Apr 29, 2020

महाबली की महाबली से गुहार



महाबली की महाबली से गुहार 


अभिमान कहना तो उचित नहीं होगा क्योंकि तुलसी बाबा ने कहा है- 'पाप मूल अभिमान'; लेकिन आज तोताराम कुछ विशिष्ट नज़र आ रहा था |चाल में एक मस्ती-सी, आँखों में खुमारी-सी |हमने कारण पूछा तो बोला- मास्टर, अब तो मान ले हमारा जलवा ! अब तो दुनिया के सबसे धनवान और शक्तिशाली लोकतंत्र ने ही नहीं, योरप के स्पेन और इटली जैसे देशों ने भी घुटने टेक दिए |

हमने पूछा- क्या चीन ने भारत की नेफा वाली भूमि लौटा दी ? क्या पाकिस्तान ने सारे जम्मू कश्मीर पर हमारा कब्ज़ा स्वीकार कर लिया ? क्या हमें सुरक्षा परिषद् में वीटो पॉवर के साथ स्थायी सदस्यता मिल गई ?

बोला- ये सब तो छोटी-मोटी बातें हैं |अब तो खुद ट्रंप ने कोरोना से लड़ने के लिए भारत से गुहार लगाई है हाइड्रोक्लोरोक्वीन की गोलियाँ देने के लिए |उस अमरीका का राष्ट्रपति जिसके द्वारे कभी हम अनाज माँगने जाया करते थे |

हमने कहा- लेकिन पहले तो भारत ने निर्यात बंद करने की बात की थी लेकिन जब ट्रंप ने धमकी दी तो मानवता के नाम पर अमरीका ही नहीं और भी कई देशों को भी क्लोरोक्वीन का निर्यात खोला |

बोला- वह कोई धमकी थोड़े ही थी | उन्होंने कहा था- 'भारत ने नहीं भेजी दवा तो नतीजे ठीक नहीं होंगे' | मतलब हमारी हालत खराब हो जाएगी |अब इससे ज्यादा एक महाबली और क्या कह सकता है ? क्या यह उचित होता कि हमारे पास संजीवनी होते हुए हम लोकतंत्र के किसी लक्ष्मण को मर जाने दें ?अब तो ब्राजील के राष्ट्रपति को भी हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने की याद आने लगी है | हमारे देश में तो राजा रंतिदेव हुए हैं जिन्होंने अपने और अपने परिवार के हिस्से का भोजन एक भूखे भिखारी को दे दिया था |संत रामानंद वाराणसी से गंगाजल लेकर रामेश्वरम के शिव पर चढ़ाने जा रहे थे | रास्ते में देखा, एक गधा प्यास से मर रहा है तो उन्होंने वह गंगाजल उसे पिला दिया |

हमने कहा- तो फिर निर्यात पर प्रतिबन्ध की बात ही नहीं करते |

बोला- तूने गज और ग्राह वाली कथा नहीं पढ़ी ? जब तक गजराज को अपनी शक्ति का अभिमान था तब तक भगवान ने उसकी नहीं सुनी लेकिन जैसे ही उसने अंत समय में एक कमल पुष्प अपनी सूँड में लेकर भगवान विष्णु से गुहार लगाई तो प्रभु दौड़ पड़े नंगे पाँव | सिकंदर पुरु से यही तो सुनना चाहता कि उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाए जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है | 

हमने कहा- हाँ भई तोताराम, ये महाबलियों की बातें हैं हम क्या समझें ? हम तो सरकार से अपनी 'दो साल की डीए बंदी' के बारे में भी गुहार नहीं लगा सकते |क्या पता कोरोना के कहर में पेंशन ही बंद ना कर दे |

वैसे हमने सुना है, यह क्लोरोक्वीन भी कोई कोरोना की दवा नहीं है |बस, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है |

India is the largest producer of hydroxychloroquine Coronavirus KMBSNT

बोला- दिल के बहलाने वाले ख्यालों से ही तो दुनिया चल रही है |जिस देश के पास दिल को बहलाने के जितने अधिक साधन होते हैं वहाँ शासन सरलता से चलता है |धरती माँ  के स्तनों में इतना दूध कहाँ है जो सब की अनियंत्रित भूख-प्यास मिटा सके |कुछ और दूध और कुछ झुनझुना |बस, ऐसे ही काम चल रहा है |

ट्रंप कहते हैं, अमरीका में कोरोना से दो करोड़ मरेंगे |यदि हम यह संख्या कम कर सके तो यह हमारी सफलता होगी और यदि हमारे यहाँ यह संख्या अमरीका से कम रही तो हम भी अपने आप को अमरीका से श्रेष्ठ सिद्ध कर सकेंगे |





 


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Apr 24, 2020

छुपा हुआ कौशल



छुपा हुआ कौशल 

बहुत कुछ जीव के जींस में होता है |उसी के अनुसार जीव को कमोबेश आचरण करना पड़ता है |यदि किसी नेता का पुत्र तत्काल राजनीति में नहीं आता तो थोड़े दिन बाद या उसके पिता श्री की मृत्यु के बाद, उनके सपनों को साकार करने के लिए पार्टी के अनुशासित सिपाहियों की बेहद माँग पर, सुपुत्र राजनीति में आ ही जाता है |चूँकि राजनीति जींस में होती ही है इसलिए परेशानी नहीं होती | अधिकतर लोग तो अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते, बड़ी मेहनत से दरी बिछाते-बिछाते 'राष्ट्र के नाम सन्देश' देने लग जाते हैं |इसे स्किल डेवेलपमेंट कहते हैं |स्किल के बिना डेवलपमेंट नहीं होता और अगर अपना और परिवार का डेवलपमेंट न हो तो किसी स्किल का फायदा ही क्या ?

हमने बी.ए. में अर्थशास्त्र विषय लिया था |जब एम.ए. करने की बात आई तो हमारे गुरूजी ने कहा- तू भले ही श्यामसुंदर दास जी या बाबू गुलाबराय जी की तरह बी.ए. ही रहा जाना लेकिन अर्थशास्त्र में एम.ए. मत करना |तू खुद तो दुखी होगा ही, देश की अर्थव्यवस्था का भी सत्यानाश करेगा |हमने अर्थशास्त्र में एम.ए. नहीं किया |यह बात और है कि हमारे किसी सहयोग के बिना ही नेताओं और अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था का जो हाल किया है वह आप सब जानते हैं |हम उसके लिए किसी भी रूप में दोषी नहीं हैं |

भले ही हमने अर्थशास्त्र में एम.ए. नहीं किया लेकिन मोदी जी की तरह अर्थशास्त्र के साथ प्रयोग करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी |हमने किसी सिक्ख को भीख माँगते नहीं देखा | इससे हमने निष्कर्ष निकाला कि दाढ़ी और हजामत न बनवाने से व्यक्ति जीवन में लाखों रुपए की बचत कर सकता है और इस फालतू काम से जो समय बचता है उसमें व्यक्ति अपनी स्किल का सदुपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था सुधार सकता है |इसलिए कोई चार महिने पहले हमने फिलिप्स का एक ट्रिमर मँगवाया | सोचा बुढ़ापे में ही सही बचत और स्किल डेवलपमेंट दोनों कर लेंगे |अब साबुन, ब्लेड का खर्च ख़त्म |बस, जब मन हुआ दाढ़ी पर घुमा लिया |पहले हमने ट्रिमर से दाढ़ी बनाने में केवल साबुन और ब्लेड की बचत को ही जोड़कर २५ रु. महिने की बचत का हिसाब लगाया था लेकिन अब कुछ और तरह से कल्कुलेट करते हैं जैसे यदि हम बाज़ार में किसी सैलून में जाकर दाढ़ी बनवाते तो ? बीस रुपए दोनों तरफ का ऑटो का खर्च, बीस रुपए दाढ़ी बनवाने के |महीने में यदि दस बार दाढ़ी बनवाएँ तो हुए कुल चार सौ रुपए महिना | साल में पाँच हजार | अगर बीस साल और जी लिए तो एक लाख रुपए की बचत |वर्चुअल ही सही; सुख तो सुख ही है |

जैसे ही पिछला क्वेरेंटाईन  शुरू हुआ था तो पढ़ा कि अनुष्का शर्मा ने अपने पति विराट कोहली की कटिंग बनाई |स्किल भी डेवलप हुई और सौ-पचास रुपए की बचत भी |

आज लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वे अपने पिता एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की दाढ़ी बनाते दिख रहे हैं | चिराग ने ट्वीट किया- 'मुश्किल वक़्त लेकिन लॉक डाउन का भी एक उजला है | पता नहीं था कि यह कौशल भी है |आइए, कोविस-१९ से पड़ते हैं और सुन्दर स्मृतियाँ भी बनाते हैं |घर पर रहें, सुरक्षित रहें |

 यह बात और है कि किसी ने भी मास्क नहीं लगा रखा था और डिस्टेंस भी एक फुट से अधिक नहीं था | खैर, हमारा काम कौन सोशियल डिस्टेंसिंग कायम करवाना है |यह तो सत्ताधारी दल का निजी मामला है | मूँडने की कला तो सबको आनी चाहिए, विशेषरूप से जनता के सेवकों को |यदि आप किसी को नहीं मूँडेंगे तो लोग आपको मूँडेंगे |सामान्य लोगों में स्किल डेवलप करनी पड़ती है |नेताओं और नेतापुत्रों में जन्मजात होती है |

Chirag Paswan trims father Ram Vilas Paswans beard - Sakshi

हम अमूमन तीन महिने में एक बार कटिंग बनवाते हैं |अबकी बार जब कटिंग बनवाने का समय हुआ तो जनता-कर्फ्यू लग गया |एक महिना ऊपर हो गया |पीछे के बाल ऐसे हो गए जैसे अम्बानी के बेटे की शादी में नृत्य कर रहे शाहरुख खान की चुटिया | पोतियाँ आजकल यहीं आई हुई हैं |हमने सोचा समय का सदुपयोग, स्किल का डेवलपमेंट और पचास-साठ रुपए की बचत; सब काम हो जाएँगे |

हमने जब यह योजना पोती को बताई तो बोली- आपको कौनसा पासवान जी की तरह  प्रधानमंत्री के साथ टेलीकांफ्रेंसिंग करनी है |कौन आपकी कटिंग करते हुए हमारा फोटो अखबार में फोटो छापने वाला है ? और आप भले ही नाई को सौ रुपए दे देंगे लेकिन हमें पचास रुपए देते हुए भी नखरे करेंगे जैसे सरकार पेंशनरों को बढ़ा हुआ महँगाई भत्ता देने में करती है |

इस राष्ट्रीय महत्त्व के कृत्य का वीडियो हमने नहीं बनवाया क्योंकि कोई अखबार या चेनल इसे नहीं दिखाता | हम भी ऐसा नहीं चाहते क्योंकि क्रमशः दोनों तरफ के बाल काटते-काटते और सन्तुलन बैठाते-बैठाते दोनों तरफ के बाल साफ़ हो गए और कटिंग विराट कोहली की तरह 'मशरूम कट' हो गई |अंत में सदन ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि इसे जोस बेजोस कट या प्रीतीश नंदी या अनुपम खेर कट बना दिया जाए |







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हम जानते हैं कि बार-बार मुँडने से भी भेड़ वैकुण्ठ नहीं जाती |हाँ, मूँडने वाले ज़रूर मज़े करते हैं |हम वैकुण्ठ जाना भी नहीं चाहते |हम यह भी जानते हैं कि मूँड मुँडाने पर ओले गिराने की संभावना भी बढ़ जाती है | हमने तो मूँड इसलिए मुँडाया है कि वैकुण्ठ को इस धरती पर ही लाया जा सके |

हम चाहें तो कैलाश विजयवर्गीय जी की तरह 'इंदौर में हनुमान जी की दुनिया की सबसे बड़ी अष्टधातु की प्रतिमा न बनने तक अन्न सेवन न करने; केवल फल, दूध और मेवों से ही काम चलाने की कठोर प्रतिज्ञा कर सकते हैं'  लेकिन हमारी पेंशन में यह संभव नहीं | फिर भी चाहें तो इस मुंडन-संस्कार को एक वैश्विक सन्दर्भ तो दे ही सकते हैं कि जब तक दुनिया के कोरोना समाप्त नहीं हो जाता, हम ऐसे हो घोटम-घोट रहेंगे |


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Apr 19, 2020

चलो, मास्क बनाते हैं



चलो, मास्क बनाते हैं 

 
सेलेब्रिटी का हगना-मूतना तक समाचार होता है |वे कपड़े पहनें तो समाचार और न पहनें तो और बड़ा समाचार |ऐसे में उनका अन्त्याक्षरी खेलना समाचार कैसे नहीं होता ? राष्ट्रहित के इस पुण्य-कार्य में स्मृति ईरानी, करण जौहर, एकता कपूर, प्रियंका चोपड़ा आदि ने भाग लिया |करण जौहर ने कोरोना के मुख्य परहेज के विरुद्ध पंक्तियाँ पढीं- लग जा गले ......|अच्छा हुआ जो किसी ने इसका अनुसरण करते हुए नियमों का उल्लंघन नहीं किया |प्रियंका चोपड़ा ने भूल सुधार करते हुए गाया- बच के रहना रे बाबा | अच्छा है सोशियल डिस्टेंसिंग |वैसे वे अपने ट्विटर-भक्तों के लिए निक के साथ अपने बड़े अन्तरंग फोटो डालती रहती हैं |सेलेब्रिटी का ट्विटर पर भी तो करोड़ों का धंधा है |


रोचक लोगों की रोचकता के बावजूद हम इस अन्त्याक्षरी के सहमत नहीं हैं |जब तक ड,ण, ढ, झ, थ आदि पर लाकर बार-बार छोड़कर विपक्षी की टांग न खींची जाए तब तक अन्त्याक्षरी-कबड्डी का मज़ा ही क्या ? यह क्या, कुछ भी गा दो | हमें यह बड़ा बचकाना लगा | हमें और तोताराम को अन्त्याक्षरी से बेहतर मास्क बनाना लगा | 

हमने अपनी १९६७ में खरीदी, 'उषा' की 'टेलर मॉडल' की मशीन को झाड़-पोंछकर तेल दिया | हमारी मशीन की जगह कोई राजनीतिक पार्टी होती तो उसका स्वर्ण जयंती समारोह पूरे साल भर चलता | १९५३-५४ में सीखी सिलाई की कला को पुनर्जीवित करने के लिए जमकर बैठ गए |जहाँ तक मशीन के 'उषा' के 'टेलर मॉडल' होने की बात है तो बस नाम-नाम है |समझिए, मुखौटा भर है |सभी अंग-प्रत्यंग लोकल और डुप्लीकेट हैं |वैसे ही जैसे भाजपा, कांग्रेस सभी ने सत्ता के गटर में उतरने के लिए ऐसे-ऐसे नीचों, बदमाशों और लम्पटों का सहारा लिया कि खुद का जैसा भी चरित्र था, बदल गया |फिर भी सिलाई मशीन तो है ही | हमें कौन किसी बड़े नेता का शपथ-ग्रहण के लिए कुरता-पायजामा सिलना है |मास्क ही तो सिलना है |वैसे मास्क का अनुवाद मुखौटा होता है लेकिन इस शब्द से जनसेवकों की इमेज खराब करने का आरोप लग सकता है |वैसे असलियत से सभी परिचित हैं |चुनावी रैली में मोदी जी का मुखौटा लगाकर जाने वाले मोदी जी नहीं हो जाते |सिर में मोरपंख खोंस लेने से क्या कोई योगिराज कृष्ण थोड़े ही हो जाता है या जैसे साबरमती आश्रम में गाँधी जी का चरखा चलाने से ट्रंप गाँधी जी नहीं बन जाते |
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बरामदे में दरी बिछा दी गई |एक स्टूल पर गुलदस्ता सजाया गया | पृष्ठभूमि में मोदी जी का फोटो टांग दिया गया |बगल में धोती से मास्क के साइज़ में काटे हुए कपड़े के टुकड़े |चार-चार फुट की दूरी पर गोले बनाकर बैठे हुए तोताराम, मैना तथा हमारी पत्नी |  जब सब सेटिंग हो गई तो हमने पोतियों को आवाज़ दी- चलो बच्चो, कोरोना के विरुद्ध भारत को विजयी बनाने के लिए, कोरोना विषाणु को निष्प्रभावी बनाने के लिए मास्क बनाते हैं |

दोनों पोतियाँ आईं |हमने छोटी को वीडियो बनाने के लिए आदेश दिया तो बोली- बाबा, अब उसकी कोई ज़रूरत नहीं है |देखो, यह फोटो |

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आपकी तरह स्मृति ईरानी ने भी अन्त्याक्षरी छोड़कर हाथ से सीकर ही मास्क बनाना शुरू कर दिया था लेकिन अब खबरों में आने वाला यह ट्रेंड पुराना हो गया है |

हमने पूछा- क्या अब भारत से कोरोना का सफाया हो गया ? लगता है, मोदी जी की थाली, ताली बजाने और दीये जलाने की तकनीक काम कर गई | कोरोना सोचकर तो आया होगा कि भारत को परेशान कर दूँगा लेकिन यहाँ आकर जब उसने देखा कि घर-घर में उत्सव, द्वीप-प्रज्जवलन, अन्त्याक्षरी और मौज-मस्ती हो रही है तो बेचारा शर्म के मारे ही मर गया होगा | 

पोतियाँ बोलीं- ज्यादा जोश में मत आओ |यह तो टेस्टिंग नहीं हो रही है इसलिए संख्या कम है | सबकी टेस्टिंग हो तो पता चले | लेकिन वह होना नहीं | फ़िलहाल तो मोदी जी ने कहा है कि अपने यहाँ जो गमछा है वह सबसे बढ़िया मास्क है |स्वास्थ्य कर्मियों के अतिरिक्त सबका काम गमछे से चल सकता है |इसलिए गमछा अपनाइए, उसे मास्क  बनाइए और कोरोना को भगाइए |

यदि हाथ के बने मास्क पहनने का ज्यादा ही शौक है तो स्मृति जी को लिख दो |उनके पास रखे होंगे |







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Apr 16, 2020

ठाले बैठे क्या करें....

ठाले बैठे क्या करें.... 

हम डरते हुए इस सच का उद्घाटन कर रहे हैं कि न तो हम किसी के मन की बात सुनते हैं और न ही किसी का राष्ट्र के नाम सन्देश |जब कोई हमारे मन की बात नहीं सुनता तो हम क्यों किसी के मन की बात सुनें |जहाँ तक सन्देश की बात है तो सलाह की तरह सभी सन्देश देते हैं, आचरण कोई नहीं करता |

२१ मार्च को देर रात कोई साढ़े ग्यारह बजे हमारी 'पेट' मीठी बड़े जोर से भौंकने लगी |बाहर निकलकर देखा तो दरवाजे पर दोनों बड़ी पोतियाँ |अच्छा तो लगा लेकिन अजीब भी कि बिना बात रात में ड्राइविंग की क्या ज़रूरत थी |दिन-दिन से ही आ जाते |कारण पूछा तो बोलीं- रात बारह बजे से कर्फ्यू लग जाएगा |
हमारे अलावा सभी को पता था कि क्या होने वाला है |हमारी स्थिति तो राजनीति में अडवाणी जी जैसी हो रही है | जो, जहाँ ले जाकर बैठा देता वहीँ बैठकर आ जाते हैं |
अगले दिन कहने को कर्फ्यू था लेकिन बीच-बीचे में लोग बिना काम ही गली में निकलकर देख लेते थे कि कर्फ्यू कैसा होता है लेकिन 'अच्छे दिनों' की तरह कर्फ्यू भी किसी को दिखाई नहीं दिया |

अचानक शाम को जोर-जोर से थालियाँ बजाए जाने की आवाज़ आने लगी | एक साथ ! हमारे यहाँ पुत्र जन्म पर ख़ुशी में थाली बजाते हैं |अच्छी बात है ! 'कुलदीपक' की असलियत तो 'बढ़ने' पर ही पता चलती है |रहीम जी कहा है- 

जो रहीम गति दीप की कुल कपूत की सोय  |
बारे उजियारो लगे बढ़े अंधेरो होय ||
यहाँ 'बारे' और 'बढ़े' में श्लेष अलंकार है ( बारे=  बचपन और जलाना तथा बढ़े=उम्र बढ़ना और बुझाना ) बड़ा अजीब लगा |मोहल्ले में एक साथ इतने पुत्र जन्म ! बड़ा विचित्र संयोग है |

बाद में पता चला कि यह सब मोदी जी के कहने पर हुआ है |उनकी माता जी ने भी थाली बजाई |

हीराबेन मोदी (फोटो-स्क्रीनशॉट)

हमें एक विचित्र-सा ख्याल आया लेकिन तभी हमने उसे झटक दिया |ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? काश, ऐसा संभव होता !

'थाली-ताली' की गरम चर्चा के मौके पर तोताराम कैसे चूक सकता |समय से पहले ही हाज़िर |कई देर तक चार्चा होती रही |तभी पोतियाँ भी बरामदे में आ गईं | बोलीं- दादा-द्वय आज का क्या कार्यक्रम है ?

हमने कहा- अन्याक्षारी खेलेंगे |आज हमारी भूतपूर्व शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी का जन्म दिन है | उन्होंने कहा है- मोदी ने जो 'जनता कर्फ्यू' लगाया है उसमें समय बिताने के लिए अन्त्याक्षरी खेली जाए | हालाँकि कहने को 'जनता कर्फ्यू' है लेकिन हमसे किसी ने कुछ नहीं पूछा |पूछ लिया होगा उनसे जो प्रश्न और जिज्ञासा जैसा कुछ नहीं करते |सही अर्थों में 'यस मैन' | 

छोटी पोती बोली- पहले बच्चों को कविताएँ कंठस्थ करवाने के लिए यह खेल खेला जाता था लेकिन आजकल सब उलटे-सीधे फ़िल्मी गानों वाली अन्त्याक्षरी खेलते हैं |और फिर क्या आपके पास इतना फालतू समय है कि उसे इस तरह बेशर्मी और बेरहमी से नष्ट किया जाए |ये सब तो निठल्ले लोगों के काम हैं | 



Smriti Irani ने शुरू की Twitter Antakshari, बड़े-बड़े लोगों ने गाए दिलचस्प गाने


डाक्टरों का कहना है कि कोरोना में दवा से अधिक परहेज का महत्त्व है |इसलिए क्या आप दोनों 'मास्क' बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ? इस बहाने हमें भी सिलाई मशीन चलाने का मौका मिलेगा |

जो आनंद हाथ से काम करने में है वह किसी चीज में नहीं है |काम के बिना जीवन व्यर्थ है |तुलसी ने तभी तो कहा है-

सकल पदारथ हैं जग माहीं |
करम हीन नर पावत नाहीं || 

पोतियों ने हम दोनों को आईना दिखा दिया |क्या करते ? मास्क बनाने का कार्यक्रम तय करने का वादा किया |


    


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Apr 10, 2020

मोदी जी का मेसेज



मोदी जी का मेसेज 

रात को नींद ढंग से नहीं आई | बार-बार एक ख़ास तरह के सपने आते रहे जैसे हम  कभी किसी पथरीले तो कभी किसी रेगिस्तान में भटक रहे हैं | न कहीं कोई मंजिल, न कोई साथी, न कोई सुनने वाला और न ही कोई पूछने वाला |पता नहीं, सपने कितनी देर तक चलते रहे लेकिन जब उठे तो बड़ा अजीब लग रहा था |थकान अनुभव हो रही थी |बरामदे की दीवार से पीठ टिकाकर बैठ गए |

हालाँकि मोदी जी ने हमसे तो शेयर नहीं किया लेकिन हमें पता चला गया कि उन्होंने इस क्वारंटाइन या एकांतवास में खुद को फिट रखने के लिए ट्विटर पर  'योग-निद्रा' का एक वीडियो ट्रंप साहब की बेटी इवांका के साथ शेयर किया है | हमने उसे ही निकालकर देखा और थकान मिटाने के लिए बरामदे में बैठे-बैठे ही योगनिद्रा में लीन हो गए |पता ही नहीं चला, कब तोताराम आकर बैठ गया |

बोला- तेरे पास मेरी सरकार का मेसेज आया क्या ? 

हमने कहा- 'तेरी सरकार का मेसेज तेरे पास आएगा |हमारे पास 'हमारी सरकार' का मेसेज आएगा |और जब आएगा तो हमें जो करना होगा, सो कर लेंगे |

बोला- मास्टर, आज तो सुबह-सुबह की बड़ा महीन मज़ाक कर दिया |मेरी सरकार मतलब भारत सरकार |

हमने कहा- पता नहीं, लैपटॉप खोलेंगे तो पता चलेगा |
बोला- मैंने देख लिया है |उसमें कोरोना-संकट की इस मुश्किल घड़ी में योगदान देने के लिए कहा है |

हमने कहा- क्या योगदान चाहिए ? जब तक नौकरी की तब तक युद्ध, बाढ़, अकाल सभी में एक-दो दिन का वेतन प्रधानमंत्री कोष में देते ही रहे हैं |अब पेंशन में क्या बचता है जो दान दें ? 

बोला- फिर भी मोदी जी की बात का उत्तर तो देना ही चाहिए |

हमने कहा- तो ले, हमारी तरफ से शगुन का यह सवा रुपया ले जा |

बोला- यह चवन्नी अपने पास रख |नेताओं की चवन्नी तो हमेशा चलती है लेकिन जनता की चवन्नी तो कब की बंद हो गई है |बचा एक रुपया, जिसे मनी आर्डर से भेजो तो पचास पैसे कमीशन के कट जाएंगे |यदि बैंक से भेजो निफ्ट ट्रांसफर से दो रुपए बहत्तर पैसे मिनिमम चार्ज है |

हमने कहा- तो उस तरह से दे दे जिस तरह सरकार ने 'राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट' को एक रुपया दिया है |

बोला- एक रुपए में तो एक ईंट भी नहीं आती |

हमने कहा- बात भाव, आस्था और प्रतीकात्मकता की है |सब जानते हैं कि थाली-ताली बजाने से और दीये जलाने से कोरोना नहीं भागेगा लेकिन सब कर तो रहे ही हैं ये सब टोटके |

बोला- यह समय अज्ञान और अंधविश्वास का नहीं है |यह समय तो अपने अज्ञान को मिटाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का है |देखा नहीं, निजामुद्दीन के मरकज़ में मौलाना किस तरह अन्धश्रद्धा के बल पर अपने अनुयायियों को मरने के रास्ते पर ले जा रहे थे |अमरीका तक में लोग कोरोना से बचने के लिए चर्चों की शरण में जा रहे थे |अब अब जब जान पर आ बनी है तब डाक्टरों की शरण में गए हैं |

हमने कहा- तुम गलत समझे |हम तो दान के बारे में आस्था की बात आकर रहे थे |जहाँ तक कोरोना के इलाज़ की बात है तो हम पूरी तरह से विज्ञान से सहमत है |हमारा तो कहना है कि जो अपने अंधविश्वास पर अड़े हैं उन्हें एक महिने का राशन देकर उनके आस्था के स्थान पर बंद कर दिया जाना चाहिए |जियें तो ठीक; मरे तो ठीक |उन्हें भी विज्ञान की तरह अपने अज्ञान की परीक्षा भी कर लेने दी जाए |

और जहाँ तक कुछ योगदान देने की बात है तो तू मोदी से कह कि मार्च की पेंशन तो भिजवाएँ |चार दिन ऊपर हो गए | कहीं जनवरी की पेंशन की तरह बीस दिन लेट कर देंगे तो राहत सामग्री के लिए किसी समाजसेवी को फोन करना पड़ेगा | क्या पता, वह हमारा नाम रिकार्ड में नोट करले और किट का पैसा खुद हज़म कर जाए |

यह कलयुग है |सब तरह के लोग हैं |मंदिर में भक्त ही नहीं, जूते उठाने वाले भी जाते हैं |और आजकल तो उनका स्पष्ट बहुमत है |


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