गुरुमंत्र
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
गुरुमंत्र
यूनिटी इन क्रियेटिविटी
जब से लैपटॉप लिया है तब से या फिर जब से हमारा इमेल सरकार के पास पहुँच गया है, सरकार हमारी महानता और रचनात्मकता को मान्यता प्रदान करने लगी है. जब भी मोदी जी 'मन की बात' करने वाले होते हैं, हमें पूर्व सूचना देते हैं कि हम उनका 'मन की बात' कार्यक्रम देखें-सुनें और यह सूचना अन्य लोगों को फॉरवर्ड करें जिससे अधिक से अधिक लोग इस महंगाई और बेरोजगारी के कठिन समय में अधिकाधिक लाभान्वित हो सकें. यदि इस कार्यक्रम को सुनने में कोई परेशानी आ रही हो तो संपर्क करने को भी कहा जाता है.
एक मेल के द्वारा संस्कृति मंत्रालय और 'मोदी जी की सरकार' ( माई गुव )की ओर से आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हम और तोताराम दोनों से 'देश के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने में अपनी क्रियेटिविटी का सदुपयोग' करने का आह्वान किया गया है. इसके साथ ही जो निर्देश दिया गया है, वह है 'यूनिटी इन क्रियेटिविटी'.
अभी सुबह ढंग से नहीं हुई थी. ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ेगी तो सूरज देर से उगेगा और उसी हिसाब से बरामदे में बैठने का काम विलंबित होता जाएगा. कभी जब बूंदाबांदी या कोहरा होगा तो कमरे में ही 'चाय पर चर्चा' हो जाया करेगी. ऐसे में कभी मन नहीं हुआ तो बौद्धिक के सभी कर्मकांड रजाई में पैर घुसाए घुसाए ही पूरे कर लिए जाया करेंगे.
बरामदे में जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि बरामदे में खर्र खर्र की सी आवाज़ सुनाई दी. लगा जैसे कोई झाड़ू लगा रहा हो. बाहर निकल कर देखा तो सचमुच.बरामदे में तोताराम झाडू लगा रहा था.
हमने पूछा- क्या बात है ? क्या आज 'स्वच्छ भारत' के लिए 'माई गुव' को कोई फोटो भेजनी है ?
बोला- फोटो तो भेजनी है लेकिन झाडू लगाते हुए की नहीं बल्कि रंगोली की फोटो भेजनी है.
हमारे हाथ में भगवा रंग की थैली और रंगोली का एक डिजाइन देते हुए बोला- जल्दी से चाय बनवा ले. उसके बाद लगते हैं काम में. आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में देश के प्रति प्रेम के तीन क्षेत्र निर्धारित किये गए हैं- रंगोली, लोरी और देशभक्ति गीत. लिखने वाला काम बाद में सोचेंगे, अभी तो चाय पीकर रंगोली बनाते हैं.
हमने कहा- लेकिन इसमें तो एक ही रंग है और डिजाइन भी एक ही. तिरंगे के भी दो रंग गायब हैं. यह क्या क्रियेटिविटी हुई. रंगोली का मतलब होता है विविध रंगों के संयोजन से प्रकट होने वाली खूबसूरती. जैसे भारत की संस्कृति जिसमें अनेक धर्मों, जातियों, संस्कृतियों का प्रेमपूर्ण सहभाव है. यही सब इस देश को एक जिंदा रंगोली बनाता है.तेरी इस थैली में तो एक ही रंग है. क्या एक रंग से कोई रंगोली बनती है? और रंग भी केवल भगवा.
बोला- संस्कृति विभाग का जो मेल आया है उसमें दी गई रंगोली में अधिकतर भगवा रंग के ही शेड हैं. उसमें यह भी लिखा है- यूनिटी इन क्रियेटिविटी. मतलब कि सबकी क्रियेटिविटी में एकता होनी चाहिए. जैसे कि कोरोना भगाने के लिए सबने एक साथ थालियाँ बजाईं थीं. या एक दिन सबने रात को नौ बज कर, नौ मिनट पर, नौ नौ दीये जलाए थे. मतलब हँसने-रोने में भी एकता जिससे राष्ट्र मज़बूत बने.
हमने कहा- इस तरह से तो यह दुनिया रोबोटों की एक दूकान बन जायेगी. यह क्रियेटिविटी नहीं होती. इसे यूनिफोर्मिटी कहते हैं. ग्रीक पोएटिक्स में थ्री यूनिटीज़ बताई गई हैं. टाइम, प्लेस और एक्शन की यूनिटी. जैसे एक ही व्यक्ति, कार्य, वस्तु दो बहुत अलग अलग कालों में नहीं दिखाई जा सकती. हनुमान जी के हाथ में मोबाइल, या गाँधी जी को मन की बात सुनते दिखाया जाना, या तीर तो लगे हिरन को और मर जाए आकाश में उड़ता कौव्वा. कुछ इस तरह की असंगत बातें यूनिटी के खिलाफ जाती हैं. क्रियेटिविटी में ऊपर से कोई यूनिटी दिखाई नहीं देती क्योंकि सबकी अभिव्यक्ति की शैलियाँ भिन्न होती है लेकिन उसमें वास्तव में एक आतंरिक यूनिटी होती है. इसीलिए दुनिया के सभी साहित्य और कलाएं भिन्न दिखाते हुए भी मूलतः मानवता और करुणा के उच्च विचारों का सन्देश ही देते हैं.
बोला- कोई बात नहीं. मैं रंगोली बनाता हूँ. तू दो-चार फोटो ले ले. फिर चाय पियेंगे और देशभक्ति गीत और लोरी पर कल बात करेंगे.
जैसी भी बनी, तोताराम ने एक रंगोली बनाई. हमने फोटो लिए. जल्दी ही काम निबट गया.
हमने कहा- तोताराम, कल पर क्या छोड़ना. देशभक्ति गीत और लोरी वाला काम भी निबटा ही देते हैं. यदि तुझे कुछ समझ आ रहा हो तो बता.
बोला- पहले तो कुछ अच्छी तुकें नोट कर लें जैसे महान, आन, शान, गान, बलिदान, हिन्दुस्तान, खान, पान आदि.
हमने कहा- इसमें कब्रिस्तान, श्मशान, मुसलमान,अजान, क्रिस्तान आदि तुकें भी तो आ सकती हैं.
बोला- हिन्दुस्तान में ये विधर्मी और उनसे संबंधित तुकें नहीं आ सकतीं. हाँ, इनसे देश की संस्कृति, सभ्यता, संस्कार और शुद्धता को बचाने के सन्दर्भ में अवश्य इनका उपयोग किया जा सकता है.
हमने कहा- यह क्या बात हुई .क्या 'सिकंदरे आज़म' फिल्म का राजेंद्र कृष्ण का लिखा, मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया गीत- 'जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करतीं हैं बसेरा' याद नहीं. देशभक्ति के हर कार्यक्रम और राष्ट्रीय अवसरों पर करोड़ों-अरबों बार गाए और बजाय गए इस गीत में क्या विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं, मान्यताओं विश्वासों का इन्द्रधनुषी समागम नहीं है ? क्या इसके शब्द-शब्द से देश प्रेम का संचार नहीं होता ?'मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अजान' 'जहां प्यार की बंसी सदा बजाता आये सांझ-सबेरा'. वाह !
बोला- इसमें तेरे अनुसार क्या काल दोष नहीं है ? क्या सिकंदर के समय में इस्लाम था ? और फिर यह परिवारवादी कांग्रेस के काल में लिखा गया गीत हैं जिसमें हिन्दू-हिन्दुस्तान को जान-बूझकर दरकिनार किया गया है.जब हिन्दू और हिन्दुस्तान नहीं होंगे तो हिंदुत्व कहाँ रहेगा. हिंदुत्व के बिना इस राष्ट्र की कल्पना नहीं हो सकती. राष्ट्रभक्ति के लिए राष्ट्र के शत्रुओं की कल्पना करना, शत्रु तय करना,उनको मारना, उन्हें भगाना, उन्हें मटियामेट कर देना, उनके वंशजों से हजार साल की दुश्मनी का बदला लेना जैसे प्रेरक कामों के बिना राष्ट्र प्रेम के भाव आ ही नहीं सकते. नई पीढ़ी में निरंतर मरने-मारने का जोश भरते रहना बहुत ज़रूरी है.
हमने कहा-. देश से प्यार करने का मतलब किसी को शत्रु बताकर उसका सिर फोड़ना ही ज़रूरी नहीं है, किसी एक को एक ही भाषा में झुण्ड बनाकर गाली निकालना भी आवश्यक नहीं, देश का पानी, अन्न आदि व्यर्थ न करना भी देशप्रेम है. मनुष्य दुनिया में मरने मारने के लिए जन्मा है या फिर प्रेम से रहने के लिए ? जोश एक दूसरे की सहायता करने के लिए, एक दूसरे के लिए त्याग करने के लिए भी तो हो सकता है ? हमें लगता है इस मामले में जब हमारे विचार ही नहीं मिलते तो मिलकर क्या लिखा जा सकता है. प्यार और तलवार दोनों साथ नहीं चल सकते.
खैर, चल अब लोरी पर दो बातें कर लें. वैसे लोरी का देशभक्ति से क्या संबंध है ? हर माँ अपने बच्चे को सुलाने के लिए, उसे शांत करने के लिए वात्सल्य से विभोर होकर कुछ ऐसे ही गुनगुनाती है वह लोरी हो जाती है.उस मधुर लय के साथ बच्चा सोता है तो उसे नींद गहरी आती है. उसका शारीरिक और मानसिक संतुलन बनता है. उसकी उद्विग्नता कम होती है जैसे मधुर संगीत सुनने सभी का तनाव कम होता है. माँ और शिशु के इस शाश्वत और सहज रिश्ते में राष्ट्र भक्ति जैसे भारी-भरकम शब्द कहाँ से आ गए ?
बोला- नहीं, बच्चे में राष्ट्रभक्ति बचपन से ही भरी जानी चाहिए नहीं तो फिर बड़े होने पर यह काम बहुत कठिन हो जाता है. फिर राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरनी पड़ती है जिसे धर्मनिरपेक्षता वाले साम्प्रदायिकता या कट्टरता कहते हैं.
हमने कहा- तोताराम, वैसे लोरी तो किसी को सुलाने के लिए गाई-सुनाई जाती है. इस समय तो देश को बहुत से भ्रमों, अंधविश्वासों, गलत अवधारणाओं, कुरीतियों, अवैज्ञानिकताओं, जाति-धर्म, ऊंच-नीच की कुंठाओं से जगाने की ज़रूरत है न कि सुलाने की.
बोला- ज्यादा जागी हुई जनता को कंट्रोल करना मुश्किल होता है, चुनाव के लिए उसका ध्रुवीकरण करना बहुत कठिन हो जाता है. जागी हुई जनता अपने अधिकार और आजादी मांगने लग जाती है. उस स्थिति में मंदिर-मस्जिद, देशद्रोह, यूएपीए, छापे,, इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट आदि जैसे कई टोटके करने पड़ जाते हैं. और फिर पहले भी राष्ट्रप्रेम की लोरियां लिखी और गाई जाती थीं जैसे राजस्थानी की- 'बाळो पाँखां बाहर आयो माता बैण सुणावै यूँ...'.
हमने कहा-यह उस काल की बात है जब छोटे-छोटे ठाकुरों और नवाबों के पास आपस में लड़ने के अलावा कोई और काम नहीं हुआ करता था. अब तो प्रेम से मिलजुलकर देश को सुधारना है जिसमें सभी शांति और प्रेम से रह सकें.
शादी की उम्र
आज तोताराम बहुत खुश था, बोला- देखा, सरकार ने महिलाओं के विकास और सशक्तीकरण के लिए कितना साहसिक कदम उठाया है. अब न बेटियों की जीवन-रक्षा में कोई रुकावट आएगी और न ही शिक्षा में. अब लड़की और लड़कों की शादी की उम्र एक समान २१ साल कर दी गई है.
हमने कहा- उम्र का किसी बात से कोई संबंध नहीं है. बुद्धि किसी भी उम्र में भ्रष्ट हो सकती है, ठोकर किसी भी उम्र में लग सकती है. मौत किसी भी उम्र में आ सकती है. भाग्योदय किसी भी उम्र में हो सकता है तो करम भी किसी भी उम्र में फूट सकते हैं. शंकराचार्य ने १६ साल की उम्र में संन्यास ले लिया था और नब्बे साल वाले बरामदे में बैठे कभी प्रधान मंत्री तो कभी राष्ट्रपति और कभी भारतरत्न की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं.
बोला- जैसे पहले किसी भी उम्र में शादी कर दी जाती थी.उससे लड़के-लड़कियों दोनों का विकास रुक जाता था, विशेषरूप से लड़कियों का.
हमने कहा- विकास का उम्र से क्या संबंध है ? कुछ लोग शादी करते ही नहीं तो क्या वे खुदा हो जाते हैं ?
बोला- मास्टर, मैं बहुत तो नहीं जानता लेकिन भारत में तो शादी न करने से, विधुर हो जाने या शादी करने के बाद पत्नी को छोड़कर भाग जाने से विकास और भाग्योदय का संबंध नज़र आता है.मुझे तो आज और आज से पहले भी कुंवारे, विधुर, परिवार त्यागने वाले लोगों का ही भारतीय सत्ता में सबसे अधिक योगदान नज़र आता है. अब नाम गिनाने लगूँगा तो लिस्ट बहुत लम्बी हो जायेगी.
हमने कहा- वैसे समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम सांसद ने कहा है कि शादी की उम्र बढ़ाने से लड़कियों के बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है.
बोला- दो साल से लेकर ८० साल तक की बच्चियों और बूढियों से बलात्कार हो जाते हैं उनमें किसकी उम्र का दोष है. संन्यास और निर्देशक मंडल में बैठने की उम्र में भी साधारण ही नहीं, कई महामहिम और माननीय लम्पटता करके निष्कासित हुए हैं या जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं.
हमने कहा- शादी की उम्र २१ साल होने से बच्चियां सरलता से उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकेंगी, कैरियर बना सकेंगी,
बोला- उच्च शिक्षा प्राप्त करके करोड़ों लड़के-लडकियां धक्के खा रहे हैं तो लड़कियों के लिए ही २१ तक शादी न करके कौन से रोजगार के द्वार खुल जायेंगे. इससे अच्छा तो शादी पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगा दिया जाय तो न बढ़ेगी जनसंख्या और न होगी बेकारी, शिक्षा, चिकित्सा की समस्या. या फिर हाई स्कूल की पढ़ाई को ५० साल का कर दिया जाये तो ज़्यादातर तो हाई स्कूल करने से पहले ही निबट जायेंगे, कुछ ग्रेज्युएट तक ठंडे हो लेंगे, फिर भी कोई बच गया तो कह देंगे पकौड़े तल ले या फिर गौरक्षक दल में शामिल हो जा और कर हफ्ता वसूली.
हमने कहा- जनसंख्या बढ़ने का संबंध शादी से थोड़े ही है. और क्या जो काम शादी के बाद किया जाता है वह बिना शादी के नहीं किया जा सकता ? वेदव्यास और ईसा तो बिना शादी के ही इस मृत्युलोक में आ गए थे. २१ साल के बाद शादी करने से वैवाहिक जीवन के स्वस्थ, सफल और सुखी होने की कोई गारंटी है ? और जब सरकार किसी की कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेती तो फिर बिना बात टांग अड़ाने की क्या ज़रूरत है. जो करे सो भरे.
सब भाग्य का खेल है.गाँधी जी की शादी १२ वर्ष की आयु में हो गई लेकिन राष्ट्रपिता बन गए. मोदी जी की शादी १७ वर्ष की आयु में हो गई तो क्या उनके कैरियर में कोई कमी नज़र आती है ? हमारी शादी भी १७ से कम की आयु में हो गई थी लेकिन हम ! सब किस्मत का खेल है. हमारे हिसाब से तो इन बातों को खुला छोड़ दिया जाना चाहिए. कोई २१ के बाद भी शादी न करे या किसी का जुगाड़ न बैठे तो क्या सरकार कोई जिम्मेदारी लेती है ? कल को सरकार यह भी कह सकती है कि सबको शादी करनी ही पड़ेगी या साक्षी महाराज की सलाह के अनुसार आठ बच्चे पैदा करने ही पड़ेंगे. .
बोला- लोकतंत्र में संख्या का भी बड़ा महत्त्व होता है. अगर सभी इस झंझट से बचने लगेंगे तो वोट कौन देगा ? राजा की पालकी कौन ढोयेगा ? जब प्रियंका गाँधी ने महिलाओं को ४०% सीटें देने का वादा किया है तो क्या हम उनके कल्याण के लिए उनकी विवाह की आयु नहीं बढ़ा सकते ?
हमने कहा- कल्याण सुरक्षा, समानता और सुविधा देने तथा शोषण न करने से होगा. इन हवाई नाटकों से नहीं.
योगी या उपयोगी
मोदी जी वास्तव में कॉमन मैन के नेता हैं. इस आत्मविश्वास से बात करते हैं कि शंका करने का प्रश्न ही नहीं उठता. जहां भी जाते हैं उसी के अनुसार कपड़े ही नहीं, दो चार जुमले भी फेंकते हैं. कभी चायवाले तो कभी चौकीदार बनकर बड़े वोट बैंक से सीधे रिश्ता बना लिया. इसी तरह बड़ी चतुराई से नए शब्द नए नारे बनाते हैं कि अर्थ, शब्द निर्माण के नियम और तर्क सब मुंह देखते रह जाते हैं. किस चतुराई से जन औषधि को 'पीएमजय' बना दिया. इससे औषधि का कहीं पता नहीं चलता बस, पी एम की ही जय. और इससे भी ऊपर प्रधानमंत्री मोदी जी जय सुनाई देता है.
आज तोताराम गदगद था, बोला- देखा, मोदी जी का फाइनल टच. दो भाषाओं के दो शब्दों के क्या कॉकटेल बनाया है ? एक ही झटके में 'योगी' को 'उपयोगी' बना दिया. मतलब शेष कोई भी किसी काम का नहीं.
हमने कहा- हमारे हिसाब से तो यह उनका अवमूल्यन है. वैसे ही हो गया जैसे 'पत्नी' को कोई 'उपपत्नी' कहे. उपपत्नी एक अवैध और हीन शब्द है.
बोला- लेकिन उपपत्नी का आकर्षण बहुत जबरदस्त होता है. उसकी आवभगत भी ज्यादा होती है.पत्नी उसके नाम को झींकती रहती है. इसे सौतन (सपत्नी ) भी कहते हैं. 'मोरा साजन सौतन घर जाए...' मोदी जी ने रोमन के दो अक्षरों यू और पी से 'उप' बना लिया और योगी तो हैं ही. बन गया 'उपयोगी'.
हमने कहा- लेकिन 'योगी' बहुत बड़ी और ऊँची चीज होती है,
बोला- मास्टर, कहीं तू फिर 'ऊंची चीज' किसी अन्यथा अर्थ में तो नहीं कह रहा है ?
हमने कहा- क्या बताएं तत्काल और कुछ सूझ नहीं रहा है. वैसे हम इतना तो जानते हैं कि उपयोगी शब्द सामान्य भौतिक वस्तु के लिए आता है जबकि 'योगी' तो अलौकिकता के निकट होता है. 'उपयोगी' को यूजफुल भी मानें तो 'यूज एंड थ्रो' ही ध्यान में आता है. अगर रोमन के दो अक्षरों यू और पी से शब्द बनाएं तो 'अप' बनता है जो उपसर्ग है और उसका अर्थ ऊपर, ऊंचा जैसा कुछ होता है जैसे अपवार्ड, अपहोल्ड, अपकमिंग आदि.
यदि हिंदी वाला 'अप' लें तो यह भी उपसर्ग ही है लेकिन अर्थ उल्टा, हीन, घटिया हो जाता है, जैसे अपमान, अपशब्द, अपकीर्ति, अपस्मार आदि. भाजपा तो शुचिता और शुद्धतावादी पार्टी है उसे ऐसे 'हिंगलिश' शब्द बनाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी. संस्कृत तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है.
उपसर्ग तो उपसर्ग ही होता है. किसी भी महाकाव्य में कम से कम आठ सर्ग होने चाहियें जबकि 'उपसर्ग' तो पूरा एक सर्ग भी नहीं, उससे भी कम 'उपसर्ग' है. क्या फर्क पड़ता है कहीं भी कैसे भी लगा दो. ऐसे में हमारे अनुसार तो 'उपयोगी' शब्द 'योगी' जी के सामने बहुत छोटा है.
बोला- फिर भी एक बार तो मोदी जी ने जनता को स्तंभित कर दिया, 'योगी उपयोगी शेष सब अनुपयोगी'.
हमने कहा- सब चलता रहता है, चुनाव है, चुनाव में भाषा नहीं, भाष्य चलता है.भष का एक अर्थ भौंकना भी होता है. क्या फर्क पड़ता है अगर आगे से रोमन के यू और पी से 'उप' बनाने पर हट हुट, शट शुट, कट कुट, बट बुट हो जाए तो.
नो अमरीका गोइंग नो, सोमनाथ गोइंग
तोताराम ने चाय का गिलास थामते हुए कहा- मास्टर, अमरीका गोइंग नो.
हमने कहा- तोताराम, तेरी यह हरियाणा-राजस्थान 'खाँटी, खट्टर और मनोहर अंग्रेजी' हम तो समझ लेंगे लेकिन औरों का क्या होगा. क्यों बिना बात 'विश्वगुरु' का मज़ाक बनवा रहा है. हम आज से ६५ वर्ष पहले भिवानी में अपनी नानीजी को दिल्ली से आया एक तार पढ़कर सुनाने के फलस्वरूप पिट चुके हैं.लिखा था भगवती नोट फीलिंग वेल सेंड संतकुमार. हमने हिंदी अनुवाद किया- भगवती नोट (भगवती नहीं रही ) फीलिंग वेल (कुँए में गिर गई)सेंड संतकुमार ( संतकुमार को भेजो.) इस अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद करके बता.
बोला- इसका अर्थ यह तो निकल नहीं सकता कि अमरीका भारत आने वाला था और अब नहीं आ रहा है.किसी के भी 'अमरीका न जाने की सूचना' के अतिरिक्त इसका कोई अर्थ नहीं निकल सकता.
हमने कहा- लेकिन इससे यह तो लगता है कि तू मोदी जी की तरह हर समय कहीं न कहीं जाता ही रहता, एक जगह टिककर न काम करता है, न बैठता है.जब कि हम देखते हैं तू साल में ३६५ दिन यहीं जमा रहता है. यह तो वही हुआ जैसे कोई अपनी रईसी का रोब ज़माने या गरीबी को छुपाने के लिए धनवान लोगों के बीच कहे- इस बार हम स्विटज़रलैंड नहीं जा रहे, इस बार क्रिसमस मनाने के लिए पेरिस नहीं जा रहे.
दो दिन पहले कह रहा था कि अब तो अमरीका जाना ही पड़ेगा.आज कह रहा है- अमरीका गोइंग नो. और वास्तव में जाना कहीं नहीं.
बोला- अब अमरीका से अधिक लाभप्रद कहीं और जाना लग रहा है.
हमने कहा- अमरीका में रहकर, वहां की सभी सुविधाओं का भोग करने वाले, येन केन प्रकारेण ग्रीन कार्ड और नागरिकता लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने वाले, भारत की महानता के गुण गाने वाले ही जब लौटकर नहीं आना चाहते तो तू ने अमरीका जाने का इरादा कैसे बदला दिया. वैसे हमें पता है तेरे पास न वीजा है और नहीं वहां से किसी ने स्पोंसर किया है. और न ही ट्रंप ने तुझे 'हाउ डी तोता' कार्यक्रम के लिए बुलाया है. फिर भी कार्यक्रम बदलने का क्या कारण है ? तुझे यहाँ कहाँ 'अच्छे दिन' और उज्ज्वल भविष्य दिखाई देने लगा ?
बोला- गुजरात से अधिक उज्ज्वल भविष्य और कहाँ दिखाई देगा ? गुजरात मॉडल तो दुनिया में प्रसिद्ध है. यहाँ का रेलवे स्टेशन पर लोगों को चाय पिलाने वाला साधारण बालक दुनिया को पानी पिला सकता है, दुनिया का सबसे पॉपुलर नेता और १४० करोड़ का भाग्य विधाता बन सकता है, प्लास्टिक के पाइप बनाने वाला बालक १४० करोड़ लोगों को पाइप में डाल सकता है, गुजरात का ही एक दब्बू सा बच्चा अफ्रीका होता हुआ भारत लौटता है और सारी 'दुनिया का बाप' बन सकता है तो कौन गुजरात नहीं जाना चाहेगा. तू तो मूर्ख है जो सात साल गुजरात में रह कर भी कुछ नहीं सीखा और 'बुद्धू' की तरह घर लौट आया.
हमने कहा- अब यह गुजरात-गुणगान बंद कर. इस पर तो अलग से एक किताब लिखना तो पद्मश्री या अकादमी अवार्ड कुछ न कुछ मिल ही जाएगा. फिलहाल तो यह बता कि सोमनाथ में ऐसा क्या कैरियर दिखाई दे गया तुझे ?
बोला- कल परसों सोमनाथ, गुजरात का एक समाचार था वहीँ के तीस-तीस हजार रुपए पेंशन लेने वाले दो बुज़ुर्ग, पूर्व सरकारी कर्मचारी भीख माँगते हुए मिले. तो यदि मैं भी सोमनाथ चला जाऊं तो पेंशन तो यहाँ खाते में जमा होती ही रहेगी. वहाँ यदि एक सौ रुपया रोज भी मिला तो छत्तीस हजार साल के हो गए. खाना प्रसाद में हो जाएगा, सोना 'सोमनाथ कोरिडोर' के फुटपाथ पर. शेखावटी की इस भयंकर ठण्ड से भी पीछा छूटेगा. और गरमी में अरब सागर की ओर से आने वाली शीतल हवा. यदि मोदी जी ने मोटेरा/पटेल स्टेडियम की तरह नाम बदल दिया तो 'नरेन्द्र-सागर' की ओर से आती शीतल हवा.
हमने कहा- तेरी इस २८ इंची छाती को देखकर रोजाना एक सौ रुपए से ज्यादा भी मिल सकते हैं.
बोला- और तुझे पता होना चाहिए कि दुनिया में गुजरात की दो और बातें भी प्रसिद्ध हैं-
गुजरात नो जमण
काशी नो मरण
मतलब गुजरात का भोजन श्रेष्ठ होता है और काशी में मरना श्रेष्ठ होता है क्योंकि वहाँ मरने पर कुकर्मों के बावजूद मोक्ष मिल जाती है.
हमने पूछा- और ?
बोला- और तेरी इस सड़ियल चाय से भी मुक्ति मिलेगी. वहाँ गुजरात की मसाले वाली चाय पियेंगे. सोमनाथ शिव का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है तो मोक्ष की भी गारंटी.
रहा लाइफ सर्टिफिकेट सो स्मार्ट फोन से ही भिजवाया जा सकता है,
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वह संसद कुछ और थी
हमारा एक शिष्य माननीय बन गया है. माननीय मतलब सांसद. मन किया, जिस लोकतंत्र में वार्ड पञ्च भी खुद को प्रधान सेवक समझता है, वहाँ हम दिल्ली जाएँ और माननीय बने अपने शिष्य से पैर छुआ कर आयें. तोताराम से पूछा- तोताराम, संसद का अगला अधिवेशन कब होने वाला है ?
बोला- अब संसद और चंडूखाने में कोई फर्क नहीं रह गया है. जहां भी चार लफंगे जुड़ बैठें वहीँ संसद हो जाती है.तू जब कहे करवादें संसद का अधिवेशन. जो किसी काम के नहीं हैं वे सबसे ज्यादा सुविधाओं का उपभोग करते हैं और आँखें ऊपर से दिखाते हैं, न नीयत नियंत्रण में, न ईमान, न जुबान; उन्हें चंडाल चौकड़ी जमाते क्या देर लगती है.
हमने कहा- कैसी बात करता है ? संसद एक पवित्र शब्द है, जहां सेवक लोग निष्पक्ष भाव से समस्त समाज-देश के कल्याण के लिए चिंतन-मनन करते हैं.
बोला- क्यों ? १७ से १९ दिसंबर को हरिद्वार में और २५ से २६ दिसंबर २०२१ को रायपुर में. उसके बाद १ से २ जनवरी २०२२ को भी संसद आयोजित करने का कार्यक्रम था लेकिन इनके प्रपंचों पर जब चर्चा चली तो रोक लगा दी गई है लेकिन ऐसे लोग बाज थोड़े ही आते हैं. फिर रचेंगे कोई न कोई प्रपंच.
हमने कहा- यह तो तू 'धर्म संसद' की बात कर रहा है. ऐसी संसदें तो सभी धर्मों, पंथों में दुनिया भर में हर दिन चलती है. निंदा करना, थूक उछालना तो सभी निठल्लों का हमेशा से शौक और शगल रहा है. ये कोई किसान मजदूर थोड़े ही होते हैं जिन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती. हम तो दिल्ली वाली संसद की बात कर रहे हैं जिसका पुराना भवन तुड़वाकर 'सेन्ट्रल विष्ठा' बनवाया जा रहा है.
बोला- सच पूछे तो मास्टर आजकल सभी संसदें धर्म नहीं 'अधर्म संसदें' रह गई हैं. जिस संसद की सीढ़ियों पर सेवक मत्था टेक रहे थे उसी में किसानों और विपक्ष से चर्चा किये बिना कृषि कानून बना दिए गए और उनका शांति पूर्ण विरोध कर रहे लोगों को एक साल तक खुले में बैठा दिया, रास्ते में कीलें गाड़ दी गईं और संसद के अन्दर उन्हें आतंकवादी कहा गया, वह संसद भी संदेहास्पद हो गई है.
हमने कहा- लेकिन इस संसद का ही एक रूप तेरी यह तथाकथित धर्म संसद है. जिसमें गाँधी, मनमोहन को गाली और हत्या की बात की जाती है, विधर्मियों को मारने के संकल्प दिलवाए जाते हैं, विद्यार्थियों को किताबें छोड़कर हथियार उठाने की नसीहत दी जाती है, क्रिसमस मनाने वालों को धमकी दी जाती है. यदि देश की संसद निष्पक्ष हो और ऐसी धर्म संसदों के फसादी निर्णयों पर कार्यवाही भी करे तो कुछ सुधार हो सकता है लेकिन वह तो चुप है. क्या धर्म संसदें ऐसी होती हैं ?
बोला- नहीं, एक धर्म संसद १८९३ में ११ सितम्बर को शिकागो में भी हुई थी जिसमें विवेकानंद ने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था.
हमने कहा- वह संसद कुछ और थी. उसमें विवेकानंद के मुख से भारत के बहुलतावादी और समन्वयवादी दर्शन को दुनिया ने आश्चर्यचकित होकर सुना था-
मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
बोला- संयोग देख मास्टर, विवेकानंद का सन्देश न सुनने-गुनने के कारण ही, उसी देश में, उसी तारीख़ को धर्म की आड़ में ११ सितम्बर २००१ को अमरीका ट्विन टावरों पर हमला हुआ.
बोला- मास्टर, तुझे पता होना चाहिए कि कोलकाता के रामकृष्ण मिशन आश्रम में आज भी ईसा का जन्म दिन मनाया जाता है.वैसे तथाकथित राष्ट्रवादी लोग विवेकानन्द की बातें तो बहुत करते हैं.
हमने कहा- तोताराम, इन्हें रामभक्त भगतसिंह चाहिए और मुसलमानों और ईसाइयों को गाली निकालने वाला विवेकानंद चाहिए.नास्तिक भगतसिंह और सभी धर्मों को समान मानने वाला विवेकानंद इन्हें नहीं पचता. इनकी प्रज्ञा के अनुसार गाँधी नहीं, गोडसे आदरणीय और देशभक्त है.
तभी तो
वह संसद कुछ और थी, यह संसद कुछ और
उस संसद में संत थे, इस संसद में चोर
अब तो अमरीका जाना ही पड़ेगा
हमारे इलाके में पिछले हफ्ते कई जगह तापमान शून्य ने नीचे चला गया था. फतेहपुर शेखावाटी में तो माइनस ३.४ हो गया था. हालांकि इस उम्र में, ऐसी सर्दी में हम अस्सी के आसपास वालों को खतरा ही रहता है. लेकिन जैसे 'खालिस्तानी' और 'अमीर किसान' तीन कृषि कानूनों की वापसी के इंतज़ार में साल भर दिली की सीमाओं पर बैठे रहे या छोटे किसान अपनी आय दुगुनी होने के इंतज़ार में आत्महत्या नहीं कर रहे हैं वैसे ही हम इस हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड में भी हिम्मत बांधे हुए हैं. अच्छे दिन और १५ लाख के इंतज़ार में नहीं बल्कि १ अगस्त २०२२ को २०% बढ़ जाने वाली पेंशन की अपनी पास बुक में एंट्री देखने के लिए जिससे कि स्वर्ग में (यदि नसीब हुआ)अन्य स्वर्गीयों के सामने कम लज्जित होना पड़े.
कमरे में रजाई में पाँव घुसाए कूकड़ी हुए बैठे थे कि तोताराम ने आते ही सूचित किया- मास्टर, अब अमरीका जाना ही पड़ेगा.
हमने भी उसके भ्रम को बनाए रखते हुए कहा- क्या जो बाईडन ने तेरे लिए 'हाउ डी तोता' कार्यक्रम आयोजित किया है ?
बोला- हालांकि तुझे भी पता है कि अब अमरीका में मेरे मित्र ट्रंप राष्ट्रपति नहीं हैं, जो बाईडन ऐसे फालतू के कार्यक्रम आयोजित नहीं करते. और फिर ट्रंप भी कोई अपने खर्चे से कार्यक्रम आयोजित थोड़े ही करते. दोनों तरफ खर्चा तो अपना ही होता जैसे कि 'हाउ डी मोदी' में अमरीका में भी खर्च भारतीयों का हुआ और जब ट्रंप यहाँ आये तो 'नमस्ते ट्रंप' में भी खर्चा हमारा ही हुआ. लेकिन फायदा क्या हुआ ? वहाँ ट्रंप निबट गए और यहाँ उसके बाद कोरोना ने 'गंगा' को 'शव वाहिनी' कर दिया. उसके बाद कोरोना ने गुजरात के किसी भाजपा नेता द्वारा सप्लाई किये नकली वेंटीलेटरों ने भद्द पिटवा दी. उसके बाद सूरत से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश होते हुए आये नकली रेमडेसीवेयर ने यश का रायता फैला दिया. और अब रही सही कसर ममता दीदी ने 'खेला करके' पूरी कर दी. ऊपर से अब उत्तर प्रदेश में यह प्रियंका कह रही है- लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ.
हमने कहा- भारत की इस राष्ट्रवादी रामायण का कोई अंत नहीं है. तू तो यह बता कि तेरे लिए अमरीका जाने की ऐसी क्या मज़बूरी आ गई. तू तो ऐसे कह रहा है जैसे कि तुझे भी नीरव मोदी, माल्या और चौकसे की तरह भारत छोड़ना ही पड़ेगा.
बोला- मैं तो इस ठंड के चक्कर में परेशान हूँ. सोचता हूँ, इस समय अमरीका में मौसम ठीक चल रहा है.
हमने कहा- दक्षिण अमरीका का तो पता नहीं लेकिन उत्तरी अमरीका के उत्तरी इलाके में तो बहुत बर्फ पड़ती है.
बोला- अब वहाँ भी हमारे विश्वगुरु बनाने की तरह 'मेक अमरीका ग्रेट अगेन' के राष्ट्रवाद के कारण जलवायु परिवर्तन हो गया है. गरमी आ गई है.
हमने पूछा- जलवायु भी क्या कोई राष्ट्रवादी, राष्ट्रविरोधी, दक्षिणपंथी, वामपंथी, हिन्दू मुसलमान होता है ?
बोला- ट्रंप ने अपने अनुयायियों में इतना राष्ट्रवादी उत्साह भर दिया कि डंडे, बंदूक लेकर बाईडन को कार्यभार संभालने से रोकने के लिए कैपिटल हिल पहुँच गए थे. अब जब वहाँ की संस्थाओं ने ट्रंप को घपला करने से रोक दिया तो वह ऊर्जा कहाँ जायेगी. अब वह ऊर्जा अमरीका का तापमान बढ़ा रही है. कनाडा की सीमा पर स्थित मध्य अमरीका के राज्यों में जहां तापमान महिनों माइनस में रहता था अब वहाँ बरसात हो रही है. तापमान जीरो से नीचे गया ही नहीं.
हमने कहा- यह तो बहुत चिंता की बात है.
बोल- क्यों ?
हमने कहा- जैसे अपने यहाँ पहले लू में मच्छर मर जाते थे और सर्दी में मक्खियाँ मर जाती थी. तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि तथा राजस्थान में गहलोत और वसुंधरा की तरह बारी-बारी आते थे लेकिन अब तो दोनों ही दोनों ऋतुओं में परेशान करते हैं. वैसे ही वहाँ अमरीका में भी सर्दी में मर जाया करने वाले कीट-पतंगे मर नहीं रहे हैं. ऐसे में वे सर्दी में होने वाली फसलों पर हमला करेंगे.
बोला- अपने को क्या है ? अपन तो जब यहाँ सर्दी कम हो जायेगी तब लौट आयेंगे.
हमने कहा- यहाँ तो पता नहीं सर्दी से मरेगा या नहीं लेकिन वहाँ अब ओमिक्रोन फ़ैल रहा है. उसकी चपेट में आगया तो ? यहीं रह. यहाँ जब तक कहीं भी चुनाव हैं तब तक कोरोना का बाप भी कुछ नहीं कर सकता चाहे हजार रेलियाँ करो. उसके बाद गरमियाँ आ ही जायेंगी.
एकोहं द्वितीयो नास्ति....
आज तोताराम की सज और धज दोनों ही हिन्दू संस्कृति के अनुरूप थी. माथे पर तिलक, हाथ में कलावा, खाकी निक्कर, काली टोपी. समर्पित, सन्नद्ध, सेवक. बस, कंधे शस्त्र की कमी थी. आते ही बरामदे में 'शपथ ग्रहण समारोह' का बैनर टांग दिया.
हमने कहा- तोताराम, एक दिन हमने तुझे मोदी जी द्वारा हमें प्रधानमन्त्री की जिम्मेदारी सौंपकर संन्यास पर चले जाने वाला स्वप्न बताया था. वह कोई मजाक नहीं था, सच में हमें सपना आया था. हाँ, ऐसे स्वप्न स्वप्न ही होते हैं. स्वप्न तो सच मोदी जैसे भाग्यशालियों के होते हैं. लेकिन अब तू यह 'शपथ-ग्रहण समारोह' का नाटक करके हमें शर्मिंदा क्यों कर रहा है ?
बोला- यह किसी राजा का 'शपथ-ग्रहण समारोह' नहीं है. यदि तेरे वास्तव में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का समारोह होता तो क्या ऐसे बरामदे में होता ? फिर तो रायसीना हिल पर होता, रायसीना-दाल बनती. हजारों अपने आपको विशिष्ट समझने वाले आते और दर्शक बनकर अपनी औकात को समझते कि आज वे मास्टर की रियाया हैं. खैर, यह तो प्राण देकर भी अपने धर्म की रक्षा करने और उसे बचाने का मामला है.
हमने कहा- तोताराम, तू भले ही कुछ भी कह लेकिन हमें आजकल के चतुर राजनीतिक मनुष्य में विश्वास नहीं रहा. वह संविधान की शपथ लेकर भी धर्म-जाति-पार्टी आदि के आधार पर बेशर्म होकर भेदभाव करता है. और सच कहें तो आज तेरे 'शपथ' शब्द में ही बिहारी की नायिका की तरह चतुरता और चालाकी दिख रही है.जो 'सौंह' (शपथ ) करती है लेकिन जिस तरह से चतुर हंसी हंसती है उससे साफ़ पता चल जाता है कि वह चतुर नेता की तरह चुनाव में वादे और अभिनय करके नायक को उल्लू बनाती है-
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय
सौंह करे, भौहन हँसे, देन कहे नट जाय
बोला- यह किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा नहीं है, यह इस देश के अस्तित्त्व और अस्मिता का सवाल है. हजारों साल से दुनिया के अन्य धर्म वालों ने हमें उल्लू बनाया है.
हमने कहा- धर्म के मामले में कोई किसी को उल्लू नहीं बना सकता.सबका धर्म होता है, पिता का, पुत्र का, पति का पत्नी का, राजा का प्रजा का और सभी कमोबेश उसे निभाते ही हैं.आग का, पानी का भी धर्म होता है. धर्म तो अपने कर्तव्य को अपने तरीके से निभाने का नाम है. तभी गाँधी जी कहते थे कि दुनिया में जितने जीव हैं उतने ही धर्म हैं.
बोला- गाँधी को क्या पता ? वह तो ईश्वर अल्ला तेरो नाम गाता और गवाता था. क्या ऐसे होता है ? हिन्दू का ईश्वर अलग होता है, मुसलमान का अल्ला अलग होता है. ईश्वर ही इस संसार में दयालु, पवित्र और श्रेष्ठ होता है. और सब तो 'ऐवें' ही होते हैं.
हमने कहा- गाँधी की बात छोड़. उसे तो इस 'देशभक्त गोडसे युग' में राष्ट्र और हिंदुत्व के नाम पर कोई भी लतियाने-गरियाने में लगा है. खैर, तू तो उस शपथ के बारे में बता.
बोला- सबसे पहले मैं बोलूंगा- मैं. इसके बाद रिक्त स्थान रहेगा और वहाँ तू अपना नाम बोलना जैसे कि शपथ लेते समय मंत्री नेता बोलते हैं. उसके बाद की शपथ इस प्रकार है जो भागवत जी ने सच्चे हिन्दुओं को संतों की उपस्थिति में दिलवाई है.-
'मैं हिन्दू संस्कृति का धर्मयोद्धा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की संकल्प स्थली पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज के संरक्षण संवर्धन और सुरक्षा के लिए आजीवन कार्य करूंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि किसी भी हिन्दू भाई को हिन्दू धर्म से विमुख नहीं होने दूंगा। जो भाई धर्म छोड़ कर चले गए हैं, उनकी भी घर वापसी के लिए कार्य करूंगा। उन्हें परिवार का हिस्सा बनाऊंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हिन्दू बहनों की अस्मिता, सम्मान व शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करूंगा। जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिन्दू समाज को समरस सशक्त अभेद्य बनाने के लिए पूरी शक्ति से कार्य करूंगा।'
हमने कहा- राम की संकल्प स्थली तो चित्रकूट मानी जाती है जहां राम ने ऋषियों की अस्थियों का पहाड़ जैसा ढेर देखकर राक्षसों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी. लेकिन आज क्या इस देश में फिर राक्षसों ने धावा कर दिया है ? क्या वे मनुष्यों अर्थात हिन्दुओं को मारकर खा रहे हैं ?
बोला- यह तो पता नहीं लेकिन इतना तो तय है कि वे अपनी संख्या बढाए जा रहे हैं जिसके मुकाबले में हिन्दुओं को अपनी संख्या बढानी पड़ेगी. अगर कोई किसी अन्य धर्म में जाना चाहे तो उसे रोकना है, जो भय और लालच से अन्य धर्म में चले गए हैं उन्हें वापिस लाना है.
हमने कहा- लेकिन ऐसे लोगों को कैसे पहचानेंगे कैसे ?
बोला- उनके कपड़े देखकर पहचान लेंगे.
हमने कहा- यदि वह सामान्य कपड़े और क्लीन शेव्ड हुए तो ?
बोला- तो फिर खतना चेक करेंगे.
हमने कहा- क्या ऐसे लोगों का खतना पूर्ववत किया जा सकता है ?
बोला- तू अब फालतू बात मत कर. बस, मेरे साथ संकल्प दोहरा.
हमने कहा- यदि कोई अपना बदला हुआ धर्म न छोड़ना चाहे तो ?
बोला- हमें उसके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहना चाहिए. संकल्प के शब्दों में 'सर्वस्व समर्पण' भी है.
हमने कहा- लेकिन हमारे यहाँ भी तो हिन्दू, जैन, बौद्ध, शाक्त, शैव, वैष्णव, सिक्ख, कबीरपंथी, रविदासिया आदि और उनमें भी कई तरह की ऊंचनीच. किसे कहाँ डालोगे ?
बोला- जिस तरह १९५७ में जब नई दशमलव प्रणाली आई थी, एक रुपए में सौ पैसे का सिस्टम किया गया था तो सरकार ने कन्वर्जन टेबल घोषित की थी. आज भी रुपया-डोलर, रुपया पौंड, रुपया-दीनार इंच सेंटीमीटर आदि की कन्वर्जन टेबल बनी हुई है उसी तरह से कन्वर्जन टेबल बना लेंगे कि किस धर्म के किस व्यक्ति को हिन्दुओं में किस जाति में रखा जाएगा ? जैसे मुसलमान भंगी हिन्दू भंगी हो जाएगा.
हमने कहा- जब किसी को उस धर्म में झाड़ू ही लगानी है और इस धर्म में भी झाडू ही लगानी है तो फिर फायदा क्या ?कोई डिस्टर्बेंस अलाउंस भी नहीं मिलता और नई तरह के कपडे, दाढ़ी,टोपी का चक्कर अलग. अपनी पुरानी टोपी ही भली, फिर चाहे वह जाली वाली हो या काली.
बोला- मैं तो जितना जानता था सो बता दिया. आब आगे की बात चित्रकूट में इकट्ठे हुए संत जानें.
हमने कहा- तोताराम, एक दोहा है-
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
तुलसिदास चन्दन घिसें तिलक करें रघुवीर
सो चन्दन घिसने वाले कोई और होते हैं और तिलक करने वाले कोई और. कल तिलक रघुवीर करते थे और आज कोई और करेंगे. धर्म दो ही हैं- एक चन्दन घिसने वाला और एक मुफ्त के चन्दन से तिलक करने वाला. और संतों का लक्ष्य मुफ्त के चन्दन से तिलक करते-करते 'राजतिलक' तक पहुँचने का लक्ष्य होता है.
वैसे हमें याद है एक जगह भागवत जी ने कहा था कि हिन्दू मुस्लिम एकता शब्द बेमतलब है. ऐसे में 'घर वापसी' का क्या मतलब हो सकता है.
बोला- शायद उन्हें अपने-अपने घर पाकिस्तान, इटली वापिस भेजने से हो.
हमने कहा- तोताराम, यदि दिल बड़ा करके सोचें तो अरब में रामल्ला है जो 'राम लल्ला' से बना है, राम भी रोम रोम में बसते हैं जो कि इटली की राजधानी है. लेकिन हमें नहीं लगता कि वे इन्हें स्वीकार करेंगे.क्यों न इन्हें जैसे ये हैं वैसे ही स्वीकार करके यहीं रहने दिया जाए.
बोला- यह भी नहीं हो सकता क्योंकि कहा गया है-
एकोहम द्वितीयो नास्ति
मतलब एक ईश्वर के साथ दूसरा ईश्वर नहीं रह सकता. और अगर रहेगा तो पहले का मातहत बनकर ही रहना पड़ेगा.
हमने कहा- लेकिन एक बार भागवत जी ने यह भी तो कहा था कि दोनों का डी. एन. ए. एक ही है.
बोला-ये सब किसी खास परिस्थिति में कहने की बातें हैं. यदि कोई बड़ा सेवक किसी कबीरपंथी, बाउल या मज़दूर के साथ खाना खा लेगा तो क्या वे 'राजा' हो जायेंगे ? दो दिन बाद फिर 'मूषकः मूषकः पुनः .
इलाज और अंग्रेजी बनाम रामचंद्र के राज
हमारे जिले के एक अस्पताल का किस्सा है. हो सकता है दो-चार दिन पहले का हो लेकिन हमें तो समाचार आज ही पढ़ने को मिला तो चलो, आज गौरवान्वित हो लेते हैं.
हुआ यह कि डाक्टर ने पर्ची लिखी फुंसी की दवाई की और जी एन एम (जनरल नर्सिंग और मिडवाईफरी) ने दे दी गर्भ रोकने की दवा.
भले ही सरकार को, चाहे कहीं की भी हो, किसी भी पार्टी की हो कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सब चीजें समय पाकर अपने ठिकाने से लग जाती हैं. गंगा में 'शिखर से सागर' तक के जलमार्ग से गंगा से यात्रा करते सैंकड़ों शव अब तक सद्गति को प्राप्त हो ही चुके.कुछ पर मिट्टी डाली गई तो कुछ पर 'रामनामी'. अब किसे याद कि किस राज्य में कितने किसानों ने, क्यों आत्महत्याएं कीं.जब तक कोई देशभक्त अड़ोस-पड़ोस में सद्भाव बनाए रखने के लिए 'विभाजन विभीषिका दिवस' का आविष्कार न करे तब तक कैसे पता चले कि गाँधी नेहरू ने सावरकर जी के न चाहते हुए भी एक षड़यंत्र के तहत विभाजन करवाया था.
हमने कहा- तोताराम, यह तो बहुत गलत बात है, कि शिकायत छोटी-मोटी फुंसियों की और दवाई दी जा रही है गर्भ रोकने की.
बोला- इसमें क्या बुराई है. दवाई तो दी जा रही है ना. बीमारी दवा से नहीं दुआ और विश्वास से ठीक होती है. जहां कोरोना को भगाने के लिए भारत की तरह दैहिक, दैविक, भौतिक उपाय किये गए क्या वहाँ कोरोना पूरी तरह से समाप्त हो गया ? और जहां कुछ नहीं किया गया क्या वहाँ जनसंख्या ख़त्म हो गई ?
और फिर तय मान कि बढ़ती जनसंख्या ही सभी बीमारियों की जड़ होती है. वह रुक गई तो सब ठीक हो जाता है. अंग्रेजी के अल्प ज्ञान के कारण ही सही लेकिन इलाज़ हो एक बड़ी राष्ट्रीय समस्या का था.
हमने कहा- तो फिर सभी संत-महंत जनसंख्या बढाने के लिए क्यों कहते हैं ?खुद तो शादी तक से दूर भागते हैं और हिन्दुओं के गले में पांच-सात बच्चों की आफत डालना चाहते हैं.
बोला- वे तो हिन्दू धर्म ही रक्षा के लिए कहते हैं. यदि विधर्मियों की संख्या बढ़ जायेगी तो वे हमारे देश कर कब्ज़ा कर लेंगे.
हमने कहा- यह क्यों नहीं कहता कि धर्म के नाम पर सभी धर्मों के धर्माधिकारी मुफ्त का माल पेलने के लिए अपने अंधभक्तों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं. हजार सालों से ईसाइयत और इस्लाम इस देश में हैं फिर भी ८० % हिन्दू हैं तो फिर यह शंका व्यर्थ है कि किसी ने धर्म वाले इस देश पर कब्ज़ा कर लेंगे और फिर लोकतंत्र में जनता जिसे चाहे चुने, उसकी मर्जी.
जब अमरीका, ब्रिटेन में सरकार में बड़े-बड़े पदों पर भारतीय हिन्दू, मुसलमान और सिख हैं और उस देश को कोई खतरा नहीं है तो भारत में क्या आसमान टूट पड़ेगा ? जब कुछ वर्षों पहले विदेश गए भारतीयों को वहाँ सत्ता में स्थान मिल सकता है तो भारत में हजारों साल पहले आ चुके दूसरे धर्म और देश के लोगों की सत्ता में भागीदारी क्यों स्वीकार नहीं है ? अमरीका को तो यह डर नहीं सता रहा कि भारत और जमैका मूल के माता पिता की संतान कमला हैरिस उनके देश का कोई नुकसान करेगी. ब्रिटेन के वित्त और गृह मंत्रालय जैसे विभाग भारत मूल के हिन्दू मंत्रियों के पास हैं तो उस देश का क्या नुकसान हो रहा है ? श्रेष्ठ को स्वीकार करो और निकृष्ट को अस्वीकार फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, देश का हो. ज्ञान, सत्य, सेवा का कोई देश, धर्म होता है क्या ?
बोला- तू चाहे कितनी ही वैश्विक एकता की बात कर लेकिन मुझे तो किसी भी विदेशी चीज पर पूरी तरह ऐतबार नहीं. जब औषधि ईसाई भाषा अंग्रेजी में लिखी गई और इलाज किया गया मुसलमानों की भाषा उर्दू में तो गड़बड़ होगी ही. हमारा देश 'विश्वगुरु' और 'सोने की चिड़िया' था लेकिन मुसलमानों और अंग्रेजों ने आकर सब सत्यानाश कर दिया. अगर संस्कृत में निदान किया जाता और संस्कृत में ही औषधि लिखी जाती तो ऐसा नहीं होता.
हमने कहा- हो सकता है इस बात में दम हो क्योंकि जब से अंग्रेज हमें अंग्रेजी में आज़ादी देकर गए हैं कुछ न कुछ चक्कर लगा ही रहता है. पता नहीं, क्या लिख-लिखा गए कि कोई पढ़ता है कि आज़ादी १९४७ में मिली तो कुछ उसे पढ़कर समझे कि देश २०१४ में आज़ाद हुआ. हमें लगता है कि मोदी जी ने तीन कृषि कानून भी अंग्रेजी में ही बनवाये थे तभी न वे खुद किसानों को समझा पाए और न ही किसान समझ पाए. वरना यह कैसे हो सकता है कि सरकार करना चाहे किसानों का भला और उन्हें लगे कि हमारा सत्यानाश किया जा रहा है.
बोला- ये सब खालिस्तानी और आन्दोलनजीवी हैं. इन्हें तो सुधरने की चेतावनी के बाद भी समझ नहीं आती. इन्हें तो किसी जनसेवक की कोई 'सुधारवादी' 'ऑटोमेटिक' 'जीप' की सुधार सकती है जो लखीमपुर खीरी की तरह बिना ड्राइवर के ही नकली और विदेश से सहायता प्राप्त किसानों को ठिकाने लगा दे.
हमने कहा- तोताराम, प्रेम और सेवा की कोई भाषा नहीं होती. नीयत ठीक हो तो बिना किसी भाषा के भी मनुष्य तो मनुष्य, जानवर और यहाँ तक कि पेड़-पौधे भी पहचान लेते हैं. नाटक छोड़कर नीयत बदलने से काम चलेगा.
क्या जातक कथाओं में नहीं पढ़ा कि अच्छे राजा के राज में फलों में अधिक मिठास आ जाता है तो निर्दय राजा के राज में फल अपने आप ही कड़वे हो जाते हैं.
तभी तुलसी कहते हैं- मांगे बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज.