Oct 19, 2017

तीन पीढ़ी, तीन साल और तीन महिने का हिसाब



 तीन पीढ़ी, तीन साल और तीन महिने का हिसाब 

परसों ९ अक्टूबर २०१७ को तोताराम ने हमसे प्रतिज्ञा करवाई थी कि जब तक चोर- लुटेरे और भ्रष्टाचारी मोदी जी के खिलाफ लामबंद होकर षड्यंत्र कर रहे हैं और जब तक मोदी जी अपने गृहनगर के हाटकेश्वर महादेव की कृपा से उन दुष्टों का विनाश नहीं कर देते तब तक भले ही हम आर्थिक तंगी झेल लें, दवा-दारू में कमी कर लें लेकिन सातवें पे कमीशन के बारे में चूँ तक नहीं करेंगे |

भले ही सरकारें अपने वादों को जुमला बताकर हमें धोखा दे दें लेकिन हम तोताराम को दिए वचन से नहीं फिरेंगे |

हम तो वचन से बँधे हुए हैं लेकिन नेता पर तो किसी भी प्रकार का नैतिक-अनैतिक बंधन नहीं होता | वह तो जन-हित और आत्मा की आवाज़ के नाम पर गटर में उतरकर गंगा में निकल सकता है |हमारा जीवन वैसे भी ज्यादा हिसाब-किताब वाला नहीं रहा | हिंदी के मास्टर |ट्रांसफर भी हुआ तो 'नो ड्यूज' में लाइब्रेरी की किताबों के अलावा कुछ नहीं होता था |न लैब, न कोई परचेजिंग कमिटी का रुपए पैसे वाला काम | उधार हमें किसी ने दिया नहीं और हमारी हैसियत भी इस लायक नहीं रही कि कोई उधार माँगने की हिम्मत कर सके |तनख्वाह जितनी मिलती, पत्नी को दे देते |वह जैसे भी होता काम चला लेती |सब कुछ सीमित और सरल, न हिसाब,ना किताब |यहीं सब कुछ लुटाना है |

आजकल हिसाब-किताब का मौसम है जैसे दिवाली पर पुराने खाते पटाकर नए खाते शुरू करते हैं |तभी कुछ दिनों से नेहरू-गाँधी परिवार से तीन पीढ़ियों का हिसाब माँगा जा रहा है और राहुल द्वारा अमित-मोदी गठबंधन से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं || 

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- आजकल बहुत ज़ोरों से हिसाब-किताब चल रहा है |

बोला- फिर वही हिसाब-किताब वाली बात |अरे, छोड़ इस तृष्णा को |तुझे कहा नहीं था कि मोदी जी को शांति से देश का विकास करने दे |राम-राम करके स्वतंत्रता के बाद कोई विकास के प्रति प्रतिबद्ध होकर संकल्प से सिद्धि के लिए रात-दिन एक किए हुए है और एक तू है कि अपने दो पैसों के लिए बन्दे की तपस्या भंग करने पर तुला हुआ है |
हमने कहा- तोताराम, हम तो वैसे ही आजकल जो चल रहा है उसकी तनिक सी चर्चा कर रहे हैं | हम तुम्हें दिए वचन से थोड़े ही फिर रहे हैं |

बोला- तो फिर बता, क्या बात है ?

हमने कहा- अमित जी ने अमेठी में कहा है कि अमेठी की जनता ने कांग्रेस  के शाहजादे राहुल गाँधी की तीन पीढ़ियों को वोट दिया | अब अमेठी की जनता तीन पीढ़ी का हिसाब माँग रही है |

बोला- उत्तर देने से पहले मैं कुछ तथ्यात्मक गलतियाँ ठीक करना चाहता हूँ |तुझे पता होना चाहिए कि अमरीका में जब कोई कंपनी किसी से कोई क़र्ज़ वसूल नहीं कर पाती  तो वह उस कर्ज को सस्ते में किसी को बेच देती है |कंपनी को कुछ न कुछ मिल जाता है |आगे उस क़र्ज़ को खरीदने वाले की ताकत पर निर्भर होता है कि वह कितना वसूल कर पाता है |ऐसे ही जब कोई जेबकतरा किसी शिकार की जेब नहीं काट पाता तो वह  उस शिकार को उस रूट के किसी अन्य जेबकतरे को बेच देता है |तो क्या अमेठी की जनता ने इस हिसाब-किताब का ठेका अमित जी को दे दिया है ? वैसे यह सच है कि अमित जी 'शाह' हैं और उन्हें येन केन प्रकारेण क़र्ज़ वसूलने का अनुभव अवश्य रहा है |'शाहों' के पास बहियाँ भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती हैं |लेकिन क्या यह उचित है कि उनके परदादा, दादी और पिता का क़र्ज़ उनसे वसूला जाए ? राहुल खुद तो आज तक किसी पद पर रहे नहीं |

दूसरी बात- राहुल 'गाँधी' हो सकते हैं लेकिन  'शाहजादे' नहीं क्योंकि राजीव 'शाह' नहीं 'गाँधी' थे |भारत की सरनेम परंपरा के अनुसार 'शाहजादे' तो जय 'शाह' ही हो सकते हैं क्योंकि वे अमित 'शाह' के पुत्र हैं |

हमने कहा- लेकिन हिसाब करने में क्या बुराई है ? हिसाब पाई-पाई का बख्शीश लाख  की |हिसाब तो बाप-बेटे का भी होता है |लेकिन इन राजनीति वाले लोगों का हिसाब-किताब बड़ा गन्दा और उलझा हुआ होता है |सबका चोरों वाला हिसाब है |आपस में लड़ेंगे लेकिन अदालत में नहीं जाएँगे क्योंकि सब एक दूसरे की असलियत जानते हैं |सब की दाढ़ियों में कई-कई झाडू फँसी हुई हैं |कोई पसीने की कमाई खाने वाला नहीं है |सब जनता के माल पर दंड पेल रहे हैं |

इसी बात पर एक सत्य घटना सुन | हमारे मंदिर के पास दो छोटे-छोटे दुकाननुमा कमरे थे |जो प्रायः बंद रहते थे |कभी कोई अस्थायी किरायेदार आ जाता था तो पाँच-दस दिन रह जाता था |हमने उन कमरों में ठहरे फतेहपुर की तरफ के दो बिसायतियों को कई बार देखा है |उन दिनों ओढ़नियों पर असली चाँदी का गोटा लगाया जाता था | वे घूम-घूम कर पुराना गोटा खरीदते थे |फिर उसे गलाकर चाँदी बनाकर बेच देते थे |दिन भर घूमकर आते, चटपटा तीखा खाना बनाते थे |दारू पीकर, खाना खाकर, फिर बीड़ी पीते हुए फुर्सत से बतियाते थे |

एक कहता- मैंने तुझे जो बीस रुपए दिए थे वे लौटा दे |दूसरा कहता- मैंने भी तो तुझे एक बार चालीस रुपए दिए थे | तू बीस काटकर, बीस लौटा दे |पहला कहता- बात बात के ढंग से होनी चाहिए |पहले मैंने तुझे बीस दिए थे तो तू पहले मेरे बीस लौटा फिर मैं तेरे चालीस लौटा दूँगा |  

सो यह किस्सा उन बिसायतियों वाला है |दोनों को एक ही धंधा करना है, बतियाना है और मनोरंजन करना है |कोई भी वसूली के लिए कोर्ट में नहीं जाएगा |भगवती चरण वर्मा के 'दो बाँके' कहानी के दादाओं की नूराकुश्ती देखो और लोकतंत्र का रोना रोओ |

तोताराम बोला- फिर भी हिसाब तो हिसाब ही होता है |क्यों जनता में बिना बात का कन्फ्यूजन पैदा करते हैं |और नहीं तो एक मोटा-मोटी आइडिया ही दे दें |

हमने कहा- तुझे बताया ना, ये सब संत हैं |शैलेन्द्र का 'तीसरी कसम' का गाना सुना कि नहीं- 

बही लिख-लिख कर क्या होगा
यहीं  सब कुछ लुटाना है |


सब कुछ यहीं लुटाएँ या नहीं लेकिन बही कोई नहीं लिखता |

बोला- मास्टर, वैसे मैंने तुझे मोदी जी को डिस्टर्ब न करने की शपथ तो दिला दी लेकिन मैं सोचता हूँ कि अपना तो तीन तिमाही का ही हिसाब है |सातवाँ पे कमीशन पहली जनवरी २०१७ से देने वाले थे | फिर अगस्त २०१७ की पे के साथ देने की बात थी  लेकिन रेगुलर कर्मचारियों को देकर चुप हो गए और पेंशनरों को टरका दिया |जितना जल्दी दे दें, ठीक है अन्यथा फिर अमित शाह और राहुल गाँधी वाले हिसाब की तरह मामला लटक जाएगा |

हमने कहा- अमित शाह राहुल से उनके जन्म से पहले का हिसाब माँग रहे हैं, राहुल अमित शाह से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं | मामला निबट नहीं रहा है | सो हमारा हिसाब तो २०१७ में जीते-जी कर दें तो ठीक है |अन्यथा जो जीते जी नहीं सुन रहे हैं वे मरने के बाद क्या निहाल करेंगे |मरने के बाद तो मामले को रुळाना और भी आसान हो जाएगा |

मनमोहन जी लाख गुना अच्छे थे जिन्होंने बूढों के साथ ऐसा कमीनापन कभी नहीं किया |हमेशा समय से डी.ए., पे कमीशन और एरियर दे दिए | और ये डाकघर वाली 'मासिक आय योजना' को जीवन बीमा में लाकर 'वय वंदन' के नाम से लोगों को उल्लू बना रहे हैं | 















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Oct 14, 2017



 प्रधान मंत्री बनने की ख्वाहिश

( आदरणीय प्रणव मुखर्जी ने एक टी.वी. इंटरव्यू में कहा- मेरी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं, और फिर मुझे हिन्दी भी तो नहीं आती- ८ जून २००५ . यही बात अब उनकी पुस्तक के विमोचन पर भी आई है |उस समय उनके नाम लिखे हमारे एक पत्र का आनंद लें और पुरानी यादें ताज़ा करें |)

आदरणीय प्रणव दा,
नोमोस्कर । आपने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू में बताया कि आपकी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं है । कहीं ऐसा तो नहीं कि अंगूर खट्टे हैं । पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप भी हमारी तरह पक्के कांग्रेसी हैं । सदा से दिल्ली में रहे हैं अतः दिल्ली से दूर होने का तो प्रश्न ही नहीं । यह बात और है कि लोकसभा कम और राज्य सभा के माध्यम से अधिक आए हैं जैसे कि गुलाम नबी आजाद, नज़मा हेपतुल्ला, नटवर सिंह और मन मोहन जी आदि । जहाँ तक सर्वस्वीकार्यता की बात है तो उसे छोड़िए । पश्चिम में पहले डेटिंग होती है फिर प्रेम और संभव हो तो शादी वरना ट्राई एंड ट्राई अगेन । भारत में तो पहले शादी होती है और उसके बाद प्रेम भी हो ही जाता ही । उसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद रोज-रोज टीवी और अखबारों में देखते-देखते जनता किसी को भी स्वीकार कर ही लेती है ।

दूसरी बाधा आपने हिन्दी न जानने की बताई । सो सीखने की कोई उमर नहीं होती जैसे कि लम्पटता और चमचागीरी की कोई उमर नहीं होती । विदेशी मूल की होते हुए भी सोनिया जी अब बिना कागज के भाषण देने लगी हैं । जय ललिता तक ने हिन्दी फिल्मों में काम किया है और एक बार तो उनके मुखारविंद से हमने हिन्दी का एक वाक्य भी सुना था । प्रयत्न करने पर तो जड़मति भी सुजान हो जाता है फिर आप तो पढ़े-लिखे, विद्वान आदमी हैं । यदि शुरू-शुरू में आत्मविश्वास की कमी लगे तो हम आपको ट्यूशन भी पढ़ा सकते हैं । आप रोजाना हेलिकोप्टर से सीकर आ जाइएगा या फिर एक हेलिकोप्टर हमें दिलवा दीजिये । हम रोजाना सीकर से अप-डाउन कर लिया करेंगे । जब मुलायम सिंह जी रक्षा मंत्री थे तो रोजाना डिफेंस के प्लेन से घर की छाछ मँगवाया करते थे । लालू जी के लिए रोजाना पटना से सत्तू, खैनी, झींगा और घर की भैंस का दूध आता ही है । वैसे वे चाहें तो अपनी भैंस संसद में भी बाँध सकते हैं । ताऊ देवीलाल जी भी तो राष्ट्रपति भवन में अपनी भैंस बाँधते ही थे  । हम आप से ट्यूशन का कुछ नहीं लेंगे बस आप तो दिल्ली में एक दो कवि सम्मलेन दिलवा दीजियेगा । हो सके तो एक-आध क्रेट व्हिस्की का भी मिल जाए तो जीवन सरलता से गुजरने लगे क्योंकि आजकल सौ चक्कर लगाने पर भी जो काम नहीं होता वह दारू के एक अद्धे में हो जाता है । कहा भी है- सौ दवा एक दारू ।

इस देश में सदैव से ही अंग्रेजी का वर्चस्व रहा है । जब हमने अपने एम.ए. हिन्दी में प्रथम श्रेणी और मेरिट में आने की सूचना पिताजी को दी तो वे कहने लगे- ठीक है, पर यदि अंग्रेजी में एम.ए.करते तो बात कुछ और ही होती । अब हमारे राजस्थान के शिक्षा मंत्री, राष्ट्रीयता और स्वदेशी के भक्त घनश्याम जी भाई साहब भी अंग्रेजी के गुण गाने लगे हैं । पिताजी तो खैर, अब इस दुनिया में नहीं हैं पर घनश्याम जी को तो हम कह ही सकते हैं कि देखो, हिन्दी में भी ट्यूशन का स्कोप है और वह भी भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री और भारत के भावी प्रधान मंत्री की ट्यूशन का ।

आप महान हैं कि आप प्रधानमंत्री बनाए जाने की ख्वाहिश नहीं रखते वरना तो हर लल्लू-पंजू सांसद की यही इच्छा है । न बन पाए वह और बात है । इरादे तो बुलंद रखने ही चाहियें । यदि हिन्दी की ही बात है तो निःसंकोच इरादा बना लीजिये ।

हिन्दी कोई कठिन भाषा नहीं है । और फिर यह तो अपनी राष्ट्र भाषा है । और जो कुछ राष्ट्रीय हो जाता है उसकी दुर्गति करने का प्रत्येक देशवासी को पूरा-पूरा अधिकार है । अब देखिये ना, राष्ट्रीय पक्षी बनने के बाद मोर ज़्यादा मरने लगे हैं । राष्ट्रीय पशु बनने के बाद बाघ लुप्त होने के कगार पर हैं । हिन्दी का भी यही हाल है । जिसकी जो मर्ज़ी आये बोले, लिखे । शृंगार को श्रंगार, दवाइयाँ को दवाईयाँ, नीरोग को निरोग, अपेक्षित को अपेक्षाकृत लिखें । संबोधन में 'भाइयो' होता है पर अधिकतर लोग 'भाइयों' बोलते हैं । धर्मेन्द्र की तरह 'हम जाइन्ग','दारू पीइंग' भी बोल सकते हैं । स्पष्ट को 'सपष्ट' बोलने पर कोई चेलेंज नहीं कर सकता । हाँ, अंग्रेजी में गलती नहीं होनी चाहिए । हिन्दी के मामले में आपको एक सलाह दें कि 'श' का ज़्यादा प्रयोग न करें, बंगला की तरह ।

और हाँ, अंत में एक नितांत निजी बात कि यदि वास्तव में ही आप प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते तो धीरे से हमारा नाम सरका दीजियेगा । हम हिन्दी में एम.ए.हैं और चालीस बरस हिन्दी पढ़ा चुके हैं । जहाँ तक हिन्दी की बात है तो वह तो आपकी और हमारी ही क्या, सारे देश की ही हो रही है ।

८-६-२००५

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Oct 12, 2017

हिटलर का ग्लोब



  हिटलर का ग्लोब 

ये बातें सन उन्नीस सौ पचास से पहले की हैं जब लोग पृथ्वी के आकार, उसके अपनी धुरी पर घूमते हुए सूरज के चारों ओर भी घूमने, दिन रात होने, ऋतुएँ बदलने, सूर्य-चन्द्र ग्रहण, चन्द्रमा के घटते-बढ़ाते दिखने आदि के बारे में नितांत अन्धविश्वासी बातें किया करते थे | उन दिनों पिताजी हमारे लिए कलकत्ता से ग्लोब लेकर आए थे |उन्होंने हमें ये सब बातें ग्लोब की सहायता से, अँधेरे कमरे में टोर्च जलाकर प्रयोग द्वारा बहुत अच्छी तरह से समझाई थीं |यह बात और है कि प्रतीकों को न समझ पाने के कारण आज भी बहुत से पढ़े लिखे लोग अज्ञान और अंधविश्वास की बातें करते हैं |कुछ तो अपनी उस आस्था पर बात तक नहीं करना चाहते और अपनी अवैज्ञानिक आस्था पर चर्चा करने वाले लोगों का सिर फोड़ने तक को तैयार हो जाते हैं |

आज उस ग्लोब की स्थिति वर्तमान दुनिया जैसी हो गई है |वह अपने स्टेंड पर कायम नहीं रह पाता, यदि उसे अपने स्टेंड पर फिक्स कर दो तो घूमता नहीं, तब फिर दिन-रात न बदलने की समस्या आ जाती है |जहाँ उजाला वहाँ हमेशा उजाला और जहाँ अँधेरा वहाँ हमेशा के लिए अँधेरा |यह भी कोई बात हुई ? इसलिए हमने उस ग्लोब का उपयोग करना बंद कर दिया है |हमें ऐसी विषम दुनिया पसंद नहीं |

इस ग्लोब के अलावा हमने फिल्मों में भी ग्लोब देखा था जो दिन-रात, चन्द्रमा की कलाएँ, अक्षांस-देशांतर आदि समझाने के लिए नहीं बल्कि किसी सेना के उच्च अधिकारी द्वारा तनाव के क्षणों में घुमाने के काम आता था |वह दर्शकों की तरफ पीठ किए हुए खिड़की से बाहर देखता रहता था और फिर तनाव में ही अचानक मुड़ता था और ग्लोब को घुमाने लगता था |इसके बाद सैनिकों को मोर्चे की स्थिति समझाता था और फिर अंततः आक्रमण की आज्ञा देता था |स्कूलों में कुछ प्रधानाध्यापक भी ग्लोब को अपने ऑफिस में सजाते थे लेकिन उसका कोई सार्थक उपयोग होते हमने कभी नहीं देखा |

आज आते ही तोताराम ने हमसे उसी ग्लोब की माँग की |बोला- अगर ढंग से प्रस्तुतीकरण हो गया तो समझ ले, मालामाल हो जाएँगे |

हमने कहा- कबाड़ी तो इसके पाँच रुपए भी नहीं दे रहा था |वैसे तू इसे किसे बेचेगा ?

कहने लगा- मेरे वश का तो नहीं लेकिन दुनिया में चालकों और मूर्खों की कोई कमी नहीं है |खोजने वाले खोज ही लेते हैं |क्या पता, हमें भी कोई मिल जाए |अब देख, हिटलर का कोई ७५ साल पुराना ग्लोब और उसके हाथ का लिखा एक पत्र किसी अमरीकी ने ६५ हजार डालर (कोई ४०-४२ लाख रुपए) में ख़रीदे हैं  | 

हमने पूछा-लेकिन कोई इसका करेगा क्या ?

बोला- दुनिया में अकल के अंधों और गाँठ के पूरों को कमी थोड़े ही है |जिसने ख़रीदा है वह अपने से बड़े किसी और मूर्ख को भिड़ा देगा |कुछ लोगों  के पास इतना पैसा है कि उन्हें यही समझ में नहीं आता कि इस पैसे का क्या करें ? वे ऐसी ही उलटी-सीधी चीजों का संग्रह करते हैं | माल्या ने गाँधी का चश्मा, टीपू की तलवार आदि ख़रीदे कि नहीं ? 

हमने कहा- इसमें उसका क्या गया ? वह पैसा तो तेरे-मेरे जैसे भले लोगों का था जिसमें से कुछ माल्या खा गया, कुछ बैंक के अधिकारी और कुछ उसे राज्य सभा में भेजने वाले कांग्रेस और बीजेपी के नेता खा गए |अब करते रहो कूँजड़ियों वाली काँव-काँव |
वैसे तोताराम, इतने पैसे में तो हजारों इससे भी बड़े, कीमती ग्लोब आ सकते हैं |इसी ग्लोब में ऐसा क्या है ?

बोला- तेरी समझ में ये बातें नहीं आएँगीं |वस्तु के साथ एक विचार, एक इतिहास जुड़ा होता है |तभी तो गाँधी जी के जन्म स्थान पर, उस कमरे में खड़े होकर जाने कैसा कुछ होने लगता है |लगता है, जैसे गाँधी की आत्मा हममें प्रवेश कर रही है |पोरबंदर में रहते हुए तू तो सैंकड़ों बार वहाँ गया है |क्या पता, आज भी अमरीका में कोई  हिटलर की तरह इस ग्लोब को उसी की तरह घुमा देने का सपना देख रहा हो |भले ही संख्या में कम हों लेकिन आज भी वहाँ, कालों का वैसे ही संहार करने का इरादा रखने वाले लोग भी हैं जैसी निर्दयता से हिटलर ने यहूदियों का कत्लेआम किया था |

अब बता, मर्लिन मुनरो की पुरानी चड्डी-चोलियों का कोई क्या हारेगा ? लेकिन नीलाम होती हैं और लोग खरीदते भी है | चर्चिल के पीए हुए सिगार की भी तो नीलामी हुई थी |

हमने कहा- इसी प्रकार तो दुनिया में विचार समाप्त होता है तथा अंधविश्वास और मूर्तिपूजा शुरू होती है |हालाँकि दयानंद सरस्वती, कबीर, नानक आदि ने इसका निषेध किया था लेकिन लोग हैं कि उन्हीं की पादुकाओं का पूजन करने लगे |सो यही बात हिटलर या किसी और के साथ हो सकती है |मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले निरीश्वरवादी बुद्ध को लोगों ने मूर्ति में कैद कर दिया जैसे कि गाँधी जी के समस्त दर्शन को चश्मे और चश्मे को शौचालय में कैद कर दिया गया है |

यदि इसी तरह से योजनाबद्ध प्रचार तंत्र सक्रिय रहा तो गाँधी के स्वावलंबन, सादगी, समरसता, अपरिग्रह, अहिंसा, सत्य समाप्त हो जाएँगे |फिर कोई किसी बच्चे से पूछेगा तो वह इससे अधिक कुछ नहीं बता सकेगा- गाँधी माने चश्मा या गाँधी माने शौचालय |




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Oct 10, 2017

धनुष किसने तोड़ा

 धनुष किसने तोड़ा ? 

आते ही हमने तोताराम से कहा- तोताराम, डिमेंसिया से बचने के लिए दिमागी व्यायाम बहुत ज़रूरी है सो आज हम तुम्हारे दिमाग को सक्रिय करने के लिए दशहरे के उपलक्ष्य में रामायण से संबंधित कुछ प्रश्न पूछते हैं |बता- धनुष किसने तोड़ा ?

बोला- जब यह प्रश्न आज तक नहीं सुलझा तो मैं कोई निश्चित उत्तर कैसे दे सकता हूँ | सीता के स्वयंवर में शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की शर्त थी, तोड़ने की नहीं | पता नहीं, परशुराम ने क्यों पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा ?  लक्ष्मण ने कहा- 
छुअत टूट रघुपतिहि न दोसू |
खुद राम ने  भी उनसे कहा- 
छुअतहि टूट पिनाक पुराना |
इसलिए यह कहना ही गलत है कि धनुष किसने तोड़ा ? यह पूछ कि धनुष कैसे टूट गया ?
और स्कूल-निरीक्षक द्वारा किसी स्कूल के छात्र से धनुष टूटने के बारे में यही प्रश्न पूछे जाने पर छात्र ने कहा था- सर, पता नहीं |लेकिन मैंने नहीं तोड़ा | और उसके अध्यापक ने कहा- साहब, यह बहुत शैतान है |ज़रूर इसीने तोड़ा होगा |अभी तक उस किस्से का भी कोई पक्का उत्तर नहीं मिला है |

हम तोताराम पर रोब जमाना चाहते थे, लेकिन उसने तो हमें ही उलझा दिया |

हमने कहा- कोई बात नहीं, वैसे तेरी व्यक्तिगत मान्यता क्या है ? धनुष किसके हाथ से टूटा ?

बोला- मोदी जी हाथ से |

हम भौचक्के |मोदी जी का धनुष से क्या लेना-देना |कहा- क्या अजीब बात कर रहा है ?

बोला- मैं कुछ नहीं कह रहा हूँ |सबसे विश्वसनीय अखबार देख ले, पहले पेज पर ही फोटो छपा है | धनुष पर प्रत्यंचा पहले से चढ़ी हुई थी |जैसे ही मोदी जी ने रावण को मारने के तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा को खींचा तो धनुष दाहिनी तरफ से टूट गया |लेकिन उत्साह से भरे हुए मोदी जी ने धनुष टूटने की कोई परवाह नहीं की और तीर को हाथ में लेकर जोर से फेंका जो सीधे रावण को लगा और उसका काम तमाम हो गया |भाई, एक तो बंदा बाल ब्रह्मचारी, दूसरे पिछले २५ साल में पहली बार मिला स्पष्ट बहुमत |इसकी ताकत का क्या ठिकाना ?

हमने कहा- हो सकता है धनुष बनाने वाले ने धनुष की बनवाई पर २८ प्रतिशत की बजाय ८० प्रतिशत जी.एस.टी. काट लिया हो |ऐसे में तो यह सब होना ही था |हाँ, जहाँ तक मोदी जी की क्षमताओं की बात है तो हमीं क्या सारी दुनिया दीवानी हो रही है |लेकिन यह एक ऐतिहासिक सच है कि रावण को मोदी जी ने नहीं, राम ने मारा था | वैसे भी रावण को मारने वाला राम बन में भटकने वाला राम था, गद्दी पर बैठा राम नहीं |

बोला- यह तो रावण है, गद्दी पर बैठा आदमी तो किसी को भी मार सकता है |यहाँ मोदी जी ने रावण को मारा तो उधर ऐशबाग में योगी जी ने रावण को मारा |

हमने कहा- इससे तो बहुत कनफ्यूजन हो जाएगा | यदि बच्चों से परीक्षा में पूछा गया कि रावण को किसने मारा तो वे क्या लिखेंगे ?और फिर रामायण और रामचरितमानस भी तुम्हारे इस नए तथ्य की पुष्टि नहीं करते  | 

बोला- कोई बात नहीं |उन्हें भी बदलवा दिया जाएगा | इतने बहुमत में इतिहास क्या, सूरज के उगने-छिपने की दिशा तक बदली जा सकती है |

हमने कहा- याद रख, बड़े लोग इतिहास बनाते हैं | जो इतिहास बना नहीं सकते वे उसे बदलने का दंभ भरते हैं |

वैसे एक बात बताएँ तोताराम, मोदी जी को धनुष-बाण का यह तामझाम करने की ज़रूरत ही नहीं थी |वे तो व्यंग्य-बाणों से ही किसी के भी प्राण ले सकते हैं |



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