May 8, 2011

आत्मा की शांति


( ‘टीपू सुल्तान मस्जिद’ कोलकाता के शाही इमाम ने ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवाई और कश्मीर में भी अलगाववादी नेता सय्यद अली शाह गिलानी के आह्वान पर कई जगह ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा की गई- ६-५-२०११ )

शाही इमाम मौलाना बरकती,
टीपू मस्जिद, कोलकाता

इमाम साहब,
आदाब । आपने ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवाई । धार्मिक काम था सो किसी धार्मिक आदमी को ही करवाना था । आप नहीं करवाते तो कोई और करवाता । कश्मीर में भी अलगाववादी नेता गिलानी के आह्वान पर भी कई जगह ऐसा ही हुआ । इसलिए पहले हमने सोचा कि इसके लिए उन्हें भी एक धन्यवाद पत्र लिख दें फिर विचार बदल दिया क्योंकि उनके इस काम में राजनीति हो सकती है और हो सकता है कि लोगों ने डर कर नमाज़े-ज़नाज़ा अदा की हो कि उनका हुक्म न मानने पर वे कोई बन्दूकी एक्शन ले लें । पर आपका काम तो शुद्ध धार्मिक था । वैसे हमने कई फिल्मों में देखा है कि हीरो हीरोइन को उठवा कर मँगवा लेता है और फिर पंडित या मौलाना को भी इसी तरह मँगवा लेता है और फटाफट शादी करवाने को कहता है । ज़रा भी ना-नुकर करने या कोई धार्मिक अड़चन निकालने पर डाकू का कोई साथी बंदूक दिखाता है तो वह डरकर शादी करवा देता है । मगर हमें विश्वास है कि आपको किसी ने बंदूक दिखाकर यह नमाज़े-ज़नाज़ा अदा नहीं करवाई होगी । आपने तो शुद्ध मानवीय संवेदना के तहत यह काम किया होगा ।

करना भी चाहिए । कोर्ट भी किसी के मरने के बाद केस बंद देता है । उसके अनुयायी भी उसके नाम से पहले स्वर्गीय जोड़ने लग जाते हैं । मगर उस आदमी ने जिन लोगों के साथ अच्छा-बुरा बर्ताव किया हुआ होता है वे उसे उसी तरह से याद करते हैं । आज भी रावण का पुतला जलाया जाता है और दूर-दूर से लोग गाँधीजी की समाधि पर फूल चढ़ाते हैं । महमूद गज़नी या चंगेज खान की कब्र को न तो कोई ढूँढता है और न ही उस पर सज़दा करता है । फकीरों की मज़ार पर लोग मन्नत मानने आते हैं । ख्वाज़ा अजमेर वाले को चादर चढ़ाने जाने कहाँ-कहाँ से लोग आते हैं । हमारे यहाँ तो तुलसीदास जी ने लिखा है -
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।
जो जस करहि सो तस फल चाखा ।

किसी के अंत से ही हिसाब लगाया जाना चाहिए । बीच-बीच में तो मामला ऊपर-नीचे होता रहता है । जैसे दुर्योधन, कंस, रावण आदि ने शुरु में तो बहुत मज़े किए और पांडवों, राम, कृष्ण ने बहुत कष्ट उठाए और ईसा को तो फाँसी तक पर चढ़ा दिया मगर हम किसको आदरणीय मानते है इसीसे उसका मूल्यांकन होता है । रावण जैसा अंत कोई नहीं चाहता मगर खुराफात करते समय आदमी भूल जाता है इन उदाहरणों को । हमने तो कर्मों की बात की है और कर्मों का सही-सही सच तो भगवान ही जानता है या जिसका व्यक्तिगत सबका पड़ा हो उसे पता होता है । जहाँ तक आदमी की बात है तो साला, सच बोलता कहाँ है ? यमदूतों से भी कहता है कि मुझे राजनीति के चक्कर में फँसाया गया है, वैसे मैं निर्दोष हूँ ।

अब किसे पता कि ओसामा कैसा था ? यह तो या तो भगवान जनता है या फिर कोई सच्चा धार्मिक । हम तो सांसारिक प्राणी हैं, जैसा अखबार में पढ़ते हैं वैसा ही विचार बना लेते हैं । हाँ, इतना ज़रूर जानते और मानते हैं कि किसी को सताना पाप है और किसी का भला करना पुण्य है । फिर तुलसीदास जी की एक चौपाई सुनाते हैं-
पर हित सरिस धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।

अब यह, या तो आप जाने या ओसामा, कि कश्मीर, मुम्बई, अमरीका आदि में निर्दोष लोगों को मारना या मरवाना परहित है पर पीड़ा ? कश्मीर के मूल निवासियों को वहाँ से भगा देना, उनकी हत्याएँ करना, उनकी ज़ायदाद पर कब्ज़ा कर लेना कौन-सा धार्मिक कार्य था यह आप जाने या फिर गिलानी जी से पूछ कर तय करें । हमारे हिसाब से तो जो जहाँ शताब्दियों से रह रहा है उसे शांति से क्यों नहीं रहने दिया जाए । अपने भारत में तो जो यहाँ रह रहा है उसे सब तरह के अधिकार हैं और यह देश उसका भी उतना ही है जितना किसी और का । अब आप या और भी किसी धर्म के लोग यहाँ रह ही रहे हैं और स्वाभाविक रूप से फल-फूल भी रहे हैं । मगर पाकिस्तान और बंगलादेश में हिंदुओं और ईसाईयों की संख्या बढ़ने की बजाय घट रही है ।

हाँ, तो हम नमाज़े-ज़नाज़ा की बात कर रहे थे । मरने के बाद तो सभी की आत्मा की शांति की प्रार्थना करनी चाहिए । अशांत आत्मा जाने किस-किस को परेशान करती है । इसीलिए जो बेटा अपने जीते बाप को भरपेट रोटी नहीं देता वह भी पिता की मृतात्मा की शांति के लिए हरिद्वार जाता है, गया में श्राद्ध करवाता है । मृतात्मा जिंदा आत्मा से ज्यादा खतरनाक होती है । उसमें भगवानी नहीं तो, शैतानी शक्ति तो आ ही जाती है । वैसे नेताओं और आतंकवादियों की आत्मा की शांति करवाना ज्यादा ज़रूरी है । भले आदमी ने जीते जी ही जब किसी को परेशान नहीं किया तो मरने के बाद क्या करेगा । ये तो दुष्टात्माएँ है जो जब जिंदा रहती हैं तब तो परेशान करती ही हैं और मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती । इसलिए इनकी शांति तो बहुत ज़रूरी है । पाकिस्तान वैसे तो ओसामा जी को विशिष्ट मेहमान की तरह रखता था मगर अब अमरीका से डर कर उसकी आत्मा की शांति के लिए कोई अनुष्ठान नहीं करवा रहा है । और यह भी पढ़ने में आया है कि ओसामा के एबटाबाद वाले अन्तिम निवास को भी मटियामेट करवा देगा ।

पर अपना भारत देश वास्तव में बहुत मानवीय और संवेदनशील देश है । दुनिया में कहीं भी ओसामा की आत्मा की शांति की इतनी फ़िक्र नहीं की गई जितनी अपने भारत में । यही तो इस देश की विशेषता है । आपके इस्लाम का हमें ज्यादा पता नहीं मगर हिंदू धर्म में तो श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है और इस दिन अपने ही नहीं बल्कि उन सभी आत्माओं के नाम से भी कुछ अछूता निकाला जाता है जिनका श्राद्ध करने वाला कोई नहीं हो । और यहाँ तक कि सभी जीवात्माओं की भी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है ।

आपने ओसामा की आत्मा की शांति के लिए नमाज़ अदा करवाई तो आपकी संवेदना से प्रेरित होकर हम आपको लिखने बैठ गए । आपके कलकत्ता के पास की बंगलादेश पड़ता है और हमारा ख्याल है कि आपको १९७१ का पकिस्तान द्वारा वहाँ किया गया कत्ले-आम आपको ज़रूर याद होगा । वहाँ यहीं कोई २०-३० लाख लोग क़त्ल किए गए थे । पता नहीं बेचारों का श्राद्ध, नमाज़े-ज़नाज़ा अदा हुई या नहीं । चालीसा करने वाला भी कोई बचा था या नहीं । यदि आपने उनके लिए कुछ नहीं किया हो तो अब कर दीजिए । बड़ा सबब का काम होगा ।

किसी के मरने के बाद, यदि उस व्यक्ति में कुछ अच्छा हो तो उसे याद रखो, नहीं तो उसकी आत्मा जाने और भगवान । आकबत के दिन अल्लाह करेगा उससे हिसाब । ज़िंदगी को चलते रहना है सो बिना अनावश्यक बोझा लादे चलते चलो । मगर कुछ हैं कि किसी के मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते और घावों को भरने ही नहीं देते । हमने सुना है कि काबुल में पृथ्वीराज चौहान की कब्र है जिसको देखने के लिए जाने वालों को उस पर जूते मारने के लिए कहा जाता है । अब देखिए कहाँ तो हम ओसामा की आत्मा की शांति के लिए नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवा रहे हैं और कहाँ काबुल में हजार साल पहले बहादुरी से लड़े एक वीर के साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है । जब सिकंदर ने पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव लिए जाए तो उसने कहा- जैसा कि एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है । सिकंदर खुश हुआ और उसका राज्य लौटा दिया । और कहाँ काबुल में पृथ्वीराज के साथ यह व्यवहार ?

आप तो मौलाना हैं इस तरह के सभी कुफ्रों का भी विरोध कीजिए । धर्म केवल कर्मकांड करवाना ही नहीं है बल्कि आदमी को इंसान बनाना, एक दूसरे की इज्ज़त करना, शांति से रहना ज्यादा ज़रूरी और सच्चा धर्म हैं ।

७-५-२०११
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

आपको भी बधाई, ओबामा जी

( १ मई २०११ को आधी रात के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने घोषणा की कि पकिस्स्तान में अमरीकी कमांडो द्वारा ओसामा मारा गया )


ओबामा जी,
नमस्ते । पत्र का शीर्षक देखकर अन्यथा नहीं लीजिएगा । हमने आपसे पहले बुश साहब को बधाई दी है इसलिए यह शीर्षक दे दिया है । बुश साहब को पहले इसलिए कि इस शुभ अवसर के मूल प्रणेता वे ही हैं । यदि उनके काल में ९/११ नहीं हुआ होता तो यह शुभ अवसर आता ही नहीं । कुछ भी हो, मुद्दा खूब चला । इसी के सहारे बुश साहब दो टर्म खींच गए और हमारा विश्वास है कि अब आप भी दो टर्म बने रहेंगे ।

इसके लिए आपको कोई दोष नहीं देगा । आपके गले में तो ये रोज़े बुश साहब डाल गए । आपने चुनाव-प्रचार के समय जो नारा दिया था- 'वी कैन', वह नारा चला और आप जीत गए । बाद में बहुत से विज्ञापनों में भी हमने इस नारे का उपयोग करते लोगों को देखा । बुश साहब के काल में शुरु हुए बैंकों के फेल होने के सिलसिले ने आपको बहुत चक्कर में डाला और आपकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे जाने लगा । मगर आपने बुश साहब द्वारा गले में डाले गए इन रोज़ों को बड़ी चतुरता से निबटाया और उसे एक लाभ का सौदा बना लिया ।

यह ज़रूरी भी था । उस दुष्ट ने तो अमरीका की नाक ही काट ली थी । बात यह है कि बड़े आदमियों की नाक भी बड़ी होती है । वह सारी दुनिया में फैली होती है, इसलिए उसका कहीं भी कटना संभव है । और फिर नाक का कटना मानने पर भी निर्भर करता है । अब हमें देखिए, हमले हमारे यहाँ भी होते हैं मगर हमारी नाक कभी नहीं कटती । विपक्षी कभी कसाब तो कभी कंधार तो कभी अफज़ल के नाम से उसे काटने की कोशिश करते हैं । मगर हम उसे बचा ही लेते हैं और नहीं बचा पाते तो भी हम कभी मानते ही नहीं कि नाक कटी है । आपने किसी दूसरे के कार्यकाल में कटी देश की नाक को अपनी मान कर उसे फिर से लाकर सर्जरी करवाकर जुड़वा लिया । चलो इज्ज़त बची और लाखों पाए । अब इस विजय का बहाना बनाकर अफगानिस्तान से निकलना आसान हो जाएगा । वियतनाम में तो बड़ी भद्द हुई थी ।

हम तो यही सोच कर हैरान हैं कि इस ग्लोबल-गाँव हो चुकी छोटी सी दुनिया में छः फुट लंबे दुबले-पतले से आदमी को नहीं ढूँढ़ पाए । हमारी पुलिस को ठेका दे दिया हो तो अब तक दस-पन्द्रह ओसामाओं को पकड़ कर आपके सामने हाज़िर कर देती । आप कह सकते हैं कि वे असली थोड़े ही होते ? ठीक है, ओसामा तो एक है, दस-पन्द्रह कैसे हो सकते हैं ? मगर हमारे यहाँ एक रक्त-बीज नाम के राक्षस का किस्सा आता है जिसके रक्त की जितनी बूँदें गिरती थीं उतने ही रक्त-बीज और पैदा हो जाते थे । यह सब प्रतीकात्मक है पर है विचारणीय क्योंकि ओसामा एक विचारधारा की उपज है । भले ही वह विचारधारा कैसी भी हो । वरना केवल पैसे के लिए कोई मानव-बम नहीं बनता । इसलिए यदि ओसमाओं के 'रक्त-बीज' को खत्म करना है तो घृणा की विचारधारा को सभी स्तरों पर समाप्त किया जाना चाहिए, फिर चाहे वह धर्म की हो या रंग की हो या देश की हो । मानव को मानव समझे बिना यह दुनिया शांत और सुरक्षित नहीं हो सकती ।

बुश साहब वैसे बहुत बहादुर हैं । हमला होते ही बदला लेने निकल पड़े और पूरे आठ साल तक गरजते रहे । पर हमें शुरु से ही लगता था कि यह इनके बस का काम नहीं है । क्योंकि जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तो उसे कोई भी पुरानी प्रेमिका आसानी से धोखा दे सकती है । उम्र बढ़ने पर प्रेमी, यदि बर्लुस्कोनी की तरह घुटा हुआ नहीं हुआ तो, सोचता है कि अब पता नहीं दूसरी मिलेगी कि नहीं सो पुरानी वाली से ही निभाना चाहता है । और इस निभाने के चक्कर में ही प्रेमिका और भी कइयों से टाँका भिड़ा लेती है । पुराना प्रेमी पलंग पर होता है तो नया बेड के नीचे छुपा हुआ अपनी बारी का इंतज़ार करता रहता है । सफल प्रेमिका वही है जो एक साथ कई प्रेमियों को उलझाकर रखे । पाकिस्तान की भूमिका पर यह रूपक फिट बैठता है । वह बुश और ओसामा दोनों को निभाता रहा और अब भी उसने अपने को ओसामा वाले कांड से बिलकुल अलग करके अपने यहाँ के आतंकवादियों को भी छिटकाया नहीं है ।

आप जवान हैं इसलिए आजकल की प्रेमिकाओं को अच्छी तरह से समझते हैं । इसलिए आपने उसके प्रेमी को उसके बिस्तर के नीचे से ही बरामद कर लिया । हम तो पहले से ही जानते थे कि यह संत वहीं होगा पर पता नहीं क्यों हमारी बात को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया । हो सकता है कि गंभीरता से लिया भी हो तो माना नहीं क्योंकि सोचा हो कि ब्राह्मण कहीं इनाम न माँगने लग जाए पर अब हमारा अनुमान सच सिद्ध हो गया है ।

आप को अभी बहुत समय अमरीका की राजनीति में रहना है और बहुत से ओसामाओं को पकड़ना है । इसलिए बताते हैं कि कभी ऐसी प्रेमिकाओं के चक्कर में न पड़ें और यदि किसी से नैना लड़ भी जाएँ तो फटाफट शादी करके पाँच-चार बच्चे पैदा कर देने चाहिएँ कि वह किसी और को पटाने लायक ही नहीं रहे जैसे कि सोवियत रूस के विघटन के बाद नए समीकरणों के अनुसार अमरीका ने भारत के साथ किया ।

आपने ओसामा के शव को जल-समधि भी फटाफट दिलवा दी । ठीक भी है, ऐसे काम को फटाफट ही निबटा देना चाहिए । पता नहीं कब कोई मानवाधिकार का मुद्दा उठ खड़ा हो । सद्दाम को तो जब फाँसी दी गई तो लोग उसका मजाक उड़ा रहे थे , गाली निकाल रहे थे और फोटो खींच रहे थे । मगर आपने बहुत शालीनता बरती । जल-समाधि देने से पहले मन्त्र पढ़े गए, उनका अरबी में अनुवाद भी किया गया और ओसामा को नहलाया भी गया यदि नहीं भी नहलाते तो समुद्र में कौन सी पानी की कमी थी । लोग सोचते हैं अब उसका कोई मज़ार या समाधि बनाना संभव नहीं है । मगर किसी का असली मज़ार तो दिलों में होता है । मन से ऐसे दुर्विचार निकलें तो बात बने ।

२-५-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 4, 2011

बधाई हो, बुश साहब

( १ मई २०११ को आधी रात के बाद पाकिस्तान में अमरीकी कमांडो द्वारा ओसामा मारा गया )

बुश साहब,
बधाई हो । ओसामा मारा गया । अगर आप वाली स्पीड से काम किया जाता तो हो सकता है कि चालीस-पचास वर्ष और लग जाते । फिर तो किसी को कुछ करना ही नहीं पड़ता । दुष्ट अपने-आप ही अपनी स्वाभाविक मौत ही मर जाता । जैसे कि हम कसाब और अफज़ल गुरु के स्वाभाविक मौत मरने का इंतज़ार कर रहे हैं ।

अब यह समाचार हम आपको अपने ब्लॉग के द्वारा दे रहे हैं । पहले वाली बात तो रही नहीं जब हम आपको ओसामा के बारे में ताज़ा जानकारियाँ तत्काल हॉट लाइन से दिया करते थे । खैर, आपने तो ओसामा वाली नमाज़, रोज़े समेत, ओबामा के गले डाल दी थी । अब वह जाने और उसका काम । समझदार पूर्ववर्तियों का काम तो अपने उत्तराधिकारियों के लिए कुछ न कुछ ऐसी आफ़त छोड़कर जाना होता है कि बच्चू जब तक कुर्सी पर रहे सादर स्मरण करता रहे । एक चोर मरने लगा तो उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा- बेटे, मैनें जीवन भर चोरी की है और लोगों की बद्दुआ ही पाई है । तू कोई ऐसा काम करना जिससे लोग श्रद्धा से याद करें । बेटा समझदार था सो उसने अपने पिता के नाम पर कोई अच्छा काम करने की बजाय लोगों के जूते, चप्पल और चड्डी, बनियान चुराने शुरु कर दिए । पहले तो चोरी से बड़े लोग ही दुःखी थे पर अब तो गरीब लोग भी परेशान हो गए और कहने लगे- इस साले से तो इसका बाप ही अच्छा था जो कम से कम हम ग़रीबों को तो परेशान नहीं करता था । सो भला आदमी कोई भी हो- क्या पूर्ववर्ती या उत्तरवर्ती, सब को अपने सत्कार्यों से धन्य करता है । वैसे हम यह व्यंग्य में कह रहे हैं कि आपने ओबामा को उलझा दिया । आप तो उसे एक ऐसा मुद्दा सौंप गए जिससे वह अपना दूसरा टर्म भी जीत जाए । भले ही ओबामा जी आपको ओसामा वाली समस्या छोड़ जाने के लिए धन्यवाद न दें पर हम आपके इस परोपकार को समझते हैं ।

वैसे आप सोच रहे होंगे कि हम आपको बधाई क्यों दे रहे हैं । आपने तो कुछ किया भी नहीं ओसामा को पकड़ने के लिए । यदि २००४ से २००८ के बीच पकड़ भी लेते तो क्या फायदा होने वाला था । दो टर्म से ज्यादा तो आपके यहाँ एक ही आदमी राष्ट्रपति बन नहीं सकता और आप दूसरी टर्म के लिए चुन ही लिए गए थे । क्यों बेकार सिर खपाना । फिर भी ओसामा दूसरी टर्म में चुने जाने के लिए आपके काम तो आया ही । इसी तरह ओसामा दूसरी टर्म के लिए ओबामा जी के भी काम आएगा । सो जितना ओसामा का उदय काम का था उसी तरह से उसका मरण भी काम का है – घटोत्कच की तरह । सो बधाई । जब भी २००० से २०१६ तक का अमरीकी राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा तो आपके और ओबामा के साथ ओसामा का भी नाम आएगा ही ।

आपको याद होगा कि जब आप ओसामा को पकड़ने की बात किया करते थे तब हम भी तरह-तरह के सात्त्विक और अहिंसात्मक उपाय बताकर आपको इस मामले में सहयोग दिया करते थे । भले ही अब ओसामा को मारने के लिए घोषित इनाम में से हमें कुछ भी दिलवाने के लिए आप ओबामा जी से हमारी सिफारिश न करें या ओबामा जी भी हमारी सेवाओं को मान्यता न दें पर जैसे हम आपको बधाई दे रहे हैं वैसे ही आप भी हमें ओसामा के मारे जाने पर बधाई तो दे ही सकते हैं यदि आप बधाई न देंगे तो भी हम बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि- परोपकाराय सतां विभूतयः । दुनिया खुशी मना रही है, हमें भी इस पर बधाई देनी पड़ रही है जब कि हमारे अपने दो-दो ‘ओसामा’ तो हमारे घर में ही बैठे हैं और दो-चार पाकिस्तान में बैठे हैं । जब आप उन्हें पकड़ने में या मारने में हमारी मदद करेंगे तब हम मानेंगे कि आप और आपका देश वास्तव में आतंकवाद को बुरा समझता है । अपनी भूख, प्यास मिटाना और अपनी खुजली खुजाना तो पशु भी जानता है । भले ही चिदबरम जी या मनमोहन जी आपसे हमारे आतंकवाद को मिटाने में मदद की उम्मीद कर रहे हों पर हमें तो नहीं है । हम तो मानते हैं कि 'खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता' ।

आपके पास अब तो समय ही समय है । इसलिए थोड़ा चिंतन कीजिए और सोचिए कि आतंकवाद पैदा ही क्यों होता है ? एक ओसामा को मारने में एक महाशक्ति को दस वर्ष लग गए तो अभी भी जाने कितनी ओसामा इस दुनिया में पड़े हैं । कब तक इन्हें इस तरह से शारीरिक रूप से मारने के लिए समय और पैसा बर्बाद करते रहेंगे ? कोई ऐसा उपाय नहीं है क्या कि ऐसे आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को पैदा होने लायक हवा-पानी और खाद न मिले । सोचिए, फुर्सत से सोचिए, सोचने से ही मार्ग निकलेगा । और फिर आपके पीछे कौनसा अन्ना हजारे, रामदेव या २-जी स्पेक्ट्रम पड़ा है जो टेंशन के मारे सोच ही न पाएँ ।

२-५-२०११
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach