हरियाणा का ट्रंप विलेज
हमने कहा-तोताराम, सुलभ शौचालय वाले बिहारी बाबू बिन्देश्वरी दुबे जी ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मरोड़ा नामक गाँव को गोद लिया है |अब वे यहाँ शौचालय बनवाने और विकास करने का काम करेंगे |वैसे आज के दिन यदि घर में शौचालय है तो विकास होकर ही रहेगा |यह बात और है कि मल को बहाने के लिए तो दूर, पीने के लिए भी पानी हो या न हो | वैसे गाँधी जी कहा करते थे कि एक फिट का गड्ढा खोदकर उसमें किया त्यागा गया मल एक सप्ताह में ही खाद बन जाता है जब कि आजकल घरों में बनने वाले शौचालयों में मल को खाद बनने में बहुत समय लगता है |लेकिन आज तो किसी भी जुमले के खिलाफ कुछ सोचना भी देशद्रोह है |
वैसे बिन्देश्वरी जी का इस गाँव का नाम 'ट्रंप विलेज' रखने वाला आइडिया है बहुत बढ़िया |इस देश में भले ही किसी कवि की बढ़िया से बढ़िया पुस्तक को समीक्षा के लिए जगह न मिले लेकिन अटल चालीसा और लालू चालीसा के लेखकों को अखबार के कई कालम मिल जाते हैं |करोड़ों रूपए खर्च करके मंदिर बनवाने वालों को विज्ञापन देना पड़ता है जब कि अटल, सचिन, अमिताभ,सोनिया के मंदिर बनाने की घोषणा मात्र से ही मीडिया में जगह मिल जाती है |
बोला- सुरक्षा की दृष्टि से यह टोटका ज़रूरी है |आजकल जब कृषि भूमि पर बिना सरकारी मंजूरी के कोई कॉलोनी काटी जाती है तो उसका नाम सत्ताधारी दल के नेता के नाम पर रखा जाता है जिससे कि बिजली पानी मिलाने में सुविधा रहे और टूटने का भी भय नहीं रहे |देश में इस प्रकार की हजारों कोलोनियाँ हैं |कुछ जातियों की वीरता के कारण लोग उनसे उलझाना नहीं चाहते इसलिए कई लोग अपने वाहन पर अपना जाति सूचक शब्द भी लिखवाते हैं |कुछ लोग किसी गाँव की पंचायत या जाति की पंचायत के तहसील स्तर के भूतपूर्व पदाधिकारी भी होंगे तो अपने वाहन पर लिखवाएँगे और फिर आशा करेंगे कि उनसे टोल टेक्स नहीं लिया जाए |कुछ लोग वैसे ही सत्ताधारी पार्टी का झंडा अपनी जीप पर लगा लेते हैं |यह वैसे ही है जैसे कोई किसी मुल्ला, मौलवी या बाबाजी का ताबीज अपने बच्चे के गले में लटका दे |यदि किसी के पास विज्ञापन देने के लिए पैसे हों और वह किसी दिन अपने अच्छी तरह दस्त लगने का आभार प्रदर्शक विज्ञापन दे तो प्रधान मंत्री से लेकर अपने वार्ड पार्षद तक का फोटो छापेगा |यह लोकतंत्र की नव-ग्रह शांति है |किसी ज़मीन पर नाजायज़ कब्ज़े के लिए भी तो सबसे सरल उपाय है उस पर कोई मंदिर-मस्जिद बना देना |
हमने कहा- ट्रंप इस समय दुनिया के सबसे ताकतवर देश के महामहिम है और हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं तो हमारा नामकरण ट्रंप से कम पर कैसे हो सकता है |अच्छी बात यह है कि दुबे जी ने साफ-साफ बता दिया कि उन्होंने तो यह नाम किसी सहायता के लालच में रखा है |क्या पता ट्रंप के नाम से कोई फंड, चंदा मिल जाए |
तोताराम ने उत्तर दिया- लेकिन दुबे जी भूल रहे हैं |ट्रंप नेता कम और व्यापारी ज्यादा हैं |वे फालतू बातों में विश्वास नहीं करते |उन्होंने तो संयुक्त राष्ट्र संघ तक के लिए कह दिया कि यह फालतू की गप्प बाज़ी का अड्डा है | इसीलिए उन्होंने पेरिस समझौते को भी नकार कर दिया |धंधे वाले का भगवान पैसा है |इसलिए हमें नहीं लगता कि दुबे जी को कुछ चंदा-चिट्ठा मिलेगा |हाँ, नए आइडिया के चक्कर में बिना पैसे के ही मीडिया कवरेज ज़रूर मिल गया |
हमने कहा- वैसे दुबे जी निगाह दोनों तरफ रखते हैं तभी कुछ सफाई करने वाली महिलाओं को पीली साड़ी पहनाकर, कुछ मन्त्र रटाकर भारतीय संस्कृति के साथ-साथ उनका भी सशक्तीकरण कर दिया |अंतर्राष्ट्रीय नहीं तो राष्ट्रीय टोटका ही काम आ जाए |
वैसे तोताराम, यदि मोदी जी वाली सामासिक शब्दावली में कहें तो क्या इस 'ट्रंप विलेज' का नाम 'ट्रंप टाउन' नहीं हो सकता ?
बोला- हरियाणा के हिसाब से 'ट्रंप खुर्द' या 'ट्रंप कलाँ' भी क्या बुरा है |बिहारी अंदाज़ में 'ट्रंप टोला' भी तो हो सकता है |
हमने कहा- और यदि इस ट्रंप विलेज में बनने वाले शौचालयों का नाम 'ट्रंप टॉयलेट' रख दिया जाए, बैठने की सीट योरपियन किस्म की हो, धोने के लिए पानी की जगह पोंछने वाला कागज़ रखा जाए और वहीं पढ़ने के लिए पुस्तकें-अखबार रहें तो कैसा रहे ?
बोला-वैसे एक उत्सुकता है, क्या उनमें मुसलमानों का प्रवेश होगा ?
हमने कहा-नो पोलिटिकल बातें |
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