Jul 27, 2021

विजय-दिवस या मूर्खता दिवस


विजय-दिवस या मूर्खता दिवस 


आज तोताराम थोड़ा जल्दी और अखबारवाला कुछ देर से आया सो दोनों का मेल हो गया. इधर हम चाय लाये और उधर तोताराम ने अखबार में से 'शेखावाटी भास्कर' निकाला. पहले ही पेज पर किसी पहाड़ी पर कई जवान आकाश में बंदूक लहरा रहे थे तो थोड़ी सी भिन्न वर्दी में कुछ जवान चट्टानों पर पड़े थे. 

हमने पूछा- क्या दुश्मन अपने सीकर तक भी आ पहुंचे हैं. 

बोला- मोदी जी के रहते ऐसा कैसे संभव हो सकता कि कोई दुश्मन इधर आँख भी उठा कर देख ले. साले को घर में घुसकर मारेंगे जैसे कि जब से यूपी में योगी जी आए हैं बदमाशों की हवा टाइट है. न तो कोई अपराध हो रहा है और न ही किसी को ऑक्सीजन कालाबाज़ारी करने की हिम्मत हुई. तभी तो ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा..

हमने पूछा- तो फिर शेखावाटी वाले पेज पर युद्ध का दृश्य कैसे छपा है ?

बोला- अब जब देश में सब ओर अमन-चैन है, सब प्रेम से रह रहे हैं, किसी बात की कोई कमी नहीं है; न रोजगार की, न चिकित्सा और न ही शिक्षा की. तो फिर मनोरंजन और उत्सव मनाने के लिए कुछ तो चाहिए कि नहीं.

हमने कहा- क्या तुझे याद नहीं अटल जी के समय में आज़ादी के पचास साल के उत्सव में दिल्ली में लोगों ने इण्डिया गेट पर 'रन फॉर फ्रीडम' का नाटक किया था. यह बात और है कि आज़ादी की बजाय फ्री में बाँटी जा रही टोर्चों और बरसातियों के लिए स्वयंसेवक झगड़ने लगे. वैसे जब वास्तव में आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तब तो ये कहीं सुबह-सुबह संस्कृति और संस्कार के नाम पर पता नहीं देश के किस-किस अज्ञात शत्रु के विरुद्ध लाठी और तलवारें भांज रहे थे.  खैर, पढ़ तो यह युद्ध का दृश्य कैसा है ?

बोला- आज कारगिल विजय-दिवस है. इसलिए अपने हर्ष पहाड़ पर एन सी सी के कैडेट ने कारगिल-विजय का यह दृश्य 'री क्रियेट' किया है. जैसे बोट क्लब पर या फिर जयपुर के स्टेच्यू सर्किल से विधान सभा तक के दांडी मार्च का दृश्य.

हमने कहा- जैसे मोदी जी ने सुभाष की ड्रेस में लाल किले में और फिर उसके बाद अंडमान के मरीना पार्क में सलामी ली थी. या फिर अभी चुनावों में बंगाल में रबीन्द्रनाथ के विग्रह में घूमे थे. हो सकता है यह विग्रह अब गुरु नानक का भ्रम पैदा करने के लिए पंजाब चुनावों में काम आए. 

बोला- शर्म नहीं आती, शहीदों के बलिदान और मोदी के फकीरत्त्व का मज़ाक उड़ाते. 

हमने कहा- हमने शहीदों का मज़ाक नहीं उड़ाया है. उनके प्रति हमारे मन में अपार श्रद्धा है. लेकिन हम शहीदों के बलिदान को चुनाव के लिए भुनाने के पक्ष में भी नहीं हैं.

बोला- तो फिर तुझे कारगिल विजय दिवस से क्या परेशानी है ? 

हमने कहा-लेकिन सच बात तो यह है  कारगिल-विजय हमारे जवानों की वीरता का उत्सव है लेकिन साथ ही हम यह भी मानते हैं कि यह उन नेताओं की मूर्खता को याद करने का दिवस भी है जो शांति-बस-यात्रा के चक्कर में कारगिल में निगरानी की अनदेखी कर बैठे या जिनके झूला झूलने के चक्कर में डोकलाम और पेगोंग हो गये. या फिर बहुत पहले 'हिंदी चीनी भाई भाई' के चक्कर में नेफा में नेफा उधड़ गया था.


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Jul 26, 2021

चल, तैयार हो जा


चल, तैयार हो जा


आज तोताराम ने चाय जैसी तुच्छ वस्तु को दरकिनार करते हुए आदेश दिया- चल, तैयार हो जा. 

हमने कहा- कोई फायदा नहीं. २१ जून को रिकार्ड बनाना था सो कागजों में लग गए ८५ लाख टीके. २१ जून को रिकार्ड बनाने के चक्कर में कई दिनों से रोक रखा था कार्यक्रम और अब कई दिनों तक रुका रहेगा.इसलिए अब कहीं चलने का कोई फायदा नहीं. यह भी हो सकता है कि कुम्भ में रोज ५० हजार टीके लगाने का ठेका लेने वाली किसी निजी कंपनी की तरह वैसे ही कागज पर तेरे-मेरे नाम से टीका लगा दिया गया हो. 

अखबार में आज कहीं टीकाकरण का कोई समाचार नहीं है.रामकिशन यादव ने कई दिन पहले ही कह दिया था कि जो मर रहे हैं वे डाक्टरों के इलाज और टीके से मर रहे हैं और जो बचे हुए हैं वे उनके काढ़े से बचे हुए हैं.  वैसे  अपने सीकर में हनुमान जी और गणेश के ऑनलाइन दर्शन का समाचार ज़रूर है. अब जब 'विघ्न विनाशक गणेश' और' नासे रोग हरे सब पीरा वाले' हनुमान जी अवेलेबल हैं तो चिंता किस बात की.   

बोला- प्रभु, ब्रेक लगाएं तो निवेदन करूं. तू तो देशभक्तों की तरह 'ग' सुनते ही गाँधी और 'न' सुनते ही नेहरू को गाली निकालने लगता है .मैं किसी टीकाकरण केंद्र में चलने के लिए नहीं कह रहा हूँ. मैं तो दिल्ली चलने की बात कर रहा हूँ.

हमने कहा- दिल्ली क्या करेंगे ? वहाँ देश को संभालने वाले बहुत से सेवक पहले से ही पिले पड़े हैं. न खुद साँस ले रहे हैं और न ही देश को साँस लेने दे रहे हैं. 

बोला- तभी तो. देश को कभी भी हमारी ज़रूरत पड़ सकती है. 

हमने कहा- हमारी तरह निर्देशक मंडल में बैठे अडवानी जी वहीँ दो किलोमीटर की दूरी पर उपलब्ध हैं सेवा के लिए. कोई उन्हें ही उलटे मन से याद नहीं कर रहा है तो हमारी किसे दरकार है. 

बोला- कल तूने सुना नहीं महामहिम का अपने गाँव में भाषण. दिल्ली में किसे बताते अपना दर्द. दिल्ली में लोग अपने मन की बात ज्यादा सुनाते हैं लेकिन दूसरे के दिल की नहीं सुनते. पता नहीं किस तरह चार साल सहन करते रहे बेचारे जी रमानाथ जी. अब जब अपनों के बीच पहुंचे तो दर्द छलक आया.बोले- टेक्स कट कर मुझे जो मिलता है वह तो एक मास्टर से भी कम है.

हमने कहा- वास्तव में है तो बहुत पीड़ाकारक कि कहने को तनख्वाह ५ लाभ और वास्तव में मिलें दो लाख. लोग पांच लाख के हिसाब से अपेक्षाएं करने लगते हैं जबकि आपकी औकात है मात्र २ लाख की. इससे अच्छा तो यह हो कि वेतन दो लाख बताओ और दो लाख ही दो. नाम बेचारे कोविंद जी का और जमा हो जाता है पीएम केयर्स में.

बोला- और दुःख की बात तो यह है कि रमानाथ जी ने मोदी जी पर विश्वास कर लिया और यह नहीं पूछा कि टेक्स कितना कटेगा. कटेगा या नहीं. हाथ में कितना वेतन आएगा. शाखा के पक्के और ईमानदार स्वयंसेवक ठहरे. मोदी जी की बात टाल नहीं सके. इससे तो वकील ही अच्छे थे. रसीद दो दस हजार की और लो दो लाख. 

हमने पूछा- तो अब रामनाथ जी क्या करेंगे ?

बोला- मुझे तो लगता है कहीं ज्यादा दुखी होकर इस्तीफा न दे दें. यदि ऐसा हुआ तो राष्ट्रपति के वेतन का भ्रम खुल जाने के बाद क्या पता कोई भला आदमी इस पद के लिए तैयार भी हो या नहीं. हो सकता है वेंकैया जी भी इसी तनाव से गुजर रहे हों और रमानाथ जी की तरह वे भी इस्तीफा दे दें. ऐसे में एक एक दिन में कृषि कानून जैसे राष्ट्र हित के अनेक बिल फटाफट कौन पास करेगा ? इसीलिए तो तुझे दिल्ली चलने को कह रहा हूँ. हो सकता यह जिम्मेदारी हमें ही संभालनी पड़े. हमारी पेंशन तीस-तीस हजार रूपए है और हम कोई टेक्स भी नहीं देते. और वैसे भी हमें कोई हीनभावना नहीं आएगी क्योंकि हम उस पद से रिटायर हुए हैं जिससे इस गरीब देश का राष्ट्रपति भी ईर्ष्या करता है. 


 
हमने कहा- लेकिन तोताराम, हम तत्काल नहीं चल सकते. घर में तो सारा दिन एक लुंगी में पंखा झलते काट देते हैं. अब पहले वाला ज़माना नहीं है जब हमने १९५५ में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू को पिलानी से एक एम्बेसडर कार में अपने गाँव चिड़ावा के रेलवे स्टेशन आते देखा था और फिर वहाँ से लोहारू-जयपुर वाली ट्रेन में लग कर आये विशेष डिब्बे में बैठकर नवलगढ़ के पोद्दार कॉलेज के स्वर्णजयंती समारोह की अध्यक्षता करने जाते देखा था.  आजकल के हिसाब से हमारे पास दिल्ली चलने के लिए वातानुकूलित स्पेशियल ट्रेन या आठ सौ करोड़ का विशेष प्लेन नहीं है. इस लू में यदि टें बोल गए तो कोई 'शववाहिनी गंगा' की तरह टीलों में फेंक देगा और कोई चौथा स्तम्भ इस खुशामदी समय में रिपोर्टिंग भी नहीं करेगा. या फिर कोई संवेदनशील पारुल खक्कर कविता लिखाकर बिना बात देशभक्तों की गलियों का निशाना बनेगी. 

बोला- तो क्या देश को ऐसे ही राम भरोसे छोड़ दें ?

हमने कहा- तो अब क्या किसी और के भरोसे चल रहा है ? हर मौके पर सरकार और सेवक 'राम कार्ड' ही तो खेल रहे हैं.

बोला- मास्टर, यदि यहाँ से दिल्ली के लिए सीधी कार कर लें और रात को ठण्ड-ठण्ड में चले चलें तो क्या तू तैयार है ?

हमने कहा- तब तो विचार किया जा सकता है. तब भी एक शर्त है कि भले ही हम राष्ट्रपति बन जाएँ लेकिन किसी मंदिर-मस्जिद के लिए कोई चंदा नहीं देंगे. आज राम मंदिर है, कल मथुरा का कृष्ण मंदिर, परसों काशी का विश्वनाथ मंदिर और इसी तरह तेंतीस करोड़ देवी-देवता हैं. किस किस को चन्दा देंगे. हमारी पेंशन तो मुल्ला जी की दाढ़ी की तरह ताबीजों में ही चली जायेगी. 


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Jul 24, 2021

फिक्स स्वयंवर


फिक्स स्वयंवर 



आज तोताराम आया तो उसकी चाल में एक विशेष प्रकार का गाम्भीर्य और राजसीपन था. लग रहा था जैसे वह जानबूझकर इतना संभलकर चल रहा है  मानों ज़रा सा भी कोई क़दम इधर-उधर हुआ तो कहीं धरती का संतुलन न बिगड़ जाए. आते ही बरामदे में बैठने से पहले ही बोला- अर्ज़ किया है.

हमने कहा- जिसको राष्ट्र को संबोधित करने या मन की बात करने की आदत पड़ जाती है वह किसी के दुःख-दर्द को नहीं सुनता. उसे तो बस, अपनी कहनी होती है और कहकर ही रहता है. सो तू हमारे मुकर्रर या इरशाद कहने का इंतज़ार थोड़े ही करेगा. कर डाल जो भी अर्ज़ करना है. 

तोताराम ने अर्ज़ किया-

यूना मिस्र ओ रोमाँ सब मिट गए जहाँ से 

कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी

हमने कहा- जो सिद्धान्तहीन, स्वाभिमानी नहीं होते, प्राण बचाने के लिए किसी के भी आगे समर्पण कर देते हैं वे हमेश बने रहते हैं जैसे तिलचट्टे, केंचुए आदि. खुद्दार लोग टूट जाते हैं लेकिन झुकते नहीं.  आँधी, बाढ़ और टूगान में बड़े पेड़ टूटते हैं, घास का कुछ नहीं बिगड़ता.

बोला- इस बहाने तू हमारे अब की बार दो सौ पार का नारा लगा कर दहाई पर ही अटक जाने का मज़ाक उड़ाना चाहता है और घास के बहाने 'तृण मूल'  को स्थापित करना चाहता है.

हमने कहा- तुम्हारे पास जादुई नेता है अबकी बार महाराष्ट्र में २८८ विधान सभा सीटों में से ३०० पार हो जाना. हम तो तेरे इस गर्वान्वित होने का रहस्य जानना चाहते हैं. 

बोला- दुनिया में आज भी महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन हमारे यहाँ अब भी लड़कियों को इतनी स्वतंत्रता है कि वे स्वयंवर रचा सकती हैं.अपनी संस्कृति की महान परम्पराओं का निर्वाह कर सकती है, कल बिहार के सारण शहर में एक लड़की ने स्वयंवर रचाया और लड़के ने बाकायदा धनुष तोड़कर दुल्हन को जीता. 

हमने कहा- आजकल वीडियो वाइरल करवाकर चर्चा में आने और दो पैसे कमाने का चक्कर है. लोग उचित समय पर मरते हुए आदमी मदद करने की बजाय वीडियो बनाते रहते हैं. वैसे ही जैसे हीरोइनें अपने उत्तेजक फोटो इस्ताग्राम पर पोस्ट करके पैसे कमाती हैं. ये सब पूर्वनिर्धारित नाटक होते हैं.जैसे गुजरात के एक जोड़े ने चर्चित होने के लिए मोदी जी को खुश करने वाला शौचालय का नारा छपवाया और मोदी जी को शादी का कार्ड भेजकर बिना बात का कवरेज पा लिया. स्वयाम्वारों का पूर्व निर्धारित होना कोई आज की ही बात थोड़े है !

बोला- मतलब ?

हमने कहा- विश्वामित्र जी का तड़का को राम से मरवाकर राम को अयोध्या ले जाने की बजाय जनकपुरी ले जाना और वहाँ उस वाटिका के पास ठहराना जहां सीता रोज सुबह पुष्प लेने जाती थी. राम को भी वहीं पुष्प लेने के लिए भेजना, सब क्या तुम्हें पूर्वनिर्धारित नहीं लगता. सुभद्रा और अर्जुन के भागने में कृष्ण का हाथ नहीं था. आजकल भी दिल्ली में संसद से राष्ट्रपति भवन तक फोटोग्राफरों को लेकर नेताओं का पदयात्रा करना क्या कोई दांडी मार्च होता है ? जब वास्तविक दांडी मार्च हो रहा था, सामने डंडा, लाठी और बंदूक लिए सिपाही दिख रहे थे तब पता नहीं ये  वीर कहाँ छुपे हुए थे. ऐसे नाटक करने वाले सब 'माफ़ी वीर' हैं फिर चाहे वह अंग्रेजों से मांगनी हो या फिर इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी से . ऐसे ही इन वीरों ने १९९७ में इण्डिया गेट पर स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती पर बरसातियों और टोर्चों के लिए झगड़ा किया था.

सरयू तट पर दीये जालाने से और हेलिकोप्टर से रामलीला के राम-लक्ष्मण को बुलाकर उन्हें तिलक करने से रामराज नहीं आता . वह त्याग, मर्यादा और सुशासन से आता है. 

किसी देश की संस्कृति ऐसे नाटकों से विकसित नहीं होती. उसके मूल्यों की रक्षा के लिए बलिदान देना होता है.जैसे शरणागति की रक्षा के लिए रणथम्भौर के हम्मीर अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते-लड़ते मारे गए थे. कल्पना कर यदि उस धनुष की जगह किसी ने मज़ाक में ही कोई मज़बूत सा धनुष रखवा दिया होता और उसे न तोड़ पाने की स्थिति में वह शादी केंसिल हो जाती ? कभी नहीं. 



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Jul 23, 2021

रामराज उर्फ़ ब्रह्मदत्त तकनीक

रामराज उर्फ़ ब्रह्मदत्त तकनीक 


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे सूचना दी- तोताराम, रामराज आ गया. 

बोला- तो क्या छुट्टी गया हुआ था ? 

हमने कहा- रामराज कभी छुट्टी पर नहीं जाता. वह कोई कर्मचारी थोड़े है. वह तो अच्छे शासन-प्रशासन का प्रतीक है. यदि सौभाग्य से कोई काम करने वाला भला जनसेवक आ जाता है तो लोगों को अनुभव होने लगता है. यदि कोई लफ्फाजी वाला ढपोरशंख आ जाए तो न कुछ बोलते बने, न सुनते. बस, झींकते रहो. 

बोला- तो फिर ऐसे क्या बोल रहा है जैसे रामराज कोई अपने एरिया का पोस्टमैन है जो छुट्टी से लौट आया है. शुद्ध तत्सम में बोल- रामराज्य आ गया. यदि रामराज्य आ गया तो गुजरात की कवयित्री पारुल खक्कर को बता जो गंगा में तिरते शवों को देखकर 'साहब' से व्यंग्यपूर्वक  कहती है कि आपके 'रामराज्य' में  गंगा शववाहिनी हो गई है. या फिर योगी जी को बता जो गंगा किनारे लाखों दीये जलाकर राम और उनके राज्य को ढूँढ़ रहे हैं.

हमने कहा- तोताराम, हम तो एक सामान्य सी बात कहना चाहते थे लेकिन तूने उसे बड़े-बड़े संदर्भो से जोड़ दिया.कल हम टीका लगवाने गए थे लेकिन लगा नहीं.

बोला- अकेले-अकेले भकोसने की फ़िराक में रहने वालों के साथ यही होता है. मुझे भी बुला लेता तो साथ-साथ चले चलते. 

हमने कहा- तू चलता तो भी हमारे देश के कर्मचारी नियम कायदे कानून के बहुत पक्के हैं. नियमविरुद्ध कुछ नहीं करते. इसीलिए तो कह रहा हूँ कि रामराज्य आ गया. राम के पूर्वज हरिश्चंद्र हुए हैं जिन्होंने श्मशान का टेक्स चुकाए बिना सगे बेटे का भी अंतिम संस्कार नहीं होने दिया. 

बोला- साफ-साफ बता हुआ क्या ?

हमने कहा- हमने पहला टीका ३ अप्रैल को लगवाया था और उसे ८४ दिन आज होते हैं.सो कर्मचारियों ने साफ़ कह दिया कि टीका किसी भी हालत में आज नहीं लगेगा. कल लगवा लेना. 

बोला- आज कहाँ से लगेगा. आज और कल तो छुट्टी है टीके वालों की. वैसे कानूनन वह भी ठीक ही था. कल मतलब आज के बाद जो वर्किंग डे आये तब.

हमने कहा- हमने तो उससे कहा था कि जब हमने लगवाया था तब तो चार हफ्ते के गैप की बात थी. अब तो ८४ में बीस घंटे ही तो कम हैं. लगा दो लेकिन नहीं माना. नियम की ऐसी पालना तो रामराज्य में ही होती होगी. 

बोला- यह कोई रामराज्य नहीं है. यह भी नाटक है. पहले तो टीका-उत्सव मना रहे थे और जब टीके कम पड़ गए तो चार की जगह १२ हफ्ते का गैप कर दिया. यदि अब भी टीके नहीं आते तो कह देते एक ही काफी है, दूसरे की ज़रूरत ही नहीं है. ये सब ब्रह्मदत्त जी शर्मा जी वाली तकनीक है.

हमने पूछा- टीकाकरण के इस काल में टीकों के अपव्यय और मितव्ययिता की बातें तो सुनने में आईं लेकिन यह ब्रह्मदत्त तकनीक क्या है ?

बोला- भूल गया अपने गाँव में म्युनिसिपैलिटी के नीचे वाली दुकान में बैठने वाले ब्रह्मदत्त जी शर्मा को जिनसे हम बचपन में जब तब पेट दर्द के बहाने चूरन लेने जाते थे.  वे खाने के बारे में पूछे जाने पर गरीब से दिखने वाले बच्चे से कहते थे कि जब, जो मिले खा लेना और ठीक-ठाक से दिखने वाले बच्चों को खाने के बारे दस पथ्य-परहेज बताते थे. तो टीकाकरण में भी सरकार का यही नियम है-

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय

जब टीका आ जाय तब टीका उत्सव होय 

मंथन का निष्कर्ष- पहले टीके की इम्यूनिटी कब तक रहती है ? जब तक दूसरा टीका न लग जाए.



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Jul 22, 2021

धन्यवाद.. थैंक्यू..शुक्रिया...

धन्यवाद.. थैंक्यू..शुक्रिया...


हम बरामदे में बैठे थे. तोताराम जैसे ही पास आया, हमने कहा- आ बैठ. 

बरामदे के कोने पर बैठते हुए बहुत विनम्रता से बोला- धन्यवाद.

हमने कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया. अभी चाय बनने में कुछ देर थी. हमने पूछा- पानी लेगा /

बोला- नहीं, धन्यवाद.

पत्नी चाय ले आई. चाय लेते हुए तोताराम बोला- शुक्रिया, भाभी जी.

हमने कहा- आज तो बड़ा लखनवी अंदाज़ में लग रहा है. कभी शुक्रिया, कभी धन्यवाद. क्या बात ?

बोला- आदरणीय, कृतज्ञता सभ्यता और संस्कृति का बहुत महत्त्वपूर्ण अंग होता है. इससे समाज के विकास का अनुमान लगाया जा सकता है. हमारी प्राचीन सभ्यता में तो हम भोजन से पहले ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के मन्त्र बोलते थे. नहाते थे तो नदियों के नाम लिया करते थे.सुबह-सुबह समस्त सृष्टि के कारणस्वरूप सूर्य को जल चढ़ा कर नमस्कार करते थे. चर्च के स्कूलों के होस्टलों में आज भी बच्चे भोजन से पहले ईश्वर का धन्यवाद करते हैं लेकिन आज आधुनिकता के चक्कर में हम किसी का भी, किसी भी अच्छे काम के लिए धन्यवाद करना तक भूल गए हैं. पानी के लिए पूछने के उत्तर में कम से कम इतनी कृतज्ञता प्रकट करना तो मेरा फ़र्ज़ बनता ही है. वरना कौन किसी को पानी तक के लिए भी पूछता है ?

इतने में संयोग से अखबार वाला भी आ गया. नियमानुसार चौक में फेंकने की बजाय उसने अखबार तोताराम को पकड़ा दिया. तोताराम ने अखबार लेते हुए अखबार वाले लड़के को भी 'थैंक यू' कहा.

हमने कहा- तोताराम, यह क्या चक्कर है. अंधभक्तों की तरह अनुपयुक्त स्थान और अवसर पर भी 'जय श्री राम' या 'मोदी-मोदी' चिल्लाने लगता है.

बोला- जब गंगा में लाशें तिर रही थीं तब तो तेरे जैसे सुधारक शववाहिनी गंगा चिल्लाने लगे लेकिन अब जब मोदी जी ने दुनिया में एक दिन में सबसे ज्यादा टीके लगवाने का रिकार्ड बना दिया तो तुम्हारे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा है. 

हमने कहा- यह रिकार्ड भी एक नाटक है और वह 'टीका-उत्सव' भी एक बचकाना तमाशा था.अरे, जो काम करना है चुपचाप करते रहो. अमरीका ने फटाफट अपनी ४६% आबादी को दोनों टीके लगवा दिए और अपने यहाँ के ४% आबादी को लगे दोनों टीकों का रोज गाना गाते रहते हो ! एक किलो गेहूँ को दस लाख मिलीग्राम लिखने से वज़न नहीं बढ़ जाता.

बोला- ऐसा करने से जनता की हिम्मत बढ़ती है. यदि केंद्रीय विद्यालयों के बच्चों से परीक्षाएं निरस्त करने के लिए धन्यवाद दिलवाने के बहाने कृतज्ञता के संस्कार दिए गए उससे भी तुम जैसे लोगों को तकलीफ हो रही है ?  

 हमने कहा- तोताराम, शिक्षा-संस्कार और अश्लील तरीके से अपनी प्रशंसा करवाने में फर्क होता है. २१ जून को योग दिवस के साथ टीकों का रिकार्ड बनाना था और उससे पहले ही कोलेजों और विश्वविद्यालयों को आदेश दे दिए गये कि वे सबको मुफ्त टीका लगवाने के नाम पर मोदी जी को धन्यवाद देते हुए बड़े-बड़े बैनर लगवाएं. रिकार्ड बनने और टीके लगना शुरू होने से पहले ही 'धन्यवाद' की व्यवस्था !  धन्यवाद के चापलूसी भरे इस राष्ट्रीय अभियान में हम भी सोचते हैं कि समय पर सूर्योदय करवाने के लिए 'प्रधानमंत्री जी' को धन्यवाद देते हुए  एक बैनर बरामदे में लगवा ही दें. 

बोला- अति उत्तम. इसका तो १९७५ में मुम्बई के मिनर्वा सिनेमा हाल में 'शोले' के सीमेंटेड बैनर की तरह बनवा दे. न सूरज का उगना अनियमित होगा और न ही तेरे बैनर के अप्रासंगिक होने का खतरा. 

 



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Jul 21, 2021

पेगासस की पोल


पोल और पेगासस 


तोताराम कल नहीं आया. कारण पूछा तो बोला- ऐसे ही. 

हमने कहा- कहता है सत्संग के लिए आता हूँ, चाय तो बहाना है. और अब ? हमें सब पता है.जब आम हों और वे भी दसहरी, खाने की पूरी छूट तो फिर चाय का किसे ध्यान रहता है ? नाश्ते में भी आम और फिर लंच में भी आम. 

बोला- बात तो सच है लेकिन तुझे पता कैसे चला ?

हमने कहा- हमने तेरे फोन में पेगासस घुसवा दिया है.

बोला- यह हिबिस्कस जैसा क्या है ?

हमने कहा- इसी का कोई भाईबंद है खुसर-फुसर, फुस-फुस. जैसे किसी की खिड़की या दीवार से कान लगाकर उल्टा-सीधा कुछ भी सुन सुनाकर ले भागो.

बोला- तो अगर हम लोग ऐसा किसी नेता या बड़ी कंपनी के सी ई ओ के फ़ोनों में घुसा दें तो ?   

हमने कहा- यह बहुत महंगा काम है. दस लोगों के लिए साढ़े आठ करोड़ का खर्चा है.

वैसे उससे होगा भी क्या ? इनके फोन टेप किये बिना ही दुनिया जानती है कि ये क्या बात करते होंगे ? आपस में एक दूसरे को लाभान्वित करके रिश्वत का लेन-देन करते होंगे. इनके फोटो में दिखने वाली बॉडी लेंग्वेज से क्या सब पता नहीं चल जाता ? और जहां तक नेताओं की आपसी बात की बात है तो वह हेनरी किसिंगर और निक्सन की इंदिरा गाँधी के बारे में निजी और बाद में प्रकट हो गई राय से समझा जा सकता है. ये सब ऐसे ही टुच्चे और घटिया लोग होते हैं. आज भी बहुत से छुटभैय्यों की बातों से पता चल जाता है कि इनकी किस प्रकार की ट्रेनिंग होती है ? क्या है इनकी 'नैतिक बाइबिल' ?

बोला- सुना है अपनी सरकार ने भी चालीस पत्रकारों और कुछ नेताओं के फोन में ऐसा ही कुछ घुसवा दिया है. भीमा कोरेगाँव वालों के कम्प्यूटरों में भी सुना है इसीके द्वारा घुसपैठ की गई थी. इस प्रकार तो भारत का लोकतंत्र रवांडा और अज़रबैजान जैसे देशों की श्रेणी में आगया है.


हमने कहा- यह सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों का मुंह बंद करने के लिए ज़रूरी है.


बोला- लोकतंत्र में नीतियों का विरोध कोई पाप थोड़े ही है. 


हमने कहा- ज्यादा खिचखिच से त्वरित, निर्विघ्न और पूर्ण विकास में रुकावट आती है. इसलिए ऐसी खिचखिच को बंद करवाने के लिए ऐसा कुछ होना चाहिए.


बोला- लेकिन तूने यह इतना महँगा सिस्टम क्या मेरे आम खाने की जासूसी करने के लिए डलवाया है ?


हमने कहा- इतना महँगा काम हमारे बस का थोड़े है ? यह तो पेट्रोल-डीज़ल के दाम रोज बढ़ा सकने वालों के लिए संभव है. शाम को बंटी इधर से निकला था तो तेरे बारे में पूछा तो पता चला कि उसके ननिहाल से आमों की एक पेटी आई है और तू सुबह से आमों  पर पिला पड़ा है. 


बोला- वैसे हमारे देश को ऐसे किसी 'पोल पकड़ पेगासस' की ज़रूरत भी नहीं है. हम तो सूंघकर ही बता सकते हैं कि किसके यहाँ कल शाम को किसका छोंक लगा था ? कल किसने शाही पनीर खाया था ? किसके फ्रिज में किस जानवर का मांस रखा है ? कौन ऋषि हमारा इन्द्रासन झपटने के लिए तपस्या कर रहा है ?  दाढ़ी, पायजामे, टोपी, चोगे से ही 'चादर फादर' का पता लगा लेते हैं और तय कर लेते हैं ?  किस पर कैसे, कौनसी धारा लगवानी है ?  फोन टेप करने की क्या ज़रूरत है, पुलिस के द्वारा इक्कीसवीं शताब्दी में जन्मे युवक से उन्नीसवीं शताब्दी में मारे गए लिंकन की हत्या कबुलवा सकते हैं.


हमने कहा- और मान ले जिसकी जासूसी करें वह दो दिन बाद अपनी पार्टी में आ जाए तो इतना खर्च बेकार गया ना. ऐसे जीरो परसेंट इंटरेस्ट वाले इन्वेस्टमेंट से क्या फायदा ? यूएपीए, एनएसए और ईडी किस मर्ज़ की दावा हैं ? 


बोला - अपने वाले मंत्रियों के पीछे भी जो पेगासस लगा रखा है उसका क्या मतलब है ?


हमने कहा- राजनीति कहती है कि बाप का भी विश्वास मत करो. 








 



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Jul 19, 2021

पेट दर्द का इलाज़

पेट दर्द का इलाज़ 


आज तोताराम ने आते ही घोषणा कर दी- चाय नहीं पिऊंगा. भाभी से बोल, थोड़ी-सी अजवायन की फंकी और नमकीन शिकंजी की व्यवस्था कर दे.

हमने कहा- तेरा इलाज़ हमारे पास नहीं है. लाख शिकंजी पी या अजवायन की फंकी ले. उद्धव ठाकरे की सरकार नवम्बर २०२४ तक पूरे पांच साल चलेगी.

बोला- मेरे पेट दर्द से उद्धव की सरकार का क्या संबंध है? वहाँ के बारे में वहाँ के राज्यपाल जानें. जिसको चाहें रात में बुलाकर शपथ दिला दें. फिर चाहे भद्द ही पिटती रहे. देवेन्द्र फड़नवीस जानें. अमित जी जानें जिन्हें सरकारें मैनेज करना है. बंगाल में टैगोर बनकर दो सौ पार होने वाले और अब महाराष्ट्र में शिवाजी बनकर तीन सौ पार पहुँचाने वाले मोदी जी जानें.

हमने कहा- लेकिन महाराष्ट्र में २८८ सीटें ही हैं.

बोला- जिनके नाम से सब कुछ मुमकिन हो सकता है वे ऐसा भी कर सकते हैं. इसी को तो कमाल कहते हैं.पर क्या मेरा पेट दर्द भी उद्धव की सरकार की तरह २०२४ तक चलेगा?

हमने कहा- यह तो हम क्या कहें लेकिन पेट दर्द और उद्धव की सरकर का कोई न कोई संबंध है तो ज़रूर. यदि ऐसा नहीं होता तो संजय राउत क्यों कहते- जिनके पेट में दर्द है वे सुन लें. पांच साल चलेगी उद्धव सरकार.

बोला- क्या जब तक उद्धव की सरकार नहीं गिरेगी मेरे पेट का दर्द ठीक नहीं होगा?

हमने कहा- संजय जी ने अपने निदान में तेरा नाम तो नहीं लिया था. फिर भी लोकतंत्र में सरकारों, मुख्यमंत्रियों आदि का देश की जनता के पेट दर्द से कुछ न कुछ संबध होता ज़रूर है. नहीं तो वे ऐसा क्यों कहते.

बोला- अगर संजय राउत की बात का कोई सीधा या घुमावदार अर्थ हो सकता है और उसका १०००- १५०० किलोमीटर दूर तक प्रभाव हो सकता है तो फिर संजय राउत का यह निदान मेरे लिए नहीं मोदी जी और अमित जी के लिए है. मेरी तरफ से तो संजय राउत को लिख दे कि वे केंद्र में ५० साल तक राज करने के अमित जी के दावे की तरह महाराष्ट्र में सौ साल तक राज करें. मुझे कोई ऐतराज नहीं है. तू शिकंजी बनवा तो सही. सब ठीक हो जाएगा.

हमने कहा- लगता है इस प्रकार का पेट दर्द वर्तमान ही नहीं बैक डेट से भी हो सकता है.तभी जो १५ अगस्त १९४७ को जन्मे भी नहीं थे, जिन्होंने स्वाधीनता की लड़ाई में नाखून और बाल भी नहीं कटवाए थे वे भी नेहरू-गाँधी और इंदिरा को लेकर जब-तब, गाहे-बगाहे पेट दर्द से पीड़ित होते रहते हैं.

बोला- क्या इस पेट दर्द का कोई इलाज़ भी है या नहीं? क्या इसी तरह पीढ़ियों तक चलता रहेगा?

हमने कहा- यह तो तभी संभव है जब पूरी दुनिया की इतिहास की पुस्तकों से १८५७ से २०१४ तक के पन्ने ही स्थायी रूप से फाड़ दिए जाएँ.



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Jul 16, 2021

मोदी जी दिखाई नहीं दिए

मोदी जी दिखाई नहीं दिए 


तोताराम के बैठने से पहले ही हमने अपना एक सामान्य और सहज प्रश्न उछाला- तोताराम, आज मोदी जी दिखाई नहीं दिए !

बोला- वाह मास्टर, आज तो कुछ ज्यादा ही लम्बी फेंक रहा है. ऐसे बोल रहा है जैसे मोदी जी मेरी तरह रोज ही तेरे साथ चाय पर चर्चा करने के लिए आते रहते हैं. 

हमने कहा- भले ही मोदी जी तेरी तरह रोज हमारी खोपड़ी खाने के लिए नहीं आते और उनका आना हो भी नहीं सकता. लेकिन उनकी उपस्थिति हमारे लिए सुबह की सुहानी हवा, ब्रह्ममुहूर्त की प्रेरक बेला और भीषण गरमी में शाम की शीतल चांदनी. और ऐसी उपस्थिति किसी भौतिक उपस्थिति की मोहताज़ नहीं है. 

बोला- यह कविता रहने दे और साफ़-साफ़ बात कर.

हमने कहा- सुबह नेट पर समाचार पढ़ रहे थे तो ब्रिटेन में आयोजित  'जी-७ समिट' के फोटो पर नज़र पड़ी तो उसमें नौ लोग बैठे थे लेकिन मोदी जी कहीं दिखाई नहीं दिए. उनमें से कुछ को तो हम पहचानते हैं. पता नहीं ये दो और कौन थे ?

बोला- इन सात के अलावा यूरोपियन यूनियन के एक प्रतिनिधि के अतिरिक्त आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और भारत आमंत्रित मेहमान भी है. 








हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो नहीं थे. उनको तो दुनिया में सब पहचानते हैं. भीष्म या वशिष्ठ जी की तरह दुग्ध धवल दीर्घ दाढ़ी. सबसे अलग ही धज होती है अपने मोदी जी की. लेकिन जब नौ लोग पहुंचे तो मोदी जी क्यों नहीं गए. अब तो नया वाला प्लेन भी आ गया. उसमें जाते तो कुछ रोब पड़ता कि भारत किसी 'जी-७' से कम नहीं है. 

बोला- यहाँ भी तो जल्दी से जल्दी कोरोना को मिटाना है जिससे उत्तर प्रदेश के चुनावों की तैयारी में लगा जा सके.और फिर जब पेट्रोल इतना महंगा हो गया है तो अच्छा है कुछ बचत भी हो जाए.

हमने कहा- कहीं कोरोना से तो नहीं डर गए ?

बोला- सॉलिड इम्यूनिटी वाले एक ही तो नेता हैं दुनिया में. अरे, जब बंगाल के चुनाव में लाखों की रैली करते भी नहीं डरे तो दस लोगों में बीच जाने में कैसा डर ? 

हमने कहा- मोदी जी ज़ूम से शामिल हुए लेकिन मज़मा लूट लिया. ऐसा मन्त्र फेंका है कि अपने को दुनिया का फन्ने खां समझाने वालों को भी घर जाकर समझ आएगा कि यह 'एक पृथ्वी : एक स्वास्थ्य' का क्या मतलब होता है.

बोला- इससे पहले यह नारा होना चाहिए 'एक पृथ्वी : एक प्रधान'. 

हमने कहा- उससे क्या फायदा हो जाएगा ?

 बोला- जब पूरी पृथ्वी का एक प्रधान होगा तभी तो वह सारी पृथ्वी को एक प्रकार की स्वास्थ्य व्यवस्था के तहत ला सकेगा. 

हमने कहा- तो क्या एक प्रधान होने से भारत में तो स्वास्थ्य व्यवस्था एक प्रकार की और समान हो गई ?

बोला- कह तो दिया कि केंद्र सबको टीका मुफ्त लगवाएगा.

हमने कहा- यह कोई कहना नहीं होता. पहले बिहार और फिर बंगाल में कह रहे थे- हमें जिताओ तो टीका फ्री में देंगे.पहली बात तो सरकार का पैसा किसी पार्टी या नेता का नहीं होता जो दान में या वोट के बदले में बांटा जाए. जिनको कोवीशील्ड वाला टीका लग गया उनके बारे में यही तय नहीं हो पा रहा है कि उन्हें दूसरी डोज़ कब लगेगी. अमरीका जैसे देश में बाइडेन ने आते ही सबको धड़ाधड़ फ्री में टीका लगा दिया और अब मास्क फ्री हो गया. 

 यहाँ तो टीका है नहीं और टीका उत्सव मनाया जा रहा है. टीके के रेट ऐसे तय हो रहे हैं जैसे सब्जी मंडी में कोई चीमड़ ग्राहक धनिये के दो तारों के लिए सब्जी वाली से माथापच्ची कर रहा हो.  दिव्य वैदिक ज्ञान वाले पापड़, गोबर और काढ़े से इलाज कर रहे हैं.कोरोना में अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों का इलाज करने वाले डाक्टरों, नर्सों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है.उन्हें बोगस और फ्रॉड बताया जा रहा है. ऊपर से यह और- किसी के बाप में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाए.  ऐसे अंधविश्वास और अवैज्ञानिकता फैलाने वालों को तो कुछ कहते बनता नहीं और बात करेंगे 'एक पृथ्वी : एक स्वास्थ्य' की. 

मरने वालों की सही संख्या बताने से तो डर लग रहा है. टेस्ट कम करके महामारी को कम दिखाया जा रहा है.मुर्दों को फूंकने के लिए न लकड़ी है और न ही श्मशान. गंगा में तिर रही लाशों से भावुक होकर कविता लिख देने वालों को 'साहित्यिक नक्सल' का फतवा दिया जा रहा है. 

बोला- तो उपाय क्या है ?

हमने कहा- तोताराम, यह तो कोई बड़ा एम.बी.ए. बता सकता है. हम तो इतना जानते हैं कि विनम्रता, संवेदना से सबके साथ समान इंसानी व्यवहार कीजिए, दुनिया बिना किसी जुमले और नारे के अपने आप ही एक परिवार बन जाएगी. 

अचानक तोताराम का चेहरा एक अलौकिक आभा से देदीप्यमान हो गया. बोला- मास्टर, यदि यह 'एक पृथ्वी : एक प्रधान' का नारा लोगों को समझ आ गया और वे सहमत हो गए तो ऐसे में इस पृथ्वी के एक प्रधान के रूप में मोदी जी से बेहतर और कौन हो सकता है ? बड़ा विजन, उदार, वैदिक, वैश्विक सोच और साक्षात् प्रजापति ब्रह्मा जैसा भव्य विग्रह. भारत तो खैर, सच्चे अर्थों में 'विश्वगुरु' बन ही जाएगा, यह विश्व भी धन्य हो जाएगा.  लगता है कलयुग समाप्त होने वाला है और इस पृथ्वी पर सतयुग आने वाला है. 











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Jul 15, 2021

मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं

मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं 


आज तोताराम गुनगुनाते हुए आया. फिर बरामदे में बैठा-बैठा भी गुनगुनाये जा रहा था- मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं.

हमने कहा- हमसे पूछ रहा है या खुद ही चिंतन-मनन या मंथन में लगा हुआ है ?

बोला- जो सुने और उचित रास्ता बतादे उसका भी भला और जो न बताये उसका भी भला.अन्यथा चले जाएँगे अपनी झोली उठाकर, जहां जैसा समझ में आएगा. 

हमने कहा- इसमें क्या समझने की बात है. जैसे जहां टुकड़ा दिखाई देता है कुत्ता वहीँ चला जाता है. तू भी चला जा जहां मंत्री पद मिले, जहां जाकर घोटालों की जांच से मुक्ति मिले, जहां दो पैसे मुफ्त के खाने को मिले, जहां बिना हाथ-पैर हिलाए केवल जुबान चलाने या हाँ में हाँ मिलाने से तर माल मिले. 

बोला- नेताओं की तुलना कुत्ते से मत कर. वे सब पार्टी के अनुशासित सिपाही होते हैं जो सिद्धांतों और विचारों से संचालित होते हैं. स्वार्थ के लिए सिद्धांत और पार्टी नहीं बदलते. 

हमने कहा- विषयांतर हो रहा है फिर भी बता, कुलदीप सेंगर किस सिद्धांत के तहत सपा, बसपा में होते हुए भाजपा में पधारे. मुलायम के दाहिने हाथ रहे और 

व्हिस्की में विष्णु बसें, औ' रम में श्रीराम

जिन में माता जानकी, ठर्रे में हनुमान 

जैसे मन्त्र के उद्गाता  नरेश अग्रवाल किस रामराज्य की स्थापना के लिए भाजपा में शामिल किये गए.या अब वे राम मंदिर में दारू का ठेका खोलेंगे ? दोनों तरफ ठगी की नीयत थी सो हो गए इधर-उधर. 

खैर, तू अपनी दुविधा बता. किधर जाना चाहता है ? तू ही जाना चाहता है या तुझे कोई लेने को भी तैयार है ? तू कोई २१ विधयक लेकर आने वाला ज्योतिरादित्य सिंधिया तो है नहीं कि दोनों सेवक दल लोकतंत्र की रक्षा के लिए तुझे लेने को मरे जा रहे हों. वैसे भी जब आडवानी जी ही अवधिपार सामान की तरह भण्डार-गृह में स्थापित कर दिए गए हैं तो तुझे बरामदे के निर्देशक मंडल  रूपी मृत्युलोक से उठाकर नहुष की तरह स्वर्ग में प्रक्षेपित करने के लिए कौन विश्वामित्र मचल रहा है ?

बोला- तू खुद भी साँस ले और मुझे भी मौका दे. मुझे अपनी औकात और स्वभाव मालूम है. मेरा मंत्रीमंडल में टिके रहना उसी तरह मुश्किल है जैसे हर्षवर्द्धन, जावडेकर, रवि शंकर प्रसाद आदि का. आजकल के तेज़ और ध्रुवीकरण की तात्कालिकता में बने रहने के लिए प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर, तेजस्वी सूर्या, अनिल विज, प्रज्ञा ठाकुर, साक्षी महाराज, ज्ञानदेव आहूजा आदि की तरह साहसी और 'गोली मारो सालों को' जैसे समरसतावादी  नारे देने वाला होना चाहिए.  तुझे पता होना चाहिए कि 'चित्रकूट' में एक ख़ास प्रकार का राष्ट्रीय चन्दन घिसा जा रहा है जिससे माथा चुपड़कर एक ख़ास प्रकार  के लोगों को 'कूटने' का एक अतिसाहसी मन्त्र रचा जा रहा है-

चादर और फादर मुक्त भारत. चादर और फादर समझता है ना ?

लेकिन मेरी समस्या यह नहीं है.

हमने पूछा- तो वत्स, अपनी उलझन स्पष्ट करो.






  बोला- आदरणीय, आजकल नंबर वन बन चुके उत्तरप्रदेश को कुछ और भी ऊपर पहुंचाने के लिए योगी जी ने 'हम दो हमारे दो' जैसा कुछ धाँसू नारा दिया है, जबकि मोदी जी देश और विदेश में बार-बार जनसंख्या को संभावना बताते रहे हैं.

28 सितंबर, 2014 को न्यूयॉर्क के  मेडिसिन स्क्वायर पर अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा था- देश की 65 फीसदी युवा आबादी ही देश की दूसरी ताकत है. पीएम ने इसे 'डेमोग्राफी डिविडेंड' कहा था. उन्होंने कहा था कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश पूरी दुनिया के लिए बाजार है. पीएम ने यह भी कहा था कि इसी शक्ति के भरोसे भारत नई ऊंचाइयों को छूएगा.

इससे पहले भी तोगड़िया, शंकराचार्य, साक्षी महाराज जैसे हिन्दू राष्ट्र के शुभचिंतक कुछ ऐसा ही फरमा चुके हैं. अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि किधर जाऊं ? 

हमने कहा- तू अब किधर भी जाने लायक नहीं रहा. जो उत्पादकता की श्रेणी में हैं और देशभक्ति का ठेका लिये हुए हैं वे अपनी जानें-समझें. जहां अकेले और कुँवारे के लिए भी रोटी-रोजी का जुगाड़ नहीं है वहाँ से दो से अधिक बच्चे वालों को सुविधाएं कम होने की फिक्र करना कोई मतलब नहीं रखता. वैसे हमारे अनुसार तो शादी के झंझट में पड़ना ही नहीं चाहिए. यदि कर लो तो बच्चे पैदा मत करो, और बच्चे हो भी गए हों तो घर छोड़कर भाग जाओ. फिर कुछ भी करो, कुछ भी बोलो, इधर जाओ या उधर जाओ.

मोदी जी और योगी जी दोनों ही महान हैं, वे जो कहते हैं वह अनुभूत और शाश्वत सत्य है. इधर-उधर का चक्कर छोड़.

महाजनो येन गतः सः पन्थाः  

महाभारत की कथा (यक्ष-प्रश्न) है कि छद्मवेषधारी 'धर्म' ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया, "कः पन्थाः?" (कौन सा मार्ग यथेष्ट है?) इस पर युधिष्ठिर का उत्तर था-

तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम् 
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥

(तर्कः अप्रतिष्ठः, श्रुतयः विभिन्नाः, एकः ऋषिः न यस्य मतं प्रमाणम्, धर्मस्य तत्त्वं गुहायाम् निहितं, महाजनः येन गतः सः पन्थाः।)

अर्थ: जीवन जीने के असली मार्ग के निर्धारण के लिए कोई सुस्थापित तर्क नहीं है, श्रुतियां (शास्त्रों तथा अन्य स्रोत) भी भांति-भांति की बातें करती हैं, ऐसा कोई ऋषि, चिंतक, विचारक नहीं है जिसके वचन प्रमाण कहे जा सकें. वास्तव में धर्म का मर्म तो गुहा (गुफा) में छिपा है, यानी बहुत गूढ़ है. ऐसे में समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति जिस मार्ग को अपनाता है वही अनुकरणीय है. 






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Jul 10, 2021

मेहंदी का रंग


मेहंदी का रंग 


आज जैसे ही तोताराम आया हमने उसके सामने कोरोना कांड का नया एपिसोड रख दिया. देखा तोताराम, आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश बत्रा ने अपने आवेदनों पर आए केंद्र के जवाबों और सरकार द्वारा सार्वजनिक की गई जानकारी की तुलना करते हुए सवाल किया है कि यह कैसे संभव है कि 2 मई तक केंद्र ने केवल 16.23 करोड़ टीके प्राप्त किए थे, पर तब उसके द्वारा 23.18 करोड़ टीकों की खुराक वितरित या आपूर्ति की बात कही गई थी

बोला- तो क्या हो गया ? राजीव गाँधी के जमाने में केंद्र से चले १०० पैसों में से लाभार्थी तक मात्र १५ पैसे पहुंचते थे. हमारी सरकार के सिस्टम में एक तिहाई की ही तो गड़बड़ है. ६६% टीके तो पहुँच ही गए.

हमने कहा- राजीव एक निहायत सज्जन और स्पष्टवादी व्यक्ति थे. लोग उनके द्वारा लायी गई कम्प्यूटर से तैयार वाट्सऐप सेना के बल पर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्तासीन हैं लेकिन कभी उन्हें इस सूचना-क्रांति  के लिए धन्यवाद भी नहीं देते. हाँ, उनकी १५% वाली बात संदर्भ से काटकर प्रायः उद्धृत करते रहते हैं. राजीव गाँधी के कहने का मतलब यह नहीं था ८५% राशि का गबन हो जाता है. मतलब यह था कि सिस्टम को सरल और तेज होना चाहिए. कम्यूटरीकरण का उद्देश्य यही था. टेक्स वसूली में आधा तो विभाग पर ही खर्च हो जाता है.  

बोला- अब मोदी जी केंद्र से जितना भेजते हैं वह सारा का सारा लाभार्थी के खाते में पहुँच जाता है.

हमने कहा- तोताराम, तुझे क्या पता जल में रहने वाली मछली कब कितना पानी पी जाती है. राहत कामों के दस किलो गेहूँ में साढ़े आठ किलो ही बैठता है. और चना एक किलो की जगह आठ सौ ग्राम. आज भी निःशुल्क वितरण वाली पाठ्य पुस्तकें सौ की जगह नब्बे, रोड़ वाले ड्राइवर को सौ की जगह नब्बे लीटर डीजल भरते हैं, पेट्रोल पम्प पर तेल भरने वाले उस कर्मचारी को पसंद किया जाता है जो पांच की जगह पौने पांच लीटर तेल ही भरे. 

यह तो लोकतंत्र की मेहंदी है जो हर सेवक की आशा-आकांक्षाओं के हाथ पीले करती रहती है. सेवकों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ेगी उसी अनुपात में मेहंदी बांटने वाले हाथों में लग कर ही निबट जाएगी. हो सकता है एक दिन ऐसा भी आ जाए कि सारा विकास कागजों में ही हो जाए और तुझे पता ही नहीं चले कि अपना सीकर स्मार्ट सिटी बन गया.

बोला- लेकिन यह टीके वाला हिसाब कैसे मिलेगा ?

हमने कहा- होगा क्या.हो सकता है अबकी बार मेसेज आ जाए- यू हैव बीन सक्सेस्फुल्ली वेक्सीनेतेड विद कोवीशील्ड ओन  थर्ड ऑफ़ जून २०२१. तब किससे पूछने-बताने जाएगा. 

ऐसे ही मिल जाएगा हिसाब-किताब. जैसे मिस कॉल से पार्टी की सदस्यता दे दी जाती हैं.



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Jul 8, 2021

लौट के चाणक्य घर को आए


लौट के चाणक्य घर को आए 


जैसे ही तोताराम आया, हमने पूछा- आ गए ?

बोला- कहाँ से ?

हमने कहा- कहाँ से क्या, डोमिनिका से.

बोला- कहीं तेरा दिमाग तो नहीं चल गया ? मैं तोताराम हूँ. कल ही तेरे साथ चाय पी थी.आज फिर २४ घंटे बाद चाय पीने आया हूँ. मैं जब कहीं गया ही नहीं तो आने का प्रश्न ही कहाँ से उठता है ?

हमने कहा- हम तेरी बात नहीं कर रहे हैं. हम तो चाणक्य की बात कर रहे हैं.

बोला- चाणक्य अढाई हजार साल पहले हुआ है. उसके बारे में पूछना है तो उनसे पूछ जो चाणक्य बने फिरते हैं. जिन्होंने सारे राष्ट्र की ज़िम्मेदारी संभाल रखी है जबकि वास्तव में समझ गौशाला का चंदा खाने से अधिक नहीं है.

हमने कहा- हमें तो तू ही चाणक्य का बाप लगता है जो प्रश्नकर्ता को ही उलझा देता है. 

बोला- तो साफ-साफ कह कि तू भारतीय पुलिस के उस अभियान की बात कर रहा है जिसके तहत वे नीरव मोदी के मामा और बैंक का हजारों करोड़ रुपया लेकर भागे हुए मेहुल को स्पेशियल हवाई जहाज से वापिस भारत लाने के डोमिनिका गए थे.    

हमने कहा- हाँ, उसी की बात कर रहे हैं.

बोला- उसके बारे में तेरे ये चाणक्य यही सिद्ध नहीं कर सके कि मेहुल चौकसे भारत का नागरिक है.

हमने कहा- यह कैसे हो सकता है ?ये तो इस बारे में बड़े एक्सपर्ट हैं. किसी आदमी का नाम पूछकर ही बता देते हैं कि इसके पूर्वज कब, किस देश से आए थे. तभी तो नॅशनल पोपुलेशन रजिस्टर बना रहे हैं.

बोला- और करोड़ों रुपए खर्च करके सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में बनाए गए उस रजिस्टर को मानने में मुश्किल हो रही है. 

हमने कहा- तो फिर पूरी तैयारी के बाद भेजते.

बोला- अज्ञानी आदमी ज्यादा उतावला होता है. इससे पहले भी १९८९ में बोफोर्स का हल्ला मचाकर सत्ता में तो आ गए लेकिन ६४ करोड़ के तथाकथित घोटाले की जांच के लिए २४५ करोड़ रुपए खर्च कर दिए लेकिन नतीजा बाबाजी का ठुल्लू.  झांझ से ज्यादा के मंजीरे फूट गए. कुछ को सत्ता मिल गई कुछ का जनता के पैसे से विदेश भ्रमण हो गया. 

२०१४ में काले धन का १५ लाख वाला जुमला छोड़ा, किसी को सत्ता मिली, किसी का धंधा चमका.और अब मेहुल. फिर कुछ लोग इस बहाने विदेश भ्रमण कर आएँगे. नतीजा वही टांय-टांय फिस्स. जब नीयत ही साफ नहीं तो ऐसे ही होता है. सवाल तो यह पूछा जाना चाहिए कि भाग कैसे गया. 

शहाब जाफरी को तोड़ें-मरोडें तो-

तू इधर उधर की न बात कर यह बता कि मेहुल क्यों भगा

मुझे चौकसे से गिला नहीं तेरी चौकसी का सवाल है 


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Jul 7, 2021

सात साल बनाम साठ साल


 सात साल बनाम साठ साल 


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- अभी चाय के लिए थोड़ा रुक. चाय के साथ कुछ नाश्ते का प्रबंध भी है.

बोला- अवसर ?

हमने कहा- लोग तो आपदा में भी अवसर ढूँढ़ लेते हैं. कुछ लोग अवसर के लिए आपदा क्रियेट करते हैं. हम तो एक सामान्य दिन को एक सामान्य से अवसर में बदल रहे हैं. क्या कोई आपदा न होना ही अपने आप में एक अवसर नहीं है ?  

थोड़ी देर बाद पत्नी एक ट्रे में  एक प्लेट में नाश्ता और कप प्लेट में चाय लेकर आ गई. तोताराम बरामदे में फर्श पर बैठा था. हम खड़े हुए और कुछ झुककर उसे कप प्लेट में चाय पकड़ाई और पत्नी ने नाश्ते की प्लेट. बड़ी पोती ने तालियाँ बजाई और छोटी पोती ने फटाफट चार-पांच फोटो ले लिए. 

तोताराम अकबकाकर उठा, बोला- यह क्या नाटक है ? चाय पिला रहे हो या कोई महोत्सव मना रहे हो ?

हमने उसके सामने कल का अखबार रखते हुआ कहा- देख, पहचान. ये हैं कैलाश विजयवर्गीय जी. मँजे हुए सेवक. ज़मीन पर बैठी एक महिला हो सात अन्य सेवकों के साथ राशन दे रहे हैं. लगता है बहुत भारी है. कहीं गिर न पड़े इसलिए किसी आपात स्थिति में संभालने के लिए कई लोग आसपास खड़े हैं. एक अन्य व्यक्ति फोटो लेता भी दिखाई दे रहा है. 

बोला- वे तो मोदी जी द्वारा देश-सेवा के सात साल होने का उत्सव मना रहे हैं. 

हमने कहा- भगवान मोदी जी को शतायु करे. माशाल्लाह अभी तो जवानों को मात करते हैं. अभी तो बहुत सेवा करेंगे. यह 'अलां के सुशासन के पहले सौ दिन' 'फलां के शासन की पहली वर्ष गाँठ' तो वे मनाते हैं जिन्हें अपने बने रहने में हर वक़्त शंका बनी रहती है. तुम्हारा हमारे यहाँ चाय पीना एक बहुत बड़ा रिकार्ड है. साठ साल एक लम्बा अर्सा होता है. इतनी उम्र में तो एक अच्छा भला इंसान रिटायर होकर घर के बेड रूम से बरामदे में आ जाता है. लौह-पुरुष से निर्देशक मंडल हो जाता है. ऐसे में क्या हम तुझे निरंतर चाय पिलाने के साठ साल का यह छोटा सा उत्सव भी नहीं मना सकते ?   

बोला- मास्टर, क्या कहूँ लेकिन तू काम बहुत तुच्छ कर रहा है. 

हमने कहा- तो ये कैलाश जी विजयवर्गीय क्या कर रहे हैं ? दो किलो दाने देकर एक महिला के आत्मसम्मान का जनाज़ा निकाल रहे हैं. अरे, सेवा ऐसे की जाती है ? हमारे यहाँ तो कहा गया है कि दान ऐसे दो कि खुद के ही दूसरे हाथ को पता न चले. 

बोला- ये केवल दो किलो दाने ही नहीं हैं. इसके पीछे कितनी प्लानिंग, मनेजमेंट और प्रचार-प्रसार का आधारभूत ढाँचा है. अब यह निवेश ऊपर हाई कमांड तक जाएगा और उसके अनुसार हजारों गुना ब्याज के साथ वापिस लौटेगा. फिर कैलाश जी को ही दोष क्यों दे रहा है ? केंद्र सरकार के नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों के प्रबंधन ने विद्यार्थियों को हिदायत दी है - 

वे प्रधानमंत्री को धन्यवाद का पत्र लिखें, धन्यवाद देते हुए वीडियो बनाएँ और उन्हें ट्वीट करें। “इस कठिन समय में छात्रों के साथ खड़े होने के लिए और परीक्षा रद्द करने के लिए मैं प्रधानमंत्री मोदीजी को धन्यवाद देती हूँ।” अपनी स्कूल की पोशाक पहनकर एक छात्रा ने ट्वीट किया। ऐसा ही अनेक दूसरे छात्रों से करवाया गया।

तुलनात्मक अध्ययन हमेशा किसी स्थिति को समझने के लिए अच्छा होता है। इसी देश में केरल के मुख्यमंत्री हैं जिनकी सरकार के सुप्रबंधन के लिए पूरी दुनिया तारीफ़ कर रही है लेकिन आपने उन्हें ख़ुद या उनके किसी मंत्री को युद्ध जीत लिया, मैदान मार लिया जैसी भाषा में बात करते नहीं सुना होगा। एक भी आत्मप्रशंसा का वक्तव्य नहीं। वे लगातार चुनौतियों की बात कर रहे हैं। जनता को स्थिति की गंभीरता बता रहे हैं। कोई सतही या हल्की बयानबाज़ी न केरल से सुनाई पड़ी और न मुंबई या महाराष्ट्र से। 

हमने कहा- हम तो माला भी गौमुखी में हाथ रखकर फेरते हैं कि कहीं इसका फल इंद्र न ले जाए. राम-रावण युद्ध में रावण की सेना के निरंतर छीजते जाने के लिए तुलसी कहते हैं- 

छीजहिं असुर दिवस अरु राती

निज मुख कहें सुकृति जेहि भाँती 

अपने मुख से अपने सत्कार्यों की चर्चा करने से भी उसका पुण्य समाप्त हो जाता है. ये तो फोटो खिंचवाकर जाने कहाँ-कहाँ प्रचार करेंगे. इससे कोई पुण्य नहीं मिलने वाला. अपने राजस्थानी में भी एक कहावत है-

ऐरण* की चोरी करै, कर ै सुई को दान 

ऊँचा चढ़कर देखर्या कद आवै विमान 

  (*निहाई, लोहे को कूटने के लिए नीचे रखा जाने वाला लोहे का टुकड़ा, अहरन.)

निहाई चुराकर सुई का दान करने वालों के लिए स्वर्गारोहण के लिए कोई विमान आने वाला नहीं है.

बोला- इन्हें स्वर्ग थोड़े ही जाना है.  यह तो पोलिटिक्स है.  इन्हें तो इस सेवा का प्रचार करके पद और पॉवर पाना है. लेकिन तेरी कौन सी चिरसंचित कामना अपूर्ण रह गई जो इस कीचड़ में उतरना चाहता है. 

हमने कहा- लोग तो संन्यास की उम्र में देश में घूम-घूम कर तरह-तरह के फैंसी ड्रेस शो करते फिर रहे हैं.  हमारा  क्या इसी बहाने परिवार का एक ग्रुप फोटो भी नहीं हो सकता ?

बोला- तो फिर एक फोटो और हो जाए. अबकी बार इस कप पर तेरा और भाभी का फोटो भी चिपका दे.


 

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Jul 2, 2021

कोवीशील्ड का काँटा

कोवीशील्ड  का काँटा


जब आप किसी भी काम या कारण से एक निश्चित समय पर, एक निश्चित रूट पर आने-जाने लगते हैं तो फिर आप और आपको उस दौरान मिलने वाले लोगों और आप के बीच बिना कोई बात किये भी एक रिश्ता बन जाता है. यदि साथ-साथ चलें तो वह रिश्ता कहीं तक भी पहुँच सकता है. इसीलिए हमारे यहाँ विवाह में सप्तपदी होती है अर्थात जब एक युवक-युवती का अपरिचित जोड़ा सात कदम साथ-साथ चलता है तो उनमें एक ऐसी समझ विकसित हो जाती है कि वे जीवन भर साथ निभा सकने के काबिल हो जाते हैं.

सो १ अप्रैल २०२१ को कोरोना का कोवीशील्ड का एक टीका लगवाने के चार हफ्ते बाद से हम और तोताराम सुबह आठ बजे एस.के. अस्पताल जाने लगे हैं. अब वहाँ का स्टाफ ही नहीं गेट वले, पार्किंग वाले, रास्ते के बहुत से रेहड़ी वाले, घर लौटते दूध वाले, ऑटो और बस वाले हमें पहचानने लगे हैं. जैसे ही सड़क के किनारे खड़े हुए एक ऑटो वाला रुका. बोला- एस.के.

हमने पूछा- तुम्हें कैसे पता ?

बोला- इस समय इधर जाने वाले सभी बुजुर्ग कोवीशील्ड का एक टीका लगवाए हुए ही होते हैं.

खैर, अस्पताल पहुंचे तो स्टाफ वाले हमें देखकर वैसे ही मुस्कराए जैसे किसी बस या ट्रेन में परिचित हो चुके भीख माँगने वाले भिखारी और डेली पेसेंजरको एक दूसरे को देखकर मुस्करा लेते हैं. उनमें केरल की भी एक नर्स है. बोली- बाबा, आज भी 'इल्ले'.मतलब आपका कोवीशील्ड वाला टीका नहीं है. 

तोताराम बोला- सब अपने-अपने धंधे के लिए च्यवनप्राश के अलग-अलग नाम रखते हैं फिर चाहे वह डाबर का हो या वैद्यनाथ का; रामकिशन यादव का हो या डबल श्री रवि शंकर का. दोनों में ही आँवला कम और शकरकंद ज्यादा होता है. इम्यूनिटी जितनी बढ़ती है उसकी पोल कोरोना ने खोल दी. आप तो कोवेक्सीन वाला ही लगा दो. 

नर्स बोली- ना बाबा, हम ये रिस्क नहीं लेंगा. हो सकता है यू पी में गोरखनाथ और राम जी बचा लेंगा लेकिन इधर में मुश्किल हो जाएंगा.

तभी मार्शल रेस का एक कर्मचारी सुन रहा था बोला- थम इतने दिन ते चक्कर काटरे हो. इतणा तो पटरी पटरी चालते तो लोहारू पहुँच जाते. 

तोताराम ने पूछा- क्या वहाँ कोवीशील्ड का टीका लग रह्या है ?

कर्मचारी बोला- टीका तो नहीं है लेकिन हरियाणा सरकार ने रामकिशन यादव वाले नुस्खे की एक लाख खुराक खरीदी है.

हमने कहा- दो तरह की दवाइयां एक साथ ठीक नहीं हैं.

कर्मचारी बोला-  फिर तो ताऊ, थारा काँटा काढ़ने का एक ही उपाय है के इंजेक्शन ते थारा दोनों का कोवीशील्ड पाछा खींच ल्यां.

तोताराम बोला- भाई, आज के बाद हम कभी नहीं आएँगे. तू राष्ट्रवादी सरकार और डॉ. हर्षवर्द्धन समर्थित रामकिशन यादव की पैथी अपने पास ही रख.  लोग दो-दो डोज़ लेने के बाद भी तो मर जाते हैं. ज़िन्दगी होगी तो एक में ही बच जायेंगे. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach