Nov 26, 2017



 हरियाणा क्षेत्रे : कुरुक्षेत्रे


( पिछले दिनों कुरुक्षेत्र की यात्रा करके आए थे सो उसी सन्दर्भ में चौटाला जी को पत्र |अब खट्टर जी ने फिर गीता और कुरुक्षेत्र की चर्चा छेड़ दी इसलिए पताका हमारे साथ पुराणी यादें ताज़ा करें )

भाई चौटाला जी,
राम-राम । यह विश्व हिन्दू परिषद या भारतीय जनता पार्टी वाला राम नहीं है और न ही गाँधी या कबीर वाला राम है । यह तो बस अपना 'हैलो' वाला देसी राम है । पिछले महीने १२ मई को  एक शादी में शामिल होने के लिए चंडीगढ़ गए थे । वैसे भी हरियाणा हमारी ननिहाल हैं सो कभी न कभी जाना पड़ता ही है । हालाँकि हरियाणा में शांतिप्रिय लोगों के दो प्रमुख क्षेत्र हैं- पानीपत और कुरुक्षेत्र, पर हमें इन्हें देखने का सौभाग्य नहीं मिला था | कुरुक्षेत्र चंडीगढ़ के रास्ते में ही है सो अवसर मिल ही गया |

पानीपत में तीन निर्णायक लड़ाइयाँ लड़ी गईं । इतिहास के  विद्यार्थी जानते हैं कि इन लडाइयों ने भारतीय संस्कृति और इतिहास की दिशा ही बदल दी । पर महाभारत की बात ही कुछ और है । यह मारकाट का महाकुम्भ है, अस्त्र-शास्त्र प्रतियोगिता का ओलम्पिक है, वैमनस्य का विश्व-कप है । लोकतंत्र में जैसे धन का दुरुपयोग और प्रेम का पराभव होता है और सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है वैसे ही महाभारत के बाद देश की दुर्दशा हो गई । ऐसी दुर्दशा कि फिर उबर ही नहीं पाया । महाभारत में इस उपमहाद्वीप और आसपास के युद्ध-प्रेमी शुद्ध युद्ध-भाव से एकत्रित हुए और वीर गति को प्राप्त हुए । उन्हें तो लड़ना था चाहे किसी की तरफ़ से लड़ते जैसे इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट में किसी भी देश का क्रिकेट खिलाड़ी किसी भी टीम की तरफ़ से खेल लेता है ।

नकुल, सहदेव के मामा शल्य इस टूर्नामेंट में भाग लेने आ रहे थे तो दुयोधन ने रास्ते में उनके खाने-पीने और रहने-सहने की इतनी अच्छी व्यवस्था की कि वे उसी की तरफ़ से लड़ने के लिए तैयार हो गए । हमें लगता है कि दुर्योधन ने उन्हें सस्ते में ही पटा लिया । कहाँ द्वारिका और कहाँ कुरुक्षेत्र, पर कृष्ण को भी इस में भाग लेना था वरना अर्जुन और दुर्योधन दोनों को मना कर सकते थे । कृष्ण अर्जुन के ममेरे भाई थे, शकुनी कौरवों और शल्य नकुल, सहदेव में मामा थे । लगता है कि कुरुक्षेत्र मामाओं का एक मनोरंजक आयोजन था । हरियाणा हमारी ननिहाल है सो सभी हमें भांजे वाला स्नेह देते हैं इसलिए जब भी भिवानी जाते हैं तो बिना किसी विवाद में फँसे ही लौट आने में भलाई समझते हैं ।

कुरुक्षेत्र में बिरला मंदिर में हमारे मामाजी का लड़का पुजारी है सो चंडीगढ़ से पहले उसी के पास रुके और अच्छी तरह से कुरुक्षेत्र देखा । सुनते आए थे कि कुरुक्षेत्र की मिट्टी अठारह अक्षौहिणी सेनाओं के रक्त से अभी तक लाल है पर ऐसा कुछ नहीं दिखा । वैसे तो कुरुक्षेत्र एक प्राचीन स्थान है पर वहाँ कोई भी वस्तु, मूर्ति और मन्दिर प्राचीन नहीं दिखाई दिया । जहाँ महाभारत जैसा युद्ध हुआ हो वहाँ किसी भी चीज़ का बचना कैसे संभव हो सकता है ?  कुरुक्षेत्र में महाभारत पेनोरमा और साइंस म्यूजियम हैं पर वहाँ कुछ भी समझाने वाला कोई भी गाइड नहीं है । यही हाल पेनोरमा का है । कहीं भी ध्वनि-प्रभाव में गीता-महाभारत के श्लोक नहीं हैं । बस, यहाँ-वहाँ थोड़ी सी आह,ओह करके युद्ध का प्रभाव पैदा करने की कोशिश की गई है । टिकट है दस रुपये ।

जैसे ही टिकट लेकर अन्दर घुसे बिजली चली गई । एक व्यक्ति ने बताया कि जेनेरेटर लगाया है धीरे-धीरे रोशनी होगी । भई , बिजली तो अपनी तेजी के लिए प्रसिद्ध है पर यहाँ धीरे-धीरे क्यों ? साढ़े पाँच बजे पेनोरमा बंद होने का समय है पर भाई लोगों ने सवा पाँच बजे ही 'निकलो-निकलो' की आवाजें लगाना शुरू कर दिया । नीम अँधेरे में जैसा दिखाई दिया देख-दाखकर आ गए । वैसे भी महाभारत में क्या देखना ? लोकतांत्रिक महाभारत से ही फुर्सत नहीं मिलती । एक ही थैली के चट्टे-बट्टे अर्थात 'कजिन ब्रदर' वर्ष के अंत में होनेवाले लोकतांत्रिक महाभारत के लिए अभी से अपने-अपने रथ और यात्राएँ लेकर कुरुक्षेत्र के लिए चल पड़े हैं ।

फिर चंडीगढ़ देखा । एक शहर और तीन-तीन दर्जे । पंजाब की राजधानी-चंडीगढ़, हरियाणा की राजधानी- चंडीगढ़, केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ । चौथा नेकचंद का राक गार्डन वाला चंडीगढ़ । भले आदमी ने कबाड़ से एक अद्भुत सृजन किया है जहाँ प्रेमियों के लिए प्रायोगिक परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए अनेक एकांत कोने हैं । पर कई ऐसे भी होते हैं जो अच्छी-भली चीज का कबाड़ बना देते हैं । महाभारत में और क्या हुआ था ।

स्थान का प्रभाव भी कुछ होता है । अब आपने किसानों के मसीहा देवीलाल जी की प्रतिमाएँ जगह-जगह लगवाईं । कोई सपूत होता है तो लगवाता है । पर पता नहीं, क्यों लोगों के पेट में दर्द हो रहा है । अरे भई, तुम्हारा नंबर आए तो तुम भी लगवा लेना अपने-अपने बापों की मूर्तियाँ । अभी तो सभी सड़कों-चौराहों पर मूर्तियाँ लग भी नहीं पाईं हैं कि कहने लगे हैं कि जब मैं मुख्यमंत्री बनूँगा तो सारी मूर्तियाँ हटवा दूँगा । अरे, लगवाने का खर्चा लगा सो लगा अब तुम हटवाने का खर्चा और करोगे । छोड़ो यह महाभारत, कभी तो किसी जनोपयोगी काम का नंबर आने दो ।

लौटते समय भिवानी में किसी ममेरे भाई ने सीट हथिया ली | लगा, अभी महाभारत की भूमि में ही हैं । जहाँ महाभारत की संभावनाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं । खैर, किसी तरह ननिहाल-यात्रा का चक्रव्यूह बेधन करके तेरह घंटे की यात्रा के बाद सीकर पहुँचे । बेहद थके हुए थे इसलिए बिना इधर-उधर घर के लिए आटो पकड़ लिया ।

१७-६-२००४
  

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Nov 8, 2017

हैपी नोटबंदी जेतली जी

हैप्पी नोटबंदी, जेतली जी

जेतली जी
हैप्पी नोटबंदी | कुछ लोग नोटबंदी के इस पावन दिन को  भी 'काला-दिवस' के रूप में मना रहे हैं |क्या किया जाए, कुछ लोग मातम के मसीहा होते हैं |वे किसी भी स्थिति में में दुखी होने का कोई न कोई बहाना निकाल ही लेते हैं |

दार्शनिक कहते हैं जीवन एक उत्सव है |आदमी को हर हाल में खुश रहना चाहिए, मस्ती में मस्त रहना चाहिए चाहे बस्ती में आग ही क्यों न लगी हुई हो |हमारी संस्कृति में तो शव-यात्रा तक को एक विशिष्ट फंक्शन बना देते हैं |बनारस में श्मशान में ही इस यात्रा में जाने वालों को रसगुल्ले और रबड़ी खिलाए जाते हैं |खाते-पीते रहने से गम कम व्यापता  है |इसीलिए ज्ञानी लोग ख़ुशी और ग़म दोनों सेलेब्रेट करते हैं |

हो सकता है, कुछ लोगों को नोटबंदी से कष्ट हुआ होगा | हमें,आपको और मोदी जी जैसे सच्चे औरअच्छे लोगों को कोई कष्ट नहीं हुआ |जो काला धंधा करने वाले, आतंकवादी, रिश्वतखोर लोग थे उन्हें तो कष्ट होना ही था |उन्हीं को तो सीधा करने के लिए यह अभूतपूर्व और लोकहितकारी कदम उठाया गया था |

हम तो लोक-कल्याण के इस पावन दिन को आपके साथ मनाने के लिए दिल्ली आने वाले थे लेकिन नहीं आ सके |बात यह है कि कुछ तो उम्र बढ़ने से दवा का खर्चा बढ़ गया है और कुछ जी.एस.टी. में चक्कर में चीजों के दाम बढ़ गए हैं |नियमित सेवा वाले स्टाफ को तो सातवें पे कमीशन के अनुसार वेतन दे दिया लेकिन राष्ट्र हित और देश के द्रुत विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए हम रिटायर्ड लोगों को पे कमीशन नहीं दिया |तीन चार हजार रुपए पेंशन में बढ़ने वाले थे सो नहीं बढे |

वैसे हमें कोई शिकायत नहीं है |लोग तो राष्ट्रहित में अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं |हमसे तो आपने सातवें पे कमीशन के एरियर और फिक्सेशन का ही बलिदान लिया है |गीता सार में कहा भी जाता है-
'क्या ले के आए थे और क्या लेकर जाएँगे' | जिन प्रभावशाली लोगों के ऊपर वाले स्विस बैंक में खाता है, उनकी बात और है |हमसे तो यहाँ के पेंशन खाते में मिनिमम बेलेंस ही मुश्किल से मेंटेन होता है |

लोग कह सकते हैं कि नोटबंदी का क्या उत्सव मनाना ? क्यों भई, क्या शादी की वर्षगाँठ नहीं मनाते ? किसी मृतात्मा का श्राद्ध नहीं करते ? हर क्षण जीव मृत्यु की और बढ़ता जा रहा लेकिन फिर भी उसका जन्म दिन मनाते हैं |पर मीरा जैसी निराशावादी कवियत्री कहती है-
बढ़त पल-पल, घटत छिन-छिन
जात न लागे बार |

गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में अपनी कमियों का अपनी अच्छाइयों से अधिक बखान किया है |हिंदी के प्रसिद्ध लेखक बाबू गुलाब राय ने तो 'मेरी असफलताएं' नाम से एक पूरी पुस्तक ही लिख मारी |सभी के जीवन में सफ़लताएँ-असफलताएँ होती ही हैं |न तो उनसे घबराना चाहिए और न ही उन्हें छुपाना चाहिए |हर काम में कुछ गुण-दोष छुपे हुए होते हैं इसलिए हम प्रत्येक दिन और उत्सव को अपना और अपने कामों का मूल्यांकन करने का दिन बना सकते हैं |हमारा तो मानना है कि आदमी को अपने पिटने की भी वार्षिकी मनानी चाहिए |इससे आदमी को अपनी सहनशक्ति की याद बनी रहती है |क्षमताओं का विश्वास बना रहे |

कुछ लोग कहते हैं कि नोटबंदी के कारण अर्थ व्यवस्था में धीमापन आ गया |पता नहीं, उन्हें क्यों देश में बढ़ रहे अरबपतियों की संख्या, नित नई ऊँचाइयों पर चढ़ता हुआ सेंसेक्स और सौ करोड़ मोबाइल उपभोक्ता दिखाई नहीं देते ?

सभी तो मंत्री और बड़े आदमी होते नहीं कि नोटों को छुए बिना ही सारे काम हो जाएँ |सामान्य लोग जाने कैसे-कैसे धूल-मिट्टी और पसीने से सने हाथों से नोटों को छूते हैं | ऐसे में नोटों के गंदे होने और यहाँ तक कि काले होने की भी संभावना बढ़ जाती है |ऐसे में नोटों को बार-बार बदलते रहना चाहिए |स्वच्छ भारत अभियान की तरह नोटों की स्वच्छता के लिए इतना भगीरथ प्रयत्न आज तक किसी भी भारतीय नेता ने नहीं किया |और तो और अमरीका के इतिहास में भी कोई ऐसा राष्ट्रपति नहीं हुआ जो ऐसा साहसी और लोकहितकारी  कदम उठा सकता |आप सब जिन्होंने भी यह सत्कर्म किया है, वे बधाई के पात्र हैं |

सारे नोट पुनः बैंकों में आकर सफ़ेद और नए हो गए हैं , बधाई |

हमें तो महिने में दो-चार दिन के लिए ही सही, नोट छूने का अवसर मिलता है तो नए-नए और करारे नोट छूकर देश के विकास और 'नए भारत' की अनुभूति होती है |

इस सन्दर्भ में एक निवेदन है कि नोटबंदी के कारण कालेधन वालों, रिश्वतखोरों, देशद्रोहियों, आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों की कमर टूट गई है |ये देश में जगह-जगह रास्तों में घिसटते फिर रहे हैं | हो सके तो इन दुष्टों को पूर्णतः समाप्त करने और सड़क की सफाई के लिए फिर नोटबंदी का एक और राउंड हो जाए |

क्या ख्याल है ?


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Nov 4, 2017

विकासवाद बनाम परिवारवाद



 विकासवाद बनाम परिवारवाद  

जैसे ही हम बरामदे में पहुँचे, हमें देखते ही तोताराम बोला- बता कौन जीतेगा ? विकासवाद या परिवारवाद ? 

हमने कहा- विकास तो एक प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है |दिन-रात, प्रतिपल |यह प्रकृति का नियम है | विकास तो सूर्योदय, सूर्यास्त, ऋतु परिवर्तन की तरह स्वयमेव होता रहता है |डार्विन ने भी कुछ बनाया थोड़े ही था |उसने तो प्रकृति के इस परिवर्तन को विकासवाद के सिद्धात के नाम से परिभाषित मात्र किया था |और जहाँ तक परिवार की बात है तो उसमें भी क्या बुराई है ? वह भी विकासवाद की तरह सृष्टि में समानता और परिवेश से स्वतः बन जाता है जैसे एक ही परिवार या प्रजाति के फल, पशु-पक्षी आदि, एक नस्ल के मनुष्य |वैसे भी जो जीव-जंतु, वनस्पति एक ही स्थान या क्षेत्र में होते हैं तो वे एक ही परिवार के अंग जैसे हो जाते हैं |इसलिए हमारे अनुसार तो ये दोनों एक ही भाव के स्वरूप हैं |दोनों ही निर्बाध, निर्वैर और सहयोग से रहें |इसी में सृष्टि का कल्याण है |

बोला- एक छोटा-सा और सरल-सा प्रश्न किया था और तूने ज़वाब देने की बजाय 'मन की बात' की तरह झाड़ दिया दर्शन और अध्यात्म | मैं डार्विन के विकासवाद और जीवों के परिवार की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो गुजरात के चुनाव में मोदी जी के विकासवाद और राहुल के परिवारवाद की बात कर रहा हूँ |मोदी जी के अनुसार वे खुद विकासवाद के समर्थक हैं और राहुल गाँधी परिवारवाद के |अब बता इनमें से कौन जीतेगा ?


हमने कहा- यदि यही कला आती तो हम क्रिकेट का सट्टा नहीं लगाने लग जाते ? चुनाव के एक्जिट पोल का धंधा नहीं कर लेते ? नेताओं, व्यापारियों और अभिनेताओं के व्यक्तिगत ज्योतिषी नहीं बन जाते ? अरे, यही तो एक चीज है जो कोई नहीं जानता |यदि आदमी भविष्य को ही जान लेता तो फिर जीवन में रोमांच ही क्या रह जाता ? 

हम भविष्य तो नहीं बता सकते लेकिन यह ज़रूर बता सकते हैं कि विकासवाद और परिवारवाद में कोई भेद नहीं है | परिवार भी विकास का एक स्वरुप है |जो परिवार का नहीं हो सका वह अपना और देश-समाज का क्या विकास करेगा ?

क्या कांग्रेस ने कुछ नहीं किया ? क्या जिस नींव पर मोदी जी विकास का पिरामिड खड़ा करने का स्वप्न दिखा रहे हैं वह कांग्रेस की रखी हुई नहीं है ? जिस देश में आजादी के समय लिखने के होल्डर का निब नहीं बनता था वहाँ विमान बनाने के कारखानों का स्वप्न नेहरु जी ने नहीं देखा था ? क्या जिन बैंक खातों का हल्ला मचाया जा रहा है उनमें आम आदमी के प्रवेश की नींव इंदिरा गाँधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके नहीं रखी थी ? क्या जिस आई.टी.क्षेत्र में भारत का ज़िक्र करते मोदी जी नहीं थकते उसकी शुरुआत राजीव गाँधी ने नहीं की थी ?क्या जिस आधार कार्ड पर मोदी जी सारे सुधार करने का दावा कर रहे हैं वह मनमोहन जी की योजना नहीं थी ? 

बोला- ठीक है लेकिन मोदी जी का कोई परिवार नहीं है |जो था उसे भी मानवता के कल्याण के लिए सिद्धार्थ की तरह त्याग नहीं दिया ?

हमने कहा- उनका 'संघ परिवार' नहीं है क्या ? 

बोला- यह परिवारवाद नहीं, वसुधैव कुटुम्बकम का महान चिंतन है | 

हमने कहा- फिर इसमें मुसलमान, ईसाई और दलित फिट क्यों नहीं हो रहे हैं ? जो नोटबंदी और जी.एस.टी. के क्रन्तिकारी कदम उठाए उन्हें देश अभी तक भुगत रहा है |जहाँ तक विकास की बात है तो अभी तक योजनाओं के नामों, बैंक खातों, जुमलों, नारों, विभिन्न योजनाओं के फॉर्म भरवाने का काम ही चल रहा है |

बोला- लेकिन तुझे मोदी जी के विकासवाद की तीव्रगति को तो मानना ही पड़ेगा कि जहाँ डार्विन के विकासवाद में लाखों वर्षों में राम-राम करके आदमी की पूँछ मात्र झड़ पाई वहाँ मोदी जी ने तीन साल में ही बन्दरों को शाखाओं से उतारकर विश्वविद्यालयों के कुलपति के काबिल बना दिया |

हमने कहा-सुना नहीं, स्पीड थ्रिल्स बट किल्स |


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Nov 2, 2017

जी.एस.टी. का जूता



 जी.एस.टी.का जूता 

आज तोताराम एक बड़ा-सा गत्ते का डिब्बा लिए हाज़िर हुआ |हिंदी फिल्मों में जब नायिका घर से भागती है तो एक बड़ा-सा सूटकेस हिलाती हुई मज़े से स्टेशन पहुँच जाती है क्योंकि वह वास्तव में खाली होता है |तोताराम की चाल से भी यही सिद्ध हो रहा था |लेकिन बंद डिब्बा तो बंद डिब्बा ही होता है |जब तक कुछ साफ़ दिखाई न दे तब तक उत्सुकता बनी ही रहती है जैसे घूँघट निकाले नायिका के प्रति |

हमने पूछा- इसमें क्या है ? तो बोला- पता नहीं, लेकिन प्रधान मंत्री ने भेजा है |हो सकता है सातवें पे कमीशन के बारे में कुछ हो |

हमने उसके हाथ से डिब्बा लेते हुए कहा- जल्दी खोल |

बरामदे में रखते हुए देखा कि उसके एक तरफ लिखा था- प्रेषक, कौशल विकास मंत्री, धर्मेन्द्र प्रधान, मध्य प्रदेश |

हमने कहा- क्यों हमें उल्लू बना रहा है |यह प्रधान मंत्री नहीं, धर्मेन्द्र प्रधान की तरफ से आया |


बोला- यही तो कौशल विकास है | मंत्री हैं और प्रधान भी तो 'प्रधान मंत्री' हुए कि नहीं ? और सब 'शोक' दूर करने वाले 'अशोक'  हैं और कुशलता से कौशल का विकास करने वाले भी |अब कमी क्या रह गई ?

हमने कहा- कुछ भी हो, जल्दी खोल |

खोलते ही डिब्बे में से एक बड़ा-सा जूता निकलकर गिर पड़ा |
जिस पर टैग लगा था- जी.एस.टी. का जूता |यह तीन दिन तक काटता है लेकिन चौथे दिन सब ठीक हो जाता है |

हमने कहा- तोताराम, बात कुछ समझ में नहीं आई |

बोला- इसमें समझ में न आने जैसा क्या है ?यह उदारीकरण के युग का आविष्कार है जिसका ड्राइंग बनाया मनमोहन सिंह जी ने, सीया जेतली जी ने और पहना मोदी जी ने और काटेगा तुझे-हमें |तीन दिन की कोई गारंटी नहीं है, तीन महिने और तीन साल भी काट सकता है |और फिर स्पष्ट बहुमत मिल गया तो २०२४ तक भी काट सकता है |इसकी विशेषता यह भी है कि यह न तो बनाने वाले को काटता है और न ही बेचने वाले को |यह सिर्फ उपभोक्ता को ही काटता है |

हमने कहा- लेकिन इसे तुम्हारे पास भेजने का क्या मतलब है ? हम कौनसे व्यापारी हैं ? हमें कौनसा जी.एस.टी. चुकाना है ? हमें तो जो व्यापारी माँग ले, चुपचाप दे देना है 'नए भारत' के नाम पर |जब २३० रुपए एम.आर.पी. लिखी चीज दुकानदार १६०/-रुपए में देता है तो तू और तेरे मोदी जी इस बेईमानी का गणित क्या समझ पाएँगे ? 

बोला- इसका मतलब प्रतीकात्मक है |हम जो अभी तक सातवें पे कमीशन के लिए मातम मन रहे हैं तो हमारे लिए भी इसके द्वारा एक प्रतीकात्मक संकेत है कि पे  कमीशन से हमारी जितनी पेंशन बढ़ सकती थी, समझ ले सरकार ने उतनी जी.एस.टी. के जूते के नाम पर काट ली |हिसाब-किताब बराबर |

हमारे लिए तो जी.एस.टी. का यही देशी चमरौधे वाला जूता है |वैसे एक जूता वह होता है जिसमें सत्ता की दाल बँटती है और एक जूता चाँदी का भी होता है लेकिन वह अपने लिए नहीं,  'परिवार' वालों के लिए है |




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