Aug 30, 2018

कहा था न शंका मत कर



कहा था न शंका मत कर


आज तोताराम ने आते ही कहा- देख, चाहे कोई आदमी समाचार लेकर आए या तेरे मोबाइल पर मेसेज आए; बिना कुछ बोले, चुपचाप माफ़ी माँग लेना |

हमने कहा- हमने क्या गलती, अपराध, जुर्म या पाप किया है जो माफ़ी माँग लें ?

बोला- गौरव और अस्मिता वाले जिस तरह जोश में भरे हुए होते हैं उसे समझ पाना या उसे झेल पाना किसी के बस का नहीं होता |यदि माफ़ी माँगने पर भी वे छोड़ देते हैं तो गनीमत समझना |हमारे शास्त्रों में ऐसे ही दिनों की कल्पना करके कह गया है-
छमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात |मतलब छोटो का काम उत्पात मचाना है और बड़ों का काम क्षमा माँगना है |

हमने कहा- लेकिन हमें तो इसका अर्थ पढाया गया था कि यदि छोटे उत्पात करें तो भी बड़ों को चाहिए कि वे छोटों को क्षमा कर दें |

बोला-  क्षमा तो कोई माँगेगा तब करेगा ना |वे किसी से भी क्षमा नहीं माँगते क्योंकि गर्व और अस्मिता वाले गलती कर ही नहीं सकते तो क्षमा का प्रश्न ही कहाँ से उठेगा ?यदि वे किसी को क्षमा कर दें तो सौभाग्य समझना |

हमने कहा- लेकिन तुझे किसी 'अस्मिता-आक्रमण' या 'मोब लिंचिंग' की शंका क्यों हो रही है ?

बोला- मुझे अपनी शंका की फ़िक्र नहीं है | मुझे तो उस शंका को लेकर फ़िक्र हो रही है जो तूने मोदी जी द्वारा नाले की गैस से चाय बनाने पर की थी | किसी श्याम राव शिर्के ने स्टेटमेंट दिया है कि उसने इस प्रकार नाले की गैस से चाय बनाई थी |उसके पेटेंट के लिए आवेदन भी किया था लेकिन अभी तक कोई संतोषजनक ज़वाब नहीं आया है |श्यामराव शिर्के राहुल गाँधी द्वारा मोदी जी की 'गैस-गाथा' का मजाक उड़ाने से नाराज़ और दुखी है |किसे पता, तेरे शंका करने से भी कोई न कोई नाराज़ हो जाए |और तेरा नागरिक अभिनन्दन कर जाए |इसलिए कोई भी कहे तो तत्काल क्षमा माँग लेना और भविष्य में भारतीय विज्ञान के विरोध में कुछ न बोलने की कसम भी ले ले |

हमने कहा- ठीक है बन्धु, अब तो हम भी अपने एक इन्नोवेशन का रजिस्ट्रेशन करवाने वाले हैं कि जब हमारे यहाँ गैस ख़त्म हो जाती है तो हम अपनी गाय मुँह में रेगुलेटर फिट कर लेते हैं और समस्या हल हो जाती है |गाय की जुगाली से भी तो मीथेन गैस बनती है |यदि कोई आदमी गेस्टिक का मरीज हो तो वह भी अपने मुँह में रेगुलेटर फिट करे इस गैस का ईंधन के रूप में उपयोग कर सकता है |इस प्रकार गैस से होने वाले कष्ट से भी छुटकारा मिलेगा और बचत तो होगी ही |पूरे देश का हिसाब लगाएँ तो हिसाब हजारों करोड़ पर जाकर बैठेगा | 
इससे एक साथ ही भारतीय विज्ञान में हमारी आस्था, गौभक्ति दोनों प्रमाणित हो जाते हैं |

बोला- अक्ल की तो तुझ में भी कमी नहीं है |हो सके तो ऐसे ही आविष्कारों पर एक किताब तैयार कर ले | क्या पता इंजीनियरिंग कालेज के पाठ्यक्रम में ही लग जाए | बुढ़ापे में दो पैसे की कमाई हो जाएगी और इज्ज़त मिलेगी सो अलग |

 





 


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Aug 26, 2018

बायो फ्यूअल डे की बोध-कथा उर्फ़ गकार की गड़बड़



 बायो फ्यूअल डे की बोधकथा उर्फ़ गकार की गड़बड़ 

१० अगस्त को वर्ल्ड फ्यूअल डे पर मोदी जी के भाषण के कारण आज तक हमारा मूड उखड़ा हुआ है |हमारे मन की बात कौन सुनने वाला है ? ले-दे के एक तोताराम है |आते ही उसे पकड़ लिया, कहा- तोताराम, मोदी जी के पास विकास और कांग्रेस-मुक्त- भारत जैसे दो बड़े काम हैं |उन्हें उन्हीं में मन लगाना चाहिए |गाँव की चौपाल में गप्पें लगाने की बात और है |बड़ी जगहों पर हर बात में विज्ञान की टाँग तोड़ने वाला शौक छोड़ देना चाहिए |अब गंदे नाले से सीधे पाइप लगाकर चाय वाले द्वारा चाय बनाने की कथा सुनाने की क्या ज़रूरत थी ? लोग मजाक बनाते हैं |केजरीवाल ने तो ट्वीट किया है- 'इसीलिए कहा है कि देश का प्रधान मंत्री पढ़ा-लिखा होना चाहिए' | मोदी जी तो स्टेटमेंट दे देते हैं और हमें बिना बात शर्मसार होना पड़ता है |

बोला- इतनी भी क्या जल्दी है ? हो लेना शर्मसार भी |शर्मसार होने के मौके तो रोज आते हैं |ऐसे ही शर्मसार होने लगे तो और काम कैसे करेंगे ? नीतीश जी को मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय स्थल की घटना पर शर्मसार होने में तीन महीने लगे कि नहीं ? और इस शर्मिंदगी का परिणाम कब आएगा, पता नहीं ? मोब लिंचिंग पर मोदी जी अभी तक शर्मसार नहीं हुए हैं |तुझे ही इतनी क्या जल्दी पड़ी है ?

हमने कहा- तोताराम, अपने देश की बात और है |वह तो गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी, महाभारत में टी.वी. और इंटरनेट सब कुछ सुन और मान भी लेगा लेकिन यह केवल भारत की ही बात नहीं है |आजकल तो हर बात उसी समय सारी दुनिया में फ़ैल जाती है |और फिर ट्वीट केवल मोदी जी ही थोड़े करते हैं |दूसरे भी तो ट्विटर पर हैं, वे भी ऐसी बातों को ले उड़ते हैं |

बोला- तू केजरीवाल की बातों में मत आ |उसकी डिग्री में आई आई टी है और बीटेक है |साइंस कहाँ लगा हुआ है ? जब कि मोदी जी की डिग्री में तो 'पोलिटिकल साइंस' लगा हुआ |उससे तो अधिक ही साइंस जानते हैं | और फिर मोदी जी भारतीय संस्कृति और वांग्मय के जानकर हैं इसलिए प्रतीकों और मिथकों में बात करते हैं जिन्हें ज्ञान और विज्ञान दोनों का विद्वान ही समझ सकता है |वे बोधकथाओं में बात करते हैं | बोध कथाएँ शब्दार्थों पर नहीं, संकेतों पर चलती हैं | दुनिया का समस्त विज्ञान पहले कथाओं और कल्पनाओं में ही तो आता है |इसलिए मोदी जी की बोध कथाओं में छुपे विज्ञान को पहचान |वे संश्लिष्ट विज्ञान को बोधकथाओं में सरल बनाकर बता रहे थे |  कुछ लोग 'गकार' के कारण कन्फ्यूज हो जाते हैं तो इसमें मोदी जी क्या करें ?|

हमने पूछा- यह गकार क्या है ?

बोला- अकार, आकार, इकार की तरह  'ग' से शुरू होने वाले शब्द गकार कहलाते हैं |जैसे गंगा, गाय, गीता, गोबर, गणेश, गैस, गर्व, गौरव आदि |ये सब निर्गुण-निराकार की तरह अव्याख्येय हैं | गंगा पवित्र है लेकिन कभी स्वच्छ नहीं हो सकती | गाय की सेवा से स्वर्ग मिलता है लेकिन कोई गौ रक्षक या गौशाला का अध्यक्ष गाय नहीं रखता | बकरी और गधा सड़क पर धक्के खाते नहीं मिलेंगे लेकिन गाय की दुर्गति है |ऐसे ही जब दिमाग में गौरव या गर्व की वृद्धि हो जाती है तो वह बाहर से तो दिखाई नहीं देती लेकिन उसके कारण आदमी किसी को भी देशद्रोही समझने लगता है, जब तक किसी की पिटाई न कर दे तब तक शांति नहीं मिलती |ऐसे ही जब ज्ञान की गैस दिमाग में भर जाती है तो आदमी सर्वज्ञ हो जाता है |बात, बिना बात दूसरों को भाषण पिलाने का मन करता है | 

इसलिए अच्छा हो कि हम 'गकार' पीड़ितों को गंभीरता से न लें |यदि समझ सकें तो उनकी बोधकथाओं के निहितार्थ को समझें | नहीं तो,मुफ्त के मनोरंजन में क्या बुराई है ? 




















 

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Aug 23, 2018

अठारह अगस्त का महत्त्व

 अठारह अगस्त का महत्त्व 

कल हमारा जन्म दिन था |सबका ही कोई न कोई जन्मदिन होता है |हर दिन कोई न कोई जन्म लेता है |एक नहीं, करोड़ों जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं |लेकिन आदमी है कि अपने से परे न देखता है न सोचता है |यदि थोड़ी देर के लिए आत्मरति से मुक्ति प्राप्त कर ले तो समस्त तत्त्व ज्ञान एक क्षण में ही हो जाता है | समस्त ज्ञात-अज्ञात जानकारी के अनुसार जितना बड़ा ब्रह्माण्ड है उसमें पृथ्वी का अस्तित्तव ही इतना सूक्ष्म और लगभग नगण्य है तो उस पृथ्वी पर पैदा होने वाले एक क्षणभंगुर मनुष्य का अस्तित्त्व क्या मायने रखता है ?लेकिन मनुष्य है कि पता नहीं किस भ्रम में पड़ा जाने कहाँ-कहाँ सेल्फी लेता फिरता है |अपने आप को समाचारों, स्मारकों, मीडिया और साक्षात्कारों में टाँगता फिरता है |तभी कवि कहता है- 
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात |

लीजिए, हम तो दार्शनिक हुए जा रहे हैं | सर्विस रिकार्ड में हमारा जन्मदिन ५ जुलाई है क्योंकि आज़ादी से पहले न तो जन्म का कोई प्रमाण-पत्र हुआ करता था और न ही मृत्यु का |सब कुछ परम पिता परमात्मा के हवाले |पाठशाला में प्रवेश के दिन गुरूजी बच्चे को पाँच वर्ष का बना दिया करते थे |इस आधार पर कहा जा सकता है कि हमारा शाला-प्रवेश ५ जुलाई को हुआ था |

वास्तव में हमारा जन्म दिन १८ अगस्त १९४२ ईसवी सन है |भारतीय गणना के हिसाब के श्रावण शुक्ल सप्तमी संवत १९९९ |कुछ विद्वानों के अनुसार कहते हैं इस दिन तुलसीदास जी का जन्म भी हुआ था |जन्म दिन एक होने से हम कोई तुलसीदास तो हो नहीं सकते |और हो भी जाएँ तो आजकल तुलसीदास जी महत्त्व ही क्या रह गया है ? तुलसी के नाम से लोग 'तुलसी ज़र्दा' समझते हैं |

शाम को बेटों, बहुओं और पोते-पोतियों के फोन आए |वैसे उसके बिना भी हमें याद था कि अस्सी साल की उम्र में सवाई होने वाली पेंशन में अभी चार साल दूर है |हमारा फेसबुक अकाउंट भी नहीं है कि  'झूठा ही सही ...'  गाने की तर्ज़ पर कोई बधाई दे देता |

कल तोताराम सुबह नहीं आया |शाम को आया और हमारे मुँह में रसगुल्ला ठूँसते बोला-खा मिठाई |

हमने कहा- धन्यवाद | वैसे हमारे जन्म दिन पर इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी ?तेरा प्रेम ही हमारे लिए बहुत बड़ी नेमत है |

बोला- तेरे लिए किसने खर्च किया है सौ का नोट ?

अचानक हमें वैसे ही एक हल्का-सा धक्का लगा जैसे जनवरी २०१८ के उपचुनावों में भाजपा को लगा था | फिर भी २०१९ के चुनावों के अतिविश्वास की तरह हिम्मत बाँध कर कहा- तो फिर लगता है यह मिठाई केंद्रीय विद्यालय के रिटायर्ड कर्मचारियों को सातवें पे कमीशन के एरियर की ख़ुशी में है ? 

बोला- पहले तो सातवें पे कमीशन के एरियर के बारे में सरकार वैसे ही खामोश है जैसे मोब लिंचिंग के बारे में मोदी जी | और यदि अब मिल भी गया तो इसमें ख़ुशी जैसा रह ही क्या गया है ? वैसे सुना है सरकार का इरादा २०१६-१७ का एरियर हजम कर जाने का है |

हमने कहा- तो क्या अच्छे दिन आ गए ?

बोला- अच्छे दिन आ गए और लोग उनका मज़ा भी ले रहे हैं |इसलिए इस बात को तो उपलब्धि मानकर प्रसन्न होने का नाटक कर |नहीं तो स्वामी अग्निवेश की तरह तेरा भी अभिनन्दन हो जाएगा |

हमने कहा- तो फिर अब तू ही बता कि इस एक रसगुल्ले का किस भाव से आनंद लें ?  तूने तो हमारी वह हालत कर दी जब किसी राजनीतिक स्वार्थ के लिए सरकारें किसी शोक समाचार को इतना निचोड़ती हैं कि नागरिक सोचने लग जाते हैं कि इससे तो अच्छा तो 'अमुक' की जगह हम ही मर जाते |

बोला- शांत हों आदरणीय | आप तो ऐसे ही छोटे-मोटे समाचारों में खोए रहते हैं |पता होना चाहिए, आज प्रियंका चोपड़ा का अपने से दस साल छोटे अमरीकी गायक निक के साथ 'रोका' हो गया है |यह रसगुल्ला उसी की ख़ुशी में है |

हमने कहा- ठीक है लेकिन मोदी जी के राहुल के लिए 'नामदार' की तरह यह 'दस साल छोटे'  वाला फच्चर बीच में फँसाने का क्या मतलब है ?और इसमें हमारे लिए खुश होने जैसी क्या बात है ?

बोला- सभी महान विवाह ऐसे ही होते हैं जैसे अभिषेक, सचिन दोनों अपनी बीवियों से छोटे हैं |कहते हैं राधा भी कृष्ण से उम्र में बड़ी थी | और तेरे लिए खुश होने की बात यह है कि तू किसी को भी बता सकता है कि तेरा जन्म उस दिन हुआ था जिस दिन प्रियंका का निक के साथ रोका हुआ था |

हमने कहा- तोताराम, ये सब मीडिया और विज्ञापन के खेल हैं अन्यथा भारत का  स्वतंत्रता-दिवस और जेल की हवा खा रहे राम-रहीम का जन्म दिन १५ अगस्त को ही पड़ते हैं |अब, इसे क्या मानें ? स्वाधीनता-दिवस या लम्पटता-दिवस या अंध-श्रद्धा -दिवस  हैं ?  


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Aug 21, 2018

राजनीति की अक्षय ऊर्जा




 राजनीति की अक्षय ऊर्जा  

यह है लाला का दिमाग |कचरे के करोड़पति बनने की कला |अब तक लोग दिल्ली में जगह-जगह कचरे के पहाड़ इकट्ठे करते रहे और लोग बदबू में सड़ते रहे |सफाई के नाम पर बिल बनाते रहे और दिल्ली के गाजीपुर जैसे कई इलाकों में कूड़े के पहाड़ खड़े कर दिए | लेकिन कहते हैं, बारह बरस में तो घूरे के भी भाग बदलते हैं |सो अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के घूरे के भाग बदलने का इंतजाम कर लिया है |लाला, इंजीनीयर और फिर ईमानदार |यह तो होना ही था |

जैसे ही तोताराम आया हमने उसे लपेटा- देखा छोरे का कमाल ! लोगों ने नए-नए कपड़े पहनकर साफ़ जगह पर झाड़ू लगाते हुए फोटो खिंचवाकर 'स्वच्छाग्रह' के नाम पर गाँधी के 'सत्याग्रह' को पीछे धकेल दिया |अब इतिहास के विद्यार्थी कन्फ्यूज होते रहो कि देश को आज़ादी मोदी जी के 'स्वच्छाग्रह' से मिली या गाँधी जी के 'सत्याग्रह' से ? तरह-तरह के टेक्स लगाकर अपना विज्ञापन किया और सफाई के नाम पर जीरो |वही सड़ती हुई दिल्ली और अकड़ते हुए उपराज्यपाल |न कुछ किया और न ही किसीको कुछ करने दिया |खींचते रहे केंद्र सरकार के इशारे पर छोरे की टाँग |

बोला- बातचीत का मतलब किसी की सुनना भी होता है |केवल अपनी-अपनी ही दले जाना बातचीत नहीं, 'मन की बात' होती है |मैं एक चाय में ऐसा इकतरफा एकालाप वाला 'आस्था चेनल' नहीं सुन सकता |

अब चुप हो और ध्यान से सुन | जिस कचरे से अब बहुत सा पानी,बिजली और ईंधन बनेगा वह कचरा यह तुम्हारा केजरीवाल लाया कहाँ से ? यह उससे वर्षों पहले जनता की सेवा करते आ रहे चौकीदारों की सजगता का कमाल है जिन्होंने न कूड़ा चुराया और न किसी को चुराने दिया, न खुद उठाया और न ही किसी को उठाने दिया, न खुद खाया न किसी को खाने दिया |अब उसीसे कमाई करके केजरीवाल मुफ्त में श्रेय ले रहा है |इसे कहते हैं पूर्वजों की कमाई पर पुण्य कमाना |और फिर जो कहावत तूने शुरू में कही थी उसका क्या मतलब है ? यदि कुछ न करो तो भी सहेज कर रखा गया घूरा बारह बरस में कुछ न कुछ दे ही जाता है |इसमें केजरीवाल का क्या कमाल है ?

हमने कहा- तोताराम, आज हमारा मन तेरे चरण छूने को कर रहा है |इतना सकारात्मक पलटीमार हमने आज तक नहीं देखा-सुना |रपट पड़े तो 'हर-हर गंगे' जपने लगे |

बोला- ज़र्रानवाज़ी के लिए धन्यवाद लेकिन मैं ऐसा धृष्ट भी नहीं हूँ कि बुजुर्गों के हाथ जोड़ने को भी अनदेखा कर दूँ |चल, इस उत्साहवर्द्धन के लिए मैं ही तेरे चरण छू लेता हूँ |

ऐसा कह कर तोताराम ने हमारे चरण छुए |

हमने कहा- तोताराम, जब कचरे से भी कुछ न कुछ उपयोगी बन सकता है तो हम पिछले हजारों वर्षों में हुए दो-चार कामों के साथ-साथ हो चुके बहुत से युद्धों, उतार-चढ़ावों, मन मुटावों, दुष्टताओं, शोषण, अत्याचारों और बुरे कामों से भरे इतिहास के कचरे से क्या कुछ बेहतर नहीं बना सकते ?  क्या हम इस अनुभव को ऊर्जा में नहीं बदल सकते ? क्या कटुताओं के कचरे को प्रकाश में बदलकर घरों को रोशन नहीं कर सकते ? क्या इसके ईंधन को रोटी सेंकने वाली आग के रूप में काम में नहीं ले सकते ? 

बोला- तुम्हारा कहना ठीक है लेकिन फिर सत्ता-सुख का क्या होगा ? आज तक चतुर और दुष्ट लोगों ने इतिहास के इस कचरे को कालिख, कुतर्क और कटुता के काम में ही लिया है |यह कचरा ही इनकी अक्षय राजनीतिक ऊर्जा है |ये इसे नष्ट नहीं होने देंगे बल्कि नए-नए मुद्दों और तर्कों से इसे जीवन के हर क्षेत्र में ले जाएँगे  | रंग, पशु-पक्षी, कला, साहित्य, धर्म, खान-पान, पहनावा, बोली-भाषा आदि सबके नाम पर भेदभाव फ़ैलाने के लिए |और यह हाल अपना ही नहीं, दुनिया के सभी धर्मों-समाजों के तथाकथित संतों-पीरों-औलियाओं और उच्च चरित्र के नेताओं का है |

यह कचरा ही इन सबकी अक्षय ऊर्जा है |


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Aug 19, 2018

अटल जी को याद करते हुए

अटल जी को याद करते हुए 



अटल जी से बहुत से लोगों के बहुत से संस्मरण जुड़े हुए हैं | इस बार की पोस्ट में मैं भी उनके बारे में अपनी कुछ यादें आपके साथ साझा करना चाहता हूँ |

उनके साथ सबसे बड़ी बात यह थी कि वे भी नेहरू जी की तरह लोकतंत्र के लिए हास्य-व्यंग्य को बहुत ज़रूरी मानते थे और खुले मन से उनकी प्रशंसा करते थे |

एक बार की घटना है कि नेहरू जी की कुछ बातों को पसंद न करने वाली एक कार्यकर्त्ता ने संसद से बाहर निकलते हुए नेहरू जी का कालर पकड़ लिया और पूछने लगी कि हमें इस आज़ादी से क्या मिला ? नेहरू जी ने उत्तर दिया- यह मिला कि आप देश के प्रधान मंत्री का कालर पकड़े खड़ी है |

एक और किस्सा- प्रसिद्ध व्यंग्य चित्रकार लक्ष्मण ने अपने एक कार्टून में प्रकारान्तर से नेहरू जो गधा बताया |उसके कुछ दिनों बाद जब लक्ष्मण दिल्ली गए हुए तो उन्हें नेहरू जी का फोन मिला- क्या तुम आज एक गधे के साथ चाय पीना पसंद करोगे ? 

तो यह है एक झलक इस देश के कुछ उदार नेताओं की और अब ? 

बस, यही सोचते हुए यह पोस्ट प्रस्तुत है |

इसके साथ ही हास्य-व्यंग्य के वे कुछ पत्र भी शेयर कर रहा हूँ जो अटल जी के नाम उनके सत्ता में रहते हुए लिखे थे |इन्हें उस समय पाठकों ने बहुत रूचि से पढ़ा था |

आप भी इन्हें बिना किसी पूर्वाग्रह और कुंठा के अटल की जी तरह विकुंठ भाव से ठहाके लगाते हुए पढ़ें |

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अटल जी : जिन्होंने कुर्सी को नीचे रखा, दिमाग में नहीं घुसने दिया


आज अब दुनिया में आलोचना, व्यंग्य और हास्य के लिए स्थान कम पड़ रहा है, खरी-खरी कहने वाले लिंचिंग और लफंगई के शिकार हो रहे हैं तब हास्य और व्यंग्य को सहज भाव से स्वीकार करने वाले अटल जी बहुत याद आ रहे हैं |स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जन सेवकों का अटल जी जैसा सहज, सामान्य और बालसुलभ  होना बहुत ज़रूरी है |

बात १४ अक्तूबर १९९५ की है |अटल जी के कविता संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएँ' का श्री नरसिम्हा राव द्वारा विमोचन का समाचार |विमोचन में बोलते हुए राव साहब ने अटल जी को अपना गुरु बताया था |
मैं उन दिनों लगातार कुण्डलिया छंद लिख रहा था जो जनसत्ता, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कादम्बिनी आदि में छप भी रहे थे |जैसे ही समाचार पढ़ा कई कुण्डलिया छंद अनायास ही बन गए जिनमें से कुछ इस प्रकार से थे-

शिष्य अटल जी के बने पछताएँगे आप
जो इनका चेला बना उसका पत्ता साफ़
उसका पत्ता साफ़, चंद्रशेखर बतलाएँ
पी.एम. की कुर्सी पर कितने दिन रह पाए
कह जोशी कविराय इरादा बदल दीजिए
इनके चेले शेखर जी से सीख लीजिए

सुनो अटल जी राव की मानो नहीं सलाह
चौथेपन में कैरियर क्यों कर रहे खराब
क्यों कर रहे खराब, इक्यावन पद्य सुनाएँ
सिर पर रखकर पैर सभी वोटर भग जाएँ
कह जोशी कविराय पड़े पछताना कल को
कर कविता बरतरफ सँभालो अपने दल को

चेले तो मिलते बहुत पर है एक सवाल
नहीं चाहिए 'गुरु' इन्हें चहिए 'गुरु घंटाल'
चहिए 'गुरुघंटाल' दलालों से मिलवाए
कुर्सी, कोठी, कार,कमीशन खूब दिलाए
कह जोशी कविराय शिष्य जब समझ जाएँगे
गुरु है फाका मस्त छोड़कर भग जाएँगे

'कैदी कवि अपहरण का' हम को आया ख्वाब
हम कितने बेचैन थे कह ना सकें जनाब
कह ना सकने जनाब, मित्र ने जब समझाया
'कवि का बाँका बाल नहीं कोई कर पाया
कह जोशी कविराय सभी कवि से डरते हैं
अल-फरान*  क्या चीज राव भी गुरु कहते हैं |
(एक तत्कालीन अतिवादी संगठन )

राजनीति और काव्य का नहीं ज़रा भी मेल
जो राजा शायर बना, बिगड़ा उसका खेल
बिगड़ा उसका खेल, ज़फर को जेल हो गई
गया तख़्त औ' ताज शायरी फेल हो गई
कह जोशी कविराय एक पर ध्यान दीजिए
बना रहे हैं राव आपको समझ लीजिए 

नेताजी कवि हो गए, बदल गए बदमाश
सूटकेस तज पढ़ रहे श्लेष और अनुप्रास
श्लेष और अनुप्रास, गोष्ठियां भी करते हैं
'वंस मोर, क्या खूब, बहुत सुन्दर' कहते हैं
कह जोशी कविराय कष्ट सहना पड़ता है
कवि से हो 'गर काम रसिक दिखना पड़ता है |

अटल जी ने १९ अक्तूबर १९९५ को उस पत्र का ज़वाब भी लिख दिया |इतनी सहजता, इतना ज़मीनी और जीवंत जीवन |लोकतंत्र में यही सहजता और विनम्रता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है जो आज की राजनीति में समस्त विश्व में विरल होती जा रही है |नेता लोग अपने शिलापट्ट के लिए सिरफोड़ी करते दिखाई देते हैं, आत्मप्रशंसा और आत्ममुग्धता से ग्रस्त हैं |विश्व राजनीति में आ रहा यह टुच्चापन डराता है |

उनका पत्र इस प्रकार था-

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अटल बिहारी वाजपेयी, नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा
१२/३
१९ अक्तूबर १९९५

प्रिय जोशी जी
आपका १४ अक्तूबर का पत्र तथा चुटकियाँ मिलीं |पढकर मज़ा आगया | आप चुटकियाँ लिखने पर ध्यान दें, प्रकाशन के लिए भेजें | हिंदी में शिष्ट हास्य की कमी है |

जहां तक राजा के शायर होने का सवाल है तो मैं राजा नहीं हूँ यह लोकतंत्र का ज़माना है |सेनेगल के राष्ट्रपति बहुत अच्छे कवि है |फिर कुल जमा ५१ कविताएँ लिखने वाला व्यक्ति कवि भी नहीं कहा जा सकता |
दीपावली की शुभकामनाओं के साथ,

आपका,
अटल बिहारी वाजपेयी



श्री रमेश जोशी
केन्द्रीय विद्यालय नं. १, दिल्ली कैंट

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इसके बाद सामयिक विषयों और घटनाओं पर दो कुण्डलिया संकलन आए | तीन संकलनों पर काम चल रहा है |उनसे कभी साक्षात् मिलना नहीं हुआ फिर भी उनसे एक नाता अनुभव होता है जिसके लिए कोई नाम नहीं सूझ रहा है |सहज और निस्वार्थ नाते बेनाम ही होते हैं |

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सहस्र चन्द्र-दर्शन

( अटल जी के अस्सी वर्ष के होने पर उनका जन्म दिन को 'सहस्र चन्द्र दर्शन' के रूप में मनाने की भव्य योजना )

आदरणीय अटल जी भाई साहब,

नमस्कार और जन्म दिन की बधाई | कहा गया है कि उसी रास्ते का अनुसरण करना चाहिए जो महाजनों ने दिखाया है | महाजनो येन गतः स पंथाः | पर आजकल महाजन वैसे नहीं रहे | पहले महाजन सेवा, सादगी,और संयम का मार्ग दिखाते थे पर आजकल क्लिंटन जैसे महाजन और ही कोई रास्ता दिखाते हैं | गाँधी जी के सचिव महादेव भाई के हिसाब में एक आने का फर्क आ गया तो गाँधी जी ने कहा कि यह रकम वे अपनी जेब से भरें | पर आजकल महाजन ठेका दिलवाने और यहाँ तक कि प्रश्न पूछने तक में पैसा खाते हैं | सांसद निधि को उन्होंने अपना मान कर अपनी एकात्मता का परिचय दिया है | फिर महाजन का अर्थ बदल कर व्यापारी हो गया | जो श्रम और चतुराई से धन कमाते थे पर उन्हें समाज में सेठ का दर्जा तभी मिलता था जब वे समाज सेवा के कामों में धन खर्च करते थे | पहले सारे औषधालय, मंदिर, तालाब, स्कूल, धर्मशालाएँ प्रायः सेठों के बनवाए हुए होते थे | पर आजकल तो वे बंद कमरों में बैठकर व्यक्तिगत हित के लिए राजनीति करते हैं | उनका काम अद्भुत नारे देना, कर्म की जगह विज्ञापन करना और श्रम की जगह बिल बनाना रह गया है |

पिछले चुनावों में ऐसे ही नीति निर्धारकों ने 'फील गुड़' और 'इण्डिया शाइनिंग' के नारे देकर आपका मजाक बनवा दिया और घुटने तुड़वा दिए | अब ऐसे लोग ही 'सहस्र-चन्द्र-दर्शन' का नाटक लाए हैं | कहते हैं दक्षिण में ऐसा चलता है | यदि उत्तरी ध्रुव में नाटक करने का कोई उदहारण मिलेगा तो ये उसका अनुसरण भी कर गुजरेंगे | पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए | एक उत्सव तो सुना है षष्ठी पूर्ति अर्थात साठ बरस पूरे होने का होता है | उस दिन सरकारी कर्मचारी को माला पहनाकर, नाश्ता करवाकर, घर तक पहुँचा कर आते हैं और कह देते हैं कि अब पेंशन में गुजारा चलाना | एक उत्सव होता विवाह की पचासवीं वर्षगाँठ का | उस दिन बूढ़े-बुढ़िया को सजा-धजाकर फोटो खींचे जाते है और उनका तमाशा बनाया जाता है | पर यह चन्द्र-दर्शन तो आज ही सुन रहे हैं | वैसे अमावस्या और प्रतिपदा के अलावा अट्ठाईस दिन चन्द्र-दर्शन होता ही है | ईद का चाँद, दूज का चाँद, पूर्णिमा का चौथ का चाँद, चौदहवीं का चाँद भी सभी जानते ही हैं |

हमने भी बहुत से चाँद देखे हैं और तारे तो किसी भी महापुरुष से दुगुने देखे हैं | वैसे तो बड़े आदमी प्रायः ए.सी.बंगले में रहते हैं सो चाँद-तारे तो क्या देखते होंगे | ये तो हमीं हैं जो दिन में सूरज और  रात में चाँद ही नहीं, दिन में भी तारे देखते हैं | भगवान और कुछ दे न दे पर गरीब का छप्पर तो यदा-कदा फाड़ ही देता है जिसमें से चाँद, तारे, सूरज, धूप, बरसात, पौष की ठंडी हवा और मावठ सभी निधड़क प्रवेश करते हैं |

ठीक है, महाजनों ने हिसाब लगाया है, भव्य आयोजन का प्लान बनाया है | आपको और उनको बधाइयाँ | वैसे व्यक्ति की उम्र चाँद, तारों, दिनों और वर्षों से नहीं नापी जाती, वह तो उसके कार्यों से नापी जाती है | इस दृष्टि से आपकी उम्र सार्थक गुजरी है | साधारण मंच से लेकर लाल किले से आपने भाषण और कविताएँ सुनाई और क्या चाहिए ? आप अस्सी के होने वाले हैं पर आपकी मुस्कान, चेहरे की लाली और जिंदादिली को देखते हुए आप हमें स्वयं से भी छोटे लगते हैं | पर लगने से क्या ? महापुरुषों और सरकारी कर्मचारियों की उम्र किसी से छिपी थोड़े ही रहती है |

आपके प्रधान मंत्रित्व काल में तो आपके जन्म दिन पर महाकवि सुरेन्द्र शर्मा ने एक कवि सम्मलेन का आयोजन करवाया पर अबकी बार ऐसा कोई आयोजन नहीं हो रहा है | शायद शर्मा जी मनमोहन जी और सोनिया जी में कविता तलाश रहे हैं | पर हमारे लिए तो हर हालत में आप हमारे अटल जी भाई साहब हैं | 'चन्द्र-दर्शन' की गिनती तो हमने नहीं की पर जन्म दिवस के उपलक्ष्य में एक बार पुनः बधाई |

२३-१२-२००५

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 ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया

(अटल जी ने कहा- अब चुनाव नहीं लडूँगा, राजनीति से संन्यास ले लूँगा )

अटल जी भाई साब,

जय श्रीराम | इसी कालम में हमने आप से निवेदन किया था कि संन्यास ले लें | उस समय आपने हमारी बात नहीं मानी और आज अचानक संन्यास लेने की घोषणा कर दी | अब प्रमोद महाजन के 'सहस्र चन्द्र दर्शन कार्यक्रम' का क्या होगा ? वे तो अपनी पार्टी के शो मैन हैं, पाँच सितारा ईवेंट मनेजमेंट के पी.एच.डी. हैं |

कहा गया है कि साधारण व्यक्ति के जीवन के चार आश्रम होते हैं पर संन्यासी के जीवन में तो दो ही आश्रम होते हैं | संन्यासी ब्रह्मचर्य से सीधा संन्यास आश्रम में प्रवेश करता है | आजकल नेता उनसे भी महान होने लग गए हैं | उनके बच्चे राजनीति रूपी गृहस्थ आश्रम अर्थात 'काम' में ही जन्म लेते हैं और उसी में जीवन छोड़ते हैं | पशुओं का भी यही हाल है | आजकल टी.वी.व भोगवादी संस्कृति के कारण बच्चा दस साल की उम्र में ही जवान होने लग गया है और तमाम उम्र धर्म, अर्थ और मोक्षविहीन, केवल 'काम' में ही जीवन बिताता है | आप शाखा के ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे ही राजनीति के गृहस्थाश्रम में आ गए | अस्सी बरस के होने पर भी वानप्रस्थ तक का नाम नहीं लिया, सन्यास की कौन कहे | पर देर आयद, दुरुस्त आयद | आपने संन्यास का फैसला ले ही लिया |

यह सन्यास क्या वास्तव में ही सन्यास है या कुछ और ? यह तो समय ही बताएगा | यह राजनीति वास्तव में ऐसा कंबल है जिसे पहले महात्मा जी पकड़ते हैं फिर जब कंबल डुबोने लगता है और महात्मा जी उसे छोड़ना चाहते हैं तब कंबल उन्हें नहीं छोड़ता | हो सकता है अगले चुनाव में लोगों को आपकी ज़रूरत पड़े | और पाँच टाँग वाली अजूबा गाय की तरह आपको रथ में बिठा कर घुमाने लग जाएँ |

आपने कहा कि आप चुनाव नहीं लड़ेंगे पर क्या चुनाव नहीं लड़ने मात्र से ही राजनीति से संन्यास हो गया ? विकल्प खुले रखने से संकल्प नहीं होता | संकल्प के लिए सारे विकल्प छोड़ने पड़ते हैं | कुछ लोग पान छोड़ने के चक्कर में सारे दिन में पाव भर इलायची, सुपारी या खैनी चबाने लगते हैं | अंडा तो अंडा है, क्या शाकाहारी और क्या मांसाहारी | शाकाहार तो वह जो खेत में पैदा होता है | मुर्गी के पेट से निकलने वाला तो अंडा ही होता है | गाँधी जी ने एक बार देखा कि गाय का दूध निकालने वाले गाय पर कुछ इस तरह का दबाव बनाते हैं कि जिससे बेचारी परेशान होकर सारा दूध उतारने के लिए विवश हो जाती है जैसे कि आजकल इंजेक्शन लगा कर भैंसों का दूध निकला जाता है | इसे हिंसा मानकर उन्होंने बकरी का दूध पीना शुरू कर दिया | आज की उपभोक्ता संस्कृति में तो छोटे-छोटे बच्चों का मांस और माताओं का दूध भी बेचा जाता है | छिः, हम भी क्या वीभत्स विषय लेकर बैठ गए |

कुछ लोग जब बूढ़े हो जाते हैं तो अपने बच्चों के थ्रू राजनीति करने लग जाते हैं या बच्चों को अपने राजनितिक संपर्कों का लाभ पहुँचाने लग जाते हैं जैसे कि सरकारी अधिकारी अपनी बीवी के नाम से जीवन बीमा का धंधा करने लग जाते हैं | सेठजी जब ज्यादा बूढ़े हो जाते हैं तो दुकान पर बैठे कर माला जपते रहते हैं मगर माला जपते हुए भी सारा ध्यान भगवान में होने की बजाय दुकान में ही होता है |

एक गहने बनने वाला था | बूढ़ा हो गया था | उसने जीवन भर सभी के गहनों में समान भाव से खोट मिलाने का अपना धर्म ईमानदारी से निभाया | एक बार उसकी बेटी गहने बनवाने के लिए आई | बूढ़ा भी वहीं बैठा था | सबके सामने यह भी नहीं कह सकता था कि इसमें भी खोट मिलाना है और चुप भी नहीं रह सकता था सो बड़बड़ाने लगा- भगवान के घर में तो सभी बराबर | सुयोग्य पुत्र समझ गया और उसने अपने खोट मिलाने के धर्म का निर्वाह किया | सो जब तक दुकान में बैठे हैं तब तक दुकानदारी नहीं छूटने वाली | बाबाजी की सारी माया कमंडल में ही घुसी रहती है |

सो यदि संन्यास लेना ही है तो इस कमंडल को भी छोड़ दीजिए और बिना बताए दिल्ली से गायब हो जाइए | राजनीति का जो होगा सो हो जाएगा | यह तो चलती रहती है | लोग आते हैं और जाते रहते हैं और जिस तरह से राजनीति का पतन लोगों के अनुमान से भी सहस्र गुना तेजी से होने लगा है उसे अपनी तीव्र गति से चलने दें | नंगों के इस हम्माम की नंगई को अपनी संपूर्णता को प्राप्त हो ही जाने दें | इस नंगई की चरम सीमा से ही शालीनता निकलेगी | शिव इसी के लिए विनाश करते हैं कि नया सृजन हो |

हाँ, इतना दुःख अवश्य रहेगा कि अब आप जैसे पाक-साफ़ आदमी राजनीति में देखने को शायद ही मिलें | तो इस विकल्प के पतले से धागे को भी तोड़ ही दें | यह नहीं कि उपवास तो करूँगा मगर शाम को दुगुना मिष्ठान्न और फल खा लूँगा | मास्टरी से रिटायर होकर कोचिंग सेंटर चलाने का, सिनेमा हाल में जाना छोड़कर घर पर सारे दिन टी.वी. पर फिल्म देखने का क्या अर्थ है ? देह-विक्रय छोड़कर कुटनी बन जाना भी वैसा ही गर्हित काम है |

हमारा तो कहना है कि संन्यास लेना है तो पूरा ही लें | हाँ, आपको एक बात के लिए दाद देते हैं कि आपने राजनीति को भी एक भारतीय पतिव्रता की तरह निभाया | शरद पवार, संगमा, अजितसिंह की तरह नहीं कि बार-बार पीहर-ससुराल का चक्कर चलता रहे | सन्यास के निर्विकल्प जीवन के लिए शुभकामनाएँ |

अंत में एक पंक्ति-
दास कबीर जतन ते ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया |

पुनश्च:
वैसे तो संन्यासी का कोई ठिकाना नहीं होता फिर भी आशा है कि यदि कभी सीकर की तरफ आएँ तो हम मंडी के पास दुर्गादास कोलोनी में रहते हैं | दर्शन की आशा रखते हैं क्योंकि हम आपके पुराने फैन हैं |

३०-१२-२००५


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 श्री अटल देवाय नमः

( ग्वालियर के एक वकील विजय सिंह चौहान ने अटल जी का मंदिर बनवाने की घोषणा की )

हे देवतुल्य, आदरणीय अटल प्रभु,
बहुत-बहुत प्रणाम । आपको पता ही होगा कि ग्वालियर के एक वकील श्री विजय सिंह चौहान ने आपके मन्दिर का शिलान्यास करवा दिया है । यदि आप अगली बार प्रधान मंत्री बन गए तो मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी हो जायेगी । यदि सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो भजन, पूजन, कीर्तन और चमत्कार भी शुरू हो जायेंगे । मेला, जात -जडूले , सवामणी, जागरण भी होने लग जायेंगे । आप के नाम से गंडे-ताबीज और झाड़-फूँक भी शुरू हो जायेंगे । भले ही आप कुँवारे हैं किंतु आपके आशीर्वाद से कुँवारों के ब्याह होने लग जायेंगे और बाँझों को पुत्र रत्नों की प्राप्ति भी होने लग जायेगी । आपके भजनों के केसेट बिकने लग जायेंगे, प्रसाद की दुकानें खुल जायेंगी ।

यदि ख़ुदा न खास्ता आप दुबारा प्रधानमंत्री न बने तो यह ग्वालियर वाला भक्त किसी और भगवान की तलाश में जुट जायेगा । कलियुगी भक्त में इतना धैर्य नहीं होता- तू न सही और सही । वैसे जीते जी तो मन्दिर केवल नाचने-गाने वालों के ही बने हैं । नेताओं को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है । जैसे आपने प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखा था वैसे ही किसी प्रधानमंत्री ने अपने जीवन काल में स्वयं के भगवान बनने का सपना भी नहीं देखा होगा । जैसे आपका सपना साकार हुआ वैसे ही इस लेख को पढ़ने वालों के भी सभी सपने साकार हों ।

यदि परम्परा चल निकले तो भारत में पाँच लाख गाँव हैं । कितने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, पञ्च, सरपंच हुए होंगे और होंगे ! यदि सबके मन्दिर बन जाएँ, मंदिरों से जुड़े उद्योगों का विकास हो, मंदिरों की सुरक्षा व्यवस्था हो तो सोचिये कितने लोगों को रोज़गार मिलेगा ! तब हम भारत ही क्या सारे संसार की बेरोजगारी समाप्त करने में सफल हो जायेंगे । हो सकता है कुछ काम 'आउट सोर्स' करना पड़े । ऐसा होगा तब होगा पर हम अपनी दूर-दृष्टि की दाद ज़रूर देना चाहते हैं ।

फिलहाल उस मन्दिर और उसमें आपकी प्रतिमा को लेकर हम कुछ अधिक ही उत्साहित और कल्पनाशील हो रहे हैं । विचारों की भीड़ उमडी पड़ रही है । लगता है एक लेख से क्या काम चलेगा । कोई महाकाव्य ही लिखना पड़ेगा । फिर भी कुछ जानने की इच्छा है कि उस मन्दिर में आपकी मूर्ति किस मुद्रा में होगी ? बाल-ब्रह्मचारी की तरह वीरासन में , सावधान की मुद्रा में मातृ वंदना करते हुए या लोकहित चिंतन की मुद्रा में ? पद्मासन तो अब संभव नहीं है सो सावधान की मुद्रा में 'वी' का चिह्न बनाते हुए ही ठीक रहेगी ।

मूर्ति का वेश क्या होगा- अपना शाखा वाला गणवेश खाकी हाफ-पेंट, काली टोपी और बगल में दंड या धोती-कुर्ता और जैकेट या जोधपुरी सूट या पेंट-टी शर्ट ? भाव क्या होगा मूर्ति के चेहरे पर- भाषण वाला, कविता वाला, बाल सुलभ खिलखिलाहट वाला या वेंकैय्या नायडू के हाथ से लड्डू खाते हुए 'आनंद भाव' वाला ? वैसे हमें आपका भाषण के बीच में एक उत्सुक विराम देने वाला भाव सर्वाधिक पसंद है जैसे कि पाकीजा के गाने में -'बोले छमाछम पायल निगोडी 'और फिर एक लंबे विराम के बाद..'निगोड़ी' और फिर द्रुत ।

इसके बाद प्रश्न उठता है कि उस मूर्ति में आप किस उम्र के होंगे ? जवानी, प्रौढावस्था या वृद्धावस्था वाले । कुछ कवि अपनी अस्सी वर्ष की उम्र में छपने वाली कविता के साथ तीस वर्ष वाली फ़ोटो छपवाना चाहते हैं । पता नहीं, किसको धोखा देना चाहते हैं । किसी महिला पाठिका को या यम दूतों को । वैसे आपकी तो किसी भी उम्र की मूर्ति अच्छी ही लगेगी क्योंकि आपके चेहरे से हमेशा एक नूर टपकता रहता है । आपके सिर पर भी अभी तक पूरे बाल हैं । यह ब्रह्मचर्य का कमाल है । हमारी तो चाँद निकल आई है ।

अब प्रसाद की बात करें । प्रसाद लड्डू का लगेगा या झींगा मछली का ? यदि लड्डू का लगेगा तो उसके साथ भंग की ठंडाई ठीक रहेगी । पर यदि झींगा मछली का प्रसाद हो तो उसके साथ व्हिस्की का मेल है । सभी तरह के भक्त आते हैं इसलिए जनहित को ध्यान में रख कर दोनों ही प्रकारों के प्रसादों की व्यवस्था होनी चाहिए । जैसे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए उनके प्रिय मंत्र होते हैं वैसे ही आपको प्रसन्न करने के लिए आपकी कविताओं के कुछ अंश छाँटें या हम जैसे तुक्कड़ों के भजन भी चलेंगे ?

उस मन्दिर में आपके अवतरण-दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों के बारे में भी हम अपनी राय व्यक्त करना चाहेंगे । वहाँ जन्म दिन पर प्रतिवर्ष एक कविसम्मेलन होना चाहिए जिसमें भारत के प्रत्येक कवि को ओटोमेटिक निमंत्रण होना चाहिए । किसी भी कवि से वहाँ जाते-आते रेल, वायुयान, बस किसी में भी किराया न माँगा जाए । वहाँ उसके रहने, खाने की पूरी व्यवस्था मुफ़्त हो । उस सम्मलेन में पठित सभी कविताओं का एक संकलन छपे जिसे खरीदना प्रत्येक पुस्तकालय के लिए अनिवार्य हो । इसी तरह आपकी कविताओं की संगीतबद्ध प्रस्तुति और उस पर नृत्य के भी अखिल भारतीय कार्यक्रम हों जिनकी वीडियो फ़िल्म बने और उसे हर सिनेमा घर में मुफ़्त दिखाया जाए । यदि किसी कार्यक्रम से लोगों मनोरंजन हो तो उस पर लगे मनोरंजन टेक्स की उस राशि को प्रधानमंत्री कोष में जमा करा दिया जाए ।

और अंत में एक बात अपने स्वार्थ की । हमें उस मन्दिर में पुजारी रखवा दिया जाए क्योंकि पेंशन से काम नहीं चल रहा है । वैसे सुना है कि इस बार जीतने के बाद आप पेंशनभोगियों का महँगाई भत्ता बंद करने वाले है । प्रभु, ऐसा न करें । हम वादा करते हैं कि पुजारी का आधा वेतन प्रधानमंत्री राहत कोष या पार्टी फंड में, जैसा भी आप कहेंगे,  देते रहेंगे ।

१४-१-२००४


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Aug 16, 2018

बीके-बिके, अनबिके



बीके-बिके, अनबिके 

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- ले सँभाल, एक और रिकार्ड |

बोला- रिकार्ड क्या नई बात है ? यह देश तो है ही रिकार्डों का देश |अब योग-दिवस या बिहार में एक सप्ताह में १५ लाख शौचालय के निर्माण की तरह और कौनसा रिकार्ड बन गया ?

हमने कहा- संसद में कल १० अगस्त को सत्रावसान के दिन पहली बार यह रिकार्ड बना है कि किसी प्रधान मंत्री की टिप्पणी को संसद की कार्यवाही से निकाला गया हो |

बोला- उससे क्या फर्क पड़ता है ? कौन देखता है रिकार्ड ? सामान्य जनता की बात    तो छोड़, ९०% माननीय ऐसे हैं जो कभी संसद की लाइब्रेरी के अन्दर नहीं गए होंगे |कैंटीन में बैठे-बैठे की पेंशन के हकदार हो गए |सच्ची टिप्पणी तो वह होती है जो जनता के दिमाग में दर्ज हो जाती है |अब जनता के दिमाग में तो दर्ज हो गया कि मोदी जी ने राज्यसभा के उपाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेसी उम्मीदवार 'बी.के. हरिप्रसाद' को 'बिके हरिप्रसाद' कहा |

हमने कहा- देखो तोताराम, मोदी जी कटु व्यंग्य और प्रतिशोध के अप्रतिम और अप्रतिहत योद्धा हैं | वे कभी अपने किसी शत्रु को भूलते नहीं हैं | क्षमा करना तो दूर, वे स्वप्न में भी उसके लिए निर्दय, मारक, घातक और प्राणान्तक बने रहते हैं |अपने अमूल्य समय में से भी वे देश-विदेश, संसद के अन्दर-बाहर कहीं भी नेहरू-गाँधी परिवार और कांग्रेस को नहीं भूलते और उन पर व्यंग्य का कोई अवसर नहीं चूकते |वे अपनी व्यंग्यकार की भूमिका से एकाकार हो गए है | वैसे ही जैसे कोई मंचीय कवि यमराज के फोन को भी कवि सम्मेलन का निमंत्रण समझता है | 

बोला- वैसे कीमत ठीक मिले तो बिकाऊ होने में क्या बुराई है ? छुटभैय्ये से लेकर बड़े से बड़े तक कौन बिकाऊ नहीं है ? फिर बिकाऊ तो बिकाऊ होता है जैसे चोर तो चोर होता फिर चाहे वह हजारों करोड़ का चोर हो या मुर्गी-चोर | हालाँकि 'बिकाऊ' असंसदीय शब्द है पर संसद में अब 'संसदीय' जैसा रह क्या गया है ? सच्चे योद्धा के लिए रक्तपात ही उत्सव है, हाहाकार ही उसका आनंद है,अनहद नाद है | 

हमने कहा- तोताराम,  जो लोग जैसे होते हैं वे हर उस बात को अपने जैसा ही बना देते हैं |बिकना और खरीदना क्या कोई बुरी टर्म है ? मीरा कहती है-

माई री, मैं तो लियो गोविन्दो मोल |
कोई कहे मुहँगो, कोई कहे सस्तो, लियो री तराजू तोल |
कोई कहे छाने, कोई कहे चौड़े, लियो री बजंता ढोल |

और मीरा तो बिकने में भी संकोच नहीं करती थी, कहती है-

मैं तो गिरधर हाथ बिकानी, लोग कहें बिगड़ी |

सत्यवादी हरिश्चंद्र काशी में बिकते ही नहीं बल्कि सरेआम खुद को नीलाम करते हैं |
और आज़ादी के दीवाने 'बिस्मिल' तो खुले आम सर-फरोशी का धंधा करते थे |

बोला-मास्टर, किनकी किनसे तुलना कर रहा है ? उस गंगाजल को इस दारू में मत मिला | चाहे तो दूसरी टिप्पणी का मज़ा ले कि अब संसद 'राम भरोसे' की तरह 'हरि भरोसे' |

हमने कहा- ठीक भी है |सेवकों में तो कोई भरोसे लायक रहा नहीं |अब 'राम' और 'हरि' का ही भरोसा है |




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रुतबे का रायता



रुतबे का रायता 




हेमामालिनी बहुतों की प्रिय नायिका रही हैं |अब भी कुछ लोग बुलेट ट्रेन के स्थान पर 'बसंती के तांगे' में रामगढ़ जाना चाहते हैं |हेमा जी ने खुद ही बताया कि जब वे अटल जी से पहली बार मिलीं तो अटल जी कुछ शरमा रहे थे |अटल जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने हेमा जी की फिल्म 'गीता और सीता' २५ बार देखी थी |जब आदमी कुँवारा हो उम्र मात्र ४८ साल हो, नौकरी ऐसी कि न जाओ तो भी तनख्वाह को कोई खतरा नहीं,  दूसरे कोई ख़ास काम न हों तो फिल्म न देखेगा तो करेगा क्या ? हमारे तो उस समय तीन बच्चे, एक बीवी और एक नौकरी थी |टी.वी. पर आने वाली फिल्म देखने का भी समय नहीं मिलता था |वैसे हमने भी हेमा जी पर कई कविताएँ लिखी हैं लेकिन कोई अनुचित फेवर लेने का कभी इरादा नहीं किया |मोदी जी ने तो हेमा जी की पुस्तक की भूमिका तक लिखी है |

 
हालाँकि हमारे सहित हेमा जी के और भी बहुत से फैन हैं लेकिन मोदी जी के बाद किसी और का उल्लेख करने का कोई औचित्य नहीं है |

अभी राजस्थान की यात्रा पर थीं | एक पत्रकार के प्रश्न के उत्तर में कहा- मुख्यमंत्री का क्या है ? एक मिनट में बन सकती हूँ |

आज जब हमने तोताराम से उनके स्टेटमेंट की चर्चा की तो बोला- एक सवेरे घर पर कॉफ़ी पी रहे नरसिंहराव जी को कॉफ़ी बीच में छोड़कर प्रधान मंत्री बनने के लिए दिल्ली जाना पड़ा | देवेगौड़ा जी ने भी कब सोचा था प्रधान मंत्री पद के बारे में ? एक सदस्यीय पार्टी वाले चन्द्रशेखर जी को भी मौका मिल गया |ऐसे में हेमा जी जो स्वप्न सुंदरी हैं, सांसद हैं, प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं, वसुंधरा जी की मित्र, मोदी जी और अटल जी द्वारा प्रशंसित हैं  तो उनके लिए मुख्य मंत्री बनना वास्तव में कोई बड़ी बात नहीं है |

हमने कहा- तो फिर बन क्यों नहीं जातीं ?

बोला- कलाकार एक स्वतंत्र जीव होता है |कला बंधन में नहीं जी सकती |पता नहीं कब, कहाँ कार्यक्रम देना पड़ जाए | पता नहीं कब किस फैन के ड्रीम में जाना पड़ जाए |वैसे भी मुख्य मंत्री का काम बड़ा खचड़ा काम है |  

देश में लोकतंत्र है |यहाँ एक चाय बेचने वाला भी प्रधान मंत्री बन सकता है बस,लगन ,ज़ज्बा और जीवट होना चाहिए | चाहूँ तो मैं भी प्रधान मंत्री बन सकता हूँ बशर्ते कि मोदी जी संविधान में संशोधन करके ७५ साल वालों के प्रधान मंत्री बनने पर प्रतिबन्ध न लगा दें |

हमने कहा- तोताराम, कुछ भी हो, तेरे सपनों की ऊँचाई की दाद देनी पड़ेगी |बन ही जा एक बार, भले ही अटल जी की पहली टर्म की तरह तेरह दिन के लिए ही सही |

बोला- तो क्या मेरी आज़ादी हेमा जी से कम है ?  इस सड़ी गरमी में रोज नए-नए कुरते और जैकेट में मेरी तो हालत ख़राब हो जाएगी |फिर इस तरह लुंगी बनियान में बरामदे में चाय पीने का मज़ा कहाँ मिलेगा ?

और फिर ज़माना ख़राब है, पता नहीं कब, कौन आकर गले पड़ जाए और सारे रुतबे का रायता फैला दे |



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Aug 14, 2018

गलत गुहार

  गलत गुहार 

गाँव भैरूँपुरा, जिला सीकर का समाचार, तारीख़ ३१ जुलाई २०१८ 'शेखावाटी परिशिष्ट' के पहले पेज पर फोटो सहित प्रमुखता से छपा |यदि यही सूचना विज्ञापन के रूप में छपती तो कम से कम १५ हजार रुपए लगते |संवाददाता ने यहाँ भी मोदी जी द्वारा प्रचलित समास शैली का प्रयोग करते हुए लिखा- पत्नी के लिए पी.एम. के नाम पाती |

हमें समाचार दिखाते हुए तोताराम ने कहा- इस समाचार का शीर्षक गलत हो गया |

हमने ध्यान से पढ़ते हुए कहा- इसमें गलत क्या है ? नाम, गाँव, समस्या और पाने वाले का पता सब ठीक तो है |

बोला- इसका शीर्षक गलत गुहार, गौरव गुहार, ग्रामीण गुहार जैसा कुछ होना चाहिए था |कारण- यह फरियाद गलत व्यक्ति से की गई है |वैसे ही जैसे आँख के इलाज के लिए हड्डियों के डाक्टर के पास जाना |मोदी जी इस समस्या के विशेषज्ञ नहीं है |यदि उनके वश का ही होता तो निभा नहीं लेते गाँधी जी की तरह पत्नी और देश सेवा दोनों को एक साथ |

भाई जान, बहुत मुश्किल है दोनों को निभाना |बौद्धिक करो या बच्चों को होम वर्क करवाओ |यह तो अच्छा हुआ जो बच्चे होने से पहले ही निकल लिए | नहीं तो पता नहीं, बच्चे कहीं स्किल डेवलपमेंट में धक्के खा रहे होते और खुद कहीं हरिजन बस्ती में होते |ऐसे ही बुद्ध बनने के लिए निकल जाने के बाद पता नहीं, कपिलवस्तु के युवराज राहुल का क्या हुआ ? इतिहास में तो कहीं नाम आता नहीं |सभी के बच्चे इतने काबिल थोड़े ही होते हैं कि दो साल में १८ हजार गुना धंधा बढ़ा लें |

पत्नी का पीहर जा बैठना पति के लिए अपमान की बात है इसलिए इसका शीर्षक 'गौरव-गुहार' भी हो सकता था |पीड़ित गाँव का रहने वाला है इसलिए इसे  'गाँव-गुहार' भी लिखा जा सकता था |

हमने कहा- शीर्षक तो जैसा भी है, है |अब यह बता कि मोदी जी इस पीड़ित की समस्या का क्या हल निकालेंगे ?

बोला- हल क्या निकालेंगे ? कह देंगे- अच्छा हुआ ? निकल पड़ो देश सेवा के लिए |अपना पता किसी को मत देना |यदि पत्नी ढूँढ़ भी ले तो कह देना- 'हम तो फ़क़ीर हैं |देश सेवा का व्रत ले लिया है' |देश सेवा करने वाले से कोई गुज़ारा भत्ता भी नहीं माँग सकता जैसे कि गौशाला चलाने वाले से कोई टेक्स नहीं माँग सकता, गौरक्षक पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकता |अब बीवी जाने और उसका काम |बनाले कोई 'स्वयं सहायता समूह' या लग जाए 'परित्यक्ता-पेंशन' की लाइन में | 

हमने कहा- यह तो कोई हल नहीं हुआ |पीड़ित ने तो 'मन की बात' में उनके लोगों की फरियादें सुनने से प्रेरित होकर ही उन्हें पत्र लिखा है |

बोला- यहीं तो फरियादी गच्चा खा गया |मोदी जी किसी की बात सुनने के लिए यह कार्यक्रम थोड़े ही करते हैं |हर समय ज्ञान बाँटते रहने के बावजूद जब ज्ञान की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, अजीर्ण हो जाता है तो ज्ञान-गैस-निष्कासन के लिए यह 'मन की बात' वाला पवनमुक्तासन बहुत आवश्यक हो जाता है |वे अपने को 'प्रधान सेवक' कहते हैं जबकि हमारे यहाँ  'सेवा'-'सुश्रूषा' दोनों शब्द साथ-साथ आते हैं |'सेवा' करो मतलब पीड़ित को सभी भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाओ और 'सुश्रूषा' मतलब जिसकी सेवा कर रहे हो उसकी बात भी सुनो | कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसकी सेवा कर रहे हो उसे खुजली हो रही हों पीठ में और आप खुजाए जा रहे हैं उसका कान | उसे लगी हो भूख और आप उसे बैठा आए हों शौचालय में |

हमने कहा- लेकिन अभी मई २०१९ तक तो मोदी जी का सुनाने का ही कार्यक्रम चलेगा |यदि अगली बार अवसर मिला और संभव हुआ तो शायद सुनने के बारे में भी सोचें |

हाँ, यदि एक अदद बीवी का ही चक्कर है तो 'तू नहीं और सही वाले' किसी विशेषज्ञ शशि थरूर और सलमान रुश्दी जैसे से कोई नुस्खा पूछता | यदि कई बीवियाँ और प्रधान मंत्री पद दोनों की योजना है तो इमरान खान से बेहतर कौन हो सकता है | |

 


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Aug 11, 2018

शिवाजी महाराज का कद

 शिवाजी महाराज का क़द  

आज तोताराम गुस्से में था | अपने किसी अहित को लेकर नहीं बल्कि शिवाजी महाराज के क़द को लेकर |

बोला- ये कैसे भक्त हैं ? जन हित के नाम पर खुद का विज्ञापन करने के लिए जनता की खून पसीने के हजारों करोड़ रुपए फूँक देंगे |और किसी बच्ची को बिस्किट का एक पैकेट देंगे या दो रुपए  की स्लेट देंगे तो हजारों की भीड़ इकट्ठी करेंगे और अखबार में फोटो छपवाएँगे |  अपनी कागजी उपलब्धियाँ जनता तक पहुँचाने के नाम पर देश भर के अखबारों में चार-चार पेज के विज्ञापन देंगे |और अब बचत के नाम पर शिवाजी महाराज का क़द साढ़े सात मीटर घटा दिया |

हमने कहा- शांत हो वीरवर | शिवाजी महाराज का अपना क़द है |वह भौतिक क़द नहीं, उनके सत्कर्मों का क़द है |वह जनता के दिलों में है |वह न इनके घटाने से घटेगा और न इनके बढ़ाने से बढ़ेगा | मूर्तियों और कम-ज्यादा कमाई के मंत्रालयों के आधार पर टुच्चे लोगों का क़द घटता-बढ़ता है |शिवाजी का क़द देखना है तो उनके मुसलमानों के साथ व्यवहार में देख |प्रजा-पालन में देख |शालीनता और सहृदयता में देख |अपने सैनिकों द्वारा अपहृत नवाब की पत्नी को माता का सम्मान देकर उसके पति के पास पहुँचाने की चारित्रिक ऊँचाई में देख |बात-बात में अपने से सहमत न होने वालों को पिटवाने, गालियाँ निकलवाने वालों के तमाशों से शिवाजी महाराज को नहीं समझा जा सकता |

यही तसल्ली की बात है कि मूर्ति बनवाने वालों ने कुल ऊँचाई में कोई कमी नहीं की | क़द की ऊँचाई घटा दी तो क्या, तलवार की लम्बाई उतनी ही बढ़ाकर टोटल बराबर कर दिया |

बोला- सेंडल और ऊँची टोपी से बढ़ाकर दिखाई गई ऊँचाई कितनी देर टिकेगी और ऐसी ऊँचाई किस काम आएगी सिवाय दर्शकों को धोखा देने के |यह भी समझ में नहीं आता कि यह दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति बनाने की कुंठा क्यों है ? लोगों के कल्याण कार्यों और सद्भाव को बढ़ाने की सोचो |लोगों को पीने का साफ़ पानी नहीं है और यहाँ मूर्तियों का दुग्धाभिषेक |यह कभी भी, किसी भी महापुरुष और भगवान ने नहीं चाहा होगा |यह सब स्वादू और मुफ्तखोरों का धंधा है |ऐसे लोग और कुछ नहीं तो विपक्षी को गालियाँ निकालने का वर्ल्ड रिकार्ड बनाकर ही खुद को गौरवान्वित अनुभव कर लेंगे |

हमने कहा- बन्धु, वैसे मूर्तियों का भी कुछ न कुछ महत्त्व तो होता ही है |और कुछ नहीं तो कम से कम एक मिनट के लिए ही सही देखने वाले को उस व्यक्ति के श्रेष्ठ कामों  का ध्यान आ जाएगा |

बोला- लेकिन यह कहाँ तक उचित है कि कबीर और आम्बेडकर की मूर्तियाँ बनवाओ और हरिजनों को मृत पशु न उठाने पर, घोड़ी पर बैठने पर और मूँछ रखने पर पीट दो |वेदों में समस्त विज्ञान होने का दावा करने वालों से कोई पूछे कि अपने पूजनीयों की मूर्ति बनाने जितनी काबिलियत भी ढूँढ़ निकालो वेदों में से |चीनी सामान के बहिष्कार का नाटक करने वाले यह मूर्ति चीन से बनवा रहे हैं |

हमने कहा- इन वाक् वीरों को छोड़ |यही बड़ी बात है कि अभी हमारे पास इस मूर्ति का राम सुतार जैसा शिल्पकार तो है | बस, तू तो यह ध्यान रख कि कहीं कोई तलवार की लम्बाई एक सौ मीटर और शिवाजी महाराज की ऊँचाई बीस मीटर करके, टोटल पूरा दिखाकर, हजार-दो हजार करोड़ लेकर विदेश न भाग जाए |

बोला- नीरव मोदी छह-छह नकली पासपोर्ट लेकर खुले आम घूम रहा है |जब इस पर देश के चौकीदार ही कंट्रोल नहीं कर सकते तो मैं निर्देशक मंडल में बैठा ७६ साल का रिटायर्ड मास्टर क्या कर लूँगा |मेरा तो खुद का क़द ही ज़मीन के समान्तर हुआ जा रहा है |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Aug 1, 2018

जगद् गुरु जुगाडानंद

जगद् गुरु जुगाड़ानंद

गुरु और आनंद का घनिष्ठ संबंध है |बिना कुछ किए, केवल बातों के बल पर धन, यश, पद मिल जाए तो फिर आनन्द तो होना ही है |तो ऐसे ही हैं जगद् गुरु |अपना कुछ नहीं लेकिन जुगाड़ हर हालत में बिठा ही लेते हैं |ज्ञान-विज्ञान, इहलोक-परलोक क्या नहीं है इनके वश में ? जिस आविष्कार के लिए लोग बरसों का जीवन, आराम और साधन खपा देते हैं उन्हें ये किसी पवित्र पुस्तक में सरलता से ढूँढ़ लेते हैं |अब ऐसे गुरु से कोई कैसे निबटे ?

आज ही खबर पढ़ी कि जगद् गुरु के चमत्कारी सेवक वायु सेना में लड़ाकू विमानों की कमी पूरी करने के लिए फ़्रांस, ब्रिटेन, ओमान आदि से पुराने विमान खरीदेंगे और उनके पुर्जों और खोखों से नए विमान सुधारेंगे |

हम तोताराम के, तत्काल ही विश्व शक्ति बन जाने को तत्पर, झूठे गर्व की हवा निकालने के लिए तैयार होकर बैठे थे कि खुद उसने ही पहला वार कर दिया | ओफेंस इज द बेस्ट डिफेन्स |जैसे किआरोप लगने से पहले ही किसी दूरदर्शी छुटभैय्ये नेता ने कह दिया- स्वामी अग्निवेश ने चर्चित होने के लिए खुद अपने पर हमला करवा लिया |हालाँकि यह वैसे ही एक बेहूदा तर्क है जैसे कोई कहे कि मोदी जी ने हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए गोधरा में ट्रेन का डिब्बा जलवा दिया | 

बोला- देखा, हमारा कमाल 'कम दाम : बढ़िया काम'  |तुम लोग कहते हो राफाल सौदे में तीन गुना रेट देकर भ्रष्टाचार किया है | अब देख, कबाड़ के भाव ले आए ना माल |अब अपने यहीं कौड़ियों के भाव अरबों रुपए के प्लेन बना लेंगे | 

हमने कहा- विकसित देशों में पुराने कबाड़ को रखने की जगह नहीं है |यदि तुम जैसे जगद् गुरु यह कबाड़ न उठाएँ तो उनके लिए उसे ठिकाने लगाना एक बड़ी आफत हो जाए |वह तो ऐसे ही समझदार ग्राहक ढूँढ़ते हैं कि फिंकवाने का खर्च न हो बल्कि दो पैसे की कमाई भी हो जाए |तभी तो जब-तब तुम्हारी प्रशंसा कर देते हैं |तुम्हारे गले मिलने को भी झेल जाते हैं |

अपने यहाँ पुराने अखबार और कबाड़ बिकते हैं जब कि अमरीका में लकड़ी, प्लास्टिक,अखबार, पुस्तकों, टीवी का कबाड़ उठवाने के पैसे देने पड़ते हैं |इसलिए वहाँ के लोग दान के नाम पर यह सामान तीसरी दुनिया के देशों में भिजवाते रहते हैं |हालाँकि वहाँ भी कुछ लोग ऐसे गरीब हैं जो ऐसे सामान का जोड़-गाँठ कर उपयोग कर लेते हैं |

बोला- हमारे तो शास्त्रों में कहा गया है- पड्यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय |तो इसमें क्या बुराई है ? 

हमने कहा- ठीक है, कबाड़ का धंधा करने वाले अरबों कमा रहे हैं |इसे तोड़ने वाले कुछ हजार मजदूरों को दो जून को रोटी मिल जाती है लेकिन क्या यह कोई काम है ? क्या इससे खतरनाक प्रदूषण नहीं फैलता ? क्या इस काम में मजदूरों की ज़िन्दगी नहीं गल रही ?  क्या यही मेक इण्डिया है ? क्या यही 'वह' जो दशकों में नहीं हुआ और चार सालों में हो गया ?

बोला- लेकिन पहले भी एक मंत्री जी हुए हैं जो हालैंड से गोबर आयात का समझौता कर आए थे ? जबकि हमारे यहाँ गोबर की क्या कमी है ? हमारे यहाँ तो गोबर दिमागों तक ही नहीं गणेश जी तक पहुँचा हुआ है |और अब तो 'गोबर धन योजना' भी शुरू हो गई है |

हमने कहा- बन्धु, शास्त्रों का थोड़ा और मंथन करो |हो सकता है गोबर से आणविक ईंधन भी निकल आए |



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