May 28, 2023

बरामदा संसद में लट्ठ-स्थापना


2023-05-28  

बरामदा संसद में लट्ठ-स्थापना 


आज तोताराम देर से आया । ठीक आठ बजे । 

हमने पूछा- आज देर से कैसे आया ? हमने तो सोच लिया था कि शायद एक तिहाई सांसदों, पूर्व दलित राष्ट्रपति, वर्तमान आदिवासी महिला राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आदि के उद्घाटन समारोह में उपस्थित न होने के कारण बहुत सी सीटें खाली पड़ी होंगी तो उन्हें भरने के लिए मोदी जी ने तुझे बुला लिया होगा । इसलिए चाय के लिए तेरा अधिक इंतजार नहीं किया । 

बोला- चला तो जाता लेकिन महिने के अंतिम सप्ताह में इतने पैसे बचते ही कहाँ हैं कि दिल्ली-दर्शन कर आऊँ । 

हमने कहा- लेकिन तेरा माथा तो चंदन से ऐसे पुता हुआ है जैसे तू ही उद्घाटन में यजमान के रूप में बैठा था । 

बोला- वहाँ नहीं गया तो क्या, सुबह से ही कार्यक्रम से ऑनलाइन जुड़ा तो हुआ था ।मैंने भी वहाँ उपस्थित सभी भद्र जनों की तरह स्नान, तिलक-छापा भी उन सबके के साथ साथ ही कर लिए । जैसे दिल्ली में ध्वजारोहण होने के बाद ही देश के अन्य भागों में स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के ध्वजारोहण होते हैं । उसी परंपरा के तहत लोकतंत्र की प्रतीक संसद में राजदंड की स्थापना का इंतजार कर रहा था ।जैसे ही वहाँ दंड स्थापित हुआ, अपनी इस 'बरामदा संसद' में यह 'राजदंड' स्थापित करने के लिए चला आया । 


तोताराम ने हमारे हाथ में बेल के पेड़ का एक टेढ़ा-मेढ़ा, पाँच फुट का डंडा थमाते हुए कहा- आदरणीय, इस राजदंड को स्वीकार करें और इसके बल पर 'बरामदा संसद' पर निर्विघ्न राज करें । 

हमने कहा- तोताराम, देश में लोकतंत्र है इसमें न कोई राजा होता है और न कोई प्रजा । सभी इस देश के नागरिक हैं और उन सबको सभी प्रकार की भिन्नताओं के बावजूद समान अधिकार प्राप्त हैं । संविधान और कानून की दृष्टि में सब समान हैं ।  

बोला- ये सब कहने की बातें हैं । संसद में स्पष्ट बहुमत वाला प्रधानमंत्री कुछ भी कर सकता है ।उसकी सनक ही कानून होती है ।अध्यादेश लाकर ही किसी भी चुनी हुई राज्य सरकार के अधिकारों पर डाका डाल सकता है । जरा सी बात पर किसी की भी सदस्यता छीन सकता है । किसी को भी जेल में डलवा सकता है और मरने तक जमानत भी नहीं होने देता । आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करके 'जय बजरंग बली' बोलकर ईवीएम का बटन दबाने का आदेश दे सकता है । 

हमने कहा- लेकिन यह तीन रुपए की डंडी थमाकर क्यों हमारा मज़ाक उड़ा रहा है । राजदंड तो चांदी का होता है सोने का पानी चढ़ा । देखा नहीं, मोदी जी के हाथ में सेंगोल ? कैसे चमक रहा था । चमड़े, कपड़े या रबर के जूते से ताकतवर आज भी चांदी का जूता होता है । किसी को भी मारो तो दल बदल लेता है।चांदी के जूते जेब में हों तो  बिना चुनाव जीते ही, बनी बनाई संसद ही खरीद लो । 




बोला- मास्टर, ऐसी बात नहीं है ।प्रारम्भिक दंड (लाठियाँ) सोने-चांदी के नहीं, किसी वृक्ष की शाखा के ही होते हैं ।सौ साल तक लकड़ी के दंड धारण करके तपस्या करनी होती है ।तब कहीं जाकर राजदंड हाथ आता है ।  



इस कॉलोनी में लोग घर के सामने पड़ी मिट्टी तक तसले में भर ले जाते हैं । कौन कितने दिन लगा रहने देना इस बरामदे में चांदी का राजदंड । और फिर निर्देशक मण्डल में पटकी गई इस  'बरामद संसद'  की औकात ही क्या है ? संसद के उद्घाटन तक में नहीं बुलाया जाता । 

हमने कहा- संस्कारी लोगों की संस्कारी पार्टी का यह हाल ? लोकतंत्र सहमति, संवाद, संवेदना, समावेशन, समायोजन और समता का नाम है । यहाँ राजा-प्रजा और मालिक-गुलाम का रिश्ता नहीं होता जो डंडे से डराकर शासन किया जाए । 

बोला- मास्टर, यह सब व्यक्ति, उसकी नीयत, परवरिश, शिक्षा और मानसिकता पर निर्भर करता है । जीवन में सब कुछ लिखित ही नहीं, बहुत कुछ अलिखित भी होता है । कोई जन्मजात राजा भी अपने को जनता का सेवक मानकर चलता है तो कोई लोकतंत्र में कुछ समय के लिए वार्ड मेम्बर चुने जाने पर ही खुद को खुदा, देश का बाप, हिटलर और कंस  समझने लगता है । 

चल छोड़ यह प्रकरण । पोती को बुला । कम से कम इसे तू राजदंड या धर्मदण्ड जो भी समझे, ग्रहण करते हुए  एक फ़ोटो तो हो जाए । न सही प्रधान मंत्री, बरामदा संसद का आजीवन अध्यक्ष तो है ही । मैं भी तेरे साथ ओम  बिरला की तरह चिपक लूँगा । 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment