May 29, 2015

बीमा, कफ़न और लंच

  बीमा, कफ़न और लंच 

बैंक की पासबुक में डी.ए. की किश्त की प्रविष्टि देखने की उत्कंठा ने इतना अंधा बना दिया कि ४५ डिग्री गरमी में दिन के दस बजे बैंक के लिए निकल पड़े | बैंक पहुँचते-पहुँचते हालत खराब | पसीने में तर बतर, चक्कर आने लगे, लगा गिर पड़ेंगे | |वातानुकूलित बैंक में पहुँचकर कूलर का ठंडा पानी पिया तो जान में जान आई | वास्तव में कभी कभी लगता है कि सुबह नाश्ता करके और दुपहर का खाना लेकर बैंक में ही आ बैठें और ठण्ड-ठण्ड में शेखावाटी की मारक गरमी काट दें लेकिन एक-दो दिन की बात और है अन्यथा लोकतंत्र में मनोनुकूल मौसम में बैठने का अधिकार केवल सेवकों का है |वोटर तो कहने भर को मालिक हैं |

संबंधित क्लर्क कोई भला युवक था, बोला-मास्टर जी, क्यों इस गरमी में मरने को चले आए |घर पर बैठते |सुना नहीं, आन्ध्र और तेलंगाना में एक हजार से ऊपर मर गए हैं |डी.ए. की किश्त तो जब आएगी तब आएगी, आप की जल्दी से क्या होता है ? और अगर जान इतनी ही फालतू है तो बीमा तो करवालो |बीस रुपए में दो लाख का होता है |और उसने हमारे आगे फॉर्म रख दिया | जैसे ही फॉर्म भरने लगे तो उसने पूछ लिया- उम्र कितनी है ? हमने कहा- दोनों की तिहत्तर-तिहत्तर साल है | 

उसने फॉर्म हमारे हाथ से छीन कर कहा- तो फिर बेकार में क्यों फॉर्म खराब करते हो ? यह सुविधा केवल सत्तर साल से नीचे वालों के लिए है | 
हमने कहा- तो क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं, क्या हमारी ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है ?
बोला- है, लेकिन आप उसे इतने वर्ष पेंशन लेकर वसूल कर चुके हैं | जब बड़े-बड़ों को सत्तर साल के नियम के तहत घर बैठा दिया तो आप भी घर बैठें | जब सरकार की बारह रुपए में कफ़न की कोई योजना आए तो खरीद लेना |अभी तो बारह रुपए वाली बीमा योजना में आप शामिल नहीं हो सकते | और हाँ, डी.ए. का एरियर अभी नहीं आया है | चाहो तो कूलर का  एक गिलास  ठंडा पानीऔर पीलो और घर जाओ |

उस वातानुकूलित स्थान में भी हमारा पारा चढ़ गया लेकिन हमारे पारे की किसे परवाह  ? हम कोई रेलों और बसों का आवागमन तो रोक नहीं सकते, चक्का तो जाम कर नहीं सकते कि जीतने के बाद पाँच साल दर्शन तक न देने वाले मंत्री जी हमसे वार्ता करने आएँ |फिर भी हमसे रहा नहीं गया- बोले , हम किसी के मोहताज़ नहीं हैं | सिर पर रखा अपना गमछा दिखाते हुए कहा- हम तो अपना कफ़न सिर पर बाँध कर चलते हैं |हमारा जीवन अपने दम पर है या भगवान की कृपा पर | हमारी सुरक्षा के लिए कोई कमांडो नहीं है |अंधड़, बाढ़, सूखा, भूकंप,खेती का खराबा अपने बल पर झेलते हैं |बेटा, बारह रुपए में न सही बीमा; तू तो बारह रुपए में कोई खाना खाने की स्कीम हो तो बता |
बोला- मास्टर जी, वह स्कीम तो बहुत पहले से है, आपको पता नहीं ? बहुत सरल है | सांसद बन जाओ और संसद की कैंटीन में पेलो बारह रुपए संतुलित शाकाहारी लंच |चाहो तो पास देकर किसी भी ऐरे-गैरों, मित्रों, परिवार वालों को भी इस 'माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम' सेवा में शामिल कर लो |

वास्तव में बहुत सरल उपाय है लेकिन अब सत्तर साल से ऊपर वालों को कोई टिकट भी नहीं देगा |









May 28, 2015

नीति यही है

  नीति यही है
(मोदी कृष्ण -साक्षी महाराज, अमित शाह राम-देवेन्द्र फडनवीस )
मोदी जी हैं कृष्ण औ' अमिट शाह है राम
उसको उसमें प्रभु दिखें जिससे जिसको काम
जिससे जिसको काम, करे पर्वत को राई
बिन मतलब परबत भी पड़ता नही दिखाई
कह जोशी कविराय सभी की नीति यही है
जिससे स्वारथ सधे  उसीसे प्रीति सही है
२७-०५-२०१५

May 22, 2015

तोताराम की सेल्फी


तोताराम की सेल्फी 

आज कोई दस बजे सवेरे तोताराम आया |

सब जानते हैं,आजकल हमारे शेखावाटी इलाके में तापमान ४४-४५ डिग्री चल रहा है |
इस समय तक तो बादे-सबा लू बन जाती है | हो सकता है, बचपन में इससे भी ज्यादा गरमी झेली हो लेकिन उस समय न तो ज्यादा सर्दी-गरमी के कारण स्कूल की छुट्टी हुआ करती थी और न ही अखबारों में तापमान के समाचार आते थे | बनियान तो हमने मई के शुरू में में पहननी बंद कर दी थी और अब तो गरमी की फुल यूनीफोर्म में आगए हैं- मतलब कि मात्र एक अंगोछा और वह भी लंगोट की तरह समेटा हुआ |आज की भाषा में कहें तो बिकनी से थोड़ा सा  बेहतर |

सुंदरियों की और विशेषरूप से सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वालियों की बात हो या कहानी की माँग पर आजकल की सशक्तीकृत बोल्ड अभिनेत्रियों की या किसी भी वस्तु का विज्ञापन करने वाली माडलों की बात हो , यह यूनीफोर्म धड़ल्ले से चलती है | हम जैसे बुजुर्गों को भी कम से कम घर में तो इसकी छूट है ही |वैसे नई पीढ़ी इसे असभ्यता मानती है | वह तो चाहती है कि हम सोते समय भी प्रेस किया हुआ कुर्ता पायजामा पहनें |उन्हें क्या पता, यह अपव्यय तो है ही और असुविधा भी | 

तोताराम ने छोटी सी स्लेट जैसा कुछ निकाला और बोला- तेरा बचना मुश्किल है |फिर वही अति अनौपचारिक ड्रेस |किसी ने रमण सिंह जी या मोदी जी से शिकायत कर दी तो फँस जाएगा |जा, कोई ढंग की ड्रेस पहन कर आ | तेरे साथ सेल्फी लेनी है |

हमने कहा- एक तो तू हमें ड्रेस को लेकर मोदी जी के नाम से डराना छोड़  दे | हम तो वैसे ही गरमी और महँगाई से परेशान हैं और ऊपर से हर रोज की यह धमकी | हम कोई कलेक्टर थोड़े ही हैं तो ४२ डिग्री में भी बंद गले का सूट पहनेंगे |वैसे सूट अपने पास है भी नहीं | सरकार केवल पेंशन देती है, मोदी जी की तरह कोई ड्रेस का खर्चा थोड़े ही देती है | वैसे भी हम तो ऋषियों के वंशज है, सादगी से रहेंगे | ऋषि लोग तो एक लँगोटी में ही रहते थे,उसी में चक्रवर्तियों के दरबार तक में चले जाते थे | कुछ तो उससे भी मुक्त हो जाते थे |आज भी नागा साधु निर्वस्त्र रहते ही हैं | फिल्मों में तो हिमालय में सूटिंग होगी तो भी बिकनी में और बिकनी चार सेंटीमीटर गुणा दस सेंटीमीटर की और चोली दो सेंटीमीटर गुणा छत्तीस सेंटीमीटर की |यदि कुछ कार्यवाही करनी ही है तो उन पर करें |

बोला- वह या तो महिलाओं का सशक्तीकरण है या फैशन या कला है | जो जितनी बड़ी कलाकार उतने की कम वस्त्र |अखबार और टी.वी. वाले मेधा पटाकर या अरुणा राय की बजाय पूनम पांडे और शर्लिन चोपड़ा को छापना फायदे का सौदा समझते हैं |

खैर, अब फालतू की बहस छोड़ |घर मे जो तेरी मर्जी हो पहन लेकिन सार्वजिक स्थानों पर ढंग से रहा कर |यह केवल मोदी जी का भय ही नहीं, देश की छवि की बात है | पहले की बात और थी जब भारत में जन्म लेने के लिए देवता तक तरसते थे लेकिन स्वतंत्रता के बाद तो लोगों को यह बताते भी शर्म आती थी कि उनका जन्म भारत में हुआ है | बड़ी मुश्किल से नसीब वालों के प्रयत्न से यह दिन देखने को मिला कि भारत में जन्म लेना गर्व की बात हो गई है | 

मैं तेरे साथ अच्छी से ड्रेस  में सेल्फी लेना चाहता हूँ जिसे मैं अपने ट्विटर पर डालूँगा | उसे देखकर दुनिया में भारत की छवि और भी निखरेगी | आजकल ट्विटर और सेल्फी के बिना जीना मरने से भी बदतर है | किसी फोटोग्राफर से खिंचवाओ तो पता नहीं कैसी फोटो ले ले | थोबड़ा जैसा है उससे भी उन्नीस ही आए |सेल्फी माने अपनी छवि अपने हाथ |

हमने कहा- तोताराम, फोटो से क्या होगा | असलियत तो तू और मैं दोनों जानते हैं कि हड्डियाँ कीर्तन कर रही हैं | कपड़े  तो तू कहेगा तो हम किसी टेंट हाउस वाले से राजा वाले भी माँग लाएँगे लेकिन चेहरे पर नूर और नखरे तो भैया, कुर्सी से आते हैं और जहाँ तक कुर्सी की बात है तो सत्तर से ऊपर वाले कल के दिग्गज नेताओं के पास भी नहीं बची और फिर हम कौनसे सत्तर से नीचे हैं | संन्यास की उम्र दरवाजे पर दस्तक दे रही है | वैराग्य का समय है, अब सेल्फी वाली सेल्फिसनेस ठीक नहीं है  |


May 19, 2015

झोला और झोली

 Mongolian Premier Gifts a Horse to PM Narendra Modi
 झोला और झोली

आज मन कुछ आध्यात्मिक हो रहा था | हारे हुए नेता को राज्यपाल भी नहीं बनाया जाए और पेंशन पाए हुए कर्मचारी को कहीं छोटा-मोटा जॉब भी न मिले तो अक्सर ऐसा हो जाता है | सोच रहे थे - साधु, फकीर अपनी बगल में एक छोटी झोली रखते हैं जिसे वे कफनी कहते हैं | पता नहीं, इसका कफ़न से कोई संबंध है या नहीं लेकिन यह तय है कि झोली लेकर निकल पड़ना कोई मज़ाक नहीं है | सिर पर कफ़न बाँधने से कम नहीं | शाम तक धक्के खाने पर भी कोई कुछ मिल ही जाए इसकी गारंटी नहीं | वैसे सच्चे संत तो कफनी या झोली भी नहीं रखते |तभी कबीर कहते हैं-
साधू गाँठ न बाँधई, उदार समाता लेय |
आगे पीछे हरि खड़े, जब माँगे तब देय ||
सब तो सच्चे संत नहीं होते |इसलिए झोला न सही, झोली तो रखनी ही पड़ती है | 

झोला तो बदनाम है जिसे लालची लोग रखते हैं |खैर, आजकल तो ट्रांसपोर्ट की बहुत सुविधा हो गई | माल पसंद करो और जब तक घर पहुँचो तब तक ट्रांसपोर्ट कंपनी वाले का फोन आ जाता है- जी, आपका माल आया हुआ है |मगर याद कीजिए छोटे गांवों के छोटे दुकानदार आज भी दिल्ली वाली ट्रेन में कई बड़े बड़े झोलों में स्टेशनरी का सामान लाते ही हैं |  कुछ झोला छाप डाक्टर भी होते हैं जिनके झोले में ही उनका क्लीनिक चलता है |जब तक जाँच टीम पहुँचे तब तक साइकल पर बैठकर गायब |

झोली में लालच का आभास नहीं होता | उसमें एक त्याग और समाजसेवा जैसा कुछ मिला हुआ लगता है | सभी खिलाड़ी अपने लिए खेलते हैं लेकिन कहेंगे- देश के लिए झोली में डालकर पदक लाते हैं | क्रिकेट वाले क्रिकेट की आड़ में विज्ञापन का धंधा करते हैं लेकिन वे भी विकेट अपने लिए नहीं लेते बल्कि देश के लिए अपनी झोली में डालते हैं | धर्मार्थ संस्था वाले भी चंदे के लिए झोली ही फैलाते हैं लेकिन सब जानते हैं कि इससे स्वास्थ्य गायों का सुधरता है या अध्यक्ष जी का |

नेता लोग भी विदेशों ने निवेश लेने  के लिए झोली लेकर ही जाते हैं | पिछली बार जब मोदी जी कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी गए थे तो उनके लौटने पर अखबारों ने छापा- झोली भरकर लौटे मोदी | उनसे कोई पूछने वाला हो, क्या खेलने गए थे या चंदा माँगने गए थे जो झोली भर लाए | ठीक है चीन से एक सौ बिलियन डालर का निवेश आएगा लेकिन वह झोली क्या, झोले में भी नहीं समा सकता  | वह तो पाँच-दस वर्षों में पता नहीं, किस-किस वाहन में लद कर, किस-किस रूप में, किधर-किधर से आएगा ? मोदी जी दिल वाले हैं हैं जो इस ख़ुशी में मंगोलिया को एक अरब डालर दे आए |

तभी बरामदे के आगे से तोताराम एक बहुत बड़ा झोला लेकर निकला | चाय के लिए पूछा तो बोला- टैम नहीं है | दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचना है |रास्ते में गुडगाँव उतरकर झोले में रिजका भर लूँगा |मोदी जी विदेश यात्रा से लौटने वाले हैं |

हमें बड़ा आश्चर्य हुआ- मूर्ख, स्वागत में गुलदस्ता लेकर जाया जाता है या रिजके का झोला ? 

बोला- गुलदस्ते वाले तो बहुत हैं लेकिन रिजके का काम गुलदस्ते से नहीं चलेगा | पता है, मोदी जी मंगोलिया से घोड़ा लेकर लौटने ही वाले हैं | और जब से स्पष्ट बहुमत मिला है 'हॉर्स ट्रेडिंग' बंद है तो घोड़े को घास कौन डालेगा ?  और फिर मोदी जी के सामने ? घोड़ों क्या, महारथियों और अतिरथियों तक की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है |



May 17, 2015

चश्मा वही जो ...

 चश्मा वही जो...


सर्दियों में मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाया था |ठीक-ठाक हो गया |पहले दूर की नज़र कमजोर थी | उसमें कुछ सुधार हुआ तो नज़दीक की नज़र कमजोर हो गई | वैसे ही जैसे बुढ़ापे से पहले भविष्य धुंधला नज़र आता था और अब भाई लोगों ने बताया कि भविष्य उज्ज्वल है तो वर्तमान गड़बड़ हो गया |राम-राम कर यह महिना निकल जाए तो अगला साँसत में दिखाई देता है | डाक्टर ने बताया- मास्टर जी, वैसे तो सब ठीक है लेकिन कुछ लोगों के लेंस के ऊपर एक फिल्म आ जाती है | सो उन कुछ लोगों में हमें ही होना था |अब एक हजार रुपए लगे उस फिल्म को हटवाने में | सो चार दिन से मोटे शीशे का काला चश्मा लगाए बैठे हैं |

तोताराम ने आते ही कहा- क्यों मरने के काम करता है |मान ले मोदी जी विदेश दौरे से फुर्सत मिलने पर इधर आ निकले और तू धूप का चश्मा लगाकर उनसे मिल लिया जिसका यदि रमण सिंह जी को पता चल गया तो आफत हो जाएगी | जब जिले का मालिक एक कलेक्टर उनके सामने धूप का चश्मा नहीं लगा सकता है तो तू किस खेत की मूली है ? पंद्रह हजार पेंशन पाने वाला मास्टर और धूप का चश्मा !तेरी एक महीने की पेंशन में तो एक ढंग का धूप का चश्मा भी नहीं आएगा |

हमने कहा- क्यों, लोकतंत्र में क्या इतनी भी स्वतंत्रता नहीं कि कोई अपने मन से चश्मा भी नहीं पहन सके | मोदी जी खुद धूप का चश्मा लगाते हैं, सलमान खान लगाता है, यहाँ तक कि डॉन दाऊद इब्राहीम लगा सकता है तो हम क्यों नहीं ?

बोला- ये सब सेलेब्रिटी हैं |सेलेब्रिटी कुछ भी करें |उनके लिए तो सब कानून ढीले  पड़ जाते हैं,दो दिन में ही जमानत मिल जाती है, दो मिनट में बीस साल से चल रहे केस का फैसला हो जाता है लेकिन तुझे तो डंडे वाला कोई भी मामू पकड़कर हवालात में बंद कर देगा और बीस बरस जमानत तो दूर चालान तक पेश नहीं होगा | यदि पेंशन बंद कर दी तो दो महीने में वैसे ही मर लेगा | लोकतंत्र में केवल वोट देने के लिए सब समान हैं, उसके बाद घोड़े एक तरफ और गधे एक तरफ |गधों को गरमी में भी सोलह घंटे बोझा ढोना पड़ता है और घोड़ों को गणतंत्र-दिवस की परेड में साल में एक बार ठुमक-ठुमक कर पैंजनिया बजाते हुए चलना है |फिल्मों में नहीं देखा, कभी सह नायिका को नायिका से सुन्दर नहीं दिखाया जाता |यदि वह नायिका से सुन्दर हुई तो नायक उसकी तरफ आकर्षित हो जाएगा फिर नायिका का क्या होगा ? सबसे सुन्दर दिखने और मनमानी करने का अधिकार केवल नायक और नायिका को होता है |ग्रुप डांस में हर कोण से बार-बार नायिका और नायक को दिखाया जाता है शेष तो भीड़ होते हैं |

हमने कहा- ठीक है हम अपनी मर्ज़ी से चश्मा नहीं पहन सकते लेकिन फिर सरकार और राजनीतिक पार्टियाँ क्यों हमारी आँखों पर कभी जातिवाद, कभी सांप्रदायिकता, कभी धर्मनिरपेक्षता, कभी धर्मान्धता, कभी अंध-राष्ट्रवाद, कभी विकास के चश्मे लगवाकर क्यों उसी तरह देखने को बाध्य करती हैं |

बोला-  विकास के नाम पर जैसी चाहे नीति बनाने और चाहे जिस विचारधारा का चश्मा पहनाने का केवल सरकार को अधिकार होता है | जहाँ राणा जी कहें, वहीं उदयपुर |

हमने कहा- लेकिन तोताराम याद रख, हम हिंदी के मास्टर रहे हैं और साहित्यकार भी |साहित्यकार चाहे तो एक शब्द से कुछ का कुछ कर सकता है |

बोला- तो बता, क्या करेगा यदि तुझे धूप का चश्मा लगाकर मोदी जी से मिलते हुए रमण सिंह जी ने देख लिया तो ?

हमने कहा- कह देंगे, हुजूर, आपके चेहरे पर जो तेज है उसे खुली आँखों से देखा पाना हमारे लिए संभव नहीं है |इसलिए अंधे होने से बचने के लिए यह धूप का चश्मा लगा रखा है |

कहने लगा- वाह प्यारे, फिर तो तेरे लिए अगला अकादमी अवार्ड पक्का लेकिन यह अवसर कभी आने वाला नहीं, चाहे धूप का चश्मा लगा या कोल्हू के बैल वाला |














May 12, 2015

छोटी शंका :बड़ा समाधान


छोटी शंका : बड़ा समाधान


जैसे ही पत्नी चाय लेकर आई, तोताराम उठ खड़ा हुआ,बोला- क्षमा करना बन्धु, चाय फिर कभी, मैं घर चलता हूँ |

पूछा तो कहने लगा-लघु शंका का समाधान करना है |

-तो यहाँ भी तो शौचालय है, विद्या बालन की सलाह और 'स्वच्छ भारत :स्वस्थ भारत' योजना के तहत- हमने कहा |

बोला- यह सब योरप, अमरीका और संयुक्त राष्ट्र संघ की साजिश थी जिसके चलते देश की गाढ़ी पसीने की कमाई और संसाधन गटर में बहा दिए |कोई ज़रूरत नहीं है शौचालय को गन्दा करने और फिर सफाई के लिए दुर्लभ जल को व्यर्थ करने की |मैं तो अब लघु शंका के फलस्वरूप निसृत इस अमूल्य संपदा को यहाँ-वहाँ व्यर्थ नहीं करता |गड़करी जी ने बताया है कि यह एक श्रेष्ठ पोषक खाद है जिसमें यूरिया पर्याप्त मात्र में मिलता है | सो जैसे ही ५० लीटर का कैन भर जाएगा उनके दिल्ली के पते पर भिजवा दूँगा | महाराष्ट्र सरकार तो बड़े माल्स और आवासीय कोलोनियों से इस पदार्थ के संग्रहण की विशेष व्यवस्था करने वाली है | 

अच्छा हुआ जो देश कांग्रेस-मुक्त हो गया अन्यथा पता नहीं, कब तक यह अमूल्य संपदा व्यर्थ होती रहती |जब पहली बार १९७७ में दिल्ली कांग्रेस- मुक्त हुई थी तो मोरार जी देसाई आए थे जिन्होंने इस तरल पदार्थ के बल पर स्वयं के स्वस्थ रहने के रहस्य का उद्घाटन किया | देश का दुर्भाग्य कि वे अधिक समय सत्ता में नहीं रहे और तू जानता है कि कोई भी फैशन किसी के सेलेब्रिटी रहने तक ही चलता है | गड़करी जी को अपने पद पर रहते-रहते इस पदार्थ का अधिक से अधिक लाभ जनता तक पहुँचा देना चाहिए अन्यथा  लोग भूलते देर नहीं लगाएँगे |

हमने कहा- वास्तव में तोताराम, इस देश का यही दुर्भाग्य है कि हम अपने स्वदेशी ज्ञान का सदुपयोग करने की बजाय दूसरे देशों की नक़ल करने लग जाते हैं |जो लोग इस स्वदेशी ज्ञान का महत्व समझते हैं वे बिना किसी विशेष खर्चे के काम बना ले जाते हैं |एक लोकोक्ति है-पेशाब में दिए जलना | जिन्होंने समझदारी से काम लिया वे अपने समय के शक्तिशाली लोगों के पेशाब का संग्रह करते रहे |दुनिया अँधेरे में भटकती रही और उनके घर रोशन रहे | आज तो यह दीप-प्रज्ज्वलक पदार्थ ग्राम पंचायत से लेकर दिल्ली तक पर्याप्त मात्र में उपलब्ध है |राजधानियों में तो सदैव से समझदार लोगों द्वारा 'मूत में से मच्छी पकड़ने' की परंपरा रही है |तेरे जैसे नासमझ मछुआरे लंका और पाकिस्तान की तरफ मछली पकड़ने जाते हैं और नावों सहित गिरफ्तार हो जाते हैं |

बोला-  शरीर मनुष्य के भोजन के सभी तत्त्व अवशोषित नहीं कर पता | वे उसके मूत्र में आ जाते हैं | ये सब जैविक होते हैं इसलिए पौधे रासायनिक खाद की बजाय इन्हें शीघ्र स्वीकार करते हैं |इसलिए लघु शंका सृजित यह तरल पदार्थ एक अच्छी खाद है | बिना बात गडकरी जी की टाँग खींच रहा है | मैं तो कहता हूँ कि विकास को प्रतिबद्ध सरकार को देश की नदियों से पहले देश के मूत्रालयों को जोड़ने का काम करना चाहिए जिससे किसानों को सस्ती और अच्छी खाद पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हो सके |

हमने कहा- गड़करी जी ने मंत्रियों के बँगलों से यह पदार्थ एकत्रित करवाया होगा जिनमें सभी पोषक तत्त्व होते हैं | तू जैसा पानी पीता है उससे निर्मित पदार्थ से तो अच्छे भले पौधे भी मर जाएँगे |वैसे हमें तुम्हारे गड़करी जी से एक शिकायत है-यदि उन्होंने इस पदार्थ के महत्त्व का उद्घाटन पहले कर दिया होता तो मोदी जो बिना बात कनाडा नहीं भागना पड़ता, किसी का एहसान नहीं लेना पड़ता और देश का अरबों रुपया भी बच जाता |

तोताराम चौंका- वह कैसे ?

हमने कहा- ऐसे कि इस 'तरल-तत्त्व' में यूरिया ही नहीं, यूरेनियम भी होता है |











May 5, 2015

पिद्दी का शोरबा उर्फ़ रसीली बातें

   पिद्दी का शोरबा उर्फ़ रसीली बातें

आज कल तोताराम की रुचि दीन-दुनिया में नहीं है | किस सेवक ने क्या कहा, कहाँ क्या चल रहा है इससे भी कोई मतलब नहीं |यह क्या हो गया तोताराम को ? चलती हवा से पंगा लेने वाला तोताराम आजकल आत्मकेंद्रित हो गया है |हमसे भी कम ही बोलता है | आज जैसे ही आकर बैठा उसके मोबाइल की घंटी बजी | मोबाइल को लेकर से चबूतरे दूर चला गया और अपने मुँह और मोबाइल को हथेली से ढँकता हुआ धीरे से बोला- अभी कहीं बैठा हूँ , थोड़ी देर में बात करता हूँ |

हमें आश्चर्य हुआ |हमसे हगे-मूते तक की बात न छुपा सकने वाले तोताराम को यह क्या हो गया ? वैसे तोताराम में मानसिक ही नहीं, कुछ भौतिक परिवर्तन भी हुआ |रोज प्रेस किए हुए कपड़े पहनने लगा है |दाढ़ी भी लगभग रोज ही बनी हुई होती है |हमें लगा कहीं यह दिए की भभकती हुई अंतिम लौ तो नहीं है ? कभी कभी गुनगुनाने भी लगता है- ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना | यहाँ कल क्या हो किसने जाना |कभी बाहर गाँव जाते वक्त उसकी पत्नी मैना मोबाइल याद रख कर दे देती थी अन्यथा तोताराम कभी मोबाइल भी साथ नहीं रखता लेकिन आजकल हर समय मोबाइल जेब में |

पत्नी ने बताया था कि मैना कह रही थी कि आजकल इनका मोबाइल का बिल भी बहुत आ रहा है |जब तब दो चार सौ का रिचार्ज करवा लेते हैं |एक दिन हमने तोताराम को घेरा तो बड़ी मुश्किल से खुला - क्या बताऊँ, आजकल मेरे मोबाइल पर लड़कियों के मेसेज आते हैं जो कहती हैं-  'आज वह घर पर अकेली हूँ  |बोरियत मिटाने के लिए मुझसे जी खोल कर प्यार भरी बातें करें'  | वैसे तो नेता लोग बातों की ही कमाई खाते हैं लेकिन मुझे इन बातों से कोई कमाई नहीं होती बल्कि एक मिनट के पाँच रूपए लगते हैं | होना-हवाना तो कुछ नहीं लेकिन बातों से बड़ा सुकून मिलता है |क्या पता, कभी कहीं टकरा ही जाए सो थोडा ढंग से भी रहना पड़ता है |और फिर -यहाँ कल क्या हो किसने जाना ? ज़िन्दगी के चार दिन बचे हैं , हँस बोल कर बीत जाएं तो क्या बुरा है ? और फिर छः परसेंट डी.ए. की क़िस्त मिली है सो इसी मनबहलाव पर खर्च हुई सही |

हमने माथा पीट लिया, कहा- तोताराम किस चक्कर में फँस गया ? यह एक बहुत बड़ा धंधा है जो फोन पर चलता है | एक मेसेज का बल्क में करने पर दस पैसे आता होगा  और जब तू फोन करता है तो तुझसे एक मिनट के वसूले जाते हैं पाँच रुपए  | दो-चार सौ रुपए रोज़ की एक लड़की बैठा रखी है तेरे जैसे उल्लुओं को मूँडने के लिए | इस धंधे में दुनिया को मुट्ठी में करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी शामिल हैं | 'डू नोट डिस्टर्ब' की सुविधा देने का तो नाटक है | हम तो जब भी ऐसा कोई काल आता है, फोन काट देते हैं |

यह बाज़ार है जो लोगों की कुंठाओं का फायदा उठाता है | यदि विश्व की राजनीति को देखेगा तो ऐसे ही रसीली बातें करने का षड्यंत्र चल रहा है | जिस देश के शासनाध्यक्ष को पटाना होता है उसे बड़े-बड़े विशेषणों से संबोधित किया जाता है , अपने यहाँ के मीडिया में उसका गुणगान किया जाता है, उसके लिए लेख लिखे जाते हैं, उसके कपड़ों की प्रशंसा की जाती है  और तेरे जैसा हुआ तो अरबों का ठेका दे आता है |जिसकी गठरी में माल दिखा ठग उसीके पीछे लग लेते हैं |जब बड़े-बड़े फँस जाते हैं तो तू तो पिद्दी का शोरबा भी नहीं है |