Oct 29, 2018

मी तू बनाम वी टू



 मी टू बनाम वी टू 

कल पड़ोस में हनुमान जी के प्रसाद का आयोजन था |हमें भी बुलावा मिला था लेकिन जीमने का कार्यक्रम थोड़ा देर से था इसलिए नहीं गए | शाम को आठ बजे ही खाना खा लेने की आदत जो ठहरी |पड़ोसी  भले हैं सो अपगे दिन मतलब आज सुबह जल्दी ही हमारे हिस्से का प्रसाद घर पर ही पहुँचा गए |

दो दिन से रात को थोड़ी ठण्ड पड़ने लग गई है |इसलिए हमने तोताराम का इंतज़ार किए बिना ही चाय पीने का मन बना लिया |कमरे में प्रसाद की कचौरी की महक फैली हुई थी सो हमारा मन कचौरी पर फिसल गया जैसे कि 'मी टू' वाले मामले में किसी प्रसिद्ध अभिनेता या संपादक का मन सुविधा देखकर अपने साथ काम करने वाली महिला पर फिसल जाता है |जैसे ही कचौरी का एक टुकड़ा मुँह में रखा, आवाज़ आई- मी टू |कहीं कोई तनुश्री या कंगना रानौत दिखाई नहीं दी |हाँ, तोताराम अवश्य दिखा |हमें आश्चर्य हुआ कि हमारे दरवाजा खोले बिना ही तोताराम कैसे अन्दर आ गया जैसे कि सावधानी बरतते-बरतते भी राफाल लीक हो गया  |शायद हमीं पड़ोसी के जाने के बाद दरवाजा बंद करना भूल गए थे |

हमने कहा-तुझे पता है तू क्या कह रहा है ?क्या तेरे साथ भी बचपन में कोई हादसा हुआ था ?

बोला- यही तो समस्या है |बना फिरता है साहित्यकार और व्यंजना का यह हाल है कि 'मी टू' के एक अर्थ से आगे सोचना ही नहीं चाहता |अरे इसका अर्थ यह भी तो हो सकता है कि हे मास्टर, अकेले-अकेले ही कचौरी खा रहा है |मुझे नहीं देगा क्या ?वैसे इस प्रचलित अर्थ में भी क्या बुराई है ? जो लोग अपने पद के नशे में महिलाओं पर अत्याचार करते रहे हैं, आज डरे हुए हैं | यह सच की ताकत है |

हमने कहा- लेकिन इतने वर्षों बाद इसकी जाँच कैसे होगी ? और फिर प्रमाण क्या हैं ?
बोला- सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि एक महिला कह रही है |यह पीड़ा एक महिला के मन में एक फोड़े के मवाद की तरह चीसती रहती है लेकिन इस पितृप्रधान समाज में लोक निंदा के भय से वह उसे दबाए रहती है |आज तक इस मामले में महिलाओं पर जाने कितने अत्याचार हुए हैं |ऐसे मामलों के लिए ही कहा गया है-
ज़बरा मारे भी और रोने भी नहीं दे |

आज बहुत से बड़े-बड़े लोगों के कारनामे इसलिए दबे हुआ हैं क्योंकि पीड़िताओं की कोई सुनवाई नहीं होगी |बिना बात अपना दुःख बताकर बदनाम और होंगी |अच्छा हुआ कि एक आन्दोलन तो चला |पीड़िताओं में हिम्मत तो आई |दुःख कह देने से मन हल्का हो जाता है |क्या पीड़ित महिलाओं को इतना भी अधिकार नहीं |और फिर इसके सच होने का यही प्रमाण है कि कई बड़े-बड़ों के चहरे उतरे हुए हैं |सच भी आत्मा की तरह न जलाया जा सकता है, न गलाया, काटा और सुखाया जा सकता है |दस साल क्या, हजार साल बाद भी सर चढ़कर बोलेगा |

हमने कहा- लेकिन इतने समय बाद यह कीचड़ उछालने से क्या फायदा ?

बोला- सच में बड़ी ताकत होती है |लोग एक झूठ को छिपाने के लिए हजार झूठ बोलते हैं |यह दुनिया जाने कितने झूठों और आडम्बरों के बोझ से दबी हुई है |एक बार समुद्र मंथन हो ही जाना चाहिए |हालाँकि उससे हालाहल विष और वारुणी भी निकलेंगे लेकिन उसी से अमृत भी निकलेगा |मेरा तो सुझाव है कि एक बार हिम्मत जुटाकर सारी दुनिया के बड़ी से बड़ी गलती किए हुए लोग अपने-अपने दुष्कर्मों यथा- यहूदियों का कत्ले आम, गोरों द्वारा कालों पर अत्याचार, तलवार के जोर पर लोगों का धर्मान्तरण, बलात्कार, अपहरण, रिश्वत, मिलावट,चोरी, गुजरात और दिल्ली के दंगों, जलियाँवाला बाग़, कश्मीर के पंडितों, गौ-रक्षा-हत्या आदि के सभी अपराधी एक बार सच्चे मन से अपने-अपने लाल किले पर खड़े होकर नाटक करने की बजाय 'मी टू' की तरह 'वी टू' बोलने का साहस जुटा लें और नए सिरे से एक साफ सुथरी दुनिया और कुंठा विहीन जीवन की शुरुआत करें |

हमने कहा- तोताराम, यही तो समस्या है |आत्ममुग्ध और हीरो बने हुए लोग अन्दर से इतने कायर हैं कि वे सच बोलने का साहस ही नहीं जुटा सकते |तभी महावीर कहते है- क्षमा वीरस्य भूषणं |क्षमा माँगना और क्षमा करना कायरों के बस का नहीं है |फिर भी हम तेरे इस अभियान के लिए सच्चे दिल से कहते हैं- आमीन |


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Oct 28, 2018

भूतपूर्व उर्फ़ महामहिम

(राजस्थान के पूर्व राज्यपाल और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा नेता मदनलाल खुराना का निधन- श्रद्धांजलि |  उनकी सहज और मुक्त हँसी को याद करते हुए, उनके नाम २७-१०२००४ को लिखे और अखबार में छपे एक पत्र का आनंद लें )


भूतपूर्व उर्फ़ महामहिम


( 'मेरा दिल तो दिल्ली में है'- राजस्थान के राज्यपाल मदन लाल खुराना )

मदन जी भाई साहब,
जय श्रीराम । खैर, हमें तो राम सदा ही याद रहते हैं । हाँ, आपको राम पिछले छः साल से विस्मृत हो गए थे । ठीक भी है सुख में भजे न कोय । अब दुःख आया तो राम याद आए । तो पुनः 'जय श्री राम' । हम आपको इतने दिनों तक पत्र नहीं लिख सके और न ही सीकर से जयपुर तक की एक सौ किलोमीटर की दूरी तक तय की । इसके दो कारण हैं- एक तो आप भाई साहब से महामहिम हो गए । अब कहाँ तो मदन जी भाई साहब का मुख-सुख और कहाँ श्रीमान महामहिम श्री मदन लाल जी खुराना । इतना बड़ा नाम, कहीं बोलने में चूक हो गई तो मुश्किल । दूसरा कारण यह कि आप दरबार लगाने लगे और उस दरबार में आने वालों का धक्का मुक्की और डंडों से स्वागत हुआ इसलिए हम डर गए । कहीं बुढापे में हड्डी टूट गई तो जुड़ना मुश्किल हो जाएगा । वैसे अपने जयपुर फुट और व्हील चेयर भी बाँटे थे ।

हम दिल्ली में सोलह साल रहे । आप से मिले भी थे । आपके ठहाके और जिंदादिली क्या भूलने की चीजें हैं ? हम आपके डबल फैन हैं क्योंकि आप की तरह हम भी हेमा जी के फैन हैं और आपके भी । तीन साल पहले जयपुर ट्रांसफर होने से हमारी दिल्ली छूट गई पर दिल दिल्ली में ही रह गया, आपकी तरह । अब इन तीन सालों में नहीं मिले तो क्या प्रेम कम हो जाएगा ? स्वार्थ का प्रेम मुलाकातों का मोहताज होता है । आध्यात्मिक प्रेम तो कभी भी न मिलने पर भी ख़त्म नहीं होता । सो हम जयपुर नहीं आए तो बुरा नहीं मानियेगा । अब की बार दिल्ली आयेंगे तो आपके यहीं ठहरेंगे । जब दिल्ले में थे तो सरकारी क्वार्टर में रहते थे पर ट्रांसफर के बाद छोड़ना पड़ा । हम कोई सांसद या मंत्री तो हैं नहीं कि बिजली-पानी का बिल भी न चुकाएँ और मकान भी खाली न करें । और दिल्ली में अपना मकान तो देवताओं का होता है । आप उन्हीं दिल्ली के देवी-देवताओं के पुजारी हैं । पता नहीं, आप हमें किस श्रेणी में रखेंगे ?

खैर, महामहिम की जूण से इसी जन्म में ही मुक्ति मिल गई । वैसे जब आप जयपुर आए थे तब भी आप कहते थे कि दिल तो दिल्ली में ही है । बार-बार दिल्ली के चक्कर लगते रहते थे । पर जब राजग का सितारा डूबा तो आपने त्याग पत्र नहीं दिया | ठीक भी है | म्यूजीकल चेयर में एक ट्रिक होती है कि जब तक आगे वाली कुर्सी खाली  न हो जाए तब तक हाथ वाली कुर्सी मत छोड़ो । सो दिल्ली में कुर्सी खाली होते ही आपने महामहिम के चोले को राम-राम कर लिया ।

वैसे महामहिम का पद भी कोई पद है । न रैली, न जुलूस, न भाषण, न शोर-शराबा, न चहल-पहल । बस, ताज पहन कर बैठे रहो किसी गोष्ठी के अध्यक्ष की तरह । अधिक किया तो पुरस्कार वितरण कर दिया । मौका लगा तो सरकारी खर्चे पर तीर्थ यात्रा कर ली । पर यह जीना भी कोई जीना है, लल्लू । खैर, फिर वही घोड़े और वही मैदान । राम-मन्दिर और कश्मीर के शाश्वत मुद्दे की तरह दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों से औद्योगिक इकाइयाँ हटाने का गरमागरम मुद्दा आपका इंतजार कर रहा है । शुभास्ते पन्थानं । अब दिल्ली तो दिल्ली है भाई साहब । ये बाजरे की रोटी खाने वाले, टीलों में रहने वाले, कैर-साँगरी और खेलरों पर गुजारा करने वाले क्या जानें दिल्ली के मज़े ?

दिल्ली में तो नलों में पानी की जगह बीयर आती है, पिज्जा की होम डिलीवरी है, रोज शाम को नाटक, प्रदर्शनी, गोष्ठी, फैशन परेड होते रहते हैं । किसी भी कार्यक्रम में जाकर चार प्लेटें नाश्ते की फाड़ दो और अगले दिन शाम तक खाने की छुट्टी । दिल्ली में साढ़े सात सौ एम.पी.हैं किसी से भी मिलने की सुविधा । यहाँ पर तो सरपंच तक टाइम नहीं देता । बीसों पत्रिकाएँ और अखबार निकलते हैं । चार लाइनें लिख कर चक्कर काटना शुरू करो तो कहीं न कहीं पार पड़ ही जाती है । रावळे का तेल है साहब, पल्ले में भी भला ।

तो आप उसी दिल्ली में पहुँच गए । दिल्ली भारत का दिल, आप दिल्ली के दिल, आपके दिल में हम और हमारे दिल में हेमा मालिनी । बस, आप तो हमारे लिए हेमा जी से टाइम लेकर रखियेगा । और हम दिल्ली के रिहायशी इलाकों से औद्योगिक इकाइयाँ न हटाने के लिए आप द्वारा निकाले जाने वाले जुलूसों, रैलियों में बिना टी.ए.,डी.ए.के शामिल होंगें । और यह क्या, आपने 'धूम' पिक्चर देखी । दूसरों की मचाई धूम देखने की क्या ज़रूरत थी अभी तो माशा-अल्ला आपके ही धूम मचाने के दिन हैं ।

२७-१०-२००४

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Oct 19, 2018

गंगा का बेटा



गंगा का बेटा

आज जी कुछ ठीक नहीं था लेकिन यह सोचकर संतोष कर लिया कि भले आदमियों का यही अंत होता है; चाहे ईसा हो या गाँधी |अपनी तुच्छ महत्त्वाकांक्षाओं में आत्ममुग्ध लोग उनके लक्ष्य की विराटता और दूरदृष्टि को कहाँ समझ पाते हैं ?

सुबह-सुबह एक परिचित जल-सैनिक मित्र का दिल्ली से फोन आया कि स्वामी सानंद नहीं रहे |आशंका तो पहले भी थी कि वे इस बार नहीं मानेंगे |कोई तीन महिने से उनका अनशन चल रहा था |वे दीपक की तरह अपने तेल की अंतिम बूँद तक निचोड़कर दुनिया को रोशन करते हुए निर्वाण को प्राप्त हो गए |अब चतुर लोग उनके नाम की रोशनी में गंगा-सेवा की आड़ में खुद को प्रकाशित करेंगे |

हम किससे अपने मन का दुःख कहते |तोताराम आया तो उसीसे कहा- तोताराम, स्वामी जी चले गए |

तोताराम को शायद पता नहीं था, सो बोला- क्या ? फिर कोई लम्पट बाबा जेल चला गया ?

हमने कहा- नहीं | स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद  की बात कर रहा हूँ |

बोला- कौन स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ?

हमने कहा- वही जो आई.आई टी.कानपुर के सिविल और पर्यावरण इंजीनीयरिंग विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए थे |

तोताराम ने फिर प्रश्न किया- क्या कोई कोचिंग संस्थान चलाते थे ?

हमने कहा- नहीं, वे तो अविवाहित, संत और गंगा-पुत्र थे |

बोला- क्या गंगा ने उन्हें बुलाया था ?

हमने कहा- क्या गंगा किसीको बुलाती है ?

बोला- हाँ, क्यों नहीं |यदि कोई इस काबिल हो, उसकी सेवा कर सकता हो तो गंगा बुलाती भी है जैसे गंगा ने मोदी जी को गुजरात से बुलाया |मोदी जी चाहते तो बनारस क्या अमरीका से चुनाव लड़ते तो भी जीत जाते | अगर लोकसभा की सभी ५४५ सीटों पर चुनाव लड़ते तो ५४५ पर ही जीत जाते |उनके विकास के सपने हैं ही इतने आकर्षक कि कोई भी फ़िदा हो जाए |लेकिन क्या करें जब 'माँ गंगे' ने बुलाया तो फिर गंगा का सच्चा भक्त तत्काल गुजरात से वाराणसी पहुँच गया 'माँ गंगे' की सेवा में |

हमने कहा- ये कोई राजनीतिक प्राणी तो थे नहीं इसलिए शायद तुम्हें पता नहीं है |कोई बात नहीं लेकिन इस समय फालतू बातें करके हमें और दुःख मत पहुँचाओ |ज्ञान स्वरूप अग्रवाल उर्फ़  स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा के अविरल प्रवाह और समस्त गंगा नदी घाटी के पर्यावरण को बचाने के लिए दशकों से सक्रिय थे |गंगा के किनारे बाँधों, तटों पर निर्माण कार्य और गंगा से रेत आदि के खनन को वे उचित नहीं मानते थे |इसके लिए उनके पास वैज्ञानिक तर्क थे |बत्तखों के पंखों से आक्सीजन वाले मूर्खतापूर्ण जुमले नहीं |   

बोला- परेशान मत हो |सब ठीक हो जाएगा |गडकरी जी ने कहा है कि मार्च २०१९ तक गंगा ८०% साफ़ हो जाएगी |

हमने कहा- साढ़े चार साल में तो १०% काम हुआ बताते हैं, सच भगवान जाने |और अब छह महिने में ७०% साफ़ हो जाएगी |यह कोई नोटबंदी थोड़े ही है जो घोषणा कर दी और हो गई |

बोला- हो जाएगी | यदि कुछ उन्नीस-बीस का फर्क रहा भी तो यमुना के किनारे श्री-श्री जी जैसे किसी गिनीज बुक स्तर के नृत्य-गीत-वादन का कार्यक्रम करवा देंगे या मोरारी बापू के मन्दाकिनी के तट पर कविसम्मेलन की तरह गंगा के किनारे भी कवि सम्मेलन करवा देंगे | कोई और नहीं तो कम से कम आमंत्रित कवि तो गंगा के बहाने हमारे सफाई कार्यक्रम के गुण गाते फिरेंगे |और फिर मन्त्र-बल किस दिन काम आएगा ? मन्त्र-बल से जब त्रिशंकु का धरती से स्वर्ग में प्रक्षेपण किया जा सकता है तो गंगा भी साफ़ हो ही जाएगी  |

हमने कहा- तो फिर मन्त्र-बल से ही वायु सेना को सज्जित कर दो | क्यों राफाल के चक्कर में अपनी भद्द पिटवा रहे हो | 

बोला- कर तो सकते हैं लेकिन कुछ उद्योगपतियों का दलितोद्धार भी तो ज़रूरी है |
 











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Oct 17, 2018

नेचुरल कॉल



 नेचुरल कॉल 

हम नेता नहीं बन सके |बात १९५८ में कॉलेज के ज़माने की है |जब हम अपनी कालेज की छात्र संघ के महासचिव बने थे |हम निर्विरोध बन गए क्योंकि एक ग्रुप ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था | किसी खर्चे-पानी के नेता बन गए |वैसे उस ज़माने में दिल्ली के छात्रसंघों के चुनाव में करोड़ों खर्च होने की बात तो दूर, एक पैसा भी खर्च नहीं होता था |होता भी कहाँ से ? किसी के पास होता ही कहाँ था पैसा ? आज लोकसभा तो बहुत बड़ी बात है, पंचायत का चुनाव लड़ना भी सामान्य आदमी के बस का नहीं है |और फिर क्या-क्या कर्म-दुष्कर्म नहीं करने पड़ते नेता बनने से पहले और बाद में ? इसलिए हमें उनसे सहानुभूति नहीं है लेकिन ईर्ष्या भी नहीं |

आज एक खबर के साथ फोटो भी छपा |हमारे राजस्थान के एक विधायक मुख्यमंत्री के एक होर्डिंग के पास पेशाब कर रहे हैं |लोगों को तो मौका चाहिए |लगे आदर्श और भाषण झाड़ने |कांग्रेस वालों को तो इसमें अतिरिक्त रुचि लेनी ही थी |और नहीं तो यही मुद्दा सही |हमने भी तोताराम से ठरक लेने के लिए अखबार उसके सामने रख दिया और कहा- देख |

बोला- क्या देखूँ ? क्या दर्शनीय है इसमें |एक मनुष्य एक होर्डिंग के पास ज़मीन पर बैठकर पेशाब कर रहा है |

हमने कहा- मनुष्य नहीं, विधायक है तुम्हारी पार्टी का और होर्डिंग है मुख्यमंत्री का |

बोला- तुझे पता है मल-मूत्र त्याग को नेचुरल कॉल क्यों कहा गया है ? इसलिए कि यह स्वाभाविक है |इससे कोई भी नहीं बच सकता |भगवानों का तो पता नहीं क्योंकि उनके स्थानों में कहीं अटेच शौचालय नहीं होता |लेकिन मनुष्य को तो हाजत होने पर यह सुविधा चाहिए |इसीलिए सभी बड़े आदमियों के ऑफिस में अटेच शौचालय होता है |पता नहीं कब हाई कमांड से ऐसा-वैसा फोन आ जाए |और सुविधा न हो तो कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पेंट-पायजामा ख़राब हो जाए |

हमने कहा- फिर भी जब सारा देश शौचालय में घुसा हुआ है तो एक नेता को तो ध्यान रखना ही चाहिए |

बोला- नेता कोई अतिमानव नहीं होता |डर और ज़बरदस्त हाजत में कपड़ों में निकल जाता है |ये तो बेचारे दीवार की तरफ मुंह करके सभ्यता से बैठे हैं |वैसे तो नेता ताकत और पद के नशे में देश के सिर पर पेशाब कर रहे हैं |बिना सोचे समझे देश के करोड़ों नागरिकों को पाकिस्तान जाने की धमकी देना क्या किसी गन्दगी फ़ैलाने से कम है ? पेशाब तो फिर भी दो मिनट में सूख जाएगा लेकिन अपशब्दों का असर तो शताब्दियों तक रहता है | 

हमने कहा- क्या दो मिनट रुक नहीं सकते थे ?

बोला- रुकने की तो बात मत कर |दुनिया में कोई ऐसा आदमी नहीं होगा जिसका  कभी पतले दस्त होने पर पायजामा ख़राब नहीं हुआ हो या सपने में बिस्तरों में ही पेशाब नहीं निकल गया हो |हमारे ज़माने तो गुरूजी के दो थप्पड़ खाकर ही बच्चों का क्लास में पेशाब निकल जाता था |यदि इसके बारे में भी 'मी टू' कैम्पेन चले और लोग सच बोलें तो लाइन लग जाएगी ऐसे मामलों की |

यदि विश्वास न हो तो किसी तीस मार खां नेताजी को पी.एम.ओ.ऑफिस से कोई ऐसा-वैसा फोन करवा दे और फिर उसका पायजामा चेक कर |

हमने कहा- कोई बात नहीं |चाय आगई |अब मूत्रालय से बाहर आ जा |








 


 


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Oct 14, 2018

ना उम्र की सीमा हो...



 ना उम्र की सीमा हो .....

नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने बताया है कि पार्टी ने ७५ वर्ष से अधिक आयु के नेताओं के चुनाव न लड़ सकने का कोई आधिकारिक नियम नहीं बनाया गया है |पार्टी इसमें कुछ ढील भी दे सकती है क्योंकि कुछ बुज़ुर्ग नेताओं का अपनी सीट ही नहीं बल्कि आसपास के एक बड़े इलाके में भी प्रभाव है |

हमने तोताराम से कहा- बन्धु, यह क्या ? तुम्हारी पार्टी तो बड़ी सिद्धांतवादी पार्टी है |तो फिर 'पराक्रम-पर्व' के बाद यह 'पलटी-पर्व' वाला क्या मामला है ?

बोला- देख मास्टर, जैसे युद्ध और प्रेम में सब कुछ चलता है वैसे ही चुनाव में भी सब कुछ चलता है |यह भी एक तरह का महाघटिया युद्ध है |हमारी तो छोड़ महाभारत जिसे शुरू में धर्मयुद्ध कहा गया था, क्या वास्तव में अंत तक धर्मयुद्ध रह पाया ? गीता के उपदेश से शुरू हुआ महाभारत अश्वत्थामा द्वारा सोते हुए पांडु-पुत्रों की हत्या तक पहुँच गया |फिर यह तो अपने ही बुजुर्गों को चुनाव में उतारने का मामला है |एक मामूली सी बात |

हमने कहा- यह तो वैसे ही हुआ जैसे कि सीढियों के नीचे खाट पर पड़े बूढ़े को पेंशन के लिए बैंक में जीवन-प्रमाण-पत्र दिलवाने के लिए लोकलाज के चक्कर में नहला-धुलाकर ले जाया जाता है |या फिर प्रोपर्टी के कागजों पर दस्तखत करवाने के लिए बूढ़े को च्यवनप्राश का डिब्बा लाकर दिया जाता है | नहीं तो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के शपथ-ग्रहण समारोह में बुजुर्गों के हाथ जोड़कर नमस्ते करने तक का उत्तर नहीं दिया जाता |अपने विशाल पुष्पहार को हाथ लगाए हुए बेशर्मी से उनका फोटो खिंचवाया जाता है | 

बोला- बन्धु, यह तलब का मामला है |हमारे कवियों ने भी तो कहा है-
नींद न देखे टूटी खाट, प्यास न देखे धोबी घाट |
इसी तरह भूख में किवाड़ भी पापड़ |जन्म के रंडवे को काणी-खोड़ी बुढ़िया भी अप्सरा नज़र आती है |बलात्कारी को एक साल की बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक सभी चलती है |

हमने कहा- हो सकता है इससे यशवंत सिन्हा का कुछ हृदय-परिवर्तन हो जाए |और फिर जब अमित शाह के अनुसार अगले ५० साल तक भाजपा को ही जीतना है तो आज नहीं तो २०२५ में राष्ट्र के विकास की तीव्रगति को बनाए रखने के लिए मोदी जी की सेवाएं लेने के लिए नियम में छूट देनी ही पड़ेगी तो अब सही |बाद में लोगों को बातें बनाने का मौका नहीं मिलेगा |वैसे राजनीति में लोगो की बातों की परवाह की भी नहीं जाती |ऐसे ही रांडें रोती रहती हैं और पावणे जीमते रहते हैं | 

यदि सुनना चाहे तो तलब पर एक किस्सा सुन ले |एक बहुत बड़ा भोज था |और बड़े भोजों में तुम जानते हो कड़ाह इतने बड़े होते हैं कि आदमी  उनमें उतरकर फावड़ों से हलवा निकालते हैं |एक ऐसा ही बड़ा भोज जब समाप्त हुआ तो जिस आदमी का फावड़ा था वह कुछ ढूँढ़ रहा था |पूछने पर पता चला कि उसके फावड़े का फच्चर (हत्थे को टाईट करने के लिए फँसाया गया लकड़ी का टुकड़ा)नहीं मिल रहा था |इधर-उधर पूछने पर एक भोजन भट्ट ने कहा- भई पता नहीं, लेकिन हलुआ निगलते हुए कुछ रड़का तो था |हो सकता है तुम्हारा फच्चर ही रहा हो |

कहा भी गया है- अर्थी दोषं न पश्यति- स्वार्थ और लालच में आदमी भक्ष्य-अभक्ष्य कुछ भी खा जाता है | यह तो अपने ही ७५ साल से ऊपर वालों को स्वार्थ के लिए और वह भी कुछ दिन के लिए ही तो झेलना है, तो चलेगा |वैसे चार साल निर्देशक मंडल में पड़े-पड़े बूढ़ों को भी कुछ अक्ल आ ही गई होगी | फिर काम निकल जाने के बाद दुबारा निर्देशक मंडल में पटकने से कौन रोक लेगा ?  




 


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Oct 9, 2018

चेम्पियंस ऑफ़ अर्थ के लिए बधाई-यात्रा



 चेम्पियंस ऑफ़ अर्थ के लिए बधाई-यात्रा

आज तोताराम ने आते ही एक नए कार्यक्रम की घोषणा की- बधाई यात्रा |

बोला- अब तो सातवें पे कमीशन के अनुसार फिक्सेशन भी हो गया |सौ रुपए रोज की पेंशन भी बढ़ गई |अब तो दिल्ली चला चल, मोदी जी को बधाई देने |

हमने कहा- बधाई किस बात की ? बहुत रुला-रुला कर किया है फिक्सेशन |अभी तो पौने तीन साल का एरियर बाकी है |और यह फिक्सेशन भी कोई दिल से थोड़े ही किया है |बधाई ही देनी है तो अपने उन साथियों को दे जिन्होंने कोर्ट में रिट लगाई थी | कोर्ट के आदेश के दबाव में किया है फिक्सेशन |

बोला- तुझे पता नहीं, सरकार के पास लटकाने और टरकाने के हजार रास्ते हैं |अब देखना जेतली जी एरियर के लिए कम से कम २०२४ तक रुलाएँगे | वैसे बधाई से मेरा मतलब पे कमीशन जैसी किसी छोटी-मोटी बात से नहीं था |मैं तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार 'चेम्पियंस ऑफ़ द अर्थ' से सम्मानित किए जाने के उपलक्ष्य में दिल्ली जाकर बधाई देने की बात कर रहा था |

हमने कहा- हम से पूछे बिना ही, तीन-तीन मंत्रालयों ने सैंकड़ों करोड़ खर्च करके, सभी अखबारों में पूरे-पूरे पेज के विज्ञापनों द्वारा  बधाई दे तो दी समस्त भारत की ओर से |ये जो गैस, पेट्रोल के पैसे बढ़ रहे हैं ये किसकी जेब से जा रहे हैं ? और कहाँ जा रहे हैं ? इन्हीं बधाइयों और विज्ञापनों में तो जा रहे हैं |अब दिल्ली जाकर बधाई देने में हजार-पाँच सौ रुपए और खर्च करें ?  वैसे एक बार पता तो कर ले कि यह सम्मान है या पुरस्कार ?

बोला- इनमें क्या फर्क होता है ?

हमने कहा- पुरस्कार थोड़ा महँगा होता है मतलब एक लाख का पुरस्कार किसी साहित्यकार को दिया जाता है तो पहले तीन चौथाई रकम नकद ले ली जाती हैऔर |किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता को दिया जाता है तो दो-तिहाई |है |किसी व्यापारी को दिया जाता है तो एक लाख के पुरस्कार के दो लाख लिए जाते हैं |किसी देश को दिया जाता है तो उससे हजार-दो हजार करोड़ का कोई सौदा पटाया जाता है |सम्मान सस्ते होते हैं क्योंकि उसमें केवल सम्मान होता है | अभिनन्दन-पत्र, शाल, श्रीफल, स्मृति-चिह्न,  जल-पान, टेंट हाउस आदि के खर्च के अतिरिक्त सम्मानित करने वाली संस्था को भी उसकी औकात के अनुसार कुछ देना होता है |

बोला- कुछ भी मोदी जी को विश्व में एक प्रकार से स्वीकृति तो मिली |यह कोई छोटी बात है क्या ?

हमने कहा- ये सब सस्ते में खुश करने के तरीके हैं |२०१५ में बंगलुरु में मोदी जी ने  एंटोनियो गुतेरस को 'प्रवासी सम्मान' दिया था अब वे उन्हें यह 'चेम्पियंस ऑफ़ द अर्थ' का सम्मान देने आ गए | न तो कोई सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता में मदद करने वाला है और न ही एन.एस.जी. में प्रवेश होना |इन छोटे-मोटे टोटकों से झूठा गर्व  जाग्रत किया जा रहा है ?

जहाँ देश में गन्दगी और कूड़े-कचरे की बात है तो उसमें कोई फर्क नहीं आया है जैसे कि 'बेटी बचाओ' के बावजूद बलात्कार बदस्तूर चालू है | सुबह-सुबह प्रसून जोशी की  'स्वच्छता की नदी की छल-छल' सुनते रहो |पता नहीं, इसमें कितनी स्वच्छता की छल-छल है और कितना विज्ञापन का छल-छंद' |

बोला- इसका मतलब पर्यावरण को सुधारने में मोदी जी का कोई योगदान नहीं है ?

हमने कहा- यह किसने कहा ? हम तो कहते हैं कि यह उनके और उनके अनुयायियों के वैदिक मंत्रोच्चार का प्रभाव है कि इतने धुआँधार विकास के बावजूद देश में प्रदूषण कम हुआ है |मंत्रोच्चार से मार्च २०१९ तक ७०% गंगा साफ हो जाएगी |ऐसी सुरक्षित तकनीक दुनिया में और किस देश के पास है ? उन्हें तो मन्त्रों द्वारा पर्यावरण को शुद्ध करने के इस आविष्कार के लिए अलग से विज्ञान का नोबल पुरस्कार दिया जाना चाहिए |

बोल- और उनकी विनम्रता देख कि वे इसका श्रेय त्यागपूर्वक भोग करने वाले  मछुआरों, किसानों और भारतीय गृहणियों को देते हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदखल करके देश की खनिज सम्पदा का क्रूर दोहन करने वालों को खुली छूट देना कहाँ तक उचित है ?

बोला- तू क्या समझता है ?मोदी जी को इसकी फ़िक्र ही नहीं है ?  अरे, ये शौचालय धरती से निकाले गए समस्त पदार्थों को तत्काल रिचार्ज करने के लिए ही तो बनाए गए हैं |है ना, अद्भुत संतुलन ? पुरस्करणीय आयोजन |




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Oct 5, 2018

जगद्गुरु जी टॉयलेट में हैं



 जगद्गुरु जी टॉयलेट में हैं  

आज तोताराम के साथ एक और सज्जन थे |शक्ल-सूरत से योरोपियन से लग रहे थे |वैसे हम मेक इन इण्डिया की तरह किसी फोरेन  इन्वेस्टमेंट के झाँसे में नहीं हैं |यहाँ तो जन्म ही वेस्ट जा रहा है तो किस 'इन' 'आउट' के चक्कर में पड़ें |फिर भी पर्यटन विभाग के नारे 'अतिथि देवो भव' का सम्मान करते हुए, अन्दर से एक दरी लाए और चाय भी गिलास की जगह कप-प्लेट में |

जैसे ही चाय पीना शुरू किया तो हमने उन सज्जन से पधारने का कारण पूछा, बोले- हम तो जगद्गुरु जी से मिलने आए हैं ? 

हमने कहा- बन्धु, पता नहीं, आप किस देश से आए हैं ? देशभक्तों और राष्ट्राभिमानी साथियों से सुना है कि आज़ादी से पहले भी जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन, ब्रिटेन आदि से बहुत से लोग आए थे और हमें बहला फुसलाकर हमारे वेदों में से सारा ज्ञान निकालकर ले गए |अब हमें छोटे-मोटे प्लेन तक के लिए फ़्रांस जैसे देशों से महँगा सौदा करना पड़ता है |मोबाइल फोन तक के लिए चीन और साउथ कोरिया को आमंत्रित करना पड़ता है |यह तो भला हो कुछ वैज्ञानिक सोच वाले देश भक्तों का कि वेदों के उस सपरेटे में से भी प्लास्टिक सर्जरी ढूँढ़ निकाली, गटर में से गैस की गवेषणा कर ली | महाभारत में इंटरनेट तलाश लिया | बतखों के फड़फड़ाने से ऑक्सीजन खींच ली |

तोताराम बोला- मास्टर, तुम इन पर क्यों इतना नाराज़ हो रहे हो ? ये तो बेचारे इस देश के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने आए हैं |योरप के लोगों का तो हमें कृतज्ञ होना चाहिए कि वेदों का प्रथम भाष्य लिखने और उन्हें प्रकाशित कराने का काम किसी भारतीय से पहले योरप वालों ने किया |हिंदी का पहला व्याकरण भी किसी विदेशी ने ही लिखा |  यदि वेदों में कुछ था तो हजारों वर्षों से तुमने इनमें से कुछ निकला क्यों नहीं ? और अब निकाल लो |

हमने अपना स्वर नीचा करते हुए कहा- हमें भी इनसे कोई व्यक्तिगत नाराज़गी नहीं है |फिर उन सज्जन की तरफ मुखातिब होते हुए कहा- बुरा मत मानिए |कहिए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ? 

सज्जन बोले- कुछ नहीं |मैं तो वैसे ही किसी काम से भारत आया था |आपकी  शेखावाटी  की हवेलियों के बारे बहुत सुना था तो उन्हें देखने रामगढ़, फतेहपुर की तरफ चला गया था |आजकल आपके यहाँ रोड़वेज की बसों की हड़ताल चल रही है |यहाँ मंडी के पास बस के चक्कर में घूम रहा था तो आपके इन मित्र ने चाय का निमंत्रण दे दिया |बस, अब आपके सामने हूँ |यदि जगद् गुरु जी के बारे में कुछ मार्गदर्शन कर सकें तो बड़ी कृपा होगी |

हमने कहा- बन्धु, यहाँ तो जब सारा देश ही पिछले चार साल से शौचालय में घुसा हुआ पता नहीं, किस सोच-विचार में व्यस्त है तो जगद् गुरु भी शौचालय के अतिरिक्त और कहाँ हो सकते हैं ?चिंतित तो हम भी हैं लेकिन क्या करें ? अमिताभ बच्चन के कहने के अनुसार 'बीमारी बंद'  के लिए जगद् गुरु जी ने अन्दर से 'कुण्डी बंद'  कर रखी है | हो सकता है अन्दर मुंडी भी हिला रहे हों |यदि बाहर आ भी गए तो नवरात्रा आने वाले हैं तो स्थापना से पहले "शौचालय-पूजन' में लग जाएँगे |

तोताराम बोला- यह 'शौचालय-पूजन' का क्या चक्कर है ?

हमने कहा- हमारा कोई चक्कर नहीं है |यह तो अलीगढ जिला प्रशासन का आदेश है कि दुर्गा पूजा की घटस्थापना से पहले लोग 'शौचालय-पूजन' करें |

इसके बाद हमने आगंतुक की तरफ मुखातिब होते हुए कहा- महाशय, अब तो २०१९ के चुनाव के बाद ही आप पधारें |तब शायद इस देश को शौचालय से थोड़ी सी फुर्सत मिले |वैसे आपने चौधरी और पंडित जी का 'मल धुलाई वाला किस्सा' तो सुना ही होगा |नहीं सुना तो तोताराम सुना देगा |इस उम्र में हम सुनाते अच्छे नहीं लगेंगे |







 


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