Nov 3, 2012

थरूर थ्रिल्लर बनाम गर्ल फ्रेंड की कीमत


अब वह पहले वाली बात कहाँ रही जब चीजें अमूल्य हुआ करती थीं । मीरा जैसे प्रेम करने वाले बिना मोल बिका करते थे- 'मैं तो गिरधर हाथ बिकानी' । बिकीं, मगर ५० करोड़ का प्राइस टैग लगाकर नहीं, बल्कि बिन मोल; तभी तो वह गोविन्द को अमोलक मोल में खरीद सकती थी- 'माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल । कोई कहे महँगो कोई कहे सस्तो, लियो री अमोलक मोल' । लोग दाम के लिए नहीं बल्कि बात के लिए मरा करते थे ।

यदि मीरा दाम के लिए बिकती तो पूरी संभावना थी कि उसे उसका देवर बनबीर खरीद लेता । आज जब सांसद और यहाँ तक कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बिकाऊ हैं तो बेचारी गर्ल फ्रेंड की क्या औकात ? सुनते हैं कि एक ब्राजीलियन लड़की ने अपना कौमार्य कुछ करोड़ में नीलाम किया और गर्व की बात है कि बोली लगाने वालों में भारत का भी एक सपूत था । और मज़े की बात यह है कि वह लकड़ी उस पैसे से कोई समाज सेवा का काम करेगी मतलब कि स्वयंसेवक भी निःशुल्क नहीं मिलते ।



खैर, तो बात गर्ल फ्रेंड की कीमत की । ठीक है, समय रहते अपनी कुछ कीमत ले ले अन्यथा पालक की सब्जी की तरह शाम को मुरझाकर मंडी में घूमने वाले सांडों के आगे फिंकना है या किसी होटल वाले के हाथ धूल के भाव बिकना है । गर्ल फ्रेंड की भी अपनी परिस्थिति होती है । ज्यादा भाव खाने से उस फिल्मी हीरोइन की सी हालत होती है जो फ़िल्में मिलते रहने पर शादी के बारे में सोचती नहीं और जब सोचती है तो उसके साथी दादा बन चुके होते हैं फिर तो कोई सेकण्ड या थर्ड हैंड मिलता है । कभी-कभी गर्ल फ्रेंड चालाक होती है तो ५० करोड़ क्या, प्रेमी के कपड़े तक उतरवा देती है, जूते पड़वाना तो खैर, कोई बात ही नहीं । हमारे गाँव में एक बड़े सेठ के सुपुत्र थे । वे अपने को बड़ा प्रेमी मानते थे यह बात और है कि लोग उन्हें लम्पट कहते थे । उनके पिताजी ने आज से कोई सौ साल पहले करोड़ों रुपए के धर्मार्थ काम किए थे लेकिन पुत्र ऐसे प्रेमी निकले कि अपनी गर्ल फ्रेंड के चक्कर में अपनी सारी संपत्ति गँवा दी और अंतिम साँस कलकत्ता में अपनी ससुराल वालों के घर में ली ।

आजकल गर्ल फ्रेंड्स बैंक बेलेंस देखकर प्रेम करती हैं और जैसे ही बैंक बेलेंस खत्म हुआ कि कोई और सच्चा प्रेमी ढूँढ़ लेती हैं । एक चुटकला है- एक प्रेमी ने अपनी नई गर्ल फ्रेंड को बताया कि उसकी भूतपूर्व प्रेमिका अब उसकी चाची है क्योंकि उसने उसे कह दिया था कि उसका चाचा करोड़पति है और वह अपने चाचा का इकलौता वारिस है । एक मदिरा के मसीहा को कैलेण्डर के लिए फोटो खिंचवाने वाली लड़कियों ने ४९वीं सीढ़ी से ७९वीं सीढ़ी पर ला पटका । 

आज ही एक गर्ल फ्रेंड के बारे में सुना । एक कुँवारे ने उसकी कीमत ५० करोड़ बताई तो प्रेमी ने तत्काल प्रतिवाद किया- नहीं, मेरी प्रेमिका की कीमत ५० करोड़ से ज्यादा है । अब पचास करोड़ हो या सौ करोड़, चीज तो बिकाऊ ही हुई ना ? अब एक नायक या महानायक या कोई बादशाह किसी पार्टी में नाचने या किसी चीज का विज्ञापन करने के करोड़ों ले या अरबों, इससे क्या फर्क पड़ता है ? जब बात कीमत की है तो फिर कोई सोचना-विचारना ही क्या । एक व्यक्ति को जज ने किसी को थप्पड़ मारने के अपराध में पचास रुपए के जुर्माने की सज़ा सुनाई । अपराधी ने जज साहब से कहा- 'सर, मेरे पास पचास रुपए छुट्टे नहीं है । बस, यह सौ रुपए का नोट है, दो थप्पड़ का जुर्माना । रख लीजिए' । और इतना कहकर उसने फरियादी को एक थप्पड़ और मार दिया ।

आजकल के युवकों को शायद पता नहीं हो लेकिन आज से कोई साठ बरस पहले बीड़ी का विज्ञापन करने वाले आया करते थे । वे गाँव-गाँव घूमा करते थे । उनकी प्रायः चार आदमियों की टीम हुआ करती थी । जिनमें एक स्त्री वेश में नाचने वाला लड़का, एक हारमोनियम बजाने वाला, एक ढोलक वाला और एक उनका मैनेजर जो उस मज़मे में कमेंट्री करता था, बीड़ी के बण्डल बेचा करता था और सेम्पल की बीडियाँ बाँटता था । आजकल के नायकों, महानायकों या नायिकाओं का यही काम किसी स्टूडियो में या कहीं विदेशी लोकेशन पर होता है ।

यह बात मंडी नामक स्थान से आई है । वैसे मंडी कहीं भी हो सकती है । जहाँ भी बाज़ी लगाने वाले दो जुआरी मिल जाएँ वहीं लास वेगास है । जहाँ भी खरीदने और बेचने वाले मिल जाएँ वहीं मंडी है । फिर वहाँ क्या मोल और क्या भाव ? अपनी-अपनी गरज़ और गाँठ की बात । कभी टके में हाथी बिक जाता है और कभी थैला भरकर रुपए लेकर घूमते रहो, हाथी क्या चूहा तक नहीं मिलता । एक विज्ञापन देखा था जिसमें एक लड़की चिक्लेट नामक मीठी गोली को खाकर पट जाती है और एक लड़की किसी खुशबू विशेष (डियोडरेंट) को सूँघ कर ही पट गई । पचास करोड़ तो बहुत होते हैं ।

५० करोड़ जैसी कम कीमत पर ऐतराज़ करने वाले सच्चे प्रेमी ने प्रेमिका की असली कीमत नहीं बताई । हम तो कीमती चीज को, चाहे फिर वह कीमत कितनी भी हो, बिकाऊ ही मानते हैं । रामचन्द्र शुक्ल जी का एक निबंध है- लोभ और प्रेम । जिसमें वे कहते हैं कि लड्डू का प्रेमी लड्डू ही खाएगा फिर भले ही उसके सामने हज़ार रुपए किलो की पिस्ते की बरफी ही क्यों न रख दी जाए । प्रेम एकनिष्ठता का नाम है । वानप्रस्थ की उम्र में, पच्चीस बरस तक साथ निभा चुकी अपनी पत्नी को छोड़कर एक गोरी मेम के पीछे भगाने वाले और फिर उसे भी तलाक दे देने वाले को, भले ही आप किसी लिहाज में आकर, आप लम्पट भले ही न कहें लेकिन हम उसे प्रेमी तो नहीं ही मान सकते । भले ही दुनिया प्रचार के चक्कर में आकर शाहजहाँ को महान प्रेमी कहती है लेकिन पता होना चाहिए कि उसने पाँच हजार बेगमों का रेवड़ भर रखा था और मुमताज के मरने के बाद भी उसने और कई जवान बेगमों का जुगाड़ किया था ।

मज़े की बात यह है कि यह कीमत बताने वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसे प्रेमिका खरीदने का कोई अनुभव नहीं है । और कहा गया है कि उसने कभी प्रेम किया ही नहीं । बार-बार प्रेम का नाटक करने वाला शायद प्रेम की कीमत नहीं जानता क्योंकि वह तो बाजार भाव के हिसाब से खरीद-बिक्री करता है । पानी की कीमत तो प्यासा ही जानता है । भरे पेट वाले को रोटी का स्वाद नहीं पता । विदुरजी कहते हैं कि भोजन का असली स्वाद तो गरीब को ही आता है ।

लैला के दर्शन के लालच में मजनू उसके घर से थोड़ी ही दूर पर एक पेड के नीचे बैठा रहता था । लैला अपनी नौकरानी से मजनू के लिए कुछ भिजवा दिया करती थी लेकिन मजनू खाने की तरफ देखता ही नहीं था । एक दिन मजनू उस स्थान से उठ कर चला गया । उसकी जगह एक ढोंगी आदमी आकर बैठ गया और लैला के भेजे भोजन पर सेहत बनाने लगा । एक दिन लैला ने नौकरानी से पूछा कि मजनू का क्या हाल है तो नौकरानी ने ज़वाब दिया कि वह तो खा-खाकर बहुत हट्टा-कट्टा हो गया है । दूसरे दिन लैला ने नौकरानी से कहा कि वह मजनू से कहे कि लैला बीमार है । हकीम ने कहा है कि लैला के इलाज के लिए के लिए आपका एक कटोरा खून चाहिए । सुनते ही दो नंबर के मजनू ने कहा- मोहतरमा, हम तो दूध पीने वाले मजनू हैं । खून देने वाला मजनू चाहिए तो देखो वह उस पेड़ के नीचे बैठा है ।

ऐसे दूध पीने वाले मजनुओं को लोग सम्मान नहीं देते ।

यह बात सभी को याद रखनी चाहिए कि सारी लम्पटताओं और सेक्स के खुलेपन का आदी होने के बावज़ूद योरप और अमरीका का सामान्य आदमी आज भी एक पतिव्रत और एक पत्नीव्रत को ही आदर्श मानता है । अमरीका में हर राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पत्नी को साथ लेकर घूमता है जिससे वह यह सिद्ध कर सके कि वह पारिवारिक मूल्यों में विश्वास करता है । यदि क्लिंटन अपने मोनिका प्रसंग के बाद भी चुनाव लड़ सकते तो बहुत बुरी तरह से हारते । अमरीका में प्रकट में अपनी पत्नी से बेवफाई करने वाला, रसिकता के चक्कर में तलाक आदि का चक्कर चला चुका कोई भी व्यक्ति अब तक राष्ट्रपति नहीं चुना गया है । इटली के बर्लुस्कोनी का पतन इसी लम्पटता के चलते हुआ । सारकोजी को भी किसी ने भले ही प्रकट में कुछ नहीं कहा हो लेकिन उसकी और उसकी पत्नी-प्रेमिका की हरकतों को जनता ने कभी पसंद नहीं किया ।

इसलिए हो सके तो प्यार कीजिए अन्यथा जो चाहें करें लेकिन इस शब्द का अवमूल्यन न करें ।

2012-10-30


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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