Jul 28, 2022

2022 -07 -28 तोताराम की आहत आस्था

तोताराम की आहत आस्था 

 

आज तीसरा दिन है तोताराम से मन की बात किये हुए. हम किसी पहचान वाले के यहाँ सगाई के कार्यक्रम में रेवाड़ी गए हुए थे. ब्लॉग-लेखन तो खैर, कोई बात नहीं। वह कौन मोदी जी की मन की बात और प्रियंका चोपड़ा के ट्वीट की तरह आवश्यक सेवाओं में आता है.  लेकिन तोताराम से चाय पर चर्चा ! 

वास्तव में आदत बहुत बुरी चीज है. सुना है गुजरात के वैध या अवैध शराब पीकर मरने वाले तो खैर, मर गए. भागवत जी की सकारात्मक सोच के अनुसार मुक्त हुए समस्त भाव-बाधाओं से, जी एस टी और बेरोजगारी से. लेकिन जो बच गए उन्हें इलाज के बतौर अल्कोहल के इजेक्शन दिए जा रहे हैं. तभी कहा है ज़हर को ज़हर मारता है. विषश्य विषमौशधं। सो तोताराम का इंतज़ार करने की बजाय हम खुद ही उसके यहाँ पहुँच गए. 

बरामदे में बंटी मिला, घूम-घूमकर ब्रश कर रहा था. पूछा तो पता चला कि तोताराम अभी बिस्तर में ही घुसा हुआ है. हमने कुरेदा- लोग तो हैं कि देश सेवा के चक्कर में घंटे-दो घंटे भी नहीं सो पा रहे हैं और एक तू है जो अभी तक बिस्तर में पड़ा है. 

बोला- शुक्र है कि अभी तक जिंदा हूँ. बाकी दिल टूट गया है. 

हमने कहा- तेरे जैसे आदमी के दिल में टूट सकने के अतिरिक्त और कुछ करने का दम ही कहाँ है ? 

तेरी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया. 

फिर भी हुआ क्या ?

बोला- मेरी आस्था आहत हो गई है. 

हमने कहा- सलमान रुश्दी की ‘सेटानिक वर्सेज’ और तसलीमा नसरीन की ‘लज्जा’ के प्रकाशन से, पहलू खान की लिंचिंग और शम्भूलाल रेगर द्वारा बंगाली अफाराजुल की गेंती से हत्या कर कर दिए जाने या उदयपुर में कन्हैयालाल की दो मुसलमानों द्वारा नृशंस हत्या से तेरी आस्था आहत नहीं हुई. आज ही ऐसा क्या हो गया ?

बोला- ये सब तो धार्मिक मामले हैं. भारत एक प्राचीन और अनके धर्मों और सम्प्रदायों वाला देश है. जिनमें हजारों साल से तरह-तरह के झगडे-झंझट चलते रहे हैं. एक ही धर्म के फिरके आपस में झगड़ते रहे हैं. आस्था-स्थल तोड़ना, कत्ले आम करना आदि धर्म और राजनीति में कोई नई बात नहीं है. मेरी आस्था के आहत होने का कारण इन सबसे अलग है और गंभीर है.

हमें कहा- तो फिर चुपचाप क्यों बैठा है, उठा कोई भी हथियार चाकू, चिमटा, कैंची, झाडू जो भी सामने पड़े और निकल पड़ वीर राजपूतों की तरह केसरिया अमल या अमृत छककर और मचा दे मारकाट। 

बोला- इतनी हिंसा और क्रोध भी संभव नहीं।

हमने कहा- जब कुछ भी संभव नहीं तो फिर चुपचाप बैठ अग्निवीरों और गैस, डीजल और पेट्रोल उपभोक्ताओं की तरह. गुस्सा-कुंठा छोड़. हम तेरा मनोबल बढ़ाने के लिए रेवाड़ी से रेवड़ी लाये हैं. सच्चे देशभक्तों की तरह रेवड़ियों का प्रसाद ग्रहण कर और घर-घर तिरंगा फहरवाने के लिए तैयार हो जा.

बोला- मास्टर, इस रेवड़ी ने ही तो मेरा दिल तोड़ा है. वैसे तो यूपी वाले कहते हैं कि रेवड़ियां मेरठ की प्रसिद्ध होती है. पिछले कुछ वर्षों से लखनऊ और दिल्ली की रेवड़ियाँ पहली पायदान पर चल रही हैं. लेकिन अपने यहाँ तो रेवड़ियां रिवाड़ी की ही प्रसिद्ध हैं. तू ही क्या,इधर का कोई रेवाड़ी की तरफ से आता है तो रेवड़ियां ज़रूर लाता है. मेरी रेवाड़ी वाली मौसी तो याद है ना ? जब भी आती थी तो थैला भरकर लाती थी.  

 

अब मोदी जी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करते हुए कह दिया कि यह ‘रेवड़ी-कल्चर’ नहीं चलेगी। 

हमने कहा- वही एक्सप्रेस वे ना जिस पर चार दिन बाद ही गड्ढे पड़ गए थे. 

 

वैसे तो, अब तक सभी दलों में ‘रेवड़ी-वितरण’ चलता ही रहा है.कभी जनता में तो कभी बिकाऊ माननीयों में.  १५ लाख हर खाते में, दो करोड़ नौकरियाँ, साफ़ गंगा, फ्री सिलेंडर, उत्तर प्रदेश चुनाव में पांच किलो मुफ्त अनाज; ये सब रेवड़ियां नहीं तो क्या है ? 

बोला- वह तो चुनाव में थोड़ा बहुत करना ही पड़ता है लेकिन क्या किया जाए यह केजरीवाल सब खेल बिगाड़ रहा है. हमारे ही हथियार से हमें ही आहत कर रहा है. कभी हनुमान चालीस पढ़ने लग जाता, कभी तिरंगा लेकर भक्तों को राम मन्दिर के दर्शन करवाने के लिए अयोध्या ले जाता है. बिजली-पानी मुफ्त देकर चुनाव जीत रहा है, कभी कहता है पार्कों में ‘तिरंगा-शाखाएं’ लगायेंगे।  इस ‘केजरीवाल-कल्चर’  को ख़त्म होना चाहिए। मोदी जी ने कहा है, अब साइकल मुफ्त नहीं देंगे। ब्याजमुक्त ऋण पर देंगे। 

हमने कहा- खुद ही बैंक को ‘लेटर ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग’ देकर हजारों करोड़ का लोन लेकर भाग जाने वाले नीरव मोदियों की बात और है. लेकिन लोन पर साइकल लेने वाले कहाँ भाग जायेंगे ? जो लाखों बच्चे मध्याह्न भोजन और ड्रेस के लालच में स्कूल आते हैं वे कहाँ से लौटायेंगे। 

याद रख नेताओं के भाषण और दर्शन के लिए कोई नहीं आता. रैलियों में किराए भी भीड़ होती है. मन की बात ‘रेवड़ी प्राप्ति उत्सुक’ चतुर लोग सुनते हैं.

याद रखा,‘जहां-जहां कीचड़ : वहाँ-वहाँ कमल’ और ‘जहां-जहां कूड़ा : वहाँ-वहाँ झाड़ू’ . दोनों ही जगह बदबू। 

किसी सेवक में किसी को खुशबू नहीं आती. सब रेवड़ियों के लालच में आते हैं. 

रेवड़ी नहीं तो ‘तू नहीं और सही’. 

लोकतंत्र के रक्षक दरवाजे पर स्पेशल प्लेन लेकर गौहाटी ले जाने के लिए तैयार खड़े हैं.  



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Jul 19, 2022

2022-07-16 दूर के ढोल

2022-07-16 


दूर के ढोल 



तोताराम ने कहा- मास्टर, किसी की प्रशंसा में भले ही अतिशयोक्ति कर दो क्योंकि हमारे मनीषियों ने कहा है-

वचने  किं दरिद्रता. लेकिन निंदा करने या कोई कमी उद्घाटित करने से पहले दस बार सोचना चाहिए. 


हमने कहा- बिलकुल सही बात है. हम कोई सत्ताधारी नेता थोड़े हैं जो बिना सोचे-समझे हर उसको जो उनकी पार्टी में नहीं है या उनसे सहमत नहीं या उनकी जै-जैकार नहीं करता है उसकी हर बात में गलती निकालें, उसकी निंदा करें. उसे तो उसे, उसकी पार्टी और मर खप चुके उसके परिवार वालों तक को मुंह भर-भरकर गालियां दें.


ऐसे निंदक नेताओं की देखादेखी तो आजकल के युवा भी, जिन्हें चारों दिशाओं तक का पता नहीं, नेहरू-गाँधी को गाली निकाल देते हैं. 


बोला- लेकिन ‘निंदक’ तो अच्छे होते हैं. कबीर ने तो कहा भी है कि निंदक को प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान  देकर अपने निकट ही बसा लेना चाहिए. 


हमने कहा- कबीर जी की बात और थी. वे भले आदमी थे. अभिमानी नहीं थे.वे किसी की समीक्षा या समालोचना करने वाले को ही ‘निंदक’ कहते थे. गाँधी की तरह दूसरों और खुद से समझकर अपनी गलतियां निकालते-निकालते संत बन गए. ये संत नहीं; बहुत कुंठित, टुच्चे और छोटे लोग हैं. ये अपने पास चमचों के अलावा किसी और को नहीं रखते. और उन चमचों के लिए चार शब्दों को संसदीय माना जाता है- वाह, जय, धन्य और अद्भुत. इनके यहां कबीर वाले ‘निंदकों’ को ‘देशद्रोही’ कहा जाता है.    


फिर भी हमने बिना सोचे समझे किसकी निंदा कर दी. हम तो पॉलिटिक्स में भी नहीं हैं. हमें किसी की निंदा करके कौनसी अपनी इमेज बनाकर पद्मश्री या राज्यसभा की सदस्यता कबाड़नी है. .

 

बोला- हमने किसी शिल्पकार या नया अशोक स्तम्भ बनाने वाले कलाकार का मत जाने बिना ही उसमें मीन-मेख निकालना शुरू कर दिया. 


राष्ट्रीय चिह्न बनाने वाले कलाकार सुनील देवरे और रोमिइल मोसेज ने एनडीटीवी से कहा है कि इसके डिज़ाइन में कुछ भी बदलाव नहीं किया गया है.

 

देवरे ने कहा, ''हमने पूरे विवाद को देखा. शेर का किरदार एक जैसा ही है. संभव है कि कुछ अंतर हो. लोग अपनी-अपनी व्याख्या कर सकते हैं. यह एक बड़ी मूर्ति है और नीचे से देखने में अलग लग सकती है. संसद की नई इमारत की छत पर अशोक स्तंभ को 100 मीटर की दूरी से देखा जा सकता है. दूरी से देखने पर कुछ अंतर दिख सकता है.''


मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास ने कहा है- मूल अशोक स्तम्भ ७ फीट का का है  और यह २१ फीट का इसलिए शेर आक्रामक दिखाई देते हैं. 


हमने कहा- मतलब कि किसी चीज को बड़ा या छोटा कर देने से या उसे दूर या निकट से देखने पर उसमें कोई अंतर आ जाता है.









बोला- हो सकता है. तभी तो कहा गया है- दूर के ढोल सुहावने, संस्कृत में भी कहा गया है- दूरतः पर्वताः रम्याः। 


जब जागरण और राष्ट्र गौरव के नाम पर ढोल किसी के घर के सामने बजने लगे तब पता चलता है. दूर-दूर से कभी कभार कान में पड़  जाए उसकी बात और है. इसी तरह कभी कभी बेयर ग्रिल के साथ पूरी व्यवस्था और तामझाम के साथ पिकनिक की जाए उसकी  बात और है और जब इलाज़ के लिए रोगी को खाट पर लिटाकर दस किलोमीटर ले जाना पड़े तब की बात और है. किसी उद्योगपति को विकास के नाम पर आदिवासियों के जीवन के आधार जंगल बेच देना और बात है और आदिवासियों के जीवन की कठिनाइयों और ईमानदारी को जीना और बात है. 


हमने कहा- अशोक स्तम्भ के निर्माण से संबंधित इन लोगों के अनुसार तो आकार में बड़े होने से ये शेर हिंस्र और क्रूर नज़र आने लगे हैं. 


बोला- घटिया लोगों की बात और है. वे थोड़े से पद और सम्मान से ही बात-बात में पायजामे से बाहर होने लगते हैं. कोई उनका फोटो भी कूड़े में फेंक दे तो वे उसे राष्ट्र का अपमान बताने लग जाते हैं.किसी सफाई कर्मचारी को नौकरी से निकाल देते हैं.  खुद को खुदा समझने लगते हैं. तभी रहीम जी ने कहा है- 


जो रहीम ओछो बढ़े तो अति ही इतरात  

प्यादे से फ़र्ज़ी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जात। 


हमने कहा- संस्कृत में भी इस बात को अन्य दृष्टि से कहा गया है 


उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा।

सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।।

जिस प्रकार सूर्य उदय एवं अस्त होते समय रक्त वर्ण होता है, वैसे ही महापुरुष संपत्ति एवं विपत्ति में एक समान रहते हैं।इसलिए यदि आकार और स्थान बदलने से यह शिल्प अपना स्वरुप भिन्न-भिन्न दिखाता है तो या तो वह अपूर्ण है या कोई छल. 

 

बोला- और क्या ? गाँधी जी गोडसे की तरह अपने महत्त्व के लिए किसी पार्टी विशेष के सत्ता आने या न आने का इंतज़ार नहीं करते. हर हालत में गोडसे गोडसे और गाँधी गाँधी रहेंगे। किसी माननीय के ‘गोडसे देश भक्त थे, हैं और रहेंगे’, कहने से दुनिया को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। चीनी किसी भी रूप-आकर में मीठी ही रहेगी और ज़हर किसी भी प्रसाद में लपेट कर दिए जाने पर भी ज़हर ही रहेगा. 

हमने कहा- तोताराम, हमें इस प्रसंग में एक कहानी याद आती है. किसी गुफा के द्वार पर एक शेर बैठा था. उसके पास एक पेड़ पर एक हंस आकर बैठ गया. हंस ने देखा कि दूर से एक ब्राह्मण चलता हुआ इधर ही आ रहा है. ब्राह्मण को  बचाने के लिए हंस ने शेर से कहा- आपने इतने लोगों को मारा है. यदि किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त कर लो तो शायद आपके  पाप कुछ काम हो जाएँ. शेर ने कहा- लेकिन मुझे शिष्य बनाने के लिए कौन ब्राह्मण यहां आएगा ?

हंस ने कहा- एक ब्राह्मण इधर ही आ रहा है. तुम उसे खाना मत. उसे अपना गुरु बना लेना. 

शेर ने उसे नहीं खाया। अपना गुरु बना लिया और मारे गए मनुष्यों की वस्तुएं उसे दक्षिणा में दे दीं. भविष्य में मनुष्य को न खाने की शपथ भी ली. 

कुछ समय बाद दक्षिणा के लालच में ब्राह्मण फिर शेर की गुफा की तरफ चला आया. संयोग से उस दिन पेड़ पर एक कौआ बैठा था. ब्राह्मण को आता देखकर कौव्वे ने शेर से कहा- महाराज, आज तो एक मोटा-ताज़ा मनुष्य खुद ही इधर आ रहा है. आते ही झपट दबोच लें.  फिर तो मज़ा- ही मज़ा. 

शेर ने कहा- लेकिन मैंने तो अपने गुरु से मनुष्यों को न खाने की शपथ ले रखी है. 

कौव्वे ने कहा- राजा और शेर ऐसी-वैसी शपथों में नहीं बँधते। चुनाव जीतने के लिए जुमले फेंकना और बात है. 

जैसे ही वह व्यक्ति गुफा के निकट पहुंचा तो शेर ने देखा, यह तो मेरे गुरु हैं. 

शेर ने कहा- पंडित जी, फ़टाफ़ट निकल लें. शेर किसी का शिष्य और यजमान नहीं होता. आज मैं हंस की संगति में नहीं हूँ. आज उसकी जगह कौव्वा बैठा है. इसने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. पंडित गिरता-पड़ता अपने घर की और भाग लिया।

 

तोताराम ने कहा- लगता है, वह शेर अभी तक पूरी तरह से संस्कारित नहीं हुआ था नहीं तो......... अब इन शेरों की भी एक बार प्राणप्रतिष्ठा हो जाने दे उसके बाद देखना.  




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Jul 17, 2022

2022-07-14 शेर के दांत


शेर के दांत

हमने कहा- तोताराम, लगता है, हमने अनुपम खेर के ट्वीट के साथ न्याय नहीं। 

बोला- न्याय एक मानसिक अवस्था है, एक दृष्टिकोण है. तीस्ता और ज़किया ने गुलबर्ग सोसाइटी के हत्याकांड को  कुछ और तरह से तथा न्यायालय ने कुछ और तरह से देखा हो. वे न्याय के लिए फ़रियाद कर रहे थे तो न्यायालय ने समझा कि वे भले लोगों को फंसा रहे हैं.सो देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानकर फ़टाफ़ट जेल में डाल दिया।  हिमांशु कुमार निर्दोष आदिवासियों की हत्या की फरियाद लेकर न्यायालय गए और न्यायालय को समझ आया कि वे न्यायालय का समय बर्बाद कर रहे हैं. सो लगा दिया पांच लाख का जुर्माना. वैसे यह तो सच है दोनों घटनाओं में लोग मरे तो थे. उन्होंने किसी को फंसाने के लिए आत्महत्या तो नहीं की थी. 

वैसे तू अनुपम खेर के ट्वीट के साथ क्या न्याय चाहता है ?

हमने कहा- उन्होंने केवल शेर के काटने की ही बात नहीं की है. वे ट्वीट के शुरू में ही कहते हैं- रे भाई, शेर के दांत है तो दिखायेगा ही. 

बोला- दांत तो सभी के होते हैं. यदि दांत है तो हर समय दिखाने की क्या ज़रूरत है. कोई किसी बड़े पद पर है तो क्या अपने माथे पर लिखवाकर फिरेगा ?  किसी के पास बहुत-सा पैसा है क्या रोज सड़क पर बैठकर गिनेगा ? सूरज को अपने उदय होने का विज्ञापन नहीं देना पड़ता.  

हमने कहा- तोताराम, हमें एक बात और समझ आती है, हो सकता है अशोक के समय में इस शेर की गुर्राहट या दांत दिखाने को असंसदीय मानकर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो. वैसे दांतों के दिखाने की और भी कई व्यंजनाएँ हो सकती हैं. दांत दिखाना, दांत फाड़ना, दांत पीसना। हो सकता है दो हजार साल से दांत न दिखा पाने के कारण अब २०२२ में दांत दिखाने, पीसने, किटकिटाने आदि की स्वतंत्रता मिलने के कारण जोश में आकर कहीं ज़्यादा ही दांत दिखाने लग गया हो. 

बोला- हो सकता है अशोक की अहिंसा के कारण इसे  दो हजार वर्षों से अब तक कुछ पैष्टिक आमिष आहार न मिला हो तो गुस्से में दांत दिखा कर कुछ मांसाहार मांग रहा हो ?लगता है, इसका पेट नहीं कुंआ है. पिछले कुछ वर्षों में कोरोना में लाखों लोगों की बलि लेकर, लाखों की नौकरियाँ खाकर, हम बूढ़ों की गैस और रेल यात्रा की सब्सीडी हजम करके, बैंकों के हजारों करोड़ रुपए हड़प जाने से भी इसकी क्षुधा शांत नहीं हुई. 




हमने कहा- लेकिन अब तो सरकार मांसाहार को पसंद नहीं करती. तभी कभी रामनवमी, तो कभी श्रावण मास में कांवड़ यात्रा के समय मांसाहार पर प्रतिबन्ध लगा रही है. चित्रों में सभी ने काली को एक हाथ में खून से भरा खप्पर, एक हाथ में तलवार, एक हाथ में नरमुण्ड लटकाये देखा है. हमने भी १९६०-७० के बीच सवाईमाधोपुर सीमेंट फैक्ट्री की पत्थर की खदानों में काम करने वाले भीलों को दुर्गा अष्टमी पर अपने घर के सामने काली को बकरे की बलि देते देखा है. लेकिन अब महुआ मोइत्रा द्वारा काली को मदिरा पीने वाली और मांस खाने वाली बताने पर हल्ला मचा हुआ है.

बोला- मुझे तो लगता है कि  दो हजार साल से मुंह बंद किये-किये इस शेर के जबड़े अकड़ गए हैं सो अब अपने जबड़ों को स्ट्रेच कर रहा है. 

हमने कहा- हो सकता बूढ़ा होने के कारण इसके दांतों में कोई समस्या हो. अच्छा हो इसे एक सुन्दर सी बत्तीसी लगवा दी जाए जिससे यह चिढ़ते और गुस्सा होते हुए भी खूँख्वार न लगे. जैसे चुनाव में जनसंपर्क के समय नेता.

बोला- वैसे मास्टर, मैं तो आजकल जो चल रहा है उससे बहुत कन्फ्यूज़्ड हूँ. एक तरफ लोग शेर को खूँख्वार बना रहे हैं तो दूसरी तरफ देवताओं के आहार-विहार को शाकाहारी और नशामुक्त बनाने पर तुले  हुए हैं. अब भोले बाबा भांग और गांजा के लिए तरस जाएंगे। तेरे नानाजी शिव के भक्त थे. वे शिवरात्रि को शिवजी का भांग की ठंडाई का प्रसाद बच्चो-बूढ़ों, औरत-मर्द सबको दिया करते थे. अब तो नारकोटिक्स वाले फंसा दें. 

हमने कहा- अच्छा हो, हम अपना राष्ट्र-चिह्न ही बदल दें. शेर की जगह सांड। शाकाहारी भी और सड़क से संसद तक निर्द्वन्द्व विचरण करता, चाहे जिसको डराता, किसी को भी सींगों पर उठाकर उछालता।

बोला- कोई बुराई तो नहीं है. वैसे भी लोक में सांड और अंग्रेजी में ‘बुल’ बड़े धाकड़ होते हैं. सिंधुघाटी सभ्यता में तो राजमुद्रा पर एक बलिष्ठ सांड ही है.नंदी भोले बाबा के महादेवत्त्व का वाहक भी है. 

हमने कहा- हमें तो कोई ऐतराज़ नहीं है लेकिन यदि किसी की आस्था आहत हो गई तो कौन संभालेगा ? 

    


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Jul 16, 2022

फ़रियाद का दंड

फ़रियाद का दंड 

(मानवाधिकार के मुद्दा उठाने पर तीस्ता को जेल, हिमांशु कुमार पर ५ लाख का जुर्माना- १५ जुलाई २०२२ )

जनम-मरण जब जीव के दोनों विधि के हाथ 

तो क्यों करते कुचरणी न्यायालय के साथ

न्यायालय के साथ, समय बर्बाद कर रहे

जीवन नश्वर क्यों मृतकों को याद कर रहे 

‘जोशी’ मानव अधिकारों की बात करोगे

सड़ो हिरासत में, लाखों का दंड भरोगे 


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Jul 15, 2022

बाबा का रेट चार्ट


2022-07-15 


बाबा का रेट चार्ट 



आज तोताराम ने आते ही कहा- चल, बाबा के दर्शन कर आएं. 


हमने कहा- पहले यह तो पता कर ले कि किस बाबा के दर्शन करने हैं और वह स्वनामधन्य बाबा किस जेल में है या कि चुनावी चक्कर में वोट पटाने के लिए सत्ताधारी पार्टी ने पार्टी ने उसे पेरोल या जमानत तो नहीं दे दी है. 


बोला- तू किस बाबा की बात कर रहा है ? आजकल सच्चे और भले बाबा तो कहीं अपनी जान बचाकर दिन काट रहे हैं. सब चर्चा तो बदमाशों और लम्पटों की है. भक्ति और आध्यात्म का ठेका वे ही तो लिए हुए हैं. मैं तो असली बाबा विश्वनाथ की बात कर रहा हूँ. १८ जुलाई को श्रावण का पहला सोमवार है. चल, काशी हो आएं. सुना है काशी कॉरिडोर बड़ा भव्य बना है. अब तू कानूनी रूप से अस्सी का हो गया है. मैं भी अमिताभ बच्चन की तरह दो-चार  महिने में सुपर सीनियर सिटीजन हो जाऊँगा. ज़िन्दगी का क्या भरोसा. बना ले प्रोग्राम. 


हमने कहा- इसमें प्रोग्राम बनाने की क्या ज़रूरत है. जब तेरा मन हो दो जोड़ी कपड़े डाल लेना. घर के आगे ही तो खड़ा है अपना स्पेशल प्लेन. सोते, चाय पीते दो घण्टे में पहुँच जाएंगे बाबा के दरबार में और शाम को खाने के वक़्त तक लौट आएंगे. 


बोला- तू तो ऐसे कह रहा है जैसे तूने आज ही ९०० करोड़ का सर्व सुरक्षित एयर फ़ोर्स ऍफ़ वन प्लेन खरीदा है। 


हमने कहा- लेकिन तू भी तो ऐसे कह रहा है जैसे हमें ‘माननीयों’ की तरह जनता के खून-पसीने के पैसे से मुफ्त फर्स्ट क्लास की असीमित यात्राएं करने की सुविधा प्राप्त है. गैस और रेल-बस यात्रा तक की सबसीडी तक तो छीन ली, देश के विकास के नाम पर. अब यात्रा करेंगे सांसद, राज्यपाल, मंत्री आदि और कल को यह भी हो सकता है कि पुजारी जी हनुमान जी और श्याम जी आदि को उन्हें रिसीव करने के लिए बस हवाई पट्टी पर ले जाएँ. 





बोला- मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता, वह भी भारत में और उच्चकुलीन ब्राह्मण के घर.

 

हमने कहा- भगवान को किसी स्थान, मूर्ति और दिन विशेष से बांधने वाले अज्ञानी और ढोंगी होते हैं. वे सर्वव्यापी ईश्वर का अपमान करते हैं. वे धर्म को आचरण से बाहर फेंक कर धर्मान्धता फैलाते हैं. मीरा ने तो साफ कहा है-


मेरे पिया मेरे घट में बसत है ना कहुँ आती-जाती.

 

प्रह्लाद के राम उसके लिए खम्भा फाड़कर निकल आये, सच्चे भक्तों ने तो १९९३ में इस कलियुग में भी अमरीका में सेनफ्रांसिस्को के एक रोड़ ब्लॉकर तक में शिवलिंग देख लिया. ज्ञानवापी के वजूखाने में शिवलिंग को पहचान लेना तो अभी कल की ही बात है. 


बोला- छोड़ इन दार्शनिक बातों को. संसार में सगुण और भौतिक का भी महत्त्व होता है. यदि ऐसा नहीं होता तो मोदी जी भव्य राम मंदिर, काशी कॉरिडोर, रामानुजम का मंदिर, मध्यप्रदेश में शिवराज जी इस महंगाई और बेरोजगारी के समय में भी हजारों करोड़ खर्च करके महाकाल कॉरिडोर क्यों बनवाते ? 


हमने कहा- तोताराम, सुना है, अब काशी के भोले बाबा की नगरी की वह बात नहीं रही. हमने तो आज से कोई पैंतीस-छतीस साल पहले बाबा को अपने ओरिजिनल रूप में देखा था. अब तो सुना है सारा मामला हाई फाई और सेवन स्टार हो गया है. 


चल, तू कहता है तो किसी तरह आने-जाने का किराया तो जुटा लेंगे.  लेकिन आजकल मोदी जी जिस विकास के लिए किसी की नहीं सुन रहे हैं उस मॉडल में होटल में खाने से ज़्यादा सर्विस चार्ज लग जाता है. ज़रा, बाबा के रेट तो पता कर ले. 


बोला- रेट तो रंडियों और दलालों के होते हैं भगवान और संतों के क्या कोई रेट होते हैं ? अमूल्य चीज के कोई दाम लगा सकता है क्या ?


हमने कहा- आजकल छोटे लोग ही बड़ी जगहों पर बैठे हैं. वे अमूल्य को क्या समझें. वे तो हर चीज को पैसे की टर्म में ही देखते हैं. जब हम गए थे बाबा के दरबार में काशी तो दर्शन का कुछ भी नहीं लगा था. एकदम पास से दर्शन किये थे. हाँ, यह बात और है कि उस समय वहाँ जूते-चप्पल की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी सो हमने दर्शन लाभ के बदले नई चप्पलें ज़रूर गँवा दीं. 


तोताराम ने हमारी आँखों के सामने अपने स्मार्ट की स्क्रीन घुमाते हुए कहा- ले ध्यान से देख ले. १२ जुलाई को ही एक अखबार में नए रेट छपे हैं. तसल्ली से देख ले और तय कर ले.


  • मंगला आरती (सोमवार) शुल्क 2000 रुपये

  • मंगला आरती (बाकी दिन)शुल्क 1500 रुपये

  • सुगम दर्शन (सोमवार) 750 रुपये

  • सुगम दर्शन (बाकी दिन) 500 रुपये

  • मध्यान्ह भोग आरती, रात्रि शृंगार, सप्तर्षि आरती, भोग आरती के लिए 500 रुपये

  • सावन में एक शास्त्री से रुद्राभिषेक कराने का शुल्क 700 रुपये

  • पांच शास्त्री (सोमवार) रुद्राभिषेक कराने के लिए 3000 रुपये

  • पांच शास्त्री (बाकी दिन) रुद्राभिषेक कराने के लिए 2100 रुपये

  • श्रावण संन्यासी भोग (सोमवार) के लिए 7500 रुपये

  • श्रावण संन्यासी भोग (बाकी दिन) के लिए 4500 रुपये

  • श्रावण शृंगार शुल्क 20 हजार रुपये

 

हमने रेट लिस्ट को ध्यान से पढ़ने के बाद कहा- तोताराम, हम तो दर्शन के लिए उस दिन चलेंगे जिस दिन भक्त अपने धंधे में व्यस्त होंगे और पुजारी जी दर्शनार्थियों के इंतज़ार में बोर हो रहे होंगे या फिर तब जब  ‘शिव के साथ एक रात’ बिताने के लिए जग्गी बासुदेव महामहिम रामनाथ जी  की तरह हमें फ्री में बुलाएंगे. 

बोला- तेरा उनसे क्या मुकाबला. तुझे पता होना चाहिए ‘रामनाथ’ का अर्थ केवल माननीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ही नहीं होता। ‘रामनाथ’ का अर्थ राम का नाथ अर्थात ‘शिव’ भी होता है. 

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Jul 14, 2022

स्वतंत्र भारत का शेर


 2022-07-14 



स्वतंत्र भारत का शेर 



आज आंख देर से खुली इसलिए दूधवाले को फोन कर दिया कि जब भी समय मिले, दूध दे जाए. 


अजीब-सा आलस और सुस्ती अनुभव हो रहे थे..बरामदे में सुस्त बैठे थे कि तोताराम ने आते ही अपनी आदत के अनुसार छेड़ा- क्या यशवंत सिन्हा जी की तरह अलसाया हुआ बैठा है. 


हमने कहा- हमारी और यशवंत जी की स्थिति में फ़र्क़ है. उन्हें तो पहले से ही पता था कि वे जीतेंगे तो नहीं फिर भी कुछ दिन के लिए लाइम लाइट में तो आ जाएंगे. गाँधी जी के पौत्र ने तो इस निश्चित हार वाली दौड़ से बाहर रहना ही  उचित समझा. अगर विपक्ष वाले हमें ही अपना उम्मीदवार बनाते तो हम भी साफ़ मना कर देते. 


बोला- लेकिन इतनी बुरी हार के बारे में तो सिन्हा जी ने भी नहीं सोचा होगा. आदिवासी क्षेत्रों में वहाँ की जमीनें खनन के लिए बड़े-बड़े उद्योगपतियों को सौंपने से ध्यान बटाने के लिए भाजपा ने आदिवासी प्रेम का यह कार्ड खेला है. हालांकि इससे किसी आदिवासियों का वैसा ही कल्याण होगा जैसा अब तक किसी अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, महिला या किसी दलित को राष्ट्रपति बना देने से उन वर्गों का कल्याण हुआ. 


वैसे तेरी इस सुस्ती का क्या कारण है ?


हमने कहा- तोताराम, आज रात के अंतिम प्रहार में बड़ा अजीब सपना आया. देखा, हम दूध लेने जा रहे हैं.  कल जिस जगह ‘गली के उस मरियल शेर’ ने हमें आस्था आहत हो जाने की ऍफ़ आई आर दर्ज़ करवाने की धमकी दी थी वहीं अपने आपको शेर बताने वाले एक जीव ने पीछे से आकर हमारे पायजामे का बायां पांयचा आधा खींच लिया. 

भगवान की कृपा से पिंडली सुरक्षित बच गई. कुत्ते के काटने से तो कहते हैं, चौदह इंजेक्शन लगते हैं, शेर के काटने से कम से कम पचास इंजेक्शन तो लगते ही.  












बोला- क्या तूने ध्यान से देखा कि वह शेर ही था ? 


हमने कहा- डर के मारे थोड़ी बहुत भूल तो हो सकती है लेकिन इतनी भूल भी नहीं  हो सकती कि शेर और कुत्ते में ही भेद न कर सकें. 


बोला- आजकल देश में कई तरह के ऑपरेशन चल रहे हैं जिनके तहत कोई भी दल-बदल करके जब पावर में आ जाता है तो कुत्ते ही क्या, एक ही झटके में मेमने से सीधा बब्बर शेर बन जाता है. 


हमने कहा- हमने उससे पूछा भी था कि कहीं तुम भी ‘अपनी गली वाले शेर’ ही तो नहीं हो ? 

तो बोला- नहीं, हम असली जंगल वाले असली शेर हैं. अब अनुपम खेर ने हमें ‘स्वतंत्र भारत के शेर’ का दर्ज़ा दे दिया है. अब हम जंगल तक सीमित नहीं हैं. अब हम कहीं भी जा सकते हैं. किसी की भी पिंडली पकड़ सकते हैं. किसी को भी डरा सकते हैं. अब हमें शहर और जंगल दोनों जगह पूर्ण और स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया है.  


तोताराम ने पूछा- तो क्या ११ जुलाई २०२२ को संसद में नए अशोक स्तम्भ का उदघाटन होने से पहले अशोक और नेहरू के ज़माने में भारत परतंत्र था ? 


हमने कहा- यह तो पता नहीं लेकिन शेर का भी भारत की स्वतंत्रता के बारे में वही तर्क हो जो कंगना राणावत का २०१४ में भारत के स्वतंत्र होने में था.


तभी हमारी निगाह रास्ते की तरफ गई, देखा वही शेर !


तोताराम ने पूछा- क्यों प्रभु, क्या अब भी कोई हिसाब बाकी रह गया है ? कहें तो मास्टर के पायजामे का दूसरा पांयचा भी आपकी सेवा में अर्पित करवा दें. 


स्वतंत्र भारत का शेर बोला- बिलकुल,  ११ जुलाई २०२२ से पहले भारत क्या ख़ाक स्वतंत्र था. यदि होता तो शकुंतला का बेटा जबड़ा खोल कर हमारे दांत गिनने का साहस कर सकता था ? और आप लोग ये फालतू चकर -चकर  ज़रा कम ही क्या कीजिये. गांजा न पीने वाले शिव और शाकाहारी काली के भजन करें और परलोक सुधारें अन्यथा दोनों लोक बिगड़ते देर नहीं लगेगी. 


ध्यान रहे ई. डी. वाला विभाग भी आजकल हमारे पास ही है. 


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Jul 13, 2022

हमारी गली के शेर जी


 2022-07-12 

हमारी गली के शेर जी 

 

हम सुबह पांच बजे उठते हैं. लघु-दीर्घादि शंकाओं के समाधान के बाद अपनी पालतू  ‘कूरो’ को भी इन्हीं दोनों ‘स्वच्छ भारत’ कर्मों के लिये ले जाते हैं. हालांकि लोग उसे कुत्ता या कुतिया  नामों से पहचानते हैं. वैसे कोई भी ‘पेट’ रखने वाला अपने ‘पेट’ को नाम से ही संबोधित करता है. यदि कोई उसे ‘कुत्ता’ या ‘कुतिया’ कहे तो उसके मालिक को एक प्रकार से अपना अपमान लगता है. जैसे कि किसी ‘फ्रिंज़ एलिमेंट’ पर भी कोई कमेंट करे तो उसके ‘स्वामी’ को अच्छा नहीं लगता. ‘कूरो’ का भारत स्वच्छ हो जाने के बाद हम दूध लेने जाते हैं. 

आज देर से आँख खुली। तोताराम ने बरामदे में से ही आवाज़ दी- क्या दुश्मनों की तबीयत नासाज़ है ? आदरणीय, मेरे गुरुतुल्य भ्राताश्री गुरु पूर्णिमा पर अनुज का प्रणाम स्वीकार करें. 

हम उठे और दरवाज़ा खोलते हुए बोले- आजकल ‘दुश्मन’ ही सबसे ज़्यादा मज़े में हैं फिर  चाहे वे देश के हों या दुनिया के. उनकी तबीयत को कुछ भी नहीं होता है. होता है तो भले आदमियों को ही होता है. लंका में ही देख ले, जनता परेशान हैं और ‘भाया जी’ मालमत्ता लेकर खिसक लिए. 

और हाँ,सामान्य भाषा में बात कर. यह देवभाषा बंद कर, हमें डर लगता है. 

अभी दूध लाने और ‘कूरो’ को घुमाने के दोनों काम बाकी हैं. हम तो पहले ‘कूरो’ को घुमाएंगे और फिर दूध के लिए निकलेंगे.  तू चाहे तो बरामदे में या अंदर बैठ या फिर चाहे तो हमारे साथ चल. 

बोला- ठीक है. मैं दूध की डोलची ले लेता हूँ और तू ‘कूरो’ को संभाल. 

जैसे ही हम दोनों ट्रांसफॉर्मर के पास वाले मोड़ से मुड़े, एक मरियल-सा काला कुत्ता अपने दाँत निकालकर गुर्राने लगा. मरियल होने के कारण उसके दाँत जितने थे उससे बड़े दिखाई दे रहे थे. लगता था वह ‘कूरो’ के कारण अपनी ‘लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल’ के लिए कोई खतरा अनुभव कर रहा था. 

सतयुग में मनुष्यों का जड़-जंगम, पशु-पक्षी, जीव-निर्जीव सबसे संवाद हो जाया करता था आज भी वैसा ही कुछ चमत्कार हुआ. 

तोताराम ने उससे कहा- क्यों गुर्रा रहे हो ? हम कौन-सा तुम्हारा ‘वोट बैंक’ कब्ज़ाने आये हैं. कहावत है- कुत्ता, नाई और ब्राह्मण अपनी जात वालों से कुढ़ते हैं. उन्हें लगता है कि उनके वाला उसकी कमाई में हिस्सा बंटा लेगा.राजस्थानी में भी एक कहावत है-

नाई बामन कूकरो 

देश सकै  ना दूसरो 

 निश्चिन्त रहो, यह हमारी ‘कूरो’ तुम्हारे हितों में कोई बाधा नहीं डालेगी. 

आश्चर्य ! 

वह कुत्ता बोला- मास्टर जी, और बात बाद में सबसे पहले तो आप अपने शब्द वापिस लें. आपके शब्दों से हमारी आस्था और अस्मिता को चोट लगी है. 

हमने कहा- कुत्ते की क्या तो आस्था और क्या अस्मिता. दूसरों के टुकड़ों पर वालों की क्या कोई अस्मिता होती है ? आस्था तो सच्चे धार्मिकों और भक्तों की होती है. 

कुत्ता बोला- मास्टर जी, हम कुत्ते नहीं हैं. हम शेर हैं. अगर हमने कहीं आपके खिलाफ अपनी ‘आस्था के आहत’ होने की रिपोर्ट दर्ज़ करवा दी तो पुलिस पिटाई पहले करेगी और नाम बाद में पूछेगी. आजकल ‘आस्था के आहत’ होने पर पुलिस तत्काल कार्यवाही करती है. हजार किलोमीटर दूर प्लेन से जाकर भी चोबीस घंटे में हिरासत में ले ही लेती है. ये कोई चोरी, बलात्कार और हत्या जैसे सामान्य मामले थोड़े ही हैं जिनकी रिपोर्ट न लिखें तो भी चलेगा. 

हमने कहा- हो सकता है गली के लोगों तुम्हें ‘शेरू’ बुलाते हों. सुविधा के लिए वे तुम्हारे नाम से पहले के तीन शब्द ‘अपनी गली के’ उच्चारण नहीं करते हों. ‘अपनी गली के शेर’ का मतलब भी ‘कुत्ता’ ही होता है.

तोताराम ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए कहा- तो शेर सिंह जी, आप इतने गुस्से और तनाव में क्यों हैं ? देखिये इससे आपके स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है.भरी जवानी में भी आपका सीना सिकुड़कर तीस इंच का हो गया है. आप जंगल के राजा हैं. आपको तो बहुत शांत, गंभीर और शान से रहना चाहिए. हमने तो ‘गिर’ के जंगलों में दर्शकों को दिखाने के लिए रखे गए शेरों को देखा है. वे तो बहुत शालीन ढंग से बैठे हुए थे. कोई तनाव नहीं. दर्शकों पर गुर्राना तो दूर, वे तो किसी की तरफ देख भी नहीं रहे थे. क्या शान थी. और एक आप. 

अपनी गली के शेर जी बोले-  बिना गुर्राए काम नहीं चलता. यदि नहीं गुर्रायेंगे तो गली के लोग कभी-कभार जो टुकड़ा फेंके देते हैं, वह भी नहीं देंगे. दिनकर जी ने भी कहा है- 

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो.

उसको क्या दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो. 

हमें उस अपनी गली के शेर के साहित्यिक ज्ञान से बहुत आश्चर्य हुआ, लगा यह कोई सामान्य श्वान नहीं है. अवश्य पिछले जन्म में कोई अवतारी पुरुष रहा होगा. 

हमने अत्यंत विनम्र भाव से कहा- आपने तो सारनाथ वाला अशोक स्तम्भ देखा होगा. उसमें चार शेर हैं लेकिन हमें तो एक पूरा और दो आधे-आधे, कुल मिलकर दो शेर ही दिखाई दिए. लेकिन वे बहुत शांत, गंभीर और विश्वसनीय लगे. 

श्वान जी उर्फ़ शेर जी बोले- वह ज़माना गया. हो सकता है वह बुद्ध का प्रभाव रहा हो. बुद्ध  स्वयं भी तो अपने समय के शेर ही थे. वे शांत रहना अफोर्ड कर सकते होंगे. लेकिन अहिंसा और शांति का प्रभाव देख लिया ना ? भले ही बौद्ध-धर्म दुनिया में फ़ैल गया हो लेकिन भारत से तो लगभग निष्कासित हो ही गया. हम समय की नब्ज़ को पहचानते हैं. बिना गुर्राए, गुस्सा दिखाए काम नहीं चलने वाला. 

तुलसी कहते हैं-

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत 

बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत 

राम यदि शुरू से ही यह रूप दिखाते रहते तो न तो मंथरा उन्हें परेशान करती और न ही धोबी की हिम्मत पड़ती. तभी तो उन्होंने अयोध्या में अपना मंदिर बनवाने के लिए क्रोधित मुद्रा में धनुषबाण लिए वह रूप धारण किया जो हमने पहले कभी गीता प्रेस आदि की  किसी धार्मिक पुस्तक में नहीं देखा था. 

हमने कहा- आपकी बात में दम  लगता है. हो सकता इसीलिए सदैव शांत रहने वाले हनुमान जी भी आजकल ‘ऐंग्री हनुमाना’ नज़र आने लगे हैं. इसलिए नई संसद के अशोक स्तम्भ वाले शेर कुछ ज़्यादा ही डरावने दिखाई दे रहे हैं. 

‘हमारी गली के शेर जी’ चर्चा को और आगे बढ़ाएं उससे पहले हम और तोताराम दूध लेने चल पड़े क्योंकि जिन्हें ज्ञान, सेवा और देशभक्ति का अजीर्ण हो जाता है वे सहज में पीछा नहीं छोड़ते.      

 



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Jul 11, 2022

जी टू सम्मिट


2022-07-11

जी टू सम्मिट 

आज तोताराम नहीं आया. अब जब हमने अच्छे दिनों तक का इंतज़ार छोड़ दिया है तो तोताराम में ही ऐसे कौनसे सुरखाब के पर लगे हैं. चाय पी और अन्य नित्यकर्म निबटाकर नाश्ता कर ही रहे थे कि बंटी आ गया, बोला- बड़े दादाजी, आपको दादाजी ने बुलाया है. 

हमने खैरियत पूछी तो पता चला कि चिंता की कोई बात नहीं है. नाश्ता करके हम बंटी के साथ ही हो लिए. जाकर देखा तो बरामदे में दो कुर्सियां लगी हैं, दीवार पर एक बैनर लगा है- जी टू सम्मिट. 

हमने कहा- जहां तक मोबाइल की बात है तो भारत में ही ‘जी ५’ आ रहा है. रही बात देशों की सम्मिट की तो उन में भी कभी  ‘जी ७’ और कभी ‘जी २०’ चलता है. कुछ उत्साही और बिक्री करवाने वाले देशों को भी खुश करने के लिए बुला लिया जाता है जैसे भारत, द. कोरिया आदि. वैसे इनकी हैसियत सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों जैसी होती है जिनमें चाड, नामीबिया जैसे देशों का भी अकारादि क्रम से नंबर आ ही जाता है. 

तेरी यह ‘जी २ सम्मिट’ क्या है ? 

बोला- लोग भले ही खुद को कितना भी ‘ग्रेट’ मानकर ‘जी सम्मिट’ करते रहे हैं. उसमें दर्शक के बतौर पहुँचने वाले देश भी ‘ग्रेटनेस-ग्रंथि से ग्रसित’ हो जाएँ लेकिन वास्तव में ग्रेट बहुत कम ही पाए जाते हैं. जैसे कि एक बार में विष्णु के दो अवतार नहीं हो सकते. अगर कोई संभावना बनने भी लगती है तो उसे निबटाना ज़रूरी हो जाता है जैसे जब राम के सामने परशुराम आ खड़े हुए तो उनसे अपनी पार्टी का राम की पार्टी में विलय करवाकर  और उन्हें तपस्या के लिए भेजकर अर्थात निर्देशक मंडल में बैठाकर समाधान निकाला गया. 

हमने कहा- वैसे ही जैसे अकबर और महाराणा प्रताप दोनों महान नहीं हो सकते हैं. महानता की म्यान में दो तलवारों के लिए जगह नहीं होती. मुस्लिम तुष्टीकरण करने वालों ने अकबर को महान बना दिया और अब राष्ट्रवादी यह सम्मान अकबर से छीनकर महाराणा प्रताप को देना चाहते हैं. एक साथ दो-दो भारतरत्न हो सकते हैं लेकिन दो महान, एक हिन्दू और एक मुसलमान, एक साथ नहीं हो सकते. वैसे किसी भी भले आदमी के अनुसार अकबर अपने प्रशासन के लिए और महाराणा प्रताप अपनी वीरता और स्वतंत्रता-प्रेम के लिए महान थे ही. 

बोला- इसी सिद्धांत के आधार पर बार-बार नेहरू और पटेल, नेहरू और सुभाष, इंदिरा और शास्त्री को मुकाबले में लाकर खुद को स्थापित करने का काम चल ही रहा है. हो सकता है इसीलिए नियति ने झगड़ा निबटाने के लिए सुभाष को १९४२, पटेल को १९५० और शास्त्री जी को १९६६ में अपने पास बुला लिया. जब १९६४ में नेहरू जी को एक १४ वर्षीय तेजस्वी, किशोर महान विभूति के अवतार का पता चला तो उन्होंने दो महानों के सीधे संघर्ष से बचने के लिए विदा ले ली. हालांकि अब भी महानता का यह छाया-संघर्ष चल तो रहा है.  

हमने कहा- तो ऐसे में आज कौनसे दो महानों और ग्रेटों की सम्मिट आयोजत हो रही है ?   

बोला- अब तो निर्देशक मंडल वाले आडवाणी जी भी खेचरी मुद्रा में चले गए हैं. मुरली मनोहर जोशी हो सकता है कहीं केदारनाथ की गुफा में समाधिस्थ हों. अब हम दोनों के अलावा और कौन महान और देश का सच्चा शुभचिंतक बचा है. अब यह तय कर लें कि  हम दोनों में कौन किसमें सम्मिट अर्थात विलीन होगा ? मतलब हम दोनों महान मिलकर  देश के भले के लिए एक मत से कोई निर्णय लेंगे. 

हमने कहा- मोदी जी हैं तो. वे सभी महानताओं का समुच्चय हैं. उनके लिए सब कुछ मुमकिन है. भले ही आज देवशयनी एकादशी है. चार महिने के लिए देवता सो जाएंगे लेकिन मोदी जी चौबीसों घंटे काम करते हैं. कभी सोते नहीं. 

बोला- ठीक है फिर भी आजकल देश में बहुत सी नई-नई समस्याएं आ पड़ी हैं. जो पहले नहीं थीं. उनका उपचार करने के लिए मोदी जी के पास पर्याप्त जनबल, धनबल और भुजबल है लेकिन कुछ क्षेत्रों के लिए कोई विधिवत नियम और व्यवस्था नहीं है. यदि यह तय हो जाए तो देश की बहुत से समस्याओं का निदान हो जाए और फिर मोदी जी तसल्ली में भारत को विश्वगुरु और दस-बीस ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना सकते हैं. 

हमने पूछा- कौन सी समस्याएं हैं जिनके लिए किसी सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक गाइड लाइन और नियमावली बनाने की ज़रूरत है ? 

बोला- जैसे कि  मुसलमान कैसी दाढ़ी, पाजामा, हिजाब, खाना, नमाज, अजान आदि अपनाएं जिससे कि हिन्दुत्त्व को खतरा न हो, कब किसकी जय बोलें जिससे समाज में सद्भाव बना रहे, कितने बच्चे पैदा करें जिससे वे भारत को इस्लामिक देश न बना सकें, किस चीज का व्यापार करें। हिन्दू भी किस देवी-देवता को किस चीज का प्रसाद लगाएं, कौनसा देवता भी क्या पहने क्या खाये, फव्वारे और शिव लिंग को कैसे पहचानें, किस हिन्दू भक्त की कौनसी आस्था किसके, किस बयान, लेख, कविता, फिल्म आदि से आहत होती है आदि के नियम बना लें तो ठीक रहे. 

हमने कहा- धर्म तो व्यक्ति के अपने विश्वास और भगवान् के बीच का मामला है. इससे किसी को क्या लेना. 

बोला- नहीं भक्त और भगवान को खुला नहीं छोड़ा जा सकता.  यह वोटों और नोटों दोनों का मामला है. इसमें सत्ता की टांग का फंसना और नाक का घुसना ज़रूरी है. 

हमने कहा- तेरे विचार, नीयत और चिंता सही हैं. देश में सबसे पहले इस प्रकार के नियम  और संविधान बनने बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि इन्हीं बातों में देश की शक्ति और समय खर्च हो रहे हैं. झगड़े-फसाद हो रहे हैं.  यदि ये तय हो जाएँ तो अच्छा ही है. लेकिन हम इसके लिए सक्षम नहीं हैं. 

बोला- हैं क्यों नहीं. हमने देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक के सब रंग देखे हैं. सभी जाति -धर्म के बच्चों को उचित शिक्षा देकर देश की एकता और सद्भाव को बनाये रखने में सहयोग दिया है. हमारे अलावा और कौन उपयुक्त है इस काम के लिए. 

हमने कहा- इस समय तो हमें इस काम के लिए केवल दो महान विचारक, आध्यात्मिक, दार्शनिक और मनीषी व्यक्ति नज़र आते है. सामाजिक सद्भाव के लिये हिन्दुओं को हथियार उठाने की नेक सलाह देने वाले करुणावतार संत नरसिंहानंद यती और मुसलमान महिलाओं को बलात्कार की धमकी देने वाले, एडीशनल सोलिसिटर जनरल एस.वी. राजू के अनुसार ‘सम्मानित धार्मिक’ नेता बजरंग मुनि।    

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