Nov 4, 2017

विकासवाद बनाम परिवारवाद



 विकासवाद बनाम परिवारवाद  

जैसे ही हम बरामदे में पहुँचे, हमें देखते ही तोताराम बोला- बता कौन जीतेगा ? विकासवाद या परिवारवाद ? 

हमने कहा- विकास तो एक प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है |दिन-रात, प्रतिपल |यह प्रकृति का नियम है | विकास तो सूर्योदय, सूर्यास्त, ऋतु परिवर्तन की तरह स्वयमेव होता रहता है |डार्विन ने भी कुछ बनाया थोड़े ही था |उसने तो प्रकृति के इस परिवर्तन को विकासवाद के सिद्धात के नाम से परिभाषित मात्र किया था |और जहाँ तक परिवार की बात है तो उसमें भी क्या बुराई है ? वह भी विकासवाद की तरह सृष्टि में समानता और परिवेश से स्वतः बन जाता है जैसे एक ही परिवार या प्रजाति के फल, पशु-पक्षी आदि, एक नस्ल के मनुष्य |वैसे भी जो जीव-जंतु, वनस्पति एक ही स्थान या क्षेत्र में होते हैं तो वे एक ही परिवार के अंग जैसे हो जाते हैं |इसलिए हमारे अनुसार तो ये दोनों एक ही भाव के स्वरूप हैं |दोनों ही निर्बाध, निर्वैर और सहयोग से रहें |इसी में सृष्टि का कल्याण है |

बोला- एक छोटा-सा और सरल-सा प्रश्न किया था और तूने ज़वाब देने की बजाय 'मन की बात' की तरह झाड़ दिया दर्शन और अध्यात्म | मैं डार्विन के विकासवाद और जीवों के परिवार की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो गुजरात के चुनाव में मोदी जी के विकासवाद और राहुल के परिवारवाद की बात कर रहा हूँ |मोदी जी के अनुसार वे खुद विकासवाद के समर्थक हैं और राहुल गाँधी परिवारवाद के |अब बता इनमें से कौन जीतेगा ?


हमने कहा- यदि यही कला आती तो हम क्रिकेट का सट्टा नहीं लगाने लग जाते ? चुनाव के एक्जिट पोल का धंधा नहीं कर लेते ? नेताओं, व्यापारियों और अभिनेताओं के व्यक्तिगत ज्योतिषी नहीं बन जाते ? अरे, यही तो एक चीज है जो कोई नहीं जानता |यदि आदमी भविष्य को ही जान लेता तो फिर जीवन में रोमांच ही क्या रह जाता ? 

हम भविष्य तो नहीं बता सकते लेकिन यह ज़रूर बता सकते हैं कि विकासवाद और परिवारवाद में कोई भेद नहीं है | परिवार भी विकास का एक स्वरुप है |जो परिवार का नहीं हो सका वह अपना और देश-समाज का क्या विकास करेगा ?

क्या कांग्रेस ने कुछ नहीं किया ? क्या जिस नींव पर मोदी जी विकास का पिरामिड खड़ा करने का स्वप्न दिखा रहे हैं वह कांग्रेस की रखी हुई नहीं है ? जिस देश में आजादी के समय लिखने के होल्डर का निब नहीं बनता था वहाँ विमान बनाने के कारखानों का स्वप्न नेहरु जी ने नहीं देखा था ? क्या जिन बैंक खातों का हल्ला मचाया जा रहा है उनमें आम आदमी के प्रवेश की नींव इंदिरा गाँधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके नहीं रखी थी ? क्या जिस आई.टी.क्षेत्र में भारत का ज़िक्र करते मोदी जी नहीं थकते उसकी शुरुआत राजीव गाँधी ने नहीं की थी ?क्या जिस आधार कार्ड पर मोदी जी सारे सुधार करने का दावा कर रहे हैं वह मनमोहन जी की योजना नहीं थी ? 

बोला- ठीक है लेकिन मोदी जी का कोई परिवार नहीं है |जो था उसे भी मानवता के कल्याण के लिए सिद्धार्थ की तरह त्याग नहीं दिया ?

हमने कहा- उनका 'संघ परिवार' नहीं है क्या ? 

बोला- यह परिवारवाद नहीं, वसुधैव कुटुम्बकम का महान चिंतन है | 

हमने कहा- फिर इसमें मुसलमान, ईसाई और दलित फिट क्यों नहीं हो रहे हैं ? जो नोटबंदी और जी.एस.टी. के क्रन्तिकारी कदम उठाए उन्हें देश अभी तक भुगत रहा है |जहाँ तक विकास की बात है तो अभी तक योजनाओं के नामों, बैंक खातों, जुमलों, नारों, विभिन्न योजनाओं के फॉर्म भरवाने का काम ही चल रहा है |

बोला- लेकिन तुझे मोदी जी के विकासवाद की तीव्रगति को तो मानना ही पड़ेगा कि जहाँ डार्विन के विकासवाद में लाखों वर्षों में राम-राम करके आदमी की पूँछ मात्र झड़ पाई वहाँ मोदी जी ने तीन साल में ही बन्दरों को शाखाओं से उतारकर विश्वविद्यालयों के कुलपति के काबिल बना दिया |

हमने कहा-सुना नहीं, स्पीड थ्रिल्स बट किल्स |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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