Nov 27, 2020

ईश्वर का वरदान


ईश्वर का वरदान 


आज तोताराम ने आते ही हमारे चरणस्पर्श किये. हम चौंके. आज का ज़माना बड़ा खराब है. लोग जिसकी टांग खींचनी होती है, पहले उसके चरणस्पर्श ही करते हैं. जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़ते हैं, सबसे पहले उसे ही निबटाकर बरामदे में टिका देते हैं. 

हमने अपने चरण पीछे खींचते हुए कहा- आयुष्मन, जो भी स्वार्थ है स्पष्ट कह. यह चरण- स्पर्श की कूटनीति ठीक नहीं. यदि चाय के साथ कुछ हफ्ता वसूली करनी है तो एक लड्डू मंगवा देते हैं अन्यथा तेरे लिए कामना कर देते हैं कि ईश्वर तुझे ट्रंप की तरह वरदान प्रदान करे. 

बोला- वे तो खुद को कोरोना होने को ईश्वर का वरदान बता रहे हैं. मुझे ऐसा वरदान नहीं चाहिए. मेरा इलाज कौनसा सरकारी खर्चे से होगा. यहाँ तो भले ही डाक्टरों को पी पी ई किट न मिल रहे हों, पार्टी के नेता अस्पताल को नकली वेंटिलेटर सप्लाई करके माल कूट रहे हों, पुलिस किसी भी मास्क न लगाने वाले को पकड़कर हजार-पांच सौ रुपए जुर्माना वसूल कर लेती हो लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि तेरा गुज़ारा कैसे होता है ? आदमी को मास्क से पहले रोटी चाहिए. मंत्री बिना मास्क के घूमते हैं उनके लिए कोई दंड नहीं. मेरे लिए तो यह कामना कर कि एक सौ साल से भी ज्यादा जिऊँ और दुगुनी पेंशन लूँ. 

 



वैसे ट्रंप महाबली हैं, उन्हें कोरोना नहीं हो सकता. तभी तो वे मास्क को महत्त्व नहीं देते. तीन दिन में ठीक भी हो गए. मुझे तो कुछ घपला लगता है. और जो दवा लेने की बात कर रहे हैं वह तो बाज़ार में आई ही नहीं है. मुझे तो यह सब सहानुभूति-वोट जुटाने का चक्कर लगता है.  

हमने कहा- ट्रंप साहब इतने कमजोर नहीं हैं कि उन्हें जीतने के लिए ईश्वर की या जनता  की सहानुभूति की ज़रूरत पड़े. उनके पास तो एक नहीं अनेक उपाय हैं. वे कहते हैं कि हार गया तो कोर्ट में जाऊँगा या कहते हैं कि ओबामा और जो बाईडेन को जेल में डाल दिया जाना चाहिए क्योंकि इन्होंने चीन से मिलकर मुझे हराने का षड्यंत्र किया है. 

बोला- जब कुर्सी सेवा से बड़ी हो जाती है तो यही होता है. इसके लिए किसी ट्रंप को ही देश क्यों देते हो.  हिलेरी क्लिंटन ने भी तो ओबामा को बदनाम करने के लिए उसकी कीनियाई ड्रेस में फोटो छपवाई थी. हमारे यहाँ भी तो बलात्कारियों का पक्ष लेने और अपनी पक्षपातपूर्णता को छुपाने के लिए इसे राज्य में दंगे करवाने का कोई अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र बता दिया जाता है. 

हमने कहा- चलो, इस बहाने ट्रंप को जनता को कोरोना का इलाज फ्री करवाने का विचार तो आया. 

बोला-क्यों बन्धु, क्या जुमलों का ठेका हमीं ने ले रखा है ? क्या ट्रंप जुमला नहीं फेंक सकते ? उनके चुनाव में हम भी तो अपनी लोकतांत्रिक क्षमता और अनुभव का योगदान दे रहे हैं.

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Nov 22, 2020

के ऍफ़ सी का इण्डिया हैड


 के. ऍफ़.सी. का इण्डिया हैड  


तोताराम आज सुबह नहीं आया |नहीं आया तो नहीं आया |कौन 'मन की बात' की तरह महिने के अंतिम सप्ताह में आना ज़रूरी है |चलो, -२३% में जाती जी.डी.पी. के समय में   एक चाय की बचत हुई वही ठीक |

पता नहीं कैसे हमारे मन की बात उन्हीं शब्दों में तोताराम के अंतस में प्रवेश कर गई | आवाज आई- चाय नहीं बच सकती | सुबह नहीं तो दोपहर में सही |

देखा तो दरवाजे पर तोताराम हाजिर |

हमने कहा- गरमी फिर लौट आई है |चाय नहीं शिकंजी पिएंगे |

पत्नी शिकंजी लाए तब तक पोस्टमैन ने आवाज़ लगाई- मास्टर जी, ज़रा बाहर आएँगे ?

हमने कहा- बाहर तो आ जाएंगे लेकिन आज ऐसी क्या बात है ?

बोला- आपका पता कुछ ऐसे ही लिखा हुआ है |

हमने कहा- अन्दर ही आ जाओ |तुम भी शिकंजी पी लेना |

अन्दर आकर पोस्टमैन ने लिफाफा देते हुए कहा- मास्टर जी, और पता तो ठीक है लेकिन राजस्थान के बाद लाल स्याही से ब्रेकेट में लिखा है पी.ओ.के. | यह पी.ओ.के. क्या है ?

तोताराम ने टालते हुए कहा- तुझे क्या है ? लिख दिया होगा | मास्टर का पूरा पता है तो सही-रमेश जोशी, दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर (राजस्थान )

तोताराम ने लिफाफा दोनों तरफ से देखते हुए कहा- मास्टर, है तो कुछ अजीब |देख, फ्रॉम की जगह लिखा है- सी.ई.ओ., के.ऍफ़. सी. | 

तोताराम ने लिफाफा खोलकर पत्र पढ़ना शुरू किया- मिस्टर जोशी, यू आर हीअर बाई अपोइंटेड एज द हेड ऑफ़ के.ऍफ़.सी. इण्डिया |फॉर डिटेल्स वेट टिल नेक्स्ट लेटर |

तोताराम ने हाई फाई की तरह हमारी हथेली पर पंजा मारा और बोला- कहीं इसका मतलब केंटुकी फ्राइड चिकन तो नहीं ? ओपन मार्केट के नाम पर कोई ढंग की चीज तो आ नहीं रही है |हाँ, कोल्ड ड्रिंक के बाद अब अमरीका की खाने-पीने की छोटी-छोटी चीजें जैसे डोमिनो पिज़्ज़ा, ओरियो कुकीज़, केंटुकी चिकन आदि गली-गली में ज़रूर बिकने लगे हैं |तू अमरीका आता जाता रहता है, हो सकता उन्होंने तुझे केंटुकी के इण्डिया के मार्किट का हैड बना दिया हो |वैसे एक सनातनी ब्राह्मण के लिए  चिकन बेचना है तो डूब मरने की बात लेकिन कोई बात नहीं, पोस्ट तो बड़ी है ही |मोदी जी इन्डियन गवर्नमेंट के हैड और तू केंटुकी इण्डिया का हैड |बधाई हो |

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हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमने तो कभी केंटुकी वालों को कुछ लिखा नहीं |हाँ, केंटुकी के लिए हमारे मन में बहुत खास जगह ज़रूर है क्योंकि अब्राहम लिंकन वहीं के थे |

बोला- आजकल लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है |यदि कोई संवेदनशील सरकार हो तो बिना कहे भी संज्ञान ले लेती है जैसे गृह मंत्रालय ने बिना मांगे ही कंगना को 'वाई प्लस' सुरक्षा मुहैया करवादी |

 

हमने कहा- लेकिन पते में पी.ओ.के. का क्या अर्थ हो सकता है ?

बोला- मास्टर, कंगना से मुझे याद आया कि कहीं इस पी.ओ.के. का अर्थ 'पाक अधिकृत कश्मीर' तो नहीं ?

हमने कहा- विभाजन के बाद १९४७ में कुछ रियासतों को मिलाकर 'राजपूताना' बना | उसके बाद १९५६ में सभी रियासतों को एकीकृत करके 'राजस्थान'  बना |पाक का बोर्डर ज़रूर लगता है लेकिन यह पाक के अधिकृत तो कभी नहीं रहा |

बोला- पाक अधिकृत तो महाराष्ट्र भी कभी नहीं रहा लेकिन कंगना ने मुम्बई आने से पहले पी.ओ.के. की बात की थी |

 
  
 




 

 

 


 




 हमने कहा-  कंगना भाजपा में शामिल हो गई है |हो सकता है, उसके अनुसार जहां भी भाजपा की सरकार नहीं हो वह राज्य पाक अधिकृत कश्मीर हो |राजस्थान में भी तो भाजपा की सरकार नहीं है तो उसके लिए भी पी.ओ.के. लिख दिया |

तोताराम ठहाका मारते हुए बोला- अब तो इस के.ऍफ़.सी. का राज भी खुल गया |इसका मतलब हो सकता है- 'कंगना फैन्स क्लब' |चल, एक और उपलब्धि तेरे नाम |आज फिर अखबार में समाचार दे आते हैं- मास्टर रमेश जोशी के.ऍफ़.सी. के इण्डिया हैड नियुक्त |

यदि किसी ने ज्यादा खुदाई की तो कह देंगे-  के.ऍफ़.सी. का मतलब है- 'कंगना फैन्स क्लब'' | और किसी दिन अपने वार्ड मेंबर को उद्धव ठाकरे के नाम कंगना के ऑफिस में की गई तोड़फोड़ का मुआवजा देने के लिए एक ज्ञापन दे आएँगे | फिर एक समाचार |

हमने कहा- तोताराम, कहीं यह पत्र तेरी ही करतूत तो नहीं ?

बोला- मे बी |




 

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Nov 15, 2020

सिर्फ पाँच दीये !


सिर्फ पाँच दीये !

कल रात दिवाली थी. 

आज दिवाली का अगला दिन है. हमारे राजस्थान में यह राम-रमी का दिन होता है.जैसे गुजरात में लोग एक दूसरे को घर-घर जाकर 'साल-मुबारक' कहते हैं वैसे ही हम एक दूसरे को विशेषरूप से बड़ों को, दिवाली की रामा-श्यामा करने निकलते हैं. कोरोना के डर से यह नाटक कम हो गया है. सर्वशक्तिमान भगवान का तो कोई स्वरूप अभी तय हुआ ही नहीं है लेकिन उनके अवतार, बेटे, दूत आदि भी अन्य देवताओं सहित छह महिने से मास्क लगाकर दरवाजा बंद करके बैठे हैं तो सामान्य लोग भी घर से कम ही निकल रहे है. हम भी चाहते हैं कि लोग कम ही आएँ क्योंकि तुलसी ने भी कहा है- 
तुलसी या संसार में भांति-भांति के लोग 
सबसे बचकर चालियो लिए फिरत हैं रोग.  



 जब से यह कोरोना का चक्कर चला है और पता चला है कि इसकी कोई दवा नहीं है तो   रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए बड़ी मुश्किल से दो किलो च्यवनप्राश का एक डिब्बा लाकर रख लिया. उसे देखते अधिक और खाते कम हैं. अप्रैल से लेकर अभी तक आधा भी ख़त्म नहीं हुआ है. कमरे में  ऐसे दुबके रहते हैं जैसे कोई चूहा कि कोई उल्लू इस भरी दोपहरी में हमें लपक लेने के लिए घर के चारों और मंडरा रहा है. 



 

उत्सव कितना भी सादगी से मनाया जाए, कूड़ा-कचरा फैलता ही है. हाँ, धर्म का कूड़ा है तो उसे पवित्र मानने की मज़बूरी है लेकिन नदियों में मूर्तियों के विसर्जन से प्रदूषण और गन्दगी होते तो हैं. सो बच्चे अन्दर सफाई कर रहे हैं और हम बरामदे में चाय पी रहे हैं. तभी तोताराम आ गया.

 बरामदे का मुआयना करता हुआ बोला- बस, बरामदे में एक ही दीया ! इसका मतलब कुल मिलाकर दस-पाँच दीये ही जलाए होंगे ?

हमने कहा- कल हमारी सूरजगढ़ वाली सबसे छोटी चाची गुजर गई. नेताओं की तरह नाटक करें तो कह सकते हैं- देश की अपूरणीय क्षति हो गई लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. नब्बे के आसपास थी. दिवाली के दिन गई है सो इस -२४% में जा चुकी जीडीपी के समय में भी सीधी लक्ष्मी के लोक में गई है. बस, सगुन के पाँच दीये जलाए थे. 

वैसे भी हम कोई यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थोड़े हैं जो देशी घी के छह लाख छह हजार नौ सौ पैंसठ दीये जलवाकर राजा राम का स्वागत करते. क्या करें इतने अधिकार, मिले ही नहीं. 

बोला- बात अधिकार की नहीं नीयत, भक्ति और उत्साह की होती है. नीयत हो तो आदमी मौके के महत्त्व हो देखते हुए अपनी हैसियत से बाहर जाकर भी करता है. वैसे सबको पता है कि यू पी ही क्या, सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था खराब चल रही है. जर्मनी की एक डॉक्टर ने तो पी पी ई किट न मिलने पर निर्वस्त्र होकर फोटो पोस्ट करके अपना विरोध प्रकट किया था. लेकिन राम का अयोध्या-आगमन क्या रोज-रोज होता है ?  अरे साल में एक ही दिन की तो बात है. सुना है अगले साल सात लाख दीये जलवाए जाएँगे.

हमने कहा- इस हिसाब से तो किसी दिन करोड़ों करोड़ों दीये जलाने का मौक़ा भी आएगा. लेकिन इतना देशी घी कहाँ से आएगा ?

बोला- भक्ति में बड़ी शक्ति होती है. कई संतों के भंडारे में चाहे जितने लोग प्रसाद लेने आ जाएं लेकिन उनके चमत्कार के बल पर प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता. और फिर रामदेव का योग बल कब काम आएगा. ऐसा आसन बताएँगे जिसे गाय के सामने करने से वह दूध की जगह सीधा घी ही दे देगी. आखिर योग है. और कामधेनु और कल्पवृक्ष क्या कोई झूठ थोड़े हैं ! अपने वेदों का विज्ञान है. 

हमने कहा- तो फिर वेद-ज्ञान, योग-बल और कामधेनु से जिनकी नौकरी चली गई या जिनका धंधा मंदा हो गया है उनके लिए भोजन सामग्री के लाखों-करोड़ों पैकेट और कोरोना का टीका क्यों नहीं निकाल लेते ? 

बोला- हम इतने लालची नहीं हैं. हम पुरुषार्थ में विश्वास करते हैं.

 



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Nov 11, 2020

तो यह था मामला !


तो यह था मामला ! 


२००४ में जब प्रणव दा से पत्रकारों ने पूछा कि उन्हें प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया गया ? तो उनका उत्तर था- शायद इसलिए कि उन्हें हिंदी ठीक से नहीं आती |

अब यह तो कोई कारण नहीं हुआ |ट्रंप तो 'विवेकानंद' शब्द तक का सही उच्चारण नहीं कर सका लेकिन किसने उसे रोक लिया अमरीका का राष्ट्रपति बनने से ? हमें बढ़िया हिंदी आती है लेकिन किसी ने सरपंच भी नहीं बनाया |आदमी मन को समझाने के लिए या अपनी झेंप मिटाने के लिए ऐसे ही बहाने ढूँढ़ लेता है और उनके सहारे मन को समझा लेता है |लेकिन क्या वास्तव में मन समझता है ? यदि मन वास्तव में ही समझ जाता तो आदमी उसकी चर्चा ही नहीं करता |जब चर्चा करता है तो इसका मतलब है कि कसक बाकी है |

क्या अडवानी जी केवल इसी बहाने से संतुष्ट हो चुके हैं कि उन्हें केवल ७५ वर्ष से अधिक की आयु होने के कारण प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया ?फिर वह गाना किस लिए है-

ना उम्र की सीमा हो ना जनम का हो बंधन |

भाग्य, तृष्णा और लम्पटता के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती |क्या मोरारजी देसाई कोई मोदी जी की तरह युवावस्था में प्रधानमंत्री बने थे ? ८१ वर्ष के थे जब १९७७ में प्रधानमंत्री बने थे  |२०१४ में आडवानी जी ८७ वर्ष के थे लेकिन सब तरह से चुस्त-दुरुस्त |हिसाब देखें तो एक टर्म तो रह ही सकते थे |खुदा सलामत रखे, २०२४ तक भी देश सेवा के लिए उपलब्ध रहेंगे | 

लेकिन हमारी सुनता कौन है ? फिर भी हम तोताराम से चाय पर चर्चा करते हुए मंथन तो कर ही सकते हैं |भले ही थूक बिलोने से झाग के सिवा निकले कुछ नहीं | आते ही उसे पकड़ा- बता, यदि प्रणव दा हिंदी जानते होते तो क्या उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया जाता ?

बोला- बनाता कौन है ? भाग्य बली होता है |क्या चरणसिंह, चंद्रशेखर, गुजराल और  देवेगौड़ा ने कभी सोचा था ? आडवानी जी ने सोचा भी, चाहा भी और पार्टी को शिखर तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त भी किया लेकिन कहा ना, भाग्य बली होता है | बंगाल में तृणमूल में सेंध लगाने के लिए प्रणव दा को 'भारतरत्न' दिया |कोई बात नहीं, कूटनीति सही लेकिन क्या आडवानी जी के लिए यह सम्मान नहीं बनता था ?

हमने कहा- तोताराम, हम भाग्य को नहीं मानते | हमारे हिसाब से केवल भाग्य ही नहीं, कोई न कोई ठोस कारण भी रहा है |

तोताराम ने कहा- जब तुझे पता है तो फिर मुझसे क्यों पूछता है ? अब तू ही बता दे प्रणव के प्रधानमंत्री न बन पाने का कारण | |

हमने कहा- प्रणव दा के बारे में उनकी पत्नी ने अपनी किताब 'इंदिरा गाँधी इन माय आईज' में लिखा है कि प्रणव जी बहुत सादे रहन-सहन वाले व्यक्ति थे |एक बार उन्हें इंदिरा गाँधी ने पूछा था कि उन्होंने तीन दिन से शर्ट क्यों नहीं बदली ?

बोला- मास्टर, सही पकड़े हैं | जो आदमी तीन दिन तक एक ही शर्ट पहनता रहे, जो मंत्री बनने के बावजूद खुद अपना विकास भी न कर सके वह देश का क्या विकास करेगा ? राजा का अपना रुतबा-रुआब होता है |बिना तामझाम के क्या कोई किसी को कुछ समझता है ? नाम ही ऐसा हो कि शहंशाह-ए-हिन्दोस्तान, नूर-ए-फलाँ-फलाँ, जिल्ले शुभानी इत्यादि-इत्यादि ज़लवा अफ़रोज़ हो रहे हैं |लगता है एक नहीं एक साथ कई बड़े-बड़े आदमी आ रहे हैं या फिर दस-दस कारों का काफिला, कमांडो, आगे-पीछे सड़क दो घंटे पहले से खाली तो लगता है कोई विशिष्ट प्राणी आ रहा है |मिलने जाओ तो रास्ते में हजार चेकिंग, पचास प्रोटोकोल |आदमी न हुआ कोई कोरोना बम हो गया |देखा नहीं, जब ओबामा आए थे तो मुम्बई में मणि भवन के गेट पर का नारियल का पेड़ तक कटवा दिया गया था कि कहीं कोई नारियल ही न महामहिम के सिर पर  गिर पड़े |जब बुश आए थे तो सुरक्षा चेकिंग के नाम पर कुत्ते गाँधी जी की समाधि को सूँघ रहे थे |

हमने कहा- तो फिर चल आज पेंशन भी ले आते हैं और दो चार कुरते पायजामे भी ले आते हैं |

बोला- इतने तो एक दिन के लिए ही पूरे नहीं पड़ेंगे |नेता दिन में दस बार कपड़े बदलता है और एक बार पहने कपड़े दुबारा पहनता नहीं |मोदी जी ने क्या कभी कोई ड्रेस रिपीट की है ? रहने दे तेरे बस का नहीं है |यहीं बरामदे में बीस रुपए का  गमछा बाँधे बैठा रह |यदि किस्मत में कुछ होता तो अब तक कुछ न कुछ हो ही गया होता | एक लाख वोटों से हार जाने के बावजूद जेतली जी मोदी जी के मंत्रीमंडल में  प्रमुख विभागों के मंत्री रहे कि नहीं ?

खैर, छोड़ अब यह रामायण और भाभी से चाय के लिए बोल |

 



 

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जीत और जिद

 जीत और  जिद

 

चाय तो खैर, मन की बात की तरह यथासमय पी ली. रात को थोड़ी ठण्ड लगी तो पत्नी काढ़े का एक पूरा गिलास भर कर दे गई. हमने जैसे ही काढ़ा पीने के लिए गिलास उठाया तोताराम हाज़िर. बोला- बधाई दी या नहीं ?

हमने कहा- सुबह ही भाषण सुनकर चुके हैं, बधाई भी दे देंगे. ऐसी क्या जल्दी है.

बोला- भाषण? किसका भाषण ? ताऊ ने तो कोई भाषण नहीं दिया.

हमने कहा- तीन महिने ही सही लेकिन हमसे छोटा है तो ताऊ कैसे हो गया ?

बोला- आज ही ९३ के हुए हैं तो तुझसे छोटे कैसे हो गए ?

हमने पूछा- कौन ?

बोला- और कौन, अडवानी जी.

हमने कहा- हम तो अभी कुछ देर पहले यू ट्यूब पर जो बाइडेन का भाषण सुन रहे थे. सोचा तुम उन्हें बधाई देने की बात कर रहे हो.

बोला- अभी तक ट्रंप ने हार कहाँ मानी है ? वे कह रहे हैं, कोर्ट जाऊँगा. और फिर अभी तो असली शपथ ग्रहण में ७२ दिन बाकी पड़े हैं. क्या पता, तब तक ट्रंप साहब ओवल ऑफिस को ताला लगाकर चाबी अपने साथ लेकर कहीं अज्ञातवास में चले जाएं तो बाइडेन कहाँ घुसेंगे ? हो सकता है कुर्सी ही अपने साथ उठा ले जाएँ ? या किसी पानी की टंकी पर चढ़ जाएं और कहें कि यदि मुझे राष्ट्रपति न माना तो कूद पडूँगा.

हमने कहा- क्या फालतू बात कर रहा है ! कहीं ऐसा होता है ?

बोला- जब आदमी सनक जाता है, कुंठाग्रस्त हो जाता है तो कुछ भी कर सकता है. तुझे वासुदेव पौन्ड्रक की कथा मालूम है या नहीं ? वह खुद को ‘वासुदेव’ कहता था. कहता था, असली मैं हूँ. वह ग्वाला तो नकली है. लेकिन अमरीका की बात छोड़ ताऊ की बात कर. बधाई दी या नहीं ?

हमने कहा- जब तक मोदी जी बधाई नहीं दे देते, हम यह गुस्ताखी नहीं कर सकते.

बोला- बधाई देने में भी मोदी जी की परमिशन चाहिए क्या ?

हमने कहा- जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति तक दलाई लामा को बधाई देने के लिए मोदी जी का इंतज़ार करते हैं तो एक रिटायर्ड मास्टर की क्या औकात !

हमें अपने स्मार्ट फोन की स्क्रीन दिखाते हुए बोला- ले कर ले तसल्ली. मोदी जी, अमित जी, नड्डा जी सभी अडवानी जी के घर में हैं उन्हें बधाई दे रहे हैं.

हमने कहा- तो फिर जन्म दिन की ही क्या, भारत रत्न की बधाई भी दे देते हैं.

बोला- लेकिन उसकी तो अभी घोषणा ही नहीं हुई.

हमने कहा- इससे बड़ी घोषणा और क्या होगी ? त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बिप्लव देब के शपथ ग्रहण समारोह में जिनका नमस्कार तक नहीं लिया उन्हें जन्म दिन की बधाई देने घर गए हैं और चरण भी छुए है तो मतलब साफ़ है कि तपस्या सफल हुई, इंतज़ार ख़त्म.

बोला- तो अब तक क्यों तरसाया ?

हमने कहा- अब तक अयोध्या वाला मुक़दमा चल रहा था ना. तुझे पता होना चाहिए हम हर काम साफ़-सुथरे ढंग से करते हैं.


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Nov 6, 2020

सबसे दूर वाली आकाशगंगा


सबसे दूर वाली आकाशगंगा   


हमने कहा- तोताराम, तुझे पता होना चाहिए कि भारतीय खगोलविदों ने ब्रह्मांड में सबसे दूर स्थित स्टार आकाशगंगाओं में से एक की खोज की है। भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग ने मंगलवार को यह जानकारी दी। इस सफलता को अंतरिक्ष मिशनों में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इस जानकारी को साझा करते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, यह गर्व की बात है भारत की पहली मल्टी-वेवलेंथ स्पेस ऑब्जर्वेटरी "एस्ट्रोसैट" ने पृथ्वी से 9.3 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक आकाशगंगा से चरम-यूवी प्रकाश का पता लगाया है।

बोला- तो तू अपने सामान्य ज्ञान में एक उपलब्धि और जोड़ ले कि ९.३ बिलियन मतलब ९३० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर वाली आकाश गंगा से भी दो-चार सेकेण्ड ज्यादा दूर एक और आकाश गंगा मिल गई है |

हमने पूछा- उसे किसने खोजा ?

बोला- खाकसार ने |

हमने आश्चर्यचकित होकर पूछा- तो तेरे पास इतनी बड़ी दूरबीन है ? 


galaxy


बोला- हम भौतिक औजारों के मोहताज नहीं हैं |हम हर शरद पूर्णिमा को चाँदनी रात में सुई में धागा डालते हैं |हमें किसी चश्मे और दूरबीन की ज़रूरत नहीं है |

हमने कहा- तो फिर तू भी एक अमरीकी साईट lunarrepublic.com द्वारा चाँद पर प्लाट बेचने की तरह उस आकाश गंगा के किसी तारे पर प्लाट बेचने लग जा |

बोला- मैं अमरीका वालों की तरह इतना टुच्चा नहीं हूँ |मैं तो चाहता हूँ कि हर भारतीय के नाम एक-एक प्लाट ही क्या, एक-एक नक्षत्र लिख दूँ |और जिसकी जो मर्ज़ी हो 'पीएम केयर' फंड में जमा करवा दे |अर्थव्यवस्था शून्य से नीचे गिरकर माइनस २३ % में चली गई है |मोदी जी चाहकर भी जनता के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं |इससे कुछ तो सहारा मिलेगा |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, यह तो बहुत ऊंची फेंक रहा है | 

बोला- अब विनम्रता का ज़माना नहीं है |वह ज़माना गया जब कहा जाता था- 

हीरा मुख से ना कहे लाख हमारो मोल |
अब तो बेटा पीट ले खुद ही अपना ढोल ||

अब तो अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने का युग है |अपने बारे में खुद चिल्लाओ, अपने लिए चिल्लाने वाले भाड़े पर रखो, दूसरों को गाली निकालो, उनकी उपलब्धियों को नकारो, अपने ट्विट्टर पर सवैतनिक लाइक करने वाले रखो, मास्क लगाकर अपने पोस्टर खुद चिपकाते फिरो |

हमने कहा- तोताराम, यह तो बड़ी बेशर्मी की बात है |

बोला- शर्म से काम नहीं चलता |बकवास करने वाले के बेर बिकते हैं |मनमोहन सिंह की तरह चुप बैठने से तो कलाकंद भी नहीं बिकता | जब एक बार ब्रांड स्थापित हो जाता है तो फिर गटर-जल भी गंगा-जल के भाव से  निकल जाता है |

और जब वैदिक ज्ञान के नाम पर किसी भी गरिया दो तो क्या मेरी यह गप्प नहीं चलेगी ? ज्यादा होगा तो किसी से इस बारे में संस्कृत में एक श्लोक लिखवा लूँगा |उसके बाद तो उसके दिव्य, सत्य और अलौकिक होने पर कोई शंका नहीं कर सकता |यदि करेगा तो उसे पाकिस्तान भेज देंगे |

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Nov 4, 2020

खिलौनों का बाज़ार


खिलौनों का बाज़ार


 

जब से प्रधानमंत्री जी से निकट संबंध स्थापित हुआ है तब से हम और तोताराम परेशान हैं . जब चाहे उनका मेल हमारे पास आ जाता है. उन्हें हम दोनों की क्षमता पर बहुत भरोसा है. वे हर समय देश के विकास और भले के लिए हरदम सोचते रहते हैं. और सोचते ही किसी न किसी योजना का ऐलान कर देते हैं. जब तक लोग एक योजना से लाभान्वित होने के लिए फॉर्म नहीं भर पाते तब तक महिने-पंद्रह दिन में कोई न कोई अन्य योजना की घोषणा हो जाती है. इसके अतिरिक्त हर महिने धर्म की भांति सुनिश्चित ‘मन की बात’ में हमारे लिए किसी न किसी आचरणीय धर्म-कर्म का भी सुझाव दे डालते हैं. हम ठहरे सच्चे और ईमानदार व्यक्ति इसलिए इस कान से सुनकर उस कान से निकाल नहीं सकते. और बस, परेशान हो जाते हैं. वैसे प्रधानमंत्री जी का इरादा हमें परेशान करने का कभी नहीं होता .

भले ही इस कोरना काल में खुद के लिए दाने पूरे नहीं पड़ रहे हों लेकिन मोर को दाना चुगाने के राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए कहीं से मोर कबाड़ने की सोच रहे थे कि मोदी जी ने भारत को ‘खिलौना हब’ बनाने की ज़िम्मेदारी आ पड़ी. हम तो खुद को ही नियति के हाथ का खिलौना मानते हैं. अब खिलौना किसी को क्या खिलौना बनाएगा.

फिर भी जैसे ही तोताराम आया हमने पूछा- तोताराम, अब पक्षी-प्रेम पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय खिलौनों पर आ जा. मोदी जी ने कहा है कि दुनिया में ८००० अरब रुपए का खिलौना बाज़ार है. यदि हम इसमें से पांच चार हजार अरब के बाज़ार पर भी कब्ज़ा कर सके तो काम हो जाएगा. शून्य से २३% नीचे जा चुकी अर्थव्यवस्था सँभल जाएगी.

बोला- तो फिर अपने कागजी विकास की तरह कागज की नाव, कागज की गेंद, कागज के हवाई जहाज बनाना शुरू कर देते हैं. वर्चुअल रोटी बना लें.

हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने कहा है कि खिलौनों में विविधता और भारतीयता का टच होना चाहिए.

बोला- तो फिर तो कोई बात ही नहीं है. हमारे पास तो पहले से ही ज़रूरत से ज्यादा माल तैयार रखा हुआ है |पता कर डिमांड का. फिर सप्लाई शुरू.

हमने पूछा- कौन से खिलौने तैयार हैं ?

बोला- लिंचिंग करने वाले, ट्रोल करने वाले, देशद्रोहियों को पहचानने वाले, मीलों दूर से फ्रिज में रखे मांस को सूँघ सकने वाले आदि.

हमने कहा- अब खिलौनों का यह मॉडल पुराना हो चुका है. सभी देशों ने अपने यहाँ इसी मॉडल पर गला दबाने वाले सिपाही जैसे अपने-अपने खिलौने बना लिए हैं.

बोला- तो फिर अपने मालिक के लिए बात-बिना बात ताली बजाने वाले ये बन्दर ठीक रहेंगे.

हमने कहा- लेकिन ये तभी तक चलेंगे जब तक पांच-दस हजार रुपए, फ्री डाटा और मोटर साइकल के लिए पेट्रोल मिलता रहेगा अन्यथा ये दूसरा मदारी ढूँढ़ लेंगे. बड़े चतुर हैं ये बंदर.


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Nov 2, 2020

दीवार बनाना क्या मुश्किल है

 दीवार बनाना क्या  मुश्किल है


तोताराम ने आते ही कहा- अमरीका का राष्ट्रपति झूठा है |

हमने कहा- आजकल यह भी कोई खबर है ?अगर तू कहता कि फलां नेता सच्चा है, ईमानदार है तो खबर होती है |तू जो कह रहा है वह तो एक सामान्य स्टेटमेंट है |वह ज़माना गया जब लिंकन और गाँधी जैसे वकील और नेता हुआ करते थे |और उनका जो हश्र हुआ वह सब जानते हैं फिर क्यों बिना बात ओखली में सिर दें | सरकारी खर्च पर घूमो फिरो, स्वागत करवाओ, मज़े करो |अधिक से अधिक दो टर्म हैं |बाद में तो वही रीयल एस्टेट का सीमेंट, रेता, धूल-धप्पड़ |अपने भारत की तरह थोड़े है कि एक बार आ जाओ तो पचास साल का एडवांस पट्टा घोषित कर दो |और फिर ट्रंप साहब का तो रिकार्ड है २८ दिन में ३० झूठ बोलना |और फिर अब तो चुनावी चौसर बिछी है तो पाँसे कैसे भी हो सकते हैं  |फिर भी कोई ताज़ा झूठ ?

बोला- कल ही ट्रम्प ने कहा- मेक्सिको सीमा पर पूरी दीवार बन चुकी है लेकिन न्यूज चैनल यह बात मानने को तैयार नहीं हैं।



मेक्सिको सीमा पर दीवार पर अमेरिका में जमकर विवाद

हमने कहा- इसमें सच-झूठ क्या है ? जाओ और देख लो |यदि बनी हुई है तो ठीक है |कहीं नहीं है तो तूफान में टूट गई होगी |हमारे यहाँ जब एक सप्ताह में कई लाख शौचालय बन सकते हैं, कागजों में सारे गावों में ओप्टिकल फाइबर बिछ सकते हैं तो वहाँ भी रात बीच दीवार बन सकती है | कौन चेक करेगा ? और सिद्ध कैसे करेगा ? यहाँ भी तो सरकारी अनुदान के लिए गौशाला में गायें भर्ती हो जाती हैं और यदि कोई जाँच आ जाए तो एक दिन में सैंकड़ों गायें मर भी सकती हैं | सच यह है कि मंत्री जी को गायें तो दूर, यह पता नहीं कि देश में कुल कितने गाँव, ग्राम पंचायतें हैं | वास्तव में देश की जनसंख्या  कितनी है ?

बोला- फिर भी झूठ तो झूठ ही है ना ?

हमने कहा- यदि तुझे दीवार की इतनी ही फ़िक्र है तो एक दिन में दस दीवारें खड़ी करवादें |

बोला- ऐसा कैसे संभव हो सकता है ?

हमने कहा- वक़्त तो दीवार गिराने में लगता है |गाँधी दीवारें गिराने के चक्कर में मारा गया |और दीवार उठाने वाले राज कर रहे हैं |दीवार का क्या है, एक वाट्सऐपिया ट्वीट से उठाई जा सकती है, कोरोना और तबलीगी से उठाई जा सकती है, गोली मारो सालों को.....से उठाई जा सकती है, कपड़ों से दंगाइयों की पहचान से उठाई जा सकती है, दाढ़ी-टोपी और किसी ख़ास रंग से उठाई जा सकती है |  फिर ट्रंप तो अमरीका के राष्ट्रपति हैं चाहें तो  एक स्टेटमेंट से घर-घर में दीवार उठा दें |उत्तरी कोरिया-दक्षिणी कोरिया,  उत्तरी वियतनाम-दक्षिणी वियतनाम, पूर्व-पश्चिम, काला-गोरा आदि दीवारें किसने उठाईं  ? लूटिंग स्टार्ट तो शूटिंग स्टार्ट क्या किसी दीवार से कम है ?

रही बात ईंट-गारे की दीवारों की है तो दिल्ली के खेल गाँव से स्टेडियम तक जाने के रास्ते में पड़ने वाली झुग्गियों को टिन की चद्दरों से ढंकना हो या फिर 'नमस्ते ट्रंप'  कार्यक्रम के समय  स्टेडियम तक ट्रंप के रास्ते में पड़ने वाली झुग्गियों के आगे सात-सात फुट की दीवार उठवा देना, दोनों एक ही बात है |



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