Sep 28, 2020

सूट, बूट की सरकार


सूट, बूट और  सरकार 


कल दिन बड़ा चिपचिपा और सड़ियल रहा. रात को भी लग रहा था कि यह सब अनिश्चितकालीन कोरोना-कर्फ्यू की तरह लम्बा चलेगा लेकिन सुबह धूप निकल ही आई. हम भी विधायक रूपी कुलवधुओं को भाजपा के शोहदों द्वारा भगाए जाने के भय से क्षणिक मुक्ति पाए मुख्यमंत्री की तरह बरामदे में मगन-मन बैठे थे. तोताराम कब आया हमें पता ही नहीं चला जैसे कि त्रिपुरा में बिप्लव देब के शपथ-ग्रहण समारोह में मोदी जी को पता ही नहीं चला कि जिनके राम-रथ की खिड़की से लटककर वे अयोध्या पहुंचे थे वे अडवानी जी भी वहीँ मंच पर प्रणाम की मुद्रा में खड़े हैं.     

हमने पत्नी को आवाज़ लगाई- लगता है, आज तोताराम नहीं आएगा |उसकी चाय भी हमें ला दो. 

पत्नी आई और बोली- आप भी अजीब बातें कर रहे हो. यह बरामदे में कोने में कौन बैठा है ? तोताराम ही तो है. 

तोताराम ने मरी आवाज़ में कहा- अब मेरा क्या तो होना और क्या नहीं होना. मैं तो अवसादग्रस्त हूँ. हीनभावना से मरा जा रहा हूँ. बस, पेंशन के लालच में जिंदा हूँ नहीं तो लटक जाता बास्केट बॉल के खम्भे से. 

हमने कहा-  कोरोना के कारण सरकार के अतिरिक्त सारा देश ही अवसाद में है लेकिन तुझे लटकने के लिए बास्केट बॉल का खम्भा ही क्यों चाहिए ? सच्चा आत्महत्या करने वाला किसी खम्भे विशेष को नहीं ढूँढ़ता. वह तो किसी भी ट्रक के नीचे सिर दे देता है. धर्मेन्द्र की तरह टंकी पर चढ़कर हल्ला मचाकर जनता और मौसी को इकठ्ठा नहीं करता. जब तूने मोदी जी द्वारा तीन साल तक सातवें पे कमीशन के बारे में चुप्पी साधे रखने के बावजूद हताशा नहीं दिखाई तो आज ऐसा क्या हो गया कि तू अवसादग्रस्त हो गया ?

बोला- आज ही स्मार्ट फोन पर एक समाचार देखा कि अमरीका के प्रसिद्ध बास्केट बॉल खिलाड़ी माइकल जॉर्डन के ३५ साल पुराने जूते ४.६० करोड़ रुपए में नीलाम हुए जबकि हमारे १३५ करोड़ के हृदय-सम्राट, विकास-पुरुष, विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली नेता मोदी जी का सूट मात्र ४.३१ करोड़ रुपए में नीलाम हुआ. मोदी जी तो खैर, फकीर हैं, अपने सभी उपहार नीलाम करके वह राशि भी जनहित के कामों के लिए दान दे दी. वे सभी प्रकार के मान-अपमान से परे हैं, संत हैं लेकिन मैं तो साधारण आदमी हूँ. मैं तो अपने नेता के सूट के केवल ४.३१ करोड़ रुपए में नीलाम होने से शर्म के मारे मरा जा रहा हूँ. 


PM Modi's Suit Most Expensive Sold At Auction, Rules Guinness Records



अरे, ३५ साल पुराने बूट और वे भी एक काले आदमी के जिसे कोई भी गोरा पुलिस वाला मात्र २० डॉलर के एक नकली नोट के चक्कर में अपने घुटने से गरदन दबाकर मार सकता है, मोदी जी की सूट से भी महँगे नीलाम हुए. वह सूट जिसमें कम से कम  एक दो लाख के तो सोने के तार ही लगे हुए होंगे. जाने कितनी मेहनत और मन से किसी कलाकार ने बनाया होग. और ये जूते. एक तो साइज़ में ही इतने बड़े कि किसी के पैर में फिट न बैठें  और फिर खिलाड़ी के जूते. पसीने में सड़ रहे होंगे. 


jORDAN SHOES

हमने तोताराम की पीठ पर हाथ रखा और कहा- दिल छोटा मत कर. महानता का मूल्यांकन पैसों से थोड़े ही होता है. सभी महान और अमूल्य चीजें सस्ती ही नहीं बल्कि मुफ्त मिलती हैं जैसे धूप, हवा, रोशनी और यहाँ तक कि जीवन भी. घटिया और फालतू चीजों का ही ज्यादा हल्ला मचाया जाता है. क्लिंटन और मोनिका लेवेंस्की के अन्तरंग क्षणों से अभिषिक्त वह ड्रेस गाँधी जी के चश्मे से दस गुना दामों में बिकी तो क्या गाँधी का महत्त्व कम हो जाता है ? धन के आधार पर मूल्यांकन तो अतिसामान्य लोगों का काम है. 

बोला- मास्टर, इस सूट और बूट की बात से मुझे एक बात ध्यान में आई कि जब मोदी जी ने सूट नीलम ही कर दिया तो राहुल मोदी जी की सरकार को सूट-बूट की सरकार क्यों कहते हैं.  

हमने कहा- इस हिसाब से तो मोदी जी को बूट भी नीलम कर देने चाहियें तो फिर राहुल उन्हें केवल 'सरकार' कह कर बुलाएँगे. कितना शालीन, रौबदार और दिल छू लेने वाला मस्त संबोधन है- 'सरकार'. जॉर्डन के बूट और मोदी जी के सूट की अब तक की बात और है लेकिन यदि आज के दिन मोदी जी अपने बूट नीलम करें तो करोड़ों रुपए क्या, अरबों डॉलर बरस जाएँगे. 

बोला- लेकिन बूट के बिना सरकारें नहीं चलतीं. तभी तो मोदी जी ने राम मंदिर के शिला पूजन के समय कहा था-

भय बिन होय न प्रीत. 

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Sep 25, 2020

सच्चे हिन्दू की पहचान


सच्चे हिन्दू की पहचान 


सबसे छोटा भाई अपने बेटे-बहू के साथ सिंगापुर रहता है. परसों उसका फोन आया कि उसे पोता हुआ है. हालांकि इतनी दूर से तो बिना प्लेन के कोरोना भी नहीं आ सकता लेकिन सौरी (स्यावड़)ज़रूर इतनी दूर आ ही जाती है. परिवार में पास या दूर  किसी भी जन्म, मृत्यु और विवाह के बाद घर के मिट्टी के बरतन बदले जाते हैं. पुरुष अपनी जनेऊ भी बदलते हैं. हम इन बातों में बहुत विश्वास नहीं करते फिर भी जनेऊ बदलना कोई महँगा काम तो है नहीं सो धर्म और संस्कृति का नाटक करने में क्या बुराई है. 

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, इन दो-चार दिनों में जब भी बाज़ार जाए तो हमारे लिए दो जोड़े जनेऊ ले आना, बदलेंगे. सिंगापुर वाले भाई के यहाँ पोता हुआ है. 

बोला- जनेऊ तो ले आऊँगा लेकिन न तो तू संध्या वंदन करता और न ही गायत्री मन्त्र का जाप. यह बिना बात का नाटक करने से क्या फायदा ? तुझे कौनसा हिन्दू वोटरों को लुभाने के लिए राहुल गाँधी की तरह जनेऊ दिखाने की ज़रूरत पड़ने वाली है. 

हमने कहा- सो तो नहीं पड़ने वाली लेकिन क्या पता, कभी किन्हीं सच्चे हिन्दुओं में फँस जाएँ तो जान बचाने के लिए जनेऊ का सहारा लेना पड़ सकता है  ? 

बोला- तो क्या तू समझता है जनेऊ दिखाने या टीका लगाने मात्र से तुझे हिन्दू मान लिया जाएगा ? जनेऊ तो रुपए की तीन आती हैं |कोई भी पहनकर हिन्दू या ब्राह्मण बन जाएगा. 

हमने कहा- मोहन भागवत जी तो कहते हैं कि भारत में जन्म लेने वाला हर मनुष्य हिन्दू ही है. 

बोला- जब उनसे भी डिटेल में बात करेगा तो सच का पता चलेगा |कुछ सच ऐसे होते हैं जो संगठन के बड़े लोग मंचों पर नहीं बोलते;  प्रवक्ताओं से बुलवाए जाते हैं जैसे १२ अगस्त को एक टीवी बहस में संबित पात्रा ने कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव त्यागी से कहा- कि वह (वे नहीं) जैचंद है |तिलक लगाने से ही कोई सच्चा हिन्दू नहीं हो जाता. 
तो ऐसे में क्या गारंटी है कि तू जनेऊ पहनकर अपने को सच्चा हिन्दू सिद्ध कर सकेगा. 

तुझे पता होना चाहिए कि तथाकथित सच्चे हिन्दू गैर हिन्दुओं की 'घर वापसी' की बात तो बहुत करते हैं लेकिन जब कोई पूछता है कि घर वापसी के बाद इन्हें कहाँ फिट किया जाएगा ? तो कोई उत्तर नहीं मिलता. 'एक नूर ते सब जग उपज्या' वालों में ही देख ले सभी सिक्ख समान नहीं हैं. सब अपने मूल के अनुसार रविदसिया, जट और रामगढ़िया आदि रहते हैं. देश के गृहमंत्री रहे बूटासिंह भी अपनी मूल हिन्दू जाति के अनुसार दलित ही रहे. अभी हाल में ही अमरीका में एक गोरे पुलिस वाले द्वारा गरदन दबाकर मार दिया गया जोर्ज फ्लोयड क्या क्रिश्चियन बनने के बाद भी गोरे क्रिश्चियन के समान देखा-समझा गया. जब भंगी ही रहना है तो क्या हिन्दू भंगी, क्या मुसलमान भंगी, क्या सिक्ख भंगी और क्या ईसाई भंगी |इंसान का दर्ज़ा दो, तो बात बने. 

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी बात में दम है. बता, हम अपने को एक सच्चा हिन्दू और वह भी ब्राह्मण सिद्ध करने के लिए क्या करें ?

बोला- इस बारे में संबित पात्रा ने कोई नियमावली तो सार्वजनिक नहीं की है फिर भी किसी खास पार्टी को वोट देने, किसी खास नेता की जय बोलने से शायद तुझे सच्चा हिन्दू मान लिया जाए. 

हमने कहा- बन्धु, हमारा जैकारा सच के अतिरिक्त किसी और के लिए नहीं हो सकता. हम तो अपने संविधान के ध्येय वाक्य 'सत्यमेव जयते' ही बोलेंगे. 

बोला- एक उपाय और है; यदि तू एक ख़ास परिवार को गाली निकाल सके तो भी तुझे सच्चा हिन्दू और देशभक्त भी माना जा सकता है. 

हमने कहा- हमसे तो वह भी नहीं हो सकता. 

बोला- तो फिर 'घर मैं चुपचाप बैठ और 'राम रक्षा स्तोत्र' का पाठ कर. इस लोकतान्त्रिक देश में वे ही शायद तेरी जान बचा लें.  

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारा यह  पात्रा तो सुना है वास्तव में इलाज करने वाला डाक्टर है तो फिर सारे दिन टी वी पर क्यों झाँय-झाँय करता है. देश में वैसे ही डाक्टरों की बहुत कमी है. कोरोना में तो और भी ज़रूरत है |क्यों किसी अस्पताल में जाकर इलाज नहीं करता ?

बोला- वह संभव नहीं है क्योंकि यह केवल सच्चे हिन्दू की बीमारियों को जानता है और उन्हीं का इलाज करता है.  मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध, दलित, सिक्ख, शूद्र, कांग्रेसी, सपाई, बसपाई, कम्यूनिस्ट, दक्षिण की पार्टियों आदि को निकालने के बाद हिन्दू बचेंगे ही कितने ? और उनमें भी सच्चे हिन्दू कितने होंगे ? और जो बचेंगे वे ज़रूरी नहीं कि इससे ही इलाज करवाएं. और भी तो कई देशभक्त और सच्चे हिन्दू डाक्टर हैं. फिर क्या पता, कब ओपरेशन करते-करते कह दे कि जनेऊ दिखा नहीं तो काटे पेट की सिलाई नहीं करूँगा. 

 वैसे भी 'अनभ्यासे विषं विद्या' |

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Sep 22, 2020

लिखावट उर्फ़ विश्वास


लिखावट उर्फ़ विश्वास 


हम तो मोदी जी के 'बिना बात घर से न निकालने' की सलाह से पहले भी बिना बात कहीं नहीं जाते थे |जिनकी घर में कोई नहीं सुनता या सुनने वाला नहीं होता, उनकी तो मजबूरी होती है | बच्चे ड्यूटी पर जाते हैं तो आते समय सभी काम करते हुए आते हैं |बैंक, पोस्ट ऑफिस ज्यादा दूर नहीं हैं सो हम हो आते हैं | दवाई वाले के हम स्थायी ग्राहक हैं सो घर भिजवा देता है |


तोताराम आज सवेरे नहीं आया |अभी दस-साढ़े दस बजे दरवाजा खटका |वैसे यह समय न तो अखबार वाले का है, न ही दूध वाले का और न ही डाकिये के आने का |दरवाजा खोला तो तोताराम |

पूछा- सुबह क्यों नहीं आया ?

बोला- आज बाज़ार जाना है तो सोचा दो चक्कर लगाकर क्या करूंगा |बाज़ार जाते हुए ही 'हाय, हैलो' कर चलूँगा |

हमने कहा- हम सब समझते हैं |अभी कोई चाय नहीं बनेगी |

बोला- फिर वही तुच्छ बात |अभी चलता हूँ | कुछ मँगवाना हो तो बोल  |

हमने कुछ चीजों के नाम लिखकर कागज तोताराम को थमा दिया |उसने कागज हमें लौटाते हुए कहा- यह क्या लिखावट है !ज़रा ढंग से लिख |न तो तू डॉक्टर है और न ही दुकानदार कोई केमिस्ट जो कुछ भी दे देगा और तू खा लेगा |न ही तू मूसा है और न ही दुकानदार खुदा जो तेरा लिख पढ़ लेगा |अब तो ओडिशा में कोर्ट ने भी एक डाक्टर का नुस्खा न पढ़ पाने पर आदेश दिया है कि डॉक्टर साफ़, बड़े और कैपिटल अक्षरों में लिखा करें |


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हमने कहा- हो सकता है कुछ डॉक्टरों की लिखावट ठीक न हो लेकिन अधिकतर तो इसलिए घसीट कर लिखते हैं कि उन्हें  दावा के नाम की सही स्पेलिंग नहीं आती |बहुत से पंडित भी तो मन्त्र इस तरह बोलते हैं कि यजमान और इकट्ठे हुए भक्त गण ही क्या भगवान भी नहीं समझ पाता होगा |

बोला- एक हिसाब से तो ठीक है |संदेह का लाभ मिल जाता है जैसे किसी परीक्षार्थी की लिखावट समझ में न आने पर बोर्ड में परीक्षक यह सोचकर उसे पास कर देता है कि क्या पता ठीक ही लिखा होगा |पास ही कर दो |बिना बात रीचेकिंग में चक्कर तो नहीं पड़ेगा |

हमने कहा- यह बदमाशी यहीं नहीं है |एक बार हमें डायरिया हो गया |कुछ गोलियां मंगवाईं जिन पर इतने छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था कि हमसे न तो उसका मूल्य पढ़ा गया और न ही खुराक की मात्रा |

बोला- यह तो चलो, दवा वाले से पूछ सकते हैं लेकिन नेता अपने भाषणों में ऐसी-ऐसी बातें कर जाते हैं जिन्हें समझना तो वकील के वश का भी नहीं होता |२०१४ में चुनाव से पहले पंद्रह लाख रुपए खाते में भेजने के वादे को गड़करी ने जुमला कहकर पीछा छुड़ा लिया |

हमने कहा- तभी तो कहा गया है कि अंधविश्वास सुखमय जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है | फिर चाहे डाक के डिब्बे में पात्र डालना हो या कोई अनुष्ठान या किसी दवा का सेवन |या फिर किसी सामान्य या प्रधान सेवक का चुनाव | सब कुछ राम भरोसे |जबकि राम भी भी तो एक विश्वास ही है |







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Sep 19, 2020

जन्म दिन की बधाई


जन्म दिन की बधाई 


तोताराम एक अति सकारात्मक प्राणी है. उसकी संगति में व्यक्ति को दुखी होने का मौका ही नहीं मिलता जैसे मोदी के होते किसी भी भारतीय को किसी प्रकार की, कोई शिकायत का मौका नहीं मिलता. यदि किसी को कोई कष्ट है तो उसके लिए वे तत्काल कोई न कोई ' न भूतो न भविष्यति' जैसी कोई राष्ट्रीय योजना बना देते हैं. जब तक आप उसके फॉर्म भरकर, कोई न कोई ऐप डाउन लोड करके उससे जुड़ेंगे तब तक किसी और समस्या के लिए कोई नई योजना, नई तरह के फॉर्म और उससे जुड़ने के नए तरीके चर्चा में आ जाएंगे. और आप अपनी ही कोई न कोई कमी मानकर संतोष कर लेते हैं कि यदि समय पर फॉर्म भर देता तो कोई न कोई हल निकल ही आता. मोदी जी की योजना में कोई कमी नहीं. यह तो मेरी तत्परता में ही कोई कमी रह गई. 

आते ही बोला- बधाई हो आदरणीय, जन्म दिन की. 

हमने कहा- पहली बात तो आज हमारा जन्म दिन नहीं है. दूसरे तू हमें १८ अगस्त को  जन्म दिन की बधाई यथासमय दे चुका है. अब बिना बात हमें चाय के साथ एक-दो लड्डू की चपत लगाने की कोशिश मत कर. 

बोला- याद है तेरा जन्म दिन भी और दो लड्डू भी. आज तो तेरा नहीं, मोदी जी का जन्म दिन है. 

हमने कहा- तो जा दिल्ली, और दे आ बधाई. हम क्या करें? हमारे पास तो ट्विट्टर की व्यवस्था भी नहीं है, नहीं तो हम भी उन्हें बधाई दे ही देते. हालाँकि हम जानते हैं कि न तो मोदी जी उसे पढ़ते और न ही उत्तर देते. वे तो प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा को ज़वाब देते हैं और धोनी को पत्र लिखते हैं. 

बोला- आज मोदी जी का जन्म दिन है. चार समासों का ये कमाल, सत्रह सितम्बर सत्तर साल. एक बात नोट की. किस प्रकार 'स' की चार बार आवृत्ति से बनीकविता. उन्हीं की तरह हर बात में समास खोजने की कला का चरमोत्कर्ष.  






अब याद आया कि तेरे जन्म दिन के साथ भी ऐसा ही संयोग हुआ था- अठारह अगस्त और अठहत्तर. अठारह अगस्त को तू अठहत्तर साल का हो गया था. इसीलिए सोचा तुझे भी एक बार फिर इस समासात्मक संयोग के लिए बधाई दे ही दूँ. 

हमने कहा- धन्यवाद. 

बोला- ठीक लेकिन बुरा न माने तो एक बात कहूँ- अठहत्तर साल का हो जाने के बावजूद तेरी शक्ल पर ज्ञान और परिपक्वता का वह तेज नहीं जो मोदी जी के चेहरे पर मात्र सत्तर साल की आयु में है.

हमने कहा- क्षमता और योग्यता का आयु से कोई संबंध नहीं होता. अभिमन्यु, शंकराचार्य, विवेकानंद, झाँसी की रानी, भारतेंदु हरिश्चंद्र, भगत सिंह आदि तो चालीस साल के होने से पहले ही अपनी प्रतिभा से दुनिया को चकाचौंध करके चले गए थे. 
  
 





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Sep 17, 2020

हम करते नहीं बस, हो जाता है


हम करते नहीं, सब होता है 


तोताराम आया तो बड़ा खुश था |

हमने पूछा- क्या बात है ? तू तो ऐसे खुश हो रहा है जैसे रात को कृष्ण जन्म के साथ ही मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि पर कृष्ण मंदिर का शिला पूजन करके आ रहा है |

बोला- अब उसके बारे में क्या कहना और क्या पूछना ? वह तो तय हो चुका है |५ अगस्त २०२५ को वह भी कर देंगे |उसके बाद ५ अगस्त २०३० को बनारस में ज्ञानवापी वाली मस्जिद हटाकर बाबा विश्वनाथ के विशाल मंदिर का शिला पूजन भी कर देंगे |

हमने कहा- लेकिन जो कुछ करना सब एक साथ क्यों नहीं कर लेते ? इस प्रकार तो तू तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं के हिसाब से तो तू १६५ करोड़ वर्षों तक यही करता रहेगा | हैप्पीनेस इंडेक्स पर जनहित का कोई काम कब होगा ?

बोला- हैप्पीनेस का कोई निश्चिन्त पैमाना नहीं होता |इस देश की जनता जब इसीसे खुश है तो फिर कोई और नुस्खा क्यों अपनाया जाए |और फिर यदि बीमार की सभी बीमारियाँ एक साथ ही ठीक हो गई तो डाक्टर क्या उपवास करेगा ? लेकिन मेरी  ख़ुशी का कारण कुछ और है |सुना है, रूस ने कोरोना का टीका बना लिया है |

हमने कहा- लेकिन इससे तो रूस को खुश होना चाहिए |तुझे इससे क्या मिलने वाला है ?  लेकिन अमरीका के अनुसार उस टीके की प्रामाणिकता संदिग्ध है |

बोला- तुझे कैसे पता चला ?

हमने कहा- यह तो सिद्धांत की बात है |जैसे मोदी जी के अनुसार नेहरू जी का कोई भी काम देश के लिए ठीक नहीं हो सकता वैसे ही अमरीका के अनुसार रूस का कोई भी काम विश्वसनीय नहीं हो सकता |

बोला- फिर भी टीका यदि विकसित हो गया तो ख़ुशी की बात तो है ही |अपने देश में अब दुनिया में सबसे ज्यादा संक्रमित लोग मिलने लगे है |जल्दी ही हम संक्रमित होने वालों ही नहीं, मरने वालों में भी नंबर वन पर आ जाएंगे |

हमने कहा- अच्छा है, तब अपने आप कोई न कोई इलाज़ भी निकल ही आएगा |ग़ालिब ने कहा भी-

दर्द का हद से गुज़र जाना है दवा हो जाना |

जब करोड़ों की बेकारी की तरह कोरोना भी आम हो जाएगा तो वह भी कोई बात और काम का मुद्दा नहीं रहेगा |क्या आज़ादी से पहले लोग सारे दिन मलेरिया, चेचक की ही बातें करते रहते थे ? 

बोला- लेकिन अपने यहाँ सब कुछ 'होता' ही क्यों है ? हम खुद कुछ करते क्यों नहीं ? फिर चाहे कोरोना का टीका बनाने की बात हो या भूतकाल में चेचक का टीका बनाने की बात हो या अन्याय का विरोध करने की बात हो | |

हमने कहा- हमारे यहाँ तो यही परंपरा रही है |कृष्ण तभी तो कहते हैं-

यदा-यदाहि धर्मस्य......

या तुलसी कहते हैं- 

जब-जब होहिं धरम की हानी |

फॉर्चून ने अमेजन CEO को भगवान विष्णु के रूप में दिखाया, हिंदूओं ने किया विरोध












कैप्टन कूल के


Ram Mandir Photos | Ayodhya Ram Mandir Bhoomi Pujan Today News ...


तो अवतार 'होता' है |और फिर हमें तो यह भी पता नहीं कि कितना कुछ होने के बाद धरम की 'ग्लानि' या 'हानी'  होती है जिसके बाद भगवान का अवतार होता है |इसलिए हम तो अवतार प्रतीक्षा करते रहते हैं |अब यह उस अवतार लेने वाले का काम है कि वह कब, कहाँ, किस रूप में अवतार ले |

वैसे कुछ सच्चे भक्त और परम ज्ञानी कह तो रहे हैं कि विष्णु का अवतार हो चुका है |और उस विष्णु के साथ उन्होंने विष्णु भगवान के अगल-बगल चिपके रहने वाले ब्रह्मा और महेश को भी चीह्न लिया है |

बोला- तो फिर नाम भी बता ही दे |

हमने कहा- हम इतने बड़े नेता नहीं हैं कि लोग हमारी बात की खबर बना दें |वैसे समझता तो तू भी है |

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Sep 11, 2020

रमेश जोशी का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन


रमेश जोशी का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन 


 
 


तोताराम ने आते ही कहा- बधाई हो अग्रज !

हमने कहा- किस बात की ?

बोला- नोबल शांति पुरस्कार हेतु नामांकन के लिए .

हमने कहा- नामांकन तो गाँधी और नेहरू का भी हुआ था लेकिन मिला किसी को नहीं. क्या 'भारत रत्न' के लिए आडवानी जी का नाम किसी ने ही आगे नहीं बढ़ाया होगा ?  लेकिन 'फाल्स प्रेगनेंसी' की तरह निकला क्या ? ऐसे में बधाई देकर हमारे साथ क्यों मज़ाक कर रहे हो ? 

बोला- यह मुँह और 'दाल रायसीना' !

हमने कहा- तो फिर बधाई किस बात की ?

बोला- तुझे नहीं. यह तो इस बात की है कि अपने मोटा भाई का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन हुआ है.

हमने कहा- मोटा भाई कौन ?अपने मोदी जी या अमित जी ?

बोला- नहीं, ये अमरीका के राष्ट्रपतियों की तरह सम्मान और यश के भूखे नहीं हैं. ये तो निष्काम सेवक हैं.   मैं तो अमरीका वालों की बात कर रहा था. 

हमने कहा- लेकिन ट्रंप मोटा भाई कैसे हो गए ? वे तो जर्मन मूल में है.अमरीका की कोलोक्वल बोली में कहें तो 'बडी' कह सकते हैं. 

बोला- अब तो ट्रंप कहाँ पराए रह गए हैं ? मोदी जी का अमरीका में 'हाउ डी' मोदी होता है और ट्रंप का यहाँ 'नमस्ते ट्रंप' होता है. मोदी जी वहाँ उन्हें वोट दिलाते हैं और वे मोदी को भारत का बाप बना देते हैं. अब तो 'आई एन डी ए' मतलब 'इंटर नॅशनल डेमोक्रेटिक अलायंस' भी हो गया है. 

याद है,ओबामा ने जनवरी २००८ में  राष्ट्रपति बनते ही फरवरी में अपना नामांकन करवा लिया. दस दिन में दुनिया ने उनमें कौन सी महानता देख ली |इतने दिन में तो आदमी को नई कुर्सी पर ढंग से बैठने की आदत नहीं हो पाती. और अब ट्रंप ने अपना नामांकन करवा लिया है. 

हमने कहा-  ट्रंप ने पिछले साढ़े तीन साल में तरह-तरह की अद्भुत हरकतों से अपनी महानता का परिचय दिया लेकिन दुनिया ने ध्यान ही नहीं दिया. अब कोरोना-काल में उनकी अद्भुत प्रबंधन क्षमता से प्रभावित होकर नोबल समिति ने बिना किसी के नामांकन किए स्वयं अपनी ओर से संज्ञान लिया है. जैसे भारत के गृहमंत्रालय ने कंगना को बिना मांगे ही 'वाई प्लस' सुरक्षा प्रदान कर दी.

बोला- मज़ाक मत कर.औरों का मुझे पता नहीं लेकिन ट्रंप की प्रतिभा महान है. कुछ नहीं किया लेकिन कोरोना से सबसे ज्यादा संक्रमण और मौतें अमरीका में हुईं लेकिन यह ट्रंप का ही कमाल था कि लोगों की हिम्मत नहीं टूटने दी. कालों के खतरे से अमरीका को बचा लिया.  भले ही शूटिंग की बात की लेकिन कोई 'जलियाँवाला बाग़' नहीं बनाया, एटोमिक हथियारों का उत्तर कोरिया से ही बड़ा बटन उनके हाथ में था लेकिन नहीं दबाया. भारत चीन के बीच मध्यस्थता के लिए तीन दिन में एक बार ज़रूर प्रस्ताव दे देते हैं. अरब और इज़राइल के बीच समझौता करवाया. 

हमने कहा- हम तो तब मानेंगे जब वे अपने मन से काले-गोरे की कुंठा निकाल देंगे. और हथियारों की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक का लेनदेन करेंगे |




     
  

बोला- यह नहीं हो सकता. इसी कुंठा पर तो अमरीका की ग्रेटनेस खड़ी है जिसे ट्रंप को बचाना है. वैसे कहे तो तेरा नामांकन भी करवा दें. 

हमारे मन में आडवानी जी की तरह से गुदगुदी हुई. सकुचाते हुए कहा- ऐसा कैसे हो सकता है. उसके लिए तो यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर, किसी राज्य,राष्ट्र के प्रमुख, राष्ट्रीय स्तर के नेता, नोबल जीत चुके या नोबल समिति के सदस्य ही नामांकन कर सकते हैं. 

बोला- इसमें कौन बड़ी बात है ? अपने सीकर में विश्व स्तरीय  कोचिंग संस्थान और मेरिट देने वाले विद्यालय हैं. करणी सेना, विप्र सेना, यादव सेना, जाट सेना आदि के वैश्विक संगठन हैं. नहीं होगा तो एक  'न्यू अंतर्राष्ट्रीय विप्र प्रतिभा सम्मान सेना' बना लेते हैं |उसकी तरफ से तेरा नामांकन करवा देते हैं.

हमने कहा- इससे क्या फायदा होगा ?

बोला- बड़े अखबारों में ट्रंप के नामांकन के समाचार की तरह नहीं तो कम से कम किसी विश्वसनीय अखबार में सीकर संस्करण में तो यह समाचार आ ही जाएगा-

मास्टर रमेश जोशी का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन.

ऐसे ही माँगते-माँगते फ़क़ीर बनते हैं. एक ही दिन में कोई प्लेटफोर्म से पार्लियामेंट में थोड़े चला जाता है. 

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Sep 8, 2020

भजन गाए ?



भजन गाए ?

तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- क्या भजन गाए ?

हमने कहा- भजन गाए या नहीं लेकिन तेरी चाय के दंड से नहीं बच सकते |

बोला- शुक्र मना | यह तोताराम ही है जो रोज सुबह इस एक अठन्नी की इस सड़ी चाय में तेरा दिल बहलाने आ जाता है वरना आजकल बड़े-बड़े मंत्री कोरोना की चपेट में आए हुए अपने चहरे पर भिनभिनाती मक्खियाँ भी नहीं उड़ा पा रहे हैं |कोई मन की तो दूर, बेमन की बात सुनने भी नहीं आ रहा है |लोग भी ठीक ही सोचते हैं, मंत्री जी की कृपा का लाभ तो पता नहीं मिलेगा या नहीं, लेकिन यदि कोरना की चपेट में आ गए तो अहमदाबाद वाले ए.एस.आई. जडेजा की तरह शव देने के बदले में अस्पताल सवा लाख रुपए मांग लेगा |मेदान्ता में इलाज करवाने वालों की बात और है |

हमने कहा- अपनी तो हम निबेड़ लेंगे लेकिन तू अपनी बता कि तू ने कितना भजन-पूजन किया ?

तोताराम शरमा गया |

ऐसे प्रश्न पर शरमाना ईमानदारी और भलमनसाहत की निशानी है |बदमाश आदमी तो दूसरे की सी बी आई जाँच करता रहता है लेकिन अपनी बात नहीं करना चाहता |यदि कोई पूछे- कोरोना के संक्रमितों की बढ़ती संख्या, धराशायी हो गई अर्थव्यवस्था, चीन की दादागीरी की बात क्यों नहीं करते तो कहेगा- नेहरू जी के पूर्वज मुसलमान थे | लेकिन तोताराम बदमाश नहीं है |

बोला- भाई साहब, सच बात तो यह है कि सारा दिन भूखा नहीं रहा जाता | बड़े लोगों की तरह व्रत के नाम पर दिन में चार बार मेवों की खीर खाने का गुंजाइश नहीं है |

हमने कहा- तो कोई बात नहीं कम से कम मध्यप्रदेश के परम धार्मिक, भारतीय संस्कृति के रक्षक और श्रेष्ठ हिन्दू  शिवराज सिंह जी की तरह कृष्ण के भजन ही गा लेता ? हमने अपना फोन खोलते हुए कहा- देख, किस प्रकार सपत्नीक भक्ति में मग्न हैं ? 



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बोला- वैसे मैं भी तुझे यही फोटो दिखाकर भजन की बात करना चाहता था |लेकिन तूने मेरे ही अस्त्र से मुझ पर ही वार कर दिया |लेकिन सच बता, तूने भजन किया ?

हमने कहा- तोताराम, क्या बताएँ ? हमारे यहाँ तो रात को लाइट ही नहीं थी |अगर होती तो भी हमारे लिए रात १२ बजे तक जागते रहना संभव नहीं है | फिर जब राम- मन्दिर बने बिना ही मोदी जी ने दो-दो बार प्रधान मंत्री पद की शपथ ले ली तो हम तो कृष्ण जन्म से पहले सोए ही तो हैं |हमने कौन वासुदेव और देवकी से वादा किया था कि हम डिलीवरी होने तक जागते रहेंगे |और जागते रह कर भी क्या कर लेते ? काम तो उन्हें ही करना है जो यह काम जानते हैं |यदि कृष्ण के प्रकट होने के समय सो जाने वाले द्वारापालों को कंस ने फाँसी नहीं दी तो कृष्ण भी हमें माफ़ कर देंगे |

बोला- कोई बात नहीं |भगवान तो सब जानते ही हैं कि कौन नाटक आकर रहा है और कौन सच्चे मन से याद कर रहा है ? 

हमने कहा- यदि धर्म के ठेकेदार श्रद्धा और भक्ति का मामला भक्त और भगवान के बीच में ही रहने दें तो सब ठीक न हो जाए इस दुनिया में |

बोला- फिर मुफ्त का माल खाने के धंधे का क्या होगा ? सभी धर्मों में मुफ्तिये ही तो भरे पड़े हैं |


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Sep 7, 2020

लोकतंत्र की स्काउट हट



लोकतंत्र की स्काउट हट 


चोरी और मानव सभ्यता का आदिकालीन संबंध है | किसी समाज के विचार, भाषा, कहावतें, शब्द, उपमाएँ आपस में चुराई जाती रही हैं |तुलसी जैसे कुछ भले लोग 'नाना पुराण...' कह कर स्वीकार कर लेते हैं तो कुछ बड़ी बेशर्मी से अकड़ जाते हैं |अपने जन्म से पहले चर्चित हो चुके वीरेन्द्र मिश्र का एक गीत चुराने वाले से जब हमने कहा तो बोले- हो सकता है उन्होंने मेरा गीत चुराया हो |अभी एक दिन बात चल रही थी तो हमने कहा कि सरकर ने स्वच्छता अभियान के बहाने गाँधी का चश्मा कब्ज़ा लिया | उन सज्जन ने उत्तर दिया- यह सब तो चलता रहता है | गाँधी जी ने भी मोदी जी के 'स्वच्छाग्रह' और 'गंदगी भारत छोड़ो'  नारों का 'सत्याग्रह' और 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' के नाम से उपयोग किया था |

ऐसे में हमारी हालत बहुत खराब हो जाती है |क्या कहें और क्या न कहें ? एक बार किसी ने कहा- जब रावण सीता का हरण करके ले जा रहा था तब तू क्या कर रहा था ?
अब इस 'हेतु हेतु मद्भूत' का क्या उत्तर हो सकता है ? हमने भी वैसा ही तरीका अपनाते हुए कहा- जिस जटायु ने बिना बात किसी के फटे में टांग फँसाकर जान दे दी तो तुमने उसके परिवार को क्या कोई पॅकेज दिया था ? उसके परिवार के किसी सदस्य को राम की सेना में नौकरी दी थी ? 

हम दुनिया के इसी गोरखधंधे के बारे में विचारों में उलझे हुए थे कि तोताराम आ गया |

हमने कहा- तोताराम, क्या ज़माना आ गया ? मेहनत करें मोदी जी और फायदा ले जाएँ ट्रंप साहब !

बोला- दोस्तों में सब चलता है ? फिर भी बता तो सही ट्रंप ने चीन की तरह झूला झूलते- झूलते क्या झटका दे दिया, मोदी जी को ?

हमने कहा- ट्रंप ने मोदी जी का  'आत्मनिर्भर' वाला नारा चुरा लिया है |वे भी कहने लगे हैं कि अमरीका को आत्मनिर्भर बनाएंगे | 

बोला- आज के समय में कोई आत्मनिर्भर नहीं है | भारत हो या अमरीका, सभी एक दूसरे से व्यापार से ऐसे जुड़े हुए हैं कि एक तरफ युद्ध चलता रहता है तो दूसरी तरफ व्यापार भी बदस्तूर चलता रहता है |जैसे कि अभी भारत ने चीन से लाखों कोरोना टेस्टिंग किट मंगवाए हैं |अरबों डालर की जेनेरिक दवाइयों का कच्चा माल चीन से भारत आ ही रहा है |अभी फ़्रांस से राफाल आए ही हैं |अमरीका से भी ७५ हजार करोड़ का सेक्योरिटी सिस्टम खरीदने का समझौता हुआ ही है |

हमने कहा- तो फिर आत्मनिर्भर वाला नारा या नाटक क्या है ?



पौधारोपण घोटाला भी सूखा – नहीं होगी ...

बोला- ये सब लोकतंत्र की स्काउट हट हैं |

हमें बड़ा अजीब लगा |पूछा- बात आत्मनिर्भरता और व्यापार की चल रही है उसके बीच में यह 'स्काउट हट' कहाँ से आ गई ?

बोला- मेरे एक प्रिंसिपल थे | जब कभी भी कोई निरीक्षक स्कूल में आता था तो उससे 'स्काउट हट' का शिलान्यास करवाते थे |उसके बाद वे पत्थर वापिस उसी ढेर में रखवा दिए जाते थे | संयोग से वही निरीक्षक दुबारा आ जाता था और पूछ लेता था- वर्मा जी, फिर वही....|तो वर्मा जी कहते तो फिर सर, पारिजात का एक पौधा अपने कर कमलों से लगा दीजिए |

सोचते-समझते नाटक देखने से सिर दर्द होने लगता है |ऐसे नाटक देखते समय अक्ल (यदि हो तो ) व्यर्थ खर्च नहीं करनी चाहिए |

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Sep 3, 2020

खुशखबरी.....



खुशखबरी..... 

पहले खबर और अखबार बड़ी चीजें हुआ करती थीं |कोई भी महत्त्वपूर्ण खबर जल्दी से जल्दी और धमाके से पहुंचाने की कोशिश की जाती थी |१९ दिसंबर १९७८ को जब इंदिरा गाँधी गिरफ्तार हुईं, हम जयपुर के सांगानेरी गेट के पोस्ट ऑफिस के पास अपने अग्रज तुल्य साहित्यकार शरद देवड़ा के साथ उनके अखबार 'अणिमा' के कार्यालय में बैठे हुए थे |उस समय कम्प्यूटर और मेल जैसा कुछ नहीं था |समाचार टेलीप्रिंटर पर आते थे |हर समय दफ्तर में जोर-जोर से टाइप करने की खटर-पटर चलती रहती थी |जैसे ही कागज पर टाइप हुआ  'इंदिरा गाँधी गिरफ्तार' तो दुबले-पतले देवड़ा जी अतिरिक्त सक्रिय हो गए और बोले- फटाफट एक कागज पर बड़े-बड़े अक्षरों के छापो- 'इंदिरा गाँधी गिरफ्तार'  और बाँट दो जो भी मिले उसी को |

यह होता था खबरों का रोमांच तथा पाठक और संपादक रिश्ता |
आज तोताराम कुछ उसी रोमांच से चिल्लाता हुआ घर में घुसा- खुशखबरी, खुशखबरी, खुशखबरी |

हमने पूछा- क्या भारत ने कोरोना का टीका बना लिया ?

बोला- उसकी क्या ज़रूरत है ? अपना रिकवरी रेट किसी टीके के बिना ही गौमूत्र, हनुमान चालीसा और 'भाभीजी पापड़' से ही ७०% के करीब जा पहुँचा है |और फिर कोरोना पर महानायक द्वारा दिखाए गए ठेंगे, आठवले के 'गो कोरोना' मन्त्र और मोदी जी के 'गन्दगी भारत छोड़ो' आह्वान से कोरोना के पाँव उखड़ने ही वाले हैं |

हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो पहले कह चुके हैं कि हमें कोरोना के साथ रहना सीख लेना चाहिए |

बोला- राजनीति में दोनों तरह की बातें करते रहना चाहिए |पता नहीं, कब पलड़ा किधर झुक जाए |हो सकता है संक्रमित होने वालों की संख्या दस-पंद्रह दिन में एक लाख प्रतिदिन हो जाए तब ? इसलिए रिकवरी रेट को हाई लाइट करते रहना चाहिए \

हमने कहा- हम तो कोरोना का अच्छा प्रबंधन तब मानेंगे जब संक्रमित होने वालों की संख्या कम होकर मात्र सैंकड़ों में आ जाएगी |सो कम हो नहीं रही है |मरना जीना तो कोरोना के बिना भी चलता ही रहता है |कोरोना से नहीं तो दुर्घटना, मोब लिंचिंग, कुपोषण से मरेंगे |

बोला- बीच की बातें महत्त्वपूर्ण नहीं होतीं |अन्तिम रिजल्ट देखना चाहिए |बच्चा यदि नब्बे प्रतिशत अंक ले आये तो फिर यह मत पूछो की नक़ल करके आए या पढ़कर |तू तो मोदी जी द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दिन से उनके कार्यकाल के अंत तक का हिसाब लगा लेना |जनसंख्या में दस-पन्द्रह करोड़ की वृद्धि ही मिलेगी |आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं ? 

वैसे मरने या ठीक होने से बड़ा होता है विश्वास |जैसे ट्रंप ने कहा है कि हम कोरोना के मामले में भारत से अच्छा कर रहे हैं |कोंफिडेंस हो तो ट्रंप जैसा |वैसे इस मामले में हम भी उनसे कम नहीं हैं |कोरोना से निरपेक्ष रहकर घर-घर, गाँव-गाँव जाकर मंदिर के लिए चंदा संग्रहण के लिए लाखों सेवक निकलने वाले हैं |

After Bhoomipujan in Ayodhya, devotees took out a procession in Baraipatti,  shouted Ram on the streets | अयोध्या में भूमिपूजन के बाद बरईपट्टी में  श्रद्धालुओं ने निकाला जुलूस, सड़कों पर ...


उस समय देश में कोरोना संक्रमण की क्या स्थिति होगी यह जानना हमारा नहीं 'सियावर रामचंद्र' का है |तू तो बस, यह सोच कि उनमें रामचरण-सेवक और चप्पल चोरों में अंतर कैसे करेगा क्योंकि सभी मास्क में होंगे |

हमने कहा- वह तो मास्क का रंग देखकर पहचान लेंगे |

बोला- भक्त मास्क नहीं लगाते |कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता |वे महाबली ट्रंप की तरह मस्त झूमते हुए आएँगे |


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Sep 2, 2020

हे राम !



हे राम !


'हे राम !' गाँधी के अंतिम शब्द |फिलहाल तो लोग ऐतराज़ नहीं कर रहे हैं | हो सकता है कि कुछ समय बाद जब हम पूरी तरह 'राष्ट्रभक्त' बन जाएँगे तो लोग सिद्ध करने लगेंगे कि वास्तव में गाँधी ने मरते समय 'हे राम' नहीं बल्कि 'अरे मार डाला' या 'अरे, मरा रे !' कहा था |ऐसे में भी यह इसी देश की महानता है जो तुलसी के मुंह से बोलता है- 

उलटा नाम जपत जग जाना |
बालमीकि भये ब्रह्म समाना ||

उसी के बल पर कुछआशा बची हुई है |


फिलहाल गाँधी की डेढ़ सौवीं जन्म और पुण्य तिथि दोनों को समेटते हुए सारे देश में आयोजन चल रहे हैं | सुनने वाले तो खैर, पहले प्रसाद के लालच में और अब कोरोना के कारण बेकारी के मारे सौ-पचास रुपए में मिल ही जाते हैं लेकिन गाँधी संबंधित विषयों और बोलने वालों की भी कमी पड़ने लगी है जैसे श्राद्ध में जीमने वाले ब्राह्मणों और गौ-ग्रास के लिए गायों की उपलब्धता कम हो जाती है |सांड ज़रूर बचते-बचाते भी टकरा ही जाते हैं |ऐसे में हिंदी-दिवस पर हमें और तोताराम को एक-दो जगह वक्ता के रूप में निमंत्रण मिल ही जाते हैं क्योंकि हम केवल चाय और एक गमछे में ही मान जाते हैं |

बताते चलें कि हमारा सीकर स्वघोषित 'शिक्षा नगरी' नगरी बना हुआ है जहाँ सभी नौकरी तो करना चाहते हैं 'सरकारी मास्टरी' की लेकिन पहले साइड बिजनेस और रिटायर्मेंट के बाद में पूर्णकालिक 'इंटरनॅशनल स्कूल', पब्लिक स्कूल, कोंवेंट स्कूल आदि चलाते हैं जिसमें परिवार के सभी रसोइये, ट्रक-ऑटो ड्राइवर और गुंडे सदस्य उनके होस्टल, ट्रांसपोर्ट और शारीरिक शिक्षा विभाग में खप जाते हैं |वैसे उन्हें न तो इन तीनों में कोई अंतर पता है और उनके हिसाब से पॉल, व्यवस्था की पोल और राजनीति की संक्षिप्त नाम 'पोल' (साइंस) में कोई फर्क़ नहीं है |उनके लिए सर्वत्र 'पोल ही पोल' है |

तो हम और तोताराम ऐसे ही किसी देशभक्त के स्कूल में गाँधी से संबंधित कार्यक्रम में आमंत्रित थे |कुछ अपनी रटी-रटाई बातें बोलने के बाद हम बच्चों से वैसे ही बातें करने लगे |

तोताराम ने पूछा- बच्चो, गाँधी जी अपने किन दो कामों के लिए प्रसिद्ध हैं ? 

बच्चों ने बताया- सत्याग्रह और भारत छोड़ो के लिए |

हमने भी एक प्रश्न किया- लेकिन 'सत्याग्रह' और 'भारत छोड़ो' क्या इतना बुरा और दंडनीय काम है कि उनकी हत्या कर दी गई ?

एक कुछ वरिष्ठ से दिखने वाले बच्चे ने बहुत गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया- वैसे तो ये दोनों काम इतने गलत नहीं हैं लेकिन उन्होंने बिना कॉपी राईट के 'स्वच्छाग्रह' और 'गन्दगी भारत छोड़ो'  आन्दोलनों की नक़ल की, चुराया |

हम दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे |किसे,क्या और कहाँ तक समझाएँ ?यह तो वैसे ही हो गया कि कोई हमसे पूछे बिना ही हमारा नाम 'राहु-केतु' रख दे |

फिर भी हिम्मत करके पूछा- लेकिन जिस काम के लिए अंग्रेज सरकार तक ने प्राणदंड नहीं दिया उसके लिए अंग्रेजों के जाने के बाद किसी भारतीय ने क्यों प्राण दंड दिया ?

बच्चा बोला- गाँधी ने लोगों को चौराहों पर विदेशी कपड़े आदि जलाने के लिए प्रेरित करने का अपराध भी तो किया था |अखंड भारत का विभाजन करवाया था जिससे राम, बुद्ध, पाणिनी, नानक, लालकृष्ण अडवानी और मनमोहन सिंह की जन्म भूमि नेपाल अफगानिस्तान और पाकिस्तान में चली गई, इसलिए उसे दंड देने के लिए 'राम' (नाथू) ने अवतार लिया था |

हिंदू महासभा के कार्यक्रम के दौरान हुई घटना


हमने फिर हिम्मत करके पूछा- लेकिन बच्चो, ३० जनवरी २०१९ को अलीगढ़ में गाँधी के पुतले को गोली मारने का अभिनय करने का क्या मलतब है ?

बोला- यह वैसे ही है जैसे हम दशहरे पर रावण का पुतला जलाते हैं |

अब तो हम दोनों की ही हालत खराब हो गई |हम एक खतरनाक भविष्य से भयभीत फटाफट वहाँ से खिसक लिए |

लेकिन क्या बुराई के सामने से खिसक लेने से वह मिट जाएगी ?

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