May 31, 2016

एक शाम : सलाहकार मंडल के नाम

  एक शाम : सलाहकार मंडल के नाम 

आज जैसे ही हम बरामदे में गए तो देखा तोताराम एक बड़ा बैनर दीवार पर ठोंक रहा है | हमने पूछा यह क्या हो रहा है ? कोई धरना या भूख हड़ताल की तैयारी है क्या ?

बोला- मास्टर, कभी तो शुभ-शुभ बोलाकर |अपने सलाहकार मंडल के दो साल पूरे हुए हैं सो सोचा एक छोटा-मोटा उत्सव क्यों न मना लिया जाए |लोग तो सौ दिन पूरे होने तक का उत्सव मना डालते हैं,किसी खिलाड़ी की हाफ सेंचुरी तक सेलेब्रेट का लेते हैं | ठीक है, हम इस पद पर आजीवन रहने वाले हैं तो क्या आजीवन कुछ भी न करें ? |कुछ भी सेलेब्रेट नहीं करें ? 

हमने बैनर को खोलकर देखा तो उस पर हमारा और तोताराम का फोटो छपा था और लिखा था- 'एक शाम : सलाहकार मंडल के नाम' | हमने कहा- यह तीन सौ रुपए का खर्चा क्यों किया ? 

बोला- बिना खर्चा और हल्ला किए किसी को हमारी उपलब्धियों का पता भी तो नहीं चलेगा | लोकतंत्र और देश हित के लिए यह खर्चा अत्यावश्यक था |

हमने कहा- लगता है उत्सव बड़ा है जो शाम की तैयारी अभी से कर रहा है |
बोला- उत्सव अभी मनेगा |

हमने प्रतिप्रश्न किया- इस पर तो एक शाम लिखा है फिर सुबह क्यों ? 

बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? मोदी जी ने भी तो 'नई सुबह' का उत्सव शाम को मनाया है तो हम 'एक शाम' सुबह क्यों नहीं मना सकते ? 

हम बतिया रहे थे कि जयपुर रोड़ जाने के लिए गोल गप्पे वाले का ठेला 'जय शिव शंकर पानी पूरी भंडार' बरामदे के आगे से गुज़रा जिस पर जोर-जोर से गाना बज रहा था- हट ज्या ताऊ पाछे नै |

हमने कहा- देख ली ना अपने सलाहकार मंडल की हैसियत ?

तो कहने लगा- यह तो कुछ भी नहीं है |आजकल तो हरिबंशराय बच्चन का पोता "टाँग उठा के ....' गाना गा रहा है और सारा देश मुग्ध होकर सुन रहा है |ऐसी छोटी-छोटी बातों से उत्सवों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए |

हमने पूछा- लेकिन इस उत्सव में हम कौन सी उपलब्धियाँ गिनाएँगे ? 

बोला- क्यों गिनाने के लिए बहुत कुछ है |हमने दो साल के दौरान सलाहकार मंडल में होते हुए भी कोई सलाह नहीं दी जब कि सलाह देने वाले माँगे जाने का इंतज़ार नहीं करते | स्वामी जी की तरह राजन को हटाने की सलाह ज़बरदस्ती देते रहते हैं |इससे हमारी घरेलू-सरकार को परिवार की सेवा करने का भरपूर अवसर मिला वरना हम चाहते तो सलाह- दे देकर ही माहौल बिगाड़ सकते थे | क्या यह हमारा परिवार रूपी देश के लिए योगदान नहीं है ?

हमने पूछा- और कुछ ?
बोला- क्यों नहीं, हमने इन दो सालों में लुंगी और बनियान के अतिरिक्त कोई खरीददारी नहीं की जिससे घर का बजट नहीं बिगड़ा | सब्ज़ी खरीदने में कोई घोटाला नहीं किया | और भी बहुत कुछ है, कहाँ तक गिनाऊँ |

तभी पत्नी चाय लेकर आ गई, बोली करते भी कहाँ से | दो साल से सब्ज़ी वाली गली में ही आ जाती है और हम उसीसे सब्ज़ी खरीद लेते हैं |वैसे आपको पता होना चाहिए कि सलाहकर मंडल में परिवर्तन करने की आवश्यकता अनुभव की जा रही है इसलिए जो उत्सव मनाना है, मना ही लो |फिर क्या पता, मौका मिले या नहीं |

तोताराम बोला- तो ठीक है, अधिक खर्चा नहीं करेंगे | तू अपनी डायरी ले आ और शुरू हो जा | इतना मसाला तो तेरे पास है ही कि चाय और खाने का ब्रेक लेते-लेते शाम तो कर ही देगा | यदि कुछ समय बच गया तो परनिंदा का अपना शाश्वत कार्यक्रम तो है ही जो एक दिन तो क्या पाँच साल चल सकता है |

May 30, 2016

मॉल वाली गाय

   मॉल वाली गाय 

आते ही तोताराम अनुलोम-विलोम करने लगा | 
हमने कहा- अरे, योग दिवस तो बहुत दूर है, अभी से चालू हो गया |यह अनुलोम-विलोम करना ही है तो कम से कम बैठ तो जा |

बोला- मैं प्राणायाम नहीं कर रहा हूँ |मैं तो सूँघ रहा हूँ |

हमने कहा- यहाँ ऐसा क्या है जो सूँघ रहा है ? यहाँ न तो आर.डी.एक्स है,न ही कोई काला धन और न ही कांग्रेस के कोई एम.एल.ए. जिसे सूँघकर-पटाकर कोई सरकार गिराई जाए | 

बोला- अमरीका से एक कुक आया हुआ है ना आजकल |अरे, वही टिम कुक जो एप्पल का कोई बड़ा मैनेजर है | मोदी जी को भी एक कोई फोन भी भेंट किया है |अम्बानी से भी मिला है |पिछली बार जब ओबामा जी आए थे तो मोदी जी ने उन्हें अपने हाथ से चाय बनाकर पिलाई थी |ओबामा जी ने वहाँ जाकर सोचा होगा- यदि चाय के चक्कर में न पड़ते तो शायद भारत से और भी  बड़े  सौदे  पटाए जा सकते थे सो वही हिसाब-किताब पूरा करने के लिए चाय के ज़वाब में 'कुक' का चक्कर चला दिया |

हमने कहा- तो वह क्या यहाँ खाना पकाने आया है ? 

बोला- मेरा मतलब यहाँ चूल्हा जलाकर बाजरे की रोटी सेंकने से नहीं है |बात समझ, चूल्हा जलाने का मतलब है अपनी हँड़िया के नीचे आँच देने से है | व्यापार का मतलब दो पैसे कमाना है | व्यापार सेवा थोड़े ही होता है | माल यहाँ का , काम करने वाले यहाँ के, प्रदूषण फैले तो यहाँ, उपयोग करने वाले भी भारत के ही और केवल ठप्पे भर के बदले मोटा मुनाफा इनका || 'मेक इन इण्डिया' का मतलब भारत को समृद्ध बनाना नहीं बल्कि भारत से, भारत के साधनों द्वारा कमाना है |'मेक इन इण्डिया' में जो भारत की समृद्धि समझ रहे हैं वे या तो मूर्ख है या फिर बहुत चतुर | 

हमने कहा- लेकिन इससे लोगों को रोज़गार भी तो मिलेगा | 

बोला- सब ओटोमेटिक होगा | अमरीका में मजदूर बहुत महँगे हैं जब कि यहाँ थोड़े से सस्ते मजदूरों को लगाकर बहुत-सा मुनाफा कमाया जा सकता है |  और तुझे पता है- यह कुक अमरीका से सेकण्ड हैण्ड फोन लाकर यहाँ भारत में बेचने का  जुगाड़ भी लगा रहा है |

हमने कहा- इसमें नई बात क्या है ? भारत तो सदा से ही योरप अमरीका की पुरानी टेक्नोलोजी खरीदता रहा है | जो वहाँ न बिके उसे भारत में पेल दो |आज भी वहाँ की उतरन दिल्ली से दौलताबाद तक बिक रही है कि नहीं ? वे दवाइयाँ जो योरप अमरीका में प्रतिबंधित है यहाँ बिक रही हैं कि नहीं ? और आज पढ़ा कि नहीं अमरीका-योरप में ब्रेड बनाने में जो रसायन प्रतिबंधित हैं वे भारत की ब्रेड बनाने वाली कंपनियों की ब्रेड में पाए गए हैं |

बोला- तो इसमें कोई क्या कर सकता है ?जब घर में खाना नहीं बनाओगे तो जैसा भी बाज़ार में मिलेगा खाना पड़ेगा |असली दूध चाहिए तो गाय पालो |गोबर और मूत न करने वाली गाय मतलब मॉल वाली गाय तो ऐसा ही दूध देगी |



May 24, 2016

अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है बाबा

 अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है बाबा 


कोई साढ़े दस बजे तोताराम सीटी बजाता हुआ घर में घुसा | इस समय तोताराम ? लू तो दो घंटे पहले ही चलने लगी है |यह कोई समय है घर से निकालने का !  ऐसे समय तो मुर्दे को भी घर से नहीं निकालते, भले ही यह व्यवस्था मुर्दे से अधिक कन्धा देने वालों की सुरक्षा के लिए हो |

पूछा- कहाँ गया था ? क्या शहीद होने का विचार है ?

बोला- बैंक गया था |डी.ए. का एरियर आ गया है | सोचा, तुझे भी बताता चलूँ | 

हमने कहा- सो तो ठीक है लेकिन तुझे पता होना चाहिए कितनी गरमी पड़ रही है ? ४५ से ऊपर है पारा |  ओरेंज अलर्ट जारी कर दी गई है |

बोला- यह क्या होता है ? 

हमने कहा- कल तू हमें कह रहा था कि हमें हिंदी का लिंग-ज्ञान नहीं है और तेरा खुद का अंग्रेजी ज्ञान ? अरे, ओरेंज अलर्ट का मतलब है संतरा चेतवानी | जब ज्यादा गरमी पड़ती है तो यह अलर्ट जारी किया जाता है |इसका मतलब यह कि लोग दोपहर में बाहर न निकलें |

बोला-लेकिन नेता लोग तो सारे देश में भागे फिर रहे हैं |

हमने कहा- वे तो कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने के लिए घूम रहे हैं ?यदि तू उनकी नक़ल करेगा तो ज़रूर यह देश तोताराम-मुक्त हो जाएगा | उनकी क्या नक़ल करता है |उनका तो सब कुछ वातानुकूलित होता है मूत्रालय से लेकर मंच-मंत्रालय तक | और अपनी हालत तो सुबह-सुबह शौचालय में ही उमस के मारे बेहोश होने जैसी हो जाती है |
बोला- बन्धु, फिर भी आम आदमी (केजरीवाल नहीं ) को तो झुलसा देने वाली गरमी हो या हाड़ जमा देनेवाली सर्दी पापी पेट के लिए निकला ही पड़ता है  | वैसे एक बात कहूँ, जब आजकल देश में नारे, कार्यक्रम और जुमले सब अनुप्रास में आबद्ध है तो इस 'ओरेंज अलर्ट' का हिंदी अनुवाद 'संतरा चेतावनी' की जगह 'भगवा-भभका' या 'केसरिया-कहर' नहीं हो सकता क्या ?

हमने कहा- हो तो कुछ भी सकता है पर इसमें देशी दारू के भभके जैसी कुछ गंध आती है |  पहले की बात और थी जब स्वदेशी का ज़माना था अब तो 'मेक इन इण्डिया' का मौसम है जिसमें 'फोरेन का फर्राटा' है | और  फिर तूने अनुपम खेर का नाम सुना है कि नहीं ? अब उनके साथ चिंटू बाबा उर्फ़ ऋषि कपूर भी आ गए हैं | कह देंगे- भाषा तुम्हारे बाप का माल है क्या ? इसलिए तू अनुवाद को छोड़ बस, एक महिने के लिए दोपहर में बाहर निकलना बंद कर दे |

बोला- कहने वालों का क्या जाता है ? सभी कहते हैं भोजन में फल, मेवे,दूध, दालें पर्याप्त होने चाहिएँ लेकिन जब साधारण आदमी की तनख्वाह बीसवें दिन ही निबट जाती है तो ये सब चोंचले और मज़ाक लगने लग जाते हैं | जिनको मुफ्त की अबाध और अनाप-शनाप बिजली मिलती है उनकी बात और है | यहाँ तो चोरों की कृपा से निरंतर महँगी होती जा रही बिजली मिलती है और वह भी जब चाहे कट जाती है |ऐसे में उमस के मारे बाहर निकलना ही पड़ता है |रिक्शेवाला दुपहर और गरमी नहीं देख सकता उसे तो पेट की आग बुझाने के लिए निकलना ही पड़ेगा चाहे बाहर आग की क्यों न बरस रही हो या फिर चाहे 'ओरेंज अलर्ट' हो या 'चीकू चेतावनी' हो या 'सेव सतर्कता' कुछ भी हो |

देखा नहीं, जैसलमेर में सेना के जवान रेत पर पापड़ सेंक रहे हैं |और तो और बेचारे टिम कुक को देखलो, अमरीका के सुहावने मौसम को छोड़कर दिल्ली में अपनी रोटी के नीचे आँच देने के लिए घूम रहा है | 
अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है, बाबा |



May 23, 2016

मुँह में कैंची

  मुँह में कैंची 

अब हमारे यहाँ पारा ४५ डिग्री पहुँचने के कगार पर है |इसके बावजूद तोताराम थोड़ा देर से आया | गरमी से लड़ने के पूरे अस्त्र-शस्त्रों के साथ |आँखों पर धूप का चश्मा, छाता, सिर पर गीला गमछा | हमने पूछा- तोताराम, तू राजस्थान का रहने वाला है |धूप के प्रति इतनी भी असहिष्णुता क्या ?

बोला- अब असहिष्णुता कोई मुद्दा नहीं रहा |

हमने पूछा- कैसे ?

बोला- यदि अब भी यह मुद्दा होता तो अनुपम खेर को राज्य सभा की सदस्यता न मिल जाती |अब तो हजामत मुद्दा है |सब एक दूसरे की हजामत बना रहे हैं | 

हमने कहा- बन्धु, यह तो तुम नई बात बता रहे हो |हमने तो इस मुद्दे पर कुछ पढ़ा नहीं |हाँ, बनारस में कोई अंसार अहमद है जिसने मुँह में कैंची फँसा कर लगातार २५ घंटे तक हजामत बनाई | हो सकता है उसका यह करिश्मा गिनीज बुक में भी आ जाए |अब बेचारे के पास श्री श्री जी की तरह हजारों नर्तक और वादक  जुटाने की हैसियत तो है नहीं जो पहुँच जाता नाच-गाने से यमुना की सफाई करने और रिकार्ड बनाने | ले देकर यही हुनर है तो यही सही |

बोला- शब्दों का फर्क है और तू साहित्यकार की दुम होकर भी मेरे शब्दों का निहितार्थ नहीं समझता |रिकार्ड बनाने के लिए मुँह में कैंची फँसाने की क्या ज़रूरत है ? कहा भी है- फलाँ की जुबान कैंची की तरह चलती है |जुबान से आप किसी का दिल जीत सकते हैं और जुबान से दिल छलनी भी कर सकते हैं | अपनी बात अच्छे शब्दों में भी कह सकते हैं |तभी कबीर ने कहा है-
बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानि |
हिये तराजू तौल कर तब मुख बाहर आनि ||

शब्दों में ताकत हो और राजनीति में घुसपैठ हो तो यह काम शब्दों के द्वारा बखूबी किया जा सकता है |किसी की भी शब्दों से हजामत बनाई जा सकती है | इसी काम के लिए तो सुब्रह्मण्यम स्वामी जी को राज्य सभा में लिया गया है | भारत माता, तिरंगा और असहिष्णुता जैसे शब्दों से कब तक हजामत बनती |अभी तो तीन साल और निकालने हैं तो कोई तगड़ा हजामत बनाने वाला होना चाहिए |ऐसे में स्वामी जी से बेहतर और कौन हो सकता है ?

हमने कहा- बन्धु, हमने तो पढ़ा है कि १९९९ में इन्हीं ने जयललिता और सोनिया से मिलकर अटल जी सरकार गिराई थी | और अब बीजेपी इन्हीं को गले लगा रही है |बड़ी अजीब बात नहीं ?

बोला- इसमें अजीब क्या है ? सब को कोई न कोई ऐसा चाहिए जो विपक्ष हो अपनी जुबान की कैंची से डराता रहे |यदि अटल जी की सरकार गिराने के बदले इन्हें प्रधान मंत्री बना दिया जाता तो ये शांत रहते लेकिन अब तो इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य ही जयललिता और सोनिया को परेशान करना और इनके पीछे पड़े रहना है तब तक जब तक कांग्रेस-मुक्त भारत की तरह जयललिता और सोनिया-मुक्त भारत नहीं बन जाता |यदि कुछ और दिनों तक राज्य सभा में नहीं लिया जाता तो ये बीजेपी को कोसने लगते |अब कह रहे हैं रघुराम राजन को हटाओ |और आगे भी देख लेना यदि किसी महत्त्वपूर्ण विभाग का मंत्री नहीं बनाया गया तो फिर अपने वाली पर आ जाएँगे | पलटते क्या देर लगती है ?

हमने कहा- बन्धु, कुछ भी हो लेकिन बंदा है जीनियस | २४ साल की उम्र में हार्वर्ड से पीएचडी और २७ की उम्र में वहीं गणित का प्राध्यापक बनना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है |हम तो किसी तरह स्वयंपाठी के तौर पर २७ में मात्र एम.ए. ही कर पाए और पीएचडी तो आज तक नहीं हुई |

बोला- ठीक है,जीनियस है लेकिन खुराफाती जीनियस |

हमने कहा- तोताराम, क्यों मौत को मौसी कहता है |खबर हो गई तो तेरी पेंशन बंद करवाने में लग जाएगा |मेरा ख़याल है मोदी जी को चाहिए इन्हें प्रधान मंत्री के अतिरिक्त कोई भी पद लेने और कोई भी पद किसी को भी देने के समस्त अधिकार इन्हें दे दें |साँपों के देवता गोगा जी राम से भी बड़े होते हैं |

May 14, 2016

कुम्भ और कुम्भीपाक

 कुम्भ और कुम्भीपाक

तुलसी लिखते हैं-कहँ कुम्भज कहँ उदधि अपारा |

कबीर ने शरीर को भी कुम्भ कहा गया है-
जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी |
फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यो गियानी ||

जीव की पानी में रखे कुम्भ की इतनी सी हैसियत है जो कभी भी फूटकर जल में समा जाता है फिर इस सृष्टि में उसके विशिष्ट अस्तित्त्व को खोज पाना असंभव है लेकिन इसी कुम्भ में जन्म लेने वाला जीव ( कुम्भज, ऋषि अगस्त्य ) जब विराट होता है तो समुद्र को भी पी जाता है |

समुद्र-मंथन से अमृत निकलता है और विष-वारुणी भी |जब विष्णु  विश्वमोहिनी का रूप धारण करके धोखे से दानवों  को वारुणी और देवों को अमृत पिलाते हैं तो वे एक ही बर्तन में अन्दर से दो भाग करके अमृत और वारुणी रखते हैं |जीव के इसी कुम्भ में अमृत और वारुणी ही नहीं, समुद्र मंथन वाले सभी चौदह रत्न है |

अगस्त्य ऋषि अपने आकार के बल पर नहीं बल्कि अपने छोटे आकार में अवस्थित विराट की पहचान के बल पर समुद्र पी जाने का चमत्कार करते हैं और अपने आकार को ही महत्त्वपूर्ण मानने वाला बड़ा आकार चाहता है लेकिन जीव का आकार भौतिक रूप में तो इतना बड़ा नहीं हो सकता कि समुद्र को पी जाए |

एक सामान्य मनुष्य को 'उस' की विराटता के दर्शन कराने के लिए हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का विधान है |तीर्थ नदी या समुद्र के तट पर या पहाड़ों में हैं और इन तीनों को देखकर ही मनुष्य को परम शक्ति की विराटता और उसके साथ अपने संबंध की अनुभूति होती है |कुम्भ जैसे बड़े आयोजन नदियों के किनारे ही होते हैं जहाँ मात्र स्नान के लिए ही अपार जन समूह एक खास दिन इकट्ठे नहीं होते |नदियाँ सभी सभ्यताओं की जननी हैं |आज भी इनके बिना मनुष्य का जीवन संकट में पड़ जाता है  |नदी के प्रवाह से ही जीवन के प्रवाह की प्रेरणा मिलती है |प्रवाह के बल पर ही नदी  स्वच्छ और उपयोगी रहती है |प्रवाह का रुकना नदी की मौत है |यह मौत मनुष्य के स्वार्थ और नदी के प्रति उत्तरदायित्त्वहीनता के कारण होती है |

भारत के अतिरिक्त बहुत से देशों में नदी के किनारे उत्सव आयोजित होते हैं |अमरीका एक नया देश है |उसके उत्सवों में पुराने देशों के उत्सवों की मिथकीयता नहीं है |वे शुद्ध मनोरंजन और व्यवसाय हैं लेकिन चूंकि उसका नदी प्रेम अलौकिक नहीं है इसलिए उसके आयोजनों में किसी तरह की भावनात्मकता नहीं बल्कि भौतिक व्यवस्था है |उसके नदी तट पर आयोजित समारोहों और उत्सवों में नदी को बिगड़ने से बचाने के सभी प्रावधान है जिनका पालन आयोजन करने वालों को निभाने पड़ते हैं |भारत की तरह नहीं कि आयोजन को एक रुपकात्मकता,सांस्कृतिकता या आध्यात्मिकता में उलझा दिया और किसी भी नैतिक या कानूनी जिम्मेदारी को निभाए बिना लोग नाच देखकर चलते बने और बोतलों, दोनों, पैकेटों का कचरा अब तक साफ़ नहीं हुआ है |इस मायने में तो वहाँ के आयोजनों का भौतिक स्वरूप ही ठीक है | यह अंतर है पवित्रता और स्वच्छता की अवधारणा | पवित्रता एक अलौकिक और मात्र मानसिक बात है लेकिन स्वच्छता एक नितांत भौतिक और परिणाम मूलक बात | गंगा जल के दो छींटों से आप पवित्र तो हो सकते हैं लेकिन स्वच्छ होने के लिए साबुन या और किसी चीज से रगड़-रगड़ कर सफाई करना ज़रूरी है |पवित्रता अपनाइए लेकिन स्वच्छता की कीमत पर नहीं |

वैसे तो आजकल कई तरह के कुम्भ होने लग गए हैं जैसे- विज्ञापन का कुम्भ, क्रिकेट का कुम्भ, फिल्मों का कुम्भ आदि लेकिन इस पौराणिक कुम्भ का संबंध समुद्र मंथन के प्रतीक या मिथ से जोड़ा जाता है |अमृत कुम्भ से जहाँ-जहाँ बूँदें गिरीं वहाँ-वहाँ मेला लगता है अर्थात अमृत पर किसी एक का एकाधिकार नहीं बल्कि सभी का है |और उसे व्यक्तिगत तौर पर एकाधिकार हासिल करने की संकुचित मनोवृत्ति के कारण ही तो मिलकर समुद्र मंथन करने वाले देव और दानव आपस में लड़े |विष्णु के समझाने के बाद भी देवों ने साझा नहीं किया |क्या कुम्भ का यह भी एक सन्देश नहीं हो सकता ?

विदेशों से आजकल कुम्भ देखने के लिए आने वालों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है -नागा साधुओं का कुम्भ स्नान | क्या कुम्भ केवल नागा साधुओं के कारण ही है ? यह ठीक है कि नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए प्राण हथेली पर रखने वालो की एक साहसी फौज रहे हैं लेकिन यह वस्त्र हीनता भी क्या प्रतीकात्मकता नहीं है ? नागा साधु बनने से पहले व्यक्ति अपना स्वयं का श्राद्ध कर देता है अर्थात इस भौतिक संसार से सर्वथा संबंध विहीनता |जब किसी को वैसे भी संन्यास दिलाया जाता है तो वह वस्त्र पहन कर नदी में जाता है और फिर उस वस्त्र  को नदी में ही छोड़कर निर्वस्त्र बाहर आता है अर्थात उसने अपना यह भौतिक शरीर त्याग दिया |लेकिन सभी सन्यासी निर्वस्त्र तो नहीं रहते कम से कम के कोपीन तो धारण करते ही हैं |नागा साधुओं ने इस प्रतीक को शुद्ध अभिधा में अपना लिया | निर्वस्त्र और दिगंबर की व्यंजना में भी अन्तर है |शिव दिगंबर हैं लेकिन निर्वस्त्र नहीं, बाघम्बर धारण करते हैं | निर्वस्त्र तो जैन धर्म के एक पंथ के संत ही होते हैं लेकिन वे उसे एक शालीनता और लोकव्यवहार को ध्यान में रखकर निभाते हैं |वस्त्र तो दिगंबर, निर्वस्त्र, नग्न और नंगा चारों में ही नहीं होते हैं लेकिन  व्यंजना में अन्तर है |हम अपनी व्यष्टि का विस्तार सभी दिशाओं में करे,नंगे न बनें |व्यष्टि के कुम्भ में कैद हो जाना ही संसार के लिए कुम्भीपाक रचता है  |

कुम्भ में सबसे पहले इन्हीं नागाओं के अखाड़ों का स्नान होता है |इनके भी कई अखाड़े हैं और वे अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के चक्कर में आपस में भिड़ भी जाते हैं | अब कुम्भ  मात्र भीड़, मज़मा हो गए हैं |उसकी चेतना,आध्यात्मिकता,मिथाकीयता को पुनः स्पष्ट व्याख्यायित और कार्य रूप में प्रकट और कालांतर में सिद्ध होना चाहिए |
अमृत को बंद नहीं बल्कि अपने कुम्भ (घट) की सीमाबद्धता को लाँघकर एक जिंदा नदी की तरह लोक जीवन, जन-जन में प्रवाहित होना चाहिए |
अहंकार और स्वार्थ का घट फूटे बिना वह जल जल में नहीं समा सकता |कुम्भ नहीं, जल ही सत्य है,नदी के प्रवाह की तरह प्रवहमान आस्थाओं  की स्वच्छता ही कुम्भ है |

आज धर्म, लोकतंत्र,सम्प्रदाय आदि के नाम पर अपने-अपने सीमाबद्ध कुम्भों में अमरीका से आस्ट्रेलिया तक लोक की सकारात्मक और समन्वयकारी चेतना का पाक बन रहा है |कुंठाओं का कुम्भ फूटे बिना निस्तार नहीं है |

May 13, 2016

कौन से कबीर

  कौन से कबीर

आज जब तोताराम आया तो उसके साथ एक और सज्जन भी थे- बुज़ुर्ग,लम्बे, गोरे और अत्यंत साधारण लेकिन प्रभावशाली |

हमने पूछा- इन आदरणीय का परिचय ?

बोला- ये कबीर हैं |

हमने पूछा- कौन कबीर ?  कबीर बेदी, कबीर खान या देश के सबसे बड़े बूचड़खाने 'अल कबीर' के मालिक कोई सी.ई.ओ.कबीर ?

बोला- ये इनमें से कोई नहीं हैं |ये तो संत कबीर हैं |

हमने कहा- यदि संत हैं तो वेटिकन का सर्टिफिकेट कहाँ है ?  कोई भी व्यक्ति वेटिकन की मान्यता के बिना संत नहीं बन सकता |और यह प्रक्रिया इतनी लम्बी और कठिन है कि कोई ऐरा-गैरा संत बन ही नहीं सकता और जाली सर्टिफिकेट की तो कोई गुंजाइश ही नहीं |वहाँ तो चमत्कार प्रमाणित हुए बिना कोई संत बन ही नहीं सकता |

अब कबीर जी बोले- संत अपने आचरण से बनता और जनता उसे परखकर अपने हृदय में स्थान देती है |संत लोक बनाता है, कोई नाटक, गिजीज़ बुक में नाम या राजनीतिक पार्टी या सरकारें नहीं बनातीं |चमत्कार, जादू-टोना तो गलत हैं |यह संतों का काम नहीं है |हमने तो ऐसा करने वाले मुस्लिम और हिन्दू दोनों लम्पटों को लताड़ा है |संत का काम अपने आदर्श जीवन और मन-वचन-कर्म से सदाचार का सन्देश देना है |हम तो गंगा के किनारे सस्ती और मुफ्त की मोक्ष के बदले अपने कर्मों पर विश्वास करके अंत समय में मगहर चले गए, जहाँ मरने पर कहते हैं मोक्ष नहीं मिलती |

हमने पूछा- तो प्रभु, अब फिर भारत भूमि पर आपका आगमन किस हेतु हुआ है ? 

बोले-हमें व्यक्तिगत रूप से तो कोई काम नहीं है लेकिन सुना है,वहाँ अपने संतत्त्व का प्रदर्शन करने और चाँदी की थाली में नेताओं के साथ तर माल जीमने वाले संतों के बीच हमारी गद्दी वाले भी पहुँच गए हैं हालाँकि हमने कोई गद्दी, मंदिर, मूर्ति का विचार कभी नहीं दिया |हम तो मेहनत की रूखी-सूखी खाने वाले रहे हैं |पत्थर की मूर्तियों से हम तो चक्की को अधिक उपयोगी समझते हैं जिससे आटा पीसा जा सकता है | इससे हमारे सिद्धांतों का उल्लंघन होता है |हम इसी का विरोध करने के लिए सिंहस्थ कुम्भ में उज्जैन जा रहे हैं |तुम्हारा यह दोस्त पकड़ लाया, कह रहा था- पैदल पहुँचना मुश्किल है, रेल का रिज़र्वेशन करवा देगा |

हमने कहा- जाइए, ख़ुशी से जाइए महाराज, लेकिन यह लोकतंत्र का ज़माना है जिसमें सभी वोट-बैंक बनाने में लगे हैं और उसके लिए बड़े-बड़े अनुदान देकर, स्मारक बनाकर उनमें में बड़े-बड़े पद सृजित करके इन मठाधीशों को बैठाने का लालच दिया जा रहा है | आपको पता होगा- पंजाब में रैदासियों/रविदासियों के वोट पटाने के लिए 'कठौती में गंगा मानने वाले' रैदास के स्मारक के लिए करोड़ों रुपएआवंटित किए गए हैं |आपकी गद्दी वालों को भी यदि रेवड़ी मिल गई होंगी तो मेले के पदाधिकारी तो दूर, आपकी गद्दी वाले ही आपको पहचानने से इनकार कर देंगे |और अब तो आपकी 'कंकर पत्थर जोड़ कर .., भेड़ न बैकुंठ जाय.., पाथर पूजे हरि मिले... जैसी रचनाएँ भी सांप्रदायिक सद्भाव के नाम पर पाठ्यक्रम में से निकाल दी गई हैं |

अब भारत में आप भी अन्य महापुरुषों की तरह आचरण की बजाय स्मारकों और सेमीनारों में सुरक्षित हैं | अब आगे आपकी मर्ज़ी जाइए उज्जैन |पत्नी से कहकर रास्ते के लिए खाने के लिए कुछ रूख-सूखा बनवा दें |आजकल देश में लोग ज़हर खाकर नहीं बल्कि बाहर का खाना खाकर अधिक मरते हैं |

बोले - तो बेटा, क्या करेंगे  ऐसे आयोजन में जाकर |यहीं तेरी रूखी-सूखी खाकर, ठंडा पानी पीकर विदा हो लेंगे |





May 10, 2016

तेरी डिग्री कहाँ है ?

  तेरी डिग्री कहाँ है ?

आज तोताराम आया लेकिन बैठा नहीं |खड़ा-खड़ा ही हमें दो मिनट घूरता रहा फिर टिकट चेकर की तरह बोला- तेरी डिग्री कहाँ हैं ?

हमने कहा- अब हमें कहीं नौकरी नहीं करनी |जब नौकरी माँगने गए थे तब दिखा दी थी |अब तो ऊपर से बिना आवेदन किए, इंटरव्यू दिए और डिग्री दिखाए सीधा नियुक्ति-पत्र ही आएगा और नियुक्ति-पत्र भी ऐसा कि ज्वाइन करना ही पड़ेगा |और वहाँ कोई डिग्री नहीं देखी जाती |वहाँ कर्म देखे जाते हैं |तभी कबीर ने कहा है-
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान |
मोल करो तरवार का पड़ी रहन दो म्यान ||
सो व्यक्ति का ज्ञान और उस ज्ञान के आधार पर कर्म महत्त्वपूर्ण हैं न कि डिग्री |

बोला- मैं वहाँ की बात नहीं करता |बात इस भवसागर की हो रही है जहाँ जाति और म्यान ही देखे जाते हैं |ज्ञान और कर्म से किसी को कोई लेना-देना नहीं है |

हमने कहा- तुलसी,सूरदास,मीरा आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी लेकिन उन्हें पढ़कर लोग डी.लिट्.हो गए |कबीर ने तो मात्र ढाई अक्षर ही पढ़े थे |हजारी बाबू हिंदी के एम.ए. नहीं थे लेकिन उनकी पुस्तक 'कबीर' पर उन्हें डी.लिट्. दी गई | देवीलाल और कामराज भी बिना डिग्री के ही बड़े-बड़े पदों पर पहुँच गए |जूते गाँठने वाले रैदास को बिना पोप के अप्रूवल के ही लोगों ने संत की उपाधि दे दी |और राजघराने की मीरा ने तो उन्हें अपना गुरु ही बना लिया |

बोला- यह बहस का मामला नहीं है |मैं तो तेरे भले के लिए ही तुझे समझा रहा हूँ |आजकल वैसे तो कह रहे हैं कि लोकतंत्र खतरे में है लेकिन लोक से डर कर ही लोगों को चलना पड़ता है |कोई भी किसी से भी डिग्री माँग लेता है | पहले स्मृति ईरानी की डिग्री पर बवाल मचाया और फिर मोदी जी डिग्री का मुद्दा उठा दिया |बड़ी मुश्किल से जेतली दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री निकलवाकर लाए | दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र यूनियन के अध्यक्ष रहे हैं सो काम हो गया वरना ढूँढ़ते रह जाते |और बी.ए. की डिग्री के लिए अमिट शाह को गुजरात भागना पड़ा |
|
हमने कहा- लेकिन हमें कौन सा प्रधान मंत्री बनना है जो डिग्री दिखाते फिरें | और तू कौन सा केजरीवाल है जो हमारी डिग्री चेक कर रहा है ? 

बोला- बात को समझाकर | अब ज़माना बदल रहा है |डिग्री ढूँढकर रख ले | फिर कभी किसी काम के लिए मोदी जी डिग्री माँगने लगेंगे तो दिखानी पड़ेगी | यूनिवर्सिटी के भरोसे मत रहना |अब वहाँ कहाँ ५०-५५ साल पुरानी डिग्री का रिकार्ड मिलने वाला है |

हमने पूछा- लेकिन मोदी जी को हमारी डिग्री से क्या मतलब है ?

बोला- आज नहीं तो कल हो सकता है |आजकल वे सबकी जन्मपत्रियाँ अपने पास रखना चाहते हैं जिससे कभी भी, किसी का भी स्क्रू टाईट कर सकें |उन्होंने अगस्ता सौदे के बारे में चर्चा करते हुए कहा भी तो था- ज़रा सा स्क्रू टाईट किया तो चिल्लाने लगे |जैसे कल ही फैसला लिया गया है कि गैस पर सब्सीडी लेने के लिए इनकम टेक्स का रिकार्ड दिखाना पड़ेगा |वैसे ही कल को नियम बना देंगे कि पेंशनभोगी जब तक अपनी डिग्री नहीं दिखाएँगे तब तक पेंशन बंद | तब क्या करेगा ? क्या पता, उस समय पुराने कागजों में तेरी डिग्री मिलेगी भी या नहीं | और यूनिवर्सिटी तो मोदी जी की डिग्री ही मुश्किल से ढूँढ़ पाई तो तेरी डिग्री ढूँढ़ना तो दूर, कोई तुझे यूनिवर्सिटी के अन्दर भी नहीं घुसने देगा |

और यह भी असंभव नहीं है कि डिग्री न दिखा पाने के कारण अब तक दी गई तनख्वाह ही ब्याज सहित वसूल ली जाए | तब तुझे माल्या और ललित मोदी की तरह न तो इंग्लैण्ड में शरण मिलेगी और न ही यहाँ से भाग सकेगा | यह ईमानदार सरकार तेरा बिना उज्जैन गए ही कुम्भीपाक बना देगी |

हमने कहा- तो ठीक है, कल ढूँढ़ लेंगे और दस-बीस फोटो स्टेट करवाकर दीवारों पर लगा देंगे, एक-एक कोपी मोदी जी और केजरीवाल जी को भी भेज देंगेऔर एक प्रति लेमीनेट करवाकर गले में भी डाल लेंगे |


May 8, 2016

दूध पीने वाले मजनूँ

 
 

 दूध पीने वाले मजनूँ

आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- जब तक चाय आए हम तुम्हें एक पौराणिक कथा सुनाते हैं  | 
बोला- हालाँकि तेरी यह चाय  इस शर्त पर है तो भारी लेकिन क्या किया जाय | न तोको ठौर, न मोको और ' | वैसे आजकल यदि तमिलनाडु में होता तो चुनाव सभाओं में भीड़ दिखाने के लिए प्रति मुंडी रेट प्रतिदिन  तीन सौ से एक हजार  रुपए तक चल रहा है |

हमने कहा-तमिलनाडु को छोड़ और सुन |काशी के पास करुष नाम का एक छोटा सा राज्य था | वहाँ के राजा का नाम पौन्ड्रक था |वह बड़ा घमंडी था  | उसके चापलूस सरदार हमेशा उससे कहा करते थे कि आप भगवान वासुदेव (श्रीकृष्ण) हैं और जगत की रक्षा के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं |बार-बार इस प्रकार की झूठी प्रशंसा सुनकर वह मूर्ख सचमुच ही अपने आपको को श्रीकृष्ण समझने लगा | उसने अपने दो हाथों के अतिरिक्त दो नकली हाथ लगा लिये और श्रीकृष्ण के समान ही शंख, चक्र, गदा , पद्म, कवच आदि रखने लगा | जब बलराम जी द्वारिका से ब्रज गये हुए थे, उस समय पौन्ड्रक ने कृष्ण के पास दूत भेजकर कहलवाया -" भगवान का अवतार कहे जानेवाला असली कृष्ण मै हूँ, तुम नकली हो | इसलिए तुम स्वयं को वासुदेव (कृष्ण) कहलाना छोड़ दो, अन्यथा मुझसे युद्ध करो." भगवान ने उसके दूत को तिरस्कारपूर्ण सन्देश देकर वापस भेज दिया तथा अकेले ही रथ पर सवार होकर काशी पर चढ़ाई कर दी | पौन्ड्रक उन दिनों अपने मित्र काशिराज के पास ही रहता था | भगवान श्रीकृष्ण के आक्रमण का समाचार पाकर वह दो अक्षौहिणी सेना लेकर मैदान में आ डटा | उसका मित्र काशी-नरेश भी तीन अक्षौहिणी सेना के साथ सहायतार्थ उसके पीछे-पीछे आया | इस युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाणों से घमंडी राजा पौन्ड्रक के रथ को तोड़-फोड़ डाला और सुदर्शनचक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया | उसके मित्र काशी के राजा को भी सेना सहित मार दिया तथा बाणों के द्वारा उसके सिर को धड़ से ऊपर लिया और काशी में राजभवन के द्वार पर गिरा दिया | इस प्रकार पौन्ड्रक और उसके मित्र काशिराज को मारकर उनका उद्धार किया और अपनी राजधानी द्वारिका लौट आए |

कहानी सुनकर तोताराम ने कहा- मास्टर, आज तूने मर्म पर चोट की है |लगता है तूने उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष केशव मौर्य वाला पोस्टर देख लिया है और उसी के सन्दर्भ में मुझे यह कथा सुनाई है लेकिन तुझे तो विपक्षियों की तरह इकतरफा बात नहीं करनी चाहिए | और कुछ नहीं तो कम से कम यह तो मानना ही होगा की यूपी के भाजपा अध्यक्ष मौर्य जी का नाम केशव है  | केशव और कृष्ण में क्या फर्क है ? वैसे एक बात है कि इस पोस्टर से सहमत न होने वाले भी यह तो मान रहे हैं कि बंदा कृष्ण के मेकअप में जँच तो खूब रहा है | 

हमने कहा-वैसे नेताओं के चमचे  उन्हें  ब्रह्मा, विष्णु, या ईश्वर का वरदान कुछ भी कहें हमें ऐतराज़ नहीं  है  क्योंकि  लम्पटता और खुशामद  में  न  तो कुछ गलत है और न ही  अनुचित  क्योंकि  ये दोनों ही  झूठ  पर आधारित होते हैं  | लेकिन  जब  धोनी  को एक विज्ञापन  में विष्णु  के रूप में दिखाया गया था या   अमेज़न के सी.ई.ओ. ज़फ़ बेजोस को विष्णु के रूप में दिखाया गया तो ये लोग ही सबसे ज्यादा चिल्ला रहे थे | जब केशव मौर्य कृष्ण के रूप में दिखाए जा सकते हैं तो धोनी और अमेज़न के सी.ई.ओ. तो इनसे बहुत बड़े सेलेब्रिटी हैं | 

बोला- देख, यह अपने-अपने अधिकार क्षेत्र की बात है |अंग्रेज चाहे कितनी भी गलत अंग्रेजी बोलें लेकिन हम नोलेज का 'के' और साइकोलोजी का 'पी' भी नहीं हटा सकते | हाँ, हिंदी हमारी मातृभाषा है इसलिए उसका सत्यानाश करने का अधिकार हमें ही है | अल्लाह के बारे में हिन्दू कुछ नहीं कह सकते, उसका ठेका मुल्लाओं के पास है | इसी तरह राम और कृष्ण तथा  हिन्दू और भारत की आस्था व अस्मिता का ठेका जिनके पास है वे जो चाहे कर सकते हैं लेकिन यह  छूट और किसी को कैसे दी जा सकती है |

हमने कहा- ठेका तो ठीक है लेकिन कुर्सी कब्जाने के लिए कृष्ण बनना और कृष्ण की निष्काम भूमिका निभाना दोनों बहुत भिन्न बातें हैं |कृष्ण के सारे काम धर्म के लिए थे और इनके सब काम सत्ता प्राप्ति के लिए हैं |मथुरा और हस्तिनापुर दोनों  के राज्य एक प्रकार से कृष्ण के ही थे लेकिन देखा, कैसे अपना काम करके कृष्ण राम की तरह निस्पृह भाव से चले गए | 
आज तक कभी भी अम्बेडकर या रैदास का नाम तक न लेने वाले कैसे वोट बैंक के लिए इन दोनों आत्माओं पर पिले पड़े हैं |

सब दूध पीने वाले मजनूँ हैं |खून देने वाला मजनूँ तो पता नहीं किस वीराने में लैला-लैला रटता भटक रहा होगा |

May 6, 2016

अब भी गुंजाइश है

  अब भी गुंजाइश है 

आज तोताराम ने आते ही कहा-चल, आज पासपोर्ट मेला लगा है |सारे कागजात सही हुए तो तीसरे दिन पासपोर्ट घर आ जाएगा |

हमने कहा- लेकिन हमें पासपोर्ट चाहिए क्यों ? बड़ी मुश्किल से इस भारत भूमि पर जन्म मिला है जिस पर जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं तो हम इसे छोड़कर क्यों जाएँ ?

बोला- यहाँ अब कोई स्कोप नहीं है | जितनी नौकरी करनी थी कर ली |बूढ़ों के लिए एक स्कोप था कि किसी भी उम्र में राजनीति में चले जाओ सो उसे मोदी जी ने समाप्त कर दिया | लेकिन इंग्लैण्ड में अब भी स्कोप बचा हुआ है |वहाँ कई कैसे पार्ट टाइम जॉब हैं जिन्हें करके हजारों डालर कमाए जा सकते हैं |न उम्र का है बंधन .......|और न ही कोई खास योग्यता चाहिए |

हमने कहा- लेकिन वहाँ तो सारे काम अंग्रेजी में होते हैं और हमारी अंग्रेजी तो यस सर और थैंक यू तक ही है |

बोला-इतनी ही बहुत है |और डालर तो गिन ही लेगा |वैसे डालर में एक सावधानी रखनी होगी क्योंकि उसके सभी नोटों की शक्ल और साइज़ एक जैसे ही होते हैं |बस, संख्या का अंतर होता है |

हमने पूछा- लेकिन काम क्या है ?

बोला- काम क्या ? कोई काम जैसा काम हो तो बताऊँ भी | जैसे लाइन में खड़ा होना |कुछ लोग होते हैं जो लाइन में खड़ा होना पसंद नहीं करते सो वे अपने किसी विकल्प को अपनी जगह लाइन में खड़ा कर देते हैं और इस काम से  लोग लाइन में खड़े होकर हफ्ते के कोई एक हजार डालर तक कमा लेते हैं |मतलब अपनी पेंशन से कोई तीन-चार गुना |

हमने कहा- लेकिन बन्धु, यह काम हमसे नहीं होगा |हालाँकि सारी जवानी लाइनों में लगकर की काट दी लेकिन अब बीस-पच्चीस मिनट में ही घुटनों में दर्द होने लगता है |

बोला- तो एक और आसान सा काम है जो तेरे व्यक्तित्त्व के अनुरूप भी है |वहाँ लोगों को अपनों तक के अंतिम संस्कार में जाने और शोक मनाने का समय नहीं है |इस काम के लिए भी वे किराये के लोगों से काम चलाते हैं | दो घंटे के ७० डालर मिल जाते हैं |तुझे तो हो सकता है कि कुछ ज्यादा भी मिल जाएँ क्योंकि तेरी सूरत तो स्वाभाविक रूप से ही मनहूस है |और इस काम में मनहूस सूरत की ही तो ज़रूरत होती है |

हमने कहा- तूने रुदाली फिल्म तो देखी ही होगी |अपने राजस्थान में भी तो पहले ठाकुरों के मरने पर पेशेवर रुदालियाँ होती थीं |बेचारियों के पास अपनों के लिए बहाने को तो आँसू सूख चुके होते थे लेकिन दूसरों के लिए रोती थीं |

कहने लगा- आज भी बस, रूप बदला है लेकिन धंधा तो वही चल रहा है |कोई भी काम का, प्रभावशाली आदमी या नेता मरे या बीमार हो तो लोग अपने बीमार बाप को छोड़ कर उसका हाल पूछने जाते हैं |लाभ की आशा में उसके मरने पर सिर मुँडा लेते हैं या उसके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए यज्ञ और जाप करवाने लगते हैं |यह रुदालीपना नहीं तो और क्या है ?और इस रोने का लाभ पता नहीं, कब मिलेगा या मिलेगा ही नहीं लेकिन वहाँ तो रोओ, रोनी सूरत बना कर बैठो और दो घंटे में ७० डालर खरे |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, सब कुछ इतना सरल नहीं है |हमने पढ़ा है कि ब्रिटेन की सरकार हर वर्ष तीस-पैंतीस हजार पौण्ड से कम कमाने वालों को ब्रिटेन से निकालने की सोच रही है |इसका मतलब यह है कि वहाँ तीन चार हजार डालर महिने की कमाई कुछ नहीं | और फिर यदि जेतली जी को पता लग गया तो कमाई बाद में होगी और टेक्स पहले ले लेंगे |हम कोई माल्या तो हैं नहीं कि नौ हजार करोड़ डकार कर भी इनकी पकड़ में न आएँ |इसलिए यहीं ठीक हैं | 

तोताराम बिना निराश हुए बोला- लेकिन भाई साहब, वहाँ एक काम और भी चलता है- 'प्रोफेशनल कडलिंग' |

हमने पूछा- यह क्या बला है ?

बोला- इसमें किसी के अंतिम संस्कार में किसी भी अज़नबी से लिपटकर रोना होता है |इसके भी ८० डालर मिलते हैं | और सोचिए,  कुछ कम भी मिला तो कोई बात नहीं लेकिन इस बहाने किसी गोरी मेम से गले मिलाने का अवसर तो मिल जाएगा |

हम डाँटते तब तक 'सॉरी' बोलता हुआ तोताराम उठ लिया |