Jul 11, 2014

सब मिलकर पी जाएँगे सौ करोड़ का नीर (केन्द्रीय बजट २०१४ : दोहात्मक प्रतिक्रिया)



१. (नदियों के किनारे घाटों के विकास के लिए १०० करोड़ )

संसद-नदिया-घाट पर संत जनों की भीर ।
सब मिलकर पी जाएँगे सौ करोड़ का नीर ॥

२. (नदियाँ जोड़ने के अध्ययन के लिए १०० करोड़ )

नदियाँ तो जुड़ जाएँगीं पर सब चिंता-लीन ।
सौ करोड़ को किस तरह बाँटें बन्दर तीन ॥

३.(युद्ध-स्मारक के लिए १०० करोड़ )

पहले स्मारक बने अथवा पहले युद्ध ।
बँटवारा ही बन गया संकट विकट विशुद्ध ॥

४.(गंगा सफाई के लिए २०३७ करोड़ )

भोले बाबा करेंगे इनको कैसे माफ़ ।
गंगा गन्दी ही रही बजट हो गया साफ़ ॥

५. (अलग-अलग राज्यों में खेल अकादमियां)

सब राज्यों में चल पड़ा खुल्लम-खुल्ला खेल ।
नए बजट के फंड को कैसे डालें पेल ॥

६. ( नए बजट में जूते सस्ते )

जूते सस्ते हो रहे जाने क्या हो हाल ।
डर कर अपनी खोपड़ी जनता रही सँभाल ॥

७. (वरिष्ठ जनों को टेक्स सीमा में छूट )

जब आमद ही नहीं तो व्यर्थ टेक्स में छूट ।
अरुण जेतली कर रहे झूठे यश की लूट ॥

८. (नए बजट में खैनी पर टेक्स बढ़ा )

लालू खैनी रगड़कर टाइम रहे गुज़ार ।
उस पर भी कर लगाकर करते अत्याचार ॥

९. (उत्तर-पूर्व में २४ घंटे 'अरुण-प्रभा' खेल चेनल )

उत्तर-पूरब में रही प्रभा अरुण की फैल ।
हैं विकसित सरकार के सब आभासी खेल ॥

१०. (नए बजट में टी.वी. सस्ते )

टी.वी. सभी प्रकार के सस्ते मिलें, खरीद ।
हलवे से सुन्दर दिखे जिनमें सूखी लीद ॥

१० जुलाई २०१४


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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