May 15, 2009

बेचारा पाकिस्तान क्या करे


पाकिस्तान एक शांतिप्रिय, लोकतांत्रिक, सर्वधर्म सम्मानक, और आतंकविरोधी देश है । भारत बिना पक्के सबूतों के उसे बदनाम करने लिए कह रहा है कि मुम्बई आतंकी साजिश पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा, पाकिस्तानी एजेंसियों के मार्गदर्शन में रची गई है । पाकिस्तान की सज्जनता देखिये कि उसने भारत के कहे अनुसार कई लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है । पाकिस्तान में किसी व्यक्ति कू पूछताछ के लिए अधिक से अधिक तीस दिनों तक ही रखा जा सकते है । हिरासत में रखे गए ये सभी व्यक्ति सज्जन और धार्मिक हैं । ये सब स्वयमसेवी संस्थायें चलाकर लोगों की सेवा करते रहे हैं । वहाँ की जनता इन सज्जनों को बिना बात हिरासत में रखने का विरोध कर रही है । एक लोकतान्त्रिक सरकार आख़िर कितने दिनों तक जनता की जायज़ माँग को नकार सकती है ।

पाकिस्तानी सरकार ने भारत से इन आरोपियों के बारे में कुछ सरल सवाल पूछे हैं मगर भारत सरकार इनका ज़वाब ही नहीं दे पा रही है । अब सवालों के ज़वाब न मिले उन पर कैसे मुक़दमा चलाया जा सकता है और कैसे अनंत काल तक हिरासत में रखा जा सकता है । अगर ज़वाबों के अभाव में पाकिस्तान सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ गया तो ये सज्जन तो सेवक हैं । सेवा करते-करते पता नहीं कहाँ और किधर निकल जायें फिर इनको ढूँढ़ना मुश्किल हो जाएगा तो भारत फिर कहेगा कि अपराधियों को भगा दिया । उस दशा में पाकिस्तान को आतंकवाद मिटाने में सहयोग न करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकेगा । और सारी जिम्मेदारी भारत की होगी ।

अब प्रश्न यह उठता है कि ये प्रश्न आख़िर थे क्या ? खोजी पत्रकारिता का दावा करने वाले मीडिया मुगलों तक के लिए इनका पता लगाना संभव नहीं था । यह तो हमीं हैं जिन्होंने कुछ पश्नों का पता लगा लिया है । ये प्रश्न कुछ इस प्रकार थे -

आरोपियों के स्कूल रजिस्टर में दर्ज नामों की सही स्पेलिग़ क्या थीं ?
उनके एस आर नंबर क्या थे ?
उन्हें किस क्लास में किस विषय में कितने नंबर मिले थे ?
वे किस क्लास में कब फेल हुए थे ?
क्या उन्होंने कभी किसी से ट्यूशन पढी थी ? कब किस टीचर को ट्यूशन के कितने रुपये दिए ? दिए तो उनमें कितने रुपये के कितने नोट थे ?
उन्होंने कब किस प्रतियोगिता में भाग लिया ? लिया तो क्या कोई इनाम जीता ? यदि हाँ तो कौनसा स्थान प्राप्त किया ?

यदि इन छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर भी भारत नहीं दे सकता तो पाकिस्तान पर दोष लगाना उचित नहीं है । बिना पूरे प्रमाणों के अभाव में बेचारा पाकिस्तान करे भी तो क्या ।

९ मार्च २००९

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अपना-अपना डर


शास्त्रों में सभी जीवों में चार गुण सामान बताये गए हैं - आहार, निद्रा, भय और मैथुन । इनमें से तीन तो भाग्य और संयोग पर निर्भर करते हैं पर चौथा तो सबको ही सताता है । आकाश में बिजली चमकती है तो गधा धरती पर संवेदनशील हो जाता है । हर गठबंधन सरकार को सहयोगी दल के खिसकने का डर सताता रहता है । मंदी के इस दौर में निजी कंपनियों के कर्मचारी को हर समय डर सताता रहता है कि पता नहीं कब पिंक-स्लिप मिल जाए । पब में जानेवाली लड़कियों को हर समय प्रमोद मुतालिक का डर सताता रहता है । चुनाव में हर नेता को पहले टिकट न मिलने का डर सताता रहता और टिकट मिलने के बाद हार जाने का डर सताता रहता है । जीत भी गए तो मंत्री पद से ड्राप कर दिए जाने का डर सताता रहता है । बरसात में टूटे छप्पर वाली बुढिया को टपके का डर सताता रहता है । गरज ये है कि डर कभी कम न हुआ ।

हमें उक्त डरों में से कोई नहीं सताता । हमें तो सबसे ज्यादा डर भावनात्मक संबंधों से लगता है । सलमान खान को ऐश्वर्या से भावनात्मक सम्बन्ध नहीं था और न ही ऐश्वर्या को सलमान से कोई भावनात्मक सम्बन्ध था तो किसी को कोई समस्या नहीं हुई । ऐश्वर्या अभिषेक के साथ पिंक पेंथर हो रही और सलमान केटरीना साथ खुश है । केटरीना के साथ भी उसका सम्बन्ध भावनात्मक है या नहीं यह तो कुछ समय बाद पता चलेगा । पर विवेक ओबेराय का ऐश्वर्या से सम्बन्ध भावनात्मक था तो बेचारा अब तक सूनामी पीडितों के बीच चक्कर लगा रहा है । सुरैया को देवानंद से भावनात्मक सम्बन्ध था सो बेचारी जिंदगी भर कुँवारी बैठी रहकर संसार से चली गई और देवानंद अब तक नई-नई हीरोइनों को चांस दे रहे हैं । गायों को गौ सेवकों से भावनात्मक सम्बन्ध है सो चारे की आस में गौशाला में भूखी मर रही हैं और गौसेवक चंदे का ३१ मार्च तक हिसाब निबटाने में लगे हुए हैं । राहुल गाँधी को कांग्रेस से भावनात्मक लगाव है सो भागे फिर रहे हैं झोंपड़ी-झोंपड़ी भारत की खोज कराने की लिए और शेष युवा हैं जो कहते हैं कि कांग्रेस में तो आ जायें पर दारू पिए बिना नहीं रह सकते ।

अब जब विजय माल्या ने कहा कि उन्हें गाँधी जी से भावनात्मक लगाव है तो हमारा माथा ठनका । सोचा उन से मिलकर ही बात साफ़ की जाए । गए तो देखा कि वे अपनी भावनात्मक उपलब्धि को सेलेब्रेट कर रहे थे । दीवारों पर सेलिना जेटली, मलैका अरोडा, मल्लिका शेरावत के सर्वदर्शी केलेंडर लटक रहे थे । कुल मिलकर सारा परिवेश गाँधीवादी हो रहा था । हमने उन्हें बधाई दी और पूछा- माल्या जी आपने गाँधी जी की विरासत तो बचाली मगर नशाबंदी के बारे में क्या विचार हैं ? बोले- मास्टर जी, भावना और विरासत अपनी जगह हैं और धंधा अपनी जगह है । यह धंधा न होता तो गाँधी जी की विरासत बचाने के लिए पैसा कहाँ से आता । और जो गाँधी जी की वस्तुओं के लिए बयानबाजी कर रहे हैं वे ही कौन से सूफी हैं ? हम जो कुछ करते हैं छुपा कर तो नहीं करते । और जब सगन कसाई भक्त हो सकते है तो विजय माल्या क्यो नहीं ? और फिर बताइए कौन सा गाँधी भक्त सेठ आया नीलामी में भाग लेने ।

हमें लगा विजय माल्या की बातें नितांत तर्कहीन नहीं हैं ।

८ मार्च २००९

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May 13, 2009

तोताराम के तर्क - सौ सुनार की एक लुहार की



कभी आनंद शर्मा टीवी चेनल पर जेम्स ओटिस से अपील कर रहे हैं कि गाँधी की वस्तुओं को नीलामी से हटा लें तो कभी न्यूयार्क में महावाणिज्य वाणिज्य दूत कोशिश कर रहे हैं तो कभी भारत मूल के होटल व्यवसायी नीलामी में भाग लेने के लिए संयुक्त मोर्चा बना रहे हैं तो कभी मनमोहन सिंहजी अम्बिका सोनी से कह रहे हैं कि गाँधी जी की वस्तुएं किसी भी हालत में भारत लानी हैं तो कभी अम्बिका सोनी स्वयं पर्यटन में गाँधी जी के महत्व को देखते हुए प्रयत्नशील हैं ।

मगर सौ अम्बिका सोनी की और एक विजयमाल्या की । विजयमाल्या भी लाइन में लग गए और एक ही झटके में ले आए बापू का सारा सामान । ऐसे काम भाषणों से नहीं होते । जुआ और नीलामी दिल के खेल हैं । दिलवाले ही ऐसे खेलों में भाग लेते हैं और धाँसू तरीके से जीतते भी हैं । या तो पुलिस उचित भेंट पूजा से मान जाती है या फिर देसी दारू बनाने वालों के पास लट्ठ है ही । सरकार को भले ही अपनी कुर्सी बचाने के लिए संसद-खरीद के गटर में उतरना पड़ता है पर दारूवालों की अपनी लाबी होती है और पूरी सिद्दत से काम करती है ।

अंदरखाने यह भी सुना जा रहा है कि विजयमाल्या भारत सरकार के लिए काम कर रहे थे पर विजय माल्या ने इससे मना कर दिता है । वैसे यह गिव एंड टेक का मामला हो सकता था क्योंकि सरकार दारूवालों का ध्यान रखती है तो दारूवाले भी सरकार का ध्यान रखते हैं । नीलामी करने वाले ने सोचा था कि चुनावों का मौसम है सो गाँधी के नाम से वोट माँगने वाली सरकार ज़रूर अच्छी कीमत दे देगी । पर जब सरकार नहीं पहुँची तो उसने सोचा कि जो मिल रहा है वही अच्छा वरना मामला गया फिर पाँच साल पर ।

हमने सोचा कि इस मामले में क्यों न सीधे ओटिस महाशय से ही संपर्क किए जाए । पूछा- बन्धु, गाँधीजी तो कभी अमरीका आए नहीं फिर ये चीजें आपके हाथ कैसे लगीं ? बोले - हमारे गोरे भाइयों ने इस बुड्ढे की अफ्रीका और भारत में बहुत ठुकाई की थी उसी दौरान ये चीजें गिर पड़ी होंगी और कहीं पुलिस के मालखाने में पड़ी होंगी । सो कोई हमें दे गया होगा । हमने भी यह सोच कर रख लीं कि क्या पता कभी ये भी कुछ दे ही जायेंगीं । वैसे हम तो एक्टर-एक्ट्रेसों और लम्पटों की चड्डी-चोली में ही ज़्यादा डील करते हैं क्योंकि आजकल खाली दिमाग और भारी जेबोंवाले ये ही चीजें ख़रीदते हैं । योरप अमरीका में इनका अच्छा मार्केट है ।

आज तोताराम आया तो बड़ा खुश था, बोला- देख लिया ? तू दारू पीनेवालों की बहुत बुराई किया करता था । अरे, खोटा पैसा और खोटा बेटा ही समय पर कम आता है । हमने शंका प्रकट की- यार, कहीं यह माल्या मस्ती में आकर गाँधी जी के कटोरे में ही बीयर डाल कर सेलेब्रेट न कर ले । तोताराम बोला- तो क्या आसमान टूट पड़ेगा । सरकारें दारू बेचती हैं और ऊपर से नैतिकता के भाषण झाड़ती है । विजय माल्या जैसा भी है पर सरकार की तरह ढोंगी तो नहीं है । और फिर दारू से सरकार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए टेक्स भी तो मिलता है । तू समझता है कि सरकारें तेरे जैसे मक्खीचूसों से चलती हैं ?

हम पूरी जी-जान लगा कर बापू की वस्तुएँ भारत वापस आने से गर्वित होने का प्रयत्न करने लगे । शायद सफलता मिल ही जाए ।


बातें करता रह गया भोला हिन्दुस्तान ।
अमरीका में बिक गया बापू का सामान ॥
बापू का सामान, वस्तु की पूजा करते ।
पर बापू की आदर्शों पर ध्यान न धरते ॥
कह जोशीकविराय राम का काम कीजिए ।
राम और बापू का नाटक बंद कीजिए ॥

७ मार्च २००९

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May 12, 2009

तोताराम के तर्क - ड्रीम जॉब


आज तोताराम आया तो कुछ उदास और नाराज़ था । बड़ी मिन्नतों के बाद बोला- मैं तो तुझे बड़ा भाई और अपना हितचिन्तक समझता था पर तुमने मेरे साथ धोखा किया है । सारे दिन कई-कई अख़बार चाटता रहता है पर मुझे नहीं बताया कि आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड द्वीप में एक केयर टेकर की नौकरी निकली है । छः महीने के पचास लाख रुपये और रहना, खाना, घूमना और मौज-मज़ा मुफ़्त ! अब जब लास्ट डेट निकल गई तो पता चला कि इन शोर्ट लिस्टेड में दो भारतीय भी हैं । केयर टेकर में करना क्या पड़ता है । कुछ नहीं, घर की साफ़-सफाई करवादो । और मैं तो उस माकन में दो-चार किरायेदार रखकर पॉँच-सात लाख और कमा लेता ।

हमने कहा भइया, हमें भी आज ही ख़बर लगी है । हमने उसका दुःख दूर करने के लिए कहा- निराश होने की क्या बात है तोताराम, यह नौकरी तो मात्र छः महीने की ही थी और उसके बाद कोई पेंशन भी नहीं । अब तो अपने देश में ही चार-पाँच करोड़ सालाना आमदनी की पाँच सौ पैंतालीस नौकरियों की सूचना जारी हो गई है । और यदि महीने दो महीने बाद ही कम्पनी बंद भी हो जाए तो भी जिंदगी भर पेंशन पक्की ।

तोताराम की उत्सुकता जगी, बोला क्वालिफिकेशन क्या है ? हमने कहा- कुछ नहीं बस दलाली, हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि का कुछ अनुभव होना चाहिए । तोताराम ने कहा- तो तेरा मतलब है कि एमपी का चुनाव लड़ लूँ । यह कम आसान नहीं है । पहले तो टिकट देने वाले ही दस-बीस लाख रखवा लेंगे । और फिर चुनाव में दो-चार करोड़ का खर्चा ऊपर से और फिर जीतने की कौनसी गारंटी है । हमने कहा- वैसे यह केयर टेकर वाला काम भी कोई आसान नहीं है पता नहीं कितना बड़ा द्वीप होगा । लोग तो सारे साधनों के बावजूद संसद, ताज होटल, क्रिकेट टीम, ट्रेड सेंटर आदि किसी की भी रक्षा नहीं कर सके । तू द्वीप की रक्षा कैसे करता ।

जैसे बदमाश बच्चे को कक्षा का मानीटर, गुंडे को नेता और धारा-प्रवाह गाली दे सकनेवाले को थानेदार बनने के उपयुक्त माना जाता है वैसे ही यह काम किसी भले आदमी का नहीं है । तुझे पता होना चाहिए कि उस पद के लिए किसी ओसामा बिन लादेन ने भी अप्लाई किया है । उसके होते कौन उपयुक्त पात्र हो सकता है । देख नहीं रहा , ज़रदारी सरकार की सुरक्षा वही कर रहा है । मुशर्रफ भी उसीकी कृपा से इतने दिन राज कर गए । उसके लिए ओसामा को सब जगह जाने की भी ज़रूरत भी नहीं है बस एक सूचना लिखवाना ही पर्याप्त है कि इसकी सुरक्षा का ठेका ओसामा के पास है । बस फिर कोई खतरा नहीं ।

तोताराम बोला - तो फिर चिदंबरम क्यों देश की सुरक्षा के लिए अरबों रुपये खर्च कर रहे हैं । दस-बीस अरब में देश की सुरक्षा ठेका ओसामा को ही क्यों नहीं दे देते ? सौदा सस्ता और गारंटीशुदा होगा ।

हमने कहा - सो तो ठीक है पर इसके लिए तो तुझे चिदंबरम जी से ही बात करनी पड़ेगी ।

६ मार्च २००९

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तोताराम के तर्क - गाँधी जी का सामान




ओटिस ने गाँधी की चीज़ें नीलाम कीं

गुलज़ार का एक गीत है जिसे आशा ने बड़ी सिद्दत से गाया है- 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है । मेरा वो सामान मुझे लौटा दो' । ये प्रेमी भी अजीब होते हैं । या तो अपना सामान छोड़ आते हैं या दूसरे का उठा लाते हैं जिससे आने-जाने का बहाना बना रहे । पर गाँधी जी के पास न इतना सामान था और न वे इतने असावधान थे कि अपना सामान छोड़ आयें । कौन जय ललिता की तरह चप्पलों की हजारों जोड़ियाँ थीं या दस पाँच चश्मे थे कि भूल आते । एक चश्मा आँखों पर और एक जोड़ी चप्पल पैरों में । भूलने का प्रश्न ही नहीं । हमें तो लगता है कि यह ओटिस नाम का आदमी कोई चालाकी कर रहा है । भारत में चुनाव आ रहे हैं और कांग्रेस के लिए गाँधी के बहाने कोई न कोई मुद्दा बन सकता है । सो पट्ठे ने गाँधी जी की वस्तुओं की बात उड़ा दी । और सब लगे चिल्लाने कि गाँधी की वस्तुओं को किसी भी कीमत पर वापस भारत लाओ ।

इस आदमी की जालसाजी एक और बात से समझ आती है कि यह कह रहा है कि इसके पास गाँधी जी के खून का सेम्पल है और गाँधी की भस्म भी । गाँधी का खून हमने ही इतना पी लिया था कि और बचने का प्रश्न ही नहीं । रही बात राख की सो क्या पता चलता है कि यह राख किसकी है । यह तो अपने जलने का विधान है वरना यह आदमी यह भी कह सकता था कि उसके पास गाँधी जी की खोपड़ी है ।

हम इसी पहेली में फँसे हुए थे कि तोताराम आ गया । हमने सोचा कि यह शायद हमारी मदद करेगा पर उसने तो आते ही समस्या को और उलझा दिया । बोला- मास्टर मेरे पास गाँधी जी की पाँच-सात चीजें हैं । मैं उस ओटिस जितना कमीना नहीं हूँ जो बापू की चीजों को नीलाम करूँ । बाप की विरासत को तो सँभाला जाता है, सही सलामत अगली पीढ़ी को सौंपा जाता है न कि नीलाम किया जाता है । हमें हँसी आगई, कहा- तोताराम हमें तो लगता है कि किसी दिन कोई कबाड़ी घर के आगे से गुज़रेगा- बापू की चीजें ले लो । चश्मा, घड़ी, थाली, कटोरा। हर माल पचास रूपया ।


तोताराम गंभीर हो गया, बोला- मास्टर मज़ाक नहीं । सच कह रहा हूँ मेरे पास बापू की खादीई, शराब-बंदी, मितव्ययिता, सादगी, सत्य, अहिंसा, सर्व धर्म समभाव, ग्राम स्वराज आदि सब अच्छी हालत में हैं । सुरक्षित है । मैं इन्हें बिना किसी मूल्य के देना चाहता हूँ । हमें फिर हँसी आ गई , तोताराम! बावला हुआ है क्या । इन चीजों की भला इक्कीसवीं सदी में किसे ज़रूरत हो सकती है । बापू की ये चींजें आचरण की माँग करती हैं । और यह आचरण करके नेताओं को क्या भूखा मरना है ? उन्हें तो वोट कबाड़ने के लिए बापू की भौतिक वस्तुओं की पूजा का नाटक करना है । लोग वस्तुओं के आगे हाथ जोड़ते रहें और ये कुर्सी की जोड़- तोड़ करके माया जोड़ते रहें ।

तोताराम ने लम्बी साँस मारी- लगता है अब ये वस्तुएँ स्वर्ग जाने पर मुझे ही बापू को स्वयं को ही सौंपनी पड़ेंगी।

खाता-पीता रात को औ' दिन को आराम ।
बुरी तरह से व्यस्त है भारत देश महान ॥
भारत देश महान, तनिक अवकाश न मिलता ।
मिलता तो बापू के रस्ते पर भी चलता ॥
कह जोशीकविराय हो गया अज़ब करिश्मा ।
दारू पीता देश पहन बापू का चश्मा ॥

६ मार्च २००९

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करि आए प्रभु काज


आज़ादी के तत्काल बाद से ही उनकी आत्मा विभिन्न योनिओं- पंच, सरपंच, एम.एल.ऐ., एमपी, मंत्री, राज्यपाल आदि - में भ्रमण करने ले बाद पचासी बरस की होकर अपने बड़े से ड्राइंग रूम में विराजमान थी । सेवा का मेवा उनके रोम-रोम से टपक रहा था । इतनी उमर में तो साधारण आदमी दो-दो जनम भुगत लेता है । चहरे पर चमक, दमकता भाल, अधमुँदी सी आँखें मनो कोई शेर खा-पीकर जंगल में निश्चिंत विश्राम कर रहा हो । विभिन्न प्रकार के लोग आते-जाते, प्रणाम-जुहार करते । वे किसी को आँख उठा कर देखते, किसी के लिए आँख झपका देते, किसी की तरफ़ देखते भी नहीं और किसी के लिए हाथ भी उठा देते थे । सेवा का एक प्रभा मंडल उनके चारों और जगमगा रहा था ।

लोग कहते हैं कि वे बूढ़े हो गए हैं । और वे हैं कि सेवा की ललक अब भी दिल में फुदक रही है । उनका बेटा भी उन्हीं की परम्परा को आगे बढ़ा रहा है । अब तो पोता भी पच्चीस का हो गया है । यदि युवाओं से ही कोई तीर मारा जाने वाला है तो उनके पोते में क्या कमी है । पर लोग हैं कि उन पर परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं । जिन्होंने जन्म के साथ ही देश की सेवा का व्रत ले लिया हो वे अब देश सेवा के अलावा और कुछ करने के काबिल भी तो नहीं रहे । अब तो देश सेवा की आदत सी हो गई है । सारे परिवार का यही हाल है कि जब तक देशसेवा न करो तो नींद ही नहीं आती । आजकल तो चोर नकली पुलिस बन कर आने लगे हैं । नकली इंसपेक्टर घूमने लगे हैं ऐसे में जब तक सेवा करने का लाइसेंस न हो तो सेवा करने में भी चक्कर पड़ने का डर रहता है । अब तो लोग यमदूतों से भी पहचान पत्र माँगने लगें हैं, पता नहीं किसी विरोधी ने ही नकली यमदूत न भेज दिया हो । क्या ज़माना आ गया है । सेवा के लिए कोई न कोई पद होना ज़रूरी हो गया है ।

वे चिंतन और चिंता के बीच की मुद्रा में तन्द्रिल होकर झूम से रहे थे । तभी एक मरियल सा आदमी हाँफता हुआ आया, बोला- हुजूर! बचाइए, गज़ब हो गया । कुछ लड़कों ने मेरी रेहड़ी लूट ली है । सारे बाज़ार में तोड़-फोड़ मचा रहे हैं । अफरा-तफरी मची हुई है । दारू भी पिए हुए हैं । उन्होंने आँखें खोली, मुस्कुराए और बोले- तूने पढा नहीं रामचरित मानस में !

रखवारे जब बरजन लागे ।
मुष्टि प्रहार होने तब लागे ॥
जो न होति सीता सुधि पाई ।
मधुबन के फल सकहि कि खाई ॥

लगता है कि पोते को पार्टी का टिकट मिल गया है ।

५ मार्च २००९

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May 11, 2009

तोताराम की सिक्स पैक बॉडी



एक स्टूल पर चाय रखकर दूसरी स्टूल पर हम बैठे थे । तोताराम ने आते ही हमें खड़ा कर दिया और चाय चबूतरे पर एक तरफ़ रख दी । इसके बाद दोनों स्टूलों को दोनों हाथों में उठाकर ऊँचा कर दिया । स्टूलें गिरने लगीं तो हमने उन्हें थामकर एक तरफ़ रख दिया और कहा- यह क्या तमाशा है ? कहीं कंधे में झटका लग गया तो मुश्किल हो जायेगी । बुढापे में हड्डियाँ बड़ी मुश्किल से जुड़तीं हैं । तोताराम झुँझलाकर बोला- इस समय बुढापे की बातें करके मेरा मनोबल मत गिरा । अगर हड्डी टूट भी गई तो कोई बात नहीं । बस, एक बार चुनाव जीतने के बाद एम्स किसलिए है । पड़े-पड़े इलाज करवाते रहेंगें । पर चुनावों में एक बार मेरे सिक्स पैक जनता को दिखा लेने दे । अस्सी साल के ऊपर के बुड्ढे भी जब बाल रंग कर (यदि बचें हों तो) शक्तिवर्धक दवाएँ खाकर, जिम में डमबल्स उठाकर फ़ोटो खिंचवा रहे हैं कि कहीं सत्ता सुन्दरी उनकी जवानी पर फ़िदा होकर वरमाला ही डाल दे । वैसे भी जब से अमरीका में ओबामा आया है, सब तरफ़ जवानी-जवानी की गुहार लगी है । अभी मेरी उम्र ही क्या है ? वरिष्ठ नागरिक बने मात्र दो ही साल तो गुज़रे हैं । अस्सी साल पार के भी जब मुँह निकाल रहे हैं तो मैं क्या बुरा हूँ ।

हमने कहा- तोताराम, राजा और सेठ कभी बूढ़े नहीं होते । नाचने-गाने वाले तो खैर मेकप करते ही हैं । गरीब की ज़वानी बड़ी ज़ल्दी जाती है । बुढ़ापा बड़ी ज़ल्दी आता है । गरीबी का जीवन भी ज़्यादा लंबा नहीं होता । गरीब को ये नाटक शोभा नहीं देते । जब बड़े आदमी जवान दिखने का नाटक करते है तो उनके चारों तरफ़ बीसों आदमी होते हैं संभालने के लिए । यदि आज मैं नहीं पकड़ता तो दोनों स्टूलों का और तेरा कबाड़ा हो जाता ।

पर तोताराम कहाँ मानाने वाला था, बोला- चाहे जवानों की लाख गुहार मची हो पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार संन्यास आश्रम में पहुँच चुके हैं । उधर करुणानिधि, बाल ठाकरे आदि कौनसे जवान हैं ? पुराना चावल, पुरानी शराब, पुराना घी और पुरानी प्रेमिका- इनकी बात ही कुछ और है । हमने उसे ताऊ भग्गू का किस्सा याद दिलाया जो बुढापे में बच्चों के साथ कूदने का कम्पीटीशन करके पैर में स्थायी मोच खाकर आज नब्बे साल की उम्र में लंगड़ा कर चलने को मज़बूर हैं । पर उसने हमारी एक न सुनी । जिसके सिर पर मौत या इश्क सवार हो जाते हैं वह किसीकी नहीं सुनता । तोताराम ने कुरते की बाहें ऊँची करके अपने जैसे भी थे सिक्स पैक दिखाए । पर उसे पता नहीं कि दुनिया सिक्स पैक से आगे निकल कर सिक्सटी पैक तक पहुँच गयी है ।

हमने भी तोताराम को पैक करके चाय की प्याली उठायी और तोताराम के बिना ही चीयर्स करके पी गए ।

५ मार्च २००९

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May 10, 2009

असली गरीब


अंधेर नगरी के आजीवन अध्यक्ष महाराजा चौपटादित्य ने शुक्रवार की शाम को सत्य का गला घोंटकर, गले में पत्थर बाँधकर संसद के कुँए में पटक दिया । शनिवार की रात को अंधेर नगरी के सभी संभ्रांत नागरिक और कानून व्यवस्था वीक एंड मनाने में व्यस्त थे, तब महाराजा ने सत्य को ठिकाने लगाने का निश्चय किया । जैसे ही लाश को कंधे पर उठाये जनपथ पर पहुँचे तो लाश में अवस्थित बेताल ने कहा- राजन! तुम क्यों परेशान हो रहे हो ? जब तक सत्ता है मौज करो । इस अंधेर नगरी में कोई चूँ तक करनेवाला नहीं है । पर पता नहीं तुम को क्या जिद है की हर वीक एंड पर लाश को ठिकाने लगाने निकल पड़ते हो । खैर तुम मानोगे तो नहीं । सो श्रम भुलाने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ । यदि तुमने जानबूझ कर मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे ।

"एक सबसे बड़े और संवेदनशील लोकतंत्र में एक बहुत दयालु राजा राज करता था । वह ग़रीबों के दुःख से दुःखी हो जाया करता था । एक बार उसे बताया गया कि राज्य के गरीब और बेरोज़गार लोग बहुत दुःखी हैं । तो राजा ने तत्काल देश के उन लोगों को आरक्षण प्रदान कर दिया जिनको आजतक आरक्षण प्रदान नहीं किया गया था ।
आरक्षण प्रदान करने के बाद राजा ने सोचा कि पता तो करें कि ग़रीबों की स्थिति में कितना सुधर हुआ है ? पाया गया कि गरीब लोगों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है । और उस आरक्षण का लाभ उठा कर धनवान लोग और धनवान हो गए हैं ।"

हे राजन! बताओ कि आरक्षण के बाद भी ग़रीबों की हालत में सुधार क्यों नहीं हुआ ?

महाराज चौपटादित्य ने उत्तर दिया- हे बेताल! इसमें कहीं कोई गड़बड़ी और गलती नहीं है । जिसको धन की जितनी ज़्यादा चाह है वह उतना ही गरीब है । शास्त्रों में कहा गया है कि- 'जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान' ।
जो लोग रूखी सूखी खाकर राम का नाम लेकर सो जाते हैं और फिर अगले दिन रोटी-रोजी के जुगाड़ में निकल जाते हैं उनके पास संतोष का धन है । कहा भी है कि 'जिनको कछू न चाहिए सो ही सहंसाह' । अतः तुम जिनको गरीब
समझ रहे हो वे ही सच्चे धनी और सहंसाह हैं । हर समय हाय-धन, हाय-धन चिल्लानेवाले सेठ, नेता, अधिकारी, दलाल ही वास्तव में गरीब हैं । अतः आरक्षण का लाभ वास्तव में गरीब लोगों तक ही पहुँचा है । जो इस व्यवस्था में कमी देखते हैं वे अज्ञानी है ।

चौपटादित्य के उत्तर को सुनकर बेताल की खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गए ।

४ मार्च २००९

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