Jan 26, 2016

भेष और भावना


भेष और भावना

मनुष्य को अपनी पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार अपनी जीवन-शैली का निर्माण करना पड़ता है | कालान्तर में उसे उससे इतना मोह हो जाता है कि उसे छोड़ना उसे अपनी अस्मिता और अस्तित्त्व के लिए खतरा लगाने लग जाता है |संस्कृति और धर्म का व्यवसाय करने वाले ऐसी जीवन शैलीगत बातों को धर्म के साथ जोड़ देते हैं जिससे ऐसी छोटी-छोटी और धर्म से ताल्लुक न रखने वाली बातें भी बड़ा मुद्दा बन जाती हैं और बड़े-बड़े व्यर्थ संघर्षों को जन्म देते हैं, उदाहरण के लिए दाढ़ी, टोपी,पगड़ी, भोजन आदि | बड़ी सोच वाले व्यक्ति इन्हें इतना महत्त्व नहीं देते | भगत सिंह सिक्ख थे , दाढ़ी-पगड़ी  रखते थे लेकिन देश सेवा के लिए अंग्रेजों से बच निकलने के लिए दाढ़ी-पगड़ी छोड़ने में उन्हें एक क्षण भी नहीं लगा | आस्ट्रेलिया में दुर्घटनाग्रस्त एक बच्चे की जान बचाने के लिए एक सिक्ख युवक ने अपनी पगड़ी की पट्टी बनाते समय कोई सोच-विचार नहीं किया |जब कि

वेश की कमाई खाना  या उससे  किसी को धोखा देना बहुत बुरा माना गया है | जब भरत कौशल्या को राम के वनगमन में अपना हाथ होने के लिए सफाई देते हैं तो कहते हैं- हे माता , यदि मेरा ऐसा मत हो तो गर्हित से गर्हित पाप करने वाले को मिलने वाले दंड मुझे मिलें |इन गर्हित पापों में बहुत से पापों यथा- वेद (ज्ञान)  बेचने वाले, धर्म को दुहने (धन लाभ )करने वाले, लोभी-लम्पट, दूसरे का धन हड़पने की योजना बनाने वाले आदि-आदि के साथ वेश बदलकर संसार को छलने वाले का भी ज़िक्र करते हैं |इस प्रकार वेश की कमाई खाना और वेश बदलकर धोखा देना गर्हित कर्म हैं |रावण के साधु वेश धारण करके सीता का हरण करने से समस्त साधु शंका के घेरे में आ जाते हैं |सुदर्शन की कहानी में बाबा भारती का खड्ग सिंह को यह कहना  कि तुम किसी को यह मत कहना कि तुमने विकलांग का वेश बना कर छल से घोड़ा हथिया लिया अन्यथा वास्तव में भी किसी विकलांग का कोई विश्वास नहीं करेगा, खड्ग सिंह का हृदय परिवर्तन कर देता है लेकिन अब वेश की कमाई खाने वाले समय में खड्ग सिंह एक महात्मा नज़र आने लगता है |

रामचरितमानस में एक और प्रसंग आता है- राजा सत्यकेतु का जो जंगल में शिकार के लिए जाता है और अपने द्वारा हराए हुए राजा के साधु  वेश से छला जाता है |वहाँ तुलसी कहते हैं-
तुलसी देख सुवेश
भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |

लेकिन आज वेश की कमाई और उसका दुरुपयोग करने वाले कितने चतुर हैं इसका अनुमान आजकल हो रही घटनाओं से सहज ही लगाया जा सकता है |बहुत से अपराधी पुलिस, सरकारी अधिकारी, गैस ठीक करने वाले मीटर रीडिंग करने वाले आदि के वेश में आ जाते हैं |पठानकोट हमले के अपराधी भी सैनिक वेश में थे |सीकर जिले में एक घटना हुई |उन दिनों स्वाइन फ्लू फैला हुआ था और उसके सस्ते इलाज़ के बहाने प्रशंसा बटोरने वाले इसका काढ़ा मुफ्त पिला रहे थे और अखबारों में समाचार छपवा  रहे थे | इससे फायदा कितना हुआ यह तो भगवान जाने लेकिन एक चतुर महिला ने इसका फायदा उठाया |उसने दोपहर के समय जब गृहिणी घर पर अकेली थी तो नर्स के कपड़े पहनकर दस्तक दी और स्वाइन फ्लू का काढ़ा पिलाया |उसे पीते ही गृहिणी बेहोश हो गई और वह माल लेकर चम्पत |

आदमी कितना चतुर हो और वेश बदले हुए किस-किस को पहचाने |कभी न कभी तो चतुर से चतुर नर भी धोखा खा जाता है |जब राजा सत्यकेतु धोखा  खा सकता  है तो  सामान्य आदमी क्या बिसात | उसे तो कोई भी धोखा दे जाता है फिर चाहे वह भिखारी के वेश में हो या जनसेवक के | वस्तुतः जन सेवक के वेश में धोखे की सबसे अधिक संभावना रहती है |

जहाँ  जून २०१५ में दाढ़ी कटवाने पर दंड की घोषणा थी वहाँ अब  इस्लामिक स्टेट ने एक फरमान ज़ारी किया है कि उसके स्वयं सेवक या जिहादी या धर्म-योद्धा कुछ भी कहें, छोटी दाढ़ी रखे, जींस पहनें,ईसाइयों जैसे नज़र आएं और मिस्वाक का दातुन न करें |

कुछ वर्षों पहले मिस्वाक के नाम से एक टूथपेस्ट का विज्ञापन बहुत धूमधाम से आया करता था | एक बार अमरीका में एक मुस्लिम परिचित के पास बड़ी बढ़िया पेकिंग में एक दातुन देखा |बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने प्रकार के टूथपेस्टों के युग में एशिया से यह लकड़ी का दातुन क्यों मँगवाया ? अब जब इस्लामिक स्टेट का यह फरमान पढ़ा तो मिस्वाक के बारे में जानने की इच्छा हुई |पता लगा कि अरब और इसी तरह रेगिस्तानी इलाकों में एक पेड़ पाया जाता है जिसका नाम वहाँ मिस्वाक हो लेकिन अपने यहाँ उसे पीलू या जाळ कहा जाता है |यह एक बहुत ही टेढ़ा-मेढ़ा सा घनी पत्तियों वाला पेड़ होता है |इसके फल को पील कहते हैं जो खाने में खट्टा-मीठा स्वाद देता है |इस दातुन को हमेशा नहीं तो धार्मिक दिनों में प्रयोग करने से बहुत सबाब मिलता है |यह राजस्थान से बरेली जाता है और वहाँ से निर्यात होता है |

अब ये जो दिखने के लिए आदतें बदलने का फरमान है वह न तो किसी प्रकार का प्रगतिवाद है और न ही धर्मान्धता से मुक्ति का प्रयास |यह भेष का धोखा है  |

ताजिकिस्तान में कट्टरपंथी न दिखने के लिए १३ हजार लोगों की दाढ़ी कटवा दी गई है, पारंपरिक वेशभूषा की १६० दुकानें बंद करावा दी गई हैं, १७०० महिलाओं से पारंपरिक बुरका, हिजाब पहनना बंद करने को कहा गया है | पता नहीं, इसका कितना और क्या प्रभाव पड़ेगा ?

हम कब नाम, वेश, धर्म और नस्ल से परे आदमी को पहचानने के स्वाभाविक विवेक और मानवीय संबंधों और संवाद तक पहुँचेंगे ? यह बदलाव वस्त्रों और बाहरी पहचान की बजाय मूल्य आधारित मानवीय शिक्षा से ही संभव है |
क्या भेद की नीति से अपना उल्लू सीधा करने वाले धर्म के ठेकेदार और राजनेता ऐसा करने देंगे ? क्या हम वेश की आड़ में छिपे ऐसे लोगों को पहचानने का प्रयत्न करेंगे और अपने वोट के अधिकार को इस परिवर्तन का हथियार बनाएंगे ?

 



Jan 22, 2016

अतुल्य भारत

  अतुल्य भारत 

बचपन में हमें पढ़ाया जाता था कि योरप के देश धनवान हैं | वहाँ की जलवायु ठंडी है इसलिए वहाँ के मजदूर अधिक काम कर सकते हैं | भारत एक गरीब देश है क्योंकि इसकी जलवायु गरम है इसलिए यहाँ के मजदूर अधिक काम नहीं कर सकते | 

हम क्या कर सकते थे ? हमें वही पढ़ना और अध्यापकों को वही पढ़ाना पड़ता था जो सरकार की पुस्तकों में निर्धारित होता था लेकिन पता नहीं, हमारा मन क्यों नहीं मानता था | वह देश जो गरम जलवायु के बावज़ूद एक हजार वर्षों तक विदेशी शासनों का बोझ उठा सकता है, जिसके सैनिक दुनिया में अंग्रेजों का शासन कायम रखने के लिए प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं से लोहा ले सकते हैं, जहाँ के किसान फीजी, सूरीनाम, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देशों में जाकर वहाँ की ज़मीन को उपजाऊ बनाकर अपने विदेशी मालिकों के लिए 'सफ़ेद सोना' (चीनी) के लिए गन्ना उगा सकते हैं वे गोरे श्रमिकों से कमतर या काहिल कैसे हो सकते हैं ? लेकिन क्या किया जाए |

भाषा, धर्म,सभ्यता और संस्कृति के बारे में भी ऐसी ही बहुत सी बातें योजनाबद्ध तरीके से लोगों के मन में बैठाई गई थीं |रंग रूप के बारे में भी हमारे मन में यह बैठा दिया गया था कि गोरे लोग ही सुन्दर होते हैं जिसके कारण आज देश में गोरा बनाने वाली क्रीमों का हजारों करोड़ का व्यापार फैला हुआ है |

आज हमने जब तोताराम से अंग्रेजों की इस कूटनीति के बारे में चर्चा की तो बोला- अब यह धारणा गलत सिद्ध हो गई है |हमारे यहाँ के मजदूर दुनिया के सबसे शक्तिशाली और कर्मठ प्राणी हैं और कमाई के क्षेत्र में भी विदेशी मजदूरों से बहुत आगे हैं |भारतीय खाद्य निगम के तीन सौ अस्सी मजदूर तो ऐसे हैं रोजाना एक-एक क्विंटल की कम से कम एक-एक हजार बोरियाँ ट्रकों में चढ़ा-उतारते हैं और साढ़े चार लाख रुपए महिने तक कमाते हैं |

हमने पूछा-  यदि ऐसा होता तो यहाँ के मजदूर और कारीगर क्यों विदेश जाने के लिए मरे जा रहे हैं और बहुत बार विदेश भेजने के नाम पर एजेंट इन्हें ठग लेते हैं |इसका क्या प्रमाण है ?तेरे इस कथन का क्या आधार है ? इतना तो यहाँ के मैनेजरों, डाक्टरों, इंजीनीयरों, प्रोफेसरों तक को नहीं मिलता |प्राइवेट कालेजों, स्कूलों में तो दस-बारह हजार में लोग पढ़ा रहे हैं | चपरासी की नौकरी के लिए रिक्तियों से हजारों गुना अर्जियां आती हैं |

बोला- यह मेरी कोई गप्प नहीं है यह तो बुज़ुर्ग भाजपा नेता शांताकुमार जी की अगुआई में गठित कमेटी की रिपोर्ट है | |जब भारत में बना एक स्कूटर भैंस को हरियाणा से पटना ले जा सकता है, बिहार की एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा सकती है, सोलह हजार के एक कम्प्यूटर का एक दिन का किराया ही सोलह हजार मिल सकता है तो यहाँ का एक मजदूर कोई चमत्कार क्यों नहीं कर सकता ? 

हमने कहा- ऐसे चोर-चमत्कारियों के बल पर ही यह देश 'अतुल्य भारत' है | 

 

Jan 20, 2016

फ्रॉम रामविलास पासवान

  फ्रॉम रामविलास पासवान 

हमें  दिल्ली से डा.सुरेश ऋतुपर्ण ने 'हिंदी जगत' नामक पत्रिका की दो प्रतियाँ भेजीं रजिस्टर्ड पोस्ट से लेकिन वे आज तक नहीं मिलीं |मन मसोस कर रह गए और फिर उनके द्वारा भेजी गई पीडीऍफ़ पढ़कर की संतोष किया |कल ही सागर से प्रसिद्ध गज़लकार अशोक मिज़ाज का फोन आया कि उनके द्वारा हमें स्पीड पोस्ट से भेजी गई उनके नए ग़ज़ल संकलन 'किसी किसी पे ग़ज़ल मेहरबान होती है' की दो प्रतियां लौट कर उनके पास पहुँच गई हैं |

विगत कुछ वर्षों से फोन और विशेषकर मोबाइल फोन के कारण पत्र लेखन बंद सा हो गया है फिर भी सरकारी कामों में डाक से भेजे रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट की रसीद को ही पत्र भेजने का प्रमाण माना जाता है |अब इन दो घटनाओं के बाद पत्र लेखक या सरकारी सेवा पर विश्वास करने वाले क्या करें जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट भी न पहुंचे |

कुछ वर्षों पहले की एक और घटना याद आती है जब अमरीका में थे और कनाडा से स्नेह ठाकुर ने अपनी कुछ पुस्तकें भेजी थीं |पुस्तक की जिल्द के कोने से लिफाफा फट गया था इसलिए किसी पोस्ट ऑफिस वाले ने पुस्तकों को पोलीथिन के एक मजबूत लिफाफे में डालकर भेजा जिस पर फ्रेंच और अंग्रेजी में छपा हुआ था - आशा है, आपका सामान सही सलामत आपके पास पहुँच गया होगा |लिफाफा फट जाने से हम इसे नए लिफाफे में डाल कर भेज रहे हैं |
मन प्रसन्न हो गया इस सेवा और सभ्यता से |

दो महिने पहले अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका की पत्रिका 'विश्वा' की एक प्रति रजिस्टर्ड बुक पोस्ट से डा. सत्यव्रत, श्रीगंगानगर को भेजी जो पता नहीं, कैसे श्रीनगर पहुँच गई |वास्तव में उस पर पता सही लिखा था |फिर उसे वहाँ के कर्मचारियों ने श्रीगंगानगर भेजा |यहाँ भी एक सुखद उदाहरण मिला |

हमारे बचपन में उम्र में हमारे दादाजी के बराबर के एक पोस्ट मैन हुआ करते थे- लक्ष्मीनारायण शर्मा | जिसका पत्र होता उसी को देते थे |सारी डाक निबटा कर घर जाते थे भले ही शाम हो जाए |अपने साथ लिफाफे-पोस्टकार्ड भी रखते थे जिन्हें छपे मूल्य पर ज़रूरतमंदों को देते थे और ज़रूरी हो तो उनके पत्र पढ़कर सुनाते थे और माँग करने पर उनके पत्रों का उत्तर भी लिखते थे और डाक में खुद ही डालते भी थे |और अब तो दिल्ली तक में रजिस्टर्ड पत्र कुएँ में पड़े मिल जाते हैं |

आज जब इन्हीं बातों की चर्चा तोताराम से की तो बोला- पोस्ट ऑफिस की समस्या का एक ही उपाय है कि तुम अपने सभी मित्रों को लिख दो कि जब भी पत्र भेजें तो फ्रॉम की जगह राम विलास पासवान लिखें और तुम भी वैसा ही किया करो |

हमने कहा- इससे क्या हो जाएगा |जब रजिस्टर्ड और स्पीड पोस्ट तक नहीं पहुंचते तो इनके नाम से कोई साधारण पत्र भी कैसे सुनिश्चित पहुँच जाएगा |

बोला- क्यों नहीं, पढ़ा नहीं ? उनके नव वर्ष के कार्ड नहीं पहुंचे तो डाक विभाग के तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया कि नहीं ?

हमने कहा- क्या सारे विभागों की ज़िम्मेदारी केवल इन्हीं की सेवा ढंग से करने की है ?देश के बाकी लोगों के पत्रों का कोई महत्त्व नहीं  ?

बोला- यह तो पता नहीं लेकिन यह खबर भी पक्की है कि साधारण लोगों की प्राथमिकी तक नहीं लिखने वाली पुलिस दिल्ली में एक सांसद के कटहलों की और  पटना में मुख्यमंत्री के बंगले पर आम और लीची की रखवाली के लिए दसियों पुलिस मैन  तैनात हैं |

Jan 16, 2016

मुक्त ज्ञान

 मुक्त ज्ञान(देश भर में जोधपुर विश्वविद्यालय की हजारों नकली डिग्रियाँ बिकीं - एक समाचार )

डिग्री-हित कालेज में जाना है बेकार
सभी तरह से मुक्त हैं ज्ञान और व्यापार
ज्ञान और व्यापार, नोट इस हाथ दीजिए
औ' मनचाही डिग्री फिर उस हाथ लीजिए
कह जोशी कविराय व्यर्थ ना समय गवाएँ
कर सौदा तत्काल समय औ' शक्ति बचाएँ

संसद का नया भवन

  संसद का नया भवन 

आज तोताराम बहुत खुश था |आते ही बोला- अब असली स्वतंत्र-भारत की शुरुआत  होने वाली है |

हमने कहा- क्या बात कर रहा है ? भारत तो जब हम दूसरी कक्षा में थे तभी स्वतंत्र हो गया था | और फिर इसमें असली-नकली क्या होता है ?

बोला- होता क्यों नहीं ? अभी तक अधिकतर वही कुछ चल रहा था जो गौरांग महाप्रभु छोड़कर गए थे | वही भाषा, वही संस्कृति और वही फूट डालो राज करो की नीति और वही बिल्डिंग | जिसकी नींव में पता नहीं, कौनसा टोना-टोटका डाल गए कि एक दिन भी सुख-शांति नसीब नहीं |कोई न कोई लफड़ा लगा ही रहता है |बाहर से कोई संकट नहीं होगा तो ये भले आदमी खुद ही माइक, कुर्सियाँ  उठाकर एक दूसरे पर फेंकते रहेंगे | बस, एक मसले पर सभी सहमत हैं- कैंटीन की सब्सीडी और अपनी तनख्वाह बढ़वाना  | इसलिए असरानी वाले विज्ञापन की तरह,  टूटी कुर्सियाँ और माइक ही नहीं, सारे घर के क्या , घर ही बदल डालूँगा |

हमने कहा- लेकिन बिल्डिंग तो मज़बूत है |यदि इन सेवकों ने बनवाई होती तो जाने कब की गिर गई होती |वैसे एक बात माननी पड़ेगी- पट्ठों ने कुआँ बनवाया लेकिन बिना पानी का |इनके टुच्चेपन पर यदि किसी भले आदमी को शर्म आए तो डूब मरने को चुल्लू भर पानी भी नहीं |अब जब नई बिल्डिंग बने तो कुएँ में पानी की व्यवस्था ज़रूर होनी चाहिए, सेवकों की यश-धन-सत्ता की प्यास  बुझाने के लिए, हालाँकि वह कभी शांत होती नहीं और रँगे हाथ धोने के लिए |

कहने लगा- पानी से ज्यादा समस्या है छोटी कुर्सियों की |इसमें सांसदों की विशाल देह समाती ही नहीं | 

हमने कहा- ये सब मुफ्त के माल पर दंड पेलने का नाटक है वरना पहले नुरुल हसन, पीलू मोदी जैसे लोग इन्हीं कुर्सियों पर बहुत वर्षों तक मज़े से बैठते थे कि नहीं |जिनको  कुर्सी पर सोना है या लेटे-लेटे पोर्न फिल्म देखनी है उनको चाहिए सोफनुमा बड़ी कुर्सियाँ |वैसे चाणक्य ने तो पटरे के पास ज़मीन पर आसन बिछाकर मगध का साम्राज्य संचालित कर दिया था |

बोला- अब पहले वाली बात नहीं है |अब इनकी तनख्वाह इतनी हो गई है और फिर  ऊपर से सांसद निधि ! ससुर देह इन कुर्सियों में समाती ही नहीं | 

हमने कहा- हो सकता है बड़ी कुर्सियों की ज़रूरत ही न पड़े क्योंकि अब संसद की कैंटीन में सब्सीडी बंद हो गई है |वैसे तेरी बात और है | देश की हर छोटी-बड़ी चिंता तेरे सिर ही तो हैं |हमारी तो एक छोटी सी चिंता है कि वर्तमान संसद के परिसर में जो मूर्तियाँ लगी हैं उन्हें भी नए परिसर में ले जाएंगे या नहीं ? कहीं ऐसा न हो कि गाँधी की मूर्ति को यही छोड़ दिया जाएँ और नए परिसर में उसके स्थान पर गोडसे की मूर्ति स्थापित कर दी जाए |


Jan 13, 2016

'उप' का उपद्रव

  'उप' का उपद्रव

आते ही हमने कहा- तोताराम, कैग अर्थात नियंत्रक व महालेखा परिषद ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले एक दशक में जन कल्याण के नाम पर लगाए गए 'सेस' के हजारों-लाखों करोड़ रुपए या तो खर्च नहीं हुए या उन्हें किसी अन्य मद में खर्च कर दिया गया |

तोताराम ने पूछा- शेष-विशेष की तरह यह सेस क्याहै ?

हमने कहा- सेस मतलब 'उप-कर' | कर तो हर बजट में लगते ही हैं लेकिन फिर बीच में कभी जेब खर्च के लिए सरकार को ज़रूरत पड़ती है तो जो अघोषित कर लगाती है उसे सेस या उप-कर कहा जाता है |जैसे पहले 'शिक्षा उपकर' लगाया था और अब एक नया उपकर लगा है 'स्वच्छ भारत उपकर' |

बोला- इस 'उप' में ही सारी खुराफातें हैं |पत्नी तक तो ठीक है लेकिन उसमें जब 'उप' लग जाता है तो सारे घपले शुरू हो जाते हैं | पति घर के बजट में से घोटाला करके काला धन बनाता है और 'उपपत्नी' के लिए गोरा बनाने वाली क्रीम खरीदता है |योग तक तो ठीक है लेकिन जब उसमें उप जुड़ कर 'उपयोग' का चस्का लग जाता है तो घी में फफूंद निकलने लग जाती है |निवेश तक तो ठीक है लेकिन जब नीयत ठीक नहीं होती तो निवेश के बहाने 'उप' लगाकर दोनों तरफ से उपनिवेश की कूटनीति शुरू हो जाती है |जब औरत भी पुरुष की तरह लम्पट हो जाती है तो वह भी अपने पति से अधिक ख्याल अपने 'उपपति' का रखने लग जाती है और पति की कमाई उस पर लुटाती है |

हमने कहा- फिर भी कुछ न कुछ तो होता ही है |

बोला- होता क्या है ?गुजरात में शराबबंदी के नाम पर नौकरीपेशा लोगों पर दस रुपए महिने का उपकर लगता था और तब दस रुपए में गैस का एक सिलेंडर आता था मतलब कि आज के हिसाब से साढ़े छः सौ रुपए महिने का लेकिन क्या वास्तव में शराब बंदी थी ? जब, जहाँ, जैसी चाहो, दारु ले लो |और अब रही तुम्हारी सफाई की बात सो सिर्फ फोटो और खबरों में है |वास्तव में जब तक कूड़ा सृजित होना बंद नहीं होता तब तक कैसी सफाई |अमरीका का कूड़ा दिल्ली में, दिल्ली का कूड़ा जयपुर में, जयपुर का कूड़ा जिला मुख्यालय में और जिला मुख्यालय का कूड़ा छोटे-छोटे गाँव-ढाणियों में |यदि वास्तव में मन से काम होता तो हजारों करोड़ खर्च होने के बावजूद गंगा मरणासन्न नहीं रहती  |

इसमें भी 'उप' की ही माया है- उपभोक्तावाद अन्यथा सिर्फ 'भोक्ता' तो अपने भोग भोगता है और बात ख़त्म |

Jan 10, 2016

नोबल मच्छर

  नोबल का मच्छर 

दो दिन से तोताराम गायब था |हम सोच रहे थे कि शायद हमारे लिए क्रिसमस का कोई गिफ्ट लेकर आएगा लेकिन गिफ्ट तो दूर आते ही प्रश्न किया- मास्टर, बता मच्छर कितने प्रकार के होते हैं ?

हमने कहा- हमें तो अब नेताओं की तरह दिशाओं तक का ज्ञान नहीं रहा सो तुझे मच्छरों के बारे में क्या बताएँ | जिस तरह अब तक पुराणों और पैंसठ वर्षीय भारतीय  लोकतंत्र में राजनैतिक पार्टियों तक की संख्या तय नहीं हुई तो मच्छरों के बारे कोई क्या कहे |हाँ, प्राइमरी में पढ़ा था कि मलेरिया के मच्छर को एनाफिलीज़ कहते हैं जिसका पता रोनाल्ड रोस ने लगाया था | उस मच्छर की पत्नी मलेरिया फैलाती है |इसके बाद कई प्रकार के बुखार आए और कई प्रकार के मच्छरों को इसके लिए ज़िम्मेदार पाया गया | इसके अलावा हमने यलो फीवर, चिकुनगुनिया,डेंगू और हाथी पाँव फ़ैलाने वाले मच्छरों के बारे में भी पढ़ा है |समय के साथ तरह-तरह के वैचारिक मच्छरों का भी प्रादुर्भाव हो रहा है जैसे कट्टरता, असहिष्णुता, जुमले आदि फ़ैलाने वाले मच्छर |सबसे नया 'इस्लामक स्टेट' नामक मच्छर है  जो बड़ा खतरनाक है |काटता नहीं बल्कि क़त्ल करता है और वह भी हर बार नए तरीके से |सारी दुनिया डरी हुई है |तू किस मच्छर की तलाश में है ?

बोला- मैं नोबल-मच्छर की तलाश में हूँ |

हमने कहा- नोबल ने तो किसी मच्छर का नहीं बल्कि डाइनामाइट का आविष्कार किया था और अपनी सारी संपत्ति से एक ट्रस्ट बनाकर विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार 'नोबल प्राइज़' की स्थापना की थी |

कहने लगा- मैं तो उस मच्छर की तलाश में हूँ जिसके काटने से नोबल प्राइज़ मिलता है और जिसका उल्लेख कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी जी ने किया गया है और जो उनके अनुसार मोदी जी को काट गया है |

हमने कहा- ये सब छोटी सोच हैं |बेचारे तिवारी जी को भी क्या पता ? उन्हें कौन से पुरस्कार मिले हैं | पुरस्कार के लिए किसी मच्छर से कटवाने की नहीं बल्कि खुद जल में मगरमच्छ की तरह शक्तिशाली होने की ज़रूरत होती है | खली भाषणों से कुछ नहीं होता |मोदी जी तो नए-नए हैं |अटल जी तक को बसों में धक्के खाने पर भी शांति का नोबल नहीं मिला और ओबामा जी के राष्ट्रपति बनते ही नोबल समिति वालों को उनके एक भाषण में ही नोबल पाने सकने की क्षमता का अहसास हो गया और पंद्रह दिन में ही नोमिनेट कर दिया | 

-तो फिर नोबल का कोई चांस नहीं- तोताराम ने रुआँसा होकर पूछा |

हमने कहा- एक ही रास्ता है | मोहम्मद ज़लालुद्दीन अकबर से मिल ले |उन्होंने कहा है - तिवारी जी को पता नहीं है |नोबल प्राइज़ ऐसे नहीं मिलता |तो उन्हें ज़रूर पता होगा कि नोबल प्राइज़ कैसे मिलता है और उसका किसी मच्छर से कोई संबंध होता है या नहीं ?

बोला- कैसी बातें करता है, अकबर को मरे तो ५०० सौ वर्ष हो गए उससे कैसे मिलूं ?

हमने कहा- क्यों ?दिल्ली चला जा |वे भाजपा के प्रवक्ता हैं |

बोला- बस, इतना ही ज्ञान है तेरा ?एम.जे.अकबर से कन्फ्यूज हो गया ना ? उनका पूरा नाम मोहम्मद ज़लालुद्दीन अकबर नहीं बल्कि मोबासर जवाद अकबर है और उनके दादाजी हिन्दू थे जब कि तेरे वाले अकबर के पिता हुमायूं मुसलमान थे |

Jan 8, 2016

साढ़े तिहत्तर रुपए का सिक्का

  साढ़े तिहत्तर रुपए का सिक्का 

हमने तोताराम को एक चुटकुला सुनाया- एक ग्राहक ने एक दुकानदार को पंद्रह रुपए का नोट दिया और छुट्टे माँगे |दुकानदार ने साढ़े सात साढ़े सात के दो नोट दे दिए | 

बोला- यह एक पुराना चुटकुला है लेकिन समय की रफ़्तार को देखते हुए हो सकता है, यह किसी दिन सच में बदल जाए |कुछ वर्षों पहले एक समाचार पढ़ा था कि किसी ने अपना छोटा फोटो लिफाफे पर डाक टिकट की तरह चिपका कर भेज दिया था और मज़े की बात यह कि वह सही ठिकाने पर सकुशल पहुँच भी गया |किसी रिपोर्टर ने उसका समाचार बना दिया था |और देखिए कि अभी कुछ दिन पहले पोस्ट ऑफिस ने अपने फोटो के टिकट छपवाने की सुविधा दे दी है |

हमने पूछा- लेकिन नोटों या सिक्कों के संबंध में तुम यह कैसे कह सकते हो ? 

बोला- अभी तक हम एक,दो, पाँच, दस, बीस,पचास, एक सौ, पाँच सौ और हज़ार के नोट चलते थे लेकिन अब अम्बेडकर जी की पुण्य तिथि ६ दिसंबर २०१५ को १२५ रुपए का सिक्का भी आ रहा है क्योंकि यह उनका १२५ वाँ जन्म वर्ष भी है |

हमने कहा- लेकिन एक सौवीं जयंती पर ही यह सिक्का जारी क्यों नहीं किया ? हिसाब ठीक रहता और अच्छा भी लगता |

बोला-  उस समय न तो उस समय वालों को पता था कि अम्बेडकर के बिना अनुसूचित जाति वालों का वोटबैंक खिसक सकता है |

हमने पूछा- लेकिन आज सिक्का जारी करने वालों ने उनकी एक सौवीं जयंती पर ऐसा क्यों नहीं किया ?

बोला- कैसे कर सकते थे, तब कोई सत्ता में थोड़े थे |

-लेकिन भैन जी के साथ मिलकर प्रस्ताव तो रख सकते थे- हमने कहा |

कहने लगा- लेकिन तब इन्हें अनुसूचित वोटों की कोई उम्मीद नहीं थी, भैन जी पर छः-छः महीने वाले प्रयोग के बाद विश्वास नहीं रह गया था और भैन जी को भी अपने बुत लगवाने से  ही फुर्सत कहाँ थी | |

हमने कहा- छोड़, यह सब तो राजनीति है, चाहे प्रेस इन्फोर्मशन ब्यूरो वाले पुण्य तिथि को जन्म तिथि बताएं या कोई १२५ रुपए का सिक्का जारी करे |तू तो यह बता- यदि तुझे भिश्ती की तरह एक दिन का बादशाह बना दिया जाए तो तू क्या करेगा ?

हमारे सामने कागज पर बना सिक्के का एक डिजाइन रखते हुए बोला- अपने जन्म के तिहत्तर साल और छः महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में 'साढ़े तिहत्तर रुपए' का एक सिक्का जारी करूंगा जैसे नेता लोग उत्सव मनाने के लिए अपने शासन का एक वर्ष पूरा होने का इंतज़ार नहीं करते बल्कि एक सौवां दिन ही मना डालते हैं, इस 'लोकतंत्राना मौसम' में पता नहीं कब क्या हो जाए ?

Jan 5, 2016

तोताराम की इनोवेटिव डिप्लोमेसी

  तोताराम की इनोवेटिव डिप्लोमेसी 

आज चाय पीने के बाद ग्यारह बजे के करीब तोताराम फिर आ गया  और कई देर बैठा रहा | कोई दो बजे तक गप्पें लगती रहीं तभी देखा कि उसकी पत्नी मैना भी आ गई |आते ही उस पर बरस पड़ी- यह क्या है, क्या भाई साहब से बातों से मन नहीं भरा  ? कुछ बातें बची हुई हों तो कल कर लेना,सुबह तो फिर चाय पीने तुम्हें आना ही है | |सब्ज़ी मुझे दो , मैं जाकर बनाती हूँ, जल्दी चले आओ |

तोताराम अचकचा गया, बोला- सब्ज़ी तो लाने गया ही नहीं, यहीं मास्टर के पास रुक गया |

हमने कहा- तोताराम, यह तो बहुत गैर ज़िम्मेदारी की बात है |पहले सब्ज़ी घर देकर आना चाहिए था |तुम्हारा यह बचपना कब जाएगा ?

बोला- यह बचपना नहीं है |यह इनोवेटिव डिप्लोमेसी है | 

हमने पूछा- भई, क्रिकेट और बस यात्रा आदि कई तरह की डिप्लोमेसियाँ सुनीं और उनके सुखद परिणाम भी देखे लेकिन यह नई डिप्लोमेसी कहाँ से आ गई ?

बोला- मुझे ज्यादा तो पता नहीं, लेकिन मोदी जी का रूस से काबुल होते हुए भारत आते समय रास्ते में बिना किसी योजना के नवाज़ शरीफ से मिलने के लिए अचानक पाकिस्तान में रुक जाना, राजनाथ सिंह जी के अनुसार इनोवेटिव डिप्लोमेसी है | सो सब्जी लेकर घर लौटते समय तेरे यहाँ रुक जाना मेरी इनोवेटिव डिप्लोमेसी है | बस, गलती यह हो गई कि मैं आते समय रुकने की बजाय जाते समय रुक गया |

मैना बोली- मोदी जी तो पूरी तरह देश सेवा को समर्पित हैं और फिर उनकी लाई सब्ज़ी का इंतजार करने वाला कौन बैठा है ?दो रोटी खानी है सो कहीं भी खा लेंगे |और अगर अमरीका प्रवास की तरह उपवास हुआ तो वह झंझट भी नहीं लेकिन आपकी सब्ज़ी का घर पर इंतज़ार करने वाले दस प्राणी हैं |आपको ऐसी इनोवेटिव डिप्लोमेसी की इजाज़त नहीं हो सकती |

हमने कहा- तोताराम, हमारे अनुसार तो मोदी जी का यह स्टाइल ऊर्जा बचाने और पर्यावरण फ्रेंडली कदम है | जाना तो था ही पाकिस्तान, रास्ते में ही तो था सो रुक गए |पेट्रोल की बचत हो गई |

चुप रहना तो तोताराम की फितरत नहीं |बोला-लेकिन इससे मोदी जी की यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले राष्ट्राध्यक्षों को तो टेंशन हो गया ना  | बेचारे चाय का पानी चढ़ा कर ही रखेंगे कि पता नहीं,कब मोदीजी- कहो मियाँ, कैसे हो, कहते हुए दरवाजा खटखटा दें | 

२८-१२-२०१५

Jan 4, 2016

प्रधान मंत्री का कुत्ता

  प्रधान मंत्री का कुत्ता 

आज आते ही हमने तोताराम को बोलने का मौका ही नहीं दिया बल्कि खुद ही चालू हो गए | 
तोताराम, वैसे तो कुत्ता कुत्ता ही होता है लेकिन जब उससे पहले विशेषण जैसा कुछ लग जाता है तो वह फिर सामान्य कुत्ता क्या, कुत्ता भी नहीं रह जाता | और यदि कुत्ते से पहले 'प्रधान मंत्री का कुत्ता' जैसा भारी भरकम विशेषण लग जाए तो उसे विशिष्ट जन अर्थात वी.वी.आई पी. का दर्ज़ा मिल जाता है | 

बोला- लेकिन अपने प्रधान मंत्री जी ऐसे फालतू जीव को नहीं पालते |उन्हें समय ही  कहाँ मिलाता है इन चोंचलों के लिए | यह शौक या विलासिता तो अमरीका के राष्ट्रपतियों  के लिए संभव है जिन्हें कहीं बहार कम ही जाना पड़ता है, जिन्हें ज़रूरत हो वहीं बुला लिया जाता है | उनके कुत्ते का बाकायदा पत्रकारों से परिचय करवाया जाता है |उसका नाम रखने, उसकी नस्ल वगैरह का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाता है |ओबामा जी के पहले कार्यकाल के कुत्ते जी का नाम 'बो' जी है और २०१३ में दूसरे कार्यकाल में लाए गए लाए गए कुत्ते जी का नाम 'सन्नी' जी है |तू चाहेगा तो और अधिक जानकारी भी जुटा लेंगे |

हमने कहा-हम न तो ओबामा जी के कुत्ते जी की बात कर रहे हैं और न ही हमारा इशारा मोदी जी के किसी पालतू 'कुत्ते जी' की तरफ है |हम तो बताना चाह रहे थे कि इज़राइल के प्रधान मंत्री नेतनयाहू जी के साहबजादे किसी अनाथाश्रम से एक कुत्ता ले आए |वैसे यह कुत्ता अमरीका के जॉन कैरी से भी मिल चुका था लेकिन उस दिन क्या हुआ कि उसने प्रधान मंत्री की केबिनेट के एक मंत्री और एक सांसद को काट लिया |उसने उनमें जाने क्या सूँघ लिया ? लोकतंत्र में ऐसे कुत्तों को नहीं रखना चाहिए | अब उस कुत्ते को दस दिन के लिए जेल भेज दिया गया है |गली के कुत्तों के साथ ऐसा ही होना चाहिए |

बोला- मास्टर, वास्तव में गली के कुत्ते ही वफादार होते हैं |  वे पार्टी  पोलिटिक्स नहीं जानते |वे रोटी देने वाले मोहल्ले के लोगों का प्रत्युपकार पूरी ईमानदारी से चुकाते हैं |बिना भेदभाव के पूरे मोहल्ले की रक्षा करते हैं और राजनीतिक कुत्ते जब तक उनका पालक सत्ता में होता है तो उसे दिखाने के लिए भौंकते हैं |वास्तव में वे किसी के लिए नहीं भौंकते बस, सत्ता के नज़दीक बने रहने के लिए वफादारी का नाटक करते हैं |और काटते तो किसी को भी नहीं क्योंकि पता नहीं कब निजी लाभ के लिए किस दल में जाना पड़ जाए |

हमने कहा- फिर भी एक बात तो है कि राजा का कुत्ता काटे तो भी आप कुछ नहीं बोल सकते और चाटे तो भी |क्या पता, कब राजा को आपकी 'कुत्ता-भक्ति' पर शक हो जाए और आपका पत्ता कर जाए |देख लिया ना, थाईलैंड में एक व्यक्ति पर राजा जी की प्रिय कुतिया जी, जिन्हें वहाँ कूपर (मैडम जी )के नाम से जाना जाता है और उस पर राजा जी ने के बेस्ट सेलर पुस्तक भी लिखी है, का अपमान करने का आरोप है और यदि सिद्ध हो गया तो १५ साल की जेल भी हो सकती है | 
वैसे हमने यह भी पढ़ा है कि 'स्वप्न शास्त्र के अनुसार यदि रात बारह बजे से ब्रह्ममुहूर्त के बीच यदि कुत्ता काटे तो आप करोड़पति बनने वाले हैं |

बोला-हमारे पूर्वज और मनीषी ऐसे ही नहीं कह गए हैं-
लायक ही सों कीजिए ब्याह, बैर औ' प्रीत |
काटे चाटे स्वान के दुहूँ भांति विपरीत ||
किसे पता, कुत्ता काटने से आप करोड़पति बनें या नहीं लेकिन इसकी भी संभावना रहती है कि हाइड्रोफोबिया से मर जाएँ |

Jan 2, 2016

डूब मरने की बात

  डूब मरने की बात है 

आज तोताराम कुछ जल्दी ही आगया मतलब नौ बजे से पहले ही क्योंकि दिसंबर और जनवरी में हमारा दिन नौ बजे ही शुरू होता है |और आते ही बोलने लगा अशुभ |बोला- मास्टर, डूब मरने की बात है |
हमने कहा- बन्धु, इस मौसम में पानी इतना ठंडा है कि लाख शर्मिंदगी की बात हो, हम तुम्हारी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते और गरमी में इतना पानी नहीं आता |लोग तो देश के साथ धोखा करके भी डूबने की नहीं सोचते और बहाना बना देते हैं संसद के कुँए में पानी न होने का | हम क्यों डूब मरें |हमने तो चालीस वर्ष ईमानदारी से नौकरी की है और अब जो कुछ पेंशन जेतली जी दे रहे हैं उसी में जी रहे हैं | 

बोला- मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो उनकी बात कर रहा हूँ जो पैसा खर्च नहीं कर पाए |भारत पर ३.६६ लाख करोड़ का क़र्ज़ है जिसमें ६५% अर्थात २.३७ लाख करोड़ का एशियन डेवेलपमेंट बैंक, जापान, जर्मनी,इंटर नॅशनल बैंक ऑफ़ रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट बैंक का सस्ते ब्याज का ऐसा क़र्ज़ है जिसे सही समय पर और एक निश्चित मात्रा में उपयोग न करने पर सामान्य से अधिक ब्याज देना पड़ता है | भारत ऐसा नहीं कर सका तो उसे १४०० करोड़ का ब्याज देना पड़ा है | 

है कि नहीं डूब मरने की बात |लोग पता नहीं, क्यों नेताओं को देश का धन गबन करके स्विस बैंकों में जमा कराने का आरोप लगते हैं | ये तो हाथ में था उसी को खर्च नहीं कर पाए |मैं होता तो दस-बीस वर्ष में खर्च किया जा सकने वाला एक साल में ही निबटा देता |

मनरेगा और गौशालाओं की तरह झूठी हाजरी दिखाता, सड़कों, शौचालयों, पुलों, मकानों के बिल बना देता; एक मुर्गी की आठ सौ रुए रोज की खुराक दिखा देता फिर किसी बीमारी में सब को मरवा देता, कोई चेकिंग करने आता  तो दस परसेंट उसे दे देता और हड़प जाता सब कुछ | और भले काम के लिए चाहे कोई साथ देने वाला न मिले लेकिन ऐसे शुभ काम में तो लाखो आ जुटते मेरे साथ |

हमने कहा- तोताराम, जब खाने को नहीं होता तो आदमी सोचता है कि यदि बादाम या पिस्ते की बरफी मिल जाए तो पाँच किलो खा जाऊँगा लेकिन जब उसके सामने सौ-दो सौ किलो बरफी रख दी जाए तो उसकी साँसें फूल जाती हैं |यदि तुझे इतना रुपया दे दिया जाए तो या देखकर की दिल का दौरा पड़ जाएगा या गिनते-गिनते ही मर जाएगा | सेवकों ने स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ गेम्स, खान घोटाला, लौह अयस्क निर्यात, क्रिकेट स्टेडियम आदि में बहुत खाया, किसी चीज की वास्तविक कीमत जितना एक रोज का किराया दिखाया तो भी पूरी राशि नहीं निबटा सके तो तू क्या चीज है ? 
अच्छा चल बता, एक लाख करोड़ में कितने जीरो आते हैं ? 

बोला- यह तो मैं ही क्या, एक राज्य का उप मुख्यमंत्री तक नहीं बता पाया |

तभी पत्नी चाय ले आई, बोली- कभी इनकम टेक्स का तो सही हिसाब लगा नहीं पाए और बातें करेंगे लाखों करोड़ की |अब चुप करो और चाय पिओ |