Nov 22, 2022

मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय

मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय 


आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने अपना स्मार्ट फोन कर दिया और बोला- देख।  

हमने देखा, यह तो हमारा ही फोटो था। परसों तोताराम २०-२० क्रिकेट में इंग्लैण्ड की जीत के उपलक्ष्य में पकौड़े  लाया था।  फोटो में हम पूरी मुट्ठी भरकर पकौड़े उठाये हुए थे और मुंह में भी पकौड़े भरे हुए थे।  ऐसा लग रहा था जैसे पेटू ब्राह्मणों द्वारा कहा गया वाक्यांश सार्थक हो रहा है-

परान्नं दुर्लभं लोके मा शरीरे दया कुरु।  

हमने कहा- यह भी कोई फोटो है ? क्या उपयोगिता है ऐसे फोटो की ? लगता है मुफ्त का माल है और पेले जा रहे हैं।  

बोला- आजकल ऐसा ही ज़माना है।  अब एक काम कर, तू मेरा चाय पीते हुए एक फोटो ले ले।  कल कोशिश करते हैं किसी अखबार के लोकल संस्करण में घुसाने की।  शीर्षक होगा- मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय।  

वैसे भी आजकल अखबार वालों के पास कोई समाचार होते भी नहीं।  ऐसे समाचार यश के आकांक्षी और फोटोजीवी खुद ही दे जाते हैं और छपने पर आभार भी मानते हैं और मौके बे मौके कुछ भेंट पूजा भी कर देते हैं।  वैसे कोई भी अखबार कोई भी ढंग की खबर छपने की जोखिम नहीं लेता।  क्या पता किस समाचार से किसकी कोई भावना आहत हो जाए या कौन सा समाचार सरकार के विरुद्ध चला जाए। पता नहीं, कब कौन ऍफ़ आई आर दर्ज़ करवा दे या सरकारी विज्ञापन खतरे में पड़ जाएँ। गंगा में तैरती लाशें दिखाने पर पता नहीं ईडी वाले अखबार को ही गयाजी न पहुंचा दें।  

हमने कहा- तो यही रह गया है लोकतंत्र का चौथा खम्भा !

बोला- जब राजनीति ही ऐसी रह गई है जिसमें एक दूसरे पर निराधार और घटिया आरोप लगाने और नाटक करने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है तो अखबार भी क्या करें। 

हमने कहा- मुद्दे तो एक नहीं हजारों हैं।  घोटाले, बलात्कार, बेरोजगारी, अपराध, कुप्रबंधन। किसी के पास कोई इलाज, कोई विजन, कोई समाधान नहीं है।  इसलिए सब इधर-उधर की नौटंकी कर रहे हैं।  

उधर केजरीवाल गुजरात में ऑटो रिक्शे में घूम रहे हैं, उधर राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा में डांस कर रहे हैं, इधर स्मृति ईरानी आणंद में गोलगप्पे खा रही है।  और उधर मोदी जी ! यहां जनता का बैंड बजा-बजा कर मन नहीं भरा तो जी-२० सम्मेलन में इंडोनेशिया का कोई पारम्परिक वाद्य बजा बजाने के लिए चले गए हैं।  मैंने तो उनका एक फोटो गुरूद्वारे में वाश बेसिन में हाथ धोते हुए भी देखा था।  

हो सकता है कल को बड़े लोगों का मल-मूत्र त्याग करते हुए फोटो भी जनता को उपलब्ध होने लग जाए।  

तोताराम बोला- तो ऐसे में  मास्टर का पकौड़े खाते हुए और तोताराम का चाय पीते हुए फोटो छाप जाए तो क्या गुनाह हो गया। 

ले ले मेरा चाय पीते हुए फोटो।  इसके बाद खाना खाकर चलेंगे किसी अखबार में यह ब्रेकिंग न्यूज देने।  




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Nov 18, 2022

दुआओं का असर

दुआओं का असर 


आज तोताराम को आने में कुछ विलम्ब हो गया।  

तमाम सुबह क़यामत का इंतज़ार किया लेकिन जब नहीं आया तो उसके चाय वाले गिलास को जैसे ही ठिकाने लगाने के लिए हाथ बढ़ाया पता नहीं, कहाँ से तोताराम प्रकट हुआ और बोला- अरे, दस-पांच मिनट की देर क्या हुई कि तेरा ईमान डोल गया।  अपनी वाली के बाद मेरे वाली चाय पर भी नीयत ख़राब कर ली।  तेरा हाल भी नेताओं जैसा हो रहा है।  खुद तो जितनी बार भी विधायक या सांसद बन जाते उतनी ही पेंशनें  पेलेंगे और चालीस-चालीस साल वालों को एक पेंशन देने में हजार नखरे।  डीए भी ऐसे रुला-रुलाकर देंगे जैसे कोई भीख दे रहे हों।  चाय ढककर रख दे।  पहले ये पकौड़े खा।  मैं तो चाय और पकौड़े दोनों सूँत कर आया हूँ। चाय बनेगी तो एक और पी लूँगा नहीं तो कोई बात नहीं। 

हमने कहा- आज तो बड़ा मेहरबान हो रहा है जैसे कि आजकल नेता हिमाचल और गुजरात में तरह-तरह की रेवड़ियां बाँट रहे हैं।  

बोला- आज पहली बार दोनों भाइयों की दुआएं एक साथ फली हैं ना ।  

हमने कहा- हमने तो तेरे साथ कोई दुआ नहीं मांगी।  

बोला- तू मेरे साथ कब से आने लगा।  तेरा तो मुझसे नेहरू और मोदी जी वाला रिश्ता है।  मैं तो भारत और पाकिस्तान की दुआओं के फलने की बात कर रहा हूँ। 

हमने कहा- पाकिस्तान तो मुस्लिम देश है, हमारा भाई कैसे हो सकता है ? 

बोला- क्या कौरव और पांडव भाई भाई नहीं थे।  इस २०-२० क्रिकेट में उसने हमारे हारने की और बाद में हमने उसके हारने की दुआ मांगी और मज़े की बात देख मालिक ने दोनों की सुन ली।  दोनों ही हार गए।  

हमने तोताराम के लाये अधिक से अधिक पकौड़े मुट्ठी में भरते हुए कहा- इसी पर तो बन्दर और दो बिल्लियों की कहानी बनी है।  इसी भ्रातृप्रेम के चक्कर में तो अंग्रेज दो सौ साल हम दोनों को रगड़ते रहे।जैसे कि आज भी भारत की हिन्दीतर भाषाओं और हिंदी की लड़ाई में अंग्रेजी ने कब्ज़ा जमा रखा है।   

यह वैसा ही आशीर्वाद है जैसा एक विधवा अपने पैर छूने वाली सुहागिन को देती है- हो जा बहना, मुझ जैसी।   

बोला- फिर भी अब हमें ब्रिटेन के जीतने में भी संतोष है। क्या तू इतनी उदारता नहीं दिखा सकता। अब तो ब्रिटेन पर भी अपने ब्राह्मण भाई,सुनक का राज है।  कल हम जिसके उपनिवेश थे वह आज अपने अंडर में आ गया है।  यह सुनक उसी  शौनक ऋषि का बाप है जो सप्तऋषियों में शामिल है और जो कभी भारत में १० हजार शिष्यों का गुरुकुल चलाता था। इस प्रकार ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सच सिद्ध हो गई और एक प्रकार से भारत २०-२० वर्ल्ड कप जीतेगा।  

हमने कहा- इस हिसाब से तो पाकिस्तान भी खुश हो सकता है कि सुनक के पूर्वजों की जड़ें कभी गुजरांवाला में थी।  

बोला- इसी तरह सोचेगा तो कभी न कभी विश्वबन्धुत्त्व तक भी पहुँच जाएगा।  पाकिस्तान बाबरी मस्जिद का ध्वंस करवाने वाले आडवाणी जी और महान अर्थशास्त्री मनमोहन जी पर भी गर्व कर सकता है।ये दोनों भी वर्तमान पाकिस्तान से ही भारत आये थे। और तो और चाणक्य पाकिस्तान स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र थे और संस्कृत का आदि वैयाकरण पाणिनी भी वर्तमान पाकिस्तान का ही था।  

हमने कहा- और इसमें यह भी जोड़ ले कि सिक्ख धर्म का पवित्रतम स्थान ननकाना साहिब पाकिस्तान में है और मोदी जी के चुनाव क्षेत्र काशी के विश्वनाथ का ओरजिनल स्थान 'कैलाश' चीन में है।  

बोला- तभी तो एक शंकरचार्य जी मक्का तक में 'मक्केश्वर महादेव' बता रहे हैं।  

हमने कहा- इस प्रकार तो धर्मद्रोही कुछ भी कहें ज्ञानवापी वाला फव्वारा पक्कम पक्का शिवलिंग है ।  




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Nov 17, 2022

कुछ खाया भी कर


कुछ खाया भी कर 


कूड़ा फेंककर आये और सीढ़ियों पर चढ़ने लगे तो पैर लचक गया।  तोताराम ने हमारा हाथ थाम लिया।  जैसे ही अंदर आकर बैठे, बोला- कुछ खाया कर। 

हमने कहा- खाते तो हैं दो रोटी सुबह, दो रोटी शाम को।  दोपहर में चाय और दो बिस्किट। और क्या खाएंगे इस बुढ़ापे और महंगाई में।  

बोला- मेरा मतलब कुछ पौष्टिक। 

हमने कहा- अब इस पेंशन में कौनसा शिलाजीत या हिमालय का ४० हजार रुपए किलो का मशरूम खा लें।  बाड़े में जो सैंजने का पेड़ लगा है उसके फलियां तो आती नहीं सो जितने भी पत्ते आते हैं उन्हीं को तोड़कर, सुखाकर पाउडर बना रखा।  कभी-कभी उसकी रोटियां बनवा लेते है, डाक्टर ने परांठे खाने से तो मना कर रखा है। और क्या खाएं ?

बोला- बुरा न माने तो एक सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ उपाय है तो सही।  मोदी जी ने कल ही हैदराबाद में कहा है कि मैं रोजाना दो-अढ़ाई किलो गालियां खाता हूँ जिससे मुझे ताकत मिलती रहती है। वैसे इस देश में गालियां तरह-तरह की होती हैं। किस प्रकार की, किस भाषा की, कितनी, कब, किसके साथ सेवन करनी चाहिए यह तो नहीं बताया।  फिर भी जनहित में यह खुलासा करने के लिए उनसे निवेदन किया जा सकता है। 

सबका तो ५६ इंच का सीना होता नहींजो इतनी गालियां पचा सकें। वैसे सामान्य आदमी के लिए तो सौ-दो सौ ग्राम ही बहुत है। तेरा काम तो ५० ग्राम में ही हो जाएगा।  

मोदी जी ने बताया है कि उनके शरीर में एक विशेष व्यवस्था है जो गालियों को पौष्टिक ऊर्जा में बदल देती है जैसे फोटो वाल्टिक सेल धूप को बिजली में। यह पता करना पड़ेगा कि तेरे आमाशय में वह व्यवस्था है या नहीं।  नहीं है तो क्या इम्प्लांट हो सकती है ? 

हमने कहा- तोताराम, हिंदी का अध्यापक होकर भी तू मोदी जी की बात नहीं समझा।  अरे, गाली कोई वस्तु थोड़े ही होती है। मोदी जी इतने शालीन हैं कि किसी को 'हत्तेरे की' भी नहीं कहते। उनके अनुसार तो आलोचना भी गाली ही होती है।जो किसी भी देश समाज के विकास में बाधा डालती हैं।  सच्चे और अच्छे नागरिक का कर्तव्य है कि वह 'जय-जय' के अतिरिक्त कुछ न बोले।   

जैसे गाँधी जी ने एक अंग्रेज द्वारा लिखे गए गालियों वाले पत्र में से काम की एक चीज 'आलपिन' निकालकर रख ली और कागज फेंक दिया। वैसे ही वे तो अपनी सेवा की लगन की बात कर रहे थे कि वे लोगों की आलोचना की परवाह नहीं करते बल्कि  उससे प्रेरणा लेकर देश की और अधिक सेवा करते हैं।

जो कुछ करते नहीं, या करने योग्य नहीं होते उन्हें कोई गाली भी नहीं देता।  हमें न कोई गाली देता है और न ही कोई हमें देखकर 'मोदी-मोदी' की तरह 'जोशी-जोशी' या 'तोता-तोता' चिल्लाता है।  

बोला- तो इसका मतलब है कि गाँधी और नेहरू ने वास्तव में बहुत काम होगा जो आज भी भक्त लोग अपने आराध्य के साथ गाँधी के लिए गोडसे और सावरकर की आड़ में तथा नेहरू के लिए सुभाष और पटेल की आड़ में नित्य प्रति गाली सहस्रनाम का पाठ करते रहते हैं।  

तभी तो  'चलती का नाम गाड़ी' में कहा गया है- 

खून-ए-जिगर पीने को, लख्ते जिगर खाने को, 

ये ग़िज़ा मिलती है लैला तेरे दीवाने को।  

हमने कहा- गालियों और समाज की ट्रोलिंग के इसी महत्त्व को समझते हुए हमारे विद्वानों ने कहा- 

घटं भिन्द्यात्पटं छिन्द्यात्कुर्याद्रासभरोहणम्।
येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत्॥

चाहेअपना घड़ा फोड़कर, अपने कपड़े फाड़कर या गधे पर सवार होकर ही सही लेकिन पुरुषों को कोई भी उल्टा-सीधा काम करके प्रसिद्ध होने का प्रयत्न करना चाहे। 

क्योंकि 'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा'।  

नाम होगा तो कुछ न कुछ काम भी हो ही जाएगा। 

पूजा ढिंचेक नाम की मधुर गायिका का नाम सारे दिन नेट पर झख मारने वाले ज़रूर जानते होंगे कि वह अपने बकवास रैप गीतों से भी अपना स्थान बना चुकी है और यूट्यूब पर अपने वीडियो से ठीकठाक कमाई भी कर रही है।  


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Nov 16, 2022

स्टीव जॉब्स की चप्पलें


स्टीव जॉब्स की चप्पलें 


सभी लतें बोरियत से शुरू होती हैं। और बोरियत के साथ बढ़ती भी जाती हैं। जैसे बोर होने पर बीड़ी पीने वाला ज्यादा बीड़ी पीता है और खैनी खाने वाला ज़्यादा खैनी खाता है।  कोई बड़ा नेता या राजा हुआ तो कोई ऊल जलूल कानून बना देगा। और कुछ नहीं तो नोटबन्दी ही कर देगा। लॉक डाउन ही लगा देगा।  

चूँकि जानवर के पास ये सुविधाएं और अधिकार नहीं होते तो वह जैसी भी संभव हो तो कोई तोड़-फोड़ करता है।  कई वर्षों से घर में कोई न कोई पालतू जानवर कुत्ता-बिल्ली, तोता आदि रहे हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि ये भी  बोर होने पर काट-पीट, कुतरना जैसा कुछ न कुछ कर ही डालते हैं।  

हम अपने पालतू कुत्ते 'कूरो' को रात को खुला छोड़ते हैं तो वह भाग-दौड़, उछल-कूद कर लेता है।  कल रात को उसे खोलना भूल गए तो उसने अपना काम कर दिया।  मतलब पास में पड़ी हमारी पुरानी चप्पलों का एक पट्टा काट दिया।  वैसे चप्पलें दो साल पुरानी हैं। महँगी भी नहीं हैं। अपने मूल्य के अनुसार सेवा भी दे चुकी हैं। अब उन्हें हमारी तरह निर्देशक मंडल में रखा जा सकता है।  लेकिन चूँकि कभी कभार बरसात में उन्हें अब भी पहना जा सकता था इसलिए 'विश्व विरासत' और सनातन संस्कृति की तरह संभाले हुए थे। अब तो वे मरम्मत के लायक भी नहीं बचीं तो कूड़े के साथ उन्हें भी फेंकने जा रहे थे कि तोताराम आ गया।  

बोला- चप्पलें क्यों फेंकने जा रहा है ? 

हमने कहा- अब कब तक संभालकर रखें। दो साल पहले मंडी के सामने कानपुर वालों की 'दिवाली धमाका' सेल लगी थी तो १५०/- रुपए में लाये थे।  अब और कब तक घसीटेंगे ? 

बोला- आजकल नई नहीं, पुरानी चीजों का बड़ा क्रेज चल रहा है। आज ही समाचार है कि स्टीवजॉब्स की पुरानी  चप्पलें नीलम होने वाली हैं जो उसने १९७०-८० में पहनी थीं ।ब्राउन लेदर बार्किस्टॉक वाली इन एरिजोना सेंडल को जूलियन ऑक्सन्स ने नीलामी के लिए  ४८ लाख रुपए की  शुरुआती कीमत पर रखा है।  

और अंततः ११७ लाख रुपए में बिकी।   

हमने कहा- ये सब भरे पेट के, कुंठाओं का धंधा करने वाले लोगों के तमाशे हैं।  बुद्ध मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे लेकिन उन्हीं के दाँत को मंदिर में रख रखा है।  यह ठीक है कि स्टीवजॉब्स एप्पल का सहसंस्थापक था लेकिन इसी से उसके जूते राम की पादुका नहीं हो जाते।  कैंसर होने पर वह मन्त्र-तंत्र में चक्कर में भारत के तांत्रिकों के संपर्क में भी रहा बताते हैं। उसकी चप्पलों से लोग कौन सी महान प्रेरणा लेंगे। 

ऐसे में हमारी चप्पलें !

बोला- हमारी चप्पलें व्यर्थ नहीं हैं।  उनका अब भी अर्थ है।  वे सरल और सुविधाजनक रास्तों पर चलकर नहीं घिसी हैं।  उन्होंने जीवन के कंटकाकीर्ण रास्तों पर अस्सी साल का सफर किया है। अपने विद्यार्थियों को भी हमने तर्क और बौद्धिकता के रास्ते पर चलना सिखाया है।  

हमने कहा- लेकिन अब 'जय अनुसन्धान' के युग में इंग्लैण्ड से सेमीफाइनल खेलने से पहले ही पाकिस्तान को फाइनल में रगड़ देने के लिए टी वी स्टूडियो में क्रिकेट पर चर्चा करने के लिए शंखध्वनि के साथ ज्योतिषियों का सम्मलेन शुरु हो जाए तो उस देश में 'समुझि मनहि मन रहिये'।  

बोला- और फिर देख भी लिया विश्वगुरु की ज्योतिषीय वैज्ञानिकता का हश्र। जुबान तालू से चिपकी हुई है। बोलती बंद है।   

हमने कहा- जब निकल ही पड़े हैं तो कूड़ा फेंक ही आते हैं।  उसके बाद बैठेंगे।    


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Nov 8, 2022

कोरोना काल में हजामत

कोरोना काल में हजामत 

कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने लोकतंत्र को अधिक सक्रिय और जनोन्मुख बनाने की गरज से ‘सूचना के अधिकार’ के रूप में सामान्य जन को एक बड़ा हथियार दे दिया। जब तक आप जनता और शासित रहते हैं तब तक आपको हर बात को जानने की उत्सुकता रहती है लेकिन जैसे ही आप सरकार और सत्ता का हिस्सा बन जाते हैं तब आपको लगता है कि जनता का कर्तव्य शासन के पीछे-पीछे चलना अर्थात अनुशासन है। तब आप उससे केवल सुनने की अपेक्षा करते हैं। प्रश्न आपको बेचैन कर देते हैं।

कुछेक अपवादों की बात और है लेकिन अधिकतर सत्ता में आते ही कुछ दिनों में ही जवान, स्वस्थ, सुन्दर और रोबदार हो जाते हैं। पूज्यपाद हो जाते हैं, उनके पाद में साहित्यकरों, कवियों, मीडिया, अखबारों को खुशबू आने लगती है। नास्तिकों को भी उनमें भगवान की छवि दिखाई देने लगती है। उनके शब्द मन्त्र बन जाते हैं। वे तर्कातीत हो जाते हैं। ऐसे में लोगों की उत्सुकता और बढ़ जाती है विशेषरूप ऐसे नर से नारायण बने सेवकों के बारे में जानने की।

कोरोना ने अपने फ़टाफ़ट एक्शन से जनता को डरा दिया। जैसे कि आजकल सामान्य आदमी डरा हुआ है कि पता नहीं कोई कब उसकी दाढ़ी, पायजामा आदि देखकर लॉन्चिंग के लायक समझ ले। कब उसके फ्रिज में रखे मांस को किसी पूज्य जीव का मांस समझकर धर्मप्राण लोग उसका तीया-पांचा कर दें। सुबह जिससे फोन पर बात हुई, पता लगा उसे कोरोना हो गया और अस्पताल पहुँचते-पहुंचते राम नाम सत्य हो गई। श्मशानों में चिताएं और लकड़ियां काम पड़ गईं। रक्त संबंधों वालों ने डर के मारे लाशें लेने से मना कर दिया। जाने किन किन दूसरे धर्म के अज्ञात कुलशील लोगों ने इंसानियत के नाते साहस कर लाशों को निबटाया। जिनका कोई हिसाब किताब नहीं बैठा उन्हें शववाहिनी गंगा में शरण मिली और इस बारे में लिखने-छापने वालों को लताड़ और ट्रोलिंग। व्यापार और सत्ता में बैठे असंवेदनशील लोगों ने नकली दवाओं और नकली वेंटिलेटर में पैसे कमा लिए। आपदा में अवसर खोज सकने वाले लोगों ने बिना टीके लगाए ही लाखों टीकों का बिल बनाकर भुगतान उठा लिया।




ऐसे में कुछ को तालाबंदी में बचाव नज़र आया तो कुछ ने ताली-थाली बजाकर अपना कर्तव्य निभाया लेकिन यह तय है कि सब ने तरह तरह के मास्कों के पीछे छुपने का सहारा लिया। लाखों मरे, करोड़ों बेरोजगार हुए, लाखों ने पलायन किया और हजारों रास्ते में ही स्वर्गारोहण कर गए । स्वार्थी सत्ताएं दिन में बंगाल में लाखों की रैली करके रात में दिल्ली में कोरोना कर्फ्यू का पालन करवातीं। अब जैसे जैसे लोगों ने कोरोना के साथ उसी सहज भाव से रहना सीख लिया जैसे नेता बनते ही किसी को भी खुदा स्वीकार कर लेना। अब कुछ लोगों में कोरोना काल के बारे में कई जिज्ञासाओं का ध्यान आने लगा है। कुछ साहस कर जानने की कोशिश करते हैं तो अधिकतर उनके द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं के बारे में अखबारों में पढ़कर की संतुष्ट हो जाते हैं।

अभी एक सज्जन ने कोरोना काल में जब तालाबंदी थी, सैलून बंद थे तब बंगाल चुनाव तक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ जितनी लम्बी हो चुकी या होने दी गई दाढ़ी और १५ अगस्त २०२१ तक लम्बी ही छोड़ दी गई मोदी जी की श्वेत दाढ़ी जो पुनः अमरीका जाते समय ट्रिम दिखाई दी गई दाढ़ी के बारे में जिज्ञासा प्रकट की और सूचना के अधिकार के तहत विस्तार से जानना चाहा तो संबंधित अधिकारियों ने इस प्रश्न को ही मूर्खतापूर्ण मानकर उत्तर देना उचित नहीं समझा।

जब हमने इस अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार पर तोताराम से चर्चा की तो बोला- कौन हैं ये ज्ञानपिपासु सज्जन ?

हमने कहा- अधिक तो नहीं जानते लेकिन कोई हैं कोई नीलेश प्रभु। वैसे पहले एक सुरेश प्रभु नाम के सज्जन भी हुआ करते थे। पता नहीं, अब कहाँ और किस हालत में हैं ?

बोला- मतलब कि मोदी जी की दाढ़ी इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि अब स्वयं प्रभु भी उसके बारे में जानने को उत्सुक हैं। और यह मामला सरकार ने भी इतना राष्ट्रीय महत्व का और गोपनीय समझा कि प्रश्न को मूर्खतापूर्ण बताकर पीछा छुड़ा लिया। वैसे मूर्खता और चालाकी में गहरा संबंध होता है। चालाक लोग बहुत बार मूर्खता की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। हो सकता है यह व्यक्ति देशद्रोही हो और भारत की सुरक्षा में सेंध लगाने की सोच रहा हो।

हमने कहा- मनुष्य के पास गर्दन से ऊपर का यह जो इलाका है वही महानताओं और सारी खुराफातों की जड़ है। इसी इलाके में षड्यंत्र करने वाला दिमाग है तो इसी इलाके में बहुरुपियापन है। यहीं सारी कुंठाएं हैं। प्रभु भी जब इसके बारे में कुछ नहीं समझ सके तो सूचना के अधिकार का सहारा लिया लेकिन वहाँ भी सफलता नहीं मिली।

दाढ़ी जहां नीचे की ओर जाकर अतल तल पाताल और रसातल की गहराई तक जाकर सक्रीय हो सकती है तो वहीँ ऊर्ध्वमुखी मूँछों की उच्चता अनंत आकाश, अंतरिक्ष और शून्य तक में है। हे तोताराम, इन्हें साक्षात् ब्रह्म समझ।

बोला- मास्टर, वास्तव में यह तो बहुत रोचक और महत्त्वपूर्ण विषय है। इस बारे में थोड़ा और प्रकाश डाल।

हमने कहा- संसार में मनुष्य के अतिरिक्त जितने भी प्राणी हैं वे उस स्वरूप से संतुष्ट हैं। वे उसे लेकर किसी प्रकार की कुंठा नहीं पालते। वे उसी रूप-स्वरूप को विकुण्ठ और उल्लास भाव से जीते हैं। किसी जानवर के मूँछें होती हैं किसी के नहीं। सभी के रंग आकर भिन्न भिन्न हैं और रंग भी लेकिन वे उन्हें किसी कुंठा के तहत न बदलते हैं और न उसे लेकर किसी निंदा-स्तुति में पड़ते हैं। और मनुष्य समाज में सारी शक्ति इसी में लग जाती है कि कौन किस जाति-धर्म का व्यक्ति किससे ऊँचा-नीचा, श्रेष्ठ और निकृष्ट है। किसके वस्त्र और किसकी दाढ़ी देशद्रोह का प्रमाण है और किसकी जाति और धर्म इतने श्रेष्ठ और संस्कारवान हैं कि उसे जघन्य दुष्कर्म के बावजूद समय पूर्व रिहा किया जा सकता है।

मनुष्य ही दाढ़ी रखता है और उसे कई कई रूपों और रंगों से सजाता है। गीदड़ होने पर भी किसी वीर जाति वाला किसी ख़ास तरह की मूँछें और दाढ़ी रखता है। वीरता और शारीरिक अक्षमता का संतुलन दाढ़ी और मूँछों से बनाता है। कमजोरों को एक ख़ास तरह की दाढ़ी और मूँछें रखने से रोकता है। अपने नाम के आगे ‘सिंह’ लगाकर खुद को शेर समझता है। जबकि कोई भी जानवर कोई सरनेम तो दूर नाम भी नहीं रखता। अपना परिचय वह स्वयं ही होता है। वह अपने साथ न तो कोई वर्तमान पद या भूतपूर्व लगाता है। उसे कोई पानी भी नहीं पिलाता। उसे अपनी रक्षा के लिए किसी कमांडो की ज़रूरत नहीं होती। सही अर्थों में मानवेतर जीव ही आत्मनिर्भर हैं। वे कुंठाहीन जीवन जीते हैं। मनुष्य तो पता नहीं दाढ़ी मूँछों जैसी किस किस चीज की कमाई खाता है।

बोला- और मास्टर, मनुष्य तो इन दाढ़ी मूँछों में छुपकर कई प्रकार के अपराध भी करता है। दाढ़ी, मूँछें, बुरका चश्मा लगाकर पुलिस, लोगों को या प्रेमिका के घर वालों को धोखा देता है। कभी दाढ़ी लगाकर संत बनकर लम्पटता करता है। कुछ लोग अपनी खास तरह की दाढ़ी के कारण पहचाने जाते हैं। फिर जब ते दाढ़ी-मूँछें जब पहचान बन जाती हैं तो पहचान के संकट के कारण दाढ़ी-मूंछों से पीछा भी नहीं छुड़ा सकते। रवीन्द्रनाथ, मार्क्स, हो ची मिह्न, लेनिन आदि यदि क्लीन शेव्ड हो जाएँ तो लोग तो लोग वे खुद ही खुद को नहीं पहचान सकेंगे। इसी तरह शी जिन पिंग चाहें तो भी दाढ़ी रखने का रिस्क नहीं ले सकते हैं।

हमने कहा- लेकिन हो सकता है दाढ़ी मूँछें रखने से किसी ख़ास प्रकार का साहस आ जाता हो ?

बोला- जैसे कमीज के नीचे दो-दो स्वेटर पहनने से आदमी का सीना कुछ बड़ा दिखाई देने लगे या दाढ़ी रखने से चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगे लेकिन सच तो सच ही है। विग लगाने वाला या बाल रंगने वाला जानता तो है ही कि असलियत क्या है। अभिनेता राजकुमार जीवन भर विग लगाकर गंजे होने की कुंठा और अधिक अनुभव करते करते ही चले गए।

हमने कहा-राम, कृष्ण दोनों को ही मूँछें देखने को नहीं मिलती। पता नहीं, आई ही नहीं या फिर दिन में चार बार शेव करते थे । दोनों ने मूँछों वाले रावण और कंस को मार दिया था। अपने राजनाथ जी बिना दाढ़ी मूँछों के ही ‘राज’ कर रहे हैं। ‘नाथ’ भी हैं और ‘सिंह’ भी।

बोला- बड़े आदमियों की बात और है। वे कब क्या करते हैं यह सामान्य लोगों को कभी कुछ पता नहीं लगता। हमारा क्या, हमने तो दाढ़ी बनाई या नहीं, हजामत करवाई या नहीं। या फिर दो चार महीने में ट्रिमर से खुद ही खुद को मूँड लिया। मैं तो कभी कभी यह सोचकर ज़रूर परेशान हो जाता हूँ कि सामान्य जनता का कोरोना काल में हजामत का क्या हुआ होगा।

हमने कहा- होना क्या था ? जनता और भेड़ का तो कोरोना काल क्या, हमेशा ही रोना रहता है। कोई भी, कभी भी मूँड़ देता है। यह बात और है कि भेड़ के अच्छे दिन कभी नहीं आते लेकिन मूँड़ने वाले ज़रूर सत्तासीन हो जाते हैं। कोई और न मूँड़े तो सेवकों की बातें सुनकर झुंझुलाहट में वह खुद ही अपने बाल नोंच कर हजामत की समस्या का हल निकाल लेती है।

बोला- और जिसे कभी भी कोई भी मूँड सकता हो उसे किसी दाढ़ी-मूंछ या किसी खास केश-विन्यास का चक्कर ही नहीं रहता।


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