Mar 30, 2016

घोष का घोष

  घोष का घोष

आदरणीय दादा अर्थात दिलीप घोष जी
नोमोस्कर | वैसे उम्र के हिसाब से आप हमारे दादा नहीं हो सकते लेकिन जो बलशाली है, जिससे डर लगता है वह छोटा-बड़ा, दृश्य-अदृश्य कुछ भी उसे अपनी प्राण रक्षा के लिए नमस्कार कर ही लेना चाहिए , सो फिर नमस्कार |
आपने कल घोष किया मतलब कि घोषणा की- पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वालों को छः इंच छोटा कर दिया जाएगा |
हमें बहुत अधिक समझ में नहीं आया फिर भी हमने सुना है- कद एक बार बढ़ने के बाद छोटा नहीं होता, हाँ बुढ़ापे में कमर झुकने के बाद थोड़ा घटा हुआ सा ज़रूर दिखाई देने लग जाता है | एक हरियाणवी ताऊ हजामत करवाने गया |नाई ने पूछा- ताऊ, बाल छोटे कर दूँ |ताऊ ने कहा- क्यूँ बड़े भी कर सकै है के ?
सो किसी को बड़ा बनाना मुश्किल है, छोटा तो कोई भी कर सकता है |

आप इस ' कद-छोटा-कराई-कला'  में क्या तकनीक काम में लेते हैं ? हम तो अखबार में पढ़ते हैं कि फलाँ नेता को मंत्री-मंडल में फलाँ  पद मिल जाने पर उसका कद बढ़ गया या फलाँ मंत्रालय छिन जाने से उस नेता का कद कम हो गया | कद तो कद है, जितना है उतना ही रहता है  |नीचे स्टूल लगाने से या हटाने से कद पर कोई फर्क नहीं पड़ता | ढलते-उगते सूरज को पीठ देकर परछाईं नपवाने से कद थोड़े ही बढ़ता है |आप किस प्रकार कद घटाएँगे ? पता नहीं ? वैसे आपको कद बढ़ाने की कला भी सीखनी चाहिए क्योंकि गाड़ी में ब्रेक और स्पीड बढ़ाने वाली दोनों तकनीकें होनी चाहिएँ |यदि देश भक्तों का कद बढ़ाने की डिमांड आई तो ?

एक आयु के बाद कद बढ़ना बंद हो जाता है लेकिन सुना है कि अंतरिक्ष में एक वर्ष रहकर लौटे अंतरिक्ष यात्री का कद दो इंच बढ़ गया |वैज्ञानिकों ने बताया कि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण ऐसा हो गया है |कुछ दिन में कद फिर पूर्ववत हो जाएगा |इसका मतलब है कि किसी को अधिक गुरुत्वाकर्षण में अर्थात धरती के नीचे रखा जाए तो उसका कद अधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण घट भी सकता है | क्या आप यह तकनीक अपनाएँगे ?

यही शंका जब हमने अपने मित्र के सामने प्रकट की तो उसने कहा- यह तकनीक अन्दर वर्ल्ड के भाई लोगों की है जिसमें छः इंच छोटा करने का मतलब है- सिर काट देना |दादा का अर्थ होता है 'बड़ा भाई' |सो आप जो तकनीक अपनाएँ वही सबसे सही मानी जाएगी |

तो आप कैसे छः इंच छोटा करेंगे |आजकल कुछ लोग अपनी ऊँचाई अधिक दिखाने के लिए ऊँची एड़ी के जूते पहनते हैं सो दो-तीन इंच तो उन जूतों को निकलवाने से ही कम हो जाएगी |और फिर आपने देखा होगा कि आजकल लड़के गोंद जैसा कोई चिकना और चिपचिपा पदार्थ अपने बालों  में लगाकर बालों को खड़ा कर लेते हैं |यदि उन बालों को कटवा दिया जाए तो ऊँचाई दो इंच और कम हो जाएगी |क्या ऐसी ही कुछ अहिंसक तकनीकें अपनाकर यह छः इंच छोटा करने का काम नहीं किया जा सकता ?

लेकिनआप नहीं मानेंगे क्योंकि यह कोई सामान्य मामला नहीं है |पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने का यह मामला देशद्रोह का मामला है |क्या ऐसे लोगों की इस देशद्रोही भावना का इलाज़ किसी और तरीके से  नहीं किया जा सकता ?दिल्ली में ऐसी कुछ कोशिशें हो तो रही हैं जैसे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में २०७ फीट ऊँचा स्थायी तिरंगा स्थापित करने से देशद्रोह की बीमारी कम होगी और देशप्रेम के भाव जागृत होने लग जाएँगे |ऐसे लोगों को छः इंच छोटा करने की बजाय उनकी खोपड़ी पर छः इंच का एक झंडा फिट कर दिया तो कैसा रहे |हमारा मानना है कि आप वित्तमंत्री को सलाह दें कि वे कर्मचारियों की भविष्य निधि पर गिद्ध-दृष्टि लगाने जैसे फालतू के काम छोड़कर देश में मोबाइल टावर की तरह जगह-जगह ऊँचे-ऊँचे देश भक्ति टावर लगवाएँ जिनसे देश भक्ति की तरंगें निकलें, वन्दे मातरम की धुन सभी भारतीयों के कान में निरंतर बजती रहे | इससे पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने वाली बीमारी का इलाज़ हो सकता है | वैसे कश्मीर में पाक समर्थक नारे अक्सर लगते रहते हैं |यदि उचित समझें तो आप वहीं से शुरुआत करें |लेकिन सावधानी बरतें क्योंकि अपने को वहाँ उन्हीं लोगों के साथ मिलकर सरकार बनानी है |

वैसे आपकी योजना में हमें एक सबसे बड़ी और ख़ास बात यह लगती है कि इसमें अनावश्यक देरी का लोचा नहीं है |तुरत दान, महाकल्याण | न कोर्ट, न कचहरी, न वकील, न बहस | इन चक्करों में बिना बात का टेंशन और खर्च होता है |लोग फाँसी से पहले तीन तीन साल बिरयानी खाते रहते हैं |

अभी एक देश भक्त ने कन्हैया की जीभ काटकर लाने वाले के लिए इनाम की घोषणा की है |चाहें तो अपनी इस योजना के अंतर्गत इस ऑफर पर भी प्राथमिकता से विचार कर सकते हैं |
हम तो आपकी घोषणा के बाद एहतियात के तौर पर घुटनों के बल चलने लगे हैं |वैसे हमारी ऊँचाई पहले से ही चार फीट है जिसमें कम करने की कोई गुंजाइश नहीं है |फिर भी पथ्य से परहेज भला |
वन्देमातरम, पाकिस्तान मुर्दाबाद |

Mar 27, 2016

खेर की खैरियत

 खेर की खैरियत

अनुपम जी
आपके नाम में ही अनुपम है तो आपका अनुपम होना निःसंदेह है |और फिर 'खेर' हैं तो 'खैरियत' भी होगी ही |हमने तो वैसे ही औपचारिकतावश पूछ लिया | वैसे भी आप एक श्रेष्ठ अभिनेता हैं और फिर सांसद्पति भी |डबल पावर |हमारे यहाँ तो पंचपति का भी क्या जलवा होता है | रोज़ जनता-दर्शन और खुला दरबार लगाते हैं |

आप ट्विटर पर भी हैं और फोलोअर्स भी बहुत से होंगे |मीडिया भी आपके ट्विटर तक के समाचार बना देता है |होने को तो हम भी ट्विटर पर हैं लेकिन आज तक एक भी फोलोअर नहीं मिला |अखबारों से पता चला कि आजकल आप परेशान हैं |पाकिस्तान ने आपको वीजा नहीं दिया |उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि आप पाकिस्तानी हाईकमिश्नर के माध्यम से आवेदन करें |आपने पता नहीं किस तरह आवेदन किया |यदि ज्यादा ही मन है तो एक बार सही तरीके से आवेदन करके देख लें |वैसे महान व्यक्तियों को इन बंधनों में बाँधा नहीं जाना चाहिए |लेकिन क्या किया जाए, महाराष्ट्र वालों ने भी तो गुलाम अली को नहीं आने दिया था |मोदी जी को भी पहले अमरीका ने वीजा नहीं दिया था और अब जब चाहे दावत के लिए बुलावा आ जाता है |पुरस्कार लौटने वालों के पीछे पड़ने की बजाय कुछ बड़ा करके दिखाइए |नवाज़ शरीफ खुद आपको लिवाने आएँगे |

वीजा न मिलने का कारण आपने मोदी का प्रशंसक होना बताया लेकिन यह नहीं बताया कि २००४ में पद्मश्री किसका  प्रशंसक होने या न होने से मिली ? हमने तो नेहरू जी से लेकर अटल जी तक बहुतों के कार्यकाल में नौकरी की लेकिन कभी किसी ने इस आधार पर कुछ नहीं किया कि हम किसके प्रशंसक या  निंदक हैं | वैसे यदि कोई निस्वार्थ निंदक भी हो तो कबीर जी ने उसे अपने आँगन में ही कुटी बनवाकर रखने का परामर्श दिया है |लेकिन स्वार्थ की निंदा और प्रशंसा में, कभी ख़ुशी कभी गम की तरह लाभ हानि तो चलते ही रहते हैं |यदि मोदी जी के प्रशंसक हैं तो निष्काम  भाव से लगे रहिए | कबहुँक दीन दयाल के  भनक पड़ेगी कान |हो सकता है अबकी बार पद्म भूषण भी मिल जाय |कुछ ऐसे भी होते हैं जो मौका देखकर परिवर्तन करते रहते हैं लेकिन हर बार पाँसा उलटा पड़ जाता है जैसे तारकेश्वरी सिन्हा |और किसी के लिए हर बार पौ बारह पच्चीस जैसे पासवान जी |

आपने एक और कष्ट बताया कि 'हिन्दू हूँ' यह कहने से डरता हूँ कि कहीं तिलक, भगवा से बीजेपी वाला न समझ लिया जाऊँ |हम तो खुद को हिन्दू कहने से नहीं डरते |और अपने मन और आस्था के अनुसार तिलक और भगवा धारण करने वाले करते ही हैं | उन्हें कभी कोई फ़िक्र नहीं होती |सर संघ संचालक सुदर्शन जी को हमने कई बार सुना और देखा है |वे विकुंठ भाव से काली टोपी, हाफ पेंट और कमीज़ पहनते थे | मोहन भगवत जी भी क्या ठसके से यही गणवेश धारण करते हैं लेकिन किसी को भी असहज नहीं देखा फिर आप क्यों डरते हैं ? जो मन हो पहनिए |यदि मन में कुछ दुराव या कामना रखकर वेश धारण करेंगे तो फिर कुंठा की संभावना समाप्त नहीं होगी |जब कोई सुंदरी किसी प्रेमी पर डोरे डालने के लिए सजती है और वह घास नहीं डालता तो वह कपड़े फाड़ने लगती है लेकिन जो अपने मन से सजती है उसके लिए ऐसी  कोई समस्य नहीं  आती |हम तो वेश नहीं, मन और कर्म में विश्वास करते हैं |उनकी एकता बनाए रखें |तुलसीदास जी भी कहते हैं-
दुचित कबहुँ संतोस न लहहीं |

और क्या लिखें ? कोई पुरस्कार-वुरस्कार का मामला फिट होता हो तो हमारा ध्यान रखें |हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम पुरस्कार कभी नहीं लौटाएंगे |यदि किसी ने छीनने की कोशिश तो हम प्राण दे देंगे लेकिन पुरस्कार को नहीं छोड़ेंगे |


Mar 26, 2016

तोताराम और टी. ट्वंटी की ट्राफी

  तोताराम और टी ट्वंटी की ट्रॉफी 

सुबह-सुबह विपरीत दिशा अर्थात जयपुर रोड़ की तरफ से कंधे पर एक बड़ा-सा थैला उठाए तोताराम आता दिखाई दिया |हमने पूछा- क्यों, 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' कार्यक्रम के तहत प्लास्टिक की थैलियाँ बीनने गया था क्या ?वैसे सफाई योजना के ठेकेदारों के लिए मार्च का महिना कूड़े की नहीं बल्कि बजट की सफाई का महिना होता है |रात-रात भर जागकर एडवांस भुगतान के बिल बनाने का होता है |

बोला- इस राष्ट्रीय महत्त्व की योजना का मज़ाक उड़ाकर क्यों देशभक्तों के निशाने पर आना चाहता है ? वैसे ये दूध की थैलियाँ, इधर-उधर सूने कोनों और प्लाटों में पड़ी बीयर की बोतलें, नशे के लिए पी गई खाँसी की दवा की शीशियाँ और गुटखे के रैपर ही हमारी समृद्धि की ध्वजाएँ हैं |ये न हों तो पता ही नहीं लगे कि देशवासी कुछ खा पी भी रहे हैं या एकादशी ही कर रहे हैं |वैसे ये तीनों पदार्थ एकादशी में भी वर्जित नहीं हैं |
वैसे तो मैं तुझे स्वच्छ भारत में ही पाँच साल उलझाए रख सकता हूँ लेकिन मुझे कौन सरकार बनाए रखना है | सुन, इसमें कोई प्लास्टिक की थैलियाँ नहीं हैं |इसमें टी. ट्वंटी वर्ल्ड कप २०१६ की ट्राफी है |

अब चौंकने की बारी हमारी थी |अभी तो बहुत से मैच बाकी हैं और तू अभी से ट्राफी उठा लाया |वैसे हमने ट्राफी चोरी होने का कोई समाचार तो नहीं सुना | ठीक भी है, ट्राफी चोरी होने की खबर से देश की बड़ी बेइज्ज़ती होती |चुपचाप दूसरी बनवा कर रख दी होगी |लेकिन ट्राफी चुरा लाने में और जीतने में बहुत फर्क है |जीतते तो बात और होती |चोरी की ट्राफी किसी को दिखाएँ भी क्या |और दिखाएँ नहीं तो मज़ा क्या ? जीत तो होती ही दुश्मनों और पड़ोसियों को जलाने के लिए |फिर भी खैर, दिखा तो सही |
तोताराम ने थैला उलट दिया लेकिन निकला कुछ नहीं |हमने कहा-यह क्या तमाशा है ?

बोला-यह तमाशा नहीं | यह वर्चुअल ट्राफी है, एक मनोवैज्ञानिक ट्राफी है |

हमने कहा- तोताराम, ये मन बहलाने की बातें हैं |टी.वी. पर और भाषणों में रोटियों और विकास की बातों से पेट नहीं भरता |

तोताराम ने हमारा हाथ पकड़ कर बैठाया, बोला- शांत चित्त से समझने की कोशिश कर |हमारा वर्ल्ड कप श्री लंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान तक सीमित होता है | श्री लंका से जीत जाओ तो क्वार्टर फाइनल, बंगला देश से जीत जाओ तो सेमी फाइनल और पाकिस्तान से जीत जाओ तो फाइनल | सो लंका हमारे ग्रुप में है नहीं और वैसे भी वह बाहर हो चुका है, बंगला देश से हम हारते-हारते बचे और पाकिस्तान को हारा दिया |अब वर्ल्ड कप में बचा ही क्या है ? अब कोई भी ले जाए कोई फर्क नहीं पड़ता |

हमने कहा- तभी शिव उमा को उसके पिता के यहाँ यज्ञ में जाने से मना कर रहे थे क्योंकि वे जानते थे कि उनके ससुर दक्ष प्रजापति उनसे खुन्नस खाते हैं |हो सकता है उमा वहाँ उनका अपमान सहन न करे सके, क्योंकि 
'सब ते कठिन जाति अवमाना'   और हुआ भी वही |

बोला- इस उपमहाद्वीप की यही विडंबना है | सैंकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों ने इसी मनोविज्ञान के आधार पर यहाँ राज किया |और अब भी योरप,अमरीका और चीन इनकी इसी मानसिकता का लाभ उठाकर हथियार बेचकर कमाई कर रहे हैं |दूसरे देशों को क्या कहें, भारत और पकिस्तान के नेता भी तो इस शत्रुता को वास्तव में मिटाना नहीं चाहते क्योंकि उनके लिए भी यह सत्ता में आने या बने रहने का एक मुद्दा है |वियतनाम, जर्मनी एक हो सकते हैं लेकिन एक ही पूर्वजों की संतानें और एक ही साझा संस्कृति के वारिस ये देश पता नहीं, कब समझेंगे ? 

हमने कहा- यदि यही समझ जाएँ तो हाकी और क्रिकेट के वर्ल्ड कप ही क्या, यह इलाका फिर सोने की चिड़िया हो सकता है |

बोला- बन्धु, मैं तो तुम्हारी इस बात पर केवल आमीन कह सकता हूँ |आगे ईश्वर जाने |



Mar 18, 2016

रूढ़ अर्थों से परे व्यवहार और आचरण

 रूढ़ अर्थों से परे व्यवहार और आचरण
भरत राम के प्रति अगाध और अनन्य श्रद्धा रखते थे |उनकी अनुपस्थिति में कैकेयी ने उनके लिए दशरथ से अयोध्या का राज्य और राम के लिए वनवास माँगा |ननिहाल से अयोध्या आने पर उन्हें जो मर्मान्तक पीड़ा हुई और स्वयं पर एक कलंक सा अनुभव हुआ उससे स्वयं को विलग सिद्ध करते हुए वे कौशल्या से कहते हैं-
हे माता, माता,पिता और पुत्र हत्या करने वाले, स्त्रियों और बालक का वध करने,गायों और ब्राह्मणों से आवासों को जलाने,मित्र और राजा को ज़हर देने जैसे जो भी पातक (महापाप) उपपातक हैं मुझे हों यदि राम के वनवास मेरी सहमति रही हो |

मुझे ज्ञान बेचने और धर्म का दोहन करने वाले, चुगली करने वाले, कपटी, कुटिल,क्रोधी,कलहप्रिय,वेदों की निंदा करने वाले,सम्पूर्ण विश्व से विरोध मानने वाले,दूसरों के धन और स्त्री पर कुदृष्टि रखने वाले, परमार्थ विमुख पथ पर चलने वाले,श्रुति विरुद्ध आचरण करने वाले, वेश बदलकर दूसरों को छलने वाले की जो गति होती है, भगवान शिव  वही गति (दुर्गति) मुझे दें |

ये सभी पाप या अपराध समस्त सृष्टि के लिए हानिकारक और सच्चे धर्म के विरुद्ध हैं |सच्चा धार्मिक इनसे बचने की कोशिश करता है | देश शब्द में अर्थात देश भक्ति में ये सभी कृत्य बाधक हैं |देश किसी व्यक्ति की अपने स्वार्थ से रचित धारणा नहीं है बल्कि किसी क्षेत्र विशेष की शताब्दियों के सामूहिक चिंतन, संवाद, सहजीवन से उपजी वह धारणा और एक प्रकार की अदृश्य आत्मिक सहमति की ऐसी अवधारणा है जिसके विरुद्ध जाने की उसका कोई सदस्य सोच भी नहीं सकता |यदि इस भाव का विस्तार करें तो यह मनुष्य का सबसे बड़ा जीवन मूल्य है |
देशद्रोह सबसे बड़ा अपराध और देशद्रोही सबसे बड़ी गाली है तथा सापेक्ष राजासत्ता का सबसे बड़ा क्रूर ब्रह्मास्त्र है जिसका बहुर विवेक और निःसंगता की अपेक्षा रखता है |

जिस प्रकार अधिकांश लोग यह समझते हैं कि देश पर आक्रमण की स्थिति में मरना-मारना ही देश प्रेम है ऐसा नहीं है |युद्ध तो कभी कभी होते हैं और दोनों ही पक्षों को घायल कर जाते हैं लेकिन जीवन के सतत शांत प्रवाह में इसकी सच्ची परीक्षा होती है |मरना तो एक क्षण की चरम साहसिक अभिव्यक्ति है लेकिन निरंतर किसी भाव के लिए प्रयत्न करना,जीना, कष्ट सहना, धैर्यपूर्वक उसे गढ़ना शहादत से छोटी तपस्या नहीं है |यदि कर्ण, अभिमन्यु, भगत सिंह,सुभाष, चन्द्र शेखर आदि मृत्यु के कलाकार हैं तो महावीर, बुद्ध, ईसा, नानक, कबीर, गाँधी,विनोबा जीवन के कलाकार हैं |हम अपनी सभ्यता,संस्कृति, शिक्षा से जीवन की कला सीखते हैं और जिसकी हर क्षण ज़रूरत पड़ती है |गंगा की सफाई केवल गंगा की आरती और गुणगान से नहीं होगी वह सगुण कर्म और व्यवहार की अपेक्षा रखती है |रोटी की तस्वीर और रोटी की कविता से पेट नहीं भरता |

देश को हर पल सँवारने, हर देशवासी के हित को सोचते हुए अपने आचरण को संयमित करते हुए जीना, जिसकी परिधि में देश की भौगोलिक सीमा ही नहीं बल्कि उसके लोग , सजीव-निर्जीव, पशु-पक्षी, नदी-पहाड़,जंगल, हवा-पानी सब आ जाते हैं |और जो निरंतर विकसित होते रहते हैं वे देश से बाहर निकलकर समस्त विश्व और ब्रह्माण्ड तक अपनी चेतना और शुभाशंसा का विस्तार कर लेते हैं |वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः उसी विराट चिंतन के विस्तार हैं लेकिन इस विस्तार का क्रम ब्रह्माण्ड से व्यक्ति नहीं बल्कि व्यक्ति से से ब्रह्माण्ड तक जाता है |शिक्षा भी ज्ञात से अज्ञात की ओर जाती है, अज्ञात से ज्ञात की ओर नहीं |
इसलिए बेहतर हो हमारी अंतर्राष्ट्रीयता हवाई न होकर पारिवारिकता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता से होती हुई अंतर्राष्ट्रीयता तक जाए |
समस्त राष्ट्र और उसके सगुण रूप के हित चिंतन को बिसराकर केवल प्रतीकात्मक राष्ट्रीयता  कट्टरता और अधिनायकवाद और अंततः विखंडन को जन्म दे सकती है |अतः प्रतीकों से साथ-साथ व्याहवारिक स्वरुप और आचरणगत कर्मों को भी पुष्ट किया जाना चाहिए |और इसके लिए सभी प्रकार के संवाद-विवाद,शास्त्रार्थ,जुलूस -आन्दोलन हों, कोई फर्क नहीं पड़ता |चौदह रत्नों के लिए देवों और दानवों ने समुद्र मंथन किया था और उसमें कल्प-वृक्ष ही नहीं हलाहल विष भी निकला था और उसे भी किसी ने पिया ही था |राष्ट्र के जीवन में ऐसे विष पीने वाले ही महादेव और महाकाल होते हैं |
और यह देश तो महाकाल की भूमि है |

Mar 14, 2016

अब आगे की सोचिए

 अब आगे की सोचिए

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डबल श्री जी
नमस्कार |हालाँकि जब आप स्कूल में जाने लगे थे तब हम अध्यापक बन गए थे लेकिन शक्ति के मामले में यह फार्मूला नहीं चलता |धनुष यज्ञ के समय जब सीता की माता सुनयना राम की लघु वयस को देखकर उनके धनुष तोड़ सकने पर शंका करती हैं तो उनकी एक सखी कहती- हे रानी, तेजवंत को कभी छोटा न समझें |छोटा- सा अंकुश बड़े हाथी को वश में कर लेता है, छोटा-सा मन्त्र बड़े-बड़े कार्य सिद्ध कर देता है, उदय से समय छोटा लगने वाला सूर्य-मंडल सारे जग का अँधियारा दूर कर देता है, दिखाई न देने वाला कामदेव सारे संसार को अपने वश में कर लेता है और देखिए कहाँ विशाल समुद्र और कहाँ कुम्भज ऋषि लेकिन पी गए कि नहीं ?

सो जब आपके आयोजन की तैयारियाँ लगभग पूर्ण होने वाली थी तभी ये यमुना बचाने वाले पता कहाँ से प्रकट हो गए ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आपने इन्हें फ्री पास नहीं भिजवाए हों ? क्या इन्हें इतने दिन दिखाई नहीं दे रहा था कि घमासान मचा हुआ है |अंत समय में कोई ऐसे बड़े कार्यक्रम बंद होते हैं | विभिन्न प्राधिकरणों ने आप पर विकास-शुल्क या जुर्माना पता नहीं क्या लगाया लेकिन आपने साफ कह दिया कि जुर्माना नहीं देंगे |यह भी कोई बात हुई कि एक तो इतना बड़ा कार्यक्रम करवाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाओ, देश का मान बढ़ाओ और ऊपर से जुर्माना और दो |

एक गाने वाला आया था यान्नी |उसने आगरा में यमुना के किनारे गाने का कार्यक्रम किया , पैसा कमाया और हो गया छू मंतर |आप तो फिर भी स्वदेशी हैं |आपका विरोध देश का विरोध है, संस्कृति का विरोध है, भारत की छवि का विरोध है |जुर्माना बिलकुल नहीं दीजिएगा |वैसे आपने कह भी दिया है कि भले ही जेल जाना पड़े लेकिन जुर्माना नहीं दूँगा | वैसे जेल में जाने पर भी आपको कोई कष्ट तो होने वाला नहीं है |बड़े-बड़े अपराधी जेलों में मुज़रा करवाते हैं, वहीं से अपना धन्धा चलते हैं |हम जानते हैं कि आपको कोई जेल में नहीं डालेगा |आपने कौनसा माल्या की तरह बैंकों का पैसा खाया है ? आपने तो एक प्रकार से इस कार्यक्रम से देश की अर्थव्यवस्था को गति ही प्रदान की है |लाखों लोग बाहर से आए तो यहाँ क्या अरबों खर्च नहीं किए होंगे ? जितना जुर्माना आप पर लगाया गया है उतना तो सुलभ शौचालय के रेट के हिसाब से इतने लोगों के मल-मूत्र त्याग से देश को मिल गया होगा | और फिर विदेशी मल-मूत्र से कितनी बढ़िया जैविक खाद बनेगी जिससे देश का कृषि उत्पादन बढ़ेगा |

यमुना का क्या है ? यमुना रह ही कहाँ गई है ? जैसे अपने बंगलुरु में सारी झीलों को बिल्डर खा गए वैसे ही यमुना ही क्या, सभी नदियों का देर सवेर यही हाल होने वाला है |और फिर इतिहास उठाकर देखिए भूतकाल में यमुना के किनारे कौन से दुष्कर्म नहीं हुए ? कंस ने यमुना के किनारे ही अपने भांजों को मारा, शांतनु के सात पुत्रों को यमुना में डुबाया गया, द्रौपदी का चीर हरण भी यमुना के किनारे ही हुआ, महात्मा गाँधी और इंदिरा को भी गोली यमुना के किनारे ही मारी गई |दिल्ली का कचरा, अपशिष्ट क्या न्यूयार्क में ले जाकर डाला जाता है ? अब आपने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करवा लिया तो क्या अन्याय हो गया ? आप चिंता न करें |ये हुड़दंगिए अब और कहीं चले जाएँगे | इस देश में बड़ी से बड़ी बात दो दिन में ठंडी पड़ जाती है |

अब देखिए ना, इस कार्यक्रम के बाद आपको आस्ट्रेलिया, मेक्सिको आदि देशों से ऐसे ही कार्यक्रम अपने वहाँ आयोजित करने के निमंत्रण मिले हैं | मिली कि नहीं आपके कार्यक्रम से भारत की अर्थव्यवस्था को गति ? अब विदेशों में जगह कार्यक्रम होंगे और देश के लाखों गायकों, वादकों, नर्तकों को आजीविका मिलेगी | हमारा तो मानना है कि आप टेंट लगाने वाले भी यहीं से ले जाइएगा |

आपकी विनम्रता से हम बहुत प्रभावित हैं |लल्लू पंजू संत भी अपने नाम के आगे श्री-श्री एक सौ आठ और एक हजार एक सौ आठ लगते हैं लेकिन आपने मात्र दो श्री से ही संतोष कर लिया |वैसे हमारा नाम रमेश है और हमारी पत्नी का नाम रमा |इस प्रकार देखें तो हमारे कब्ज़े में भी दो श्री तो हैं ही |लेकिन मज़े की बात देखिए कि वोटर लिस्ट में हमारा नाम मात्र रमेश पुत्र बजरंग लिखा और बड़ी बेशर्मी से पुकारा जाता है |क्या आपका या मोदी जी नाम भी वोटर लिस्ट में इसी तरह लिखा और पुकारा जाता है ? नहीं |जब कि उम्र में हम आप दोनों से बड़े हैं लेकिन उम्र से क्या होता है ?कहावत भी है-
 माया तेरे तीन नाम
परसा,परसी, परशुराम |

हाँ, तो हम विदेशों में आपके कार्यक्रम की बात कर रहे थे |क्या आप हमें अपने साथ नहीं ले जा सकते ? आपके नाम तो खैर, बहुत से गिनीज़ बुक के रिकार्ड होंगे लेकिन हमारे नाम भी एक रिकार्ड है- हम पिछले चोहत्तर वर्षों से एक टाँग पर नाच रहे हैं और किसी भी देश सेवक ने आकर हाल तक नहीं पूछा |

अब इस उम्र में इतनी ताकत नहीं रही और फिर बुढ़ापा भी तो अपने आप में एक बीमारी है |लगता नहीं और अधिक नाच सकेंगे |सुना है, आप एक रोग प्रतिरोधी दवा भी बनाते हैं जिसकी पाँच मिलीलीटर की एक शीशी की कीमत दो सौ रुपए है |वैसे इसमें पड़ने वाली जड़ी बूटियाँ तो इतनी महँगी नहीं लेकिन चूँकि बनाने की विधि नहीं बताई इसलिए अब आप पर ही निर्भर रहना पड़ेगा जो भी कीमत हो |

सो यदि आप हमें अपने किसी कार्यक्रम में विदेश ले जाते हैं तो हम आधा विदेशी मुद्रा में और आधे के बदले लागत कीमत पर वह रोगप्रतिरोधक दवा लेंगे  |

उत्तर की प्रतीक्षा में |








Mar 10, 2016

५००० व्यंजन और गिनीज़ बुक में नाम

 मित्रो आज एक पुरानी पोस्ट निकालकर फिर से आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ, सामायिक है इसलिए |क्या पता इसके बिना आपकी निगाह जाए या नहीं |
वैसे श्री-श्री जी एक और रिकार्ड बनाने के लिए यमुना के तट पर डटे हुए हैं |पहले से गन्दी यमुना को और गन्दा करने के लिए |इसके बारे में उनके कार्यक्रम के बाद आपकी सेवा में कुछ प्रस्तुत करूंगा |
-रमेश जोशी

२० अक्टूबर २०१० प्रातः आठ बजे ।

आज भी सदैव की भाँति तोताराम आया मगर बैठने से पहले ही उसने प्रश्न किया- मास्टर बता, व्यंजन कितने होते हैं ? हमें हँसी आ गई- अरे, बछिया के ताऊ, चालीस बरस हिंदी पढ़ाता रहा, अब रिटायर हुए आठ बरस से अधिक हो गए और आज पूछ रहा है कि व्यंजन कितने होते हैं ? क्या स्वर-व्यंजन जाने बिना ही इतने बरस बच्चों को हिंदी पढ़ाता रहा ? वैसे अब तुझे स्वर-व्यंजन जानने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? क्या हिंदी की कोई ट्यूशन मिल गई है ? ट्यूशन तो अंग्रेजी और साइंस-मैथ्स में मिलते हैं । हिंदी का क्या है वह तो अपनी मातृभाषा है और मातृभाषा का सत्यानाश करने का सभी को अधिकार है । फिर भी तेरी आत्मा की शांति के लिए बता देते हैं कि व्यंजन तेंतीस होते हैं और यदि संयुक्ताक्षरों को भी शामिल करना चाहे तो तीन और जोड़ ले । वैसे यदि मन में श्रद्धा हो तो कबीर की तरह अढ़ाई अक्षरों में ही काम चल सकता है- आधा प, रे और म ।

तोताराम ने हाथ जोड़ कर कहा- भ्राता श्री, यदि आप अपनी वाणी को विराम दें तो मैं कुछ और निवेदन करूँ ? मेरा मंतव्य आपके इन हिंदी वाले व्यंजनों से नहीं था । मैं तो खाने वाले व्यंजनों के बारे में आपकी कुछ जनरल नॉलेज बढ़ाना चाहता था पर आप मौका ही नहीं दे रहे हैं ।

हमने कहा- खाना, खाने में क्या है ? खाना तो आदमी जीने के लिए खाता है सो जो भगवान समय पर दे दे वही उसकी कृपा है । वैसे कबीर जी ने तो सब्जी की भी ज़रूरत नहीं समझी । वे तो कहते हैं कि -
आधी और रूखी भली, सारी तो संताप ।
जो चाहेगा चूपड़ी बहुत करेगा पाप ॥

और यदि भगवान रोटी के साथ दाल भी दे दे तो ज्यादा मत इतराओ और मन को भक्ति में लगाओ । ‘दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ’ । और अपने यहाँ तो सबसे बड़ा सवाल केवल दो रोटी का माना जाता है । सो हमारे हिसाब से तो दो ही व्यंजन होते हैं दाल और रोटी । यदि तू 'पानी' को भी जोड़ना चाहे तो तीन समझ ले ।

तोताराम हमारे चरण छूकर चलने को हुआ- अब तुझसे बात करने का कोई फायदा नहीं । अच्छा जय राम जी की । हमने ज़बरदस्ती उसका हाथ पकड़ कर बैठाया, कहा- मुँह में आई बात कह ही देनी चाहिए । कहने लगा- मैं तो कहना ही चाहता हूँ पर तू मौका दे तब ना । बात यह थी कि अब तक का अधिक से अधिक व्यंजनों का रिकार्ड ४६०० व्यंजनों का है पर यह पता नहीं किसके नाम है ? अब अपने 'डबल श्री' मतलब कि श्री श्री रवि शंकर जी के अहमदाबाद स्थित नित्यप्रज्ञ नामक चेले का कार्यक्रम है कि २ नवंबर को अहमदाबाद में 'अन्नं ब्रह्म' नामक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें ५००० व्यंजनों का विश्व रिकार्ड बनाया जाएगा । और फिर इस कार्यक्रम का गिनीज बुक में नाम आ जाएगा ।

हमने कहा- इस कार्यक्रम का उद्देश्य गिनीज बुक में में शामिल होना है या गरीब बच्चों को भोजन कराना है ? यदि किसी भूखे को भोजन कराना ही उद्देश्य है तो फिर न तो गिनीज बुक में नाम की ज़रूरत है और न ही किसी अखबार में समाचार की । भोजन कराओ और भगवान को धन्यवाद दो दो कि उसने तुम्हें यह पुण्य कमाने का अवसर दिया और छुट्टी ।

तोताराम को खीज हुई, कहने लगा- तेरी दुनिया बहुत छोटी है । तुझे क्या पता नाम क्या होता है और नाम का मजा क्या होता है ? जब किसी का नाम गिनीज बुक में आ जाता है तो उसका खुद का ही नहीं देश का नाम रोशन हो जाता है । इसीलिए तो कोई मूँछ बढ़ा रहा है, कोई नाखून । कोई सबसे छोटी पेंटिंग बना रहा है तो कोई चावल के एक दाने पर गीता लिख रहा है ।

हमने कहा- न तो उस गीता को कोई आसानी से पढ़ सकता और न ही उस पेंटिंग को कोई अच्छी तरह से देख सकता । जब दो रुपए में अच्छी-भली गीता और पेंटिंग बाजार में मिल जाती हैं तो इस सारे तमाशे का फायदा क्या ? अरे, हजार किलो का एक लड्डू बना कर क्या होगा ? आखिर में उसे खाना तो तोड़ कर ही पड़ेगा ना ? ये सब भरे पेट वालों की कुंठाएँ है । जो कोई ढंग का काम नहीं कर सकता वह ऐसे ही उलटे काम करके चर्चित होना चाहता है । देखा नही, योरप और अमरीका में 'पेटा' ( People for Ethical Treatment of Animal ) के नाम पर लोग कपड़े उतार कर फोटो खिंचवा कर चर्चित हो रहे हैं और अखबार वाले उन्हें अपनी साईट पर डाल कर अपनी टी.आर.पी. बढ़ा रहे हैं । जिन्हें कपड़े उतारने हैं वे किसी भी नाम से उतार देते हैं । राखी सावंत की बात और है । वह जानती है कि केवल कपड़े उतारने से बात नहीं बनेगी सो उसे पशुओं पर क्रूरता करने वालों को डराने के लिए अपने शरीर पर धारियाँ बनवा कर बाघ बनना पड़ा ।

तोताराम ने फिर हाथ जोड़े तो हम उसका इशारा समझ गए और चुप हो गए । कहने लगा- मैं साधारण लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो श्री श्री रविशंकर जी की बात कर रहा हूँ । वे बड़े महान संत हैं । आज तक राम, कृष्ण, वाल्मीकि, कबीर, रैदास, मीरा, तुलसी, सूर, नानक किसी के नाम के आगे एक भी श्री नहीं लगा और इनके आगे दो-दी श्री हैं । भैया, कुछ तो बात होगी ना वरना किसके लगते हैं दो-दो 'श्री' ? मायावती जी तो कांसीराम के अलावा किसी को मान्यवर नहीं मानतीं और 'जी' भी केवल अडवाणी जी और अटल जी से पहले लगाती हैं । मुलायम सिंह को तो तू-तड़ाक से संबोधित करती हैं । और फिर तेरे कबीर, रैदास को कौन जानता है विदेश में ? श्री श्री जी तो हवाई जहाजों में घूमते हैं सारी दुनिया में । सैंकडों एकड़ में उनका आश्रम है बैंगलोर में, जहाँ तेरे जैसे तो क्या, बहादुर शाह ज़फर तक को भी दो गज ज़मीन नहीं मिलती । बैंगलोर में दो गज ज़मीन न मिलने के दर्द में ही तो उसने वह गज़ल लिखी थी- ‘दो गज ज़मीन भी न मिली कूए यार में ‘ ।

हमने कहा- भाई, हमें तो सबसे अच्छे व्यंजन सुदामा के चावल, विदुर पत्नी के केले के छिलके और करमा बाई का खिचड़ा लगा जिसे भगवान ने खुद बड़े चाव से खाया । श्री श्री जी के इन व्यंजनों का क्या ? कल को कोई और छः हजार व्यंजनों का रिकार्ड बना देगा तो ये कहीं गुमनामी में चले जाएँगे । भाव बड़ी चीज है, न कि नाटक और गिनीज बुक में नाम । जिसका स्वार्थ होता है वह नाम बेचता है । पहले तुमने किस नालंदा, तक्षशिला और स्कूल-कालेज का आइ.एस.ओ. सर्टिफिकेट देखा था ? आजकल जिस का भी थोड़ा बहुत नाम चल जाता है वह च्यवनप्राश बेचने लग जाता है । हम तो भैया, एक बार गए थे जीवन की कला सीखने एक कार्यक्रम में । दस दिन के पाँच सौ रुपए भी ले लिए और बताया क्या कि सब में एक ही ब्रह्म होता है । अरे भाई, जब सब में एक ही ब्रह्म है तो फिर हमसे पाँच सौ रुपए क्यों लिए ? यदि लिए तो कोई बात नहीं मगर कार्यक्रम के बाद आधे-आधे कर लेते । फिर बताया- ऐसे साँस लो । कोई इनसे पूछने वाला हो कि साँस ही आ रही होती तो किस लिए तुम्हारे पास आते ? साँस बंद हो रही थी तभी तो तुम्हारे पास आए थे । फिर भी कोई बात नहीं । मगर ये पाँच हजार व्यंजन कौन-कौन से हैं ? उन सबके नाम तो बता ।

तोताराम कहने लगा- मुझे तो क्या, इनके नाम तो खुद नित्यप्रज्ञ जी को भी नहीं मालूम होंगे । इतने शब्दों के बल पर तो आदमी मज़े से डबल एम.ए.कर सकता है ।

हमने कहा- तो फिर ऐसा कर, नित्यप्रज्ञ जी को एक पत्र लिख दे कि वे इन व्यंजनों की एक सचित्र पुस्तक छपवा दें । बहुत चलेगी । वैसे तो व्यंजनों को देख-सुन कर कोई पेट थोड़े ही भरता है फिर भी और कुछ नहीं तो लोग उत्सुकतावश ही सही, खरीद ज़रूर लेंगे । वैसे यदि तुझे व्यंजनों के बारे में अधिक जानना है तो तेरी भाभी से एक लिस्ट बनवा देंगे । जब चंडीगढ़ में अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्रित्व में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था तो सोनिया जी के सादगी के आदेश के कारण केवल ७५ व्यंजन बनवाए गए थे तो हमने वैसे ही तेरी भाभी से चर्चा कर दी थी तो उसने केवल दाल, रोटी और पानी से ही बने जिन पचास-साठ व्यंजनों की सूची गिना दी उसे याद करके अब भी हमने चक्कर आ जाते हैं ।

तोताराम को उत्सुकता हुई । कहने लगा- दो-चार के नाम तो बता । हमने कहा- यह सब ब्रेक के बाद ।

ब्रेक कितना लंबा चलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है ।

२१-१०-२०१०

Mar 6, 2016

'बनिए' बिना अकल के नहीं बनते

'बनिए' बिना अकल के नहीं बनते

 सुमित अग्रवाल
तुमने केजरीवाल को फ़्रांस के राष्ट्रपति के लिए, हमारे राष्ट्रपति भवन में आयोजित औपचारिक कार्यक्रम में सेंडिल पहनकर जाने पर अच्छे से फॉर्मल जूते पहनने की सलाह देते हुए ३६४ रुपए  का ड्राफ्ट भेजकर अपनी बनिया बुद्धि का परिचय दे दिया कि 'बनिया' बनने के लिए बड़ी अकल चाहिए | इतने रुपए में तो किसी समाचार पत्र में तीए की बैठक का समाचार भी नहीं छपता और तुम कितने सस्ते में ही एक साथ कई समाचार पत्रों में एक साथ छप गए |ऊपर से सभ्यता और दानवीरता का ठेका और ले लिया |

तुमने लिखा कि बहुतकोशिश के बाद इतने पैसे जुटा पाया |यह बात कुछ हज़म नहीं हुई |तुम इंजीनीयर हो, व्यापार करते हो, मारवाड़ी बनिए हो तो हम भी मारवाड़ी ही हैं, ठेठ शेखावाटी के | बनियों के बीच ही पीला, बढ़े, पढ़े हैं |हमने तो देखा है कि बनिया मारवाड़ी क्या, कहीं का भी हो यदि भीख माँग रहा है तो भी समझो लाख-दो लाख का असामी तो है ही |और फिर व्यापार ? कहा भी है व्यापारे वसति लक्ष्मी |

सब जानते हैं, ३६४ रुपए में आजकल कैसे जूते आते हैं ? और फिर इतनी बड़ी गेदरिंग में जाने के जूते ?तुमनेआगे कहा- यदि और पैसों की ज़रूरत हो तो लिखें |मैं कुछ और पैसे जुटाने के लिए सारे शहर का चक्कर लगा आऊँगा |मतलब चंदा करूंगा | किसे पता नहीं कि चंदे से बढ़िया कोई धंधा नहीं ? समाज सेवा और धर्म का नाटक और बिना किसी रिस्क और निवेश के शुद्ध कमाई |टेक्स का कोई झंझट नहीं | वैसे भी टेक्स बचाने के गुर आपसे अधिक कौन जानेगा |

हमारे गाँव में बनिए अपनी दुकान पर गौशाला की एक दान पेटी लगाकर रखते थे जिसमें वे खुद पैसा नहीं डालते थे बल्कि ग्राहकों से आग्रह करके डलवाते थे और अपने नाम से गौशाला में जमा करवाते थे |उस पेटी में से कितना पहले ही निकाल लेते होंगे, यह वे जाने |हम क्यों आरोप लगाएं लेकिन यह तय है की चंदे में से कम से ३५ प्रतिशत न खाने वाला नरक में जाता है तो आप भी नरक में क्यों जाना चाहोगे |आप जानते हैं कि सभी गौशालाओं के अध्यक्ष और मंत्री बनिए ही क्यों होते हैं ?

खैर छोडो, लेकिन एक बात याद रखो आदमी महँगे कपड़ों के नहीं अच्छे कर्मों से बड़ा बनता है, पूजा जाता है, इतिहास में दर्ज हो जाता है |वैसे इतिहास में तो गाँधी गोडसे दोनों ही दर्ज हैं लेकिन फर्क तुम समझते हो ?कबीर, रैदास जैसे संतो की बात छोड़ो आज के महात्मा गाँधी,विनोबा, बाबा आमटे, मदर टेरेसा को ले लो कैसे कपड़ों में रहते हुए क्या बन गए |

इसलिए यदि कुछ कर सको तो अपनी कमाई से,निष्काम भाव से परोपकार करो |पता है, धन की सर्वश्रेष्ठ गति है दान |  


Mar 1, 2016

बजट-विश्लेषण

  बजट-विश्लेषण 

पूरे अखबार में केवल बजट ही बजट की खबरें |जिन्हें नौ का पहाड़ा तक नहीं आता वे भी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं |तोताराम ने भी आते ही पूछा-बजट के बारे में तेरे क्या विचार हैं ?

वैसे हम जानते हैं यदि किसी आदमी से पूछा जाए कि तेरे सामने शेर आ जाए तो तू क्या करेगा ? तो क्या ज़वाब होगा |इसका ज़वाब तो शेर ही दे सकता है क्योंकि जो कुछ करना है वह तो शेर ही करेगा कि कब मारे और कहाँ जाकर भक्षण करे ? भला कोई आदमी क्या उत्तर दे सकता है इसका ?

सब कुछ जानते हुए भी हमने कहा- पहले यह बता कि बजट किस पार्टी के वित्त मंत्री ने बनाया है, वह सवर्ण है या दलित, हमारी जाति का है या विजातीय ? क्योंकि जब न्याय देना, पानी पिलाना, इलाज़ करना, स्कूल कालेज में प्रवेश देना तक जाति-धर्म पर आधारित होता है तो फिर हम बिना जाति-धर्म-पार्टी जाने कैसे प्रतिक्रिया दे दें |

बोला- यह भी कोई बात हुई ?प्रतिक्रिया बजट पर देनी है या व्यक्ति पर ?

हमने कहा-जिसने भी बनाया है अच्छा बनाया है |कल्याणकारी, विकासोन्मुख, अनुपम, अभूतपूर्व और अद्वितीय है |

बोला- इतने विशेषण तो मोदी जी और अडवानी जी ने भी नहीं लगाए और तू बिना पढ़े ही माला जप रहा है |

हमने कहा- समय के साथ चलना चाहिए |हम बिना बात भक्ति-अभक्ति के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते |कैसा भी हो, किसी ने भी बनाया हो, है तो सत्ताधारी |सत्ताधारी ही हमारे अन्नदाता होते हैं |यह तो उन्होंने अपने ही फंड में से पैसे निकालने पर टेक्स ही लगाया है |अगर वे देशहित में फंड को ज़ब्त कर लें या देशहित में हमारी पेंशन आधी कर दें तो भी उन्हें कौन रोक लेगा?

अपना तो वह हाल है- एक कार वाले ने एक गरीब को टक्कर मार दी |कार वाला तो कार वाला उसे कौन पकड़े लेकिन पुलिस वाले ने उस गरीब को पकड़ लिया और ज़रा सा डंडा चुभाया कि वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा | तभी एक थानेदार साहब वहाँ आ पहुँचे |उन्होंने उसे चिल्लाते देख गुस्से में एक ठोकर मारी और कहा- साले, क्यों चिल्ला रहा है ? बता कहाँ लगी है ?

वह बेचारा और भी घबरा गया, बोला- साहब, पता नहीं कहाँ लगी है ?आप जहां कह दो वहीं लगी है |सो बन्धु, जो तू या तेरे 'वो' कहें, वह सही है |

तोताराम बोला- ऐसे गोलमोल ज़वाब से काम नहीं चलेगा |यह बजट किसान और आम आदमी को ध्यान में रखकर बनाया गया है और तू आम आदमी है इसलिए प्रतिक्रिया देने से नहीं बच सकता |बताना ही पड़ेगा |

हमने फिर घुमाया- उन्होंने मेरे जिस हित के लिए बनाया है वह हित सिद्ध हो गया |

फिर बोला- क्या हित ?

हमने कहा- आम हो या आम आदमी दोनों में आम प्रमुख है |विशेष्य से अधिक विशेषण का महत्त्व होता है |सो विशेषण है आम |और आम का उपयोग है कि उसे मौसम में जितना हो सके चूसा जाए |जब चूसने से मन भर जाए तो उसे भविष्य अर्थात ऑफ सीज़न में काम में लेने के लिए उसका 'आम पापड़ा' या कोल्ड ड्रिंक या ज्यूस बना लिया जाए |कच्चा हो तो अमचूर बना लिया जाए और पीस कर सब्ज़ी में डाला लिया जाए या फिर अचार बना लिया जाए और कभी भी परांठे के साथ खाया जाए |

और कुछ अधिक जानना है तो यह रहा हमारा ४२० पेज का विश्लेषण |ले जा, फुर्सत से पढ़ना और पढ़ाना |

बोला- यह सब तुमने कब लिख लिया ?

हमने कहा- हमें सब पता है | अब तक साठ-सत्तर बजट देख लिए |

बोला- इसका मतलब तुझे सब कुछ समझ में आता है लेकिन यह किसी भी वित्त मंत्री के लिए शर्म की बात है कि उसका बनाया बजट तेरे जैसे आम आदमी की समझ में आ गया अन्यथा बजट तो अर्थशास्त्रियों तक को क्या, खुद बनाने वाले तक को समझ में नहीं आता |

झुमका खोने की स्वर्ण-जयंती

  झुमका खोने की स्वर्ण-जयंती 

आज तोताराम बहुत खुश था |आते ही बोला-पढ़ा मोदी जी का भाषण ?

हमने कहा- हाँ, पढ़ा |देखना-सुनना तो संभव नहीं क्योंकि अपने पास टी.वी.नहीं है और अब तो जेतली जी के नए बजट के बाद केबल टी.वी. और महँगा हो जाएगा तो लोग अखबार से ही काम चलाएँगे- सवा सौ रुपए महिने में सारे समाचार और दस रुपए महिने की रद्दी मुफ्त |

बोला- कुछ भी कह लेकिन बंदा जब भी कहीं जाता है तो पूरा होम वर्क करके जाता है |अब देखा, लोग ताली नहीं बजा रहे थे तो 'मेरा साया' के गाने का 'झुमका गिरा रे...' का ज़िक्र करके तालियाँ बजवा ही लीं |और तो और हमें भी यह मालूम नहीं था कि बरेली का सुरमा प्रसिद्ध है सो यह जानकारी भी मिल गई |

हमने कहा- वैसे गाना तो एक और भी है- कज़रा मोहब्बत वाला, अँखियों में ऐसा डाला ----|यदि गीतकार इसकी जगह 'सुरमा बरेली वाला' कर देता तो सारे देश को यह जानकारी पहले ही हो जाती और कविता के वज़न पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता |वैसे अब सुरमे का कोई ख़ास महत्त्व नहीं रहा |जहाँ तक दृष्टि-दोष की बात है तो कुछ सरकारी नेत्र शिविरों को छोड़, मोतियाबिंद का इलाज़ ठीक से हो ही जाता है |औरतें सुरमे की जगह पेन्सिल रखती हैं; जब-जहाँ चाहे नेत्र सज्जा कर लेती हैं |

बोला- लेकिन यह भी तो कहा कि पाँच साल में किसानों की आमदनी दो गुना हो जाएगी |

हमने कहा- लेकिन पाँच साल में चीजों के दाम अढाई गुना बढ़ जाएँगे तो क्रय शक्ति आज की बजाय २५ प्रतिशत कम रह जाएगी |चौबे जी दुबे जी बन जाएँगे |

कहने लगा- यह भी तो कहा है कि अम्बेडकर जयंती पर  ई-मार्केटिंग  शुरु हो जाएगी जिससे किसान जहाँ भी ज्यादा मूल्य मिलेगा अपनी फसल बेचकर अधिक लाभ कमा सकेगा |

हमने कहा- सभी व्यापारी मिले हुए हैं |जैसे ही फसल आएगी सारे देश में भाव गिर जाएँगे |छोटा किसान फसल रोक नहीं सकता |उससे खरीदने के बाद व्यापारी फिर भाव बढ़ा देंगे |

बोला-तुझे तो कुछ भी पोजीटिव दिखाई नहीं देता | अच्छा, तू बता, मोदी जी को वहाँ क्या कहना चाहिए था ?

हमने कहा- उन्हें कहना चाहिए था- यह वर्ष झुमका खोने का स्वर्ण जयंती वर्ष है |( 'मेरा साया' १९६६ में रिलीज़ हुई थी )आज तक एक अबला नारी गुहार लगाती रही- झुमका गिरा रे, बरेली के बज़ार में.... लेकिन सब वैसे ही मज़ा लेकर प्रश्न पूछते रहे- फिर क्या हुआ ? जैसे कि किसी बलात्कार-पीड़िता से वकील या पुलिस वाले प्रश्न पूछते हैं- फिर क्या हुआ ? किसी भी संगठन या सत्ताधारी पार्टी ने उसका झुमका ढूँढ़ने का कष्ट नहीं उठाया | आज तक भारत माता की वह बेचारी बेटी बिना झुमके के ही अस्सी बरस की मरणासन्न बुढ़िया हो गई है |यदि आप हमें अवसर देते हैं तो हम पाँच साल में उसका झुमका ढूँढ़ निकालेंगे |

बोला- तू कैसा कवि है ?यह झुमका किसी धातु का झुमका नहीं है |यह तो जनता की अस्मिता का प्रतीक है जिसे कोई भी शासक न  ढूँढ़ता और न ही मिलने पर लौटाता है |भाषणों और आश्वासनों के बल पर सभी इस 'झुमके' को हथियाना चाहते हैं |

हमें लगा- तोताराम बातें कैसी भी करे लेकिन समझता सब कुछ है |