Sep 13, 2017

जहँ-जहँ चरण पड़े संतान के.....

 जहँ-जहँ चरण पड़े संतन के... 

हमारे सामने अखबार रखते हुए तोताराम इतना नज़दीक आगया जितना कि नीति, सिद्धांत और जनहित की रक्षा के लिए नीतीश जी भाजपा के निकट आ गए हैं |हमने पूछा- आज कोई ख़ास बात है क्या ?

बोला- ख़ास ही नहीं, बहुत ख़ास है | तू हमेशा भाजपा और उसकी पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना करता रहता है | उन्हें मनुवादी, सांप्रदायिक, जातिवादी और कट्टर बताता रहता है | लेकिन आजतक किस धर्मनिरपेक्ष सरकार ने कबीर का स्मारक बनवाया ? जब कि भाजपा ने यू.पी. में आते ही बनारस में दस करोड़ रुपए की लागत से कबीर का म्यूजियम बनवाने के प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है |

हमने कहा- पंजाब के चुनावों से पहले वहाँ दलित से सिक्ख बने रविदासियों के आदिगुरु रैदास का स्मारक बनाने के लिए भी बड़े पॅकेज की घोषणा की थी लेकिन चुनाव हारते ही रैदास जी ठंडे बस्ते में |सो कबीर जी के म्यूजियम का भी वही हाल होगा |

बोला- नहीं, ऐसी बात नहीं है |उज्जैन में कुम्भ मेले में अन्य संतों के साथ बनारस के कबीर चौरा के गादीपति को भी बुलाया था |और अब उसी कबीर-भक्ति को आगे बढ़ाते हुए उनके म्यूजियम को भी सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी |

हमने कहा- यह सैद्धांतिक मंजूरी, कबीर के सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि कबीर के सिद्धांतों की हत्या है | 

बोला- तुझे तो हमारी पार्टी के किसी भी काम में कोई अच्छाई नज़र आती ही नहीं |कुछ करो तो मुश्किल और कुछ न करो तो मुश्किल |

हमने कहा- कबीर और रैदास ने कभी कोई स्मारक, मंदिर, अखाड़ा और आश्रम नहीं बनाया |लोग तो हरामखोरी के लिए साधु का बाना धारण करते हैं | लेकिन कबीर कहते हैं-
मूँड मुँडाए तीन गुण मिटी टाट की खाज |
बाबा बाज्या जगत में मिला पेटभर नाज ||
तुलसी भी कहते हैं-
नारि मुई घर सम्पति नासी |
मूँड मुण्डाय भये सन्यासी ||

कबीर और रैदास दोनों ने अपनी दिन भर की कमाई से खुद भोजन करके और अतिथियों को खिलाकर हरिभजन किया है |रैदास कहते हैं- मन चंगा तो कठौती में गंगा |
और कबीर भी कहते हैं- 

मौकों कहाँ ढूँढे बन्दे मैं तो तेरे पास में |
ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में |
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबा-कैलाश में |

ऐसे निर्गुण, सीधे-सच्चे संतों को स्मारक, म्यूजियमों में कैद करना उनके सिद्धांतों की हत्या नहीं तो और क्या है ? जब सरकारी पैसे से अड्डा बनेगा तो चार ठलुए वहाँ बैठक जमाएँगे, पुरस्कार-सम्मान और पद की राजनीति करेंगे | कबीर चौरा में तो पहले से ही कब्ज़ा किए हुए लोग भक्तों से कबीर की खडाऊँ और माला के आगे मत्था टिकवाकर चढ़ावा ले रहे हैं |अब पता नहीं, सरकार कबीर का और क्या तमाशा बनाना चाहती है ? कभी सोचा हैं, कबीर जिन लफंगों से धर्म को बचाना चाहते थे अब उन्हीं के हाथों में कबीर को सौंपने से उनकी आत्मा को कितना कष्ट होगा ?

बोला- तो क्या अपनी संस्कृति और परंपरा को ऐसे ही अनारक्षित छोड़ दें ?

हमने कहा- नोट और वोट की भूखी सरकारों और व्यक्तियों ने जब-जब धर्म, शिक्षा, सेवा, संस्कृति, भाषा, भाईचारा, गाय, गंगा आदि को बचाने धंधा शुरू किया तब-तब ये और अधिक संकट में फँस गए |   

सावधान रहें कि यह 'कबीर-चौरा-प्रेम' कबीर को एक क्षेपक न बना दें  |




   


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