Jan 31, 2023

'मुमकिनामि' युगे-युगे


 'मुमकिनामि' युगे-युगे 


रात को बारिश हुई. फसलों को कितना लाभ हुआ, 'सोना बरसा' या कीचड़- यह तो अखबार देखकर ही तय होगा . 

अखबारों को न तो समाचारों  से मतलब है और न ही उनकी प्रामाणिकता से और न ही उनकी पाठकों के लिए उपादेयता से . वे तो  एक दूसरे की देखा-देखी अखबार को चटपटा, रोमांचक, साहित्यिक, स्मार्ट बनाने पर तुले रहते हैं. 

हमारे एक मित्र हैं, एक छोटा, लोकल लेवल का खबर निकालते हैं . एक दिन हमने कहा- इसमें कुछ ठीकठाक सामग्री दिया करो. बोले-- मास्टर जी, हम तो घर घर के लोग ही मिलकर इधर-उधर से कुछ भी जुटाकर डाल देते . किसी तरह हमारी औकात के अनुसार विज्ञापन मिल जाते हैं. क्यों बिना बात की माथा कूट करना .     

जैसे मोदी जी ने विकलांगों को दिव्यांग का दर्ज़ा देकर उनकी विकलता कम कर दी है वैसे ही आवारा सांडों को नंदी और गली के कुत्तों ओ श्वान का तत्सम नाम देकर अखबारों ने भी अपना धर्म निभाया है . किसी भी देवी-देवता के विशेष रंग की पोशाक पहनने और हर ग्रह-नक्षत्र की स्थिति को पुण्य और किसी न किसी खरीददारी का योग बताकर अध्यात्म और समाज के चरित्र निर्माण का काम निबटा दिया जाता है . 

यही हाल विज्ञापन का है . लगता है पहला पेज तो विज्ञापनों के लिए ही सुरक्षित हो गया है . जूते से लेकर, जुआ खेलने के 'ऐप' तक कुछ भी . पैसा मिले तो घोषित अपराधी और बलात्कारी को राष्ट्र संत और जन-मन-हृदय-सम्राट बताते हुए विज्ञापन छाप सकते हैं . कभी पेज बीच में से कटा हुआ, तो कभी किसी विज्ञापन की  अलग से बाहर निकली हुई एक पट्टी जैसे किसी का नाड़ा पेंट की ज़िप से बाहर लटका हुआ हो. कभी समाचारों के बीच में सांप की तरह लहराता कोई विज्ञापन घुसेड़ देंगे . 

उनके होने की सार्थकता अधिक से अधिक विज्ञापन मिलने तक ही है. 

इन अख़बारों से कोई बचे भी तो कैसे ?  सभी अखबार एक से बढ़कर एक कूड़ा. ढेरी के सभी बैंगन काने. लगा दो सारी उम्र छांटने में . वही ढाक के तीन पात जैसे हर महिने किसी ढंग के काम की सूचना की उम्मीद के बीच ज़बरदस्ती चली आती वही 'मन की बात' . 

ठीक एक हफ्ते पहले हमने तोताराम को उसके हर बात में 'मोदी है तो मुमकिन है' के मन्त्र का ऐसा ज़वाब दिया कि अभी तक वह नार्मल नहीं हुआ है. फंस गया . 'मोदी और मुमकिन' का अनुप्रास मिलाये तो 'हिंदुत्व' को 'भाषा ज़िहाद' का खतरा और यदि 'संभव' के साथ 'शाह' की अनुप्रास भिड़ाये तो एकाधिकार को खतरा . इधर पड़े तो कुआं, उधर पड़े तो खाई. 

रात को हलकी मावठ के कारण हुए कीचड़ और कुछ ठंडी हवा के कारण हमें तोताराम के जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी . जैसे ही चाय की तरफ हाथ बढ़ाया तो एक तीखा स्वर सुनाई दिया- मिल गया . 

स्वर में गज़ब का आत्मविश्वस था . वैसा ही जैसा एक बार अच्छी तरह बालि से पिटकर, फिर राम की दी हुई माला पहनकर और राम से अभयदान पाकर उत्साह से भरे सुग्रीव के स्वर में था- बाहर निकल बालि ! जैसा ललकारता हुआ गर्जन था .   

हमने चौंक कर पूछा- क्या मिल गया ? राहुल को एक हाफ टी शर्ट में भी ठण्ड न लगने का रहस्य ?

बोला- नहीं, ऐसी छोटी-मोटी बात नहीं है . एक बड़ा धांसू तथ्य, एक ईश्वरीय रहस्य . 'संभव' और 'मुमकिन' के बीच की दुविधा पर तेरे द्वरा फैलाए गए व्यर्थ के विमर्श का उचित उत्तर, माकूल ज़वाब .

हमने पूछा- क्या ? 

बोला-  सभी किन्तु-परन्तु, मुमकिन-संभव के बीच मोदी जी के ईश्वरतत्व की स्थापना का रहस्य. 'मुमकिनामि युगे-युगे' . 

हमने कहा- तोताराम आज तो तूने देश की गंगा-जमनी तकज़ीब के मेल को एक कालजयी, हिन्दुस्तानी नाम दे दिया और मेल भी ऐसा मेलदार कि कहीं से भी बेमेल नहीं लगता . काश, योगी जी भी अपने नाम-परिवर्तन-यज्ञ में इसी 'हिंदुस्तानियत' को अपनाएं . लगता है जैसे गीता में कृष्ण उद्घोष कर रहे हों- 

'मुमकिनामि युगे-युगे' . 

बोला- ज़र्रा नवाजी का शुक्रिया . वैसे बिना कारण जाने हर बात पर प्रशंसा करना बहुत ही घटिया चमचागीरी का लक्षण है . 

कारण साफ़ है कि तूने 'मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं' का बहुत ही सटीक उत्तर दे दिया .  

बोला- यह आजकल कोई काम न करने की बजाय हर बात पर, केवल हिंदुत्व के एजेंडे की गोदी मीडिया की मुर्गा लड़ाऊ और कपड़ा फाडू  'हिंदू-मुसलमान' बहस वाला सामान्य उत्तर नहीं है . यह बहुत तार्किक, सप्रमाण और ऐतिहासिक तथ्यों से युक्त उत्तर है .  

हमने कहा- तो फिर स्पष्ट किया जाए . 

बोला- कृष्ण ने बचपन में अपनी छोटी अंगुली पर कुछ दिनों के लिए गोवर्धन पहाड़ उठा लिया, हनुमान जी एक बार पहाड़ उठाके ले आये तो अब तक दुनिया उन्हें गीतों में गा रही है . लेकिन आज मोदी जी ने समस्त ब्रह्माण्ड को अपने बुजाओं में बांध और तौल रखा है . 

तुझे पता है आज तक २६ जनवरी (गणतंत्र दिवस ) पर कब-कब बसंत पंचमी आई ?

हमने कहा- पता नहीं .

बोला- १९४७ से अब तक इन ७५ वर्षों में १९८५ और २००४ में बसंत पंचमी गणतंत्र-दिवस (२६ जनवरी) को आई. 

हमने कहा- इसमें क्या है ? संयोग है . क्या किसी के प्रयत्नों से ऐसा होता है  ? 

बोला-  संयोग नहीं होता है तो महापुरुष बना लेते हैं . नेहरू महान थे .  इंदिरा गाँधी बहुत शक्तिशाली थीं लेकिन बहुत बार कोशिश करने पर भी अपने जीते जी ऐसा नहीं कर सकीं .  राजीव के समय में यह शुभ संयोग २६ जनवरी १९८५ को बना . अटल जी के समय में २००४ में यह संयोग बना तो सही लेकिन उसके बाद उनकी सरकार चली गई . और मज़े की बात यह भी कि राजीव को भी दूसरी टर्म नहीं मिली . 

अब उनके बाद, देश को ठण्ड में ठिठुरता देखकर किसी तरह मोदी जी २६ जनवरी को यह संयोग बनाने में सफल हो सके हैं . बहुत मुश्किल होता है . जाने कैसे-कैसे अंतरिक्ष में इतनी तेजी से घूमते ग्रह-नक्षत्रों को कभी रोकना तो कभी किसी को सामान्य से तेज गति से चलाना पड़ता है . कृष्ण को तो केवल एक बार बड़ी मुश्किल से जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्य को थोड़ी देर के लिए बादलों में छिपाना पड़ा था . 

क्या मोदी जी की इस अद्भुत क्षमता का कोई समतुल्य इस दुनिया के इतिहास में है जो गृह-नक्षत्रों की चाल को नियंत्रित कर सके ? 

हमने कहा- नहीं . 

बोला- तभी तो कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था- 

यदा यदा हि जिज्ञासा जाग्रत भवति हे तोता 

अन्धास्था स्थापनार्थाय 'मुमकिनामि युगे-युगे 

हमने कहा- तोताराम, इस बार भी बसंत पंचमी २६ जनवरी को है और अगले साल चुनाव .हमारी तो बाईं आँख भी  फड़क रही है .  कहीं...... 


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Jan 23, 2023

तोताराम की तपस्या


तोताराम की तपस्या 


घर के ठीक सामने एक बिजली का खम्भा है . खम्भा तो तब भी था जब यहाँ खेत था लेकिन तब इस पर कोई लाइट नहीं जलती थी . अब जब विकास हुआ तो बल्ब लगा और फिर एल ई डी भी लेकिन नीयत और नियति अब भी वही है . महंगाई भत्ते के एरियर और आयकर में छूट की सीमा की तरह विशेषज्ञ अनुमान लगते रहते हैं लेकिन स्थिति कुल मिलाकर 'अच्छे दिन' की तरह ही बनी हुई है .

दस दिन से हमारे सामने वाले इस खम्भे नंबर  ४८/३७० पर की लाइट नहीं जल रही है . सोचा शिकायत करें तभी एक दिन हमें लगा कि लाइट ने झपका-सा मारा . आस बंधी. सोचा क्या पता अच्छे दिनों की तरह यह एक असंभव संभावना सच ही हो जाय . लेकिन नहीं . चुनावी वादों की तरह फुस्स. आज तो पक्का शिकायत करेंगे ही . 

लाइट न होने के कारण सुबह-सुबह बरामदे में सावधानी से जाते हैं . आज गए तो लगा जैसे कोई धुंधली-सी आकृति सफ़ेद कमीज पहने हुए बैठी थी . हम तो बनियान, इनर, कमीज, स्वेटर और ऊपर टोपा, मफलर और खादी भण्डार वाला शुद्ध ऊनी गाउन . और यह एक कमीज में . लगता है या तो इतना गरीब है कि पूरे कपड़े नहीं या फिर कोई हठयोगी या आत्महत्या का सस्ता नुस्खा आजमा रहा है .

हमने कहा- क्या बात है भाई, यह ठीक है कि इस बार की भयंकर सर्दी को देखते हुए, जनहित के लिए मोदी जी बसंत पंचमी २६ जनवरी को ही ले आये हैं . मोदी है तो मुमकिन है . फिर भी बसंत पंचमी होने मात्र से तो जीवन में बसंत नहीं आ जाता . ठण्ड खा जाओगे तो मुश्किल हो जायेगी . 

बोला- यह तपस्वियों का देश है .

-अरे, यह तो तोताराम है . 

हमने कहा- है तपस्वियों का देश लेकिन तेरे पास कौनसी ४० हजार की कमीज है जो ठण्ड नहीं लगेगी . 

बोला- जब १५ लाख का सोने के तारों से अपना नाम कढ़ा सूट पहनकर कोई व्यक्ति फकीरी का दावा कर सकता है तो मैं भी इस एक सौ रुपए की कमीज में तपस्या क्यों नहीं कर सकता ? बुद्ध भी तो राजपाट त्याग कर और महावीर सभी वस्त्र त्यागकर महान बने थे .  

हमने कहा- किसे पता है हजारों साल पुरानी बात है . आजकल पहले वाले तपस्वी कहाँ हैं ? अब तो लोग गंगा में डुबकी भी कमर में रस्सा बांधकर लगाते है , न अपने कर्मो पर विश्वास और न ही गंगा के पतित पावनत्व पर भरोसा. गुफा में समाधि लगाने जाते हैं तो भी फोटोग्राफर और कमांडो को साथ ले जाते हैं . अब कहाँ हैं एक टांग पर दस-दस हजार वर्ष तक खड़े होकर तपस्या करने वाले ? 

छोड़ इस तपस्या को . पूजा का सस्ता और सुरक्षित रास्ता अपना . रात को जयपुरी रजाइयां ओढ़, दिन में शाहतूस की शाल, गरम पानी से स्नान कर, तेल-फुलेल लगाकर, तिलक छापा करके बैठ गद्दी पर, भक्तों से पाँव छुआ और माल पेल. और मौका मिल जाए और पट जाए तो भक्तिनों को स्वर्ग की सैर करा . नेताओं के साथ मिलकर वोटों की दलाली कर . तपस्या में क्या रखा है ? बुद्ध, सुकरात, ईसा, गाँधी, लिंकन ने क्या पाया तपस्या से ? 

बोला- लेकिन यह दुनिया तपस्या से ही आगे बढ़ती है . तपस्या से ही इसके विकारों को दूर किया जा सकता है जैसे उपवास से शरीर की अशुद्धियों का दहन . 

हमने कहा- ठीक है, कर तपस्या लेकिन एक कमीज में ठण्ड से मरने से क्या फायदा ? कोई कम्बल ही डाल ले . ला दें ? 

बोला- जब राहुल एक टी शर्ट में देश को दक्षिण से उत्तर तक नाप सकता है तो क्या मैं शर्ट में घर से तेरे बरामदे तक नहीं आ सकता ? कम्बल देखकर स्वर्ग में ऐश करने वाले देवता और चढ़ावा खाने देवतुल्य पुजारी भड़क जायेंगे . वे यही मौका देखते रहते हैं. ये ही तो किसी की तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं भेजते हैं . अप्सराएं भी बेचारी क्या करें, नौकरी जो ठहरी . बदनाम खुद होती है और काम देवताओं का होता है . राहुल ने कश्मीर में बूंदाबांदी से बचने के लिए थोड़ी देर के लिए एक रेनकोट जैसा क्या डाल लिया; लगे लोग चिल्लाने - 'हो गई तपस्या भंग . पहन लिया जैकेट' . 

कुछ पहनो तो कहते हैं - ऐश , न पहनो तो नाटक, हो सकता है नीचे कुछ पहन रखा हो . मैं तेरे चक्कर में अपनी तपस्या भंग नहीं करूंगा . 

हमने कहा- राहुल तो यह तपस्या इसलिए कर रहे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की गई तपस्या का लाभ कांग्रेस को मिला लेकिन धीरे-धीरे सत्ता सुख भोगने वालों की भीड़ ने उसके तपस्या के सारे पुण्य खर्च कर दिए . अब जब बैंक बेलेंस ख़त्म हो गया तो यह सब आवश्यक ही था .

बोला- इसीलिए तो कहता हूँ तपस्या बहुत ज़रूरी है किसी भी दल, देश, समाज के लिए . सिद्धि तपस्या के बिना नहीं मिलती. हाँ, बुद्ध, महाबीर, नानक,गाँधी की तपस्या दुनिया के हित के लिए थी तो भस्मासुर, रावण आदि की तपस्या अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए थी . आज भी जिन्होंने तपस्या की है उसका फल उन्हें मिल रहा है और अपनी सिद्धियों के दुरुपयोग के कारण उनके भी पुण्य क्षीण हो जायेंगे तो वे ज़मीन पर आ जायेंगे . फिर उनकी हालत भी उस तपस्वी जैसी हो जायेगी जिसकी धोती आसमान में सूखती थी . और जिसने एक बगुले को श्राप देकर  अपनी तपस्या गँवा दी . 

हमने तोताराम को अन्दर लेते हुए कहा- तू न तो भस्मासुर की तरह दुष्ट तपस्वी है और न ही किसी महापुरुष के सिद्धांतों की हत्या करके उसका मंदिर बनाकर धंधा करने वाला धूर्त पुजारी .

यह भी सच है कि इस दुनिया में किसी और की तपस्या पर कर्मकांड का धंधा करने वाले आपस में धर्मों के नाम पर झगड़ते हैं. हमने तो कभी दो दार्शनिकों को एक दूसरे का दुश्मन नहीं पाया . वे सब तो एक दूसरे का आदर करते हैं क्योंकि दर्शन धन्धा नहीं है . इसीलिए वे न तो चेले मूंडते हैं और न ही जादू के तमाशे दिखाते हैं और न ही प्रश्नों से घबराते हैं . दर्शन तो विवेक और ज्ञान का विकास है .जब कि तथाकथित आस्था के अड्डे अंधविश्वास के स्रोत और  धोखे की दुकानें हैं . 

खैर, आज तेरी इस तपस्या की सिद्धि स्वरूप चाय के साथ गाजर का हलवा भी है . चल अन्दर . 



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Jan 20, 2023

मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं है

मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं है 


आज तोताराम बहुत उत्साहित था, बोला- बस, दो चार महिने की बात और है . अहंकारी चीन को पीछे छोड़ देंगे . 

हमने कहा- क्या तो चीन और क्या उसकी औकात ? मोदी जी तो उसे नाम लेने लायक भी नहीं समझते . अब तो हम जी २० के अध्यक्ष हैं. दुनिया के सबसे धनवान और शक्तिशाली देश कोई कदम उठाने से पहले मोदी जी की तरफ देखते है . हम ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं . हाँ, यह बात और है कि अर्थव्यवस्था के जितने बड़े  आकार में संसाधनों का बंटवारा ७ करोड़ लोगों में होता है उतने में हम १४० करोड़ को निबटाते हैं . मतलब ब्रिटेन का एक व्यक्ति हमारे बीस व्यक्तियों जितने साधनों का उपयोग करता है . फिर भी तुलना करके खुश होने में क्या नुकसान है . दिल के बहलाने को गालिब...

बोला- मैं अर्थव्यवस्था की बात नहीं कर रहा . मैं तो जनसँख्या की बात कर रहा हूँ . २०२३ में हम चीन को पीछे छोड़ देंगे . मोदी है तो मुमकिन है .

हमने कहा- यह हम नहीं मानते . मोदी जी ने देश के विकास और सेवा के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत ले रखा है . वे संयम, सेवा, निग्रह, अनुशासन के साक्षात् विग्रह हैं . देश जी जनसँख्या वृद्धि में उनका कोई योगदान नहीं है . और न ही मुसलमानों और धर्म निर्पेक्षियों का कोई योगदान है . हाँ, उनके कुछ उत्साही, राष्ट्रवादी और हिंदुत्त्ववादी भक्तों का ज़रूर योगदान है जिन्होंने मुसलमानों के खतरे से देश को बचाने के लिए हिन्दुओं को पांच-पांच, सात-सात बच्चे पैदा करने की प्रेरणा देकर देश को यह गौरवपूर्ण उपलब्धि दिलवाई है . लेकिन हम एक बात ज़रूर दावे से कह सकते हैं मोदी जी के रहते कुछ भी 'मुमकिन' नहीं हो सकता .

बोला- क्या बात कर रहा है ? पिछले ३० वर्षों में दो-दो बार पूर्णबहुमत की सरकार देश को दी. नोटबंदी करके आतंकवादियों और काले धन वालों की कमर तोड़ दी . क्या आज तक कोई ऐसा कर पाया ? जोशीमठ और बद्रीनाथ के इलाके में मकानों में आने वाली दरारें मोदी जी के एक इशारे से बंद हो गई कि नहीं ? हैं कहीं कोई समाचार ?

हमने कहा- दरारें बंद नहीं हुई है . सरकार ने 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' पर मीडिया से बात करने पर रोक लगा दी है .  इस देश के लोगों को शाम को समाचारों में अपने शहर का तापमान सुनकर सर्दी-गरमी लगती है . जैसे कि हिन्दू खतरे में, हिन्दू खतरे' कह कर लोगों को डराया जाता है वरना हजार साल से दोनों शांति से रहते रहे हैं कि नहीं ? यदि इन दोनों का सांप-नेवले, कुत्ते-बिल्ली, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और गाँधी जैसा ३६ का आंकड़ा होता तो कब के सब लड़-लड़ कर मर गए होते . 

बोला- कुछ भी कह मैं तेरी इस बात से कभी भी सहमत नहीं हो सकता कि 'मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं' . अरे, सारी दुनिया कह रही है- 'मोदी है तो मुमकिन है'. बिलकिस बानो के संस्कारी बलात्कारियों को समय से पूर्व छोड़ने का काम करके भी गुजरात में दो तिहाई बहुमत आ गया . तब ऐसा कौन सा काम है जो मोदी जी के रहते मुमकिन नहीं हो सकता ? वे लोगों को जूते मारकर भी जीत सकते हैं . उनका क्या कोई विकल्प है ? 

हमने कहा- विकल्प तो किसी का भी नहीं होता . क्या हाथी मक्खी का विकल्प हो सकता है ? हाथी बोझा ढो सकता है . राजा के जुलूस की शान बढ़ा सकता है लेकिन पौधों में परागण के लिए तो कीट-पतंगे चाहियें कि नहीं  ? क्या कोहीनूर हीरा या हजार करोड़ की कोई मूर्ति या मंदिर एक गिलास पानी का विकल्प हो सकता है ? क्या आँख का काम पैर से और पैर का काम आँख से चलाया जा सकता है ? समाज को अपनी-अपनी सीमाओं से आगे निकलना है तो अंधे और लँगड़े की दोस्ती की तरह मिलकर रहना होगा ? किसी के पास आँख है तो किसी के पास पैर . 

बोला- बहुत हो गई तेरी यह 'विकल्प विवेचना' . बस, मुझे तो एक बात का साफ़-साफ़ उत्तर से कि 'मोदी है तो मुमकिन' क्यों नहीं हो सकता ?'

हमने कहा- जैसे फैब इण्डिया 'जश्न-ए-रिवाज़' नहीं मना सकता उसे 'परंपरा का उत्सव' ही मनाना पड़ेगा . 'हिजाब' से हिंदुत्व खतरे में पड़ आता है इसलिए हिन्दू महिलाओं को 'हिजाब' की जगह 'घूँघट' करना पड़ेगा . घूँघट हरियाणा और राजस्थान की शान है . इकबाल की प्रार्थना 'लब पे आती है दुआ ' सुनकर बच्चा तो बच्चा अस्सी साल के बूढ़े का भी मन डोल जाता है और वह मुसलमान हो जाता है . इसलिए मोदी जी कभी भी 'मोदी है तो मुमकिन है'  नारे से सहमत नहीं होंगे . 

हाँ या तो वे तेजस्वी सूर्य से आज्ञा ले लें या फिर नारा बदल दें - 'मोदी है तो संभव है ' . 

बोला- लेकिन इसमें अनुप्रास का फ़ोर्स, लय और प्रवाह नहीं . मोदी जी को बात में फ़ोर्स चाहिए फिर चाहे भाषा कोई भी हो . 

हमने कहा- तो फिर यह नारा किसी और महापुरुष के नाम कर दें . 

बोला- कैसे ?

हमने कहा- 'शाह है तो संभव है' . 

बोला- मोदी जी की छाया में इतनी गुंजाइश नहीं है . वे कैमरे और अपनी छवि के बीच किसी मक्खी तक को बर्दाश्त नहीं करते . 

हमने कहा- तो झेलो उर्दू से हिंदुत्व को खतरा. फिर मत कहना कि बताया नहीं .   







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Jan 19, 2023

2023-01-19 संस्कार, भूल और उत्साह


संस्कार, भूल और उत्साह 


जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, यह तेजस्वी सूर्या क्या पहली बार प्लेन में बैठा है ? 

बोला- कौन ? वह तेजवंत सूर्य जो दक्षिण दिशा से उदय हुआ है ? 

हमने कहा- और कौन हो सकता है ? मोदी जी हैं तो सूर्य दक्षिण से भी उदय हो सकता है . वैसे अब तो उत्तरायण का समय हो गया है फिर भी यह सूर्य तो दक्षिणायन ही रहेगा क्योंकि चुनाव जो हैं . 

बोला- लेकिन तूने यह क्या बात कही ? क्या यह तेजस्वी सूर्य पहली बार प्लेन में बैठा है ? यह तो उगता हुआ तेजस्वी सूर्य है . सारे आकाश को निरंतर नापता रहता है, निरंतर हवा में ही रहता है .  बूढ़े और चुके हुए नेता ही कौन बस में चलते हैं ? फिर यह तो सत्ताधारी दल के युवा मोर्चे का राष्ट्रीय अध्यक्ष है . इसका तो ज़मीन पर चलना एक समाचार हो सकता है, प्लेन में बैठना नहीं . फिर भी तुझे यह सूर्या की औकत को कम करके नापने की हिम्मत कैसे हुई कि क्या यह प्लेन में पहली बार बैठा है ?

हमने कहा- हमें क्या पता ? हमने तो नागरिक उड्डयन मंत्री सिंधिया के हवाले से एक समाचार पढ़ा है कि तेजस्वी सूर्या ने भूल से प्लेन की आपात खिड़की खोल दी जिससे प्लेन लेट हो गया . 

बोला- तो क्या किसी निजी हवाई कंपनी के इन छोटे-मोटे दैनिक कार्यक्रमों में भी संबंधित मंत्री इन्क्वायरी काउंटर पर बैठकर लोगों के सवालों के जवाब देंगे ?

हमने कहा- और क्या ? अब मंत्रियों के पास काम ही क्या रह गया है ? अधिकतर तो मोदी जी कर ही लेते हैं. सबसे बड़े नदी क्रूज़ को हरी झंडी भी जल परिवहन मंत्री की बजाय मोदी जी ने दिखाई तो ऐसे में मंत्री यही काम करेंगे. और तो और जब कल परसों यह क्रूज बीच रास्ते में रुक गया तो कारण बताने भी सरकार को ही सामने आना पड़ा. लगता है ये सब निजी कंपनियों के पे रोल पर आ गए हैं . वैसे अघोषित रूप से तो हैं ही . 

लेकिन सूर्या द्वारा यह आपात खिड़की खोलने की बात समझ नहीं आई .

बोला- भाई, युवा है, जिज्ञासा रहती ही है . मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बनाने के लिए जाने किस-किस खिड़की को खोलने के लिए जोर लगाना पड़ेगा . युवा है, जोर लगा दिया और खुल गई खिड़की . चलो इस बहाने टेस्ट भी हो गया कि सिस्टम काम कर रहा है या नहीं ? 

हमने कहा- यह भी तो हो सकता है कि बन्दे ने गुटखा खा रखा हो और थूकने के लिए खिड़की खोल दी हो . 

बोला- वे संस्कारी हैं, बिलकिस बानो केस वालों की तरह . पहले तो गुटखा खायेंगे ही नहीं और यदि खायेंगे तो 'कमलापसंद' ही खायेंगे क्योंकि कमला को 'कमल' पसंद है और कमल हमारा निशान . 

हमने कहा- इसमें भी एक लोचा है. सूर्या शुद्ध संस्कारी और सुसंस्कृत हैं . कमला तो ठीक है लेकिन 'रिवाज़' की तरह वे उर्दू शब्द 'पसंद' को कैसे पसंद कर सकते हैं. हो सकता है 'गणेश खैनी' प्रिय हो . या 'तुलसी डबल जीरो' .लेकिन इनमें भी क्या 'डबल जीरो' से  'भावना आहत' होने का खतरा नहीं हो सकता ?

बोला- शायद इसमें कोई खतरा न हो क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले अपने नाथद्वारा में शिव की ३६९ फुट ऊंची मूर्ति 'मिराज़' खैनी वाले ने बनवाई है . हिन्दू भक्ति और आस्था का बड़ा प्रताप है, सभी पाप धुल जाते हैं .  



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Jan 17, 2023

रोड़ शो : बरामदे से शौचालय तक

रोड़ शो : बरामदे से शौचालय तक 


 भले ही राम भक्तों की खोपड़ी बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की तुलसी पर समीक्षा के कारण हाथ लग गए मुद्दे को लेकर उबल रही हो, पारा सातवें आसमान पर हो लेकिन हमारे यहाँ का पारा कई दिन से शून्य के आसपास ही मंडरा रहा है . लगता है शून्य का आविष्कार हमारे शेखावाटी के ही किसी गणितज्ञ ने किया था . 

आज हवा नहीं है . वैसे देशभक्तों की बात और है जिनकी हर तरफ हवा बह रही है , हमारी तो कभी हवा रही ही नहीं .हाँ, हवा न होने के कारण धूप का मज़ा लिया जा सकता. जनवरी से हमने बरामदा सत्र का समय बदलकर आठ बजे का कर दिया है . इसके लिए हमें कौन सरकार के आदेशों का इंतज़ार करना है . कम से कम यहाँ तो हमारा कानून चलता है . न सही खाते में पंद्रह लाख, न सही अच्छे दिन, न सही दो करोड़ नौकरियाँ . सीकर में कम से कम धूप का सुख तो है ही . 

जैसे ही चाय आई, तोताराम ने कहा- इसे ढककर रख दे . पहले लघु शंका का समाधान करूंगा, फिर जल का सेवन और तत्पश्चात चाय . 

हमने कहा- क्या बात है तोताराम, आज तो बड़ी राष्ट्रीय हिंदी बोल रहा है .

बोला- क्या किया जाए मास्टर, जब से इकबाल की  'लब पे आती है दुआ' प्रार्थना करवाने वाले मास्टर को निलंबित किया गया है तब से हिन्दुस्तानी के शब्दों से बचने में ही समझदारी है . 

हमने कहा- तो हमें यह सब तफसील बताने की क्या ज़रूरत है. जा कर आ, सब सोलह संस्कार .तुझे क्या शौचालय का रास्ता नहीं मालूम ?

बोला- रास्ता तो मालूम है लेकिन मैं वहाँ तक रोड़ शो करते हुए जाना चाहता हूँ . इसलिए अपनी वह बीस साल पुरानी पहिये वाली सेकेण्ड हैण्ड कुर्सी यहाँ ले आ .

हमने कहा- तू क्या अपने को मोदी जी जितना बड़ा नेता समझता है जो जयसिंह रोड़ से पटेल चौक होते हुए एन डी एम सी कन्वेंशन सेंटर तक जाने के लिए रोड़ शो की तरह,  बरामदे से शौचालय तक जाने के लिए रोड़ शो करे . उनकी तो मज़बूरी है . चुनाव आ रहे है. ऐसे में अगर घर में बैठे रहे तो जनता सचमुच घर ही बैठा देगी . इसलिए  झंडी, फर्रियां, ढोल,नगाड़े, गायक, वादक जुटाने पड़ते हैं.  उनका तो हर रास्ता चुनाव के वैकुण्ठ की तरफ ही जाता है . हो सकता है वे घर में भी एक कमरे से दूसरे कमरे में भी नए-नए वस्त्र पहनकर वाइपर की तरह हाथ हिलाये हुए जाते होंगे . 

बोला- यह सच है कि बरामदा संसद का आजीवन उपाध्यक्ष हूँ . कोई इस बरामदा संसद में नहीं आना चाहता जब तक कि अडवानी जी की तरफ ज़बरदस्ती न बिठा दिया जाए . मेरे इस पद को किसी चुनाव का कोई खतरा नहीं फिर भी तुझे एक मास्टर की इतनी सी हसरत भी बर्दाश्त नहीं.  न सही पंद्रह किलोमीटर का रोड़ शो. पांच मीटर में ही तसल्ली कर लेंगे . पोती फोटो ले लेगी . यहीं कहीं लगा देंगे- बरामदा संसद के उपाध्यक्ष तोताराम का पांच मीटर लम्बा भव्य रोड़ शो. 

हमने कहा- तुझे किसी रोड़ शो की जरूरत ही क्या है ? रोज सुबह जब चप्पलें फटकारता हुआ आता है तो पूरी पारदर्शिता पूर्वक तेरा पूरा रोड़ शो हो जाता है . गली के कुत्ते तक तेरी यह भव्य वेशभूषा और चप्पलों की फटफट ध्वनि पहचानते हैं . 

बोला- तो क्या मोदी जी कोई नहीं पहचानता जो व रोज रोज रोड़ शो करते हैं ?

हमने कहा- उन्हें पहचानना इतना सरल नहीं है . वे काव्यशास्त्र में सौन्दर्य की तरह नित नूतन हैं . 

लिख बैठ जाकी छवी गहि-गहि गरब गरूर 

चतुर  चितेरे   जगत  के  भये  न  केते   कूर 

उस नायिका का सौन्दर्य इतना नवीन है कि उसकी छवि का अंकन करने में जाने जगत के कितने ही चित्रकार मूर्ख सिद्ध हो चुके हैं. 

हर अवसर पर अलग-अलग तरह की दाढ़ी, अलग-अलग तरह का विन्यास और अलग-अलग तरह का ईवेंट. तू क्या खाकर उनका मुकाबला करेगा ? 

बोला- न सही ४० हजार रुपए का मशरूम; दो रुपए किलो की सैंजने की पत्ती का परांठा तो खा सकता हूँ . अब मैं खुद ही अपनी कुर्सी ठेलूँगा और खुद ही अपने मुंह से पूं पूं करके बैंड की ध्वनि निकालूँगा . तू मुझे कुछ भी कह लेकिन जब आदमी आत्मप्रशंसा, आत्ममुग्धता और आत्मप्रदर्शन पर उतर आता है तो फिर कैसी शर्म .   




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Jan 15, 2023

मंझेश्वर महादेव


मंझेश्वर महादेव 



आज संक्रांति है.  वैसे संक्रांति तो हर महिने में ही होती है लेकिन संक्रांति कहलाने का अधिकार जनवरी में आने वाली संक्रांति, 'मकर संक्रांति' को ही है. पिछले तीन दिन से सूरज की आँख-मिचौनी चल रही थी. आज सूरज निकला है लेकिन धूप में गरमी नहीं है वैसे ही जैसे विकास की बात करने वाली सरकार के विदेशी निवेश के  मनमाने दावे हैं लेकिन जनता को तो विकास के नाम पर ठण्ड में ठिठुरती, 'धँसती'  देव भूमि ही दिखाई दे रही है . मतलब धूप के बावजूद हवा के कारण ठण्ड है. कहीं विकास की हवा उलटी तो नहीं बहने लगी ?

ठण्ड का मौसम है, ठण्ड होनी ही चाहिए . हमें कौन वोट माँगने जाना है ? कौन 'भारत जोड़ो' यात्रा का 'तोड़' निकालने के लिए मंथन करना है  ? कौन सर्दी और मावठ में हाफ बाजू की एक सफ़ेद टी शर्ट में २५ किलोमीटर चलना है . मियाँ की दौड़ मस्जिद तक, २०२४ का चुनाव जीतानार्थियों की दौड़ 'राम मंदिर' तक,  देशभक्तों की दौड़ नागपुर तक, विकासार्थियों की दौड़ मोदी जी तक और छिद्रान्वेषियों की दौड़ नेहरू तक, भागवत जी के अनुसार एक हजार साल से युद्धरत वीरों के लिए रसोई में सब्जी काटने के चाकू की धार तेज़ करने तक है, हमारी दौड़ सुबह दूध लाने, अपनी 'पेट' कूरो को घुमाने और बरामदे में बैठकर चाय पीने तक है . जहां तक 'जोड़-तोड़' का सवाल है, वह हमारे वश का काम नहीं है .हाँ, अब घुटने ज़रूर जुड़ने लगे हैं और कभी-कभी सांस भी टूटने लगी है . हमारे पास कौनसा अपने घुटने का ओपरेशन करने वाले डॉक्टर राणावत को देने के लिए पद्मश्री है या 'माननीयों' की तरह एम्स में भर्ती होकर घुटना बदलवाने का विशेषाधिकार है . 






बहू ने सूर्य के उत्तरायण होने के इस विशिष्ट पर्व के उपलक्ष्य में तिल का एक लड्डू और एक जलेबी खाने के साथ परोसी. हो गया उत्सव . हमें कौन  २०१४ का चुनाव जीतने से पहले मोदी जी की तरह किसी सलमान खान के साथ   पतंगोत्सव मनाना था . फिर भी न चाहते हुए हम इस सांस्कृतिक लपेटे में आ ही गए . जैसे ही अपनी 'पेट' कूरो को लेकर निकले दरवाजे के सामने पड़े कटी पतंगों में पैर उलझ गया . पजामी के कारण पैर तो बच गया फिर भी थोड़ी खरोंच लग ही गई . बैंड ऐड लगाकर रजाई में घुसे थे कि दरवाजे पर खटखटाहट हुई . वैसे दस्तक शब्द ठीक रहता लेकिन हम अपने 'हिंदुत्व' को खतरे में नहीं डालना चाहते . 

हम पैर में चोट के बहाने लेटे रहे . पत्नी ने ही दरवाजा खोला जैसे गंगापुत्र मोदी जी 'गंगा विलास' क्रूज़ के लोकापर्ण के कारण जोशीमठ की त्रासदी का कोई 'मुमकिन' हल निकालने के लिए नहीं जा सके . धामी को ही प्रतिघर एक लाख रुपए का आश्वासन देने के लिए भेज दिया .

तोताराम ने कमरे में घुसते हुए कहा- अरे, अधर्मी ! न जा सका मंडी के पास 'मंझेश्वर महादेव' की प्राण-प्रतिष्ठा और पौष-बड़ा महोत्सव में. कोई बात नहीं लेकिन कम से कम यहाँ तो उठकर आदरपूर्वक भोले बाबा का प्रसाद ले लेता .

हमने कहा- तोताराम, सरकार ने जो १८ महीने के महंगाई भत्ते का एरियर हजम कर लिया उसकी भरपाई इस तरह 'पौष बड़ों' से होने वाली नहीं है . 

बोला- पेंशनर के प्राण एरियर में . जो बीत गई उसे भूल जा .

हमने कहा- कौन भूलता है और कौन भूलने देता है . देश आज़ाद हो गया . एक न्यायपूर्ण संविधान लागू हो गया लेकिन भागवत जी अब भी एक हजार से युद्धरत हिन्दुओं से चाकू तेज़ करवा रहे हैं . अब भी आज़ादी के अमृत महोत्सव के शुभ दिन से पहले मोदी जी 'विभाजन विभीषिका दिवस' मनवाना चाहते हैं . 

तोताराम ने हमारे पैर के टखने के पास चिपके बैन ऐड की तरफ इशारा करते हुए कहा- भूतकाल को छोड़ और वर्तमान की बात कर . बता टखने पर यह क्या हो गया ?

हमने कहा- हो क्या गया . शाम को 'कूरो' को घुमाने के लिए निकले थे.  पैर घर के सामने पड़े मंझे में उलझ गया और लग गया कट . यह तो अच्छा हुआ जो गला नहीं फंसा .लेकिन ये मंझेश्वर महादेव कहाँ से आ गए ?

बोला- महादेव हैं. कहीं से भी प्रकट हो सकते हैं . ज्ञानवापी में फव्वारे से, सेन फ्रांसिस्को में रोड ब्लोकर से, कहीं से प्रकट हो जाते हैं बाबा. कोई सच्चे मन से पुकारे तो ! अब देश पर चीनी मंझे का जो दुर्निवार संकट आया है उसके लिए बाबा को अवतार लेना पड़ा है . यही हालत चलती रही तो हो सकता है अगले साल 'मंझा संकटमोचक हनुमान' भी प्रकट हो जायेंगे .

हमने कहा- लेकिन यह मंझा क्या कोई ऐसी आपदा है जिसके लिए भगवान् को अवतार लेना पड़े . ऐसे तो भगवान की आफत आ जायेगी . कितने अवतार लेंगे ?  मंझा क्या कोई अपने आप उड़कर चीन से आ जाता है ? भारत के व्यापारी भारत सरकार की मर्ज़ी से आयात करते हैं . बंद कर दें आयात . 

बोला- बंद कैसे कर दें. निर्यात से तीन गुना आयात करते-करते भी सीमा पर कुचरनी करता रहता है चीन . 

हमने कहा- तो फिर लाल आँख दिखा दो, ५६ इंच का सीना दिखा दो. भाग जाएगा दुम दबाकर . 

बोला- ये सब बातें यहाँ सभाओं में ताली पिटवाने के लिए चलती हैं. सीमा पर दमखम चाहिए . 

हमने कहा- अब दमखम में क्या कमी रह गई ? जी २० के अध्यक्ष बन तो गए . इससे बड़ा और कोई पद क्या होगा ?

बोला- ये फालतू बातें छोड़ और बाबा का प्रसाद खा . सब ठीक होगा. खैर मना, जो गला नहीं कटा . जब तक पतंग उड़ना बंद न हो तब तक रोज 'ॐ मंझेश्वराय नमः' की एक माला फेराकर . 

हमने कहा- हो सकता है अबकी 'मन की बात' में परीक्षा में मनोबल बढ़ाने के टिप्स की तरह मोदी जी चीनी मंझे से बचने का उपाय बताएं . 

बोला- वे गाँधी जी के अनुयायी हैं . उस बुरे चीन की ओर से उन्होंने आँख, कान, जुबान सब बंद कर रखे हैं . उसका तो नाम तक नहीं लेते . जब हमारे पास मंझे से बचने के लिए अपनी शुद्ध राष्ट्रीय तकनीक है 'बाबा मंझेश्वर महादेव का मन्त्र जाप' तो फिर क्यों किसी के मुंह लगना ? 

हमने कहा- तो यह भी किसने कहा है कि मकर संक्रांति  पर पतंग उड़ाना ज़रूरी है ? रजाई में घुसे राम नाम लेकर काट दो ठण्ड के दिन . 

बोला- ऐसे छोटे-मोटे संकटों से घबराकर संस्कृति को कैसे छोड़ दें . 

हमने कहा- लेकिन पतंग उड़ाना और मंझा जब दोनों ही चीन से आ रहे हैं तो इससे हिन्दू संस्कृति कैसे खतरे में पड़ जायेगी ?

बोला- अब मुझे क्या पता लेकिन जब बात हिन्दू संस्कृति की निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी . क्या पता किसी 'मंझोपनिषद' में कोई वेद विज्ञानी किसी देवता का किसी अप्सरा के साथ पतंग उड़ाने का प्रसंग और उसका  आध्यात्मिक महत्त्व ढूँढ़ निकाले और उसका बहिष्कार करने का हिंदुत्व विरोधी षड्यंत्र करने के अपराध पर तपस्वी छावनी के महंत जगदगुरु परमहंस आचार्य की तरह तेरी जीभ काटने वाले के लिए १० करोड़ रुपए का इनाम घोषित कर दें .








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Jan 13, 2023

देश का सीना


देश का सीना 


आज जैसे ही तोताराम बैठने को हुआ, हमने कहा- अभी रुक .

बोला- क्यों ? क्या इस खाली पड़े स्टूल पर कोई और आने वाला है ?  यह कौनसा इंदौर का प्रवासी सम्मेलन है जिसमें अधिकारी विदेशी मेहमानों के लिए लगाईं कुर्सियां पहले से हथिया लें और स्थानाभाव के कारण  मेहमानों को अन्दर न जाने दिया जाय .   

हमने कहा- स्थानाभाव नहीं है, बैठना . आराम से बैठना . यह स्टूल तेरे ही लिए है लेकिन बैठने से पहले हम तेरे सीने को नापना चाहते हैं . 

बोला- मुझे किसी अग्निवीर की नौकरी के लिए मेडिकल चेक अप नहीं करवाना . 

हमने कहा- इस देश में बेकारी इतनी है कि अग्निवीर तक के लिए लाखों अर्जी आ रही हैं और तथाकथित 'डिफेन्स अकेडेमियाँ अपने विज्ञापनों में अपने यहाँ से चुने गए अग्निवीरों के फोटो छापकर विज्ञापन कर रही हैं .जैसे हालात चल रहे हैं उन्हें देखते हुए कल को यह नौबत आने वाली है कि कस्बे के किसी चौराहे या घंटाघर पर दिहाड़ी की उम्मीद में बैठे मजदूरों में से सीमा पर बलिदान देने के लिए डेली वेजेज पर सैनिक भर्ती करके ले जाए जायेंगे . उसके लिए भी पर्याप्त लोग मिल जायेंगे . पेट बहुत बुरा होता है . आज भी गरीबों के वे बच्चे ही सेना में फ्रंट पर लड़ते हैं .  

 बोला- लेकिन इस समय तो बहुत ठण्ड है . कपड़े उतारना संभव नहीं है . 

हमने कहा- कपड़े उतारने की कोई ज़रूरत नहीं है . ऐसे ही नाप लेंगे .    

हमने तोताराम का सीना नापकर कहा- तोताराम, यह क्या ? सीधे २८ इंच से ३६ इंच .लगता है सबसे ज्यादा गर्व तुझे ही हुआ है .

बोला- किस बात का गर्व ? इस बात का कि सरकार १८ महिने का डीए का एरियर खा गई ?

हमने कहा- समाचार नहीं पढ़ा- देश का सीना हुआ चौड़ा .  आर आर आर के 'नाटू नाटू' गाने को मिला गोल्डन  ग्लोब . 

बोला- इसमें सीना चौड़ा होने की क्या बात है ?   बनियान, इनर, कमीज, स्वेटर, और फिर जैकेट हटाने के बाद वही २८ इंच का २८ इंच मिलेगा . हो सकता है मानव विकास सूची में श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान से भी नीचे भारत का नंबर देखकर एक दो इंच कम हो गया हो . 

हमने कहा- यह सब तो विकसित देशों का भारत के विरुद्ध षड्यंत्र है. जलते हैं हमारे वैश्विक नेतृत्त्व की क्षमता और सफलता से .  

तोताराम ने कहा- मास्टर, रुक . चाय अभी थोड़ी देर बाद पिऊंगा . अभी आता हूँ . 

हमने कहा- कहाँ जा रहा है  ? यदि लघु शंका आ रही है तो यहीं शौचालय में कर ले . 

बोला- नहीं, सोचता हूँ यह गर्व से कम और वस्त्रों से फूला हुआ सीना, गर्मी में पिघलने से पहले एक बार चीनी सेना को दिखा आऊँ जो हमें तरह-तरह से परेशान कर रही है . 

हमने कहा- यहीं ठीक है . ५६ इंच वाले  तक चीन का नाम लेने से डरते हैं . चीन का मंझा तो भारत में आने से रोक नहीं पाते तो तू अपना यह ३६ इंची और वास्तव में २८ इंची सीना दिखाकर क्या कर लेगा ? 


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Jan 4, 2023

2023-01-03 कितने वाशिंगटन


कितने वाशिंगटन 

 

आज तोताराम ने आते ही बड़ा विचित्र प्रश्न किया . वैसा ही विचित्र जैसे किसी तीस-चालीस साल के युवा से नौकरी या महंगाई की बात करने पर कोई देशभक्त पूछे कि जब गाँधी देश का विभाजन करवा रहा था तब तू क्या कर रहा था ?

अब सब तो इतने अलौकिक और आध्यात्मिक होते नहीं कि पिछले जन्मों का हिसाब -किताब मालूम हो . जब इस जन्म की उलझनों से सांस आये हो कुछ सूझे . 

प्रश्न था- भारत में कितने वाशिंगटन हैं ? 

हमने कहा- जनरल नोलेज के मामले में हमारा देश बहुत पहले से विश्वगुरु है . जब यहाँ के युवक विशेषरूप से मुसलमान, अधिक कमाई के लिए अरब देशों में जाते थे तो लोगों का भूगोल इतना ही था कि सबको ईराक गया हुआ ही मानते थे . सन २००० में जब हम पहली बार यूएसए गए तो हमारे प्रिंसिपल ने आने के बाद पूछा- जोशी जी, आप कौनसे अमरीका गए थे ?ठीक है, दक्षिण अमरीका और उत्तर अमरीका दो महाद्वीप हैं लेकिन इन दोनों में पचासों देश हैं और उनमें से एक है यूएसए- संयुक्त राज्य अमरीका . मतलब उन्हें अमरीका और संयुक्त राज्य अमरीका में फर्क नहीं मालूम  . 

वैसे आजकल धंधा बन चुके मीडिया और वाट्सऐप युग में अज्ञान और उसका प्रसारण लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार बन चुका है लेकिन बीस साल पहले रिटायर हो चुका एक अध्यापक इतना अज्ञानी हो सकता है, हमने कल्पना भी नहीं की थी .लेकिन आज के समय में जब और इतनी कल्पनातीत मूर्खताएं और बदमाशियां देख रहे हैं तो यह भी सही, फिर भी कहा- हे तोताराम, अंग्रेजों के यहाँ आने से वहाँ के बहुत से स्थानों के नाम यहाँ भी पहुँच गए जैसे सलेम भारत में भी है और ब्रिटेन में भी . जब वे अमरीका में गये तो एक सलेम वहाँ भी बसा दिया .  अमरीका में बोस्टन के पास एक सलेम है . हमारे मित्र आलोक मिश्र वहीँ रहते हैं . अबरडीन ब्रिटेन में तो है ही, पोर्टब्लेयर में भी एक अबरडीन बाज़ार है . 

हमने तो ऐसा कभी सुना-पढ़ा नहीं कि भारत में कोई वाशिंगटन है . हाँ, अमरीका में एक राज्य है पश्चिम में वाशिंगटन और पूर्व में एक है वाशिंगटन डीसी जो अमरीका की राजधानी हैं जिस पर ट्रंप के हारने से क्षुब्ध होकर उनके भक्तों ने हमला कर दिया था . 

बोला- मैनें भी कभी, कहीं नहीं पढ़ा कि भारत में कोई वाशिंगटन है लेकिन क्या बताऊँ आज ही एक ‘विश्वसनीय’ अखबार में एक समाचार पढ़ा जो कुछ इस प्रकार है-

वाशिंगटन | मध्यप्रदेश के कोतमा से कांग्रेस विधायक सुनील सर्राफ ने अपने जन्म दिन पर ‘मैं हूँ डॉन’ गाने पर डांस करते हुए ‘हर्ष फायर’ कर दिया . 

हमने कहा- विधायक किसी भी दल का हो, डॉन ही होता है . यदि सत्ताधारी दल का हो तो और उच्चस्तर का संस्कारी डॉन हो जाता है जो ‘हर्ष फायर’ ही नहीं राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए किसी विधर्मी महिला से सामूहिक बलात्कार तक कर सकता है . वैसे विधायक कांग्रेस का होने के कारण नरों में उत्तम गृहमंत्री ने तत्काल कार्यवाही के आदेश भी दे दिए हैं . 

बोला- मैं डॉन और विधायक की नहीं, वाशिंगटन (मध्यप्रदेश ) भारत में होने का ‘विश्वसनीय’  प्रमाण दे रहा था . 

हमने कहा- कोई अखबार खुद ही खुद को संस्कारी या विश्वसनीय कहे तो उससे क्या होता है ? दो-पांच हजार में ऐसे ही पत्रकार और  संपादक मिलेंगे जिन्हें गदा, गधा और गद्दा में ही अंतर नहीं पता .जिनके अनुसार आशा, संभावना और आशंका  पर्यायवाची हैं .

बोला- यह भी तो हो सकता है कभी योगी जी इधर आ निकले हों और किसी विनायकपुर का नाम वाशिंगटन कर गए हों .

हमने कहा- योगी ऐसा पाप नहीं कर सकते . वे तो मुसलमानों से जुड़े किसी भी नाम को बदलने के लिए बेचैन रहते हैं . सुबह आदमी ‘इलाहाबाद’ से निकलता और शाम को’ प्रयागराज’ लौटता है .एक बार हैदराबाद गए तो जीतने पर उसे भाग्यनगर बनाने का वादा कर दिया . ठीक भी है,जब रोटी-पानी नहीं दे सकें तो जनता को ऐसे ही झुनझुने पकड़ाए जाते हैं .   

बोला- तो फिर यह हो सकता है कि एक बार ‘मामा’ उर्फ़ शिवराजसिंह चौहान अमरीका गये थे और वहाँ से लौटकर राज्य की सड़कों को ‘न्यूयार्क’ जैसी बनाने का जुमला फेंकने लगे . अमरीका की नक़ल के चक्कर में क्या पता, मध्यप्रदेश में एक ‘वाशिंगटन’ ही बसा दिया हो . मामा जो करें सो कम है . एक मामा थे शकुनी जिन्होंने काबुल से आकर अच्छे भले हस्तिनापुर को तालिबानिस्तान बना दिया . 

हमने कहा- तो फिर न सही अमरीका, नए वर्ष में मामा के वाशिंगटन ही हो आ . 

बोला- मुझे वह झूठा भभका नहीं चाहिए जो लखनऊ में ही टेलीग्राफ की नक़ल पर ‘द डेली टेलीग्राफ’ बनाकर मोदी जी को विश्व की आशा बता देता है या जिस यूनिवर्सिटी में एक भी विद्यार्थी न हो और जिस पर धोखाधड़ी में जुर्माना हो चुका हो उसके नाम से ३५ हजार करोड़ के निवेश का अर्द्धसत्य फैलाया जा रहा हो .कभी जाना होगा तो असली वाशिंगटन ही जायेंगे . 

हमने कहा- लेकिन यह भी तो हो सकता कि तेरे पिछले कारनामों के कारण अमरीका तुझे वीजा ही न दे .  

 


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