Sep 2, 2014

रोटियाँ कैसे फूलती हैं



(सन्दर्भ: क्लिंटन ने जयपुर की रसोई 'अक्षय-पात्र' रसोई में पूछा- ये रोटियाँ फूलती कैसे हैं ?)

हमेशा राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और उच्च स्तर के प्रश्न करने वाले तोताराम ने आज नितांत निम्न स्तर का, माया-मोह में लिपटा प्रश्न किया- मास्टर, रोटियाँ कैसे फूलती है ?

अब क्या उत्तर दें ? अरे, यह रोज़ का काम है | करोड़ों घरों में रोटियाँ बिलती हैं, सिकती हैं, कुछ कच्ची रह जाती हैं, कुछ ढंग से सिक जाती हैं, कुछ जल जाती हैं |कुछ फूल जाती हैं, कुछ नहीं फूलती हैं | हर रोटी का अपना-अपना भाग्य है | कुछ तवे से उतरने से पहले ही उतावले हाथों में आकर कच्ची पक्की का विचार किए बिना ही पेट में पहुँच जाती हैं | कुछ फूली हुईं भी एक के ऊपर एक पड़ी किसी खाने वाले का इंतज़ार करते-करते सूख या सड़ जाती हैं |

यदि वैज्ञानिक उत्तर दें तो यह कि जब नीचे से बहुत तेज़ आंच लगती है तो अपनी प्राण रक्षा करने के लिए रोटी फूलकर आग को डराती है या अपना आकार बढाकर उस गरमी को इधर-उधर विस्तारित करके बचने की कोशिश करती है जैसे कि कुछ जानवर खतरा सामने आने पर कभी अपने बालों , काँटों को खड़ा करके, अपना आकार बढाकर शत्रु को डराने की कोशिश करते हैं जैसे बिल्ली, सेही | ज़मीन पर अंडा देने वाली कुछ चिड़ियाँ भी अपने अण्डों के आसपास से गुज़रने वालों को अपने पंख फुलाकर डरती हैं |

लेकिन हमने एक सामान्य और स्वाभाविक उत्तर दिया- तोताराम, रोटी का उद्देश्य है किसी भूखे की भूख मिटाना | यही उसकी सार्थकता है | और जब रोटी देखती है कि कोई अपनी भूख मिटाने के लिए उसके सिकने का इंतज़ार कर रहा है तो रोटी को अति प्रसन्नता होती है और वह ख़ुशी के मारे फूल जाती है | इसी भाव से नजीर अकबराबादी ने लिखा है -

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ |

 फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियाँ ||

तोताराम को इससे संतोष नहीं हुआ | बोला- बन्धु, प्रश्न इतना साधारण नहीं है | यदि ऐसा ही होता तो विज्ञान में इतने अग्रणी देश अमरीका का भूतपूर्व राष्ट्रपति यह प्रश्न पूछने के लिए दल-बल सहित जयपुर में मिड डे मील बनाने वाली संस्था 'अक्षय पात्र' की रसोई में रोटियों के फूलने के बारे में शोध करने के लिए नहीं आता |भले ही क्लिंटन ने वहाँ खाना परोसा, खाया; लेकिन न नाचा न कूदा बस, एक ही महत्त्वपूर्ण और काम का प्रश्न पूछा- ये रोटियाँ फूलती कैसे हैं ?

हमने कहा- इसमें आश्चर्य करने की क्या बात है ? अमरीका में रोटियाँ बनती ही कहाँ है ? पिज़्ज़ा, ब्रेड, बर्गर मिलते हैं जो बड़े-बड़े कारखानों में बनते हैं और दुकानों में पड़े रहते हैं | खरीदो और खाओ | जिस देश में बच्चे दूध देने वाले पशु के रूप में फ्रिज और अंडे के बारे में इतना ही जानते हैं कि अंडे पेड़ों पर लगते हैं, उन्हें रोटी के फूलने का क्या पता | उनके लिए तो जो कुछ बाज़ार खिला दे सो ठीक है |

अमरीका में तो दो ही तरह के फूलने की चिंता है- एक तो मोटापे के कारण वयस्कों के शरीर फूलने की और दूसरे स्कूलों में निरोध का उपयोग करने में लापरवाही करने पर वाली कुंवारी किशोरियों के पेट फूलने की |


कहने लगा- बात इतनी सरल नहीं है | तू नहीं समझेगा इस चतुर देश की दूरगामी योजना | रोटी फूलने की इस तकनीक को जानकर अब यह ऐसी चीजें बनाएगा जो दिखने में बहुत फूली और बड़ी होंगी | फिर उन्हें हमारे जैसे बेवकूफ देशों को बेचेगा लेकिन तोल कर नहीं बल्कि गिनती से | जब तक घर पहुंचोगे तब तक बीस किलो समझकर ख़रीदा माल ५०० ग्राम का हो जाएगा या जैसे यहीं के पानी में एक रूपए का पाउडर मिला कर उसमें झूठा उफान लाकर दस रूपए में बेच दिया जाता है जिससे शरीर को कीटनाशक के अलावा मिलता कुछ नहीं |

१९ जुलाई २०१४


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Jul 11, 2014

सब मिलकर पी जाएँगे सौ करोड़ का नीर (केन्द्रीय बजट २०१४ : दोहात्मक प्रतिक्रिया)



१. (नदियों के किनारे घाटों के विकास के लिए १०० करोड़ )

संसद-नदिया-घाट पर संत जनों की भीर ।
सब मिलकर पी जाएँगे सौ करोड़ का नीर ॥

२. (नदियाँ जोड़ने के अध्ययन के लिए १०० करोड़ )

नदियाँ तो जुड़ जाएँगीं पर सब चिंता-लीन ।
सौ करोड़ को किस तरह बाँटें बन्दर तीन ॥

३.(युद्ध-स्मारक के लिए १०० करोड़ )

पहले स्मारक बने अथवा पहले युद्ध ।
बँटवारा ही बन गया संकट विकट विशुद्ध ॥

४.(गंगा सफाई के लिए २०३७ करोड़ )

भोले बाबा करेंगे इनको कैसे माफ़ ।
गंगा गन्दी ही रही बजट हो गया साफ़ ॥

५. (अलग-अलग राज्यों में खेल अकादमियां)

सब राज्यों में चल पड़ा खुल्लम-खुल्ला खेल ।
नए बजट के फंड को कैसे डालें पेल ॥

६. ( नए बजट में जूते सस्ते )

जूते सस्ते हो रहे जाने क्या हो हाल ।
डर कर अपनी खोपड़ी जनता रही सँभाल ॥

७. (वरिष्ठ जनों को टेक्स सीमा में छूट )

जब आमद ही नहीं तो व्यर्थ टेक्स में छूट ।
अरुण जेतली कर रहे झूठे यश की लूट ॥

८. (नए बजट में खैनी पर टेक्स बढ़ा )

लालू खैनी रगड़कर टाइम रहे गुज़ार ।
उस पर भी कर लगाकर करते अत्याचार ॥

९. (उत्तर-पूर्व में २४ घंटे 'अरुण-प्रभा' खेल चेनल )

उत्तर-पूरब में रही प्रभा अरुण की फैल ।
हैं विकसित सरकार के सब आभासी खेल ॥

१०. (नए बजट में टी.वी. सस्ते )

टी.वी. सभी प्रकार के सस्ते मिलें, खरीद ।
हलवे से सुन्दर दिखे जिनमें सूखी लीद ॥

१० जुलाई २०१४


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२०१४ का बजट - दिल छोटा नहीं करते

अरुण जी
आपने बजट पेश किया । करना ही था । यह एक प्रकार से जनता के पसीने की कमाई का वार्षिक श्राद्ध है जिसे हर वित्त मंत्री को करना होता है । इस साल आप कर रहे हैं । सब अपने-अपने हिसाब से प्रतिक्रिया दे रहे हैं । ये सब वे हैं जिन पर किसी बजट का कोई असर नहीं पड़ता । इन सब के अपने-अपने साधन-स्रोत हैं । हम तो आपकी इस बात से खुश हैं कि शाब्दिक ही सही कुछ सहानुभूति तो ज़ाहिर की ।

आपने कहा- काश ! मैं टेक्स-पेयर को कुछ दे पाता । हम तो आपके पैदा होने के दस-बारह वर्ष पहले से देखते आ रहे हैं । सब बेचारे टेक्स-पेयर से लेने के चक्कर में ही रहते हैं । सो आप भी लें । हम तो इसे खाने से पहले अछूता निकालने की तरह दरिया में डाल देते हैं । मछली-मगरमच्छ जो चाहे खाए ।

आपने अपनी कुछ न दे पाने की मज़बूरी ज़ाहिर कर दी, हमारे लिए तो यही बहुत है । हम तो 'उल्फत न सही, नफ़रत ही सही, इसको भी मुहब्बत कहते हैं ' वाले आशिक हैं । आपने सीनियर सिटिज़न के लिए टेक्स की सीमा बढ़ाई, बहुत-बहुत धन्यवाद । यदि दस-बीस हजार घटा भी देते तो हमें हुछ फर्क पड़ने वाला नहीं था ।

आप मात्र इकसठ वर्ष के हैं । हम तो आपका खल्वाट देखकर आपको अडवाणी जी की उम्र समझते थे । और आप निकले हमसे भी दस-बारह वर्ष छोटे ।
सच, काम और बोझ की अधिकता आदमी को समय से पहले बूढ़ा बना देती है । ठीक है कि आप बहुत कर्मठ हैं लेकिन यह भी तो ठीक नहीं कि आप पर दस मंत्रियों का बोझ डाल दिया जाय । दो-दो विभाग और वे भी तगड़े वाले । तभी आज तक किसी भी वित्त मंत्री को बजट पेश करते हुए कमर दर्द नहीं हुआ । इतने लोग पड़े हैं लेकिन एक अकेले आप पर ही इतना बोझ क्यों डाला गया ?

दिन में एक सौ बीस करोड़ की चाय-बीड़ी, नमक-तेल का हिसाब रखें और रात को पकिस्तान, चीन और बंगलादेश की सीमाओं पर पहरा दें । अब कमर दर्द नहीं होगा तो क्या होगा । अब तक जो वित्तमंत्री थे वे यहीं आसपास से सामान जुटा कर रख देते थे । पर ‘अच्छे दिनों’ के चक्कर में मोदी जी ने आपको द्रोणाचल से संजीवनी लाने भेज दिया । हनुमान जी की बात और थी । वे तो वज्र के थे । हम तो साधारण आदमी हैं । ठीक है, आप में उत्साह और लगन है लेकिन आदमी की शक्ति की भी एक सीमा होती है । कमर की भी क्या गलती । उठाने वाला एक और बोझ एक सौ बीस करोड़ आदमियों का । लोगों के लिए एक छोटा-सा परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है ।
यह कमर-दर्द भी दाँत-दर्द की तरह बहुत गन्दी तकलीफ़ है । ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई ’ । हमें पता है । बाहर से कुछ नहीं दीखता लेकिन ज़रा-सा भी पोस्चर गड़बड़ हुआ तो दर्द का ऐसा काँटा-सा चुभता है कि बस ।

खैर, आपको विभाग दिए तो महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन ये ही वे दो विभाग हैं जिनमें सबसे अधिक आलोचना झेलनी पड़ती है । अब तक हमने देखा है कि सब वित्त मंत्री आज तक घाटे का बजट बनाते रहे हैं । अरे, जब है ही घाटा तो किससे क्या उम्मीद कर रहे हो ? और आपको पता है कि सारे झगड़े होते ही घाटे के हैं । जब अनाप-शनाप पैसा हो तो किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं रहती । चाहे दो सौ करोड़ खर्च करके पत्नी का जन्मदिन मनाओ या बेटे को दो करोड़ की कार भिड़ा देने के लिए दे दो ।

अब जब पैसा लिमिटेड हो और देश को बनाना हो पेरिस और लन्दन, तो खींचतान तो होगी ही । इस देश के लोग भी वास्तव में बड़े लीचड़ हैं । न मूर्तियाँ देखकर खुश होते हैं, और न टी.वी. से, न कम्प्यूटर से, न आधुनिकतम सेल-फोन से । हर समय आलू-प्याज, रोटी-पानी । पता नहीं, किस अकाल की पैदाइश हैं ये लोग !

आप तो अपनी गति से चलते रहिए जैसे अब तक के वित्तमंत्री चलते रहे हैं । हाथी को अपनी मस्ती में चलते रहना चाहिए । भौंकने वाले ऐसे ही भौंकते रहते हैं । घाटे का बजट बनाइए, और टेक्स लगाइए और जो कमियाँ हैं उनके लिए पिछली सरकार को दोष दीजिए । यही भारत की राजनीति की समृद्ध परम्परा है ।

आपने कुछ न कर पाने का अफसोस जता कर हमारे दुखते घुटनों पर महानारायण तेल लगा दिया । अब आप जो संजीवनी लाए हैं वह सडसठ साल से बेहोश लक्ष्मण को जिंदा करने के लिए सूर्योदय से पहले पहुँचेगी या नहीं यह विधाता जाने । हो सके तो इस संजीवनी की दो बूँदें आत्महत्या कर चुके किसानों, भूख और कुपोषण से मर चुके बच्चों के नाम से भी आकाश में छींट दीजिएगा । क्या पता, अब तक नेतृत्वों का पाप प्रक्षालन हो जाए ।

हमने तो जो सुख देखने थे सो इन बहत्तर वर्षों में देख लिए ।

११ जुलाई २०१४

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Jun 22, 2014

तोताराम के तर्क और ज्योतिष-सम्राट श्री श्री शीतलाप्रसाद

भारत में जनवरी २०१४ में एक चाय शुरू हुई थी जिसने दिल्ली पहुँच कर दम लिया । अब बच गया खाली कप जिसके लिए ब्राज़ील में मारामारी चल रही है । खिलाड़ियों के सात्त्विक उत्साह की वृद्धि करने और ब्राजील की अर्थव्यवस्था के विकास में सहयोग देने के लिए एक लाख वेश्याएँ भी तैयार हो रही हैं । सुनते हैं कोई ३० लाख गुण-ग्राहक भी पहुँच चुके हैं । इस कुम्भ में सब एक महीने तक स्नान करके, पुराने पाप धोकर, फिर नए पाप बटोरने के लिए चार साल के लिए अपने-अपने धामों को चले जाएँगे ।

दीन-दुनिया की समस्याएँ तो ज़िन्दगी से जुड़ी हैं, यह नहीं तो वह । इनका क्या रोना-गाना ? सो इराक और उत्तर-प्रदेश में बलात्कार जैसी छोटी-मोटी समस्याओं को दरकिनार करके हम चार वर्ष में एक बार आने वाले इस कप के बारे में विचार कर रहे थे कि गाली-गलौच, टँगड़ी, लँगड़ी और छाती में सिर की टक्करों आदि के बाद अंततः इस धर्म-युद्ध में कौन विजयी होगा ?

पिछली बार २०१० में दक्षिण अफ्रीका में हुए वर्ल्ड कप में कोई 'पॉल बाबा' नाम के ऑक्टोपस और 'हैरी' नामक एक मगरमच्छ टीमों की जीत-हार का भविष्य बता रहे थे तो इस बार ब्राजील में इसी काम के लिए सेबेकाओ नाम की एक २५ वर्षीय आत्मा ने कछुए के रूप में अवतार लिया है । सुना है चीन में भी, 'पंडित' नाम का भ्रम पैदा करने वाले एक पांडा भी भविष्य बताने के लिए तैयार हैं । संयुक्त अरब अमीरात में एक ऊँट महोदय भी इस काम में लगे हुए । वहाँ सब शाह ही होते हैं तो इन ऊँट महोदय का नाम भी 'शाहीन' है । वैसे हमारे राजस्थान में 'ऊँट' को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है । मूर्खों का भविष्य हमेशा ऊँट से जुड़ा हुआ रहता है और हमेशा अनिश्चित रहता है क्योंकि पता नहीं, ऊँट किस करवट बैठेगा, खुद ऊँट को भी नहीं ।

तभी तोताराम प्रकट हुआ, पूछने लगा- क्या मंथन हो रहा है ?
हमने कहा- अब अगले पाँच साल के लिए मंथन का काम सैंकड़े से दहाई, दहाई से इकाई और इकाई से शून्य सीटों में रह गए नेताओं का है । अपन तो अब अच्छे दिनों के स्वागत की तैयारी करेंगे, फिलहाल फ़ुटबाल वर्ल्ड कप के विजेता के बारे में सोच रहे थे कि किसकी भविष्यवाणी सही निकलेगी- कछुआ जी की, पांडा जी की या ऊँट महोदय की ?

बोला- मास्टर, क्या हमारे यहाँ भविष्य वक्ताओं की कमी है जो इन विदेशी जानवरों पर आश्रित हो रहा है ? हर चेनल पर, हर अखबार में, हर गली-नुक्कड़ पर; कोई तोते से कार्ड निकलवाकर, कोई हाथ देखकर, कोई बैल से सिर हिलवाकर, कोई फूल का नाम पूछकर आदमी, देश, टीम ही नहीं, तुम्हारे कुत्ते, भैंस और साइकल तक का भविष्य बताने वाले मौजूद हैं । चल, बाहर चल । तेरी उत्सुकता का शमन करने के लिए विश्व प्रसिद्ध, ज्योतिष सम्राट, पंडित श्री श्री शीतलाप्रसाद पधारे हैं ।

जल्दी से ज्योतिषी जी का स्वागत करने के लिए तोताराम के साथ बाहर निकले तो कोई दिखाई नहीं दिया । पूछा- कहाँ है सम्राट ?


कूड़े के ढेर के पास खड़े एक मरियल से गधे की और संकेत करके बोला- ये कौन हैं ? ये ही तो हैं शीतलाप्रसाद जी ।


हमने कहा- यह तो गधा है ।



बोला- सीधा है इसलिए तुझे गधा दिखाई दे रहा है लेकिन याद रख, सभी ज्ञानी और महान लोग सीधे ही होते हैं । चमक-दमक तो नकली और लम्पट लोग करते हैं । पिछले जन्म में शीतला माता का वाहन था इसलिए शीतलाप्रसाद नाम है ।

अरे, भविष्य में क्या है ? दो का मैच हो या दो बड़ी पार्टियाँ चुनाव मैदान में हों तो दोनों को ही गुप-चुप और अलग-अलग लेकर जीत का भविष्य बता दो । एक तो जीतेगा ही । हारने वाला भले ही कुछ नहीं बोले लेकिन जीतने वाला तुम्हारे चमत्कार के गुण गाता फिरेगा और तुम्हारा धंधा चल निकलेगा । लेकिन ये औरों की तरह लोगों को उल्लू नहीं बनाते ।

वैसे ये भविष्य बताने की अपेक्षा, भविष्य बनाने-बिगाड़ने में अधिक रुचि रखते हैं । पिछले चौसठ साल से सरकारें बनाते-गिराते आ रहे हैं । ध्यान से देखो, इनकी बाईं जाँघ पर अमिट स्याही का अमिट गोल निशान । यही नहीं, इनके किसी भी सजातीय भारतीय बन्धु के यह निशान मिलेगा, विदेशी नस्लों का पता नहीं ।

यदि फ़ुटबाल वर्ल्ड कप के बारे में जानना चाहते हो तो मैच खेल रही दो टीमों को नंबर दे दो- एक और दो । और फिर इनके पीछे खड़े होकर श्रद्धा भाव से इनकी पूँछ के बालों को सहलाओ । यदि ये बाईं लात फटकारें तो एक नंबर की टीम जीतेगी और दाईं लात फटकारें तो दो नंबर की टीम जीतेगी । यदि दोनों लातें एक साथ फटकारें तो मैच ड्रा होगा ।

यदि इस प्रक्रिया में प्रश्नकर्त्ता के घुटने फूट जाएँ तो उसके लिए तोताराम उत्तरदायी नहीं होगा ।


१४ जून २०१४


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Jun 14, 2014

चमत्कार को नमस्कार उर्फ़ मोदी का कुर्ता


तोताराम को बोलने का अवसर न देते हुए आज हमने ही शुरुआत की- देखा तोताराम, इसे कहते हैं चमत्कार । लगा ना अमरीका नमस्कार करने, अपने नरेन्द्र भाई को ? कल तक जो मादी को वीजा न देने पर अड़ा हुआ था आज अपनी उपविदेश मंत्री से कहलवा रहा है कि मोदी भारतीय जनता की आशाओं-आकांक्षाओं के प्रतीक हैं और अमरीका उनके साथ मिलकर भारत की जनता की आशाओं को पूरा करना चाहता है । वहाँ का मीडिया और फैशन जगत मोदी के आधी आस्तीन के कुर्ते पर फ़िदा हुआ जा रहा है । अब अधिकतम चुनावी रैलियाँ करने के कारण उनका नाम गिनीज बुक में शामिल करने को उतावला है ।


यह ठीक है कि पहले अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इंकार किया । करता भी कैसे नहीं ? मोदी जी बिना चुने ही, गुजरात के मुख्य मंत्री जो बन गए थे । ऐसे में अमरीका कैसे उन्हें वीजा देता । यदि मोदी पाकिस्तान के अयूब, याह्या, जियाउल हक़, मुशर्रफ या मध्य-पूर्व के शेखों या हैती के शासक की तरह जनता के चुने हुए हृदय-सम्राट होते तो अमरीका वीजा दे भी देता लेकिन किसी डिक्टेटर को वीजा कैसे दे सकता था ? अब चुने गए तो स्वागत के लिए तैयार है । अमरीका सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक देश है ।

तोताराम बोला- पिछले साठ बरस से अखबार पढ़ रहा है, बुद्धिजीवी की पूँछ बना घूमता है और इतना भी नहीं समझता । सब मतलब की मनुहार है । पहले मनमोहन सिंह जी बिक्री करवाते थे दुनिया के पाँच स्थायी पंचों को, तो वे उनसे मिलने को उतावले रहते थे । जब कभी थोड़े से इधर-उधर हुए तो कभी 'अंडर अचीवर' और कभी 'सोनिया जी का गुड्डा' कहकर बदनाम करने लगते थे । अब खजाने की चाबी मोदी जी के पास आ गई है सो उनसे मिलने को बेचैन है । जिसकी जेब से हजार के नोट झाँकते है, लाला उसी को स्टूल पर बैठकर चाय पिलाता है । जो तेरी तरह दस चीजों के भाव पूछता है, हर चीज को दस बार उलट-पुलट कर देखता है और खरीदता कुछ नहीं, उसकी तरफ कौन दुकानदार देखेगा ?

हमने कहा- तू तो हर बात में किन्तु, परन्तु लगाता है लेकिन मोदी के आधी बाँह के कुर्ते पर फ़िदा होने में अमरीका को क्या फायदा हो सकता है ?

कहने लगा- है, इसमें भी कुछ रहस्य है । हो सकता है अगर सावधान नहीं रहे तो हल्दी और नीम की तरह वह अब मोदी के कुर्ते और दाढ़ी के स्टाइल को भी पेटेंट करा लेंगे । और यदि यह भी नहीं हुआ तो वह मीडिया में 'कुर्ता-कुर्ता' का हल्ला मचा-मचाकर मोदी का ध्यान अपने विकास कार्यक्रमों से हटाकर कुर्ते में ही उलझा दे । जैसे १९८५ में राजीव गाँधी तीन चौथाई बहुमत मिलने के कारण, भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही परेशान करने वाली बहुत सी समस्याओं को संविधान में संशोधन करके हमेशा के लिए सुलझा सकते थे लेकिन भाई लोगों ने उन्हें आदिवासियों में घुमा-घुमाकर ही पाँच वर्ष निकाल दिए । कुछ करने का मौका ही नहीं दिया और उसके बाद में किसी को कुछ करने लायक बहुमत ही नहीं मिला । जैसे मीडिया हर जगह 'सुंदरी' ढूँढ़ता है । कोर्ट में सैंकड़ों कैमरे लगे रहते हैं जो विभिन्न कोणों से फोटो खींचते हैं और जो सबसे उत्तेजक फोटो होते हैं उन्हें बेचकर पैसा कमाया जाता है । सानिया के खेल से ज्यादा उसकी छोटी स्कर्ट प्रचारित होती है । महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं बल्कि 'टेनिस-सुंदरियां' कही जाती हैं । ऐसे ही यह कुर्ता और दाढ़ी का प्रेम है । विकसित देश लोगों को उलझाने के विशेषज्ञ हैं ।

जिस दिन मोदी जी भारत-हित को प्रमुखता देने लग जाएँगे, आयात की बजाय निर्यात बढ़ाने लग जाएँगे, योरप-अमरीका को ठेके देने कम कर देंगे, देश-प्रेम और स्वालंबन के काम करने लग जाएँगे उस दिन पता चलेगा इस 'कुर्ता-प्रेम' का ।

हम तोताराम को सच सिद्ध होते देखना चाहते हैं ।

१३ जून २०१४

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Jun 10, 2014

तोताराम के तर्क और लालच की हद


पहले तो कोई खास रोमांच नहीं होता था और न कोई खटका लेकिन जब से चुनाव खिसक-खिसका कर मई में आ रहे हैं उससे थोड़ा टेंशन हो जाता है । निवर्तमान सरकार जाते-जाते आधा-अधूरा सा बजट घोषित करने के साथ ही महँगाई भत्ते की भी विगत जनवरी से लागू होने वाली एक क़िस्त घोषित कर जाती है । दिल में यह धुकधुकी लगी रहती है कि क्या पता नई सरकार उसे मानेगी या नहीं ? अबकी बार यह धुकधुकी कुछ अधिक थी । इसलिए भी कि मोदी जी मितव्ययी हैं, जब अपने लिए पूरा-सा ब्लेड का खर्चा भी नहीं करते तो क्या पता विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए मास्टरों के महँगाई भत्ते पर ही कैंची न चला दें ।

इसी टेंशन में मार्च, अप्रैल और मई निकल गए, साँसें अटकी रहीं । जुलाई से मिलने वाली क़िस्त का तो बैंक में जाकर पता कर आते थे कि क्रेडिट हुआ या नहीं लेकिन आजकल गरमी के मारे हिम्मत ही नहीं पड़ रही है । तोताराम के पास नहीं है लेकिन हमारे पास एक लेपटोप है । उसी पर हमारी एसोसिएशन के महासचिव ने मेल भेज दी कि डी.ए. क्रेडिट हो गया है । सो आज आते ही हमने तोताराम को सरप्राइज़ दिया- तोताराम, मुँह मीठा करवा, अपना डी.ए. क्रेडिट हो गया ।


खुश होना और मुँह मीठा करवाना तो दूर की बात, सड़ा-सा मुँह बनाकर कहने लगा- पहले तो चालीस बरस तनख्वाह पेली, साढ़े चार हजार पेंशन पर रिटायर हुआ जो बैठे-बिठाए अब तक बढ़कर अठारह हज़ार हो गई तिस पर भी जब देखो - हाय डी.ए., हाय पे कमीशन । अरे, संन्यास आश्रम में घुसने की उम्र आ गई लेकिन यह लालसा, तृष्णा ख़त्म नहीं हुई । कहाँ ले जाएगा इतना धन ? स्विस बैंक में भी जमा करना सुरक्षित नहीं रहा । पता नहीं, कब जेतली जी के महात्मा गाँधी (बाबा रामदेव) अनुलोम प्राणायाम के बल से स्विस बैंक के काला धन भारत खींच लाएँ । फिर क्यों मरा जा रहा है डी.ए.-डी.ए. करके ।


अब तो हमें बर्दाश्त नहीं हुआ । कौन जनसेवक और धर्म सेवक ऐसा है जो आती लक्ष्मी को छोड़ देता है । भले ही संसद में जाए या न जाए, एक दिन भी मुँह नहीं खोले, खोले तो प्रश्न पूछने के भी पैसे ले ले, सांसद-निधि में से बीस प्रतिशत कमीशन खाए, अपने फर्स्ट क्लास के रेल के पास बेच दे, केन्द्रीय विद्यालय के दो एडमीशन भी नीलाम कर दे, मौका लगे तो मुफ्त फोन से पी.सी.ओ. खोल ले, सांसद वाला मकान खाली करना पड़े तो पंखे और परदे उतार कर ले जाए । एक साल भी सांसद या एम.एल.ए. रह जाए तो ज़िन्दगी भर पेंशन पेलता है । हमने तो चालीस बरस नौकरी की है ईमानदारी से ।



तोताराम ने हमें टोकते हुए कहा- मैं जनसेवकों की बात नहीं कर रहा हूँ । इन्हें कौन नहीं जानता । ये सब तो मौसेरे भाई हैं । न किसी लम्पट नेता को आज तक फाँसी हुई है और न ही होगी । जेतली जी ने मोदी जी के शादीशुदा होने के मुद्दे पर कांग्रेस के हल्ला मचाने पर कहा नहीं था, कि राजनीति का एक अघोषित एजेंडा होता है । यह अघोषित एजेंडा क्या है ? यही तो मौसेरा भ्रातृत्त्व है । मैं तो मुकेश अम्बानी की बात कर रहा हूँ । बन्दे का जिगरा देखा, चाहता तो सारा मुनाफ़ा अपनी तनख्वाह में जोड़ लेता लेकिन पाँच साल से उसी तनख्वाह पर काम कर रहा है । डी.ए. तो डी.ए., इन्क्रीमेंट तक नहीं लिया । है कोई ऐसा सादगी पसन्द और मितव्ययी ?

हमने हाथ जोड़ते हुए कहा- नहीं, भैया नहीं । उलटे, बेचारे ने खुद ही घटाकर अपनी तनख्वाह ३९ करोड़ से मात्र पंद्रह करोड़ वार्षिक कर ली है । पता नहीं, कैसे काम चलता होगा बेचारे का ?


तोताराम भी कौन सा कम है, उसी सुर में बोला- मैं सब समझता हूँ तेरा व्यंग्य । लेकिन तू यह क्यों नहीं सोचता कि उसे इसमें कितने बड़े-बड़े खर्चे मेंटेन करने पड़ते हैं । कभी पत्नी को चार सौ करोड़ की नाव, कभी दो सौ करोड़ का पत्नी का पचासवाँ जन्म-दिन, जब भी कहीं जाना हो तो हवाई जहाज में तेल भरवाना, एंटीलिया का सालाना पाँच करोड़ का बिजली का बिल, और तिस पर इतने बड़े मकान का झाड़ू-पोचा । तेरी तरह थोड़े है कि एक ही हवाई चप्पल को पूरे साल फटकारता रहे, दो कुरते-पायजामे में दो साल निकाल दे । कहने को भारत का सबसे धनी व्यक्ति है लेकिन काम चलाता है केवल १५ करोड़ सालाना में ।

हमने कहा- बन्धु, तुमने जो हिसाब बताया है उससे हमारा दिल वास्तव में भर आया है इसलिए तू भी क्या याद करेगा । जा, जब तक सरकार मुकेश अम्बानी की गैस के दाम नहीं बढ़ाती तब तक हम इस बार का डी.ए. मुकेश राहत कोष में देने का वादा करते हैं ।


८ जून २०१४


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May 27, 2014

सन २०१९ तक इंतज़ार


सब सस्ता या मुफ्त में रोटी, मछली , चाय |
रसना अब सब छोड़कर नमो-नमो दोहराय |
नमो-नमो दोहराय, जियो मोदी जी युग-युग |
इससे बेहतर तो शायद ही होगा सतयुग |
जोशी हमने कहा- दो नमो-प्लेट दीजिए |
बोला- ताऊ, सन उन्नीस तक वेट कीजिए |

२७ मई २०१४ 


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May 24, 2014

राजा की मर्जी


(नमो चाय,नमो रोटी, फिर चेन्नई में नमो मछली और अब लखनऊ के एक आम उत्पादक ने अपने द्वारा विकसित एक किस्म का नाम 'नमो आम' रखा -२३ मई २०१४ )

रोम-रोम में रम रहे मोदी बनकर राम |
कभी चाय, रोटी कभी और कभी बन आम |
और कभी बन आम, कभी बन जाते मछली |
वे ही उपवन, फूल वही औ' वे ही तितली |
कह जोशी कविराय यही ताकत का फंडा |
राजा की मर्ज़ी बच्चा दे अथवा अंडा |

२४ मई २०१४

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Apr 14, 2014

तोताराम और छप्पन इंच का सीना


पिछले पचास साल जिन लोगों की लफंगई और हरामज़दगी देखते सुनते आ रहे हैं वे इस चुनाव के मौसम में बरसाती पतंगों की तरह आँखों में आकर गिर रहे हैं । उनकी झूठी मुस्कान के नीचे खलनायक वाली असलियत छुप नहीं पा रही है । निगाहें मिलते ही वे भी समझ जाते हैं और हम भी । दोनों की मज़बूरी है - उनकी सेवा करने की और हमारी जान बचा कर कहीं और न जा सकने की । किसी तरह घर में छुपते-छुपाते १४ मई २०१४ का इंतज़ार कर रहे हैं- जब ये पाँच साल के लिए अपने-अपने दलालों के साथ बंगलों में बंद हो जाएँगे और हम अपने चबूतरे पर जम जाएँगे ।

खैर, अभी तो धूप तेज़ नहीं है सो चबूतरे पर ही बैठे हैं । पत्नी के बुलावे पर जैसे ही चाय लेने अन्दर गए, बाहर से जोर-जोर से आवाज़ आई- मास्टर जी, जल्दी बाहर आइए । बाहर निकल कर देखा- दो लोग एक ठिगने और मोटे से बेहोश आदमी को चबूतरे पर लिटा रहे थे । कह रहे थे- जल्दी से ठंडा पानी लाइए । पता नहीं, बेचारा कौन है ? यहीं कोने पर वाटर वर्क्स वाले ट्यूब वेल के पास पड़ा था । हम जल्दी से अन्दर से ठंडा पानी लेकर आए । लोग गमछे से उसके मुँह पर हवा कर रहे थे । हमने कहा- इसके मुँह पर पानी के छींटे मारो और इसका कोट उतारो और कमीज़ के बटन खोल दो । पता नहीं, कैसा आदमी है जो इस गरमी में कोट पहने हुए है ?

मगर यह क्या ? कपड़े तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे । कोट के नीचे लम्बी बाँहों का स्वेटर, फिर आधी बाँहों का स्वेटर, कमीज़, कुरता, फिर आधी बाँहों की कमीज़ । चबूतरे पर कपड़ों का ढेर लग गया और कपडे हैं की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे । यह तो वैसे ही हो गया जैसे कोई जादूगर अपने मुँह से रंगीन कागज़ की पन्नियाँ निकालता ही चला जाता है । एक बार एक पत्रिका में एक कार्टून देखा था जिसमें एक बहुत मोटा दिखने वाला आदमी अपने कपड़े उतार रहा है । कपड़े उतरते जा रहे हैं और उसका असली आकार प्रकट होता जा रहा है । अंत में ऊन उतारी हुई भेड़ की तरह डेढ़ पसली का एक मरियल जीव प्रकट होता है जिसके नीचे लिखा था- क्लोद्स मेक अ मैन ।

कपड़े उतारने और मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारने में उस आदमी शक्ल पर ध्यान ही नहीं गया । अचानक लगा- यह तो तोताराम है । हमें बड़ा गुस्सा आया -बेवकूफ, इस ३५ डिग्री गर्मी में तू ये दस-दस कपड़े लादकर कौन सा हठयोग कर रहा था ? क्या यह आत्महत्या करने का नया तरीका निकाला है ?

दस-पाँच मिनट बाद तोताराम ने सामान्य होते हुए कहा- कुछ नहीं भाई साहब, ज़रा पर्सनेलिटी बना रहा था । मेरे इस तीस इंची सीने के कारण कोई मेरी सुनता ही नहीं । अब सीना वास्तव में तो बढ़ने से रहा । मैंने सोचा कुछ एक्स्ट्रा कपड़े पहनकर ही इसे छप्पन इंच का नहीं तो चालीसेक इंच का तो दिखा ही दूँ । सो सीना तो पता नहीं कैसा दिख रहा था लेकिन गरमी के मारे चक्कर ज़रूर आ गया । अब ठीक हूँ ।

हमें गुस्सा तो इतना आ रहा था कि इसके एक-दो हाथ जमा दें लेकिन किसी तरह कंट्रोल करते हुए पूछा- तुझे अब सीना फुलाकर किस हसीना को पटाना है ?

तोताराम ने हमारा हाथ थामते हुए बड़ी विनम्रता से कहा- नहीं मास्टर, ऐसा कैसे सोचा सकता है तू । लेकिन जब से मैंने सुना है कि छप्पन इंच के सीने के बिना देश का विकास नहीं किया जा सकता तो मैंने सोचा कि उस विकास को झेलने के लिए भी तो छप्पन इंच का नहीं तो कम से कम छत्तीस इंच का सीना तो चाहिए ही । सो यह बेवकूफ़ी कर बैठा । अब चल अन्दर चलते हैं, यहाँ बैठे रहे तो क्या पता किधर से आकर कौन विकास-पुरुष कंठ पकड़ ले । भाभी से कह चाय नहीं, थोड़ा-सा शरबत बना दे तो कुछ राहत मिले ।

१४ अप्रैल २०१४

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Mar 17, 2014

भावी प्रधान मंत्री के साथ डिनर


कुछ दिन से बरसात, ओले और ठण्ड के कारण होली का माहौल बन ही नहीं पा रहा था । होली के स्वागत के चक्कर में ठण्ड खा जाने की जोखिम उठाना उचित नहीं समझ रहे थे । आज ठण्ड थोड़ी कम है । पता नहीं, मोदी जी की गुजरात में गुड गवर्नेंस के कारण है या राहुल के क्रांतिकारी तेवर के कारण या फिर केजरीवाल के धरने की धमकी के कारण । मगर मौसम थोड़ा ठीक है सो होली के उपलक्ष्य में बनाई गई चार-पाँच मठरियाँ और चाय लेकर चबूतरे पर बैठे थे । जैसे ही मठरी का एक टुकड़ा मुँह में डालने को हुए कि किसी ने ठीक वैसे ही हमारा हाथ पकड़ लिया जैसे सुदामा के दो मुट्ठी चावल खाने के बाद रुक्मिणी ने कृष्ण का हाथ पकड़ लिया था । चौंक कर देखा तो तोताराम ।

हमने झुँझलाकर कहा- यह क्या बदतमीजी है ?

बोला-मेरा क्या है ? मैं तो तेरी सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा हूँ ।

हमने कहा- हमारी मठरियाँ, हमारी चाय और हमारा चबूतरा- और ऊपर से चुनाव का माहौल, कोई भी पार्टी और उम्मीदवार भले ही बाद में पाँच वर्ष चाहे हमारी हवा टाईट रखे लेकिन पोलिंग वाले दिन तक तो हमारे इन मानवाधिकार का हनन नहीं करेगा ।

हम जो अखबार को पढ़ रहे थे उसके पहले पेज पर अटल जी के सन २००४ के चुनाव में 'जागा है यह भारत' की तरह ऊपर की तरफ हाथ उठाए, आकाश को तौलने की मुद्रा में नरेन्द्र मोदी का फोटो था । तोताराम ने चाय की तरफ इशारा करते हुए कहा- यह क्या है ?

हमने कहा- चाय ।

फिर पूछा- ये क्या हैं ?

हमारा उत्तर था- मठरियाँ ।

फिर अखबार में मोदी जी का फोटो दिखाते हुए पूछा- यह कौन है ?

हमने चिढ़कर कहा- कौन है, मोदी है ।
तोताराम ने दीवार का सहारा लेते हुए कहा- इससे सिद्ध होता है कि तूने मोदी जी के साथ चाय पी और मोदी के साथ नाश्ता भी किया । अब चुनाव आयोग यह खर्चा मोदी के चुनाव खर्च में डालेगा और मोदी जी तुझसे इसका चार्ज वसूल करेंगे ।

हमने कहा- यह भी कोई बात हुई ? हम अपने चबूतरे पर अपनी चाय पिएँ और अपनी मठरी खाएँ इसमें किसी के बाप का क्या दखल ?

तोताराम ने हमें एक और खबर दिखाते हुए कहा- एक ही टेबल पर मोदी के साथ खाना खाने के २५ लाख, अढाई लाख में सामने की लाइन में और १ लाख में पीछे वाली लाइन में बैठकर खाने के लग रहे हैं ।

हमने कहा- हम तो मोदी से कोई हजार किलोमीटर दूर अपने चबूतरे पर बैठकर अपनी चाय और मठरी का सेवन कर रहे हैं ।

तोताराम ने कहा- यह ठीक है लेकिन जैसे आजकल हर काम में बहुत बारीक अक्षरों में 'कंडीशन्स अप्लाई' छपा होता है वैसे ही किसे पता कोई ऐसी ही कंडीशन इस डिनर की भी निकल आए कि लोकसभा चुनाव २०१४ के वोट पड़ने तक जो भी भारतीय कहीं भी बैठकर, खड़े होकर या लेटकर कुछ भी खाएगा उसे कम से कम पाँच सौ रुपए नरेन्द्र मोदी के चुनाव फंड में जमा करवाने होंगे । तब क्या कर लेगा ? बंदा गुड गवर्नेंस वाला और कड़क भी । छोड़ेगा नहीं । अब आगे तेरी मर्ज़ी । सावधान करना मेरा फ़र्ज़ था सो कर दिया ।

हमने पत्नी से कहा- इस अखबार को दरी के नीचे दबा दे या चूल्हे में फेंक दे या फिर जब तक चुनाव ख़त्म नहीं हो जाएँ तब तक रसोई के ताला लगा दे ।


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Mar 2, 2014

तोताराम की क्लीन चिट

तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, आज चाय नहीं पीनी है । बस, जल्दी से एक क्लीन चिट दे दे ।

हमने कहा- भई, अभी तो क्लीन चिट नहीं है । एक तरफ लिखी हुई चाहे तो तू कहे जितनी दे दें । और अगर बिलकुल ही क्लीन, मतलब दोनों तरफ से क्लीन चाहिए तो बाज़ार खुलने दे, वो भी मँगवा देंगे ।


तोताराम गुस्सा गया, बोला- तेरा दिमाग तो ठीक है, मैं कोई कागज़ का टुकड़ा माँग रहा हूँ क्या ? मुझे तो तुम्हारी माजपा और भाजपा दोनों पार्टियों से क्लीन चिट चाहिए ।
हमने कहा- हमारी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है और फिर यदि बनें भी तो एक ही घर में दो धुर विरोधी पार्टियाँ कैसे बनेंगीं ?


-अरे, भोंदू राम, मैं मार्क्सवादी जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की बात थोड़े ही कर रहा हूँ । और फिर मार्क्सवादियों की किसी भी पार्टी में जनता थी ही कब ? मैं तो तेरी 'मास्टर जनता पार्टी ' और भाभी की 'भाभी जनता पार्टी ' की बात कर रहा हूँ ।
हमने कहा- न तो तू चुनाव लड़ रहा है और न ही तेरे ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप है फिर क्लीन चिट क्यों चाहिए ?


-लड़ क्यों नहीं रहा । मैंने अपनी पार्टी अजपा अर्थात 'अध्यापक जनता पार्टी' बना ली है । और दिल्ली में पार्टी कार्यालय के लिए अर्जी भी दे दी है । और कुछ नहीं तो दिल्ली में एक मकान तो मिल जाएगा । अपन नहीं रहेंगे तो किराए पर उठा देंगे, पचास हजार रुपए महिने का किराया ही आता रहेगा । और क्लीन चिट इसलिए चाहिए कि आजकल मोदी और राहुल दोनों पर अम्बानी के हेलीकोप्टर का उपयोग करने के आरोप लग रहे हैं । किसे पता कल को कोई यह आरोप ही लगा दे कि तोताराम चालीस बरस से मास्टर के यहाँ रोज़ पाँच रुपए की एक चाय पीता है और आज तक इस पर कोई टेक्स नहीं दिया । आमदनी तो है ही, कैश में नहीं तो काइंड में । सो दे ही दे एक क्लीन चिट ।

इतने में गली में जोर की आवाज़ गूँजी- क्लीन चिट ले लो, क्लीन चिट ।


हमने कहा- ले तेरी समस्या हल हो गई । लगता है रामविलास पासवान का बेटा चिराग होगा या फिर सलमान खान । जा, तू भी ले ले क्लीन चिट ।


अब तो तोताराम गुस्सा गया- देख मज़ाक मत कर । सलमान खान सबसे महँगा स्टार है और लोक जनशक्ति एक गतिशील पार्टी । क्या वे इस तरह क्लीन चिट बाँटते फिरेंगे ? भले ही पासवान को लालू ने राज्यसभा में पहुँचाया है, खुद पासवान के अलावा कोई संसद सदस्य भी इसका नहीं है लेकिन पार्टी राष्ट्रीय है, दिल्ली में पार्टी कार्यालय जो मिला हुआ है ।


हमने कहा- यह भी कोई पार्टी है , एम.पी. एक, वह भी राज्य सभा का, सो भी किसी की मेहरबानी से और पदाधिकारी दस ।


कहने लगा- फिर भी क्लीन चिट तो क्लीन चिट है ।


इतने में पत्नी चाय ले आई और एक कोरा कागज़ तोताराम के हाथ में पकड़ाती हुई बोली- लाला, ये लो क्लीन चिट, निर्भय होकर चाय पिओ और कूद पड़ो कपड़े उतार कर इस हम्माम में । महाभारत में भी कहा है- ‘आशा बलवती राजन’ । लेकिन याद रखना , जब हम दिल्ली घूमने आएँगे तो तुम्हारी पार्टी के दफ्तर में ही ठहरेंगे और संसद की कैंटीन में रियायती खाना खाएँगे ।


तोताराम उछला- यह हुई ना बात भाभी, डन । और चाय उसके कुरते पर छलक गई ।
२५ फरवरी २०१४

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Feb 23, 2014

पृष्ठभूमि का प्रदर्शन

ज़नाब आज़म खान,
अस्सलाम वालेकुम । आप वजीर हैं और आज़म भी फिर पता नहीं इस देश ने आपको वज़ीरेआज़म क्यों नहीं बनाया ? वैसे बनाने से क्या होता है । आदमी में दम हो तो पद न होते हुए भी हर हालत में खुद को साबित कर ही देता है । आपने बार-बार खुद को साबित किया है और जमकर साबित किया है । 


कश्मीर में राष्ट्र गान का अपमान किया जाता है, तिरंगा झंडा जलाया जाता है, वज़ीरेआज़म मनमोहन सिंह जब वार्ता करने के लिए कश्मीर जाते हैं तो उनको बैरंग लौटा दिया जाता है, फिर भी वे कुछ नहीं बोलते, उलटे कश्मीर के नेताओं और आतंकवादियों को जेब खर्च के लिए हजारों करोड़ का पॅकेज दे आते हैं । वे जानते हैं कि कश्मीर में उनकी वज़ीरेआज़मी नहीं चलती फिर भी सच नहीं कह सकते हैं लेकिन आपने स्पष्ट रूप से अपने विचार प्रकट कर दिए कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है । इसे कहते है जिगरा और कड़वा सच बोलने की हिम्मत । अगर आपमें दम नहीं होता तो क्या मुलायम आपको निकाल कर फिर मनाकर वापिस लाते ?

जब 'रामपुर का लक्ष्मण' फिल्म बनी तो हमें लगा कि ये निर्देशक ऐसी ऐतिहासिक गलतियाँ क्यों करते हैं ? अरे, 'लक्ष्मणगढ़ का लक्ष्मण' नाम नहीं रख सकते थे क्या ? और मान लो यदि रामपुर से इतना ही प्रेम था तो 'रामपुर का राम' नाम रख सकते थे लेकिन नहीं, कुछ सरप्राइज़ होना चाहिए ना । जन्म स्थान से यदि इतना ही प्रेम था तो पिताजी आपका नाम राम खान रख सकते थे । आजकल तो सब चलता है । लेकिन कोई हिन्दू अपना नाम ज़हूरबक्श रख सकता है लेकिन सच्चे मुसलमान के लिए यह संभव नहीं है । तो फिर रामपुर का नाम ही बदल आज़मगढ़ रख देते । लोकतंत्र में नाम बदलने से ही बड़ा जनकल्याण हो जाता है जैसे पूना का पुणे, कलकत्ता का कोलकाता, बनारस का वाराणसी, बंबई का मुम्बई, गाज़ियाबाद का गौतम बुद्ध नगर और फिर गाज़ियाबाद । यदि यह संभव नहीं था तो आपकी पैदाइश के समय आज़मगढ़ चले जाते । खैर, नाम में क्या रखा है ? बेईमानी तो 'हरिश्चंद्र' नाम रखकर भी की जा सकती है ।

कुछ दिनों पहले आपकी सात भैंसें खो गई थीं या घूमने चली गई थीं लेकिन आपका सुशासन देखिए कि दो दिन बाद ही वापिस लौट आईं । लालू जी वैसे तो बहुत तड़ी मारते हैं लेकिन उनकी 'चारा युग' की दुधारू भैंसें ऐसे गायब हुईं कि आज तक नहीं मिल पाईं । हमें याद है १९८१ में बंगाल के राज्यपाल गोविन्द नारायण सिंह की इज़राइली नस्ल की एक बकरी चोरी हो गई लेकिन आज तक नहीं मिली । अज्ञात व्यक्तियों के नाम रिपोर्ट लिखवाई गई । कुछ दिनों बाद चारखाने की एक लुंगी बरामद करके फ़ाइल दाखिल दफ्तर कर दी गई । ऐसे 'सिंहों' का क्या ? आपके नाम के साथ इस्लाम के कारण 'सिंह' तो नहीं लगाया जा सकता लेकिन 'शेर' तो लगा सकते हैं । आज़म खान शेर या शेरे रामपुर आज़म खान । वैसे इसके बिना भी आपका रुतबा धाँसू है ।

अब देखिए, आज ही यू.पी. असेम्बली में कुछ जनसेवकों (एम्.एल.ए.) ने कपड़े उतार दिए । लोग कहते हैं कि इससे लोकतंत्र शर्मिंदा हुआ । अरे मियाँ, लोकतंत्र का शर्मिंदगी से क्या वास्ता ? जितना नंगा, उतना ही बड़ा नेता । आजकल तो छोटा मोटा वार्ड मेम्बर और सरपंच तक सड़क से संसद तक निर्वस्त्र घूमता है । किसी के बाप में दम नहीं कि उसका कुछ बिगाड़ ले । सबको चुनाव लड़ना है तो इन्हें बर्दाश्त करना सब की मज़बूरी है । आपने इस घटना पर अपने लोकतांत्रिक विचारों को आगे बढ़ाते हुए जो वक्तव्य दिया वह आपके अलावा और कोई क्या खाकर दे सकता था । आपने कहा- 'नीचे वाले कपड़े उतार देते तो पीछे से भी दर्शन हो जाते । मर्दानगी का पता चल जाता' । वैसे आप उनकी पृष्ठभूमि देखकर ही क्या करते । लोकतंत्र में सबकी पृष्ठभूमि लगभग एक जैसी ही होती है । कपड़े उतारें या नहीं, हमें तो इस हम्माम में सब एक जैसे ही नज़र आते हैं ।
जहाँ तक पृष्ठभूमि के प्रदर्शन का प्रश्न है तो काबिल लोग वह काम शब्दों से भी कर दिखाते हैं ।

आदाब ।
१९ फरवरी २०१४


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न्याय का तराजू

प्रिय राहुल जी,
नमस्ते । पूर्व प्रधान मंत्री और आपके पिता राजीव जी के हत्यारों की रिहाई के समाचार ने आपको ही नहीं पूरे देश के संवेदनशील लोगों को क्षुब्ध और निराश किया है । आपके दुःख को समझना अत्यंत सरल है । केवल २१ वर्ष की आयु में सर से पिता का साया उठ जाना कितना बड़ा सदमा होता है यह कोई भुक्त भोगी ही अनुभव कर सकता है । कहावत है- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीड़ पराई । मीरा ने भी कहा है- घायल की गति घायल जाने जो कोई घायल होय । हमारी पूरी संवेदना और सहानुभूति आपके साथ है ।

आपने कहा- जब एक पूर्व प्रधान मंत्री को न्याय नहीं मिल सका तो एक सामान्य आदमी का क्या हाल होता होगा । सामान्य आदमी के सच को जानने के बाद और उसे ईमानदारी से अनुभव करने के बाद आदमी राजा नहीं रह पाता, सिद्धार्थ की तरह राज-पाट छोड़कर बुद्ध हो जाता है । आपने सामान्य आदमी के जीवन का सच जाना ही नहीं । कैसे जानते, जानने का मौका ही नहीं मिला । आजकल राम, कृष्ण, चन्द्रगुप्त के समय जैसे राजा कहाँ होते हैं जो ऋषियों के आश्रम में रहकर, भिक्षाटन करके, जनता के बीच रहते हुए सिंहासन तक पहुँचते थे । आजकल तो राजकुमार महलों में रहकर, विदेशों में पढ़कर, बिना जनता को जाने गद्दी पर स्थापित कर दिए जाते हैं । आज देश में सभी पार्टियों में नेताओं के परिवार वालों को देख लीजिए । सभी बिना किसी अनुभव, योग्यता और सामान्य जन के संपर्क में आए बिना ही राजनीति और लाभ के पदों पर जमे हुए हैं । उनके पास समाधान के रूप में ब्रेड की जगह केक का विकल्प है । जो नीचे से उठकर ऊपर पहुँचे हैं उनमें भी अधिकतर अपने गुणों के बल पर कम और औद्योगिक घरानों और गुंडों के बल पर ज्यादा आश्रित रहे हैं । जो अपने बल पर पहुँचते हैं उन्हें भी भ्रष्ट राजनीति भ्रष्ट होने के लिए विवश कर देती है या वे खुद ही दुखी होकर छोड़ जाते हैं । भले और वास्तव में जन के बीच से निकले, संवेदनशील आदमी का राजनीति में बने रहना असंभव है ।

हम आपकी व्यक्तिगत बात नहीं कर रहे हैं लेकिन यह सच है कि हर आदमी की दृष्टि को उसका व्यवसाय प्रभावित अवश्य करता है । सच्चे सेवकों की बात हम नहीं करते । सुरेश आमटे आदिवासियों के बीच निस्वार्थ भाव से काम करते हैं । उनका धर्म है कि सभी लोग स्वस्थ रहें लेकिन जिसने पैसे कमाने के लिए दवाई का कारखाना लगाया, अस्पताल खोला है या जिसने केवल पैसे कमाने के लिए डाक्टरी पढ़ी है वे सभी यही चाहेंगे कि अधिक से अधिक लोग बीमार हों, उन्हें महँगी और अनावश्यक दवा लिखी जाए और अधिक से अधिक धन कमाया जाए । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ वर्षों पहले स्वाइन फ्लू का डर फैलाया और फिर एक विशेष कम्पनी की महँगी दवाइयाँ विभिन्न देशों को भेजी गई । इसकी सिफारिश करने वाले वे अधिकारी थे जिनके इन दवा कंपनियों में शेयर थे या वे इन कंपनियों में मैनेजर रह चुके थे । गरीब आदमी यदि उनके सामने तड़प रहा है लेकिन उसके पास देने को पैसे नहीं हैं तो वे उसका इलाज नहीं करेंगे । संवेदना गई भाड़ में । ट्यूशनिया मास्टर स्कूल में नहीं पढ़ाएगा । यदि ऐसा करेगा तो ट्यूशन कौन पढ़ेगा ? राजनीति वाले भी जीतने या विपक्षी को बदनाम करने के लिए मुद्दे ढूँढ़ते हैं, सामान्य आदमी की पीड़ा का उनके लिए इतना ही महत्त्व है वरना सहानुभूति और जन-कल्याण की खाज चुनाव के दिनों में ही क्यों चलती है ।

गाँधी जी इसीलिए कांग्रेस में शामिल होना चाहने वाले हर व्यक्ति को पहले कुछ महीनों अपने आश्रम में रखते थे जिससे वह सामान्य आदमी बन सके । आज की तरह यह नहीं कि जिधर भी पद और पैसा दिखा उसी दल की टोपी पहन ली और नाम दे दिया 'आत्मा की आवाज़' ।

हमने तो देश की स्वतंत्रता से लेकर आज तक यही देखा है कि न्याय, सुविधाएँ और मानवाधिकार सब कुछ शक्तिशालियों, नेताओं, सेठों और गुंडों के लिए है । सामान्य आदमी को कोई भी छोटा-मोटा कर्मचारी, अधिकारी और नेता गरिया देता है जब कि गुंडों, नेताओं पर कोई कानून नहीं चलता । नेताओं को पुलिस बड़े आदर से जेल में ले जाती है । जेल में ऐसे नेताओं के पैर छूते हुए पुलिस अधिकारियों के फोटो आपको भी याद होंगे । जेल में नेताओं को उनके मनपसंद भोजन, फोन, अखबार की सुविधा, जन्म दिन मनाने और रंडियाँ नचवाने की सुविधा मिलती है । सामान्य आदमियों को ऐसा नहीं तो कम से कम दुर्व्यवहार तो न मिले । क्या कभी इतनी गारंटी भी मिलेगी ?

जाति, आरक्षण-व्यवस्था और पार्टी पोलिटिक्स के चलते कितने लोगों के साथ और कैसा अन्याय होता है, उन्हें कैसी पीड़ा झेलनी पड़ती है इसकी कल्पना आप नहीं कर सकते । ट्रांसफर, प्रमोशन और नौकरी में कैसे-कैसे और किस तरह के भेद-भाव और अन्याय होते हैं उसका पता तो आपको तब चलता जब आप सामान्य आदमी के रूप में नौकरी कर रहे होते । हमने १९८१ में जयपुर में अजमेरी गेट पर पुलिस कार्यालय के सामने एक यातायात अधिकारी को एक सिरे से वाहनों को रोकते और एक जाति विशेष के लोगों के अतिरिक्त शेष सभी वाहन वालों को परेशान करते देखा है । आपको इसकी कोई कल्पना नहीं है । कभी, वास्तव में इस तरह वेश बदलकर कि कोई पहचान न सके, जनता में जाइए और फिर देखिए कि देश की क्या हालत है । इस समय देश, गरीब, सामान्य आदमी, विकास, सेवा आदि की जो बातें चल रही हैं उसका एक कारण तो है चुनाव की मजबूरी और दूसरा यह केजरीवाल का 'आम आदमी' वरना किसे फुर्सत है धन सूँतने और ऐश करने से ।

'वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे'
हम तो चाहते हैं कि भगवान आपको वह सौभाग्य प्रदान करे कि आप वास्तव में 'वैष्णव जन' बनें और लोगों की पीड़ा को समझें । तब आपको कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । सच्चा प्रेम तो पशु भी समझता है । और देश का आदमी अभी पशु से भी गया बीता नहीं हो गया है ।

जहाँ तक न्याय की बात है तो छोटे मियाँ, बस इतना समझ लीजे कि सामान्य आदमी के लिए न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बँधी हुई है लेकिन जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति सामने आता है तो वह चुपके से पट्टी खिसका कर, तिरछी नज़र से भाँप लेती है कि कैसे व्यवहार करना है । और फिर उसका तराजू बिना किसी बाट (वज़न का माप) रखे हुए एक तरफ झुका हुआ है । जब साला तराजू में ही पासंग हो तो पूरा कैसे तुलेगा ?

हम आपकी भावनाओं को समझते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में आम आदमी के प्रति हो रहे सब प्रकार के अन्यायों के प्रति आपकी यह संवेदना और भावना बनी रहेगी । जय ललिता की छोडिए, उनकी भी अपनी राजनीतिक मजबूरी है ।

कभी समय मिले तो स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना वाले माफ़िया द्वारा मारे गए सत्येन्द्र दुबे, महाराष्ट्र के तेल माफ़िया द्वारा मारे गए यशवंत सोनवने और बिहार में सैंकड़ों लोगों से सामने मार डाले गए आंध्र के जी. कृष्णैया को मिले न्याय और नेताओं द्वारा लज्जित किए गए अशोक खेमका और दुर्गाशक्ति नागपाल के बारे में भी सोचिएगा । आपकी न्यायप्रियता क्या कहती हैं ? वैसे राजीव गाँधी जी के सामने तो ये कीड़े-मकोड़े हैं ।

चलिए, अच्छा हुआ, हमारा पात्र समाप्त होते-होते चालीस घंटे के रिकार्ड तोड़ विलंब के बाद ही सही, न्याय मिला तो ।

२१ फरवरी २०१४


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Feb 22, 2014

टोपी के पैसे

टोपी के पैसे

तोताराम ने आते ही जुमला उछाला- यार मास्टर, तुम्हारा यह केजरीवाल भी अजीब आदमी है । ज़रा-ज़रा सी बातों में भ्रष्टाचार ढूँढ़ता है । अब और कुछ नहीं मिला तो कहता है- मोदी और राहुल के पास अम्बानी के हेलीकोप्टर में उड़ने का पैसा कहाँ से आता है ? हिसाब बताओ ।



अरे भाई, मोदी और राहुल दोनों का ही गुजरात से संबंध है और अम्बानी भी गुजरात का है । अब मान लो अम्बानी अपने हेलिकोप्टर से कहीं जा रहा है और राहुल या मोदी ने लिफ्ट लेने के लिए हाथ दे दिया और उसने इंसानियत के नाते इन्हें बैठा लिया तो क्या अन्याय हो गया । आदमी ही आदमी के काम आता है । या फिर इन्होंने उसका हेलिकोप्टर माँग लिया तो भी क्या ज़ुल्म हो गया । क्या अड़ोस-पड़ोस में कोई किसी की साइकल या बैलगाड़ी माँग कर नहीं ले जाता ? चुनाव आयोग के नियम अपनी जगह हैं लेकिन इंसान- इंसान का रिश्ता थोड़े ही ख़त्म हो गया । हेलिकोप्टर तो इसे भी मिल सकता है । अम्बानी क्या इसका कोई दुश्मन है ? अरे, तुम्हें चाहिए तो तुम भी माँग लो । अब यह तो नहीं हो सकता कि तुम उसकी टाँग खींचो और वही तुम्हें बिना माँगे हेलीकोप्टर देने आए ।

अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे । भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने ऐसा सवाल पूछा है कि ज़वाब देते-देते सारी इन्कमटेक्स कमिशनरी निकल जाएगी । अब बच्चू कैसे बताएगा कि इतनी सी आमदनी में टोपी खरीदने के पैसे कहाँ से आए ? पहले तो बीवी और खुद की दोनों की तनख्वाह थी । अब तो एक की तनख्वाह ही रह गई है । और यह किसी आरक्षित श्रेणी में भी नहीं आता । फिर भी टोपी ही नहीं, ऊपर से मफलर लगाने की विलासिता ! कहाँ से और कैसे अफोर्ड करता है ?


जब दुनिया समृद्ध थी तब की बात और थी । तब सभी देशों के लोग- पुरुष और महिलाएँ सब सिर ढँकते थे लेकिन अब इस महँगाई में कहाँ किसी की सिर ढँकने की औकात बची है । भारत की तो बात ही छोड़ो अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, आस्ट्रेलिया, चीन और जापान तक के प्रधान मंत्रियों और राष्ट्रपतियों तक की सिर ढँकने की औकात है क्या ? साठ के दशक तक में अमरीका के राष्ट्रपति आइजनहावर और रूस के ख्रुश्चोव को हमने नंगे सिर ही देखा । मोदी, अम्बानी, राहुल, टाटा, मित्तल किसकी हैसियत है टोपी लगाने की । माइक्रोसोफ्ट का सत्यनारायण नडाल भी टोपी न खरीद पाने के कारण अपनी चाँद दिखाने को मज़बूर है । साठ साल में लोगों के सिर सलामत नहीं बचे और इसे देखो- सिर भी सलामत है और टोपी भी और ऊपर से मफलर भी । ये ठाठ ऐसे ही नहीं हैं । मुझे तो लगता है इसका ज़रूर स्विस बैंक में खाता है ।

हमने कहा- तोताराम, स्विस बैंक वाला मामला बड़ा टेढ़ा है । इसे फँसाने वाले भी फँस सकते हैं । अभी तो केंद्र में सरकार कांग्रेस की है और कुछ राज्यों में भाजपा की । दोनों मिलकर कोई अध्यादेश लाएँ और कम से कम टोपी पर तो प्रतिबन्ध लगा ही दें ।

तोताराम ने कहा- यह भी नहीं हो सकता क्योंकि अधिवेशन में कांग्रेसियों को और पथ-संचलन में भाजपा को टोपी लगाने की ज़रूरत पड़ती है । और फिर लोगों को टोपी पहनाए बिना इनकी राजनीति भी तो नहीं चलती ।

हमने कहा- लेकिन केजरीवाल अपनी टोपी पहनता ही है, दूसरों को पहनाता तो नहीं ।

तोताराम कहने लगा- केजरीवाल दूसरों की टोपी नहीं पहनता और अपनी पहनाता नहीं इसीलिए तो यह व्यापक विनाश के हथियार की तरह खतरनाक है । भला किसी की टोपी पहने या पहनाए बिना कहीं लोकतंत्र चलता है ?

२२ फरवरी २०१४
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तोताराम के तर्क और ताऊ के आँसू


तोताराम ने आते ही सांसदों को भला-बुरा कहना शुरु कर दिया- करना-धरना तो कुछ है नहीं । बिना बात २१ फरवरी २०१४ को वर्तमान संसद के अंतिम सत्र के अंतिम दिन को बेकार कर दिया । अरे, ध्वनि-मत से ही सही, दस-पाँच बिल और पास कर-करा देते तो कहने को हो जाता कि सांसद कुछ काम करते हैं ।

जब अगली संसद में इन्हीं को या इनके ही परिवार वालों को आना है तो फिर भई, जाओ अपने-अपने क्षेत्रों में, पाँच वर्ष से तरस रही जनता को दर्शन दो, लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए अपनी दो नंबर की कमाई में से थोड़ा इन्वेस्ट करो अगली टर्म के लिए । बिना बात का विदाई समारोह बना दिया ।


हमने कहा- तोताराम, सुख या दुःख कैसा भी अवसर हो, मानव एक सांस्कृतिक प्राणी है इसलिए थोड़ी-बहुत औपचारिकता आवश्यक हो जाती है । बिछड़ तो रहे ही हैं, भले ही दो चार महीने के लिए ही सही । और फिर जीवन तो जीवन है । क्या पता, इस दौरान कोई अगली संसद में आने की बजाय ऊपर वाली संसद में ही नोमिनेट हो जाए । सो क्या हो गया जो विदाई समारोह जैसा कुछ हो गया तो । और फिर आडवाणी जी १९७१ मॉडल के एकमात्र सांसद बचे है सो उन्हें अगर किसी ने फादर ऑफ़ हाउस या अपना संरक्षक कह दिया तो क्या हो गया ?

तोताराम ने बात बदलते हुए कहा- अच्छा चल, इस बारे में और बात बाद में करेंगे । पहले तो तू एक किस्सा सुन- एक आदमी रोज दारू पिया करता था । एक बार ऐसा संयोग हुआ कि दो दिन दारू नहीं मिली । अब तो उसका चलना-फिरना मुहाल । तीसरे दिन तो खाट से ही नहीं उठा । लोगों ने समझा बीमार है । पाँच-चार दिन बाद लोग हाल-चाल पूछने के लिए आने लगे । वह आदमी तो संवाद कम करता, घर वाले ही अधिक बातें किया करते थे । लोग आते और तरह-तरह के इलाज़ बताते । कोई कहता-फलाँ काढ़ा पिलाओ, कोई किसी देवता विशेष की माला फेरने को कहता तो कोई किसी ठरकी बाबा का स्पेशल शक्ति वर्द्धक रसायन पिलाने की सलाह देता । एक दिन एक व्यक्ति ने दबी जुबान में कहा- अरे भई, थोड़ी ब्रांडी मिल जाए तो वह भी पिला कर देखो । लेकिन घर वालों ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । थोड़ी देर बाद वह आदमी उठ बैठा और बोला- सालो, बिना बात की किचर-किचर कर रहे हो, कोई इस भले आदमी के बताए इलाज़ को सीरियसली क्यों नहीं लेता ।

सो ताऊ अडवाणी कौन अभी रिटायर हो रहा है जो ऐसे विदाई दे रहे हो । कोई उनके दिल की दबी-ढकी आवाज़ को क्यों नहीं सुन रहा है ? अब ऐसे में ताऊ रोएगा नहीं तो क्या करेगा ? ताऊ कोई अपने आप थोड़े ही रोया है । इन पाजियों ने रुलाया है । और ये आँसू ख़ुशी के नहीं, मनमोहन जी की तरह खून के आँसू हैं ।

हमने कहा- तो फिर तू ही बता कि इस दिन संसद में ताऊ के साथ क्या होना चाहिए था ?

बोला- काली मिर्च-प्रक्षेपण, चाकू-प्रदर्शन जैसे संसदीय कार्य तो बंद हो ही चुके थे और माहौल भी हल्का हो चुका था तो मज़ाक में ही सही एक बार ताऊ को मनमोहन सिंह जी कुर्सी पर ही बिठा कर फोटो खींच लेते ।
२२ फरवरी २०१४

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Feb 17, 2014

तोताराम के तर्क और चाय पर चर्चा


हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- आज तुम्हारे लिए पचास प्रतिशत का विशेष कन्सेशन है । केवल ५२ रु में पूरा पॅकेज । मोदी जी चाय पर चर्चा सुनने वालों से एक सौ रुपए लेते हैं और चाय के चार रुपए अलग । हम तुम्हें पचास रुपए में कविता सुनाएंगे और दो रुपए में चाय पिलाएंगे । निकाल बावन रुपए ।

तोताराम ने ठहाका लगाते हुए कहा- सब झूठ है । हमने नेहरू जी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी , अटल जी, आडवाणी जाने कितनों के भाषण सुने हैं । न कभी एक पैसा दिया और न हमसे किसी ने माँगा । आजकल तो चुनाव के समय भाषण सुनने वालों की भीड़ दिखाने के लिए छुटभैय्ये प्रति व्यक्ति दो सौ रूपए, दारु का एक पव्वा और बस का किराया देते हैं । ये सौ रूपए के टिकट वाली सब बातें थोथा प्रचार हैं, अपने भाव बढ़ा कर दिखाने का नाटक है ।

चुनाव में इतना खर्च हो रहा है । क्या पता, कल को चुनाव आयोग खर्च किए गए धन का हिसाब न माँग ले, इस डर के भाषण सुनने वालों से हुई 'दर्शन-श्रवण-दक्षिणा' के बहाने आमदनी दिखाने की ट्रिक है यह । मोदी तो फिर भी प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार है सो हो सकता है छुटभैय्ये नेता उसकी निगाह में चढ़ने के लिए अपनी मनरेगा और भूमि घोटालों की कमाई फूँक रहे हों । लेकिन तेरी हैसियत तो एक सरपंच की भी नहीं है । तेरी कविता सुनने के लिए देना तो दूर, कोई कुछ लेकर भी आने वाला नहीं है । वैसे यह फितूर तेरे दिमाग में आया कैसे ?

हमने कहा- हम सोच रहे हैं कि डेढ़ महीने की पेंशन का ही तो मामला है । यह तमाशा भी देख ही लेते हैं । और यह भी समझ ले कि हम चुनाव मोदी के खिलाफ लड़ेंगे । जैसे राहुल के खिलाफ लड़ने से विश्वास को पब्लिसिटी मिल रही है वैसे ही अपने को भी मिल जाएगी । जैसे वह अपनी कविताएँ पेल रहा है हम भी पेल देंगे । और कुछ नहीं तो इसी बहाने लोग जान जाएँगे कि मास्टर भी कविता लिखता है । नेतागीरी का नहीं तो, क्या पता कवि सम्मेलन का धंधा ही चल निकले ।

और फिर इस देश की क्या, कहीं की भी जनता की यह विशेषता है कि वह किसी भी सामान को उत्सवी छूट के नाम पर खरीद ही लेती है, भले ही माल कितना भी घटिया क्यों न हो ।

तोताराम ने उठाते हुए कहा- मुझे देना-दिवाना कुछ नहीं है । तू मेरा बाल सखा है इसलिए अधिक से अधिक इतना कर सकता हूँ कि एक चाय में छोटी बहर की केवल चार शे'र की एक ग़ज़ल सुन सकता हूँ और उस पर भी यह शर्त है कि मंचीय शायरों की तरह एक लाइन को चार बार नहीं पढ़ेगा या हास्य कवियों की तरह चार लाइन की कविता से पहले दस घिसे-पिटे चुटकले नहीं सुनाएगा ।

हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- मंजूर हैं । यहीं बैठ, हम डायरी लेकर आते हैं । कहीं चाय के कप समेत ही गायब न हो जाना ।

१७ फरवरी २०१४ पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


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Feb 16, 2014

हैप्पी वेल हटाइन डे, छोरे



भई अरविंद केजरीवाल,
खुश रह । तू म्हारे सबसे छोटे छोरे की उम्र का सै और मज़े की बात या सै कि म्हारे दो छोरे भी उसी आई.आई.टी में पढ़े सें जिसमें तू । जै तू केंद्रीय विद्यालय में पढ्या होता तो हम तन्ने हिंदी पढाँवते । वैसे एक रिश्ता और सै- हरियाणा म्हारी ननिहाल है और तू हरियाणा का ।

खैर, हम तो तन्ने पहले भी कई बार पत्र लिखणै की सोच रे थे क्यूंकि हमनै फिकर थी के छोरा सीधा सै, टोपी और मफलर लगाके ढक-ढूम के सलीके से रहे सै । राजधानी की बीरबानियाँ (लडकियाँ-औरतें) कहीं फाँस न लें, छोरे को । कहीं कोई चक्कर ना पड़ज्या । राजधानियाँ की इन बीरबानियाँ के घर-घराणे और उम्र का कुछ ठिकाणा भी नहीं लगता । काळी-कलूटी पाँच रुपैये की क्रीम लगाके सात दिन में गोरी बणज्या । सर्जरी करवाके एक सौ तीस बरस बूडली पच्चीस की दीखण लागज्या । हाथां में कदे गुलाब का, कदे कमल का फूल लेके पासे आके धीरे-धीरे गले में हाथ डालती-डालती गला पकड़ ले । राजधानी तैं और दूर कामरूप चल्या जा तो सुण्या है उतै की बीरबानियाँ आदमी नै फँसा के मोम की माखी बणा दे । आदमी इसा घुघ्घू बण ज्या के उठावे तो उठे और बठावै तो बैठे । जम्माये जमूरा बणज्या सै आदमी । और जै कठे बिदेस मैं जाके फँस ज्या तो बेरा ना माणस का के बणै ?

धीरे धीरे यो वेलेंटाइन डे भी आग्या तो फिकर और बढगी । पण छोरे तन्ने जी खुश कर दिया । आई लव यू कहणै की बजाय वेल ही हटा दिया । नहीं तो या तन्नै वेल मैं ही पटक देती । तू तो पढ्या लिख्या सै । वेल के और भी कई मतबल हों सै- कूआ भी और पर्दा भी । सो यो तेरा वेलेंटाइन डे न होके 'वेल हटाइन डे' होग्या । ज़रूर तन्ने वा कहानी सुणी होगी ।

एक गाँव का छोरा था । सीधा-सादा, भैंस चरावणिया और दूध-दही खावणिया । उसकी शादी होगी एक शहर की छोरी सागे । मिलतां ई छोरी बोलण लागी शहरी बोली, करण लागी किन्तु, परन्तु और थोड़ी थोड़ी देर मैं या और पूछे- के समझ्या । छोरा होग्या परेशान । बोल्या- समझग्या भई, चोकस समझग्या - तू उरे रहणी कोन्या । सो भई यो इसी ढाल होणा था सो होग्या । के तो सीता सतवंती के फरड़क रांड । इसी वेलेंटाइनाँ जाणै कितणा नैं उल्लू बणाया सै । भतेरी ज़िन्दगी पड़ी सै, और भोत मिलैंगी ढंग की वेलेंटाइनां । तू तो बस तेरा धर्म ठिकाणै राख ।
तेरा ताऊ
-रमेश जोशी ।
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Feb 15, 2014

शिष्टाचार की कुछ सामान्य बातें (ओबामा को पत्र )

ओबामा जी,

वैसे संसारिकता और प्रेक्टिकलता का तकाज़ा तो यह है कि जिससे कोई स्वार्थ सधता हो उसके अलावा किसी से भी कोई बात नहीं की जाए जैसे कि आजकल लोग मोदी-उन्मुख होते नज़र आ रहे हैं । उसने चाय बेचने के बल पर प्रधानमंत्री पद की आशा पाल ली तो लालू प्रसाद को अपने चाय बेचने के दिन याद आ रहे हैं । शायद कुछ समर्थन मिल जाए । बड़े लोग सोच रहे हैं कि यदि राजकुमारों के लिए बचपन में चाय बेचने का कोई प्रमाण-पत्र ले लिया होता तो आज काम आता । हो सकता है कोई बचपन का चाय की केतली थामे फोटो प्रकाश में आ जाए । लेकिन हमारा आपसे इस समय कोई स्वार्थ सधने वाला नहीं है फिर भी हम भूतपूर्वोन्मुख आप (केजरीवाल नहीं) को पत्र लिख रहे हैं । इसके तीन कारण हैं- हम आपमें एक पूर्वी युवक की छवि देख रहे थे; आपने अपने प्रथम चुनाव प्रचार के दौरान एक नई आशा जगाई थी; हम अनुभव कर रहे हैं कि आपको सामान्य शिष्टाचार की कुछ बातें बताना ज़रूरी है

हालाँकि आपने हमसे ऐसी कोई प्रार्थना नहीं की है । कोई वकील होता तो अमरीकी रेट के हिसाब से कम से कम २५० डालर प्रति घंटे के हिसाब से फीस पहले रखवा लेता । मगर एक हम हैं कि अध्यापक होने के नाते मुफ्त में ही सही सलाह देने के लिए आदतन विवश हैं ।


1.



आपके यहाँ भारतीय दूतावास की एक महिला अधिकारी के साथ जिस प्रकार का अशोभनीय व्यवहार किया गया वह असामान्य और अशिष्ट है । अमरीकी कानून के अनुसार उसे उचित ठहराया जा रहा है । हो सकता है कोई बाल की खाल निकालने वाला राम जेठमलानी जैसा वकील इसे कानूनी रूप से गलत सिद्ध न होने दे लेकिन जो कानून सामान्य व्यवहार, मानवीय गरिमा और नारी का सम्मान न करे वह कैसा कानून । कानून खून के प्यासे पहलवानों का दंगल नहीं बल्कि वह करुणा और न्याय से जन्म लेने वाली एक व्यवस्था है ।


वैसे आप कानूनन कह सकते हैं कि आपको बताया नहीं गया । हो सकता है आपके यहाँ कानून के रखवाले पुलिसियों को शिष्टाचार और मानवता की इतनी समझ न हो । 



लेकिन आप चाहें तो केरल में भारतीय समुद्री सीमा में दो भारतीय मछुवारों को बंदूक चलाकर मार डालने वाले इटली के कर्मचारियों वाली घटना को याद करें । उनके लिए इटली सरकार ने क्रिसमस मनाने के बहाने जमानत की अपील की और भारत सरकार ने उसे मान लिया और अब वे भले आदमी फरार हैं । इसमें भारत की मानवता और योरप से भय के प्रतिशत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता और अब देखिए कि इटली उन्हें बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जा चुका है । क्या भारतीय राजनयिक का अपराध उनसे भी गंभीर था ? अमरीकी मानवाधिकार प्रेम की पर्दादारी के लिए हिंदी में न लिखकर अंग्रेजी में 'केविटी सर्च' लिख रहे हैं । क्या उस महिला के पास विनाश के व्यापक हथियार छुपे होने का खतरा था ?

अमरीकी प्रशासन ने इस कृत्य में अब भी कोई अशिष्टता नहीं पाई है । अपनी-अपनी संस्कृति की बात है । वैसे इस मामले में कभी-कभी हम सोचते हैं कि क्या ऐसा ही व्यवहार अमरीका के कानून के रखवाले पुलिसिये चीन के किसी राजनयिक के साथ करने का साहस जुटा पाते तब क्या आप उसे अनदेखा कर देते ? जो शराबी किसी सभ्य, सीधे या कमजोर व्यक्ति से शराब के नशे के बहाने बदतमीजी कर देता है वही थानेदार के सामने लड़खड़ाता हुआ ही सही, नमस्ते करने लग जाता है । आपके पुलिस वालों का यह कानून-प्रेम कहीं उस शराबी वाला ही तो नहीं है ?

इस बारे में भी एक सच्ची घटना सुनिए- आपके जन्म से पहले राष्ट्रपति आइजनहावर के ज़माने की बात है । उस समय अमरीका ने नए-नए यू टू विमान बनाए थे जो किसी भी राडार की पकड़ में नहीं आते थे । सो अमरीका ने रूस की जासूसी के लिए एक ऐसा ही विमान भेजा । रूस ने शिकायत की तो कहा गया- हमने ऐसा कोई विमान नहीं भेजा । फिर रूस ने कहा- हमने एक यू टू विमान गिरा लिया है । तो कहा गया- हमारा ऐसा ही एक विमान रास्ता भटक गया है । हो सकता है यह वही विमान हो । फिर रूस ने उत्तर दिया - इस विमान के चालक को हमने जिंदा पकड़ लिया है और उसने बताया है कि उसे जासूसी के लिए भेजा गया था । अमरीका ने उत्तर दिया- हाँ, हमने भेजा था और भविष्य में भी भेजेंगे । रूस की चेतावनी थी - यदि भविष्य में ऐसा हुआ तो हम उस अड्डे को ही नष्ट कर देंगे जहां से वह उड़ कर आएगा । तब भी क्षमा नहीं मांगी गई लेकिन फिर कभी कोई यू टू रूस की सीमा में नहीं गया ।


2.

दूसरा कारण- जब आप मंडेला के अंतिम संस्कार में सपत्नीक दक्षिणी अफ्रिका गए थे तब का आपका एक फोटो देखा । आप योरप के एक देश की युवा, सुन्दर और अपने से कम उम्र की प्रधान मंत्री के साथ 'सेल्फी' फोटो लेने के लिए पोज़ बना रहे थे । बगल में ही  श्रीमती ओबामा थीं । पत्नी के इतने निकट होते हुए किसी सुंदरी से इतनी निकटता बढ़ाना बहुत साहस का काम है । हम आपके चरित्र और एक पत्नी-व्रत पर कोई प्रश्न नहीं उठा रहे हैं लेकिन ऐसे अवसर पर कोई सामान्य व्यक्ति भी, भले ही झूठ-मूठ ही सही, गंभीर और ग़मज़दा होने का नाटक ही सही, करता तो है । 


लेकिन आपने तो इस सामान्य से शिष्टाचार को भी ताक पर रख दिया । सौन्दर्य तो सामान्य क्या, बड़े-बड़ों को भी अपने जाल में फँसा लेता है, फिर आप तो अभी जवान हैं । लेकिन याद रखना चाहिए कि राजा से जितेन्द्रिय होने की अपेक्षा की जाती है । आप इतने शक्तिशाली देश के प्रथम नागरिक हैं तो आपसे तो और भी नियंत्रित होने की अपेक्षा की जाती है । क्लिंटन जी की दुर्गति तो ऐसे कर्मों के कारण जग-जाहिर है ही । संन्यास की उम्र पर पहुँच चुके इटली के पूर्व प्रधान मंत्री बर्लुस्कोनी शायद जेल में हैं । यदि नहीं, तो भी जनता ने तो उन्हें अपनी विस्मृति के गटर में डाल दिया होगा । फ़्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति महोदय अपनी लम्पटता के कारण सुर्ख़ियों में हैं । और पूर्व पत्नी भारत में मानसिक शांति तलाश रही है । हो सकता है आपका ऐसा कुछ इरादा नहीं रहा हो लेकिन पत्रकार तो बड़ी अफवाहें फैला रहे हैं । और पत्रकारों की ऐसी अफवाहें अब तक प्रायः सच ही निकली हैं ।



3.



तीसरा कारण- अभी एक खुलासा छपा है कि आपने नवम्बर २००९ में मनमोहन सिंह जी को जो डिनर दिया था उसमें पौने छः लाख डालर खर्च हुए थे । मनमोहन जी भले आदमी हैं । वे अपनों की बातों का ही ज़वाब नहीं देते तो आपको क्या कुछ कहेंगे । यह आपके और आपके प्रशासन के सोचने की बात है कि किसी भले आदमी को पहले तो निमंत्रण देकर घर बुलाओ और फिर इस तरह दुनिया में उसका जुलूस निकालो ।

एक किस्सा सुनाते हैं जिससे शायद हमारी बात स्पष्ट हो जाए । एक सेठ ने अपने नाई को किसी काम से अपने बेटे की ससुराल भेजा । वहाँ नाई को दस-दस ग्राम के पतले-पतले फुल्के परोसे गए । उन दिनों में आने-जाने के साधन बहुत कम थे और वैसे भी लोग दस-पंद्रह किलोमीटर के लिए कोई साधन लेते भी नहीं थे, पैदल ही चले जाते थे । नाई भी पैदल चलकर सेठ के बेटे की ससुराल पहुंचा । दिन भर का भूखा, पतले-पतले फुल्के , खा गया चालीस-पचास ।


नाई खाता जाता था और सोचता जाता था कि इतने पलते फुल्के परसे जाने का क्या चक्कर है ? आप जानते हैं कि नाई सत्तर घाट का पानी पिया एक चतुर प्राणी होता है । उसने छुपाकर एक फुल्का अपनी जेब में रख लिया । जब लौट कर सेठ को रिपोर्ट की तो अपने समधी की चिट्ठी पढ़कर सेठ ने कहा- नेवगी जी, आपने तो बेटे की ससुराल में हमारी नाक ही कटवा दी । अरे भाई, ऐसी भी क्या भूख । पचास फुल्के खा गए । नाई ने जेब से फुल्का निकाल कर दिखाया और कहा- सेठ, ये रहा फुल्के का नमूना ।


बात समझ में आ गई होगी । नहीं तो कुछ और स्पष्ट कर देते हैं । उस भोज में मनमोहन जी के साथ होंगे कोई बीस आदमी, जब कि आप वाले दो सौ । आपको याद होगा उस भोज में शराब के एक व्यापारी (सलाही) अपनी सुन्दर पत्नी के साथ बिना बुलाए आए और दारू पीकर चले गए । हो सकता है ऐसे ही बहुत से लोग बिना गिनती के आ गए होंगे और आपने खर्चा डाल दिया मनमोहन जी के खाते में । जैसा कि हमें याद है, उस भोज में मनमोहन जी को बैंगन का भुरता परोसा गया था और वह बैंगन भी मिशेल ने अपने किचन गार्डन में उगाया था । हमें लगता है कि कर्मचारियों ने इसमें कम से कम साठ प्रतिशत का घपला किया है । चालीस प्रतिशत में से मनमोहन जी के साथ वालों पर चार प्रतिशत खर्चा हुआ होगा । कुल मिलाकर दस हजार डालर से अधिक खर्चा अमरीकी सरकार का नहीं हुआ होगा । जब कि इससे कई गुना तो उन्होंने निजी हवाई जहाज से अमरीका आने-जाने में खर्च कर दिया होगा । जितने की झाँझ नहीं उतने के मंजीरे फूट गए और इतना बड़ा अहसान ऊपर से । इससे करोड़ों गुना तो अपने एक परमाणु सौदे में मनमोहन जी से कमा लिया होगा ।

हमारे यहाँ 'ऐसे' अतिथि सत्कार को ओछी-नीत कहते हैं लेकिन आपसे यही कहते हैं कि इतने बड़े देश के राष्ट्रपति होकर इतना छोटा दिल मत रखिए । अपने अकाउंट्स विभाग वालों से भी कह दें कि मेहमानों की रोटियाँ न गिना करें ।

ये तीनों बातें ही अशिष्टता हैं, क्षमा माँगने योग्य हैं लेकिन हमें पता है कि आप क्षमा नहीं मांगेंगे क्योंकि क्षमा माँगने के लिए क्षमा करने वाले से भी बड़ा दिल चाहिए ।

हमारे यहाँ शिव काल से भी बड़े, महाकाल हैं और इसीलिए महादेव हैं । उनसे क्षमा माँगने का एक मन्त्र है । उससे आप समझ जाएंगे कि वास्तव में सच्ची क्षमा-याचना क्या होती है ? यह कोई सॉरी जैसा दो अक्षरों में निबटा दिया जाने वाला रस्मी मामला नहीं है । सुनिए उस श्लोक का भावार्थ-
हे करुणा के सिन्धु महादेव शम्भु ! मैं अपने हाथों, पैरों से किए गए, शरीर और कर्म द्वारा किए गए, कानों और नेत्रों द्वारा किए गए, मन द्वारा किए गए, सभी व्यक्त और अव्यक्त अपराधों के लिए आपसे क्षमा माँगता हूँ । मुझे क्षमा करिए ।

ऐसी क्षमा किसी और का नहीं बल्कि स्वयं का भला करती है उसे पवित्र करती है । यदि इस भाव से क्षमा मांगी जाए तो ठीक है अन्यथा शाब्दिक चोंचलों का कोई अर्थ नहीं । वैसे हम जानते हैं कि आप ऐसी औपचारिक क्षमा भी नहीं मांगेंगे क्योंकि आपके सामने इण्डिया की स्थिति तो उस प्रेमिका जैसी है जो कहती है-
तड़पाओगे तड़पा लो, हम तड़प तड़प कर भी तुम्हारे गीत गाएंगे ।

वैस अब आपको अधिक सोचना भी नहीं चाहिए क्योंकि अब कौनसा चुनाव लड़ना है । अमरीका में कोई भी राष्ट्रपति अधिक से अधिक आठ वर्ष का सत्ता सुख ही भोग सकता है । सो आपके छः वर्ष तो बीत ही गए, दो और बीत जाएंगे । आपकी स्थिति तो हमारे अरविन्द केजरीवाल जैसी है । आपके लिए पाने को कुछ नहीं है और उसके पास कुछ खोने को नहीं है ।


‘जय शंकर बम भोले’ नहीं बोलेंगे क्योंकि क्या पता, कहीं हमारी भी 'केविटी सर्च ' न हो जाए । और उसमें व्यापक विनाश की कोई कविता या पत्र निकल आया तो क्या करेंगे । वैसे यह बम वह नहीं है जो आतंकवादी रखते हैं । यह तो शिव के प्रिय भंग के गोले से संबंधित है जिसका सेवन आपने भी किया हुआ है । क्या मज़े की चीज़ है ? एक आनंद ही आनंद । कोई कुंठा और ईर्ष्या-द्वेष नहीं । खाओ तो खाते ही जाओ, हँसो तो हँसते ही जाओ, रोओ तो रोते ही चले जाओ ।

आज 'वेलेंटाइन डे' भी है । ऐसे नहीं कहा जा रहा हो तो भंग का गोला चढ़ा कर ही सही, एक बार ढंग से मिशेल को 'आई लव यू' कह दो और भावी पारिवारिक जीवन को सुखद बना लो क्योंकि राष्ट्रपति न रहने पर, न कोई गायिका पूछने आएगी और न ही कोई युवा प्रधान मंत्री । यही भली औरत साथ निभाएगी ।

१४ फरवरी २०१४

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Jan 14, 2014

उम्र घटाने का फार्मूला


सारी दुनिया उम्र घटाने के फार्मूले के चक्कर में बावली हो रही है । कोई बाल ट्रांसप्लांट करवा रहा है, तो कोई विग लगवा रहा है और बाल रँगना तो एक सामान्य दैनिक काम हो गया है । कोई च्यवनप्राश खा रहा है तो कोई वियाग्रा आज़मा रहा है । कोई यह कह कर ही धोखा दे रहा है कि उम्र नहीं मेरा दिल देखो जो बुढ़ापे में भी उतना ही लम्पट है जितना कि किसी जवान का होता है । कोई अपने चेहरे की खाल खिंचवाकर झुर्रियाँ निकलवा रहा है । कोई सत्तर पार करके भी चेलियों पर पराक्रम दिखा रहा है । कई लेखक और लेखिकाएँ रचना के साथ अपने ज़वानी के फोटो भेज कर भ्रम फैला रहे हैं । बहुत से तो जन्म की तिथि लिखते हैं, वर्ष नहीं ।

इसका एक और विचित्र पहलू भी है । जब आप किसी तरह भी अपनी उम्र को छुपा नहीं सकते तो अपनी उम्र इतनी अधिक बताते हैं कि लोग फिर भ्रम में पड़ जाएँ कि बुड्ढा नब्बे साल की उम्र में भी साठ जितना कड़क लगता है । तभी उम्र के बारे में कहा गया है-
साधू कहे बढ़ाय कर, रंडी कहे घटाय ।

आज आते ही तोताराम ने पूछा- तेरे पास लेडी गा-गा का पता है क्या ? आज ही एक समाचार पढ़ा है कि कोई गाने वाली है- नाम है लेडी गा-गा । उम्र है २७ वर्ष । कहती है- नशा करने के बाद मैं अपने आप को १७ वर्ष की अनुभव करती हूँ । मतलब कि एक ही डोज़ में बालिग से नाबालिग । अच्छा हुआ, एक और डोज़ नहीं ली अन्यथा ७ वर्ष की हो जाती हालाँकि बलात्कार से तो उस शिशु अवस्था में भी बच पाने की गारंटी नहीं होती । दस वर्ष का डिफरेंस । इतना तो रामदेव का भस्त्रिका प्राणायाम भी असर नहीं करता । फेयरनेस क्रीम भी गोरा बनाने में एक हफ़्ता लेती है ।


हमने कहा- तोताराम, हमें अब उम्र घटाने नहीं, ज़ल्दी से ज़ल्दी बढाने के बारे में सोचना चाहिए । अस्सी के होते ही पेंशन सवाई हो जाएगी । फिर भी यदि तू चाहे तो हम लेडी गा-गा से भी बढ़िया नुस्खा बता सकते हैं जो एक खुराक में ही ज़िंदगी भर काम करता है । यदि किसी को सेवन करने को मिल जाए तो एक क्षण में ही मरणासन्न बुड्ढा भी ईलू-ईलू करने लग जाता है । फिर चाहे यह नशा सरपंच, एम.एल.ए., एम.पी., मंत्री, महामहिम के पद का हो या आश्रमों के किसी गुरु-घंटाल का हो या किसी समाचारपत्र के मालिक का हो । किसी दवा-दारू का नशा इसके सामने क्या चीज़ है ? सामान्य नशा तो शाम को चढ़ा और सुबह होते ही 'वह पानी' मुलतान चला जाता है । पद का नशा तो भूतपूर्व होने पर भी कायम रहता है । देखा नहीं, एक महामहिम राजभवन से निकाले जाने के तीन वर्ष बाद भी एक पार्टी में एक रिपोर्टर से चिपकने लगे थे और कल ही एक भूतपूर्व एम.एल.ए. ने टिकट माँगने पर बस कंडक्टर की पिटाई कर दी ।

१० दिसंबर २०१३

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रिश्ता


तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- सोनिया गाँधी तुम्हारी क्या लगती है ?

हँसी के मारे लड़खड़ाते चाय के कप को बचाते-बचाते हमने कहा- यह बात आज पैंतालीस बरस बाद पूछता है ? यह तो उसी दिन तय हो गया था जब वे अपने राजीव भाई की दुल्हन बनकर भारत आई थी | हालांकि उन्होंने भारत की नागरिकता सन १९८३ में ली मगर इससे क्या फर्क पड़ता है | अपने छोटे भाई को ब्याही तो हो गई भारत की बहू | हम तो आज भी उसे घर की बड़ी बहू मानते हैं | तभी तो विश्वास करके चाबी सौंप दी और हो गए निश्चिन्त | अब यह उसकी समझदारी पर निर्भर है कि वह झूठे भक्तों से बचकर, भारत की सामान्य जनता के स्वभाव, आकांक्षा, अपेक्षा और सीमाओं को समझते हुए उनकी कितनी सेवा करती है |

तोताराम बोला- तो फिर यह सलमान खुर्शीद क्या राहुल की उम्र का है जो उन्हें माँ बता रहा है और अपनी ही नहीं सारे भारत की |

हमने कहा- तोताराम, इसे अभिधा में नहीं, लक्षणा में ले | महात्मा गाँधी और नेहरू क्या उम्र के हिसाब से बापू या चाचा थे | लोग तो उन्हें आदर और प्यार से इस नाम से पुकारते थे | सुभाष चन्द्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को गाँधी जी ने पसंद नहीं किया इसलिए सुभाष ने कांग्रेस छोड़ दी | लेकिन वे देश के लिए गाँधी जी का महत्त्व जानते थे और उनका सम्मान करते थे |उन्होंने गाँधी जी को सम्पूर्ण श्रद्धा से 'बापू' नाम से संबोधित किया और वह भी भारत से दूर | यही कारण था कि इसे सारे देश ने स्वीकार कर लिया | गाँधी जी सदैव के लिए देश के ही नहीं, सारी दुनिया के बापू हो गए | मगर तेरे खुर्शीद में न तो इतनी श्रद्धा है और न ही उस स्तर का व्यक्ति है कि देश इसे सुने | ऐसे लोग इंदिरा-कालीन देवकान्त बरुआ की श्रेणी में आते हैं जो अपने से ज्यादा मज़ाक अपने तथाकथित श्रद्धेय का उड़वाते हैं | ये मतलब के लिए गधे को बाप और बाप को गधा बनाने वाले लोग हैं | इनकी बातों से सस्ते मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं होना | ऐसे ही लोगों ने अटल, अडवाणी और वेंकैय्या नायडू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा वसुंधरा राजे को दुर्गा का अवतार बताया था | ऐसे लोग अपने श्रद्धालुओं को ले डूबते हैं और खुद डूबती नाव छोड़कर और कोई किनारा देख लेते हैं |

बोर होते हुए तोताराम ने कहा- अच्छा, छोड़ इस पुराण को | घोड़ा खाए घोड़े के धणी को | तू तो यह बता यदि कोई अपने को सम्मानित और सम्बोधित करे तो किस तरह करेगा ?

हमने कहा- सत्तर से भी अधिक बरस ले लिए इस देवभूमि में रहते हुए और तुझे अब तक समझ नहीं आया कि भले और आम आदमी की हालत, यहीं क्या कहीं भी एक जैसी ही है | वह तो गरीब की जोरू है जिसे कोई भी छेड़ ले । बेचारी उम्र में कितनी भी बड़ी या छोटी हो मगर रहती है हर लफंगे की भाभी ही ।

इस लेख के लिये सुझाए गये 
कुछ अन्य शीर्षक - 

  • रिश्ता वही जो सलमान खुर्शीद बनाये
  • रिश्ते ही रिश्ते, एक बार मिल तो लें
  • रिश्ते में हम तुम्हारी माँ लगती हैं
  • मतलब के रिश्ते और रिश्ते का मतलब 


१२ दिसंबर २०१३

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Jan 5, 2014

ईश्वर-अल्लाह किसके नाम ?



आज तोताराम कागज़-कलम लेकर हाज़िर हुआ और आते ही जल्दी मचाने लगा कि हम झटपट गाँधी जी के नाम पत्र लिख दें । हमने समझाया- ऐसी क्या जल्दी है । अभी गाँधी जी कौनसा पाँच राज्यों के विधान-सभा के चुनावों में खड़े हो रहे हैं और कौनसा सर्वे में उनके जीतने की संभावना व्यक्त की गई है कि उन्हें मक्खन नहीं लगाया तो कोई बड़ा नुकसान हो जाएगा । अगर किसी और गाँधी को लिखने की बात होती तो समझ में आ सकती थी ।

तोताराम ने कहा- वह रिस्क मैं नहीं लेता । पता नहीं लगाने जाएँ मक्खन, और पड़ जाएँ लेने के देने । सुना नहीं, उत्तर प्रदेश में कुछ छुटभैये नेताओं को गाँधी परिवार की खुशामद में पोस्टर चिपकवाने के चक्कर में पार्टी से निलम्बित कर दिया गया । हमें तो उस बूढ़े की फ़िक्र है जिसके बारे में किसी को भी सोचने की फुर्सत नहीं है और यहाँ तक कि लोग जल्दी में उसके जन्मदिन को पुण्यतिथि तक लिख मारते हैं ।

हमने कागज-कलम थामा और पूछा - कहो, क्या लिखना है ?

बोला - कुछ खास नहीं, बस यह लिख दो कि भले ही अब वे फेवीकोल, शीला की जवानी, झंडू बाम या जलेबी बाई कुछ भी गाएँ लेकिन ‘ईश्वर-अल्ला तेरे नाम' नहीं गाएँ ।

हमने पूछा - इसमें क्या खराबी है ? ईश्वर, अल्लाह, गॉड, वाहे-गुरु सब उसी एक परवरदिगार, संसार के मालिक के नाम हैं । क्या फर्क पड़ता है ? बल्कि हम तो कहेंगे कि इससे भारत जैसे बहुधर्मी देश में राष्ट्रीय एकता और मज़बूत होगी ।

तोताराम ने कहा- छोड़ यह राष्ट्र की एकता की बात । इन्हीं बातों के चलते तो उस बुड्ढे को गोली मारी गई थी और अब नहीं समझाया तो वहाँ ऊपर भी 'ईश्वर अल्ला तेरे नाम' गाने पर कोई न कोई मलयेशियायी मुसलमान या इस्लाम का कोई और सच्चा अनुयायी उसकी खोपड़ी फोड़ देगा ।

हमने कहा- इसमें खोपड़ी फोड़ने की क्या बात है ? सभी धर्म यही मानते हैं कि ईश्वर एक है और सभी मनुष्य उसकी सन्तान हैं ।

तोताराम ने कहा- ये तर्क वहाँ चलते हैं जहाँ लोग आपस में बैठकर बातें करते हैं, समझते-समझाते हैं । धार्मिक आज्ञाएँ तो वैसे ही होती हैं जैसे कि किसी ने कहा- कौआ कान ले गया तो अपना कान संभालने की बजाय लोग कौए के पीछे दौड़ पड़ते हैं ।

हमने कहा- तोताराम, पहेलियाँ मत बुझा, साफ़-साफ़ बता कि यह ईश्वर-अल्लाह का चक्कर क्या है ?

कहने लगा- अब पता चल गया तेरे अखबार पढ़ने की असलियत का । मोदी और राहुल में ही उलझा रहता है । कोई काम की खबर भी पढ़ाकर । उसने हमारे सामने अखबार रखते हुए अंडरलाइन की हुई एक खबर दिखाई कि ‘मलयेशिया की एक अदालत ने यह फैसला दिया है कि मुसलमानों के अलावा कोई अल्लाह के नाम का उपयोग नहीं कर सकेगा’ ।



हमने कहा- तोताराम, वह कौए के कान ले जाने वाली कहावत और किसी पर लागू हो न हो लेकिन तुझ पर ज़रूर लागू होती है । अरे, मलयेशिया में ईसाई लोग अपने गॉड के लिए 'अल्लाह' नाम का उपयोग करते हैं । इसके बारे में वहाँ के मुसलमान धार्मिक नेताओं का मानना है कि ईसाई पादरी 'अल्लाह' नाम से मुसलमानों को भ्रमित करके उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं । मुसलमान नेताओं की अपील को निचली कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया था । अब ऊपरी अदालत ने मुसलमान धार्मिक नेताओं की इस आशंका को सही मानते हुए यह फैसला दिया है कि ईसाई अपने धर्म प्रचार में 'गॉड' की जगह 'अल्लाह' नाम का उपयोग न करें । इससे अपने गाँधी जी को कोई खतरा नहीं है ।

तोताराम ने कहा- झारखंड में सरना नामक गैर-ईसाई समुदाय जैसी साड़ी, गहनों और नाक-नक्श में, एक चर्च में मदर मेरी और ईसा की लगाई गई । उस मूर्ति के बारे में सरना समुदाय ने विरोध किया कि मेरी और ईसा को उनकी देवी की शक्ल और परिधान में न दिखाया जाय, क्योकि इस तरह दिखाना उनके समुदाय को भ्रमित करके उन्हें ईसाई बनाने की एक चाल है । तब भारत के किसी कोर्ट या सरकार ने नोटिस क्यों नहीं लिया ?

हमने कहा- तोताराम, एक भारत ही तो सच्चा धर्म निरपेक्ष देश है ।

तोताराम ने यह कहते हुए हमारी बोलती बंद कर दी- मास्टर, हमारे इन तथाकथित धर्म-निरपेक्ष नेताओं से तो वे कट्टर या धर्म-सापेक्ष नेता और देश अच्छे हैं जो कम से कम झूठ तो नहीं बोलते । हमारे ये नेता तो वोटरों को ही नहीं, भगवान को भी धोखा देते हैं । ये न खुदा के हैं और न भगवान के और न ही गॉड के । ये दिल्ली की रामलीला में राम को तिलक करेंगे, अजमेर में चादर चढ़ाएँगे, इफ्तार की दावत देंगे, गुरुद्वारे में पगड़ी बँधवाएँगे लेकिन हर समय मन में अपने फायदे का गणित ही चलता रहेगा । यदि इनकी तलाशी ली जाए तो इनकी सबकी जेबों में सभी धार्मिक स्थानों से चुराए गए जूते-चप्पलें तक निकलेंगे

१५ अक्टूबर २०१३

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