Feb 26, 2021

देखा ?


देखा ?


तोताराम ने आते ही प्रश्न उछाला, -देखा ?

हमने कहा- हाँ, देखा. लाल किले पर निशान साहब चढ़ाते हुए देखा. पुलिस द्वारा हुडदंगियों को ससम्मान लाल किले में प्रवेश दिलाते भी देखा. लेकिन सदैव भी भांति ट्वीट करने वाले पकड़ में आ गए, उन पर एफ.आई.आर. हो गई और जो झंडे के पोल पर चढ़ते दिखे थे वे सदैव भांति 'अज्ञातों' की श्रेणी में चले गए. 

बोला- उसमें क्या ख़ास बात है.  विवादित ढाँचे पर चढ़े लोग भी तो 'अज्ञात' हो गए और जो उन्हें शांति स्थापना और सर्व-धर्म-सद्भाव के लिए इकठ्ठा करके लाए थे वे नेता भी बरी हो गए. मैं तो आज की मुख्य खबर की बात कर रहा था. ट्रंप का नाम प्रस्तावित हो गया है.

हमने कहा- लेकिन 'भारत रत्न' तो इस बार किसी को नहीं दिया गया. अडवानी जी को भी नहीं. अब नाम पस्तावित करने से क्या लाभ. 

बोला- भारत रत्न से भी बड़े पुरस्कार, नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन.

हमने कहा- नामांकन तो ग्रेटा और एलेक्सेई नेवेलनी का भी हुआ है. हो सकता है शीत युद्ध की शैली में  नेवेलेनी को मिल जाए लेकिन जो बात ट्रंप के मामले में है वह अद्भुत है. शांति पुरस्कार के लिए चिंतन के नए द्वार खोलने वाली है.

बोला- कैसे ?

हमने कहा- यदि द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी जीत जाता तो क्या पता चर्चिल की जगह हिटलर को शांति का नोबल मिल जाता. यदि ट्रंप चुनाव जीत जाते तो उनके लिए अरब इज़राइल समझौते पर शांति का नोबल पक्का था. 

बोला- लेकिन ट्रंप ने लोकतंत्र बचाने की जो साहसिक कोशिश की वह भी कोई छोटी बात नहीं है. कल्पना कर यदि ट्रंप केपिटल हिल को विवादित ढांचे की तरह पूरी तरह ध्वस्त करवा देते और न्यायालय ट्रंप का पक्ष ले लेता तो ? 

हमने कहा- तो केपिटल हिल में घुसकर उत्पात मचाने वाले, बैल के सींग लगा कर लोगों को डराने वाले सभी अज्ञात लोगों के नाम पर बरी हो जाते और उनके पक्ष में फैसला देने वाले जज किसी विभाग के मंत्री या राज्यपाल बना दिए जाते. वैसे क्या अद्भुत समानता है कि केपिटल हिल में भी सुरक्षा कर्मचारी और पुलिस हुड़दंगियों को उसी शैली में घुसा रहे थे जिस शैली में सी आर पी वाले दीप सिद्धू एंड पार्टी को लाल किले में घुसा रहे थे. 

बोला- इस विषय में कुछ और बता.

हमने कहा- क्या बताएं, हमें तो नेवेलनी की चिंता लगी हुई है. कहते हैं, पहले ज़हर दिया गया अब हो सकता है कोई अज्ञात व्यक्ति बंदूक लहराता-लहराता गोली का शिकार न बना दे. केनेडी की हत्या आजतक रहस्य बनी हुई है कि नहीं.



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Feb 22, 2021

आन्दोलन का उचित तरीका


आन्दोलन का उचित तरीका 


हमने कहा- तोताराम, किसान अपनी फ़रियाद लेकर कोर्ट नहीं गए हैं. यह तो दयालु और संवेदनशील कोर्ट ने ही संज्ञान लिया है.  न्यायालय किसान कानूनों को होल्ड पर रखने मतलब अभी प्रभावी न करने के लिए कह सकता है.    

बोला- सरकार की तरफ से अटर्नी जनरल का मत भी तो सुन. कहते हैं किसानों के इस तरह झुण्ड में, बिना मास्क बैठने से कोरोना फ़ैल सकता है. सरकार कोरोना और किसान दोनों ले किए संवेदनशील है.

हमने पूछा- क्या बिहार चुनाव और अब बंगाल में रैलियों से ऐसी आशंका नहीं है ?  इतनी ही फ़िक्र है तो ठण्ड से मर रहे, आत्महत्या कर रहे किसानों की सुनो.   





बोला- किसानों को कहाँ कोई समस्या है ?  वे तो मज़े से चिकन बिरियानी खा रहे हैं लेकिन उससे भाजपा  के उत्साही और बडबोले भाजपा नेता मदन दिलावर को बर्ड फ्लू भी तो हो सकता है. 

हमने पूछा- तो क्या किया जाए ?

बोला- मुख्य न्यायाधीश जी ने एक बहुत अच्छी, सकारात्मक, मौलिक और इन्नोवेटिव बात कही है-

‘हम भी भारतीय हैं, किसानों का दर्द जानते हैं और उनकी परेशानियों से सहानुभूति रखते हैं। बस, आपको अपने आंदोलन का तरीक़ा बदलना होगा।'

हमने कहा- तो फिर उसी पर विचार कर जिससे साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. मतलब सरकार की नाक भी बच जाए, आन्दोलन भी चलता रहे और किसानों का कष्ट भी कम हो जाए.  

बोला- तो सुन,  जब भी 'मन की बात' कार्यक्रम आए तो किसान सब काम छोड़कर श्रद्धा भाव से सपरिवार सुनें. इससे देश भक्ति बढ़ेगी और खालिस्तानी तथा कम्यूनिस्ट प्रभाव कम होगा. भविष्य उज्जवल दिखाई देगा. गाय के शुद्ध घी से अपने घर में हवन करें जिससे उन्हें मानसिक शांति मिलेगी, भगवान प्रसन्न होकर उनका कष्ट दूर करेंगे. पर्यावरण शुद्ध होगा. संकट मोचन का पाठ करें. सप्ताह में तीन दिन मंगलवार, गुरुवार और रविवार को व्रत रखें  च जिससे हाजमा ठीक रहेगा और मोटापा परेशान नहीं करेगा.

भगवान से रोज़ यह प्रार्थना करें कि उन्हें समय पर खाद-बिजली उपलब्ध हों.  बीज और कीटनाशक नकली न निकल आएं. पकिस्तान से टिड्डियाँ न आएं.  इतने पर भी यदि तीनों कृषि बिलों को लेकर मन में कोई तनाव हो तो सप्ताह में एक बार सरकार के विरोध स्वरूप अपने घर में ताली-थाली बजा सकते हैं. सरकार उनके विरोध करने के इस लोकतांत्रिक अधिकार का पूरा सम्मान करेगी और उन पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं करेगी. आखिर यह उनकी सरकार है, संवेदनशील सरकार है. 

हमने कहा- मतलब साँप का कुछ न बिगड़े. बस, लाठियां टूटती रहें.



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Feb 16, 2021

2021-02-16 यह तो केवल झाँकी है....


डोनाल्ड ट्रंप जी;


जय श्रीराम. 

सबसे पहले तो आपको 'कैपिटल हिल' पर अपने भक्तों को भेजकर तोड़फोड़ के द्वारा सत्ता पर कब्ज़ा करने के अभियोग से बरी कर दिए जाने के लिए बधाई. वैसे पता नहीं, आप भी हमारी तरह न्याय पर विश्वास करके निश्चिन्त थे या नहीं. लेकिन हम निश्चिन्त थे. ऐसे मामलों में कुछ नहीं होता. हमारे यहाँ भी राष्ट्रीय गौरव की स्थापना और पिछला हिसाब-किताब चुकता करके मर्यादा पुरुषोत्तम के भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उस विवादित ढांचे को गिरा दिया गया.  गिरवाने वाले बरी हो गए और गिराने वाले भी वीडियो रिकॉर्ड के बावजूद अज्ञात लोग बन गए. वैसे ही आपको भी बरी होना ही था. प्रभु का चमत्कार होता ही ऐसा है.

पता नहीं, आप 'श्री राम'  शब्द से परिचित हैं या नहीं लेकिन इस शब्द की महत्ता और सत्ता का पता चल जाने के बाद आप भी इसके फैन (मुरीद) हो जाएंगे. वैसे तो यह एक 'युद्ध घोष' है लेकिन इसका उपयोग लोग विधर्मियों या विरोधियों को डराने और चिढाने के लिए किया जाता है. अपने बरी होने के लिए आपको श्री राम का आभारी होना चाहिए. हमारा तो सुझाव है कि आप राम मंदिर के लिए एक बड़ी समर्पण-राशि के साथ एक दर्शनार्थी के बतौर राम जन्म भूमि पधारें. भगवा वस्त्र पहनकर साष्टांग करते हुए एक फिल्म बनवाइए और उसका पर्याप्त प्रचार करें. 'हाउ डी मोदी' के बावजूद पता नहीं, आपको सभी भारत मूल के अमरीकियों के वोट मिले या नहीं लेकिन इस टोटके से अगले चुनाव में आपको अमरीका में रहने वाले सभी रामभक्तों के शतप्रतिशत वोट अवश्य मिलेंगे.  

जब आप पिछले साल इन्हीं दिनों 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में अहमदाबाद पधारे थे तो आपने अशुद्ध उच्चारण में ही सही लेकिन विवेकानन्द, सचिन तेंदुलकर और डीडीएलजे (दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे) आदि का नाम लिया था तो हमें आपके भारतीय-संस्कृति-प्रेम का पता चल गया था.  'जय श्री राम' को उसी की अगली कड़ी बनाएं. 

सीनेट में वोट से दोषी सिद्ध न हो पाने और रिहा होने के कुछ ही समय बाद जारी एक बयान में आपने बिलकुल ठीक कहा, 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के लिए हमारा ऐतिहासिक, देशभक्तिपूर्ण और शानदार आंदोलन अभी शुरू ही हुआ है।' 

 'कैपिटल हिल' तो एक झांकी है......इतिहास ऐसे बनाए और मिटाए जाते हैं. 

आपने षड्यंत्र के तहत चुनाव हरवा देने के विरुद्ध लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी पहली पत्नी से उत्पन्न दो पुत्र-रत्नों के संरक्षण में 'इलेक्शन डिफेंस फंड' की स्थापना की. अच्छा है, इसी को 'आपदा में अवसर' कहते हैं. 'सबका साथ : सबका विकास'  ऐसे ही होता है. आपने जाते-जाते अपराधियों से पैसा लेकर उन्हें अग्रिम माफ़ी देने की तरह इस फंड को भी 'ऑडिट फ्री' ज़रूर कर दिया होगा. चंदा जुटाने से ज्यादा झंझट ऑडिट में होता है. 

आपने अपने बरी होने के बाद दिए गए सन्देश में जिन दो शाश्वत मुद्दों 'अमरीका को फिर ग्रेट बनाने' और 'देशभक्ति' का ज़िक्र किया है वे वास्तव में बहुत चतुर मुद्दे हैं. इनमें किसी को भी फंसाया जा सकता है और खुद किसी भी तरह से बचा जा सकता है. 

सेमुअल जोनसन ने कहा था-  “Patriotism is the last refuge of the scoundres.” देशभक्ति बदमाशों की अंतिम शरण स्थली है. देशभक्ति की आड़ में अपने किसी भी दुष्कर्म और अपराध को जायज़ ठहराया जा सकता है और किसी भी श्रेष्ठ व्यक्ति और काम पर प्रश्न उठाया और उसे देशद्रोह ठहराया जा सकता है.  बस, आप तो इसी लेने को पकड़े रहिये और अमरीका को ग्रेट और लोगों को देशभक्त बनाए रखने के लिए अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर दीजिए. 

आपने अपने स्टेटमेंट में आगे कहा- 'हमारे पास आगे बहुत काम है. और जल्द ही हम एक उज्ज्वल और असीम अमेरिकी भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण के साथ उभरेंगे।'

वैसे तो आपनेअपने हिसाब से रणनीति बना ली होगी. ऐसे मामलों में आप पहले से ही 'आत्मनिर्भर अमरीका' हैं. फिर भी आपके मार्गदर्शन के कुछ सुझाव दिए देते हैं. 

अब तक आप अपने फ्लोरिडा वाले गोल्फ कोर्स में खेल-खालकर, फ्रेश होकर राष्ट्र सेवा और अमरीका को ग्रेट बनाने के लिए रेडी हो चुके होंगे. 

-अब आप एक 'ग्रेट अमरीका रथ' बनवाइए और उसे कैलिफोर्निया से कैपिटल हिल तक और अटलान्टा से अलास्का तक लाठी, सब्बल, फावड़ा, गेंती आदि निर्माण के औजारों से सज्जित अपने अनुयायियों के साथ जुलूस की शक्ल में अगले चार साल तक घुमाइये. 

-सभी से 'एक ईंट : एक डोलर' का चंदा लेते जाएं. वाइट हॉउस और कैपिटल हिल के विध्वंस के बाद निर्माण भी तो करना होगा ना

-रास्ते में लगाने के लिए प्रेम और भाईचारा बढाने वाले कुछ नारे भी सुझा देते हैं जैसे- 'बच्चा-बच्चा ट्रंप का : हल्ला और हड़कंप का', अमरीका हम आएँगे, विध्वंस वहीं मचाएंगे, 'अमरीका के गद्दारों को, गोली मारो सालों को' और गद्दार कैसे होते हैं यह तो आप रंग से पहचान ही लेंगे. यदि कोई किसी समस्या को लेकर प्रश्न करे तो उसके लिए ओबामा ज़िम्मेदार है ही. 

-हो सके तो विजय-प्राप्ति तक के लिए एक लम्बा चोगा, ऊँची टोपी और माला धारण कर लें. दोनों हाथों में बाइबिल धारण करें. कम बोले, आँखें अधखुली रखें जैसे कि ब्रह्म में लौ लगी हुई है. आशीर्वाद की मुद्रा में रहें लेकिन लक्ष्य रूपी मछली के लिए बगुले की तरह सदैव सजग.

इस नाटक को अपनी आत्मा में कभी न घुसने दें. उसे तो पूर्ववत वैसा ही शातिर बनाए रखें. हाँ, कुछ दिनों के लिए पोर्न आर्टिस्टों से दूर रहे. 

16-02-2021 


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Feb 12, 2021

राम और शक्ति का युद्ध


राम और शक्ति का युद्ध 


आज ठण्ड लौट आई जैसे कि उखड़ते आन्दोलन को टिकैत के आँसुओं ने फिर जमा दिया.   हालांकि बरामदे में किसानों की हमदर्द सरकार की ओर से कीलें और बेरिकेड नहीं लगे थे फिर भी बरामदे में नहीं गए. 

तोताराम ने दरवाजे से ही सिंहनाद किया- 'जय श्रीराम'.  दरवाजा खुला हुआ था अन्यथा वह दरवाजे को तोड़ सकता था. बन्दे में आज अपने बल के अतिरिक्त राम का बल भी तो था. 

हमने उसे जैसे ही चाय थमाई फिर उसने 'जय श्रीराम' का घनघोर निनाद किया. हमें बड़ा अजीब लगा फिर भी हमने उसकी अभिव्यक्ति का सम्मान किया जैसे जनता 'मन की बात' का करती है. 

थोड़ी देर में जैसे ही चाय समाप्त हुई उसने कप एक तरफ सरकाया और फिर वही नाद- 'जय श्रीराम'. 

अब तो हमसे रहा नहीं गया. हमने कहा- क्या परेशानी है ? हर एक-दो मिनट बाद 'जय श्रीराम' का क्या मतलब है ? 

बोला- क्या एक भारतवासी अपने देश में भी 'जय श्रीराम' का उच्चारण नहीं कर सकता ?

हमने कहा- कर क्यों नहीं सकता लेकिन क्या कोई सारे दिन नारे लगाता है क्या ? और तुम्हारा यह जो 'जय श्रीराम' का नारा है वह सामान्य नहीं है. वह एक प्रकार का युद्ध घोष है. फिर भी मज़े की बात देख कि रामचरित मानस में भी लंकाकांड में युद्ध में वानर-भालू और राक्षस नारे लगाते हैं लेकिन बस इतना ही वर्णन मिलता है-

उत रावण इत राम दुहाई

'जय श्रीराम' और 'जय रावण' या 'जय लंकेश' तो कहीं नहीं. 

बोला- लेकिन इसमें ममता बनर्जी की तरह चिढ़ने वाली क्या बात है ?

हमने कहा- तो फिर नेताजी के जन्म दिन पर केंद्र सरकार की तरफ से आयोजित कार्यक्रम को 'शौर्य दिवस' नाम देने की क्या ज़रूरत थी ? जबकि ब्रिटिश सरकार के समय आज़ाद हिन्द सेना के आक्रमण के समय तो तुम लोग सुभाष का समर्थन नहीं कर रहे थे. इस अवसर पर यदि नारा लगाना था तो 'जय हिन्द' का नारा लगाते. यह कोई धार्मिक आयोजन थोड़े ही था. वैसे भी धार्मिक आयोजन के रूप में जैसे महाराष्ट्र में तिलक महाराज का शुरू किया गया 'गणेश-उत्सव' महत्त्वपूर्ण है वैसे ही बंगाल में तो 'दुर्गा पूजा' ही मुख्य सांस्कृतिक कार्यक्रम है न कि राम लीला. और जय श्रीराम. 

बोला- हम तो राम भक्त हैं. राम का ही नारा लगाएंगे. 

हमने कहा- तो क्या राम भक्ति के नाम पर तुम 'दुर्गा और राम' का युद्ध करवाना चाहते हो ? 

बोला- राम और दुर्गा का कोई विवाद नहीं है. राम ने तो खुद रावण से युद्ध में विजय के लिए शक्ति की आराधना की थी. बंगाल से प्रभावित निराला ने इसीलिए तो 'राम की शक्ति पूजा' जैसी महान रचना लिखी.  

हमने कहा- जब तुम इतना सब जानते हो तो फिर बंगाल में 'जय हिन्द' या 'जय काली' का नारा लगाते. जय श्रीराम का नारा लगाकर क्यों लोगों को छेड़ते हो ? 

बोला- कभी-कभी अस्वाभाविक काम किये-करवाए जाते हैं जैसे पुराणों में राम-हनुमान युद्ध, भीष्म-कृष्ण युद्ध, ब्रह्मा-विष्णु युद्ध, शिव-हनुमान युद्ध, राम-शिव युद्ध, शिव-कृष्ण युद्ध आदि. जय श्रीराम से जैसे उत्तर भारत की जनता को जोश दिलाकर सत्ता के लिए राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त कर दिया वैसे ही बंगाल में बसे लोगों की अस्मिता को राम से जोड़कर ध्रुवीकरण किया जा सकता है. 

हमने कहा- बंगाल में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान के लाखों लोग सैंकड़ों साल से रह कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं. और अब तो वे आधे बंगाली ही हो गए हैं. अब उनके जीवन में बिना बात तूफ़ान उठाने से क्या फायदा ? 

बोला- सामान्य रूप से प्रेम से रहने वाली जनता के बीच चुनाव जीतना आसान नहीं होता. सरकारें ऐसे ही बनती और इसे ही चलती हैं. 

हमने कहा- तोताराम, राजनीति तो अपना काम बना लेगी लेकिन जनता इतनी चालाक नहीं होती जो अडवानी जी के इस सिद्धांत को समझ सके कि राजनीति में कोई स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होता. मौके के अनुसार स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी किया जा सकता है. 

जनता के अवचेतन में पैदा की गईं कुंठाएं वर्षों, दशकों तक ही नहीं सहस्राब्दियों तक लोगों को सहज जीवन जीने नहीं देतीं.  इसलिए कुंठा पैदा करना, उसे सहलाना और हवा देना सब गलत है.




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Feb 10, 2021

शक्ल का क्या है


 शक्ल का क्या है 



बंगाल का चुनाव क्या आ गया, जीतने के लिए हथियार उठाने से लेकर विश्वभारती में साड़ी के पल्लू तक पर रिसर्च होने लगी. सुभाष वाली वेशभूषा में सलामी लेते या देते दिल्ली और पोर्टब्लेयर में मोदी जी के फोटो भी खूब खिंचे. और अब राष्ट्रपति भवन में नेताजी के चित्रों का अनावरण किया जा रहा है. 

हमने कहा- तोताराम, जो चित्र लगाया गया है उसके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि वह सुभाष पर बनी फिल्म में काम करने वाले किसी अभिनेता का है. सुभाष से उसकी शक्ल ही नहीं मिलती.

बोला- शक्ल का महत्त्व है या गुणों का ? कल को तू कहेगा अधनंगे और टकले गाँधी अच्छे नहीं लगते. क्या उनकी शक्ल किसी खूबसूरत हीरो जैसी कोई फोटो लगा दें. और किसी की शक्ल सदा एक जैसी रहती है क्या ? तुझे याद नहीं शायद १९६० में इलस्ट्रेटेड वीकली में गामा के बुढ़ापे और जवानी दोनों की फोटो छपी थी.किसे सच मानें ?

हमने कहा- फिर भी सुभाष के तो फोटो उपलब्ध हैं. कई लोगों ने उन्हें देखा भी है तो अच्छा होता, कोई पूर्णतया प्रमाणिक फोटो लगाते.

बोला- शक्ल का क्या है ? शिव, गणेश और हनुमान को किसने देखा है ? और क्या शिव एक गोल पत्थर, गणेश मिट्टी का ढेला या हनुमान सिंदूर लगी तिकोनी आकृति मात्र है ? ये तीनों तो कोई ढंग से आकृति भी नहीं है. पोस्ट ऑफिस में मिलने वाली गंगाजल की शीशी केवल एक भाव नहीं तो और क्या है ?  यदि भाव पवित्र नहीं है तो चाहे १००० करोड़ के भव्य मंदिर में रत्नजटित स्वर्ण प्रतिमा के आगे सिर झुकाओ या राजघाट पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि दो, मन में तो शाश्वत देशभक्त गोडसे ही आएगा. 

हमने कहा- और भी कई अजीब बातें कही-सुनी जा रही हैं. कहते हैं अमित शाह ने गुरुदेव का जन्म स्थान कोलकाता की जगह बोलपुर बता दिया. बिरसा मुंडा की जगह उसके नाम से पता नहीं किसकी मूर्ति पर माला चढ़ा दी ? 

बोला- फिर वही बात. अरे, गुरुदेव कहाँ पैदा हुए थे, यह महत्त्वपूर्ण नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि उनके विचार क्या थे. वे कभी कट्टर राष्ट्रवाद के समर्थक नहीं रहे. वे विश्व मानवता में विश्वास करते थे. और लोग हैं धर्म-जाति और झंडों के रंगों को लेकर मारामारी कर रहे हैं या आत्मनिर्भर भारत से जोड़ रहे हैं. तुझे याद है दादी अपनी पूजा में आज से ८५ साल पहले दिवंगत हो चुके दादाजी की फोटो रखती थी जिसमें फ्रेम और चन्दन के छींटों के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था, ऐसे में क्या वह किसी आकृति की पूजा कर रही थी ? 

हमने कहा- तभी शायद स्वामी रामसुखदास जी कभी अपना फोटो नहीं खिंचवाते थे. इसीलिए उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनका कोई भी स्मृति-चिह्न न रखा जाए. उनके नाम से कोई पंथ, मंदिर या आश्रम न बनाया जाए. उनकी धोती ,कमंडल, पादुका आदि सब उनके साथ जला दिए जाएं. उनका कोई स्मारक नहीं बनाया जाए.

बोला- लेकिन जिहें किसी भी भी महान व्यक्ति की महानता का धंधा करना है तो वह उसके गुणों नहीं बल्कि उसकी मूर्ति, ट्रस्ट, मंदिर, चंदे और प्रसाद में अधिक रुचि लेगा और उसके नाम से तरह-तरह के अंधविश्वास फैलाएगा. 




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Feb 6, 2021

अमरीका का चीयर लीडर


अमरीका का चीयरलीडर 


पढ़ा कि अमरीका के प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने अपनी आने वाली पुस्तक Rage (गुस्सा ) में गुस्सा दिखाते हुए लिखा है कि उन्होंने अमरीका के प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने अपनी आने वाली पुस्तक 'रेज' (गुस्सा) में गुस्सा दिखाते हुए लिखा है कि ट्रंप ने कोरोना वायरस के घातक नेचर को जानबूझकर छिपाया.  वहीं आलोचक आरोप लगाते रहे हैं कि ट्रंप दोतरफा बात करते हैं और उन्होंने हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेला है जिन्हें बचाया जा सकता था. राजनीतिक गलियारे में 'Trump lied, people died' (ट्रंप ने झूठ बोला, लोग मरे) की गूंज है.

ट्रंप ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा, 'बात यह है कि मैं देश के लिए एक चीयरलीडर हूँ.  मैं अपने देश से प्यार करता हूं और मैं नहीं चाहता कि लोग डरें.  मैं विश्वास दिखाना चाहता हूँ, मैं ताकत दिखाना चाहता हूँ'. 

डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)

ट्रंप के इस बयान से हमारी हालत तो नायिका के घूँघट से झांकते रोशन चेहरे के लिए लिखे गए एक राजस्थानी गीत, 'थारै घूँघटिये में सोळा ऊग्या ऐ मरवण' जैसी हो गई. एक ही झटके में सब भरम भाग गए. घूँघट के पट खुल गए.   प्रकाश-पिया मिल गए.  जन्नत की हक़ीकत उजागर हो गई. दुनिया का महाबली और हालत चीयर लीडर जैसी. 


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आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, आज हमें नेताओं की असलियत पता चल गई है. वे वास्तव में हमारी सहानुभूति के पात्र हैं और एक हम हैं कि बेचारों को सुबह-सुबह चाय पी-पीकर कोसते रहते हैं. 

बोला- क्यों क्या हुआ ? कहीं तुझे भी कंगना की तरह उज्जवल भविष्य ने चकाचौंध में तो नहीं डाल दिया ? कहीं मंत्रीपद के ख्वाब तो नहीं देखने लग गया जैसे कि जज सरकार के पक्ष में फैसला देकर राज्यसभा में चले जाते हैं. 

हमने कहा- भले की आडवानी जी की कोई महत्वाकांक्षा बची हो लेकिन हमारी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है. बस, अस्सी के हो जाएं और एक ही झटके में पेंशन को सवाया होता देख लें.

हाँ,आज ट्रंप का बयान पढ़कर समझ आया कि नेताओं को जनता की ख़ुशी और हौसला अफजाई के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता ? ट्रंप ने खुद को अमरीकी जनता का चीयर लीडर स्वीकार किया है. 

बोला- यह सच है कि कोई हारे, कोई जीते; छक्का लगे या विकेट गिरे लेकिन चीयर लीडर्स को उछलना और कमर मटकाना ही पड़ता है. चीयर लीडर्स की हालत सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाचने वाली किराए की पतुरिया जैसी होती है.हर कोई उसे सरलता से सुलभ और मुफ्त का माल समझता है. कई बार तो बेचारियों को न चाहते हुए भी पापी पेट के लिए खिलाड़ियों की गोद में बैठने तक का नाटक करना पड़ता है. लेकिन नेताओं की स्थिति खेल वाली चीयर लीडर्स जैसी नहीं है. ये तो बस दिखाने के लिए नाटक करते हैं. झूठा गुस्सा, झूठा रोना-गाना. तुलसी के शब्दों में- 

झूठ हि लेना झूठ हि देना 
झूठ हि भोजन झूठ चबैना. 
चीयर लीडर्स की तरह नहीं तो भी नेताओं को भी बड़े-बड़े सेठों की गोद में बैठना तो पड़ता है. 

हाँ, कभी कभी की थोड़ी-सी चीयर लीडरी के बदले नेताओं को जो रुतबा मिलता है वह बहुत बड़ी बात है. पैसे की तो ट्रंप के पास पहले भी कोई कमी नहीं थी लेकिन राष्ट्रपति बनते ही एक ही झटके में महाबली बन गए. इस प्रकार चीयर लीडरी जिसमें थोड़ा सा नाच दिखाने के बदले में दुनिया को नचाने का अधिकार मिल जाता है. तभी तो पाँच करोड़ के नोबल के लिए ५०० करोड़ देने वाले और लाख-पचास हजार रुपए वाली सांसदी के लिए के लिए १००-५० करोड़ देने के लिए तैयार श्रेष्ठि वर्ग मूर्ख नहीं है.  

हमने कहा- लेकिन इस साफगोई के लिए ट्रंप को दाद तो देनी पड़ेगी. उनके अलावा भी तो बहुत से लीडर हैं लेकिन किसी ने ऐसा साहस नहीं दिखाया.

बोला- भले ही ट्रंप ने इसे अब स्वीकार किया हो लेकिन चीन ने तो दो महिने पहले ही कह दिया था कि ट्रंप भारत के लिए चीयर लीडर का काम कर रहे हैं.

हमने कहा- भारत के मामले में यह उपमा उचित नहीं है. इस समय दुनिया में यदि जय और वीरू की तरह किसी की दोस्ती है तो वह ट्रंप और मोदी जी की है .'हाउ डी मोदी' और 'नमस्ते ट्रंप' जैसे कैसे प्यारे-प्यारे कार्यक्रम करते हैं. एक दूसरे के चुनाव का प्रचार करते हैं |वैसे कुछ भी कहो ट्रंप हैं बहुत भोले. लाइजोल के इंजेक्शन को कोरोना का इलाज बता दिया. 

बोला- यह भोलापन नहीं है. यह भोली जनता को लुभाने की एक अदा है. भोलापन दिखाने पर जनता समझती है कि भले ही बेचारे से कोई अच्छा काम न न बन पड़ा हो लेकिन है भोला आदमी. और भोला आदमी भला तो होता ही है. लालू जी क्या कोई भोले आदमी हैं ? लेकिन सामान्य लोगों की तरह उन्हें कपड़े फाड़ होली खेलते हुए देखकर जनता फ़िदा हो जाती है. 

नेहरू जी तो धूर्त थे जिन्होंने देश की ज़मीन पर कब्ज़ा होने दिया या चीन को बेच दिया लेकिन आज चीन हमारे भोले और भले सेवकों की भलमनसाहत का 
 फायदा उठाकर सीमा पर दादागीरी कर रहा है. इसमें गलती हमारे भोले चीयर लीडरों की नहीं चीन की है. हम तो मानवता, विनम्रता, सज्जनता और भोलेपन और मासूमियत से झूला झूल रहे थे और चाय पी पिला रहे थे. 

अमरीका में तो एक चीयर लीडर है. हमारे यहाँ तो मजदूर, किसान और कारीगरों की बात और है. उन्हें तो काम किए बिना रोटी मिलनी नहीं लेकिन इन के अलावा अधिकतर विद्यार्थी, शिक्षक, नेता, बुद्धिजीवी, मीडिया  चीयर लीडरी की प्रतियोगिता में शामिल है.  देशभक्ति व्यक्तिभक्ति में बदल गई है और प्रमाणस्वरूप दिखाने के लिए एक ही प्रकार की नौटंकी पूरे देश में चल रही है.  
कोरोना के इलाज के लिए थाली-ताली बजाना-बजवाना, भाभीजी पापड़ का नुस्खा सुझाना कोई छोटी चीयर लीडरी है ? इनके सामने लालू जी नौसिखिए लगते हैं. 

भूमि अधिग्रहण का मामला: विधायक ने किसानों के समर्थन में अर्धनग्न होकर शीर्षासन करके विरोध जताया

हमने कहा- यह तो वही हो गया, जंगल में लोकतंत्र था और किसी हवा के चलते एक बन्दर वहाँ का राजा चुन लिया गया. एक भेड़ उसके पास गई और बोली- राजाजी, एक भेड़िया मेरे बेटे को खा रहा है. आप कुछ कीजिए. 

बन्दर एक डाली से दूसरी डाली पर छलाँग लगाना शुरू कर दिया. भेड़ ने फिर फ़रियाद की. बन्दर ने फिर छलाँग लगाना शुरू कर दिया. भेडियों ने बकरी के बच्चे को खा लिया. 

दूसरे जानवरों ने भेड़ का मज़ाक उड़ाते हुए कहा- गई थी ना राजा जी के पास ! मिल गया न्याय ? 

बकरी बोली- यह तो एक्ट ऑफ़ गॉड है. भेड़िये मेमनों को नहीं खाएंगे तो क्या एलोवेरा ज्यूस पियेंगे ? लेकिन राजाजी ने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी. एक घंटे तक एक से दूसरी डाल पर छलाँग लगाते रहे. पसीने में तरबतर हो गए थे बेचारे. 









 

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Feb 5, 2021

तोताराम की लद्दाख यात्रा


तोताराम की लद्दाख यात्रा 

हमारे यहाँ पिछले दो दिनों से रात का शीतमान ( क्योंकि तापमान तो गर्मियों में होता है ) ५.५ डिग्री पहुँच गया है. दिसंबर के उत्तरार्ध और जनवरी के पूर्वार्ध में -२,३ भी जाएगा इसलिए हम इसे सीरियसली नहीं लेते. अभी सर्दी के ब्रह्मास्त्र नहीं निकाले हैं. लेकिन आज तोताराम दिसंबर की -३ वाली वेशभूषा में प्रकट हुआ. 

  
हमने पूछा- अभी से ? फिर महिने भर बाद क्या कश्मीरियों की तरह काँगड़ी लेकर चलेगा ?  

 
बोला- आज की यात्रा केवल 'चाय-यात्रा' नहीं है. आज मैं लद्दाख जा रहा हूँ. 

हमने कहा- कहीं मोदी जी वाला ३० हजार रूपए किलो वाला मशरूम तो नहीं खा लिया या कहीं मैना ने तुझे मोरिंगे के परांठे तो नहीं खिला दिए ? नया-नया अंडा खाने वाले ऐसे ही अकड़ते हैं. नकली मूंछें लगाने से कोई वीर नहीं हो जाता. 

मोदी जी में तो ब्रह्मचर्य का बल है. किसी भी मौसम में, कहीं भी जा सकते हैं. लेकिन तेरी तो वहाँ से तिरंगे में लिपटी कुल्फी ही लौटेगी. क्या पता, यहाँ लौट कर अपने पूर्वरूप में आये या नहीं, कहीं 'ममी' बनकर न रह जाए.

बोला- क्या करूँ, जाना ही पड़ेगा. इस चीन ने परेशान कर रखा है. 

हमने कहा- तो फिर मोदी जी की युवा और सच्चे देशभक्तों की सेना में तू ही बचा है क्या ? अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, सूर्या, संबित पात्रा, प्रज्ञा ठाकुर और साक्षी महाराज जैसे वीर कहाँ हैं जो किसी भी शत्रु के अपने शब्द-बाणों से ही छक्के छुड़ा दें. 

 

 वैसे तोताराम, क्या विचित्र संयोग है कि १९६२ की लड़ाई के बाद से मोदी जी के आने से पहले तक तो चीन और भारत के बीच सब कुछ शांत ही था. अब क्या हो गया ? 

बोला- मुझे लगता है मोदी जी के बार-बार चाय पिलाने, घूमने-घुमाने और झूला झुलाने को शी जिन पिंग ने कमजोरी समझ लिया और ५६ इंच के मुकाबले में अपना ३६ इंच का सीना दिखाने लगा. अब राफाल आने से थोड़ा ठंडा तो पड़ा है फिर भी उसे एक भारी डोज़ देना ज़रूरी है. 

हमने कहा- तो वह डोज़ तू देगा ? तू अपने साथ कौन-सा ब्रह्मास्त्र लेकर जा रहा है ?

बोला- अपना यह २८ इंची सीना ही ब्रह्मास्त्र है. जब मैं वहाँ -३० डिग्री में अपना २८ इंची सीना एक बार खोलकर दिखा दूंगा तो चीन के सैनिकों के होश यह सोचकर उड़ जाएंगे कि जिस देश का २८ इंच सीने का एक ८० साल का बूढ़ा भी इतना साहसी है तो उस देश के ५६ इंच सीने वाले आ गए तो क्या होगा ? 

हमेशा के लिए हवा खिसक जाएगी बच्चुओं की !



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Feb 2, 2021

आ बात करें

आ बात करें 


आते ही तोताराम बोला- आ, बात करें.

हमने पूछा- किस प्रकार की बात करें ?

बोला- बात का क्या है, कुछ भी बात. 

हमने कहा- नहीं, बात कई प्रकार की होती है जैसे- चर्चा, विमर्श, चुगली, निंदा, मंथन, बौद्धिक, थूक उछाल आदि-आदि. 

बोला- मुझे बातों के प्रकार के क्या मतलब ? सुबह-सुबह चाय पी रहे हैं तो साथ-साथ कुछ बात भी करते रहें. अब चुपचाप सर झुकाए अपराधी या शोकसभा में आये हुए की तरह चाय पीना क्या अच्छा लगेगा ? और बात का क्या है. बात तो बात होती है. करने के लिए की जाती है. सामान्य आदमी समय बिताकर उठ जाते हैं, जिज्ञासु कुछ ज्ञान  निकाल लेते हैं और भक्त तथा शराबी जूतम-पैजार करके समापन करते हैं.

आजकल कृषि मंत्री और किसानों में भी तो बात चल रही ही है. पता नहीं कब तक चलेगी. आठ दौर हो चुके हैं और नवां दौर १५ जनवरी २०२१ को होने वाला है. 




हमने कहा- तो क्या तूने हमें नरेन्द्र तोमर समझ रखा है जो सरकार के कहने पर वह बात करता रहेगा जिसका कोई अंत और अर्थ नहीं. पानी और थूक को बिलोने से घी नहीं निकलता. मोदी जी के पास समय नहीं है इसलिए किसानों को चिढ़ाने और बात कर-कर के थकाने के लिए छुटभैयों को भिड़ाया जा रहा है. लेकिन ताज्जुब है बंदा एक ही बात बार-बार बोलते-कहते बोर और दुखी भी नहीं होता. बड़ी घटिया नौकरी है. 

बोला- तो क्या करें ? किसान हैं परेशान और सरकार है राम भक्त जो 'प्राण जाय पर वचन न जाई' में विश्वास करती है. बिल वापिस नहीं  लेगी. इतना थूक दिया है कि चाटना मुश्किल है. तू ही कोई ऐसा तरीका बता जिससे सरकार की नाक भी बच जाए और खाद्यान्नों के व्यापार में उतरने वाले बड़े खिलाड़ियों का भी नुकसान न हो और किसानों का मान भी बचा रहे.  

हमने कहा- इसके लिए हम तो यही सुझाव दे सकते हैं कि किसान को कोई किसान न कहे, 'अन्नदाता' कहे, देश के हर जिले में अन्नदाता की एक-एक मूर्ति बनवा दी जाए. जब भी कोई किसान आत्महत्या करे तो राज्य और देश के कृषि मंत्री अपने ट्विटर पर दुःख प्रकट करे. सामान्य नहीं गहरा दुःख. संसद और विधान सभाओं के अधिवेशन से पूर्व  उस समय तक आत्महत्या कर चुके किसानों को श्रद्धांजलि दी जाए. जिस तरह प्रधान मंत्री जी संगम पर सफाई कर्मचारियों के पैर धोये थे उसी तरह एक बार किसी किसान के पैर भी धोएं फिर चे वह किसान राजनाथ सिंह जी हों या नरेन्द्र सिंह तोमर हों. जैसे अमित शाह जी ने बंगाल में बासुदेब बाउल के घर खाना खाया था वैसे ही कोई बड़ा नेता किसी किसान के घर खाना खाए. भले ही उससे एक शब्द भी न बोले और उसकी एक बात भी न सुने. 

बोला- हमारी सरकार इतनी भी संवेदनहीन नहीं है. यह तो किया जा सकता है. तू कहे तो किसानों पर कोरोना वारियर्स की तरह पुष्प वर्षा भी करवा देंगे. 

यह बात और है कि चिकित्सा कर्मियों को कई महिने से तनख्वाह न मिली है. 




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