Nov 30, 2019

कल से चाय बंद



कल से चाय बंद 

आज तोताराम बैठा नहीं |बरामदे के नीचे खड़े-खड़े ही बोला- आज मेरे लिए चाय मत बनवाना |

तभी पत्नी चाय ले आई |

बोली- क्या बात है लाला, मास्टर जी से झगड़ा हो गया या मैना ने कुछ कह दिया ?

बोला- मैं इन दोनों की परवाह नहीं करता | न इनको और, न मुझे ठौर | लेकिन आज विकट मामला फँस गया है |

अब तो हमारे भी कान खड़े हो गए |

पूछा- क्या चक्कर है ? साफ़-साफ़ बता |


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बोलारीवा (मध्य प्रदेश ) के ज्ञान नायक तिवारी का नाम पुलिस ने अपने 'गुंडा रजिस्‍टर' में दर्ज कर रखा है | वे परेशान हैं कि उनका नाम इसमें क्‍यों दर्ज है ?  इसका कारण जानने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत याचिका लगाई तो दो साल बाद पुलिस ने जवाब में कहा- चूंकि वे चाय की दुकान पर बैठते हैं इसलिए उनका नाम 'गुंडा रजिस्टर' में दर्ज किया गया है |यदि किसी को पता चल गया तो पता नहीं, पुलिस मेरे साथ सलूक करे |मंत्रियों की तरह बयान भी नहीं बदल सकता | लिखित सबूत है |तेरे आलेखों में मेरा तेरे यहाँ रोज चाय पीने और चर्चा करने का ज़िक्र है |

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हमने कहा- यह भी कोई बात है ? भारत में लोकतंत्र है |इस तरह से किसी को गुंडा नहीं बताया जा सकता |जब एक चाय बेचने वाला व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है,वोट के लिए  'चाय पर चर्चा' कर सकता है, और चुनाव जीत भी सकता है और भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है तो उससे चाय पीने वाले व्यक्ति को तो बिना चुनाव के ही कम से कम सरपंच तो बना ही दिया जाना चाहिए | जब कि ये उल्टा कर रहे हैं |लेकिन पुलिस भी पूरी तरह से गलत नहीं हो सकती |चाणक्य का भी कहना है कि राजा को शराबखानों, वेश्याओं, मेलों, उत्सवों में अपने जासूसों को नियुक्त करना चाहिए क्योंकि इन स्थानों पर अपराधियों और षड्यंत्रकारियों के पाए जाने की संभावना रहती है |जो बिना बात अपना घर छोड़कर कहीं अड्डा जमता है तो भगवद्भक्ति तो करेगा नहीं |फालतू बातें ही करेगा |हमें तेरा चिंतित होना वाजिब लगता है |क्या पता मामला क्या टर्न ले ले |



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बोला- तो फिर मैं अखबार में एक सूचना छपवा देता हूँ कि मैंने कभी मास्टर के बरामदे में चाय नहीं पी |यदि चाय पी भी तो बैठकबाजी नहीं की |यदि बैठकबाजी की भी तो राजनैतिक चर्चा नहीं की | यदि राजनैतिक चर्चा की भी तो सरकार के विरुद्ध कुछ भी नहीं कहा |यदि कहा भी तो मेरा उद्देश्य किसी के दिन ठेस पहुँचाना नहीं था |फिर भी यदि ठेस पहुँची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ |भविष्य में यदि बरामदे में बैठा और चाय पर चर्चा करता पाया जाऊँ तो मुझे वही सजा दी जा सकती है जो एक देशद्रोही को दी जाती है |

हमने कहा- हम तो तुझे वैसे ही डरा रहे थे |अभी देश में ऐसी डिक्टेटरशिप नहीं है कि हमारे यहाँ चाय पीने पर ही तुझे गुंडा घोषित कर दिया जाए | कुछ हो भी जाए तो एक वाक्य बोल देना- 'ये नियम देश का सत्यानाश करने वाली कांग्रेस के समय में बनाए गए हैं' | फिर देखना कैसे सौ गुनाह माफ़ हो जाते हैं |


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Nov 27, 2019

लम्पट लोकतंत्र की अप्राकृतिक आपदाएँ

लम्पट लोकतंत्र की अप्राकृतिक आपदाएँ         

हमने जैसे ही यह समाचार पढ़ा- चेन्नई में एक २४ वर्षीय युवती अपने ऑफिस से स्कूटी पर घर जा रही थी |संयोग ऐसा हुआ कि एआईएडीएमके का एक अवैध होर्डिंग उसकी स्कूटी पर आ गिरा |उसका संतुलन बिगड़ गया और पीछे से आ रहे पानी के एक टेंकर ने उसे कुचल दिया | 




Image result for चेन्नई में होर्डिंग गिरने से युवती की मौत 
हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे रेलवे के पास एक विज्ञापन होर्डिंग अचानक गिर गया जिससे 4 लोगों की मौत हो गई और 9 लोग बुरी तरह घायल हो गए|  



ऐसे ही अनेक हादसे होते रहते हैं |दोनों हादसे ही व्यापार से जुड़े हैं एक राजनीति मतलब सेवा का व्यापार और दूसरा वस्तुओं का व्यापार |दोनों में ही झूठ बोलकर छवि बनाई जाती है |बेचारी जनता की का गलती ?

इस बारे सोच रहे थे और कुढ़ रहे थे कि तोताराम टपका जैसे हरियाणा का राजनीति में अचानक गोपाल कांडा के स्थान पर दुष्यंत चौटाला टपक पड़े |

हमने कहा- तोताराम, जीवन में और लोकतंत्र में वैसे ही बहुत दुःख हैं ऊपर से ये होर्डिंग |आदमी क्या करे ? घर से नहीं निकले ? अब बोलो और कुछ नहीं तो सत्ताधारी दल आल इण्डिया अन्ना डी.एम.के. के नेता जी का होर्डिंग ही बेचारी युवती के लिए जानलेवा साबित हो गया |

बोला- इस बारे में किसी प्रकार की चिंता या दुःख करने की ज़रूरत नहीं है | उस युवती को चाहिए था कि वह नेताओं ही नहीं नेताओं के होर्डिंग तक से बचकर चले |प्राकृतिक आपदाएं हैं किसी पर भी आ सकती हैं |मान ले कोई कहीं जा रहा है और आकाश से उस पर बिजली गिर पड़े तो तू किसे दोष देगा ? उत्तराखंड में जब-तब बादल फट पड़ता है |गाँव-गाँव के गाँव बह जाते हैं |तो किसकी गलती ? अपने-अपने कर्मों का फल |अमरीका तक में तूफान आ जाते हैं |इन्हें कौन रोक सकता है ?

हमने कहा- लेकिन यह होर्डिंग गिरना क्या कोई प्राकृतिक आपदा है ? यह तो होर्डिंग के गिरने से मरने वाले के कर्मों का फल नहीं बल्कि जनता के पैसों से जगह-जगह होर्डिंग लगवाने वाले यश-लोभी नेताओं का कुकर्म है |

बोला- होर्डिंग लगवाना भी उतना ही ज़रूरी है जितना काम करना |बल्कि मैं तो कहूँगा कि काम भले ही मत करो लेकिन अखबारों, रेडियो, टीवी में प्रचार ज़रूर करो, जगह-जगह होर्डिंग ज़रूर लगवाओ |कल्पना कर यदि हर पेट्रोल पम्प पर मोदी जी के होर्डिंग नहीं लगे हुए होते तो तुझे कैसे पता चलता कि चार करोड़ लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिए गए हैं, यदि टी.वी. रेडियों में हर दो मिनट बाद अमिताभ बच्चन और शौचा सिंह नहीं आते तो तुझे कैसे पता चलता कि घर में शौचालय होना चाहिए या दीर्घ शंका का समाधान करते हुए शौचालय का दरवाज़ा बंद करना चाहिए |मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने से लोग या तो शौच करते ही नहीं थे या फिर जहां मन चाहा बीच सड़क पर बैठ जाते पायजामा उठाकर |

हमने कहा- जब देश आज़ाद हुआ था तो चुनाव में पूरे गाँव में कोई एक-दो पोस्टर चिपकवाए जाते थे- कांग्रेस को वोट दो और दो बैलों की जोड़ी का निशान, बस | आजकल तो गली का कोई छुटभैय्या नेता भी यदि अखबार में दिवाली की बधाई का  चार गुणा चार सेंटीमीटर का विज्ञापन छपवाएगा तो उसमें भी प्रधान मंत्री से शुरू करके गाँव के पञ्च तक पहुँच जाएगा |हो सकता है कल को कोई भरे पेट वाला भ्रष्टाचारी समय पर सूरज निकालने पर मोदी जी को बधाई देता हुआ पचास गुना पचास फुट का होर्डिंग बीच सड़क पर लगा देगा |चूँकि होर्डिंग मोदी जी के फोटो के साथ है तो फिर कौन बोल सकता है ? और उस होर्डिंग की वैधता पर प्रश्न उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |किसी नेता का विजय-जुलूस भले ही सारे शहर को कैद करके रख दे लेकिन कोई कुछ नहीं बोल सकता |इसी बात की खैर मनानी चाहिए कि कोई लोकतंत्र का रखवाला, विकास का मतवाला मस्ती और गर्व से अभिभूत होकर दस-बीस लोगों की टांगें न तोड़ दे |दस-बीस रेहड़ियाँ न लूट ले |

ये प्राकृतिक आपदाएं नहीं हैं ये तो लम्पट लोकतंत्र अप्राकृतिक आपदाएँ हैं |






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Nov 23, 2019

गाँधी-भक्तों के प्रकार



गाँधी-भक्तों के प्रकार   

आज सवेरे तोताराम नहीं आया |हो सकता है चाय से बड़ा कोई और कार्यक्रम आ पड़ा हो | वैसे आजकल चाय से बड़ा और महत्वपूर्ण कार्यक्रम देश में है तो नहीं फिर भी....|

मोदी जी के जल-संरक्षण कार्यक्रम के बिना भी हमारी गली में जल या तो नालियों में पूरी तरह संरक्षित और सुरक्षित है या फिर कोई मात्र छह इंच की गहराई पर डाली गई सप्लाई लाइन के बार-बार टूटते रहने से सड़क पर प्रवाहित होता रहता है |आज भी घर के सामने एक पाइप टूट गया |चूँकि गाँधी जयंती है |सब ज़रूरी काम बंद |बस उत्सव |
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 तो देश अपने-अपने हिसाब से गाँधीमय हो रहा है- गाँधी के पुराने भक्त 'महाश्रमदान' का आयोजन कर रहे हैं तो नए भक्त चुनावी गौशाला के लिए चंदा जुटाने हेतु गाँधी को 'संकल्प-यात्रा' के बहाने  गौपाष्टमी की गाय की तरह घुमा रहे हैं | हम गाँधी के भक्त नहीं हैं अनुयायी हैं सो जितना बन पड़ता है कार्य रूप में कर लेते हैं जिनमें प्रमुख है- सादगी |इससे दो फायदे हैं एक तो पैर चादर से बाहर नहीं निकलते |निकालें भी किसके दम पर |हम कौन नीरव मोदी हैं जो हमें कोई बैंक  वापिस न करने वाला ग्यारह हजार करोड़ी ऋण दे देगा |दूसरा फायदा यह कि गाँधी के बहाने से गरीबी को गरिमामय बनाने में मदद मिल जाती है जैसे मोदी जी ने विकलांगों को एक ही झटके में दिव्य बना दिया |अंग-अंग दिव्य- दिव्यांग |

हालत पटना जैसी नहीं थी फिर भी हम बरामदे में बैठे 'प्रलय-प्रवाह' तो नहीं लेकिन टूटी हुई पाइप से बुडबुड कर निकलते ऊर्ध्व मुखी जल को निहार रहे थे कि कोई दस बजे तोताराम प्रकट हुआ |झकाझक सफ़ेद प्रेस किया हुआ कुरता-पायजामा और बगल में कपड़े का एक थैला |

हमने पूछा- कहाँ से पधार रहे हैं महाशय ?

बोला- आज के दिन और कहाँ से पधार सकते हैं ? राष्ट्रपिता के कार्यक्रम से पधार रहे हैं ?

हमने पूछा- कौनसे राष्ट्रपिता ?

बोला- राष्ट्रपिता भी किसी देश में दो-चार होते हैं क्या ?अमेरिका में वाशिंगटन, रूस में लेनिन, चीन में माओत्सेतुंग, वियतनाम में हो ची मिह्न, भारत में महात्मा गाँधी |

हमने कहा- पहले तो हम भी यही समझते थे लेकिन अब ज़माना बदल गया है |पहले राष्ट्रपिता को सुभाष जैसे महापुरुष मनोनीत करते थे लेकिन अब यह अधिकार ट्रंप ने ले लिया है | क्या बताएँ, दुनिया के सबसे ताक़तवर देश हैं जो चाहें करें |

बोला- मैं तो महात्मा गाँधी वाले कार्यक्रम में गया था |

हमने कहा- उसमें भी गाँधी दो हैं एक तो वे जो सीकर में महाश्रमदान का आयोजन कर रहे हैं और दूसरे वे जो मजबूरी में गाँधी को बाँस पर टांगकर पदयात्रा कर रहे हैं |

बोला- मैं तो श्रमदान वाले कार्यक्रम में गया था |

हमने कहा- श्रमदान करके आ रहा है और तो कपड़ों पर एक भी सलवट और , कपड़ों पर मिट्टी का एक भी दाग क्यों नहीं है ? न ही पसीने की कोई गंध |यह कैसा श्रमदान किया ?

बोला- आजकाल ऐसा ही श्रमदान होता है जैसे कि पिछले पाँच सालों से स्वच्छ-भारत में हो रहा है |

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'संकल्प यात्रा' हो या' सन्देश यात्रा' दोनों एक ही नाटक के दो दृश्य हैं |'संकल्प' मतलब किसी भी हालत में कुर्सी पकड़े रखना;  'सन्देश' यह कि वोट नहीं दिया तो देख लेना.....|  

हमने कहा- फिर भी किसी भीड़ में शामिल होने से पहले सेवक की लेटेस्ट पार्टी- पोजीशन को जान लेना चाहिए |क्या पता, तू जाए किसी एक पार्टी का समझकर और तब तक वह जनसेवक टिकट न मिलने पर किसी दूसरी पार्टी में चला गया हो |

बोला- है तो बड़ा चक्कर |फिर भी कोई मोटामोटी पहचान यदि तुझे समझ में आती हो तो बता |

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हमने कहा- वैसे तो आजकल सेवक भी फैशनेबल हो गए हैं |सबको अपने ब्यूटीपार्लर में सेट करवाए हुए बालों की सेटिंग बिगड़ने का डर लगता है इसलिए टोपी नहीं पहनते, दूसरों को ही मूंडकर अपनी टोपी पहनाने के चक्कर में रहते हैं |फिर भी एक मोटी-सी पहचान यह हो सकती है कि जो दो अक्तूबर को सफ़ेद टोपी पहनते हैं वे देश की अब तक की सभी समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार पार्टी के हैं और जो इसके दस-पाँच दिन बाद काली टोपी पहनते हैं वे देशभक्त और दिन दूना और रात चौगुना विकास करने वाले हैं |

और इन दोनों कार्यक्रमों के अलावा देश में गाँधी को लेकर एक और कार्यक्रम चल रहा है जो इन दोनों से भी उच्च स्तर का है |

बोला- वह क्या कार्यक्रम है और उसे कौन चलाते हैं ?

हमने कहा- उनके प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं का हरावल दस्ता भी मौके की तलाश में दिल्ली में ही जमा हुआ है |वे सडकों पर नहीं निकलते |वे अपने कार्यालय में ही गाँधी के पुतले को गोली मारने की तांत्रिक क्रिया करते हैं |

बोला- इन्हें कैसे पहचानेंगे ?

हमने कहा- ये गाँधी को मुस्लिमपरस्त, देश का विभाजन करवाने वाला और वध के योग्य मानते हैं | इस २ अक्तूबर से भाजपा की' संकल्प यात्रा' और कांग्रेस की 'सन्देश यात्रा' की तरह वे भी  'गाँधी शवयात्रा' निकाल रहे हैं | यदि तेरा कोई राष्ट्रवादी वाट्सऐप ग्रुप हो तो उसमें  'गोडसे अमर रहे' का मेसेज भी वाइरल हो रहा होगा |यदि देश-प्रेम को सन्निपात तक पहुँचाना है तो उसे देख लिया कर |

बोला- ऐसी घृणा और हिंसा को आदर्श मानने वाले इसी देश में संभव है |

हमने पूछा- कैसे ?

बोला- आगे की कथा चाय के बाद |


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Nov 18, 2019

तोताराम का राम

तोताराम का राम 
जब अयोध्या वाले मामले का फैसला आया तो भोपाल में थे, 04 नवंबर से 10 नवंबर 2019 तक आयोजित ‘विश्व-रंग’ कार्यक्रम में, और वॉट्सऐप के विद्वान निरंतर बिना पूछे ही रनिंग कॉमेंट्री सुना रहे थे। यह बात और है कि जहां कुछ लोग दुनिया को एक ही रंग में रंगना चाहते हैं वहां कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सारी वर्जनाओं और कुंठाओं को लांघकर दुनिया के विविध रंगों को संजोना चाहते हैं। ‘विश्व-रंग’ ऐसा ही एक आयोजन था। हमें तो इस फैसले की तारीख का भी ध्यान नहीं था क्योंकि हम राम से तो जुड़े हैं लेकिन राम और राम-मंदिर की राजनीति से जुड़े हुए कभी नहीं रहे।
सुबह जल्दी उठ जाने की आदत है इसलिए अखबार वाले को भोपाल के पलाश रेसिडेंसी के गेट पर ही, जहां हमें ठहराया गया था, पकड़ लिया। वैसे फैसले का हमें पहले से ही पता था। सभी जानते हैं कि नेता का धर्म केवल कुर्सी होता है, कुछ भी करके बस, कुर्सी मिलनी चाहिए। किसी भी चतुर आदमी का राम से बिलकुल भी संबंध नहीं होता क्योंकि राम का धर्म बहुत कठिन और कष्टकारक होता है-
बहुत कठिन है धर्म राम का
बन-बन पड़े भटकना, भगतो।
अखबार देखा, पूरा फ्रंट पेज राममय। हमारा तो पेट फूलने लगा। क्या करें तोताराम सात सौ किलोमीटर दूर। सत्ता में होते तो मोदी जी की तरह टेलिकॉन्फ्रेंस के द्वारा तोताराम से आमने-सामने बात कर लेते। फोन में भी इतना बैलंस नहीं कि दिल खोलकर बात की जा सके।
 जयपुर-सीकर वाली बस से उतरकर सीधे तोताराम के घर पहुंचे। तोताराम घर के सामने ही मिल गया, बोला- मैं तो तेरे यहां आ रहा था। खैर, कोई बात नहीं। तोताराम गुनगुना पानी ले आया। मुंह धोया तब तक तोताराम की पत्नी मैना चाय ले आई।
हमने कहा- तोताराम, हमने भोपाल में ‘नवभारत’ में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले के बारे में कई लोगों के स्टेटमेंट पढ़े लेकिन तेरा स्टेटमेंट कहीं नहीं दिखा। तेरा पिछले साठ वर्षों से रामचरित मानस का लगातार ‘मास-पारायण’ करना व्यर्थ गया।
बोला- मैं तो राम को उनकी मानवता और मर्यादा के कारण चाहता हूं। मेरा मंदिर की राजनीति के क्या लेना-देना? वैसे भी मेरा स्टेटमेंट आदिकालीन है जबकि आजकल कई तरह के लच्छेदार, कलात्मक और दबावी स्टेटमेंट बाज़ार में आ रहे हैं। हम जैसों के स्टेटमेंट को कौन पूछता है? नोटबंदी के दौरान जो लोग मारे गए उनकी कौन सुनता है? मीडियावाले तो मोदी जी और जेटली जी से पूछते हैं कि उनके इस क्रांतिकारी कदम से कितने आतंकवादियों की कमर टूट गई।
हमने कहा- तो तेरे कहने का मतलब यह है कि तू ही राम का सच्चा भक्त है। मोदी जी, आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी राम के आदर्शों के अनुयायी नहीं हैं? राम के भक्त नहीं हैं?
बोला- मुझे क्या पता। इस आडम्बरी समय में कौन सच बोलता है? अपने मन का पाप वे जानें। वैसे आडवाणी जी ने तो राम-रथ-यात्रा के समय स्पष्ट बता दिया था कि उनके लिए राम मंदिर कैसा मुद्दा है। तभी तो राम के नाम पर 2 से 282 और अब 333 हो गए। यदि राजीव गांधी हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करते हुए अपने आप ही राम मंदिर का ताला न खुलवाते तो आडवाणी जी को राम कहां याद आ रहे थे?
जो किसी मिशन के लिए पूर्णतः समर्पित होता है वह न तो किसी मौके का इंतज़ार करता है और न ही प्राणों की परवाह। पंजाबी सूबे के लिए दर्शन सिंह फेरूमन और तेलंगाना के लिए रामुलू ने भूख हड़ताल करके प्राण दे दिए। लेकिन आडवाणी जी और उनकी टीम वाले साफ-साफ ज़िम्मेदारी लेने से कतराते हैं क्योंकि उनकी आस्था सच्चे भक्त वाली नहीं है। ये सब दूध पीने वाले मजनू हैं। लैला के लिए खून देने वाला कोई नहीं है।
हमने कहा- तो क्या इसी को तेरा स्टेटमेंट मान लें?
बोला- मान ले। मुझे कौन-सा कहीं का राज्यपाल बनना है या विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी खर्चे पर सैर-सपाटा करना है। जो झूठ बोलते हैं उन्हें फ़िक्र होनी चाहिए कि ऊपर जाकर रामजी को क्या जवाब देंगे? जो राम मंदिर के नाम का चंदा और राजनीति करते हैं, जो मंदिर के आसपास दुकान आवंटित करवाना चाहते हैं उन्हें राम मंदिर से मतलब है। हमारा राम तो हमारे घट में है-
मोरे पिया मोरे घट में बसत है, ना कहुं आती जाती।


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Nov 14, 2019

ग्लोबल गोलकीपर



ग्लोबल गोलकीपर  

आज तोताराम ने आते ही फुलझड़ी छोड़ी- मास्टर, आज तो कुछ हो जाए |

हमने पूछा- क्या ? क्या अमिताभ को दादा साहब फाल्के अवार्ड मिलने पर कुछ मीठा हो जाए ? 

बोला- नहीं, ये सब तो सामान्य बातें हैं | रुटीन है | चाहे फाल्के अवार्ड हो या अकादमी अवार्ड या फिल्मफेयर का बेस्ट फिल्म, एक्टर,ऐक्ट्रेस आदि; किसी न किसी को तो दिए ही जाएँगे |  मैं तो मोदी जी मिले 'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' की बात कर रहा हूँ |

हमने कहा- 'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' नहीं, 'ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड' है |

बोला- जब देश के १३० करोड़ लोगों को मालूम है तो मुझे नहीं मालूम होगा लेकिन जब बात मोदी जी है तो उनकी वक्तृत्व शैली में अनुप्रास से थोड़ा बहुत खेलने का अधिकार तो मेरा भी बनता ही है |इसीलिए ग्लोबल के साथ गौरव का तड़का लगा दिया |

हमने कहा- ठीक है |जब भारत में माइक्रोसोफ्ट का इतना धंधा फैला हुआ है तो इतना तो बनता ही है लेकिन मोदी जी को तो विकास से ही फुर्सत नहीं है |वे यह हॉकी या फ़ुटबाल कब से खेलने लगे ?

बोला- तुम्हारा कहना ठीक है | मोदी जी के सृष्टि-सेवार्थ गृह-त्याग, मगरमच्छ-पालन आदि के किस्से तो सुने हैं लेकिन उनके फुटबाल या हॉकी खेलने के बारे में कभी कुछ नहीं सुना |लेकिन राजनीति का खेलों से घनिष्ठ संबंध है, तभी तो हर नेता किसी न किसी खेल संघ का अध्यक्ष बनाना चाहता है |शरद पवार, लालू, ललित मोदी, शशि थरूर, पी.सी.जोशी, अनुराग ठाकुर आदि कौन नहीं है जो क्रिकेट से जुड़ा नहीं है |जिसको क्रिकेट जैसे धनवान खेल में घुसने का मौका नहीं मिला वह फ़ुटबाल, कबड्डी, खो-खो में ही घुस गया |हमारे जिले के एक भूतपूर्व मंत्री हैं जिनकी हालत कर्णाटक वाले कुमारस्वामी जैसी हो गई है फिर भी जिला ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष बने हुए हैं |अब यह तो वे ही बता सकते हैं कि ओलम्पिक के किस खेल में, भारत से संबंधित उनकी क्या भूमिका रहती है ? 
क्रिकेट के ग्लेमर से तो मोदी जी भी नहीं बच सके |वे भी तो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं |उनके बाद अमित जी अध्यक्ष रहे हैं |आज भी अपने राजस्थान में क्रिकेट का कोहराम मचा ही हुआ है |

हमने कहा- लेकिन जिस खेल में मोदी जी को गोलकीपर का इनाम मिला है वह कौन-सा खेल है |

Prime Minister Narendra Modi receives the ‘Global Goalkeeper’ award from Bill Gates, in New York on Wednesday. PTI

बोला- सभी खेलों में गोल होता है |सभी विपक्षी के गोल में बॉल घुसाकर गड़बड़ करना चाहते हैं |फ़ुटबाल, हॉकी की तरह सभी खेलों में किसी न किसी रूप में गोल होते हैं और गोलकीपर का काम उसमें दूसरे की घुसपैठ को रोकना है |जैसे बास्केटबॉल में अपनी बास्केट में बॉल न जाने देना, क्रिकेट में अपने विकेट पर बॉलर की बॉल को टकराने से रोकना, टेनिस और वॉलीबॉल में अपनी तरफ गेंद न गिरने देना |क्रिकेट के  बैट्समैन और टेनिस के खिलाड़ी की सारी ज़िम्मेदारी और श्रेय खुद का होता है लेकिन फ़ुटबाल और हॉकी में गोलकीपर को सारी टीम की कमजोरी को झेलना पड़ता है |  

हमने कहा- सो तो ठीक है लेकिन अपने बचपन में तो जिसका फुटबाल होता था वह फारवर्ड खेलता था और जिसका कुछ भी नहीं होता था वह दलित होता था |उसे गोलकीपर बनाया जाता था | ग्लोकीपर के अलावा सभी को बॉल को किक मारने का मौका मिलता था |मोदी जी देश-दुनिया के इतने बड़े और शक्तिशाली नेता हैं और उन्हें इस बिल गेट्स ने गोलकीपर का ही दर्ज़ा दिया ?

बोला- हालाँकि सब भागते-दौड़ते दिखाई देते हैं | गोलकीपर बेचारा एक जगह पर खड़ा बोर होता रहा था |और उसके गोल पोस्ट के आसपास खड़े लोग उसे छेड़ते रहते थे |लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि गोलकीपर का रोल ही सबसे महत्वपूर्ण होता है |एशियन गेम्स १९८२ में भारत और पाकिस्तान का हॉकी का फाइनल याद कर |किस बुरी तरह हारा था भारत | जिस तरह मीर रंजन नेगी खेल रहा था उससे लोगों ने उस पर मैच फिक्सिंग का इलज़ाम लगाया |सच क्या है पता नहीं, वह जाने या पाकिस्तान जाने या फिर ईश्वर क्योंकि उस समय पता नहीं नेगी की क्या मनःस्थिति हो गई होगी |उस भावभूमि पर फिल्म भी बनी थी- चक दे इण्डिया |

यह भी सच है कि सभी आक्रमण गोल कीपर को ही उसे ही झेलने पड़ते हैं बाकी खिलाडी तो वैसे ही अपनी-अपनी जगह पर उछलते रहते हैं |जैसे कि मज़े सभी मंत्री ले रहे हैं लेकिन सभी कामों की ज़वाबदेही मोदी जी की |इसलिए मेरे हिसाब से तो  'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' सम्मान का अधिकारी मोदी जी के अतिरिक्त कोई और हो ही नहीं सकता | 
वैसे कोई नाम तो देना ही पड़ता है |जहां तक खेलने की बात है तो पूरे ग्राउंड में वे ही दिखाई देते हैं |गोलकीपर से गोल करने वाले तक वे ही हैं |वे ही बालिंग करते हैं और खुद ही उस पर छक्का लगा देते हैं और फिर मन हो तो खुद बाउंड्री पर जाकर कैच भी ले सकते हैं |जैसे महाभारत में जीत का श्रेय लेने की बहस चल रही थी तब श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि बर्बरीक ने युद्ध देखा है, उसी से पूछ लिया जाए |बर्बरीक ने कहा- मुझे तो सब जगह कृष्ण का सुदर्शन ही दिखाई दिया |मेरे अनुसार इस युद्ध के विजेट कृष्ण ही हैं |तो समझ ले वे गोलकीपर ही नहीं सब कुछ वे ही हैं |ग्राउंड, बॉल, गोल, खेल-खिलाड़ी,हार-जीत, पुरस्कार सब कुछ |  

हमने पूछा- क्या तुझे पता चला कि इस पुरस्कार में नक़द नारायण कितने मिले ? हमने  तो कई अखबारों में, नेट पर सब जगह छान मारा कहीं कुछ पता नहीं चला
 
बोला- पुरस्कार एक सम्मान है |सम्मान बड़ी बात होती है, धन का क्या ? मुकेश अम्बानी की एक दिन की कमाई नोबल पुरस्कार में मिलने वाली राशि से अधिक होती है |दुनिया में और भी जाने कितने धनपति भरे पड़े हैं लेकिन नोबल तो नोबल ही होता है |

हमने कहा- लेकिन यह पुरस्कार लेते समय मोदी जी ने कई बार १३० करोड़ का ज़िक्र किया |हो सकता है इस पुरस्कार की राशि १३० करोड़ रुपए हो | उन्होंने यह सम्मान  देश के १३० करोड़ लोगों को समर्पित कर दिया | इस हिसाब से अपने हिस्से में क्या आएगा ?

'फिर वही लेनदेन की बात |ले अपने हिस्से का एक रुपया और छोड़ मोदी जी का पीछा', कहते हुए तोताराम ने हमारे हाथ पर एक टॉफ़ी रख दी |

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Nov 11, 2019

भारत का सच्चा हमदर्द



 भारत का सच्चा हमदर्द  


आज तोताराम ने हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हुए बताया- मास्टर, इस दुनिया में केवल अमरीका ही हमारा सच्चा  हमदर्द है |

हमने कहा- तोताराम, जहाँ तक हमें पिछले सत्तर साल का इतिहास याद है उसके हिसाब से तो अमरीका ने भारत के रास्ते में काँटे ही बिछाए हैं |देश आज़ाद होते ही अमरीका ने कश्मीर के मामले में या तो पाकिस्तान का साथ दिया या फिर कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनवाकर वहाँ अपने अड्डे बनाने की कूटनीति ही खेली है |इसके बाद जब १९६१ में नेहरू जी ने गोवा को स्वतंत्र करवाया तो वहाँ पर अपने पाँच-दस नागरिकों के बहाने अमरीका ने पुर्तगाल की मदद के लिए अपना युद्धपोत रवाना कर दिया था |इसके बाद जब भारत ने बांग्लादेश को स्वतंत्र करवाया तो अपना सातवाँ बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया |यह तो रूस ने भी अपना बेड़ा भेजने की धमकी दी तो बात बनी |जब भारत ने परमाणु परिक्षण किया तो अमरीका ने भारत पर प्रतिबन्ध लगा दिए |अब भी जब हम रूस से रक्षा प्रणाली की डील कर रहे हैं तो अमरीका हमें प्रतिबंधों की धमकी भिजवा रहा है |क्या हमदर्दों के ये ही लक्षण होते हैं ?

बोला- बात ख़त्म हुई या कुछ और भड़ास निकालनी है ?

हमने कहा- यह भड़ास नहीं है, सचाई है |

बोला- मुझे भी पता है लेकिन तब से अब तक दुनिया बहुत बदल गई है |तब से जाने गंगा में कितना कूड़ा आ गया है |

हमने कहा- यह कौन सी कहावत ले आया ? मुहावरा तो यह होना चाहिए कि अब तक जाने गंगा में कितना पानी बह गया |

बोला- होना तो यही चाहिए लेकिन अब गंगा में पानी बचा ही कहाँ है ? अब तो केवल आस्था का कीचड़ बचा है |
लेकिन बात गंगा की नहीं, बात अमरीका के बदल जाने की है |बता, ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' से पहले क्या किसी भारतीय प्रधान मंत्री के साथ किसी अमरीकी राष्ट्रपति ने मंच साझा किया था |क्या आजतक कोई अमरीकी राष्ट्रपति मोदी-मंत्र (अबकी बार ट्रंप सरकार) से चुनाव जीता है ? क्या इससे पहले किसी अमरीकी राष्ट्रपति ने किसी भारतीय प्रधान मंत्री को 'राष्ट्रपिता' बनाया ?

हमने पूछा- तेरे हिसाब से इस  प्रेमातिरेक का क्या कारण है ?

बोला- यही तो मैं तुझे बताना चाहता हूँ |मीरा ने कहा है- घायल की गति घायल जाने, सो हमारी गति को ट्रंप से अधिक कौन जान सकता है ? और जब दो व्यक्तियों का दर्द एक जैसा होता है तो दोनों का हमदर्द होना स्वाभाविक है |इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि ट्रंप भारत के सच्चे हमदर्द हैं |

हमने कहा- ठीक है |अब बता भारत और अमरीका के दर्द समान कैसे हैं ?

बोला-ज्यादा तो मुझे मालूम नहीं लेकिन ट्रंप और मोदी जी के दर्दों की समानता के बारे में थोड़ा बहुत ज़रूर बता सकता हूँ | अभी ट्रंप ने कहा है कि उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने चीन  को अमरीका की बौद्धिक सम्पदा की चोरी करने से नहीं रोका |इसीलिए चीन आज इतना शक्तिशाली बन गया और दुनिया के लिए खतरा बन गया |


इसी तरह से कांग्रेस ने भी योरपियन देशों को भारत के वेदों से सारा ज्ञान चुराने की छूट दे दी | अटल जी को छोड़कर मोदी जी के सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों ने योजनाबद्ध तरीके से इस देश को पिछड़ा बनाने में कोई कसर नहीं रखी |इसीलिए मोदी जी को पिछड़ेपन के बैकलोग को पूरा करने के लिए दिन रात काम करना पड़ता है |जैसे नेहरू ने जान बूझकर कश्मीर की समस्या पैदा की वैसे ही अमरीका के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने मेक्सिको की समस्या को नहीं सुलझाया |अब बेचारे ट्रंप को देश के संसाधन खपाकर मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनवानी पड़ रही है |

जैसे हम आतंकवाद से रक्षा के लिए यज्ञ और तंत्र-मन्त्र वाली तकनीक अपना रहे हैं वैसे ही ट्रंप भी मेक्सिको से घुसपैठ रोकने के लिए हमारे प्राचीन किलो की तरह सीमा पर खाई बनवाने, उसके पानी में घड़ियाल और साँप छोड़ने की योजना बना रहे हैं |कितनी समानता है दोनों के दुःख में |

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हमने कहा- तोताराम, हम-दर्द ही नहीं हमें तो इन दोनों महान नेताओं और भी बहुत से 'हम'  (समानताएँ )नज़र आते हैं | आजतक ऐसी केमिस्ट्री बहुत कम ही देखने को मिलती है |तरल होकर ऐसे मिल जाते हैं कि अलग करने के लिए किसी बड़े रासायनिक परिवर्तन की ज़रूरत पड़ती है |







 

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क्रिकेट की कोचिंग



क्रिकेट कोचिंग की तैयारी 


आज बरामदे में बैठे थे कि तोताराम नीले रंग की साइड में पट्टी वाली पजामी, टी शर्ट और कैप लगाए फुदकता हुआ हमारे सामने आ खड़ा हुआ
हमने पूछा- क्या बात है ? कहीं मोदी जी ने तुझे ‘हम फिट तो भारत फिट’ के तहत कोई चेलेंज तो नहीं दे दिया
बोला- हमें कोई क्या चेलेंज देगा ? हम तो जन्मजात फिट हैं। पिछले साठ सालों से वही 28 इंच का सीना और 47 किलो वजन। किया है किसी ने ऐसा मेंटेन ?
हमने कहा- नहीं बन्धु, यह तुम्हारे अलावा किसी और के द्वारा कैसे संभव हो सकता है? नेताओं का वज़न भी विभाग के अनुसार थोड़ा-बहुत घटता-बढ़ता रहता है। चाहो तो ट्विटर पर यह महत्त्वपूर्ण ज्ञान देश के फिटत्वाभिलाषी युवाओं से शेयर कर सकते हो
बोला- मुझे न तो 'फिट इंडिया' से मतलब है और न ही किसी ट्विटर से। मैं तो अगस्त 2021 से टीम इंडिया को क्रिकेट की कोचिंग देने की तैयारी कर रहा हूँ | 
हमने कहा- यह ठीक है कि कल्याण सिंह जी की तरह न तेरा तन टायर और न तेरा मन रिटायर।लेकिन याद रख नेताओं की बात और है। वे तो 100 साल की उम्र में भी कुर्सी की शोभा बढ़ा सकते हैं। कोई चेकिंग न करे तो कुर्सी पर मरा पड़ा हुआ नेता भी भ्रम-भ्रम में दस-बीस दिन निकाल सकता है। क्या क्रिकेट में निर्देशक मंडल का सिद्धांत लागू नहीं है? तुझे पता होना चाहिए क्रिकेट कोई जुमले फेंकने का खेल नहीं है
बोला- सो तो मुझे भी पता है लेकिन मैं तो रवि शास्त्री और दूसरे अधिकारियों की सैलरी देखकर आकर्षित हो गया हूँ |
हमने कहा- लेकिन मुख्य कोच, फील्डिंग कोच और बैटिंग कोच में से कौन-सा काम तेरे वश का है ?
बोला- क्रिकेट में ये तीन काम ही होते हैं क्या ? क्रिकेट में हाफ सेंचुरी या सेंचुरी बनाने के बाद दर्शकों की प्रशंसा पर प्रतिक्रिया देनी होती है, छक्का या चौका लगाने के बाद रिएक्शन देना होता है,
Image result for विकेट लेने के बाद ख़ुशी में ताकत का प्रदर्शन

विकेट लेने पर हाथ को कुहनी से मोड़कर जोर से भस्त्रिका प्राणायाम जैसा झटका देना होता है, किसी को चिढ़ाना होता है, किसी को गुस्सा दिलाकर विचलित करना होता है, विकेट लेने वाले को हाई-फाई देना होता है, जीरो पर आउट होने पर बैट झटकना या गुस्सा ज़ाहिर करना होता है, कैच छूटने पर भी कई दूर तक फिसल कर दिखाना होता है कि कोशिश में कोई कमी नहीं थी- ऐसे बहुत से काम हैं जो किसी एक के वश के नहीं हैं

और फिर हार के वाजिब कारण भी तो बताने होते हैं। ये सब काम किसी एक के वश के नहीं हैं। जबकि मैं ये अतिरिक्त काम अच्छी तरह से कर सकता हूं।

हमने कहा- यह बात तो है। जैसे एक काम करने वाला मंत्री होता है तो दस उसकी असफलता का उत्तर देने वाले होते हैं। पता कर ले, हो सकता है तेरे लिए भी ऐसी ही कोई जगह निकल आए।  

















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Nov 5, 2019

प्रार्थना विज्ञान



प्रार्थना-विज्ञान 


आज तोताराम ने आते ही शिकायत की- देखा मास्टर, चंद्रयान से संपर्क टूट जाने पर फिर से संपर्क साधने के लिए प्रयत्न कर रहे  अल्लाहाबाद (सॉरी) प्रयागराज के भारतगंज इलाके के एक नवयुवक रजनीकांत यादव को पुलिस ने रोक दिया और ज़बरदस्ती नीचे उतार लिया |पता नहीं लोग क्यों भारत की सभी विद्याओं के प्रति शंका और अश्रद्धा रखते हैं |

हमने पूछा- क्या यह कोई इसरो या नासा में काम करने वाला बहुत बड़ा वैज्ञानिक जो विक्रम से टूटे हुए संपर्क को जोड़ने की कोशिश कर रहा था ?

क्रेन से उतारे जाने की तस्वीर, रजनीकांत








बोला- नहीं, अपने यूपी का की एक बच्चा है जो किसी टावर पर चढ़कर विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश कर रहा था लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं करने दिया |

हमने कहा- धर्मेन्द्र द्वारा पानी की टंकी पर चढ़कर बसंती को हासिल करने से प्रेरित होकर इस देश में हजारों लोगों ने पानी की टंकी या मोबाईल टावर पर चढ़कर ऐसे बहुत से नाटक किए हैं |यह भी कोई ऐसा ही सिरफिरा होगा |

बोला- यह कोई सिरफिरा नहीं था |यह तो अपने देश के प्राचीन प्रार्थना विज्ञान में विश्वास करने वाला श्रद्धालु था |

हमने कहा-  प्रार्थना कोई विज्ञान नहीं होता |

बोला- मन्त्र, जप, यज्ञ, अनुष्ठान, तंत्र, प्रार्थना, हठ आदि भारत के अनुभूत नुस्खे हैं जिनके बल पर ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और साधकों ने जाने कैसी-कैसी सिद्धियाँ और निधियाँ प्राप्त कर लीं |आज हम पश्चिम के भौतिकतावादी विचारों से प्रभावित होकर अपने ज्ञान, आस्था, आन, बान, शान, स्वाभिमान और भी न जाने क्या-क्या भुला बैठे, गँवा बैठे |

हमने कहा- तो फिर क्यों रूस से रक्षा प्रणाली, फ्रांस से युद्धक विमान, अमरीका से रोमियो हेलिकोप्टर खरीदते फिर रहे हों ?

बोला- अब प्राच्य विज्ञान में विश्वास करने वाले अस्मिता के रक्षक देशभक्त लोग आए हैं | ढूँढ़-ढूँढ़कर विश्वविद्यालयों में ज्योतिष, वास्तु, तंत्र-मन्त्र के ज्ञाता जुटाए जा रहे हैं |शीघ्र ही वे सभी समस्याओं के भारत के प्राचीन ज्ञान के आधार पर निकाल लेंगे लेकिन तब तक तो हमें दुनिया से अस्त्र-शास्त्र आदि खरीदने ही पड़ेंगे | 

हमने कहा- ऐसे काम प्रार्थना से नहीं होते |प्रार्थना तो मन को बहलाने का एक तरीका है |अंत में सच सबको स्वीकार करना पड़ता है |

बोला- फिर भी जिस ज्ञान के मोदी जी तक गुण गा रहे हैं और जिसके नाम पर हम जगद्गुरु बने फिरते हैं हमारे उस 'प्रार्थना-विज्ञान' को एक अवसर देने में क्या बुराई है ?

हमने कहा- यही क्या लाखों लोग इसी चक्कर में मन को बहलाए जा रहे हैं लेकिन कब तक ?  प्रार्थना विज्ञान नहीं है |झुनझुना दूध का विकल्प नहीं हो सकता- यह बात माँ और शिशु को देर-सबेर आनी ही है | 












 

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Nov 3, 2019

आजीवन प्रधान मंत्री



आजीवन प्रधान मंत्री 

तोताराम कभी-कभी ऐसे प्रश्न करता है जिनका कोई निश्चित संक्षिप्त उत्तर नहीं हो सकता है |

आज बोला- मोदी जी में क्या कमी है ?

हम तो असमंजस में पड़ गए |इधर पड़े तो कुआँ, उधर पड़े तो खाई |

बचने के लिए हमने पूछा- कौन कहता है उनमें कोई कमी है ?

बोला- कह भी कौन सकता है लेकिन तू बुद्धिजीवी बना फिरता है इसलिए तुझे ही पूछ रहा हूँ |कुछ है तो साफ़-साफ़ बता |

हमने कहा- हमें तो कोई कमी नज़र नहीं आती |स्वस्थ, बहुश्रुत, प्रभावशाली वक्ता, सबसे निःसंकोच अपने 'मन की बात' साझा करने वाले, सक्रिय, प्रत्युत्पन्नमति, संयमित, जन-जन-हृदय-सम्राट, तन-मन-धन से राष्ट्र-सेवा को समर्पित, अपनी साधना से एक मेहनतकश परिवार से प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचे, सबको साथ लेकर चलने वाले, सभी धर्मों-भाषाओं, जातियों और यहाँ तक कि विरोधियों के प्रति भी प्रेम भाव रखने वाले महान व्यक्ति में किसी को क्या कमी मिल सकती है |फिर भी......

बोला- बस, आगया ना अपने वाली पर |मुझे तेरे ये फिर, अगर, मगर, लेकिन किन्तु, परन्तु बड़े अजीब लगते हैं |अच्छे-भले हलवे में ऐसा कंकड़ गिरा देता है कि बस...|
फिर भी क्या ? 

हमने कहा- फिर भी जब चुनाव आते हैं तो पता नहीं इन्हें क्या हो जाता है ? आस्था चेनल से सीधे 'बिग-बोस' और 'चुटकुला सम्मेलन' पर उतर आते हैं | 

बोला- तुझे पता होना चाहिए कि इस देश में सेवा करने के लिए चुनाव जीतना बहुत ज़रूरी है |और चुनाव जीतने के लिए ये सब प्रपंच करने बहुत ज़रूरी है | वैसे आज देश में मोदी जी का कोई विकल्प दिखाई नहीं देता | दुनिया के बड़े-बड़े नेता उनसे हाथ मिलाने, गले मिलने के लिए, उनके साथ सेल्फी लेने के लिए लहालोट हो रहे हैं |उनके साथ झूला झूलने और चाय पीने के लिए तरस रहे हैं |इसलिए कभी ये जाते हैं तो कभी वे चले आते हैं |और देश के तो सभी चुनाव उनके नाम पर ही लड़े और जीते जा रहे हैं |

हमने कहा-  चीन में पहले कोई भी राष्ट्रपति भारत, अमरीका आदि की तरह दो कार्यकाल से अधिक नहीं रह सकता था लेकिन अब चीन की संसद ने इस बंदिश को हटा लिया है |इसलिए यदि जी शिन पिंग चाहें तो आजीवन राष्ट्रपति रह सकते हैं |हो सकता है ट्रंप भी इस बार जीत जाएं तो अमरीका में भी ऐसा ही कोई रास्ता निकाल लेंगे जिससे वे भी आजीवन अमरीका की सेवा करते रह सकें |वैसे अपने यहाँ प्रधानमंत्री के लिए कोई बंधन नहीं है |एक व्यक्ति आजीवन प्रधान मंत्री रह सकता है जैसे नेहरू जी रहे |इसलिए वे अपने अनुसार इस देश का भट्टा बैठा सके |अब मोदी जी पिछली कमियों को सुधारकर इस देश को दुनिया का सिरमौर बनाना चाहते हैं तो उन्हें देश का आजीवन प्रधानमंत्री घोषित कर दिया जाना चाहिए |जैसे कभी इंडोनेशिया ने सुकर्ण को अपना आजीवन राष्ट्रपति घोषित कर  दिया था |और साथ ही कालेज यूनियनों से लेकर लोकसभा तक के सभी सीटें मोदी जी की पसंद के लोगों को दे दी जाएं जिससे वे निश्चिन्त होकर, जैसे चाहें, इस देश का विकास कर उसे दुनिया में नंबर वन, जगद्गुरु, AAA+ बना सकें |लेकिन...

बोला- लेकिन अब फिर तेरा यह 'लेकिन' कहाँ से आगया ?

हमने कहा-  मोदी जी ने खुद ही ७५ पार वालों को निर्देशक मंडल में बैठाने की प्रथा शुरू कर दी तो उन्हें भी ७५ वर्ष का हो जाने पर २०२५  सब छोड़ना पड़ेगा |

बोला- देश हित में जब उन्होंने और भी बहुत से साहसिक कदम उठाए हैं तो निर्देशक मंडल वाली इस शर्त में भी ढील दी जा सकती है लेकिन....|


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Nov 1, 2019

विशिष्ट जनों की दिव्यदृष्टि



विशिष्ट-जनों की दिव्यदृष्टि 

कहावत है, 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' |इसी प्रकार की एक कहावत और है, 'पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं' |सभी कहावतों के पीछे लोक का कोई न कोई वास्तविक अनुभव होता है |यह कहावत संभवतः किसी जेबकतरे या उचक्के के नवजात शिशु के कारण उस समय बनी होगी जब उस शिशु ने उसे देखने के लिए पालने में झुकी किसी महिला की सोने की चेन उतार ली होगी |कुछ भी हो जिनमें महान बनने के प्रबल संभावनाएं होती हैं उनकी हरकतें शैशव में भी असाधारण होती हैं |राम केवल आठ कलाधारी थे तो जैसे हालात चलाते गए, वे चलते रहे लेकिन कृष्ण सोलह कला अवतार थे इसलिए घुटनों के बल चलने से पहले ही किसी ग्वालिन के मेकअप में छुपी पूतना को पहचान लिया और दूध के मार्ग से ही प्राण खींच लिए |

ऐसे विशिष्ट-जनों के कर्म ही नहीं उनकी दृष्टि भी दिव्य होती है |वैसे तो ट्रंप साहब जब से राष्ट्रपति बने हैं तभी से अपने छोटे-मोटे कामों और बातों में भी अपने दिव्य होने का प्रमाण देते रहे हैं |इसीलिए हम उनके कायल हैं |उनकी दिव्यता और अलौकिक वीरता का एक और ज़बरदस्त प्रमाण आज के अख़बार में पढ़ा |अमरीका ने आइएसआइएस  के प्रमुख अबू बकर अल बगदादी को मार डाला |चूँकि ट्रंप अमरीकी सेना के सर्वोच्च कमांडर हैं इसलिए इसका श्रेय उन्हीं को जाता है लेकिन उनकी उदारता देखिए कि उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर इसका श्रेय K9 स्क्वाड के बेल्जियन मालिनोस नस्ल के कुत्ते 'केनान' को दिया है |


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ट्रंप साहब को बगदादी के मारे जाने के लिए और कुक्कुर 'केनान' को इस राष्ट्रीय सम्मान के लिए बधाई-पत्र लिखने की सोच रहे थे कि तोताराम टपक पड़ा |'टपक पड़ा' इसलिए कि ट्रंप जैसे ब्रह्मज्ञानी और मनीषी के बारे में लिखते समय हम एकाग्र रहना चाहते हैं और तोताराम है कि हमारा ध्यान बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, लिंचिंग जैसे तुच्छ और भौतिक मुद्दों में उलझाता रहता है लेकिन क्या किया जाए ? 

आते ही हमें छेड़ते हुए तोताराम बोला- क्यों लेखक महोदय, कौन-सा उपनिषद् लिखा जा रहा है ?  

हमने कहा- कुछ नहीं आईएसआईएस वाला बगदादी सीरिया के बारिशा कस्बे के पास मारा गया जिसके लिए ट्रंप साहब और बेल्जियन नस्ल के कुक्कुर 'केनान'  दोनों को बधाई-पत्र लिखने की सोच रहे थे |

बोला- इसमें बधाई की क्या बात है ? यह तो २५० मिलियन डॉलर इनाम के लालच में भेदिया बने बगदादी के विश्वासपात्र साथी की धोखाधड़ी से संभव हुआ है |और फिर बगदादी को गोली नहीं लगी बल्कि उसने अपनी कमर से बंधे विस्फोटकों से खुद को उड़ा लिया |और कुत्ते का तो स्वभाव है कि वह भागने वाले के पीछे स्वतः ही भागने लग जाता है |फिर भी यदि बधाई देनी ही है तो कई ऐसे कारण हैं जिनके लिए ट्रंप साहब को बधाई दी जा सकती है जिनकी तरफ सामान्य लोगों का ध्यान नहीं जाता |

हमने कहा- तो फिर वही बात बता जिसकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाता |

बोला- बगदादी वाला समाचार देते हुए ट्रंप साहब ने बगदादी को कायर कहा था | उसकी मौत को 'कुत्ते की मौत' बताया था | यह भी कहा था कि  हमले के समय बगदादी रो रहा था |

हमने कहा- क्या मज़े की बात है तोताराम, कि कुत्ता वीर की तरह घायल होता है या वीर की मौत मरता है और आदमी 'कुत्ते की मौत' मरता है | 

बोला- बात से भटका मत और सुन |ट्रंप साहब ने सीरिया में मारे जाते और रोते हुए  बगदादी को वाशिंगटन में बैठे-बैठे ही देख लिया |

हमने कहा- किन्तु पेंटागन ने तो कहा है कि हम ट्रंप के इस कथन की पुष्टि नहीं करते कि हमले के समय बगदादी रो रहा था |राष्ट्रपति को यह बात कैसे पता चली, हम नहीं जानते | 

बोला- जब बधाई देना हो तो किन्तु-परन्तु, अगर-मगर नहीं करते |बस, 'जय मातादी' की तरह पूरा दम लगाकर, उछलकर, प्रेम से बोलना चाहिए |तर्क से वरदान नहीं मिलता |बाबे दी फुल किरपा के लिए अंधभक्ति ज़रूरी है |बस, बिना किसी चूँ-चपड़ के उन्हें उनकी 'दिव्य-दृष्टि' के लिए बधाई लिख दे |

हमने कहा- लेकिन आज तो ऐसी-ऐसी तकनीक और कैमरे बन गए हैं जिससे वे  व्हाईट हाउस में बैठे-बैठे तुम्हारी चाय में पड़ी हुई मक्खी तक को देख सकते हैं |और फिर इस तकनीक में ही कौनसी बड़ी बात है |हमारे यहाँ तो हजारों साल पहले द्वापर युग में संजय ने इन्द्रप्रस्थ में बैठे-बैठे ही अंधे राजा धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का हाल सुना दिया था |

हमने कहा- कुछ कुंठित लोग विकसित देशों के विज्ञान की तुलना में भारत के वर्तमान विज्ञान को खड़ा नहीं कर पाते तो वे भारत के पुराणों के कपोल-कल्पित किस्से सुना-सुनाकर अपनी झेंप मिटाते हैं |संजय वाले दूरदर्शन की यही कहानी है |


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बोला- मैं सुनी-सुनाई और कपोल कल्पित बातें नहीं करता | मैं तो प्रमाण के आधार पर बात करता हूँ | ९ फरवरी २०१७ को संसद में मोदी जी ने मनमोहन जी पर व्यंग्य करते हुए कहा था - 'रेन कोट पहनकर नहाने की कला तो कोई मनमोहन जी से सीखे' | 
दिव्य-दृष्टि के बिना ऐसा कैसे हो सकता है ? 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी को यह दिव्य-दृष्टि कैसे प्राप्त हुई ? संजय तो वेद व्यास का शिष्य था | वेदव्यास जी ने उसे दिव्य-दृष्टि वाला जो पॅकेज दिलवाया था हालाँकि उसकी वेलेडिटी केवल एक महिने की थी जो महाभारत के युद्ध के बाद समाप्त हो गई |

बोला- मोदी जी फकीर हैं |छोटी आयु में ही हिमालय में चले जाने के कारण जाने  कहाँ-कहाँ, किन-किन ऋषि-मुनियों से सत्संग हुआ होगा |उन्हीं में से किसी ने उन्हें दिव्य-दृष्टि का यह वरदान दे दिया होगा |तभी तो जो रहस्य सी बी आई तक नहीं जान पाई उन्हें मोदी जी ने अपनी दिव्य-दृष्टि से देख लिया जिसकी बदौलत बड़े-बड़े अपराधी इस समय हिरासत में हैं | 

हमने कहा- लेकिन किसी बुज़ुर्ग के बाथरूम में  ताक-झाँक करना तो भले आदमियों का काम नहीं | 

बोला- अपनी भाषा की व्यंजना को सँभाल | ताक-झाँक तो ऐसे-वैसे लोग करते हैं | यह ताक-झाँक नहीं है | यह तो देश की सुरक्षा के लिए की गई चौकीदारी है |

हमने कहा-  तो फिर यह नीरव मोदी कैसे इनकी दृष्टि से बच गया ?

बोला- अब एक आदमी कहाँ-कहाँ निगाह रखे ? हो सकता है जब ये मनमोहन जी के बाथरूम पर निगाह रख रहे थे तभी नीरव मोदी चुपके से खिसक लिया हो | 

हमने पूछा- क्या पूरे देश पर निगाह रखने के लिए मोदी जी की तरह किसी और को ऐसी दिव्य-दृष्टि प्राप्त नहीं है ?

बोला- इसके बारे में पक्का तो कुछ नहीं कहा जा सकता फिर भी जब कोई व्यक्ति दूर से ही किसी के फ्रिज में रखा गौमांस देख सकता है या किसी भी देशद्रोही को उसके नाम और पहनावे से ही पहचान लेता है तो यह मानना पड़ेगा कि उसके पास भी थोड़ी- बहुत दिव्य-दृष्टि है |

हमने फिर पूछा- क्या देश की सुरक्षा के लिए देश के सामान्य लोगों में ऐसी दिव्यदृष्टि विकसित की जा सकती है ? 

बोला- संरक्षण और अभ्यास से ऐसा संभव है |अच्छा हो, स्कूल कालेजों के पाठ्यक्रमों में इस विद्या का अध्ययन-अध्यापन शुरू करवा दिया जाए | 




   









 

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