Dec 31, 2015

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा

 स्वागत  है नववर्ष तुम्हारा


स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |
करें कामना सब को सुखकर हो यह नूतन वर्ष |

कोई भ्रम, शंका हो तो भी बंद न हो संवाद |
आपस में मिल-जुल सुलझा लें हो यदि कोई  विवाद |
दुःख-पीड़ा आपस में बाँटें, बाँटें उत्सव-हर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

सभी परिश्रम करें शक्ति भर, पर ना करें प्रमाद |
जले होलिका, विश्वासों का बचा रहे प्रह्लाद |
केवल कुछ का नहीं सभी का हो समुचित उत्कर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

'स्वार्थ छोड़ कर्त्तव्य करे वह पुरुषोत्तम श्रीराम' |
यह आदर्श हमारा होवे, होंगे शुभ परिणाम |
न्याय-जानकी अपहृत हो तो मिलें, करें संघर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

-रमेश जोशी 

Dec 30, 2015

सफ़ेद बाल

 सफ़ेद बाल

प्रिय ओबामा जी
वैसे तो यदि हमसे दस-बारह साल छोटे मोदी जी आपको बराक कह सकते हैं तो हम भी इसी तरह संबोधित  कर सकते हैं लेकिन हम इतने फ़ास्ट नहीं हैं |अब देखिए ना, वे बारह महीने में सारी दुनिया का चक्कर लगा आए और एक हम हैं कि सीकर में बैठे-बैठे एक साल निकाल दिया और लेखन का यह हाल है कि एक साल में यह दूसरा पत्र है |

आप एक साल बाद भूतपूर्व हो जाएंगे | जब तक कोई स्केंडल न हो तो भूतपूर्वों को मीडया घास नहीं डालता |जब कोई सत्ता में हो तो छींकने, खाँसने तक के समाचार आते हैं |२० नवम्बर २०१५ को आपने किसी कार्यक्रम में कहा था कि २००९ में जब राष्ट्रपति बना था तो एक भी बाल सफ़ेद नहीं था और अबअधिकतर बाल सफ़ेद हो गए हैं लेकिन मैं बूढ़ा नहीं हूँ |मेरी कैबिनेट के बहुत से लोग बाल रंगते हैं लेकिन मैं नहीं रंगता |

हालाँकि कि लम्पटता का उम्र और बालों के रंग से कोई संबंध नहीं है |८५ साल तक के महामहिमों को लम्पटता के चलते जूते खाते देखा, महाभियोग का सामना करते और रोते देखा है |एक बार आप भी जब जापान में तीए, चौथे या  उठाले में गए तो किसी सुन्दर चेहरे के साथ सेल्फी लेने से अपने को रोक नहीं सके थे |मैडम नाराज़ भी हुई थीं |खैर, अच्छा हुआ, आप जल्दी ही सँभल गए |

उम्र से पहले जब बाल सफ़ेद हो जाते हैं तो आदमी को अन्दर-अन्दर ही थोड़ा अखरता तो है |आपकी तो अभी उम्र ही क्या है ?हमारे बच्चों के बराबर | कवि केशव का किस्सा है जिन्होंने कहा है-

केशव केशनि  अस करी जस अरि हू न कराहिं |
चन्द्र बदनि मृग लोचनी बाबा-बाबा कही कही जाहिं ||
वे अपनी उम्र जानते थे,बाल भी नहीं रँगते थे | केशों के सफ़ेद होने का दुःख इसलिए कि सुंदरियां सफ़ेद केशों के कारण, डीयर की जगह बाबा कह देती हैं |

हमने तो ऐसे-ऐसे बूढों को बाल रंगते देखा है जिनके न मुँह में दांत और न पेट में आंत |लकड़ियाँ श्मशान में पड़ी हैं, बोलते हैं तो चेहरा गुगली हो जाता है |वास्तव में बाल रँगना लम्पटता है, धोखा देने का इरादा है |लेकिन हमारी समझ में नहीं आता कि धोखा किसे देते हैं ये लोग |पत्नी को आपकी मर्दानगी और उम्र दोनों को पता है और  भगवान तो सब कुछ जानता ही है |सही समय पर यमदूतों को भेज देगा |वह यह नहीं सुनेगा कि अभी तो मेरे सारे बाल सफ़ेद हैं, अभी तो मेरी उम्र ही क्या है, अभी क्यों लिए जा रहे हो ?बाल रँगकर जवान दिखने का भ्रम अमरीका ही नहीं भारत में भी कम नहीं है |यहाँ बाल रँगने का प्रतिवर्ष २७००० करोड़ का बाजार है |जो लम्पटता के कारण बढ़ता ही जाएगा |चरित्र न सही, अर्थव्यवस्था तो सुधरे |

हमें तो बाल रँगने का कभी साहस ही नहीं हुआ |अपने अंतरतम को उजागर करना हर एक के वश का नहीं होता |हमारा तो आपसे कहना है कि अब एक साल के लिए इस चक्कर में नहीं पड़िएगा |यह ससुर ऐसी बीमारी है कि मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की |एक बार रंग लो तो जो दो चार काले बचे हैं वे भी सफ़ेद हो जाते हैं | हमारे यहाँ तो कहा जाता है- काले कर्म के और धौले धर्म के मतलब  कर्म करते हुए अपने बालों को सफ़ेद कीजिए |यही धर्म है |जिनके बाल बिना कर्म किए सफ़ेद हो जाते हैं उनके लिए ही कहा जाता कि बाल धूप में सफ़ेद किए हैं |

हमें बहुत से लोग और किसी नहीं तो, कम से कम इसलिए विश्वसनीय लगते हैं कि वे बाल नहीं रँगते जैसे अटल बिहारी, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा,नरेन्द्र मोदी,अमित शाह, प्रकाश कारत, सीताराम येचुरी और आप |

अब तो अगले साल फ्री हो जाएंगे, लगा जाइए एक चक्कर भारत का |पिछली बार आए थे प्रदूषण के डर से प्रेम का प्रतीक आगरा का ताज नहीं देखा था लेकिन अब मोदी जी ने आपको पेरिस सम्मेलन में समझा दिया है और यहाँ सफाई अभियान भी ज़ोरों से चल रहा है इसलिए अबकी बार पर्यावरण संबंधी समस्या नहीं आएगी |समस्याएँ चाहे वे सुरक्षा की हों या साफ़ हवा की, वे सब कुर्सी पर बैठे लोगों के लिए होती हैं |भूतपूर्व होने पर तो सब धान बाईस पसेरी हो जाता है |

हाँ, उस ट्रिप में यदि दिल्ली भी आना हो तो दो गाड़ियां लाइएगा क्योंकि यहाँ 'सम-विषम' का चक्कर चल रहा है |मतलब एक उस नंबर की जिसमें दो का भाग लग जाए और एक वह जिसमें दो का भाग न लगे |और यदि दिसंबर में आएंगे तो ५० करोड़ रुपए का 'सैफई-महोत्सव' भी देख सकेंगे |आपके यहाँ तो पूंजीवाद है |आपको क्या पता कि समाजवाद क्या होता है ? इसे देखकर आपको लोहिया जी के समाजवाद की जानकारी भी हो जाएगी |

सड़क पर सांड

   सड़क पर साँड़

हालाँकि रात को तापमान शून्य रहा लेकिन सुबह दस-ग्यारह बजे बरामदे में सुहानी धूल निकल आई |पता नहीं, अटल जी के विगत सुशासन या जन्म-दिन का प्रभाव था या वर्तमान में दुनिया में चमक रही इण्डिया की छवि का लेकिन अच्छा लग रहा था |तोताराम और हम चाय के साथ क्रिसमस और पौष-बड़ा दोनों एक साथ मना रहे थे |जैसे ही तोताराम पकौड़ों की अगली खेप लेने गया तो रास्ते से जा रहे सांड पकौड़ों सहित हमारी प्लेट उठा ले गया |हमें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कर क्या सकते थे ? वह धार्मिक, राजनीतिक और शारीरिक तीनों रूपों में हमसे कहीं शक्तिशाली |

जैसे ही तोताराम पकौड़े लेकर आया, हमने उसकी प्लेट को लपक लिया और कहा-अपने लिए दूसरी ले आ |हमारे वाली तो नंदी जी महाराज ले गए | पता नहीं, सरकार इनका कुछ करती क्यों नहीं ?

तोताराम बोला- बन्धु, ये चाहें तो किसी को भी घायल कर दें, सब्ज़ी मंडी में आतंक  फैला दें, छात्र संघ के नेताओं के गैंगवार की तरह मोहल्ले के लोगों का जीना हराम कर दें लेकिन इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |सड़क से संसद तक इन्हीं का राज है |खाएँगे, दहाड़ेंगे, स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद सड़क के बीच लघु और दीर्घ शंका समाधान करेंगे |ये या तो भावी नेता हैं या भूतपूर्व लेकिन साधारण, मेहनत की कमाई खाने वाले आम लोग नहीं हैं | 

हमने कहा- अपने यहाँ सब चलता है लेकिन यदि बनारस हुआ होता तो सब बाड़े में बंद कर दिए गए होते |

बोला-यह तो एक असामान्य घटना है |जापान  के प्रधान मंत्री आने वाले थे इसलिए यह नाटक किया गया था | जैसे लोकतंत्र की शोभा गुंडई, दलाली और भ्रष्टाचार है वैसे ही बनारस की शोभा हैं-सांड,रांड और सन्यासी | देखा नहीं, दो दिन में ही आस्था का प्रश्न उठने लगा | सांड शिव के नंदी हैं |किसी का भी यज्ञ विध्वंस कर सकते हैं | जब किसी को निबटाना होता था तो शिव नंदी को ही भेजते थे |

बनारस में भी इन्हें कोई  'बाड़ा' नहीं सँभाल सकेगा |जब तक इनका पेट नहीं भरेगा, ये गौशाला के अध्यक्ष तक को नहीं खाने देंगे |जब खाने को नहीं मिलेगा तो कौन अध्यक्ष इन्हें रखना चाहेगा | और प्रति गाय भी २५ रूपए और प्रति सांड भी २५ रूपए |कोई संसद की कैंटीन थोड़े ही है जो १२ रूपए में भर पेट माल मिल जाए |यह तो बड़ी नाइंसाफी है, कालिया |गायों की बात और है |खाने को दो या मत दो | पड़ी रहेंगी किसी कोने में लेकिन ये तो भूखे और भरे पेट दोनों स्थितियों में दहाड़ते हैं |और इनके खिलाफ थाने में भी कोई रिपोर्ट नहीं लिखता |कहते हैं- भैया, ये तो हमारे भी बाप हैं |नियुक्ति, प्रमोशन और ट्रांसफर सब इनके हाथ में हैं |

हमने कहा- तो फिर पकौड़ों की यह प्लेट भगवान शिव या लोकतंत्र या सरकार -किसी के भी नाम लिख दे और अपनी भाभी से अपने लिए दूसरी बनवा ले |

 









Dec 28, 2015

सबसे बड़ा नशा

  सबसे बड़ा नशा 

२३ दिसंबर २०१५, पत्नी का जन्म दिन है |बहत्तर वर्ष की हो जाएगी कल |ठण्ड भी कुछ अधिक ही है |पास के कस्बे फतेहपुर में तापमान -०.४ है | हमारे यहाँ का पता नहीं | फिर भी जैसे यमुना के जल में खड़े ब्राह्मण को अकबर के महल के दीये की रोशनी से गरमी मिलती है वैसे ही हम फतेहपर की ठण्ड से ठिठुर रहे हैं | लेकिन इतनी भी कम नहीं कि बरामदे में बैठ सकें सो कमरे में अँगीठी के पास बैठे बिना दूध की चाय पी रहे थे कि तोताराम का अवतरण हुआ |पत्नी से बोला- भाभी, चौबीस घंटे एडवांस में जन्म दिन मुबारक हो | और यह क्या ? यह सूफी इस बुढ़ापे में आज तुम्हारे जन्म-दिन को रम से सेलेब्रेट कर रहा है ?

हमने कहा- ऐसा कुछ नहीं है |रात का दूध बचा नहीं और अभी तक दूध वाला आया नहीं सो बिना दूध  की, नींबू वाली चाय पी रहे हैं |

कहने लगा-  हमें ज़िन्दगी ने इतना अवकाश ही नहीं दिया कि किसी और नशे की सोचते |वैसे यदि तू वास्तव में रम पीता तो भी नशा होने वाला नहीं था |

हमने कहा- यह नया ज्ञान तुझे कहाँ से मिला ? 

बोला- पहले तो मैं भी यही समझता था लेकिन जब से पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री सुरजीत सिंह ज्ञानी जी का स्टेटमेंट पढ़ा है कि शराब में नशा नहीं होता , मेरा विचार बदल गया है | 
हमने कहा- उनके कहने से क्या होता है ? 

बोला- होता क्यों नहीं ? वे कोई साधारण आदमी हैं  ? उनका तो सरनेम ही ज्ञानी है | और नाम शुरू होता है 'सुर' से |अब बता, सुरों से अधिक शराब या सोमरस के बारे में और कौन बता सकता है ? ऊपर से स्वास्थ्य मंत्री अलग | उनके स्टेटमेंट में शंका की गुंजाइश कहाँ रह जाती है ?

हमने पूछा- तो फिर नशा किसमें होता है ?

कहने लगा- वैसे तो लोग कहते हैं कि रूप का नशा होता है, जवानी का होता है, ओफिसरी का होता है लेकिन ये नशे समय के साथ ख़त्म हो जाते हैं |देखा नहीं, मेकअप की हुई बूढ़ी सुंदरी, बूढ़ा पहलवान और रिटायर्ड अफसर कितने दयनीय लगते हैं ?यदि शराब में नशा होता तो हर एक को गाली निकालने वाला शराबी थानेदार को देखते ही नमस्ते क्यों करने लग जाता है ?
एक नशा होता है सत्ता का ? यह सबसे पक्का नशा होता है |एक बार चढ़ गया तो ज़िन्दगी भर नहीं उतरता | बूढ़ा और भूतपूर्व नेता भी अपने को सामान्य नहीं मान पाता | वह भी लोगों पर अकड़ जमाता रहता है |यदि सत्ताधारी हुआ तो फिर कहना ही क्या ? किसी भी पुलिसये या कर्मचारी तो क्या एस.पी. तक पर हाथ छोड़ देता है |निधड़क सब तरह के भ्रष्टाचार और चोरियाँ करता है सो अलग |हारा हुआ नेता तक जब जेल में आता है तो जेल का अधीक्षक, चरण-स्पर्श करता है कि पता नहीं, कब यह पिशाच फिर चुन कर आ जाए | जीते हुए नेता को तो हमने मंच पर चीफ सेक्रेटरी से खैनी बनवाते देखा है |

अब बता, सबसे बड़ा नशा शराब है कि सत्ता ? 










Dec 22, 2015

2015-12-22 राज धर्म



राज-धर्म
( चित्रकूट के गिदुरहा गाँव के किसान घनश्याम की जब भूख से मौत हो गई तो सरकार ने ५० किलो गेहूँ और एक कम्बल उसकी माँ के पास भिजवाया- एक समाचार-२२-१२-२०१५ )

स्वयं तिलक करते रहे राजनीति के राम
चित्रकूट में भूख से मरा कृषक घनश्याम
मरा कृषक घनश्याम, राज ने धर्म निभाया
बाद मौत के गेहूँ एवं कम्बल आया
कह जोशी कवि जिअत बाप को अन्न न ख्वावै
मगर श्राद्ध में बड़ी शान से पिंड भरावै|

२२-१२-२०१५

Dec 13, 2015

भांड को भांड रहने दो

 भांड को भांड रहने दो

प्रिय शाहरुख़
खुश रहो | वैसे तो मीडिया वाले तुम्हें बादशाह, किंग खान आदि कई संबोधनों से प्रचारित करते हैं | हो सकता है तुम्हारे कुछ फैन भी तुम्हें इस नाम से पुकारते हों लेकिन उम्र के हिसाब से तो तुम हमारे एक विद्यार्थी के समान हो | जहाँ तक किसी हॉल में फ़िल्में देखने की बात है तो हमने तो पोर्ट ब्लेयर के 'लाईट हाउस सिनेमा हॉल' में अंतिम बार १९८३ में 'गाँधी' फिल्म देखी थी तब तुम शायद स्कूल में पढ़ते थे | खैर, हमने तुम्हारी फिल्म 'माई नेम इज खान' यूट्यूब पर ज़रूर देखी थी |अच्छी लगी  |

वैसे तो हम बड़े-बड़े लोगों को ही पत्र लिखते हैं लेकिन कल जब तुम्हारा इंटरव्यू पढ़ा तो लगा तुममें कुछ तो बात है |तुमने कहा- हम लोग तो भांड हैं |ज़िन्दगी में जाने कैसे कैसे भेष बदलते हैं, सारे दिन मेकअप में घुसे रहते हैं कि खुद की भी असली सूरत ध्यान में नहीं रहती |हमें दुनिया की बहुत सी जानकारियाँ नहीं होतीं इसलिए बेहतर है कि हम भांड ही रहें |

भई, इस ज़माने में  मज़ा बहुत कम आता है लेकिन तुम्हारी इस बात से मज़ा आ गया | इस ज़माने में तो हालत यह है कि नाव डुबाने का काम माँझी ही करते हैं, चोरी का डर पुलिस वालों से अधिक रहता है, एक बार डाकू छोड़ भी दे लेकिन सेवा के नाम चुना गया नेता नहीं बख्शता, सबसे अधिक यौन शोषण का खतरा खुद को भगवान का अवतार बताने वाले संत पुरुष के आश्रम में रहता है | आत्मा के ज्ञान से शुरू होकर महात्मा जी का समापन पौरुष बढ़ने वाला च्यवनप्राश बेचने में होता है |मंदिर के दान पात्र सबसे अधिक असुरक्षित पुजारी जी पास ही रहता है |किसी अभिनेता को किसी पार्टी ने ज़रा सा मुँह क्या लगाया, बस शुरू हो जाता है हर बात पर एक्सपर्ट कमेंट देने | अच्छा है, तुमने ऐसा दोगला काम नहीं किया |सच कह दिया | सच कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए |सत्य कहने वाला सत्यकाम जाबालि ब्राह्मण ही हो सकता है |

वैसे आजकल के अभिनेता बड़े समझदार हैं जो केवल फिल्मों के भरोसे ही नहीं रहते, साइड में अपना कोई और धंधा भी करते हैं क्योंकि अभिनय तो ऐसा धंधा है जो जब तक चले तो ठीक है अन्यथा इसमें कौन सी पेंशन है | और फिर यदि सुपर स्टार का भूत दिमाग में घुस जाए तो छोटा-मोटा रोल करते शर्म आती है और बड़ा रोल मिलता नहीं |सब की किस्मत तो अमिताभ बच्चन जैसी होती नहीं कि साठ के हुए तो वैसा और सत्तर के हुए तो वैसा ही रोल मिल जाए | पहले वाले अभिनेताओं जैसे मोतीलाल, हंगल आदि की अंतिम दिनों में हालत बड़ी पतली रही |हमने देखा है- किसी ज़माने के जमने वाले और अब अस्सी साल के हो चुके कवियों को अपने पोते की उम्र के लोकप्रिय कवि को आदरणीय कह कर कविसम्मेलन माँगते हुए |

वैसे यदि बुरा न मानो तो एक बात पूछें ? क्या वास्तव में ही तुम हकलाते हो या शुरू-शुरू में नर्वस होने के कारण हकलाते थे और अब इसे अपना स्टाइल बना लिया ?

बस, एक सलाह देना चाहते हैं कि कहीं खुद को खुदा समझकर रात को, नशे में, तेज़ गाड़ी मत चलाना क्योंकि हमेशा सलमान वाला संयोग हो, न हो |

























Dec 2, 2015

एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

  एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

आजकल भारत में असहिष्णुता पर चर्चा चल रही है | उसके आयामों पर उड़ती नज़र डालते हुए निकट विगत  के योरप और अमरीका के कुछ उदहारण देते हुए बात की शुरुआत की थी कि छोटी-छोटी छेड़खानियाँ भी किसी समाज को आहत कर व्यर्थ में उकसाकर शांति के माहौल को बिगाड़ सकती हैं |इसलिए इनसे बचा जाना चाहिए |

लेकिन ज्ञात मानव-इतिहास इतना ही तो नहीं है | इस तरह की घटनाओं के पीछे दो हजार वर्ष से भी पुराना इतिहास है इस दुनिया का जिसमें धर्म के नाम पर किए गए युद्धों (ज़िहादों और क्रूसेडों )के रक्तपात की ऊपर से सूख चुकी पपड़ियों के नीचे अभी भी ताज़ा घाव हैं जिनसे विभिन्न समूहों,  समाजों, धर्मों  की जातीय स्मृतियों में रक्त स्राव हो रहा है | यद्यपि गत कुछ सौ वर्षों में जिहाद और क्रूसेड अपने मूल रूप में  दिखाई देने बंद से हो गए और विगत सदी के मध्य में उपनिवेशवाद का खात्मा भी  शुरू हो चुका था फिर भी धर्म के नाम पर न सही,किसी और प्रतीक यथा विभाजन,राष्ट्र, शक्ति संतुलन,लोकतंत्र, विश्व शांति के नाम पर जर्मनी,चीन, वियतनाम, बंगलादेश, कम्बोडिया,  लाओस, अफ्रीका,तिमोर आदि में करोड़ों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं |

यदि धर्म और हिंसा के संबंधों पर दृष्टि डालें तो प्रेम के धर्म ईसाइयत और भाईचारे वाले इस्लाम का इतिहास हत्या, लूट, बलात्कार, बलात धर्मान्तरण का क्रमशः दो हजार और डेढ़ हजार साल का  है | इस्लाम के नाम पर जिहाद और अन्य देशों पर कब्ज़ा करने के लिए आक्रमणों में योरप, अफ्रीका, एशिया महाद्वीपों में २७ करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जिनमें १२ करोड़ अफ्रीकन, ६ करोड़ ईसाई, ८ करोड़ हिन्दू, १ करोड़ बौद्ध शामिल हैं |वैसे इसमें विभाजन के समय पाकिस्तान में मारे गए हिन्दू, १९७०-७१ में बंगला देश में मारे गए बंगलादेशी मुसलमानों और हिन्दुओं तथा इस्लामी देशों में मारे गए, अत्याचार करके धर्मान्तरण किए गए लोगों का हिसाब नहीं है | इसके अतिरिक्त जलाए गए पुस्तकालय, तोड़े गए धार्मिक स्थल, लूटपाट और बलात्कार की भी अनगिनत घटनाएँ हुईं |आज भी विभिन्न देश शिया और सुन्नी के नाम पर लड़ रहे हैं |आज इसका नवीन संस्करण आइएस है जो निष्काम भाव और  समान रूप से सब को आतंकित कर रहा है और लपेटे में लिए हुए है |

इसी तरह ईसाइयत के नाम पर क्रूसेड और दुनिया के गैर ईसाइयों की आत्माओं का उद्धार करने के लिए योरप, आस्ट्रेलिया,दोनों अमरीका, एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश बनाने के नाम पर २५ करोड़ लोगों  की हत्याएं दर्ज हैं  | इनमें योरप में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हुई हत्याएं, चुड़ैल बताकर मारी गई लाखों महिलाओं की हत्या, अफ्रीका, दोनों अमरिकाओं में किए अमानवीय कर्म और मूल निवासियों के विनाश भी शामिल हैं | भारत में भी छल-छद्म और डर पैदा करके करवाया गया धर्मान्तरण का भी एक क्रूर इतिहास रहा है |हो सकता है संसार के कुछ अन्य छोटे धर्मों ने भी कुछ ऐसे काम किए हों लेकिन वे इनके सामने किसी गिनती में नहीं आते |

भारत ने एक हजार वर्षों तक इस्लाम और ईसाई दोनों धर्मों के तथाकथित प्रेम और भाईचारे का, जो केवल उनके अपने धर्म तक ही सीमित रहे, मज़ा लिया है और वे सारे सुख उसकी जातीय स्मृतियों में जिंदा हैं जिनमें कहीं कुछ अतिशयोक्ति भी हो सकती हैं लेकिन वे अधिकतर सत्य हैं | सारे देश में टूटे धार्मिक स्थल, आस्था केंद्र, मूर्तियाँ इस सत्य के प्रमाण हैं | विजित जाति विजेता के प्रति अपनी घृणा और पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती तो वह उसे सांस्कृतिक अलगाव,उपेक्षा को कथाओं, गीतों, साहित्य में संजोती है  | इस पर भी यह इस देश की सहिष्णुता ही है कि यह गृह युद्धों से बचा रहा है |और आज भी दुनिया में एक अजूबे की तरह सभी  धर्मों और सम्प्रदायों को अपने में समाहित किए हुए है |उत्तर पूर्व में ईसाई धर्म का सुनियोजित प्रचार और प्रसार भी इस देश की एकता को नष्ट करने का षड्यंत्र था जिसे उनके जाने के बाद भी सरकारों ने नज़र अंदाज़ किया  |

पराधीनता के समय की एकता, लोकतंत्र आने के बाद सत्ता के सपनों के चक्कर में वोट बैंक की राजनीति में बदल कर देश की एकता के लिए खतरा बन गई | होना यह चाहिए था कि एक समान कानून, शिक्षा का एक समान पाठ्यक्रम,  तुष्टीकरण या पुष्टीकरण से परे एक निष्पक्ष और सच्चा इतिहास इस देश  को दिया जाना चाहिए था जिससे अब तक हम एक संगठित राष्ट्र बन गए होते |राष्ट्र बनने के लिए सब को अपनी छोटी-बड़ी  अस्मिताओं और कुंठाओं, भूतपूर्व विजेता और विजित के मनोविज्ञानों  का विसर्जन करना ज़रूरी भी होता है लेकिन यह किसी एक वर्ग की नहीं वरन समस्त राष्ट्र की बात है |

सुदर्शन की एक कहनी  है- हार की जीत जिसमें  बाबा भारती  विकलांग का वेश बनाकर धोखे से घोड़ा ले जाने वाले खड्ग सिंह से कहते हैं - किसी को यह घटना मत बताना अन्यथा लोग किसी विकलांग की सहायता नहीं करेंगे |या रावण के साधु वेश में सीता हरण से अच्छे साधु भी शंका के घेरे में आ जाते हैं |आज आतंकवादी वास्तव में इस्लाम के सच्चे अनुयायी हैं या नहीं लेकिन वे आड़ तो इस्लाम की लिए हुए  हैं और उनका यह रूप विश्व में सरलता से इस्लाम को सन्देह के घेरे में ले लेता है |इसलिए इस समय इस्लाम को अपनी विश्वनीयता कायम रखने के लिए खुद को हर तरह से इससे अलग करना होगा, और इससे पीड़ित सभी जनों के साथ खड़ा होना होगा |यह उसके और शेष संसार के लिए भी उचित है |क्योंकि यह आइएस किसी न किसी रूप में इस्लाम के विरुद्ध भी है |धर्म की आड़ में इस पर विश्वास करना भारत ही नहीं ,कहीं के भी मुसलमान के लिए भी अनर्थकारी ही है |

भारत के सभी ईसाई, मुसलमान अपने इतिहास, रक्त, परिवेश, रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा और डी.एन.ए. से भारतीय ही हैं |वे किसी भी तरह से वेटिकन के गोरे ईसाई तंत्र और अरब देशों के नज़दीक नहीं हैं | वे समस्त विश्व में भारतीय के रूप में ही पहचाने जाते हैं |अपने धार्मिक और राजनीतिक स्वार्थ के लिए भले ही उन्हें धर्म के नाम पर जोड़ा जाता हो लेकिन वेटिकन और अरब के मन में वे आज भी दोयम दर्ज़े के ईसाई और दोयम दर्जे  के मुसलमान हैं | उनके हित, भविष्य और भाग्य भारत के साथ जुड़े हैं | ईश्वर और खुदा सब जगह हैं इसलिए वे योरप या अरब में ही नहीं बल्कि यहाँ भी उनके साथ हैं |

भारत का धर्म या किसी भी अन्य कारण से, कहीं भी नर-संहार का इतिहास नहीं रहा है |कुछ तथाकथित प्रगतिवादी इतिहासकारों ने इस पर हुए अत्याचारों को कम करके बताया है, मुसलमान शासकों के अपवाद स्वरुप हिन्दू-प्रेम को और अंग्रेजों के अपने स्वार्थ के लिए किए गए कार्यों को भारत की एकता और विकास का नाम दिया है और भारत में हुए छोटे मोटे धार्मिक संघर्षों को क्रूसेड और जिहाद की तरह चित्रित किया है |इससे भी भारतीय मन आहत होता है और निरंतर ऐसी पीड़ा, हो सकता है शाब्दिक असहिष्णुता में प्रकट हो रही है |  या शताब्दियों से आहत जन को एक शाब्दिक मरहम लगती हो |

भारत में स्वतंत्रता के बाद वोट या तथाकथित अस्मिता या लोकतंत्र के नाम पर इसे तरह-तरह से खंडित करने के प्रयत्न किए गए हैं |अब तो अल्पसंख्यक के नाम पर ईसाई , मुसलमान,पारसी,यहूदी ही नहीं,भारत मूल के चिन्तनों और दर्शनों जैसे बौद्ध, जैन, सिख आदि को भी अलग सा कर दिया है |इसीलिए जैन और सिख भी अब अपने को धर्म की दृष्टि से अलग मानने लगे हैं |यह कोई अच्छा लक्षण नहीं है |भले ही इस देश में किसी एक राजा का शासन नहीं रहा लेकिन संस्कृति, आस्था, इतिहास, दर्शन और डी.एन.ए. के हिसाब से भारत एक रहा है और आज भी एक है |

धर्म और नस्ल के नाम पर विश्व में किए गए नर संहारों के बावजूद किसी में भी इसके लिए पछतावा दिखाई नहीं देता | युद्ध अपराधों के लिए आज भी बहुत से देशों के पीड़ित जन क्षमा की अपेक्षा रखते हैं लेकिन  किसी भी देश, धर्म या समाज ने क्षमा नहीं माँगी है |क्या अत्याचारों, नरसंहारों, अपराधों और लूटपाट के ज़िम्मेदारों को उनके अपने धर्म इतनी भी उदारता, करुणा और संवेदना प्रदान नहीं करते कि वे अपने कुकर्मों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँगें, बिना किसी किन्तु-परन्तु के और इस दुनिया को प्रेमपूर्ण बनाने की कोशिश करें | क्या यह आवश्यक नहीं है ?

जहां तक ईश्वर की बात है तो किसी भी धर्म के मसीहा ने यह नहीं कहा है कि ईश्वर अनेक हैं और वह अपनी संतानों में भेदभाव करता है |यह अँधेरा तो उनके स्वार्थी अनुयायियों का फैलाया हुआ है | क्या वे इतनी विशाल हृदयता,संवेदनशीलता और ईश्वर में सच्ची आस्था दिखाएँगे ? यह पीड़ितों से अधिक पीड़कों के लिए भी उतना ही ज़रूरी है |

रामचरित के सुन्दरकाण्ड में अपनी शरण आए विभीषण से राम,राम जो ईश्वर हैं, कहते हैं-
जों नर होइ चराचर द्रोही
आवै सभय सरन तकि मोही
तजि मद मोह कपट छल नाना
करउँ सद्य तेहि साधु समाना

सच्चे और निर्विकार मन से 'उसके' चरणों में समर्पण करके देखिए तो ?

क्या जलवायु परिवर्तन की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में कोई ऐसा सम्मेलन आयोजित करने पर विचार किया जा सकता है जिसमें सभी राष्ट्र और धर्म उनके या उनके पूर्वजों के धर्म या खुदा या गॉड के नाम पर किए गए अपराधों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँग कर इस दुनिया की मानसिक और वैचारिक जलवायु स्वच्छ बनाने की एक ईमानदार कोशिश करने की सोचेंगे ?









Dec 1, 2015

इस असहिष्णु समय में

 इस असहिष्णु समय में

एक तरफ विश्व के सभी श्रेष्ठ मस्तिष्क और श्रेष्ठ राष्ट्र इस संसार के कल्याण के लिए हलकान हैं | आजकल विश्व-सरकार संयुक्त राष्ट्र  संघ, विभिन्न देशों के तरह-तरह के एन.जी.ओ. और सभी देशों की सरकारों द्वारा पशु-पक्षियों, पर्यावरण से लेकर समस्त विश्व की भूख, गरीबी, कुछ महामारियों से मुक्त करने, पेय जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानवीय गरिमा, बच्चों- महिलाओं के कल्याण तथा गरिमा के लिए कार्यक्रम और अभियान चलाए जा रहे हैं |विश्व शांति के लिए बड़ी भाग-दौड़ हो रही है | धर्म, संस्कृतियों, भाषाओँ, दुर्लभ पशु पक्षियों, वनस्पतियों  और विश्व धरोहरों को बचाने और उनके संरक्षण का हल्ला है | लगता है बस, यही वह सतयुग है जिसका कलयुग से पीड़ित इस धरती को इंतज़ार था |

और इसके साथ-साथ ही विश्व के सभी संसाधनों पर कब्ज़ा करने, उनका अंतिम बूँद तक दोहन करने , मुनाफा कमाने के लिए किसी को भी कुछ भी बेचने के लिए घेरने ,किसी को भी बिना कुछ सोचे-समझे घातक हथियार बेचने , अमानक दवाएँ और उनके अनधिकृत परीक्षण, एक दूसरे के यहाँ षड्यंत्र करवाने, दंगे भड़काने, सरकारें गिराने-बनवाने, नशीली दवाओं के व्यापार में सरकारों के शामिल होने, माफिया से सांठ-गाँठ, अभिव्यक्ति के नाम पर किसी भी देश, धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नस्ल आदि के अपमान को बढ़ावा देने आदि जैसे जाने कितने कुकर्म भी चलते रहे हैं |आज कल जिस तरह धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं उसी अनुपात में अधर्म का प्रचार भी हो रहा है |मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की |कहीं यह दवा के नाम पर मर्ज़ बढाकर फिर कोई नई दवा का धंधा करने का षड्तंत्र तो नहीं है ?

आज विश्व में असुरक्षा , भय और असहिष्णुता का जो वातावरण बना हुआ है उसे मात्र धर्म की पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन यह समस्या का अत्यंत सरलीकरण है | इसके पीछे स्वार्थ, अहंकार, लालच, घृणा का एक लम्बा इतिहास रहा है |धर्म और नस्ल की आड़ में समस्त विश्व में युद्धों और उपनिवेशवाद का अमानवीय खेल खेला जाता रहा है | यदि यह मात्र संसाधनों का ही मामला होता तो दुनिया से उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद बात सुलझ जाती |वैसे राजा या सत्ता या शासक पार्टी बदलने से सामान्य जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि उसके सहज जीवन और विश्वासों और सुख-दुखों से छेड़छाड़ न की जाए |उसे तो कर देना है और इस या उस माननीय को सम्मान देना है |लेकिन इसके पीछे विजेताओं के अहंकार और श्रेष्ठता के दंभ में विजित देशों की नस्लों और वहाँ  के निवासियों, उनके धर्म, आत्मसम्मान, आस्था केन्द्रों,भाषा, संस्कृति और सभ्यता को अपमानित किए जाने की जातीय स्मृतियाँ भी हैं |

जब ऐसा होता है तो विजित समाज अपने बचाव और सुरक्षा के लिए कछुए की तरह कट्टरता और अलगाव के एक खोल में घुस जाता है |बस, इसी खोल में वैचारिक अँधेरा, अन्धानुकरण, घृणा, भ्रम, शंकाएं पनपते हैं जिनका लाभ विजेता और विजित समाज के स्वार्थी नायक उठाते हैं | दिन पर दिन यह खाई और बढ़ती जाती है क्योंकि सब के अहंकार और स्वार्थ विगत, आगत, अनागत को छोड़ने के लिए विकुंठ नहीं हो पाते |

कुछ दिन पहले फ़्रांस में आतंकवादी घटना हुई जिसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता |इसका विरोध और प्रतिरोध होना चाहिए क्योंकि आग किसी धर्म, जाति, नस्ल, देश की सीमा नहीं मानती |लेकिन इस आग में अधिकतर वे जलते हैं जो न तो यह आग लगवाते है, न ही लगाते हैं |वे किसी से घृणा नहीं करते, वे तो सबके साथ प्रेम से रहना चाहते हैं |

आज संचार के साधनों के कारण एक छोटी सी भी घटना की खबर तत्काल सही या तोड़मरोड़ कर दुनिया में पहुँच जाती है और उसकी अच्छी-बुरी क्रिया-प्रतिक्रिया होने लगती है |इसलिए विभिन्न  समाजों, सरकारों, व्यक्तियों को अपने व्यवहार, कर्म और वाणी में सतर्क, सार्थक और सावधान और संतुलित रहना चाहिए लेकिन ऐसा कम देखने को मिलता है | अपने स्वार्थ , यश की चाहना, और राजनीतिक लाभ के लिए या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी बोल, कर या लिख देना उचित नहीं है |

पिछले कुछ समय के एक दो उदाहरण देखें जो न तो उचित थे, न आवश्यक, बल्कि किसी न किसी रूप में समाज में शंका, भय, वैमनष्य और भ्रम फ़ैलाने वाले थे |

अमरीका के राज्य डालास के गार्लैंड में रविवार को एक कार्टून प्रतियोगिता के दौरान दो बंदूकधारियों ने कार्यक्रम स्थल के निजी सुरक्षा गार्ड पर हमला कर दिया |पुलिस से मुठभेड़ में दोनों बंदूकधारी मारे गए |यहाँ पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून बनाने की विवादित प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। गौरतलब है कि इस्लाम की आलोचना करने वाले न्यू यॉर्क स्थित रूढि़वादी संगठन ने इस प्रतियोगिता का आयोजन किया था। पैगंबर मोहम्मद का 'बेस्ट कार्टून' बनाने वाले के लिए 10 हजार अमेरिकी डॉलर की पुरस्कार राशि दिए जाने की घोषणा भी की गई थी। 

यह प्रतियोगिता कला,संस्कृति और किस मानवीय गुण के विकास के लिए आवश्यक थी ? क्या इससे बचा नहीं जा सकता था ?क्या ऐसी प्रतियोगिताओं से बचा नहीं जाना चाहिए ?


चार्ली हैब्दो का यह कार्टून कौन सी कलात्मक अभिव्यक्ति है, कौन सी मानवीय संवेदना है  ? इससे किस मानवीय गरिमा का सम्मान या समस्या का समाधान होता है ?
 
चार्ली हेब्‍दो ने लिखा- ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं; बवाल

ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं  

(शरणार्थी और पलायन की समस्या से जूझ रहे सीरिया के तीन साल के एलन का शव पिछले दिनों तुर्की में समुद्र किनारे पाया गया था। )
अमरीका के फ्लोरिडा के एक चर्च के एक पेस्टर (धार्मिक अधिकारी) टेरी जोन्स ने ९/११ की घटना की बरसी मनाने के लिए २९९८ कुरान की प्रतियाँ केरोसिन डाल कर जलाने के लिए ले जाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया |क्या किसी धार्मिक स्थल से संबंधित व्यक्ति से ऐसी आशा की जा सकती है कि वह ऐसा सोचे या करे ? ऐसी सोच से किस धर्म का हित हो सकता है ? और ऐसे व्यक्ति अपने धर्म के लोगों को कौनसी राह दिखाएँगे ? 
अपने यहाँ भी पिछले कुछ दिनों में किसी धर्म विशेष को लेकर अतिउत्साही लोगों द्वारा कुछ ऐसे बयान  दिए गए जो सामाजिक सौहार्द के लिए घातक थे | यदि इतिहास पढ़ा जाए तो सभी समयों में, सभी धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने अहंकार में बहुत से अनुचित कार्य किए हैं |लेकिन क्या अब उन्हें आधार बना कर लड़ा-मरा जाए या उन भूलों को सुधार कर इस दुनिया-जहान को रहने लायक और सुख-शांति पूर्ण बनाया जाए ? 

यह समय सबके लिए मन, कर्म, वचन से समझदारी अपनाते हुए सहयोग, प्रेम, सहिष्णुता से रहने का है |दुःख तो वैसे भी दुनिया में बहुत हैं , उन्हें और क्यों बढाया जाए ? लेकिन यह सब एकतरफा नहीं हो सकता |ताली एक हाथ से नहीं बजती लेकिन आग लगाने के लिए तो एक हाथ ही काफी है |

अहंकार बीच में आ जाता है | सवाल यह है कि पहल कौन करे ?अपनी चार पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहता हूँ-
ख़ुद से ज़रा निकल कर देखो
साथ हमारे चल कर देखो
वे रूठे हैं मन जाएंगे 
तुम ही ज़रा पहल कर देखो |


















Nov 26, 2015

तोताराम का जन्मदिन

  तोताराम का जन्म दिन

जिस प्रकार कवियों के वर्णन में ब्रह्ममुहूर्त में पूर्व दिशा में उषा की लाली छा जाती है, कमल विकसित हो जाते हैं, उनमें कैद भौंरे निकल गुंजार करने लग जाते हैं, वातावरण में पक्षियों का कलरव व्याप्त हो जाता है उसी तरह हमारी सुबह के तीन दृश्य हैं |पहला- कृषि मंडी में सब्ज़ी बेचने के लिए जाने वाली बैलगाड़ियों, मोटर साइकिलों, साइकिलों, ऑटो रिक्शाओं की धड़धड़ाहट मुखर हो जाती है |दूसरा- धार्मिक स्थानों के माइक अपने-अपने ईश्वरों को प्रसन्न करने या आलसियों को जगाने या भक्तों को लुभाने के लिए पूरे वोल्यूम में गरजने लगते हैं |लगता है जिसका शोर ज्यादा होगा वही विजयी होगा | दोनों की ध्वनियाँ एक दूसरी पर इस कदर हवी हो जाती हैं कि उनके शब्द और सन्देश समझ पाना असंभव हो जाता है |मेरे जैसे मज़बूरन श्रोता को पता नहीं इससे दोज़ख मिलेगा या नरक ?और तीसरा हमारा अपनी पालतू मीठी को घुमाने ले जाने का कार्यक्रम |

जैसे ही घर में घुसने लगे, एक गधा गाड़ी वाले ने हमारे बरामदे में एक गठरी और एक छोटी सी मानवाकृति को उतारा तो हमें आश्चर्य हुआ क्योंकि हमने इतनी सब्ज़ी के लिए किसी को भी आर्डर नहीं दिया था |नज़दीक जाकर देखा तो तोताराम |

पूछा- आज इस शाही सवारी में आने की ज़हमत कैसे फरमाई ?

बोला- जब मुलायम सिंह जैसे सरल, मितव्ययी और सच्चे समाजवादी अपने जन्म दिन पर इंग्लैण्ड से बग्घी मंगा सकते हैं तो मैं क्या इस गधा-बग्घी में क्यों नहीं आ सकता ?

हमने कहा- मुलायम जी से तुलना करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ? कहाँ तू एक साधारण पेंशन भोगी मास्टर और कहाँ वे पूर्व एम.एल.ए., मुख्यमंत्री, सांसद, रक्षामंत्री और सम्प्रति मुख्यमंत्री के पिताजी | उन्होंने तो मात्र ७६ किलो का केक, २  करोड़ का मंच, १२ करोड़ के नाचने और गाने वाले बुलाए हैं |चाहते तो क्या नहीं कर सकते थे ? लेकिन तुझे यह गाड़ी, यह केक का नाटक करने की क्या ज़रूरत थी |तुझे तो अपने कम्यूटेशन के समाप्त होने का हिसाब लगाना चाहिए कि कब समाप्त होगा और कब १५०० रूपए कटने बंद होंगे |

बोला- भाई साहब, गधा गाड़ी वाले ने मुफ्त में लिफ्ट दे दी थी और फिर मेरे लिए ५० किलो का केक उठाकर लाना संभव भी तो नहीं था |खैर, शेष ब्रेक के बाद | मुहूर्त निकला जा रहा है |

हम दोनों बरामदे में आगे बैठ गए | तोताराम ने अपना एक फोटो टांग दिया |जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ दीप- प्रज्ज्वलन के बाद हमने फूलमाला फोटो पर डाल दी |

तोताराम उखड़ गया, बोला- इतना भी पता नहीं ? क्या उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री बंशीधर जी की तरफ फोटो पर फूलमाला डाल दी |कहीं जिंदा व्यक्ति के जन्म दिन पर माला डाल कर श्रद्धांजलि दी जाती है ?

हमने कहा- क्या जीते जी कोई श्रद्धास्पद नहीं हो सकता ? क्या श्रद्धा प्रकट करना गलत है ? शब्दों के चक्कर में मत पड़ |क्या 'अपेक्षा' और क्या 'उपेक्षा', होना तो वही है ना |

तोताराम ने केक से पर्दा हटाया- यह क्या, बड़े से पत्थर पर कोई एक किलो का केक |हमने कहा- तोताराम, यह क्या ? बोला- आपका लघु भ्राता हूँ | वास्तव में मितव्ययी |वैसे उम्र के हिसाब से मैं भी चोहत्तर किलो का केक ला सकता था लेकिन मैंने इसे अपने वज़न से जोड़कर ५० किलो का कर दिया और इसमें भी ४९ किलो का पत्थर का बेस और एक किलो का केक |

जैसे ही तोताराम ने केक का टुकड़ा हमारे मुँह में दिया, यह क्या  ? पहले थोड़ा सा केक का और फिर बाजरे का स्वाद | हमने पूछा- तोताराम, यह क्या चक्कर है ?

बोला- बन्धु, ऊपर-ऊपर केक और फिर अन्दर बाजरे का चूरमा | यह है अपना विकसित होने और महंगाई से लड़ने का तरीका |

हमने कहा- तोताराम, सरकार कुछ भी कर ले, महंगाई कितनी भी बढ़ जाए लेकिन तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |







Nov 24, 2015

तोताराम का रेड कारपेट वेलकम

  तोताराम का रेड कारपेट वेलकम

कल कई दिनों के इंतज़ार के बाद कबाड़ी आया |हमने दिवाली पर रद्दी में मंदी को देखते हुए कबाड़ की क्लीयरिंग सेल नहीं की |उम्मीद थी कि दिवाली के बाद भाव कुछ चढ़ेंगे लेकिन वे सेंसेक्स, गाय और आम आदमी की तरह गिरते ही जा रहे थे |आखिर कब तक घर में कूड़ा रखे रहें, सो कहा- भैया,  आज हम रद्दी के भाव-पतन पर कोई मंथन या संवाद नहीं करेंगे |तोल भी तेरा और भाव भी तेरा |

पता नहीं, उसे हम पर कैसे और क्यों दया आई ? बोला- मास्टर जी, आज मैं आपसे  आपके फायदे का एक सौदा करना चाहता हूँ |

हमने कहा- ठीक है लेकिन यह तय है कि विदेशी निवेश या मेक इन इण्डिया तरह फायदा तो तुझे ही होगा फिर भी बता तो सही |

रेहड़ी पर रखे एक पुराने और कटे-फटे कारपेट की ओर इशारा करते हुए बोला-आज अपनी सारी रद्दी के बदले आप यह लाल रंग का कारपेट ले लें | बरामदे में पड़ा रहेगा |बरसात में भीग भी गया तो ख़राब नहीं होगा, सिंथेटिक है |सोचिए, आपके बरामदे की कितनी शोभा बढ़ जाएगी ? 

हमने कहा- यहाँ कौन से निवेशकों की मीटिंग हो रही है जो घर फूँक सजावट करेंगे |फिर भी कोई बात नहीं, बिछा दे बरामदे में |

उसने बरामदे में कारपेट बिछा दिया और हमारे बुढ़ापे का लिहाज़ करते हुए उस पर झाडू भी लगा दी |वाकई में बरामदे की रंगत बदल गई |

तभी तोताराम आया और आगे लगा- कारपेट के नीचे क्या है ?कारपेट के नीचे क्या है ?

हमने कहा- आज तक न तो बरेली के बाज़ार में खोया झुमका मिला और न ही चोली के नीचे के रहस्य का पता चला |राज़  को राज़ रहने दो |

बोला-मुझे पता है, कारपेट के नीचे बरामदे का फर्श है |

हमने कहा- इसमें क्या बात है ? बरामदे के नीचे फर्श ही तो होगा |

कहने लगा- और कुछ भी हो सकता है जैसे जब सफाई के लिए पर्याप्त समय नहीं हो और कार्यक्रम शुरू होने वाला हो तो कूड़े को कारपेट के नीचे ही सरकाया जाता है |और यदि बहुत जल्दी हो तो फटाफट टेकनोलोजी के एक्सपर्ट अधिकारी सजावट पूरी करने के लिए सब कुछ कारपेट से ढँक देते हैं |कौन देखता है ? बाद में समेटते रहेंगे |इसलिए समझदार व्यक्ति कारपेट पर कभी भी सबसे आगे नहीं चलता |क्या पता, कारपेट के नीचे नाली हो और उसका पैर फँस जाए |

तेरे यहाँ ऐसा कोई फटाफट के दिखावे का कार्यक्रम तो है  नहीं इसलिए बिना हिचक के सीधे-सीधे बैठा जा सकता है |

चल चाय मँगवा,तेरा रेड कारपेट और मेरा 'रिसर्जेंट राजस्थान में जयपुर में 'रेड कारपेट वेलकम' जो हुआ नहीं,  दोनों को सेलेब्रेट करते हैं |

Nov 23, 2015

वैज्ञानिकता : भविष्य के धर्म का आधार

 वैज्ञानिकता : भविष्य के धर्म का आधार 

जिस तरह अंतरिक्ष में सभी पिंडों को अंतरिक्ष ने घेर रखा है |इन पिंडों के लिए अंतरिक्ष के अतिरिक्त और कोई सत्य नहीं है |जल के समस्त जीवों के लिए जल में ही उत्पत्ति, जीवन और समापन हैं |उनके लिए इसके अतिरिक्त कोई गति नहीं है वैसे ही समस्त जीवों के लिए इस सृष्टि के अतिरिक्त कहीं कोई गति नहीं है |यदि जीवों के लिए इसके अतिरिक्त किसी लोक की कोई बात की जाती है तो वह विवादास्पद और अप्रामाणिक है |

अन्य जीवों की चेतना का पता नहीं लेकिन मनुष्य के लिए सुरक्षा, जीवनयापन के उपादान और विनाश के  सभी दृश्य/अदृश्य कारक इसी सृष्टि में व्याप्त हैं | वह उसके विनाशक, आश्चर्यकारक, मोहक सभी रूपों को समय-समय पर देखता और अनुभव करता है |वही उसके लिए परमशक्तिशाली और अनन्य है | उसने अपने इन अनुभवों, कृतज्ञता और भय को भांति-भांति से अभिव्यक्ति प्रदान की है |वेदों में विशेषरूप से सामवेद में प्रकृति/सृष्टि के इसी गीत-संगीत का भावलोक है |

इसके नियंता के रूप में जिस परम आत्म की संकल्पना है वह भी इस सृष्टि/प्रकृति से परे नहीं है |विभिन्न देवों और शक्ति केन्द्रों  (ब्रह्मा, विष्णु और शिव ) की कल्पना/स्थापना भी इसी ज्ञान/विज्ञान के रूप  हैं | सभी समाजों में यह सब किसी न किसी रूप में विद्यमान है | इसी क्रम में दृश्य के साथ अदृश्य जगत की अवधारणा भी सामने आती है |और इस अदृश्य लोक में वैचारिक लोगों की मनमानी चलती है जिसमें उनका अपना अज्ञान और स्वार्थ भी शामिल होता है |

चूंकि संचार और आवागमन के  साधनों के अभाव में तथा प्राकृतिक बाधाओं के कारण अलग-अलग द्वीपों में बंटे इस धरती के विभिन्न समाजों ने अपना-अपना  विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान विकसित किया | इसमें उनके विशिष्ट रिवाज, खान-पान, पहनावा भी शामिल थे जो उनके परिवेश और परिस्थितियों की उपज थे |उनका यह ज्ञान पूर्ण नहीं था लेकिन नितांत गलत भी नहीं था |विभिन्न समुदायों के संवाद के अभाव में उनका ज्ञान सीमित और एकांगी रहा आया |इसी कारण कालांतर में उसमें रूढ़ता, कट्टरता आती गई जिसे उन समुदायों ने अपनी अस्मिता और पहचान बना लिया और उसे कायम रखने के लिए संघर्ष करने को  ही धर्म मान लिया |ऐसे धर्म-युद्धों के अनेक वर्णन विश्व के सभी भागों से मिलते हैं |

जिस प्रकार आज बड़े आर्थिक व वर्चस्व के  हितों के लिए विभिन्न देशों में संघर्ष हैं वैसे अतिप्राचीन काल में भी पशुधन, खाद्य सामग्री, चारागाह अदि के लिए संघर्ष होते थे |विजित और विजेता होते थे |उनके अपने-अपने मनोविज्ञान होते थे |विजेता अपने को श्रेष्ठ और विजित को सब प्रकार से निकृष्ट सिद्ध करते थे |उनके साथ गुलाम और मालिक का रिश्ता रखते थे |विजित उनके प्रति घृणा और उपेक्षा भाव को जीवित रखने के लिए उन कुंठाओं को अपने धर्म और संस्कृति के मूल तत्त्वों में शामिल कर लेता था |कहीं -कहीं इन्हें संहिता-बद्ध भी कर दिया गया |

वास्तव में इनका मानव के विकास और सुख-दुःख से कोई संबंध नहीं होता |हाँ, अपने वर्चस्व, नेतृत्त्व के बल पर अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि करने वालों के लिए ये अस्मिताएं/धर्म अधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं |सामान्य जन का कहीं भी, कभी भी , किसी से भी संघर्ष का कारण यदि रहा है भी तो वह जीवन यापन के सामान्य साधनों को लेकर ही रहा है अन्यथा सामान्य जन शांति और प्रेम से ही रहना चाहते हैं |उनकी जीवन से बहुत बड़ी आशाएँ और अपेक्षाएं नहीं होतीं |इसलिए वे किसी भी अशांति या युद्धों के कारण नहीं होते |उनके लिए तो धर्म का अर्थ कर्त्तव्य, जीवन का सहज उल्लास और उत्सव होता है |वे मिल बांटकर जीवन के सुखों-दुखों को भोगना चाहते हैं |अब यह समाज के विचारशील लोगों पर निर्भर है कि वे अपने समाज के सामने कैसे मूल्य और धर्म का कैसा स्वरुप प्रस्तुत करते हैं ?


विश्व के सभी क्षेत्रों और कालों के विभिन्न धर्मो और संप्रदायों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उनमें सदाचार, नीति और कर्त्तव्य संबंधी सभी तत्त्व जैसे सहयोग, उदारता, करुणा, प्रेम आदि समान हैं |इनके बारे में कहीं विवाद और विरोध नहीं है लेकिन कुछ महत्त्वहीन मुद्दों जैसे खानपान, पहनावा, दाढ़ी-मूँछ, पर्दा प्रथा, धर्म-स्थलों, पूजा पद्धतियों आदि में बहुत भिन्नता है और प्रायः वही विवाद और झगडे का कारण भी दिखती हैं |
सभी धर्मों का अध्ययन करके उन्हें विवेक सम्मत और वैज्ञानिक बनाया जा सकता है |

सभी इस बात पर सहमत हैं कि ईश्वर एक है, उसका कोई निश्चित स्वरुप नहीं है, सभी जीव उसके उपजाए हुए हैं | इसलिए इस एकता को स्वीकार करते हुए, उसे आधार बनाते हुए, अब तक के विश्व के सभी धर्मो की कमियों को  इस ज्ञान और विज्ञान के आधार पर कसा जाना चाहिए |इसे विज्ञान ने तत्त्वदर्शन का नाम दिया है और भारत में जिसे आदि शंकराचार्य ने अपने अद्वैत-दर्शन के रूप में व्याख्यायित किया है |

रामचरित मानस के उत्तर कांड में भगवान राम काकभुशुण्डी को चेतना  की विभिन्न स्थितियों से क्रमिक विकास के बारे में बताते हुए कहते हैं- मुझे जीवों में मनुष्य, मनुष्यों में द्विज, द्विजों में वेदज्ञ, वेदज्ञों में विरक्त, विरक्तों में ज्ञानी और ज्ञानियों में विज्ञानी सबसे अधिक प्रिय हैं |इस प्रकार समस्त मानव चेतना का सर्वश्रेष्ठ और निर्विवाद रूप विज्ञान में मिलता है क्योंकि ज्ञान निरपेक्ष, निर्विवाद और सत्य होता है | वह ज्ञान की इतर, श्रेष्ट और तार्किक व्याख्या होने पर उसे बिना किसी विरोध और विवाद के स्वीकार कर लेता है |यही विज्ञान की श्रेष्ठता का आधार है |

इसी के आधार पर किसी सर्व स्वीकार्य धर्म, सिद्धांत या विचार या नियम की कल्पना की जा सकती है |संभवतः ईमानदारी से विचार किया जाए तो इसे कोई अस्वीकार नहीं करेगा |किसी के निजी या व्यक्तिगत स्वार्थों में बाधा आने की स्थिति में  बात और है जैसे कि सूर्य और पृथ्वी के बारे में तत्कालीन वैज्ञानिक स्थापनाओं में चर्च ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में दखल और अंततः अपनी सत्ता के खिसकने के डर के कारण इसका विरोध किया था |आज किसी को भी इस स्थापना के बारे में ऐतराज़ नहीं है |इसी लिएविज्ञान के सभी नियम सभी धर्मों वाले देशों में निर्विरोध स्वीकार्य हैं |कहीं की भी पुस्तकों में विज्ञान के दो तरह सिद्धांत नहीं होते |विज्ञान ईसाई,हिंदी, यहूदी, मुसलमान, जैन बौद्ध नहीं होता |वह रिलीजन या मज़हब के आधार पर किसी नस्ल, रंग, भाषा और जीवन के स्वरूप कमतर या बेहतर नहीं आँकता |वह जीवन की दृष्टि से अपने फैसले और प्राथमिकताएं निर्धारित करता है |वही सच्चा धर्म और दर्शन है |

आगे आने वाले समय में निश्चित रूप से विज्ञान का समावेश और उसे स्वीकार करके चलने वाला धर्म ही टिकेगा |अब धर्म का भविष्य अंधविश्वास, कुतर्क और धर्म के नाम पर घृणा के बल पर नहीं चल सकेगा | यह  बात और है कि सभी धर्मों के भले और शांति-प्रिय लोग आज असहिष्णुता और अपराधी वृत्ति के धर्मांध लोगों से डर कर चुप हैं लेकिन मन ही मन सभी ऐसे ही किसी विज्ञान और सत्य आधारित, तथ्यात्मक धर्म को पसंद करते हैं |इसी को मानव-धर्म भी कह सकते हैं |

आज के इस भयप्रद, अशांत और असहिष्णु समय में ऐसा विज्ञान सम्मत धर्म  ही शांति, सद्भाव और प्रेम का उजाला दिखा सकता है |ऐसे में सबको अपनी अपनी कट्टरता, पूर्वाग्रह, श्रेष्ठता और हीनता ग्रंथि, भौतिक स्वार्थ छोड़ने के बारे में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से काम करना होगा |ऐसा नहीं चलेगा कि कुछ विश्व शांति की आड़ में हथियारों के व्यापार,जोड़-तोड़ और कूटनीति के नाम अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे हैं और अन्यों से विज्ञान सम्मत धर्म के नाम पर अतिरिक्त उदारता और छूट की आशा करें |

किसी बड़े और पवित्र वैश्विक-यज्ञ में सब को उदार भाव से अपने स्वार्थों और कुंठाओं की आहुति देनी होगी |याद रहे, किसी भी जंजीर की ताकत उतनी ही होती है जितनी उसकी किसी सबसे कमजोर कड़ी की होती है |










Nov 21, 2015

तोताराम के साथ एम. ओ यू.

  तोताराम के साथ एम.ओ. यू. 

यह क्या ? उधर 'रिसर्जेंट राजस्थान ' शुरु और ठीक उसी समय मतलब १९ नवम्बर २०१५ की सुबह नौ बजे तोताराम हमारे बरामदे में हाजिर | हमने पूछा- क्या सम्मिट से पहले ही तेरा ड्रीम प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया ? अब बता, पहले अपने प्रोजेक्ट का फुल फॉर्म बताएगा या प्रोजेक्ट के डिटेल्स या 'ला फ्यूरा' की कलाबाजियों के बारे में  ?

बोला- तू भी साँस ले और मुझे भी लेने दे और भाभी से एक कड़क चाय और पानी का गिलास मँगवा |

हमने पूछा- क्या वहाँ चाय भी नहीं मिली ?

बोला-मिली होती तो आते ही तेरे सामने हाथ फैलाता क्या ?

खैर, चाय आई और चाय पीते-पीते तोताराम में जो बताया वह इस प्रकार था- प्रोजेक्ट का नाम कल तो याद था लेकिन अब हड़बड़ी में मैं खुद ही  भूल गया हूँ | यही समझ ले बस; कैर, काचरी से संबंधित कुछ था | सुबह-सुबह  सिन्धी कैम्प उतरकर रिक्शे वाले से पूछा- रिसर्जेंट राजस्थान चलेगा ?

तो बोला- यह कहाँ है ?

मैंने कहा-यहीं है |जयपुर में |देश-विदेश के बड़े-बड़े  धुरंधर धनी उद्योगपति इकट्ठे हो रहे हैं |होटल में मिलेंगे और कलाबाजियां देखेंगे और कुछ धंधे-पानी की बात करेंगे |
  
तो पूछने लगा- क्या तू उनसे किसी गौशाला के लिए चंदा माँगने आया है ?

मैंने कहा- चंदा माँगने नहीं, राजस्थान के  जायके को विश्व पटल पर स्थापित करने आया हूँ |

तो बोला- बाबा, तेरी बात तो मुझे समझ में आती नहीं लेकिन यह पक्का है कि आज और दिनों जैसी बात नहीं है |शहर की सुरक्षा, व्यवस्था, यातायात आदि बड़े-बड़े अधिकारी सँभाल रहे हैं यहाँ तक कि सड़कों पर लटके हैंगिंग गार्डन में पानी भी वे ही दे रहे हैं |कल तो सड़कों पर से गाएं भी वे ही भगा रहे थे |परिंदा भी पर नहीं मार सकता |इसलिए अच्छा होगा कि चुपचाप निकल ले लौटती बस से | २१ तारीख़ को आना जब सब नार्मल हो जाए |किसी पुलिस वाले ने, किसी शक में अन्दर कर दिया तो मुश्किल हो जाएगी |सो लौट आया |

हमने पूछा- तो अब तेरे इस कैर-काचरी प्रोजेक्ट का क्या होगा ?

बोला- होगा क्या ? अब मैं स्थानीय स्तर विद्यालयों में काचर छीलने और कैर चूँटने की प्रतियोगिताएं करवाऊँगा और फिर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ले जाऊँगा | मैथ्स ओलंपियाड की तरह इनके भी ओलंपियाड करवाऊँगा | इससे राजस्थान के इस विशिष्ट स्वाद कैर के अचार और काचरी की चटनी का विश्व में प्रचार होगा जिससे राजस्थान में औद्योगीकरण होगा, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को गति मिलेगी | गाँव-गाँव खुशहाली और समृद्धि आएगी |

हमने कहा- तोताराम, हम तुम्हारे इस प्रदेश-प्रेम से बहुत प्रभावित हैं |भले ही तुम्हें रिसर्जेंट राजस्थान में घुसने का मौका नहीं मिला लेकिन हम तेरे साथ 'मेमो ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग'  साइन करते हैं | बैठ, आज तेरी भाभी ने देशी बाजरे की रोटी, लहसुन- काचरी की चटनी और मट्ठा बनाया है, उसी के साथ सेलेब्रेट करते हैं |

बोला- यही तो है 'रिसर्जेंट-राजस्थान' लेकिन बाज़ार की चकाचौंध के मारों को कुछ समझ में आए तो ? जल्दी ला | पता नहीं, विकास की इस दौड़ में गाँवों में फिर कैर और काचरी मिलें या नहीं |





Nov 18, 2015

रिसर्जेंट और वाइब्रेंट तोताराम

 रिसर्जेंट एंड वाइब्रेंट तोताराम 

हम बरामदे में बैठे चाय का इंतजार कर रहे थे कि सिर पर चूंदड़ी की राजस्थानी पगड़ी, घुमावदार मूँछे, दुलंगी धोती और पैरों में कढ़ाई वाली मोचड़ी पहने एक आकृति हमारे सामने आकर गिर पड़ी |हम तो घबरा गए |वस्त्रों से तो पहचान नहीं पाए पर जैसे ही उस काया को उलटा तो- तोताराम | हे राम, सुबह-सुबह यह क्या हुआ ? सात दशकों का साथी तोताराम | हमारी ही बाँहों में इसे अंतिम साँस लेनी थी |चिल्लाते हुए अन्दर गए पानी लेने कि इसके चेहरे पर छींटे मारकर होश में लाने की कोशिश करें |वापिस आए तो देखा तोताराम पालथी मारे बैठा है |हमने टेस्ट करने के लिए उठाया तो काँपता हुआ फिर गिर पड़ा |फिर उठाया तो दस सेकण्ड बाद फिर गिर पड़ा |
हमने पूछा- क्या पैर सो गया या मोच आ गई ?और काँप भी रहा है क्या सर्दी लग रही है ?
बोला- कुछ नहीं |डिक्शनरी देख |
हमें बड़ा अजीब लगा |हम बीमारी पूछ रहे हैं और यह डिक्शनरी की बात कर रहा है |दुबारा खड़ा किया तो फिर वही हाल |फिर बोला- डिक्शनरी देख |
हम डिक्शनरी लाए और पूछा- बता क्या देखना है ?
बोला-रिसर्जेंट और वाइब्रेंट के अर्थ देख |
हमने देखकर बताया- रिसर्जेंट अर्थात फिर उठ खड़ा होने वाला और वाइब्रेंट अर्थात झनझनाता हुआ |
बोला- मैं एक साथ रिसर्जेंट राजस्थान और वाइब्रेंट गुजरात का प्रतिनिधित्त्व कर रहा हूँ |
हमने माथा पीट लिया, कहा- अब तो उठ रिसर्जेंट और वाइब्रेंट तोताराम |बेवकूफ, तूने तो डरा ही दिया था |

बोला- चल, मैं तो रिसर्जेंट-राजस्थान में भाग लेने जयपुर जा रहा हूँ |यदि तेरा मन हो तो तू भी चल | 'ला फ्यूरा' देख आना |
हमने कहा- यह क्या है ? 
बोला- यह स्पेन का एक दल आया है जो इस कार्यक्रम में कलाबाजियाँ दिखाएगा |
हमने कहा- इसके लिए स्पेन से बुलाने का खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी | दुनिया में कहीं भी निगाह डाल लो कलाबाजियाँ ही चल रही हैं |सब तीन को तेरह दिखाने के चक्कर में तीन-तेरह हुए जा रहे हैं | अरे, जब रसोई में सामान ही नहीं है तो कप-प्लेट और टेबल-कुर्सियों से काम थोड़े चलेगा ? और न ही कलाबाजियों से पेट भरेगा |बच्चे को दूध चाहिए, चुसनी से कब तक चुप रहेगा ? 


बोला- ऐसे समय में मज़ाक ठीक नहीं |दूर-दूर से मेहमान आए हैं |हँस-बोल कर स्वागत करो |
हमने कहा- सो तो करने वाले करेंगे ही लेकिन तुझे किसने बुलाया है जो मूँछों पर ताव दे रहा है ?
कहने लगा- अरे, हम राजस्थानी हैं, मेज़बान हैं |किसके बुलाने का इंतज़ार करेंगे ?
हमने कहा- लेकिन वहाँ तो इन्वेस्टमेंट करने वाले आए हैं |तू क्या इन्वेस्ट करेगा ? हाँ, भले लोगों का टाइम ज़रूर वेस्ट करेगा |यहीं रह |चाय आ रही है |
बोला- मुझे भी इन्वेस्ट करना है | अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक तकनीकी संस्थान स्थापित करना है |
हमने कहा- कोई ढंग का काम कर |हमारे राज्य और शहर में तो पहले से ही गली-गली में बस, होस्टल सुविधा वाले ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज खुले हुए हैं |और कुछ तो बिना एडमीशन और परीक्षा के ही घर पर डिग्री की डिलीवरी दे देते हैं तो किसी संस्थान की ज़रूरत ही क्या है ?
बोला-  मेरा संस्थान इनसे भिन्न है | राजस्थान को विश्व पटल पर स्थापित कर देने वाला- के.के.ऍफ़.सी.इंटरनेशनल |
हमने पूछा- यह क्या है ?
बोला- यह सब एक लम्बे ब्रेक के बाद |अब चाय मँगवा |
हमें कल का इंतजार है |शायद पाठकों को भी |



Nov 10, 2015

लौटाने जा रहा हूँ

  लौटाने जा रहा हूँ 

आज तोताराम अन्दर नहीं आया, दरवाजे से ही आवाज़ लगाई- चल, जल्दी तैयार हो जा, लौटाना है तो |मैंने तो लौटाने का फैसला कर लिया है |

हमने घर के अन्दर से ही कहा- तेरे पास है क्या लौटने के लिए ? एक प्राण हैं जो तू नहीं लौटाएगा तो यमदूत अपने आप ही समय पर आकर ले ही जाएँगे और तेरी यह 'ज्यों की त्यों चदरिया' मुक्तिधाम में पञ्च तत्त्व में विलीन कर दी जाएगी | यदि बच्चों ने अखबार में तीये-उठावने की खबर नहीं छपवाई तो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तोताराम कब फुर्र हो गया ?

तोताराम ने ऊँची आवाज़ में उत्तर दिया- अरे, इतने कठोर वचन तो कुर्सी के लिए देश का सत्यानाश कर डालने वाले सेवकों ने भी बिहार के चुनावों में एक-दूसरे को नहीं कहे होंगे, इतनी दुर्भावनापूर्ण बद् दुआ तो तंत्र-मन्त्र और हस्त रेखा में विश्वास करने वाले विकास-पुरुषों ने भी  नहीं की होगी |वैसे क्या तू मुझे मूर्ख समझ रहा है ? अभी तो जुलाई २०१५ से बढ़े डी.ए. का एरियर भी नहीं मिला, तिस पर २०१६ वाला पे कमीशन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है ऐसे में भले ही शरशैया पर पड़ा रहना पड़े लेकिन यह तन-चदरिया नहीं छोडूँगा |पर मुझे लौटाने तो जाना ही है |यदि तू चले तो तेरी मर्ज़ी, अच्छा रहता साथ हो जाता |कल शाम तक वापिस लौट आएँगे | 

हमने कहा- तोताराम, तेरे पास कौनसा पुरस्कार है जो लौटाएगा ?

बोला- बन्धु, मेरे पास कोई पुरस्कार नहीं है |मैं तो अमित जी की तरह गैस कनेक्शन पर मिलने वाली सब्सीडी लौटाने जा रहा हूँ |मेरा भी अखबार में नाम आ जाएगा |

हमने कहा- आजकल जिसे देखो कुछ न कुछ लौटाने के लिए दिल्ली की तरफ भागा जा रहा है |ऐसे ही  लौटने वालों के विरुद्ध दिल्ली में अनुपम खेर जी ने मोर्चा खोल रखा है |इस बार वे कोमेडी नहीं, सुपर मैन वाला रोल कर रहे हैं |उनके सामने पड़ गया तो ऐसा उठाकर फेंकेंगे कि पकिस्तान में जाकर गिरेगा | फिर पता नहीं, कब गीता की तरह तेरी वापसी हो | इसलिए दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही अपने हाथ में एक बैनर ले लेना- 'मैं पुरस्कार या सम्मान नहीं,गैस सब्सीडी लौटाने जा रहा हूँ |'

लेकिन तू गैस सब्सीडी क्यों लौटा रहा है ? जब सांसद ही सब्सीडी वाला खाना खाने में संकोच नहीं करते तो तू क्या क्रीमी लेयर वाला बना फिरता है ? अमित जी की बात और है |उन्होंने तो उत्तर प्रदेश सरकार की यश-भारती वाली अपनी ५० हजार रूपए महीने वाली पेंशन भी लौटा दी | वे अफोर्ड कर सकते हैं | वैसे जहां तक अखबार में नाम की बात है तो आजकल दुष्टों का नाम ज्यादा आता है |देखा नहीं, एक तरफ सारा देश और एक तरफ छोटा राजन की खबरें |लगता है, जैसे रावण को मारकर चौदह वर्ष बाद राम अयोध्या लौटे हों |

बोला- वैसे भी जब दाल है नहीं तो किसे गलाने के लिए गैस चाहिए ?और अब  आगे चार महीने की सर्दियाँ हैं सो नहाने के लिए पानी गरम करने का झंझट भी नहीं | इसलिए सोचता हूँ कि इस बहाने ही सही, त्यागी महानायकों में नाम लिखवा लूँ |

 बात लम्बी होते देख, हम बरामदे में आ गए | तोताराम को चाय का कप पकड़ाते हुए कंधे पर हाथ रखकर प्यार से पूछा- क्या वाकई तू सब्सीडी लौटना चाहता है ? सोच, हमें इस पेंशन और गैस सब्सीडी के अलावा और मिलता ही क्या है  ? बिना बात परमवीर चक्र की तरह गले में आधार कार्ड और राशन कार्ड डाले फिरते हैं | लगता है, बात कुछ और ही है |
बोला- भाई साहब, कल ही जेतली जी ने कहा है कि एक खास आमदनी के बाद गैस सब्सीडी बंद कर दी जाएगी |सो हमारा नंबर भी आया ही समझो |अच्छा है कोई आरोप लगाकर नौकरी से निकले, उससे पहले ही त्याग-पत्र दे दो |

हमने कहा- तो फिर रुक, हम भी तेरे साथ चलते हैं |
 कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म

एक था कुम्भकर्ण- लंका के राजा रावण का भाई | उसने ब्रह्मा से वरदान माँगा कि मैं छः महिने जागूँ और एक दिन सोऊँ | ब्रह्मा उसकी फितरत जानते थे इसलिए उन्होंने उसकी मति फेर दी सो उसने माँग लिया- छः महिने सोऊँ और एक दिन जागूँ | ब्रह्मा ने तथास्तु कह दिया |

ब्रह्मा के वरदान से सृष्टि की रक्षा हो गई | यदि वह छः महिने जागता और एक दिन सोता तो इस सृष्टि की सारी खाद्य और अखाद्य सामग्री खा जाता | वह छः महिने सोता था सो कुछ पैदा करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता | इसके बावज़ूद सृष्टि पर संकट नहीं आया क्योंकि वह केवल एक दिन जागता था | भगवान राम ने उसका वध किया | पर जैसा कि सृष्टि का नियम है, जिसकी मोक्ष नहीं होती उसका पुनर्जन्म होता है | तब फिर प्रभु का अवतार होता है | अब की बार इस कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म अमरीका में हुआ है | अबकी बार यह सावधान था इसलिए उसने वार माँग लिया कि मैं कभी न सोऊँ |

कभी न सोने वाला और केवल भोग ही करने वाला यह कुम्भकर्ण अपने को मनीषी भी कहता है | इसने एक नई संस्कृति, एक नया चिंतन दिया है जिसका नाम है- उपभोक्ता संस्कृति | इस संस्कृति के अनुसार मानव का जन्म अधिक से अधिक उपभोग करने के लिए हुआ है | जितना अधिक उपभोग किया जाएगा उतना ही अधिक उत्पादन करना पड़ेगा, उतना ही अधिक व्यापार होगा, उतना ही अधिक विकास होगा और उतने ही अधिक संबंध होंगे | हालाँकि भूख-प्यास सीमित होती है पर सीमित भूख-प्यास से उपभोग सीमित हो जाएगा | इसलिए मानव की भूख-प्यास बढ़ाने के लिए तरह-तरह के नुस्खे विकसित किए गए हैं | इन नुस्खों में सबसे महत्वपूर्ण है विज्ञापन | इसके द्वारा मानव की भूख-प्यास को बढ़ाया जाता है और इसमें सहायता करते हैं विभिन्न प्रकार के गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ | ये अपने हाव-भाव, देह और आचरण से यह विश्वास दिलाते हैं कि भोग ही जीवन का सार है और विवेकहीन लोग उनका अनुसरण करते हैं |

कुम्भकर्ण दुनिया की एक चौथाई ऊर्जा का उपभोग करता है और उतना ही अधिक प्रदूषण फैलाता है | यह चाहता है कि इसके संसाधन भविष्य के लिए सुरक्षित रहें और फ़िलहाल यह विश्व के अन्य संसाधनों पर अधिकार करके उनका उपभोग करना चाहता है | इसके लिए यह चाहता है कि सारा विश्व उदार हो जाए अर्थात अपने दरवाजे खुले छोड़कर सोए और इसे अपने यहाँ के संसाधनों का दोहन करने दें | जो संयम की बात करते हैं वे इसे अपने दुश्मन लगते हैं | मितव्ययिता की बात करने वालों को यह येन-केन-प्रकारेण हटाना चाहता है | उन्हें पिछड़ा हुआ तथा विकास और लोकतंत्र का विरोधी करार देता है | अब यही न्यायाधीश है तो अपराधियों को सजा होनी ही है |

दीपावली श्रम का उजाला है तो अति भोग कामचोरी का अँधेरा है | भगवान राम की विजय इसी उजाले की विजय का पर्व है, इसी का लोक-उल्लास है | केवल महलों में जन्म लेने वाले राम नहीं बनते- राम बनते हैं महलों के सुख-भोग को त्याग कर वनवास में जाने वाले |
बहुत कठिन है धरम राम का
बन-बन पड़े भटकना, भगतो |
भोग का कुम्भ्कर्ण संयम, त्याग और वैराग्य के अवतार द्वारा ही मारा जाता है अन्यथा यह सारी यज्ञ-संस्कृति का विनाश कर देगा |

यज्ञ श्रम से अर्जित कर, निष्काम भाव से लोक के लिए विसर्जित करने का नाम है | इन्हीं यज्ञों का ये कुम्भकर्ण विध्वंस करते हैं | यज्ञ ही जीवमात्र में संवेदना का सन्देश बनते हैं | केवल पशुवत स्वयं के लिए भोग, और भोग की अनंत तृष्णा वाले अकेले हो जाते हैं | इसका कुम्भकर्ण के लोक में आई प्राकृतिक विपदा के समय लोगों के आचरण से पता चला | जिसके पास साधन थे वे भाग लिए, अपने किसी भी साथी या पड़ोसी की चिंता नहीं की |

भोग की संस्कृति में भोग ही पुरुषार्थ है | भोग ही आदि और भोग ही अंत है | जब कि यज्ञ की संस्कृति में भोग का निषेध नहीं है किन्तु उसकी एक व्यवस्था है | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का एक क्रम है | धर्म (उचित) को जानो, धर्माचरण करते हुए धनार्जन करो जिससे तुम्हें भोग का अधिकार मिलेगा और तभी तुम्हारा मोक्ष होगा | धर्महीन भोग से मोक्ष नहीं मिलता | और कुम्भकर्ण को बार-बार जन्म लेना पड़ता है | तभी ईशावास्य उपनिषद में कहा गया है- 'त्यक्तेन भुञ्जीथा' अर्थात त्यागपूर्वक भोग करो | प्यास के बिना जल, भूख के बिना भोजन, वियोग के बिना संयोग का कोई आनंद नहीं है | इस निरानंद भोग की परिणति बीमारियों और कुंठा में होती है और कुंठाओं का यही लोक कुम्भकर्ण का लोक है | विष्णु का लोक है- वैकुंठ | वैकुंठ के स्वामी विष्णु लक्ष्मी के अधिपति हैं | कल्पवृक्ष पर उनका अधिकार है क्योंकि उन्हें सृष्टि का पालन करना है | जिन्हें केवल स्वयं के लिए भोग चाहिए वे असुर हैं | वे अमृत चुराना चाहते हैं जिससे वे अमर हो सकें | इसी अमृत की रक्षा के लिए विष्णु को बार-बार अवतार लेने पड़ते हैं | अमृत यज्ञ करने वालों के हाथों में ही सुरक्षित है |

यह अमृत है हमारा संयम, हमारी तपस्या | तपस्या से ही ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करते है , तपस्या से ही विष्णु उसका पालन करते हैं | आइये, दीपावली को श्रम की आराधना, आनंद का उत्सव और विसर्जन का यज्ञ बनाएँ | इसी से कुम्भकर्ण का मोक्ष होगा |

-रमेश जोशी
सीकर
(मो)९४६०१-५५७०० under publication. Jhootha Sach

Nov 8, 2015

कैसी रही गिफ्ट

   कैसी रही गिफ्ट 

आते ही तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ये गिफ्ट देने वाले भी बड़े  अजीब हैं |बिना सोचे समझे किसी को कुछ भी गिफ्ट दे देते हैं जब कि नेताओं को पाँच हजार से ज्यादा की गिफ्ट तो सरकारी तोशाखाना में जमा करवानी होती है और लोग समझते हैं कि फलाँ-फलाँ को फलाँ-फलाँ कीमती गिफ्ट मिली |बहुत कम ही ऐसे साहसी होते हैं जो इन्हें सरकारी तोशाखाना में जमा करवाने की बजाय घर ले जाते हैं यह बात और है कि जब हल्ल्ला मचता है तो मन मार कर जमा करवाना पड़ता है |आदमी को चाहिए कि सोच समझकर गिफ्ट ले और फालतू की गिफ्ट ले ही नहीं और न ही पाँच हजार से ज्यादा की ले |

हमने कहा- बन्धु, ज़रा स्पष्ट करो |

बोला-  क्या स्पष्ट करूँ, मोदी जी को झुमके, शीशा, केतली, चाय पत्ती, टोपी, चटाई, तीर-कमान आदि दिए |अब बता वे झुमके किसे पहनाएंगे ? वे तो ब्रह्मचर्य आश्रम में ही संसार की भलाई के लिए सीधे संन्यास ले चुके हैं | अब झुमके कहाँ तक सँभालेंगे ? यदि कहीं बरेली चले गए और झुमका खो गया तो शेष सारा कार्यकाल झुमका ही ढूँढ़ते रह जाएँगे और तिस पर भी मिलने की कोई गारंटी नहीं |साधना को तो झुमका आज तक मिला नहीं जो इन्हें मिलेगा |केतली, चाय पत्ती का भी क्या करेंगे ?अब चाय के लिए समय ही कहाँ बचा है ? जहाँ तक शीशे की बात है तो सेल्फी से बढ़िया आत्ममुग्ध करने वाला कोई शीशा हो नहीं सकता | टोपी वे किसी से पहनते नहीं तो फिर उनसे कौन पहनेगा ? चटाई साल में एक बार योग दिवस के अतिरिक्त कब काम आएगी ?अन्य कीमती सामान सरकारी तोशाखाना में जमा करवा दिया होगा |अच्छा रहा, जो घोड़ा मंगोलिया में ही छोड़ आए |वैसे जब तक उनके पास स्पष्ट बहुमत है तो घोड़े तो यहाँ भी मुफ्त में बिकने के लिए उनके बँगले के आसपास चक्कर लगा रहे हैं |इस ट्रेड की अब उन्हें कोई आवश्यकता नहीं |और तीर-कमान का तो कोई काम ही नहीं है |वे तो बातों-बातों में ही तीर चलाने का मौका निकाल लेते हैं |

हमने कहा- और मनमोहन जी को भी ऐसे ही अजीब तोहफे दिए गए हैं |उन्हें २१ लाख की तलवार दी गई है |उन्होंने तो अपने धर्म वाली तलवार का ही उपयोग नहीं किया |ऐसी कीमती तलवारें तो सजाने के लिए होती हैं जो कहीं सरकारी म्यूजियम में रखी होगी |और चाय की केतली दे दी लेकिन चाय-पत्ती नहीं दी |वैसे दे दी होती तो भी वे चाय के मामले में मोदी से जीत नहीं सकते |खैर, झुमके और नेकलेस तो मैडम के काम आ जाएँगे |

तोताराम ने आगे कहा- लेकिन सुषमा जी टाई का क्या करेंगी ? वे तो शुद्ध भारतीय परिधान पहनती हैं |एक महिला अधिकारी को तो शराब की बोतलें भी दी हैं |पता नहीं, वे उनका क्या करेंगी ?

हमने कहा- जून २०१४ में सोनिया जी को किसी ने पत्थर का एक कटोरा ही दे दिया |कटोरा तो उन्हें दिया जाना चाहिए था जिन्हें अब 'मेक इन इण्डिया' के लिए विदेशों से निवेश लाना है |

बोला- छोड़ ये सब बातें |जिन्हें मिला है वे जानें |मुझे तो यह बता, मुझे सेवा-निवृत्ति पर जो एक साफा पहनाया गया था उसका क्या करूँ ? कोई ग्राहक हो तो बता, दस रुपए में दे सकता हूँ |

हमने कहा- इससे तो अच्छा है, अपने वार्ड पार्षद को बुलाकर अभिनन्दन कर दें और साफा पहना दें |क्या पता, इसी बहाने गली की सफाई हो जाए |

बोला- ठीक है, देखेंगे लेकिन अब तू मध्यप्रदेश का एक सच्चा किस्सा सुन |किसी तिवारी को एक यजमान ने एक गाय दान में दी |अब उस गाय ने बछड़ा तो दे दिया लेकिन दूध नहीं दे रही है |तिवारी बाज़ार से दूध लाकर बछड़े को पाल रहे हैं |
कैसी रही यह गिफ्ट ? 

हमने वैसे ही पूछ लिया- तोताराम, यदि तू नेता हो और तुझे कोई गिफ्ट दे तो तू क्या लेना चाहेगा ?
बोला- दस-दस किलो दाल,प्याज और सरसों का तेल |तोशाखाना में जमा करवाने का झंझट नहीं, ये सर्दियाँ  तो मजे से निकल जाएँगी |आगे जिंदा रहे तो फिर सोचेंगे |इस उम्र में ज्यादा लम्बी प्लान नहीं बनानी चाहिए |



Nov 5, 2015

इनटोलरेंस कहाँ है

  इन टोलरेंस कहाँ है ?

आज सुबह-सुबह तोताराम एक डंडा लिए हाज़िर हुआ |डंडे को दो-चार बार हमारे पास बरामदे के फर्श पर ठकठकाया और बोला- इनटोलरेंस है ? 

हमने कहा- क्या तू कोई  पुलिसिया है और क्या किसी ने इनटोलरेंस की चोरी की रिपोर्ट लिखवाई है ? 

बोला- मज़ाक मत कर |इस समय इनटोलरेंस के कारण देश पर बड़ा संकट आ गया है |जेतली जी ने पूछा है- इनटोलरेंस कहाँ है ? हालाँकि वे भी अपने स्तर पर खोज रहे हैं लेकिन इतना बड़ा देश |कहाँ-कहाँ खोजेंगे ? तो सोचा क्यों न मैं ही कुछ मदद कर दूँ |सो तेरे यहाँ से ही शुरुआत कर रहा हूँ |

हमने कहा- हाँ, है | 

बोला-  तुझे पता है, तू क्या कह रहा है ?

हमने कहा- क्या हमें इतनी अंग्रेजी भी नहीं आती ? जैसे अंग्रेजी में लोग कहते हैं- 'आई एम इन लव' मतलब कि मैं प्रेम में हूँ सो वैसे ही मैं 'इन टोलरेंस' हूँ अर्थात टोलरेंस में हूँ |

बोला- भले आदमी ऐसी अंग्रेजी या तो तू बोल सकता है या फिर लालू जी |
तू जो कह रहा है उसका मतलब यह है कि तू असहिष्णु है |और इस समय बहुत से लोग असहिष्णु हो रहे हैं जिससे देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो गया है |देश की एकता, समृद्धि  और विकास के लिए यह ज़रूरी है कि छोटी छोटी बातों को लेकर उद्विग्न न हों |आपस में नहीं, गरीबी से लड़ें |

हमने कहा-फिर साफ-साफ बताना चाहिए ना |ऐसे समय में भी अंग्रेजी छाँट रहा है |अगर असहिष्णुता यदि देखनी है तो राजनीति करने वालों के यहाँ जा |वे ही सबसे ज्यादा असहिष्णु है |ज़रा सा वोट बैंक खिसकता दिखा नहीं, या अपनी पार्टी हारती दिखी तो उनकी आत्मा फटाफट दल-बदल के लिए प्रेरणा दे देती है या छोड़ी हुई पार्टी में भविष्य दिखा तो घर-वापसी कर लेते हैं |बिहार में देखा नहीं कैसे गाली गलौच कर रहे हैं |

कहने लगा- मैं तुझे तेरी बात पूछ रहा हूँ कि क्या तू असहिष्णु है ?

हमने कहा- हम तो कभी असहिष्णु नहीं हुए |एक बार हमारे विषय में सभी विद्यार्थी पास हो गए- आधों को डिस्टिंगशन,शेष फर्स्ट डिवीजन और एक सेकण्ड डिवीजन लेकिन प्राचार्य के पुत्र को डिस्टिंगशन नहीं मिली तो उन्होंने हमें मेमो दिया कि आपका रिजल्ट गुणात्मक दृष्टि से ठीक नहीं है |हम तब भी असहिष्णु नहीं हुए और उत्तर दिया कि भविष्य में ध्यान रखूँगा |दो बार इनकम टेक्स का रिफंड नहीं मिला तो भी हमने सहिष्णुता बनाए रखी |हमारे घर के सामने की ट्यूब लाईट दो महीने से ख़राब पड़ी है |हमारी किसी ने नहीं सुनी तो भी हमने सहन कर लिया |एक बार बिजली वालों ने गलत बिल वसूल कर लिया जिसका साढ़े चार सौ रुपया आठ साल बाद भी नहीं लौटाया लेकिन हमने बर्दाश्त कर लिया |
निठारी कांड हुआ, स्वर्णिम चतुर्भुज वाले सत्येन्द्र दुबे की हत्या हो गई, कश्मीर से हिन्दू पंडितों को भगा दिया, किसी ने कश्मीर में आई एस का झंडा फहराया, किसी ने तिरंगा जला दिया, किसी ने तिरंगे पर रखकर शराब पी हमने कुछ नहीं कहा | जब से अरहर की दाल दो सौ पार कर गई तो हमने खाना छोड़ दिया लेकिन सहिष्णुता नहीं छोड़ी, डी.ए. की किश्त देर से मिली मगर चुप रहे और अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि २००२ के बाद वालों को पे कमीशन का लाभ २००६ से दिया जाए लेकिन हमारे डिपार्टमेंट वाले कुछ नहीं सुन रहे हैं लेकिन हम तब भी असहिष्णु नहीं हुए |दवाइयों की कीमत मनमाने रूप से वसूली जा रही हैं और सरकार चुप है तो क्या हमने सहिष्णुता खोई ? हम तो कहते हैं यदि सरकार पेंशन बंद कर देगी तो भी हम मरने को मर जाएंगे लेकिन असहिष्णु नहीं होंगे | 

और यह भी कि हमें कोई पुरस्कार मिला होता तो हम कभी नहीं लौटाते |और यदि सरकार चाहे तो हम उन पुरस्कारों को भी लेने से मना नहीं करेंगे जिन्हें कुछ लोगों ने लौटा दिया है |

बोला- तो ठीक है, मैं जेतली जी को लिख देता हूँ कि मास्टर के यहाँ 'असहिष्णुता' नहीं मिली | कहीं और ढूँढें |
अब चाय मँगवा तेरा स्पष्टीकरण सुनते-सुनते सिर दर्द हो गया |

Nov 2, 2015

पहले वाला हिसाब-किताब

  पहले वाला हिसाब-किताब 



 कुछ दिन पहले जब दिन जल्दी निकल आता था और गर्मी भी थी तो पानी आते ही नहाने का मन हो जाता था लेकिनआजकल सुबह-सुबह हल्की सी ठण्ड पड़ने लग गई है सो नहाने की बजाय इस समय का उपयोग घूमने जाने के लिए करना शुरू कर दिया है |सभी तरह के लोगों के दर्शन हो जाते हैं - कुछ घुटनों को सक्रिय रखने तो कुछ इस बहाने मंदिर में स्थापित भगवान को भी आभारी बनाने तो  कुछ युवा अपना ट्रेक सूट और जूतों का प्रदर्शन करने के लिए आते हैं | आज जैसे ही लौट रहे थे तो बड़ा अजीब नज़ारा देखने को मिला | कुर्ता पायजामा पहने एक अधेड़ सज्जन बड़ी विनम्र मुद्रा में सिर झुकाए खड़े थे और कुछ युवा उन्हें शब्दों से सम्मानित करते हुए धकिया रहे थे- साले, वापिस कैसे नहीं करेगा ? तेरा तो बाप भी करेगा वापिस |

हालांकि आजकल किसी के फटे में टांग फँसाने से बन्दर की तरह अपनी ही पूंछ लट्ठे में रह जाती है लेकिन क्या करें, आदत से लाचार | पूछ ही लिया- क्या हुआ भैया, कैसे इनका अभिनन्दन कर रहे हो ?

युवक बोले- ताऊ जी, इसकी हिम्मत तो देखिए |कह रहा है वापिस नहीं करेगा | कैसे नहीं करेगा वापिस ?

हमने पूछा- क्या आपने इन सज्जन को कुछ उधार दिया था क्या ?

बोले- उधार तो इस जैसे फटीचर को कौन देगा लेकिन हमने इसे अपनी संस्था 'वृद्धजन सम्मान समिति' द्वारा  सम्मानित किया था |अब हम इससे वह सम्मान वापिस माँग रहे हैं और यह कह रहा है कि वापिस नहीं करेगा |

हमने उन अधेड़ सज्जन से कहा- बन्धु, जब इन्होंने  ही तुम्हें सम्मानित किया था और अब ये आपको सम्मान के काबिल नहीं समझते तो वापिस कर दीजिए | क्या फर्क पड़ता है ? वैसे आजकल सम्मान और पुरस्कार वापिस करने और सम्मान वापिस करने वालों का विरोध  करने वालों का फैशन चल रहा है |कर दो वापिस |

बोला- बात सम्मान की नहीं है |बात उस राशि की है जो इन्होंने  मुझे दी थी |

हमने कहा- तो फिर दे दो |हम इन युवकों से कहेंगे कि ये उस पर बनने वाला ब्याज माफ़ कर देंगे |और यदि तुम एक साथ नहीं दे सकते तो हम इनसे यह भी प्रार्थना करेंगे की ये किश्तों में ले लें |

बोला- लेकिन वास्तव में इन्होंने मुझे कोई राशि नहीं दी |वह राशि मेरी ही थी | इन्होंने  तो उस सम्मान में होने  वाला माला, साफा, नारियल, शाल और नाश्ते तक का खर्च मुझसे लिया था |

हमने कहा- भले आदमी यह भी कोई सम्मान है, ऐसे भी कोई करता है ?

बोला- आपको पता नहीं, इस देश में ऐसी हजारों संस्थाएं हैं जो इसी तरह सम्मान बाँटने का धंधा करती  हैं |और कहीं से सम्मान नहीं मिला तो मैंने सोचा- यदि कुछ मिल नहीं रहा है तो जेब से मात्र उत्सव  का खर्चा ही तो हो रहा है सो भुगत लूंगा | समाज में कुछ चर्चा तो होगा |

हमने उन युवकों से कहा- आप ऐसा क्यों करते हैं ?

बोले- आजकल जो यह सम्मान वापिस करने वाला नाटक चल रहा है हम उसे हमेशा के लिए समाप्त करना चाहते हैं |अभी यह अकादमी से पुरस्कृत लोगों में चल रहा है, कल को स्थानीय स्तर तक आ जाएगा |

वैसे आगे से तो हम सम्मान-पत्र में साफ-साफ लिखवा देंगे- जैसे बिका हुआ माल वापिस नहीं होगा वैसे ही एक बार किया गया सम्मान किसी भी स्थिति में न संस्था वापिस माँगेगी और न ही प्राप्तकर्त्ता इसे वापिस नहीं करेगा  |हम तो पहले वाला हिसाब-किताब निबटा रहे हैं |

Oct 28, 2015

विज्ञापन का सन्देश

  विज्ञापन का सन्देश 

कल एक समाचार पढ़ा- सरकार मीडिया विशेषज्ञों और जनता से पूछेगी कि वे विज्ञापनों में उसके सन्देश को किस प्रकार समझते हैं ?

आते ही हमने तोताराम को एक सरकारी विज्ञापन दिखा कर पूछा- तुझे इनसे क्या सन्देश पहुँचता है ? 

बोला- पहले तो यह बता कि तू यह पूछ क्यों रहा है ?

हमने कहा- हम कुछ नहीं पूछ रहे |हमें पूछकर करना क्या है ? यह तो सरकार जानना चाहती है कि उसके विज्ञापनों के लोगों तक क्या सन्देश पहुंचता है ?
बोला- यदि सरकार जानना चाहती है तो लिख दे, वही सन्देश पहुंचा जो वह पहुंचाना चाहती है |

हमने कहा- यह तो कोई उत्तर नहीं हुआ |


बोला- हो या नहीं लेकिन ऐसे मामलों में ऐसे ही उत्तर हुआ करते हैं ? मैं क्यों कुछ कहकर चक्कर में पडूँ |बस, यह समझ ले कि जहाँ भी स्वच्छता-अभियान का आयोजन होने वाला होता है तो डर के मारे कूड़ा अपने आप जाने कहाँ भाग जाता है ? जो भी फोटो छपता है वहाँ कूड़े के अलावा सब कुछ दिखाई देता है | 

हमने फिर कहा- मान ले यदि सरकार कुछ नहीं पूछती |हम ही, वैसे ही तुझसे पूछ रहे हैं तो ?

बोला- तो यह सन्देश पहुँचता है कि दाढ़ी में ही अपना और देश का सुखद भविष्य छुपा हुआ है जैसे मोदी जी, अमित शाह,अमिताभ बच्चन आदि | 

हमने फिर पूछा- और ?

बोला- और यह कि मोदी जी पर सूट की बजाय कुर्ता-जैकेट अधिक जमते हैं |

हमने कहा-यह तो वैसा ही उत्तर है जैसे महाभारत सुनाने के बाद कथावाचक ने एक महिला से पूछा- माताजी, आपको महाभारत में क्या बात सबसे अच्छी लगी तो बोली-- मुझे तो यह अच्छा लगा कि द्रौपदी के पाँच पति थे |अरे, भले आदमी हम मोदी जी की दाढ़ी और कुरते के बारे में नहीं पूछ रहे, कुछ विकास के बारे में बता |

बोला-विज्ञापन देख का ऐसा लगता है कि बस, रात भर की बात है |जब सुबह उठेंगे तो सुदामा के घर की तरह सब कुछ बदला हुआ मिलेगा |पता नहीं, तब इस घर-द्वार और देश को पहचान भी पाएँगे कि नहीं ?


Oct 23, 2015

संदेह

 संदेह

हो उदास बोले हमें पंडित हीरालाल |
कैसा कलजुग आ गया नहीं मिल रही दाल |
नहीं मिल रही दाल, दाल-रोटी न खाएँ |
तो बोलो ऐसे में कैसे प्रभु-गुण गाएँ |
कह जोशी कवि अगर दाल मिल भी जाएगी |
हमको है संदेह कभी गल भी पाएगी |
२२-१०-२०१५

Oct 22, 2015

शैतान कहाँ से आ गया

  शैतान कहाँ से आगया 

आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- क्यों तोताराम, कोई पार्ट टाइम जॉब करने का इरादा है ?

बोला- कर तो रहे हैं |तेरे यहाँ सुबह-सुबह हाजरी लगाते हैं जिसके बदले में जैसी भी पिला देता है, चाय पी लेते हैं | यही है अपना पाँच रुपए रोज का पार्ट टाइम जॉब |

हमने कहा- यह तो लाभ का वह पद है जिसकी आमदनी तू वित्त मंत्री से छुपाता आया है | लेकिन हम मज़ाक नहीं कर रहे | वास्तव में पूछ रहे हैं |

कहने लगा- पहले यह बता काम क्या है ? आज कल देश में ढंग के कामों की बजाय फालतू के काम ज्यादा चल रहे हैं | कल को कोई कहेगा- फलाँ के चेहरे पर स्याही फेंक दे, फलाँ के खिलाफ नारे लगा या पुलिस पर पत्थर फेंक, ये अपने वश के नहीं है |

हमने कहा- इनके लिए तो तय किए हुए पार्टी के बहुत से उत्साही कार्यकर्त्ता पहले से मौजूद हैं | तुझे तो बस, भाषण लिखने हैं |सुना है आजकल प्रधान मंत्री कार्यालय में भाषण लिखने वाले की जगह खाली है | पहले वाले सज्जन किसी और विभाग में स्थानांतरित हो गए हैं |वैसे  तुझे प्रतियोगिता के लिए बच्चों को भाषण लिख कर देने का अनुभव भी है |

बोला- तो यह  बात है ? मैं तो समझा था कि सोनिया जी ही किसी का लिखा हुआ भाषण पढ़ती हैं लेकिन अब तो पोल खुल गई कि इतना बढ़िया भाषण देने वाले नेता भी किसी और का लिखा पढ़ते हैं |तो सुन ले, बन्धु  पैसे एडवांस लेंगे |नेताओं का कोई भरोसा नहीं |पिछले चुनाव के टेंट, माइक और जीप वाले ही रोते फिर रहे हैं तो फिर मुझे काम निकल जाने के बाद कौन पैसे देने वाला है |

 फिर कहने लगा-देख, मैं भले ही किसी को भी खरी-खरी सुनाने में पीछे नहीं रहता लेकिन नेता अपने भाषणों में ये जो शैतान, डी.एन.ए., हरामज़ादा आदि शब्द काम में लेते हैं वे तो मैं नहीं लिख पाऊँगा |

हमने कहा- वह सब तुझे नहीं लिखना है |तुझे तो संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं में देने वाले गंभीर भाषण लिखने हैं |

बोला- तो फिर ये शैतान वगैरह कहाँ से आ जाते हैं ?


हमने कहा- इन सब के लिए नेताओं को तेरे जैसे लेखकों पर निर्भर नहीं रहना होता | इनकी सबकी अपनी कुंठाएँ और संस्कार हैं तथा अपने -अपने मौलिक चिंतन हैं जिससे  मुँह खोलते ही ऐसी  शब्दावली अपने आप धारा-प्रवाह बहने लगती है |

Oct 20, 2015

दाल संग सेल्फी

 दाल सँग सेल्फी/एक कुण्डलिया छंद
(अरहर दाल २०० रुपए पर पहुँची-एक समाचार )

कभी सताता प्याज औ'कभी रुलाती दाल |
ऐसे या वैसे मगर हुआ हाल बेहाल |
हुआ हाल बेहाल, समय आया बेढंगा |
नाच रहा व्यापार उदारीकृत हो नंगा
कह जोशी कवि किसी मॉल के अन्दर जाओ |
खींच दाल सँग सेल्फी बच्चों को दिखलाओ |
२०१५-१०-२०

Oct 17, 2015

धोनी का विष्णु अवतार

  धोनी का विष्णु अवतार 

कल हम ७३ वर्ष के हो गए | यदि ज्यादा रुआब जमाना चाहें तो कह सकते हैं कि ७४वाँ जन्म दिन था | आज तोताराम से आते ही हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- हो गया अवतार |

हमने शरमाते हुए कहा- बन्धु, इतना मक्खन मत लगाओ | अभी तो कल्कि अवतार होना बाकी है | कुछ भक्तों ने मोदी जी में कृष्ण का स्वरुप देख लिया पर यह सच है कि कोई भी अवतार धूम एक और धूम दो की तरह दो बार नहीं हुआ | उमा भारती की दृष्टि दिव्य है जो त्रिदेवों (ब्रह्मा,विष्णु, महेश )को अटल जी, अडवानी जी, वेंकैया जी , अमित शाह, अरुण जेतली और मोदी जी किसी भी रूप में छुपे होने पर भी पहचान लेती है  |यह तो बता हमारा किस रूप में अवतार हुआ है और तुमने कैसे पहचाना ?

बोला- यह मुँह और अरहर की दाल |

हमने कहा- मुहावरा सुधार |

बोला- अब अरहर की दाल सबसे महँगी है इस लिए मुहावरे में संशोधन हो गया है |और साफ़ सुन ले, मैं तेरे अवतार की बात नहीं कर रहा हूँ |तेरा तो अब पुनर्जन्म होगा और वह भी किस योनि में पता नहीं | बात पूरी होने से पहले ही  कूद पड़ा |मैं धोनी की बात का रहा हूँ-  धोनी
का विष्णु-अवतार हो गया |

हमने कहा- विष्णु का अवतार होता है जैसे वराह अवतार, वामन अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार और दसवाँ कल्कि अवतार जो अभी ड्यू है |राम का विष्णु अवतार कहना तो सारा सिस्टम बदलना है |

बोला- पहले संसार में पाप बढ़ने पर विष्णु अवतार लिया करते थे लेकिन जब से लोगों ने चमचागीरी के लिए जहाँ-तहाँ अवतार देखने शुरू कर दिए तो विष्णु जी ने भी अवतार लेना  बंद कर दिया है | अब तो नेताओं,अभिनेताओं और क्रिकेटरों के अवतार होते हैं |यदि विश्वास नहीं होता तो फोटो देख ले |

हमने फोटो देखा तो वास्तव में चार हाथ थे लेकिन यह क्या चार हाथों में दस वस्तुएँ ?दुर्गा को आठ हथियार धारण करने थे तो आठ हाथों का प्रोवीजन रखा गया | विष्णु के चार हथियार हैं- शंख, चक्र,गदा, पद्म तो विष्णु का चार हाथों से काम चल गया |इसमें तो चार हाथों में दस वस्तुएँ और वे भी कोई हथियार नहीं | इन दस वस्तुओं में एक जूता भी दिखा जिसे अखबार वाले ने लाल गोले में दिखाया था | 

हमने कहा- इसमें विष्णु का हथियार तो एक भी नहीं और फिर जूते को हाई लाईट क्यों किया गया ?

तो बोला- ज्यादा हथियारों की ज़रूरत ही नहीं है |आजकल तो एक की हथियार काफी है जूता,  जिसमें संसार के सभी हथियारों की शक्ति समाहित है | इसमें शंख, चक्र, गदा, पद्म, त्रिशूल, तलवार, पाश सब शामिल हैं | हो सकता है यह जूता चाँदी का हो | चाँदी का जूता तो सुदर्शन चक्र से भी अधिक शक्तिशाली है | अच्छे से अच्छा तुर्रम खां चित्त हो जाता है |तुम्हें यह जूता दिखता है लेकिन यह वास्तव में पद है, नोट है, वोट है, सबसे बड़ी चोट है |जिस पर पड़ता है उसकी खोपड़ी ही नहीं, मन तक चकनाचूर हो जाता है | जिस पर पड़ता है खोपड़ी घूम जाती है, ज़िन्दगी भर सँभल नहीं पाता |इसके लिए कोई संजीवनी बूटी नहीं बनी |

बेचारे धोनी को तो लोग वैसे ही घसीट रहे हैं |यह तो उसका एक साइड बिजनेस है लेकिन आलोचना करने वाले तो पता नहीं, दिन में कितने उचित-अनुचित वेश बदलते हैं |

यह धोनी का नहीं, लोकतंत्र का विज्ञापन है जिसे लोग खुले रूप में  भले ही स्वीकार न करें लेकिन सब खोपड़ी उघाड़कर इसी चाँदी के जूते की कामना कर रहे हैं |

Oct 8, 2015

बिकनी में आओ गैस फ्री पाओ

बिकनी में आओ, फ्री गैस पाओ 

जिस गंभीरता से तोताराम अखबार पढ़ता है उस गंभीरता से तो उसका संपादक भी अखबार तैयार नहीं करता होगा |वैसे आजकल अखबार और मीडिया को गंभीरता की ज़रूरत भी नहीं है क्योंकि जिस तरह से नेता और उनके उग्र समर्थक बयान  बदल देते हैं  उसे देखते हुए किसी बयान को किसी भी रूप में छाप दिए जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता |बस, विज्ञापन मिलते रहें फिर एक क्या हजार अखबार और हजारों चेनल उग आएँगे |
कुछ अखबार 'नो नकारात्मक न्यूज' का शोशा छोड़ते हैं वैसे यह भी सच है कि सभी अखबारों मे सब कुछ सकारात्मक ही तो होता है- कोई आपके बालों और त्वचा की सभी समस्याओं का हल दे रहा है तो कोई मात्र एक विशेष माला पहनने से ही सभी  संकटों का मोचन करने का होने करता है तो कोई बाबा १०१ रुपए में नौकरी, विवाह और सभी घरेलू क्लेश मिटा देता है |लेकिन आज तोताराम जो समाचार लाया वह तो अद्भुत था जिस पर तोताराम जैसे प्रतिभाशाली लोगों की ही निगाह पड़ी होगी |

कटिंग दिखाते हुए बोला- देख, यहाँ तो गैस के दाम बढ़ा दिए और फिर सब्सीडी का नाटक किया और अब कह रहे हैं- लगों को गरीबों के हित में गैस सब्सीडी छोड़ देनी चाहिए जब कि खुद से संसद में सस्ते खाने की सब्सीडी तक नहीं छोड़ी जाती | और एक छोटा सा देश है यूक्रेन जो गैस स्टेशन पर किसी खास दिन बिकनी में आने पर गैस फ्री दे रहा है | इस चक्कर में कुछ पुरुष भी बिकनी में आ गए तो गैस स्टेशन वाले ने उन्हें भी निराश नहीं किया |

हमने कहा- तोताराम, इस दुनिया में कोई गोबर ,मिट्टी तक तो फ्री देता नहीं फिर फ्री के विज्ञापन चाहे यूक्रेन के हों या भारत के सब धंधे के तरीके हैं |जब औरतें बिकनी में आएंगी तो उन्हें दर्शक भी तो इकट्ठे होंगे |गैस स्टेशन वाला उन्हें च्यूइंग गम और चिप्स बेचकर कमा लेगा |

बोला- तुझे तो किसी के भी लोकहितकारी और क्रान्तिकारी कदम पर विश्वास ही नहीं होता |किसी भी काम में तुझे सकात्मकता दिखाई ही नहीं देती | लोग एक वोट के बदले देश-दुनिया बदलने का दावा करते हैं तो उसमें भी तुझे खोट ही दिखाई देता है |अरे, दुनिया नहीं बदलेगी लेकिन कुछ दिन के लिए मनःस्थिति तो बदल जाएगी, यही क्या कम है | सुकून तो एक पल का ही बहुत होता है | गुड़ न मिले तो क्या, गुड़ की बात में भी मिठास होता है लेकिन तेरे जैसा निराशावादी इसे नहीं समझ सकता |

हमने कहा- इस कम कपड़ों में गैस फ्री मिलने में क्या बड़ी बात है |हमारे यहाँ तो सेल्फी, रोमांटिक फोटो पोस्ट करने की खबर मात्र से ही यश, विज्ञापन और फिल्मों में काम मिल जाता है |और यदि कोई सारे पकड़े उतारकर चौराहे पर खड़ा हो जाए तो चुनाव में पार्टी का टिकट, जन सेवा का अवसर और मंत्री पद जाने क्या-क्या मिल जाता है |ऐसी पारदर्शिता का हमारे देश से बड़ा ग्राहक और कौन होगा ?और तू है कि यूक्रेन के गुण गाए जा रहा है |

हमारे यहाँ तो कहावत ही है- नंगा राम से भी बड़ा |






 

Oct 3, 2015

अकबका गए ओबामा

 अकबका गए ओबामा 

जब से ओबामा जी ने मोदी जी को राष्ट्रपति कहा तब से तो हम भी मोदी जी मुरीद हो गए |

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- देखा तोताराम, इसे कहते हैं तेज | अमरीका का राष्ट्रपति भी अपने मोदी जी के सामने अकबका गया | प्रधान मंत्री की जगह राष्ट्रपति बोल गया अन्यथा १९६५ में अमरीका ने पाकिस्तान से युद्ध का बहाना बनाकर शास्त्री जी को दिया गया अमरीका-यात्रा का निमंत्रण निरस्त कर दिया था और जाने किन-किन बड़े नेताओं की तलाशी ले ली थी |

वैसे वह बेचारा अकबका तो तभी गया था जब 'मन की बात' कार्यक्रम में ओबामा को सिर्फ बराक कहा था | दुनिया के सबसे ताकतवर और धनवान देश के राष्ट्रपति को इस तरह कहने का साहस आजतक दुनिया के किसी भी नेता ने नहीं किया होगा | 

तोताराम बोला- इसका कारण मोदी जी का ड्रेस सेन्स भी हो सकता है |बेचारे ओबामा के पास ले दे कर चार सूट, चार टी शर्ट और दो निक्कर होंगे जब कि अपने नरेन्द्र भाई जी के पास कितने कुर्ते-पायजामे और जैकेट हैं यह उनको खुद को भी पता नहीं |और कभी-कभी तो सोने के तारों की कशीदाकारी का सूट पहनकर धनवान से धनवान देश के राष्ट्राध्यक्ष को भी भारत के 'सोने की चिड़िया' होने से चमत्कृत कर देते हैं |

हमने कहा- तोताराम, महँगे कपड़े तो कोई भी पहन सकता है |हरियाणा के एक मंत्री आठ लाख की घड़ी पहनते हैं, महाराष्ट्र का एक व्यक्ति चार किलो की सोने के तारों की जैकेट पहने घूमता है लेकिन क्या ओबामा उन्हें जानते भी हैं ?

कहने लगा- तो फिर तू बता, ओबामा जी के अकबकाने का कारण ?

हमने कहा- उमा भारती जी सच्ची साध्वी हैं इसलिए वे भगवान को किसी भी रूप में पहचान लेती हैं | पहले तो लोग पुराने वाले ब्रह्मा,विष्णु और महेश को ही पहचानते थे लेकिन बाद में उमा जी ने बताया कि अडवाणी,अटल और वेंकैया जी ब्रह्मा विष्णु महेश हैं तो लोगों को मानना पड़ा | अब मोदी जी प्रधान मंत्री, अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष और अरुण जेटली के वित्तमंत्री बनने के बाद उन्हें इनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिमूर्ति नज़र आने लगी |

एक ज्ञानी नेता ने मोदी जी को कृष्ण का अवतार कहा है |और जैसा कि सभी हिन्दू जानते हैं कि कृष्ण विष्णु के अवतार है |इस प्रकार मोदी जी का विष्णु से सीधा कनेक्शन है |
जब ओबामा जी पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे तब उनके बारे में कई नई-नई जानकारियाँ आई थीं जिनमें यह भी एक थी कि वे हनुमान जी भक्त हैं और अपने हाथ की चेन में बन्दर का एक खिलौना लटकाए रखते हैं जिसे अपने यहाँ के एक हनुमान-भक्त पंडित जी ने हनुमान की मूर्ति मान लिया और ओबामा जी को हनुमान जी की एक मूर्ति भी भेज दी |और तुम्हें यह भी पता है कि हनुमान जी विष्णु के अवतार राम के भक्त हैं |


सो समझ ले कि इसी कनेक्शन से ओबामा जी ने मोदी जी में छुपे अपने आराध्य को पहचान लिया और अकबका गए |

ओबामा ने तो मोदी जी की प्रधान मंत्री की जगह राष्ट्रपति ही कहा है, विदुर की पत्नी ने तो भाव-विभोर होकर कृष्ण को केलों की जगह केलों के छिलके ही खिला दिए थे |



Sep 28, 2015

व्हिस्की के अवशेष

  व्हिस्की के अवशेष

आज आते ही तोताराम ने बड़े उत्साह से एक समाचार सुनाया- मास्टर, अब इस दुनिया की सभी समस्याएँ सुलझने वाली हैं और इसके बहाने सब के अच्छे दिन आने वाले हैं |

हमने कहा- सेवकों को चिढ़ाने के लिए तू हमेशा 'अच्छे दिन' को बीच में क्यों लाता है ? और किसी तरीके से भी तो बात कही जा सकती है | कह दे महँगाई, बेकारी  कम होने वाली है,अपहरण,चोरियाँ और वहां दुर्घटनाएँ कम होने वाली हैं |

तोताराम ने हमें रोकते हुए कहा- मुझे आगे भी तो कुछ बोलने दे |मैं कह रहा था कि अब इंग्लैण्ड के वैज्ञानिकों ने व्हिस्की के अवशेषों से कार चलाने की तकनीक विकसित कर ली है |

हमने कहा- हमारी तरफ से कार हवा से चले या सरसों के तेल से |हमारे पास कौन सी कार है |और मान ले कहीं कबाड़ में फेंकी हुई कोई कार उठा भी लाएँ तो करेंगे क्या ? हमें कौनसा कहीं जाना है |और अगर कभी निकल भी पड़े तो ज्यादा से ज्यादा जिला पुस्तकालय | और इस बीच में भी किसी वीर जाति के युवक के बाइक भिड़ा देने का खतरा रहेगा | इसलिए यही चबूतरा, तू और चाय भले | भारत की औसत आयु तो जी चुके |अब तो बोनस चल रहा है और फिर इसमें कौन सा तीर मार लिया, तोताराम | व्हिस्की के तो अवशेष ही क्या, 'बस नाम ही काफी है' | ड्राइवर को खाली बोतल दिखा दो तो उसकी कार की स्पीड बढ़ जाती है |ये विदेशी लोग दारू बनाने में भी इतने नाटक करते हैं जैसे चाँद पर कोई अंतरिक्ष यान भेज रहे हों |तो फिर उनकी व्हिस्की का अवशेष भी तो विशेष ही होगा | 

बोला- लेकिन लोग भी तो विदेशी माल के दीवाने हैं अन्यथा तकनीक की अपने यहाँ भी कौन सी कमी है | लोग बिना गाय, भैंस के दूध और घी का धंधा चलाते हैं | बिना भवन, कॉलेज के सीधे-सीधे डिग्री बाँटते देते हैं | बीस-तीस हजार के विदेशी रिवाल्वर जैसे  एटा, इटावा के कट्टे की पाँच हजार में होम डिलीवरी दे देते हैं |  दो मिनट मैगी से भी तेज़ | जैसी चाहे- व्हिस्की, रम, जिन, बोद्का या शैम्पेन माँगो;  दो मिनट में स्पिरिट मिलाकर, लेबल चिपकाकर फटाफट दे देते हैं |मगर कोई चांस तो दे |
कल ही एक सज्जन मिले थे |बता रहे थे कि अपने झुंझुनू जिले के महनसर में एक ठाकुर साहब ऐसी दारू बनाते थे कि पानी के एक ड्रम में उस दारु की एक सींक मिला दो; बस काफी है | उसी के अवशेषों के बल पर आज तक इस देश का लोकतंत्र चल रहा है | किसी चुनाव क्षेत्र में ले जाकर ज़मीन में गाड़ दो तो मतदाता टुन्न होकर जिसे कहो वोट दे देते हैं | ऐसी दारू की पूरी बोतल तो पंचायत से लेकर सबसे बड़ी विधायिका तक के सभी माननीयों के लिए इस पूरी शताब्दी तक पर्याप्त है |

तोताराम ने हमारे चरण-कमल पकड़ते हुए कहा- भ्राता श्री, छोड़िये व्यर्थ की बातें |यदि जिंदा हों तो आप तो उन ठाकुर साहब का पता बताइए |

 

Sep 25, 2015

मुसलमानों का उद्धार

  मुसलमानों का उद्धार

अब तक तोताराम हिंदुत्त्ववादियों की आलोचना-निंदा किया करता था कि ये लोग मुसलमानों से घृणा करते हैं, उन्हें पाकिस्तान भगा देना चाहते हैं | बयानों को देखते हुए तोताराम की बात को काटने के लिए हमारे पास कोई तर्क भी तो नहीं था |

दो दिन पहले समाचार पढ़ा-संस्कारित करने के लिए हरियाणा के मेवात इलाके के फिरोजपुर में देश भर के मुसलमान गौपालकों का एक अखिल भारतीय सम्मलेन किया जा रहा है |हमें बड़ी ख़ुशी हुई | जैसे ही तोताराम आया हमने अखबार उसके सामने रखकर कहा- कि तू जिनकी आलोचना किया करता था वे किस तरह सर्व धर्म और सर्व संप्रदाय समभाव से अपने मुसलमान भाइयों को संस्कारित करने की सोच रहे हैं |

बोला- लगता है,  कोई हिन्दू गाय पालता ही नहीं ?  इसीलिए तो आज तक कोई हिन्दू गौपालक सम्मेलन आयोजित नहीं किया गया | 

हमने कहा- वे तो प्राचीन काल से गाएं पालते-पालते इतने संस्कारित हो चुके हैं कि उन्हें फिर संस्कारित करने की आवश्यकता नहीं है |  वे अब गौपालन की बजाय गौसेवा करते हैं |मुसलमान अभी इतने संस्कारित नहीं हैं कि उन्हें गौशाला अध्यक्ष का पद या गौसेवा का काम दिया जाए | 

और इसके पीछे अपने पिछड़े मुसलमान भाइयों की आर्थिक स्थिति सुधारने का भी महान उद्देश्य छुपा हुआ है |तुझे पता होना चाहिए कि एक गाय अपने सारे जीवन में अपने पालक को २५ लाख रुपए कमा कर देती है |अब यदि विदेश से काला धन नहीं भी आता है तो कोई बात नहीं |एक गाय अधिक से अधिक २५ साल जीती होगी |इस तरह एक गाय मतलब एक लाख रुपया प्रतिवर्ष | एक मुसलमान पाँच गायें पाले और पाँच लाख रुपया प्रति वर्ष कमाए | सड़कों पर गायों फिरते रहने की समस्या भी ख़त्म |और फिर गाय के हर अंग में किसी न किसी देवता का वास है सो पुण्य फ्री में |

बोला-- तो फिर हर हिन्दू विशेषरूप से विश्व हिन्दू परिषद के सदस्य और स्वयंसेवक दो-दो,चार-चार गायें क्यों नहीं पालते ?  

हमने कहा- हम इतने स्वार्थी नहीं है | हम पहले अपने पिछड़े भाइयों का कल्याण करना चाहते हैं |

बोला- तो एक काम तो किया ही जा सकता है कि सरकार गौशालाओं का अनुदान बंद कर दे और प्रति गाय एक लाख रुपए प्रतिवर्ष के हिसाब से आमदनी मानते हुए उनसे टेक्स वसूले | पुण्य को टेक्स फ्री किया जा सकता है | 

इससे सरकार को जनसेवा के लिए इतने अतिरिक्त संसाधन मिलेंगे कि हमें किसी देश के सामने निवेश के लिए हाथ नहीं  फैलाना पड़ेगा  | 

हमने कहा- तोताराम, यदि हमारे वश में होता तो हम तुझे देश का वित्तमंत्री बना देते |लेकिन यह पद इतना महत्त्वपूर्ण है कि सुब्रह्मण्यम स्वामी तक आस लगाए बैठे हैं |बेचारे को आश्वासन (पता नहीं किसने ) भी दे दिया और अब कोई पूछता नहीं |




Sep 21, 2015

वर्तनी-विवाद

  वर्तनी-विवाद   

आज आते ही तोताराम हमारे सामने एक लिफाफा रखते हुए बोला- देखा, अभी-अभी 'विश्व हिंदी सम्मेलन' में सौ-दो सौ करोड़ को बत्ती लगाकर, हिंदी का हल्ला मचाकर निबटे हैं और यह 'हिंदी की हिंदी' नहीं, आज तेरे लघु भ्राता का जुलूस निकल गया |

हमने उसके हाथ से लिफाफा लेकर देखना चाहा तो कहने लगा- बस, यह समझ ले कि किसी सरकारी या अर्द्ध सरकारी विभाग से आया है | पते में मेरा नाम लिखा है- टोटाराम  |मैंने ज़िन्दगी भर पूरा टेक्स चुकाया, कोई गलत बिल बनाकर भुगतान नहीं उठाया, कभी स्कूल का एक कागज़ या चाक तक घर नहीं लाया | और मुझे ही लिख दिया टोटाराम | क्या मेरे कारण ही इस देश में टोटा आ गया ? अरे, खेतों में बिजली नहीं और नेता जी के घर पर बीस-बीस ए.सी. चल रहे हैं- उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता |आठ लाख की घड़ी और चौबीस हजार के जूते पहनने वाले तथाकथित किसान नेता अपनी कॉलोनी काट चुके खेत पर फसल खराबे का मुआवजा उठा रहे हैं लेकिन कहलाते हैं जन-सेवक | 

हमने कहा- बन्धु, हो सकता है संबंधित विभाग ने तुम्हें 'टोटाराम' लिख कर गरीब होने का प्रमाण-पत्र दे दिया हो जो आगे चल कर किसी सरकारी योजना के लाभ का आधार बने | फायदा ही है | 
बोला- सरकार का इस बारे में गणित साफ़ है |अल्प संख्यक भले ही अढाई लाख रुपए वार्षिक से कम आय का प्रमाण-पत्र देकर बच्चों की पढ़ाई के लिए बिना ब्याज ऋण पाले लेकिन ब्राह्मण को एक लाख रुपए वार्षिक से कम होने पर भी बच्चों को पढ़ाने के लिए कम ब्याज पर भी ऋण नहीं मिलेगा | खैर, कर्ज़ा न दें, नाम की वर्तनी तो सही लिखें  | 

हमने कहा- लेकिन वर्तनी से क्या फर्क पड़ता है ? लड् डू में ह्रस्व उ लगा या दीर्घ- लड् डू तो लड् डू ही रहेगा |

कहने लगा- तो फिर यह 'मीणा/मीना विवाद क्या है ?

हमने कहा- यह वर्तनी का विवाद नहीं है | कोई मीणा लिखता है तो कोई मीना | और कोई मिना लिख दे तो भी न तो परीक्षा में नंबर कटते हैं और न ही तनख्वाह कम मिलती है |वैसे इसमें किसी अधिकारी या पार्टी को दोष देना उचित नहीं है |यह सारी गलती अंग्रेजों की है जिनकी लिपि में ण,ध,ढ,ढ़,ड़,ठ,त,ञ,ङ आदि ध्वनियाँ हैं ही नहीं, और न ही अ,आ,इ,ई,उ,ऊ स्वरों के लिए भी कोई निश्चित चिह्न |इसलिए ये सब चक्कर पड़ जाते हैं | यह शब्द 'मीणा' है और देवनागरी में 'मीणा' ही लिखा जाता है |किसी ने रोमन में लिखा तो mina/meena के अलावा और क्या लिखता ? लगता है, बात कुछ नहीं, किसी खुचड़ बाबू की गलती से यह तमाशा हुआ है |

बोला- वैसे 'मीणा' को 'मीना' लिखने में भी कोई गलती नहीं है क्योंकि मूल शब्द है- मीन | मीन का मतलब है -मत्स्य प्राचीन काल में मीणा राजाओं के ध्वज पर 'मीन' या 'मत्स्य' का निशान होता था | मीणा तो तद्भव है | 'मीना' तत्सम के अधिक निकट होने से अधिक शुद्ध है |

हमने कहा- शब्द का झगड़ा कहीं नहीं है | लाभ मिले तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य  अपने नाम के आगे 'महादलित' लिखने को तैयार हैं |

वैसे मीना कुमारी ने तो कोई लाभ नहीं उठाया |




 

Sep 19, 2015

ज्ञान-पिपासु

  ज्ञान-पिपासु 

विदेशों के कई समाचार पढ़ने को मिलते रहते हैं कि नब्बे वर्ष की एक महिला ने बीस कोशिशों में मेट्रिक की परीक्षा पास की, एक महिला ने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए अपनी डाक्टरी की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और अब आगे की पढाई पूरी करने के लिए फिर कॉलेज में प्रवेश लिया है | जब प्रौढ़ शिक्षा शुरु हुई थी तो अपने यहाँ भी बहुत से वृद्ध रात्रि पाठशाला में जाने लगे थे | हमने और तोताराम भी मध्याह्न भोजन के चक्कर में जुलाई में प्रवेशोत्सव में गए लेकिन पार नहीं पड़ी |

आज कल तो खैर, विश्व विद्यालय ही डिग्रियां बेचने लगे और नेता लोग ऐसे लोगों की  सरकारी मास्टरी में भर्ती भी कराने लगे तो न पढ़ने की ज़रूरत रही और न ही नौकरी की फ़िक्र | दो-दो साल की तनख्वाह अग्रिम दो, डिग्री और नौकरी लो | बी.एड. का यह हाल है कि फीस दो और प्रशिक्षित शिक्षक बन जाओ | प्रशिक्षु कोई और नौकरी कर रहा है और कॉलेज के पास कक्षाएँ लगाने के लिए भवन ही नहीं |दोनों को बिना हर्र फिटकरी अच्छा रंग आ रहा है |

आज जब हम और तोताराम सुबह-सुबह घूम कर आ रहे थे तो एक बालक फ्रेंच कट दाढ़ी में स्कूल ड्रेस में आता दिखा | हमने तोताराम से कहा- बन्धु, क्या तुम्हें यह महानायक जैसा नहीं लग रहा ?

बोला- लगता तो वैसा ही है लेकिन उन्होंने भले ही वरिष्ठ नागरिक बनने के बाद फिल्मों में जवानी से भी ज्यादा इश्किया हरकतें की हैं लेकिन कभी किसी फिल्म में निक्कर नहीं पहना और धर्मेन्द्र या सलमान की तरह कमीज़ भी नहीं उतारी तो फिर अब निक्कर क्या पहनेंगे ?

हमने कहा- फिर भी पूछने में क्या हर्ज़ है ?

आगे बढ़कर तोताराम ने नमस्ते की और पूछा - बेटे, तुम्हारी वेशभूषा तो विद्यार्थी जैसी है लेकिन दाढ़ी अमिताभ बच्चन जैसी  है | क्या तुम महानायक अमित जी तो नहीं है ?

बच्चा बोला- और क्या तुम्हें अनुपम खेर लगता हूँ ? दाढ़ी तो अब किसी भी हाल में नहीं कटा सकते क्योंकि यदि कटा दें घर वाले ही नहीं पहचानेंगे |और निक्कर पहनकर स्कूल में इसलिए जा रहे हैं कि हम अब भी कला के जिज्ञासु हैं |ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता |और हमारा तो धंधा ही ऐसा है कि नए से नए लटके न करो तो काम नहीं मिलता |
हम तो स्कूल जा रहे हैं डांस और एक्टिंग की नई टेकनीक सीखने के लिए | 

हमने कहा- लेकिन अब तो अखबारों में स्कूलों के विज्ञापन आने बंद हो गए, प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुके |मतलब कि सीज़न बीत गया |

महानायक बोले- नहीं,  अभी तो आलिया भट्ट ने डांस और एक्टिंग टीचर बनने की इच्छा भर जताई है | और उसके तत्काल बाद हमने उसके विद्यार्थी बनने की इच्छा ज़ाहिर कर दी है |क्योंकि चालू होते ही तो लाइन लग जाएगी |इसलिए निराशा से बचने के लिए हम अभी से लाइन में लगने के लिए जा रहे हैं |

तोताराम ने बात का सिरा पकड़ा और महानायक से प्रश्न किया- लेकिन लाइन तो वहीं से शुरु होती है जहां आप खड़े हो जाते हैं |

बोले- ये सब 'अच्छे दिनों' वालों की तरह जुमले हैं | ज़िन्दगी की असलियत कुछ और होती है |जैसे जीतने वाली पार्टी का पूर्वानुमान लगाकर दूरदर्शी और अनुशासित सिपाही नेताओं की आत्मा समय से पूर्व 'आवाज़' दे देती है |इसलिए हम भी धंधे में बने रहने के लिए तकनीक में पिछड़ना नहीं चाहते |


हम दोनों सोच रहे थे- क्या नितांत फ़िल्मी अनुभवहीन लोगों के लिए भी एडमीशन का कोई चांस हो सकता है ?