Jun 9, 2016

टॉपल द टॉपर

  टॉपल द टॉपर 

हमने चाय तो दूर, बैठने से पहले ही तोताराम को लपक लिया- देखा, कहाँ तो जिस प्रदेश में नालंदा जैसा विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुआ करता था और आज ऐसे-ऐसे टॉपर पैदा हो रहे हैं जिन्हें उस विषय के नाम तक का शुद्ध उच्चारण करना नहीं आता जिसमें उन्हें पूरे प्रदेश में सर्वोच्च अंक मिले हैं |कला वर्ग की टॉपर वह रूबी राय पोलिटिकल साइंस को प्रोडिगल साइंस उच्चारित कर रही थी |

तोताराम तनिक भी विचलित हुए बिना बोला- मात्र एक शब्द से किसी के सारे ज्ञान का अनुमान लगाना कहाँ तक उचित हैं ?महान कवि कालिदास अपनी विद्वान पत्नी के सामने 'उष्ट्र' शब्द का गलत उच्चारण क्या कर गए, पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें घर से ही निकाल दिया | लोग कहते हैं-पत्नी के व्यंग्य-वचनों से प्रेरित होकर कालिदास विद्वान बन गए | अगर ऐसे ही होता तो आज तक इस देश में सब विद्वान हो गए होते | एक शब्द के उच्चारण मात्र से बच्ची की योग्यता को कम करके आँकना ठीक नहीं है |

हमने कहा- फिर भी उच्चारण ? 

बोला- क्या उच्चारण-उच्चारण लगा रखा है ? उच्चारण से क्या होता है ? महँगाई में ह्रस्व मात्रा लगाने से क्या महँगाई कम हो जाएगी ? भाव, भावना,ज्ञान और परिणाम को  समझ | सभी बंगाली सोमवार को शोमवार बोलते हैं तो उनका सोमवार शनिवार को तो नहीं आता |सभी पंजाबी और उर्दू भाषी धरमेंदर, इन्दर कुमार, चंदर बोलते हैं , हरियाणा में स्कूल को सकूल और उत्तर प्रदेश में इसकूल बोलते हैं तो स्कूल तो स्कूल ही रहेगा |कोई गौशाला तो बन नहीं जाएगा | जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष मैनेजर पांडे भाषा को भासा बोलते हैं तो उनके और उनके शिष्यों के हिंदी ज्ञान में कोई कमी आ गई क्या ?स्थान के अनुसार उच्चारण बदल जाते हैं |अमरीकन और ब्रिटिश इंग्लिश अलग-अलग हैं कि नहीं ?

हमने कहा- तो तू कहना क्या चाहता है ? उच्चारण का कोई महत्त्व नहीं ?उच्चारण से अर्थ बदल जाते हैं जैसे अंग्रेजी में 'पीस' का अर्थ 'शांति' और 'पिस' का अर्थ 'पेशाब करना' | 

हमारी ही बात को पकड़ कर तोताराम ने हमें लपेट लिया, बोला- एक नेताजी विदेश में जाकर बोले- पिस कीपिंग फ़ोर्स |यह उनके अपने इलाके के उच्चारण करने के तरीके का प्रभाव है जहाँ सूरदास को सुरदास बोलते हैं |अब इससे कोई 'शांति-सेना' अर्थ न लेकर 'पेशाब करने वाली सेना' समझे तो वह भाषा का बड़ा विद्वान नहीं बल्कि मूर्ख है | वैसे ही 'पीस कीपिंग फ़ोर्स' का अर्थ 'टुकड़े करने वाली सेना' लगाना भी उतना ही गलत है |

और जहाँ तक इस मामले की बात है तो इसमें बच्ची के उच्चारण से अधिक दोष लोगों के अधूरे अंग्रेजी ज्ञान और भाषा की कमजोर व्यंजना दोनों का है |तभी तो सही बात का भी बतंगड़ बना दिया |और इसी का परिणाम है कि बेचारी बच्ची और उसके विद्यालय के निर्दोष प्राचार्य बिना बात फरार हैं |

हमने कहा- तोताराम, यदि ऐसी बात है तो मामला गंभीर है |बात को साफ़ कर |

बोला- बच्ची ने 'पोलिटिकल साइंस' को 'प्रोडिगल साइंस' कहा इसमें कुछ गलत नहीं है | प्रोडिगल का अर्थ है अपव्ययी |अब बता, राजनीति से अधिक फिजूलखर्ची और कहाँ होती है ? चाहे पार्टी का टिकट खरीदना हो, चाहे चुनाव लड़ना हो, चाहे अपनी उपलब्धियों का झूठा प्रचार करवाना हो, टी.वी. और अखबारों में विज्ञापन देना हो |या फिर राजनीति में घुसने के लिए सत्ताधारी नेताओं के स्वागत में तोरण-द्वार बनवाना हो, उनकी रैलियों-सभाओं में भीड़ जुटाना हो- कौन सा काम बिना अनाप-शनाप पैसे के होता है ? लोग ले उड़े कि इसे तो पोलिटिकल शब्द का उच्चारण करना ही नहीं आता जब कि खुद की अंग्रेजी के बारे में नहीं सोचा | लड़की ने बिलकुल ठीक कहा है |पोलिटिकल साइंस को प्रोडिगल साइंस ही कहा जाना चाहिए | 

हमने कहा- तो फिर बन्धु, लगे हाथ यह भी बता दो कि इस प्रोडिगल साइंस में राजनीति के बारे में पढ़ाया जाता है या खाना बनाने के बारे में पढ़ाया जाता है ?

बोला- यहाँ भी बच्ची सौ प्रतिशत सही है | क्या आज कोई बता सकता है कि राजनीति खाने के अलावा कुछ और भी है ? खुद मुफ्त का माल डकारने और अपने से पहले वालों को भ्रष्ट प्रचारित करने के अलावा कुछ दिखाई देता है राजनीति में ?सब खाने और अपनी रोटी के नीचे आँच देने में लगे हुए हैं |किसी ने कोयले में खाया तो कोई व्यापम और खाद्य निगम के गोदामों में सेंध लगा रहा है |अरे, सेवा करने के लिए चुनावों में करोड़ों खर्च करने की ज़रूरत नहीं है |सेवा करने वाला तो यदि और कुछ नहीं जुटेगा तो गरमी में सड़क के किनारे पानी के चार मटके रखकर  लोगों को पिलाने के लिए बैठ जाएगा |

Jun 3, 2016

हवा हवाया

हवा हवाया 

आज तोताराम एक नए ही अवतार में प्रकट हुआ- हाथों में अखबार का बना जापानी पंखे जैसा कुछ,ओठों को गोलाई दिए हुए, शरीर वाइब्रेंट मोड में मोबाइल की तरह थरथराता हुआ और साथ में गाना-
ये लो मैं आया 
हवा हवाया
ये ले रे बाई 
ये ले रे भाया |

हमने मुस्कराते हुए कहा- आओ,  हवा हवाई श्रीदेवी बाई |

बोला- इतना भी व्याकरण का ज्ञान नहीं है, क्या हिंदी पढ़ाई होगी बच्चों को | अरे, मैं तोताराम हूँ पुल्लिंग, तो फिर 'हवा हवाई' कैसे हो सकता है ? मैं 'हवा हवाया' हूँ |


हमने कहा- श्रीदेवी तो अब भी 'इंग्लिश-विंग्लिश' फिल्म की तरह हवा बाँध सकती है लेकिन तेरी तो बची-खुची हवा भी २००२ में रिटायर होते ही निकल गई थी |अब फिर यह 'हवा-हवाया' कहाँ से आगया ?

बोला- अब अपने देश के पाँच शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो गए हैं सो 'मेक इन इण्डिया' के तहत अब मैं हवा का धंधा करने वाला हूँ | चीन में भी, सुना है, स्वीडन की एक कंपनी थैलियों में भरकर हवा बेच रही है | उनके अनुसार एक साँस हवा की कीमत करीब चार रुपए आती है | यदि कोई प्राणायामी हुआ तो भी एक घंटे में साठ साँसें तो लेगा ही | अढाई सौ रुपए एक घंटे के |यदि इनोगरल ऑफर में ५०% की छूट भी दी तो सवा सौ रुपए तो कहीं गए ही नहीं | सवा सौ करोड़ के देश में एक करोड़ ग्राहक भी मिल गए तो सवा सौ करोड़ रुपए रोज का टर्न ओवर होगया | इससे ज्यादा 'दुनिया मुट्ठी में' अम्बानियों से भी नहीं हुई |और करना कुछ नहीं- पोलीथिन की थैली फूँक मारकर फुला देंगे और पकड़ा देंगे ग्राहक के हाथ में |

हमने कहा-तोताराम, अर्थव्यवस्था के ऐसे हवाई आइडिया तो सत्ता के शीर्षस्थ पद पर पहुँचे नेता के ही सुने जाते हैं और वे भी कुछ दिनों तक ही | बाद में जल्दी ही उनकी भी हवा निकल जाती है |यदि कोकाकोला पीने से ही 'जो चाहो हो जाए' तो फिर अमरीका अपनी समस्याएँ कोकाकोला पीकर ही सुलझा लेता | 

कहने लगा-हवा में बड़ी ताकत होती  है |हवा की ताकत अपने पालों में भरकर जहाज  बिना डीजल-पेट्रोल के सैंकड़ों टन भार ले जाता है |हवा के बल पर धूल भी एवरेस्ट पर पहुँच जाती है | पैकेट में हवा भरकर आलू की पाँच ग्राम चिप्स दस रुपए में बेची जा सकती है, हवा के बल पर वार्ड मेंबर का चुनाव न जीतने वाला भी मंत्री बन जाता है |हवा बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़ देती है  |

हमने कहा- तूने वह कहानी नहीं सुनी जिसमें हवा और सूरज की एक राहगीर के कपड़े उतरवाने की प्रतियोगिता होती है जिसमें हवा लाख कोशिश करने पर भी सफल नहीं होती जब कि धीरे-धीरे अपनी गरमी बढ़ाने वाला सूरज सफल हो जाता है |

बोला- लेकिन पी.के. की बनाई हवा से भाजपा चुनाव जीत गई कि नहीं |

हमने कहा- पी.के. कौन ? वह ट्रांजिस्टर वाला आमिर खान क्या ? उसकी तो खुद की हवा असहिष्णुता के मामले में अनुपम खेर ने ही निकाल दी थी |

बोला- बस, इतना ही जानता है ? अरे, मैं पी.के. मतलब प्रशांत कुमार की बात कर रहा हूँ जिसने भाजपा की इलेक्शन स्ट्रेटेजी बनाई थी | उसके बाद उसीकी बनाई हवा से बिहार में महागठबंधन जीत गया था और अब वही कांग्रेस के साथ है |

हमने कहा- लेकिन बंगाल और तमिलनाडु तो छोड़, आसाम में भी कांग्रेस हार गई कि नहीं ?ऐसी हवाएँ केवल एक-दो बार चलती हैं | 

बोला- तो अपने को कौन ज़िन्दगी भरा यह धंधा करना और यहाँ रहना है | बस, साल-दो साल माल कमाकर माल्या और ललित मोदी की तरह चले जाएँगे लन्दन, जहाँ 'बिग-बैन' दी घंटी है और जिस पर 'पूरा लन्दन ठुमक दा'  है |