Jun 30, 2019

डरना और डराना



 डरना और डराना


कल योग-दिवस था | सभी भक्तों, मंत्रियों, कृपाकांक्षियों,  भावी सेवकों, सरकारी अधिकारियों,  कर्मचारियों ने योग के बहाने अपनी देशभक्ति और कार्यकुशलता का प्रमाण देने के लिए जल-थल-नभ जहां भी संभव हुआ 'योगा' किया | जैसा भी आया,  फोटो भी ऊपर-नीचे भिजवाया, छपवाया | हमारे पास यह सुविधा नहीं है | हम तो पिछले सतत्तर वर्षों से शीर्षासन कर रहे हैं लेकिन किसी ने ध्यान ही नहीं दिया, फोटो छापना तो दूर की बात है | सरकार हमारा सातवें पे कमीशन का ३१ महिने का बकाया दबाए हुए है |क्या पता, योगा-दिवस की उपेक्षा करने के दंडस्वरूप सरकार भविष्य में पेंशन में ही कोई अड़ंगा न डाल दे इसलिए मोदी जी को देख-देखकर सच्चा-झूठा अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन भी किया | सो हलकी-सी थकान हो गई थी |कहते हैं इस आसन से तोंद नहीं बढ़ती |हमें इस आसन की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारा तो निराला जी वाले भिक्षुक की तरह 'पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक' वाला हाल है |हाँ, फटी-पुरानी झोली का मुंह फ़ैलाने की नौबत अभी नहीं आई है | 

कल ही इंग्लैण्ड और श्रीलंका का क्रिकेट मैच भी था |कुछ भी हो श्रीलंका है अज़ब टीम |अपना भला हो या न हो लेकिन बांग्लादेश की तरह किसी का भी खेल ज़रूर बिगाड़ सकती है |आखिर तक रोमांच बना रहा और हमारी धारणा के अनुसार उसने इंग्लैण्ड का खेल बिगाड़ ही दिया |

कुल मिलाकर दिनचर्या और रात्रिचर्या दोनों ही अस्त-व्यस्त हो गईं | सुबह समय पर आँख न खुलना |खुली भी तब जब तोताराम ने जोर से हमारे कान के पास आकर नारा लगाया- 'जय श्रीराम' |

सुनते ही हम अपना प्लास्टिक का अढ़ाई फुट का सफ़ेद पाइप संभालते हुए उठ बैठे- क्या बात है, युवराज अंगद, महाराज सुग्रीव, घबराना नहीं | हम आ रहे हैं | 'जय श्रीराम' |

तोताराम ने हँसते हुए कहा- भाई साहब, शांत | कोई चिंता की बात नहीं है | यह तो मैंने आपको विश करने के लिए 'गुड मोर्निंग' के जैसा ही कुछ कह दिया |

हमने कहा- तोताराम, यह 'गुड मोर्निंग जैसा कुछ' नहीं है |यह सुबह-सुबह का, सामान्य 'राम-राम' नहीं है | यह युद्धघोष है | और तुझे पता होना चाहिए कि रामचरितमानस में तो 'जय श्रीराम कहीं आया ही नहीं है |राम और रावण की दुहाई भी केवल युद्ध के समय ही आती है- 

इत रावण उत राम दुहाई 
जयति जयति जय परी लराई  |

आधुनिक काल में भी जब अशोक सिंघल ने अयोध्या कूच का नारा दिया था तब पहली बार  'जय श्रीराम' सुनने को मिला था |

बोला- लेकिन तुझे इससे परेशानी क्या है ?

हमने कहा- तोताराम परेशानी न राम से है, न रहीम से है | परेशानी उस वातावरण से है जो इन नारों के द्वारा बन रहा है | लगता है किसी युद्ध के लिए हम एक दूसरे को तैयार कर रहे हैं |नारों से एक दूसरे जो मरने-मारने का जोश दिला रहे हैं |और याद रख जब आदमी अपने विवेक से, पूरे होशोहवास में अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहा होता है तो वह किसी और के नाम का नारा लगाता है |अन्यथा जब आमने-सामने दोनों का युद्ध होता है तो रावण और राम तो किसी के नाम का कोई नारा नहीं लगाते | किसी भी पशु-पक्षी को प्राणान्तक झड़प करते हुए भी कोई नारा लगाते हुए देखा है ? डरे हुए लोग दूसरों को डराने के लिए नारा लगाते हैं |

बोला- तो फिर तूने मेरा नारा सुनकर उठते ही प्लास्टिक का अपना अढ़ाई फुट वाला पाइप क्यों उठाया ?

हमने कहा- तोताराम, हम सुबह जब अपनी कुतिया मीठी को घुमाने, खुद थोड़ा-सा घूमने और दूध लाने के बहाने एक पंथ तीन काज करने जाते हैं तो हमें खुद गली के कुत्तों से डर लगता है इसलिए हम उन्हें डराने के लिए यह पाइप रखते हैं |वैसे हमें पता है कि बहुत पुराना है, कभी भी टूट सकता है |

बोला- तो फिर संसद में अपने 'माननीय' गण क्यों जय काली, जय भीम, जय श्रीराम, अल्ला हो अकबर, हर-हर महादेव आदि के नारे लगा रहे थे ? क्या वहाँ कोई युद्ध होने वाला था ? क्या एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश की संसद में भी कोई डर इन सब के अन्दर समाया हुआ है ? 

हमने कहा- बिलकुल | सब डरे हुए हैं | सबके मन में चोर है | यदि ऐसा नहीं है तो यदि कोई नारा ही लगाना था तो वही नारा लगाते जिसे इस देश ने अपने संविधान का ध्येय वाक्य स्वीकार किया है- 'सत्यमेव जयते' और जिस संविधान के प्रतीक के रूप में मोदी जी ने संसद-भवन की सीढ़ियों पर माथा टेका था |


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Jun 28, 2019

नाराधिकार



 नाराधिकार  

भले ही हम एकादशी या जन्माष्टमी का व्रत न रखें लेकिन जब से सरकार ने क्रिकेट को इस देश का धर्म घोषित किया है, हम किसी भी क्रिकेट मैच की कमेंट्री सुनना नहीं भूलते | हालांकि कल रात का मैच कोई भारत पाकिस्तान के मैच की तरह देश भक्ति से जुड़ा हुआ मामला नहीं था |फिर भी जब एक ओर मैच का मेज़बान तथा संभावित दावेदार इंग्लैण्ड और दूसरी ओर प्रथम दो विश्व कप का विजेता और कभी दुनिया की नंबर एक टीम रहा वेस्ट इंडीज़ हो तो देखना बनता है |

उठने में देर हो गई |दरवाजे पर जोर-जोर से 'जय श्रीराम' के नारों ने जगाया जैसे धर्म-प्राण लोग मुसाफिर के प्राण लेने तक उसे जगाकर ही मानते हैं - उठ जाग मुसाफिर भोर भई...'भले ही बेचारा मुसाफिर रात की ड्यूटी करके चार बजे सोया हो |

हमने गुस्सा होते हुए कहा- तोताराम, अब कौनसा राम-रावण का युद्ध हो रहा है जिसके लिए वानर-सेना में जोश भरने के लिए इतनी जोर से नारा लगाया जा रहा है |

बोला- 'जय श्री राम' का नारा लगाना मेरा जन्म मौलिक अधिकार है |अब तो पार्थ घोष नाम के एक वकील ने कोलकाता उच्च न्यायालय में इसके लिए के याचिका भी दायर कर दी है |

हमने कहा- ठीक है लेकिन नारा लगाने के इस अधिकार का उपयोग अपने शयन-कक्ष में कर और इतने ही जोर से कर कि दूसरों की नींद हराम न हो |राम को सुनाना है या दुनिया को ?

बोला- नारा धीरे लगाने से कोई फायदा नहीं |न तो अड़ोस-पड़ोस पर धार्मिकता का कोई प्रभाव पड़ता और न ही जोश आता है |

हमने कहा- जोश किसलिए चाहिए ? नारा लगाने के लिए ? अरे, जोश पैदा कर सफाई के लिए, देश के संसाधनों का सदुपयोग करने के लिए, भाईचारे के लिए |नारा अपने आप में कोई काम नहीं है |

बोला- काम क्यों नहीं है ? इससे एकता आती है |

हमने कहा- क्या ख़ाक एकता आती है ? इन नारों के चक्कर में ही तो लोग लड़ रहे हैं, एक दूसरे का सिर फोड़ रहे हैं |

बोला- तो 'जय श्रीराम' का नारा लगाने के लिए क्या पकिस्तान जाएं ? 'जय श्रीराम' का नारा भारत में नहीं लगेगा तो कहाँ लगेगा ? 

हमने कहा- एक राम ही क्यों ? भारत में हिन्दुओं के ही ३३ करोड़ देवी-देवता हैं |इसके अतिरिक्त विभिन्न सम्प्रदायों और जातियों के भी गुरु, आराध्य और गोद फादर होंगे | धर्मों के भी कुछ होंगे ही |तो क्या यह देश नारे ही लगाता रहेगा ? 

बोला-  जिस देश में गाँधी के मुकाबिल गोडसे का नारा लगाया जा सकता है, उसका मंदिर बनाने के इंतज़ार में राजधानी में उसका अस्थि-कलश  प्रतीक्षा कर रहा है तो 'जय श्रीराम' का नारा तो उसके सामने कुछ भी नहीं है |

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारे इस तर्क के सामने तो कुछ भी अनुचित नहीं है |वैसे नारा लगाना बुरा नहीं है बशर्ते कि वह किसी को चिढ़ाने के लिए न हो |गाली निकालने वाले एक तोते की कहानी तो तुझे पता ही है जिसकी शिकायत उसके मालिक से करने पर अगले दिन तोते ने उस आदमी से क्या कहा ?

 'तू समझ तो गया ही होगा कि मैं क्या कहने वाला था' |

वैसे यदि इस 'नाराधिकार' का भविष्य समझना है तो  कल का संसद का शपथ-ग्रहण समारोह देख ले |

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Jun 27, 2019

तोताराम की जल समाधि



 तोताराम की जल-समाधि

जैसे ही हम देर रात क्रिकेट कमेंट्री-श्रवण की खुमारी में डूबते-उतराते बरामदे में पहुंचे कि तोताराम का पोता बंटी हाज़िर | हमने पूछा- क्या बात है ? आज तोताराम की जगह तू ? खैरियत तो है ?

बोला- बड़े दादाजी, अभी तक तो खैरियत है | कुछ देर बाद का पता नहीं |

हमने कहा- कुछ देर बाद क्या अशुभ होने की आशंका है ?

बोला- दादाजी ने आपको बुलाया है | कह रहे हैं,  जल-समाधि से पहले भाई साहब से मिलना चाहता हूँ | 

हमने कहा- अपने दादाजी से कह देना- हमारा आना संभव नहीं है क्योंकि हम खुद जल-समाधि लेने की सोच रहे हैं |

बंटी चला गया और उसके साथ कोई पांच मिनट ही बाद उलटे पाँव तोताराम हाज़िर |

बोला- क्या बात है भाई साहब | यह मैं क्या सुन रहा हूँ ?

हमने कहा- ठीक सुन रहे हो | हम जल-समाधि लेने जा रहे हैं ?

बोला- लेकिन उसके लिए कहीं जाने की क्या ज़रूरत है ? यह काम तो मेरी तरह घर पर भी हो सकता है | वैसे क्या मैं आपके इस आत्महत्या, आत्मबलिदान, आत्मोत्सर्ग  जैसे महान निश्चय के पीछे छुपे महान उद्देश्य के बारे में जान सकता हूँ ?

हमने कहा- पिछले कुछ दिनों से हाथ-पैरों में बहुत खाज चलती है |तेल लगाओ तो गरमी में चिपचिपाहट अजीब लगती है, कुछ न लगाओ तो चमड़ी खुश्क हो जाती है |खुजाते रहो तो थोड़ी देर बाद लगता है खून निकल आएगा |कोई दवा काम नहीं कर रही है |अब एक ही उपाय सोचा है कि एक बड़े टब में पानी भरकर दोपहर-दोपहर उसमें बैठ जाया करें |इससे खुजली भी कम परेशान करेगी और गरमी से भी बच जाएंगे | बस, पानी आने का इंतज़ार कर रहे हैं |

बोला- मास्टर, तुम्हारी इस तुच्छता पर मैं शर्मिंदा हूँ |जल-समाधि जैसे पवित्र कर्म का ऐसा अवमूल्यन | कहते हैं राम ने सीता के वियोग में सरयू में जल-समाधि ले ली थी | 


और अब कलयुग में मिर्ची बाबा उर्फ़ वैराग्यनन्द गिरि अपनी, दिग्विजय सिंह के भोपाल से लोकसभा चुनाव जीतने की भविष्यवाणी गलत सिद्ध होने पर, जल-समाधि लेने की प्रतिज्ञा का निर्वाह करने के लिए तड़प रहे हैं | 

हमने कहा- लेकिन इसमें क्या परेशानी है ? उनके यहाँ तो पानी की भी कोई कमी नहीं है और फिर बाबा तो बड़े स्वाभिमानी होते हैं | वे तो अपनी बात के लिए चुल्लू भर पानी में भी डूब सकते हैं |

बोला- आजकल कहाँ है ऐसे बात के धनी बाबा |आजकल तो इन्हें भी सत्ता का चस्का लग चुका है |कहते हैं जब कलेक्टर परमिशन देगा तब समाधि लेंगे | क्यों भाई, जब ऐलान किया था तब क्या ऐसी कोई शर्त थी ? कल को कह देगा- अमरीका का राष्ट्रपति परमीशन देगा तब समाधि लूंगा |समाधि लेने वाला इस तरह के रोड शो नहीं करता |  इस भयंकर गरमी में यदि किसी प्रकार प्रायश्चित या हठयोग जैसा कुछ करना है तो पंचाग्नि सेवन कर |बलिदान में भी सुविधा का ख्याल ! गरमी में तो यदि उपलब्ध हो तो कोई भी जल-समाधि ही लेना चाहेगा | 

हमने कहा- कोई बात नहीं, मिर्ची बाबा जाने और हल्दी की गाँठ वाले दिग्विजय सिंह | तू पनी बता कि तू जल-समाधि क्यों ले रहा है ?

बोला- मैं तो इस शर्म के मारे जल-समाधि लेना चाहता हूँ कि इतने विकास और सेवा के बावजूद इस देश की अहसानफरामोश जनता ने मोदी जी की पार्टी भाजपा को केवल ३०३ सीटें ही दीं |

हमने कहा- तोताराम, किसी तरह हो सके तो अपना यह निश्चय जल्दी से जल्दी मोदी जी तक पहुंचा |हो सकता है इस आधार पर तुझे राज्यसभा में मनोनीत करने के योग्य पाया जाए |और कुछ नहीं तो पद्मश्री तो कहीं गई ही नहीं | सातवें पे कमीशन के १९ महीने का एरियर तो खबर पहुंचते ही रिलीज़ हो जाएगा |

बोला- भाई साहब, पद्मश्री तो जनवरी में घोषित होती है जबकि मेरे लिए यह जल-समाधि कार्यक्रम तो केवल मई-जून में ही संभव है | हम भी तो वे ही हैं जैसे कुछ आत्महत्या करने वाले चुभने पर रस्सी कमर में रस्सी बांधकर आत्महत्या करते हैं |  

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Jun 25, 2019

तोताराम का तरबूज-तुलादान



 तोताराम का तरबूज-तुलादान 


आजकल तोताराम का हमारे यहाँ आना कुछ कम हो गया है |बीच-बीच में गच्चा दे जाता है |हमें बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष और मध्यप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष की तरह फ़िक्र लगी रहती है कि उसकी एम एल ए रूपी भोलीभाली, सुंदरी कन्याओं को कहीं कोई अमित शाह भगा न ले जाए |इसलिए जब कभी वह नहीं आता है तो हम किसी न किसी बहाने उसके वहाँ चक्कर लगा लेते हैं |

आज भी जब तोताराम नहीं आया तो हम उसके घर की ओर चल दिए |देखा, उसके बरामदे के आगे गली के कई आवारा सांड और गाएं इकट्ठे हो रहे हैं और मज़े से तरबूज के छिलके चबा रहे हैं |किसी तरह उनसे बचते-बचाते उसके घर में दाखिल हुए तो देखा वहाँ भी पूरा परिवार तरबूज खाने में लगा हुआ है |

हमें बड़ा अजीब लगा |हमने कहा- तोताराम, यह ठीक है कि महंगाई बढ़ गई है और इस समय तरबूज सस्ता है लेकिन यह क्या कि कोई परिवार केवल तरबूज खाकर ही काम चलाए |अरे, सातवें पे कमीशन का जनवरी २०१६ से जुलाई २०१८ तक एक एरियर ही तो नहीं दिया मोदी जी ने |फिक्सेशन तो अगस्त २०१८ से दे ही दिया |क्यों बिना बात कल्याणकारी सरकार को बदनाम कर रहा है ?

बोला- बात सरकार को बदनाम करने की नहीं है |हुआ यह कि बंटी की दादी ने कहा कि आजतक आपने कभी तुलादान नहीं किया |अभी आपका वजन भी कम है, तरबूज भी सस्ते हैं और गर्मी भी बहुत पड़ रही है | सो एक पंथ तीन काज हो जाएंगे |तरबूज तुलादान कर ही दो |

हमने कहा- भले आदमी, तुलादान ही करना था तो मोदी जी की तरह कमल के फूलों का करता तो कम से कम किसी मुसलमान का तो भला होता |

बोला- यह सब राजनीति है |एक तो कमल उनकी पार्टी का निशान, दूसरे इस बहाने गुरुवायूर के भक्तों में अपनी पैठ बना लेंगे, तीसरे मुसलमान से कमल के फूल खरीदकर सर्व धर्म  समभाव का भ्रामक मेसेज देना |केरल में शबरीमला मंदिर की राजनीति में सफलता न मिलने पर  अब वहाँ फिर से वहां धर्म की राजनीति करने का एक बहाना है |अन्यथा जब गुजरात की राजनीति में थे तब तो द्वारिका से केरल पहुंचे बालकृष्ण की याद कभी नहीं आई | उन महंगे कमल के फूलों को कौन खाएगा ? तरबूज के छिलकों से कम से कम एक-दो जीवों का सही पेट तो भरेगा |

तभी तोताराम की पत्नी बोली- भाई साहब, गरमी में तरबूज पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है |आप भी जितना खा सको खालो वरना अभी आपके देखते-देखते सब समाप्त हो जाने वाले हैं |

हम भी मोदी जी की तरह देश की प्रगति और समृद्धि तथा तोताराम  की दीर्घायु एवं सातवें पे कमीशन के एरियर की कामना करते हुए तरबूजों पर पिल पड़े |

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Jun 19, 2019

दीपं तले अन्धकारम्



दीपं तले अन्धकारम्

  • पहले एक संस्था हुआ करती थी- योजना आयोग अर्थात प्लानिंग कमीशन |पता नहीं, वह कैसे काम करती थी लेकिन उसके नाम में कमीशन होने के कारण किसी न किसी रूप में कमीशन की संभावना बनी रहती थी |चूँकि अब सरकारें कुछ ज्यादा ही 'नैतिक' हो गई हैं इसलिए सब काम 'नीति' के तहत ही किए जाते हैं चाहे कमीशन खाना ही क्यों न हो ? कमीशन शब्द तो 'पालिसी कमीशन' में भी आता है | सरकार इस नाम की अंग्रेजी सामने लाने में पता नहीं क्यों शरमाती है |शायद इसलिए कि पोलिसी-कमीशन में 'कमीशन' तो है ही ऊपर से 'पालिसी' में पुलिस वाली दुर्गन्ध अलग आती है |
  •  
  • इस नीति आयोग के अंतर्गत एक विभाग है जिसका पूरा नाम 'डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट ऐंड पब्लिक ऐसेट मैनेजमेंट' |इसे मोदी जी की 'भाषाई दिव्यता' में 'दीपम' कहा जाता है |कभी सरकारें योजना बद्ध तरीके से कारखाने बनवाती थी लेकिन अब यह विभाग योजनाबद्ध तरीके से सरकारी कारखानों को कमीशन खाकर निजी लोगों को बेचता है |इसमें बड़ा घपला होता है फिर चाहे वह किसी भी शासन में सरकारी कारखानों को निजी क्षेत्र को बेचने का हो |चाहे सिंदरी का कारखाना किसी अग्रवाल को बेचने का हो या फिर किसी बाल्को कारखाने को किसी स्टरलाईट को बेचने का हो |

आज जैसे ही तोताराम आया हमने पूछा- यह कैसी नीति है भाई ?

बोला- यह वैसा ही प्रश्न है जैसा 'शोले' में ए.के. हंगल पूछते हैं- इतना सन्नाटा क्यों है भाई ?

हमने कहा- हम गंभीर बात कर रहे हैं | यह सरकार की क्या नीति है कि सौ रुपए में कोई कारखाना लगवाओ और फिर उसे खुद ही बरबाद करके निजी  क्षेत्र को औने-पौने दामों में बेच दो जैसे अब पचासों कुछ बहुत महँगी लम्बी-चौड़ी ज़मीन वाले और अच्छे भले चलते कारखाने निजी क्षेत्र को बेचे जाने वाले  हैं |

बोला- पहले तो तू अपना नीति-शास्त्र देख जो कहता है- दीए तले अँधेरा होता है |सो यह सरकार का दीपम विभाग है इसलिए इसके नाम के अनुरूप ऊपर-ऊपर प्रकाश फैलता रहेगा और उसने नीचे-नीचे अँधेरे में काले कारनामे होते रहेंगे |और फिर जो काम करना ही है उसमें बिना बात अनावश्यक देर करने से क्या फायदा ?और फिर पहले भी तो सरकारी कारखाने बिकते ही रहे हैं |अभी यह हाय तौबा क्यों ?

हमने कहा- लेकिन थोड़ा-बहुत सोच-विचार तो कर लें | इतनी भी क्या जल्दी है ?

बोला- जल्दी कैसे नहीं है ? जो काम सत्तर साल में नहीं हुआ वह चार साल में करने के लिए कम से कम इतनी स्पीड तो चाहिए ही | तभी तो १९९१ से २०१४ तक उदारीकरण के पहले २३ साल में  ३.६३ लाख करोड़ के सरकारी कारखाने बेचे गए जबकि २०१४ से २०१९ तक केवल चार साल में २.१ लाख करोड़ के सरकारी कारखाने बेचने का कम तय हो चुका |

हमने कहा- अभी तो मंत्रियों का अपने-अपने मंत्रालयों में स्वागत-कार्यक्रम ही चल रहा है | यह निर्णय कब हुआ ?

बोला- वह तो फरवरी २०१९ में ही ले लिया था | वेल इन अडवांस |

हमने कहा- इस पर एक किस्सा सुन | एक चूड़ीवाला मेले में चूड़ियाँ बेचने गया | वहाँ एक पुलिस वाले ने डंडे का ठोका मारकर पूछा- इसमें क्या है ? चूड़ीवाला बोला- ऐसे ही एक बार और पूछ ले फिर कुछ ना है इसमें |
सो एक बार फिर आजाने दे पगलाए विकास को फिर कुछ भी ना बचेगा बेचने के लिए |




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Jun 17, 2019

दाल रायसीना उर्फ़ खून-पसीना



 दाल रायसीना उर्फ़ खून-पसीना 

तोताराम कल नहीं आया | आज आया तो उसके हाथ में एक छोटी डोलची जैसा कोई बर्तन था | वैसे तो आम दिनों में तोताराम हमेशा तू-तड़ाक से बात करता है जैसे कि चुनाव प्रचार में नेता लोग लेकिन तोताराम की तू-तड़ाक में नेताओं वाली द्वेषपूर्ण कुटिलता नहीं होती | शुद्ध प्रेमपूर्ण अनौपचारिकता | जब वह राष्ट्रीय लहजे में देववाणी में बोलने लगता है तो हम सतर्क हो जाते हैं |

बोला-  परमआदरणीय भ्राता श्री, कल न आ पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ | हुआ यूं कि हमने गरमी से घबराकर मोदी जी के शपथ-ग्रहण समारोह में जाने का कार्यक्रम निरस्त कर दिया था लेकिन मैंने सोचा- कोई बात नहीं, न जाकर अच्छा ही किया |आज पढ़ा कि कल अपने यहाँ का पारा ५० डिग्री को छू गया था |मर जाते तो कौन बीमा का पैसा मिलना था | ऊपर से पेंशन और आधी हो जाती | लेकिन मन किया कि यह महान दिवस, शालीन ( ! ) लोकतंत्र की यह उपलब्धि ऐसे ही सूखी तो नहीं जानी चाहिए | सो पिछले दो दिन से आपके लिए 'दाल खून पसीना' बना रहा था |  

कुछ भी कहो, दाल बननी तो बढ़िया ही चाहिए |दो दिन, तवे पर कुकर रखे-रखे बनी है |आधा सिलेंडर गैस खर्च हो गई |अन्य सब सामान अलग से |

हमने कहा- तोताराम, हम शोषक नहीं हैं, जनता के पैसे से ऐश करने वाले नेता भी नहीं हैं | हम खुद अपने खून-पसीने की खाने वाले हैं | हम तेरी यह 'खून-पसीना दाल' नहीं खा सकते |

बोला- भाई साहब वास्तव में तो यह दाल 'शपथ ग्रहण समारोह' में पधारे मेहमानों के लिए बनी 'दाल रायसीना' की तरह से ही बनाई गई काली दाल है जिसमें मक्खन डाला गया है |'खून-पसीना दाल' तो इसलिए कहा है कि यह ईमानदारी के पैसे से बनी है |'दाल रायसीना' की तरह जनता के टेक्स के पैसे पर दंड नहीं पेले हैं |

हमने कहा- रायसीना में तो वायसराय सीना तानकर बैठते थे |यहाँ कौन वायसराय बैठा है ? सीना तानना तो दूर, गर्दन झुकाकर भी बुढ़ापा कट जाए तो गनीमत है |

बोला- आपने 'कह जोशीकविराय' के नाम से हजारों कुण्डलिया छंद लिखे हैं  तो हम किस वायसराय के कम हैं ? और हमें सीना तानने से कौन रोक सकता है ? हम किसी नेता के बल पर जनता को अकड़ दिखाने वाले गुंडे नहीं हैं | हम अपनी खून-पसीने की कमाई की खाने वाले स्वाभिमानी, पेंशनयाफ्ता, राष्ट्रनिर्माता हैं | 
  
हमने दाल चखी और स्पष्ट उत्तर दिया- बड़ा अज़ीब-सा स्वाद और गंध भी अजीब | लगता दाल बूस गई है |

बोला- इस पचास डिग्री में यह तो दाल है आदमी बूस जाए |उत्साह-उत्साह में भूल ही गया कि अपना घर वातानुकूलित नहीं है | ये शाही व्यंजन तो उन बड़े लोगों को ही शोभा देते हैं जिनके यहाँ सब कुछ नियंत्रित हैं |जिन्होंने पूरे देश से सभी मौसमों को खारिज कर दिया है | खा सके तो खाले |घर का पैसा लगा है |यदि तुझे लगता है कि फ़ूड पोइजनिंग हो जाएगी तो रहने दे |दो पैसे बचाने के चक्कर में दो सौ रुपए का जूता खाने से क्या फायदा ?





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Jun 11, 2019

शपथ-ग्रहण समारोह



 शपथ-ग्रहण समारोह 

हमारे यहाँ ६ मई को मतदान हुआ |हमने वोट डाला और ७ मई को अमरीका के लिए रवाना हो गए |कैमरे वाला फोन न होने के कारण प्रमाणस्वरूप अमिट स्याही लगी अँगुली दिखाते हुए फोटो मोदी जी को नहीं भेज सके | इसे पढ़कर पाठकों को लगेगा कि जैसे हम वोट डालने के लिए ही अमरीका से यहाँ तशरीफ लाए थे |यह कोई बड़े आदमी की अमरीका यात्रा तो थी नहीं जो समस्त मिडिया प्रचार करता |इसलिए हमने रोब जमाने के लिए इस आलेख के बहाने से अपनी उपलब्धि प्रचारित कर दी | वैसे हम जानते हैं कि लाखों लोग रोज हवाई जहाजों से देश-विदेश आते-जाते रहते ही हैं |

हो सकता है कि हम देश की सुरक्षा की चिंता के कारण ही प्रायः यहीं बने रहते हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से सेवकों ने 'चौकीदार' का पदभार ग्रहण कर लिया तो सोचा अब देश चौकीदारों की निगहबानी में सुरक्षित है तो अमरीका ही घूम आएँ | हुआ यूँ कि हमें अमरीका की सबसे पुरानी हिंदीसेवी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति' ने अपने  १९ वें  द्विवार्षिक अधिवेशन में 'हिंदी की वैश्विक चुनौतियां' विषय पर पत्रवाचन के लिए आमंत्रित किया था |

समिति के १० से १२ मई २०१९ तक के तीन दिवसीय अधिवेशन में भाग लेने के बाद और दस-पाँच दिन अपने कुछ अन्य परिचितों के साथ मिलकर लौट आए |रुकने को कुछ और भी रुक सकते थे लेकिन वहाँ पहुँचने के कुछ दिनों बाद ही पता चला कि मोदी जी ने चौकीदार का पद छोड़ दिया है तो देश की सुरक्षा के लिए लौट आना पड़ा |अब जब फिर साढ़े चार साल बाद ये लोग देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेंगे तब फिर कहीं घूमने का मौका निकालेंगे |

२७ मई की शाम को एयर इण्डिया के विमान से दिल्ली पहुंचे |मोदी जी जितनी ऊर्जा तो हममें है नहीं |थक गए सो एक दिन वहीं आराम करके २८ मई की दोपहर को घर आ गए |

सोचा था तोताराम हमारे आते ही मिलने के लिए आएगा लेकिन नहीं |हमने भी रूठने का नाटक किया लेकिन अडवानी जी की तरह किसी ने हमारी ओर ध्यान नहीं दिया |आज ३० मई है |हम बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे कि तोताराम हमारी ओर देखे बिना ही आगे से गुजरने लगा तो हमने पुकार लिया- क्या मोदी जी के शपथ-ग्रहण समारोह में जा रहा है ? एक नज़र इधर भी डाल ले |

बोला- मैं तो समझ रहा था कि तू २७ मई को दिल्ली पहुँच रहा है |उसके बाद दो-चार दिन वहीँ मजे मारेगा | इसलिए ध्यान नहीं दिया | अरे, जब २७ मई को दिल्ली में था ही तो नेहरू जी की ४५ वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उनकी समाधि पर प्रणाम ही कर आता | गाँधी जी का १५० वाँ जन्म-जयंती वर्ष चल रहा है, लगे हाथ राजघाट भी हो आता | कहाँ बार-बार मौके मिलते हैं | और फिर आज ही तो मोदी जी का शपथ-ग्रहण समारोह भी था उसमें भी शामिल हो जाता |

हमने कहा- अब दिल्ली में नेहरू-गाँधी को कोई नहीं पूछता |अब तो गाँघी की जगह गोडसे को स्थापित करने का कार्यक्रम चल रहा है और नोटों पर सावरकर की फोटो छापने के प्रस्ताव भी आने लगे हैं | जहां तक मोदी जी के शपथ-ग्रहण समारोह की बात है तो हम निमंत्रण मिलने पर भी नहीं जाते |

बोला- देख मास्टर, यह भारतीय लोकतंत्र का एक महान क्षण है |यह सब के द्वारा है, सबका है और सब सबके लिए हैं |ऐसे ममता जी की तरह रूठना ठीक नहीं |

हमने कहा- क्यों ? जब बंगाल के कुछ लोगों को यह कहकर आमंत्रित किया गया कि इनके परिजनों की तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हत्या कर दी है तो फिर यह क्षण अपनी महानता से स्खलित हो जाता है |यदि जयपुर या भोपाल में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अपने शपथ-ग्रहण समारोह में केन्द्रीय विद्यालय के रिटायर्ड कर्मचारियों को इसलिए आमंत्रित करते कि मोदी जी की भाजपा सरकार ने इनके सातवें पे कमीशन का एरियर नहीं दिया तो क्या 'उस क्षण' की गरिमा नहीं घटती ? 

लेकिन तू बता, तू क्यों नहीं गया ?

बोला- मास्टर, आजकल राजस्थान 'नौतपा' में ४४-४५ डिग्री गरमी में तप रहा है तो ऐसे में दिल्ली जाकर क्या मरना था ? वहाँ तो शालीन ड्रेस पहनकर जाना पड़ता |यह थोड़े ही है कि तृणमूल कांग्रेस की युवा सांसदों की तरह बेशर्मी से जींस पहनकर भारतीय संस्कृति को लज्जित करो |यदि मैं इस गरमी में नए कुरते-पायजामे और जैकेट पहनता तो दम ही घुट जाता | पता नहीं, कैसे लोग सूट, जैकेट आदि पहने हुए थे ?

हमने कहा- वे सब तेरी-मेरी तरह अशांत आत्मा नहीं हैं |जीत के कारण सब के कलेजे में ठण्ड पड़ी हुई है |तन-मन एयरकंडीशंड हो रहे हैं |वहाँ तक किसी आह की आँच नहीं पहुँचती |


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Jun 10, 2019

पूड़ी-कचौड़ी की खुशबू



 पूड़ी-कचौड़ी की खुशबू


बरामदे में बैठे थे कि सिर पर भगवा पटका बाँधे, कंधे पर एक छोटा-सा एयर बैग लटकाए तोताराम प्रकट हुआ |हमने पूछा- किधर ?

बोला- दिल्ली और किधर ?

हमने कहा- तुझे दिल्ली में कौन पूछता है ? अब तो सेवकों का समय है |

तोताराम ने हमारा चेहरा उत्तर-पूर्व की ओर घुमाते हुए कहा- धीरे-धीरे एक लम्बी और गहरी सांस ले |

हमने कहा- हमें योग नहीं करना |

बोला- मैं योग नहीं करवा रहा हूँ |बस, तू लम्बी सांस ले |

हमने लम्बी सांस ली |तोताराम ने पूछा- कुछ अनुभव हुआ ?

हमने कहा- कुछ तेल जलने की गंध-सी आ रही है |

बोला- बस, इसी गंध की दिशा में चलना है |यह दिल्ली में जीत की ख़ुशी में तली जा रही पूड़ी-कचौड़ी की खुशबू है |

हमने कहा- हमें क्या ? जीतने वाले तो जश्न मनाएँगे ही | हम गंध लेकर क्यों बिना बात मन को ललचाएं |

बोला- केवल गंध ही नहीं है | वास्तव में ही पूड़ी-कचौड़ी मिलेगी |बस, सिर पर एक भगवा पटका बाँध ले |

हमने कहा- लेकिन हम तो सरकारी कर्मचारी रह चुके हैं | हम राजनीतिक प्राणी नहीं हैं ?

बोला- बहुत से सरकारी कर्मचारी होते हैं जो अपने सेवाकाल में ही किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ जाते हैं, उसके लिए काम करते हैं और रिटायर होने का बाद उसमें शामिल हो जाते हैं | यशवंत सिन्हा, जनरल वी.के. सिंह भी तो पहले सरकारी कर्मचारी ही थे |

हमने कहा- लेकिन हमारा तो ऐसा कोई कनेक्शन नहीं रहा |यदि पकड़े गए तो बड़ी भद्द होगी |

बोला- मूल और मातृसंगठन की बात और है | वहाँ सब नहीं जा सकते |और वहाँ पूड़ी-कचौड़ी बनती भी नहीं |वहाँ तो खिचड़ी और कढ़ी ही  बनती है |वहाँ वे ही जा सकते हैं जो अमृत चख चुके होते हैं लेकिन राजनीतिक पार्टियों में तो सभी तरह के लोग आते-जाते रहते हैं |एक दिन पहले ही टिकट न मिलने पर उदित राज भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए |इसी तरह कोई भी अंतिम क्षण पर भाजपा में भी आ सकता है  | 

हमने कहा- फिर भी किसी ने पहचान लिया तो ?

बोला- दिल्ली वाले ऐसे घुसपैठियों के बारे में सब कुछ जानते हैं |वहाँ कोई भी किसी भी घोड़ी के आगे कमर-तोड़ नाच नाचने लग जाता है |लड़की वाले समझते हैं बाराती होगा |बाराती समझते हैं घराती होगा |इसी भ्रम में नाचने वाले जीमकर चलते बनते हैं |सो अपना भी वैसा ही करेंगे | भारत माता जी जय बोलेंगे |अधिक हुआ तो मोदी..मोदी... के नारे लगा देंगे |

पूड़ी-कचौड़ी पेलकर चले आएँगे |और सातवें पे कमीशन के एरियर की संभावना भी टटोल आएँगे |

एरियर के चक्कर में हम भी चले पड़े | देखें क्या होता है ?


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Jun 4, 2019

तोताराम का नामांकन



 तोताराम का नामांकन

तोताराम आज फिर नहीं आया |

चुनाव के बाद आत्मशुद्धि के लिए साधना तो कल हो चुकी है |अब पता नहीं और कौनसा नाटक ले आया होगा भला आदमी ? हम आज लगातार दूसरे दिन तोताराम के घर गए | हमारी आशा के विपरीत घर पर ताला लगा हुआ था |समझ नहीं आया, कहाँ गए होंगे सब के सब |

सोचा, जब निकल ही पड़े हैं तो क्यों न 'स्मृतिवन' तक एक लम्बी घुमाई ही कर लें | इसलिए कुचामन सिटी और नागौर जाने वाले हाइवे पर तेज कदमों से चलने लगे |अधिक दूर नहीं जाना पड़ा |कोई दो-तीन सौ कदम पर ही तोताराम, उसकी पत्नी मैना और पोता बंटी मिल गए | हमें बड़ा आश्चर्य हुआ | आज के ज़माने में जब लोग बगल के मंदिर भी स्कूटर पर जाते हैं तो ये पदयात्री कहाँ के लिए निकल पड़े ?

पूछा- क्या बात है, तोताराम ? अब तो चुनाव हो चुके | अब तो जनसेवक तक सुस्ता रहे हैं, आत्मा की शांति के लिए साधना कर रहे हैं |परिणाम के बाद मंथन करेंगे |और एक तू है जो वन-गमन कर रहा है |

बोला- जब राम विलास पासवान और मायावती की पार्टी की एक भी सीट नहीं आई थी तब भी उन्होंने वन-गमन नहीं किया |१९८४ में जब भाजपा मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी तब किसी ने वन-गमन नहीं किया था तो मुझे बिना चुनाव हारे ही वन-गमन की क्या ज़रूरत है ?

हमने कहा- तो फिर घर चल | चाय के साथ कल के चुनाव परिणामों का अनुमान लगाएंगे |

बोला- नहीं घर चलना संभव नहीं है |मैं नामांकन से पहले रोड शो के लिए निकला हूँ | 

हमने पूछा- तीन आदमियों का कोई रोड शो होता है !नामांकन के लिए असली रोड शो होता है मोदी जी जैसा |लाखों की भीड़, करोड़ों का खर्चा और घंटों में पूरी हुई १० किलोमीटर की यात्रा |ऊपर से हेलिकोप्टर से पुष्प-वर्षा | और फिर अभी कौन से चुनाव हो रहे हैं जिसके लिए नामांकन भरने जा रहा है ?

बोला- २०२४ वाले चुनाव के लिए वाराणसी से नामांकन भरने जा रहा हूँ |

हमने कहा- एक तो नए चुनाव में अभी पूरे पांच साल पड़े हैं | दूसरे मोदी जी के सामने तेरी औकात क्या है ? तीसरे तू जिस दिशा में जा रहा है वह वाराणसी से ठीक विपरीत दिशा में है |

बोला-  तेरे तीनों प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार हैं- पहला मेरा रोड़ शो मोदी जी की तरह क्या मात्र १० किलोमीटर का होगा ? मैं पूरे विश्व में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता हुआ धरती का चक्कर लगाकर चीन की तरफ से वाराणसी में प्रवेश करूँगा |इसलिए कोलंबस की तरह विपरीत दिशा में जा रहा हूँ |दूसरे दूरी काफी है इसलिए पांच साल का समय ज्यादा नहीं हैं | तीसरे तब तक मोदी जी देश का पूर्ण विकास कर चुके होंगे, भारत को कांग्रेस-मुक्त बना चुके होंगे और उम्र में भी ७५ के लपेटे में आने वाले होंगे तो अडवानी जी की तरह संन्यास का भी मन बना चुके होंगे तो उनसे मुकाबला करने की नौबत भी नहीं आएगी |इसलिए सभी दृष्टियों से मेरे लिए संभावनाएँ बहुत प्रबल हैं | |

हमने कहा- लेकिन अभी तो चुनाव आयोग ने २०२४ के चुनावों की तारीख ही घोषित नहीं की है |

बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? ट्रंप ने भी तो जनवरी २०१७ में राष्ट्रपति का कार्यभार सँभालते ही २०२० के चुनावों के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी |वैसे भी वाराणसी पहुँचते-पहुँचते अप्रैल २०२४ आ ही जाएगा |

हमने कहा- तो फिर अडवानी जी भाई साहब को भी अपने साथ ले जा, रास्ते में पाकिस्तान में कटासराज मंदिर में अंतिम बार भगवान शिव के दर्शन भी कर लेंगे |

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