Aug 22, 2016

सिन्धु की जाति

  सिन्धु की जाति

जब सिन्धु ओलम्पिक का फाइनल खेल रही थी तब लोग गूगल पर उसकी जाति खोज रहे थे |गूगल के अनुसार कम से कम नौ लाख लोगों ने उसकी जाति सर्च की |हमें बड़ा अजीब लगा | 

जैसे ही तोताराम आया हमने अपनी खीज उसी पर उतार दी- तोताराम, सत्तर साल हो गए जात-पाँत मिटाने के लिए विकसित न हो सकी जातियों के लोगों को आरक्षण देते हुए, अंतर्जातीय विवाहों को सरकारी प्रोत्साहन देते हुए लेकिन 'कांग्रेस मुक्त भारत' की तरह देश जाति-मुक्त ही नहीं हो रहा |

बोला- कौन चाहता है जाति-मुक्त भारत ? यू.पी. में भर्ती होती है तो ९० प्रतिशत एक खास जाति के उम्मीदवार चुने जाते हैं, जब चुनाव में टिकट दिए जाते हैं तो काबिलियत नहीं, उस जाति के वोटों की गणना का हिसाब लगाया जाता है | गुजरात में ही देख ले, मुख्यमंत्री के मामले में क्या जाति का शुद्ध चुनावी गणित था या नहीं ?

तुझे याद है, जब जनरल चौधरी सेनाध्यक्ष बने तो बहुत से चौधरी भाई बहुत खुश हुए थे | बाद में जब पता चला कि बंदा बंगाली ब्राह्मण है तो जोश ठंडा हुआ |राजस्थान में कुछ बनिए भी चौधरी लिखते हैं | और जाति का क्या है जिसका भी लट्ठ पुजे वही चौधरी |

आजकल जो प्रतिभा-सम्मान-समारोह होते हैं वे प्रतिभा के नहीं, अपनी जाति की प्रतिभा के सम्मान होते हैं | प्रतिभा कुँवारी हुई तो विवाह की संभावना तलाशी जाती है, दलाल सम्मान के बहाने उससे परिचय बढ़ाकर भविष्य में धंधा करने के मौके खोजते हैं | कुछ तो जाति के आधार पर बने संगठन अपने सदस्यों को एक दूसरे की मदद करने ही नहीं बल्कि कुछ चुनी हुई दूसरी जातियों के लोगों के काम अटकाने के लिए योजना बनाते हैं | 

हमने कहा- लेकिन शास्त्रों में तो कहा गया है कि
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान |
मोल करो तरवार का पड़ी रहन दो म्यान ||

बोला- आजकल म्यान की ही कीमत हो गई है |लोग कपड़े देखते, कपड़ों की डिजाइन,कीमत देखते हैं | यह कौन सोचता है कि इनमें कौन चांडाल छुपा हुआ है | लोग लम्बी-बड़ी गाड़ी में बैठकर आए चोर की कार का भी भाग कर दरवाज़ा खोलते हैं |कोई यह नहीं सोचता कि इसके पास दो दिन में ही कहाँ से इतना पैसा आ गया कि पचास लाख की गाड़ी खरीद ले |

बड़े-बड़े नेता अपना प्रभाव जमाने के लिए बार-बार अपनी जाति का उल्लेख करेंगे जैसे कि उन्होंने ही इस देश की जाति-व्यवस्था में सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं | नाखून कटा कर शहीद होना चाहते हैं लोग जाति की आड़ में |अन्यथा मृत पशु उठाने वालों ने यह काम करने से मना कर दिया तो उनकी पिटाई करने लगे |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, सूर्य, नदी, आकाश, समुद्र की कोई जाति नहीं होती |वैसे ही इस प्रतिभाशाली लड़की सिन्धु की जाति न पूछकर इस लड़की के परिश्रम और लगन को सलाम किया जाना चाहिए |वैसे सिन्धु से ही हिन्दू बना है और इसलिए भारत में रहने वाला हर मनुष्य हिन्दू या सिन्धु है लेकिन लोगों को इतने से चैन कहाँ  पड़ता है | 

बोला- बन्धु, इस देश में जहाँ हिन्दी और संस्कृत हिन्दू और उर्दू मुसलमान है, गाय हिन्दू है और बकरी मुसलमान है | जाति-धर्म के बिना इस देश क्या, इस उपमहाद्वीप में न राजनीति चल सकती और न सभ्यता-संस्कृति | छोटे लोग हैं, इनकी सोच इतनी ही है | ऐसे लोग भारत के उन महापुरुषों को एक किनारे करना चाहते हैं जो जाति-धर्म से परे मानव मात्र के बारे में सोचते थे |इनके वश का बड़ी लाइन खींचना है ही नहीं, ये किसी बड़ी लाइन को मिटाने से आगे नहीं सोच सकते |


Aug 20, 2016

डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरों के फ्रेम

  डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरों के फ्रेम 

जब भी हमारा अमरीका जाना होता है तो वहाँ के 'इन्डियन-स्टोर' न जाएँ यह कैसे हो सकता है | भारतीयों में और मामलों में चाहे देशभक्ति को या नहीं लेकिन विदेश जाने वाली पहली पीढ़ी भोजन के मामले में ज़रूर सांस्कृतिक होती है |उसे कैलेफोर्निया में भी ग्वार की फली चाहिए |भले ही और भी बहुत से विकल्प हों लेकिन भारत के बिस्किट, तेल, साबुन, मसालों को देखते ही उनका राष्ट्रप्रेम उफनने लगता है |वैसे अब जब भारत में ही दालें मोज़ाम्बीक से आएँगी तो अमरीका में विदेशी दालें और मसाले कौन बड़ी बात है |  वहाँ कुछ पंजाबी और दक्षिण भारतीय होटल भारतीय खाना खिलाकर देश प्रेम और संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं |फिर भी दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक आते-आते इन्हीं भारत प्रेमियों की संतानें पूरी तरह से विदेशी रंग में रँग जाती हैं |

वहाँ जब घर में अन्य सामानों पर निगाह डालते हैं तो कुछ भी भारत निर्मित नहीं मिलता | छोटी से छोटी चीजें भी चीन की बनी हुई होती हैं |यह चीन के कमाल से ज्यादा अमरीका की ग्लोबल अर्थव्यवस्था का कमाल है | जो सामान अमरीका में मज़दूर १०० डालर लेकर बनाएगा उसे चीन का मज़दूर अमरीका के दिए स्पेसिफिकेशन अनुसार दस डालर में बना देगा | चीन के मज़दूर को काम मिला और अमरीका के उद्योगपति को सस्ता माल और सारा प्रदूषण और झिकझिक चीन के सिर |इस वैश्वीकरण के युग में अपने देश के मज़दूर के बारे में सोचने की किसे फुर्सत है ?इसी तर्ज़ पर तो अब 'मेक इन इण्डिया' का शगूफा छूट रहा है |

इन सामानों में हमें भारत निर्मित एक दुर्मट अवश्य मिला | दुर्मट लोहे का एक पाँच-सात किलो का एक टुकड़ा होता है जिसके पीछे एक लकड़ी का हत्था लगा दिया जाता है |पहले यह पत्थर के टुकड़े में डंडा फँसाकर बनाते थे | इसे पत्थर, मिट्टी आदि के असमतल फर्श या मैदान को कूट-कूटकर समतल किया जाता है अर्थात जमाया जाता है | भारत में सभी अच्छे काम कूट-कूट कर ही किए जाते हैं चाहे देश भक्ति भरने का मामला हो या गौप्रेम का |लेकिन वहाँ ऐसे कामों के लिए कूटने की भारत जितनी सुविधा नहीं है | फिर भी चलो, वक्त ज़रूरत के लिए औज़ार तो उपलब्ध है |

अब तो मोदी जी का सूट भी गिनीज़ बुक में आगया है अपने कीमती होने के कारण | लेकिन भारतीय वस्तुओं का सम्मान बढ़ाने वाला एक बयान हिलेरी क्लिंटन ने भी दिया है- उन्होंने कहा- राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की फोटो के फ्रेम भारत में निर्मित हैं | इससे हमें गर्व करने का एक और अवसर मिला |

जैसे ही तोताराम आया, हमने उत्साहित होकर बताया- देख तोताराम, अब डोनाल्ड ट्रंप के फोटो को सजाने और आकर्षक बनाने के लिए भारत निर्मित फ्रेम काम में लिए जा रहे हैं | 

बोला- यह कोई अच्छा कमेंट नहीं है | हिलेरी के कथन की व्यंजना समझ | वे कहती हैं- ट्रंप के फोटो के फ्रेम भारत में निर्मित हैं मतलब ट्रंप अपनी इमेज भारतीय नेतृत्त्व की लाइन पर बना रहे हैं | यह एक कटु सत्य है जिसे भाजपा का थिंक टैंक नहीं समझा या यह बयान उनकी निगाहों से नहीं गुज़रा या समझकर घबरा गया और चुप्पी लगा गया |इसका मतलब है कि ट्रंप भी सत्ता पाने के लिए कट्टरवाद का सहारा ले रहे हैं |जैसे यहाँ भाजपा के कई नेताओं के अतिवादी बयान आते हैं जैसे रामज़ादे-हरामजादे , वन्दे मातरम या भारतमाता की जय नहीं बोलने वालों को भारत से भगा देने की बात, वैसे ही तो ट्रंप कहते हैं कि मेक्सिको से अवैध प्रवेश को बंद करने के लिए एक ऊँची दीवार बनवा देंगे |अमरीका में मुसलमानों का प्रवेश बंद कर देंगे या उनकी अमरीका- भक्ति की परीक्षा होगी जैसे कि आजकल भारत में प्रदूषण-जाँच-केंद्र की तरह जगह-जगह देश भक्ति जाँचने के मोबाइल केंद्र काम कर रहे हैं |  इसका मतलब भारतीय फोटो-फ्रेम का अमरीका को निर्यात नहीं बल्कि ट्रंप द्वारा भारतीय नेताओं की तरह कट्टरता अपनाने से है |

हमने कहा- फिर भी मानना तो पड़ेगा ही कि लोकतंत्र को बचाने और मज़बूत करने के लिए भारतीय तकनीक की श्रेष्ठता तो सिद्ध हो ही गई | अब सस्ते सोफ्टवेयर विशेषज्ञों की तरह भारत से गौरक्षक, देश भक्ति जाँच करने वाले, नदी सफाई के लिए आरती करने और चेतना-यात्रा निकालने वाले, तरह-तरह की रथ-यात्राएँ निकालने वाले, बेरोजगारी मिटाने, सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए के लिए रंगोली, मेहंदी, कविता, वादविवाद, अन्त्याक्षरी आदि  प्रतियोगिता करवाने वाले विशेषज्ञों की अमरीका में माँग इतनी बढ़ेगी कि भारत खाली  हो जाएगा |बेकारी की समस्या छू और विदेशी मुद्रा भण्डार फुल |




Aug 17, 2016

महाराज की जय हो ....

  महाराज की जय हो....

हम अपने रेडियो पर सत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर मोदी जी का भाषण सुन रहे थे |भाषण बहुत लम्बा था सो नींद सी आने लगी |उपलाब्धियाँ संक्षेप में बताते-बताते भी भाषण लम्बा होना लाज़िमी था क्योंकि इतनी उपलब्धियाँ थीं कि यदि विस्तार से बताते तो अगला आम चुनाव आ लेता |जहाँ तक हमारी स्थिति की बात है तो वैसे भी इस उम्र में व्यक्ति को खुद को ही पता नहीं रहता कि वह सो रहा है या जाग रहा है |एक अनहद सा बजता रहता है, अधोमुख सहस्रार से अमृत सा झरता रहता है |

तभी एक दमदार आवाज़ ने हमारी तन्द्रा भंग की- महाराज की जय हो |

हमने इधर-उधर देखा, कहीं किसी महाराज का महल या दरबार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दिया |हालाँकि लोकतंत्र आ गया है लेकिन जनता की हालत अब भी एक निरीह फरियादी की ही है,तभी न लल्लू-पंजू नेता भी दरबार लगाते हैं, जन-सुनवाई करते हैं |

फिर आवाज़ आई-महाराज की जय हो |

हमें लगा- यहाँ कोई महाराज भले ही न हो लेकिन कोई आदमी आसपास है ज़रूर |

तभी तोताराम प्रकट हुआ- महाराज, मैं आपसे ही निवेदन कर रहा हूँ |

हमने झुँझलाकर कहा- जिस देश में प्रधानमंत्री तक खुद को राजा न कहकर प्रधान सेवक कहलवाना पसंद करता हो वहाँ हमें महाराज कहकर क्यों हमारा मज़ाक उड़ा रहा है |

तोताराम बोला- मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा |मैं तो मोदी के शब्द दुहरा रहा हूँ |उन्होंने कहा था- जी.एस.टी. बिल पास हो जाएगा तो कंज्यूमर किंग हो जाएगा |और अब वह बिल पास भी हो गया तो तेरे किंग होने में क्या कमी रह गई |

हमने कहा- मोदी जी तो शब्दों के जादूगर हैं | जब सुनते रहो तक तक एक नशा-सा अनुभव होता रहता है | ऐसा जोश आ जाता है कि इस क्षण ब्रह्माण्ड भी मेरे हाथों में आ जाय तो निचोड़ डालूँ | लेकिन उसके बाद कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हुआ और क्या नहीं ? और समास के तो मास्टर हैं अपने नरेन्द्र भाई | और आजकल उनके नारे अंग्रेजी में ज्यादा होने लगे क्योंकि अब उन्हें केवल भारत को ही थोड़े समझाना है, उन्हें तो समस्त विश्व को मेसेज देना होता है |विश्व अपने कल्याण और उद्धार के लिए उनका मुँह जोह रहा है |इसलिए समास मिला दिया- कंज्यूमर इज किंग | वैसे जहाँ सच और समास दोनों के मेल की बात है तो-उपभोक्ता इज उल्लू |

तोताराम को बड़ा अजीब लगा, बोला- अगर उपभोक्ता नहीं होगा तो सारे उत्पादक मक्खियाँ मारेंगे |

हमने कहा- एक बार बाज़ार जा और किसी दुकानदार से बिल माँगकर देख, सामान पर उत्पादन तिथि या अवधि पार तिथि की बात करके देख; अपनी औकात का पता चल जाएगा | दुकानदार कहेगा- मास्टर जी, सामान लेना हो तो लो, नहीं आगे चलो |बिल बनाने और फालतू सवालों का ज़वाब देने का टाइम किसके पास है |नोट गिनने से ही फुर्सत नहीं है |बिल काटे भी क्यों |सारा माल शुरू से बिना बिल के चल रहा है | सारा का सारा १८ परसेंट बंदा अकेला पेल रहा है |राजा तो यह दुकानदार है |या फिर राजा हो गई हैं सरकारें जिसमें बैठे लोगों को अब कम से कम १८ प्रतिशत खाने को मिलेगा |

अपनी हालत तो उन ठाकुर साहब जैसी है जिन्होंने एक नौकर रखा लिया जो उन्हें सोते समय दूध पिलाया करता था |अफीम सेवन के कारण ठाकुर साहब को होश नहीं रहता और नौकर आधा दूध खुद पी जाता | ठाकुर साहब को कमजोरी आने लगी |दूध की बेहतर व्यवस्था के लिए एक और नौकर रखा तो दूध की मात्रा और कम हो गई |होते-होते यह हुआ कि ठाकुर साहब मर गए और उनकी मूँछों पर दूध पीने के प्रमाण स्वरुप ज़रा सी मलाई लगी हुई थी |




Aug 2, 2016

त्याग पत्र का सही समय

  त्याग पत्र का सही समय 

कोई मरना नहीं चाहता इसलिए यह पूछना बेकार है कि मरने का कौन सा सही समय है | फिर भी समझदार आदमी सोचते हैं कि बड़ी बेइज़्ज़ती या बड़ा दुःख देखने से पहले मर जाना ही ठीक रहता है | यदि कोई व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सके तो कम से कम सही समय पर त्याग पत्र ही दे दे तो इतिहास में दर्ज हो सकता है, यशस्वी हो सकता है | जैसे यदि इंदिरा गाँधी १९७५ में अदालत का फैसला आते ही यह कहते हुए त्याग पत्र दे देती कि हालाँकि मैंने सरकारी साधनों का दुरुपयोग नहीं किया फिर भी माननीय न्यायालय ने मेरा चुनाव रद्द करना उचित समझा है तो मैं न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए त्याग पत्र देती हूँ या अटल जी १३ दिन के हवाई प्रधान मंत्री बनने से पहले ही कह देते कि हम राम-मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़े थे |हमें इतना बहुमत नहीं मिला कि हम राम मंदिर बना सकें इसलिए हमारी पार्टी के सभी सांसद त्याग पत्र देते हैं |फिर देखते दोनों का जलवा |

 लेकिन कुर्सी इतनी आसानी से छूटती थोड़े ही है | और छूटे भी क्यों ?एक बार कुर्सी मिल जाए तो सात पीढ़ियों का इंतज़ाम हो जाता है जैसे कि पिछली शताब्दी के भूतपूर्व मुख्यमंत्रीगण भी शान से सरकारी बँगलों में जमे हुए हैं |यदि जाँच करवाई जाए तो हो सकता है बहुत से माननीयों ने इन बँगलों को किराए पर उठा दिया हो |जितना किराया लगता है उतने का तो वहाँ भैंसों के लिए रिज़का हो जाता होगा |

लेकिन आज जब पढ़ा कि गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने त्याग पत्र की पेशकश की है तो अच्छा लगा |अच्छा इसलिए नहीं कि हम मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं | अच्छा इसलिए लगा कि कोई तो है जो ७५ का होने के बाद संन्यास की सोच सकता है |वैसे बाल अभी तक काले हैं और फिर जिस देश में  हाई स्कूल के सर्टिफिकेट में जन्म तिथि दर्ज होने पर भी राष्ट्रीय बहस छिड़ सकती है तो बेन के लिए दो साल खींचना कौन बड़ी बात थी | 

वैसे ७५ के तो हम भी होने वाले हैं लेकिन जब कोई पद ही नहीं है तो छोड़ें क्या ? पेंशन छोड़ दें तो खाएँ क्या ? कुछ ज्ञानी लोग कहते हैं कि इस उम्र में रेड वाइन पीने से खून का दौरा ठीक रहता है और धमनियों में खून के थक्के नहीं जमते लेकिन पेंशन छोड़े बिना ही दवाओं के खर्चे के बाद दारू का नंबर तो दूर, तूअर दाल का नंबर ही नहीं आता |हम तो यह कर सकते हैं कि अपने परिवार की भाजपा सरकार के सलाहकार मंडल से इस्तीफा दे सकते हैं | लेकिन यह इस्तीफा भी कोई इस्तीफा है लल्लू ?  

वैसे सब जानते हैं कि ठहरी हुई झील में भी अन्दर अन्दर छोटी मछली,बड़ी मछली का खेल चलता रहता है |ठीक है भागते भूत की लँगोटी ही भली |वैसे कुछ भूत इतने बदमाश होते हैं कि लँगोटी भी नहीं पहनते और ऊपर शरीर पर तेल और लगाकर रखते हैं कि कोई पकड़े तो फिसल जाएँ |

परसाई जी ने अपनी ही शैली में अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने वन -विभाग की सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया |यदि इस्तीफा नहीं दिया होता तो नौकरी से निकाल दिया जाता |कुछ लोग धक्का देकर निकले जाने पर भी चौखट पकड़ कर खड़े रहते हैं |कुर्सी से ऐसे चिपक जाते हैं कि खुरच-खुरचकर निकालने पर भी कुछ न कुछ चिपका रह ही जाता है | सरकारी बँगला भी जब तक सामान फिंकवाया नहीं जाता तब तक नहीं छोड़ते |और छोड़ने से पहले सरकारी पंखे, ट्यूब लाईट, परदे,गद्दे और भी कुछ काम का सामान जो ले जा सकते हैं, ले जाते हैं |अभी कुछ पूर्व मंत्रियों के बँगलों के खाली करवाने की बात आई है लेकिन जब खाली हो तब जानिए |अब तक तो  किसी को पता ही नहीं था कि अमुक-अमुक संत कई दशक गुजरने के बाद भी जमे हुए |कुछ दिन बाद फिर जनता भूल जाएगी और जमाई मुफ्त का माल खाते रहेंगे | 

खैर, आनंदी बेन ने सही समय पर सही काम किया |हार्दिक पटेल के हार्दिक असहयोग के अच्छा तो कहीं के राज्यपाल का पद ही भला | भुगते जो मुख्यमंत्री हो |राज्यपाल का क्या है-कभी तीर्थयात्रा कर ली, तो कभी दीक्षांत समारोह में भाषण दे दिया, किसी की पुस्तक का राजभवन में ही विमोचन कर दिया या कभी अंधे बच्चों से राखी बँधवा ली |उपलब्धियाँ पहुँचीं या नहीं, अच्छे दिन आए या नहीं वे जानें जिन्हें अब पंजाब और यू.पी. में चुनाव लड़ना है |