Oct 14, 2017



 प्रधान मंत्री बनने की ख्वाहिश

( आदरणीय प्रणव मुखर्जी ने एक टी.वी. इंटरव्यू में कहा- मेरी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं, और फिर मुझे हिन्दी भी तो नहीं आती- ८ जून २००५ . यही बात अब उनकी पुस्तक के विमोचन पर भी आई है |उस समय उनके नाम लिखे हमारे एक पत्र का आनंद लें और पुरानी यादें ताज़ा करें |)

आदरणीय प्रणव दा,
नोमोस्कर । आपने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू में बताया कि आपकी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं है । कहीं ऐसा तो नहीं कि अंगूर खट्टे हैं । पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप भी हमारी तरह पक्के कांग्रेसी हैं । सदा से दिल्ली में रहे हैं अतः दिल्ली से दूर होने का तो प्रश्न ही नहीं । यह बात और है कि लोकसभा कम और राज्य सभा के माध्यम से अधिक आए हैं जैसे कि गुलाम नबी आजाद, नज़मा हेपतुल्ला, नटवर सिंह और मन मोहन जी आदि । जहाँ तक सर्वस्वीकार्यता की बात है तो उसे छोड़िए । पश्चिम में पहले डेटिंग होती है फिर प्रेम और संभव हो तो शादी वरना ट्राई एंड ट्राई अगेन । भारत में तो पहले शादी होती है और उसके बाद प्रेम भी हो ही जाता ही । उसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद रोज-रोज टीवी और अखबारों में देखते-देखते जनता किसी को भी स्वीकार कर ही लेती है ।

दूसरी बाधा आपने हिन्दी न जानने की बताई । सो सीखने की कोई उमर नहीं होती जैसे कि लम्पटता और चमचागीरी की कोई उमर नहीं होती । विदेशी मूल की होते हुए भी सोनिया जी अब बिना कागज के भाषण देने लगी हैं । जय ललिता तक ने हिन्दी फिल्मों में काम किया है और एक बार तो उनके मुखारविंद से हमने हिन्दी का एक वाक्य भी सुना था । प्रयत्न करने पर तो जड़मति भी सुजान हो जाता है फिर आप तो पढ़े-लिखे, विद्वान आदमी हैं । यदि शुरू-शुरू में आत्मविश्वास की कमी लगे तो हम आपको ट्यूशन भी पढ़ा सकते हैं । आप रोजाना हेलिकोप्टर से सीकर आ जाइएगा या फिर एक हेलिकोप्टर हमें दिलवा दीजिये । हम रोजाना सीकर से अप-डाउन कर लिया करेंगे । जब मुलायम सिंह जी रक्षा मंत्री थे तो रोजाना डिफेंस के प्लेन से घर की छाछ मँगवाया करते थे । लालू जी के लिए रोजाना पटना से सत्तू, खैनी, झींगा और घर की भैंस का दूध आता ही है । वैसे वे चाहें तो अपनी भैंस संसद में भी बाँध सकते हैं । ताऊ देवीलाल जी भी तो राष्ट्रपति भवन में अपनी भैंस बाँधते ही थे  । हम आप से ट्यूशन का कुछ नहीं लेंगे बस आप तो दिल्ली में एक दो कवि सम्मलेन दिलवा दीजियेगा । हो सके तो एक-आध क्रेट व्हिस्की का भी मिल जाए तो जीवन सरलता से गुजरने लगे क्योंकि आजकल सौ चक्कर लगाने पर भी जो काम नहीं होता वह दारू के एक अद्धे में हो जाता है । कहा भी है- सौ दवा एक दारू ।

इस देश में सदैव से ही अंग्रेजी का वर्चस्व रहा है । जब हमने अपने एम.ए. हिन्दी में प्रथम श्रेणी और मेरिट में आने की सूचना पिताजी को दी तो वे कहने लगे- ठीक है, पर यदि अंग्रेजी में एम.ए.करते तो बात कुछ और ही होती । अब हमारे राजस्थान के शिक्षा मंत्री, राष्ट्रीयता और स्वदेशी के भक्त घनश्याम जी भाई साहब भी अंग्रेजी के गुण गाने लगे हैं । पिताजी तो खैर, अब इस दुनिया में नहीं हैं पर घनश्याम जी को तो हम कह ही सकते हैं कि देखो, हिन्दी में भी ट्यूशन का स्कोप है और वह भी भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री और भारत के भावी प्रधान मंत्री की ट्यूशन का ।

आप महान हैं कि आप प्रधानमंत्री बनाए जाने की ख्वाहिश नहीं रखते वरना तो हर लल्लू-पंजू सांसद की यही इच्छा है । न बन पाए वह और बात है । इरादे तो बुलंद रखने ही चाहियें । यदि हिन्दी की ही बात है तो निःसंकोच इरादा बना लीजिये ।

हिन्दी कोई कठिन भाषा नहीं है । और फिर यह तो अपनी राष्ट्र भाषा है । और जो कुछ राष्ट्रीय हो जाता है उसकी दुर्गति करने का प्रत्येक देशवासी को पूरा-पूरा अधिकार है । अब देखिये ना, राष्ट्रीय पक्षी बनने के बाद मोर ज़्यादा मरने लगे हैं । राष्ट्रीय पशु बनने के बाद बाघ लुप्त होने के कगार पर हैं । हिन्दी का भी यही हाल है । जिसकी जो मर्ज़ी आये बोले, लिखे । शृंगार को श्रंगार, दवाइयाँ को दवाईयाँ, नीरोग को निरोग, अपेक्षित को अपेक्षाकृत लिखें । संबोधन में 'भाइयो' होता है पर अधिकतर लोग 'भाइयों' बोलते हैं । धर्मेन्द्र की तरह 'हम जाइन्ग','दारू पीइंग' भी बोल सकते हैं । स्पष्ट को 'सपष्ट' बोलने पर कोई चेलेंज नहीं कर सकता । हाँ, अंग्रेजी में गलती नहीं होनी चाहिए । हिन्दी के मामले में आपको एक सलाह दें कि 'श' का ज़्यादा प्रयोग न करें, बंगला की तरह ।

और हाँ, अंत में एक नितांत निजी बात कि यदि वास्तव में ही आप प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते तो धीरे से हमारा नाम सरका दीजियेगा । हम हिन्दी में एम.ए.हैं और चालीस बरस हिन्दी पढ़ा चुके हैं । जहाँ तक हिन्दी की बात है तो वह तो आपकी और हमारी ही क्या, सारे देश की ही हो रही है ।

८-६-२००५

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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