Aug 18, 2021

'भारत जोड़ो' का ट्रेलर

 'भारत जोड़ो' का  ट्रेलर  


आते ही तोताराम ने हमसे उसी स्वर में दरयाफ्त किया जिस स्वर में पुलिस किसी भी जबरदस्ती  'जय श्रीराम' बुलवाने वाले और ऍफ़ आई आर में सदैव 'अज्ञात' पाए जाने वाले  'लोगों' के नाम से दर्ज  'धर्म-सेवकों' के बारे में सामान्य लोगों से पूछती है. 

बोला- कल का 'ट्रेलर' देखा ?

हमने कहा- जिस देश के सूचना के आकाश में फैक न्यूज और ट्रोलिंग के टिड्डी दल इस तरह छाये हों कि सच का सूरज तक दिखना मुहाल हो गया है वहाँ किसका 'ट्रेलर' देखें. और फिर किसी फिल्म का ट्रेलर तो सिनेमा हाल में अगले आकर्षण के रूप में इंटरवल में दिखाया जाता है. हमें तो किसी सिनेमा हॉल में फिल्म देखे ही ४० साल होने को आ गए. १९८२ में पोर्ट ब्लेयर के 'लाइट हाउस सिनेमा हॉल' में गाँधी फिल्म देखी थी. 

बोला- किस कांग्रेस के ज़माने की बात कर रहा है. अब तो हमारा लोकतंत्र डिजिटल हो गया है कि एडिटिंग और फोटो शॉप के बल पर कभी भी, कुछ भी दिखाया जा सकता है. स्मार्ट फोन किस दिन के लिए है ? डाटा डलवाले जिससे महत्त्वपूर्ण बातें यथाशीघ्र तेरे मेसेज बोक्स में आ जाएँ. और फिर ट्रेलर फिल्म का ही नहीं होता, किसी भी बात का हो सकता है.

हमने कहा- तो फिर तू ही अपने ट्रेलर के बारे में बताकर हमें अज्ञानता और अज्ञातता के अन्धकार से निकाल.

बोला- कल पूर्व संध्या पर जंतर-मंतर पर एक भव्य आयोजन हुआ था. 

हमने कहा- पहले तो स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्याओं पर राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री जैसे बड़े-बड़े नेता भाषण दिया करते थे. जंतर मंतर पर तो धरने-प्रदर्शन होते हैं. वहाँ प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति किस महत्त्वपूर्ण दिवस की पूर्वसंध्या पर भाषण देने पहुँच गए ?

बोला- बस, इतिहास के इतने से ज्ञान के बल पर मास्टर बना था ! यह भी पता नहीं कि ८ अगस्त को किस दिन की पूर्व संध्या होती है ?

हमने कहा- इस दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने मुम्बई अधिवेशन में ८ अगस्त १९४२ को ९ अगस्त १९४२ से 'अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन'  शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन 'भारत छोड़ो आन्दोलन' की पूर्वसंध्या या उस दिन किसी प्रकार के किसी राष्ट्रीय  कार्यक्रम में अब तक तो नहीं सुना था ? 



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बोला- जो नकली देशभक्त हैं वे क्यों ऐसा आयोजन करेंगे. अब सच्चे देश भक्तों का समय आया है सो सभी क्षेत्रों में आमूलचूल सुधार करने के लिए यह बहुत ज़रूरी है. 

हमने कहा- असली बात बता कि कल क्या हुआ ?

बोला- कल दिल्ली भाजपा के पूर्व प्रवक्ता और कानून के अलमबरदार श्री अश्विनी उपाध्याय ने 'भारत जोड़ो' आन्दोलन का शुभारम्भ किया.

हमने कहा- भारत तो जुड़ा हुआ ही है. देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार देकर जोड़ने वाला भारत का संविधान है तो सही. उसी को लागू करो, मन से मानो तो भारत जुड़ा हुआ ही है. इसके जुड़ाव और एकता को क्या खतरा है ? सुना है इस कार्यक्रम में- 'जब मुल्ले काटे जायेंगे, तब राम-राम चिल्लायेंगे' जैसे  कुछ बहुत ही आपत्तिजनक नारे लगाए गए. क्या इस प्रकार भारत को जोड़ा जाएगा ? 

बोला- जोड़ने की यह तकनीक  'हड्डीरोग सिद्धांत' पर आधारित है.  जब कोई हड्डी गलत जुड़ जाती है तो उसे ठीक करने के लिए दुबारा तोड़ा जाता है. गाँधी जी ने जो 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आन्दोलन शुरू किया था उसमें एक बड़ी आधारभूत खामी थी. ऐसे कहने से क्या कोई छोड़ता है ? क्या पता, जो आज छोड़कर गया है वह कल फिर आ जाए. इसलिए 'छोड़ने के आग्रह' से अधिक मज़बूत होता है 'ज़बरदस्ती छुड़वाना'.  सो इस 'भारत जोड़ो' कार्यक्रम के तहत भारत को जोड़ने के लिए 'कुछ' को एक विशेष तरीके से' भारत छुड़वाया' जाएगा जिससे वे फिर वापिस न आ सकें. 

हमने कहा- तो सुन, तुझे पता होना चाहिए कि ८ अगस्त १८९९ को ए टी मार्शल ने फ्रिज का पेटेंट भी करवाया था. समझ ले तेरा यह 'भारत जोड़ो अभियान'  गाँधी के 'अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन' को अपवित्र करने की पूर्व संध्या ही नहीं है, बल्कि सर्व समरसता और सामूहिकता की हर भारतीय उपलब्धि को फ्रिज (ठन्डे बस्ते) में डालने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है. 


 

 

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Aug 6, 2021

गंगाजल की शक्ति



 गंगाजल की शक्ति 


रात हमारे सीकर में तापमान ४२ डिग्री था. बिजली बचाने के लिए कूलर आधी रात के बाद बंद कर दिया करते हैं लेकिन रात तो बंद करने का मन ही नहीं हुआ. फिर भी नींद बहुत देर से आई. इसलिए पांच बजे की अलार्म भी नहीं सुनी. सुबह-सुबह दरवाजे पर 'हर हर गंगे' का उद्घोष हुआ तो आँख खुली. 

टिहरी गढ़वाल से हमारा खानदानी पंडा तो दिसंबर-जनवरी में आता है. तब वहाँ काफी ठण्ड पड़ने लग जाती है. कुछ ठण्ड से बचाव तो कुछ यजमानों से थोड़ी बहुत आमदनी. अब तो उसके आने का मौसम भी नहीं है. यह सच है कि सच्ची भक्ति और सच्चे प्यार में बहुत शक्ति होती है. जैसे मोदी जी को गंगा मैय्या ने बुलाया तो उन्हें अपनी जन्मभूमि गुजरात को छोड़कर वाराणसी जाना पड़ा. वैसे ही यदि हम सच्चे मन से गंगा मैय्या को पुकारते तो तय है कि माँ ज़रूर चली आती. लेकिन आज तो हमने माँ को पुकारा भी नहीं. फिर गंगा मैय्या द्वार पर कैसे चली आई ? 

हमने पत्नी से कहा- ज़रा दरवाजे पर जाकर देखो तो कौन है ?

कुछ देर बाद पत्नी दरवाजा बंद करके अन्दर आई और बोली- शरीर पर भस्म  लपेटे, लंगोटी लगाए एक दुबला पतला आदमी था. कह रहा था- माता, तुम्हारे पति ने कोरोना की एक डोज़ ले ली है लेकिन दूसरी का कोई हिसाब-किताब नहीं बैठ रहा है. उसे यह गंगाजल पिला देना. सब ठीक हो जाएगा. 

हमने पूछा- वह आदमी कहाँ है ?

बोली- वह तो उसी समय चला गया. उसे क्या पता कि तुम्हें ९० दिन बाद भी दूसरा टीका नहीं लगा है. फ्री में गंगाजल भी दे गया. ज़रूर कोई संत ही था.  

हमने कहा- यह जो गंगाजल या आबे ज़मज़म या गौमूत्र या अमृत जो कुछ भो है, हमें नहीं पीना. जिस देश में रेल में लोग नशीली चाय पिलाकर लूट लेते हैं, नकली टीके लगा जाते हैं, टीकों के झूठे आंकड़े बना देते हैं, वहाँ कुछ भी विश्वसनीय नहीं है. जब भी मरेंगे स्वाभाविक मौत मरेंगे, किसी के षड्यंत्र का शिकार होकर नहीं.  

हमारी बात चल ही रही थी कि तोताराम आ गया. बोला- कौन रच रहा है तुम्हारे विरुद्ध षड्यंत्र ?

हमने कहा- कोई कोरोना के दूसरे डोज़ के विकल्प के रूप में गंगाजल बताकर यह पानी दे गया है. अब बिना जानकरी के कैसे पी लें.

बोला- शंका मत कर. मीरा तो ज़हर को भी श्रीनाथ जी का प्रसाद मनाकर पी गई और अमर हो गई. ये विपक्षी लोग गंगाजल, गोमूत्र और गोबर से सभी बीमारियों की चिकित्सा की निंदा के बहाने मोदी जी के विरुद्ध हवा बना रहे हैं. ये सब नास्तिक, मुस्लिमपरस्त और कम्यूनिस्ट हैं.

बी एच यू के डाक्टरों ने भी कोरोना के इलाज में गंगाजल की भूमिका पर शोध करवाने को लिखा है.न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रो. विजय नाथ मिश्र का कहना है कि साल 1896 में कोलेरा महामारी के दौरान डॉ हैकिंग ने एक स्टडी की थी. जिसमें यह पता चला था कि जो लोग गंगा जल का सेवन करते हैं वे कोलेरा से ग्रसित नहीं हो रहे हैं. बीएचयू के मुताबिक लंबे समय तक इस स्टडी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था. उन्होंने कहा कि साल 1980 में यह बात पता चली कि सभी नदियों में बैक्टीरियोफेज होते हैं. गंगाजल में ऐसे 1300 तरह के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं.

प्रो. गोपालनाथ ने साल 1980 से 1990 के बीच बीएचयू में मरीजों का इलाज बैक्टिरियोफेज के जरिए किया था.

प्रोफेसर मिश्रा ने बताया कि गंगा मामलों के एक्सपर्ट अरुण गुप्ता ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर गंगा जल के औषधीय गुणों और बैक्टीरियोफेज का पता लगाने की अपील की थी. गंगा किनारे रहने वाले 491 लोगों पर सर्वे किया गया था. जिसमें यह खुलासा हुआ कि 274 ऐसे लोग जो रोज गंगा में नहाते हैं और गंगाजल पीते हैं उनको कोरोना नहीं हुआ था. वहीं 217 लोग जो गंगा जल का इस्तेमाल नहीं करते थे, उनमें से 20 को कोरोना हुआ और 2 की मौत भी हो गई. उन्होंने कहा कि गंगाजल पर और भी रिसर्च की जरूरत है.

हमने कहा- यदि तेरा शोध-पत्र वाचन समाप्त हो गया हो तो हम भी कुछ बकें.

बोला- फरमाइए.

हमने कहा- तुमने बताया कि २१७ लोगों ने गंगाजल का इस्तेमाल नहीं किया. उनमें से २० को कोरोना हुआ और २ मर गए. हमने भी शोध किया है कि दो लोगों ने गंगाजल का सेवन कभी नहीं किया और उन्हें आज तक कोरोना नहीं हुआ. इससे सिद्ध होता है कि गंगाजल सेवन न करने वाले कोरोना से अधिक सुरक्षित रहते हैं. उन के नाम भी सुन ले- रमेश जोशी और तोताराम. 

बोला- इस तरह से तो मैं भी एक उदाहरण दे सकता हूँ कि जिसे गंगा बुलाती है वह प्रधानमंत्री बन जाता है, वह सदैव गंगाजल का सेवन करता है और उसे लाखों की भीड़ में जाकर भाषण देने पर भी कभी कोरोना नहीं होता.

हमने कहा- तोताराम, हम ज्यादा विज्ञान तो नहीं जानते लेकिन इतना दावे से कह सकते हैं कि जो गंगा के भक्त बने फिरते हैं वे एक महीने तक बनारस की गंगा का जल पीकर जिंदा रह कर दिखा दें तो हम मोदी जी के ८ नवम्बर २०१६ के भाषण की तरह संकल्प लेते हैं- "आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर..देश जो सज़ा करेगा वो सज़ा भुगतने को तैयार हूं." 

यदि गंगाजल से ही कोरोना का इलाज़ होता तो क्या उसमें तिरते सैंकड़ों शवों का कल्याण नहीं हो जाता. 

बोला- लेकिन इतना तो मानेगा कि गंगाजल के प्रभाव से वे शव भी रेत को हटाकर ऊपर आ गए, तैर कर उत्तरप्रदेश से बिहार तक पहुँच गए. जीते जी भले ही उनकी किसी ने नहीं सुनी लेकिन अब वे पर्याप्त गंगाजल पीकर इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि 'रामराज' वाले 'साहब' भी उनसे डरने लगे हैं. 

खैर, न सही गंगाजल से कोरोना का इलाज़ लेकिन गंगाजल पीने में क्या समस्या है ? साफ़ और शुद्ध है. घर बैठे गंगा मैय्या आई है.पी ले, मोक्ष हो जाएगी.

हमने कहा- तू यह कैसे कह सकता है कि यह साफ़ है ?

बोला- मुझे ही पता नहीं होगा तो किसे होगा !  कुछ देर पहले घड़े के पानी से भरकर यह बोतल मैं ही तो दे गया था.


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Aug 3, 2021

नेहरू और मोदी जी के बीच

नेहरू और मोदी जी के बीच


जैसे ही तोताराम आया, हमने उसके सामने पहेलीनुमा एक प्रश्न फेंकते हुए पूछा-  नेहरू और मोदी के बीच ? 

बोला- यह भी कोई प्रश्न है ?

हमने कहा- जिसे उत्तर मालूम नहीं होता या जो कुछ छुपाना चाहता है वह उत्तर देने की बजाय प्रश्न को ही चेलेंज करता है जैसे संसद में सरकार. कृषि कानूनों को अच्छा बताती है लेकिन किसानों की बात नहीं सुनना चाहती. यह नहीं बताना चाहती कि पेगासस ख़रीदा या नहीं. बस, यही रट लगाए है कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है. 

बोला- लेकिन तेरे प्रश्न का तो कोई सिर पैर ही नहीं है. अब क्या बताऊँ ? नेहरू और मोदी जी के बीच समानता या असमानता बताऊँ. १९६४ से २०१४ के बीच क्या-क्या हुआ यह बताऊँ. 


तुझे पता है, पहेली साहित्य और मनोरंजन की एक विधा है जो अधूरी बात कहकर धोखे और सन्देश का जाल रचती है. बहुत से लेखक, नेता और दार्शनिक इसी चक्कर में लोगों को को फँसाकर अपना काम कर जाते हैं. 

इसके लिए हम भारतीय राजनीति से उदाहरण ले सकते हैं जैसे गाँधी जी कहते थे- यदि मैं भारत का डिक्टेटर बन जाऊं तो पहले ही दिन देश में शराब बंद कर दूँ. अब कैसे तय करें कि उनकी बात में दम था या नहीं. आस्था, गर्व और अहंकार की शराब का धंधा करने वालों ने छह महिने के भीतर ही निबटा दिया. हालाँकि गाँधी की जन्मभूमि के अभिमान का मज़ा लेने वाला गुजरात ने कागजों पर शराबबंदी कर तो दी लेकिन उसकी असलियत हमने १९७१ से १९७७ तक भली भांति देखी है. नेहरू जी ने कहा था कि जब तक एक भी आँख में आँसू है तब तक हमारी स्वतंत्रता अधूरी है. आज भी हमने बड़े-बड़े लोगों को रोते देखा है इसलिए इस हिसाब से उनकी स्वतंत्रता अधूरी और असफल ही रही. इसके बाद इंदिरा गाँधी को देखें. 'गरीबी हटाओ' का नारा  दिया लेकिन गरीबी है कि आजतक शान से कायम है.

हमने कहा- लेकिन अब गरीबी कौन सी कम हो गई. बल्कि जीवन का हैप्पीनेस इंडेक्स गिरा है और गरीबों की संख्या बढ़ी है. बढ़ी भी इतनी कि हमारी हैसियत इतनी भी नहीं रही कि मुर्दों को जला भी सकें. गंगा में तिरते शव क्या कहते हैं. लेकिन तूने हमारे मूल प्रश्न का उत्तर नहीं दिया. 

बोला- वैसे तो हम उत्तर देने में विश्वास नहीं करते. हम तो उत्तर देने की बजाय प्रश्न पूछने वाले से ही प्रश्न करते हैं. जैसे कि 'अच्छे दिन', '१५ लाख' की बात करने वले पूछते हैं-  जब देश का विभाजन हुआ तब तू क्या कर रहा था ?  

वैसे तेरे इस प्रश्न के दो प्रकार के उत्तर हो सकते हैं. पहला तो यह कि नेहरू जी और मोदी जी में ५० वर्ष का अंतर है. नेहरू जी को गंगा ने बुलाया नहीं बल्कि वे संयोग से गंगा के किनारे 'इलाहाबाद' में पैदा हुए. वे ऐसे मुस्लिम परस्त थ कि यदि उस समय किसी देशभक्त ने 'इलाहाबाद' का नाम 'प्रयागराज' कर दिया होता तो वे 'जाफराबाद' में पैदा हुए होते. उनके निधन के ५० साल बाद गंगा और उत्तर प्रदेश सहित समस्त देश का उद्धार करने के लिए गंगा के निमत्रण पर मोदी जी बनारस पधारे.

हमने पूछा -और दूसरा उत्तर ?

बोला- दूसरा यह कि नेहरू जी ने १७ साल तक देश की अर्थव्यवस्था और एकता का सत्यानाश  किया. उसके बाद उनकी पार्टी ने इस काम को जारी रखा.

हमने कहा- देश अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ, परमाणु शक्ति बना, मंगलयान तैयार किया. 

बोला- मुझे ज्यादा तो नहीं मालूम लेकिन नेहरू जी ने हॉकी टीम को कभी आत्मनिर्भर नहीं बनने दिया. उनके जाने के बाद उनके परिवार वालों ने इस काम को आगे बढ़ाया और हालत यह हो गई कि पिछले ४९ साल में भारतीय हॉकी टीम कोई मैडल नहीं ला सकी. कई बार तो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर सकी. लेकिन अब मोदी जी ने उसे सेमीफाइनल में पहुंचा दिया. 

हमने कहा- शायद आज भारत का मैच बेल्जियम से हैं. देखें क्या हुआ ?

जैसे ही नेट खोला तो पता चला कि भारत बेल्जियम से ५-२ से हार चुका था.

बोला- अभी कांस्य पदक का चांस बाकी है. ४९ साल के खराबे को ७ साल में इतना ठीक कर दिया, यह क्या कम है.

  



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Aug 1, 2021

मीठा-मीठा गप्प


मीठा-मीठा गप्प 


टीका लगवाने गए तो नियम के पक्के कोरोना योद्धाओं ने मना कर दिया कि अभी ८४ दिन में २२ घंटे कम है. हो सकता है इतना पहले दूसरी डोज़ लगा देने से ज़रूरत से ज्यादा इम्यूनिटी आ जाए तो मुश्किल हो जाएगी. ट्रंप ने टीका लगवाकर कहा था कि अब मैं अपने आप को सुपरमैन अनुभव करता हूँ और नीचे जाकर किसी को भी चूम सकता हूँ. वैसे चूमने का काम उसके लिए क्या मुश्किल ही जिसने बिना टीका लगवाये ही, कई प्रेमिकाओं के अतिरिक्त तीन-तीन सुंदरियों से शादी कर ली. हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है फिर भी कोरोना के डर के मारे टीका लगवाना तो ज़रूरी है. 

टीका केंद्र पर देखा, चार कोरोना योद्धाओं में से एक ने मास्क लगा रखा था, दूसरे ने गले में लटका रखा था, तीसरे ने जेब में रखा हुआ था और चौथा हरिद्वार में कुम्भ स्नानार्थियों की तरह माँ गंगा की कृपा पर विश्वास करके मास्क रहित निर्भय. कुछ डर लगा, फिर मोदी जी के सहअस्तित्त्व सिद्धांत 'कोरोना के साथ रहने की आदत' पर विश्वास करके साहस जुटाया. 

बताया गया कि कल आना. वह कल अभी तक नहीं आया. तभी कहा गया है- काल करे सो आज कर. लेकिन आज तो बस, इंतज़ार करना है. चार दिन हो गए हैं. सोच रहे हैं- यदि अधिक समय निकल गया तो यह पहले वाला ही कहीं प्रभावहीन न हो जाए. 

तोताराम आया तो हमने कहा- तोताराम, अब और कितना इंतज़ार करें. 

बोला- इंतज़ार का क्या ? दो दिन का मामला ही तो है. दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में. इंतज़ार का फल मीठा होता है. वैसे क्या मेरा इंतज़ार कर रहा था क्या ?

हमने कहा- तेरा इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत है. तू क्या 'अच्छे दिन' है जो ज़िन्दगी भर रास्ता ही दिखाता रहेगा. 'मन की बात' की तरह सही समय पर आ ही धमकता है. हम तो टीके की बात कर रहे थे. चार हफ्ते से बढ़ाते-बढ़ाते १२ हफ्ते कर दिया. और अब कहीं कोई सूचना नहीं. कब आएगा, कब लगेगा ? 

बोला- यह वैसे ही है जैसे शादी की गहमागहमी भरी रात भर की हाय-हाय के बाद सभी घर वाले घोड़े बेचकर सो जाते हैं. ऐसे ही समय में चोरियां और खुराफातें होती हैं. २१ जून को रिकार्ड बन गया. जब दस-बीस दिन बाद उसकी खुमारी टूटेगी,  देशद्रोही न्यूज पोर्टल हल्ला माचायेंगे तब कहीं फिर उसी पुरानी रफ़्तार और आधे-अधूरे मन से फिर शुरू होगा. वैसे नयी शोध के अनुसार तो अगले फरवरी तक गई भैंस पानी में.

हमने आश्चर्य से कहा- यह क्या ? २१८ करोड़ टीकों, दिसंबर तक सारे देश को टीका लग जाने की बात का क्या हुआ ? 

बोला- वह तो हैड लाइन मनेजमेंट था सो हो गया. अब तो मोदी जी के सिपहसालार ब्रिटेन के शोध को लागू करने की सोच रहे होंगे.

हमने पूछा- ब्रिटेन की शोध क्या है /

बोला- उन्होंने बताया है कि कोरोना के दो डोज़ में १० महिने का अंतर रखा जाए. तो इम्यून सिस्टम मज़बूत होगा. 

हमने कहा- वैसे तो हम 'लांसेट' जैसे  विदेशी शोधों और अध्ययनों की कोई बात नहीं मानते फिर इसे इतनी जल्दी कैसे मान लेंगे ?

बोला- यह अपने फायदे की बात है ना, जैसे यू पी वाले 'द डेली टेलीग्राफ' की 'मोदी-प्रशंसा' .

हमने कहा- इसी को कहते हैं- खारा-खारा थू, मीठा-मीठा गप्प. 




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