Nov 27, 2023

2023-11-27 लड्डू का सनातन धर्म


लड्डू का सनातन धर्म  


आजकल शादियों का  मौसम चल रहा है । शादी हो या हिंदुओं का कोई धार्मिक त्योहार बिना  मिठाई और धूम धड़ाके के हो ही नहीं सकता । शादियाँ तो पहले भी होती थीं लेकिन केटरर और डी जे वाले नहीं हुआ करते थे इसलिए शोरगुल बर्दाश्त से बाहर नहीं निकलता था लेकिन अब---! 

अभी अभी देवता उठे हैं । किसी  धर्म की रक्षा के लिए देवताओं का उठना  बहुत जरूरी है क्योंकि जब देवता उठेंगे तब शादियाँ होंगी और जब शादियाँ होंगी तभी जनसंख्या बढ़ेगी और जब जनसंख्या बढ़ेगी तब धर्म की रक्षा हो सकेगी । क्योंकि धर्म की रक्षा उसके आचरण पर नहीं बल्कि संख्या बल द्वारा जोर आजमाइश से होती है । जहां तक जनसंख्या की वृद्धि की  बात है तो वह कुछ विशिष्ट लोगों के अतिरिक्त सभी जीवों में बिना शादी के भी होती ही रहती है । हमारे महाभारत के रचयिता वेद व्यास बिना शादी के ही अस्तित्व में आ गए और आज तक किसी को कोई ऐतराज नहीं हुआ । 

वैसे शादियाँ हमारे राजस्थान में आखा तीज (अक्षय तृतीया ) पर सबसे ज्यादा होती हैं । अबूझ मुहूर्त होता है। लो भगवान का नाम, बैठो घोड़ी पर और डी जे को कर दो फुल वॉल्यूम पर । बस हो गया काम । वैसे इस अवसर सरकार बाल विवाह रोकने के लिए सक्रिय होने की रस्म भी अदा करती है । लेकिन कौन किसी की सुनता है ।  अगर कोई उत्साही रोकने की कोशिश करता है तो उसकी क्या हालत होती है यह भँवरी देवी के कोई 40  साल पुराने केस में हुए कानूनी नाटक से समझा जा सकता है । 

खैर, तो शादियाँ होने से मिठाइयों का आदान-प्रदान चलता रहता है । पर्याप्त खा लेने के बाद भी घर में लड्डू  पड़े ही रहते हैं । हालांकि मिठाई वाले डिब्बे पर लिखते हैं कि मिठाई को उसी दिन काम में ले लेना चाहिए लेकिन हम प्राचीनता और सनातन में विश्वास करने वाले हैं सो एक्सपायरी डेट के बाद भी किसी चीज को छोड़ते  नहीं । 

आज जैसे ही तोताराम आया तो पत्नी ने कहा- लो लाला, 20-20 में भारत की जीत लड्डू के साथ सेलेब्रेट करो। 

तोताराम बोला- तो भाभी, आप भी जले पर नमक छिड़क रही हैं ।  19 नवंबर को क्रिकेट के सटोरियों ने मिलकर हरवा दिया । अब इस 20-20 का क्या आचार डालूँ । फिर भी पहले यह बताओ ये लड्डू किस धर्म के हैं । 

पत्नी को और भी दस काम होते हैं । वैसे भी इतने बड़े वैश्विक मुद्दों पर हम अधिक दखल रखते हैं । सो हमने कमान संभालते हुए कहा- लड्डू का भी कोई धर्म होता है ?

बोला- होता क्यों नहीं ? सबका कोई न कोई धर्म होता है । धर्म तो सनातन होता है । 

हमने कहा- सूरज, चाँद सबकी एक आयु होती है । पृथ्वी के बनने और उस पर जीवों और मानवों सबकी उत्पत्ति का विज्ञान के अनुसार कोई काल खंड रहा है । जिन्हें हम भगवान मानते हैं उनकी भी कोई जन्म तिथि है तो फिर सनातन क्या हुआ ? यदि गुण को धर्म मानें जैसे आग का धर्म उजाला और गरमी देना तथा जलाना; पानी का धर्म प्यास बुझाना, गलाना आदि है तो लड्डू का धर्म है किसी की जीभ पर मिठास घोलना और मजबूरी है किसी के द्वारा खाया जाना । जिसे भी मौका मिलता है वह बेचारे लड्डू को खा ही जाता है यहाँ तक कि डाइबीटीज वाला भी नहीं छोड़ता । कुछ लोग तो एक मुँह के बावजूद दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं भले ही फिर आवाज न निकले ।      

बोला- नहीं, हिन्दू-मुसलमान वाला धर्म भी होता है । जैसे मुसलमान के घर से आया लड्डू मुसलमान, हरिजन के घर से आया लड्डू हरिजन, सत्ताधारी पार्टी का लड्डू राष्ट्रीय और सवर्ण, विरोधी पार्टी के यहाँ से आया लड्डू देशद्रोही, अभारतीय और भ्रष्ट । 

हमने कहा- ये बातें छोड़, खाना है तो खा । यह सनातन लड्डू है । अनादि काल से चला आ रहा है ।  गणेश जी के हाथों में सजने वाला सनातन लड्डू । 

बोला- तो फिर अब तक तो सड़ या सूख गया होगा । 

हमने कहा- सनातन कभी सूखता नहीं, नष्ट नहीं हो सकता । उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । 

नैनं छिंदन्ति शस्त्राणी -----

वैसे हम और ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन यह लड्डू वैसा ही है जैसा शिकागो में 11 सितंबर 2018 को बांटा गया था । उस समय हिंदुओं को समझाने के लिए दो प्रकार के दो -दो लड्डू बांटे गए- एक पिलपिला और दूसरा थोड़ा सख्त । यह समझाने के लिए कि कठोर रहोगे तो सुरक्षित रहोगे । अब यह बात और है कि कठोर लड्डू चाहे अपना हो या पराया, उसे खा सकना सबके बस का नहीं होता । तीखे और मजबूत दांतों वाले साधन सम्पन्न लोग ही खा सकते हैं जैसे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना सबके बस का नहीं होता । 

हमारे राजस्थान में पहले एक विशेष प्रकार का लड्डू बनाया जाता था- कसार का लड्डू । जिसमें घी बिल्कुल नहीं होता था और चीनी की जगह गुड़ । वह बनने और अच्छी तरह सूख जाने पर इतना कठोर हो जाता था कि या तो लड्डू ही बचता  था या फिर उसे खाने का साहस करने वाले व्यक्ति के दाँत।  हाँ, उसके खराब होने की संभावना बहुत कम होती थी । 

देसी घी के तथाकथित उच्चवर्गीय लड्डू जरूर बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं , चार दिन बाद उनमें गंध सी आने लगती है । तोड़कर रख दो तो फिर भी ठीक अन्यथा अंदर फफूंद लगी निकलती है । 

बोला- फिर भी कुछ तो संकेत दे इस लड्डू के बारे में । 

हमने कहा- यह सनातन लड्डू है । वही 11 सितंबर 2018 वाला अब वाया बैंकाक आया है । 




बोला- बैंकाक तो किसी और ही काम से लिए जाते हैं लोग, विशेष रूप से पर्यटक । और जहां तक धर्म की बात है तो वहाँ का प्रमुख धर्म सनातन नहीं, बौद्ध है । 

हमने कहा- अब वहाँ विश्व हिन्दू कांग्रेस होकर निबटी है । वहाँ से भी लड्डू के माध्यम से ही संदेश आया है । यह वहीं का तरोताजा लड्डू है । 

बोला- लेकिन लड्डू तो वही शिकागो वाला है । वही नाम, वही रेसिपी । अब तक तो इसे अच्छी तरह से सूख कर सख्त हो जाना चाहिए था । 

हमने कहा- किसी भी खाद्य पदार्थ को इतना भी सख्त नहीं हो जाना चाहिए कि वह खाने लायक ही न रहे । बिना तोड़े साबुत लड्डू एक बार में खा सकना सबके बस का नहीं होता । 

तभी पत्नी आई और बोली- खाना है तो खा लो, नहीं तो मैं वापिस ले जाती हूँ । तुम लोगों की अनादि-अनंत बहस में या तो यह लड्डू खाने लायक नहीं बचेगा या फिर कोई कुत्ता,बंदर उठा ले जाएगा । 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2023-11-26 मार दिया पापड़ वाले को


2023-11-27    

मार दिया पापड़ वाले को  


दिल्ली की तरह आज हमारे यहाँ भी बादल हो रहे हैं । चार बजे लघु शंका के लिए उठे तो दो-चार बूंदें भी गिरीं । लेकिन आज उठने से पहले ही तोताराम सवेरे-सवेरे वैसे ही पेट पकड़े हमारे पास आया जैसे मंथरा राम के राजतिलक की ब्रेकिंग न्यूज लेकर कैकेयी के पास गई थी कि तुझे तो पता नहीं है । तू तो राजा का भरोसा करके सोती और साज-सिंगार करती रहती है और उधर राजा ने राम को राजतिलक देने का ईवेंट अरेंज कर दिया है । 50-50 फोटोग्राफर, पटाखे, राम-राम के नारे लगाने वाले , हेलिकॉप्टर से फूल  बरसाने वाले, गोदी मीडिया वाले, उछल-उछलकर 'राम है तो मुमकिन है' के गीत और भजन गाने वाले, बड़े-बड़े होर्डिंग सब तैयार है । 

या फिर उसी शब्दावली में हमें चेताया जैसे खर-दूषण के मारे जाने पर सूर्पनखा ने रावण को चेताते हुए कहा था- 

करहि पान, सोवत दिन राती 

सुध नहिं तव सिर पर आराती 

बोला- तू सो रहा है और देश में क्या चक्कर चल रहा है, इसकी कोई खबर नहीं । पनौती नहीं, लगता है कोई बड़ा चक्कर है । पनौती तो खैर एक अवैज्ञानिक धारणा है जो कभी-कभी संयोग से सच लगाने लग जाती है और बड़े-बड़े नेता और राजनाथ सिंह जैसे भौतिकी के व्याख्याता भी युद्धक प्लेन से हरी मिर्च और नीबू लटकाने लग जाते हैं । 

हमने कहा- तोताराम, आज एक साथ ही तू राम से रावण तक होता हुआ राजनाथ जी तक आ गया । हम कोई संबंध नहीं बैठ पा रहे हैं । हमें तो जो करना है वह साफ-साफ बता । वैसे मोदी जी जाग तो रहे हैं ।नारायण मूर्ति की 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की सलाह से भी अधिक 20-20 घंटे रोज के हिसाब से प्रति सप्ताह 140 घंटे काम कर तो रहे हैं । अब हम 82 साल की उम्र में चल रहे हैं । जो 1-2 साल बचे हैं, कम  से कम चैन से सो तो लेने दे । 

बोला- मोदी जी को तो देश ही क्या, सारी दुनिया की जिम्मेदारी संभालनी होती है । उन्हें तो मणिपुर जाने तक की फुरसत नहीं मिल पाती । किसी तरह ट्रेफिक में फँसने के बावजूद लास्ट-लास्ट में अपने ही स्टेडियम में मैच देखने पहुंचे तो । अब अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में जाना है । और वहाँ भी 'एक देश-एक चुनाव' की तरह 'एक दुनिया-एक जल और एक ही वायु' जैसा कोई क्रांतिकारी नारा देना है ।

ऐसे में हमें ही कुछ मुद्दों पर विचार करना पड़ेगा । मामला धर्म का है । 

हमने कहा- धर्म के बारे में बात करने की पात्रता तो इस देश में दो-चार लोग ही रखते हैं- साध्वी प्रज्ञा, रमेश बिधूडी और अपने राजस्थान के ज्ञानचंद आहूजा । 

बोला- मैं उस हिन्दू-मुसलमान धर्म की बात नहीं कर रहा । मैं तो भारत के धर्म 'क्रिकेट' की बात कर रहा हूँ जिस पर कोई पनौती नहीं बल्कि किसी बड़े चक्कर या प्रेत-बाधा का खतरा मंडरा रहा है ।  

अब तो हम एक जिम्मेदार सेवक की तरह उठकर बैठ गए । देश-धर्म का सवाल जो आ गया । वह देश जहां जन्म लेने के लिए देवता तरसते हैं लेकिन हमें जहाँ फ्री में ही जन्म मिल गया । वह देश जिसके लिए लाखों हिंदुओं ने अपनी जान न्यौछावर कर दी । 

कहा- अब बता, क्या चक्कर है ?

बोला- चक्कर साफ दिखाई देता है । वर्ल्ड कप में लगातार 10 मैच जीतने के बाद ग्यारहवाँ इस तरह कैसे हार गए ? और अब उसी टीम से लगातार दो  20-20 मैच बड़ी शान से जीत रहे हैं । तब 50 ओवर में 240 और अब मात्र 20 ओवर में 235 । 'विकेट जिहाद' और 'रन धर्म युद्ध' वाले सब फेल । कोई तो चक्कर है । 



हमने कहा- आजकल पता नहीं किस बात का, क्या अर्थ निकाल लिया जाए,  किसी की भावना आहत हो जाए और कोई भी, कहीं भी एफ आई आर करवा दे जो कि 'भावना आहत' मामले में फौरन हो जाती है ।  भले ही बलात्कार और यौन शोषण के मामले में एफ आई आर के लिए सुप्रीम कोर्ट से आदेश लाना पड़े और गिरफ़्तारी फिर भी न हो । 

बोला- फिर भी बता तो सही । देश में कोई इंदिरा की तरह आपातकाल थोड़े है । यहाँ तो अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है। सुरेश चह्वाणके, रमेश विधूडी, योगी जी, शाह जी, हिमन्त बिस्वा सभी तो राष्ट्र हित में सब कुछ बोल ही रहे हैं। 'मूर्खों का सरदार' और 'जेबकतरा' जैसे शब्द चल तो रहे हैं ।  

हमने कहा- तोताराम, कहीं हमारे बरामदे में कोई ड्रोन या पेगासस, जैसा तो कुछ नहीं है ? 

बोला- यहाँ कौन किसी निशिकांत दुबे की शिकायत पर महुआ मोइत्रा की तरह 'हमारी बरामदा' संसद की सदस्यता छीन लेगा । अब यह रामायण छोड़ और  बात पर आ । ये सब जासूसियाँ तो अर्बन नक्सल या फादर स्टेन स्वामी जैसे खतरनाक लोगों की की जाती है । 

हमने कहा- तो सुन । जैसे पहले अपने यहाँ के सेठ कपास, जूट, सोने, चांदी का सट्टा खेलते थे, गाँव में सटोरिये बरसात का सट्टा लगाते थे, आजकल लोग फोन में वीडियो पर सट्टा खेलते हैं वैसे ही सट्टे का नया अखाड़ा है क्रिकेट । लगता है इसमें भी कोई हजारों करोड़ का सट्टे बड़ा खेल हुआ है । 

बोला- हो सकता है क्योंकि जब अधिकतर दर्शक उदास थे और मैच के परिणाम की कल्पना करके पहले ही उठकर जाने लगे थे तो कुछ लोग बड़े शातिर तरीके से हँस रहे थे मानों कह रहे हों- मार दिया पापड़ वाले को । 

 






पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Nov 23, 2023

2023-11-23 मनौती की बूंदी


2023-11-23     


मनौती की बूंदी 


आज तोताराम थोड़ी देर से आया । आते ही सीधा हमारे कमरे में । 

बोला- हाथ फैला । 

हमने कहा- अभी यह हालत नहीं आई है कि किसी के सामने हाथ फैलाएं । अभी तो पुरानी सरकार की कृपा से पुरानी पेंशन मिल रही है और दाल रोटी चल रही है । हाँ, अगर अटल जी के समय में नौकरी लगे होते और नई पेंशन के चक्कर में आ जाते तो आज बैठे होते दिल्ली की सड़कों पर ओ.  पी.  एस. (ओल्ड पेंशन स्कीम) की फ़रियाद लेकर । 

बोला- इस देश में यह नौबत किसी के साथ नहीं आई है । आज भी 80 करोड़ लोग गर्व से सिर उठाकर प्रभुओं के  फ़ोटो छपे थैलों में पाँच-पाँच किलो अनाज लाते हैं और सरकार के गुण गाते हैं । अगर जरूरत पड़ी तो 140 करोड़ को भी गर्व से घर बैठे खिलाएंगे । लेकिन मैं तो शुद्ध देशी घी की बूंदी का हनुमान जी का प्रसाद लाया हूँ । 

हमने श्रद्धा से हाथ फैलाया  और तोताराम ने हमारे हाथ पर चार-पाँच  बूंदी के दाने रख दिए । 

हमने कहा- प्रसाद है इसलिए रख रहे हैं अन्यथा ये तो दाढ़ से चिपक कर ही रह जाएंगी । वैसे तोताराम ऐसी भी  क्या कंजूसी ! लोग तो दीवाली पर लाखों दीये जलाते हैं, रिकार्ड बनाते हैं, अपने प्रिय नेताओं के जन्म दिन पर करोड़ों के विज्ञापन छपवाते हैं , लाखों के पटाखे चलाते हैं ।  

बोला- वे यह सब या तो सरकारी पैसे से करते हैं या फिर सरकारी खजाने को चूना लगाकर खुरचे धन से करते हैं । कोई अपनी मेहनत की कमाई से कुछ नहीं करता ।किसानों की आय दुगुनी हुई हो या नहीं लेकिन मैंने तो प्रसाद के बजट में 64 गुना वृद्धि कर दी है । बचपन में पाँच पैसे का प्रसाद लगाया करते थे अब पाँच रुपए का लगाया है । चिरंजी हलवाई की दुकान से दो सौ रुपए किलो के हिसाब से पाँच रुपए की पूरी 25 ग्राम बूंदी लाया हूँ । 

 इस देश में आजकल सबसे बड़ा खतरा है किसी की भावना आहत होने से हो जाता है । पता नहीं कब किसी की भावना आहत हो जाए और पुलिस हमें जेल में डालकर मृत्यु पर्यंत जमानत ही न होने दे ।हालांकि तोताराम से ऐसा कोई खतरा नहीं है फिर भी हमने तोताराम की भावना का आदर करते हुए माथे से छुआकर प्रसाद मुँह में रखा और पूछा- अभी तक तो दीवाली पर केन्द्रीय कर्मचारियों को मोदी जी द्वारा दिया जाने वाला 4% डीए का तोहफा भी नहीं आया फिर यह प्रसाद किस उपलक्ष्य में है ?

बोला- मनौती-----








हमने तोताराम के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा- पनौती ? बस, खबरदार अब आगे एक भी शब्द बोला तो । लोगों ने इस देश की भाषायी गरिमा और शालीनता का जो सत्यानाश किया है उसे अब हम और बर्दाश्त नहीं करेंगे । यह क्या पनौती, चुनौती, डकैती, बकैती लगा रखी है ? 

बोला- जर्सी गाय, पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड, कटुआ, भड़ुआ कहा गया था तब तेरे संस्कार कहाँ गए थे जो अब पायजामे से बाहर हुआ जा रहा है । अब कोई अच्छी सी हियरिंग ऐड खरीद ले । फोन तक में विज्ञापन आते रहते हैं ।भले आदमी मैं 'पनौती' नहीं 'मनौती' कह रहा हूँ । 

हमने कहा- क्या बताएं, आजकल सब तरफ बकवास, वादे और गली गली में सारे दिन जिस तिस जनसेवक के लिए लिए फुल वॉल्यूम पर केसेट बजाते घूमते ऑटो के कारण कान भी कुछ खराब हो गए लगते हैं । वैसे लोगों को मोदी जी के लिए 'पनौती' जैसे घटिया शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए । 

हमारा तो व्यक्तिगत रूप से अब भी मानना है कि अगर मोदी जी सही समय पर स्टेडियम पहुँच जाते तो मैच का रुख पलट सकते थे लेकिन क्या करें एयरपोर्ट से स्टेडियम तक ट्रेफिक ही इतना था और फिर हो सकता है एम्बुलेंसों को साइड देने के चक्कर में देर हो गई हो। अब कोई सेवक इतना संवेदनहीन हो भी कैसे  सकता है कि एक मैच जितवाने भर के लिए किसी मरीज की जान खतरे में डाल दे । वैसे सबने देखा है कि कैसे उत्साह बढ़ाकर  नीरज चोपड़ा से भाला फिंकवा दिया, कैसे इसरो वालों का उत्साह बढ़ा बढ़ाकर चंद्रयान सफल करवा दिया !

वैसे इतना खर्च करके यह 'मनौती' तूने मांगी किस बात के लिए थी ?

बोला- आज से आस्ट्रेलिया और इंडिया की 20-20 सीरीज शुरू हो रही है ना । न सही वर्ल्ड कप, 20-20 में जीत से ही काम चला लेंगे । 

हमने कहा- वैसे तो आजकल सब अपने मन की ही बात करते हैं, कोई किसी की सुनता नहीं है फिर भी यदि हो सके तो हमारी यह बात ऊपर पहुंचा दे कि सीरीज से पहले स्टेडियम के वास्तु की जांच करवा ली जाए और खिलाड़ियों की ग्रह दशा दिखवा ली जाए । 

बोला- यह खेल है और खेल में ग्रह-नक्षत्र नहीं शारीरिक, मानसिक मजबूती और खेल की क्षमता चाहिए । हालांकि 1 दिसंबर 2021 से बिहार के दरभंगा में देश का ऐसा पहला अस्पताल शुरू हुआ है जहां पैथोलॉजी रिपोर्ट नहीं बल्कि जन्म कुंडली देखकर आपका इलाज किया जाता है. इलाज के लिए मंत्र और उपासना का सहारा लिया जाता है ।    

हमने कहा- वैसे तोताराम, अगर कोरोना, नोटबंदी और तालाबंदी को छोड़ दिया जाए तो शुरू शुरू में तो जिसे 'पनौती' कहा जा रहा है उसके भाग्य से अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल के भाव कम हुए तो थे । 

बोला- ये सब 'काकतालीय न्याय' हैं । कौए का बैठना और डाल का टूटना । 





पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Nov 20, 2023

झटका चाय


झटका चाय 


रोज की तरह तोताराम का यथासमय हमारे यहाँ अवतरण हुआ लेकिन बरामदे में नहीं क्योंकि अब ठंड बढ़ रही है । अस्सी पार की इस उम्र में हम किसी तरह की रिस्क लेना उचित नहीं समझते । 

तोताराम चाय थामे चुपचाप बैठा था । हमने कल रात के इंडिया आस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच के समय चाय के साथ चले नमकीन के दौर से बचे थोड़े से बीकनेरी भुजिए बड़ी सावधानी से उसकी प्लेट में धीरे धीरे उँड़ेले कि कहीं फर्श पर न बिखरें ।  

तोताराम ने क्रिकेट से अलग प्रश्न करते हुए पूछा-  ये भुजिए हलाल हैं या झटका ? 

हमने कहा- लगता है खुराफाती राष्ट्रभक्तों की हरकतें देख-सुनकर तेरा दिमाग खराब हो गया है ? वे तो चलो, राजनीति से थोड़ा-बहुत लाभ भी कमा लेंगे लेकिन तू बिना बात अपने दिमाग में घृणा का कचरा क्यों भर रहा है ? वैसे ही 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत हर तरफ कचरे की भरमार है । 

बोला- एक तो तेरे इस भुजिए के पैकेट पर उर्दू में कुछ लिखा हुआ है दूसरे तू इतना धीरे-धीरे डाल रहा है जैसे कोई किसी मुर्गी को हलाल करने में दो घंटे लगाता है ।

हमने कहा- जब तुझे न उर्दू, अरबी-फारसी आती है और न ही  झटका-हलाल और हराम का पता है तो फिर चाय के साथ नमकीन खा और खुश रह । हम तो इसलिए धीरे-धीरे इसलिए डाल रहे थे कि तेरे कपड़ों पर न बिखरे । अब पकड़ यह पैकेट और खा ले जैसे तुझे खाना हो 'झटका' या 'हलाल' । 

बोला- जब कोई काम एक झटके में कर दिया जाता है तो उसे हिन्दू कहते हैं  फिर चाहे वह चार घंटे के नोटिस पर नोटबंदी करना हो या तालाबंदी का कर्फ्यू लगाना हो, या फिर बिना किसी से पूछे तीन कृषि कानून पास करना हो । कोई डॉक्टर अगर एक दांत को घंटा भर में हिला हिलाकर निकाले तो उसे 'हलाल दंत चिकित्सक' कहते हैं और अगर कोई डॉक्टर तुम्हारे कुर्सी पर बैठने से पहले ही, बिना लोकल अनेस्थीसिया लगाए तुम्हारा दाँत निकालकर तुम्हारी हथेली पर रख दे उसे 'हिंदुत्ववादी डॉक्टर झटका' कहते हैं । 

हमने कहा- इस हिसाब से तो अगर मूली को एक झटके में जमीन से उखाड़ लो तो 'झटका मूली' और अगर धीरे-धीरे आसपास की की मिट्टी हटाकर दस मिनट में निकालो तो 'हलाल मूली' । क्या बकवास है ? 

बोला- यह बकवास नहीं; यही धर्म , संस्कृति और सभ्यता है । 



 


हमने कहा- हलाल या झटका में कटता तो बकरा ही है । और खाने वाले दोनों ही मांसाहारी कहलाते हैं । 

अरे, वैसे भी जब कोई हराम की कमाई कहता तो उसका मतलब होता है बिना मेहनत के धोखे और चतुराई से कमाया गया धन होता है फिर चाहे वह सेवा का नाटक करके हो या फिर धर्म का ढोंग करके । किसी भी किसान, मजदूर की कमाई किसी भाषा में हराम की कमाई नहीं बल्कि हलाल की कमाई कहलाती है । किसी शब्द की कोई जाति, धर्म और राष्ट्रीयता नहीं होती । यह भी कोई बात हुई कि घूँघट हिन्दू और हिजाब मुसलमान हो गया । अरे दोनों में मुँह ही ढँका जाता है और पीड़ित को देखने में बाधा आती है । अब हरियाणा, राजस्थान में घूँघट शालीनता और कर्नाटक में हिजाब पिछड़ापन और ईरान में धर्म विरुद्ध कृत्य ! 

बोला- यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों धर्म एक ही इलाके में जन्मे और पनपे । तीनों के पुराने पैगंबरों के नाम भी तत्सम-तद्भव करके एक ही हैं लेकिन जहां भी, जब जैसा मौका मिलता है लड़-मर-मार रहे हैं कि नहीं ? जीवन और शांति से बड़ा है धर्म और संस्कृति । यही राजनीति का  'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' है । ऐसे में हम अपने धर्म और संस्कृति को ऐसे कैसे असुरक्षित छोड़ सकते हैं । 

हमने कहा- तो फिर गरम चाय को धीरे-धीरे फूँक मारकर क्यों हलाल करता है ? गटक जा एक घूंट में पूरा गिलास । 'झटका चाय' । 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Nov 4, 2023

2023-10-30 यह समय सोने का नहीं है


2023-10-30       


यह समय सोने का नहीं है 


कल इंडिया का क्रिकेट मैच इंग्लैंड से था ।हमें इसमें कोई खास रुचि थी भी नहीं लेकिन हो हल्ले के कारण दिन में सो नहीं सके इसलिए हम समय से ही अर्थात साढ़े आठ बजे ही सो गए । पड़ते ही नींद आ गई । नींद में ही पोती की आवाज सुनाई दी- बाबा, उठो, लेट अस सेलेब्रेट । 

हम नींद में ढंग से सुन नहीं पाए और न ही कुछ समझ में आया । पूछा- क्या मोदी जी तीसरी बार लोकसभा का चुनाव पूर्ण बहुमत से जीत गए । 

पोती हँसी-  क्या बाबा, अब भी नींद नहीं खुली ? लोकसभा चुनाव तो अभी छह महिने दूर हैं । और उसमें कोई शक भी नहीं है । मोदी जी नहीं तो कौन ? उन्हें ही जीतना है । और फिर 75 साल वाला नियम भी वे नहीं मान सकते ।मजबूरी है । लगता है आजीवन, अनंत काल तक इस देश की सेवा की जिम्मेदारी उन्हें ही निभानी पड़ेगी । मैं तो आज के क्रिकेट मैच की बात कर रही थी ।  

हमने कहा- दोनों ही महान टीमें हैं । दोनों में ही कोई कंसिस्टेंसी नहीं । कोई भी कभी भी किसी से भी हार सकती हैं । एक बार भारत बांग्लादेश से 5 विकेट से हार गया था । पिछले साल हम इंग्लैंड से 10 विकेट से हार गए थे । इस साल इंग्लैंड अफगानिस्तान से हार गया । महान व्यक्ति और महान देश सब इंक्रेडिबल होते हैं । 

हमें इंडिया या इंग्लैंड किसी की जीत से कोई फ़र्क नहीं पड़ता । और फिर क्या क्या सेलब्रैट करें। कुछ न कुछ आता ही रहता है । कभी जी-20, कभी नया संसद भवन, कभी आधा-अधूरा महिला आरक्षण बिल, कभी दुर्गापूजा, कभी दशहरा, कभी मोदी जी के मन की बात, आए दिन उनका हरी झंडी दिखाना, कभी चीन सीमा के सबसे नजदीक गाँव में जाकर पूजा पाठ करना, अब जगह जगह रिकार्ड बनाने के लिए लाखों दीये जलाने की प्रतियोगिता आने वाली है । 

पोती ने कहा- बाबा, ठीक है, लेकिन अपनी भाषा तो सुधारो । इंडिया नहीं, भारत बोलो। यह मोदी जी का भारत है । यह गुलामों वाली शब्दावली नहीं चलेगी । गुलामी का हर चिह्न मिटा दिया जाएगा । 

हमने कहा- लेकिन टीम की छाती पर तो अभी भी 'इंडिया' लिखा हुआ है । 

बोली- अगली बार से नहीं रहेगा । जी-20 में 'प्रेसीडेंट ऑफ भारत' कर तो दिया था । 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने अपनी सभी योजनाओं में 'इंडिया' लगा रखा है । स्टैंड अप इंडिया, खेलो इंडिया, भागो इंडिया, छींको इंडिया, हगो इंडिया, मूतो इंडिया । लगता है 'इंडिया' गठबंधन से परेशान हैं । 

बोली- अब चलना है तो चलो हमारे कमरे में । आइसक्रीम से सेलेब्रेट कर रहे हैं । 

हम मैच छोड़ सकते हैं, मन की बात छोड़ सकते हैं लेकिन आइसक्रीम का लालच नहीं । सो सेलेब्रेट करते और बतियाते हुए दो-तीन घंटे निकल गए । फिर नींद आते आते कुछ और समय निकल गया । 

सुबह पता ही नहीं चला। पोती हमारी पालतू 'मीठी' को घुमा लाई । दूधवाला हमारा इंतजार करने के बाद खुद ही दूध पहुँचा गया । तभी तोताराम की आवाज सुनी- अरे आलसी, अब तो उठ चाय भी ठंडी होने लगी । सुना नहीं, आलस्योहि मनुष्याणाम् शरीरस्थो महा रिपु, जो सोवत है सो खोवत है । 

हमने कहा- अब जब हमीं को सुरक्षा के लिए सारी रात जागना था तो फिर 56 इंच की छाती वाले महाबली को प्रधानमंत्री बनाने की जरूरत ही क्या थी ? वे 40 हजार रुपए किलो का मशरूम खाते हैं, वे दिन में 25 घंटे जाग और काम कर सकते हैं । 

बोला- यह बहुत संकट का समय है । माना कि मोदी ईश्वर के अवतार हैं लेकिन नागरिक के नाते हमारा भी तो कोई न कोई कर्तव्य है । यह सोने का समय नहीं है । कुछ भी हो सकता है । दुश्मन हर क्षेत्र में सक्रिय हैं । 

हमने उत्सुकता से पूछा- क्यों क्या हुआ ? 

बोया- कल क्रिकेट मैच देखा ? 

हमने कहा- हाँ, देखा लेकिन पूरा नहीं । वैसे हमें इतना पता है कि कल रात इंडिया  मैच जीत गया, पूरे एक सौ रन से ।  हमने तो पोती के साथ आइसक्रीम पर सेलेब्रेट भी कर लिया । 

बोला- ऐसे ही आइसक्रीम खाता रहा तो किसी दिन 'ये' 'विकेट जिहाद' के षड्यन्त्र के तहत क्रिकेट पर भी कब्जा कर लेंगे । तूने नोट किया या नहीं ? शामी ने 4 और बुमराह ने 3 विकेट लिए । देख, अखबार के पहले पेज पर इन दोनों का ही फ़ोटो छपा है ।  और इन दोनों के अलावा एक तीसरा 'विकेट जिहादी' भी है सीराज । 

हमने पूछा- यह 'विकेट जिहाद' कहाँ से आगया ? कुछ ढंग का पढ़ा-सुना कर ।  चह्वाणके का चंडूखाना चेनल देखेगा तो हर बात में जिहाद ही दिखाई देगा । वैसे जब इंडिया 100 रन से जीता है तो यह 'रन धर्मयुद्ध'' तो हो सकता है क्योंकि रोहित 'शर्मा' है ।   

बोला- जो टारगेट देता है वह विकेट से जीतता है और जो टारगेट चेज़ करता है वह रन से जीतता है लेकिन सब जानते हैं कि यह जीत इन दोनों जिहादियों के विकेट लेने के कारण ही मिली है ? चह्वाणके की मौलिकता को तू क्या समझेगा ?  अभी उसने बताया है कि हमें इजराइल का समर्थन करना चाहिए क्योंकि 'यहूदी' 'यादव' एक ही हैं ।वैसे कठियावाड़  (गुजरात) द्वारिका में 'यादव' कृष्ण और उनके यादवों की सेना का भी उल्लेख मिलता है ।  इस रिश्ते से तो नेतन्याहू  और यहूदी ( इजराइली )  अपने भाई हो  गए । 

हमने कहा- इस हिसाब से तो क्राइस्ट ही कृष्ण हैं और सभी क्रिश्चियन भी 'कृष्ण' के ही वंशज हैं । और यदि अपने दिल को थोड़ा और बड़ा करो तथा तुम्हारी कट्टरता इजाजत दे तो मुसलमान भी अपने ही सिद्ध होते हैं क्योंकि बलराम के शस्त्र हल-मूसल थे उसी से 'मूसलमान' (मुसलमान) निकले हैं । 

और सुन शामी शब्द पवित्र हिन्दू वृक्ष 'शमी' से निकला है, सीराज 'स्वराज' (सुषमा स्वराज) का तद्भव है, और बुमराह कोई गुमराह हुआ हिन्दू ही है तभी तो उसके सरनेम से पहले जसप्रीत लगा हुआ है । 

बोला- मुझे नहीं सुननी तेरी ये तुष्टीकरण वाली धर्मनिरपेक्ष बातें । ऐसे तो हमारे राष्ट्रभक्ति वाले सभी मुद्दों की हवा निकल जाएगी । 

 






पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach