Aug 25, 2024

शाखामृग भाई साहब और कंप्यूटर का की बोर्ड

 

शाखामृग भाई साहब और कंप्यूटर का की बोर्ड 


आज तोताराम बहुत खुश था वैसे ही जैसे 400 पार के नारे के बाद भी 240 पर लटक जाने के बावजूद भाई लोग खुद को 140 करोड़ का प्रतिनिधि बताते डोल रहे हैं । नीचे से पायजामा गीला हो रहा है लेकिन ऊपर से मूँछें ऐंठ रहे हैं । एक बार किसी बाहुबली साँड़ महोदय को गली के पिल्लों ने दौड़ा लिया तो साँड़ जी ने घबराकर अपने पिछवाड़े से निसृत तरल पदार्थ से राजपथ पर रंगोली बना दी लेकिन दिखाने के लिए टाँड़ना चालू रखा । जब किसी ने पूछा- टाँड़ क्यों रहे हो ? बोले- हम साँड हैं, हम नहीं टाँडेंगे तो क्या बकरी टाँडेगी ? प्रश्नकर्ता ने फिर पूछा- तो यह पीछे से क्या प्रवाहित हो रहा है ? तो बोले- गोबर । गाय के जाये हैं,  गोबर नहीं करेंगे तो क्या अंडा देंगे ? 

बात तो सही है । 


हमने पूछा- क्या बात है तोताराम,  कहीं मोदी जी ने लेटरल एंट्री की तरह 18 महिने के डी ए  पर तो रोल बैक नहीं कर लिया मतलब थूककर नहीं चाट लिया ।कब दे रहे हैं बकाया ? पहले तो चुनाव से पहले आयकर और तथाकथित अर्थशास्त्रियों से कहलवा रहे थे कि केन्द्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की बल्ले बल्ले होने वाली है लेकिन जुलाई निकलते ही टाट पलट दिया । अब भागो । खेल खतम, पैसा हजम ।  

बोला- वे कोई और होंगे जो अपने निर्णय से डिग जाएँ । ये मोदी जी हैं । 

चंद्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार 

किन्तु वचन से ना टरै मोदी की सरकार 

कुछ भी हो जाए लेकिन पहलवान लड़कियों, मणिपुर, नोटबंदी, तालाबंदी आदि क्या किसी के बारे में किसी की सुनी ? पंचों का कहना सिर माथे लेकिन पतनाला वहीं गिरेगा । मतलब ओल्ड पेंशन के बारे में नहीं मानेंगे । तो नहीं ही माने । लेकिन मोदी जी के मन में जनता के हर वर्ग के लिए अपार करुणा है इसलिए यूपीएस लाए हैं । 


हमने कहा- मोदी जी रोज ऐसे ही कुछ न कुछ जुमलों का संक्षिप्तीकरण करते रहते हैं । अब यह नया यूपीएस क्या ले आए ? वैसे कंप्यूटर में भी एक यूपीएस होता है जो उसकी विद्युत सप्लाई को नियमित रखकर कंप्यूटर की सुरक्षा करता है । 


बोला- तेरा अनुमान ठीक है । यह आगामी चुनाव के संभावित डेमेज को कम करने के लिए ही एक व्यवस्था है । पहले अटल जी 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना लाए थे एन पी एस । लेकिन कर्मचारी ओल्ड पेंशन की ही मांग पर अड़े रहे और हो गया 2024 के चुनावों में नुकसान । सो अब लाए हैं यूनीफाइड पेंशन स्कीम मतलब यूपीएस । आज ही मंत्री जी बता रहे थे नई यूपीएस के फायदे । 


हमने पूछा- लेकिन यह है क्या ? अगर कर्मचारियों के सहानुभूति है तो उन्हें पुरानी पेंशन देने में क्या नुकसान है ? यह नई स्कीम लाने की क्या जरूरत है ? बना बनाया सेट अप है उसे फॉलो करने में क्या नुकसान है ? 


बोला- इस देश के 2014 से पहले बहुत से नाकाबिल लोगों ने बहुत नुकसान किया है । अब भाग्य से कोई काबिल व्यक्ति आया है जो बिगड़ा हुआ सब कुछ ठीक कर डालेगा । 


हमने कहा- जब कर्मचारी पुरानी पेंशन मांग रहे हैं तो दे दो । यह बिना बात की तीन-पाँच लगाने की क्या जरूरत है । कई राज्यों ने तो पिछले साल ही नई पेंशन स्कीम की जगह पुरानी पेंशन स्कीम लागू भी कर दी थी। 


बोला- जब बंदे के पास ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी और संवेदना है तो नया और बेहतर करने में क्या नुकसान है ? 


हमने कहा- हमें तो इस स्थिति के लिए एक कहानी याद आती है । किसी देश में एक पेड़ पर एक बूढ़ा बंदर रहता था । वह बड़ी कुशलता से एक शाखा  से दूसरी शाखा पर उछलता रहता जो कि किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं था । वह दो हाथों से काम कर सकता था और चार पैरों से कुशलतापूर्वक चल-दौड़ भी सकता था । उसकी शक्ल कुछ कुछ मनुष्यों से भी मिलती थी । वैज्ञानिक भी कहते थे कि यह मनुष्यों का पुरखा है । इसलिए वह खुद को कुछ ज्यादा ही समझता था, और फिर उसके एक लंबी पूंछ भी थी जो मनुष्यों को नहीं थी । इसलिए वह खुद को मनुष्यों से श्रेष्ठ समझता था । 

एक बार उसका एक राजा से परिचय हो गया । शाखामृग की बड़ी बड़ी बातों से प्रभावित होकर उसने उसे नौकर रख लिया । एक दिन राजा सो रहा था और शाखामृग उसकी सेवा में नियुक्त था। शाखामृग ने देखा कि एक मक्खी बार बार आकर राजा की नाक पर बैठ जाती थी । इससे राजा की नींद में विघ्न पड़ता था । शाखामृग ने मक्खी उड़ाने के लिए खूंटी पर लटकी तलवार उतारकर मक्खी पर चला दी । मक्खी तो उड़ गई और उसके साथ ही राजा की नाक भी । राजा ने उसे नौकरी से निकाल दिया । 





इसके बाद समय बदला । नई तकनीकें आईं । कंप्यूटर भी आए। सब कुछ डिजिटल होने लगा । शाखामृग भी कहता फिरने लगा कि वह हजारों वर्षों से ही इस डिजिटल तकनीक का उपयोग करता रहा है । उसकी बातों से प्रभावित होकर राजा ने उसे कंप्यूटर विभाग का प्रधान सेवक बना दिया । कंप्यूटर पर बैठते ही शाखामृग अपने काम में व्यस्त हो गया । न दिन में चाय पी, न पेशाब के लिए गया, न लंच किया । बस, सिर झुकाए चुपचाप काम में लगा रहा । सुबह आठ बजे कंप्यूटर पर बैठा था और लगातार काम करता रहा अगले दिन सुबह के चार बज गए । राजा बहुत आश्चर्यचकित था । ऐसा समर्पित सेवक ! 

 

राजा ने शाखामृग से कहा- आपको काम करते 20 घंटे हो गए हैं । हम आपकी काम के प्रति इस समर्पण भावना से बहुत प्रभावित हैं । अब आपको कुछ विश्राम करना चाहिए । 


सेवक उठा। राजा ने उसके लिए चाय मँगवाई । चाय पीते हुए राजा ने सेवक से पूछा- आज तो आपने बहुत काम किया, सांस तक नहीं लिया । क्या क्या काम किया  ?


प्रधान कंप्यूटर सेवक शाखामृग ने कहा- नया काम तो कुछ नहीं किया । आपके पिछले कर्मचारियों ने इसका की बोर्ड ही ढंग से नहीं बना रखा । ए बी सी डी तक का होश नहीं । शुरू ही क्यू, डब्लू, ई से कर रखा है । आज तो मैंने बड़ी मुश्किल से की बोर्ड को ए बी सी डी के क्रम से सेट किया है । अब कल से काम शुरू करेंगे । 


राजा अब अपना कंप्यूटर ठीक करवाने के लिए घूम रहा है । जब तक कंप्यूटर ठीक नहीं हो जाए तब तक सब काम बंद । 


वही हाल हुआ पड़ा है जैसे किसी ऑफिस में काम करवाने जाओ और बाबू कहे कि सिस्टम डाउन है । ठीक हो जाएगा तो शुरू करेंगे । तब तक बैठिए, या चाय-वाय पी आइए या फिर कल आइए ।



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Aug 24, 2024

क्या दिल्ली जा रहा है ?



क्या दिल्ली जा रहा है ?


जैसे प्रचंड साहसी और समर्पित श्रद्धालु किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल के सामने माइक लगाकर जोर जोर से संगीत बजाकर अपने संकट में आ चुके अपने धर्म को बचाने का पुण्य काम करते हैं उसी श्रद्धा, समर्पण और नियमितता से गली का एक मरियल सा कुत्ता सुबह चार बजे सड़क पर जोर जोर से भूँकता है तो हमारी नींद खराब होती है । 


कुछ दिनों पहले तो हम जैसे अस्सी पार के पेंशनयाफ़्ता अति वरिष्ठ नागरिकों को यू ट्यूब पर वीडियो बनाने का धंधा करने वाले आयकर के विशेषज्ञों ने तरह तरह की छूटों और एरियरों का अनुमान बता बताकर रोमांचित कर रखा था ।’बल्ले बल्ले होने वाली है’ जैसे जुमले फेंक फेंककर इतना उत्साहित कर दिया था कि जब भी रात में नींद खुलती तो एरियर का हिसाब लगाने लगते थे । वास्तव में हिसाब लगाना तो जब नौकरी में थे तब भी नहीं आया । जो पेंशन स्लिप में थोड़ी सी वृद्धि दिखाई दे जाती उसी से खुश हो लिया करते थे । अंततः अब इंतजार कराते कराते सरकार ने वृद्ध जन  अपना अंतिम कल्याणकारी निर्णय सुना ही दिया है कि 18 महिने का एरियर नहीं मिलेगा । आयकर में कोई विशेष छूट नहीं दी जाएगी, गैस में कोई सबसीडी भी नहीं, इलाज या मेडिकल भत्ते में कोई वृद्धि नहीं । जिओ तो जिओ; मरो तो और भी अच्छा । जिओ के अलावा कोई और जीकर करेगा भी क्या ?  बूढ़े कौन से इलेक्ट्रॉल बॉण्ड खरीदते हैं । सरकार के इस निर्णय से भले ही निराशा हुई लेकिन ‘तार टूटा और राग पूरा’ की शैली में एक प्रकार की शांति हुई । 

 

तो हम बात उस कुत्ते ( और अमृतकाल की भाषा के अनुसार दिव्याग की तरह कहें तो ‘श्वान’ ) की कर रहे थे जो सुबह चार बजे अपने ‘कुत्तत्व’ की रक्षा के लिए गली में आकर भूँकता है । उसकी भाषा हम नहीं जानते । हम तो उस वस्त्र विन्यास को भी अच्छी तरह से नहीं समझते जिससे देशद्रोहियों का निर्धारण होता है तो उस निर्वस्त्र श्वान को कैसे पहचानते कि वह किस धर्म का है । वैसे कुत्तों का कोई धर्म या किसी धर्म की शाखा होती भी नहीं । उनका धर्म तो रोटी डालने वाले के सामने पूंछ हिलाना और उसके इशारे पर किसी पर भी भूँकना होता है । उसके गले में काँवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले एक खास धर्म के फल और होटल वालों की तरह कोई नामपट्टिका लगी होती तो भी पहचान लेते । 


 इतना तय है कि उसके भूँकने से हमारा पालतू श्वान भी भूँकने लगता है जिससे हमारी नींद और राष्ट्र के सुशासन में बाधा पड़ती है । इसीलिए बेमन से ही सही उसे भगाने के लिए हम जैसे ही सड़क पर आए तो देखा कि तोताराम जयपुर रोड़ की तरफ चला जा रहा है ।


हमने छेड़ा- इतनी सुबह-सुबह ! प्रातः-भ्रमण या देव-दर्शन ? 


बोला- इनमें से एक भी नहीं । आज तो दिल्ली के लिए निकला हूँ । 


हमने कहा- आज तो ‘भारत बंद’  है । 


बोला- याद रख, 2014 के बाद भारत न कभी बंद होता है, न उसका विकास मंद पड़ता है । वह निरंतर आगे बढ़ रहा है । और अब तो मोदी जी लाल किले से बता दिया है कि एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए ‘इंक्रीमेंटल’ वृद्धि नहीं, छलांग लगाने का ‘अमृतकाल’ चल रहा है । 


हमने कहा- तुझे पता होना चाहिए एक एक सीढ़ी की बजाय दो दो सीढ़ी छोड़कर चढ़ने से निक्कर भी फट सकता है । 


बोला- मेरे पास तेरी तरह फालतू समय नहीं है । ज्यादा देर हुई तो दिल्ली वाली ट्रेन निकल जाएगी । 


हमने कहा- अगर एक दिन पहले निकल लेता तो मोदी जी के साथ फ्री में पॉलैंड की यात्रा ही कर आता । ।अब तो वे निकल लिए । दो चार दिन बाद चले जाना, ऐसी क्या जल्दी है । बिना बात रास्ते में पुलिस धर लेगी तो मुश्किल हो जाएगी । 


बोला- मैंने थैले में एक छोटी काँवड़ रख रखी है । पुलिस दिखाई देते ही इसे थैले से निकालकर कंधे पर रख लूँगा । कह दूंगा, काँवड़ लेने जा रहा हूँ । थोड़ा लेट हो गया । फिर तो पुलिस वाले मेरे पैर दबाएंगे, खाना खिलाएंगे, पुष्प वर्षा करेंगे । हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू सरकार होने का कुछ तो लाभ मिलेगा ।  सुना है मोदी जी ने देश को शीघ्र विकसित करने के लिए काबिल लोगों की सेवा का लाभ लेने के लिए लेटरल एंट्री नाम की कोई योजना निकाली है । 


हमने पूछा- यह लेटरल एंट्री क्या होती है ?


बोला- इसके तहत सरकार अपनी मर्जी से किसी को भी सीनियर आई ए एस की तरह भारत सरकार में सचिव, उप सचिव जैसा कोई महत्वपूर्ण पद दे सकती है । 


हमने कहा- लेकिन वह योजना तो प्रतिपक्ष के विरोध के कारण वापिस ले ली गई । 





बोला- यह सब तो दिखाने के लिए किया गया है । इसे शुद्ध हिन्दी में ‘पिछवाड़ा-प्रवेश-पद्धति’ कहते हैं । आगे से नहीं तो पीछे से घुसवा देना । जैसे अपने किसी प्रिय कर्मचारी को उसके वांच्छित स्थान पर पद खाली न होने पर डेपुटेशन के बहाने सेट करवा देना । वैसे ही जैसे लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद बारहवीं पास स्मृति ईरानी को राज्य सभा नामक पिछवाड़े से घुसाकर शिक्षामंत्री बना देना । या अमृतसर से लाखों वोटों से हार जाने वाले जेटली को वित्तमंत्री बना देना । और फिर इसमें बुराई क्या है ? कांग्रेस ने भी तो मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह, रघुरामन, निलेकणी, पित्रोदा आदि को पिछवाड़े से ही तो घुसाया था । 

हमने कहा- इसका मतलब मनमोहन सिंह और स्मृति दोनों एक समान हो गए । मनमोहन जी ने कठिन समय में अपनी प्रतिभा और ईमानदारी का लोहा देश-दुनिया से मनवाया है । और ये महिला और बालकल्याण मंत्री होकर भी मणिपुर, हाथरस, उन्नाव, कठुआ और महिला पहलवानों पर चुप रहीं । 

तूने ‘अनीता’ फिल्म का वह गाना नहीं सुना- कैसे करूँ प्रेम की मैं बात , पिछवाड़े बुड्ढा खाँसता । कोई तो बोलेगा । 


बोला- कोई नहीं बोलेगा । सबको अपना अपना मंत्री पद प्यारा है । बोलेगा तो आडवाणी जी की तरह बरामदे में बैठा दिया जाएगा । और आडवाणी जी भी किस मुँह से बोलेंगे । उन्होंने तो खुद मोदी जी को अनेक लोगों के प्रतिरोध के बावजूद मोदी जी को इसी ‘पिछवाड़ा प्रवेश पद्धति’ से पहले गुजरात का मुख्यमंत्री और फिर 2014 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनवाया था ।


इतने दिन राष्ट्र और संस्कृति की सेवा की है । न सही किसी मंत्रालय में सचिव या राज्यसभा का सदस्य । अपनी तो किसी अकादमी के अध्यक्ष पद में ही बल्ले बल्ले हो जाएगी । फिर तेरे लिया इस बार का अकादमी अवॉर्ड पक्का । 


हमें कहा- लेकिन तोताराम, पिछवाड़े से घुसने में गंदगी में सन जाने का खतरा तो रहेगा । उस स्थिति में तेरा ब्राह्मण जन्म तो भ्रष्ट हो जाएगा । 


बोला- ऐसी कोई बात नहीं है । वहाँ एक बड़ी वाशिंग मशीन लगी हुई है उसमें गंगा-स्नान से भी न धुल सकने वाली अपवित्रता और गंदगी धुल जाती है । 



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Aug 19, 2024

2024-08-19 देखने की चीज

2024-08-19    

देखने की चीज 


जैसे गत लोकसभा चुनाव में सेवा करने के लिए मरा जा रहा हर देशभक्त अपने कर्मों का बखान करने की बजाय ‘मोदी की गारंटी’ हमारी छाती पर रख देता था वैसे ही आज तोताराम ने एक विश्वसनीय अखबार का शेखावाटी संस्करण हमारी आँखों में घुसेड़ते हुए कहा- ले देख । 

हमने कहा- अब देखने की चीजों का ज़माना बीत गया । देखने की चीज तो 1962 में हुआ करती थी । 

बोला- तो क्या अब इस महान राष्ट्र में कुछ देखने लायक बचा ही नहीं क्या ? 

हमने कहा- बचा क्यों नहीं ? आज तो हर उचक्का ब्यूटी पार्लर में संसाधित होकर जनता के सिर पर चढ़ा आ रहा है ।लेकिन तुम्हारी बात से हमें 1962 की शक्ति सामंत की फिल्म  ‘चाइना टाउन’ के गाने

 ‘बार बार देखो, हजार बार देखो, 

देखने की चीज है हमारा दिलरुबा 

ताली हो, ताली हो, ताली हो ।। 

की याद आ गई । 

हमने फिल्म तो नहीं देखी लेकिन तब हमारी पहली नियमित नौकरी लगी थी सीमेंट फेक्टरी सवाईमाधोपुर के स्कूल में । वहाँ समाज कल्याण विभाग की तरफ से एक गायक मंडली आई थी जिसमें एक महिला नर्तकी ने यह गीत गाया था और लोगों ने उसे वंस मोर, वंस मोर करके बहुत परेशान किया था क्योंकि उन दिनों स्टेज पर महिला कलाकारों के दर्शन बहुत कम हुआ करते थे। लड़के ही लड़कियों की भूमिकाएं निभाया करते थे । तब उससे बड़ी देखने की कोई चीज नहीं थी । हालांकि फिल्म में यह गीत मोहम्मद रफी ने गाया है और इसे शम्मी कपूर पर फिल्माया गया है लेकिन गायक मंडली में इस गीत पर नृत्य एक लड़की ने किया था । इसलिए उसका ‘ताली हो’ भी दर्शकों को ‘डार्लिंग हो’ सुनाई दे रहा था । और अब हाल यह हो गया है कि कोई ‘जोशी’- ‘जोशी’ बोलता है तो हमें ‘मोदी-मोदी’ सुनता है ।     

बोला- कोई बात नहीं, एक बार ध्यान से देख तो ले । देखने की ही नहीं, पूजने और भजने की चीज है । 

हमने देखा तो मुख्य सेवक जी रूमाल से पसीना पोंछ रहे थे लेकिन उनका जलवा और रुतबा प्रधान सेवक जी से कम नहीं था । 

तोताराम ने कहा- हो गया ना मुग्ध ! अरे, नीचे केपशन भी तो देख । 



(अपना पसीना खुद पोंछते मुख्य सेवक )  


हमने ध्यान से देखा तो पाया, लिखा था- अपना पसीना खुद पोंछते हुए—---। 


 हालांकि प्रभु हमारे बच्चों की उम्र के हैं लेकिन इतने बड़े पद पर रहते हुए, इतने अनुचरों और शुभचिंतकों के होते हुए इतनी विनम्रता कि अपना पसीना खुद पोंछ रहे हैं । 


हम मुग्ध भाव से निहार ही रहे थे कि तोताराम ने हमें वैसे ही छेड़ा जैसे किसी मुग्धा नायिका को उसकी सहेलियां छेड़ती हैं- 82 साल के इस जीवन में देखा है कभी किसी सेवक का ऐसा विनम्र विग्रह ?

 

हमने स्वीकार किया- सच तोताराम, हमने कभी इस तरह, इस जीवन में ही क्या, पिछले जन्म में भी किसी चक्रवर्ती सम्राट, बादशाह, देवता या अवतारी पुरुष को भी ऐसा कठोर श्रमसाध्य काम करते हुए नहीं देखा । वैसे तो सुनते हैं कि राष्ट्रपति को कोट, जूते आदि पहनाने के लिए भी नौकर होते हैं लेकिन कभी किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को नहीं देखा कि कोई उन्हें जूते पहना रहा हो, कोई उनका पसीना पोंछ रहा हो, कोई उन्हें खाना खिला रहा हो या उन्हें स्नान करवा रहा हो । 


वैसे बड़े लोगों की बड़ी बात होती है । देखा नहीं, देवताओं और बादशाहों की मक्खियाँ उड़ाने के लिए चँवर डुलाने वाले होते हैं। उनका पान का डिब्बा साथ लेकर चलने वाली परिचारिकाएं तक हुआ करती थीं । वे चाहते तो खाना भी खुद न चबाते बल्कि कोई खाना चबाने वाला परिचारक भी रख सकते थे । 


बोला- और क्या ? ऐसा सेवा भाव और सादगी वास्तव में दुर्लभ है । प्लेन में भी चैन से नहीं बैठते । वहाँ भी फ़ाइलें देखते मिलेंगे ।पसीना भी मेहनती लोगों को आता है । लगता है इनसे पहले वाले कोई काम करते ही नहीं थे तभी किसी का पसीना पोंछते हुए कोई फ़ोटो नहीं मिलता ।  




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