May 4, 2017

काम से बड़ा...

  काम से बड़ा ....


जब से सरकारी डेयरी में नकली घी और दूध बिकने के समाचार पढ़े हैं  तब से मन होते हुए भी इन्हें खाने से डर लगने लगा है | फिर भी डाक्टर ने एक मशीन पर दौड़ाकर कह दिया- मास्टर जी, चिकनाई कम खाया कीजिए और घूमा कीजिए |आपके ह्रदय की धमनियाँ सिकुड़ गई हैं |हमने कहा- डाक्टर, यह घी खाने से नहीं बल्कि विकास और जुमलों के झटके खाने से हुआ है |लेकिन कोई बात नहीं, एक किलोमीटर घूम भी लिया करेंगे |

आज जैसे ही तोताराम के साथ घूमने निकले तो ऑक्सीजन तो खैर क्या मिलनी थी, मंडी के कोने पर पहुँचते ही होटल के खाने की जूठन और गन्ने के रस निकले हुए भूसे के सड़ने से दारू और दवा का एक मिलाजुला भभका आया |हमने तो नाक पर हथेली रख ली लेकिन तोताराम ने बड़ी श्रद्धा से नारा लगाया- स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत |

थोड़ा आगे चले तो प्राइवेट बसों के स्टेंड पर चाय वालों ने पिछले दिन के डिस्पोजेबल गिलास, नमकीन और गुटकों के पेपर इकट्ठे करके जलाने का प्रातःकालीन यज्ञ शुरू कर दिया था |हमें खाँसी चलने लगी लेकिन तोताराम ने फिर एक नारा लगा दिया- स्वच्छ वायु : लम्बी आयु |

मोदी जी ने कहा है कि गुस्सा करो, गन्दगी पर गुस्सा करने से ही गन्दगी मिटेगी |एक बार करके भी देख लिया लेकिन गन्दगी में कोई अंतर नहीं आया | आज फिर हमें गुस्सा आ गया, लेकिन इस बार गन्दगी पर नहीं, तोताराम पर, बोले- तोताराम, यह क्या ? हम तो धुएँ और बदबू के मारे मरे जा रहे हैं और तुझे चुनावी मौसम की तरह नारे सूझ रहे हैं |

बोला- मुझे चुनावों से क्या लेना ? मैं तो ब्रिटिश शोधकर्त्ताओं की आज्ञा का पालन कर रहा हूँ |उनका कहना है कि यदि हमें तनाव से बचाना है तो हमें अपनी डिक्शनरी से 'तनाव' शब्द को ही निकाल देना चाहिए |तनाव शब्द के उच्चारण से भी तनाव होता है |नेपोलियन की डिक्शनरी में यदि 'असंभव' शब्द तो वह ऐसे असंभव काम कर ही नहीं सकता था | |मेरी समस्या यहाँ है कि मुझे अपनी डिक्शनरी से तनाव, गन्दगी,महँगाई, निराशा, भूख, भय, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, पराजय, असफलता आदि शब्द निकलवाने हैं | सुना है एक प्रकाशक ऐसी डिक्शनरियाँ छाप रहा है जिसमें वे ही शब्द होंगे जो आप चाहेंगे |मोदी जी और अमित शाह भी एक ऐसी ही डिक्शनरी छपवा रहे हैं जिसमें कांग्रेस शब्द होगा ही नहीं |और भी शब्दों के वे अर्थ होंगे जो देश के लिए लाभदायक हों जैसे कसाब का अर्थ कसाई नहीं बल्कि कांग्रेस, समाजवादी और बसपा होता है |वर्णमाला में में ग से गाँधी नहीं बल्कि गोडसे होगा |

याद रख, हम जो सोचते हैं, बोलते हैं वही हो भी जाता है तभी कहा गया है- राम से बड़ा राम का नाम |

हमने कहा- तेरी बात तो ठीक है |इसी तरह काम से बड़ा काम का नाम |तभी लोग काम करने की बजाय काम का विज्ञापन अधिक कर रहे हैं |जगह-जगह काम की चर्चा अधिक कर रहे हैं |इतनी चर्चा सुनकर यह लगता है कि कहीं हमारी ही आँखें तो खराब नहीं हो गई ? विकास हो रहा हो और हमें दिखाई नहीं दे रहा हो  | वरना वाट्सअप वाली युवा पीढी झूठ थोड़े ही बोल रही है  | हो सके तो किसी दिन टाइम निकालकर ज़रा, अपनी डिक्शनरी देखकर बताना कि उसमें सातवाँ वेतन आयोग है कि नहीं ? यदि है तो उसे भी अपनी माला में शामिल कर लें अन्यथा विकासाय स्वाहा, नरेंद्राय स्वाहा, अरुण जेटल्यायै: स्वाहा कर दें |

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