Dec 5, 2017

सवेरे-सवेरे : शुभ-शुभ

 सवेरे सवेरे : शुभ शुभ 

विकास के मामले में हमारा सीकर भी पीछे नहीं है इसलिए यहाँ के मौसम विशेषज्ञों ने  पाँच सात दिन पहले बताया था कि दिल्ली वाला स्मोग कुछ-कुछ यहाँ भी आ गया है |फिर भी हम सकारात्मक सोच वाले हैं सो अच्छे दिनों के आगमन की तरह आशा लगाए हुए हैं कि स्वच्छ भारत की समस्त गन्दगी और ब्रांडेड राष्ट्रीय योगियों के खींच लेने के बाद भी सीकर की हवा में ज़रूर कुछ न कुछ आक्सीजन बची हुई अवश्य होगी |इसलिए सुबह-सुबह तोताराम के साथ घूमने के लिए निकल जाते हैं क्योंकि मोदी जी ने सातवें वेतन आयोग के अनुसार केंद्रीय विद्यालय के सेवानिवृत्त कर्मचारियों का बढ़ा हुआ मेडिकल भत्ता हज़म कर लिया है इसलिए अब घूमकर ही बुढ़ापे और बीमारियों से लड़ने का सहारा बचा है |

जो समय हमारे घूमने का होता है वही भारतीय गृहणियों का घर और बर्तनों की सफाई का होता है |लेकिनआज भी उनमें इतनी अक्ल और सभ्यता बची हुई है कि वे कूड़ा और बर्तन माँजने के बाद पानी इधर-उधर देखकर ही फेंकती हैं |सो आज तक कोई हादसा नहीं हुआ |लेकिन वाहन वालों में इतनी सभ्यता और धैर्य कहाँ ? वे तो 'विकास' की तरह पगलाए हुए हैं |न अपनी जान की फ़िक्र, न किसी और की जान की परवाह |और गली की स्थति यह है कि जहाँ पानी होना चाहिए वहाँ तो कई-कई दिन तक दिखता नहीं और जहाँ नहीं रुकना चाहिए वहाँ से निकलता नहीं |सो हुआ यूँ कि वीर-जाति के, नए-नए जीप चालक बने एक युवा ने ऐसे ही सड़क पर बने एक जल-संग्रहण केंद्र, जिसे लोक भाषा में गड्ढा कहते हैं, में से होते हुए अपनी जीप दौड़ा दी |

वही हुआ जो होना था |गड्ढे में का कीचड़, न चाहते हुए भी मोबाइल पर आने वाले अवांच्छित मेसेजों, टी.वी. के विज्ञापनों और नेताओं  के जनता के न चाहने पर भी रेडियो पर 'अपनी बात' की तरह हमारे पूरे पायजामे को अभिषिक्त कर गया |सड़क के किनारे चाय की दुकान पर बैठे दो सज्जन तो किसी दुर्घटना की आशंका से हमारे पास दौड़ भी आए |हमें सुरक्षित देखकर बोले- कोई बात नहीं मास्टर जी, पायजामे का क्या है धुल जाएगा |जान बची | सड़क से ज़रा दूर हटकर ही चला करें |सड़क जनता के लिए थोड़े है |और फिर विकसियाये हुए नेता, पगलाए कुत्ते और जीप वाले युवा का कोई ठिकाना नहीं |

तोताराम बोला- कोई बात नहीं |विकास और लोकतंत्र में यह सब होता ही रहता है |जैसे विकास से प्रदूषण फैलता है वैसे ही लोकतंत्र की गतिशीलता से कीचड़ भी उछलता ही है |मोदी जी ने तो पहले २५ अक्टूबर २०१५ को वैशाली,बिहार में और  अब भुज ,गुजरात में २७ नवम्बर २०१७ को कहा ही है कि जितना कीचड़ फेंका जाएगा उतना ही अधिक कमल खिलेगा |हालाँकि २०१५ में बिहार में कमल नहीं खिला लेकिन कमल जब भी खिलेगा, खिलेगा कीचड़ में ही |सो जैसे ही बिहार में भी किसी तरह से महत्त्वाकांक्षा के कीचड़ की व्यवस्था हुई तो कमल खिल ही गया |

कीचड़ में उगने के बावजूद कमल शुचिता का प्रतीक है |कमल पर लक्ष्मी विराजती है |इसलिए अपने पायजामे के इस प्रकार कीचड़ाभिषिक्त होने से दुःखी मत हो |यह तो सुबह-सुबह बहुत शुभ हुआ है | जितना भी और जैसा भी कीचड़ नौसिखिये राहुल गाँधी मोदी जी पर उछाल पा रहे हैं उसके भरोसे ही तो मोदी जी गुजरात में चुनाव जीतने की आशा लगाए हुए हैं |तू भी इस कीचड़ के भरोसे आशा कर सकता है कि शायद सातवाँ पे कमीशन मिल जाए |

हमने कहा- जब कीचड़ के भरोसे ही चुनाव जीता जा सकता है तो मोदी जी क्यों राहुल के गैर हिन्दू और उनकी दादी के फोटो पर गलत केप्शन लगवाकर छपवाने जैसी हरकतों का कीचड़ उछलकर राहुल की जीत का रास्ता खोल रहे हैं |

बोला- कीचड़ तो दूसरे उछालते हैं |मोदी जी को तो विकास से ही फुर्सत नहीं है |और लोग हैं कि गुजरात के एक गरीब के बेटे को नोटबंदी, जी.एस.टी. द्वारा किए गए  विकास का दंड देने पर तुले हुए हैं |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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