने को कभी महानायक प्रचारित नहीं करवाया और न ही कभी पैसे के लिए उलटे-सीधे विज्ञापन किए |तुझे पता है, ओबामा के पहले चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार सारा पालिन को तो यह भी पता नहीं था कि दुनिया के नक़्शे में भारत कहाँ है ?रेड इंडियंस और इंडियंस में क्या फर्क है ? 

एक बार  प्रधानमंत्री नरसिंहा राव किसी सम्मेलन में भाग लेने अमरीका गए थे किसी ने वहाँ के अखबारों में उनके लिए दो लाइनों की जगह भी नहीं दी थी |एक बार भाजपा के बड़े नेता और अब निष्कासित जसवंत सिंह सिंह जी का हेराल्ड अखबार में एक फोटो छपा जिसमें अमरीका की रक्षा सचिव अल्ब्राईट का चेल्सी क्लिंटन से हाथ मिला रही थीं |  केप्शन में जसवंत सिंह जी का कहीं नाम नहीं था |बस, लिखा था -चेल्सी क्लिंटन से हाथ मिलते हुए अलाब्राईट और एक अन्य व्यक्ति | यह तो हमीं हैं कि योरप-अमरीका की छींक और खाँसी तक की खबरें मुखपृष्ठ पर छापते हैं और उनके लिए हमारा रक्षा मंत्री मात्र 'एक अन्य व्यक्ति' |

तोताराम ने कहा- अच्छा, तू साहित्यकार की दुम बना फिरता है ना | ज़रा, इस वर्ष के साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता का नाम तो बता |

हमने कहा- पता नहीं है |

तो बोला- तो फिर हिलेरी से ही यह उम्मीद क्यों करता है कि वह तुम्हारे महानायक का नाम याद रखे |उसने तो यह भी इसलिए पूछ लिया होगा कि ज़रूरत पड़े तो भारतीयों को लुभाने के लिए कहीं अपने अमित जी के नाम का उल्लेख कर दें |

Nov 23, 2016

पचास दिन मोदी के नाम

  पचास दिन मोदी के नाम 

आज सुबह की चाय अकेले ही पी |तोताराम नहीं आया | सोच रहे थे, उसके घर जाकर पता करके आएँ; तभी तोताराम अपनी पत्नी और पोते बंटी के साथ काफी सारे साज़-ओ-सामान के साथ बरामदे के पास आकर रुका | 

माथे पर मोटा-बड़ा कारसेवकों जैसा टीका, कलाई पर मोटा-सा कलावा, भगवा कुर्ता |लगा जैसे कोई राजपूत केसरिया छककर अंतिम युद्ध में वीर गति प्राप्त करने के लिए जा रहा हो |या कोई क्षत्राणी जौहर की तैयारी में हो |हमने पूछा- क्या धर्मयुद्ध में जा रहा है ?

बोला- हाँ, धर्मयुद्ध की समझले | काले धन, आतंकवाद की फंडिंग, भ्रष्ट लोगों की राजनीति को फेल करने, देश में पिछले सत्तर वर्षों से फैले कलुष को मिटाने और भारतीय जनजीवन, शासन-प्रशासन सबको एक साथ ही शुद्ध करने के लिए जा रहा हूँ | बहुत वर्षों बाद देश में कोई एक परम तेजस्वी, परम प्रतापी, देश का सच्चा सेवक पैदा हुआ है |अब इस देश का भाग्य बदलने वाला है |बस, पचास दिन की बात है |नरेन्द्र भाई ने इस देश के लिए कौनसा त्याग नहीं किया ? अब अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर एक बंदा हमसे केवल पचास दिन माँग रहा है |तूने संसद में उनकी भाव विह्वल अपील सुनी या नहीं ? वैसे भी अब और कितना जीना है |यदि शेष बचा यह जीवन देश के काम आ जाए तो जन्म लेना सार्थक हो जाएगा |इसके बाद अच्छे दिन ही क्या इस पुण्य भूमि पर स्वर्ग उतर आएगा |

हमने पूछा- पर जा कहाँ रहा है ?  बंटी के सिर पर यह क्या है ?  मैना को क्यों ले जा रहा है ? 

बोला- बैंक जा रहा हूँ | अब पचास दिन तक वहीं धूनी रमेगी |बंटी के सिर पर एक चटाई और मेरा बिस्तर है |मैं आजकल से भगोड़े सेवकों की तरह पत्नी से छुपकर नहीं जा रहा हूँ |अब तुम्हारी अनुजवधू मैना यशोधरा की तरह नहीं कह सकेगी-
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में 
प्रियतम को प्राणों  के पण में 
हमीं भेज देती हैं रण में 
क्षात्र धर्म के नाते |
सखि, वे मुझसे कह कर जाते |

जब तक मेरे खाते में हैं तब तक रोज सौ- सौ के पाँच नोट निकलवाता रहूँगा | शेष समय में लाइन में लगे लोगों का मनोबल बढ़ाता रहूँगा |कष्ट उठाकर लाइन में शांति और धैर्यपूर्वक लगे लोग भी तो राष्ट्रीय परिवर्तन और क्रांति की इस घड़ी के साक्षी हैं |

हमने कहा- तोताराम, औसतन इतने लोग तो देश की सीमाओं पर भी शहीद नहीं होते जितने नोट बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में लगकर मर रहे हैं | क्यों बिना बात रिस्क ले रहा है |अब तक सत्तर से अधिक लोग मोदी जी के इस क्रांतिकारी कदम की बलिवेदी पर चढ़ चुके हैं |और संसद में कोई सत्ताधारी उनकी देश की अर्थव्यवस्था की सफाई में दी गई इस शहादत के लिए दो मिनट का मौन रखने को भी तैयार नहीं है |

बोला- मास्टर, पता तो मुझे भी है कि इन चोंचलों से इस महान देश को कोई फर्क नहीं पड़ता |पंचों का कहा सिर माथे, नाला वहीँ पड़ेगा | एक हजार का पुराना नोट  बंद करके दो हजार का चला रहे हैं तो फिर पहले से दोगुनी रफ़्तार से काला धन बनेगा |

हमने कहा- जब तू यह जानता है तो क्यों तो मोदी जी की स्तुति में दुहरा हुआ जा रहा है और क्यों लाइन में लग कर मौत को बुलावा दे रहा है |

बोला- मैं ऐसा बावला नहीं हूँ |एक तो बैंक में बिस्तर लगाए पड़ा मैं देश का एक मात्र वरिष्ठ नागरिक हूँगा |संभव है इसकी चर्चा दूर-दूर तक हो और मोदी जी अपनी 'मन की बात' में मेरे नाम का उल्लेख कर दें |दूसरे अभी सौ-सौ के नोटों पर दस प्रतिशत का बट्टा चल रहा है सो पचास रुपए रोज के वे खरे हो जाएँगे |तीसरे बैंक की लाइन में लगे हुए लोगों को चाय-नाश्ता करवाने का फैशन चला है सो वह भी पेलेंगे |चौथे सुना है, मोदी जी केंद्र सरकार के तहत स्वायत्तशासी निकायों के सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों को न तो नया वेतन मान देने जा रही है और न ही सातवें पे कमीशन का एरियर |ऐसी घोषणा नोटबंदी की तरह कभी भी हो सकती है |
इस एक्स्ट्रा आमदनी से शायद यह जोर का झटका धीरे से लगे | तू चाहे तो इस परिवर्तन महायज्ञ में तेरा भी स्वागत है |
 

Nov 13, 2016

अमर सिंह का वात्सल्य

  अमरसिंह का वात्सल्य

आज जैसे ही तोताराम बरामदे में आकर खड़ा हुआ तो उसके रोम-रोम से टपकती बूँदों के कारण बरामदा गीला हो गया |हमने कहा- तोताराम, क्या बात है, इतना पसीना ?खैरियत तो है ? न हो तो, अन्दर चल कर बैठ |थोड़ा सुस्ताले, पानी पीले | 

बोला- चिंता की कोई बात नहीं है | मैनें तो थोड़ी देर पहले अमरसिंह जी का स्टेटमेंट पढ़ा है |

हमने उसे आगे बोलने ही नहीं दिया, कहा- पसीने से लथपथ होगा स्टेटमेंट देने वाला |तू क्यों परेशान है ?

बोला- बात का सत्यानाश मत कर | अमरसिंह जी ने कहा है- यदि अखिलेश मुझे बार-बार मारेंगे तो भी मैं यही पूछूँगा- बेटे, कहीं चोट तो नहीं लगी ?  

हमने कहा- अमरसिंह जी तो दरियादिल शख्स है |यदि कोई उनके सीने पर लात भी मारेगा तो वे कहेंगे- कहीं मेरे सीने की धूल से आपके चरण-कमल गंदे तो नहीं हो गए ? वैसे जहाँ तक चरणों को चोट लगने की बात है तो यह वाक्य भृगु जी को भगवान विष्णु ने कहा था, जब उन्होंने उनके वक्षस्थल पर पदाघात किया था |  भृगु उम्र में बड़े होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी थे इसलिए विष्णु का यह कथन ठीक था लेकिन यहाँ तो अमरसिंह खुद को अखिलेश का चाचा मानते हैं |ऐसी स्थिति में यदि अखिलेश ऐसा करे तो यह उद्दंडता है |
  
भृगु विष्णु की सहनशीलता और क्षमाशीलता टेस्ट करना चाह रहे थे |ठीक भी है, समय-समय पर सबकी टेस्टिंग और चेकिंग होती रहनी चाहिए |सो ठीक भी है |अमर सिंह जी सभी तरह की टेस्टिंग के लिए तैयार हैं |तभी वे यह चुनौती देते हैं कि अखिलेश जब चाहे टेस्टिंग कर ले |वे हर परीक्षा में खरे उतरेंगे |वास्तव में अखिलेश ने उन्हें लात थोड़े ही मारी है |

तोताराम कहने लगा- लेकिन अमरसिंह जी का दिल तो देख | वे नाराज़ होने की बजाय अखिलेश में महर्षि भृगु को देख रहे हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, कुछ भी अमरसिंह जी तो बड़े नाज़ुक से, नफीस और बड़े साइस्ता शख्स हैं |वे तो बात भी बहुत धीरे से करते हैं,दोस्ती भी नाज़ुक फ़िल्मी लोगों से है, और नाम भी कोई पत्थर दिल नहीं है जैसे-पहाड़ सिंह, खूँख्वार सिंह,जोरावर सिंह आदि |और फिर अखिलेश भूतपूर्व मुख्यमंत्री और सर्वेसर्वा मुलायम सिंह जी के पुत्र और उत्तर प्रदेश के भावी प्रधान मंत्री के पिता भी हैं |

वैसे अमर सिंह जी हैं भी बहुत उदार |कभी किसी का दिल नहीं तोड़ा |दोस्तों पर दिल और दौलत लुटाते रहे और लुटते रहे |जब एक बार हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ सोनिया गाँधी से बिना बुलाए मिलने गए थे तो अपनी उपेक्षा को छुपाया नहीं और बहार निकलते ही पत्रकारों को बताया कि हमें किसी ने नहीं पूछा |हमारी तो कुत्ते जितनी भी कद्र नहीं हुई |   किसी को बड़ा भाई माना, किसी को कुछ | लोगों ने अपने स्वार्थ से पास बुलाया और स्वार्थ से दूर बैठाया लेकिन बन्दे के चेहरे पर कोई शिकन नहीं | 

आज भी लोग कहते हैं- लंका का यह ढहना यह किसी बाहर वाले का काम है | अब और तो सब अपने हो गए और अमरसिंह हो गए बाहर वाले | 

कोई बात नहीं, जैसे उनके दिन फिरे वैसे सब के फिरें | अंत भला सो भला |चलो चुनाव से पहले पार्टी महासचिव बन गए और क्या चाहिए |अब अगले चुनाव तक इस नए सत्ता-सुख का आनंद लें और और यदि पार्टी हार जाए तो हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देकर नैतिकता का उच्च आदर्श स्थापित कर दें | और यदि जीत जाएँ तो संन्यास लेकर त्याग का उच्च आदर्श |

तोताराम बोला- बन्धु, बात तो तुम्हारी सही है लेकिन यह ससुर राजनीति की हड्डी बहुत बुरी होती है |जैसे रंडी करेगी धंधा,  भले ही चाय अपनी जेब से पिलानी पड़े |


Nov 9, 2016

लोक के कल्याण क मार्ग

 
लोक के कल्याण का मार्ग

आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक लम्बा-सा कागज़ रख दिया और कहा- कर से साइन |

हमने कहा-पहले पढेंगे |जमाना ख़राब, क्या पता कौन किस कागज पर साइन करा ले |अपने सीकर के पास के एक गाँव में तो भाई लोगों ने एक मृत व्यक्ति का अँगूठा लगवाकर उसकी ज़मीन ही हड़प ली |

बोला- तेरी मर्ज़ी, मत कर साइन |पड़ा रह घोड़ों की लीद की बदबू में |

हमने कहा-हमारे साइन का बदबू से क्या संबंध ?

बोला- मैं तो अपने सीकर के तबेला-बाज़ार का नाम बदलवाने के लिए एक मूवमेंट चलाना चाहता हूँ | अच्छा-भला साड़ी-बाज़ार है और नाम है तबेला-बाज़ार |अरे, जब था तब था राजा साहब के घोड़ों का तबेला |ऐसा भी क्या परंपरा-प्रेम |मोदी जी को देखो | आते ही बदल दिया ना, रेसकोर्स का नाम |

हमने कहा- लेकिन इससे क्या फर्क पड़ेगा ? अब भी आप गूगल पर देखेंगे तो पता चलेगा लोक कल्याण मार्ग वही सड़क है जिसे पहले रेस कोर्स रोड़ कहते थे |हमारे गाँव में वैश्यों का एक परिवार है जिनके किसी पूर्वज ने कभी जलेबी चुरा ली थी तो गाँव के लोगों ने उन्हें 'जलेबी चोर' कहना शुरू कर दिया |बहुत वर्षों तक किसी ने कुछ बुरा नहीं माना लेकिन बाद में उनके आधुनिक वंशजों ने कानूनी रूप से अपना सरनेम बदल लिया और 'गुप्ता' बन गए |मज़े की बात यह कि बहुत वर्षों तक जब शुरू-शुरू में लोग बता नहीं पाते तो पूछने वाले को कहना पड़ता- अरे, भई मेरा मतलब 'जलेबी चोरों' से है |श्रद्धानन्द मार्ग को अब भी लोग बदनाम जी.बी रोड़ के नाम से ही जानते हैं |

बोला- इससे एक अपशकुन तो बदल जाएगा कि जब से ७ रेस कोर्स रोड़ को सरकारी अधिसूचना के द्वारा प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास बनाया गया है तब से मनमोहन सिंह जी को छोड़कर प्रधान मंत्रियों की आवाजाही ही लगी रही घुड़दौड़ की तरह  |इस अपशकुन को मिटाने के लिए भी ज़रूरी था नाम बदलना |वैसे मोदी जी भागदौड़ तो बहुत कर रहे हैं लेकिन घोड़े की तरह नहीं कि कोई उस पर जीन कसकर, चाबुक मारकर  दौड़ाए |

हमने कहा- वैसे धीरू भाई अम्बानी ने तो एक बार मोदी जी को लम्बी रेस का घोड़ा कहा था |

बोला- अब तेरी अंग्रेजी का मैं क्या करूँ |अरे, लम्बी रेस के घोड़े का मतलब होता है लम्बे समय तक विकास की दौड़ में डटा रहने वाला |

हमने कहा- देख लेना, भले ही अडवाणी जी को सत्तर साल के नाम पर निदेशक बनाकर चबूतरे पर बैठा दिया हो लेकिन खुद सौ साल की उम्र तक देश का कल्याण करते रहेंगे | कल्याण इस तरह का निर्गुण और अपरिभाषेय शब्द है जिसका दूसरा सिरा किसी को पता नहीं |यह  कभी ख़त्म न होने वाले काम है तभी तो मोदी जी ने अपने निवास-स्थान का नाम लोक कल्याण मार्ग रखवाया है |और जब तक कल्याण का काम नहीं हो जाता उन्हें जनता की बेहद माँग पर यहाँ बने रहना ही पड़ेगा |

  

Nov 7, 2016

बन्दर के हवाले भविष्य

 बन्दर के हवाले भविष्य


आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- तोताराम, सरकार ने सातवें वेतन आयोग के एरियर के बारे में कहा था कि  ३१ अगस्त २०१६ को कर्मचारियोंके खाते में क्रेडिट हो जाएगा |लेकिन दिवाली भी चली गई कोई सुगबुगाहट तक नहीं |क्या जेतली जी को पत्र लिखें ?

बोला- उन्हें इस छोटे से काम के लिए कष्ट देने की क्या ज़रूरत है | जब फुटबाल वर्ल्ड कप से लेकर अमरीका के राष्ट्रपति-चुनावों के परिणाम के बारे में बन्दर भविष्य वाणी करने लगा तो उसीसे पूछ लेते हैं |एक केले का खर्चा ही तो है |

हमने कहा- पूरा किस्सा बता |

कहने लगा- समाचार है कि चीन में 'जेदा' नाम का एक पालतू बन्दर भविष्य बताता है |उसके मालिक ने दो कट आउट लगाए -एक ट्रंप का और एक हिलेरी का |दोनों के आगे एक-एक केला रखा |बन्दर ने बहुत सोच-विचार के बाद ट्रंप के आगे रखा केला खा लिया और उसके बाद ट्रंप के कट आउट को चूमा भी | सो अपन भी बन्दर के आगे डी.ए. क्रेडिट लिखकर उसके सामने  २१वीं शताब्दी, २२ वीं शताब्दी की दो पर्चियों के साथ एक-एक केला रख देंगे |बन्दर जिस भी शताब्दी की पर्ची का केला खा लेगा उसी शताब्दी में सातवें पे कमीशन का एरियर मिलेगा |और यदि उसने हम दोनों में से किसी को चूम भी लिया तो समझले अभी बढ़ा दो प्रतिशत डी.ए. भी उसके साथ मिल जाएगा |

हमने कहा- इस चूमने वाले काम के लिए तू ही ठीक है |तेरे अलावा इस देश में ट्रंप जितना स्मार्ट और कौन है |

बोला- यह बात सिर्फ सूरत की स्मार्टनेस की ही नहीं है बल्कि यह बन्दर की तरह त्वरित क्रन्तिकारी निर्णय ले सकने की क्षमता की भी है |लगता है बन्दर ने ट्रंप की इस क्षमता को पहचान लिया हो |तभी तो उसने बहुत सोच-विचार के बाद ट्रंप के सामने वाला केला उठाया |

हमने कहा- तोताराम, लगता है, इस दुनिया में लोकतंत्र का भविष्य अब बंदरों के हाथ में ही रह गया चाहे अमरीका का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र हो या भारत का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो |कोई आरती से गंगा की सफाई कर रहा है, कोई मूर्तियों से राष्ट्रीय एकता ला रहा है, कोई करोड़ों के रथ पर चढ़कर समाजवाद का सपना साकार करना चाहता है, कोई समास अलंकर युक्त संदेशों से समस्याएँ सुलझा रहा है, कोई मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाकर अवैध आव्रजन रोकना चाहता है,कोई किसी का नारा चुराकर चुनाव जीतना चाहता है, कोई मतदाताओं के एक वर्ग की भाषा के दो शब्द बोलकर उन्हें लुभाना चाहता है | दोनों जगह ही बंदरो के हाथ में उस्तरे हैं |पता नहीं ,कब अपनी या दूसरों की नाक काट लें |

वैसे अंत में बला तो तेरे हमारे जैसे तबेले वालों के सिर ही पड़नी है |

Nov 4, 2016

लोकतंत्र में ट्रंप के पत्ते

 लोकतंत्र में ट्रंप के पत्ते

हालाँकि लोकतंत्र को अब तक की सभी व्यवस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है लेकिन दुनिया में अधिकांश देशों में लोकतंत्र के कारण कोई  विशेष प्रगति नहीं हुई है |जो हुई है वह विज्ञान और यंत्रों द्वारा हुई है क्योंकि ये मुनाफा बढ़ने वाले कारक हैं | मानवीय दमन और दुर्दशा में कोई कमी नहीं आई है |हाँ, लोकतंत्र के नाम पर जनमत के बल का एक भ्रम ज़रूर गढ़ा गया है |और शायद इसी के नशे में लोग क्रांति या परिवर्तन का भ्रम पाल लेते हैं |

ताश के खेल में कुछ ट्रंप के पत्ते होते हैं जिनकी दुग्गी भी इतर इक्के को पीट देती है |लोकतंत्र में भी परिवर्तन के नाम पर ऐसे ही ट्रंप के पत्ते रचे जाते हैं |दुनिया से तथाकथित सबसे अधिक गतिशील लोकतंत्र अमरीका के इन चुनावों में राजनीति के एक अज्ञात कुलशील और बड़बोले, मनचले धनवान ट्रंप का उदय 'ट्रंप'  के इस श्लेष की व्याख्या के लिए बहुत उचित शब्द है |

सन  २००० से अमरीका आना जाना लगा रहा जो अब भी जारी है |अध्यापक और जिज्ञासु होने के कारण वहाँ के मॉल, कारों और चौड़ी सड़कों में रुचि कम रही और वहाँ के जीवन को जानने का ललक अधिक रही |इसलिए कई स्कूलों में भी गया और जब भी मौका मिला वहाँ के समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को नज़दीक से जानने का प्रयत्न भी किया |वहाँ के विद्यार्थियों को सायास धर्मनिरपेक्ष, मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला और वैश्विक बनाने  बनाने का प्रयत्न किया जाता है |वहाँ के स्कूलों में निश्चित गणवेश (ड्रेस) नहीं हैं, स्कूल के किसी कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं होती | बच्चे की स्वतंत्रता और निजता को बहुत सम्मान दिया जाता है |

वहाँ की सबसे पुरानी हिंदीसेवी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति' के त्रैमासिक मुखपत्र 'विश्वा' का  संपादक होने के कारण समाज और जीवन को देखने का यह शौक कुछ आवश्यकता में भी बदल गया है |इसलिए अपने भारत और अमरीका के अनुभवों और अध्ययन के आधार पर कह सकता हूँ कि अपने भारतीय (हिन्दू) जीवन शैली के इतिहास में जाति का जो स्थान है वही योरप और बाद में अमरीका के इतिहास में नस्लभेद या रंगभेद का है हालाँकि अमरीका ने स्वतंत्रता की एक बहुत गतिशील व्याख्या की और उसे अपने संविधान के द्वारा कार्यरूप में उतारने का प्रयत्न भी किया |लेकिन विभिन्न देशों और समाजों में धर्म और नस्ल की मानसकिता को शताब्दियों से, विभिन्न तरीकों से संबंधित लोगों के मन में कुछ इस तरह बिठाया गया है कि उससे मुक्त होना अभी भी असंभव सा नज़र आ रहा है |

सन २००८ में अमरीका के चुनावों में दुनिया और विशेषरूप से अमरीका ने देखा कि गोरी अमरीकी माँ और एक काले अफ्रीकी मुसलमान पिता की संतान बराक हुसैन ओबामा जो अपने नाक-नक्श से कहीं भी गोरा अमरीकी नहीं लगता,  अपनी की डेमोक्रेटिक पार्टी की गोरी और एक पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिलेरी क्लिंटन हो हराकर पार्टी का उम्मीदवार बनता और जीतता है |इस  जीत को लोकतंत्र की श्रेष्ठता और अमरीकी स्वतंत्रता व मेल्टिंग पॉट की अवधारणा की सत्यता और जीत के रूप में देखा गया और प्रचारित किया गया |लेकिन इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया कि इसमें काले और अपने को कालों के निकट मानने वाले एशिया के लोगों के रंग और नस्ल के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का कितना हाथ था ?

आज अमरीकी लोकतंत्र में डोनाल्ड ट्रंप के उदय और अपने पक्ष में उनके अपने तर्क क्या संकीर्ण नस्लीय और धार्मिक अवधारणा के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण कर सकने की लोकतंत्र की एक बड़ी खामी की तरफ संकेत नहीं करते  ?क्या इस परिप्रेक्ष्य में हम अपने देश भारत में लोकतंत्र की ऐसी बड़ी खामियों की तरफ नज़र नहीं डाल सकते |क्या यहाँ भी वोटों के ध्रुवीकरण और जीत के लिए जाति-धर्म और घृणा के विभिन्न मुद्दों को नहीं उठाया जाता ?

अभी अमरीका के कुछ अर्थशास्त्रियों, विद्वानों और नोबल पुरस्कार विजेताओं ने ट्रंप की अर्थशास्त्र की अज्ञानता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन्हें वोट न देने की अपील की है |जहाँ तक अर्थशास्त्र की बात है तो अभी तक कोई भी अर्थव्यवस्था इस दुनिया और समाज की समस्याओं का हल नहीं खोज सकी है |आज की अर्थव्यवस्था में साधनों की कमी नहीं है लेकिन संवेदना, करुणा और उत्तरदायित्त्व की भावना का नितांत अभाव है जो कि प्रत्येक मनुष्य को अर्थाभाव से भी अधिक सालता है | इसलिए बात अंततः एक श्रेष्ठ और संवेदनशील मनुष्य के निर्माण पर आकर ठहरती है |और लोकतंत्र में जीत का आधार वोटों की संख्या होती है जिसे प्रभावित करने वाले कारक मानवीय गुण नहीं बल्कि मीडिया, भ्रम-उत्पादन, विभेद और धर्म-जाति-नस्ल के आधार पर अपने ट्रंप के पत्ते खोजना और उन्हें सही समय पर किसी भी सद्गुण वाले इक्के पर चला देना है |

Nov 2, 2016

मोर्केला एस्क्यूलेंटा

   मोर्केला एस्क्यूलेंटा
चन्द महिनों में ७५ वर्ष के हो जाएँगे |आश्रम व्यवस्था के अनुसार संन्यास लेने की उम्र मतलब बच्चों को फ्री छोड़कर चारों धाम की पदयात्रा करने की अवस्था |यदि साधन संपन्न हुए तो 'अमृत महोत्सव' का अवसर |हो सकता है बड़े लोगों को इस उम्र में अपने साधनों के बल पर किसी अमृत तत्त्व की प्राप्ति हो जाती हो जिससे वे अमरत्व की रह पर अग्रसर हो जाते हों |पर हमारा तो हाल यह है कि पंद्रह-बीस मिनट बैठ जाओ तो उठते समय परेशानी होती है |ऐसे में चारों धाम की पदयात्रा का प्रश्न ही नहीं |अब तो रेल या बस से भी यात्रा की हिम्मत नहीं होती |पिछले दिनों ही भोपाल गए |ऊपर की बर्थ मिली |किसी युवा ने हमसे अपनी नीचे की बर्थ से अदला-बदली नहीं की |ऊपर चढ़ने में जो हालत हुई उससे अपने स्वास्थ्य के बारे में भ्रम वैसे ही खुल गया जैसे कि भाजपा का बिहार के चुनावों में |

आज दिवाली की 'राम-राम' करने आए तोताराम ने सबसे पहले घुटनों का हालचाल पूछा |क्या उत्तर देते ? अपने ही अंग-प्रत्यंगों के चलते समाजवादी पार्टी जैसी हालत हो रही है |ससुर जी वैद्य और बहू को कुठोड़ फोड़ा |दिखाते भी नहीं बनता |कहा- बस, चल रहा है |जैसी स्थिति है वैसे भी बनी रहे तो ठीक है |

बोला- मास्टर, अब चिंता मत कर |मुझे एक जादुई जड़ी मिल गई है |कीमत थोड़ी ज्यादा है लेकिन कोई बात नहीं |जैसे ही सातवें के कमीशन का एरियर मिलेगा एक किलो खरीद लेंगे |भगवान ने चाहा तो तू फिर से मोदी जी की तरह राजनीति के रेसकोर्स में दौड़ लगाने लग जाएगा |

हमने कहा-तोताराम, हम तो ३१ अगस्त से अब तक कोई बीस बार बैंक जा चुके हैं लेकिन अच्छे दिनों की तरह एरियर की कहीं दूर-दूर तक खोज-खबर ही नहीं है |पहले सर्दियों में मेथी और ग्वारपाठे के  लड् डू  बनवा लिया करते थे लेकिन जब से सरकारी डेरियों में नकली घी पकड़ा गया है, घी खाने तक की हिम्मत नहीं होती |वैसे तू किस जादुई जड़ी के बारे में बता रहा था ?

कहने लगा- जब तू हर बात में एरियर का रोना लेकर बैठ जाता है तो क्या बताऊँ ?वैसे बात में दम तो है |जिस जड़ी के बल पर ६४ वर्ष की उम्र में भी मोदी जी शार्दूल-शावक की तरह समस्त भू मंडल को अपनी दहाड़ से गुंजायमान किए हुए हैं, कहीं ढोल तो कहीं बाँसुरी बजा कर मानवता को लुभाए हुए हैं तो तेरा घुटना दर्द कौन बड़ी बीमारी है |

हमारी हिम्मत बढ़ी, कहा- तो फिर बता ना उस संजीवनी बूटी का बारे में |

बोला- यह हिमाचल में बसंत ऋतु में पाया जाने वाला एक मशरूम है जिसे अंग्रेजी में 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा' कहते हैं |एक किलो १५-२० हजार रुपए का आता |मोदी जी जब हिमाचल में भाजपा के प्रभारी थे तब उन्हें इसके बारे में पता चला था |तब से इसी का सेवन करते हैं |उसके बाद से देखले, पहले गुजरात में धमाल मचाया और अब सारे देश-दुनिया में छाए हुए हैं |दिन पर दिन जोश-ए-जवानी बढ़ता ही जा रहा है |

हमने कहा- तोताराम, ग्वारपाठे को एलोविरा कहने से कोई खास बात पैदा नहीं हो जाती |पहाड़ों में तरह-तरह के मशरूम पाए जाते हैं |इस मशरूम का अंग्रेजी नाम 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा' रख देने से न तो कोई 'मार्के' की बात पैदा हो जाती है और न ही कोई 'एक्सेलेंस' आ जाती है |इस चमत्कार का रहस्य कोई 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा नहीं है | हमें पता है वह जड़ी जो मुर्दे में भी जान  फूँक देती है |

तोताराम ने हमारे पैर पकड़ लिए-बंधुवर, तो फिर बता ही दीजिए |पैसों की कोई फ़िक्र नहीं है |पेंशन से एडवांस लेकर भी खरीद लाऊँगा |

हमने कहा-वह पैसों से नहीं खरीदी जा सकती |वह तो एक छींका है जो किसी किसी बिल्ली के भाग से टूटता है | उसका नाम है कुर्सी अर्थात सत्ता | सत्ता मिलते ही देखले जेतली जी और वेंकैया जी के सिर पर भी काले बाल उगने लगे हैं |अगर एक बार आश्वासन भी मिल जाए तो अडवाणी जी फिर से दहाड़ने लगेंगे |