Dec 28, 2019

जूते, पेंट और सीढ़ियाँ



जूते, पेंट और सीढ़ियाँ



चूँकि सभी अखबारों में एक जैसे ही घटिया और फालतू समाचार आते हैं इसलिए हम केवल एक अखबार मँगाते हैं |कहने को अखबार १४ पेज का होता है लेकिन पढ़ने की सामग्री पाँच मिनट से अधिक की नहीं होती | किसी भी बात के लिए कोई कमिटमेंट नज़र नहीं आता |वही भजनों की गंगा, वही सर्दी-गरमी के समाचार और उन्हीं लोगों की उपलब्धियों के समाचार जिनका उसी दिन के अखबार में विज्ञापन भी लगा है |मतलब कि इधर पेमेंट और उधर न्यूज |अब पेड न्यूज क्या होती है यह समझाने की ज़रूरत नहीं है |

ऐसे में कई अखबार खरीदने की क्या ज़रूरत ? अनलिमिटेड इंटरनेट का कनेक्शन है सो दो-चार अखबार नेट पर ज़रूर पढ़ लेते हैं | कारण कि हमारा लेखन समाचारों और विशिष्ट लोगों के वक्तव्यों पर आधारित होता है |नेट पर पढ़ते-पढ़ते आज एक ऐसा वीडियो खुल गया जिसमें मोदी जी कानपुर को 'अटल घाट' की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ज़रा सी ठोकर लग गई | हमारे राजस्थान में उसे 'आखड़ना' कहते हैं जिसमें आदमी गिरता तो नहीं लेकिन गिरूँ-गिरूँ-सा हो जाता है |बस, ऐसा ही कुछ हुआ |


मोदी जी इतने बड़े आदमी हैं तो उन्हें फ़टाफ़ट संभाल लिया गया  |हम तो चार दिन पहले ही हमारे मोहल्ले की सड़क की विशिष्ट बनावट की वजह से 'आखड़' गए |वैसे राजस्थान के किसी मुख्यमंत्री ने लालू और शिवराज सिंह की तरह इन सड़कों के हेमाजी के गालों या न्यूयार्क की सड़कों जैसा होने का दावा भी नहीं किया था |फिर भी  हमारे 'आखड़ने' के लिए ये पर्याप्त सक्षम हैं |गिरते-गिरते बचे |बस, थोड़ा-सा दूध बिखर गया |हम कोई वी वी आई पी तो हैं नहीं ,सो किसी ने नहीं उठाया |खुद ही इधर-उधर देखते हुए उठे और आपनी डोलची में जितना दूध बिखरने से बच गया, लेकर घर लौटे |वैसे सुरक्षा प्रबंधों के अतिरिक्त भी मोदी जी अपनी उम्र के हिसाब से बहुत स्वस्थ, सक्षम, सबल, सतर्क और साहसी हैं | खैर, जैसे आखड़े थे वैसे गिरे नहीं |इस 'आखड़ने' का कारण मोदी जी अक्षमता या की कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ियों की दोषपूर्ण बनावट थी | 

जीवन है | जीवन को यात्रा कहा गया है | यात्रा में सब तरह के रास्ते मिलते हैं |सीधे-सरल, कठिन, ऊबड़-खाबड़, कंटकाकीर्ण, सुमनमय |कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, सदैव किसी की भी यात्रा सर्व सुखमय नहीं होती |सारी समृद्धि, सुविधा, सौभाग्य धरे रह जाते हैं जब ऐसा-वैसा वक़्त आता है |हालाँकि शुभचिंतकों और भक्तों को यह अच्छा नहीं लगता लेकिन क्या किया जाए ? राम, सीता और लक्ष्मण जब वन जा रहे हैं तो ग्राम वधुएँ उन्हें देखकर आपस में बतियाती हैं- 

जो जगदीस इन्हहि वन दीन्हा 
कस न सुमनमय मारग कीन्हा 

फिर भी न तो राम का वनवास केंसिल हुआ और न ही मारग सुमनमय हुआ | फिर मोदी जी तो संकटों के पाले हुए हैं |एक से एक कष्ट झेलकर अपनी अदम्य साहसिकता से इस ऊँचाई पर पहुँचे हैं |ऐसी छोटी-मोटी बातें होती रहती हैं |लेकिन इन अखबार वालों के पास न तो कोई दृष्टि है और न ही सृजनात्मकता |जिससे फायदा दीखता है उसके चरण चाटने लग जाते हैं और उस काम के व्यक्ति या संस्थान के लिए अन्य किसी को भी गालियाँ निकालने तक में भी नहीं  सकुचाते |

एक बड़े सर्कुलेशन वाले लेकिन विज़नलेस अखबार ने कानपुर के 'अटल घाट' पर मोदी जी के 'आखड़ने' के वीडियो में इस दृश्य को लगातार चार बार दिखाया |हमें बड़ा अजीब लगा |

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, ये अखबार वाले भी बड़े विचित्र होते हैं |न इनका कोई मिशन है और न ही कोई विज़न |क्या यह कोई समाचार है ?और वीडियो के लायक तो बिलकुल ही नहीं |तिस पर वीडियो में | एक बार के ज़रा से आखड़ने को चार बार दिखाने की क्या ज़रूरत थी ? 

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बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? मोदी जी कोई फोटो और वीडियो से अपनी इमेज बनाने वाले थोड़े ही हैं | उन्होंने जीवन के सभी छोटे-बड़े उतार चढ़ाव देखें हैं |वास्तव में गिर जाएँ तो भी क्या ? गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में |जिसे अमरीका ने वीजा देने से मना कर दिया था उसके कार्यक्रम 'हाउ डी मोदी' में सम्मलित होकर उसी अमरीका का राष्ट्रपति अपने को धन्य समझता है |यह मोदी है, एक क्या, हजार बार गिर कर भी अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेगा | 

हमने कहा- इसमें हम मोदी जी की कोई कमी नहीं मानते | सीढ़ियों का एक नियम होता है  कि उनकी ऊँचाई छह इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए और सभी सीढियों की ऊँचाई समान होनी चाहिए |इससे एक सीढ़ी पर चढ़ने के बाद व्यक्ति उसी अनुमान से बिना देखे भी स्वाभाविक रूप से चढ़ता चला जाता है |मोदी जी के मामले में हुआ यह कि अंतिम सीढ़ी की ऊँचाई अनुपात से कम थी |जबकि पैर पूर्व निर्धारित अनुमान से चले |

यदि कोई उस उतावले और ज्यादा स्मार्ट बच्चे की तरह होता जो जूतों की हिफाज़त के लिए एक साथ दो सीढियां चढ़कर पेंट फड़वा बैठा, तो बात और है | लेकिन मोदी जी पर यह बात भी लागू नहीं होती |

बोला- चाहे कोई स्मार्ट हो या नहीं, सीढ़ियाँ ऊँची-नीची, समान या असमान कैसी भी ऊँचाई की हों लेकिन सीढियाँ होंगी ज़रूर |सीढियों से कोई बच नहीं सकता |ऊपर चढ़ने और नीचे उतरने दोनों के लिए ही सीढियाँ ज़रूरी हैं |

हमने फिर असमंजस ज़ाहिर करते हुए कहा- फिर भी यह सब हुआ कैसे ?

बोला- आने वाली पीढियाँ कहीं 'अटल घाट' पर फिसल न जाएँ इसलिए मोदी जी अटल घाट की सीढियाँ चेक करने गए थे |अब पता लग गया कि सीढियाँ ठीक नहीं हैं | ठीक कर दी जाएँगीं |इतनी सी बात के लिए तू और तेरे टटपूँजिया बतंगड़ बना रहे हैं |

बात न बात का नाम; कर दी रामायण खड़ी |अब चाय तो बनवा |डबल और कड़क | बड़ी ठण्ड है |








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Dec 27, 2019

अपराधियों का ड्रेस कोड





अपराधियों का ड्रेस कोड 

किसी का भी सुराज-कुराज हो लेकिन हमारे इलाके में सर्दी और गरमी दोनों ही रिकार्ड बनाती हैं | चूरू-फतहपुर सर्दी और गरमी के मामले में दूरदर्शन के मौसम के समाचारों में आ ही जाते हैं | इन दिनों सर्दी के मामले में 'अच्छे दिन' आए हुए हैं | ब्राह्मण होने पर भी भले कोई दान-दक्षिणा न मिले पर कितनी भी सर्दी हो, लोकलाज के लिए दो लोटे पानी के डालने ही पड़ते हैं |हाँ, जब से मोदी जी प्रधान मंत्री बने हैं; जैकेट की तरह दाढ़ी आलस्य नहीं बल्कि शोभा और फैशन स्टेटमेंट हो गई है |इसी धुप्पल में दाढ़ी बढ़ गई |

हमारे सीकर के बारे में कहा जाता- सीयाळो सीकर भलो |अर्थात में सर्दी की ऋतु में सीकर में निवास अच्छा रहता है |कारण- यहाँ भले रात कितनी ही ठंडी हो लेकिन दिन में सुहावनी धूप निकलती है |सो दोपहर में आँगन में खटिया डालकर धूप सेवन करते-करते वही लुंगी-कुरता पहने ही अपनी पालतू कुतिया मीठी को पेशाब करवाने के लिए  पैरों में चप्पल डालकर रास्ते पर निकल आए |

जैसे ही लौट रहे थे, तोताराम टकरा गया- बोला, मियाँ, आदाब अर्ज़ है |

हमने कहा- क्यों राम-राम कहने में कोई परेशानी है ? अब तो प्रभु का ५० हजार करोड़ का मंदिर और दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति बनाने वाली है |मुसलमान भी सहमत है और पुनर्विचार याचिकाएँ भी निरस्त कर दी गई हैं |ऐसे में तुम्हारा हमें 'आदाब अर्ज़' कहने का क्या अर्थ और मंतव्य है ?

बोला- मंतव्य कुछ नहीं | लुंगी और दाढ़ी में तू पक्का मुल्ला जी लग रहा है | 

हमने कहा- मुल्ला इस्लाम का धर्माचार्य होता है |उसके लिए पढ़ाई करनी पड़ती है |ऐसे तो कुछ और बड़ी दाढ़ी-मूंछे और पगड़ी रख लेंगे तो ज्ञानी जी और ग्रंथी जी (सिक्ख) बन जाएँगे ? यदि माला-तिलक-छापा कर लेंगे, धोती और अंगवस्त्रम धारण कर लेंगे तो पंडित जी (हिन्दू) बन जाएँगे ? क्या यह कोई फेंसी ड्रेस शो का खेल है ? और इससे क्या फर्क पड़ता है ? हैं तो सभी इंसान ही |गीता में शरीर को वस्त्र कहा गया |विभिन्न रूपों में दिखते हुए भी सभी जीव  एक हैं | शरीर बदलने पर भी आत्मा एक ही रहती है | ऐसे में तरह-तरह के वस्त्र ही क्या, शरीर भी आदमी की पहचान नहीं है |

बोला- इतनी ज्यादा पंचायत की कोई ज़रूरत नहीं है |मोदी जी ने एन आर सी के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई आगजनी को लेकर कहा है- ये जो लोग आग लगा रहे हैं, टीवी पर उनके दृश्य देखने को मिल रहे हैं। उनके कपड़ों से ही पता चल रहा है कि ये प्रदर्शनकारी कौन हैं?

अब तू तेरा चंदरमा सोच ले |यदि किसी देशभक्त पुलिस वाले ने मुसलमान समझ कर धर लिया तो मुश्किल हो जाएगी |

हमने कहा- तोताराम, वस्त्रों की बात बड़ी बचकानी है |मोदी जी कुर्ता-पायजामा पहनते हैं लेकिन यह हिन्दू पहनावा नहीं है |राष्ट्रीय स्वयं सेवक के कुछ विशिष्ट लोगों को छोड़कर शेष तो पहले पुलिस जैसा ढीला-ढला निक्कर पहनते थे और अब फुल पेंट |तो क्या उनको ईसाई समझ लें या कुरता पायजामा पहनने वालों को मुसलमान | ऐसे तो ममता बनर्जी ने कुछ अखबारों के हवाले से कहा है- बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के सदस्य 21 वर्षीय अभिषेक सरकार को पांच अन्य युवकों के साथ रेलवे पटरी के पास कपड़े बदलते हुए देखा गया था | इसके बाद इन सभी युवकों ने एक ट्रेन के इंजन पर पत्थर बरसाए थे | गांव वालों ने इन युवकों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था |

ऐसे में कानून और अपराध विज्ञान पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं है |कपड़े देखो और फैसला दे दो |इसी को कहते हैं- अंधेर नगरी, चोपट राजा |हमारे हिसाब से तो सभी अपराधी अपराध करने के लिए अवसरानुकूल वस्त्र बदलकर जाते हैं |फिर चाहे वह सीता-हरण के लिए रावण का साधु वेश धारण करना हो या नेताओं द्वारा शरीफों वाला वेश |  


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Dec 24, 2019

चल, अपना पासपोर्ट दिखा



चल, अपना पासपोर्ट दिखा 


दिल्ली की बारिश का कुछ असर इधर भी आ गया | |महँगाई की उमस की तुलना में डीए की तरह दो चार बूँदें गिरीं |बरामदे में बैठने जैसा मौसम नहीं था | तोताराम अन्दर कमरे में ही चला आया और बैठने की बजाय बोला- चल, अपना पासपोर्ट दिखा |

हमने कहा- उधर राष्ट्रपति जी के विधेयक पर किए गए हस्ताक्षरों की स्याही सूखी नहीं कि तू सबसे पहले हमसे ही अनुपालना करवाने के लिए आ गया |लगता है, राष्ट्रपति जी को हमारी ही नागरिकता पर शक है |लगता है हमारे लिए ही यह कानून बनाया गया है |तुझे पता होना चाहिए हम कोविंद जी से तीन, मोदी से आठ और अमित जी से बाईस वर्ष पहले इस भारत भूमि पर आए थे |

बोला- शांत, मास्टर शांत |तू तो इस तरह उछल रहा है जैसे भारत में घुसपैठ करते रँगे हाथों पकड़ लिया गया है |पहले पूरी बात तो सुन |आजकल बहुत से पासपोर्ट नकली भी मिल रहे हैं |इसलिए दिखा, कहीं तेरा पासपोर्ट भी नकली तो नहीं ?

हमने कहा- हमने किसी एजेंट से नहीं बनवाया है | हम इस पासपोर्ट से छह बार अमरीका आ जा चुके हैं |लेकिन तुझे आज अचानक हमारे पासपोर्ट के असली-नकली होने की फ़िक्र कैसे हुई ? और तू कैसे पता करेगा कि हमारा पासपोर्ट असली नहीं है |

बोला- यदि उसके प्रत्येक पेज में शरीर में आत्मा की तरह  'कमल' का वाटरमार्क नहीं हुआ तो समझ कि असली नहीं है |उस स्थिति में तेरा हिन्दू होना भी संदिग्ध हो सकता है |

हमने कहा- तोताराम, भाजपा के बनने से पहले भी पासपोर्ट में वाटर मार्क हुआ ही करता था |हमारे पासपोर्ट में अशोक स्तम्भ का वाटर मार्क है |उसमें क्या खराबी है ? 
और जहां तक नकली की बात है तो मोदी जी ने कहा था कि नोटबंदी से नकली नोटों पर भी रोक लगेगी |और हुआ क्या ? नोटबंदी के दौरान ही नए नोटों का रंग उतरने लगा |बाज़ार में फोटो स्टेट किए हुए नोट चल पड़े थे |और फिर कमल ही क्यों ?

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बोला- कमल हमारा राष्ट्रीय पुष्प है |उसमें क्या बुराई है ?

हमने कहा- बुराई तो कुछ नहीं लेकिन जहां तक कमल के 'राष्ट्रीय पुष्प' होने की बात है तो राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत जैसा स्पष्ट उल्लेख इसके बारे में कहीं नहीं मिलता | और फिर कमल ही क्यों ? क्या इसलिए कि यह भाजपा का चुनाव चिह्न है ?वाटर मार्क तो कुछ भी हो सकता ? शिव,विष्णु, बुद्ध, लक्ष्मी, गणेश आदि का आशीर्वाद वाला 'हाथ' वाटर मार्क क्यों नहीं हो सकता ? गणेश का प्रतीक 'हाथी' क्यों नहीं ?  कृषि और कौशल वाले हँसिया-हथौड़े क्यों नहीं ? धनुष-बाण भी ठीक है |  सूरज-चाँद क्या बुरे हैं ? 

बोला- इनमें कमल वाली बात नहीं |कमल ब्रह्म-ज्ञान का, अनहद का, सात्त्विकता,  पवित्रता, निस्पृहता और सम्पूर्ण भारतीयता का प्रतीक है |कबीर भी कहते हैं- अष्ट कमल दल चरखा डोले, पञ्च तत्त्व गुण बीनी चदरिया |

हमने कहा- कुछ भी कह तोताराम, इसमें निस्पृहता नहीं है |यदि किसी कुंठा के तहत ऐसा करना ही था तो थोड़ा पर्दा, थोड़ा धीरज रखते |अभी मोर को लेते, फिर बरगद और बाघ को लेते |फिर कमल को भी ले सकते थे |तब अजीब भी नहीं लगता |शुरुआत ही कमल से | हमें तो इस 'कमल' में कबीर के अनहद से ज्यादा राजनीति का कीचड़ नज़र आता है |


बोला- मास्टर, ज़माना खराब है |क्यों बिना बात तीन-पाँच लगाता है |तुझे पता है, अब नागरिकता विधेयक के नए नियमों के अनुसार यदि किसी ने झूठ-मूठ ही तेरी नागरिकता के बारे में पुलिस को शिकायत कर दी तो लगाता रहना चक्कर थानों और दफ्तरों के |  

-रमेश जोशी 

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Dec 21, 2019

काश, इस काबिलियत का पहले पता होता



काश, इस काबिलियत का पहले पता होता 


हमने तोताराम से कहा- तोताराम, काश, इस काबिलियत का पहले पता होता |

बोला- तुझे किसने बहका दिया ? यदि कोई काबिलियत होती तो आज तक तुझे  सरकार ने मास्टरी से आगे क्यों नहीं बढाया ? क्यों आडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में बैठा कर कुढ़ा-कुढ़ाकर मार रहे हैं ? और तू भी न सही, देश का प्रधान मंत्री, नगर परिषद् का वार्ड पार्षद तक नहीं बन सका |खैर, मैं भी तो सुनूँ आज कौन सी काबिलियत का इल्हाम हो गया है, आदरणीय को ?

हमने कहा- बन्धु, हम अपनी काबिलियत की बात नहीं कर रहे हैं |हम तो देश के बैंकों और अपने हाई स्कूल में कोमर्स के मास्टर जी गुप्ता जी की बात सोच रहे हैं |

बोला- चल, अपनी नहीं तो गुप्ता जी की ही बता |

हमने कहा- कभी हमारी बेलेंसशीट का दोनों तरफ का टोटल नहीं मिलता था |गुप्ता जी कहते थे- यदि परीक्षा में ऐसा हो तो सस्पेंस अकाउंट खोलकर दोनों तरफ का टोटल बराबर कर देना |उनकी बात अलग थी लेकिन हम तो भविष्य के बारे में सोचा करते थे कि वास्तव में कहीं नौकरी में ऐसा किया तो इधर हम सस्पेंस अकाउंट खोलेंगे और उधर मालिक हमें जेल में बंद करवा देगा | इससे तो हिंदी ही ठीक है |दोहे में यदि चौबीस की जगह २२ या २६ मात्राएँ भी कर दी तो एक दो नंबर की तो काटेंगे; जेल तो नहीं होगी |सो कोमर्स छोड़ दी |

इसी तरह १९६५ में जब बैंक निजी क्षेत्र में थे तो एक मित्र की सिफारिश से कैशियर की नौकरी की बात चली लेकिन हमने इस डर से मना कर दिया कि यदि दस हजार का एक नोट भी किसी को अधिक दे दिया तो गई चार महीने की तनख्वाह |उस समय दस हजार का नोट भी चला करता था |

बोला- तो क्या अब तुझमें अहमदाबाद के दो सहकारी बैंकों की तरह छह दिन में १३०० करोड़ के हजार और पांच सौ के नोट गिनकर और बदलकर देने जितनी काबिलियत आ गई ?

क्या अहमदाबाद सहकारी बैंक में 5 दिनों में 750 करोड़ की गिनती हो सकती है?

हमने कहा- वह बात नहीं है |हमारा तो वही हाल है कि आज भी आयकर का फॉर्म नहीं भरना आता और बैंक से पेंशन लाते हैं तो चार बार गिनकर अंत में संबंधित बाबू पर ही विश्वास करके चले आते हैं |

बोला- तो फिर क्यों रणवीर कपूर और सलमान खान की शादी जैसा बिना बात का संपेंस बना रहा है |

हमने कहा- पहले माल्या स्टेट बैंक का कर्जा ले भागा, फिर नीरव मोदी ने पंजाब नॅशनल बैंक की काबिलियत का पर्दाफाश कर दिया, इसके बाद दो डाइरेक्टरों  ने महाराष्ट्र पंजाब बैंक को फेल कर दिया और अब रिज़र्व बैंक ने घपला पकड़ा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया ने अपने डूबत खाते वाले हिसाब में १२०० करोड़ रुपए कम  दिखाए हैं |


NBT


बोला- तो क्या तू जेतली जी है या सीतारामन है जो लोग तुझसे हिसाब मांगेंगे |और उन्होंने ही कौनसा हिसाब दे दिया जो तू परेशान हो रहा है ?   

हमने कहा- जब बैंकों में घपलों की इतनी गुंजाइश है तो हमने अपनी काबिलियत पर शंका करके क्यों कोमर्स और बैंक की नौकरी छोड़ दी ?यदि उस समय लग गए होते तो कम से कम डिवीजनल मैनेजर तक तो पहुँच ही जाते | 

बोला- अच्छा ही हुआ जो बैंक में नहीं लगा; नहीं तो किसी न किसी बैंक को ज़रूर  डुबाता या कोई तुझे नीरव मोदी की तरह उलू बनाकर तुझेसे 'लेटर ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग' ले गया होता  |






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Dec 17, 2019

पोलीमैथ



पोलीमैथ   

आज तोताराम चिंतित था |वह जानता है कि चिंता से कुछ होने वाला नहीं है |वैसे भी उसकी चिंताएं रोटी-पानी की नहीं होती |उसे पता है कि रोटी-पानी उतने ही मिलेंगे जितनी पेंशन मिलेगी और पेंशन उतनी ही मिलेगी जितनी निर्मला सीतारामन चाहेंगी | प्याज भी तोताराम की चिंता का विषय नहीं है | बलात्कार से भी वह विशेष चिंतित नहीं क्योंकि जब से उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं रसद और नागरिक आपूर्ति मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ़ धुन्नी सिंह ने अपनी ही 'धुन' में कहा कि सौ फीसदी क्राइम रोकने की गारंटी तो भगवान राम भी नहीं दे सकते |जब राम ही कोई गारंटी नहीं दे सकते तो राम के मंदिर और मूर्तियों तक सीमित रहने वालों से कोई बड़ी आशा करनी भी नहीं चाहिए |  

तोताराम ने कहा- मास्टर, वैसे तो हम जगद्गुरु बने फिरते हैं लेकिन कितने दुःख की बात है कि हमारी १३५ करोड़ की जनसंख्या में एक भी पोलिमैथ नहीं है |

हमने समझाया- चिंता की कोई बात नहीं है |जिस प्रकार हमारे यहाँ पोलिटिकल साइंस को संक्षेप में 'पोल साइंस' कहा जाता है जिसके टिकट वितरण, प्रचार, खरीद-फरोख्त, दल-बदल, सी बी आई की रेड़ और क्लीन चिट, रात में गुपचुप सरकार बना लेना आदि सब में पोल ही पोल है | इसी तरह इस 'मैथ' में भी पोल की क्या कमी है |काले धन को समाप्त करने के लिए नोटबंदी की और सब नोट वापिस आ गए मतलब काला धन समाप्त |अब पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का शगूफा छोड़ा गया है तो वह आंकड़ों और मैथ की पोल के द्वारा पूरा कर ही लिया जाएगा जैसे कि रवि शंकर जी के हिसाब से मंदी नहीं है |


हमारे पैर पकड़ते हुए तोताराम ने निवेदन किया- प्रभु, किसी और की भी सुना करो |कोई बात समझ में न आए या किसी शब्द का अर्थ पता नहीं हो तो पूछ लिया कर |पूछने के शर्म करने वाला जीवन भर अज्ञानी बना रहता है |केवल अकड़ से कुछ नहीं होता |तेरा हाल तो भाजपा के संबित पात्रा और कांग्रेस के गोपी बल्लभ जैसा है |दोनों ही बहस कर रहे हैं लेकिन किसी को पता नहीं कि ट्रिलियन में कितने जीरो लगते हैं ?
Waqas Ahmed

'पोलिमैथ' ग्रीक भाषा से बना एक शब्द है जिसका अर्थ होता है-'वह व्यक्ति को ज्ञान में कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखता हो' | हिंदी में इसे 'बहुज्ञ' कह सकते हैं |

इसी साल छपकर आई वक़ास अहमद की किताब "द पोलीमैथ" में इस विषय पर विस्तार से विचार किया गया है | वक़ास अहमद का करियर कई क्षेत्रों में फैला रहा है | वे अर्थशास्त्र में ग्रेजुएट हैं, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और न्यूरो साइंस में उनके पास मास्टर्स डिग्री है |वे राजनयिक पत्रकार और निजी प्रशिक्षक का काम कर चुके हैं | इन दिनों वे दुनिया के सबसे बड़े कला संग्रहों में से एक के कला निर्देशक हैं और पेशेवर कलाकार का भी काम करते हैं |
इन उपलब्धियों के बावजूद अहमद ख़ुद को पोलीमैथ नहीं मानते | पोलीमैथ की उनकी सूची में सिर्फ़ वही शामिल हैं जिन्होंने कम से कम तीन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो |
उनकी सूची में शामिल हैं लियोनार्डो दा विंची (कलाकार, आविष्कारक और शरीर विज्ञानी), योहान वुल्फगांग फान गेटे (महान लेखक जिन्होंने जीव विज्ञान, भौतिकी और खनिज विज्ञान का अध्ययन किया) और फ़्लोरेंस नाइटिंगल (आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक, सांख्यिकीविद और धर्मविज्ञानी) |
हमने कहा- या तो इस आदमी को भारत और उसके नेताओं की महानता के बारे में कुछ पता नहीं है या फिर यह मुसलमान होने के कारण ईर्ष्यावश भारत की महान प्रतिभाओं के महत्त्व को नकार रहा है |चल और तो छोड़ दे लेकिन क्या गाँधी और नेहरू भी तेरे इस पोलिमैथ में नहीं आते ?
बोला- उनकी भली कही |गाँधी के पास क्या था ? सत्य और अहिंसा |ये भी दो क्या एक ही समझ |कहीं ऐसे दुनिया चलती है ? तभी तो चर्चिल ले भगा नोबल और तेरे गाँधी देखते रह गए |और नेहरू करता रहा पंचशील, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और चाऊ एन लाइ ने 'लाइ' बोलकर दे दिया चरका |
हमने कहा- तो क्या तू मोदी जी को भी 'पोलिमैथ' नहीं मानेगा ? उनकी बहुज्ञता देख कि शी जिन पिंग बार-बार भागे चले आते हैं कभी झूला झूलने, कभी नौका विहार करने तो कभी चाय पीने |ट्रंप झप्पी के लिए तरसते रहते हैं |
बोला- ये सब तो ज्ञान के एक ही क्षेत्र के उपभाग हैं |अभिनय में रोना-गाना, नव रस, झूठ, चालाकी, बनावट, चुटकलेबाजी सभी कुछ आ जाते हैं | ऐसे ही कहने को ६४ हैं लेकिन कला को एक ही फेकल्टी तो माना  जाएगा |
हमने कहा- तो हमारे एक मंत्री जी है जो राजनीति करने के अतिरिक्त बत्तखों के पंखों से ऑक्सीजन निकालने का विज्ञान जानते हैं और महाभारत में इंटरनेट ढूँढ़ लेते तो क्या वे पोलिमैथ नहीं हैं ? एक और मंत्री जी हैं जो पुलिस में रहे हैं, अतः अपराध विज्ञान के बारे में जानते हैं, खुद को डार्विन के सिद्धांत से परे मानकर डार्विन को झूठा सिद्ध कर चुके हैं और उनके पास रसायन विज्ञान की डिग्री तो है ही | मैनें तो एक उदाहरण मात्र दिया है अन्यथा अपने देश में तो गली-गली में ज्ञान के गट्ठर बंधे पड़े हैं जिनका पूरी तरह से विमोचन ही नहीं हुआ है |
बोला- लगता है एक दो-चार चुनाव और जीत जाने के बाद तो शायद ज्ञान-विज्ञान के किसी संस्थान की ही कोई ज़रूरत नहीं रहेगी |सब कुछ वेद-पुराणों से ही निकाल लेंगे | 









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Dec 15, 2019

अगले चुनाव में ट्रंप की जीत पक्की



अगले चुनाव में ट्रंप की जीत पक्की          


दुनिया का सच्चा लोकतंत्र शौचालय में ही होता है |बड़े- से बड़ा फन्ने खां भी पूर्णतया पारदर्शी हो जाता है | जब पद, प्रतिष्ठा और प्राणों पर आकर पड़ती है तब अच्छे-अच्छों को लूज मोशन हो जाते हैं |और यदि यह स्थिति लम्बी खिंचे तो फिर आदमी ज़रा भी संग्रह करने योग्य नहीं रहता और उसे संग्रहिणी हो जाती है |उस स्थित में तो कमरे ही नहीं बल्कि पृष्ठभूमि से ही अटेच्ड शौचालय चाहिए |संकट आने पर बड़े से बड़ा अधिकारी भी शौचालय में जा छिपता है |अब चूंकि धर्म का सदाबहार और सुरक्षित मौसम चल रहा है तो लोग शौचालय की बजाय पूजा में पाए जाते हैं |

शौचालय की भी ज़रूरत तभी पड़ती है जब थोड़ा बहुत तो खाने को मिले अन्यथा शौचालय की ज़रूरत की क्या ? यह बात और है कि जो न खाने और न ही खाने देने का दावा करते हैं वे ही शौचालय का हल्ला ज्यादा मचाते हैं |देवालय से पहले शौचालय की प्राण प्रतिष्ठा कर देते हैं |जब खाते ही नहीं हैं तो पता नहीं शौचालय में कौन सी गुह्य साधना करते होंगे ?

आहार तो सभी जीवों के साथ लगा हुआ है और जब आहार करेंगे तो कम या ज्यादा, ठोस या तरल, खुले या बंद दरवाजे में लेकिन शौच के लिए तो जाना ही पड़ता है |इसलिए यह न मानने का कोई कारण नहीं कि जगद्गुरु भारत यह शुचिता वाला कार्य  प्राचीन काल में नहीं करता था | लेकिन कभी इस नितांत निजी महत्त्व के काम का इतना चर्चा नहीं सुना |

आज जैसे ही तोताराम आया तो हमने कहा-  कुछ भी हो मोदी जी ने शौचालय जैसे दलित और उपेक्षित कर्म-स्थल को लोक और तंत्र के बड़े सन्दर्भ से जोड़ दिया |वास्तव में बहुत अनुपम, अभूतपूर्व और अलौकिक काम किया है |

बोला- यह बात और है कि शौचालय की चर्चा विशद और वैश्विक स्तर पर नहीं हुई |कृष्ण ने भी गीता में इसके बारे में कोई चर्चा नहीं की और न ही इस देश के संविधान निर्माताओं ने इसका कहीं उल्लेख किया लेकिन बात तो महत्त्वपूर्ण है ही |अन्न को हमारे शास्त्रों ब्रह्म कहा गया है लेकिन क्या यह अन्न-ब्रह्म गले की गंगोत्री से चलकर पेट रूपी चेकपोस्ट पर टोल टेक्स चुकाए बिना गटर तक की यात्रा कर सकता है ? यही जीवन के लोकतंत्र का शौचालयीन सन्दर्भ है |

अन्न का वास्तविक भंडारण-स्थल शरीर का यही मध्य भाग है |यही लोक और तंत्र का केंद्र बिंदु है |लोक अन्न उगाता है और खाना भी चाहता है लेकिन तंत्र  सारा ही हड़पना चाहता है |लोक और तंत्र का यही मिलन-बिंदु है और संघर्ष-बिंदु भी |

हमने कहा- यही तो हम तुझे कहना चाहते थे | आज तक जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया मोदी जी ने उस शौचालय को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के केंद्र में स्थापित कर दिया |इसी का परिणाम है कि अब शौचालय दुनिया के सबसे धनवान देश का भी  मुख्य चिंत- बिंदु बन गया है | अब अमरीका में भी शौचालय के अतिरिक्त सभी समस्याएँ हल हो गई हैं जैसे इस देश के इतिहास में शौचालय बनाने के बाद बलात्कार समाप्त हो गए हैं |महिलाएं सुरक्षित हो गई हैं |सभी लोग स्वस्थ हो गए हैं |एक परिवार के कम से कम हर वर्ष चिकित्सा पर खर्च होने वाले लाखों रुपए बचने लग गए हैं | 

बोला- इस मामले में तो मुझे लगता है भारत अमरीका से भी बहुत विकसित हो गया है |अभी ट्रंप ने बताया कि उनके देश में शौचालय में मल को बहाने के लिए दस-पंद्रह बार फ़्लश चलाना पड़ता है तब कहीं काम हो पाता है |वे हर हाल में देश को इस समस्या से मुक्ति दिलाकर रहेंगे | और वहाँ के रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल संरक्षण की अपील भी की है |

देख लेना, ट्रंप अगला चुनाव इसी मुद्दे पर जीत जाएंगे |

हमने कहा-  ऐसे मामलों में तो अपने मोदी जी विश्व-गुरु हैं |जिस बात को ट्रंप अब अनुभव कर रहे हैं उसे मोदी जी ने २०१९ का चुनाव जीतते ही शौचालय के फ्लश में पानी की कमी की समस्या आने से पहले ही जल-संग्रहण को मुख्य राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया और रिज़र्व बैंक के रिज़र्व फंड में से डेढ़ लाख करोड़ निकाल लिए हैं |अब आगे भले ही शिक्षा के लिए पैसे कम पड़ें लेकिन शौचालय में अबाध जल-प्रवाह बना रहेगा |

बोला- भाई जान,  दुनिया ऐसे ही फ़िदा नहीं है मोदी जी पर |
  


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Dec 12, 2019

तो लन्दन ही चल जा




तो लन्दन ही चला जा 


हम अमरीका से निकलने वाले एक हिंदी त्रैमासिक का संपादन क्या करने लगे कि जब तोताराम के पास चर्चा के लिए कोई विषय नहीं होता तो यही पूछ लेता है- अमरीका कब जा रहा है ? जैसे कि जब देश भक्तों को कोई काम नहीं होता तो वे नेहरू जी को गालियाँ निकालने लग जाते हैं वैसे ही जैसे कोई काम न होने पर निठल्ले  अन्त्याक्षरी खेलने लग जाते हैं |

आज भी उसने वही किया, पूछने लगा- मास्टर, अमरीका कब जा रहा है ?

हमने कहा- बन्धु, हम कोई मोदी जी हैं जो एक दिन देश में और चार दिन विदेश में रहेंगे |हमें तो यहीं कोई काम नहीं तो अमरीका जाकर क्या करेंगे ? 

बोला- क्यों ? अमरीका में चुनाव नहीं होते क्या ? क्या ट्रंप को चुनाव जीतने के लिए टिप्स नहीं चाहियें ? 

हमने कहा- क्या दुनिया के सभी चुनाव मोदी जी के भरोसे ही जीते जाते हैं ? 

बोला- फिर भी यदि कोई दवा किसी बीमारी में काम कर रही तो उसे बदलने की क्या ज़रूरत है ?जैसे कि अपने यहाँ राम-मंदिर और हिन्दू-मुसलमान |अब अमरीका में जब 'अबकी बार, ट्रंप सरकार' से काम चल रहा है तो चलने दो |फिर भी समय-समय पर सलाह लेते रहना चाहिए | यहाँ मोदी जी ने जल-संरक्षण का नारा दिया तो ट्रंप ने उसी के अनुकरण पर अमरीका के शौचालयों में फ्लश के लिए पर्याप्त पानी की विकट समस्या पर अगला चुनाव केन्द्रित कर दिया कि नहीं ?

हमने कहा- यदि ट्रंप को कोई राजनीतिक सलाह देनी है तो वह काम मोदी जी का है हमारा नहीं |

बोला- तो फिर इंग्लैण्ड चला जा |

हमने कहा- क्या जाना ज़रूरी है ? काम मोदी जी का और जाएं हम ?वैसे भी इस समय भाजपा में एक से एक महान नेता भरे पड़े हैं |राम से बड़ा राम का नाम |किसी भी शाखा से, किसी भी बन्दर को उतार कर भेज दे, जला आएगा विपक्ष की लंका |अभी तो स्पष्ट बहुमत है |कुछ भी किया जा सकता है |

बोला- इस समय संसद का महत्त्वपूर्ण सत्र चल रहा है | 'नागरिकता बिल' जैसे 'दूरगामी नीतिगत मसले'  में पूरी राम-सेना व्यस्त है | वैसे तो चुनाव में बोरिस जॉनसन के साथ मोदी जी का फोटो काम में लिया ही जा रहा जैसे 'जियो' के विज्ञापन में लिया गया था |

यह थोड़ा साहित्यिक मामला है | वहाँ भी चुनाव थोड़ा काव्यात्मक हो गया है | इसलिए तुझे कह रहे हैं |वहाँ एक वीडियो-गीत भी चल रहा है, बोल है-




"जागो.... जागो......जागो, चुनाव फिर से आया है 
बोरिस को जिताना है, देश को बचाना है
कुछ करके हमें दिखाना है "

हमने कहा- तोताराम, यह तो 'अबकी बार, मोदी सरकार' की तरह  बहुत ही गूढ़- गंभीर और दार्शनिक-आध्यात्मिक रचना है |हम तो काका हाथरसी की तरह छोटे-मोटे कुण्डलिया छंद लिख लेते हैं |ऐसे श्रेष्ठ काव्य के लिए तो प्रसून जोशी उपयुक्त रहेंगे |

बोला- उपयुक्त तो वे ही रहते लेकिन क्या किया जाए वे तो सबसे विश्वसनीय अखबार के साथ किसी टेस्ट ट्यूब बेबी, योनो, डिस्काउंट मास्टर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में व्यस्त हैं |

हमने कहा- तो फिर हम भी कोई 'एवजी' नहीं हैं | नहीं जाते इंग्लैण्ड |            




  
धन्यवाद,रमेश जोशी प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.
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Dec 9, 2019

भगवान राम का मंदिर



भगवान राम का मन्दिर  

आज तोताराम बहुत खुश था |आते ही बोला- बधाई हो, भाई साहब |

हमने कहा- किस बात की बधाई ? क्या इस बात की बधाई कि दिल्ली में प्याज के भाव १२० रुपए से घटकर ७५ रुपए प्रतिकिलो हो गए ?

बोला- कल्पना में भी घटियापन |कभी तो प्याज-टमाटर से बाहर निकला कर |क्या नए-नए मुल्ला की तरह प्याज-प्याज लगा रखी है |तुझे पता है, भगवान राम की नगरी के लिए पचास हजार करोड़ रुपए की योजना बन गई है |भगवान् राम की दुनिया की सबसे ऊँची २५१ मीटर की मूर्ति बनेगी और ११११ ऊँचा मंदिर बनेगा |बस, समझ ले राम-राज आ ही गया |सब समस्याएँ दूर हो जाएँगी |

हमने कहा- लेकिन उत्तर प्रदेश में खाद्य आपूर्ति मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ़ धुन्नी बाबू ने तो कह दिया है कि अपराध रोकने की सौ फीसदी गारंटी तो भगवान राम भी नहीं दे सकते |ऐसे में किस समस्या के हल होने की उम्मीद करें |अरे, न दो रोजगार, न दो शिक्षा-चिकित्सा की सुविधाएं; कम से कम इतना तो करो कि कोई, किसी को भी, कहीं भी जला न डाले, इज्ज़त न लूट ले |ये सब गौरव और धर्म की आड़ में कमीशन खाने के चक्कर हैं |इन्हीं पचास हजार करोड़ में से तो भ्रष्टाचारियों की सोने की लंका भी बनेगी |  राम के नाम से खा जाएँगे बीस-तीस करोड़ रुपए |

बोला- तो क्या राम का मंदिर न बने ? राम का मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो कहाँ बनेगा ?

हमने कहा- यह बिना बात पलटी मारकर घुमा मत |राम ने अनुज वधू पर कुदृष्टि डालने वाले बाली को दंड दिया था |सीता का हरण करने वाले रावण को दंड दिया था |और आज बलात्कारियों को पकड़ने की बजाय ४५ लाख का पॅकेज देकर मामले को ठंडा किया जा रहा है |बात पॅकेज और सरकारी खर्चे पर इलाज़ करवाने की नहीं है |बात यह है कि किसी राज में अपराधी इतने उद्दंड या निर्भय कैसे हो गए कि पीड़िता के परिवार को ट्रक से कुचलवा डालें ? जब तक ऐसे अपराधियों को भय नहीं हो, उन्हें दण्डित न किया जाए तब तक इन मगरमच्छी आंसुओं का कोई अर्थ नहीं |

बोला- तो चल, इसी बात पर हैदराबाद की पुलिस को ही बधाई दे दे जिसने चारों अपराधियों को एन्काउन्टर में मार गिराया जबकि इस देश में पुलिस का इतिहास गाँधी को डंडे मारने का, जलियांवाला बाग़ में निहत्थों पर गोली चलाने का और नआँगन बाड़ी कार्यकर्ता भंवरी देवी के केस को लटकाने का रहा है |  

हमने कहा- ये सब साधारण लोग थे तो एन्काउन्टर कर दिया लेकिन बड़े-बड़े लोग तो 
अब भी फाइव स्टार अस्पतालों में आराम फरमा रहे हैं |कहीं उनके चेहरे पर अपराध बोध या कानून या पुलिस का भय दिखाई देता है ? यदि नहीं तो ऐसे एन्काउन्टरों पर विश्वास नहीं किया जा सकता ?स्वर्णिम चतुर्भुज हत्या में ईमानदार इंजीनीयर सत्येन्द्र दुबे की हत्या में पता नहीं कहाँ से दो उचक्कों को पकड़ लाए और हो गया न्याय |जबकि जिन्हें उस इंजीनीयर की हत्या ने बड़े घोटाले में फंसने से बचा लिया, उनके तो कहीं नाम ही नहीं आए |यदि एनकाउन्टर की करना है तो बलात्कार के अपराधी एम.पी. और एम.एल.ए. का करके दिखाओ |लेकिन नहीं उन्हें तो ये सेल्यूट मारेंगे |


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और आज ही मुजफ्फरपुर बिहार में एक लड़की को किसी प्रोपर्टी डीलर के युवराज ने घर में घुस कर जिंदा जला दिया जबकि वह लड़की कई दिन से शिकायत कर रही थी कि आरोपी उसे परेशान करता है |पुलिस ने उसकी रिपोर्ट भी नहीं लिखी |और अब लोग टसुए बहाएंगे, पॅकेज ज़ारी करेंगे |ये अपराधी इन्हीं नेताओं के कुल के हैं |इसीलिए तो इनका एन्काउन्टर तो दूर रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती |और ज़रा कठुआ के बलात्कारियों के पक्ष में जुलूस निकालने वालों और लिंचिंग के अपराधियों का स्वागत करने वाले मंत्री का कालर की पकड़ कर दिखा दे पुलिस |

बोला- तो क्या हैदराबाद पुलिस को नरमी बरतनी चाहिए थी ?

हमने कहा- फिर वही बात | हम तो कहते हैं कि सभी अपराधियों के साथ सख्ती बरतो, एक-दो महीने में फैसला करो, किसी आरोपी को खुल्ला मत छोड़ो, फिर चाहे वह सत्ताधारी पार्टी का विधायक हो या सांसद |

तोताराम, इतना सब तो छोड़ |हम तो उस दिन देश में रामराज मान लेंगे जिस दिन १३५ करोड़ की आबादी में एक भी माई का लाल त्रेता के जटायु जैसा निकल आए जो अपराधी को ललकारे, भले ही वह लंका का राजा रावण ही क्यों न हो |फिर कोई चिंता नहीं कि राम का मंदिर पचास हजार करोड़ का बने या पांच हजार का या न ही बने |राम का मंदिर ईंट-पत्थर का नहीं मर्यादा का होता है |















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Dec 6, 2019

सिंगलयूज प्लास्टिकासुर

सिंगलयूज प्लास्टिकासुर 

आज शनिवार को वादे के अनुसार हनुमान मंदिर चलने के लिए तोताराम हाज़िर | जैसे ही कोई एक सौ मीटर चले होंगे कि कल के सड़े खाने की बदबू के भभके ने सारी भक्ति हवा कर दी | तभी तेज़ हवा का झोंका आया और सड़क के किनारे पड़े सिंगल यूज प्लास्टिक के गिलासों में इस तरह दौड़ शुरू हो गई जैसे चुनाव घोषित होते ही जनसेवार्थ टिकटोच्छुक राजधानी के पार्टी दफ्तर की ओर दौड़ पड़ते हैं |या किसी अस्पष्ट बहुमत वाले को सरकार बनाने का निमंत्रण मिलने पर निर्दलीय विधायकों का अपहरण करके उनको लिए-लिए किसी फार्महाउस या होटल-होटल भागते रहते हैं | 

यह क्या ? देखते-देखते प्लास्टिक के वे गिलास बीसियों फुट ऊँचे दैत्याकार रूप में खड़े हो गए |हमने आँख मलकर देखा |कुछ समझ में नहीं आया |

तोताराम से पूछा- क्या तुझे भी कुछ धुँधला-सा, बड़ा-सा, कुछ अर्द्ध-पारदर्शी-सा  दिखाई दे रहा है ?

बोला- जोर-जोर से जाप शुरू कर दे |
  
भूत-पिशाच निकट नहिं आवै, 
महाबीर   जब  नाम   सुनावै || 

तभी जोर की गड़गड़ाती हुई आवाज़ आई- डर गए ? बातें तो बहुत बनाते हो |

हम दोनों ने काँपती हुई मिमियाती आवाज़ में पूछा- आप कौन हैं ?

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दीर्घाकार आकृति बोली- हम सिंगल यूज प्लास्टिकासुर हैं |

हमने कहा- महाराज, त्रिणावर्त, शकटासुर, बकासुर, अघासुर नाम तो कृष्ण की बाल लीलाओं के प्रसंग में सुने थे लेकिन यह नाम तो कुछ अजीब-सा है |

बोला - हम वही सिंगल यूज प्लास्टिक हैं जिस पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए मोदी जी ने २७ सितम्बर २०१९ को राष्ट्र संघ में बड़े जोर-शोर से घोषणा की थी |

हमने कहा- तो फिर तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? तुम्हें डर नहीं लगता ? उनके डर से तो इस समय दुनिया का बुरा करने वाली सभी ताकतें थर-थर काँप रही हैं और एक तुम हो कि प्रतिबन्ध का सीधा चेलेंज मिलने पर भी बेशर्मी से अट्टहास कर रहे हो ? 

सिंगल यूज़ प्लास्टिकासुर बोला- जब आदमी मंच पर होता है और सामने लोग तालियाँ बजा रहे हों तो फिर वक्ता को कुछ होश नहीं रहता |वह जोश-जोश में जाने क्या-क्या बोल जाता है ? खुद को जनन्नियन्ता और सर्वशक्तिमान समझने लगता है |

तोताराम ने पूछा- तो क्या मोदी जी अब तुम्हारा कुछ नहीं करेंगे ? क्या उनका संयुक्त राष्ट्र संघ का भाषण भी एक जुमला ही था ?

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बोला- ये जुमला-वुमला तो राजनीति वाले जानें |मुझे तो अपने वाट्स ऐप ग्रुप से मेसेज आया है-  केंद्रीय पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने स्पष्ट किया है कि महात्मा गाँधी की १५० वीं जयंती पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाने की मोदी जी की योजना टाल दी गई है |अब उन्होंने सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने की अपील की है |अधिकारियों ने बताया कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती और नौकरियाँ जाने के इस माहौल के बीच छह चीजों पर प्रतिबन्ध लगाना ठीक नहीं रहता |

हमने पूछा- तो फिर यह भी 'मन की बात' की तरह 'आस्था चैनल' ही निकला ?

तोताराम ने कहा- इसका क्या मतलब ? अच्छे काम लाभ-हानि के गणित से नहीं होते |जो समाज और देश के लिए हानिकारक है उसे समाप्त किया ही जाना चाहिए | लोग बेरोजगार हो जाएँगे इसलिए जेबकटी, मिलावट, ठगी, वेश्यावृत्ति, शराब, बीड़ी-सिगरेट,पोर्न साईट, जालसाज़ी को ज़ारी रखा जाए ? यदि यही बात थी तो नोटबंदी क्यों की ? उससे तो कुछ भी नहीं हुआ |सब नोट वापिस आ गए |जो थोड़ा-बहुत ब्लेक मनी था वह भी व्हाईट हो गया |

बोला- जी, हम इतनी बड़ी-बड़ी बातें क्या जानें ? हम तो आप, आपके समाज और अर्थव्यवस्था द्वारा सृजित कूड़ा हैं |

इसके साथ ही सिंगल प्लास्टिकासुर अदृश्य होकर डिस्पोजेबल गिलासों के ढेर में बदल गया |

हम दोनों भी हनुमान मंदिर की और चल पड़े |


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Dec 4, 2019

शिक्षक की अशालीनता



शिक्षक की अशालीनता 

देश में लाखों शिक्षक हैं अच्छे भी, बुरे भी |स्कूल में लडकियां छेड़ने वाले, स्कूल में दारू पीकर आने वाले, स्कूल में हाजरी लगाकर चले जाने वाले, पूरे महिने की हाजरी एक ही दिन लगाकर तनख्वाह उठाने वाले, बच्चों के मध्याह्न भोजन का गेहूँ बाज़ार में बेच देने वाले |और अपने वेतन से बच्चों की मदद करने वाले, एक्स्ट्रा क्लास लेकर रिजल्ट सुधारने वाले भी |बुरे अध्यापक पुरस्कृत हो जाते हैं, मनचाही जगह पर बने रहते हैं और अच्छे अध्यापक जब चाहे, जहां चाहे ट्रांसफर कर दिए जाते हैं | पुरस्कार का तो प्रश्न ही नहीं |

जब हमने आज छपा एक समाचार तोताराम को दिखाया कि 'कलेक्ट्रेट में पिछले २३ साल से भूमाफिया के खिलाफ धरने पर बैठे एक ५७ वर्षीय अध्यापक विजय सिंह  के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है और कलेक्टर ने उसका धरने वाला डेरा-डंडा फिंकवा दिया है |  

तो बोला- अच्छा किया |वैसे इस मास्टर का अपराध तो इतना संगीन है कि सीधे-सीधे जेल में डाल दिया जाना चाहिए | जबकि इस पर केवल धारा ५०९ ही लगाई है |

हमने कहा- तो क्या भूमाफिया के खिलाफ धरना देना इतना बड़ा अपराध है ?


बोला- मामला करेक्टर का है |और हमारी सरकार कोई ढीले करेक्टर वाली थोड़े ही है |यह हमारी शुचिता, संस्कार, शालीनता वाली सरकार है |ब्रह्मचारियों के नेतृत्त्व वाली सरकार है |हम ऐसी चरित्रहीनता बर्दाश्त नहीं कर सकते ?



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हमने कहा- बताएगा भी या स्टेटमेंट ही झाड़ता रहेगा |

बोला- तुझे पता है इस मास्टर में अपना अंडरवीयर कलेक्ट्रेट में खुले में सुखा दिया |अब बता कोई महिला यदि इसे देखेगी तो क्या सोचेगी ?

हमने कहा- और फिल्मों में, विज्ञापनों में, दुकानों पर क्या-क्या नहीं दिखाया जाता ? पुतलों को चड्डी-चोली पहने दिखाया जाता है, एक प्रकार की चाकलेट में लड़की को पटते दिखाया जाता है, कंडोम और यौन शक्ति वर्द्धक वस्तुओं के विज्ञापन दिखाए जाते हैं |और फिर कठुआ और कन्नौज वाले कांड हो जाते हैं वे ? 

बोला- तो क्या होगया ? १३५ करोड़ के देश में कोई बहुत ज्यादा नहीं हैं | ऐसे तो महाभारत में भरी सभा में द्रौपदी के साथ क्या नहीं किया गया था ? त्रेता में भी अपहरण हो ही गया |

हमने कहा- तोताराम, क्यों हमारा मुंह खुलवाता है |बेटी बचाओ का नारा देना और बात है और बेटियों को बचाना और बात है |सब पार्टियों में बड़े-बड़े लम्पट भरे पड़े हैं लेकिन क्या किया जाए ? सबको भले नहीं, बल्कि येन-केन-प्रकारेण जिताऊ उम्मीदवार चाहियें |असली बात यह है कि यह मास्टर ३००० बीघा सरकारी ज़मीन हडपने वाले नेताओं के विरुद्ध सप्रमाण आन्दोलन कर रहा है |लालच दिए जाने पर भी नहीं मान रहा है इसलिए इसे मारने की धमकियां भी दी गईं | 
 नौकरी छोड़कर दूसरों के लिए 21 साल से धरने पर बैठा है ये शिक्षक
इसकी बात में दम है इसलिए कानूनी रूप से तो इसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो ऐसे ही डराया-धमकाया जाएगा और परेशान किया जाएगा |ज़रूर जो लोग सरकारी ज़मीन दबाए हुए हैं वे सत्ताधारी दल के हैं |इसलिए कलेक्टर भी सक्रिय हो गई |

देश में रेड लाईट एरिया क्या पाकिस्तान के लोग चलाते हैं ? यह तो अमरीका वाला वही नाटक है कि घर के बाहर कपड़े सुखाना वर्जित है लेकिन कहीं भी चुम्बन-आलिंगन करना जायज़ है |

बोला- खुले में धूप में कपड़े सुखाने से एक तो ऊर्जा की बचत होगी और कपड़ों को धूप लगने से वे कीटाणुहीन भी हो जाते हैं |फिर अमरीका में बाहर कपड़े सुखाना क्यों  मना है ?

हमने कहा- बन्धु, हमने वहाँ के कानून का अध्ययन तो नहीं किया लेकिन वहाँ एक बार घर के पिछवाड़े रस्सी बांधकर कपड़े सुखा दिए |कुछ देर बाद पड़ोसन ने लकड़ी का बना एक स्टेंड सा लाकर हमें दिया |जब बेटे को यहाँ बात बताई तो पता चला कि यह स्टेंड इस बात का संकेत हैं कि इस पर सुखा कर इसे बेसमेंट या गैराज में भी रखा जा सकता है |
अजीब तो लगा, लेकिन ऐतराज़ करने की यहाँ नफासत प्यारी भी लगी |






    



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