ईश्वर का वरदान
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
चाय तो खैर, मन की बात की तरह यथासमय पी ली. रात को थोड़ी ठण्ड लगी तो पत्नी काढ़े का एक पूरा गिलास भर कर दे गई. हमने जैसे ही काढ़ा पीने के लिए गिलास उठाया तोताराम हाज़िर. बोला- बधाई दी या नहीं ?
हमने कहा- सुबह ही भाषण सुनकर चुके हैं, बधाई भी दे देंगे. ऐसी क्या जल्दी है.
बोला- भाषण? किसका भाषण ? ताऊ ने तो कोई भाषण नहीं दिया.
हमने कहा- तीन महिने ही सही लेकिन हमसे छोटा है तो ताऊ कैसे हो गया ?
बोला- आज ही ९३ के हुए हैं तो तुझसे छोटे कैसे हो गए ?
हमने पूछा- कौन ?
बोला- और कौन, अडवानी जी.
हमने कहा- हम तो अभी कुछ देर पहले यू ट्यूब पर जो बाइडेन का भाषण सुन रहे थे. सोचा तुम उन्हें बधाई देने की बात कर रहे हो.
बोला- अभी तक ट्रंप ने हार कहाँ मानी है ? वे कह रहे हैं, कोर्ट जाऊँगा. और फिर अभी तो असली शपथ ग्रहण में ७२ दिन बाकी पड़े हैं. क्या पता, तब तक ट्रंप साहब ओवल ऑफिस को ताला लगाकर चाबी अपने साथ लेकर कहीं अज्ञातवास में चले जाएं तो बाइडेन कहाँ घुसेंगे ? हो सकता है कुर्सी ही अपने साथ उठा ले जाएँ ? या किसी पानी की टंकी पर चढ़ जाएं और कहें कि यदि मुझे राष्ट्रपति न माना तो कूद पडूँगा.
हमने कहा- क्या फालतू बात कर रहा है ! कहीं ऐसा होता है ?
बोला- जब आदमी सनक जाता है, कुंठाग्रस्त हो जाता है तो कुछ भी कर सकता है. तुझे वासुदेव पौन्ड्रक की कथा मालूम है या नहीं ? वह खुद को ‘वासुदेव’ कहता था. कहता था, असली मैं हूँ. वह ग्वाला तो नकली है. लेकिन अमरीका की बात छोड़ ताऊ की बात कर. बधाई दी या नहीं ?
हमने कहा- जब तक मोदी जी बधाई नहीं दे देते, हम यह गुस्ताखी नहीं कर सकते.
बोला- बधाई देने में भी मोदी जी की परमिशन चाहिए क्या ?
हमने कहा- जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति तक दलाई लामा को बधाई देने के लिए मोदी जी का इंतज़ार करते हैं तो एक रिटायर्ड मास्टर की क्या औकात !
हमें अपने स्मार्ट फोन की स्क्रीन दिखाते हुए बोला- ले कर ले तसल्ली. मोदी जी, अमित जी, नड्डा जी सभी अडवानी जी के घर में हैं उन्हें बधाई दे रहे हैं.
हमने कहा- तो फिर जन्म दिन की ही क्या, भारत रत्न की बधाई भी दे देते हैं.
बोला- लेकिन उसकी तो अभी घोषणा ही नहीं हुई.
हमने कहा- इससे बड़ी घोषणा और क्या होगी ? त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बिप्लव देब के शपथ ग्रहण समारोह में जिनका नमस्कार तक नहीं लिया उन्हें जन्म दिन की बधाई देने घर गए हैं और चरण भी छुए है तो मतलब साफ़ है कि तपस्या सफल हुई, इंतज़ार ख़त्म.
बोला- तो अब तक क्यों तरसाया ?
हमने कहा- अब तक अयोध्या वाला मुक़दमा चल रहा था ना. तुझे पता होना चाहिए हम हर काम साफ़-सुथरे ढंग से करते हैं.
जब से प्रधानमंत्री जी से निकट संबंध स्थापित हुआ है तब से हम और तोताराम परेशान हैं . जब चाहे उनका मेल हमारे पास आ जाता है. उन्हें हम दोनों की क्षमता पर बहुत भरोसा है. वे हर समय देश के विकास और भले के लिए हरदम सोचते रहते हैं. और सोचते ही किसी न किसी योजना का ऐलान कर देते हैं. जब तक लोग एक योजना से लाभान्वित होने के लिए फॉर्म नहीं भर पाते तब तक महिने-पंद्रह दिन में कोई न कोई अन्य योजना की घोषणा हो जाती है. इसके अतिरिक्त हर महिने धर्म की भांति सुनिश्चित ‘मन की बात’ में हमारे लिए किसी न किसी आचरणीय धर्म-कर्म का भी सुझाव दे डालते हैं. हम ठहरे सच्चे और ईमानदार व्यक्ति इसलिए इस कान से सुनकर उस कान से निकाल नहीं सकते. और बस, परेशान हो जाते हैं. वैसे प्रधानमंत्री जी का इरादा हमें परेशान करने का कभी नहीं होता .
भले ही इस कोरना काल में खुद के लिए दाने पूरे नहीं पड़ रहे हों लेकिन मोर को दाना चुगाने के राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए कहीं से मोर कबाड़ने की सोच रहे थे कि मोदी जी ने भारत को ‘खिलौना हब’ बनाने की ज़िम्मेदारी आ पड़ी. हम तो खुद को ही नियति के हाथ का खिलौना मानते हैं. अब खिलौना किसी को क्या खिलौना बनाएगा.
फिर भी जैसे ही तोताराम आया हमने पूछा- तोताराम, अब पक्षी-प्रेम पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय खिलौनों पर आ जा. मोदी जी ने कहा है कि दुनिया में ८००० अरब रुपए का खिलौना बाज़ार है. यदि हम इसमें से पांच चार हजार अरब के बाज़ार पर भी कब्ज़ा कर सके तो काम हो जाएगा. शून्य से २३% नीचे जा चुकी अर्थव्यवस्था सँभल जाएगी.
बोला- तो फिर अपने कागजी विकास की तरह कागज की नाव, कागज की गेंद, कागज के हवाई जहाज बनाना शुरू कर देते हैं. वर्चुअल रोटी बना लें.
हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने कहा है कि खिलौनों में विविधता और भारतीयता का टच होना चाहिए.
बोला- तो फिर तो कोई बात ही नहीं है. हमारे पास तो पहले से ही ज़रूरत से ज्यादा माल तैयार रखा हुआ है |पता कर डिमांड का. फिर सप्लाई शुरू.
हमने पूछा- कौन से खिलौने तैयार हैं ?
बोला- लिंचिंग करने वाले, ट्रोल करने वाले, देशद्रोहियों को पहचानने वाले, मीलों दूर से फ्रिज में रखे मांस को सूँघ सकने वाले आदि.
हमने कहा- अब खिलौनों का यह मॉडल पुराना हो चुका है. सभी देशों ने अपने यहाँ इसी मॉडल पर गला दबाने वाले सिपाही जैसे अपने-अपने खिलौने बना लिए हैं.
बोला- तो फिर अपने मालिक के लिए बात-बिना बात ताली बजाने वाले ये बन्दर ठीक रहेंगे.
हमने कहा- लेकिन ये तभी तक चलेंगे जब तक पांच-दस हजार रुपए, फ्री डाटा और मोटर साइकल के लिए पेट्रोल मिलता रहेगा अन्यथा ये दूसरा मदारी ढूँढ़ लेंगे. बड़े चतुर हैं ये बंदर.