Feb 25, 2023

रंग-रूप : आवश्यकता-अनुरूप


एक कुण्डलिया छंद 

 रंग-रूप : आवश्यकता-अनुरूप   


(बीफ भक्षण पर मेघालय के अर्नेस्ट मावरी- मैं भाजपा में हूँ और बीफ खाता हूँ , १९ फरवरी २०२३ )

राजनीति  का रहा है  सदा  एक  सा  हाल 

कभी फेंकते कीच औ' मलते कभी गुलाल 

मलते  कभी गुलाल,  कभी  चिकनाई-पानी

कभी  उसी के  साथ मिले  ज्यों  चंदन पानी 

हरियाणा    में      कट्टरता    से  गौ  संरक्षण  

मेघालय  में   निः संकोच   बीफ   का  भक्षण  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

वरांडा विष्टा


वरांडा विष्टा 


आज कई दिनों बाद बरामदे में बैठना संभव हुआ । तोताराम ने आते ही आदेश दिया- यह क्या ? ठीक है, बरामदा है फिर भी निर्देशक मण्डल का हैडक्वार्टर है। कोई मज़ाक थोड़े है । दो -चार ढंग की कुर्सियाँ डालकर रखा कर । 

हमने कहा- क्यों कोई वी वी आई पी आ रहा है क्या ? 

बोला- वैसे तो आजकल गौरक्षक तक वी वी आई पी ही होता है । जो किसी भी खास वेशभूषा वाले को हड़काकर कर हफ्ता वसूली कर सकता है । अन्यथा भी यह बरामदा कोई साधारण स्थान थोड़े है । राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाले निर्देशकों का मुख्यालय है । और फिर आज तो इसके नए भवन  'वरांडा विष्टा' का 'शिलापूजन' होने वाला है । 

हमने कहा- क्या शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार जैसे सभी छोटे-मोटे काम हो चुके ? क्या कोई ढंग का काम नहीं बचा जो 'वरांडा विष्टा' का यह नाटक ले आया । 

बोला- क्या यह कोई नाटक है । देश की आस्था और अस्मिता के लिए अत्यंत आवश्यक काम है । देख नहीं रहा; काशी कॉरीडोर, राम जन्म भूमि कॉरीडोर, महाकाल लोक, विंध्यावासिनी कॉरीडोर और अब १३८ करोड़ के अंबरबाथ कॉरीडोर की परियोजना की घोषणा भी हो चुकी है । 

हमने कहा- इसके लिए तो सरकारों  के पास गैस और डीजल पेट्रोल की महंगाई बढ़ाकर कमाया लाखों करोड़ रुपया है। हम कहाँ से बजट लाएंगे ? और फिर किसे विस्थापित करके इस बरामदे का विस्तार करेंगे ?

बोला- इसीलिए तो कॉरीडोर न बनाकर 'विष्टा' बना रहे हैं । 

हमने कहा- विष्टा कौन सस्ता बनता है ? बीस हजार करोड़ का पड़ रहा है । यदि विलंब हो गया तो तीस-चालीस हजार का भी पड़ जाएगा । 

बोला- हम ज्यादा खर्च नहीं करेंगे । एक-दो सौ करोड़ में काम चला लेंगे । 

हमने कहा- इस सात गुना दस के बरामदे में क्या क्या बनाएगा ? एक साइकल का पार्किंग स्थल तो बनेगा नहीं। कॉरीडोर में थियेटर, जलपान गृह, प्रदर्शनी केंद्र, एम्फिथिएटर जाने क्या क्या होता है ? 

बोला- हम यहाँ विशेषरूप से प्रदर्शनी स्थल बनाएंगे । 

हमने पूछा- उसमें प्रदर्शन किस चीज का करेगा ? चाय के गिलास का, इन दो स्टूलों का ?

बोला- उसमें तेरे-मेरे परिवार के सभी सदस्यों की मूर्तियों लगाएंगे । 

हमने कहा- क्या यह परिवारवाद नहीं होगा ?

बोला- परिवारवाद कहाँ नहीं है ? सबका अपना अपना परिवारवाद है । किसी का बीस-तीस का तो किसी का लाखों का । किसी वंश-वृक्ष की दो-चार शाखाएं होती हैं तो किसी की हजारों ।  

हमने कहा- लेकिन इस सौ-दो सौ करोड़ की योजना के नाम से ईडी वाले सक्रिय हो गए तो क्या करेंगे ? 

बोला- अपन कोई डरते थोड़े हैं । देख ले , तनख्वाह और पेंशन के अलावा पास बुक में कुछ आया हो तो । 

हमने कहा- हो सकता है ईडी वालों से बच भी जाए लेकिन कोई आसाम पुलिस की तरह तुझ पवन खेड़ा को इस बरामदा रूपी प्लेन से नीचे घसीट तो सकता ही है । फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट से राहत ही  क्यों न मिल जाए । 

                        


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Feb 22, 2023

मुँहतोड़ जवाब

मुँहतोड़ जवाब 


पत्नी का भी अब अस्सीवाँ वर्ष चल रहा है। यदि राजनीति में होती तो किसी अवतारी जनसेवक के निष्कंटक वर्चस्व के लिए उसे एक तरफ कर दिया जाता । लेकिन वह हम, तोताराम और उसकी पत्नी के साथ-साथ स्वेच्छा से ही बरामदा संसद की स्थायी सदस्य है। आडवाणी जी की तरह उसके भी इस पद को कोई खतरा नहीं है । हालांकि आडवाणी जी की तरह वह अब सजग और आशावादी नहीं है। बस, किसी तरह हमारे चाय पर चर्चा के उपक्रम के इंफ्रा स्ट्रक्चर को संभाले हुए है । 

वैसे २०२० में एक बार लटपटा गई थी लेकिन साथ-संयोग शेष था सो लौट आई । अब विगत १२ फरवरी को फिर एक झटका लगा । जयपुर भर्ती करवाना पड़ा । भगवान ने फिर लाज रख ली । कल १८ फरवरी को देर रात डिस्चार्ज होकर लौटे । तोताराम को तत्काल खबर नहीं दी लेकिन सुबह तो खबर हो ही गई । 

आज हम बरामदे में नहीं बैठे । तोताराम अंदर ही आ गया । कई देर तक कुछ नहीं बोला । हमने ही मौन भंग किया- कुछ तो बोल । अब तो तेरी भाभी एक बार लौट ही आई ।लेकिन आज चाय हम बनाते हैं । 

बोला- चाय की कोई जरूरत नहीं। घर से पीकर आया हूँ । वैसे भी आज मूड ठीक नहीं है। हम यहाँ बैठे हैं और उधर देश के शत्रु सक्रिय हो रहे हैं । 

हमने कहा- तोताराम, इस देश को कोई खतरा नहीं है । यह देश महान हैं, विश्वगुरु है । यहाँ के वीर लाल आँखों वाले और ५६ इंची सीने वाले हैं । जिन्हे देखते ही अच्छे-अच्छों को दस्त लगने लग जाते हैं । हमारे वीर पुरुष नेता ही नहीं, नेत्रियाँ भी एक से एक वीरांगनाएं हैं । कभी रसोई वाले चाकू तो कभी जुबान वाले चाकू तेज किये हुए ही रखती हैं। और कुछ नहीं तो गालियों से ही शत्रुओं की हालत खराब कर देंगी ।

देश की जनता को जाग्रत और सक्रिय रखने के लिए ऐसे आह्वान किये ही जाते । जैसे हर चुनाव में हेमामलिनी शोले की 'बसंती' की इज्जत को खतरे में बताकर वोट ले ही जाती हैं । अभी कुछ  दिन पहले अदानी जी ने बताया था कि हिंडनबर्ग नामक किसी असुर ने  देश पर हमला कर दिया है । अब और क्या चक्कर पड़ गया ?

बोला- दो दिन पहले ही स्मृति ईरानी ने बताया है कि अमरीका का कोई एक बूढ़ा सेठ है । पता नहीं, क्या नाम है -कोई सोरॉस-फ़ोरोस । वह मोदी जी को निशाना बना कर भारत के लोकतंत्र को खत्म करना चाहता है । स्मृति जी ने आह्वान किया है कि हम सब भारतीयों को मिलकर उस बूढ़े को मुँहतोड़ जवाब देना है । 

हमने कहा- ईरानी स्मृति हो या विस्मृति, मोदी नरेंद्र, सुरेन्द्र या महेंद्र कोई भी हो, लोकतंत्र को कभी कोई खतरा नहीं होता । वैसे हमेशा खतरा बताया जरूर जाता है । जब 'क' को कुर्सी मिल जाती है तो 'ख' का और 'ख' को कुर्सी मिल जाती है तो 'क' का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है । जिसके पास पैसे होते हैं उसका भी लोकतंत्र कभी खतरे में नहीं पड़ता ।  वह चुने-चुनाए लोकतंत्र को आवश्यकतानुसार बाजार भाव से दो पैसे फालतू देकर लोकतंत्र खरीद लेता है । जब किसी को बीफ वाला होटल खोलना होता है या किसी को अपने चुनावी फंड के लिए हजारों करोड़ का बेनामी चन्दा लेना होता है तो कोई हमें न पूछता है, न जवाब देने को कहता है । 

बोला- फिर भी जब देश का मामला है तो हम इस प्रकार तटस्थ नहीं रह सकते ।  

हमने कहा- लेकिन यह लोकतान्त्रिक बात है । लोकतंत्र में बात का उत्तर बात से दिया जाता है । यह नहीं कि किसी ने तुलसीदास की समीक्षा कर दी तो उसकी जीभ काटने का फरमान जारी कर दिया जाए । या गाय  लेकर जा रहे  किसी खास तरह के पायजामे या दाढ़ी वाले को कोई स्वघोषित गौ सेवक मारकर कार में डालकर जला दे । 

हमारे लिए संकट के समय कौन आता है ? सब अपने स्वार्थ के लिए ४०० रुपए के सिलेंडर पर प्रदर्शन करते हैं और ११०० रुपए के सिलेंडर पर चुप रह जाते हैं । 

बोला- तो कोई बात नहीं । लोकतंत्र में कभी-कभी कुछ अवतारी नेताओं के विकल्प नहीं होते अन्यथा देश के तथाकथित शत्रुओं को सीधा करने के लिए तो विकल्प होते ही हैं । यदि तुझे 'मुँहतोड़ जवाब' पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं; तू हाथ तोड़,  कमर तोड़, घुटना तोड़, नाक तोड़ जैसे विकल्पों में से अपनी पसंद का विकल्प चुन सकता है । 

हमने कहा- 'तोड़' के साथ इस शब्द युग्म में  एक शब्द 'जोड़' भी आता है । हम 'तोड़' से पहले 'जोड़' को भी  आजमाना चाहते हैं । 

बोला- लेकिन हममें इतना धीरज नहीं है । कोई बात नहीं। चलूँ, सभी तुझ जैसे कायर नहीं हैं । यह वीर भूमि है । लोग धार लगा सब्जी वाला चाकू लेकर सड़क पर तैयार खड़े हैं । 




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Feb 4, 2023

बरामदे का नाम परिवर्तन


 बरामदे का नाम परिवर्तन       


आज तोताराम ने आते ही एक विचित्र घोषणा की- मास्टर, आज तेरे बरामदे का नाम परिवर्तन कर देते हैं । 

हमने कहा- हमने तुझसे ऐसा कोई कौल-करार नहीं किया जिसके पूरा न होने पर नाम बदल देने की शर्त रही हो । और यह कोई नाम थोड़े है । यह तो सहज, सरल जातिवाचक संज्ञा है । नाम तो उस व्यक्तिवाचक संज्ञा का बदला  जाता है जिसमें देशद्रोही, आतंकवादी और आततायी भाषा की बदबू आती हो  जैसे इलाहाबाद, फैजाबाद, मोरादाबाद, हैदराबाद, आदि ।मतलब देश कोई दुश्मन आबाद नहीं रहना चाहिए । रहें तो बस, जगह-जगह घृणा के बिन्दु और बहाने । यह बात अलग है कि इससे अकबर इलाहाबादी, इलाहाबादी अमरूद, हैदराबादी बिरियानी और मोरादाबादी पीतल के सामान की पहचान भले ही खत्म हो जाए । 

बोला- हम इतने फैनेटिक नहीं हैं । देखा नहीं, हमने तो संस्कृत नाम 'संसद' की जगह 'सेंट्रल विष्ठा' बनाया है । संस्कृत और संस्कृति के गढ़ काशी में 'काशी कॉरीडोर' बनाया है । 

हमने कहा- यदि बदलना ही है तो 'बरामद बैकुंठ' रख दे । 

बोला- वैसे अनुप्रास तो फिट बैठता है लेकिन कल ही पता चला है कि 'बरामदा' फारसी का शब्द है । अब जानते- बूझते तो मक्खी नहीं निगली जा सकती ना । 

हमने कहा- तो फिर काशी के साथ अनुप्रास के चक्कर में कॉरीडोर क्यों रखा ?

बोला- यह अनुप्रास का चक्कर नहीं है । धंधे का मामला है । अब हम धर्म को धंधे में बदलना चाहते हैं । 'कॉरीडोर' कहने से विदेशी पर्यटक अधिक सरलता से समझ सकेंगे कि यह केवल अज्ञात परलोक सुधारने का मामला ही नहीं बल्कि सांसारिक ऐश की भी सभी सामग्रियाँ उपलब्ध होंगी । सो आकर्षित होंगे । 

हमने कहा- जैसे कि साबरमती आश्रम को फाइव स्टार बनाने से और गांधीनगर रेलवे स्टेशन पर रूफ़ टॉप बार बनाने से धंधा चलेगा । क्योंकि इससे पर्यटकों को यह अनुभव करके कितना रोमांच होगा कि वे शराब के घोर विरोधी 'गांधी' के राज्य में जहां शराबबंदी है, वहाँ उसके आश्रम को देखते हुए दारू पी रहे हैं ।   

बोला- हम यहाँ बिना किसी कुंठा के मुक्त भाव से सबकी छिलाई करते हैं तो इसका नाम 'बरामद बैकुंठ' रख सकते हैं । 

हमने कहा- लेकिन फारसी 'बरामदे' का क्या होगा ?

बोला- लेकिन मुझे तत्काल बरामदे का कोई पर्यायवाची याद नहीं आ रहा है । 

हमने कहा- तत्सम तो नहीं लेकिन एक देशज शब्द जरूर है - 'ओसारा' । 

बोला- तो फिर ठीक है । जैसे मोदी जी ने इस अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में गुलामी के चिह्न 'मुगल गार्डन' का नाम बदलकर 'अमृत उद्यान' कर दिया वैसे तेरे बरामदे का नाम 'अमृत ओसारा' किए देते हैं । इस बहाने बरामदे का भी अमृत महोत्सव हो जाएगा । 

हमने कहा- तुझे पता होना चाहिए कि अंग्रेजों द्वारा रखे गए मुग़ल गार्डन का कहीं भी मुगलों के महिमामंडन से नहीं बल्कि यह गार्डन मुगलों के बगीचे बनाने कि शैली के आधार पर बना है जैसे शालीमार बाग, निशात बाग ।  लेकिन तोताराम, क्या इस 'अमृत ओसारा' नाम से ऐसा नहीं लगता कि हम किसी छप्पर वाली झुग्गी में बैठे हैं जिसमें एक तरफ भूसा पड़ा हुआ है और एक तरफ कोई गाय-भैंस बंधी हुई है । 

बोला- तो फिर मास्टर यदि तेरी आमिष आहार में रुचि है तो कुछ  'अमृत' परिवर्तित' व्यंजनों का आनंद भी लगे हाथ ले ही ले, जिनका आविष्कार लेखिका मृणाल पांडे ने किया है- 

-मुगलई दस्तर खान - अमृत भोज पट्टिका 
- मटन शोरबा -अजामृत रस
- मटन बिरियानी -अजओदनामृत 
- चिकन बिरियानी -कुक्कुटोदनामृत 
-क़बाब - अमृत अंगार धूम्र सिंचित पिंड 
- मुगलई रान- अमृत जंघा 

-रमेश जोशी 

 


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Feb 1, 2023

भारत पर हमला

भारत पर हमला  


आज तोताराम बड़ी अजीब धज में था । सिर पर सफेद पट्टी बांधे। एक हाथ में प्लास्टिक की कोई ३००-४०० मिलीलीटर की एक बोतल और दूसरे हाथ में एक छोटा-सा चाकू । आते ही उसने हमारे सिर पर लपेटा  हुआ काले रंग का मफ़लर उतार फेंका और बोला- यह सर्दी से डरकर कान ढंकने का समय नहीं है । सिर पर कफन बांध ले। देश पर मर मिटने की घड़ी आ  गई है ।  और तेरा सब्जी काटने का चाकू कहाँ है ? तू तैयार हो, तब तक मैं उस पर धार लगा देता हूँ । 

हमने कहा- कुछ दिनों पहले एक गोडसेवादी वीर साध्वी ने देशप्रेम का ऐसा ही आह्वान किया था । कहा था कि और कुछ नहीं तो सब्जी काटने का चाकू ही धार तेज करके रखो। पता नहीं, कब जरूरत पड़ जाए ।लेकिन इतना अंदाज नहीं था कि इतनी जल्दी कि वह मौका आ  जाएगा । बता, किस हिन्दुत्व विरोधी मोहल्ले की तरफ कूच करना है ?

बोला- अभी तो अंदर से नहीं, बाहर से खतरा पैदा हुआ है । 

हमने कहा- किससे ? चीन से ? उसको तो कुछ दिनों पहले ही लाल आँखें और ५६ इंच का सीना दिखाया था । अभी तक झूला झूलने नहीं आया । सुना है, उसे तभी से डायरिया हो गया है। शौचालय के चक्कर लगाने से ही फुरसत नहीं मिल रही है । 

बोला- चीन से नहीं ?

हमने पूछा- तो क्या फिर पाकिस्तान से ?

बोला- वह क्या खाकर हमला करेगा ? उसके लोग तो अपने राजस्थान की सीमा पर आटा मांगते घूम रहे हैं । अबकी बार तो खतरा सात समंदर पार से है । 

हमने पूछा- कौन है यह ?  अमरीका ? लेकिन अमरीका तो नहीं हो सकता । वह तो अपना दोस्त है। अपन  तो 'अबकी बार ट्रम्प सरकार' का नारा देकर उसे जिताने भी गए थे । 

बोला- अमरीका तो नहीं है लेकिन खबर का अमरीका से कुछ न कुछ लिंक तो जरूर लगता है । कोई हिडन बर्ग जैसा ही नाम है । 

हमने कहा- जब 'हिडन' ही है तो कहाँ ढूंढें ? क्या ऐसे ही कपड़ों से पहचानकर किसी को चाकू घोंप दें ?

बोला- शायद 'हिंडन' हो सकता है । 

हमने कहा- हिंडन है तो अपने दिल्ली, हरियाणा, यूपी के ही आसपास तो है । हिंडन नदी के इस या उस किनारे पर टहलता मिल जाएगा । 

बोला- इसने कोई रिपोर्ट दी है जिससे किसी घोटाले की संभावना लग रही है ।  

हमने कहा- तो फिर यह काम ई डी वगैरह का है । वैसे भी आजतक हजारों करोड़ के घपले करके लोग भाग गए और अब विदेशों में ऐश कर रहे हैं ।  

बोला- लेकिन यह केवल रुपए-पैसे का मामला ही नहीं है । बताया जा रहा है कि यह रिपोर्ट भारत, भारत की संस्थाओं और भारत की अखंडता पर हमला है । 

हमने कहा- किसी शेयर का घपला देश पर हमला नहीं हो सकता । यह हमला वैसा ही है जैसे बागेश्वर वाले बाबा अपने ढोंग की पोल खुलने पर अपने बचाव के लिए इसे 'सनातन धर्म' पर हमला बता रहा है । न ऐसे बाबा सनातन धर्म हैं और न ही घपले वाले लाला 'भारत' . 

बोल- तो कोई बात नहीं ।घोटालों घपलों के ऐसे संकट सहने की तो इस देश को आदत हो चुकी है । पहले भी तो  कोई नीरव नीरवतापूर्वक खिसक लिए थे और कोई चौकसे समस्त चौकसियों के बावजूद चंपत हो गए थे । कोई बात नहीं, यह एक और सही । 

हमने कहा- लेकिन इसने तो स्टेट बैंक से बहुत सा कर्जा ले रखा है । और अपना तो जो कुछ है वह स्टेट बैंक में ही है । सरकार इसका भी एन पी ए कर देगी तो हम भी 'महाराष्ट्र पंजाब बैंक' के बुजुर्ग ग्राहकों की तरह लाइन में आ जाएंगे । 

बोला- एन पी ए क्या होता है ?

हमने कहा- भूल गया ? हाई स्कूल में नहीं पढ़ा था ? डूबत खाते । बंदर बाँट नीतिनिर्धारकों और लाभार्थियों के बीच और भुगतें हम जैसे गरीब । 

बोला- कमाल है, हम तो अगर फोन, बिजली, बीमा या पानी का बिल एक दिन भी लेट जमा कराएं तो दस-बीस रुपए का जुर्माना और इनका लाखों करोड़ डूबत खाते ! मास्टर, क्यों न हम भी कोई ऐसा ही एन पी ए वाला कर्जा ले लें और हो जाएँ चंपत । 

हमने कहा- यह सुविधा केवल कुछ सच्चे देशभक्त मित्रों के लिए उपलब्ध है, सबके लिए नहीं । 




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