हैप्पी नोटबंदी, जेतली जी
जेतली जी
हैप्पी नोटबंदी | कुछ लोग नोटबंदी के इस पावन दिन को भी 'काला-दिवस' के रूप में मना रहे हैं |क्या किया जाए, कुछ लोग मातम के मसीहा होते हैं |वे किसी भी स्थिति में में दुखी होने का कोई न कोई बहाना निकाल ही लेते हैं |
दार्शनिक कहते हैं जीवन एक उत्सव है |आदमी को हर हाल में खुश रहना चाहिए, मस्ती में मस्त रहना चाहिए चाहे बस्ती में आग ही क्यों न लगी हुई हो |हमारी संस्कृति में तो शव-यात्रा तक को एक विशिष्ट फंक्शन बना देते हैं |बनारस में श्मशान में ही इस यात्रा में जाने वालों को रसगुल्ले और रबड़ी खिलाए जाते हैं |खाते-पीते रहने से गम कम व्यापता है |इसीलिए ज्ञानी लोग ख़ुशी और ग़म दोनों सेलेब्रेट करते हैं |
हो सकता है, कुछ लोगों को नोटबंदी से कष्ट हुआ होगा | हमें,आपको और मोदी जी जैसे सच्चे औरअच्छे लोगों को कोई कष्ट नहीं हुआ |जो काला धंधा करने वाले, आतंकवादी, रिश्वतखोर लोग थे उन्हें तो कष्ट होना ही था |उन्हीं को तो सीधा करने के लिए यह अभूतपूर्व और लोकहितकारी कदम उठाया गया था |
हम तो लोक-कल्याण के इस पावन दिन को आपके साथ मनाने के लिए दिल्ली आने वाले थे लेकिन नहीं आ सके |बात यह है कि कुछ तो उम्र बढ़ने से दवा का खर्चा बढ़ गया है और कुछ जी.एस.टी. में चक्कर में चीजों के दाम बढ़ गए हैं |नियमित सेवा वाले स्टाफ को तो सातवें पे कमीशन के अनुसार वेतन दे दिया लेकिन राष्ट्र हित और देश के द्रुत विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए हम रिटायर्ड लोगों को पे कमीशन नहीं दिया |तीन चार हजार रुपए पेंशन में बढ़ने वाले थे सो नहीं बढे |
वैसे हमें कोई शिकायत नहीं है |लोग तो राष्ट्रहित में अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं |हमसे तो आपने सातवें पे कमीशन के एरियर और फिक्सेशन का ही बलिदान लिया है |गीता सार में कहा भी जाता है-
'क्या ले के आए थे और क्या लेकर जाएँगे' | जिन प्रभावशाली लोगों के ऊपर वाले स्विस बैंक में खाता है, उनकी बात और है |हमसे तो यहाँ के पेंशन खाते में मिनिमम बेलेंस ही मुश्किल से मेंटेन होता है |
लोग कह सकते हैं कि नोटबंदी का क्या उत्सव मनाना ? क्यों भई, क्या शादी की वर्षगाँठ नहीं मनाते ? किसी मृतात्मा का श्राद्ध नहीं करते ? हर क्षण जीव मृत्यु की और बढ़ता जा रहा लेकिन फिर भी उसका जन्म दिन मनाते हैं |पर मीरा जैसी निराशावादी कवियत्री कहती है-
बढ़त पल-पल, घटत छिन-छिन
जात न लागे बार |
गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में अपनी कमियों का अपनी अच्छाइयों से अधिक बखान किया है |हिंदी के प्रसिद्ध लेखक बाबू गुलाब राय ने तो 'मेरी असफलताएं' नाम से एक पूरी पुस्तक ही लिख मारी |सभी के जीवन में सफ़लताएँ-असफलताएँ होती ही हैं |न तो उनसे घबराना चाहिए और न ही उन्हें छुपाना चाहिए |हर काम में कुछ गुण-दोष छुपे हुए होते हैं इसलिए हम प्रत्येक दिन और उत्सव को अपना और अपने कामों का मूल्यांकन करने का दिन बना सकते हैं |हमारा तो मानना है कि आदमी को अपने पिटने की भी वार्षिकी मनानी चाहिए |इससे आदमी को अपनी सहनशक्ति की याद बनी रहती है |क्षमताओं का विश्वास बना रहे |
कुछ लोग कहते हैं कि नोटबंदी के कारण अर्थ व्यवस्था में धीमापन आ गया |पता नहीं, उन्हें क्यों देश में बढ़ रहे अरबपतियों की संख्या, नित नई ऊँचाइयों पर चढ़ता हुआ सेंसेक्स और सौ करोड़ मोबाइल उपभोक्ता दिखाई नहीं देते ?
सभी तो मंत्री और बड़े आदमी होते नहीं कि नोटों को छुए बिना ही सारे काम हो जाएँ |सामान्य लोग जाने कैसे-कैसे धूल-मिट्टी और पसीने से सने हाथों से नोटों को छूते हैं | ऐसे में नोटों के गंदे होने और यहाँ तक कि काले होने की भी संभावना बढ़ जाती है |ऐसे में नोटों को बार-बार बदलते रहना चाहिए |स्वच्छ भारत अभियान की तरह नोटों की स्वच्छता के लिए इतना भगीरथ प्रयत्न आज तक किसी भी भारतीय नेता ने नहीं किया |और तो और अमरीका के इतिहास में भी कोई ऐसा राष्ट्रपति नहीं हुआ जो ऐसा साहसी और लोकहितकारी कदम उठा सकता |आप सब जिन्होंने भी यह सत्कर्म किया है, वे बधाई के पात्र हैं |
सारे नोट पुनः बैंकों में आकर सफ़ेद और नए हो गए हैं , बधाई |
हमें तो महिने में दो-चार दिन के लिए ही सही, नोट छूने का अवसर मिलता है तो नए-नए और करारे नोट छूकर देश के विकास और 'नए भारत' की अनुभूति होती है |
इस सन्दर्भ में एक निवेदन है कि नोटबंदी के कारण कालेधन वालों, रिश्वतखोरों, देशद्रोहियों, आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों की कमर टूट गई है |ये देश में जगह-जगह रास्तों में घिसटते फिर रहे हैं | हो सके तो इन दुष्टों को पूर्णतः समाप्त करने और सड़क की सफाई के लिए फिर नोटबंदी का एक और राउंड हो जाए |
क्या ख्याल है ?
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
जेतली जी
हैप्पी नोटबंदी | कुछ लोग नोटबंदी के इस पावन दिन को भी 'काला-दिवस' के रूप में मना रहे हैं |क्या किया जाए, कुछ लोग मातम के मसीहा होते हैं |वे किसी भी स्थिति में में दुखी होने का कोई न कोई बहाना निकाल ही लेते हैं |
दार्शनिक कहते हैं जीवन एक उत्सव है |आदमी को हर हाल में खुश रहना चाहिए, मस्ती में मस्त रहना चाहिए चाहे बस्ती में आग ही क्यों न लगी हुई हो |हमारी संस्कृति में तो शव-यात्रा तक को एक विशिष्ट फंक्शन बना देते हैं |बनारस में श्मशान में ही इस यात्रा में जाने वालों को रसगुल्ले और रबड़ी खिलाए जाते हैं |खाते-पीते रहने से गम कम व्यापता है |इसीलिए ज्ञानी लोग ख़ुशी और ग़म दोनों सेलेब्रेट करते हैं |
हो सकता है, कुछ लोगों को नोटबंदी से कष्ट हुआ होगा | हमें,आपको और मोदी जी जैसे सच्चे औरअच्छे लोगों को कोई कष्ट नहीं हुआ |जो काला धंधा करने वाले, आतंकवादी, रिश्वतखोर लोग थे उन्हें तो कष्ट होना ही था |उन्हीं को तो सीधा करने के लिए यह अभूतपूर्व और लोकहितकारी कदम उठाया गया था |
हम तो लोक-कल्याण के इस पावन दिन को आपके साथ मनाने के लिए दिल्ली आने वाले थे लेकिन नहीं आ सके |बात यह है कि कुछ तो उम्र बढ़ने से दवा का खर्चा बढ़ गया है और कुछ जी.एस.टी. में चक्कर में चीजों के दाम बढ़ गए हैं |नियमित सेवा वाले स्टाफ को तो सातवें पे कमीशन के अनुसार वेतन दे दिया लेकिन राष्ट्र हित और देश के द्रुत विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए हम रिटायर्ड लोगों को पे कमीशन नहीं दिया |तीन चार हजार रुपए पेंशन में बढ़ने वाले थे सो नहीं बढे |
वैसे हमें कोई शिकायत नहीं है |लोग तो राष्ट्रहित में अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं |हमसे तो आपने सातवें पे कमीशन के एरियर और फिक्सेशन का ही बलिदान लिया है |गीता सार में कहा भी जाता है-
'क्या ले के आए थे और क्या लेकर जाएँगे' | जिन प्रभावशाली लोगों के ऊपर वाले स्विस बैंक में खाता है, उनकी बात और है |हमसे तो यहाँ के पेंशन खाते में मिनिमम बेलेंस ही मुश्किल से मेंटेन होता है |
लोग कह सकते हैं कि नोटबंदी का क्या उत्सव मनाना ? क्यों भई, क्या शादी की वर्षगाँठ नहीं मनाते ? किसी मृतात्मा का श्राद्ध नहीं करते ? हर क्षण जीव मृत्यु की और बढ़ता जा रहा लेकिन फिर भी उसका जन्म दिन मनाते हैं |पर मीरा जैसी निराशावादी कवियत्री कहती है-
बढ़त पल-पल, घटत छिन-छिन
जात न लागे बार |
गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में अपनी कमियों का अपनी अच्छाइयों से अधिक बखान किया है |हिंदी के प्रसिद्ध लेखक बाबू गुलाब राय ने तो 'मेरी असफलताएं' नाम से एक पूरी पुस्तक ही लिख मारी |सभी के जीवन में सफ़लताएँ-असफलताएँ होती ही हैं |न तो उनसे घबराना चाहिए और न ही उन्हें छुपाना चाहिए |हर काम में कुछ गुण-दोष छुपे हुए होते हैं इसलिए हम प्रत्येक दिन और उत्सव को अपना और अपने कामों का मूल्यांकन करने का दिन बना सकते हैं |हमारा तो मानना है कि आदमी को अपने पिटने की भी वार्षिकी मनानी चाहिए |इससे आदमी को अपनी सहनशक्ति की याद बनी रहती है |क्षमताओं का विश्वास बना रहे |
कुछ लोग कहते हैं कि नोटबंदी के कारण अर्थ व्यवस्था में धीमापन आ गया |पता नहीं, उन्हें क्यों देश में बढ़ रहे अरबपतियों की संख्या, नित नई ऊँचाइयों पर चढ़ता हुआ सेंसेक्स और सौ करोड़ मोबाइल उपभोक्ता दिखाई नहीं देते ?
सभी तो मंत्री और बड़े आदमी होते नहीं कि नोटों को छुए बिना ही सारे काम हो जाएँ |सामान्य लोग जाने कैसे-कैसे धूल-मिट्टी और पसीने से सने हाथों से नोटों को छूते हैं | ऐसे में नोटों के गंदे होने और यहाँ तक कि काले होने की भी संभावना बढ़ जाती है |ऐसे में नोटों को बार-बार बदलते रहना चाहिए |स्वच्छ भारत अभियान की तरह नोटों की स्वच्छता के लिए इतना भगीरथ प्रयत्न आज तक किसी भी भारतीय नेता ने नहीं किया |और तो और अमरीका के इतिहास में भी कोई ऐसा राष्ट्रपति नहीं हुआ जो ऐसा साहसी और लोकहितकारी कदम उठा सकता |आप सब जिन्होंने भी यह सत्कर्म किया है, वे बधाई के पात्र हैं |
सारे नोट पुनः बैंकों में आकर सफ़ेद और नए हो गए हैं , बधाई |
हमें तो महिने में दो-चार दिन के लिए ही सही, नोट छूने का अवसर मिलता है तो नए-नए और करारे नोट छूकर देश के विकास और 'नए भारत' की अनुभूति होती है |
इस सन्दर्भ में एक निवेदन है कि नोटबंदी के कारण कालेधन वालों, रिश्वतखोरों, देशद्रोहियों, आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों की कमर टूट गई है |ये देश में जगह-जगह रास्तों में घिसटते फिर रहे हैं | हो सके तो इन दुष्टों को पूर्णतः समाप्त करने और सड़क की सफाई के लिए फिर नोटबंदी का एक और राउंड हो जाए |
क्या ख्याल है ?
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