Mar 30, 2019

एक साल के लिए चुनाव स्थगित




एक साल के लिए चुनाव स्थगित  

आते ही तोताराम ने कहा- मास्टर, देश-हित में एक साल के लिए चुनाव स्थगित हो जाने चाहियें |

हमने कहा- बन्धु, हमसे तो अपनी नाक ही नहीं पोंछी जाती, हम देश-हित के बारे में क्या जाने ? यदि देश हित की बात करनी है तो मोदी जी से कर, जेतली जी से कर, राहुल गाँधी से कर, अखिलेश से कर | ये ही अपनी भूख-प्यास भूलकर दिन-रात एक किए हुए हैं देश-हित के लिए |सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपए विज्ञापनों, झंडे-फर्रियों, रैलियों, जुलूसों में फूँक रहे हैं किस लिए ? देश-हित में ही ना ? सरकार हाथ धोने, नाक साफ़ करने, शौचालय जाने, बेटियों को बचाने-पढ़ाने तक के लिए भी विज्ञापन देश-हित में ही तो करती है |वरना  २०१४ से पहले देश-हित के इतने बड़े-बड़े काम किए गए थे ? 


बोला- मैं असली मुद्दा भूल जाऊँ उससे पहले मेरी बात सुन ले |

हमने कहा- मुद्दे की बात तू ही क्या, अपने को देश-सेवक कहने वाले लोग ही भूले हुए हैं |पार्टियों के नाम के पहले अक्षर लेकर नए-नए शब्द बनाने का खेल खेल रहे हैं |

बोला- मैं इसी महत्त्वपूर्ण खेल के सन्दर्भ में एक साल के लिए चुनाव आगे खिसका देने के लिए कह रहा था |

हमने कहा- चुनाव आगे खिसका देने के लिए क्या देश की सुरक्षा पर आतंकवाद का मंडराता खतरा पर्याप्त कारण नहीं हो सकता ?

बोला- हो तो सकता है लेकिन इसे सत्ताधारी पार्टी का क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ प्रचारित किया जा सकता है किन्तु मेरठ की चुनावी रैली में मोदी जी ने पार्टियों के प्रथम अक्षरों से जो 'शराब' बनाई है, वह बहुत विचारणीय मुद्दा है | बहुत बड़े देश-हित-अहित से जुड़ा | मोदी जी ने शराब बनाई तो अब  समाजवादी पार्टी ने नरेन्द्र के 'न' और शाह के 'शा' को लेकर 'नशा' बना दिया |है ना, कन्फ्यूजन की बात |शराब महागठबंधन की और नशा सत्ताधारी दल में और टेक्स वसूला जा रहा है हम-तुम से |

हमने कहा- लेकिन चुनाव आगे खिसका देने से क्या होगा ?

बोला- होगा | बहुत कुछ सकारात्मक होगा |देश-हित होगा |एक साल का समय दिया जाए |सभी राजनीतिक पार्टियों के थिंक टैंकों का मंथन हो |सब एक दूसरे के नामों से भद्दे से भद्दे शब्द बनाने  का प्रयत्न करें |फिर इस विचार-विज्ञान-वैभव को विश्व के वैज्ञानिकों और विचारकों के सामने जांच के लिए भेजा जाए |उनकी रिपोर्ट के बाद  जो कुछ भक्ष्य है वह स्वीकार किया जाए और जो अभक्ष्य उसे नकार दिया जाए |  

हमने कहा- लेकिन वह तो 'स' और 'श' के उच्चारण का व्याकरणिक मामला है |बहुत से लोग स और श में गड़बड़ कर जाते हैं | बंगाली लोग जहां चाहे 'श' लगा देते हैं|नेपाल के लोग भी ऐसा करते हैं |हिंदी के बड़े विद्वान मैनेजर पांडे भाषा को भासा बोलते है लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? हमें तो श्रेष्ठ अर्थ ग्रहण करना चाहिए |

पोरबंदर में हमारे एक मित्र थे |उन्हें रोज शराब पीने और आमिष भोजन की आदत |पहले ही दिन शाम को पहुँच गए शहर |जैसे ही टुन्न होकर सुदामा चौक के बस स्टेंड पर पहुँचे, मामू ने पकड़ लिया और पूछा- कहाँ से पीके आए ? बेचारे नाम नहीं जानते थे इसलिए उलटे पाँव ठेके पर जाना पड़ा |मामू ने देखा कि जगह तो हफ्ते वाली है तो गुरूजी को छोड़ दिया |

शहर से लाया आमिष भोजन करने के बाद गुरूजी कॉलोनी की पान की दुकान पर आते थे |शायरी का शौक और ऊपर से गुजरात की स्वदेसी |ऐसे में उन्होंने नीरज का एक मुक्त सुनाया-
हर पात्र तो निस्सार हुआ करता है 
आईना तो आकार हुआ करता है 
यूं न बदनाम करो पीने वालों को 
मौसम ही गुनहगार हुआ करता है

 गुरूजी ने उच्चारण किया-
'मौषम ही गुनाहगार हुआ करता है' |हमने टोका- उस्ताद, मौषम नहीं मौसम |उन्होंने सुधार किया लेकिन निकला फिर वही 'मौषम' |हमने फिर टोका, तो बोले- अभी चुप रहो |मज़ा ख़राब मत करो | कल बात करना |इस समय तो यह 'मौषम' ही रहेगा |  

इस बारे में 'शराब' और 'सराब' की तुच्छ बहस फ़ैलाने की बजाय हमें मोदी जी की इस भाषाई और काव्यात्मक सोच की दाद देनी चाहिए और उन्हें वोट देना चाहिए |वैसे गठबंधन के  'नरेन्द्र' और 'शाह' वाले 'नशा'  में भी दम है |लेकिन अभी विपक्ष इस कला में मोदी जी से बहुत पीछे है |

बोला- तभी तो कह रहा हूँ कि देश-हित में सभी सेवकों को शाब्दिक लड़ाई के एक अहिंसक धर्म-युद्ध का पर्याप्त मौका दिया जाना चाहिए |और उसके परिणामों का देश-हित में उपयोग किया जाए |

हमने कहा- इसके बाद भी यदि वही 'अब्दुल्ली कुट्टी' ही रहा तो ?

बोला-  यह 'अब्दुल्ली कुट्टी' क्या बला है और उसका देश की राजनीति से क्या लेना-देना ?

हमने कहा- आज से कोई चालीस साल पहले एक निरक्षर मजदूर नेता  प्रदेश परिषद् में शिक्षा पार्षद बन गया |उसे हिंदी में हस्ताक्षर सिखाने का काम हमारे एक मित्र को सौंपा गया |कई दिनों की मेहनत से उसे हस्ताक्षर करना सिखाया गया |जब एक पहली बार उसे एक कार्यवाही पर हस्ताक्षर करने थे तो उसने हस्ताक्षर किए- अब्दुल्ली कुट्टी |सो सारे मंथन के बावजूद ये नेता जब भी बोलेंगे ऐसे ही 'मंत्रपूत शब्द' बोलेंगे |  

बोला- कोई बात नहीं |यह श्रम भी व्यर्थ नहीं जाएगा | राजनीतिक दलों के ऐसे ही शाब्दिक तमाशों से तैयार होने वाला कोश तेरे जैसे फसली व्यंग्यकारों के काम आता है |वैसे लोगों को मोदी जी का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि 'शराब' और 'सराब' दोनों ही  भ्रम, सन्देह और झूठ का सृजन करते हैं |सराब अर्थात मृगतृष्णा में भी जल नहीं होता और शराब के नशे में अनुभव होने वाली मस्ती भी सच से आँख चुराकर ही प्राप्त की जाती है |शराब पीकर वोट देने वाले समर्थक और स्वर्ण 'मृग' की 'तृष्णा' करने वाली जानकी दोनों ठगे जाते हैं |

हमने कहा- शब्दों से बड़ा कोई छल नहीं होता | शब्द 'ब्रह्म' होता और वही गलत हाथों में जाकर 'भ्रम' पैदा करने के काम आता है |गुजरात में 'अवैध शराब' का 'वैध धंधा' क्या गाँधी की नशाबंदी का 'सराब' या आस्था की 'शराब' नहीं है ?


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Mar 29, 2019

आतंरिक लोकतंत्र उर्फ़ वीर रस का मौसम




आतंरिक लोकतंत्र  उर्फ़ वीर रस का मौसम 

१९८२ एशियाड खेलों के दौरान हम पोर्ट ब्लेयर में थे |तब वहाँ विकास की दो बड़ी घटनाएँ हुईं |पहली- पोर्टब्लेयर में दूरदर्शन का छोटा रिले स्टेशन स्थापित हुआ |दूसरी-  दूरदृष्टि और पक्के इरादे वाले बहुत से सयाने लोगों ने कोरिया के छोटे ब्लेक एंड व्हाइट टी.वी.सेट पाँच-पाँच हजार रुपए में बेचे जो आज के हिसाब से कम से कम ५०-६० हजार रुपए के बराबर थे | एशियाड खेल ख़त्म होने के बाद कुछ लोगों ने वी.सी.आर. के द्वारा फिल्मों के वीडियो कैसेट छोटे टी.वी. सेटों पर दिखाने वाले ट्यूरिंग टाकीज ही शुरू कर दिए | 

उसी युग में १९८३ में 'गाँधी' फिल्म वहाँ पहुँची | बच्चों में देश-प्रेम जागृत करने के लिए यह फिल्म इन्हीं छोटे टी.वी. सेटों पर सभी स्कूलों में दिखाई गई |हमने भी विद्यार्थियों  के साथ इसे देखा | व्यवस्था और दिखाने वालों के बीच कौनसा बोफोर्स या राफाल हुआ, हमें पता नहीं  | चित्र इतने छोटे थे कि यदि टोपी का अंतर नहीं होता तो जिन्ना और नेहरू में फर्क नहीं कर पाते |जब अपनी जेब से पैसे देने वाले ग्राहक की ही कोई फ़रियाद नहीं सुनी जाती तो हमने तो यह फ्री में देखी थी | मुफ्त के माल में कोई उपभोक्ता-अधिकार नहीं होते |जब गाँधी और गोडसे के फर्क को समाप्त करने की विधिवत योजना चल रही है तो नेहरू और जिन्ना का क्या ज़िक्र |

आज जब भारत में ७० करोड़ लोग हनुमान चालीसा के आकार के स्मार्ट फोन पर देश-दुनिया की ज्ञानवर्द्धक जानकारी तत्काल प्राप्त सकते हैं तो 'गाँधी' फिल्म की क्या चर्चा करें |अब हम और तोताराम दोनों को 'सबके विकास में अपना साथ' मिल गया है |पोतों ने अपने पुराने सेट हमें गिफ्ट कर दिए हैं |वैसे भी सीखने के लिए साइकल पुरानी ही ठीक रहती है और कपड़े भी, हाँ घुटने पुराने नहीं मिलते |वे तो नए-पुराने जैसे भी हैं अपने ही फुड़वाने पड़ते हैं |  

आज हमने स्मार्ट फोन पर एक वीडियो क्लिप देखी | भारतीय जनता पार्टी के सांसद शरद त्रिपाठी और मेहदावल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक राकेश सिंह के बीच एक कार्यक्रम के दौरान 'सार्थक संवाद' हो गया |  

हमने तोताराम को वीडियो दिखाते हुए कहा- जहाँ विरोधी राजनीतिक दल तक दुनिया को देश की एकता के मेसेज दे रहे हैं वहाँ तुम्हारी पार्टी के ये सेवक क्या कर रहे हैं ? देखा यह वीडियो ?

बोला- हाँ, देखा है ? क्यों, क्या हुआ ? 

हमने कहा- अब और क्या होना है ? बड़े माननीय अर्थात सांसद जूता चला रहे हैं और छोटे माननीय अर्थात विधायक जी घूंसों से उनका मुकाबला कर रहे हैं | 

बोला- यही तो आतंरिक लोकतंत्र है |

हमने कहा- तो क्या आतंरिक लोकतंत्र ऐसा होता है ?गाँधी और सुभाष में कुछ बातों को लेकर सहमति नहीं थी, पटेल और नेहरू में भी सभी मामलों पर पूर्ण सहमति नहीं थी लेकिन उनके बीच तो कभी ऐसा नहीं हुआ |मोदी जी ने भरी सभा में मंच पर अडवानी जी के नमस्कार का उत्तर नहीं दिया लेकिन क्या कोई विवाद हुआ ?

बोला- यही तो मैं तुझे समझाना चाहता हूँ कि यही तो है सच्चा आतंरिक लोकतंत्र |देख, सबसे पहले तो जहां घटना हुई उस जिले का नाम है संतकबीरनगर |दोनों यहीं से सांसद और विधायक |इस देश में क्या 'संत कबीर' से बड़ा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मुखरता का कोई उदाहरण है ?और फिर शरद जी बेस्ट संसद अवार्ड से सम्मानित भी तो हैं |

हमने कहा- लेकिन अभिव्यक्ति में जूतों की क्या भूमिका हो सकती है ?

बोला- कुछ अभिव्यक्तियाँ ऐसी होती हैं जिनके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं जैसे गोडसे के पास शब्द कम पड़ गए थे तो गोली चलानी पड़ी |और फिर जब अस्मिता की बात हो तो जूते-घूँसे ही क्या, जान तक की परवाह नहीं की जाती है | जनता के टेक्स से हुए किसी निर्माण कार्य के शिलापट्ट पर सांसद जी का नाम नहीं लिखवाया गया तो यह सब तो होना ही था |

हमने कहा- लेकिन कुछ लोग गुप्त दान भी तो देते हैं |


बोला- वह सब अपनी मेहनत की कमाई से होता है |मुफ्त में तो सबको दो चाहियें |और फिर हमारी पार्टी में आजकल वीर रस का मौसम भी तो चल रहा है |








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Mar 27, 2019

...और मैं जवाँ



 .... और मैं जवाँ 


आज दुनिया के सिर पर चढ़कर बोलने वाली भारत की आन, बान और शान को कुछ दिलजले अनदेखा कर रहे हैं | वैसे ही २००४ में कुछ लोगों को जब अटल जी का  'शाइनिंग इण्डिया'  दिखाई नहीं दिया था तो अटल जी ने चिढ़कर उन लोगों को 'मातम के मसीहा' कहा था | हमारे सामने के दाँत छोटे हैं | हँसते या रोते किसी भी स्थिति में लोगों को दिखाई नहीं देते इसलिए हमारी ख़ुशी प्रमाणित नहीं हो पाती |तब हमने अटल जी को लिखा था कि हम 'मातम के मसीहा' नहीं हैं |

आज तोताराम ने आते ही हमारा वह पंद्रह साल पुराना घाव कुरेद दिया | पता नहीं, कहाँ से हमारे बड़े बेटे की शादी का फोटो ले आया और हमें दिखाकर बोला- देख | क्या सूरत बना रखी है ? जब तेरा यह हाल १९८९ में ४७ वर्ष की उम्र में है तो २००४ में इण्डिया शाइनिंग के समय तो तू अटल जी को सचमुच ही 'मातम का मसीहा' नज़र आया होगा |

फिर हमारे सामने स्विटजरलैंड के सेंट मेरित्ज़ में अपने बेटे आकाश की प्रीवेडिंग सेरेमनी में अपनी पत्नी नीता अम्बानी को गुलाब का फूल देते और 'ऐ मेरी जोहरा जबीं..... '   गाने पर नाचते हुए मुकेश अम्बानी का फोटो रख दिया | बोला- देख, यह है जिंदादिली |६१ साल की उम्र में भी बंदा कैसे झूमकर नाच रहा है |और एक तू है | क्या मरियल सूरत बना रखी है |वास्तव में कुछ ओग जन्मजात ही मनहूस होते हैं |

हमने कहा- तोताराम, तू सही कह रहा है |वैसे यदि तू हमें और लज्जित करना चाहता है तो हमारी तुलना राहुल गाँधी से भी कर सकता है | क्योंकि राहुल भी तो ४८ के हो गए |आदमी को उसके सुख-दुःख ही जवान और बूढ़ा बनाते हैं | राहुल को तो अभी दो और दो चार का पता नहीं जबकि इस उम्र में हमारी अकले की तनख्वाह और तीन-तीन बच्चे प्रोफेशनल कोलेजों में पढ़ रहे थे |मोदी जी को देख ले |सत्तर के होने वाले हैं लेकिन एनर्जी लेवल ! ३५ साल के युवा भी मात | यदि इनके ही तीन-चार बेटे बेटियाँ होते और चाय की गुमटी लगा रहे होते तो पता चलता स्मार्टनेस का | कोई अडवानी जी को एक बार प्रधानमंत्री बनादे तो फिर देखना उनकी चुस्ती-फुर्ती |

मुकेश अम्बानी भारत का सबसे धनवान व्यक्ति है |इस पोजीशन में कोई और होता तो पता नहीं, कैसी-कैसी लम्पटता कर रहा होता |यह तो भले खानदान का घरेलू और वैष्णव बच्चा है | इसकी स्मार्टनेस और जिन्दादिली कहीं से भी अस्वाभाविक नहीं है | हमें कोई शिकायत नहीं है | 


बोला- किसी से शिकायत करने की बजाय तो मई २०१९ में अपनी शादी की साठवीं वर्षगाँठ का कार्यक्रम कहीं स्विटजरलैंड में रख ले और सभी फ़िल्मी नचनियों को बुला लेना |जब वे नाचेंगे तो क्या पता, तेरे भी कदम थिरकने लगें |

हमने कहा- तोताराम, यदि यही हैसियत होती तो क्या मात्र सतत्तर साल की इस कमसिनी में यूँ बुढ़ापा आ जाता ? अभी अमरसिंह की तरह किसी फ़िल्मी हस्ती से चोंच लड़ा रहे होते |







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Mar 26, 2019

एक रात शिव के साथ



 एक रात शिव के साथ  

आज तोताराम शाम को भी आ धमका |

हमने कहा- तोताराम, अपनी इज्जत आदमी के खुद के हाथ में होती है |क्यों नेताओं की तरह अपनी इज्ज़त का कचरा करवाता है |वैसे रोज-रोज किसी के द्वारे जाने से ही सम्मान घटता है और फिर आज तो तू एक ही दिन में दूसरी बार आ गया |

बोला- भाई साहब, अपन नेता नहीं हैं जिन्हें अपने स्वार्थ के सामने इज्ज़त-बेइज्ज़त कुछ नहीं दीखता |जब चाहे पार्टी बदल लेंगे और जब चाहे बयान |स्वार्थ हो तो जूते खाकर भी जेबकतरे की तरह भीड़ में घुस जाएँगे | वैसे नेताओं की भी मजबूरी होती है | यदि चुनाव बीस साल में एक बार हों तो ये तुझे साढ़े उन्नीस साल से पहले शकल नहीं दिखाएँगे लेकिन क्या करें, कभी लोकसभा चुनाव तो कभी विधान सभा, कभी नगरपालिका तो कभी पंचायत, कभी उपचुनाव | और नहीं तो स्कूल-कालेज या किसी मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा कमेटी के ही चुनाव आ जाते हैं |

वैसे मुझे आज तुझसे कोई काम नहीं है |मैं तो तुझे सूचना देने आया हूँ कि कल सुबह चाय पर मेरा इंतज़ार मत करना |मैं आज 'शिव के साथ एक रात' कार्यक्रम में व्यस्त रहूँगा |

हमने कहा- तोताराम, अब तो लगता है तू बहुत बड़ा आदमी बन गया  | लेकिन अब जब अपने सीकर में ही रात को रजाई पर कम्बल जोड़ना पड़ता है तो कैलाश पर्वत पर तो बहुत ठण्ड होगी |हो सके तो मई में जब ठण्ड कम हो जाए तो कार्यक्रम बना लेना |

बोला- तू भी मास्टर बड़ा भोला है |आजकल शिव कैलाश पर्वत पर नहीं कोयम्बतूर में रहने लग गए हैं |वहीँ पिछली बार मोदी जी भी शिव के साथ एक रात बिताने गए थे |  इस बार अपने राष्ट्रपति रामनाथ जी जा रहे हैं |

हमने कहा- तोताराम, पिछली बार तो जब इफ्तार की दावत की बात चली थी तो राष्ट्रपति जी ने कहा था कि वे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के राष्ट्रपति हैं इसलिए कोई  धार्मिक आयोजन नहीं करेंगे |अब अचानक कैसे शिवभक्त बन गए ?

बोला- तुझे पता होना चाहिए कि रामनाथ का अर्थ ही 'राम' का 'आराध्य' अर्थात 'शिव' होता है |

हमने कहा- उस विज्ञापन में तो रामनाथ जी के साथ-साथ जग्गी वासुदेव का नाम भी है | उसमें अमित त्रिवेदी और हरिहरन की प्रस्तुतियाँ भी हैं | ऐसे में तू केवल शिव के साथ ही एक रात कैसे मना सकता है ? इस भीड़ में शिव को इतनी फुर्सत देगा भी कौन कि तू शिव के साथ रात बिता सके |

बोला- मास्टर, अब चुप कर |मैं कल कहीं नहीं जा रहा क्योंकि जब योजना में ही मक्षिका पातः हो गया तो वहाँ जाकर पता नहीं क्या होगा | इन नामों  के अलावा कोटक, एच.डी.ऍफ़.डी., प्रेस्टीज, एल.आई.सी., यस बैंक, टाटा, एस.बी.आई. आदि कोई चालीस शिवभक्त और चिपटे हुए हैं |अब मुझे खुद से ज्यादा शिव पर आए हुए संकट की फ़िक्र हो रही है | इस आसन्न संकट के कारण या तो शिव वहाँ से खिसक ही लेंगे या फिर सिर दर्द से बचने के लिए भंग का डबल डोज़ लगा लेंगे |फिर करते रहो हल्ला और नाटक |

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Mar 25, 2019

मधुमय अभिशाप



मधुमय अभिशाप 

आज तोताराम ने जो प्रश्न किया उसने हमें कोई आधी सदी पुराने साक्षात्कार की याद दिला दी |तोताराम ने भी ठीक वही प्रश्न पूछा- 'मधुमय अभिशाप' क्या होता है ? 

वैसे हमें उस समय मधुशाला वाले मधु के अर्थ का तो कुछ-कुछ पता था लेकिन स्वाद का पता नहीं था |हम मधु का अर्थ शहद ही समझते थे |जो मीठा है वह अभिशाप कैसे हो सकता है ? अजीब दुविधा |आजकल की तरह यदि 'शुगर' की तकलीफ आम होती तो कह देते कि अधिक चीनी खाने से डाइबिटीज का अभिशाप भुगतना पड़ता है |हम चुप रहे |चयन नहीं हुआ |उत्तर सही होता तो भी चयन नहीं होता क्योंकि जिसके पास प्रश्न करने का अधिकार होता है वह किसी को भी अटका सकता है जैसे कि कोई भी बड़ा अधिकारी अपने मातहत को पूछ सकता है कि '.......के कारण आपको क्यों न निलंबित कर दिया जाए' ?

अब जिसे निलंबित ही करना है वह किसी भी कारण से निलंबित कर सकता है | देश-काल तक उसके लिए कोई मायने नहीं रखते |वह अभिमन्यु की हत्या के लिए राहुल गाँधी को दण्डित कर सकता है |

लेकिन अब हम समझदार हो गए हैं |इसलिए हम तोताराम के सामने निरुत्तर नहीं हुए |हमने कहा- यदि कोई व्यक्ति शराब पीकर लड़खड़ाए और गिर पड़े | तभी उसे दस रुपए का एक नोट पड़ा मिल जाए तो इसे 'मधुमय अभिशाप' कहते हैं |गिरना अभिशाप तो नोट मिलना उस क्षण का मधुमय होना |

हमारा उत्तर सुनकर तोताराम ने कहा- तो अब भविष्य में सातवें पे कमीशन का एरियर न मिलने के कारण मोदी जी या जेतली जी को कोसना बंद कर दे |इस घटना को भी 'मधुमय अभिशाप' मानकर संतुष्ट हो जा |

हमने कहा- एरियर न मिलने में मधुमय क्या है ?इस मामले में तो सब कुछ अभिशाप ही अभिशाप है |

बोला- देख, यदि यह एरियर २८ फरवरी २०१९ से पहले मिल जाता तो इस पर २०१८-१९ के टेक्स नियमों के अनुसार दो-चार हजार रुपए टेक्स लगता क्योंकि इसके कारण हमारी वार्षिक आय तीन लाख से अधिक हो जाती | अब नए नियमों के अनुसार २०१९-२० में पाँच लाख से कम आय वालों को कोई टेक्स नहीं देना पड़ेगा |तो हुई कि नहीं दो-पाँच हजार की बचत ? इसे मोदी जी की कठोरता नहीं बल्कि 'मधुमय अभिशाप' मानकर खुश होना चाहिए |

हमने कहा- बिलकुल नहीं |यह मात्र अभिशाप ही अभिशाप है क्योंकि यदि यही रकम साल भर पहले मिल जाती तो एक साल भर में पाँच के बदले सात हजार ब्याज मिलता |इस प्रकार दो हजार का शुद्ध घाटा हुआ है |


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Mar 22, 2019

अभिनन्दन का अर्थ



अभिनन्दन का अर्थ 

तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- अभिनन्दन का क्या अर्थ होता है ?

हमने कहा- तोताराम, देश के विकास के लिए, लोकतंत्र की सफलता के लिए, कांग्रेस के सत्तर साल के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए चुपचाप काम कर, अनुशासन में रह, सोच को सकारात्मक रख, आशावादी रह, जुमलों पर ऐतबार ला, और प्रश्न तो बिलकुल ही मत पूछ | प्रश्न शंका के कारण उत्पन्न होते हैं |शंका का अर्थ होता है संशय |तभी गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं- संशयात्मा विनश्यति | प्रश्न करके क्यों विनाश को आमंत्रण दे रहा है ? शांत भाव से जब, जिसका, जैसे अभिनन्दन करने को कहा जाय, करता चल |

बोला- मास्टर, हद है |यदि नहीं मालूम तो मत बता | अपने अज्ञान को छुपाने के लिए कुतर्क का सहारा क्यों लेता है ? भाषण क्यों झाड़ रहा है |

हमने कहा- तू १९४७ में स्वाधीनता मिलने के पहले से लेकर आज तक जाने कितने और कैसे-कैसे अभिनन्दन देख चुका है फिर भी पूछ रहा है अभिनन्दन का अर्थ |

बोला- यही तो कारण है पूछने का | इस शब्द का अर्थ समयानुसार बदलता रहता है |अंग्रेजों ने स्वाधीनता आन्दोलन के समय भगत सिंह और गाँधी जी का गोली, डंडों और फाँसी से अभिनन्दन किया था |इसके बाद नेहरू जी के कार्यकाल में विदेशी मेहमानों का राम लीला मैदान में नागरिक अभिनन्दन किया जाता था |आज कोई जीतता है तो उसका, उसीके पैसे में से पचास प्रतिशत बट्टा काटकर चमचे नागरिक अभिनन्दन करते हैं | कभी किसी स्वामी अग्निवेश का भाषण पसंद नहीं आता तो उत्साही कार्यकर्त्ता उसकी पिटाई कर देते हैं तो उसे भी अभिनन्दन कहते हैं |अब मोदी जी कह रहे हैं कि डिक्शनरी में 'अभिनन्दन' का अर्थ बदल जाएगा |

हमने कहा- सही बात है |जिसमें ताकत होती है वह कुछ भी बदल सकता है जैसे कुछ ताकतवर लोगों ने राष्ट्रपिता का अर्थ 'चतुर बनिया' कर दिया |अपने अध्यक्ष का अर्थ  'चाणक्य' और दूसरों के अध्यक्ष का अर्थ 'पप्पू'  |देश के बहादुर सैनिकों के बलिदान को भुनाने के लिए अपनी फ्लैग मार्च टाइप खर्चीली ३८०० चुनावी मोटर साइकल रैलियों का अर्थ 'विजय-संकल्प रैली'  | अपना गठबंधन 'राष्ट्रीय  प्रजातांत्रिक गठबंधन' और दूसरों का गठबंधन 'अधिनायकवादी महाठगबंधन' | खुद सेवक और दूसरे सत्ता के लालची | तो लोग भी 'चौकीदार' का अर्थ 'चोर' समझाने लगे हैं | किसका भरोसा किया जाए |लेकिन जब अर्थ बदलने वाला की पेपर सेटर भी हो तो भक्त परीक्षार्थियों को तो वही अर्थ लिखना पड़ेगा ना जो परीक्षक को पसंद हो |जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे .........| 

बोला- इसी कन्फ्यूजन के कारण तो तुझे पूछ रहा हूँ |और तू है कि मुझ पर ही पिल पड़ा |

हमने कहा- तो फिर समझदारी इसी में है कि 'मन की बात' वाले मोदी जी के भाषणों की पुस्तक की तरह जब तक मोदी जी की डिक्शनरी न आ जाए तब तक चुप रह | जहाँ तक इस देश की तमाशबीन जनता की बात है तो जैसे इसने मोदी जी के विकास के एजेंडे को उनके कुरते और जैकेट में बदल दिया है वैसे ही यह 'अभिनन्दन' का अर्थ 'अभिनन्दन कट मूँछों' में बदलकर रख देगी |जैसे रंगों तक का देशभक्ति और देशद्रोह में विभाजन कर दिया |

बोला- ठीक है, जब तक कुछ तय नहीं होता तब तक मैं भी ऐसी ही धाँसू मूँछें रख लेता हूँ |












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Mar 20, 2019

मैं चौकीदार नहीं हूँ



मैं चौकीदार नहीं हूँ 

हम कहीं कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करते |रात में क्या, दिन में भी नहीं |हम तो इसी में खुश हैं कि दुनिया हमें ही शांति से जीने दे |किसी और को दुखी कर सकने की क्षमता तो हम में है ही कहाँ ? इसलिए यदि देश या विश्व-रक्षा जैसा कोई महान काम न आ पड़े, हम अधिक से अधिक साढ़े नौ बजे के उर्दू समाचार सुनकर सो जाते हैं |नींद कब आए यह 'अच्छे दिनों' की तरह खुद नींद पर ही निर्भर है |

नींद आने ही वाली थी कि घर के सिंहद्वार पर दस्तक हुई; देखा, तो तोताराम |हमने कहा- बन्धु, हम आपको एक बार पहले भी कह चुके हैं कि एक द्वार पर दिन में एक बार से अधिक भिक्षाटन पर नहीं जाना चाहिए |

तोताराम ने कहा- मैं समय-असमय किसी के घर में आ घुसने वाला, हाथ जोड़कर वोट माँगने वाला बेशर्म नेता नहीं हूँ  |मैं कुछ माँगने नहीं आया हूँ | मैं तो तुझे यह बताने आया हूँ कि मैं चौकीदार नहीं हूँ |आज रात साढ़े नौ बजे के बाद यदि चोरी की कोई वारदात हुई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |

हमने कहा- ठीक है |वैसे आज से पहले तो तेरे चौकीदारत्त्व में यह देश चैन की नींद सोता ही रहा है |लेकिन यह समाचार तो तू ट्विटर  से भी दे सकता था |बिना बात हमारी नींद ख़राब करने क्या ज़रूरत थी ? आजकल तो इस देश में सब कुछ ट्विटर और मेसेज के बल पर ही चल रहा है |सारी देशभक्ति, शुभकामनाएँ, शोकसंदेश सभी कुछ ट्विटर से ही निबटाए जा रहे हैं |बड़े लोग तो अपना ट्विटर भी खुद नहीं करते |यह काम उनके लिए उनके नौकर ही करते हैं | एक सर्वे के अनुसार देश में कोई ४५ करोड़ लोग स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं |हो सकता है मंदिर में जाने और पूजा करने की बजाय लोग भगवान को भजनों का ट्वीट कर देते हों |कर्जा लेकर ही सही सभी भारतीयों को स्मार्ट फोन खरीद लेना चाहिए |पता नहीं, कब सरकार ट्वीट द्वारा 'अच्छे दिन' भेज दे और हमें पता ही न चले |

बोला-  जैसे देशसेवी और समाजसेवी होते हैं वैसे ही 'टेक्नोसेवी'  भी होते हैं जैसे मोदी जी |लेकिन मनमोहन जी और प्रणव दा की तरह तेरे जैसे कुछ पिछड़े लोग भी होते हैं जिन्हें एस.एम.एस. तक करना आता, ट्वीट और किंडल तो बहुत दूर की बात है |ऐसों के लिए ही खुद आकर बताना पड़ता है |

हमने कहा- लेकिन चौकीदार बनने में क्या बुराई है ? मोदी जी ने तो कहा है- देश-दुनिया और समाज के लिए कुछ भी अच्छा काम करने वाला 'चौकीदार' ही होता है |

बोला- तो फिर आज उन्हें यह ढिंढोरा पीटने की क्या ज़रूरत आन पड़ी ? वे प्रधान सेवक थे, अब भी हैं | क्या सेवक का काम स्वामी की चौकीदारी करना नहीं होता ?

हमने कहा-क्या किया जाए ? आजकल राजनीति का स्तर बहुत गिर गया है | लोग पता नहीं चौकीदार के नाम के साथ और क्या-क्या जोड़कर मज़ाक उड़ाने लगे हैं |इसलिए उन्हें ही नहीं, सभी ईमानदार लोगों को कहना पड़ रहा है- मैं भी चौकीदार हूँ |

बोला- यह  बात है तो फिर सबको यह कहना चाहिए कि मैं चोर नहीं हूँ या मैं ईमानदार चौकीदार हूँ |  

हमने कहा- तो कोई बात नहीं तू अपने को 'एक ईमानदार चौकीदार'  घोषित कर दे |

बोला- इतने से ही बात थोड़े बनती है |मैं झूठी जिम्मेदारी नहीं ले सकता |मान ले, कल जोश में आकर किसी चोर को पकड़ लिया और वह निकल आया थानेदार या किसी जनसेवक का साला तो मेरी तो मुश्किल हो जाएगी |

हमने कहा- तोताराम, यह इतना सीरियसली लेने की बात नहीं है |ये कोर्ट में कोई हलफिया बयान थोड़े हो रहे हैं |कोर्ट की बहस की बात थोड़े ही है |यह तो चुनावों के लिए 'लपक-लाइन'  है | 

तोताराम चौंका, बोला- यह 'लपक-लाइन' क्या होती है ?  

हमने कहा- इसे अंग्रेजी में 'पंच-लाइन' कहते हैं | जैसे इंदिरा जी ने चुनाव लपकने के लिए 'गरीबी हटाओ' की पंच-लाइन दी थी या पिछली बार मोदी जी ने 'अच्छे दिन' की पंच-लाइन दी थी |हमने तो आजकल फैशन के हिसाब से इसे थोड़ा अनुप्रासात्मक बना दिया है |कहो तो 'पकड़-पंक्ति' बना दें ? 

 

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थर्ड प्लेस और थर्ड क्लास



थर्ड प्लेस और थर्ड क्लास 

आज तोताराम ने अपना चाय का कप उठाते हुए कहा- मास्टर, आज हम चाय पर चर्चा किसी 'थर्ड प्लेस' पर करेंगे |

तोताराम के इस 'थर्ड प्लेस' ने हमारी चेतना को थर्ड क्लास से जोड़कर  सक्रिय कर दिया |

हमने कहा- तोताराम, पहले रेल में थर्ड क्लास का डिब्बा होता था जिसे नाममात्र के लिए बदलकर सेकण्ड क्लास कर दिया गया |हालाँकि उसमें बैठने वाले लोग थर्ड क्लास कभी नहीं होते थे बल्कि जनता के पैसे से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में या एक्जीक्यूटिव क्लास में हवाई यात्रा करने वालों से बेहतर होते थे |अब भी हमारे हिसाब से सेकेण्ड क्लास बन चुके थर्ड क्लास में अपनी मेहनत के पैसे से यात्रा करने वाले लोग फर्स्ट क्लास ही होते हैं | जैसे कि अब भी कई लोग अपने देश के बहुत बड़े पद पर पहुँच जाते हैं लेकिन उनका थर्डक्लासपना नहीं जाता |

ऐसे लोग एक दूसरे की औकात और चाल-चरित्र-चेहरा सब जानते हैं | इसलिए वे एक दूसरे को अपने यहाँ न बुलाकर किसी तीसरी जगह मिलते हैं जैसे कि किसी भ्रष्ट आदमी से डील करने के लिए दोनों ही पक्ष किसी होटल को चुनते हैं |दोनों ही ठग होते हैं इसलिए पता नहीं, तीसरी जगह मिलने की योजना प्रचारित करने वाले वास्तव में किसी चौथी जगह मिलते हों और तीसरी जगह उनके डुप्लीकेट मिलते हों |

बोला- कहीं तू ट्रंप और किम के हनोई में मिलने की तरफ तो इशारा नहीं कर रहा ? 

हम दोनों बातें करते हुए 'थर्ड प्लेस' की तरफ चलते-चलते मंडी के खाली पड़े प्लाट की दीवार के पास पहुँच गए थे जहाँ दिन भर जनसेवा जैसे धरना-जुलूस, स्वाभिमान-रैली या कोई केंडल मार्च करने के बाद थके-थकाए युवा घर जाने से पहले फ्रेश होने के लिए नमकीन के साथ सरकारी रेवेन्यूवर्द्धिनी और जन-चेतना-संचारिणी, सौ दवाओं से भी अधिक कारगर पदार्थ का सेवन करते हैं या बिना किसी चिंतन-शिविर के अपनी लघु-दीर्घ शंकाओं का समाधान करते हैं |

पता नहीं, यह सज्जनों के सद्गुणों के चिंतन का प्रभाव था या स्थान का असर लेकिन हमें कुछ सुरूर-सा अनुभव होने लगा | तोताराम ने हमसे पूछा- मास्टर, मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू असली मास्टर न होकर मास्टर का डुप्लीकेट है |

हमने कहा- तोताराम, हो सकता है क्योंकि हम तो ट्रम्प और किम की तरह सामान्य आदमी हैं इसलिए हमारा डुप्लीकेट होना संभव है लेकिन तू अवश्य असली है क्योंकि तेरे जैसा मिनिमम वज़न में मेक्सिमम इंटेलिजेंट बात करने वाला पीस बना सकना भगवान के लिए भी संभव नहीं है |यह एक पता नहीं कैसे संयोग से बन गया |
  तोताराम बोला- मास्टर, मुझे लगता है कि ट्रंप और किम की आड़ में तू मुझे बना रहा है |इसलिए मैं ट्रंप और किम की तरह यह वार्ता, फिर किसी 'फोर्थ प्लेस' पर करने के लिए सकारात्मक भविष्य की आशा के साथ, समाप्त करता हूँ |

हमने कहा- कोई बात नहीं |वार्ता फिर कर लेंगे लेकिन हम अब भी अपने आप को थर्ड क्लास मानने को तैयार नहीं हैं |और हाँ, यह कप हनोई के किसी होटल का नहीं है जिसे कोई वेटर उठाकर ले जाएगा |इसे जाते समय बरामदे में रख जाना |

बोला- मास्टर, इन हालात को देखते हुए तो हमें अगले दो-तीन महीनों में और सावधान रहना पड़ेगा कि कहीं किसी का कोई डुप्लीकेट जुमले फेंककर हमें उल्लू न बना जाए |













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Mar 16, 2019

परोपकारी पुश अप्स



 परोपकारी पुश अप्स

सीकर का मौसम चुनावी नेताओं जैसा हो रहा है |सुबह किसी को ललकारना, तो दोपहर को कड़ी चेतावनी, तो शाम को हार्दिक प्रसन्नता | दो दिन से ठण्ड फिर बढ़ गई है |सुबह सोचा एक झपकी और ले लें |थोड़ी ही देर बाद बरामदे से कई स्वर एक साथ आने शुरू हो गए- एक, दो, तीन |

अनखाते हुए उठकर बरामदे में गए |देखा- एक दुबली-पतली साँवली आकृति लंगोट लगाए हुए दंड लगा रही है |स्कूल की छुट्टी थी इसलिए चारों तरफ मोहल्ले के बच्चे इकट्ठे हो रहे थे और हर दंड पर गिनती गिन रहे थे- एक, दो, तीन |

पास जाकर देखा तो तोताराम दंड लगा रहा था |हमें गुस्सा आ गया |कहा- यह क्या तमाशा है ? व्यायाम करना है तो हमारे बरामदे यह मजमा लगाने की क्या ज़रूरत है | अपने घर पर लगाता दंड |यदि ठण्ड से मर गया तो बिना बात हमें फँसाएगा |

बोला- हमारे जवान देश के लिए कश्मीर की ठण्ड में ड्यूटी देते हुए शहीद हो रहे हैं और तुझे ठण्ड से डर लग रहा है |यदि शहीदों की सहायता के लिए ठण्ड भी लग गई या दंड लगाकर शरीर थोड़ा अकड़ गया तो क्या फर्क पड़ जाएगा ? सचिन भी तो दिल्ली में पुलवामा शहीदों की सहायतार्थ आई डी बी आई मैराथन में पुश अप्स कर रहा है |

हमने कहा- सचिन भारत-रत्न है |सेलेब्रिटी है |बैंक का ब्रांड अम्बेसडर है |उसके पुश अप्स देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठे हुए हैं |लाखों रुपए इकट्ठे हो गए |यहाँ ये बच्चे जो तेरा तमाशा देखकर हल्ला मचा रहे हैं, एक भी पैसा देने वाले नहीं हैं | 

बोला- कोई बात नहीं |हम आज चाय नहीं पिएँगे |तू हमारे नाम से इस चाय के दस रुपए पुलवामा के शहीदों के नाम जमा करवा देना |

हमने कहा- हम धर्मादा कैश में नहीं करते |काइंड में करते हैं |

बोला- तो मेरे पास हिंदी दिवस के कुछ मोमेंटो पड़े हैं उनके बदले में कुछ पैसे फंड में दे दे |

हमने कहा- वे घटिया प्लास्टिक से बने हैं |उन्हें कोई कबाड़ी भी नहीं लेगा |

तभी तोताराम ने अपनी लुंगी निकाली और बोला- यह कोटा डोरिया की है |इसे नीलाम कर दे |श्रीदेवी की साड़ी की तरह एक लाख तीन हजार नहीं तो दस-बीस तो मिल ही जाएँगे |

हमने कहा- इस लुंगी की हालत को देखते हुए तो यह एस.के. स्कूल के पास लगी नेकी की दीवार पर भी रखी ही रहेगी | कोई उठाने वाला भी नहीं मिलेगा |









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Mar 12, 2019

राष्ट्रगान बनाम पार्टीगान



 राष्ट्रगान बनाम पार्टीगान  



जैसे ही तोताराम आया, हमने पकड़ा- देख लिया देशभक्तों का हाल ? आत्मप्रशंसा के चक्कर में राष्ट्रगान तक गाना भूल गए |किसी और से ज़रा सी भूल हो जाए तो सीधे जेल में डाल देने की बात करते हैं |

बोला- तू शायद तमिलनाडु की खंडपीठ द्वारा उस जनहित याचिका को खारिज कर दिए जाने की बात कर रहा है जिसमें २७ जनवरी २०१९ को मदुरै में एम्स की आधारशिला रखने के अवसर पर मोदी जी की सभा में राष्ट्रगान न गाए जाने की शिकायत की गई थी |उसे तो ख़ारिज होना ही था |यह भी कोई मामला है ? लोगों को बात बिना बात कोई न कोई तमाशा चाहिए |

हमने कहा- इस देश में तो ये ही महत्त्व के मुद्दे हैं | सामान्य आदमी के सुख-दुःख न तो कल मुद्दे थे और न आज |हाँ, अपने कर्मों से नहीं बल्कि मात्र पद से विशिष्ट बने किसी भी माननीय के हगे-मूते, छींके-खाँसे तक पर इस देश के प्रबुद्ध जन ट्वीट और रीट्वीट करने लग जाते हैं |टीवी पर विशेषज्ञ परिचर्चा करने लग जाते हैं |भले ही सामान्य आदमी उल्टा लटका हुआ है लेकिन किसी झंडे का रंग मात्र ऊपर-नीचे होने पर तूफान खड़ा हो जाता है | फिर भी जब हम स्कूलों और सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान और बन्देमातरम गाना उचित समझते है तो इस मीटिंग में यदि राष्ट्रगान को ५२ सेकंड दे देते तो क्या आसमान टूट पड़ता ?

बोला- देखो, कोई भी एम.एल.ए., एम.पी.,मंत्री, मुख्यमंत्री, और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी पहले अपना, फिर आवश्यक हुआ तो पार्टी का और अंत में यदि  समय बचा तो देश का होता है | सबको अपनी-अपनी इमेज की फ़िक्र रहती है |जैसे ही चुनाव आते हैं गठबंधन में शामिल हर पार्टी का नेता अपने लिए अधिकाधिक सीटों पर टिकट पाने के लिए नखरे दिखाने लगता है कि नहीं ? अपनी जाति के समारोहों में जाकर जातिवादी हो जाता है कि नहीं ? परिवार की पार्टी के कार्यक्रम में जाकर प्रधानमंत्री तक गणवेश धारण कर लेते हैं कि नहीं ? एक राष्ट्र होते हुए भी सभी राज्यों ने अपने-अपने राज्य-गीत बनवा रखे हैं कि नहीं ? राष्ट्र में 'महाराष्ट्र' भी हो सकते हैं |'नाडु' का मतलब देश होता है |हम भी तो गाते हैं- 'म्हारो राजस्थानी देस.....' गाते हैं |सबको 'राज्य को विशेष दर्ज़े' के बहाने अपने लिए 'विशेष दर्ज़ा'  चाहिए |

हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो समस्त देश के प्रधान मंत्री हैं इसलिए राष्ट्रगान तो होना ही चाहिए |

बोला- ठीक है मोदी जी बिना पार्टी-पोलिटिक्स के समस्त देश का विकास करने में जुटे हुए हैं लेकिन पता नहीं, लोग क्यों विकास चाहते ही नहीं |साढ़े चार साल के विकास का यह सिला मिला कि पाँच राज्य खिसक गए | और अब फिर चुनाव सिर पर आ खड़े हुए हैं | चुनावों से ही साँस नहीं मिल रहा है |आदमी राष्ट्रीय लाइन ले भी तो कब ले ?और फिर जिन्हें कानूनी रूप से राष्ट्रीय लाइन लेनी चाहिए वे भी पार्टी लाइन से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो इन्हीं से क्यों आशा करते हो |देखा नहीं, कैसे राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति तक राष्ट्र के नाम सन्देश को 'पार्टी-प्रवचन' बना देते हैं |याद है ना, जब एक राष्ट्रपति प्रधान मंत्री को विदा करने हवाई अड्डे जाने के लिए तैयार हो गए थे तो सचिव ने प्रोटोकोल का हवाला देकर रोका था | 












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Mar 11, 2019

दिल्ली में भूख हड़ताल



 दिल्ली में भूख हड़ताल 

आज तोताराम बहुत व्यग्र था |

आते ही बोला- चल दिल्ली, भूख हड़ताल करेंगे |

हमने कहा-  जिसके पास दिल्ली जाने की सुविधा होती है वह भूखा नहीं होता |भूखा वह होता है जिसके पास ज़हर खाने के लिए भी पैसे नहीं होते |और फिर मरने के लिए दिल्ली जाने की क्या ज़रूरत है ? यहीं बहुत से साधन हैं- देसी दारू पी ले |सस्ती होती है और मर गया तो लाख-दो लाख मिल ही जाएँगे |और नहीं तो लोक परिवहन की बस में यात्रा किया कर, कभी न कभी सवारी उठाने के चक्कर में किसी न किसी को ठोक ही देगा |

बोला- तो फिर चन्द्र बाबू क्यों गए हैं दिल्ली ? कर लेते हैदराबाद में ही भूख हड़ताल |

हमने कहा- उन्हें तो विशेष दर्ज़ा चाहिए |

बोला- आंध्र के मुख्यमंत्री हैं |एन.टी.रामाराव के दामाद हैं | और क्या विशेष दर्ज़ा  चाहिए ? 

हमने कहा- तो फिर भगवान ने तुझे भी तो ब्राह्मण के घर जन्म दिया है,  सरकारी नौकरी दी और अब पेंशन | तुझे भी अब और क्या चाहिए ? 

बोला- मुझे अब दिव्यांग का दर्ज़ा चाहिए |

हमने कहा- किसी के दर्ज़ा देने से ही क्या होगा ? तू तो वैसे ही अपने श्यामल रंग और स्लिम देह यष्टि के कारण दिव्य है |तेर अंग-अंग दिव्य है |तेरे रोम-रोम से दिव्यता टपक रही है |

बोला- मुझे साहित्य वाला दिव्यत्त्व नहीं बल्कि दिव्यांग पेंशन वाला दिव्यत्त्व चाहिए |

हमने कहा- वह तो संभव नहीं है क्योंकि तुझे कोई विकलांगता नहीं है | वैसे भी तुझे एक पेंशन मिल ही रही है |
|
बोला- विकलांगता है कैसे नहीं ? मुझे पे कमीशन के एरियर और तेरी चाय के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता |और फिर जब नेता कई-कई पेंशन एक साथ ले सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?  

हमने कहा- चन्द्र बाबू को कुछ हो गया तो मुख्यमंत्री बनने के लिए तो सैंकड़ों तैयार हैं | वैसे भी नेता हड़ताल समाप्त करने के बहानों का प्रबंध पहले से ही करके चलते हैं |आज तक कोई नेता आमरण अनशन करके मरा हो तो बता | हमारे देखते में तो आंध्र में रामुलु और पंजाब में दर्शन सिंह फेरूमान के अलावा कोई भूख हड़ताल करके मरा नहीं | लेकिन यदि तुझे कुछ हो गया तो हम 'चाय पर चर्चा' किसके साथ करेंगे ? 

अटल जी ने भी एक दिन का उपवास किया था और मोदी जी ने भी नर्मदा बाँध की ऊँचाई बढ़वाने के लिए एक ही दिन का उपवास रखा था | चन्द्र बाबू तो हवाई जहाज से दिल्ली गए हैं और शाम को भूख हड़ताल ख़त्म करके घर जाकर खाना खा लेंगे |यदि तू दिल्ली चला गया और आते समय रास्ते में कहीं गुज्जर भाइयों ने रोक लिया तो सचमुच ही तेरा आमरण अनशन हो जाएगा |इसलिए अच्छा यही होगा कि तू यहीं बरामदे में लगा दे अपना बैनर और बैठ जा |

बोला- ठीक है |रेडियो सुनते रहना |जैसे ही चन्द्र बाबू भूख हड़ताल समाप्त करें, मुझे भी बता देना |आज शाम को चाय के साथ डबल नाश्ता भी होना चाहिए | नहीं तो भूखे पेट चाय पीने से गैस हो जाएगी |



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Mar 8, 2019

मंत्रा-मिशन



मंत्रा मिशन 

तोताराम ने आते कहा- कोई प्रश्न पूछकर समय व्यर्थ नहीं करना है |मंत्र को प्रभाव पैदा करने के लिए 'मंत्रा' बनाया गया है और आजकल देश में चल रहे समासीकरण के फैशन के तहत अग्रेजी शब्द 'मिशन' का उपयोग करते हुए बनाया गया है- 'मंत्रा-मिशन' | अब चल बाज़ार चलते हैं |

हमने कहा- यह तो वैसे ही हो गया जैसे सरकार ने कुम्भ के अवसर को मई २०१९ में होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ दिया है |प्रवासी-दिवस भी तीन दिन आगे खिसका कर १४ जनवरी को कर दिया |चाहते तो २६ जनवरी को भी पहले खींचकर संक्रांति वाले दिन कर देते |

बोला- मास्टर, तेरा भी ज़वाब नहीं |हर बात को खींचकर राजनीति की तरफ ले ही जाता है |कभी तो समाज और सेवा के बारे में भी सोचाकर |

हमने पूछा- तो बता तेरे इस 'मंत्रा-मिशन' में किस समस्या का समाधान है ?यह भी प्रीति जिंटा वाले किसी 'रूप मंत्रा' की तरह लोगों को उल्लू बनाने का चक्कर होगा |सब जानते हैं कि किसी भी डिटर्जेंट पाउडर से वैसी सफेदी नहीं आ सकती जैसी विज्ञापन में दिखाई जाती है |तरह-तरह के केश तेल आजमाकर भी लोगों का गंजापन दूर नहीं हो रहा है |नवरत्न तेल लगा-लगाकर भी लोग तनाव ग्रस्त हुए जा रहे हैं |अब बता, तेरे इस 'मंत्रा मिशन' का क्या मिशन है ?

बोला- इसके द्वारा हम लोगों की मोटापे की समस्या का निदान करेंगे मतलब कि मोटे को पतला और पतले को मोटा बनाएँगे |

हमने कहा-इस प्रकार की तो एक दवा का अखबारों में रोज विज्ञापन आ रहा है |लोग यदि तुझे ही पूछ बैठे-  'महाराज, आप लोगों को मोटा बनाने का 'मंत्रा' बताने का दावा कर रहे हैं तो खुद क्यों पैंतीस किलो पर अटके हुए हैं ?' तो क्या ज़वाब देगा ?

बोला- उसी को समझाने के लिए तो बाज़ार चलना है |कोई फोटो शॉप ढूँढ़ते हैं |

हमने कहा- फोटो शॉप नहीं, फोटो स्टूडियो बोल |

बोला- मैं ठीक कह रहा हूँ |हमें स्टूडियो नहीं 'फोटो शॉप' जाना है |

हमने पूछा- इन दोनों में क्या फर्क है ?

बोला- स्टूडियो में फोटो खींचे जाते हैं और शॉप में बने बनाए फोटो से छेड़छाड़ करके नई तरह का फोटो बना दिया जाता है जैसे ओबामा से हाथ मिलाते हुए मोदी जी के फोटो से छेड़छाड़ करके तुझे मोदी जी से हाथ मिलाते हुए दिखाया जा सकता है | तू वह फोटो दिखाकर लोगों पर रोब जमा सकता है |  

हमने फिर पूछा- तो तू वहाँ क्या करवाएगा ?

बोला- मैं अमित शाह जी के फोटो पर अपना सिर चिपकवाकर एक फोटो बनवाऊँगा और दूसरा अपना ओरिजिनल फोटो |दोनों को विज्ञापन में एक साथ छपा दूँगा |और नीचे लिखवा दूँगा- मनचाहा वज़न प्राप्त करने का 'मंत्रा' पाइए | बिलकुल मुफ्त |नेट पर जाइए, लाइक का बटन दबाइए और मनचाहा बदन पाइए |

हमें फिर शंका की- इससे क्या होगा ?

बोला- देश में करोड़ों लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं और मुफ्त का डाटा |समय की तो कोई कमी है ही नहीं |मुफ्त के नाम पर इस देश के लोग ज़हर भी खा जाते हैं |इस देश में दो ही तरह के लोग हैं या तो मोटे या पतले |दोनों कुंठाग्रस्त है |दोनों ही बटन दबाएँगे |और इस दबाव में विज्ञापनदाता मेरी साइट पर विज्ञापन देंगे |बस, फिर क्या ? कमाई ही कमाई |

हमने पूछा- लेकिन अमित शाह की बीस इंची घेरे वाली गर्दन पर तेरी यह नौ इंची गर्दन फिट कैसे होगी ?

बोला- वैसे ही जैसे प्राचीन काल में प्लास्टिक सर्जरी के बल पर एक शिशु की गर्दन पर हाथी के बच्चे का सिर फिट कर दिया जाता था |

  

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Mar 6, 2019

हिसाब-किताब

हिसाब-किताब  

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने घोषणा कर दी- तोताराम, मई २०१९ में मोदी जी को एक टर्म और मिलेगी |

बोला- क्यों, क्या तेरा भी मुलायम जी की तरह आय से अधिक संपत्ति का कोई मामला तो लंबित नहीं है ?

हमने कहा- हमारा आय से अधिक संपत्ति का मामला कहाँ से आएगा ? हमारी तो हो चुकी आय भी अभी तक तीन साल से अटकी पड़ी है |पता नहीं, मिलेगी भी या नहीं ? या जब मिलेगी तब तक उसकी क्रय शक्ति कितनी घट चुकी होगी ? पे कमीशन का पूरे तीन साल का एरियर बकाया है |

बोला- नियति पर विश्वास रख |हिसाब-किताब घूम फिरकर युगों बाद भी करना पड़ता है |

हमने कहा- कुछ होता-हवाता नहीं |जो खा गया, सो खा गया | बाद में पीटते रहो लकीर |नीरव मोदी का मामला ठंडा पड़ गया कि नहीं ? देशभक्ति के इस दौर में अब कोई आवाज़ उठाने में भी डरता है |लेकिन तू हमारे एरियर का हिसाब-किताब होने को लेकर इतना आश्वस्त कैसे है ?

बोला- मास्टर, ये जो मोदी जी संगम पर स्वच्छाग्रहियों अर्थात सफाई कर्मचारियों के चरण धो रहे हैं, यह क्या है ?

हमने कहा- मायावती बहिन जी के अनुसार- 'इस तरह से वादाखिलाफी के पाप नहीं धुलेंगे' |कुछ इसे चुनावी स्टंट कह रहे हैं |राज बब्बर कह रहे हैं कि इससे अच्छा तो सफाई कर्मचारियों को कपड़े दे देते |  

बोला- ये सब फालतू के कमेंट हैं |यदि चरण धोने से मोदी जी या भाजपा के पाप नहीं धुलेंगे तो खुद की मूर्तियाँ बनवाने से कौन-सा दलितों का उद्धार हो जाएगा |सच का किसीको पता नहीं |यह तो कोई आपके अनुज जैसा त्रिकालदर्शी ही जान सकता है |

आज तोताराम का यह ज्योतिषाचार्यावातार हमारे लिए नितांत नया था |उत्सुकता हुई, पूछा- बता, जल्दी बता, सच क्या है ?

बोला- पिछले जन्म में मोदी जी राम थे और ये सफाई कर्मचारी उस केवट के परिवार के सदस्य जिसने राम, सीता और लक्ष्मण को अपनी नाव से सरयू पार करवाई थी |उस समय नोटबंदी के कारण राम के पास केवल हजार और पाँच सौ के ही नोट थे जो केवट ने लिए नहीं; और कह दिया-

फिरती बार मोहि जो देवा 
सो प्रसाद मैं सिर धरि लेवा 

इसके बाद रामचरित मानस में केवट और राम के हिसाब-किताब का कोई प्रसंग नहीं आता |यह वही हिसाब-किताब है |

हम चकित, पूछा-कैसे ?

बोला- पहले केवट ने राम के चरण धोने के बहाने अपने परिवार और पूर्वजों-पितरों तक का उद्धार करवा लिया था |स्वर्ग में आरक्षण ले लिया था |अब इस जन्म में मोदी जी ने इनसे अगले चुनाव में अपने, अपने संघ-परिवार और पिछली पाँच सहस्राब्दियों के ब्राह्मणवादी पितरों-पुरुखों के उद्धार का वचन ले लिया |  

हमने कहा- लेकिन तोताराम, केवट-प्रसंग में तो यह भी आता है-

पद पखार जल पान करि,आपु सहित परिवार |
पितरु पार करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ ले पारि ||

केवट ने राम के चरणामृत का आचमन भी किया था उसका तो हिसाब इस पद-प्रक्षालन में नहीं हुआ |

बोला- भावार्थ समझाकर | केवट ने भी राम से डील फाइनल होने के बाद जलपान किया |फिर  राम, सीता, लक्ष्मण को सरयू पार करवाई |उसी तरह मोदी जी ने भी पहले स्वच्छाग्रहियों के चरण धोए, फिर जलपान किया और फिर रैली में भाषण दिया |

पूछा- तो तोताराम, यह भी हिसाब लगा कि हम अपने पे कमीशन के एरियर के लिए किस केवट के चरण धोएँ ? 

बोला- हे अग्रज, यदि तोताराम को मौसम-विज्ञान का इतना ही ज्ञान होता तो राम विलास पासवान जी की तरह परिवार शक्ति पार्टी का प्रधान नहीं होता ! क्यों अडवानी जी की तरह तेरे इस निर्देशक मंडल के बरामदा-कार्यालय में बैठकर मुफ्त की चाय का इंतज़ार करता रहता |






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Mar 5, 2019

सबसे बड़ी गीता



सबसे बड़ी गीता 


जैसे कुछ मनहूस लोग दुःखी होने का मौका खोज ही लेते हैं वैसे तोताराम हमें बधाई देने का कोई न कोई अवसर निकाल ही लेता है |आते हो बोला- बधाई हो, भी साहब |

हमने पूछा- बधाई किस बात की ? पे कमीशन के एरियर की तो कोई संभावना है नहीं | और जब देश संकट में हो तो अपनी छोटी-छोटी तकलीफों का रोना लेकर बैठना शोभा भी नहीं देता |देखा नहीं, केजरीवाल जी ने भी अपना अनशन स्थगित कर दिया कि नहीं ? 

बोला- वह तो होता भी तो प्रतीकात्मक होता |आजकल आंध्र वाले रामुलू की तरह कोई वास्तव में आमरण थोड़े ही करता है |वैसे भी ये सब अब मई २०१९ तक चलते ही रहेंगे |मैं तो दुनिया की सबसे बड़ी गीता के अनावरण की बधाई दे रहा था |

हमने कहा- इसमें क्या ख़ास बात है ? वैसे भी महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य है ही |और जहाँ तक गीता की बात है तो उसमें ७०० श्लोक हैं |उनमें चौथे अध्याय का १२ वाँ श्लोक ही उस गीता का सार है- सिद्धिर्भवति  कर्मजा- कर्म से ही सिद्धि होती है, व्यर्थ के नाटकों से या केवल कामना मात्र से सिद्धि नहीं होती |इसलिए इसे बड़े या छोटे आकार में लिखना-लिखाना कोई महत्त्व नहीं रखता |पैसे और पहुँच हो तो कोई भी कुछ भी करके गिनीज बुक में अपना नाम लिखवा सकता है | देखा नहीं, डबल श्री जी ने और कुछ नहीं तो हजारों लोगों को इकठ्ठा करके यमुना के किनारे नचाकर रिकर्ड बना दिया था कि नहीं ?  चार सौ श्लोक तो बहुत होते हैं |तेरे पास पैसे हों तो तू कोई पहाड़ खरीदकर उस पर अपने हस्ताक्षर खुदवाकर सबसे वज़नी हस्ताक्षर का रिकर्ड बना सकता है |

बोला- हाँ मास्टर, यह बात तो है | अपने सीकर में चातुर्मास के दौरान अगस्त  २०१७ में  जैन संत तरुण सागर ने भी तो अपनी ५१ फुट ऊँची और ३१ क्विंटल वज़नी पुस्तक का विमोचन किया था |

हमने पूछा- क्या तूने उस पुस्तक को देखा था ?

बोला- मास्टर, एक बार मन तो किया लेकिन फिर डर के मारे रुक गया |जिस देश में जब-जहाँ चाहे पुल आदि गिर जाते हैं वहाँ एक पुस्तक की क्या बिसात |इसलिए रिस्क  नहीं ली |क्या पता, मेरा जिस क्षण उसके पास जाना हो उसी क्षण उसे गिरना हो | 

हमने कहा- फिर भी तोताराम, इस गीता में एक विचित्र संयोग तो ज़रूर है |इसका अनावरण मोदी जी ने किया |मोदी जी गुजरात से दिल्ली आए हैं |कृष्ण भी महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए गुजरात से हस्तिनापुर आए थे और गीता का उपदेश दिया था |गीता की यह रिकार्डधारी प्रति भी पहले समुद्री मार्ग से गुजरात पहुँची फिर दिल्ली के इस्कोन मंदिर में आई |गीता को शंकराचार्य ने उपनिषद् रूपी गाय का दूध कहा है |मोदी की शैली में गीता, गुजरात और गाय का अनुप्रास भी मिल जाता है |

बोला- इसमें एक और विचित्र संयोग है | मोदी जी के राजनीतिक दर्शन में इटली का भी प्रमुख स्थान है और मज़े की बात यह है कि भारत के समस्त ज्ञान-विज्ञान के बावजूद गीता की इस सबसे बड़ी प्रति का निर्माण भी इटली में किया गया |

हमने कहा- लेकिन इसे पढ़ेगा कौन ? यहाँ तो किसी सामान्य आदमी की अर्थी को उठाने के लिए चार आदमी नहीं जुटते जबकि इस गीता का तो पन्ना पलटने भर को चार आदमी चाहियें |









 

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Mar 3, 2019

चंचल लोलिताएँ और वार्धक्य की कुंठा



  चंचल लोलिताएँ और वार्धक्य की कुंठा 

कल बसंत पंचमी आने वाली है और दिल्ली में बेमौसमी ओलों ने जाने किस-किस के फागुनी इरादों पर पाला पटक दिया |लोग आरोपों की गरमी से खुशनुमा वातावरण बनाने की असफल कोशिश कर रहे हैं |२ और ३ फरवरी २०१९ को लखनऊ विश्वविद्यालय में 'महात्मा गाँधी और हिंदी साहित्य' पर एक आयोजन में गए थे |वहाँ एक पीला लखनवी कुरता भेंट में मिला | अभी बंगलुरु में हैं |अखबार में ओलों से सफ़ेद हुई दिल्ली की सड़कें देखकर भेंट में मिला कुरता पहनने की हिम्मत नहीं हो रही |हिम्मत करें तो भी राजस्थान में शुरू हो चुके गुज्जर बंधुओं के शांति पूर्ण आन्दोलन और उसका इतिहास याद करके फिर कँपकँपी छूटने लगती है क्योंकि ११ फरवरी को जयपुर होते हुए सीकर जाना है |बैंगलुरु में पंखे चलने लग गए हैं |बालकनी में बैठकर अकेले चाय पी रहे हैं |तोताराम यहाँ नहीं है |

अकेले चाय पीने में मज़ा नहीं आ रहा है और फिर यहाँ के अंग्रेजी अखबार में मुखपृष्ठ पर खबर है कि कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने जनता दल सेक्यूलर के कुमार स्वामी और कांग्रेस को डर सता रहा है कि कहीं उनके १० विधायक किसी छिनाल की तरह बेवफाई न कर गुजरें |इसलिए स्वामी ने उन्हें पत्र लिखकर दल बदल  के विरुद्ध कार्यवाही की धमकी दी है |

हमने अपने मोबाइल के बचे-खुचे बेलेंस की बलि देकर 'मोदी स्टाइल' में तोताराम से चाय पर चर्चा करने का साहस जुटाया |कहा-  तोताराम, यह क्या हो रहा है ? एक तरफ तो लोग बुरका और पर्दा प्रथा को समाप्त करके महिलाओं का सशक्तीकरण कर रहे हैं और जनता दल एस और कांग्रेस को अपने ही सदस्यों पर विश्वास नहीं है |ये उन्हें परदे में रखना चाहते हैं |नीची निगाह किए अपने पीछे-पीछे चलाना चाहते हैं |क्या सिद्धांतों का पतिव्रत-धर्म इतना कमजोर हो गया ? क्या भाजपा के शोहदे इतने साहसी हो गए हैं कि विधायक-सुंदरियों का सदन पहुँचना तक मुश्किल हो गया है ?

तोताराम ने फोन पर अपना स्वर ऊँचा करते हुए कहा- मास्टर, ज़माना बदल गया है |हर सुंदरी अपने यौवन की अच्छी कीमत तत्काल चाहती है |कैसा पातिव्रत्य और किसी लज्जा ? जवानी ढलने के बाद कोई नहीं पूछता | और इस लम्पटता के लिए भाजपा को ही दोष क्यों देता हैं ? अपने-अपने विधायकों को होटल-होटल, रिसोर्ट-रिसोर्ट लिए फिरने का इतिहास कोई नया नहीं है |कर्णाटक, हरियाणा, आंध्र, गुजरात, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र कहाँ नहीं हुआ यह चंचल लोलिताओं को लिए-लिए होटल-होटल फिरने का नाटक ?

हमने पूछा- तोताराम, बात को बदल मत |अच्छी भली राजनीति में यह 'लोलिता' कहाँ से आगई ? क्या यह कहीं कटरीना जैसी कोई अमरीकी तूफ़ान-सुंदरी तो नहीं है ?

बोला- नहीं |यह तो फ्रांस में १९५५ में छपा रूसी-अमरीकी ब्लादीमीर नाबाकोव का एक उपन्यास है जिसमें हम्बर्ट नाम का एक अधेड़ विधुर बारह वर्ष की एक कन्या की ओर आकर्षित होता है और उसे पाने के लिए उसकी विधवा माँ से शादी करता है |इस प्रकार वह रिश्ते में उस लड़की का सौतेला बाप बन जाता है | इस उपन्यास का यह प्रेम केवल एक नाबालिग लड़की से संबंध बनाने के कारण ही अनुचित नहीं है बल्कि इसमें पारिवारिक रिश्तों की शुचिता पर भी आँच आती है |हम्बर्ट हत्या का अपराधी भी है |वह इस दोहरे अपराध की कुंठा से बचने के लिए लोलिता को लिए-लिए  जगह-जगह फिरता है |

आज की राजनीति में लोक कल्याण का पौरुष किसी के पास नहीं है |भ्रष्टाचार के सब अपराधी हैं |  सत्ता की लोलिता को सब कब्जाना चाहते हैं |और लोलिता है कि बाथरूम के पाइप से फिसलकर फरार हो जाती है |

हमने कहा- तोताराम, हमने भी बचपन में चोरी-चोरी यह उपन्यास पढ़ा तो था लेकिन अब पूरी कहानी याद नहीं |लेकिन उसमें ऐसा कुछ नहीं था |लोलिता पाइप से फिसलकर नहीं भागती है |

बोला- फिर असाहित्यिक बात कर दी |अरे, ये विधायक ही तो चंचल लोलिताएं हैं |याद नहीं, १९८२ में चौधरी देवीलाल अपने और भाजपा के विधायकों को लेकर दिल्ली के एक होटल में चले गए थे और उनमें से एक विधायक बाथरूम की पाइप से नीचे उतर कर फरार हो गया था और अगले ही दिन हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन गई थी |





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