नामांकन की नौटंकी
तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ठीक है, बुढ़ापे में घर का कंट्रोल बच्चों के हाथों में चला जाता है लेकिन किसी बुजुर्ग को इस तरह दुःखी करना भी कहाँ की शराफत है ?
क्यों क्या हुआ ? बेटे-बहू ने कुछ कह दिया क्या ?- हमने सहानुभूति प्रकार करने के उद्देश्य से पूछा |
बोला- अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं और पेंशन की चादर से बाहर पैर निकालता नहीं ? अपन ने कभी कोई उम्मीद पाली ही नहीं |अपेक्षा ही सब दुखों का कारण होता है |फिर संसार तो नाम ही सरकने का |पता नहीं सरक-सरक कर किस ब्लेक होल में चली जाती है दुनिया ? मैं तो ताऊ की बात कर रहा था |
हमने पूछ-ताऊ को क्या हुआ ?
बोला- हुआ क्या ? अरे, जब बन्दे को चबूतरे ही बैठा दिया तो अब दुनिया को दिखाने के लिए जबरदस्ती नए कपड़े पहनाकर घोड़ी के आगे नचाकर क्यों जुलूस निकाल रहे हो ?
हमने कहा- तोताराम, साफ-साफ कह, हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है |
तोताराम ने हमारे सामने नामांकन भरने के लिए जाते सभी छोटे-बड़े सेवकों के बीच सर झुकाए चल रहे अडवानी जी का फोटो रख दिया और कहने लगा- अरे, जब तुम्हें पता है, तुम्हारे पास बहुमत है, तुम्हरी जीत पक्की है तो इस नौटंकी की क्या ज़रूरत है ?
और यदि पुलिस के फ्लेग मार्च की तरह शक्ति प्रदर्शन करना ही है तो करो लेकिन बेचारे बुजुर्ग को शांति से घर में पड़ा रहने देते | किसी परित्यक्ता को करवा चौथ के व्रत में घसीटना कौन सा प्रेम या सम्मान है ? यह तो उसके घावों पर नमक छिड़कना है |जच्चा को कुआँ-पूजन के लिए ले जा रहे हो, ले जाओ लेकिन किसी बाल-विधवा को उसमें शामिल करके उसका दिल क्यों जलाते हो ?
हमने कहा- घर के बुजुर्ग हैं, इतने बड़े काम में उनकी मौजूदगी से शोभा बढ़ेगी |
बोला- कोई शोभा-वोभा का मामला नहीं है |ताऊ तो बेचारे एक बार थोड़ा पिछड़े भी थे कि खिसक लें लेकिन लोगों ने फिर आगे कर लिया |बार-बार उनके फोटो खींचने का मतलब यही है कि फिर कभी यह न कह दें मेरी सहमति नहीं थी |देखो, रोजों के समय इस्लामिक देशों में दिन के समय खाने-पीने के सामानों की दुकानें बंद रखी जाती है |बड़ी मुश्किल से धर्म का निर्वाह करने वाले का धर्म-भ्रष्ट करने की कोशिश क्यों की जाए ?
हमने कहा- जब ताऊ ने कुछ नहीं कहा तब तुझे क्या परेशानी है ? आजकल तो पंचायत या छात्र संघ का सदस्य नामांकन भरने जाता है तो जुलूस में बीस जीपें होती हैं | यह तो राष्ट्रपति का नामांकन पत्र है |खैरियत है, रास्ते में गलीचा नहीं बिछाया गया, हेलिकोप्टर से फूल नहीं बरसाए गए, जी.एस.टी. बिल की तरह इस नामांकन को तीसरी आज़ादी का नाम नहीं दिया, टी.वी. पर आँखों देखा हाल प्रसारित नहीं किया |वरना आज के दिन जो चाहे करने की स्थिति में हैं |आखिर ३० साल बाद किसी पार्टी को देश में पहली बार बहुमत मिला है, भले ही वोट ३१% मिले हों |
बोला- मास्टर, एक बात बता |जब पार्टी में बड़े-बड़े काबिल लोग भरे पड़े हैं तो नामांकन पत्र के ये चार सेट भरने का क्या अर्थ है ?
हमने कहा- यह तो सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है क्योंकि अति-उत्साह में किसी से भी कोई बड़ी चूक सो सकती है |आदमी जल्दी में गुलाबजामुन की जगह मींगणे भी खा जाया करता है |तूने पढ़ा नहीं कि बहुत लम्बे प्रवास के बाद प्रिय के आने का समाचार सुनकर नायिका जल्दी और उत्साह में आँखों में महावर और पैरों में काजल लगाने लग जाती है |
तोताराम ने एक बार फिर हमारे सामने नामांकन-जुलूस की फोटो रखी और बोला- एक तस्वीर सौ शब्दों के बराबर होती है |बस, एक बार ताऊ की झुकी नज़र और उदास सूरत को फिर ध्यान से देख ले |और कह कि सब ठीक है |
हमने कहा- तोताराम, आशा बलवती राजन....अभी 'भारत-रत्न' का चांस बाकी है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ठीक है, बुढ़ापे में घर का कंट्रोल बच्चों के हाथों में चला जाता है लेकिन किसी बुजुर्ग को इस तरह दुःखी करना भी कहाँ की शराफत है ?
क्यों क्या हुआ ? बेटे-बहू ने कुछ कह दिया क्या ?- हमने सहानुभूति प्रकार करने के उद्देश्य से पूछा |
बोला- अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं और पेंशन की चादर से बाहर पैर निकालता नहीं ? अपन ने कभी कोई उम्मीद पाली ही नहीं |अपेक्षा ही सब दुखों का कारण होता है |फिर संसार तो नाम ही सरकने का |पता नहीं सरक-सरक कर किस ब्लेक होल में चली जाती है दुनिया ? मैं तो ताऊ की बात कर रहा था |
हमने पूछ-ताऊ को क्या हुआ ?
बोला- हुआ क्या ? अरे, जब बन्दे को चबूतरे ही बैठा दिया तो अब दुनिया को दिखाने के लिए जबरदस्ती नए कपड़े पहनाकर घोड़ी के आगे नचाकर क्यों जुलूस निकाल रहे हो ?
हमने कहा- तोताराम, साफ-साफ कह, हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है |
तोताराम ने हमारे सामने नामांकन भरने के लिए जाते सभी छोटे-बड़े सेवकों के बीच सर झुकाए चल रहे अडवानी जी का फोटो रख दिया और कहने लगा- अरे, जब तुम्हें पता है, तुम्हारे पास बहुमत है, तुम्हरी जीत पक्की है तो इस नौटंकी की क्या ज़रूरत है ?
और यदि पुलिस के फ्लेग मार्च की तरह शक्ति प्रदर्शन करना ही है तो करो लेकिन बेचारे बुजुर्ग को शांति से घर में पड़ा रहने देते | किसी परित्यक्ता को करवा चौथ के व्रत में घसीटना कौन सा प्रेम या सम्मान है ? यह तो उसके घावों पर नमक छिड़कना है |जच्चा को कुआँ-पूजन के लिए ले जा रहे हो, ले जाओ लेकिन किसी बाल-विधवा को उसमें शामिल करके उसका दिल क्यों जलाते हो ?
हमने कहा- घर के बुजुर्ग हैं, इतने बड़े काम में उनकी मौजूदगी से शोभा बढ़ेगी |
बोला- कोई शोभा-वोभा का मामला नहीं है |ताऊ तो बेचारे एक बार थोड़ा पिछड़े भी थे कि खिसक लें लेकिन लोगों ने फिर आगे कर लिया |बार-बार उनके फोटो खींचने का मतलब यही है कि फिर कभी यह न कह दें मेरी सहमति नहीं थी |देखो, रोजों के समय इस्लामिक देशों में दिन के समय खाने-पीने के सामानों की दुकानें बंद रखी जाती है |बड़ी मुश्किल से धर्म का निर्वाह करने वाले का धर्म-भ्रष्ट करने की कोशिश क्यों की जाए ?
हमने कहा- जब ताऊ ने कुछ नहीं कहा तब तुझे क्या परेशानी है ? आजकल तो पंचायत या छात्र संघ का सदस्य नामांकन भरने जाता है तो जुलूस में बीस जीपें होती हैं | यह तो राष्ट्रपति का नामांकन पत्र है |खैरियत है, रास्ते में गलीचा नहीं बिछाया गया, हेलिकोप्टर से फूल नहीं बरसाए गए, जी.एस.टी. बिल की तरह इस नामांकन को तीसरी आज़ादी का नाम नहीं दिया, टी.वी. पर आँखों देखा हाल प्रसारित नहीं किया |वरना आज के दिन जो चाहे करने की स्थिति में हैं |आखिर ३० साल बाद किसी पार्टी को देश में पहली बार बहुमत मिला है, भले ही वोट ३१% मिले हों |
बोला- मास्टर, एक बात बता |जब पार्टी में बड़े-बड़े काबिल लोग भरे पड़े हैं तो नामांकन पत्र के ये चार सेट भरने का क्या अर्थ है ?
हमने कहा- यह तो सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है क्योंकि अति-उत्साह में किसी से भी कोई बड़ी चूक सो सकती है |आदमी जल्दी में गुलाबजामुन की जगह मींगणे भी खा जाया करता है |तूने पढ़ा नहीं कि बहुत लम्बे प्रवास के बाद प्रिय के आने का समाचार सुनकर नायिका जल्दी और उत्साह में आँखों में महावर और पैरों में काजल लगाने लग जाती है |
तोताराम ने एक बार फिर हमारे सामने नामांकन-जुलूस की फोटो रखी और बोला- एक तस्वीर सौ शब्दों के बराबर होती है |बस, एक बार ताऊ की झुकी नज़र और उदास सूरत को फिर ध्यान से देख ले |और कह कि सब ठीक है |
हमने कहा- तोताराम, आशा बलवती राजन....अभी 'भारत-रत्न' का चांस बाकी है |
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Achcha byang aur kataksh padhne ko mila is liye aapka dhanyawad.
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