Jun 23, 2018

मोदी जी से मुलाकात



 मोदी जी से मुलाकात 


 हमने दो साल पहले स्टेंट लगवाए थे |अब यह तो डाक्टर का राम जाने कि उसने क्या लगाया और क्या नहीं लेकिन हमारे खून-पसीने की पेंशन के डेढ़ लाख झटक लिए |हम तो सहमत नहीं थे लेकिन पत्नी को डाक्टरों ने डरा दिया और पोती पीछे पड़ गई | हम तो हानि,लाभ, जीवन, मरण सब ऊपर वाले के हाथ मानते हैं |लोग अमरीका में भी इलाज करवाते हुए मर जाते हैं |हार्ट की हालत का तो पता नहीं लेकिन चार हजार रुपए महीने का दवाओं का खर्चा ज़रूर बंध गया |

दो महीने बाद हम डाक्टर के पास गए और कहा- यदि कोई सस्ती दवा हो तो बताओ |हमें मोदी सरकार ५०० रुपया महिना मेडिकल अलाउंस देती है |हम इससे ज्यादा खर्च नहीं करेंगे |उसने कोई डेढ़ हजार रुपए महीने की दवाएं लिख दीं |इसके बाद हमने जेनरिक दवाओं के बारे में पता किया |पास के ही कस्बे फतेहपुर में कोई एक डाक्टर हैं जिन्होंने 'प्रधान मंत्री जन औषधि योजना' वाली दुकान खोली है |भले आदमी हैं, कूरियर से समय से भेज देते हैं | पाँच सौ रुपए महीने में काम चल जाता है |दवा कैसी होती हैं क्या पता | चाहे महँगी हो या सस्ती किसी को कुछ पता नहीं चलता |सब विश्वास और भगवान भरोसे चलता है |विश्वासः फल दायकं |

कल ६ जून को उनका फोन आया कि वे सीकर आ रहे हैं |प्रधान मंत्री जन औषधि योजना के लाभार्थियों से बात करेंगे |उन्होंने हमारा नाम भी लिखवा दिया था |समय दिया था सवेरे साढ़े आठ बजे का |आज तोताराम आया नहीं |हमने उसका इंतज़ार नहीं किया |ऑटो के चौदह  रुपए बचाने  के लिए मोर्निंग वाक के बहाने पैदल ही निकल लिए | कोई दस बजे मोदी जी स्क्रीन पर प्रकट हुए |कई राज्यों के कई लोगों से बात की |हालाँकि योजना पिछली सरकार की है लेकिन प्रचार अब हुआ है |लोगों ने आभार जताया और मोदी ने उन्हें अपना व्यक्तिगत आभारी बना लिया |और उनकी होने वाली बचत को भी मज़बूती से रेखांकित किया |

मोदी जी जन संपर्क के मामले में बहुत फ़ास्ट हैं |वीडियो और मोदी ऐप से होते हुए लोगों के दिमागों में घुस जाते हैं |ऊपर से 'मन की बात' अलग | दुनिया के नेताओं से शायद कुछ अन्तरंग बातें भी करनी होती होंगी इसलिए वीडियो कांफ्रेंसिंग का तरीका ठीक नहीं रहता होगा | खैर, हमारे जिले के लाभार्थियों का नंबर नहीं आया |हम ऑटो पकड़कर कोई ग्यारह बजे घर पहुँचे तो देखा तोताराम बरामदे में जमा है |

बोला- आ गया मोदी जी से बातें करके ? हमें भी बता देता तो क्या हम तेरा कोई मंत्री पद का चांस छीन लेते ? 

हमने कहा- यह एक नितांत सामान्य बात है और मोदी जी का चुनावी लाभ के लिए किया गया आयोजन |हम तो डाक्टर के कहने से गए थे |

बोला- क्या-क्या बातें हुईं ?

हमने कहा- अपने जिले का तो नंबर ही नहीं आया |

बोला- अच्छा रहा वरना तू उत्साह में आकर जाने इस योजना से कितने का लाभ बता देता |और बात रिकार्ड पर आ जाती |

हमने पूछा-उससे क्या फर्क पड़ जाता ?

बोला- हो सकता है वे तेरी इस बचत पर इनकम टेक्स लगा देते या जी.एस.टी. वसूल लेते |अगर २०१९ में फिर जीत गए तो यह भी देख लेना |और हाँ, कुछ टी.ए. वगैरह दिया कि नहीं ?

हमने कहा- नहीं |

तो बोला- हो सकता है यह भी वैसे ही हो गया जैसे 'झुंझुनू में प्रधान मंत्री के 'बेटी बचाओ ' कार्यक्रम में कुछ अधिकारी गए नहीं लेकिन उनके लिए बुक किए गए वाहनों का ११ लाख का पेमेंट तो उठ ही गया |






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Jun 19, 2018

तोताराम ने मोदी जी का चेलेंज स्वीकारा

 तोताराम ने मोदी जी का चेलेंज स्वीकारा


चार साल पहले अमरीका से एक चेलेंज चला था- आइस बकेट चेलेंज | इसमें चेलेंज स्वीकारने वाले को बर्फ के पानी से नहाना होता था |चेलेंज स्वीकार नहीं करो मतलब नहीं नहाओ तो कुछ राशि किसी सामाजिक काम के लिए दान देनी होती थी |खैर, इसे भारत में तो आना ही था |और जब बॉलीवुड में आगया तो चर्चा में भी आना ही था |अमिताभ,सलमान, शाहरुख, प्रियंका, सोनम आदि ने इसे नहीं स्वीकारा |चेलेंज का पैसा संबंधित संस्था को भेजा या नहीं, पता नहीं |इससे मिडिया को कोई मतलब नहीं |

हमारे देश में पहले भी चेलेंज दिया जाता था |इसे बीड़ा चबाना या बीड़ा उठाना कहते थे  |जैसे सीता की खोज के लिए बीड़ा हनुमान जी ने उठाया- 
दे बीरा रघुनाथ पठाए |
लंका जारि सिया सुधि लाए ||
अपराध जगत में इसे सुपारी देना कहते हैं |

तोताराम को किसी ने चेलेंज नहीं दिया लेकिन उसने दान देने से बचने के लिए आइस बकेट चेलेंज स्वीकार कर लिया और फलस्वरूप ठण्ड खाकर कई दिन बुखार में पड़ा रहा |

उस समय मोदी जी प्रधान मंत्री नहीं थे |

अब मोदी जी प्रधान मंत्री हैं तो उनकी चाय और सूट की तरह उनका चेलेंज भी चर्चा में आना ही था |

आज तोताराम ने आते ही घोषणा की- मास्टर, मैंने मोदी जी का चेलेंज स्वीकार कर लिया है |

हमें पूछा- तो आजकल तेरी मोदी जी से सीधी बात होने लग गई है |शायद तेरे कहने से ही १३ जून २०१८ को अपने जनवरी २०१६ वाले पे कमीशन पर फटाफट ऑर्डर हो गए |
बोला- तू पे कमीशन के लिए तरसाने को लेकर मोदी जी पर जो तंज कर रहा है उसे मैं समझता हूँ |यह चेलेंज मीडिया में चर्चित होने के लिए नहीं है |यह तो देश को स्वस्थ बनाने के लिए है |यह सबसे पहले राज्यवर्द्धन राठौड़ ने कोहली को दिया |कोहली ने मोदी जी को दिया |फिर उसके ज़वाब में राहुल, कुमार स्वामी आदि ने तोड़-मरोड़ कर मोदी जी को दिया |लेकिन मैं तो मोदी जी के देश-हित-चिंतन, गतिशीलता और मल्टी टास्किंग से प्रभावित हूँ |कोहली के चेलेंज के उत्तर में मोदी ने अपना 'पंच तत्त्व योग' का वीडियो जारी किया |

हमने पूछा- तो क्या तू मोदी जी की तरह योग करेगा ?

बोला- मेरे पास वैसा हरा-भरा घास का मैदान कहाँ है ? वैसा 'क्षिति जल पावस गगन समीरा' जैसा वाकिंग ट्रेक थोड़े ही है , कमर मोड़ने के लिए विशेषरूप से निर्मित गोल पत्थर भी नहीं है और हाथ में झूलता वह राज-दंड जैसा डंडा भी नहीं है |और फिर इस फटे पायजामे में ...|

हमने पूछा- तो फिर कैसे ज़वाब देना है इस चेलेंज का ?

बोला- यहाँ से जयपुर रोड की तरफ चलेंगे |रास्ते में नाली बंद होने के कारण कीचड़ हो रहा है, एक मकान का काम भी चल रहा है, मोड़ पर सफाई कर्मचारी और चाय वाले कूड़ा भी जलाते हैं |कहीं कीचड़ से बचते, कहीं कीचड़ में गिरते, कहीं कूदकर जलते कूड़े को पार करते हुए, कहीं पत्थरों गिट्टियों पर चलते हुए ये सब कार्यक्रम हो जाएंगे |मैं पोते बंटी से यह स्मार्ट फोन भी लाया हूँ |तू वीडियो बना लेना |फिर किसी से, जहाँ कहीं डलवाना होगा, डलवा देंगे |और सातवें पे कमीशन के लिए मोदी जी को धन्यवाद-पत्र के साथ पोस्ट कर देंगे |

हमने कहा- कहीं तेरी फिटनेस को देखकर तेरा मेडिकल अलाउंस तो बंद नहीं कर देंगे ?

बोला- चेलेंज स्वीकार कर लिया तो कुछ तो करना पड़ेगा |

हमने कहा- यहाँ बरामदे में लेट जाना |हम तेरा वीडियो बना लेंगे और केप्शन दे देंगे -'तोताराम का पिछले १५ वर्षों से शवासन का विश्व रिकार्ड' | गिनीज बुक वालों से संपर्क किया जा रहा है |

बोला- तो फिर पहले चाय पी लेते हैं फिर शुरू करेंगे |


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Jun 17, 2018

ग्राहक, मौत और पार्टी अध्यक्ष

 ग्राहक, मौत और  पार्टी अध्यक्ष  

आते ही तोताराम ने ऐसे अंदाज़ में अपनी झाड़ू और पोंछा निकाला जैसे कोई 'स्वच्छ भारत' का ब्रांड अम्बेसेडर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार होता है |बरामदा झाड़ते हुए बोला- पता नहीं, कब आ जाएँ ? थोड़ी साफ-सफाई रखा कर |तुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुझे तो बिना बात शर्मिन्दा होना पड़ेगा |

हमने कहा- कोई किसी को बिना बात शर्मिंदा नहीं कर सकताऔर फिर किसी ढीठ को शर्मिंदा कर सकना तो किसी के भी वश का नहीं है |

बोला- तो तू मुझे ढीठ कहता है ?

हमने कहा- हम तुझे कुछ नहीं कहते, हमारा संकेत तो सरकार की ओर है जो संवेदना के हजार नाटकों के बावजूद हमारा सातवाँ पे कमीशन खाकर बैठी है |लेकिन तेरे 'पता नहीं, कब आजाएँ' का क्या मतलब था ?वैसे अप्रत्याशित रूप से आना तो दो का ही होता है- एक ग्राहक और दूसरा मौत |ग्राहक का सवाल नहीं क्योंकि हम कोई दुकानदार नहीं और मौत से घबराते नहीं क्योंकि कम्यूटेशन रिस्टोर हो चुका है |

बोला- इन दो के अलावा भी एक और है जो कभी भी आ सकता है- शाह जी |

हमने कहा- क्यों आएगा कोई शाह ? हमने किसी शाह से कोई कर्जा नहीं ले रखा है |

बोला- ये कर्जे वाले शाह नहीं हैं |ये तो भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हैं |जो २०१९ के चुनाव की रणनीति के तहत 'संपर्क फॉर समर्थन' के हिंदी अंग्रेजी के इस समासात्मक जुमले के नाम पर पचास लोगों से मिलने निकले हैं |इस क्रम में कपिलदेव, रामदेव, माधुरी दीक्षित से मिल चुके हैं |रतन टाटा से मिलने वाले हैं |उद्धव ठाकरे ने अब तक घास नहीं डाली,आगे का पता नहीं | धावक मिल्खा सिंह को उनसे भी तेज भागकर कब्जे में ले लिया | हो सकता है रिटायर्ड मास्टरों के समर्थन के लिए प्रबुद्ध जनों के क्रम में अपने यहाँ भी आ टपकें |

हमने कहा- चिंता मत कर |जब अपने मोहल्ले की नालियाँ ढंग से साफ होने लगेंगी,  और जयपुर रोड़ पर गहलोत मोटर्स और मंडी की दीवारों के पास का कूड़ा साफ़ होने लगेगा तो समझ लेंगे कि शाह जी आ रहे हैं |फिर हम भी बरामदे में झाड़ू-पोंछा कर लेंगे |अभी से क्यों परेशान हों, क्या पता; आएँ कि नहीं |कहाँ ठाढ़े हैं बाँके यार...जो बिना बात सोलह शृंगार का आएँ ?

बोला- आजकल उनके नखरे कम हो गए हैं |अब वे कहीं जाने से पहले उस तरह से तैयारी का इंतज़ार नहीं करते जैसे पहले करते थे |अब तो एक साल से भी कम रह गया है |उपचुनावों में झटके से साथी दलों का स्वर भी 'उपलब्धियों' की तरह अविश्वसनीय होने लगा है |कांग्रेस-मुक्त भारत  का सपना खटाई में पड़ता लगता है |इसलिए सेवा कर सकने की अगली पाँच साल की लीज़ रिन्यू करवाने का धन्धीय-संकट है |इसलिए हमें स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए |अब तो 'अनौपचारिक संवाद' का फैशन भी चल पड़ा है |इसलिए कभी भी टपक पड़ने वाले ग्राहक और मौत में एक शब्द और जोड़ ले - उम्मीदवार या किसी पार्टी का अध्यक्ष |

हमने कहा- क्या हमारा समर्थन इतना महत्त्वपूर्ण है जो अमित शाह हमसे 'संपर्क'  फॉर समर्थन कर सकते हैं ?यदि ऐसा होता तो अब तक हमारे पे कमीशन के बारे में एक शब्द तो बोलते |

बोला- फिर भी सावधान तो रहना पड़ेगा क्योंकि सुना है अब अमित जी ही नहीं कई और छुटभैय्ये भी निकल पड़े हैं | यह धंधे का सवाल है | वैसे आने दो |कोई देगा नहीं, तो हमसे ले भी क्या लेगा ? चुनाव के नाम पर कुछ और नाटक, कुछ और जुमले |

हमने कहा- और उसके बाद अमल के नाम पर वही 'अच्छे दिन' वाला खाली कमंडल |








 


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Jun 13, 2018



 नॉन स्टॉप सेवा 

रात को नींद कुछ कम आई |अभी पत्नी चाय लाने वाली थी, तोताराम आया नहीं था |प्रायः ऐसा नहीं होता लेकिन पता नहीं, बरामदे की दीवार से टेक लगाए-लगाए कैसे एक झपकी लग गई |

तोताराम ने हमें झिंझोड़ा, बोला- हद है |यदि तेरी तरह देश के चौकीदार और सेवक सो जाएँ तो क्या हो ?

हमने कहा- हम सभी प्रधान मंत्रियों के बारे में तो नहीं जानते लेकिन जहाँ तक नेहरू जी और मोदी जी की बात है तो दोनों ही अधिक से अधिक चार घंटे सोने वाले हैं |नेहरू जी खुद को 'प्रथम सेवक' मानते थे तो उन्हीं की तर्ज़ पर मोदी जी खुद को 'प्रधान सेवक' कहते हैं |ये तो खुद को चौकीदार भी कहते हैं | देवेगौड़ा जी पता नहीं, रात को सोते थे या नहीं लेकिन मंच पर ही झपकी लेने का साहस कर सकते थे |लोग कुछ भी कहें, व्यक्तिगत रूप से हम इसे चिंतन का एक प्रकार मानते हैं |इसके बावज़ूद उनके  प्रधानमंत्रित्त्व में न सीमा पार से घुसपैठ हुई और न ही कोई नीरव मोदी या माल्या भागे |

बोला- मोदी जी के एक और अद् भुत रिकार्ड का तो तब पता चला जब उन्होंने  सिंगापुर दौरे के दौरान वहाँ के विद्यार्थियों को बताया कि मैनें पिछले १७ वर्ष में १५ मिनट की भी छुट्टी नहीं ली |

हमने कहा- बेचारे सिंगापुर के विद्यार्थियों ने राहत की साँस ली होगी कि चलो उन्हें ऐसे  समर्पित शिक्षक नहीं मिले | सेवा, सेवा है लेकिन भाई साहब, सामने वाले को भी तो साँस लेने का अधिकार है या नहीं |

बोला- हद हो गई बन्धु, एक तो आदमी सेवा करे और ऊपर से तुम्हारे जैसे आलसियों से ऐसे कमेन्ट भी सुने | जिनको आराम करना हो वे सेवक जी के सोने के चार घंटों के दौरान आराम कर लें |

हमने कहा- तुझे पता नहीं, सेवा का जुनून बहुत बुरा होता है |हो सकता है वे सोने के चार घंटों के दौरान सपने में लोगों की सेवा करते हों |ऐसे में जिनकी सेवा की जाती है उन्हें भी सेवकों के सपने आने लगते हैं और वे चैन की नहीं सो पाते |तुझे उस जिन्न का तो पता ही है जिसने अलादीन के सामने शर्त रखी थी कि मैं तुम्हारा कहा हर काम करूँगा | यदि  तुम काम बताने में असमर्थ रहे तो मैं तुम्हें मार डालूँगा |पता है, उससे परेशान होकर अलादीन ने बोतल में घुसकर ढक्कन लगा लिया तब कहीं जाकर पीछा छूटा था |हर चीज की एक सीमा होती है |अति सर्वत्र वर्जयेत |

बोला- देखो बन्धु, जिसने सेवा के लिए घर-बार छोड़ दिया |वह अब सेवा के अलावा और करे भी तो क्या ?घरबार हो तो आदमी बहुत से कामों में व्यस्त हो जाता है और सेवा करवाने वालों को थोड़ा साँस आ जाता है | 
हमारे पूर्वज बहुत समझदार थे |उन्होंने सेवकों क्या, देवताओं तक के साल में चार महीने सोने का विधान कुछ सोच-समझकर ही किया था |

हमने कहा- लगता है तेरह साल की नॉन स्टॉप सेवा से थककर गुजरात के लोगों ने भगवान से प्रार्थना की होगी और उसी के फलस्वरूप भगवान ने उन्हें भारत का प्रधान मंत्री बना दिया |अब चार साल से सेवा करवाने का उत्तरदायित्त्व समस्त भारत पर आ पड़ा है |करवाएँ सेवा | 

यदि किसी को ज्यादा परेशानी हो वे भगवान से प्रार्थना करें कि अब वे मोदी जी को  चीन या अमरीका का राष्ट्रपति बना दें | 





 

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Jun 10, 2018

तोताराम का 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन'



 तोताराम का 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' 

जैसे रिटायर्ड आदमी के लिए समय का कोई बंधन नहीं होता, वह कालातीत होकर अकाल-पुरुष हो जाता है |जब चाहे सोए, जब चाहे जागे, मन हो तो जागे ही नहीं |किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता | वैसे ही अब संन्यास आश्रम में पहुँच कर हम वैज्ञानिक और प्रगतिशील होने का साहस करने लग गए हैं |मतलब कि अब हम अंधविश्वासों से मुक्त हो गए हैं |अब चाहें तो बिल्ली के रास्ता काटने पर बिना रुके, बिना एक बार चप्पल उतारे और पानी पिए रास्ता पार कर सकते हैं |

जिसको जीने की कोई परवाह न हो, उस पर कोई ग्रह-नक्षत्र लागू नहीं होता |सरकार भी खुश, चलो एक मुफ्तिया निबटा |अब मजे से इसकी पेंशन के पैसे से 'स्वच्छ भारत' का विज्ञापन करेंगे |सो आज हमने गुरुवार को हजामत बनवाने साहसिक काम कर ही लिया |इसलिए नहाने का सुबह वाला काम दिन के ग्यारह बजे निबटा रहे थे कि तोताराम ने बरामदे में बैठने के प्रोटोकोल का पालन करने की बजाय सीधे ही हमारा बाथरूम का दरवाजा खटखटा दिया | 

हमने सिर पर बचे चंद श्वेत केशों में साबुन रगड़ते हुए कहा- ऐसी क्या जल्दी है ? बरामदे में बैठ, हम अभी आते हैं |

बोला- बरामदे में आने की 'औपचायिकता' की कोई  आवश्यकता नहीं है |तू आराम से नहा | मैं बाहर खड़ा हूँ | तू अन्दर नहाते-नहाते ज़वाब दे देना |यह कोई 'औपचारिक शिखर सम्मलेन' नहीं है |यह तो मोदी जी के चीन के शी और रूस के पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर सम्मेलन की तर्ज़ पर 'तोताराम का अनौपचायिक' सम्मेलन है |

हमें कभी  'अनौपचारिक' सुनता तो कभी 'अनौपचायिक' | सोचा, हो सकता है पानी के गिरने की आवाज़ या कान में साबुन लगे होने के कारण ऐसा सुन रहा हो |हिंदी के मास्टर हैं सो मन नहीं माना |हिंदी का मास्टर एक रोटी कम में काम चला सकता है लेकिन वर्तनी (स्पेलिंग) की गलती बर्दाश्त नहीं कर सकता |

पूछा- तोताराम, तेरे मुँह में कोई सुपारी या टॉफ़ी तो नहीं है ?क्यों हमें तेरा 'अनौपचारिक' शब्द कभी 'अनौपचारिक' सुनता है तो कभी 'अनौपचायिक' सुनता है | 

बोला- तेरे कानों में कोई खराबी नहीं है |मैं मोदी जी के शी और पुतिन के साथ शिखर सम्मेलन को 'औपचारिक शिखर सम्मेलन' बोल रहा हूँ और अपनी इस मुलाकात को  'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' बोल रहा हूँ |

हमने कहा- लेकिन शब्द तो एक ही हैं- अनौपचारिक | हमने तो आज तक तुम्हारा यह 'अनौपचायिक' शब्द कभी सुना नहीं |

बोला- लकीर के फकीर के साथ यही समस्या है |उसके पल्ले कोई नई बात पड़ती ही नहीं |'अनौपचारिक शिखर सम्मेलन' राजनीति में मोदी जी का एक नया आविष्कार है जिसे सुषमा जी नाम दिया है- 'नया संवाद तंत्र' |मास्को से लौटते समय रास्ते में इस्लामाबाद में शरीफ के घर टपक पड़ना इस शैली का पहला एपिसोड था |इसमें मिलना होता है, हाथ में हाथ डालकर बतियाना होता है, सुविधा हो तो झूला झूलना होता है, सेल्फी लेना होता है आदि-आदि | 

वैसे तो यह शब्द अन+उप+चार+इक से मिलकर बना है |ऐसा भी लगता है कि बीच का शब्द 'उपचार' है लेकिन ऐसे 'अनौपचारिक सम्मेलनों' का किसी समस्या के 'उपचार' से कोई संबंध नहीं होता | ये तो जनता के पैसे से मौज-मस्ती करने के तरीके हैं |ये तो वैसे ही है जैसे तेरे साथ मेरे इस 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन ' में कहीं 'चाय' नहीं है |आज मैं तेरे साथ बिना चाय के ही बाथ रूम के इस दरवाजे के पार खड़े-खड़े  'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' करूँगा |

हमने कहा- लेकिन शिखर सम्मेलन का क्या 'शिखा' से कोई संबंध नहीं होता ?कैसी अजीब बात है कि हम दोनों ब्राह्मण हैं और शिखा-सूत्र हम दोनों के ही नहीं हैं |हो सकता है, जगन्नियंता की यही मर्ज़ी हो तभी तो शिखा के स्थान से बाल गायब हो गए हैं |पर हमने तो ज़िन्दगी भर नौकरी की है |अब उसकी पेंशन की कमाई खा रहे हैं |हमें कौन-सी शिखा-सूत्र की कमाई खानी है ? जिन्हें इसके आधार पर कोई धंधा करना है उनकी बात और है | या फिर जो लोकतंत्र को शिखा-सूत्र दिखाने और शिव-भक्त प्रमाणित करने तक ले आए हैं, इसकी फ़िक्र करें |

बोला- ठीक है, तो अब अपने इस 'अनौपचायिक शिखर सम्मलेन' का पहला संवाद- 'आप अपनी छियत्तर वर्षों की अभूतपूर्व उपलब्धियों को किस प्रकार देखते हैं ?'

हमने कहा- तोताराम,  तुम्हारा यह 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन'  या 'नया संवाद तंत्र' हमें कुछ जमा नहीं  |क्या पता, कल तू इसके नाम पर बाथ रूम के अन्दर घुस आए | अपनी इस चुहलबाजी को कल चाय के 'औपचारिक शिखर सम्मेलन' के लिए रख ले |
पर अब तो घर जा |









 

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Jun 7, 2018

मुंडाई मुंडाई का फर्क



मुंडाई मुंडाई का फर्क 

आज तोताराम ने आते ही हमसे पूछा- क्यों मास्टर, अपना सीकर जिला देश में एक हर क्षेत्र में एक अग्रणी जिला है तो फिर यहाँ महाराष्ट्र के सांगली शहर के रामचन्द्र दत्तात्रेय काशिद की तरह सोने के उस्तरे से दाढ़ी बनाने वाला कोई कलाकार क्यों नहीं है ?


महाराष्ट्र, सोने का रेजर



हमने कहा- खबर अभी कल ही तो आई है |अगले महीने पढ़ लेना सीकर के किसी ऐसे ही सैलून का विज्ञापन | यह पता नहीं कि वह उस्तरा चाँदी पर सोने के पानी वाला होगा या शुद्ध पीतल का ही होगा | लेकिन अभी तो यह शहर अखबारों में स्कूलों के इतिहास रचने वाले टॉपर के फोटो से भरा हुआ है |लगता है हर स्कूल में टॉपर ही टॉपर भरे पड़े हैं |जब ये विज्ञापन मिलने बंद  हो जाएँगे तब सोने के उस्तरे वाला विज्ञापन भी आ जाएगा |अब जब विज्ञापन के बल पर बिना कुछ खर्च किए उलटे उस्तरे से मूंडने का मौका है तो उसे ही क्यों न भुनाया जाए |

बोला- क्यों क्या स्कूलों में खर्चा नहीं लगता ? विज्ञापन, बिल्डिंग और प्रश्नोत्तर के कागज फोटो स्टेट करवाने का काम क्या मुफ्त में हो जाता है ?

हमने कहा- लेकिन इसके अलावा और क्या खर्चा होता है ?मास्टरों को तो सरकारी चपरासी जितनी तनख्वाह भी नहीं देते |और फिर जिसने फीस दी है वह अपनी गरज के चलते रट्टा मारेगा ही |और जब इतने बच्चे परीक्षा देंगे तो कोई न कोई सलेक्ट भी होगा ही |बस, उसी को गोद में उठाए दस साल तक विज्ञापन करते रहेंगे |

बोला- लेकिन बात तो सोने के उस्तरे की चली थी |

हमने कहा- यदि अपने यहाँ किसी ने सोने के उस्तरे का विज्ञापन कर दिया तो हो सकता है कि दूसरे दिन ही कोई साहसी युवक हजामत बनवाने के बहाने उसका उस्तरा ही ले उड़ेंं और पुलिस सी सी टी वी कैमरा ही खंगालती रहे |वैसे हजामत तो हजामत है चाहे लोहे के उस्तरे से बनाई जाए या सोने के |जैन धर्म में यह काम 'लुंचन' द्वारा बिना किसी यंत्र के ही कर लिया जाता है | मोदी जी, अमित जी, पासवान जी, सुशील जी, नीतीश जी आदि कुछ लोगों को देश सेवा से ही समय नहीं मिलता |वैसे ये चाहें तो सोने ही क्या, प्लेटिनम के उस्तरे से दाढ़ी बनवा सकते हैं |

बोला- मैं अतिमानवों की बात नहीं कर रहा हूँ |लेकिन जब चार साल में वह सब हो गया जो पिछले चार दशकों में नहीं हुआ था तो सोने के तारों से बुने सूट की तरह सोने का उस्तरा क्यों नहीं हो सकता ?

हमने कहा- लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है कि मरने वाला किसी ट्रक से टकराकर मरे या किसी की बी.एम.डब्लू. कार से टकराकर  | बकरे को कोई कलमा पढ़कर काटे या शेराँ वाली का जैकारा लगाकर | भेड़ को उलटे उस्तरे से मूंडा जाए या किसी आयातित मशीन से | मंदिर में मूंडा जाए या मस्जिद में |जुमे को निबटाया जाए या मंगलवार को |महत्त्वपूर्ण साध्य है न कि साधन | जैसे सभी नदियाँ समुद्र में जा मिलती हैं वैसे ही सभी मूंडनीय जीव मुण्डने की ओर अग्रसर हैं | 

बोला- तो फिर गाँधी जी ने क्यों कहा था कि पवित्र साध्य के लिए साधन भी पवित्र ही होने चाहिएँ ?  लोहे के उस्तरे से इन्फेक्शन हो जाता है |कहते हैं सोने के उस्तरे से इन्फेक्शन नहीं होता |

हमने कहा- तब तो आजकल जो हर बार नई ब्लेड से दाढ़ी और हजामत बनाते हैं वह सबसे ज्यादा ठीक है |उस्तरा चाहे लोहे का हो या सोने का, हर बार नया थोड़े ही होता है |और सोने वाला तो बिलकुल भी नहीं | 

वैसे थोड़ा धीरज रख |अभी तो अच्छे नसीब वाला तेल-योग समाप्त हुआ है |इसके बाद जब असलियत वाली साढ़ेसाती शुरू होगी तब न लोहे-सोने के उस्तरे की ज़रूरत रहेगी और न रेजर ब्लेड की |अपने हाथों से ही नोंच लेना अपने सिर और दाढ़ी के बाल |









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Jun 3, 2018

निपाह वायरस और निर्मल बाबाओं की लाल-हरी चटनी

 निपाह वायरस और  निर्मल बाबाओं की लाल-हरी चटनी 

आज तोताराम ने आते ही कहा- बन्धु, यह निकाह वायरस क्या होता है ?

हमने कहा- तोताराम, यह एक ऐसा वायरस है जिसका कोई इलाज नहीं है |हाँ, यदि कोई साहसी हो तो तीन तलाक दे दे |यदि तीन तलाक जितनी धार्मिक सुविधा न हो तो सिद्धार्थ की तरह साहस दिखाओ और मानवता के कल्याण की आड़ में फूट लो घर से, हो जाओ जिम्मेदारियों से मुक्त और मज़े से झाड़ते फिरो भाषण |और सबसे ज्यादा भुगते बेचारी बीवी जिसकी कोई गलती ही नहीं |

बोला- मैं 'निकाह' नहीं, केरल में पाए गए एक खतरनाक वायरस 'निपाह' की बात कर रहा हूँ | केरल में लोगों की जान पर बनी है, कर्नाटक में लोग डरे हुए हैं |और तुझे मजाक सूझ रहा है |

हमने कहा- कम्यूनिस्टों और बदकिस्मत लोगों को वोट देंगे तो यही होगा |यदि नसीब वाले सेवकों को वोट देते तो यह संकट नहीं आता |

बोला- यदि ऐसे ही नोनसेन्स  बातें करनी है तो मैं चलता हूँ |

हमने कहा- ठीक है, नो मजाक |सुन, यह वायरस है |और इसमें भी अन्य सभी वायरसों की तरह अपना एक रस होता है |जिन्हें यह वायरस नहीं पकड़ता वे बातें बनाकर रस लेते हैं और जिन्हें पकड़ लेता है वे कोमा में चले जाते हैं और सब प्रकार के जुमलों से मुक्त होने का रस लेते हैं |और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग दौरों, सेमीनारों और दवाओं में कमीशन-रस निचोड़ते हैं |

वैसे केरल के डाक्टरों ने कहा गया है कि ज़मीन पर गिरे, कुतरे हुए फल न खाएँ |

तोताराम ने कहा- अपने यहाँ तो कहा जाता है कि पक्षियों का खाया हुआ फल वास्तव में पका हुआ और सर्वाधिक सरस होता है |

हमने कहा-लेकिन यह तो पक्षियों-विपक्षियों का नहीं चमगादड़ों का चखा हुआ है |ये चमगादड़ न पशुओं में आते हैं और न ही पक्षियों में |जब, जहाँ, जैसा फायदा दिखाई देता है उधर ही हो लेते हैं |जब तक हंग-सदन नहीं बनता तब तक लोकतंत्र की डाल पर उलटे लटककर मन्त्र-जाप करते रहते हैं |

बोला- यह ठीक नहीं है मास्टर |बात चल रही थी निपाह वायरस और उससे फ़ैलने वाली बीमारी की लेकिन अब तू इसे गन्दी राजनीति से मत जोड़ |

हमने कहा- लेकिन तेरे नेता ही कौन-सी सीधी बात करते हैं |हर घटिया बात में इस देश के वेद-पुराणों और वांग्मय को ले आते हैं जबकि इनकी औकात नहीं होती बच्चों की छोटी-मोटी कविता-कहानी समझने की |

बोला- ठीक है, तुझे पता हो तो इसका कोई इलाज़ बता, कोई पथ्य-परहेज सुझा |नहीं तो अगर चपेट में आगए तो सीधे कोमा में ही जाएँगे और अस्सी साल पर सवाई होने वाली पेंशन का मज़ा कोई और ही लेगा |

हमने कहा- केरल के एक मौलवी जी ने कुरान के ३६ वें चेप्टर की सूराह-अल-यासीन को पढ़ने और किसी शेख अब्दुल कादिर जिलानी का नाम एक हजार बार लेने से भी यह बीमारी नहीं होती |

बोला- लेकिन मैं तो हिन्दू हूँ |मैं किसी जिलानी का जप कैसे कर सकता हूँ | 

हमने कहा-  फिर तो किसी बिप्लब कुमार देब से ही पूछना पड़ेगा जो महाभारत में इंटरनेट की तरह इसके बारे में भी कुछ ढूँढ़ निकालें |

बोला- लेकिन तब तक इस निपाह के भय से कैसे मुक्ति मिले ?

हमने कहा- इसका इलाज समय के पास है |समय बदलेगा, फिर कोई नया वायरस आ जाएगा तो लोग इस पुराने हो चुके निपाह वायरस को भूल जाएँगे |जैसे पहले मनमोहन जी को कोसते थे और अब मोदी जी के गुण गा रहे हैं |

गुलाम मानसिकता, अवैज्ञानिक सोच, व्यक्तिवादी लोकतंत्र और निर्मल बाबाओं के देश में आस्थाओं की लाल-हरी चटनियाँ बदल-बदल कर खाना ही सब दुखों का एकमात्र इलाज रह गया है |



  


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