Feb 26, 2016

बंधनहीनता बनाम बड़ा पिंजरा

 बंधनहीनता बनाम बड़ा पिंजरा


कहते हैं- असंभव कुछ नहीं होता लेकिन यह सही नहीं है | आदमी को असंभव की कल्पना में आनंद आता है इसीलिए वह जब, जिस काल में जो असंभव लगता है उससे साक्षात्कार करने के रास्ते निकालता रहता है | इसमें फैंटेसी, कल्पना, स्वप्न, साहित्य और कलाएँ उसकी मदद करती हैं |  मनोजगत के इन क्षेत्रों को कभी मनुष्य चकित होकर देखता है, कभी उन्हें असंभव और कपोल-कल्पना बताता है और कभी उनमें खो जाता है | जब स्वयं उड़ नहीं पाता था तो पक्षियों को देखकर कभी उनकी अनुकृति के यानों, तो कभी उड़न खटोलों, उड़ने वाले लकड़ी के घोड़े , उड़ने वाली जादुई दरी की कल्पना की |कभी  हैरी पोटर में वही काम झाडू करती है |यह ठीक है कि अब वायुयान बनने पर वह कल्पना आदमी को अधिक नहीं लुभाती | अब बिना चालक के ड्रोन हैं, रोबोट हैं और भी बहुत से ऐसे ही आश्चर्यजनक आविष्कार हैं और होते रहेंगे |फिर भी इस चंचल खरगोश की नाक के सामने 'असंभव' की एक काल्पनिक गाजर हमेशा लटकी रहेगी और उसे दौड़ाती रहेगी |मनुष्य अपनी कल्पना में सम्पूर्ण बन्धनहीन होने का स्वप्न देखता रहेगा और दौड़ता रहेगा |लेकिन क्या यह दौड़ ही जीवन का एक मात्र लक्ष्य है ?

आजकल मानवाधिकार और स्वतंत्रता का बड़ा हल्ला है और उसके नाम पर बड़े ऊलजलूल मत, वाद, विश्लेषण और विचार व्यक्त किए जाते हैं | यह सच है कि मानव ही क्या, किसी भी जीव को कैद में रहना अच्छा नहीं लगता और यह उचित भी नहीं है कि किसी को कैद किया जाए | फिर भी मानवेतर जीवों में नहीं बल्कि मनुष्य समाज   में ही अन्य मनुष्यों को गुलाम बनाकर रखने का इतिहास मिलता है |मनुष्य को लगता है कि उसके अतिरिक्त सभी जीव बन्धनहीन हैं | जो चाहे करते हैं, जब-जहाँ चाहे जाते हैं | लेकिन मनुष्य यह नहीं सोचता कि वे उसकी क्या कीमत चुकाते हैं और इस बंधनहीनता के कारण उन्हें किन-किन और कैसे -कैसे कष्टों का सामना करना पड़ता है ?क्या इस बंधनहीनता की प्राप्ति के लिए हम अपने बच्चे को आग को छूने देंगे, क्या उसे खुले में घूमने देकर किसी ट्रक के नीचे आने देंगे ,क्या मनमाना आचरण करके उसे विभिन्न व्याधियों का शिकार  होकर  मरने  देना चाहेंगे ?

एक बिल्ली अपने 'बिल्ली-अधिकारों' की सीमा को जानती है | वह भोजन के लिए चूहे का शिकार करती है |यह उसकी 'आहार,निद्रा, भय, मैथुनं च' की मूल प्रवृत्ति  के तहत है |इसमें कोई हिंसा नहीं है |जीवो जीवस्य भोजनं |हो सकता है- यदि वह मनुष्य की तरह कुतर्की हो जाए तो कुत्ते के सामने 'बिल्ली-अधिकार' की बात करेगी  और कुत्ते के द्वारा मारी जाए |लेकिन वह ऐसा नहीं करती |

यह ठीक है कि मानव समाज में इसी अवधारणा के कारण समय-समय पर समाजों में विभेद, तकरार, क्रांतियाँ, विवाद, विमर्श आदि होते रहे हैं | यदि ये न हों तो भी एक स्वाभाविक संसरण, एक परिवर्तन चलता ही रहता है-कुछ अनायास और कुछ सायास | लेकिन यदि मनुष्य की इस बंधनहीनता की अवधारणा की बात करें तो इसके लिए उसने कई शब्द गढ़ रखे हैं- स्वाधीनता, स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, मानवाधिकार, बाल अधिकार, नारी अधिकार और भी न जाने क्या-क्या ? विचार करें- स्वतंत्रता में भले ही 'स्व' हो लेकिन एक तंत्र भी है जिसके अपने नियम हैं | स्वाधीनता में भी 'स्व' किसी के अधीन है, स्वच्छंदता में भी अपना (स्व का )एक 'छंद' है |भले ही आप २४ मात्राओं के दोहे की जगह २३ मात्राओं के एक छंद का विधान करें लेकिन जब एक बार आपने २३ मात्राओं के एक छंद का विधान कर लिया तो आप उसमें बँध गए | यही छंद प्रकृति में, सृष्टि में बंधन, सीमा, नियम है | मानव कोई भी विधान करे, वही अंत में उसके लिए एक अनुशासन या बंधन बन जाता है |इसी बंधन में ग्रह-नक्षत्र और उनकी गतियाँ,  दिन-रात, जन्म-मृत्यु  बँधे हुए हैं |रक्त नसों में, हड्डियाँ मांस-मज्जा में, आत्मा देह के बंधन में है |जीव के लिए क्या नींद, भूख-प्यास का बंधन नहीं हैं ? बंधन और मुक्ति की अवधारणा बहुत सूक्ष्म है |

मानव समाज में बंधनहीनता, स्वतंत्रता आदि सापेक्ष हैं और सीमित हैं | हर सड़क के नियम है और उनका पालन न करने पर दुर्घटना के लिए आप किसी को दोष नहीं दे सकते | कहीं वाहन दाएँ चलते हैं तो कहीं बाएँ |जैसा भी हो नियम हो, मानना तो पड़ता है अन्यथा मानव समाज और जंगल में क्या अंतर रह जाएगा | हालाँकि जंगल में भी प्रकृति और सृष्टि का एक नियम और बंधन होता है |जंगल में कोई जीव वस्त्र नहीं पहनता लेकिन मनुष्य ने अपने लिए मौसम के अनुसार वस्त्रों का विधान किया है | और अब वह, कुछ आदिवासियों के अतिरिक्त, सभ्यता में शामिल हो गया | हालाँकि मानवाधिकारों का डंका बजाने वाले पश्चिमी देशों में भी अधिकारों या स्वतंत्रता के नाम पर पूर्ण नग्नता स्वीकार्य नहीं है |

मनुष्य के अलावा अन्य जीवों में मूल प्रवृतियाँ हर समय उनके दिमाग में नहीं घुसी रहतीं | वे स्वाभाविक रूप से उनके अनुसार जीवन जीते हैं लेकिन संलिष्ट दिमाग वाले मनुष्य में तन के अतिरिक्त मन में भी बहुत कुछ ऐसा घुसा हुआ है जो उससे अप्राकृतिक व्यवहार करवा सकता है, करवाता है | इसलिए जब इस संलिष्ट दिमाग वाले मनुष्य ने अपने लिए एक तार्किक और नैतिक समाज बनाया है तो उसके नियम भी संलिष्ट होंगे | भले ही वे उसे बंधन लगें लेकिन अपने और शेष समाज/सृष्टि के सहज संचलन और सुरक्षा के लिए, उसे मन या बेमन से कोई न कोई तंत्र तो मानना ही पड़ेगा | इसलिए उसे बंधनहीनता की इस अवधारणा को सीमित और तार्किक बनाना ही पड़ेगा |

और फिर सूक्ष्म कीट-पतंगों का तो पता नहीं लेकिन कुत्ते, बिल्ली, पक्षी सब अपने बच्चों को अपनी आवश्यकता के अनुसार कठोर अनुशासन पूर्वक भोजन ढूँढने , अपनी रक्षा करने  तथा परिवेश आदि का ज्ञान कराते हैं तो फिर मनुष्य को पूर्ण  बंधनहीनता क्यों और किस लिए चाहिए तथा उससे क्या लाभ होगा  ? और विचार करें कि यह बंधनहीनता उसे कहाँ ले जा सकती है ? और क्या यह संभव भी है ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि 'बंधनहीनता' की यह अवधारणा किसी चालाक योजना के तहत मनुष्य को एक छोटे पिंजरे से निकाल कर किसी बड़े खतरनाक वध-स्थल पर ले जाने के लिए हो ?

Feb 16, 2016

देश के विकास में अडंगा

  देश के विकास में अडंगा 

आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, अच्छी तरह से हाथ साफ़ करके बाहर आ जा |
हमने कहा- हमारे हाथों को क्या हुआ है ?हमने न किसी का खून किया है, न ही रँगे हाथों पकड़े गए हैं और दुबारा हाथ पीले करना नहीं चाहते |कोई घपला-घोटाला नहीं किया |

बोला- हाथ देखकर तेरा भविष्य बताऊँगा |हाथ साफ न होने से रेखाएँ साफ दिखाई नहीं देतीं और गलती होने की संभावना रहती है |

हमने कहा- हमारा भविष्य तो हमें मालूम है |दो हजार सत्रह में कम्यूटेशन ख़त्म हो जाएगा और डेढ़ हजार की जो कटौती हो रही है वह बंद हो जाएगी, जनवरी से बढ़ा डी.ए.अप्रैल में मिल जाएगा, सातवें वेतन आयोग में जो बढ़ोत्तरी होगी उसे जेतली जी महँगाई या टेक्स बढ़ाकर बराबर कर देंगे, सरकार बिजली चोरी नहीं रोक सकेगी सो दो चार महीने में बिजली का बिल बढ़कर आने वाला है, हो सकता है एक-दो वर्ष में घुटनों में दर्द शुरू हो जाए, लकवा मार जाए या दिल का दौरा पड़ जाए या मार्शल जाति का कोई फ़ास्ट युवक मोटर साइकल की चपेट में ले ले |इसके अलावा और क्या भविष्य हो सकता संन्यास की सीमा में पहुँचे सेवा निवृत्त, अराजनीतिक ब्राह्मण का|वैसे तो हम सन्यास की उम्र में पहुँच चुके हैं लेकिन हमसे किसी को कोई राजनीतिक खतरा नहीं इसलिए  कोई निदेशक मंडल में भी नहीं लेने वाला है और न ही कोई कहीं का राज्यपाल बनाने वाला है |बस, अब हम भले और यह चबूतरा भला |

बोला- हाथ तो देखने दे |

कई देर तक घुमा-फिरा कर हमारा हाथ देखता रहा, एक आतशी शीशा पता नहीं, कहाँ से ले आया |उससे घिस चुकी रेखाओं को घूरता रहा |फिर चिंतित होकर बोला- मास्टर, अब मैं जो प्रश्न पूछता हूँ उनके हाँ या ना में उत्तर देना |

प्रश्न थे- क्या तेरे पास व्हाट्स ऐप है, क्या तू ई-बैन्किंग, ई-शोपिंग करता है, क्या तेरे पास बी.एम.डब्लू कार,हवाई जहाज, फार्महाउस,बंगला विथ स्विमिंग पूल है, या तू साल में एक-दो बार विदेश में छुट्टियाँ  मनाने जाता है, क्या तुझे मेट्रो ट्रेन चाहिए, क्या तू डिज़ाईनर जूते और कपड़े पहनता है ?

हमने कहा- अब और प्रश्न मत कर |यदि करेगा तो भी वे ऐसे ही होंगे |इसलिए हमारा एक ही उत्तर है, सुन ले- 'नहीं' |

हम तो बैंक में चेक से पैसे निकलवाते हैं,जहाँ जाना होता है पैदल ही जाते हैं, रिटायर होने के बाद कोई रेल, बस,हवाई यात्रा नहीं की है, एक पुराना फोन हैं जिसमें दो साल पहले डलवाया बेलेंस अभी तक चल रहा है,  पंद्रह साल से लुंगी, चड्डी-बनियान के अलावा कोई कोई कपड़ा नहीं ख़रीदा है, हफ्ते में एक बार दाढ़ी बनाते हैं और एक ब्लेड को दो महीने चलाते हैं और बेकार हो चुकी ब्लेड से नाखून काटते हैं फिर उसीसे  पोते-पोतियों की पेंसिलें छील देते हैं |

तोताराम ने हमारे पैर पकड़े और कहा- बस, हो चुका |ये बातें मुझे तो बता दीं लेकिन किसी और के आगे चर्चा मत कर देना अन्यथा तेरी रेखाओं में एक बड़ा विकट योग बन रहा है |

हमने पूछा- क्या ?

बोला- मोदी जी परेशान हैं कि इतनी योजनाओं और घोषणाओं के बावजूद विकास क्यों नहीं हो रहा है ? उन्होंने आसाम की एक चुनाव सभा में कहा है कि एक परिवार देश के विकास में अडंगा लगा रहा है |इतनी विकास-विरोधी जीवनचर्या वाला परिवार तेरे सिवा और कौन हो सकता है ? यदि मोदी जी को पता चल गया तो शीघ्र ही मोदी जी तुझे विकास में अडंगा न लगाने के लिए मनाने के लिए आएँगे और यदि नहीं माना तो हो सकता है तुझे देश निकाला दे दिया जाएगा या देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा |यह भी हो सकता है कि अगले चुनाव में नारा हो- इण्डिया विदाउट तोताराम |

हमें हँसी आ गई, कहा- तोताराम, इतने चुनावी भाषणों के बाद भी तुझे अब तक पता नहीं चला कि वह परिवार कौन है ? भले ही उन्होंने आसाम में साफ-साफ उसका नाम नहीं लिया लेकिन सब जानते हैं कि उनका इशारा किधर है ? 

अब लोकतंत्र है सो क्या करें ?कुछ ऐसा-वैसा हो नहीं सकता |अच्छा है, पाँच साल बाद एक बहाना तो बचेगा मुँह छिपाने के लिए |

याद रख, भले ही विकास के नाम पर संसाधनों के निर्दय दोहन का समय चल रहा है लेकिन यदि यह दुनिया बचेगी तो हम जैसे मितव्ययी लोगों के कारण ही |विकास साधनों की अधिकता का नाम नहीं; संतोष, सादगी और प्रेम का नाम है |












Feb 6, 2016

राम कैसे बनते हैं

  राम कैसे बनते हैं 

आज तोताराम ने बड़ा अजीब प्रश्न किया- राम कैसे बनते हैं ?

हमने कहा- बहुत सरल है | जिसका नाम उसके माता-पिता 'राम' रख लें वह राम बन जाता है जैसे राम विलास पासवान, राम  जेठमलानी, रमई राम, जीतन राम माँझी(भले ही खुद के अलावा पार्टी के सभी उम्मीदवारों की नाव डूब गई) या फिर कोई रामानंद सागर उसे अपनी रामायण में राम का रोल दे दे या और कुछ नहीं तो कोई अपना उपनाम ही राम रख ले |

बोला- तेरी सोच बहुत छोटी है |इन नश्वर मनुष्यों से ऊपर जाती ही नहीं |

हमने कहा- दूसरा तरीका है कि किसी रावण का जन्म हो तो फिर राम को जन्म लेना ही पड़ेगा |

बोला- रावण तो गली-गली हैं लेकिन राम एक नहीं दिखता |

हमने कहा- तो फिर हमारी ग़ज़ल का एक शे'र सुन, सब समझ में आ जाएगा-
बहुत कठिन धरम राम का 
वन-वन पड़े भटकना भगतो |

बोला- तेरे बस का नहीं है इस प्रश्न का उत्तर देना |पता है कल डा.भीमराव अम्बेडकर महासभा के डा.लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा है- यदि मोदी जी दलितों को न्यायपालिका और निजी क्षेत्र में आरक्षण दे दें तो वे दलितों के 'राम' बन जाएंगे |कहने वाले'निर्मल' हैं इसलिए इसमें सचाई अवश्य है |सुन्दरकाण्ड में राम स्वयं कहते हैं-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा |

हमने कहा-  'दलितों के राम' ही तो बन जाएंगे लेकिन सब के राम तो नहीं बन पाएंगे ? राम क्या एक वर्ग विशेष के होते हैं ?राम तो सबके होते हैं -हर दीन, दुखी, पीड़ित, दलित के |वे जाति-वर्ग का भेद नहीं करते |वैसे भले ही मोदी जी निर्मल जी कहे अनुसार दलितों के राम' बन सकने के पात्र हो जाएँ लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे |

पूछने लगा- क्यों ?

हमने कहा- उन्हें तो उमा भारती जी ने पहले से ही 'विष्णु' घोषित कर रखा है |

बोला- उससे क्या होता है ? वे तो मौका लगने पर किसी को भी 'त्रिदेव' बना देती हैं |इससे पहले अटल जी ,अडवाणी जी और वेंकैया जी को भी ब्रह्मा, विष्ण, महेश बनाया था कि नहीं ?फिर मोदी जी, अमिट शाह और जेतली को बना दिया |कल किसी और को नियुक्त कर देंगी |

हमने कहा- तो फिर राम और विष्णु ही क्यों ? परम पिता परमेश्वर ही क्यों नहीं बन जाते ?
अब तो तोताराम का मुँह खुला का खुला रह गया, बोला- क्या यह भी संभव हो सकता है ? क्या कोई परमेश्वर भी बन सकता है क्या ?

हमने कहा- यदि वे भारतीयों को दूसरे देशों भी आरक्षण दिलवा सकें |
तोताराम खिसक लिया |



Feb 5, 2016

२०१६-०२-०४ ज्यादा उड़ना ठीक नहीं

 ज्यादा उड़ना ठीक नहीं

प्रिय शाहरुख़
लो फिर तुम्हारा नंबर आ गया |कल ही समाचार पढ़ा कि तुम एक निजी प्लेन खरीदना चाहते हो लेकिन पैसे नहीं हैं |यह भी कहा- मेरी दो फ़िल्में आने वाली हैं -रईस और फैन |मैं चाहता हूँ - इन दिनों कोई मेरा ख्याल रखे  |

सबसे पहले तो प्लेन वाली बात | बड़े काम करने के लिए प्लेन नहीं बल्कि बड़ा प्लान और पक्का इरादा चाहिए |बलराज साहनी, दिलीप कुमार, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन बिना प्लेन के ही बड़े कलाकार माने जाते हैं |किस महापुरुष के पास प्लेन रहा है ? मोदी जी बिना प्लेन के ही दिल्ली पहुँच गए |अब भी उनका बैंक बेलेंस ४७ हजार रुपए है |इससे हजार-पाँच सौ ज्यादा तो हमारा बेलेंस है लेकिन दिल्ली तो खैर बहुत दूर है, जयपुर तक नहीं पहुँचे | और फिर प्लेन को खड़ा कहाँ करोगे ?घर तो इतना बड़ा है नहीं और मुम्बई में प्लेन खड़ा करने जितना बड़ा प्लाट खरीदने जैसी हैसियत है नहीं |सो प्लेन हवाई अड्डे पर ही खड़ा करोगे तो हवाई अड्डे तक तो हर हालत में जाना ही पड़ेगा | और जब हवाई अड्डे पहुँच ही गए तो किसी भी प्लेन में बैठो, क्या फर्क पड़ता है |

यदि वास्तव में ही प्लेन खरीदना चाहते हो और पैसे नहीं हैं तो यह तुम्हारा मिस मैनेजमेंट है |फिर भी यदि तुम्हारा मन है तो किसी बैंक से लोन दिलवा देते हैं |लेकिन आगे की तुम खुद सोचो |क़िस्त जमा नहीं करवा सके तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी |लेकिन याद रखो- सबै दिन जात न एक समान |हमारे यहाँ आजादी से पहले एक सेठ थे|आयात-निर्यात का काम था |खूब पैसे कमाए |एक बार पहने कपड़े को दोबारा नहीं पहनते थे |एक सौ रुपए का नोट जलाकर चिलम सुलगाया करते थे |लेकिन अंत क्या हुआ ? सब कुछ निबट गया |ससुराल में रहने की नौबत आ गई और वही राम को प्यारे हुए | तुम इस मामले में खैर, बहुत समझदार हो |फिर भी सलाह देना हमारा फ़र्ज़ बनता है |

यदि प्लेन-व्लेन कुछ खरीदना नहीं और वैसे ही बातें बना रहे हो तो अच्छी बात नहीं है |फालतू बातें करने के लिए तो नेता ही बहुत हैं |इन नाटकों के बिना भी लोग तुम्हें जानते हैं |रही बात तुम्हारा ख्याल रखने की क्योंकि तुम्हारी दो फ़िल्में आने वाली हैं- रईस और फैन |कहीं इन्हें चलवाने के लिए तो पैसे न होने का जुमला उछाला है ? दर्शकों का क्या है ?जैसे बाज़ार में कोई ढंग की चीज नहीं मिलती तो जैसी मिलती है वैसी ही मजबूरी में खरीदनी ही पड़ती है ग्राहक को |यही हाल फिल्मों का है |

वैसे फ़िल्में चलवाने की मन्नत माँगने वाले हमारे अजमेर वाले ख्वाजा साहब के यहाँ ज़रूर आते हैं लेकिन  उनके बारे में भी बता दें |हमें का मिले थे | हमने कहा- यहाँ कहाँ, हुजूर |मुम्बई से फ़िल्मी भक्त चादर लेकर आपकी दरगाह में खड़े हैं और आप यहाँ ?

बोले- हमारे यहाँ कोई भक्त नहीं आते |सब अपने-अपने स्वार्थ से आते हैं |किसी को चुनाव में जीत चाहिए, किसी को धंधे में मुनाफा, किसी फिल्म चलवाने की गरज़ | हम तो फ़क़ीर हैं, हमें इन बातों से क्या लेना ?हम तो मुहब्बत के मुरीद हैं लेकिन मुहब्बत कहाँ ? यदि मुहब्बत ही होती तो दुनिया में बिना बात का खून-खराबा क्यों होता ? दूसरे धर्म वाले तो दूसरे; एक धर्म वाले ही आपस में एक दूसरे का सिर फोड़े डाल रहे हैं | लोगों को अपना सुकून हैं, दूसरे का सत्यानाश चाहिए |इसी चक्कर में सबका सत्यानाश हो रहा है |अब हम वहाँ नहीं रहते जैसे धार्मिक स्थानों में ईश्वर और आश्रमों में सच्चे संत |दंदफंद से दूर खुली हवा में अच्छा लगता है |तुम जैसे लोगों से बतिया लेते हैं और रात को दरगाह में जाकर सो जाते हैं |
इसलिए ज्यादा उड़ना ठीक नहीं |यदि निजी प्लेन का मन करे तो अम्बानी जी के प्लेन में लिफ्ट ले लेना |सुना है, पहले भी उन्होंने लिफ्ट दी थी |पैसे भी बचेंगे और जैसा सोच रहे हो उस प्लेन से बेहतर ही होगा अम्बानी जी प्लेन |

Feb 2, 2016

राम हाज़िर हो

 राम हाज़िर हो

जब से मिथिला वाले ठाकुर चन्दन प्रसाद सिंह द्वारा राम पर सीता के साथ ज्यादती करने का केस दायर किया गया है,  हम और तोताराम बहुत खुश हैं | हमने कोई ऐसे बड़े पुण्य तो किए नहीं हैं कि राम हमें वन में आकर दर्शन दें | वैसे मृत्युलोक में तो कोई खास परेशानी नहीं है, किसी तरह काम चल ही रहा है, भले ही महँगाई की रफ़्तार भत्ते से दुगुनी होने के कारण ठुड्डी घुटनों तक पहुँच गई है |अब चोहत्तर के हो गए हैं और एक साल बाद कम्यूटेशन भी ख़त्म हो जाएगा और नया पे कमीशन भी आ जाएगा लेकिन यह भी तो सच है कि सन्यास आश्रम में प्रवेश कर जाएंगे |उसके बाद तो पता नहीं कब बुलावा आ जाए और ऊपर जाना पड़े |

सुना है, वहाँ न कोई झूठ चलता है और न ही सिफारिश | यदि बेलेंस शीट गड़बड़ हुई तो नरक में भी डाला जा सकता है |सो इस समाचार से मन को थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो मिथिला चलकर कोर्ट में पहुंचे भगवन राम के दर्शन कर लें |सुना है उनके दर्शन से सब पाप कट जाते हैं |सारे पाप न भी काटें तो कम से कम नरक की यातनाओं में कुछ तो छूट मिलेगी |

इस अवसर का लाभ उठाने इस सर्दी में भी हम और तोताराम मिथिला जा पहुंचे और जज महोदय को एक पर्ची भिजवाई कि राजस्थान से आए दो वरिष्ठ सेवानिवृत्त अध्यापक आपके दर्शन करना चाहते हैं |आदमी भले थे सो बुलवा लिया | हमने कहा- साहब, राम जी की पेशी कब है ?

बोले-वह बकवास अपील खारिज कर दी गई है | जिन वकीलों को कोई काम नहीं है वे और कुछ नहीं तो चर्चित होने के लिए ऐसे उलटे-सीधे केस डाल देते हैं |अब इन्हें कौन समझाए कि कोई राम को खोजने कहाँ जाए ?

हमने कहा- साहब, अयोध्या जाएं और कहाँ ?

बोले- इतने वर्ष हो गए कोई यह भी तय नहीं कर पाया कि उनकी अयोध्या कहाँ है ? और जिसे जन्म स्थान बताया जा रहा है वह वास्तव में क्या है ? और फिर राम  भी तो कई हैं- बाल्मीकि के राम, तुलसी के राम, कबीर के राम, तोगड़िया-आडवानी-उमाभारती-अशोक सिंघल के राम, रामानंद सागर के राम |कोई कहता है कि राम कण- कण में व्याप्त हैं, कोई कहता कि वह जो बता रहा है उस खास मंदिर में ही राम हैं |तुलसी समस्त सृष्टि में राम को देखते हैं |कोई कहता है- 'मेरे पिया मेरे मन में बसत हैं' |

हमने कहा- साहब, क्या मात्र पता न होने की वज़ह से ही राम जी को नहीं बुलाया गया ?

बोले- वैसे इस केस में कोई जान भी तो नहीं है |है भी इतना पुराना कि सारे गवाह मर खप चुके |यदि कोई गुंजाइश होती तो हवा तक से उलझने वाले राम जेठमलानी क्या चूक जाते |वे तो पहले ही कह चुके हैं कि राम बुरे पति थे और लक्षण उनसे भी बुरे |ऐसे ही करने लगे तो फिर गौतम बुद्ध को भी बुलाना पड़ेगा |रावण, दुर्योधन, कंस जाने कौन-कौन |

हमने कहा- फिर भी साहब अन्याय तो अन्याय ही है |

बोले- जो लोग चालक होते हैं वे अपने वर्तमान के दायित्त्वों से ध्यान हटाने के लिए इतिहास को लेकर वितंडावाद फैलाते हैं |अरे, अन्याय आज नहीं हो रहे क्या ? उनसे ही निबट लो |जाने कैसे-कैसे लफंगे भरे पड़े हैं और क्या-क्या दुष्कर्म नहीं कर रहे ? उन्हें तो अग्रिम जमानत मिल जाती है |जेल में अधिकारी उनके पैर छूते हैं, पाँच सितारा होटल की सुविधाएं दी जाती हैं | इनके सामने जाते तो ऐसे न्याय प्रियों की नानी मरती है, उनके सामने या तो चालीसा रचने लग जाते हैं या फिर सेल्फी लेने लग जाते हैं |

हमने कहा- लेकिन फिर साहब, हमारे राम-दर्शन का क्या होगा ?

बोले- होगा क्या ? राम के दर्शन उनके कर्मों में करो | संयम सत्कर्म अपनाओ |  अब निकल लो |सर्दी का मौसम है,यदि निमोनिया गया तो राम-दर्शन और नया पे कमीशन सब धरे रह जाएँगे |

अब हमारे पास लौटने के सिवा और चारा क्या था ?

Feb 1, 2016

ज्ञान मुक्त हो जहां..

  ज्ञान मुक्त हो जहाँ

हमारी कॉलोनी के दक्षिण में कोई एक सौ गज दूर व्यस्त जयपुर रोड़ है इसलिए इसके उत्तर में स्थित सभी कालोनियों में आने जाने वाले सभी लोग और वाहन हमारे घर के सामने से ही गुजरते हैं | सुबह चार बजे से जो सिलसिला चालू होता है वह रात दस-ग्यारह बजे तक तो चलता ही है |सबसे पहले मंडी में सब्ज़ी ले जाने वाले विभिन्न वाहन; फिर दूधवाले और इसी तरह क्रमशः बच्चों को स्कूल ले जाने वाली बसें,टेक्सी के रूप में चलने वाली निजी कारें,ऑटो और अभिभावकों की मोटर साइकिलें, सब्ज़ी वालों की रेहड़ियाँ, कुकर-गैस के चूल्हे ठीक करने वाले, दरी-चादरें बेचने वाले, अचार-मसाले बेचने वाले और अंत में 'लो.. प्लास्टिक' का घोष करते कबाड़ी | नया आदमी तो समझ ही नहीं पाता कि यह प्लास्टिक बेच रहा है या पुराना लोहा और प्लास्टिक खरीद रहा है लेकिन हम अभ्यास के कारण समझ जाते हैं |

भारत की विविध संस्कृति नित्य हमारे घर के आगे से गुजरती है |हमें 'अतुल्य भारत' के दर्शन करने के लिए किसी पर्यटन स्थल पर नहीं जाना पड़ता |

आज कुछ ठण्ड थी और बारिश के आसार भी, सो कमरे में ही बैठे थे |तभी इन्हीं आवाजों के बीच एक नई आवाज़ सुनाई दी- सेकेंडरी, सीनियर सेकेंडरी, बी.ए.,एम.ए.,पी.एच.डी.........|

हमने तोताराम से पूछा- तोताराम, आज यह नया रेहड़ी वाला कौन आ गया ? और बोल क्या रहा है, सुना ? सर्टिफिकेटों और डिग्रियों के नाम |क्या अब डिग्रियाँ भी सब्जियों  की तरह बिकने लगी ?

बोला- मुझे लगता है कोई जोधपुर वाला है | सुना नहीं, पहले एक सज्जन वाजिब दामों पर हजारों डिग्रियों की होम डिलीवरी दिया करते थे |लगता है,फ्लिपकार्ट की तरह यह उसी की कोई  नई सर्विस है |

और दो मिनट में ही वह उस फेरी वाले को पकड़ लाया |

हमने पूछा- बन्धु, हमने अभी आपका राष्ट्र के नाम जो सन्देश सुना वह क्या है ?

बोला- सन्देश क्या है मास्टर जी, माल बेच रहे हैं |दाम दो और माल लो |वह आप वाला ज़माना गया कि दस-बीस साल घुटने रगड़ो और तब कहीं जाकर कोई डिग्री मिलती थी |आपके ज़माने में बी.ए. इतनी बड़ी चीज होती थी कि कहावतों में आता था- कौन सा बी.ए. हो गया |श्यामसुंदर दास और गुलाब राय बी.ए. होते हुए ही एम.ए. वालों के लिए किताबें लिख गए |अब ससुर सबसे सस्ती यही डिग्री हो गई |कोई दस हज़ार में भी नहीं पूछता |कहता है इतने में तो प्राइवेट कालेज वाले बी.ए. और बी.एड. दोनों एक साथ करवा देते हैं |

तभी तोताराम बीच में ही बोल पड़ा- और पी.एच.डी. का क्या रेट है ?

फेरी वाले ने कहा- मास्टर जी, पी.एच.डी. दो तरह की हैं |एक तो वह जिसमें आपके नाम से थीसिस कोई और लिखेगा और डिग्री हम देंगे, दूसरी जिसमें केवल एक कागज होगा जिसमें विषय,आपका नाम, हमारे विश्वविद्यालय का नाम आदि होंगे |पहली के बीस हजार और दूसरी के दस हजार, नकद | 

तोताराम ने कहा- मास्टर ले ले, कम से कम नाम के आगे 'डाक्टर' तो लगा सकेगा |

हमने कहा- हमें नाम के आगे डाक्टर लगा कर कौन सी प्रेक्टिस करनी है |और फिर पेंशन पर इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है |दस हजार का च्यवनप्राश खाएँगे तो क्या पता, पाँच साल और पेंशन पेलने का मौका मिल जाए |

बोला-कोई बात नहीं, लेकिन यह तो तुझे मानना ही पड़ेगा कि इन साठ-सत्तर वर्षों में  हमारे लोकतंत्र ने कम से कम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का वह सपना तो साकार कर ही दिया- 
ज्ञान मुक्त हो जहाँ....निर्भय हो चित्त जहाँ...
भारत को उसी स्वर्ग में तुम जागृत करो..जागृत करो |