जी.एस.टी.का जूता
आज तोताराम एक बड़ा-सा गत्ते का डिब्बा लिए हाज़िर हुआ |हिंदी फिल्मों में जब नायिका घर से भागती है तो एक बड़ा-सा सूटकेस हिलाती हुई मज़े से स्टेशन पहुँच जाती है क्योंकि वह वास्तव में खाली होता है |तोताराम की चाल से भी यही सिद्ध हो रहा था |लेकिन बंद डिब्बा तो बंद डिब्बा ही होता है |जब तक कुछ साफ़ दिखाई न दे तब तक उत्सुकता बनी ही रहती है जैसे घूँघट निकाले नायिका के प्रति |
हमने पूछा- इसमें क्या है ? तो बोला- पता नहीं, लेकिन प्रधान मंत्री ने भेजा है |हो सकता है सातवें पे कमीशन के बारे में कुछ हो |
हमने उसके हाथ से डिब्बा लेते हुए कहा- जल्दी खोल |
बरामदे में रखते हुए देखा कि उसके एक तरफ लिखा था- प्रेषक, कौशल विकास मंत्री, धर्मेन्द्र प्रधान, मध्य प्रदेश |
हमने कहा- क्यों हमें उल्लू बना रहा है |यह प्रधान मंत्री नहीं, धर्मेन्द्र प्रधान की तरफ से आया |
बोला- यही तो कौशल विकास है | मंत्री हैं और प्रधान भी तो 'प्रधान मंत्री' हुए कि नहीं ? और सब 'शोक' दूर करने वाले 'अशोक' हैं और कुशलता से कौशल का विकास करने वाले भी |अब कमी क्या रह गई ?
हमने कहा- कुछ भी हो, जल्दी खोल |
खोलते ही डिब्बे में से एक बड़ा-सा जूता निकलकर गिर पड़ा |
जिस पर टैग लगा था- जी.एस.टी. का जूता |यह तीन दिन तक काटता है लेकिन चौथे दिन सब ठीक हो जाता है |
हमने कहा- तोताराम, बात कुछ समझ में नहीं आई |
बोला- इसमें समझ में न आने जैसा क्या है ?यह उदारीकरण के युग का आविष्कार है जिसका ड्राइंग बनाया मनमोहन सिंह जी ने, सीया जेतली जी ने और पहना मोदी जी ने और काटेगा तुझे-हमें |तीन दिन की कोई गारंटी नहीं है, तीन महिने और तीन साल भी काट सकता है |और फिर स्पष्ट बहुमत मिल गया तो २०२४ तक भी काट सकता है |इसकी विशेषता यह भी है कि यह न तो बनाने वाले को काटता है और न ही बेचने वाले को |यह सिर्फ उपभोक्ता को ही काटता है |
हमने कहा- लेकिन इसे तुम्हारे पास भेजने का क्या मतलब है ? हम कौनसे व्यापारी हैं ? हमें कौनसा जी.एस.टी. चुकाना है ? हमें तो जो व्यापारी माँग ले, चुपचाप दे देना है 'नए भारत' के नाम पर |जब २३० रुपए एम.आर.पी. लिखी चीज दुकानदार १६०/-रुपए में देता है तो तू और तेरे मोदी जी इस बेईमानी का गणित क्या समझ पाएँगे ?
बोला- इसका मतलब प्रतीकात्मक है |हम जो अभी तक सातवें पे कमीशन के लिए मातम मन रहे हैं तो हमारे लिए भी इसके द्वारा एक प्रतीकात्मक संकेत है कि पे कमीशन से हमारी जितनी पेंशन बढ़ सकती थी, समझ ले सरकार ने उतनी जी.एस.टी. के जूते के नाम पर काट ली |हिसाब-किताब बराबर |
हमारे लिए तो जी.एस.टी. का यही देशी चमरौधे वाला जूता है |वैसे एक जूता वह होता है जिसमें सत्ता की दाल बँटती है और एक जूता चाँदी का भी होता है लेकिन वह अपने लिए नहीं, 'परिवार' वालों के लिए है |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment